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________________ अध्याय दूसरा । धमकी बड़ी प्रभावना हुई । बादशाहने स्वयं प्रशंसा की। मुनि महाराज उसी ओर ठहरे । बादशाहने जैनियोंसे कहा कि आपके गुरु सदा देहलीमें रहें ऐसा कहिये तथा हमारी बेगमें भी दर्शन किया करें इससे उनको वस्त्र रखना चाहिये । जैनी लोग इस बातपर विचार करने लगे। इतनेहीमें अर्थात् सन् १३१५ में फिरोजशाह तुघलक देहलीके बादशाह हुए। दि० जैनियोंके अति आग्रह व बादशाहकी इच्छासे श्रीमहासेनके शिष्य मुनिने वस्त्र रखना स्वीकार किया। बादशाहने ३२ पदकी उपाधियां दीं व कुछ सनदें दी जो देहली, कोल्हापुर, नागौर आदिके भट्टारकोंके पास मौजूद हैं ( देखो, जैनसिद्धान्तभास्कर किरण ४, सफा ११४, छपा १९१५)। उस समयसे जो वस्त्र रखने लगे उनकी भट्टारकोंकी गद्दी प्रसिद्ध हुई। और देहलीके भट्टारकने अपनी शाखाएं भारतके अनेक स्थानोंपर कायम की। यद्यपि कालदोषसे भट्टारकोंका पद वस्त्रसहित स्थापित हो गया तथापि नग्न मुनियोंका कभी अभाव नहीं हुआ था। नग्न मुनि भी होते रहे हैं । सं० १९३४ में श्रीसोमसेन मुनि ५० वर्षके वृद्ध बड़ौदा नगरमें पधारे थे । सोजित्रामें चार्तुमास कियाथा। जैनवद्रीमें बराबर मुनि होते आये हैं। अब भी वहां श्रीअनन्तकीतिजी महाराज मौजूद हैं। झालरापाटनमें थोड़े ही दिन पहिले श्रीसिद्धसेन मुनि हुए हैं। हालमें वहां मुनि चन्द्रसागरजी विराजमान हैं। ___यद्यपि शास्त्राज्ञासे विरुद्ध भट्टारकोंने वस्त्र रक्खा, पर मुसल्मानोंके जमानेमें उन्होंने भारतमें दिगम्बर जैन समाज, धर्म और उनके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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