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महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४८५ प्रथमामें--पाठ्य पुस्तक-रत्नकरंड, तत्वार्थसूत्र, द्रव्यसंग्रह तीनों सार्थ कंठ, स्वाध्याय-रत्नकरंड श्रा० सदासुखनीकृत, बड़ा पद्मपुराण और आदिपुराण, लेख ६ सफे, व्याख्यान ॥ घंटा। सन् १९०६ के दिसम्बर में कलकत्तेमें राष्ट्रीय सभा (कांग्रेस)की
बड़ी धूम थी, इसका २२ वां अधिवेशन था कलकत्तेमें महासभा और देशभक्त परोपकारी वृद्ध मि० दादाऔर कांग्रेसपर भाई नौरोजी कांग्रेसके सभापति होनेवाले सेठजीका थे। साथमें प्रदर्शनी भी थी। ऐसे मौके पर गमन। कलकत्तेके दिगम्बर जैनी भाइयोंने जैन यंगमेन्स
एसो० और भा० दि० जैन महासभाको भी निमंत्रित किया। सेठ माणिकचंदजीका विचार महाराष्ट्र सभाके अधिवेशनमें शरीक होनेके लिये श्री स्तवनिधिक्षेत्रपर जानेका था, क्योंकि आप उसके सभापति थे, पर शीतलप्रसादनीने जोर दिया कि इस सभामें तो आप प्रति वर्ष जाया ही करते हैं । अबके आप कलकत्ते में चले और वहांकी प्रदर्शनी व कांग्रेसको देखें तथा महासभामें भी शरीक हों । आपके पधारनेसे महासभाकी बहुत शोभा होगी। तथा लौटते हुए आप काशीमें उस संस्कृत शालाको भी देख आवेंगे जिसे आपने स्थापित किया था व जिसकी चिरस्थायिताके लिये आपको इतना ध्यान है। सेठनीने इस रायको मंजूर किया तथा बम्बईसे अपनी सुपुत्री मगनबाई व निज कुटुम्ब व पुत्रियों सहित शीतलप्रसादजीके साथ कलकत्ते आए। कांग्रेस देखनेके निमित्तसे सेठ हीराचंद नेमचंदके पुत्र बालचंदनी भी कई मित्रोंके साथ एक ही डब्बेमें आए । सेठजी सदा ही अपनी प्रतिष्ठा और आरामके .
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