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प्रस्तावना
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उसे सबसे अधिक भाग मिलता है । यह तो मूल प्रकृतियोंमें भागाभागका क्रम कहा । इसी प्रकारसे उत्तरप्रकृतियोंमें भी बहुत विस्तारसे कर्मप्रदेशोंके भागाभागका विचार किया गया है ।
अब शेष अनुयोगद्वारोंसे चारों प्रकारके बन्धोंका एक साथ विचार किया जाता है
(२-३ ) सर्वबन्ध-नोसर्वबन्ध प्ररूपणा- जिस कर्मकी जितनी प्रकृतियां हैं, उन सबके बन्ध करनेको सर्वबन्ध कहते हैं और उससे कम कर्मबन्ध करनेको नोसर्वबन्ध कहते हैं । ज्ञानावरण और अन्तरायकर्मका सर्वबन्ध ही होता है, नोसर्वबन्ध नहीं होता। दर्शनावरण, मोहनीय और नामकर्मका सर्वबन्ध भी होता है और नोसर्वबन्ध भी होता है । वेदनीय, आयु
और गोत्रकर्मका तो सर्वबन्ध ही होता है, क्योंकि इनकी प्रकृतियां सप्रतिपक्षी हैं, अतः एक साथ किसी भी जीवके सबका बन्ध सम्भव नहीं है। यह प्रकृतिबन्धका वर्णन हुआ। स्थितिबन्धकी अपेक्षा जिसकर्मकी जितनी सर्वोत्कृष्ट स्थिति बतलाई गई है, उस सबका बन्ध करना सर्वबन्ध है और उससे कम स्थितिका बन्ध करना नोसर्वबन्ध है । अनुभागबन्धकी अपेक्षा जिस कर्ममें अनुभाग सम्बन्धी सर्व स्पर्धक पाये जाते है, वह सर्वानुभागबन्ध है और जिसमें उससे कम स्पर्धक पाये जाते हैं, वह नोसर्वानुभागबन्ध है । प्रदेशबन्धकी अपेक्षा विवक्षित कर्मके सर्व प्रदेशका बंध होना सर्वबन्ध है और उससे कम प्रदेशोंका बन्ध होना नोसर्वबन्ध है ।
(४-५) उत्कृष्टवन्ध-अनुत्कृष्टबन्धप्ररूपणा- प्रकृतिबन्धमें उत्कृष्ट -अनुत्कृष्ट बन्धकी प्ररूपणा सम्भव नहीं है। स्थितिबन्धकी अपेक्षा जिस कर्मकी जितनी सर्वोत्कृष्ट स्थिति बतलाई गई है, उसके बन्धको उत्कृष्ट बन्ध कहते हैं । जैसे मोहनीयकर्मका सत्तरकोडाकोडी प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होनेपर अन्तिम निषेकको उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कहा जायगा। उत्कृष्ट स्थितिबन्धमेंसे एक समय कम आदि जितने भी स्थितिके विकल्प हैं, उन्हें अनुत्कृष्ट स्थितिबन्ध कहा जायगा । अनुभागबन्धकी अपेक्षा सर्वोत्कृष्ट अनुभागको बांधना उत्कृष्ट बन्ध है और उससे न्यून अनुभागको बांधना अनुत्कृष्टबन्ध है । प्रदेश बन्धकी अपेक्षा सर्वोत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करना उत्कृष्ट बन्ध है और उससे कम प्रदेशोंका बन्ध करना अनुत्कृष्ट बन्ध है।
(६-७) जघन्यवन्ध-अजघन्यबन्ध प्ररूपणा- प्रकृति बन्धमें जघन्य-अजघन्यबन्धकी प्ररूपणा सम्भव नहीं है। स्थितिबन्धकी अपेक्षा कर्मोकी सबसे जघन्य स्थितिका बन्ध होना जघन्यबन्ध है और उससे ऊपरकी स्थितियोंका बन्ध होना अजघन्यबन्ध है। अनुभागबन्धकी अपेक्षा सबसे जघन्य अनुभागका बन्ध होना जघन्यबन्ध है और उससे अधिक अनुभागका बन्ध होना अजघन्यबन्ध है । प्रदेशबन्धकी अपेक्षा सर्व जघन्य प्रदेशोंका बंधना जघन्यबन्ध है और उससे अधिक प्रदेशोंका बंधना अजधन्यबन्ध है।
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