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प्रस्तावना
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सूक्ष्मनिगोदिया जीवोंके होती है। यहां यह ज्ञातव्य है कि एक निगोदिया जीवका कोई एक खतंत्र शरीर नहीं होता, किन्तु अनन्तानन्त निगोदिया जीवोंका एक शरीर होता है । असंख्यात लोकप्रमाण शरीरोंकी एक पुलवि होती है और आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियोंका एक स्कन्ध होता है। इस एक स्कन्धगत अनन्तानन्त जीवोंके औदारिक, तैजस और कार्मण शरीरोंके विस्रसोपचयसहित कर्म - नोकर्मपुद्गलपरमाणुओंके समुदायरूप सबसे जघन्य सूक्ष्मनिगोदवर्गणा होती है। उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणा एकबन्धनबद्ध छह जीवनिकायोंके समुदायरूप महामच्छके शरीरमें पाई जाती है । जघन्य और उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गगाके मध्यमें एक एक परमाणुकी वृद्धिसे बढ़ते हुए असंख्य स्थान होते हैं । यह इक्कीसवीं वर्गणा है ।
उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणाके ऊपर एक परमाणुकी वृद्धि होनेपर' चौथी सर्वजघन्य . ध्रुवशून्यवर्गणा प्राप्त होती है । पुनः एक एक परमाणुकी उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए सब जीवोंसे अनन्तगुणित स्थान आगे जानेपर उत्कृष्ट ध्रुवशून्यवर्गणा प्रात होती है। यह जघन्यसे असंख्यातगुणी होती है। यह भी शून्यरूपसे अवस्थित है। यह बाईसवीं वर्गणा है ।
उत्कृष्ट ध्रुवशून्यवर्गणाके ऊपर एक परमाणुकी वृद्धि होनेपर सर्वजघन्य महास्कन्धद्रव्यवर्गणा प्राप्त होती है । पुनः एक एक परमाणुकी वृद्धि करते हुए सब जीवोंसे अनन्तगुणित स्थान आगे जानेपर उत्कृष्ट महास्कन्धवर्गणा प्राप्त होती है। यह उत्कृष्ट महास्कन्धवर्गणा, आठों पृथिवियाँ, टंक, कूट, भवन, विमान, विमानेन्द्रक, विमानप्रस्तार, नरक, नरकेन्द्रक, नरकप्रस्तार, गुच्छ, गुल्म, लता और तृणवनस्पति आदि समस्त स्कन्धोंके संयोगात्मक है। यद्यपि इन सब पृथिवी आदिमें अन्तर दृष्टिगोचर होता है, तथापि सूक्ष्मस्कन्धोंके द्वारा उन सबका परस्पर सम्बन्ध बना हुआ है, इसीलिए इन सबको मिलाकर एक महास्कन्धद्रव्यवर्गणा कही जाती है। यह सबसे बड़ी तेईसवीं वर्गणा है।
इस प्रकार ये सब तेईस वर्गणाएँ हैं। इनमें से आहारवर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणा ये पांच वर्गणाएँ जीवके द्वारा ग्रहण की जाती हैं। शेष नहीं, अतः उन्हें अग्राह्य वर्गणाएँ कहीं जाती है । यह सब आभ्यन्तर वर्गणाओंका विचार किया गया है ।
बाह्यवर्गणाओंका विचार ग्रन्थकारने शरीरिशरीरप्ररूपणा, शरीरप्ररूपणा, शरीरविस्रसोपचयप्ररूपणा और विस्रसोपचयप्ररूपणा इन चार अनुयोगद्वारोंसे किया है। शरीरी जीवको कहते हैं । इनके प्रत्येक और साधारणके भेदसे दो प्रकारके शरीर होते हैं। पहली शरीरिशरीरप्ररूपणामें इन दोनोंका विस्तारसे निरूपण किया गया है। शरीरप्ररूपणामें औदारिकादि पांचों शरीरोंका अपनी अनेक अवान्तर विशेषताओंके साथ विचार किया गया है। शरीर विस्रसोपचयप्ररूपणामें पांचों शरीरोंके विस्रसोपचयके सम्बन्धके कारणभूत स्निग्ध और रूक्ष गुणके अविभागप्रतिच्छेदोंका
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