SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 756
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६७९ जिस दिन श्राविकाश्रम बम्बई आया उसी दिन हस्तनापुरमें ऐलक पन्नालालजीके करकमलोंसे वह ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम- ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम भी खुला जिसके लिये 'का स्थापन । लाला गेंदनलालजीने अपनी १००) मासिककी नौकरी छोड़ी व जिसमें १०००) नकदके सिवाय अपना जीवन अर्पण किया व १ पुत्रको भी दाखल कराया। लाला भगवानदीननीने भी अपनी स्त्रीको त्यागकर केवल एक छोटे पुत्र और अपनी बहनके पुत्रको आश्रममें दाखल कराकर आश्रमके. लिये अपना सर्वस्व दान किया। बाबा भागीरथजीने इसके लिये बहुत प्रयत्न किया । सेठनी इस बात को जानकर बहुत ही हषित बुए । शीतलप्रसादनी इस समय हस्तनापुरमें थे। पाठकोंको यह बात मालूम ही है कि सेठजी प्रवास करनेमें बिलकुल आलसी न थे। जिसदिन किसी भी धर्म कार्यको जाना होता था तुरत ही चल देते थे। हरएक यात्राका खर्च अपने पाससे ही करते थे। ता: १४ मई को आप सितारा गए। वहां जैनियोंके १०० घरका सार जातिके हैं पर वहां सितारामें जैन मंदिर जिन मंदिर न होनेसे व जैन धर्म क्या है स्थापनमें सेठजीका ऐसा न जाननेसे ये लोग कालिका देवीके मंदिप्रयत्न। रही में जाते थे जब कि इनके जो सम्बन्धी कोल्हापुर और पूनामें हैं वे जिन मंदिरनी जाते हैं वे भी अपनेको जैन कहते हैं। सेठजीने मराठीमें उपदेश देकर जैन धर्मका व्यवहारिक ज्ञान कराया व जिनेन्द्रविम्ब दर्शनका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy