Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] [53 इसी प्रकार की अन्य जितनी भी (वनस्पतियां हैं, उन सबको वल्लियां समझना चाहिए।) यह हुई, वल्लियों की प्ररूपणा / 46. से कि तं पव्वगा? पव्वगा प्रणेगविहा पन्नता / तं जहा इक्खू य इक्खुवाडी वीरण तह एक्कडे भमासे य / सुठे (सुबे) सरे य वेत्ते तिमिरे सतपोरग णले य // 33 // वंसे वेलू' कणए कंकावंसे य चाववंसे य / उदए कुडए विमए कंडावेलू य कल्लाणे // 34 // जे यावऽण्णे तहप्पगारा / से तं पव्वगा। (46 प्र] वे पर्वक (वनस्पतियां) किस प्रकार की है ? [46 उ.] पर्वक वनस्पतियां अनेक प्रकार की कही गई हैं / वे इस प्रकार हैं [गाथार्थ--] इक्षु और इावाटी, वीरण (वीरुणी) तथा एक्कड़, भमास (माष), सूठ (सुम्ब), शर और वेत्र (बेत), तिमिर, शतपर्वक और नल / / 33 / / वंश (बांस), वेलू (वेच्छ), कनक, कंकावंश और चापवंश, उदक, कुटज, विमक (विसक), कण्डा, वेल (वेल्ल) और कल्याण // 34 // और भी जो इसी प्रकार की वनस्पतियां हैं, (उन्हें पर्वक में हो समझनी चाहिए।) यह हुई, उन पर्वकों को प्ररूपणा / 47. से कि तं तणा? तणा अणेगविहा पण्णत्ता / तं जहा सेडिय भत्तिय होत्तिय डब्भ कुसे पवए य पोडइला / प्रज्जुण असाढए रोहियंसे सुयवेय खीरतुसे५ // 35 // एरंडे कुरुविदे कक्खड सुठे तहा विभंगू य / महुरतण लुणय सिप्पिय बोधव्वे सुकलितणा य // 36 // जे यावऽणे तहप्पगारा। से तं तणा। [४७-प्र.] वे (पूर्वोक्त) तण कितने प्रकार के हैं ? [४६-उ.] तृण अनेक प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार [गाथार्थ-] सेटिक (सेंडिक), भक्तिक (मांत्रिक), होत्रिक, दर्भ, कुश और पर्वक, पोटकिला (पाटकिला–पोटलिका), अर्जुन,आषाढ़क, रोहितांश, शुकवेद और क्षीरतुष(क्षीरभुसा)।।३५।। एरण्ड, कुरुविन्द, कक्षट (करकर), सूठ (मुट्ठ), विभंगू और मधुरतृण, लवणक (क्षुरक), शिल्पिक (शुक्तिक) . पाठान्तर--१ एक्कडे य मासे / 2 वेच्छु / 3 विसए, कंडावेल्ले / 4 मंतिय / 5 खीरभसे / 6 कस्कर / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org