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________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५४९ ता० १ फर्वरीको कलकत्तेमें बाबू धन्नूलाल, सेठ परमेष्टीदास, आदि ४ प्रतिनिधियोंसे लाट साहबने मुलाकात कलकत्ते में लाट करके बहुत देर तक वादानुवाद किया । साहबका उत्तर। अंतमें आपने वादा किया कि हम फिर इस विषयमें विचार करेंगे, ऐसा तार पाकर सेठजीकी चिंतामें कुछ कमी अवश्य हुई। ता. ६ फर्वरी १९०८को बम्बईके माधोवागमें श्वेताम्बर जैन बीसा श्रीमालियोंकी एक सभा हुई थी श्वेताम्बर जैनसभामें जिसमें सभापतिका आसन सेठ माणिकचंदनीको समापति। अर्पण किया था। इस सभामें सेठ देवकरण मूलजी संघवीको सौराष्ट्र बीसा श्रीमाली शुभेच्छुक मंडलकी तरफसे मानपत्र इसलिये भेट किया गया था कि आप कपड़ेके व्यापरी व मिलके दलाल हैं। आपको १ लाख रुपयेकी परिग्रहका प्रमाण था। उससे अधिक बढ़े तो धर्ममें लगाऊँगा, सो पुण्ययोगसे आपका धन पूर्ण होने पर अब जो पैदा करते हैं सो अपनी जातिके गरीब अनाथोंको विद्या व आजीविकादानमें लगाते हैं । आपकी पुत्रीका विवाह इसी दिन था, आपने न वेश्यानृत्य होने दिया न आतशबाजी छुडवाई जैसा कि अभी तक रिवाज उस जातिमें था, किन्तु ६५५) का दान इस भांति किया-२०१) मित्र मंडल सभा, १०१) काठियावाड़ मंडल, १००) मांगरोल जैन कन्याशाला, १०१) पालीताना बालाश्रम, १०१) निराश्रित जैनी, ५१) उद्योग वृद्धि । इसके सिवाय जूनागढ जिलेके पुस्तकालयोंमें कन्याविक्रय निषेधकी पुस्तकें बांटना स्वीकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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