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दानवीरका स्वर्गवास । [८६१ स्वार्थन अंगे तो सघळी दुनिया काम करे छे, पण निःस्वार्थ-- पणे अने ते पण बीजाना श्रेयने माटे महेनत करनारज महात्मा गणाय छे. एवी कोण सभा ने सोसायटी, कमीटी के मिटींग हती के जेमां शेठ माणकचंदनीए हाजरी नहीं आपी होय. जिंदगीनो घणो भाग जेणे परोपकार अर्थेन गाळ्यो हतो एवा महात्माने तो हालनी प्रनाए जाते निहाळ्यो छे, अने तेवो एक नर पोतानी कोममा होवानुं जे अभिमान आपणने हतुं ते महात्मानुं नाम भविष्यनी प्रजा पण याद करे तने माटे एक स्मारक फंड उभं करी हरेक आदमी पोतानी शक्ति तथा भाव मुजब ते फंडमां पैसा भरी पोताना उपर करेला उपकारनो बदलो फुल नहीं अने फुलनी पांखडी रूपे वाळशे एम लेखक इच्छे छ. आधुं फंड सुरतमा खोलायलुं छे अने तेमां रु. २५) मोकली आपुं हुं अने एन मुजब बीजा वांचकोने ए फंडमां रफमो मोकलवाने आग्रह करूं छु. आवी रीते उपकारी पुरुपनो यत् किंचित बदलो वाळवामां ज्यारे जैनसमाज पाछी पानी करशे तो एमन समजवु के समाज स्वार्थनीन सगी छे, तेम तेनी दशा सुधरवानी हजु घणीवार छे. आवा स्मारक फंडमां पण अगर कोईनुं श्रेय होय तो ते पण समाजनुंज न के मरनारन. फक्त शेठजीनी यादगारी रूपमांन आ पोतानाज फायदाने माटे करवानुं छे. आवा स्मारक फंडमांथी विद्यादान तथा विद्यावृद्धि के जे मरनारनो मूळ मंत्र हतो, तेने सारु कोई संस्था स्थापी अगर जे छे. तेमांथी लायक गणी तेने उन्नत दशाए पहोंचाडवामां आवशे, तो मरनारनो आत्मा स्वर्गमां रो रह्ये पण संतोष पामशे के तेना चाहनाराओए तेना उद्देशनी पुष्टि करी छे.
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