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_श्रामण्य-निर्वाह के लिए अपेक्षित साधन-सामग्री के प्राकलन, तत्सम्बन्धी व्यवस्था आदि की दृष्टि से गणावच्छेदक के पद का बहुत बड़ा महत्व है। गरणावच्छेदक द्वारा आवश्यक उपकरण जुटाने का उत्तरदायित्व सम्हाल लिये जाने से प्राचार्य का संघ-व्यवस्था सम्बन्धी भार काफी हल्का हो जाता है। फलतः उन्हें धर्म-प्रभावना तथा संघोन्नति सम्बन्धी अन्यान्य कार्यों की सम्पन्नता में समय देने की अधिक अनुकूलता प्राप्त रहती है। प्राधार : पृष्ठभूमि
पहले यह चर्चित हुआ है कि जैन परंपरा में पद-नियुक्ति का आधार निर्वाचन जैसी कोई वस्तु नहीं थी। वर्तमान आचार्य अपने उत्तराधिकारी आचार्य तथा अन्य पदाधिकारियों का मनोनयन संघ की सम्मति से करते थे। आज भी वैसा ही है। ज्ञातव्य है कि उत्तराधिकारी प्राचार्य का मनोनयन तो प्रावश्यक समझा गया पर दूसरे पदों में से जितनों की, जब प्राचार्य चाहते, पूर्ति करते। ऐसी अनिवार्यता नहीं थी कि उत्तराधिकारी प्राचार्य के साथ-साथ अन्य सभी पदों की पूर्ति की जाए। आचार्य चाहते तो अवशेष सभी पदों का कार्य-निर्वाह स्वयं करते अथवा उनमें से कुछ का करते, कुछ पर अधिकारी मनोनीत करते । मूलत: समग्र उत्तरदायित्व के आधार-स्तम्भ तो प्राचार्य ही माने गये हैं।
व्यवस्था-सौकर्य के लिए प्रायः अन्य पदों पर उपयुक्त, योग्य अधिकारियों का मनोनयन भी आचार्य उपयोगी मानते रहे हैं। पर क्रमशः पश्चाद्वर्ती समय में वैसा क्रम रहा। कभी-कभी केवल आचार्य-पद पर अधिष्ठित एक ही व्यक्ति सारा कार्यभार सम्हालते रहे । कभी प्राचार्य तथा उपाध्याय दो-पदों पर कार्य करते रहे। कभी सातों पदों में से जब जो जो अपेक्षित समझे गये, तत्कालीन प्राचार्यों द्वारा भरे गये। कुछ विशिष्ट योग्यताएं
पदों पर मनोनीत किये जाने वाले श्रमणों में कुछ विशेष योग्यताएं वांछनीय समझी गई थीं। असाधारण स्थितियों में कुछ विशेष निर्णय लेने की व्यवस्था भी रही है ! व्यवहार-सूत्र तथा भाष्य में इस सन्दर्भ में बड़ा विशद विवेचन हुआ है, जिसके कतिपय पहलू यहां उपस्थित करना उपयोगी होगा।
कहा गया है कि जिन श्रमणों निर्ग्रन्थों को दीक्षा स्वीकार किये माठ वर्ष हो गये हों, जो आचार, संयम, प्रवचन, प्रज्ञा, संग्रह तथा उपग्रह (श्रमणों के परिपोषण) में कुशल हों, जिनका चारित्र प्रखण्ड, प्रशबल - अनाचार के धब्बों से रहित - प्रदूषित, अभिन्न - सर्वतः सात्विक, असंक्लिष्ट --संक्लेश' व्यवहार सूत्र, ३ उद्देशक, सूत्र ७ २ श्रमणों के विहार के लिए समीचीन क्षेत्र, प्रपेक्षित उपकरण, उनकी मावश्यकतामों की
यथोचित परिपूर्ति ।
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