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अध्याय बारहवां । आपने वहां इंग्रेनोंमें बहुत उद्योग किया और पार्लियामेन्ट तक यह बात पहुंचाई। बाबू साहबको जैन धर्मका प्रेम बाल्यावस्थासे ही था । आप बड़े धार्मिक थे । इसी संस्कारसे आपने विलायतमें भी जैन धर्मका उपदेश जब जिससे अवसर बात करनेको मिला उसको दिया तथा सन् १९०९ में वहां एक जैन लिटरेचा सोसायटी कायम कराई जिसके मंत्री मि० हर्बर्ट व रन (नं ८४, शेल गेट रोड, लंडन एस० डबलू०) नियत किये जो बाबू साहबकी संगतिसे जैनधर्मके पक्के श्रद्धालु हुए। इसमें हमारे सेठजी भी १ पाउन्ड भेजकर मेम्बर हुए । आप ता० ११ मार्च १९१० को जहाजसे बम्बई उतरे, उस समय सेठ माणिकचंदजी डाकपर आपको लेने गए और सन्मान पूर्वक अपने ही चौपाटीके रत्नाकर पैलेसमें उतारा । आपने एकान्तमें उक्त बाबू साहबको लेनाकरके बातचीत की जिससे आपको निश्चय हो गया कि जुगमन्दिरलालजीने अपना खानपान भ्रष्ट नहीं किया है । सेठनीने स्नानादि कराया और अपने साथ चैत्यालयमें ले गए । उस समय बाबू साहबने बड़े भावसे श्री चंद्रप्रमुस्वामीकी ध्यानाकार प्रतिबिम्बके दर्शन किये और नमस्कार किया। फिर थोड़ी देर सामायिक की। उक्त बाबू साहब विलायतमें भी नित्य सामायिक करते थे। यह आपकी नित्यकी क्रिया है। जब सेठजी चौके में भोजन करने गए अपने साथ ले गए
और एक ही पंक्ति में बैठ भिन्न २ थालोंमें सेठजी व दूसरोंके साथ बाबू साहबने भोजन किया । सेठजीके इस धार्मिक प्रेमसे बाबू साहबके चित्तपर बहुत बड़ा असर हुआ ।
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