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सन्तवि लाभ । [१६१ है और हमें भी पहिले पारसलमें नफा होता पर भाईकी जल्दीसे ही नुकसान हो गया है, ऐसा विचार कर एक दिन आपने बड़े भाईसे आग्रहपूर्वक कहा कि हमारे कहनेसे एक छोटासा पारसल एक दफे आप और भेजिये । इनके साहसको देखकर केवल ५०००) की लागतका एक पारसल फिर भेजा गया। इसके ऑफर ऐसे अच्छे आए कि इस पारसलमें इनको ५०००) का मुनाफा हो गया। अब तो तीनों भाइयोंका खूब दिल भर गया और लगातार १५, २०, ३०, ४०, पचास पचास हजारकी लागतके पारसल भेनने लगे और प्रायः हरएकमें दुगना तिगना मुनाफा कमाने लगे। इस तरह इनका विलायतसे व्यापार शुरू हुआ जो अब तक जारी है। संसारकी बहुत ही विचित्र दशा है। कोई भी सदा सुखकी
नींद नहीं सो सके । एक न एक आकुलता सेठ पानाचंदकी रूपी कांटा लगा ही रहता है। सेठ पानाचंपत्नीका मरण । दकी स्त्री फुलकुमरी अपनी निर्बलताके कारण
सदा ही बीमार रहा करती थी। पानाचंदको इस स्त्रीसे सांसारिक सुखका लाभ यथोचित नहीं हो सका जिससे सेठ पानाचंदका मन कभी२ बहुत उदास हो जाता था। यह फुलकुमरी एक दिन बहुत बीमार हो गई और कुछ दिन पलंग पर पड़ी रही । बहुत कुछ औषधि करने पर भी आराम नहीं हुई और अपने विवाहके ५ वर्ष बाद ही उसका आत्मा देहको त्याग गया । थोड़े ही दिन पीछे पानाचंदका द्वितीय विवाह सांगली ज़िला
फलटन निवासी नवीवाईके साथ हो गया। सेठ पानाचंदका इस विवाहको सेठ हीराचंदने बहुत साधारण द्वितीय विवाह । रीतिसे कर दिया था। यह बहुत भोली व
आज्ञामें चलनेवाली थी पर कर्मयोगते इसका
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