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[ ७३ उत्कृष्ट कार्मण द्रव्यवर्गणा प्राप्त होती है । इस वर्गणाके पुद्गलस्कन्ध ही ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के रूपसे परिणत होते हैं । यह तेरहवीं वर्गणा है ।
उत्कृष्ट कार्मण वर्गणामें एक परमाणुकी वृद्धि होनेपर जघन्य ध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणा प्राप्त होती है । पुनः एक एक परमाणुकी वृद्धि करते हुए सत्र जीवोंसे अनन्तगुणित स्थान आगे जानेपर उत्कृष्ट ध्रुवस्कन्ध द्रव्यवर्गणा प्राप्त होती है । ये ध्रुवस्कन्धवर्गणाएं भी अग्राह्य हैं । यह चौदहवीं वर्गणा है ।
उत्कृष्ट ध्रुवस्कन्ध द्रव्यवर्गणा में एक परमाणु के मिलानेपर जघन्यसान्तर निरन्तर द्रव्यवर्गणा प्राप्त होती है उसके ऊपर एक एक परमाणुकी वृद्धि करते हुए सब जीवोंसे अनन्तगुणित स्थान आगे जानेपर उत्कृष्ट सान्तरनिरन्तरद्रव्य वर्गणा प्राप्त होती है । यह भी अग्रहणवर्गणा है, क्योंकि यह आहार, तैजस, भाषा आदिके परिणमन योग्य नहीं है । इस वर्गणाके परमाणु जघन्यसे लेकर उत्कृष्ट तक अन्तर सहित भी पाये जाते हैं और अन्तर- रहित भी पाये जाते हैं, इसलिए इसे सांतरनिरंतर द्रव्यवर्गणा कहते हैं । यह पन्द्रहवीं वर्गणा है ।
प्रस्तावना
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सान्तर निरन्तर द्रव्यवर्गणाओंके ऊपर ध्रुवशून्यवर्गणा होती है । उत्कृष्ट सान्तर निरन्तर द्रव्यवर्गणाके ऊपर एक परमाणु अधिक, दो परमाणु अधिक आदिके रूपसे पुद्गलपरमाणुस्कन्ध तीनों ही कालोंमें नहीं पाये जाते । किन्तु सब जीवोंसे अनन्तगुणित स्थान आगे जाकर प्रथम ध्रुवशून्यवर्गणाकी उत्कृष्ट वर्गणा प्राप्त होती है । यह सोलहवीं वर्गणा है, जो सदा शून्यरूपसे अवस्थित रहती है ।
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ध्रुवशून्य वर्गणाओंके ऊपर एक परमाणुकी वृद्धि होनेपर जघन्य प्रत्येक शरीरद्रव्यवर्गणा प्राप्त होती है । एक एक जीवके एक एक शरीरमें उपचित हुए कर्म और नोकर्मस्कन्धोंको प्रत्येक शरीर द्रव्यवर्गणा कहते हैं । यह प्रत्येक शरीर पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, देव, नारकी, आहारकशरीरी प्रमत्तसंयत और केवलिजिनके पाया जाता है । इन आठ प्रकारके जीवोंके सिवाय शेष जितने संसारी जीव हैं, उनका शरीर या तो निगोद जीवोंसे 1. प्रतिष्ठित होने के कारण सप्रतिष्ठित प्रत्येकरूप है, या स्वयं निगोदरूप साधारण शरीर है । केवल जो वनस्पति निगोद - रहित होती है, वह इसका अपवाद है । ऊपर बतलाई गई यह जघन्य प्रत्येक शरीरद्रव्यवर्गणा क्षपितकर्माशिक जीवके चौदहवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें होती है । इस जघन्य प्रत्येक शरीरद्रव्यवर्गणासे एक एक परमाणुकी वृद्धि करते हुए अनन्त स्थान आगे जानेपर उत्कृष्ट प्रत्येक शरीरद्रव्यवर्गणा प्राप्त होती है, जो महावनके दाहादिके समय एक बन्धनबद्ध अग्निकायिक जीवों पाई जाती है । यद्यपि महावनादिके दाह समय जितने अग्निकायिक जीव होते है, उन सबका पृथक्-पृथक् स्वतंत्र ही शरीर होता है, तथापि वे सब जीव और उनके शरीर परस्पर संयुक्त रहते हैं, इसलिए उन सबकी एक वर्गणा मानी गई है । यह सतरहवीं वर्गणा है ।
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