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________________ Awarwww महती जातिसेवा तृतीय भाग [६८९ अर्पण करनेकी दरख्वास्त की और कहा कि यह ७ वर्षसे इस छात्रा. श्रमके मंत्री रहे हैं । मेवाड़ा कौममें यह माननीय ओहदेदार हैं। हाल में यह जर्मनीके प्रभाससे लौट कर आए हैं नहा यह व्यापारके लिये गए थे । परीख लल्लूभाई अपने भाई मन्नूलालके साथ ता. १३ ___ अगस्त १९०८ शनिवारको बम्बईसे इजिप्त परीख लल्लूभाई नामके जहाज़ पर बेठे । उसमें ३५ और भी प्रेमानंदको हिन्दुस्तानी थे । ये अपने साथ पूरी, मिठाई, मानपत्र। और फलादि ले गए थे। उन ही को रास्त में खाते थे। यह जहाज़ अरेवि न समुद्र में चलता हुआ बुधवार तक पानी ही पानी का दिखाव करता था । झोंकोंसे मस्तक फि'ता था व भोजनकी रुचि कम होती थी। ५ दिन बाद गुरुवारकी मांझको ४ बजे महाज़ एडन शहरके पास पहुंचा। यहां २ घंटे ठहरा । फिर रेड सीमें जाने लगा। यहां हवा अच्छी थी। से मबारको १२ बजे सबेरे जहान विलायतकी यात्रा । सुएजकी नहर में चलने लगा। बंबईसे एडन १६०० मील व एडनसे सुएज ११०० मील था । सुएजसे पोर्ट सेड तक १०० मीलकी नहर खोदी हुई है। सुएज़ एक गांव आफ्रिकाके इजिप्त राज्यके आधीन है। देश ऊनड़ मालूम होता था । नहरके दोनों तरफ रेतीके समूह देख पड़ते थे। यहां ३ घंटे ठहर कर जहाज़ ३॥ बजे पोर्टसेड़में पहुंचा यहां १२ घंटे तक स्टीमर ठहरा । यह पोर्टसेड इजिप्त राज्यके आधीन है । अरबोंकी वस्ती है जो मांसाहारी हैं। शहर कुछ शोभनीक है । खच्चरोंकी ट्रामगाड़ी है । स्त्रियां परदा करती हैं। ४४ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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