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अध्याय नवा । कई दिन तक बड़ी उदासी रही। दूसरे दिन प्रातःकाल दग्ध क्रियाके अर्थ अब ले गए तब सैकड़ों मनुष्योंकी भीड थी। बिरादरीके सिवाय जौहरीबानारके दूकानदार दलाल आदि जिसने सुना फौरन हाज़िर हो गये थे।
अब रुक्मणीबाई जो कि बहुत धीर प्रकृतिकी थी, यद्यपि इसे विशेष पुस्तकों का अभ्यास नहीं था तो भी कुछ अक्षर ज्ञान था, बड़ी शांतिसे अपने तीन संततिरत्नोंका पालनपोषण करने लगीलीलावतीको शालामें भेजने लगी। इस कुटुम्बमें पार्सियोंकी भांति यही रिवाज़ था कि लड़का हो या लड़की शुरूसे विद्याभ्यासमें लगाकर चतुर बनाना फिर लग्न करना । छोटी उम्र में सगाई करना बड़ा पाप समझते थे। पानाचंदजी भी चल दिये । प्रेमचंद इसके पहले ही न रहे थे।
अब सेठ माणिकचंदको रात्रि दिन यही सेठ हरजीवन रायचं- ध्वनि रहने लगी कि जो कुछ करना है उसमें दकी सम्मतिकी एक दिन भी ढोल नहीं लगाना चाहिये । कदर। सेठ प्रेमचंद गुजरातके छात्रोंमें शिक्षा प्रचारके
अर्थ जो दान कर गए थे उससे सेठजीने यही सोचा कि गुजरातके किसी स्थानपर एक जैन बोर्डिंग खोला जावे तो ठीक हो । आपको विश्वास था कि आमोदके शेठ हरजीवन रायचंद एक विचारशील, धर्मात्मा और शास्त्रके ज्ञाता गृहस्थ हैं । आपका परिचय सं० १९५० में हुआ था जब श्री भक्तामरजी गुजराती टीका सहित सेठनीने मंगाई थी तबसे पत्रव्यवहार बराबर रहता था । सूरत में जब चुन्नीलालने मंदिर प्रतिष्ठा कराई थी
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