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अध्याय दशवां । शीतलप्रसादजीके साथ सम्मति की कि यदि एक २ हजार रुपया लोग देखें तो यह पाठशाला सहजमें चिरस्थाई हो जावै । राय ठहरी कि कल सेठजीके पास चलना चाहिये और कहना चाहिये कि एक हजार आप देवें तथा १०००) मैं लिखनेको तय्यार हूं। दूसरे दिन दोपहरको शीतलप्रसादजीके साथ सेठ माणिकचंदनी सेठनीकी दुकानपर गए और कहा कि मैं एक हजार देता हूं आप भी एक हजार देवे। तब सेठ नेमीचंदजीने कहा कि जबतक आप १५ नाम हजार २ वाले न लिखवा लेंगे तबतक मैं रुपया न दूंगा। सेठजीने स्वीकार किया तथा तय हुआ कि पाटशालामें इस सम्बन्धी एक पाटिया टांगा जावे जिसमें ऐसे दातारोंके नाम सुनहरी अक्षरों में लिखे जावें । उसी समय एक कागनपर मसौदा लिखा गया तथा शर्त १५०२०) की डाली गई कि यदि ये न भरें तो यह चंदा रद्द होगा । प्रथम ही सेठ नेमीचंदने जवारमल मूलचंद (अपनी दूकान)के नामसे १०००) लिखे, फिर दूसरा नाम अपने पूज्य पिता का सेटजीने लिखा, उसी दिनसे सेठजीको फिकर हुई कि शीघ्र १५०००) पूरे करने चाहिये।
_बम्बईके प्रसिद्ध कोठीवालोंके पास कई वार जाकर व काशी, कलकत्ते, भातकुलीमें घूमकर सेठजीने ता. ३१ दिसम्बर १९०६के लगभग १५ नाम पूरे करलिये । वह नामावली इस भांति है:
१-सेठ जवारमल मूलचंद, बम्बई २-सेठ हीराचंद गुमानजी ,, ३-सेठ तिलोकचंद हुकमचंद ,,
१०००) १०००) १०००)
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