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________________ महती जाति सेवा प्रथम भाग | [ ४७५ सेठ हरजीवन रायचंद लिखते हैं कि सेठजीको अपने धनवानपनेका जरा भी मान न था । भोजन और शयन भी गुजरातके आनेवाले सर्व भाइयों के साथ एक पंक्ति में ही करते थे, किसी भी तरहका असमान भाव अथवा मोटापन या जुदाईकी ज़रा भी भावना किसीके मनमें नहीं आने देते थे । बोर्डिगके कायदा कानूनकी चर्चा बहुत ही शांतिपूर्वक तथा न्याय से करते थे । हरएक ग्रामके मुख्य गृहस्थीकी मुलाकात लेकर वहांकी वस्ती, शिक्षा, मंदिरकी स्थिति आदि संबंधी बहुतसा हाल मालूम कर उनको योग्य सम्मति व मदद देते थे । शीतलप्रसादजीने इस वर्ष सेठजी में यह बात प्रत्यक्ष देखी और इनके सादे मिज़ाज़, सादे खानपान, रहनसहनको व सबके साथ मिलनसारी देखकर बड़ा ही हर्ष माना । सभा तीर्थक्षेत्र कमेटी के दफ्तर के खुलते ही व मुकद्दमेंकी रकमका जमाखर्च होते ही बम्बई प्रान्तिक सभाका श्री गजपंथाजी पर हिसाब व रिपोर्ट तय्यार हो गई तब परोपTE प्रान्ति कारी सभासदोंने श्री गजपंथाजी पर अधिवेशन करना निश्चय किया । इसके प्रबन्धार्थ हीराबाग में एक सभा हुई जिसके सभापति सेठ माणिकचंदजी हुए । अधिवेशन के खर्च के लिये ११०० ) का बजट हुआ व २५ महाशयोंकी स्वागत कमिटी बनी | सभापति सेठ चुन्नीलाल झवेरचंद, मंत्री दोशी पानाचंद रामचंद, सहायक मंत्री लल्लुभाई प्रेमानंददास तथा पंडित लालाराम, और कोषाध्यक्ष सेठ सुखानंदजी हुए । For Personal & Private Use Only सेठजीका सरल स्वभाव | Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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