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________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२११ जिसकी सूची जैन बोधक ' अंक २९ मास जनवरी सन् १८८८ में मुद्रित है इसमें निम्न अपूर्व ग्रंथ है १-केवलज्ञान होरी जैन ज्योतिष ग्रंथ श्लोक संख्या १०००० संस्कृत चंद्रसेनकृत . २-क्रिया निघंट १००० बौधमती व्याकरण ३-कारक निघंट , ४-न्याय विनिश्चय अलंकार ३००००, वृहद् अनंताचार्य कृत ५-त्रिविक्रम वृत्ति ४००० प्राकृत व्याकरण त्रिविक्रमदेवकृत ६-माघनंद संहिता मूल टिप्पण ५००० माघनंदि ७-पुरुदेव चंपू ३००० हरिचंद कविकृत ८-प्रायश्चित्त समुच्चय टीका ३००० ९-मूलाचार टीका ८००० कल्याणकीर्ति १०-लोक विभागी ३००० ११-शास्त्रचार समुच्चयव्याख्या २००० माघनंदि व्याख्या 'प्रभाचंद्र कृत। ये ग्रंथ प्रकाशित होने योग्य हैब्रह्मसूरिशास्त्रीको अनेक ऐसे काम थे जिससे वे सेठजीके साथ मूलबिद्री नहीं जा सक्ते थे परंतु सेठ हीराचन्दने प्रेम व आग्रहसे तथा धवलादि ग्रन्थोंके पढ़नेकी उत्कंठासे अपने सर्व परिवार सहित चलनेकी तयारी की। उस समय सेठनीके साथ लाला रिषभदास आगरा, बाबा दुलीचंदजी, तोडूमलनी उजैन, कस्तूरचंदजी और भगतनी, पन्नालाल, वेणाचंद कालुनवाले, मोतीचंद फलटनवाले, नेमचंद म्हसवड़वाले आदि कई भाई थे । रास्तेमें सर्वके साथ धर्म चर्चा करते हुए मूलबिद्री पहुंचे। वहाँ श्री पार्श्वनाथ स्वामीके मंदिरजीमें अब सर्व संघके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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