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समाजकी सच्ची सेवा । सेठ नाथारंगजी गांधीवाले सेठ हरीचंदजी नाथा आकलन
(शोलापुर)का आसौज वदी ९ सं० १९६१ सेठ हरीवंद नाथाका के दिन अपनी ६६ वर्षकी आयुमें समाधि मरण और २५०००) मरण हुआ । आपने उस दिन २५०००) का दान। का दान विद्यार्थियोंके उत्तेजन व जिनवाणी
के प्रचार आदि दानके अर्थ संकल्प करके व अन्य पुण्य दान करके मरणसे दो घंटे पहले सर्व बाह्य अभ्यंतर परिग्रहको त्याग आत्मध्यानमें उपयोग लगा दिया और उसी अवस्थामें आत्मा निकल स्वर्ग धामको पधारा। यह बड़े उदारचित्त थे । उस समय इनसे छोटे छः भाई रामचंद नाथा आदि मौजूद थे। आप बड़े बुद्धिशाली थे। पिताकी स्थिति साधारण थी। जब वे मरे तब यह २२ वर्षकै थे । इन्होंने ऐसा व्यापार चलाया कि बड़े व्यापारी हो गए और अपनी दूकाने पंढरपुर, आकलन, बीजापुर, गंटूर, मोरेना, बम्बई ऐसी छः जगहें खोल दी । यह उदारचित्त भी थे । आकलूनकी प्रतिष्ठा में १८०००) खर्च किये । यह दि० जैन प्रान्तिक सभा बम्बईके उपसभापति थे। सेठ माणिकचंदके हजारों लाखोंका दान इनकी बुद्धिमें अंकित हो रहा था । लक्ष्मीको अपने हाथसे कमाकर जो अपने हाथसे ही उपयोगी कामों में लगाते हैं वे ही सच्चे बुद्धिमान व चतुर धर्मात्मा हैं । ___ लक्ष्मी ठगनी व चंचल हैं । जो इसे संग्रह करते हैं और दान धर्ममें नहीं लगाते हैं उनके तीन मोह उपना करके यह उन्हें ठग लेती है और वे जीव इसके टगे अपने अशुभ भावोंके अनुसार नर्क निगोदमें व निन्द्य पशुगतिमें जा महान कष्ट उठाते हैं परन्तु
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