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२८४ ] अध्याय आठवाँ । . आज रात्रिको हम भी परिग्रहका प्रमाण कर लेवेंगे । आयु कायका कोई भरोसा नहीं है। लक्ष्मीकी तृष्णा तो जन्म भर नहीं छूट सक्ती । रात्रिको आरतीके पीछे श्री चंद्रप्रभु भगवानकी स्तुति व विनय कर सेठजी चैत्यालयमें बैठे और अपनी नोट बुकमें परिग्रहकी संख्या लिख ली। तथा यह प्रणकर लिया कि अमुक धन मेरे भागका दूकानमें हो जायगा तब मैं अपना सम्बन्ध छोड़कर धर्म व जातिकी सेवामें लीन हूंगा और जवाहरातके कामसे पेन्शन ले लंगा। सेठजी बहुत विचारशील थे। प्रमाण इतनी रकमका किया कि जो न तो बहुत कम था और न बहुत असम्भव था । परिग्रह प्रमाण करके अपनी इच्छाकी सीमा बांधकर सेठजीने गृहस्थ श्रावकका एक स्तुत्य कृत्य पूर्ण किया।
बीरचंद राघवजी गांधी बी. ए. चिकागोकी धर्म सभा वीरचंद राघवजीका
- शामिल होकर फिर अमेरिका इंग्लैंड, फ्रान्स
और जर्मनीमें फिर ता. ८ जून १९९५ अमेरिकासे लौटना।
ना' बम्बई आए। उनको जहाज़ परसे लेनेका दो तीन सौ प्रतिष्ठित पुरुष जैसे सेठ तलकचंद माणिकचंद, सेठ वीरचंद दीपचंद, गोकुलभाई मूलचंद आदि गए थे। उनमें हमारे प्रसिद्ध सेठ माणिकचंद भी थे।बड़े सत्कारसे अंग्रेजी बाजेके साथ फूलोंके हार पहराते हुए ६०, ७० गाडी सहित मारकेटसे जौहरी बाजार होते हुए उनके मकान भायखलेपर उन्हे पहुंचाया। अमेरिकामें क्या किया इस बातके जाननेकी लोगोंको अति उत्कंठा थी। वीरचंदजीका एक व्याख्यान भायखलेपर सेठ प्रेमचंद रायचंदके बंगलेमें हुआ वहां अति भीड़ थी। दूसरा लालबाग व तीसरा
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