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________________ दानवीरका स्वर्गवास। [८०१ श्रममां हता! आपना काकी तथा कीको हाल मुंबाईज छे केनी ? शुं मांदगी अने शुं बनाव ! कई समज पडती नथी. शुं शब्दोमां आपने आ दीलगीरी भरेलो पत्र लखवो ते समज पडती नथी. काळनी गति अति विचित्र छे! आजे शुं छे अने काले शुं थशे तेनी खबर नथी. आ संसार अनित्य छे माटे आवे समये धैर्य धारण करवा सिवाय छुटको तो नथी, पण आथी तमारो जे एक आसरो हतो ते विलय थई गयो छे. शं करीए ! भावी बळवान छे. आपने पण केटलाक खुलासा करवाना रही गया हशे ने अमारे पण केटलाक खुलासा करवाना रही गया छे........ मूलचन्द कसनदास कापडिया, सूरत. गंगास्वरुप मगनबहेन, तमने अने महारे रुबरु मळवानो प्रसंग पडया नथी पण आपना स्वर्गस्थ पिताना साथे माहरे घणो प्रसंग पड्यो छे अने मारी विद्यार्थी अवस्थामां आपना पिताए जे कोमना हितार्थे कार्यो करलां तेमांना जैन बोगिनो लाभ पण लीधेलो छे एटले हुं तेमना उपकार तळे छं. आजना “बोम्बे कोनीकल 'मां आपना पिताना एकाएक स्वर्गस्थ ययाना समाचार जाणी घणो खेद थयो. मनुष्य कर्माधीन छे ए तमारा जेवां सुज्ञ बेहेनने जणाववा जरूर नथी. आपना पिताना मरणथी आपना कुटुंबमे जे भारे खोट पडी छे तेनुं वर्णन करी शकुं तेम नथी एटलुंज नहीं पण तेमना मरणथी आखी जैन कोम अने मुख्यत्वे करीने दिगम्बर जैन कोम दुःखी थई छे. जे कोमे आपना पिता जेवा नर पेदा करेला ते कोममां बीजा एवाज नर पेदा थशे एमां शंका लाववानी नथी, पण अत्यारे तो आवा सखी दिलोनी खोट जैन कोमने घणी भारे थई छे. आपना पिताए जैन कोमना त्रणे फिरकाओना हित माटे दि० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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