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________________ २८८ ] अध्याय आठवाँ । लिखना कबूल किया । इनके पास गजपति उपाध्याय भी लिखनेके लिये नियत किये गए। दोनों महाशयोंने मूलबिड़ी जाकर मिती फागुण सुदी ७ बुधवारको पुस्तकोंके लिखनेका काम शुरू कर दिया। फिर शाके १८२७ चैत्र सुद १० को ब्रह्मसूरि शास्त्रीका पत्र शोलापुरवालोंके नाम आया कि जयधवलके १५ पत्रे अर्थात् १५०० श्लोक लिखे गए। इतनेमें मंगलाचरण, मार्गणास्थल और गुणस्थानकी चर्चाका निरूपण है। पुष्पदंत आचार्यने प्राकृत भाषामें सूत्र बनाए उसके ऊपर गुणधर महाराजने ललितपद न्यायसे संस्कृत और प्राकृतमें टीका बनाई है। सेठ माणिकचंद हीराचंद ऐसे धर्मात्मा पुरुषोंके उद्योगसे रुपया भी एकत्र हो गया तथा कई वर्ष तक ब्रह्मसूरि शास्त्री जीते रहे पर वे ग्रंथोंकी लिपिको पूर्ण किये विना ही कालके वश हो स्वर्ग पधारे। तबसे गजपति उपाध्यायने धवल व जयधवल की दोनों प्रति लिखकर पूर्ण कर ली है । तथा इस वर्ष तीसरे महाधवल ग्रंथकी प्रति करानका काम सेठ हीराचंदजी मूलबिद्री जाकर प्रारंभ करा आए हैं। तथा इस बातकी कोशिश चल रही है कि इन ग्रंथोंकी कई प्रतियां होकर भिन्न २ स्थानोंमें रहें जिससे पठनपाठन हुआ करे व एक स्थलमें विघ्न आनेपर भी प्रतियोंकी अनुपलब्धि न हो पर मूलबिद्रीके पट्टाचार्य और भाई अभी तक वृथा ममत्व करके ऐसा करनेपर राजी नहीं हुए हैं। . श्री धवल ग्रंथके जीर्ण ताड़पत्रके पत्रे ५९२ है सो कनड़ी प्रति जो अब हुई इसके २८०० व बालबोध लिपिके १३२३ पत्रे हुए है । इसमें ७३००० श्लोक हैं। ... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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