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________________ २८६ ] अध्याय आठवाँ । संवत् १९५२ में सेट माणिकचंदजीने हीराचंद नेमचंदजीसे ___ पूछा कि आपके जैन बोधकसे मालूम हुआ धवलजयधवलके कि रायबहादुर सेठ मूलचंदजी अजमेउद्धारकेलिये चंदा। रके प्रयत्नसे श्री धवलादि ग्रंथोंकी नकल होनी शुरू होगई है तथा ३०० श्लोक पहले लिखे भी गए थे सो क्या वह काम जारी है या बन्द हो गया । तब सेठ हीराचंदने कहा कि वह काम यों बन्द होगया है कि सेठजी उस प्रतिको अजमेरके लिये चाहते थे सो वहांवालोंने इनकार किया इससे वह काम योंही रह गया । तब सेठ माणिकचंदने कहा कि यदि वे ग्रंथ सड़ जायगे तो फिर कहांसे आएंगे ? दूसरे आप कहते थे कि व जिम लिपिमें हैं उसे सिवाय ब्रह्मसूरि शास्त्रीके दूसरा कोई जानता नहीं है तथा शास्त्रीजीकी उम्र ५५ वर्षकी है। यदि यह कालवश होगए तो नकल भी न हो सकेगी । इससे यदि वहांवाले दूसरे स्थानपर ग्रन्थ देना नहीं चाहते तो अभी यही प्रबन्ध कीजिये कि उसकी वहां दो नकलें हो जाय एक कनड़ी लिपिमें व एक बालबोध हिन्दी लिपिमें, इतना काम बहुत शीघ्र होना चाहिये । तब सेठ हीराचंदने कहा कि इसके लिये तो वे लोग अवश्य कबूल कर लेंगे पर हमें ब्रह्मसूरि शास्त्रीके साथ दो प्रवीण लेखक और रखने पड़ेंगे जो कनड़ी व बालबोधमें लिख सकें । इस सबके लिये कमसे कम १००००) का प्रबन्ध होना चाहिये सो कैसे हो, तब सेठ माणिकचंदने कहा कि १००) सौ सौ रुपयेके १०० भागकर लिये जावें पहले दस दस रुपये करके १०००)तहसील कर काम शुरू किया जावे। जब काम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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