Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 54] [प्रज्ञापनासूत्र और सुकलीतृण (सुकलीवृण), (इन्हें) तण जानना चाहिए // 36 / / जो अन्य इसी प्रकार के हैं (उन्हें भी तृण समझना चाहिए / ) यह हुई उन (पूर्वकथित) तृणों की प्ररूपणा / 48. से कि तं वलया ? वलया प्रणेगविहा पण्णत्ता / तं जहा ताल तमाले तक्कलि तेयलि' सारे य सारकल्लाणे। सरले जावति केयइ कदली तह धम्मरुक्खे य // 37 // भुयरुक्ख हिंगुरुक्खे लवंगरुक्खे य होति बोधव्वे / पूयफली खजूरी बोधवा नालिएरो य // 38 // जे यावऽण्णे तहप्पगारा / से तं वलया। [४८.प्र.] वे वलय (जाति की वनस्पतियां) किस प्रकार की हैं। , [48 उ.] वलय-वनस्पतियां अनेक प्रकार की कही गई हैं / वे इस प्रकार हैं [गाथार्थ-] ताल (ताड़), तमाल, तर्कली (तक्कली), तेतली (तोतली), सार (शाली), सारकल्याण (सारकत्राण), सरल, जावती (जावित्री), केतकी (केवड़ा), कदली (केला) और धर्मवृक्ष (चर्मवृक्ष) / / 37 / / भुजवृक्ष (मुचवृक्ष), हिंगुवृक्ष, और (जो) लवंगवृक्ष होता है, (इसे वलय) समझना चाहिए। पूगफली (सुपारी), खजूर और नालिकेरी (नारियल), (इन्हें भी वलय) समझना चाहिए // 38 // 46. से किं तं हरिया? हरिया प्रणेगविहा पण्णत्ता / तं जहा~ प्रज्जोरह वोडाणे हरितग तह तंदुलेज्जग तणे य / वस्थुल पारग मज्जार पाइ बिल्लो य पालक्का // 36 // वगपिप्पली य दम्वी सोस्थियसाए तहेव मंडुक्की। मूलग सरिसव अंबिलसाए य जियंतए चेव // 40 // तुलसी कण्ह उराले फणिज्जए प्रज्जए य भूयणए। चोरग दमणग मरुयग सयपुफिदीवरे य तहा // 41 // जे यावऽण्णे तहप्पगारा / से तं हरिया। [46 प्र.] वे (पूर्वोक्त) हरित (वनस्पतियां) किस प्रकार की हैं ? [46 उ.] हरित वनस्पतियां अनेक प्रकार की कही गई हैं / वे इस प्रकार हैं [गाथार्थ-] अद्यावरोह, व्युदान, हरितक तथा तान्दुलेयक (चन्दलिया), तृण, वस्तुल (बथुआ), पारक (पर्वक), मार्जार, पाती, बिल्वी और पाल्यक (पालक) // 39 // दकपिप्पली और दर्वी, पाठान्तर-१ तोयली साली य सारकत्ताणे। 2 कयली तह चम्मरक्खे य / 3 पोरग मज्जार याइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org