________________
२२२] अध्याय सातवाँ । (पायरी) करनेका काम कुछ हुवा नहीं है । वैशाख शुद्ध १२ शके १८०७ मुक्काम श्रवण बेळगुळ ब्रह्मसूरि शास्त्री.
. इस पत्रसे यह भी पता लगेगा कि शास्त्रीजी अपने भंडारके ग्रंथों के प्रकाशनके लिये बड़े उत्सुक थे तथा जो मरम्मत व सीढ़ी आदिके कामके लिये सेठ हीराचंद व माणिकचंदनी अपनी यात्रामें कह आए थे उनकी पूर्तिका उनको कितना बड़ा ख्याल था । उम समय नागपुर गादीके भट्टारक विशालकीर्ति बड़े प्रसिद्ध थे, ‘विद्वान भी थे। आपने एक पत्र सेठ हीराचंदको भाद्र वद ३ शाके १८०७ को लिखा है जो जैनबोधक अंक ५ जनवरी १८८६ में छपा है इसका कुछ अंश प्रगट किया जाता है।
" जैन बोधक देखके हर्ष हुआ। इससे जैन मतकी प्रसिद्धि करने में सुलभता होगी। जैन मतके पूजा पाठादिक व पुराणस्तोत्र पाठादिक लेखकोंकी अज्ञानतासे अशुद्ध पाई जाती हैं उनको शुद्ध कराकर प्रगट करो । जैन धर्मी स्वतंत्र छापाखाना रक्खों । उसकी वर्गणी करो हम मी शामिल होंगे। जैनियों के सिवाय दूसरोंको न वेचें । जो पुस्तक छपे वे पहले विद्वान मंडलीसे शुद्ध करा ली जावें।"
सन् १८८७में उक्त भट्टारकने शोलापुरमें चातुर्मास किया था। दोनो वक्त शास्त्रका व्याख्यान करते थे । एक दफे सभामें यह प्रश्न हुआ कि रात्रिको अभिषेक व अष्ट द्रव्यसे पूजा करनी या नहीं आपने समाधान दिया कि- रात्रि अभिषेक किंवा अष्ट द्रव्योंसे पूजा करना योग्य
नहीं। त्रिकाल पूजा करनेके अर्थ यह है कि रात्रीको पूजा न करना। सवेरे अभिषेक और अष्ट द्रव्यसे पूजा करनी, ..... . दुपहरको पुष्पोंसे पूजन करना ओर संध्याको
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org