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________________ अध्याय तेरहवां । आत्माने अहोनिश शान्ति बक्ष एटली हमारी अनन्य भावे प्रार्थना छे, तेमन आपणे "गोल्डस्मिथ " ना शब्दोमां कहीशु केम्हारी रमतगमतना मित्र, पुराण शी प्रोत, सदा सुखी रहेजे: तुज घरनी चोकी प्रतिपाळ करो, स्थळी देव जे जे ते. ॐ शांतिः शांतिः शांतिः लघभ्राता-सरैया, सुरत. ('दिगंबरजैन' वर्ष ७, अंक ११) ___ अनुकरणीय पुरुषतुं अवसान. प्रिय जैन बंधुओ, महात्मा कबीग्नुं वाक्य छे के" जब तुम आये जगतमें, सब से तुम रोयः ऐसी करणी कर चलो, तुम हसे सब रोय." __ अर्थ-हे पुरुष ! ज्यारे तारो जन्म आ दुनियामां थयो हतो, ते वखते तु तो रोतो हतो, पण तारा मातापिता तथा अन्य सगांसंबंधी तारा जन्म (पुत्रप्राप्ति) ना समाचार जाणीने हस्तां हता; हवे तुं एवी करणी करीने दुनियामांथी जजे के जेथी मरते समये तुं हसे ने तारा मरणथी अन्य मघळा रडे. भावार्थ-ए छे के ज्यारे मनुष्य सुकृत करीने आ दुनियामांथी जाय छे, त्यारे तेने एमन लागे छे के आ दुनियामां आवीने में तो मारुं कर्तव्य बजाव्युं छे, पण तेवा माणसना वियोगथी सबळा आप्तजनो रुदन करे छे. . आजे आपणे तेवा एक नररत्नने आ संसारमांथी विदाय थई गएल जोईए छिए. दिगंबर जैन समाजमां एवा भाग्येन कोई माणस (al. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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