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युवावस्था और गृहस्थाश्रम । [१४९ बात ज्यों २ प्रसिद्ध हुई और लोग भी ऐसा करने लगे । इस तरह इस क्षेत्र व प्रतिमा दोनोंको केशरियाजीके नामसे पुकारने लगे। यह भव्य मूर्ति करीब ६ फुट उंची पद्मासन श्याम वर्ण अति सौम्य है। इस पर कोई सम्बत नहीं है इससे यह संवत लिखनेके रिवामसे पहलेकी निर्मापित है। इसके चारों ओर और भी दि. जैन मूर्तियां एक धातुपटमें अंकित हैं। इस मूल मंदिरके चारों ओर और भी वेदिया हैं जिनमें दि० जैन मूर्तियां विराजमान हैं, मन्दिरके चारों ओर एक बड़ा भारी कोट हैं जिसको सागवाडा निवासी हमड़ जातीय दिगम्बर जैनी सेठ धनजी करणजीने सं० १८६३ में बनवाया था। इस क्षेत्रकी भक्ति करनेको दिगम्बर श्वेताम्बर सर्व जैनी जाते हैं। पहले सर्व प्रबन्ध दि. जैनियोंके भट्टारकोंके हाथमें था, पीछे उनकी ढीलसे राज्यने एक कमेटीके आधीन किया है जिसमें ८ मेम्बर हैं उसमें अधिकांश श्वेताम्बरी हैं, इससे वहां प्रतिमाओं पर केशार फूल व शृंगारादि होने लगा है। श्वेताम्बरियोंने मूल प्रतिमाजी पर कई वार चक्षु चढ़ाना भी चाहा था परंतु इस प्रतिमाजीके अतिशयके कारण वे ऐसा न कर सके । यद्यपि यहां १०० घर दि. जैनयोंके हैं पर प्रायः सर्व मामूली व्यापारी हैं । मुखिया सेठ बच्छरानजी व सेठ छगनलालजी हैं। यह मंदिर इतना प्रसिद्ध है व इसकी ऐसी मान्यता है कि इसके चारों ओर शिकार
खेलना व मत्स्यादि मारना मना है।गांवके बाहर सूर्य कुंड नामका तालाव है जिसके किनारे पर इसी मनाहीका एक लेख है जिसमें हस्ताक्षर जान सी० ब्रुक कैप्टेन स्मुल-हिली ट्रैक्स
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