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________________ ८६ ] अध्याय तीसरा | घंटा दो घंटे पहले से ही लोग घर पर आकर संध्याका भोजन कर लेते थे जिससे रात्रिको भोजन न करना पड़े । और व्यापारोंके साथ वहाँ अफीमका व्यापार भी होता था । जबसे चीन देशमें अफीमका ज्यादा व्यवहार होने लगा तबसे भारतको अफीम पैदा करके चीनको भेजना पड़ा। उस समय चीनको बहुत अफीम जाती थी । भींडर में भी अफीम की खेती होती थी और व्यापारी लोग अफीम एकत्र कर बाहर भेजा करते थे । विक्रम सं० १८४० के अनुमान वीसा हमड़ ज्ञाति में मंत्रेश्वर गोत्रधारी एक साधारण व्यापारी गृहस्थ भींडर में निवास करते थे जिनका नाम शाह गुमानजी लालजी था । यह साधारण श्रावक के धार्मिकल्पों में सावधान, शरीर के दृढ़, उद्योगी और विचारशील थे। भींडर में इनके सिवाय और भी कई बड़े २ अफीमके व्यापारी थे । शाह गुमानजी उनकी मंडलीमें जब जाके बैठते थे तत्र अफीमके व्यापारकी बहुतसी बातें सुनते थे । हिन्दुस्तान के प्राय: हर विभागसे अफीम आकर सुरतके बाज़ारोंमें जमा होता था । और वहाँ से जहाजोंके भीडर से सूरत आनेका द्वारा चीन देशको जाया करता था । इससे गुमानजी के कानमें सूरत नगरके व्यापार व कारण । वहाँ की सुन्दरताकी भनक हरसमय पड़कर उनको यह लोभ दिलाती थी कि सूरत में स्वयं जाकर अफीमका काम करना चाहिये । यहाँ पड़े २ साधारण उपज होती है जिससे पूरा गृहस्थीका खर्च भी नहीं चलता है । वास्तवमें जो उद्योगी होते हैं वे द्रव्योपार्जनके योग्य मार्गेको सदा ही ढूंढ़ा करते हैं । और वें. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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