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समाजकी सच्ची सेवा । [३५९ मरण होता था तो रानिये रोने व छाती कूटनेके लिये महलोंसे बाहर नहीं होती थी। वे सब अपनी दासियोंको बाहर भेनती थीं वे ही रडती पीटती थीं। दासियोंको इस प्रकार करनेमें उनका स्वार्थ सधता था-उनको कपड़े वगैरह मिलते थे ।
सेठ चुन्नीलाल झवेरचंदने पेश किया कि जिस २ तीर्थक्षेत्रका हिसाब आया है उन्हें धन्यवाद दिया जाय व जहां २ से हिसाब नहीं आया उसको प्रेरणा की जाय । तीसरे दिन सेठ माणिकचंदनीने प्रगट किया कि शोलापुरके
चतुर्विघदानशालाके वैद्यक विभागमें जो वैद्यक शिक्षाकी छात्र पढ़ेगा उसे प्रथम वर्ष ६) दूसरे वर्ष उत्तेजना। ७) व तीसरे वर्ष ८) मासिक मिलेगा इस
शर्त पर कि इस प्रान्तके किसी पवित्र औषधालयमें २५) महीने पर औषधालयका काम करें । जिन्होंने जैन पद्धतिसे विवाह कराए थे उनको सभापति द्वारा छपे हुए मनोहर धन्यवाद पत्र दिये गए । प्रान्तिक सभाके फंडमें २१३५) आए तथा बावी निवासी रामचंद्र अभयचंदके निकट ५०००) की एक धर्मादाकी रकम थीं उसके व्याजसे एक विद्यार्थीको वैद्यक पढ़ाई जाय ऐसा जाहर किया गया। इस शिक्षाकी उत्तेजना देनेका अभिप्राय सेठजीका यही था कि हम बम्बईमें औषधालय कायम करें तब उस वैद्यका उपयोग हो।
जगत्में किसी भी प्राणीकी एकसी दशा नहीं रहती इसीसे सेठ पानाचंदका ..... यह जगत् परिवर्तनशील है । जिसको जीता
॥ जागता, काम करता हुआ सबेरे देखते हैं स्वर्गवास ।
वही शामको चेतन रहित होता है। जब तक
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