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महती जातिसेवा तृताय भाग। [६९५ तोषिककी उत्तेजना देकर यह परीक्षा जारी रखी जावे तो जैनियोंमें जो उपदेशकोंकी भारी कमी हो रही है सो दूर होजावे । भारतमें विलायतके बादशाहोंमें सबसे पहले ही आगमन
महाराज पंचम जार्जका ता. २ दिसम्बर बादशाह जार्जका १९११ को हुआ तथा ता. १२ दिसम्बरको भारत आगमन व दिहली में एक बड़ा स्मरणीय दरि हुआ था। बम्बई में समा । . उसमें महाराजने भारतीयोंके लिये ये
आनन्द वचन भी कहे कि “ हमारे बड़ोंने तुम्हारे हकोंको कायम रखने तथा तुम्हारी भलाई व सुख शांतिके लिये जो विश्वासपात्र वचन दिये हैं उन्हींको फिरसे ताजा करनका अवसर मुझे आज मिला है, उसके लिये मैं अपना हर्ष प्रकट करता हूं।" दरबार में बहुतसे जैनी भाई गए थे, पर हमारे सेठजी नहीं जासके थे । आपने इसी ता. १२ की शामको दूसरे भोई. वाईके जिन मंदिरजीमें लाला छन्जूमल अलीगढ़ निवासीके सभापतित्वमें सभा की और महाराजको सुख शांति रहे ऐसा तार भिजवाया । सवेरे यहां व चौपाटीके जिन मंदिरजीमें श्री जिनेन्द्र देवकी पूजा की गई व राज दम्पतिके कल्याणकी भावना भाई गई । इसी दिन भूखोंको अन्न भी बांटा गया। श्री सम्मेदशिखरजी पर्वतकी रक्षाके लिये जो पट्टा दिगम्ब
रियोंको हुआ था उसको रद्द होनेका हुकम पर्वतरक्षार्थ सेठजी वाईसरायका जबसे आया था तवसे उसकी कलकत्तेमें। एक भारी चिंता सेठजीके चित्तमें थी। कलक
त्तेमें बाबू धन्नूलाल अटार्नी और सेठ परमे
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