Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] [55 स्वस्तिक शाक (सौत्रिक शाक), तथा माण्डुको, मूलक, सर्षप (सरसों का साग), अम्लशाक (अम्ल साकेत) और जीवान्तक / / 40 / / तुलसी, कृष्ण, उदार, फानेयक और आर्यक (पार्षक), भुजनक (भूसनक), चोरक (वारक), दमनक, मरुचक, शतपुष्पी तथा इन्दीवर // 41 // __ अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियां हैं, (वे सब हरित (हरी या लिलौती) के अन्तर्गत समझनी चाहिए।) पतियों की) प्ररूपणा / 50. से कि तं प्रोसहीरो ? प्रोसहोलो प्रणेगविहानो पण्णत्तायो / तं जहासाली 1 वीही 2 गोधूम 3 'जवजवा 4 कल 5 मसूर 6 तिल 7 मुग्गा / मास 6 निष्फाव 10 कुलत्थ 11 अलिसंद 12 सतीण 13 पलिमंथा 14 // 42 // प्रयसी 15 कुसुभ 16 कोदव 17 कंगू 18 रालग 16 २वरसामग 20 कोदूसा 21 / सण 22 सरिसव 23 मूलग 24 बोय 25 जा यावण्णा तहपगारा // 43 // [50 प्र] वे अोषधियां किस प्रकार की होती हैं ? [50 उ.] अोषधियां अनेक प्रकार की कही गई हैं / वे इस प्रकार है [गाथार्थ --] 1. शाली (धान), 2. व्रीहि (चावल), 3. गोधूम (गेहूँ), 4. जौ (यवयव), 5. कलाय, 6. ममूर, 7. तिल, 8. मूग, 6. माष (उड़द), 10. निष्पाव, 11. कुलत्थ (कुलथ), 11. अलिसन्द, 13. सतीण, 14. पलिमन्थ / / 42 / / 15. अलसी, 16. कुसुम्भ, 17. कोदों (कोद्रव), 18. कंगू, 19. राल (रालक), 20. वरश्यामाक (सांवा धान) और 21. कोदूस (कोइंश), 22. शणसन, 23. सरसों (दाने), 24. मूलक बीज; ये और इसी प्रकार की अन्य जो भी (वनस्पतियां) हैं, (उन्हें भी अोषधियों में गिनना चाहिए।) // 43 / / यह हुआ ओषधियों का वर्णन / 51. से कि तं जलरुहा? जलरुहा अणेगविहा पण्णता / तं जहा-उदए अबए पणए सेवाले कलंबुया हढे कसेरुया कच्छा भाणी उप्पले पउमे कुमुदे नलिणे सुभए सोगंधिए पोंडरोए महापोंडरोए सयपत्ते सहस्सपत्ते कल्हारे कोकणवे अरविंदे तामरसे भिसे भिसमुणाले पोक्खले पोक्खलस्थिभए, जे यावऽण्णे तहप्पगारा / से तं जलरहा। [51 प्र.] वे जलरुह (रूप वनस्पतियां) किस प्रकार की हैं ? [51 उ.] जल में उत्पन्न होने वाली (जलरुह) वनस्पतियां अनेक प्रकार की कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं-उदक, अवक, पनक, शैवाल, कलम्बुका, हढ (हठ), कसेरुका (कसेरू), कच्छा, भाणी, उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र, पाठान्तर--१ जव जवजवा / 2 वरट्ट साम / 3 पोक्खल स्थिभए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org