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________________ (१०) नहीं करता है तब स्वर्गीय सेठजीने सामान्य धनिक होकर भी सामाजिक और धार्मिक उन्नतिके लिये रात्रि दिन इतना परिश्रम और द्रव्य व्यय किया था कि आज सेठनीकी जोड़का एक भी पुरुष नज़र नहीं आता। इस चरित्रमें करीब २५-२६००) रु०की रकम खर्च हुई है और २००० प्रतियां प्रकट की गईं हैं जो सिर्फ १) रु० लेकर ही प्रथम 'दिगम्बर जैन 'के ग्राहकोंको ही दी जायगी और कुछ प्रतिया समालोचनादिमें तथा अपनी संस्थाओंको भेटमें बटेंगी और शेष करीब २०० ही विक्रीके लिये रह जायगी जो देखते २ बिकजांयगी ऐसी आशा है। स्वर्गीय सेठनीको पुस्तकें प्रकाशित करनेका शौक था और इसकी आवश्यकता है ही इसलिये यह चरित्र बिक जानेपर जोरकम बचेगी उसको स्थायी रखके उसकी उपजमेंसे "दानवीर माणिकचंद सुलभ ग्रन्थमाला" प्रकट करनेका हमारा विचार है जिसके ग्रंथ बिलकुल लागतके मूल्य पर ही प्रकट किये जायगे और हिन्दी तथा गुजराती दोनों भाषाओंके ग्रंथ इसमें प्रकट होंगे। __इस चरित्र में क्या क्या विषय है वह तो इसकी विषयसूची पढ़नेसे मालूम होगा इसलिये यहां विशेष न लिखकर पाठकोंसे हम सिफारिश करते हैं कि आप इस बृहत् चरित्रको आदिसे अंत तक शनैः २ अवश्य पढ़ें और बादमें अपने मित्रोंको भी पढ़नेको देवें । हमारे अजैन भाई भी इस चरित्रको पढ़कर बहुत लाभ, उठा सकेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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