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२४६ ] अध्याय आठवाँ। इंग्रेजी पढ़ायी । गणित में यह बहुत चतुर थे । २० वर्षकी उम्रमें हाईस्कूल छोड़कर अनाजकी दुकान पर लाभ न देखकर अजमेरमें जा सं० १९४४ में रेलवे आडिट आफिसमें नौकरी की। पत्नीका सम्बन्ध १४ वर्षकी उम्र में हुआ था । वहाँ पंडित मोहनलालजीके पास दो वर्षमें गोम्मटसारका अभ्यास किया। सं० १९४६ में दर्शन और बाध्याय प्रतिदिन करनेका नियम किया। इस नौकरीसे काम चलता न देख आगरा आकर १ वर्ष व्यापार किया इतने में अजमेरके सेठ मूलचंदजीने आपको अजमेर बुलाकर अपनी दूकानपर क्लार्क नियत किया। सेठ माणिकचंदकी दक्षिण यात्राका हाल सेठ मूलचंदजीके कानोंतक पहुंच चुका था तथा जैन वोधक पत्र में जो सेठ हीराचंदनीने अपनी यात्राका हाल छापा था उसको भी पढ़कर सेठ मूलचंदनीको बहुतोंने सुनाया। विचार क. रते २ आप संवत १९४८ में दक्षिणकी यात्राको तैयार होकर पं. गोपालदासजीको साथ ले बम्बई आए । यहांसे आप जैनविद्री मूलबिद्रीको गए । मूलबिद्रीमें आपने श्री धवल जयधवलादि ग्रंथोंको जीर्ण दशामें देखकर उनकी प्रति करानेके लिये ब्रह्मसूरि शास्त्रीको आग्रह पूर्वक कहा था । शास्त्रीने ३००के अनुमान श्लोक लिखे ऐसी सूचना भी सेठ साहबको बादमें की थी। उक्त सेठ साहबको विद्याका कुछ प्रेम था । शोलापुरमें आपने जैन पाठशालाकी परीक्षा ले ५०) का इनाम दिया । आपने प्रसिद्ध जैपुरके विद्वान पंडित सदासुखजी की वृद्धावस्थामें अच्छी वैय्यावृत्त्य की थी तथा उनका समाधिमरण भी अजमेर में ही हुआ ऐसा सुनते हैं। गोपालदासनी यात्रासे लौटकर कुछ दिन अजमेर ठहरे पर आजीविका यथेष्ट न
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