SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 806
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७२३ आश्रम बांधनेके लिये श्रीयुत भूगल आप्पानी जिरगेने जो २३००) सभाको दिये हैं व मंदिरके खर्चके लिये १००) वार्षिकका उत्पन्न देनेका विचार किया है इसके लिये आभार माना जावे (३) लाहौरके लाला रामचंद एम. ए. सबसे पहले जैनियोंमें सिविल सरविशकी परीक्षामें उत्तीर्ण हुए इस पर आनन्द प्रकाश (४) जैनियों की संख्याकी कमीके कारणोंकी जाँच कीनावे (५) सच्चे धर्मोपदेशकों के भ्रमणका प्रबन्ध कराया जावे (६) व्यापारमें एकत्रित धर्मादेकी रकम धार्मिक कामों में लगाई जावे । इस प्रस्तावको स्वयं सेठनीने पेश किया । यह सेठनी का खास अमली प्रस्ताव था। इसके बदौलत आपने बहुतसा रुपया इधरके लोगोंकी जो यातो खाली जमा रहता व ऐसे वैसे काममें जाता उसे शिक्षा प्रचार आदि उपयोगी कामों में खर्च करा दिया यहां तक कि सांगलीकी बोर्डिंग इसी रकमसे हो खुल गया। खेती सम्बन्धी वस्तुओंकी प्रदर्शनी भो एकत्र को गई थी जिसको स्वयं सेठजीने अपने हाथसे खोला । वास्तवमें दक्षिण महाराष्ट्र सभाके कार्य अतिशय श्लाघनीय हुए हैं। निस समय यह पंद्रहवी बैठक हुई थी उस समय इस सभा द्वारा कार्योंकी स्थिति निम्न प्रकार थी:(१) जैन बोर्डिंग कोल्हापुरमें ६० विद्यार्थी कालेन व हाईस्कूलका शिक्षण धर्म शिक्षाके साथ लेते थे। ३२०००) की इमारत विद्यार्थीगृह, चतुरबाई सभागृह, श्री अनंतनाथ मंदिर वगैरह लेकर बंधी हुई थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy