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* प्रशस्तिः ॥
• श्री मोर जिनेद्र तीर्थेनिजक सहजूत संपविधि। संजज्ञे गुरुः सुधगराच तस्यान्वये सर्वतः । पुण्येबोडडलेऽन ववहृविहिते पदेसदाचारवान् । सेव्यः शोजन थीमती सुमति मानुद्योतनः सूरिषद् ॥ १ ॥ श्रासीत्तत्पदपंकजैक मधुकृत श्री वर्षमानाजियः । सूरिस्तस्य जिनेश्वराख्य गणसृजानो विनयो तमः । शः-यागत् नच तिथि पंकि शरदि (१०८०) श्री पचनेवा बिनो । जिल्ला समिद्धं कृती खरतरे त्याप्यं जुगाडे ईखात् ॥ २ ॥
॥ ॐ ॥ गवे वावरे बृहत्खरतरे श्री चंद्र खरीवरा । रार्जवे अनुजैद सेवितपदाः । शांत्रार्थ वागीश्वराः । स्वत्पादाब्ज पराग 1) पान मधुपा जस्मीपधानविराः । सचीलादि गुगौयुता हम स्वः. संतोह सवीधराः ॥ १ ॥ ॥
|| ॐ ॥ तेषां विनयेन सुमोहनेन । सम्यक्त पूजादि वि चार गर्खा । सकीतितेय सतु बालशिका | विधानसारार्थ बिदा सुदेवै ॥ २ ॥ ॥
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जैनलक्ष्मी विद्याशाला.
कलकत्ता
रत्नसागर)
माझा
॥ प्रथम नाग सूचीपत्र ॥
॥ ॥ संख्या ॥ * ॥
॥ ॥ प्रकरण ॥ ॥
॥ १ ॥ कार वर्णन पंच परमेष्टी नमस्कार ।
॥ २ ॥ गुरु नमस्कार, दीर्घाकरे सरस्वती नमस्कार ।
॥ ३ ॥ स्वर, व्यंजन, युक्तादि वर्ण माला । ॥ ५ ॥ शिख्यावाक्य दूहा. ( वाक्यमंजरी ) ॥ ६ ॥ संधिसुत्र, सिधोवर्णः समाम्नायः । ॥ ७ ॥ हितोपदेश, तो जगवंत अर्थसहित ॥ ८ ॥ बिनुं जिन नाम ।
॥ ९ ॥ श्री नवकार मंत्र जयनसामि० प्रतिक्रमण सर्वपाठ
॥ १० ॥ साधु प्रतिक्रमण, चत्तारि मंगल सूत्र ।
॥ ११ ॥ श्रावक प्रतिक्रमण, बंदित्तू सूत्र । ॥ १२ ॥ नवकारस्यादि १० पञ्चकखाए ।
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मोहन पाठ शाला.
॥ पत्रांक ॥
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॥ ॥ रत्नसागर प्रथमन्नाग सूचीपत्र. ॥ ॥ ॥१३॥ दश पञ्चक्खाण आगारार्थः। ......... ......... ३३ ॥१४॥ दश पञ्चक्खाण आगारसंख्या गाथा .... .... ॥१५॥ मुहपत्ती पमिलेहण, सुत्र अर्थ साचो सरदहुं। .... ॥१६॥थापनाचार्यकी १३ पमिलेहण बोल। .... ॥१७॥ आलोयण, आजूणा चौपहर रात्री तथा दिवश। ॥१८॥ पक्खी, चौमाशी, संवन्चरी, वृध अतीचार। .... .... ॥१९॥ जयतिहुण वत्तीशी, श्रीअन्नय देवसूरी कृत ।.... ॥२०॥ परकीसूत्र, तित्थंकरेय तित्थे।.... .... ॥२१॥पादिक खामणा पाठ। .... .... .... .... ॥२२॥ (साते स्मरण) अजियंजिय सवनयं १ ॥ २३॥ नल्लासिक्कम नक्ख निग्गय पहा० २.... ॥२४॥ नमिकण पणय सुरगण, स्तोत्र ३। .... ॥२५॥ तंजयन जए तित्थं ॥४॥...... .... ॥२६॥ मय रहियं गुण गण रयण सायरं ५ ॥२७॥ सिग्घ मवहरन विग्धं० स्तोत्र ६ । .... ॥२८॥ नवसग्ग हरं पासं० स्तोत्र ७।.... .... ॥२९॥ लघुशांति, शांति शांति निशांतं। .... ॥३०॥ बमी शांति, जोलो नव्याः शृणुतवचनं । .... ॥३१॥ दूजकीथुई, (महीममणं पुन्नसोवन्नदेहं ) ॥३२॥ पंचमीस्तुतिः, (पंचानंतकसु प्रपंच०)। ॥३३॥ अष्टमी स्तुतिः, (चन्वीशे जिनवर०)। .... ॥३४॥ सर्वदिन स्तुतिः (मूरति मनमोहन०)। ..... ॥३५॥ दशमीस्तुतिः, (अश्वशेन नरेसर०)। ॥३६॥ एकादशी स्तुतिः, (अरस्य प्रबज्या०)। ..... ॥३७॥ चतुर्दशी स्तुतिः, (नै दें कि धपमप०)। .... ॥३८॥ चैत्री पूनम स्तुतिः, (सेठंजगिरिनमियै०.)..........
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॥ ॥ रत्नसागर प्रथम लाग सूचीपत्र. ॥8॥ ॥३९॥ नवपदन्नी स्तुतिः, (निरुपम सुखदायक०)। .... ॥४०॥ पयूषणापर्व स्तुतिः, (बलि बलि हुंध्यानं०)। ....
॥ॐ॥तिथोंकास्तवन (सरू)॥ ॥ ॥४१॥ सुगण सनेही साजन श्रीसीमंधरस्वामि । .... ॥४२॥श्री शंखेश्वर पास जिनेसर बेटिय)।.... .... ॥४३॥ सफल संसार अवतार ए हूं गिणुं । .... ॥४४॥प्रणमुं श्रीगुरुपाय (पंचमी वृधस्तवन)। ॥४५॥ पांचमि तप तुमे करोरे प्राणी। .... ॥ ४६॥ अमल कमल जिम धवल विराजे। .... ॥४७॥ पास जिनेसर जगति लोए। .... .... ॥४८॥समवसरण बैठा भगवंत। .... .... ॥४९॥ तुं मेरै मनमें प्रनु तुं मेरे दिलमें। .... .... ॥५०॥सास्वता असाश्वता जिन बिंबनमस्कारस्तवन ॥५१॥ नूलो मन जमराकांइनमें (सिझाय) ॥५२॥ कमवा फल क्रोधना (क्रोध शिशाय ॥५३॥ जगचूमामाणिनून (पोसह सिशाय)। ॥५४॥ निस्सिहीर ( राई संथारा सिशाय )। ॥ ॥ सामायक पोशादि श्राद्ध अहोरात्रकृत्य॥ ॥५५॥ प्रनात सामायक विधिः। ........ ......... ॥५६॥राई प्रतिक्रमण विधिः। ..... .... ॥५७॥ सामायक पारण विधिः। .... ॥५८॥ संध्याकाल सामायक ग्रहण विधिः। ॥ ५९॥ देवशी प्रतिक्रमण विधिः। .... ॥६०॥अठ पुहरी पोशह विधिः । .... ॥६१॥ पांचशकस्तवे देव वंदन विधिः। .... ॥६२॥ पच्चरकाण पारण विधिः। .... .... ॥६३॥राई संथारा विधिः। .... ....
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॥ * ॥ रत्नसागर प्रथमजाग सूचीपत्र. ॥ * ॥ ॥६४॥ पोसह पारण विधि। .... ॥३५॥ दिवश चौपुहरी पोसह विधिः। ॥६६॥रात्रि सबंधी चौपुहरी पोसह विधिः ॥६७॥ चौबीश२४ थंमिला पहिलेहण पाठ। .... .... १२१ ॥६८॥ चौवीश मिला कहां २ करना । .... ..... ॥६९॥ परकी (चौमाशी) संबन्चरी प्रतिक्रमण विधिः । ॥७०॥राई प्रतिक्रमणमें जम्माशीतप चितवन विधिः .... १२४ ॥७१॥ साधू श्रावक ( प्रतिक्रमणहेतू ) अर्थ (कारण) .... १२६ ॥७२॥श्री सीमंधर जिन चैत्यवंदन (जयरत्रिनुवन)।.... १२९ ॥ ७३ ॥ श्री सीमंधर जिनस्तवन ( पूर्व विदेह पुख लावती)। १२९ ॥७४॥श्री सीमंधर साहिबा वीनतमी० स्तवन .... .... १२९ ॥७५॥ जय जय नानिनरिंदनंद। सिघ गिरी चैत्य० .... १३० ॥७६ ॥आज पुंमर गिरि नेटिया (सिधगिरीस्त० ॥७७॥ सिघाचल गिरी नेव्यारे) धन्यनागहमारा ॥७८॥श्री आदिजिन चैत्यवंदन
१३१ ॥७९॥श्री शांतिजिन दोचैत्यवंदन .... .....
१३१ ॥८०॥श्री नेमिजिन चैत्यवंदन .... , .. ॥ ८४॥श्री पार्श्वजिनका चार चैत्यवंदनजूदा २ ॥८६॥श्री महाबीरस्वामीका दोचैत्यवंदन ......... १३३
॥ ॥ अथ तपगढ विशेष विधिसंग्रह ॥ ॥ ॥८७॥ पंचेंदियसंबरणो० स्थापनागाथा । ........ .... ॥८९॥ इहामि खमासमणो (इकारसुहराई)।.......... ॥९० ॥सामाश्य वयजुत्तो । सामायक पारवागाथा । .... ॥९१ ॥ जगचिंतामणिचैत्यबंदन ( जयवीयराय) .... .... ॥९४ ॥ कल्लाणकंदं (विशाल लोचन ) (जगवानहं) .... १३५ ॥९५ ॥ अतीचारकी ठगाथा। .... ..... .... ...... १३५ ॥९८॥ सुत्रदेवता (खेत्रदेवता ) (स्तुति) (अट्ठाईसु)। १३६
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॥ * ॥ रत्नसागर प्रथमन्नाग सूचीपत्र. ॥ ॥ ५ ॥१०॥वरकनक (सागरचंदो०) पोसहपारवागाथा : . ॥१०१॥ नरहेसर बाहुबली, अनैकुमारो० सिशाय।
॥१०२॥ मन्ह जिणाणं आणं, सिशाय। .... ....
॥१०३॥ सकल तीर्थ वंडं कर जोम। .... ..... · ॥१०४॥ सकलार्हत् प्रतिष्टान, (पख्खी वृक्ष स्तोत्र)। .... । ॥१०५ ॥ शांतिकरं शांतिजिणं० (शांतिकरस्तोत्र)।.... ....
॥१०६॥ सीमंधर परमातमा० (श्री सीमंधर जगधणी)। .... ॥१०९॥ श्री परमात्मा० (विमल कमल) श्रीशेजय चैत्य०। १४२ ॥१११॥ सुणो चंदाजी सीमंधर० (आंखमियै रेमें आज)।.... १४३ ॥११३ ॥ सेठेजा द्वितीय स्तवन (पंचतीर्थ स्तुति)। .... १४४ ॥११४॥ पिनजीर रै नाम जपुंदिनरातियों, नेमराजुल सि०। १४५ ॥११५॥आऊखो तूटाने सांधोको नहीरे, सि०।.... .... १४५ ॥११७॥ पंचतीर्थ चै० (२ तिथको चै०)।.... .... ..... ॥१२०॥ पंचमी अष्टमी (तथा) एकादशीको चैत्यवंदन।.... ॥१२२ ॥ श्रीसीमंधर जिनकी (२) दोय स्तुति । .... ॥१२३ ॥ दिन सकल मनोहर०, बीजकीस्तुति। ..... ॥१२४॥ श्रावण सुदि दिन०, पंचमी स्तुति। ...... ॥१२५ ॥ मंगल आठकरी०, (८) अष्टमी स्तुति ।.... .... १५० ॥१२६ ॥ एकादशी अतिरूवमी। (११) एकादशी स्तुति।.... ॥१२७ ॥ स्नातस्या प्रतिमस्य मेरु शिखरे ०, (१४) स्तुति।.... ॥१२८ ॥ श्रीशत्रुजय गिरि तीरथ सार, स्तुति। .... .... ॥१२९ ॥ महाविदेह केत्रे सीमंधर स्वामी०, स्तुति ।..... ॥ १३०॥ सत्तर दी जिनपूजा०, पयूषण स्तुति । ..... १९२ ॥१३१॥ सामायक लेवा विधि। ........ .... ॥१३२॥ सामायक पारवा विधि। .... .... ॥१३३ ॥ संध्याकाल, देवशी प्रतिक्रमण विधि १ । ..... ॥१३४ ॥ प्रजातकाले रात्रीप्रतिक्रमण विधि २। .... .... . १५५
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६ . ॥8॥रनसागर प्रथम नाग, सूचीपत्र ॥१॥
॥१३५॥ पक्खी प्रतिक्रमण विधि ३ । .... ..... ..... १५७ ॥१३७॥ चौमाशी ४.( संबबरी प्रतिक्रमण विधि ).... ..... १५८ ॥१३८ ॥ पमिलेहण करवानो विधि। .............. १५९ ॥१३९॥ पञ्चक्खाण पारवानो विधि। .... .... .... १५९ ॥१४०॥ पांच शक्रस्तवे देववंदन विधि । .... .... .... १७३ ॥१४१॥ (२४) जिनचै०, थुई, स्त०, (चोमाशी देव वंदन) १७३
॥अथ बंद स्तवन संग्रह ॥ ॥ ॥१४२ ॥ सेवो वीरने चित्तमां० । महाबीर बंद। .... ....
॥ १४३॥ वंचित पूरै विविधपरें, श्री नवकार उद। .... .... - ॥१४४॥ सुखकारण नवियण, श्री नवकारचंद । ....
॥१४५॥ॐ परमेष्टी नमस्कारं, आत्मरक्षाबंद। - ॥१४६ ॥ सेवो पास शंखेसरो। श्री पार्थ जिन बंद ।
॥१४७॥ वीरजिनेसर केरोसीसा श्री गौतम बंद। .... .... १६४ ॥१४८॥ आदिनाथ आदै०, शोलसतीनो बंद । .... ॥१४९॥शेचेंजरुषन्न समो सरया (तीर्थमाला स्त०)। ॥ १५० ॥ श्री राणपुरो रलियामणोरे राणपुरास्त ।..... ..... ॥१५१ ॥ पुख्खलव विजये जयोरे० सीमंधर स्त। ..... १६७ ॥ १५२॥ माता त्रिशला फूलावे पुत्र पालणे (हालरियो)। १६७ ॥१५३ ॥ निंदा मकरजो कोईनी पारकीरे (सि०)। .... १६९ 1. ॥ ॥ आनंद घनजी कृत स्तवन संग्रह। ॥१५५ ॥ षन जिनेसर प्रीतम० (पंथमो निहालुं वीजा ० )। १६९ ॥१५७॥ संनव देवत धुर० ( अभिनंदन जिन)। .... १७० ॥१५९॥ सुमति चरणकज० (शीतल जिनपति ०)। .... १७१ ॥१६० ॥ मन९ किमही न वाजैहो कुंथुजिन म०। .... १७२ ॥१६१॥शाश्वता अशाश्वता जिन वृक्ष चैत्य० । .... .... ॥१६२ ॥शाश्वता २ जिनस्तुति ( तथा ) विधि । .... .... ॥१६४ ॥श्रीसिघगिरी स्त० (श्री गिरनारजी स्तवन)। .... १८९
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॥2॥ रत्नसागर प्रथम नाग, सूचीपत्र ॥ * ॥ ७ ॥१६५॥ आवोर ने राज श्री अर्बुद गिरवर जश्यै । .....। ॥१६७॥श्री अष्टापदजी स्त० (समेत सिखरजी स्त०)।.... १९१ ॥१६८ ॥ तोरणथी रथ फेरियोरे लाल (बारमाशो)। .... १९२ ॥१६९॥ (अजीमगंजे) श्रीनेमी नूतन चैत्य प्रतिष्टा स्तवन। ॥१७०॥जीया चतुर सुजाण, नवपदके गुणगायरे। .... ॥१७१॥ सद्भक्तया देवलोके रविशशि । शाश्वता०। ..... १९४ ॥१७२ ॥ अपनराकरती आरती जिन आगै। .... १९५ ॥१७३ ॥ मंदर जाणेंकी पूजन करने की विधिः
१९६ ॥१७४ ॥ बमो नवकार, किंकप्पत्तर रेअयाण. ॥१७९ ॥ तिजयपहुत्त पयासं० स्तोत्र। .... ॥ १७६ ॥ दोसा वहार दक्खो, स्तोत्र। .... ॥१७७॥ जगद्गुरु, ९ ग्रह शांति स्तोत्र ।
२०४ ॥१७८॥ धम्मोमंगल मुक्किहं स्वाध्याय। .... ॥१७९॥ जिन पंजर, आत्मरक्षास्तोत्र। ....
२०५ ॥१८० ॥ लघु जिनसहस्रनाम स्तोत्र। ..... ॥१८१॥ सकल मंगल केलिनिवेशनं०, स्तोत्र । ॥१८२॥ पार्श्वजिनस्तोत्र, बिशदगुण विचित्र।
२०९ ॥१८३॥ यस्यज्ञानदया सिंधो, शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तोत्र २०९ ॥१८४॥ लक्ष्मीनिदानं० । श्रीपार्थजिनस्तोत्र । .... २१० ॥१८५॥श्री शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तोत्र। .... ..... ॥१८६ ॥ विशद सद्गुण० श्री पार्श्वजिनस्तोत्र। .... ॥१८७॥श्री गोमी पार्श्वजिन स्तोत्र ।.... ॥१८८॥आद्यश्री षनः०, २४ जिनस्तोत्र । ॥१८९॥श्रीमन्नम्रसुरासुरेंद्र० । मंगलाष्टकस्तोत्र ।
२१२ ॥१९० ॥ शिवंशुधवुच । परमात्मास्तोत्र। .... .... ॥१९१॥ दर्शनंदेवदेवस्य० । नमस्कारस्तोत्र । .... ॥१९२॥ आद्यंताकर संसद । इषिमंमलस्तोत्र। ....
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मोहनगुणमाला प्रथमनाग सूचीपत्र ॥ १९३॥ भक्तामर प्रणतमौलि मणिप्रनाणा० स्तोत्र । .... २१७ ॥ १९४ ॥ कल्याण मंदिर मुदार मवद्यनेदी स्तोत्र । ॥१९५ ॥ वृक्ष सेवेंजरासा श्रीरिसहेसर पायनमी०। .... २२३ ॥१९६ ॥श्री शिखरजी को मोटो रास। .... .... ॥१९७॥ श्री गौतम स्वामीको रास। .... ॥१९८॥श्री गौतम स्वामीके श्लोक। .
॥ ॥ पनरैतिथकी थुई सरू ॥१॥ ॥२०१॥ पंच विदेह (समदमोत्तम० ) वर मुत्तिय० । ॥२०२ ॥ (यदंजिनमनादेव.) .... .... .... ॥ २०३॥ विश्वनायक लायक०, अजितजिन स्तुति। .... २४३ ॥२०४॥ सुखसमकित दायक कामित सुरतरुकंद। ॥२०५॥ मिल चौविह सुरवर विरचै त्रिगमोसार । ॥२०६॥ सुरअसुर वंदिय पायपंकज नेमिजिन स्तुति । ॥ २०७॥ श्री देवार्य (विश्वेवर्य पूर्णानंदं)। .... ॥२०८॥ त्रिनुवन जन नायक दायक। .... .... २४५ ॥२०९ ॥ श्री सर्वझंज्योतीरूपं विश्वाधीशं देवेंद्र। .... ॥२१०॥ पापायां पुरिचारु, दीपमाला स्तुति। ..... ॥२११॥ सिघारथताता दीपमाला स्तुति। .... २४७
॥॥ मोटे गेटे स्तवन सरू ॥ * ॥ .॥२१३ ॥ मनमोहन महाराज । तीन नुवन शिरताज । २४७
॥२१३ ॥ जय २ श्री जिनराज । जगजनअंतरजामी । २४८ ॥२१४॥विका श्री जिन बिंब जुहारो। ....
२४८ ॥२१५ ॥ अंतर जामी सुण अलवेसर । ....
२४९ ॥२१६ ॥ जयकारी जिनराज पुरसा दानीरे । .... २४९ ॥२१७॥ सुण सुण शेजागिर स्वामी । .... ........ २५० ॥२१८ ॥ घर अंगण सुरतरु फल्योजी । ..... ॥२१९॥ मोरा साहिबहो श्री शीतलनाथकि।
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(वा) ॥मोहनगुणमाला॥
-digenorror॥प्रथम नाग॥
॥ मंगलाचरण॥ कारं बिंदुसंयुक्तं। नित्यं ध्यायन्ति योगिनः। कामदं मोक्षदं चैव । काराय नमोनमः॥१॥ ॥ॐकार नदार अगम्म अपार संसारमें सार पदारथ नामी, सिद्धि समृद्धि सरूप अनूपनयो सबही सिरभूप सुधामी, मंत्रमें यंत्रमें ग्रंथके पंथमें जाकुं कियो धुर अंतरजामी, पंचहीइष्ट वसे परमिष्ट सदा ध्रमसी करे ताहि सिलामी ॥ १ ॥ नमो निसदीश नमायकेशीश जपो जगदीश सही सुखदाता, जाकी जगत्तमें कीरति जागत नागतिहे सब ईति असाता इंद नरिंद दिणिंद फुणिंद नमाएहें ठंद आनंद विधाता, धोरी धरम्मको धीर धराधर ध्यान धरे ध्रमसी गुणध्याता ॥२॥
॥अथ गुरुमहमा नमस्कार॥ ॥सर्वारिष्टप्रणाशाय । सर्वानीष्टार्थ दायिने। सर्वलब्धि निधानाय । गौतमस्वामिने नमः॥१॥
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रत्नसागर. ॥महिमा जिणकी महिमें महिमें जिन दीनो महा इक ग्यान नगीनो, दूरजग्यो भ्रमसोतम देषत पूरजग्यो परकास नवीनो, देतहि देतहि दूनोवधै अरु खायोहि खूटत नाहिं खजीनो, ऐसो पसाय कियो गुरुराय तिणें ध्रमसी पदपंकज लीनो ॥१॥ ॥अज्ञानतिमिरान्धानां । ज्ञानाञ्जनशलाकया ॥ नेत्रमुन्मीलितं येन ॥ तस्मै श्री गुरवे नमः॥१॥
॥श्रीसरस्वत्यै नमः॥श्री सारदायै नमः। ॥ सरस्वती महानागे। बरदे कामरूपिणी । विश्वरूपी विशालाक्षी। दे विद्या परमेश्वरी ॥१॥ सरस्वती मया दृष्टा । बीणापुस्तक धारिणी । हंसबाहन संयुक्ता । बिद्या दान बरप्रदा ॥२॥
॥दीर्घाक्षरें सरस्वती नमस्कार॥ सिद्धारूपी साची देवा सारे जीकी नीकी सेवा रागे आए लागे पाए जागे मोटी माई है, चंगी रंगी वीणा वावे रागे सारे रागे गावे हावे नावै सोनापावे ग्याता जाकुं गाई है, हंसी कैसी चाली चाले पूजी बंदी पीडा टाले लीला सेती लालेपाले सुद्धी बुद्धी दाई है, सोहेवानी नीकी बानी जाकुंग्यानी प्राणी जानी ऐसी माता शाता दानी धर्मसीहे ध्याई है॥१॥
- (स्वरवर्णः) अ आ इ ई ऊ ऋ + ऋ ल लू . ए ऐ ओ , औ अं अः
(व्यञ्जनवर्णः) . क ख ग घ ङ। च छ ज ज झ ञ ट ठ ठ - ड म ढ ण । त थ द ध न । प फ ब न
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मोहनगुणमाला, प्रथम नाग.
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छ गृ त ह ट मृ दृ श स ह । .. क्य ख्य ग्य घ्य च्य व्य ज्य ट्य व्य एय त्य द्य
ध्य न्य प्य भ्य म्य य्य ल्य श्य ष्य स्य ह्य क्ष्य - क्रय व ज्र त्र द्र प्रभ्र म्र ब्र श्र स्त्रज्ञ क्व ग्व एव त्व ह ध्व न्व म्व स्त्व श्व ष्व स्व क नघ्न न न न नष्ण स्न क्म ग्म म च्म
म झन्म इम ष्म स्म झक्ष्म॥केखें गं घे अङक ङख श्वञ्छ एट एठाम एढ एण न्त न्थ न्द न्ध न्न म्म ष्क स्क स्ख श्च श्छष्ट ष्ठ स्त स्थ स्प ष्प स्फ क कत्व ग्ग च च्छ बज्ज ऊ हत्त त्थ ६ ड प्प ल्क ल्प ल्म ल्ल द्रह ग्द न्ध ब्द
ब्ध ल्म क्तप्त कप त्स॥ न्त्य न्द्य न्ध्य न्य ध्यन्ह्यम्व्य ल्क्य ष्टय व्द्य
हय स्त्य स्ल्य न्ल्य क्तय व्य स्व। ___च्छ्र न्त्र न्द्र ष्ट्र स्त्र प्र ज्व ष्टु त्त्व स्त्व १२३४५६७८९ (१० १०० १००० १००००) ॥ स्वस्तिश्री कृष्णब्रह्मस्था, एिवंद्राव्हा स्युश्च स्वस्करा, पृथ्वीभृहल्गु श्रेष्टात्म, व्रम्पास्ते हृद्यप्तिदा ॥ १॥
_ (शिक्षा वाक्य) ॥ गुरु शुश्रूषयाविद्या। पुष्कलेन धनेन वा । अथवा विद्यया विद्या। चतुर्थ नैव कारणं ॥ १ ॥ विनत्वंच नृपत्वंच । नैव तुल्य कदाचन । स्वदेशे पूज्यते राजा । विप्रान् सर्वत्र पूज्यते ॥ २॥ पण्डिते च गुणाः सर्वे । मूर्खे
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रत्नसागर. दोषाहि केदलं । तस्मान्मूर्ख सहस्रेषु । प्राज्ञ एको विशिष्यते ॥ ३॥ नक्षत्रनूषणं चंन्द्रो । नारीणां नूषणं पतिः। पृथिव्या नूषणं राजा। विद्या सर्वस्यनूषणं ॥ ४॥ माताशत्रुः पिता वैरी । बालो येन न पाठितः। न शोनते सना मध्ये । हंस मध्ये बको यथा॥५॥ लालयेत्पंच वर्षाणि । दशवर्षाणि ताडयेत् । प्राप्तेतु षोडशेवर्षे । पुत्रं मित्र वदाचरेत् ॥६॥ वरमेको गुणी पुत्रो । नच मूर्ख शतान्यपि । एकचन्द्र स्तमो हन्ति । नच तारागणादपि ॥७॥ अविद्यं जीवनं शून्यं । दिशः शून्यास्त्व बांधवा। पुत्रहीनं गृहं शून्यं । सर्व शून्या दरिद्रता ॥ ८॥ नच विद्या समो वंधु
चव्याधि समो रिपुः । नचापत्य समः स्नेहो । नच दैवात्परं बलं ॥९॥ किं तया क्रियते धेन्वा । या न सूते न दुग्धदा । कोऽर्थः पुत्रेण जातेन । यो न विद्वान् न भक्तिमान् ॥ १०॥ नपदेशो हि मूर्खाणां । प्रकोपाय न शान्तये । पयः पानं नुजंगानां केवलं विषवर्धनं ॥ ११ ॥ मातृवत्परदारांश्च । परद्रव्याणि लोष्ट्रवत् । आत्मवत् सर्वभूतानि । विदंते धर्मबुध्यः॥१२॥
॥अथ वाक्यमंजरी॥ ॥ श्रीसद्गुरुभ्यो नमः ॥ श्रीवाग्वादिन्यै नमः॥प्रातरुत्थाय श्रीपरमेश्वर चिन्तयेत् । तदनन्तरं, हस्तौ पादौ सम्यक् प्रक्षाल्य स्नात्वा आगन्तव्यं । परमेश्वरस्य पूजा विधेया (देवः पूज्यः)॥ धर्मशास्त्र मध्ये किं किमुक्तं नास्ति, धर्मशास्त्रे सर्वं वर्तते । धर्मशास्त्र मत्यंत समीचीनं ॥ सरस्वती स्तोत्रं सवीर्यं भवति । सद्यः प्रीतिजनकं भवति । इदं सरस्वती स्तोत्रं सद्यः प्रत्यय कारकं भवति ॥ कविता समीचीना। कवित्वं कथमायाति । गुरुसमीपे गत्वा सम्यक् पठनीयं । ततो ज्ञानं भवति । तदा कवित्वमायाति । तस्मादादौबंदी झानं सम्पादनीयं । सदा प्रियं ब्रूयात् । प्रियवादी सर्वस्य प्रियो भवति । विद्याहि परमं धनं । यस्य विद्याधनमस्ति । स सदा सुखेन कालं नयति । श्रमेण यत्नेन च विद्या नवति । तस्मात् विद्यालानायश्रमो यत्नश्च विधेयः । विद्यां विना वृथा जीवनं ॥आलस्यं सर्वेषां दोषाणामाकरः। अलसा विद्यामुपार्जयितुं न शक्नुवन्ति । धनं न लगन्ते । अलसानां चिरमेव फुःखं । तस्मादालस्यं परित्यजेत् ॥ योऽस्मानध्यापयति ।
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मोहनगुणमाला प्रथम नाग. सोऽस्माकं परम गुरुः । सहि पितृवत् पूजनीयः । विद्यादाता जन्मदाताच नावेव समानौ । समं माननीयो च ॥ क्रोधं यत्नेन वर्जयेत् । क्रोधवशेन परुषं नाषते । ततः प्रहरेत् । क्रोधोहि महान् शत्रुः ॥ सर्व परवशं पुःखम् । सर्वमात्मवशं सुखम् । एतदेव सुखःखयोर्लदाणम् ॥ परर्हिसायां परापकारेच बुधिर्नका- । तयोः समं पापं नास्ति ॥ यथाशक्तिपरेषा मुपकारं कुर्यात् । परोपकारो हि परमो धर्म ॥ अहंकारं परिहरेत् । नाहंकारात् परोरिपुः ॥ संतुष्टस्य सदा सुखम् । आत्मनः सुखमन्विरेत् । सन्तोषमूलहि सुखम् ॥
॥अथ सन्धिसुत्र॥ - सिमो वर्णः । समाम्नायः । तत्र चतुर्दशादौ स्वराः दशसमाना। तेषां नौ प्रावन्यो । ऽन्यस्य सवर्णों । पुर्वी शास्वः । परो दीर्घः । स्वरोवर्णः वर्जोनामी । एकारादीनि संध्यवाणि । कादीनि व्यंजनानि । ते वर्गाः। पंच पंच । वर्गाणां प्रथम प्रितीयौ । शषसाश्च घोषाः । घोषवंतोऽन्ये । अनुनासिकाः ङञणनमाः । अन्तस्थाः यरलवाः । नष्माणः शषसहाः । अः इति विसर्जनीयः। कः इति जिव्हा मूलीयः। पः इत्युपध्मानीयः। अंइत्यनुस्वारः। पूर्वपरयो रर्थोपलबधौ पदम् । अस्वरं व्यंजनं । परं वर्णनयेत् । अनतिक्रमयन् विश्लेषयेत् । लोकोपचारात् ग्रहण सिधिः ॥ इति संधौसूत्रतः प्रथमश्चरणः समाप्तः॥
॥हितोपदेसः॥ ___ अन्तिो नगवंत इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिता। श्रा चार्या जिनसासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः । श्रीसिशांत सुपाठका मुनिवरा रत्नत्रया राधकाः । पंचैते परमेष्टिनः प्रति दिनं कुर्वतु वो मंगलं ॥१॥
॥अर्थः॥ (एते पंचपरमेष्टिनः प्रतिदिनं वः युष्माकं मंगलं कुबन्तु) । यह पंचपरमेष्टि निरन्तर श्रीसंघप्रतें मंगलकरो। (कैसे है पंचपरमेष्टि) (अ
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रत्नसागर.
पन्तिो नगवंत इंद्रमहिता)। प्रथम परमेष्टि । श्रीअरिहंत देवः। अष्टकर्म शत्रुकुंहणें (सो) अरिहंत कहिये । अरिहंत कैसे है । (जगवंतज्ञानवंत है । केवल ज्ञान केवल दर्शन संयुक्त है । (तथा) नगशब्दके १४ अर्थ है ॥ नगोऽर्क (सूर्य) १। झान २। महात्म ३ । यश ४। वैराग्य ५। मुक्ति ६। रूप ७। वीर्य ८। प्रयत्न ९ । मा १०६. श्रीलक्ष्मी ११ । धर्म १२ । ऐश्वर्य १३ । योनि १४। यह चवदै अर्थोमेंसें। सूर्य १ योनि २। दो अर्थ वर्जकर । १२ अर्थ नग शब्दका मिलै (जिससे) जगवंत कहियै (पुनः किंविशिष्ट ) फेर अरिहंत कैसे है ( इंद्रमहिता (चौसठ इंद्रोंकै पूजनीक । द्वादशगुणे करी विराजमान है (सो द्वादश गुण कैसे ) प्रथमतो अरिहंतको अद्भुतरूप । रोगादि रहित । प्रस्वेद मलादि रहित । सुगंध शरीर होय ॥१॥ सासोस्वासकी कमलजैसी सुगन्ध होय ॥२॥ लोही मांस गायके दूध जैसा सपेद होय ॥३॥आहारनीहारकी विधि अदृश्यहोय । प्राणी देख सक्ते नहिं ॥ ४॥ ए च्यार अतिसय गुणतो जन्मथकासे होय । (शेषप्राठगुण ) केवल ज्ञान नत्पन्न होणेसें प्रगट होय । (अशोकवृतः) जगवन्तके शरीरसें । बारै गुणो तुंचो अशोकवृत होय । जिसकी गयांबैठणेंसें रोगसोकादिक दूर होय ॥१॥ (सुरपुष्पवृष्टिः) देवगण पंचवर्ण फूलोंकी जानूपर्यंत वर्षा करै। आकाससे पडता सीधापडै विंटनींचै रहै । पंषडी ऊपर रहै ॥२॥ (दिव्यध्वनि) योजनपर्यंत । देवता । मनुष्य । तिर्यंच । सब जीव । अपणी २ जाषामें । यथावस्थित समऊ (जाणे) नगवंत मेरी भाषामें नपदेस देते है । (कहावी है ) एगाइं गिराणेगे । संदेह देहिणं समंडित्ता। तिहुअण म[सा संता । अरिहंता हुंतिमे सरणं ॥ १॥३॥ (श्वामर ४) नगवंतके दोनुं पासे इंद्रचामर ढालता रहे ॥ ४॥ (आसनंच ५) जगवन्तके बेठणेको । इंद्रादिक रचित । फिटक रत्नमई सिंहासण रहे ॥५॥ (नामंडलं ६) जगवन्तके पिगडी नामंडल रहे (जिसमें ) जगवंतके च्यार मुख । च्यारंदिश तरफ मालुम होय जगवंत तो पूर्वदिशा मुख कर बेठे । आरे तीन दिशमे । नगवन्तके प्रतिबिंब इंद्रादिक स्थापना
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मोहनगुणमाला, प्रथम नाग. करै। परंतु नगवन्तके अतिशयसें । च्यारुदिशे । बारैई परषदाकों । अपणेसन्मुख नपदेश देता मालुम होय ॥६॥(उनी ७) आकाशमें देव कुंकुनी बाजित वाजे ॥ ७ ॥ (रातपत्रं ) जगवन्तके विहार काले। वा स्थिति कालै । हमेसां मस्तकपर । तीन नत्र रहै ॥८॥ (यह आठ गुण देवगणके किये होय) ऐसे अरिहंत । देवाधिदेव । चौतीस अतिशय विराजमान । पैतीस वचनगुण शोनित । एक हजार आठ लहणालंकृत। अगर दूषण रहत । शांत दांत । कृपासागर । त्रैलोक्यनाथ । जगत्रयके गुरु (वर्तमानकालै ) महाविदेह खेत्रे । केवलज्ञान । केवलदर्शनसें। लोकालोकका नाव देखते थके । पृथ्वीमंडलपर भव्य जीवुके मनोरथ पूरण करते थके । बिचरते है (ऐसे ) अनंतगुणें सुसोनित । अरिहंत देव श्रीसंघमें सदा मंगल करो ॥१॥ (तथा सिद्धाश्च सिद्धि स्थिता) (दूसरै पदै ) सिद्ध महाराजको नमस्कार हुवो । (सिद्ध महाराज कैसे है ) अष्ट कर्म काष्टकों । शुक्लध्यान रूप अग्निसें नस्मकर सिद्धगतिकों प्रातनये (ऐसे ) अनंत ग्यान । अनंतदर्शन । अनंत चारित्र । अनंत तप। अनंत वीर्यसंयुक्त । जन्म जरा मरण रोग सोक नयादिकसे विप्रमुक्त । चवदै राजलोकमें सब जीवोंके मनोगत नाव । एक समयमें जाणते थके । देखते थके पिण आत्मगुणां में मग्न रहे है (ऐसे ) सिद्ध महाराज श्रीसंघमें सदा मंगल करो ॥ २ ॥ (आचार्या जिनशासनोन्नति कराः) (तीसरा परमेष्टि ) श्रीआचार्य महाराजकों नमस्कार हुवो। (सो कैसे है ) (उत्तीस गुण करी विराजमान । मुक्तिमार्गके साधक । कर्म शबेके बिराधक । अबुध जीव प्रतिबोधक । कमागुण भंडार । समदृष्टी। तरण तारण। धर्मके धोरी । जिन सासनकी नन्नतिके करण हार ( ऐसे) पर नपगारी आचार्य महाराज श्रीसंघ में सदा मंगलकरो॥३॥ (पुज्या नपाध्यायका । श्रीसिद्धांत सुपाठका (चौथा परमेष्टि । श्रीनपाध्याय महाराजकों नमस्कार हुवो। (सोकैसे है ) द्वादशांगी सुत्रार्थके जाणकार । नय निदपा गमां पर्याय युक्त । सिद्धांतको पढाणेवाले । झानचह्न देणेवाले । (ऐसे) २५ गुण करी बिराजमान । श्रीनपाध्याय महाराज श्रीसंघमें
थके ।
लोकमें सब जीवारा मरण रोग सोमन चारित्र।
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रत्नसागर.
सदा मंगल करो ॥ ४ ॥ ( मुनिवराः रत्नत्रयाराधकाः ) ( पंचम परमेष्टि ) सब साधु मुनिराज ( सो कैसे है) ज्ञान १ दर्शन २ चारित्र ३ यह तीन रत्नके आराधक है। पांचे सुमते सुमता । तीने गुप्तेगुप्ता। बकायके पीहर कुक्खी संबल । चारित्रपात्र । मोक्षमार्गके साधक । (ऐसे ) सब साधु मुनिराज । सत्ताईस गुणें करी सोनित । श्रीसंघमें सदा मंगल करो ॥ ५ ॥ इति हितोपदेशः उजय श्रेयार्थम् ॥
।
१॥ श्रीकेवलज्ञानीजी । २|| श्रीनिर्वाणीजी |
३ ॥ श्रीसागरजी । ४ ॥ श्रीमहायशजी | ५ ॥ श्रीविमलदेवजी । ६॥ श्रीसर्व्वानुभूति । ७ ॥ श्रीश्रीधरजी । ॥ श्रीदत्तस्वामीजी |
॥ विनंजिन नामः ॥ (प्रतीत चौबीसी.)
९॥ श्रीदामोदरजी । १७ ॥ श्रीअनिलनाथजी । १० ॥ श्रीसुतेजनाथजी । १८ ॥ श्रीयशोधरजी । ११॥ श्रीस्वामीजी । १९ ॥ श्रीकृतार्घजी । १२॥ श्रीमुनिसुव्रतजी | २० || श्रीजिनेश्वरजी । १३ ॥ श्रीसुमतिनाथजी | २१|| श्रीशुद्धमतीजी | १४॥ श्रीशिवगतीजी । २२ ॥ श्रीशिवकरजी । १५ || श्री प्रस्तागजी | २३ || श्रीस्पन्दनजी | १६ | श्रीनमीश्वरजी । २४|| श्रीसंप्रतिजी ।
॥ इति प्रतीत चतुर्विंशति तिर्थं करेभ्यो नमः ॥ ( वर्त्तमान चौबीसी )
१॥ श्रीरुषनदेवजी । ९॥ श्रीसुविधिनाथजी । १७ ॥ श्रीकुंथुनाथजी । २|| श्रीजितनाथजी । १० ॥ श्रीशीतलनाथजी । १८ ॥ श्रीमरनाथजी । ३ ॥ श्रीसंभवनाथजी । ११॥ श्रीश्रेयांसजी । १९ ॥ श्रीमल्लिनाथजी । ४ ॥ श्रीअभिनन्दनजी । १२ ॥ श्रीबासुपुज्यजी | २०|| श्रीमुनिसुव्रतजी । ५ ॥ श्रीसुमतिनाथजी | १३ || श्रीविमलनाथजी | २१|| श्रीनमिनाथजी । ६ ॥ श्रीपद्मप्रभुजी । १४ ॥ श्रीमनन्तनाथजी । २२॥ श्रीनेमनाथजी । ७॥ श्रीसुपार्श्वनाथजी | १५ || श्री धर्मनाथजी । २३ ॥ श्रीपार्श्वनाथजी । ८॥ श्रीचंद्रानुजी | १६ ॥ श्रीशान्तिनाथजी । २४ ॥ श्रीमहाबीरजी ।
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मोहनगुणमाला, प्रथम नाग.
(अनागत चौवीसी) १॥ श्रीपद्मनानजी। ९॥श्रीपोटिल प्रनुजी। १७॥ श्रीसमाधिनाथजी । २॥श्रीसूरदेवजी। १०॥ श्रीशतकीर्तिजी। १८॥ श्रीसंबरनाथजी। ३॥श्रीसुपार्श्वजी। ११॥ श्रीसुब्रतनाथजी। १९॥ श्रीयशोधरजी। ४॥श्रीस्वयंप्रनुजी। १२॥श्रीअममनाथजी। २०॥ श्रीविजयनाथजी। ५॥श्रीसर्वानुभूतिजी।१३॥श्रीनिष्कषायजी। २१॥ श्रीमल्लिंप्रनुजी। ६॥श्रीदेवश्रुतजी। १४॥श्रीनिष्पुलाकजी। २२॥ श्रीदेवप्रनुजी। ७॥ श्रीनदयप्रनुजी। १५॥ श्रीनिर्ममनाथजी । २३॥ श्रीअनन्तजी। ॥श्रीपेढालप्रनुजी। १६॥ श्रीचित्रगुप्तिजी। २४॥ श्रीन,करजी।
॥इति नविष्यचविंशति तिर्थकरेभ्योनमः॥
__ (बीसबिहरमांन नामानि) १॥ श्रीसीमन्धरजी। ॥श्रीअनन्तबीर्यजी। १५॥ श्रीनेमप्रनुजी। २॥ श्रीयुगमन्धरजी। ९॥ श्रीसूरप्रनुजी। १६॥श्रीईश्वरजी। ३॥ श्रीबाहुजी। १०॥ श्रीविमलजी। १७॥ श्रीवयरसेनजी। ४॥ श्रीसुवाहुजी। ११॥ श्रीवज्रधरजी। १८॥श्रीमहानद्रजी। ५॥श्रीसुजातजी। १२॥श्रीचंद्राननजी। १९॥ श्रीदेवजसजी। ६॥ श्रीस्वयंप्रनुजी। १३॥श्रीचंद्रबाहूजी। २०॥ श्रीअजितवीर्यजी। ७॥ श्रीषनाननजी। १४॥ श्रीनुजंगजी।
॥इति विंशति विहरमानतिर्थकरेभ्योनमः॥
(च्यार सास्वतानामः) १॥ श्रीषनाननजी। -३॥ श्रीवारिषेणजी। २॥ श्रीचंद्राननजी। ४॥ श्रीवर्धमानजी।
॥ इति चत्वार सास्वता जिनवरेभ्योनमः॥
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+ १०
'रत्नसागर
॥ पांच प्रतिक्रमणसूत्र विधि ॥
श्रीपंचपरमेष्टिने नमः ॥ णमो अरिहंताणं ॥ णमो सिद्धाणं ॥ णमो आयरियाणं ॥ णमो नवज्जायाणं ॥ णमो लोए सबसाहूणं ॥ एसो पंच मक्कारो ॥ सवपाव प्पणासणो ॥ मंगखाणंच सवेसिं ॥ पढमंहवइ मंगलं ॥ १ ॥ पद ९ ॥ संपदा ८ ॥ अक्षर ६८ ॥ गुरु ७ ॥ लघु ६१
॥ अथ सकल तिर्थंकर नमस्कार लि० ॥
1
॥ ॥ श्रीइष्टदेवाय नमः ॥ ॐ ॥ जयनसामिहि ॥ २ ॥ रिसह सेत्तुं वज्र्जित पहू नेमिजिए । जयन बीर सच्चवरमंगण । नहि मुणि सुवय । महुरिपास दुह पुरि खंमण । वर विदेहजि तित्थयर | चिहुँ दिसि विदिसि जंकेवि । ती प्राणाय संपयं । वपुं जिण सब्बेवि ॥ २ ॥ कम्मभूमिहि ॥ २ ॥ पढम संघयण नक्कासन सत्तरिसन । जिणवराण विहरंतलन्नइ । नवकोडी के लिए । कोडसहस नवसाहु संपय । संपइ जिणवर वीसमुणि । दुइकोडीवरणाणि । समणा कोडी सहसपुइ । थुणिजइ निच्चविहाण ॥ १ ॥ सत्ताणवइ सहस्सा । लक्खा बप्पन्न कोडी | चनसय बयासीच्या । तिलक्के चेइए वंदे ॥ २ ॥ वंदे नवकोडिसयं । पणवीसंकोडि लक्खतेवन्ना । अठ्ठावीस सहस्सा चनसय अठ्ठासिया पडिमा ॥ ३ ॥ जंकिंचि नामतित्थं । सग्गेपायाले माणुसेलोए । जाइंजि बिंबाई । ताई सवाईं वंदामि ॥ ४ ॥ रामोत्थुणं अरिहंताणं जगवंताणं ॥ १ ॥ आइगराणं तित्थगराणं सयंसंवृद्धाणं ॥ २ ॥ पुरसोत्तमाणं पुरस सीहाणं पुरसवर पुंमप्राणं पुरसवर गंधहत्थीणं ॥ ३ ॥ लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपो गराणं ॥ ४ ॥
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मोहनगुणमाला, प्रथम नाग.. अनयदयाणं चक्खुदयाणं मग्ग दयाणं सरणदयाणं बोहिदयाणं ॥ ५॥ धम्मदयाणं धम्म देसिप्राणं धम्मनायगाणं । धम्मसारहीणं धम्मवरचानरंत चक्कवट्टीणं ॥ ६ ॥ अप्पमिहयवरणाण दंसणधराणं विअट्टरनमाणं ॥ ७ ॥ जिन्नाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाएं बुद्धाणं बोहित्राणं मुत्ताणंमोअगाणं ॥८॥ सवन्नूणं सबदरिसीणं सिव मयल मरुन मणंत मक्खय मवावाह मपुणरावत्ति सिदिगइ नामधेयं ठाणंसंपत्ताणं णमोजिणाणं जिअनयाणं ॥ ९ ॥ जे अईप्रासिद्धा जे नविस्संति प्रणागएकाले संपइअ वट्टमाणा सबे तिविहेण वंदामि ॥१॥ पद ॥३३॥संपदा॥९॥अक्षर ॥२९७॥ गुरु ॥३३॥लघु ॥२६४॥ ॥ जावंति चेइप्राइं। नवअ अहेअतिरिअलोएय। सवाइंताइंवंदे । इहसंतो तत्थसंताई॥१॥ इच्गमिखमा० इबाका० नगवन् । जावंति केविसाहू । नरहे रखए महाविदेहेत्र । सवेसि तेसिपणो । तिविहेण तिदंग विराणं ॥२॥अक्षर ॥ ९२॥ नमो ति सिद्धाचार्योपा ध्याय सर्वसाधुभ्यः ॥ ॥ वसग्ग हरंपासं । पासं वंदामि कम्मघण मुक्कं । विसहर विसनिन्नासं । मंगल कल्लाण
आवासं ॥ १ ॥ विसहर फुलिंग मंतं । कंठे धारेइ जो सया मणुप्रो। तस्सगहरोगमारी। दुब्जराजन्ति ग्वसामं ॥२॥चिन दूरे मंतो। तुज्ज पणामोवि बहुफलो होइ। नरतिरिए सुवि जीवा। पावंति नदुक्ख दोहग्गं ॥३॥ तुहसम्मत्ते लद्धे। चिंतामणि कप्पपाय बन्नहिए। पावंति अविग्घेणं । जीवा अयरामरं गणं ॥४॥ इअसंथुप्रो महायस। नत्तिब्नरनिब्नरेण हिआएण।तादेव दिज बोहिं। नवे नवे पास जिणचंद ॥६॥ इति श्रीपार्श्व जिनस्तुतिः॥
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१२
रत्नसागर.
* ॥ जय वीयराय जगगुरु । होनममं तुहपजावो । जयवं नवनिब्बे । मग्गाणुसारित्र्या इठफलसिद्धी ॥ १ ॥ लोग विरुद्ध चाओ | गुरुजण पूच्या परत्थकरणंच सुह गुरुजोगो तब्बयण सेवा नवमखा ॥ २ ॥ ॥ अरिहंत चेइयाणं । वंदणवत्तिया । नत्थूकही । एक नवकारनोकावसग्गकरी एकथूईनीगाथा कहै ॥ इतिचैत्यवंदनकं ॥ ॥ ॥ अथ इरियावही ॥
॥ इच्छामि खमासमणो वंदिनं जावणिज्जाए निसीहि आए मत्थणवंदामि ॥ इतिक्षमाश्रमपदंमकः ॥ गुरु ३ लघु २५ ॥ ( इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ) इरित्र्यावहित्र्यं परिक्कमामि, इच्छं इच्छामि पक्किमिनं । इरिश्रावहियाए विराहणाए । गमणा गमणे पाण कमणे वीकमणे हरित्र्य कमणे । नसा उत्तिंग पणग दंग मट्टी मक्कडा । संताला संकमणे । जेमे जीवा विराहिया । एगिंदिया वेइंदिया तेइंदिया चनरिंदिया पंचिंदिया अहिया वत्तित्रा लेसिया संघाइया संघट्टिया । परिश्राविया किलामिया नद्दविच्या ठाणा उठाण संकामिया जीवियाच्ोववरोविया । तस्समिच्छामिदुक्करं ॥ ७ ॥ तस् उत्तरी करणेणं । पायच्छित्त करणेणं । विसोही करणेणं । विसल्ली करणेणं । पावाणं कम्माणं । पिग्घायणठाए । गमिकान सग्गं ॥ पद ३२ संपदा ८ गुरु २४ लघु १७५ ॥ एवं ॥ १९९ ॥ ॥ अन्नत्थ ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं बीएणं जंनाइएणं बड्डुएणं वाय निसरगेणं नमलिए पितमुहाए ॥ १ ॥ सुहुमेहिं अंग संचालेहिं । सुमेहिं खेल संचालेहिं । सुहुमेहिं दिठि संचालेहिं ॥ २ ॥ एव माइएहिं प्रागारेहिं । अग्गो
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१३
मोहनगुणमाला, प्रथम नाग. अविराहिश्रो हुज्ज मे कानसग्गो ॥३ ॥जाव अरिहंताणं नगवंताणं णमोकारेण नपारेमि तावकायं गणेणं मोणेणं जाणेणं अप्पाणंवोसरामि ॥४॥ लोगस्स नोअगरे । धम्म तित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइसं । चनवीसंपि केवली ॥१॥ उसन मजिअं च बंदे । सनव मनिनंदणं च । सुमइश्च पनम प्पहं सुपासं । जिणंच चंदप्पहं वंदे॥२॥सुविहंच पुप्फदंतं । सीअल सिडांस वासुपुऊंच । विमल मणंतं च जिणं । धम्म संतिंच वंदामि ॥३॥ कुंथु अरंच मल्लिं । वंदे मुणिसुव्वयं न मि जिणंच । वंदामि रिम्नेमि । पासं तह वद्यमाणंच ॥ ४॥ एवं मए अनिथुप्रा । बिहुश्र रयमला पहीण जर मरणा। चनवीसंपि जिणवरा। तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ कित्तित्र वंदिश महिश्रा । जेते लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरोग्ग वोहि लानं । समाहिवर मुत्तमं दिंतु ॥ ६ ॥ चंदेसु निम्मलयरा। प्राइच्चेसु अहिअं पयासयरा । सागर वर गंभीरा । सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु॥8॥७॥ पद २८ संपदा २८ गुरु २८ लघु २२८ [एवंसर्वअक्षर ॥२५६ ] सबलोए अरिहंतचेइमाणं करेमिका नस्सग्गं ॥ * ॥ १ ॥ ॥ ॥ पुक्खरवर दीवट्वे । धायइ समेत्र जंबुदीवेत्र । नरहे रवय विदेहे । धम्माइगरे नमंसामि ॥ १ ॥ तम तिमिर पमल विद्धसणस्स । सुरगण नरिंद महिअस्स । सीमाधरस्स वंदे। पुप्फोमित्र मोह जालस्स ॥२॥ जाई जरा मरण सोग पणासणस्स । कल्लाण पुक्खल विसाल सुहा वहस्स । को देव दाणव नरिंद गणच्चिअस्स। धम्मस्ससार मुवल नकरेपमाय॥३॥ सिद्धेनोपय णमोजिणमए नंदीसयासंजमे। देव नाग सुवन्न किन्नरगण स्सन्भूअनावच्चिए।लोगो जत्थ पयहिश्रो
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रत्नसागर. जगमणं तेलोक्क मच्चासुरं । धम्मो वढनसासश्रो विजय धम्मो त्तरं वढ़ो।।४॥ सुअस्सनगवन करेमि कासग्गं ॥ ॐ ॥ (पद १६संपदा १६ गुरुत्र ३४ लघुत्र १८२ एवं २१६)॥ ॥ वंदगवत्ति आए पूअणवत्तिश्राए सकारवत्तिश्राए सम्माणवत्तिाए बोहिलानवत्तिप्राए निरुवसग्ग वत्तिप्राए सिद्धाए मेहाए धिईए धारणाए अणुप्पेहाए वदमाणीए गमिकामसग्गं॥ १॥ अन्न त्थकससिएणं नीससिएणं इत्यादि॥ ॥ __॥ सिघाणं बुघाणं पारगयाणं परंपरगयाणं । लोगग्ग मुवगयाणं । णमो सया सब सिद्धाणं ॥ १ ॥ जो देवाणविदेवो जंदेवा पंजली नमसंति। तं देव देवमहिअं। सिरसावंदे महावीरं ॥२॥ इक्वोवि णमुक्कारो। जिणवर वसहस्स वद्धमाएस्स । संसार सागराो । तारेइ नरंव नारिंवा ॥३॥ उर्जित सेल सिहरे। दिक्खा नाणं निसीहिश्रा जस्स । तं धम्म चक्कवहि । अरिट्टनेमि नमसामि ॥४॥ चत्तारि अट्ठ दस दोश्र वंदिया। जिणवरा चनबीसं । परमह निद्विअट्ठा । सिहा सिद्धिं ममदिसंतु॥५॥ॐ॥ वेयाबच्चगराणं । संतिगराणं । सम्मदिठि समाहिगराणं । करेमिकाउसग्गं ॥ १ ॥ अपत्थऊससिएणं इत्यादि (संपदा २० पद २० गुरु अक्षर ३१ लघु १६७ एवं १९८)॥ ॥ संसार दावानल दाह नीरं । समोहधूली हरणे समीरं। मायारसा दारण सार सीरं । नमामि वीरं गिरिसार धीरं ॥१॥ नावावनाम सुर दानव मानवेन । चूला विलोल कमलावलि मालितानि । संपूरिता निनत लोक समीहि तानि । कामं नमामि जिनराज पदानि तानि ॥२॥ बोधा गाधं सुपद पदवी नीर पूरानिरामं। जीवा
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____ मोहनगुणमाला, प्रथम नाग. हिंसाविरत लहरी संग मागाहदेहं । चूलावेलं गुरु गम मणी संकुलं दूरपारं । सारं वीरागम जलनिधिं सादरं साधुसेवे॥३॥ आमूला लोलधूली बहुल परिमला लीढ लोलालिमाला । ऊंकारा राव सारा मलदलकमला गारभूमी निवासे । गया संन्नारसारे वरकमलकरे तारहारानिरामे। वांणीसंदोहदेहे नवविरहवरं देहिमे देविसारं॥४॥इति वीरस्तुतिः॥
॥ वांदणां॥ ॥ॐ॥इनामिखमासमणो बंदिउंजावणिकाए निसीहिश्राए । अणुजाणह मेमिनग्गहं निसीही। अहो कायं काय । संफासं खमणिज्जो नेकिलामो। अप्पकिलंताणं बहसुन्नेणने दिवसोवइकंतो । जत्ताने जवणि जंचने । खामेमि खमासमणो देवसिघ्रं वइक्कम । श्रावसिाए पमिकमामि खमासमणाणं । देव सिाए प्रासायणाए तित्तीसन्नयराए जंकिंचिमिचाए । मणक्कडाए वयमुक्कडाए कायक्कडाए। कोहाए माणाए मायाए लोनाए। सबकालिश्राए सबमिडोवयाराए सबधम्माइक्कमणाए प्रासाय पाए । जोमेअईयारोको तस्सखमासमणो पडिक्वमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं बोसरामि ॥॥॥ अक्षर ॥ १९८॥
॥साध्वालोयणा॥ ॥॥इलाकारेण संदिसह लगवन् देवसिगं आलोएमि । इडंभालोएमि । जोमेदेवसिश्रो अईअारोको । काईश्रो वा ईश्रो माणसिश्रो नस्सुत्तो नम्मग्गो अक्कप्पो अकरणिज्जो उज्जाश्रो अधिचिंतिप्रो । अणायारो अणन्चियबो । असमपावग्गो । नाणेतहदंसणेचरित्ते । सुएसामाइए तिएहंगुत्तीणंचनएहंकसायाणं । पंचएहं महत्वयाणं । उएहं जीवनिकायाणं।
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१६
रत्नसागर.
सत्तरहृपिंमेसणाणं अठ्ठएहं पवयण माईणं । नवएहं बंनचेर गुत्तीणं दसविहेसमणधम्मे । समणाणं जोगाणं | जंखंमिश्रं जं विराहि । तस्समिच्छामि डुक्करं ॥ ॥
॥ श्रावकप्रालोयणा ॥
वं
॥ॐ॥ इहाकारेण संदिसह भगवन | देवसिय ालोएमि लोएमि । जोमे देवसि इयारोको । काईयो वाई माणसि । नस्सुत्तो उम्मग्गो कप्पो । करणिजो पुज्जा पुविचिंतित्रो । प्रणायारो चियो । सावगपावग्गो | नाणेतह दंसणे चरित्ता चरिते । सुए सामाइए तिएहंगुत्तीणं । चनएहँकसायाणं । पंचए मणुवयाणं । तिएहं गुणवयाणं । चनएहं सिक्खावयाणं । वारसविहस्स सावग धम्मस्स । जंखंमिश्रं जंविराहि । तस्स मिठामिडुक्कडं ॥ ॥
॥ ॥ ठाणेकमणे चंकमणे आन्त्ते । अणावत्ते हरिकाय संघट्टे बी काय संघट्टे थावरकायसंघट्टे बप्पइया संघट्टे । सबस्स वि देवसि । पुच्चिंतिय दुनासिय पुच्चिठि । इछाकारेण संदिसह । इवंतस्समिवामिक्कडं ॥ १ ॥ ॥ संथारानवदृणकी । की । परिट्टणकी । पसारणकी । बप्पइयासं घट्टकी । चक्खु विसयकायकी । सब्बस्सविराइ | चिं ति पुनासि पुच्चिद्वि । इहाकारेणसंदिसह । इछंतस्स मिठामिडुक्करं ॥ १ ॥ ॥ इहाकारेणसंदिसह जगवन् भूमि निंतर । देवसित्र्यंखामेनं । इवंखामेमि देवसि । जंकिंचि अपत्ति परपत्तियं । नत्ते पाणे विषए वेयाबच्चे | आलावे संलावे । बच्चासणे । समासणे अंतरासाए नवरिनासाए । जंकिंचि मज्जविणय परिहीणं सुडुमंवा वायरंवा ।
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प्रतिक्रमणसूत्र.
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तुनेजाणह श्रहंनजाणामि । तस्स मिवामिक्कमं ॥ ॥ ॥ इति गुरुवंदा ॥ ॥
॥ ॥ करेमि नंते सामाइयं । सावऊं जोगं पञ्चक्खामि । जावनियमं पज्जुवासामि । दुविहं तिविहेणं । मणेणं वायाए कारणं । न करेमि न कारवेमि । तस्स नंते । पडिक्कमामि । निंदामि गरहामि । अप्पाणं बोसिरामि ॥ ॥ करेमि जंते पोसहं । आहार पोसहं, देस । सवन वा । सरीरसक्कार पोसहं । सघन बंजचेर पोसहं । सवन वावार पोसहं । सबने चनविहे पोसहे । साव ऊं जोगं पञ्चक्खामि । जावदिवस अहोरत्तिं वा पशु वासामि । पुविहं तिविहेणं । मणेणं वायाए कारणं । न करेमि न कारवोमि । तस्स नंते । पक्किमामि निंदामि । गरहामि अप्पाणं बोसिरामि ॥ *॥ प्रायरियनवज्जाए सीसेसाहम्मिए कुलगणेवा। जेमे कयाकसाया। सबे तिविहेण खामेमि ॥१॥ सवस्स समण संघस्स । जंग
अंजलिं करिय सीसे। सब्बं खमावइत्ता । खमामि सबस्स हियंपि ॥ २ ॥ सबस्स जीव रासिस्स । जावन धम्मनिद्दियनिय चित्तो । सव्वं खमावइत्ता । खमामि सव्वस्त हियंपि ॥ ३ ॥ ॥ सुवर्णशालिनी देयाद् | हादसांगी जिनोद्भवा । श्रुतदेवी सदामह्य | मसेषश्रुतसंपदं ॥ १ ॥ चतुवर्णायसंघाय | देवी भवनबासिनी । निहत्य दुरितान्येषा । करोतुसुखमतं ॥ २ ॥ यासां क्षेत्रगतास्संति । साधवः श्रावकादयः । जिनाझां साधयंतस्ता । रक्षंतु क्षेत्र देवताः ॥ ३ ॥ ॥
॥ ॥ जय महायश २ जय महाभाग जय चिंतिय सुहफलय । जय समत्य परमत्थजालय । जय २ गुरु गरिम गुरु | जय हत्तसत्ताणताणयं । थंनणय प्रिय पासजिए ।
३.
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१८
रत्नसागर
जवियही मजवत्थु । जय वर्णिताणंतगुण । तुज्जतिसंक नमोत्थु ॥ १ ॥ ॥
॥ अथ सामायक पोसहपारवागाथा ॥
॥ * ॥ जयवं दसन्ननहो । सुदंसणो थूलभद्दवयरोय । सफलीकय गिहचाया। साहू एवंविहा हुंति ॥ १ ॥ साहूण वंदणं । नासइ पावं असंकियाजावा । फासूदाणे निज्जर । निग्गहो ना माईणं ॥ २ ॥ वनमत्थो मूढ मणो । कित्तियमित्तंपि संजरइजीवो । जंचन संनरामि श्रहं । मिठामेदुक्कडं तस्स ॥ ३ ॥ जंजंमणेण चिंतिय । मसुहं वायाइनासियं किंचि । सुहं कारणकयं । मिठामे दुक्करुं तस्स ॥ ४ ॥ सामाइय पोसह संठियस्स । जीवस्स जाइ जो कालो । सोसफलो बोधो । सेसो संसारफलहेऊ ॥ ५ ॥ ॥ सामायकविधै लोधी विधै कीधी विधिकरतां अवधि सातना लागी होय दसमनका दस वचनका बारे कायाका । बत्तीस दूषणां मांह जो कोई दूषण लागो हो सो सहू मनकर वचनकर कायायें करी मिठामिडुक्कडं ॥ ॥ इति सामायिक पोसहपारवागाथा ॥ * ॥
॥ ॥ सिरिथंजणयठियपाससामिणो । सेसतित्थसामीणं । तित्थसमुन्नयकारणं । सुरासुराणंच सचेसिं ॥ १ ॥ एसमहं सरणत्थं । कावसग्गं करेमि । सत्तीए नत्तीए गुणसुठियस्स । संघस्स समुन्नयनिमित्तं ॥ २ ॥ ॐ ॥ नमोस्तु वर्द्धमानाय । स्पर्द्धमानाय कर्म्मणा । तया व्याप्त मोक्षाय । परीक्षा कुतीर्थिनां ॥ १ ॥ येषां विकचारविंदराज्या । ज्यायः क्रमकमलावलिं दधत्या । सदृशै रिति संगतं प्रशस्यं ।
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प्रतिक्रमणसूत्र. कथितं संतु शिवायते जिनेन्द्राः ॥ २ ॥ कषायतापादित जंतुनितिं । करोति यो जैनमुखांबुदोदतः । सशुक्रमासोद्भव दृष्टिसन्निनो । ददातु तुष्टिं मयि बिस्तरो गिरां ॥ ३ ॥ श्वसितसुरनिगंधा लीढभंगीकुरङ्गं । मुखशशिनमजस्रविभ्रती याविनति । विकचकमलमुच्चैः सास्त्वचिंत्यप्रनावा । सकल सुखविधात्री। प्राणनाजां श्रुताङ्गी ॥४॥ इति वीरस्तुतीः॥
॥2॥ परसमयतिमिरतरणिं । नवसागरवारितरणवरतराणिं । रागपरागसमीरं । वंदे देवं महावीरं ॥ १ ॥ निरुद्ध संसारविहारकारी । दुरन्तनावारिगणानिकामं । निरन्तरं केवलि सत्तमावो । नवावहं मोहनरं हरंतु ॥ २ ॥ संदेहकारि कुनयागम रूढगूढ । संमोहपंकहरणामलवारिपूरं । संसारसागरसमुत्तरणोरुनावं । वीरागमं परमसिद्धिकरं नमामि ॥३॥ परिमलानरलोना लीढलोलालिमाला । वरकमलनिवासे हारनीहारहासे । अविरलनवकारा गारविबित्तिकारं । कुरुकमलकरमे मङ्गलं देविसारं॥४॥ ॥ इति वीरस्तुतिः॥ ॥
॥ ॥ कमलदलविपुलनयना । कमलमुखी कमलगर्न समगौरी । कमलेस्थिता जगवती । ददातु श्रुतदेवतासौख्यं ॥१॥ज्ञानादिगुणयुतानां । स्वाध्यायध्यान संयमरतानां । विदधातुभुवनदेवी। शिवंसदासर्व साधूनां ॥ २ ॥ यस्याःोत्रं समाश्रित्य । साधुनिःसाध्यतक्रिया । साकेत्रदेवतानित्यं । भूयान्नःसुखदायिनी॥३॥ॐ ॥ इति स्तुति॥४॥
॥ ॥ श्रीसेढीतटनीतटे पुरवरे श्रीस्थंननेस्वर्गिरौ । श्रीपूज्यानयदेवसूरिविवुधा धीशैःसमारोपितः। संसक्तःस्तुति निर्जलैः शिवफल स्फूर्यतफणापल्लवः । पार्श्वःकल्पतरुःसमे
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रत्नसागर.
प्रथयतां नित्यंमनोवांगितं ॥ १ ॥ आधिव्याधिहरोदेवो । जीरावल्लिसिरोमणिः पार्श्वनाथोजगन्नाथो । नतुनाथोनृणांश्रिये ॥२॥ इति पार्श्वस्तुतिः ॥ ॥
॥ कल्याणकमलागेहं । नीलदेहंमहासहं । नवखंमाविधंपार्श्व । सदाध्यायामिमानसं ॥१॥ इति ॥ ॥ चन कसाय पमिमल्ल टूरण । दूजयमयणमाण मसमूरण । सरसपियंगु बन्नगयगामिय । जयनपास भुवणत्तय सामिय ॥ १ ॥जसतणुकंतिकमप्पसिणिद्धन सोहइफणमणिकिरणालिछन । नंनवजलहरतडिलयलंगिय । सोजिणपासपयनवंग्यि ॥१॥॥ ____इति श्रीपार्श्वनाथस्तुतिः ।।।
॥ ॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं । सर्वकल्याणकारणं । प्रधान सर्वधर्माणां । जैनं जयतु शासनं ॥ १ ॥ मङ्गलं नगवान् वीरो । मङ्गलं गौतमःप्रभुः । मङ्गलं स्थूलनद्राद्या । जैनोधर्मोंस्तु मङ्गलं ॥२॥ ॥शिवमस्तु सर्व जगतः । परिहितनिरता नवंतु भूतगणाः । दोषाः प्रयांन्तु नाशं । सर्वत्र सुखी नवतु लोकः ॥ ३ ॥ दासानुदासा इव सर्वदेवा । यदीय पादाब्जतले लुठन्ति । मरुस्थली कल्पतरुः सजीयात् । युगप्रधानो जिनदत्त सूरिः ॥४॥ ॥ सिद्धांतसिंधुर्जगदेकबंधु । युगप्रधानः प्रभुतां दधानां । कल्याणकोटी प्रकटीकरोतु । सूरीश्वरो श्रीजिननद्रसूरिः॥५॥१॥
॥अथ साधुप्रतिक्रमण सूत्र॥ । ॥ ॥ चत्तारि मङ्गलं । अरिहंता मङ्गलं । सिद्धा मङ्गलं । साहमङ्गलं । केवलिपणत्तो धम्मो मङ्गलं ॥१॥ चत्तारि लोगुत्तमा। अरिहंता लोगुत्तमा । सिद्धा लोगुत्तमा । साहू लो
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____ चत्तारि मंगलसूत्र.
२१ गुत्तमा। केवलिपन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो ॥ २॥ चत्तारिसरणं पवज्जामि । अरिहंते सरणं पवज्जामि । सिद्धे सरणं पवजामि। साहसरणं पवज्जामि । केवलि पन्नत्तं धम्म सरणं पवजामि ॥ ३ ॥ इहामि पमिक्वमि ॥ पगामसिज्जाए। निगामसिज्जाए । संथारा नवट्टणाए । परियट्टणाए । प्रापट्टणाए । पसारणाए । उप्पइया संघट्टणाए । कुइए ककराइए । गएजनाइए। आमोसे ससरक्खामासे प्रातलमानलाए । सोअणवत्तिश्राए। इत्थी विप्परियासिअाए । दिछी विप्परियासिअाए । मण विप्परियासिअाए । पाण नोयण विप्परियासिअाए । जोमे देवसियो अइअारोकन । तस्समिठामि उक्कम ॥ पडिकमामिगोअरचरित्राए । निख्खायरिश्राए । नग्घाडकवाड नग्घाडणाए । साणावडादारा संघट्टणाए । मंमीपाहुडिअाए बलिपाहुडिअाए । उवणापाहुडिपाए । संकिए सहस्सागारे ।
आणेसणाए । पाणेसणाए। प्राणनोयणाए । पाणनोयणाए। वीअनोयणाए । हरिअनोयणाए पडाकम्मिश्राए । पुराकम्मिश्राए। अदिव्हडाए । दगसंसव्हडाए। रयसंसहडाए । पारिसामणिश्राए पारिछावणिपाए व्हा सणनिक्खाए । जंलग्ग मेणं सप्पायणेसणाए अपरिसुद्धं पमिग्गहिअं । परिभुत्तंवा जनपरिध्वणिभं । तस्समिठामिदुक्कडं ॥ ॥ पडिकमामि चानक्कालं । सिज्जायस्स अकरणयाए उन कालं नंमोवगरणस्त । अप्पडिलेहणाए । दुप्पडिलेहणाए अप्पमऊगाए दुप्पमङपाए। अइक्कमे । वइकमे अइयारे अणायारे । जोमेदेवसि अइशारोकन। तस्समिहामि दुक्कडं ॥ ॥ पडिकमामि एगविहेअसंजमे। पडिकमामि दोहिवंधणेहिं। रागबं
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रत्नसागर. धणेणं दोसबंधणेणं । पडिकमामि तिहिंदंमेहिं । मणदमेणं वयदंमेणं कायदंमेणं । पडिकमामि तिहिंगुत्तीहिं । मणगुत्तीए वयगुत्तीए कायगुत्तीए । पडिकमामितिहिंसल्लेहिं । मायासल्लेणं नीयाणासल्लेणं । मिहादसणसल्लेणं । पडिकमामि तिहिंगारवहिं । इट्ठीगारवेणं रसगारवेणं सायागारवेणं । पडिकमामि तिहिं विराहणाहिं । नाणविराहणाए दंसणविराहणाए चारित्तविराहणाए। पडिकमामि चनहिंकसाएहिं । कोहकसाएणं माणकसाएणं मायाकसाएणं लोहकसाएणं । पडिकमामि चहिंसलाहिं । आहारसमाए नयसलाए मेहुणसमाए परिग्गहसमाए । पडिकमामि चनहिंविगहाहिं । इथिकहाए नत्तकहाए देसकहाए रायकहाए । पडिकमामि चनहिंमारोहिं। अटेणंमाणेणं रुदेणंमाणेणं धम्मेणंजाणेणं सुक्केणंमागणं । पडिकमामि पंचहि किरिबाहिं । काइयाए । अहिगरणियाए पावसिाए पारितावणीपाए पाणाइवायकिरित्राए । पडिकमामि पंचहिं कामगुणेहिं । सद्देणं रूवेणं रसेणं गंधेणं फासेणं । पडिकमामि पंचहिं महवएहिं । पाणाइ वायानवेरमणं मुसावायानवेरमणं अदिनादाणावेरमणं मेहुपानवेरमणं परिग्गहानवेरमणं । पडिकमामि पंचहिंसमईएहिं। इरित्रासमिईए नासासमिईए एसणासमिईए आयाणनं ममत्तनिक्खेवणासमिईए नवारपासवण खेलजल्लसंघाण पारिका वणिासमिईए । पडिकमामि बहिं जीवनिकाएहिं । पुढविकाएणं आनकाएणं तेवकाएणं वानकाएणं वणस्सइकाएणं तसकाएणं । पडिकमामिगहिलेसाहिं । किन्हलेसाए नीललेसाए काउ लेसाए तेउलेसाए पनमलेसाए सुक्कलेसाए । पडिकमामिसत्तहिं
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चत्तारि मंगलसूत्रनयाहिं । अहिं मयघाणेहिं । नवहिं वनचेरगुत्तीहिं । दसविहेसमणधम्मे । एगारसहिं नवासगपमिमाहिं । बारसहिं निक्खुपमिमाहिं । तेरसहिंकिरिश्राहाणेहिं । चसहसहिं भूयगामेहिं। पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं । सोलसएहिंगाहाहिं सतरसविहे असंजमे । अहारसविहे अबंने । इगुणवीसाएनायज्जयणेहिं । वीसाए असमाहिहाणेहिं । इकवीसाएसबलेहिं । वावीसाएपरीसहेहिं । तेवीसाएसुअगमज्जयणेहिं । चनवीसाएअरिहंतेहिं । पचवीसाएनावणाहिं । डब्बीसाएदसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेणं । सत्तावीसाएअणगारगुणेहिं । अहावीसाए अायारपकप्पेहिं । एगुणतीसाए पावसुअप्पसं गेहिं । तीसाएमोहणिअहाणेहिं । इगतीसाएसिद्धाइगुणेहिं । बत्तीसाएजोगसंगहहिं । तित्तीसाएासायणाए । अरिहंताएघासायणाए । सिद्धाणंभासायणाए । आयरित्राणंभासायणाए । उवज्जायाणासा० । साहुणंभासा० । साहुणीणंभासा० । सावयाणंत्रा० । सावियाणंत्रा० । देवाएंप्रासा० । देवीणंत्रा० । इहलोगस्सा० । परलोगस्सासायणाए । केवलिपन्नत्तस्सधम्मस्सश्रा०।सदेवमणुप्रासुरस्सलोगस्सा । सब पाण भूअ जीव सत्ताणं अासायणाए। कालस्सा० । सुप्रस्सासा० । सुयदेवयाएमासा० । वायणारिश्रस्सा० । जंवाइद्धं । वच्चामेलिश्रृं। हीणक्खरिश्र। अचक्खरिश्र।पयहीणं । विणयहीणं । जोगहीणं । घोसहीणं । सुदिन्नं । दुट्ठपमिन्द्रियं । अकाले कन सज्जा । कालेनकन सज्जा । असज्जाइए। सज्जाइमं । सज्जाइए नसज्जाइयं । तस्समिहामिदुक्कडं ॥ णमोचनवीसाए तित्थयराणं । उसनाइ महावीरपजवसाणाणं ।
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२४
रत्नसागर.
इणमेव निग्गंथं पावयांसच्चं । ऋणुत्तरं । केवलियं परिपुन्नं । नेप्राव्यं । संसुद्धं । सल्लगत्तणं । सिद्धिमग्गं । मुत्तिमग्गं । निजाणमग्गं । निवाणमग्गं । प्रवितहमविसंधि । सबडुक्खपही
मग्गं । इत्थठिप्राजीवा । सिज्छंति। बुज्छंति मुच्चति । परि निवायंति | सबक्खाणमंतंकरति । तंधम्मं सद्दहामि । पत्तिआमि । रोमि । फासेमि । पालेमि । प्रणुपालेमि । तंधम्मंसद्दहंतो । पत्तितो । रोतो । फासंतो । पालिंतो अणुपालितो । तस्स धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स । अम्भुनिमि । श्राराहणाए । विरनमि विराहणाए । संजमं परित्राणामि । संजमं नवसंपामि । वनं परिप्राणामि । बंनं नवसंपामि । कप्पं परिप्राणामि । कप्पं नवसंपामि । अन्नाणं परित्राणामि । नाणं नवसंपामि । किरि परिप्राणामि । किरित्र्यं नवसंपामि । मित्तं परिमाणामि । सम्मत्तं नवसंपामि ।
बोहिं परिप्राणामि । बोहिं नवसंपामि । मग्गं परिप्राणामि । मग्गं नवसंपामि । जंसंनरामि । जंचन संजरामि । जं पक्किमामि । जंचन पक्किमामि । तस्ससबस्स । देवसिस्स । इारस्स पक्किमामि । समपोहं संजय विरय पहिय पच्चक्खाय । पावकम्मो । नियाणो । दिठि संपन्नो । मायामोसविबनि । अढाइज्जेसु दीव समुद्देसु । पन्नरस कम्मभूमीसु । जावंति केविसाहू । रयहरण गुढपरिग्गहधारा । पंचमहवयधारा । अठारसहस्स सीलांगधारा । क्खयायारचरिता । तेसब्बे । सिरसा मासा । मत्थ एणवंदामि ॥ खामेमि सब जीवे । सब्बे जीवा खमंतुमे । मित्तीमे सभूसु । वेरंमज्ज न केाई ॥ १ ॥ एवमहं प्रालोइ नंदि ।
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वंदित्तू सूत्रगरहिअ गुनिअं सम्मं । तिविहेण पमिकंतो। वंदामि जिणे चनबीसं ॥२॥ ॥ इति श्रीसाधुप्रतिक्रमणसूत्रं समाप्तं ॥ १ ॥
॥ सञ्चित्त १ । दब २। विगई ३॥ वाहण ४। तंबोल ५। बत्थ६। कुसुमेसु ७ ॥ पाणहि ८। सयण ९। विले वण १०॥ बंन ११। दिसि १२। एहाण १३। नत्तेसु १४॥ इति चन्द नियम गाथा ॥ ॥ .. ॥॥अथ वंदित्तू सुत्र ॥ ॥
॥ ॥ वंदित्तु सबसिद्धे । धम्मायरिए सबसाहूश्र। इबामि पमिक्कमित्रं । सावगधम्माइप्रारस्स ॥१॥जोमे वया इशारो। नाणे तह दंसणे चरित्तेश्र। सुहमोग्र बायरोवा । तंनिंदे तंच गरिहामि ॥२॥ विहे परिग्गहम्मी। सावजे बहुविहेअप्रारंने। कारावणे अकरणे । पमिकमे देसिअंसवं ॥३॥ जंबद्ध मिंदिएहिं । चनहिं कसाएहि अप्पसत्थेहिं । रागेणव दोसेणवतं निंदे तंच गरिहामि ॥४॥आगमणे निग्गमणे गणेचंकमणे अणानोगे। अनिन्गे अनिन्गे । पमिक्कमे ॥५॥ संकाकंखविगंग । पसंसतहसंथवो कुलिंगीसु । सम्मत्तस्सइ पारे। पमिक० ॥६॥ काय समारंने॥पयणेश पयावणे जेदोसा । अत्तछाय परछा । उन्नयघाचेव तंनिंदे ॥ ७ ॥ पंचएहमणबयाणं । गुणबयाणंचतिएहमइआरे । सिक्खाणंच चनएहं ॥ पमिकमे० ॥८॥ पढमे अणुवयम्मी । थूलगपापाइवायविरई । आयरिश्र मप्पसत्थे । इत्थपमायप्पसंगणं ॥९॥ बहबंधनविजेए । अइनारेनत्तपाणवुलेए । पढम वयस्स इआरे । पमिक्कमे० ॥१०॥ बीए अणुवयम्मी । परिथूलग अलिअवयण विरइभो । आयरिश मप्पसत्थे । इत्थपमाय
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रत्नसागर.
प्पसंगणं ॥ ११ ॥ सहस्सारहस्सदारे । मोसुवएसे कूमलेहेश्र॥ बीअवयस्सइशारे । पमिकमे० ॥ १२ ॥ तइएअणुवय म्मी। थूलगपरदब्बहरणविरइन । आयरिश्रमप्पसत्थे । इत्थ पमायप्पसंगणं ॥ १३॥ तेनाहरप्पनगे। तप्पमिरूवे बिरुद्ध गमणे । कूमतुल्लकूममाणे । पमि० ॥१४॥ चनत्थेअणुवय म्मी । निचं परदारगमण विरइन । आयरिश्रमप्पसत्थे । इत्थपमा० ॥१५॥ अपरिग्गहीया इत्तर । अणंग वीवाह तिबअणुरागे । चनत्थवयस्सइआरे । पमिक० ॥ १६ ॥ इत्तोत्रणुब्बए पंचमम्मी । आयरिश्रमप्पसत्थंमि । परिमाणपरिजेए। इत्थ० ॥१७॥ धणधन्नखित्तवत्थु रुप्पसुवणे कुवित्र पर माणे । दुप्पएचनप्पयम्मी पमि० ॥१८॥ गमणस्सय परिमाणे । दिसासुनटुं अहेयतिरिअंच । वुट्विस्सइ अंतरडा । पढमम्मिगुणब्बएनिंदे ॥१९॥ मांमिश्र मंसंमिश्र । पुप्फेअफलेन गंधमल्लेश्र। नवनोग परीनोगे । बीअम्मिगुणवए निंदे॥२०॥ सच्चित्ते पमिवुद्धे । अप्पोलाप्पोलिए श्राहारे। तुहोसहिनक्खणया । पमि० ॥ २१ ॥ इंगाली वणसामी । नामी फोमीसु वजाए कम्मं । वाणिज्जं चेव दंत लक्ख । रस केस विसविसयं ॥ २२ ॥ एवं खुङतपिल्लणंकम्मं । निल्लंगपांच दवदाणं । सरदह तलावसोसं । असईपोसंच वजिका ॥ २३ ॥ सत्थग्गिमूसल जंतग । तणकटेमंतमूलनेसिके । दिदिवावएवा । पमि० ॥२४॥ एहाणुवट्टण वनगविलेवणे सदरूवरसगंधे । वत्थासणानरणे । पमि० ॥२५॥ कंदप्पे कुक्काए । मोहरि अहिगरण नोगप्रइरित्ते । दंमंमिश्रणहाए तईअम्मिगुणवएनिंदे ॥२६॥ तिविहेछप्पणिहाणे । अणवहा
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वंदित्तू सूत्र. तहासइ विहुणे । सामाइय वितहकए । पढमे सिक्खा वएनिंदे॥२७ ॥प्राणवणे पेसवणे। सद्देरूवेश पुग्गलक्खेवे। देसाविगासिअम्मी । वीएसिक्खावएनिंदे ॥२८॥ संथारुच्चारविही । पमायतह चेव नोयणान्नोए पोसहविहिविवरीए । तइ एसिक्खावएनिंदे ॥ १९ ॥ सच्चित्तेनिक्खमणे ॥ पिहणेववएसमहरेचेव । कालायक्कमदाणे । चनत्थेसिक्खावएनिंदे ॥३०॥ सुहिएसुश्र दुहिएसुश्र । जोमे असंजएसुअणुकंपा । रागेणवदोसेणव । तंनिंदेतंचगरिहामि ॥ ३१ ॥ साहसुसंविनागो । नक
तव चरण करण गुत्तासु। संतेफासुभदाणे।तंनिंदे तंचगरिहामि॥३२ ॥ इहलोएपरलोए । जीविअमरणे अाससपनगे। पंचविहो अइशारो । मामशं हुऊमरणंते ॥ ३३ ॥ कारण काइअस्स । पमिकमे वाइअस्सवायाए । मणसा माणसिअस्स। सबस्सवयाइयारस्स ॥ ३४ ॥ वंदणबयसिक्खागारवेसु । सला कसाय दंमेसु । गुत्तीसुअ समिईसुत्र । जोअइअारो तंनिंदे ॥ ॥३५॥ सम्मदिछीजीवो । जइविहुपावं समायरेकिंचि । अप्पो सिहोइवंधो। जेणननिबंधसंकुणइ ॥३६ ॥ तंपिहुसपमिकमणं । सप्परिणावंस उत्तरगुणंच । खिप्पं नवसामेई । वाहिव सुसि क्खिन विजो ॥३७॥ जहाविसं कुछगयं । मंतमूल विसारया। विजाहणंत मंतेहिं । तोतं हवइ निविसं ॥३८॥ एवं अविहं कम्मं । राग दोस समाजअं। आलोअंतोष निंदंतो। खिप्पं हणइसुसावळ ॥ ३९ ॥ कयपावोविमणुस्सो। बालोइअनिंदिन गुरुसगासे । होइअइरेगलहुन । हरिअनरुवन्नारवहो ॥ ४० ॥ श्रावस्सएण एएण । सावन जइवि बहुर होइ । मुक्खाणमंत किरिअं। काही अचिरेणकालेण ॥ ४१ ॥ आलोअणाबहुविहा
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२८
रत्नसागर
हे
४४ ॥
नयसंगरिया परिक्कमणकाले । मूलगुण उत्तरगुणे । तंनिंदेतंच गरिहामि ॥ ४२ ॥ तस्सधम्मस्स केवलिपात्तस्स । ननि मित्राराहणाए । विरनमिविराहणाए । तिविहेपमिक्कतो । वंदा मिचिनीसं ॥ ४३ ॥ जावतिचेाई । तिरिअलोए । सवाईताईंवंदे । इहसंतोतत्थसंताई ॥ ( भगवन्) जावंति केविसाहू | नरहेरवर महाविदेहे । सबै सितेसिपणन । तिविहेति विरित्राणं ॥ ४५ ॥ चिरसंचि य पाव पणासणीए । जव सय सहस्स महणीए | चनवीसजिए विणिग्गयकहा । बनतंतुमेदी हा ॥ ४६ ॥ मममंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुचधम्मो । सम्मद्दिकीदेवा । दिंतुसमाहिंचबो हिंच ॥ ४७ परिसिद्धाणं करणे । किञ्चाण मकरणेहिं परि कमणं । सहप्रतहा । विवरी परूवणाए ॥ ४८ ॥ खा मेमिसवजीवे । सबेजीवाखमंतुमे । मित्तीमेसवभूएसु । वैरंमज्ज नकेाइ ॥ ४९॥ एवमहं प्रालोइनिंदि । गरहिदुगुंबियंस मं । तिविहेपमिक्कंतो । वंदामिजिणेच नवीसं ॥ ५ ॥ ॥ इति श्री श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र समाप्तः ॥ * ॥ ॥* ॥ अथ दशपञ्चक्खाणविचार लिख्यते ॥ ॥ ॥ * ॥ तहां प्रथम चनदै नियमसंचारै सो विगय देसावगा सीयुक्त सतरे पच्चक्खा करै ॥ * ॥ नग्गरसूरे नमोक्कार सहिय ( मुंसी) पच्चक्खाइ चविहंपि आहारं । असणं । पाणं । खाइ मं। साइमं । अस्मत्थणानोगेणं । सहस्सागारेणं । महत्तरागारे णं । सवसमाहिवत्तियागारेणं । विगइनपञ्चक्खाइ । मत्था जोगेणं । सहस्सागारेणं । लेवालेवेणं । गिहत्थसंसिद्वेणं । नक्खि त्तबिवेगेणं । पडुच्चमक्खिणं । पारिठावणियागारेणं । महत्तरा -
॥
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दश पञ्चक्खाणगारेणं। सबसमाहिवत्तियागारेणं ॥ देसावगासियं नोगपरिनोगं पञ्चक्खाइ । अमत्थणानोगेणं । सहस्सागारेणं । महत्तरागारेणं। सबसमाहिवत्तियागारेणं। बोसरइ॥ इति नवकारसीपञ्च क्खाणं विगय देशावगासीयुक्तं ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ तथा जो श्रावक नियम संनारै नही। सो विगइका (अर) देसावगासीका आगार नपचखै । निकेवल । नवकारसी आदिक पञ्चक्खाण करै ॥ यथा ॥ ॥ॐ ॥ ॥ॐ॥
॥ॐ॥ नग्गएसूरे नमोकार सहियं पञ्चक्खाइ । चविहंपि आहारं। असणं । पाणं। खाइमं । साइमं। अप० । सह। बोसरह । इति नवकारसी पञ्चक्खाण ॥श्रागार ॥२॥ ॥श्री॥
॥ॐ ॥पोरसिं (मूंगसिं) पच्चक्खाइ ।नग्गए सूरे चनवि हंपि आहारं । असणं। पाणं। खाइमं । साइमं । अमत्थः । सहस्सा०। पहलकालेणं। दिसामोहेणं । साहुवयणेणं। सब। वोसरइ ॥ विगइन पञ्चक्खाइ । इत्यादि पुर्बकीपरैकहणा ॥ इति पोरसी पञ्चक्खाण ॥२॥आगार ॥६॥ ॥2॥
* ॥ इसीमाफक साढपोरसीका पञ्चक्खाण जाणना। इतना बिशेष है । पोरसिं पञ्चक्खाइ (इहां) साढपोरसिंपञ्चक्खाइ कहणो॥ इति साढपोरसीपञ्चक्खाण आगार ॥ ६ ॥ॐ॥ सूरे उग्गए। पुरम8 अवढे (वा) पच्चक्खाइ। चविहंपि आहारं। असणं । पाणं । खाइमं। साइमं । अम० ।सह०। पत्र। दिसा । साह । मह । सब्ब०। विगइन पञ्चक्खाइ । इत्यादि पूर्बवत् । इति पुरमठ्ठपञ्चक्खाण ॥३ आगार ७॥॥॥श्री ॥
॥ॐ॥ पोरसिं साढपोरसिं (वा) पञ्चक्खाइ। नग्गएसरे । चनविहपि आहारं । असणं। पाणं । खाइमं । साइमं । अम।
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रत्नसागर. सह० । पढ० । दिसा । साहु० । सब० । एकासणं ब्यासणं (वा) पञ्चक्खाइ। विहं। तिविहपि अाहारं । असणं । खाइमं । साइमं । अम० । सह । सागारि आगारेणं। प्राचट्टणपसारेणं। गुरुअनुहाणेणं । पारि० । मह० । सब० । बो० देसावगासियं । इत्यादिपूर्बवत् ॥४॥इति एकासण व्यासण पञ्चक्खाण ॥ आगार ॥८॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥ ॥॥
॥ॐ ॥ पोरसिं साढपोरसिं (वा) पञ्चक्खाइ। नग्गएसूरे चल विहंपि आहारं । असणं । पाणं । खाइमं । साइमं ।अम । सह० । पत्र० । दिसा० । साहु । सब० । एकासणं एगहाणं पच्चक्खाइ । विहं ।तिविहं। चठविहंपि आहारं । असणं । खाइमं । साइमं । अन्न। सह । सागारि आगारेणं। गुरु नुहाणेणं । पारि० । मह० । सब० । वोस। देसाव० । इत्यादि पूर्बवत् ॥५॥इति एकहाणा पञ्चक्खाण । आगार ॥ ७॥॥
॥ * ॥ पोरसिं साढपोरसिं (वा) पञ्चक्खाइ। नग्गएसूरे चल विहंपि आहारं । असणं । पाणं। खाइमं । साइमं । अम । सह० । पह० । दिसामो०। साहु । सबआयंबिलं पच्चक्खाइ। अपत्थ० । सह। लेवालेवेणं । गिहत्थसंसिणं । मक्खित्तवि वेगेणं । पडुच्चमक्खियेणं पारिता० ।मह । सब० । एकासणं पञ्चक्खाइ।तिविहंपि आहारं । असणं । खाइमं । साइमं । अम० । सह । सागारिश्रागारेणं । आनट्टणपसारेणं । गुरुअनु हाणेणं । पारिजा० । मह० । सब० । वोसरइ॥६॥ * ॥ इति आंबिल पच्चक्खाण । आगार ॥८॥
॥॥पोरासिं साढपोरसिं (वा) पञ्चक्खाइ नग्गएसूरे। च नविहपि आहारं। असणं। पाणं ।खाइमं । साइमं । अप
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दश पञ्चक्खाण. स्थ । सह० । पढ०। दिसा० । साहु० । सब० ॥ निविगइयं पञ्चक्खाइ । अन्न । सह० । लेवालेवेणं । गिहत्थसंसिणं । क्खित्तविबेगेणं । पच्चमक्खिएणं । पारि० । मह० । सब० ॥ एकासणं पञ्चक्खाइ । तिविहंपि अाहारं । असणं । खाइमं । साइमं । अन्न । सह । सागा० । श्रावट्ट । गुरु० । पा०। मह०। सब० । वोसरइ ॥ देसावगासियं इत्यादि पूर्ववत् ॥
इति निवीपच्चक्खाण ॥ ॥ ॥॥॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ सूरे नग्गए अनत्त पञ्चख्खाइ चनविहंपि आहारं। असणं। पाणं । खाइमं । साइमं । अगा । सह० । मह० । सब० । वोसरइ॥ देसावगासियं इत्यादि पूर्ववत् ॥ .. इति चनविहार उपवास पच्चक्खाण ८॥॥
॥ ॥ सूरे नग्गए अप्नत्तहं पञ्चक्खाइ।तिविहंपि आहारं। असणं । खाइमं । साइमं । अम० । सह० । पाणहार पोरसिं । साढपोरसि । पुरमहूँ । अवढ्वा । पच्चक्खाइ। अम० । सह०। पडम । दिसा । साहु० । सब० । वोसरइ । देसावगासियं इत्या दि पूर्ववत् ॥ * ॥इति तिविहार उपवास पञ्चक्खाण॥ ॥॥ __॥॥पोरसिं साढपोरसिं पुरमढं अवटुं वा पञ्चक्खाइ। नग्ग एसरे चनविहंपि आहारं । असणं। पाणं । खाइमं । साइमं । एम० । सह। पढ० । दिसा० । साहु०। सब० । एकासणं एगहाणं दत्तियं पञ्चक्खाइ तिविहं चनविहंपि अाहारं । असणं । पाणं । खाइमं । साइमं । अम० । सह । सागा० । गुरु० । मह० । सब्ब० । वोसरइ । विगइन ॥ देसावगासियं इत्यादि पूर्ववत् ॥ इति दत्तिपञ्चक्खाण ॥९॥ ॥॥ ॥#॥ ॥ॐ॥
॥ दिवसचरमं पञ्चक्खाइ चनविहपि आहारं । अस
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ફ્ર
रत्नसागर.
णं । पाएँ । खाइमं । साइमं । म० । सह० मह० । सब्ब० । वोसरइ ॥ इति दिवसचरमपच्चक्खाण १० ॥ * ॥
॥ * ॥ दिवसचरमं पच्चक्खाइ दुविहंपि आहारं । असणं । खाइमं । म० । सह ० । मह० । सङ्घ० । वोसरइ ॥ इति दिवसचरमविहार पञ्चक्खाणं ॥ ॥
1111
॥ ॐ ॥ पाणहारदिवसचरमं पच्चक्खाइ प्र० । सह० । मह॰ । सब० । वोसरइ ॥ * ॥ इति पाणहार पच्चक्खाण ० ॥ * ॥
॥ ॥ नवचरमं पच्चक्खाइ । तिविहं चनविहंपि श्राहारं । असणं । पाणं । खाइमं । साइमं । म० । सह० । मह० । सवं । वोसरइ ॥ श्रागार ॥ ४ ॥ ( जवचरम दोप्रागार का पिण होय ) ॥ इति नवचरमपच्चक्खाण ॥ ॥ ॥ ॥
॥
॥ तथा गंग्सहि । मुंग्सहि । गुडसहि । प्रमुख निग्रह पच्चक्खाणके पिए यह च्यार आगार । म० । सह० । ० । सब्ब० । वोसरइ । पांचमो चोलपट्टागारेणं सो साधुके होय ॥ * ॥ इति निग्रह पच्चक्खाण ॥ ॥ 11 11
मह०
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ प्रहणं नंते । तुम्माणं समीवे । देसावगासियं पच्च क्खामि । द । खित्तन । कालन | जावने । दब्वनृणं देसा वगासियं । खित्तनणं इत्थवा प्रणत्थवा । कालनां महुत्तधा रणापमाणे । जावनियमं पच्चक्खामि । नावचणं जावगहेणं नगहिामि । बलेणं नबलिकामि । श्रमेणकेविराय केलवा । एसो परिणामो नपमिवइ । ताच्प्रनिग्गह । प्रपत्थणानो गेणं सहस्सागारेणं । महत्तरागारेणं । सबसमाहिवत्तियागारे ए । वोसराइ ॥ इति देसावगासीपच्चक्खाण ॥ ॥
॥ ॐ ॥ तथा साधु पच्चखाणकरे। तबदेसावगासी नहिं
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दश पञ्चक्खाण आगारार्थः
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पचखै । प्ररुतिबिहार उपवास में । बिलमें निवीमें एकास प्रमुख पाणस्सका ६ प्रागारपच्चखै ( सो दिखावे है) पाणस्स || लेवाडेावा । लेवाडेणवा प्रत्थेावा वहनेणवा ससित्थेणवा सित्थेावा बोसरइ ॥ 11 11 || ❀ ||
॥ * ॥
॥ अथ प्रत्याख्यान आगारार्थ लिख्यते || ॥ उग्गए सूरे नमोकार सहियं पञ्चक्खाइ चविपि हारं । (अर्थ) sai गुरु है पच्चक्खा शिष्य कहै पञ्चक्खामि ॥ पञ्चखाइका अर्थ सर्वठिकाणें अंगीकार वाचक । जाणनो (जैसें) सूरज उदय हुवांवाद | नवका रसी बत अंगीकार करूँ। यह पञ्चक्खाण (महूर्त्त ) दोघडी काल उपरांत । जहां तक नवकार गुणकर पाऊँ नहिं । तहां तक (चनवि० ) चारुं प्रहारनो त्यागरूप बत अंगीकार करूं ॥ ( चार प्रकारको आहार लिखते हैं ) । असणं ॥ पाणं ॥ खाइ ॥ साइमं । ( असणं व्याख्या) असणं कहतां अन्न । चोषा ज्वारि वरटी मूंग चिणा गहुं प्रमुख सर्वधान । सत्तु गहुँको आदिले सर्व तरैको माटो ॥ सर्व तरेका साग । जाडू प्रमुख सर्वपकवान | सूरणादिक सर्वकंद । दूध दही मांसादिक । सर्वकaat वस्तु | हींग विरहाली । लूण सैंधवादिक । इत्यादिक सर्व प्रशणमांहि जाणना ॥ १ ( पाएँ । व्याख्या) बण जवोदक षोदक तंडुलोदक उष्णोदक शुद्धोदक सर्वतरेकाजल पाण आगारमें जाना ॥ २ ॥ (खाइमं । व्याख्या ) खादिम । संखमी नातेर खजूर द्राख सेक्योधांन प्रांबा केला काकमी अखरोट खारक बिदाम प्रमुख सर्व जातनोमेवो । सर्व जातनाफल ॥ खादमजाना ॥ ३ ॥ ( साइमं । व्याख्या ) स्वादिम। तंबोल सूंठ मिरच पीपर हर बहेमा तुलबी कसेलो काथो जेष्ठीमधु तज तमालपत्र इलायची लवंग वायविडंग अजमो अजमोद कुलिंज चिणकबोबा कचूर नागरमोथ पांन सुपारी पुहकरमूल जवासामूल बावची बांनलबालि धवबालि खेजम बाल खयरमार ए सर्वस्वादिम जांगना ॥ ४ ॥ अनाहार लिखते हैं || नबालि मूल पांन सिली गोमुत्र गिलोय किरायतो प्रतिविष कूडन सुक
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रत्नसागर.
डिराख रोहिणी बाल पीपलामूल बच धमासन रीगणी एलियो चिलोठी कयर बोरिनामूल (इत्यादि) प्रणाहार पिण इच्छासंयुक्त बोना (यहजो ) इछा विना अनिष्ट पणें लीजै । जबतो अनाहारहै । जो इच्छासंयुक्त जावता लीजैतो हार को दूषण लगै । ( अबपच्चक्खाणके आगारोंका अर्थ लिखते हैं ) जिस पञ्चक्खाणमें जितने आगार होय ॥ सो आगार रखके पच्चक्खाण नियम करे | अन्नत्थणा जोगेणं ॥ १ ॥ ( व्याख्या ) अनाजोगटाली । नाग कहियै अत्यन्त विस्मृत होणेंसें ) किया जो ( पच्चक्खाण याद रहै। जुलकर कोई चीज मुंहमें घाली होय वा खाणेमें आई होय पि जाएयां पीछे तत्काल नाख देवें तो पच्चक्खां नाजै नही । जाएयां पबै प्रक्षण करे तो पच्चक्खाण नाजै ॥ १ ॥ पचन कालेणं । ( व्याख्या) कालकी प्रहन्नता | आकाशै गर्छ नडतीहोय । वा आकाशै बद्दलवाया होय । तथा पर्वत प्रमुखकी मोट प्रजावे । सूरज न दीसे । तब नरम पच्चक्खाण काल संपूर्ण हुवो जा कर जोजन करे तो व्रत भंग न होय ॥ ३ ॥ सहस्सागारेणं । ( व्याख्या ) सहसा - कार कही अत्यन्त उतावलकै जोगे । प्रथवा । अकस्मात् विलोवतां तोलतां घृत प्रमुखनो बांटो मुखमें। पमे तो । व्रतभंग न होय ॥ २ ॥ दिसा मोहेणं (व्या० ) दिशकों अजाणतो वैसे । जो दिशा जूल मनुष्य । पूर्वदिशाकुं पश्चिम दिशि जांणें । इस कारणसें । पञ्चक्खाण काल पूर्ण - हुवा विनां भोजन करे तो व्रतभंग न होय ॥ ४ ॥ साहुवयणेणं (व्याख्या) साधूकै बचनसे नग्वाडा पोरिसी आदिक जरमसंयुक्त सुणके । पच्चक्खाण काल पूरण हुवो जाणि कर भोजन करें तो व्रतभंग न होय ॥ ५ ॥ सब समाहि बत्तिया गारे ( व्याख्या० ) पच्चक्खाण काल पूरण हुवां प्रथम ही अकस्मात् शूलादिक रोग ऊपजै । तिससें कदास परिणामोंकी थिरता नरहै । र्त्त रौद्र ध्यान उत्पन्न होय । तब नसरोगी कुं रोग मिटावन वावत औषधादिक देवै । वा आपलेवै । तो पच्चक्खाण जंग नही होय ॥ ६ ॥ महत्तरागारे ( व्या० ) पच्चक्खाण पालसें । जितनी कर्मोकी निर्जरा होती है । नसनिर्जरासें अधिक निर्जरा होने का कारण । और कोई
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दश पञ्चक्खाण आगारार्थः आगारार्थः
३५ पुरुषसें वन नहीभावै । असा जो । चैत्यसंघादि प्रयोजन होनेसें । पञ्चक्खाण काल पूरण हुवा विनां जोजन करै तो व्रत जंग न होय ॥ ७ ॥ सागारी आगारेणं (व्या०) गृहस्थ देखतां साधु जोजन न करै। असी जिनराजकी आज्ञाहै । इसीसें कोई साधुनें एकासनादिक पञ्चक्खाण किया है । जोजन करनेकुं वैगहै । तिस वखत कोईक गृहस्थ साधु पास आय वैठे । तब साधु नस ठिकाणेसुं उठ कर ओरठिकाणे जायके लोजन करै तो व्रत नंग नहोय ॥ और गृहस्थकों यह आगार ऐसें है) कि जिस पुरुषकी निजर लगती होय तो उस आयां नगि कर ओर ठिकाणे नोजन करै तो पच्चक्खाण जंग नहोय ॥ ८॥ आनदृण पसारेणं (व्या०) पगप्रमुख जो एकठे करनेसें । तथा पसारनेसें। थोमासा आसन चल जाय । तो व्रतनंग नहोय ॥९॥ गुरु अनुहाणेणं (व्या० ) आपका गुरु आणेसें । तथा । आपसें । कोई वमा पुरुष आणेसें। विनय निमित्तै । एकासणाादि व्रतमें । जोजन करतो पिण आसन गेम का खडो होय । तोपिण व्रत जंग नहोय ॥१०॥ पारिठावणियागारेणं ( व्या० ) ( सर्व पञ्चक्खाणां मे यह आगार साधुका है ) जो आहार नाखणेंसें बहुत जीव विराधना होती जांण कर (गुरु कहै ) वह सरस आहार है परठोमति। ऐसी आशा देवे (तो) एकासणादि बतधारी साधु । दूसरी वखत आहार करै । तो पिण व्रतनंग नहोय ॥११॥ लेवालेवेणं (व्या०) भोजन करनेका थाल प्रमुख नाजन । तिसकै मांहि घृतादिक विगय द्रव्यका अंश लगाहै । तिसकुं हाथ प्रमुख से पूंगेरा । परंतु किंचित वेमालुमसा रह गया होय । नसभाजनमें आयंविलादि व्रतधारी नोजन कर लेवे। तो व्रत नंग नहोय ॥१२॥ नक्खित्तविवेगेणं (व्याख्या ) आयविलादि पञ्चक्खाणमें ॥ नही खाणे जोग्य जो विगय द्रव्य प्रमुख । (तिसका फरस) खाणे जोग्य द्रव्यसें किंचित् होगया होय । वहखाणे में आजावै । तो व्रत गंग नहोय । ॥१३॥ गिहत्य संसिरणं (व्या) जोजन पुरुषै जिस सेती । असा कुडा आदि नाजन । विगय प्रमुख द्रव्य से वेमालम खरडा होय । प्रत्यक्ष निजरसें कदाचित्मालुम न होय । जो नस वासणसें जोजन पुरसै
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रत्नसागर. तो व्रत नंग न हो ॥ १४ ॥ पमुचमुक्खिएणं ( व्या० ) सर्वथा लूखी रोटी खाखराप्रमुख द्रव्य किंचिन्मात्र घृतादिकसुं वेमालुम चोपडनें में आया होय । परंतु घृतादिक का सवाद मालुम नही पडता होय । जो (नीवी) पञ्चक्खाण मध्य ऐसा द्रव्यकुं खाणेमें आजावेतो व्रतत्नंग न होय ॥१५॥
॥इति पंचदशा गाराणां लेशतोऽर्थ संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ ॥
॥दोचेव नमुक्कारो। आगाराउच्चहुँति पोरसिए । सत्तेवय पुरमढे। एगास णमि अहेव ॥१॥ सत्तेग हाणस्सओ। अठे वय आयंबिलंमि आगारा । पंचे वयनत्तठे। बप्पाणे चरिमचत्तारी ॥२ ॥ पंचचरो अनिग्गहे । निबीए अह नवय आगारा । अप्पावरणे पंचन । हवंति सेसेसु चत्तारी ॥३॥ __॥ ॥ इति आगार संख्यागाथा ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥अथ मुहपत्ती पडिलेहण ॥ * ॥ ॥ सूत्र अर्थ साचो सरदहुँ १ ॥ सम्यक्तमोहनी २॥ मिथ्यात्वमोहनी ३ ॥ मिश्रमोहनी ४ ॥ परिहरूं ४ ॥ ( यहच्यार पमिलेहण मुहपत्तीखोलतीवखत कही जै) काम राग १ ॥ स्नेहराग २ ॥ दृष्टिराग ३ ॥ परिहरु ( यह सातेवोल प्रथम कही जै)। सुगुरु १॥सुदेव २॥ सुधर्म ३॥ श्रादरु ॥ कुगुरु १ ॥ कुदेव २ ॥ धम्म ३ ॥ परिहरु ॥ ज्ञान १ ॥ दर्शन २ ॥ चारित्र ३ ॥
आदरूं । ( यहनवपमिलेहणमावै हाथे करीजै )। ज्ञानविराधना १ ॥ दर्शनविराधना २ ॥ चारित्रविराधना ३ ॥ परिहरु ॥ मनोगुप्ति १ ॥ वचन गुप्ति २ ॥ कायगुप्ति ३॥ श्रादरं ॥ मनोदंग १ ॥ वचनदंम २ ॥ कायदंग ३ ॥ परिहरु ॥ ( यह नव पमिलेहण जीमणे हाथे करीजै । यह पचवीस बोल मुहपत्तीका जाणना ॥अब पचवीस पमिलेहण अंगनी कहतेहैं ॥ कृष्णलेस्या. १ ॥ नीललेस्या २ ॥
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मुहपत्तीपमिहण (तथा) आलोय.
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कापोतलेस्या ३ ॥ परिहरु || माथै निलाबै ॥ रुद्धिगारव १ ॥ रसगाव २ ॥ सातागारव ३ ॥ मुखै परिहरु मायाशल्य १. ॥ नियाणाशल्य २ ॥ मिचादंशणशल्य ३ ॥ ही परिहरुं ॥ क्रोध १ ॥ मांन २ ॥ ( जीमणैकांधे काखे परि० ) । माया १ ॥ लोन ॥ २ ॥ ( मावे कांधे व गले परि० ) । हास्य १ ॥ रति २ ॥ रति ३ ॥ ) मावे हाथेपरिहरु ) ॥ जय १ ॥ शोक २ ॥ डुगंगा ३ ॥ ( जीमणे हाथे परिहरु ) ॥ पृथ्वीका १ ॥ अप्पकाय २ ॥ तेककाय ३ ॥ ( मावे पगे परि ह ) । वाककाय १ ॥ वनस्पतीकाय २ ॥ त्रसकाय ३॥ ( जी मपगे परिहरु ) ॥ इति मुहपत्ती पडिलेहणसंपूर्णम् ॥ ॐ ॥
॥ * ॥ थापनाचार्यनी पमिलेहणकरतां ॥ १३ ॥ बोल चिंतवी जै सो लिखिते हैं ॥ सुद्धस्वरूपधारूं १ ॥ ज्ञान २ ॥ दर्शन ३ ॥ चारित्रसहित ४ ॥ सरदहणासुद्धि ५ ॥ प्ररूपणासुद्धि ६ ॥ दर्शनसुद्धि ७ ॥ सहित पंचाचारपालूं ८ ॥ पलावुं ९ ॥ अनु मोडुं १० ॥ मनोगुप्त ११ ॥ वचनगुप्त १२ ॥ कायगुप्त १३ ॥ एवं १३ ॥ बोल श्रीधर्मरत्नप्रकरण सूत्रवृत्तौ ॥ # ॥
॥ * ॥ अथ आलोयण लिख्यते ॥ * ॥
॥ ॥ प्राजूला चार पहर दिवसमें । जोमें जीव विराध्या होय । सातलाख पृथ्वीकाय । सातलाख अप्पकाय । सातला खं ते काय । सातलाख बाऊ काय । दशलाख प्रत्येक वनस्प ती काय । चवदैलाख साधारण वनस्पतीकाय । दोयलाख वेन्द्र । दोयलाख तेंद्री । दोयलाख चउरिंद्री । चारलाख देव ता । चारलाख नारकी । चारलाख पंचेन्द्रीतिर्यच । चवदैला ख मनुष्य । एवं चारगती । चौरासीलाख जीवायोनि में । जो
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रत्नसागर. कोई जीवहएयो होय । हणायो होय । हणतां प्रतें नलोजा एयो होय । तेसह । मन । वचन । कायाइंकरी । मिडामिकडं। प्राणातिपात १ । मृषावाद २ । अदत्तादांन ३ । मैथुन ४ । परिग्रह ५ । क्रोध ६।मांन ७ । माया ८।लोन ९ । राग १० । द्वेष ११ । कलह १२ । अभ्याख्यान १३ । परपरीवा द १४ । पैशुन्य १५। अरति रति १६ । मायामृषावाद १७। मिथात्वशल्य. १८ । एअट्ठारहपापस्थानक सेव्या होय । सेवा या होय । सेवतांप्रते नलाजाएयां होय । ते सहू मन वचन कायाइं करी । मिडामि उक्कम ॥ ॥ ज्ञान । दर्शन । चारित्र पाटी । पोथी। ठवणी । कमली। नवकरवाली । देवगुरुधर्म नी प्रासातनाकरी होय । पनरैकर्मादाननी प्रासेवनाकरी होय राजकथा । देशकथा । स्त्रीकथा । नोक्तकथा । करी होय ।
और जो कोई परनिंदा ये करी। पाप कियो होय । करायो होय करतांप्रते अणुमोकुं होय । ते. सर्व । मन । वचन । कायायें करी । दिवसअतीचार आलोयणेकरी । पमिक्कमणा माहें आलोठं । तस्स मिडामि उकर्म । इति लघुप्रतीचार ॥ ॥ * ॥अथ पाखी चौमासी संवबरी वृद्धतीचार ॥2॥
॥ ॥ नाणंमिदंसणंमिश्र । चरणंमितवेय तहयविरयंमि। आयरणायारो। इह एसो पंचहानणि ॥१॥अर्थः॥ ज्ञाना चार १ ॥ दर्शनाचार २ ॥ चारित्राचार ३ ॥ तपाचार ४ ॥ वीर्याचार ५ ॥ एवं पांचविधि श्राचारमांहि जोअतीचार । पक्षदिवसमांहि । सूक्ष्म बादर । जाणतां अजाणतां । हुप्रो होय तेसह मन बचन कायाइंकरी मित्रामिक्क ॥ ॥ (तत्र
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वृध प्रतीचार.
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ज्ञानाचारना प्रतीचार | काले विणए बहुमाणे । वहाणे तहयन्निवणे । वंजण प्रत्थत नए । विहो ना मायारो ॥ १ ॥ ज्ञान कालवेला मांहि पढिनंगुणिनं नही । कालेपढिनं । विनयहीन । वहुमांनहीन । उपधानहीन | श्रीउपाध्यायकनें । नहीपढिनं । अथवा अनेकनें पढिनं । अनेरो गुरु कह्यो । ब्यंजन अर्थ तनय कूडोपढ्यो । देववांदणें । पडिक्कम । सिज्झाय करतां पढतां गुणतां । कूडोअक्षर का मात्रें । अधिको नगे । गलपालनायो । सूत्र अर्थ कूडानण्या । जणीनें वीसारयो । तपोधनतधर्मे । काजो प्रणऊधरचै | दांगीण पमिलेही । वसती अणसोधी । सिझाई प्रपोज कालवेला मांहि । दसवैकालिक प्रमुख । सिद्धांतनएयो गुण्यो । योगव ह्यांपखे नएयो || ज्ञानोपगरण || पाटी पोथी ठवणी कवली सांपमा सांपकी वहीदस्तरी बलियाकागल प्रमुख प्रतें। सातना हुई । पगलागो । थूकलागो । नसीसैमूंक्यो कनें तां श्राहार नीहारकीधो । ज्ञानद्रव्य नक्षणनपेक्षणकीधो । प्रज्ञापराधे विणास्यो । विरासतोच वेख्यो । बतीसक्ते सार संभाल नकीधी। झांन वंत प्रतें मरवह्यो । अवज्ञा सातना कीधी । कोईप्रतें नतां गुणतां प्रद्वेष मत्सर अंतराय अपघातकीधो । मतिज्ञान ! श्रुतिज्ञान अवधिज्ञान । मनपर्यवज्ञान । केवलज्ञान। ए पांच ज्ञानतणी | सद्दहणाकीधी। कोई तोतलो वोवमोहस्यो वितक्यों । आपणा जाणपणातणी गर्वचिंतव्यो ॥ ॥ ष्टविधज्ञा नाचारविषय जोप्रतीचार । पक्षदिवसमांहि । सूक्ष्मवादर जाणतां जांणतां हुवोहोय । तेसहू मन वचन कायाईकरी मिठामिडुक्करुं ॥ * ॥ दशनाचारनाप्राप्रतीचार ॥ * ॥
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रत्नसागर. निस्संकिय निकंखिन । निवितिगिहा अमूढ दिछीत्र। नवबू हथिरीकरणे । वबल्लपनावणे अठ ॥१॥ देवगुरुधर्मतणेविषै निस्संकपणोनकीधो। तथाएकांत निश्चयधरयो नही । सगलाई मत जलाने । एहवी श्रद्धाकीधी । धर्मसंबंधियाफलतणे विषै। निःसंदेहबुद्धिधरीनही । चारित्रिया साधु साधवीतणा मलिमली नगात्रदेखी । गंगनपजावी । मिथ्यात्वीतणी पूजा प्रनावना देखी । मूढदृष्टि पणोकीधो । संघमांहि गुणवंततणी। अनुप ठंहणा । अस्थिरीकरणं । अवात्सल्य अप्रीति अनक्ति चिंतवी । संघमांहि थिरीकरण । वात्सल्यशक्तिबतें प्रनावनानकीधी । देवद्रव्यविणासि । विणसतुं तवेषी । उतीशक्ते सारसं नाल नकीधी । साधर्मिकस्युं कलहकर्मकीधो । जिननवनतणी चौरासी प्रासातनाकीधी । गुरुप्रतें तेतीस प्रासातना कीधी। अधौत वस्त्रे देवपूजाकीधी । त्रिहुंगमपाखै देवपूज्या । वासरूपी कलसतणो ठबकोलागो । मुखतणीवाफलागी । ठवणारिय हाथ थकी पमिन । पमिलेहवो वीसारयो।नवकरवालीने पगलागो ॥ * ॥ दर्शनाचार विषय जोप्रतीचार०॥३॥॥ . ॥ ॥ चारित्राचारना आठप्रतीचार ॥ पणिहाणयोगजुत्तो। पंचहिंसमईहिं तिहिंगुत्तीहिं । एस चरित्तायारो। अविहो होइ नायबो १॥ इरियासुमती १ ॥ नाषासुमती २ ॥ एषणासुमती ३ ॥ आयाणनंम्मत्तनिक्खेवणासुमती ४ ॥ उच्चारपासवणखे लजल्लसंघाणपारिछावणियासुमती ५॥ मनोगुप्ती १॥ वचनगुप्ती २॥ कायगुप्ती ३ ॥ एवं पंचसुमती तीनगुप्ती । रूमीपरें पाली नही॥ * ॥ साधुतणेसदैव अष्टविध चारित्राचार विषईनजिको अतीचार० ॥४॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥
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वृक्ष अतीचार. ॥ ॥ विसेषतः श्रावकतणे धर्मे श्रीसम्यक्तमूल बारहबत श्रीसम्यक्ततणा पांच प्रतीचार ॥ ॥ संका कख विगंग। पसंत तहसंथवो कुलिंगीसु ॥ संका श्रीअरिहंत तणी । बल प्रति सय ज्ञानलक्ष्मी गांनीर्यादिकगुण । सास्वतीप्रतिमा । चारित्रि याना चारित्र । जिनवचनतणो संदेहकीधो। (आकांदा )ब्रह्मा विष्णु महेश्वर क्षेत्रपाल गोगो गोत्रदेवता ग्रहपूजा विणायग। हनुमंत । इत्येवमादिक। ग्राम गोत्र देश नगर जूजूमा । देव देहराना प्रनावदेखी। रोगि अातंकै । इहलोक । परलोकार्थे । ज्या मान्या ।वौद्ध सांख्यादिक सन्यासी । नरमा। जगत । लिंगिया। योगी। दरवेश ।अनेराई दर्शनियानो । कष्टमंत्र चमत्कारदेखी । परमार्थ जाण्यांविन नूल्या। अनुमोद्या । कुशास्त्रसीख्या । सांजल्या । सराध । संवबरी। होली । बलेव ।माहीपूनिम ।अजापडिवा । प्रेतबीज । गोरत्रीज । विनायगचोथ । नागपांचम । फुलणाग्छ। शीलसातम। द्रो अाठम। नठली नवम । अहवदसम। बतइग्यारस । वह बारस । धनतेरस। अनंतचौदस । आदित्यवार । उत्तराइण। नवोदक। ज्यागनोगतारणा कीधा । पीपलपाणीघाल्या। ध साव्या । घरबाहिर । कई तलाव नदी समुद्र कुंमपुन्यहेतु स्नानकीधा। दांनदीधा। ग्रहण शनीचर माहमास नवरात्रि नाहिया। अजाणनाथाप्या। अनेराई व्रतोलाकीधा कराव्या विचिकिडा । धर्मसंबन्धियाफलतणो संदेहकीधो । जिणअरि हंत । धर्मनाभागर । विश्वोपकार सागर । मोक्षमार्ग दातार । देवाधिदेववुखै सुखन्नावै नपूज्या नमान्या। महातमाना नात. पाणीतणी दुगंगकीधी । कुचारित्रिया देखी । चारित्रियाऊप
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रत्नसागर.
रिवहु । मिथ्यात्वीतणी प्रभावना देखी । प्रसंसाकीधी । प्रीतिमांगी । दाक्षिणलगै तेहनोधर्म मान्युं ॥ * ॥ श्रीसमकित विषय । जो अतीचार | पक्षदिवसमांहि । सूक्ष्म वादर जाणतां जाणतां हुन होय ते सहू मन वचन कायाईकरी मि हामिदुक्कडं ॥ १ ॥ * ॥ पहिले प्राणातिपात विरमणव्रतें पांच अतिचार ॥ * ॥ वह बंध विए । इनारनत्तपाणवुढेए० । द्विपद चौपद प्रतें रीस वसें गाढोघान प्रहारघाल्यो । गाढै बंध नवांध्या | घणें नारपीड्या | निलंबन कर्मकीधा । चारपांणी तणी वेला सारसंचालनकीधी । लहिणेंदेणें किाही प्रतें लंघा व्युं । तेणें भूखै प्रापणजीम्या । अणगलपाणी वावरयो। रूमै गल्यो नही । गलाव्योनही । प्रणगलपांणीफील्या । लूगमा धोया । ईंधण अणसोध्योजाल्युं । साप कानखजूरा । सुलह ला। माकम। जूप्रां । गोगिंगा । साहतां मूत्रदूषव्यां । रूडै थानकनमूक्या । कीडी । मकोमी । नदेही । घीवेली | कातरा चूमेलि । पतंगिया । मेरुका । अलसिया । ईली । कृति । मांस । मसा । बगतरा । माखीप्रमुख । जेकेईजीव । विठा चांपिया । दूहव्या । माला हलावतां । पंखी काग चिमकला ना ईमा फूटा । अनेरा एकेंद्रियादिक जिकेजीव । विषठा । चांप्या । दूहव्या हालतां । चालतां । अनेरुं कांइकामकाज करतां विद्वंसपणुं कीधूं । जीवरकारू नकीधी । संखारोसूक
। सुल्याधान तावडैदीधा । दलाव्या । नरडाव्या । खाट खातावफाटक्या । मूंक्या । मूंकाव्या । जीवाकुलभूमिनीपावी । बासीगार राखी । रखावी । दलणें खांडणें नीपणे । रूडी जय णा नकीधी | आत्मचवदसना नियमनागा । धूणीकरावी ॥
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वृधतीचार.
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पहिला प्राणातिपातव्रतविषईन । अनेरो० ॥ १ ॥ ॥ बीजो थूल मृषावाद विरमणव्रतें । पांचप्रतीचार ॥ ॥ सहस्सारहस्स दारे । मोसुवएसेय कूडलेहेय ॥ सहसाकार । किणएकप्रतें । प्रयुक्तादीधो । किणाएकप्रतें । एकांतें वातकरतां देखी । तुझे तो राजविरुद्धचिंतवोबो । इत्यादिक कह्युं । स्वदारमंत्र achar | राई किणहीनो । मंत्र आलोचमर्म प्रकास्यो । किणहीनें कूडी वुद्धिदीधी । कूडो लेख लिख्यो । कूडीसाखन री । थापणमोसोकीधो । कन्या । ढोर । गो । भूमि। संबंधि या । लहणें । दयणें । व्यवसायवाद वढावढकरतां । मोटको फूट वोल्युं । हाथ पग जणी गालदीधी । कर कामोड्या | धर्मवचन बोल्या ॥ ॥ बीजै मृषावादवत० ॥ २ ॥ ॥ ती दत्तादानविरमणव्रतना पांच प्रतीचार ॥ तेनाहडप्प नगे । घरबाहिर खेत्र खप्नैपराईवस्तु । णमोकलावी । लीधी दीधी । वावरी । चोरीनीवस्तु मोललीधी । चोरधामीत प्रतें संबलदीधुं । संकेतकह्यं । विरुद्ध राज्यातिक्रमकीधो । नवापु राणा सरसविरस सजीव निर्जीव वस्तुतणा नेलसंनेल कीधा खोटै तोल मान माप वुहत्या | माणचोरीकीधी । साटै लांच लीधी । माता पिता पुत्र कलत्र परिवार वंची । जूदीगांठ कीधी । किणहीनें लेखैपलेखे मूलव्यं । पडीवस्तु नलवीलीधी तीजै प्रदत्तादान व्रत० ॥ ३ ॥ ॥ चौथै स्वदार संतोषमैथुनव्रते पांच प्रतीचार ॥ परिग्गहियाइत्तर । अणंग वीवाह तिव रागे ॥ परिगृहीतागमन । इत्वर परिगृहीतागमन । विधवा । वेस्या । स्त्रीकुलांगना | स्वदार सोकतणें विषै । दृष्टिविपर्यासकीधी । सरागवचन वोल्या | आठम चन्दस
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रत्नसागर.
अनेराई पर्व तिथितणा नियमनागा। घरघरणा कीधा । करा व्या। अनुमोदीया। कुविकल्प चिंतव्या । अनंगक्रीमा कीधी । परायाविवाहंजोड्या । कामनोग तणै विषै तीब्रानिलाषकीधो। कुस्वप्नलाधा । नटविटपुरुषसुं हासुंकीधुं ॥ * ॥ चौथेमै थुनव्रतवि०॥४॥ ॥ पांच मेंपरिग्रह परिमाणवतैपांचप्रति चार । धण धन्नखित्तबत्थु । धनधान्य खेत्र वस्तु रुप्प सुवर्ण कुष्प द्विपद चतुष्पद नवविध परिग्रहतणा । नियम नपरांत वृद्धिदेखी । मूलगै संक्षेपनकीधो । माता पिता पुत्र कलत्रा दिकतणे लेखेकीधो । परिग्रहपरिमाणलेई पढ्यो नही । पढी वीसारि । नियम वीसारिया ॥ पांचमै परिग्रहपरिमाण ब्र० ॥५॥8॥ बदिगविरमणबते पांच प्रतीचार ॥ * ॥ गमण स्सय परिमाणे । कईदिसि । अधोदिसि । तिर्यगदिसि । जाय वाश्रायवातणो नियम जे कोई अजाणैनागो । एकगमा संको डी।वीजी गमावधारी । विस्मृतिलगै । अधिकनूमिगया। पा ठवणी श्राधी मोकली ॥ ॥ दिगव्रतवि० ॥६॥ ॥ सातमें जोगो पनोगपरिमाणवत ॥ जेहना नोजनाश्री पांच तीचार॥अने कर्म हुंती १५॥ एवं २० प्रतीचार ॥ॐ ॥ सच्चि ते पमिबुद्धे । अपोलपोलयंचाहारे ० ॥ सच्चित्ततूणे नियम लीधै अधिक सच्चित्तलीधुं । तथा सच्चित्तमिलीवस्तु । अपक्का हार । उपक्काहार । तुडोषधीतणोनकणकीधुं । होलावंबी पहुं क काकडीनमथाकीधा । सुल्याधानप्रमुख लक्षण कीधा ॥ स चित्तदधविगइ। पाणह तंबोलबत्थ कुसुमेसु । वाहणसयणविले वण । बनदिसिएहाणनत्तेसु ॥ १॥ एचवदै नियम । दिनप्रतें संजारयासंदेप्यानही। लेईनियम जांग्या । बावीस अनद ।ब
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वृष अतीचार. त्तीस अनंतकायमांहि । श्रादो मूला गाजर पीमालू सूरण सेल रा। काचीग्रांबली। गोल्हांखाधा। चोमासा प्रमुखमांहें । वा सो कठोलनीरोटी खाधी । त्रिहुंदिवसनो दहीलीधुं । मधु म हुडा माखण माटी । वेंगण पीलू पीचू पपोटा। पीपी विष। हीम । करहा । घोलवमा । अणजाण्याफल ठीवरूं । अथा पुँ । श्रामण बोर काचुं मीतुं । तिल । खसखस । काचाकोठ वडाखाधा। रात्रीनोजन कीधुं । लगवगतीवेलाइं व्यालूकीधुं । दिवसनग्यांविणसीराव्या। तथा पनरैका दान । इंगालीक म्मे । बणकम्मे सामीकम्मे । नामीकम्मे । फोमीकम्मे । दंत वाणिज्ये । रसवाणिज्ये । केशवाणिज्ये । विषवाणिज्ये । जंत पीलणकम्मे । निर्लंगणकम्मे । दवग्गिदावणया। सरदहतलावसो सणया। असईपोसणया। पांचवाणिज्य । पांचकर्म । पांचसा मान्य । महारंन लीहाला कराव्या । ईंटवाहनीवाहपचाव्या। वाणी चिणा पकवान करीवेच्या । वासीमाखणतपाव्या। अं गीठाकीधा । कराव्या । तिलादिकसंचीया । फागुणमासउपरां तराख्या । कूकमा । सूडाप्रमुखपोस्या । अनेरुंजेकोईबहुसाव द्य कोर कर्मादिक समाचरयो ॥ * ॥ सातमानोगोपनोगव्रत विष० ॥ * ॥७॥ * ॥श्रापमा अनर्थ दंग विरमणब्रतना पांच अतीचार ॥ कंदप्पे कुक्कइए । कंदर्पलगैविटनीपरै। हास्यकुतू हल मुखादि अंगकुचेष्टाकीधी । मूरखपणालगै । किणहीन संबद्धवाक्य बोल्या । खांडा । कटारी । कुसि । कुहामा । रथ । ऊखल । मूसल । अगन । घरटीश्रादिक । सजकरी मेल्या । मांग्या आप्या। कनकवस्तुढोरलेवराव्या। अनेकांइ पापोपदेसदीधुं । अंघोल नाहण दांतण पगधोअणपाणी ।
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रत्नसागर. तेलअधिकप्राण्या । हीडोलैहीच्या । राजकथा । देसकथा। नुक्तकथा । स्त्रीकथा । पराईवात कीधी । आर्त रोद्र ध्यान ध्याया । कर्कसबचन बोल्या । करडकामोडया । संनेडालाया नेसा सांढकूकड मींढा श्वानादिमता कलहकरताजोया खा धिलगै अदेखाई चिंतवी । माटी । मीतुं । कण कपासिया। काजविण चांप्या । तेह कपरवया । भालेवनस्यतीखुदी । गब । पाणी। घी। रस । तेल । गुल। आमलवेतस । वेरजादिक तणा नाजनउघाडा मुक्या । तेमाहि । कीडी कंथुप्रा माखी वंदर । गिरोली प्रमुखजीवविणा । सूडा प्रमुख जीव क्रीडा हेतें वांधिराख्या । घणीनिद्राकीधी। रागद्वेष लगे। एकनेंरिद्धि परिवारबांग । एकनें मृत्यु हाणि विमासी ॥ अाठमाअनर्थ दंडव्रतविष० ॥ ८ ॥ ॥ नवमें सामायकब्रतै पांच अती चार ॥ * ॥ तिविहेमुप्पणिहाणे । सामायकलीधै । मनाहट दोहट चिंतव्यु।वचनसावद्यवोल्युं । कायप्रणपडिलेझुंहलाव्युं। बतीवेलाइं सामायकनलीधुं । सामायकलेई उघाडैमुखबोल्या। ऊं घावीकीधी । बीजदीवातणी जोहीलागी। कण कपासी या माटी मीतुं नील फूल हरीकायना संघट्टहुश्रा । पुरुष तिर्य चना संघट्ट हुश्रा । तथा स्त्री तिर्यची प्रानडी। मुहपत्तीसंघ ट्टी । सामायकप्रणपूरलंपारिवं । पारवंवीसारिवं॥ नवमैसामा यकब्रतविषय० ॥९॥ * ॥ दशमैदेशावकासिक ब्रतै पांच तीचार ॥ * ॥प्राणवणे पेसवणे० ॥ प्राणवणप्पनगे। पेसवण प्पनगे । सद्दाणुवाए । रूवाणुवाए । बहियापुग्गलपक्खेवे। नि यमितनूमिकामांहि । वाहिरथकीकांई अणाव्युं । आपकन्हाथी बाहिरमोकल्या । सादकरी । रूपदेखाडी । काकरोनाखी
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वृक्ष अतीचार आपण' उतुं जणाव्युं ॥ ॥ दशमें देशावकासिकव्रत०॥१०॥ इग्यारमेपोषधोपवासबतें पांच प्रतीचार ॥ * ॥ संथारुच्चार विही। पमायतहचेव नोश्रणानोए० ॥ पोसहलीधै । संथारात पीनूमी बाहिरलाथमिला । दिवसै सोध्यापडिलेह्या नही । मातलं अणपडिलेद्यं वावरिनं । अणपुंजी नूमिकाइं परठ विठं । परठवतां चिन्तवणानकीधी । अणुजाणहजस्सुग्गहोन कां । परठयांपू बारत्रिणि बोसिरामि २ नका । पोसहशा लामांहिं । पइसतां नीसरतां निस्सही आवस्सही कहवी वी सारी । टथवीकाय । अप्पकाय । तेककाय । वाळकाय । वनस्पतीकाय । जसकाय । तणा संघट्टपरिताप उपद्रवहश्रा संथारा पोरसितणो । विधि जण वीसारि । पोरसिमाहित ध्या । अविधिसंथारंपाथरघु । कालवेलायें पडिक्कमणुं नकी, पारणादिकतणीचिंतानिपजावी । कालवेला देववांदवाबीसारि या। पोसहप्रसूरोलियो । सवारोपारियो । पर्बतिथि श्रावी पोसहलीधोनही ॥ इग्यारमें पोषधोपवासब० ॥११॥ ॥ वारमै अतिथि संविनागवत पांच प्रतीचार ॥ ॥ सच्चित्ते निक्खवणे० ॥ सञ्चित्तवस्तु हे । कपरिथकै । महातमाप्रतेंअसुमतूं दानदीधुं । अदेवातणीबु? सूझतुं फेडी असूझतुंकीर्छ । देवातणीबु? असूझतुं फेडी । सूझतुंकीर्छ । श्रा पणफेडीपरायें कीर्छ । विहरवावेला टलगयां । असुरकरी महा तमातेड्या। महरलगैदांनदीधुं । गुणवंत अाव्यै नगति नसाचवी
तीसक्तिसाधर्मिक वात्सल्यनकीधुं । अनेराईधर्मक्षेत्रसी दाता। उतीशक्तैऊधखानही ॥ ॥ बारमेंअतिथिसंविनागब० ॥१२॥ ॥ संलेहणातणा पांचप्रतीचार ॥ इहलोए परलोए.
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रत्नसागर. इहलोकासंसप्पनगे। परलोगासंसप्पन्गे। जीविप्रासंसप्पनगे। मरणासंसप्पन्गे । कामनोगासंसप्पनगे । इहलोक मनुष्यनव मान महत्व लोकतणी सेवा ठकुराई । बलदेव वासुदेव चक्रवर्ति पदवांग्या । परलोक । इंद्र अहमिंद्र देवाधिदेव पदवी वांग । सुखाये जीववातणी वांगकीधी । उखाये मर वातणी वांग कीधी । काम नोग तणीइहा कीधी॥॥ संलेह पाब्रतवि० ॥॥ तपाचारबारेनेदै ॥ अभ्यंतर । बाहिर। अणसणमूणोइरिया ॥ अणसणकहीयेउपवास । ते पद्धति थि उतीशक्तिकीधुं नही । (नणोदरी) कवल पांचसातकणार ह्यानही । (द्रव्यसंक्षेप ) विगयप्रमुख परिमाणकीg नही । प्रासनादिक कायकिलेस नकीधुं । (संलीणता) अंगोपांगसं कोच्यानही । नवकारसी । पोरसी। गंठसी । मूंठसी । साढपो रसी। पुरमुट्ठ। एकासणो । वैपासणो। निवी।प्रांबिलप्रमुख प चक्खाण पारवावीसावा । बैसतां नवकारनण्युनही । ऊठतां दिवश्वरम नकीधुं । निवीआंबिल उपवासादिकतपकरी । का चोपाणीपीधुं । वमनथयुं ॥ ॥ बाह्य तपब्रतवि०॥॥अभ्यं तरतप॥ * ॥ पायबित्तंविणन० । गुरुकनें मनसुदै आलोयण लीधीनही । गुरुदत्तप्रायश्चित्ततप लेखासुद्ध पहचाडयुं नही । देवगुरु संघसाहम्मीप्रतें विनयसाचव्योनही । वाचना बना परावर्तना अनुप्रेक्ष्या धर्मकथा लक्षण पंचविध सिज्मायकी धोनही । धर्म ध्यान शुक्लध्यान ध्यायोनही । कर्म क्य नि मित्त लोगस्स दस वीसनुं कासग्गकनकीधो॥ ॥अभ्यंतरत पविषइन० ॥ वीर्याचारना तीनतीचार ॥ ॥ अणगुहियब लविर । परकमइजोजहुँतगणेसु । जुंजइ अजहाथामं । ना
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जय तिहुअण बत्तीसी. यबोवीरियाचारो॥१॥ पढवै गुणवै विनय वेयावच्च देवपूजा सामायक दान शील तप नावना प्रमुख धर्मकृत्य तणे विषै। मन वचन कायातणो उतुं बलवीर्यगोपव्युं । रूडापंचांग खमा समण नदीधा वैठांपडिक्कमणंकीg ॥ ॥ वीर्याचारविष० ॥ ॥ ॥ नाणाइअ अइवय । सम संलेहण पण पनरकम्मेसु । बारसतव विरिअतिगं। चनवीस सय अईयारा॥१॥ ॥ * ॥
॥ ॥ पमिसिद्धाणंकरणे । जिनप्रतिषिद्ध । बावीसभनक । बत्तीसअनंतकाय । बहुबीजनवाण । महाप्रारंन महापरिग्रहादि क कीधा। नित्य कृत्य देवपूजासामायकादिक। तथा तीर्थ यात्रा दिक नकीधा । जीवाजीवादिविचारसद्दहियानही । आपणी कुम तिलगै नतसुत्रपरूपणाकीधी। प्राणा तिपात १। मृषावाद रामद त्तादांन । मैथुन ४। परिग्रह ५। क्रोध ६ । मान ७। माया ८। लोन ९ । राग १० । द्वेष ११ । कलह १२। अभ्याख्यान. १३ । परपरिवाद १४ । पैशुन्य १५। अरतिरति १६ । मायामृषाबाद १७ । मिथ्यात्वशल्य १८ । एअद्वारहपापस्थानकमांहि । जेकांइ कीधो कराव्यो अनुमोद्यो ॥ एवंप्रकारै श्रावकधम्मै । श्री सम्यक मूलवारहब्रत चोवीसासो अतीचारमांहि जिको अतीचार । पददिवसमांहि । सूक्ष्म बादर जाणतां अजाण तां हुवो होय ते सह मन वचन कायायेंकरी मिडामिक्कडं । इति श्री श्रावकूकैवारहव्रतका अतीचार संपूर्णम् ॥*॥
॥ ॥अथ जय तिहुअण वत्तीसीलि०॥*॥ ॥ ॥ जय तिहुश्रण वर कप्परुक्ख जय जिणधनंतरि। जयतिहुश्रण कल्लाणकोस दुरित्र करि केसरि । तिहुश्रण जण
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रत्नसागर. अविलंघियाण नुवणत्तय सामिश्र । कुणसु सहाइ जिणेसपास थंनणयपुरहित॥१॥ तइं समरंत लहतिमत्ति वर पुत्त कलत्तहि ॥ धण सुवरण हिरम पुस जण नुंजहि रऊहि । पिक्खहि मुक्ख असंखसुक्ख तुहपासपसाइण । इयतिहुश्रण वरकप्प रुक्ख सुक्खहि कुणमहजिण ॥ २ ॥ जरजऊर परिजुल्म करण नझुछ सुकुछिण । चक्खुक्खीण खएणखुम नरसल्लिअ सूलिण । तु हजिणसरण रसायणेण लहुडंति पुणव । जयधणंतरिपास महवि तुहुं रोगहरोनव ॥ ३ ॥ विजाजोइस मंत तंत सिद्धिन अपयत्तिण । नुवणप्नु अविह सिद्धि सिज्जइ तुहनामिण । तुह नामिण अपवित्तवि जणहोइ पवित्त । तंतिहुश्रण क ल्लाणकोस तुहूंपासनिरुत्तन ॥ ४॥ खुद्दपठत्तइ मंत तंत जताई विसुत्तइ। चर थिर गरल गहुग्गखग्ग रिनवग्ग विगंजइ। उत्थि यसत्थ अणत्थ घत्थ नित्थारइदयकरि। पुरिअइं हरन सुपा सदेव दुरिअकरिकेसरि ॥५॥ तुहाणा थंनेइनीम दप्पुद्धर सुरवर । रक्खसजक्ख फणिंदविंद चोरानलजलहर । जलथल चारि रउद्दखुद्द पसुजोइणिजोइन । इयतिहुश्रण अविलंधिया जयपास सुसामिश्र ॥६॥ पत्थिअप्रत्थ अपत्थहित्थ नत्ति अरनिनर । रोमंचंचित्र चारुकाय किमरनर सुरवर । जसु सेवहिं कमकमलजुअल पक्खालिअकलिमलु । सोनवणत्तय सामिपास महमद्दतरिठवलु ॥७॥ जय जोइअ मणकमलन सल नयपंजरकुंजर । तिहुश्रणजण आणंदचंदनवणत्तय दि णयर । जयमइमेयणि वारिवाह जयजंतुपिप्रामह । थंनणय हिश्र पासनाह नाहत्तणकुणमह ॥ ८ ॥बहुविहवामुअवामु सु मुबमिनबप्पमहि । मुक्खधम्मकामत्थकाम नरनियनियसत्थ
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जय तिहुण बत्तीसी.
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हि । जंजायइ बहुदरसणत्थ बहुनामपसिद्धन । सोजोइम एकमल नसल सुहपासपवचन ॥ ९ ॥ नयविप्रल र मणिर दस थरहरि सरीरय । तरलिप्रनयण विसुरासु गग्गर गिरकरुणय । तई सहसत्ति सरंतिहुंति नरनासि गुरुदर । महविवि सिझसइपास जयपंजरकुंजर ॥ १० ॥ पई पासवि विप्रसंतनित्त पत्तंतपवत्तिय । वाहपवाहपवूढरूढ दुहदाहसुपु लिय । माहिमसन पुप्पासुरनर । इयतिहुत्रण प्रा णंदचंद जयपासजिणेसर ॥ ११ ॥ तुहकल्ला महेसुघंट टंका रवपिल्लि । वल्लिरमल्ल महल्लनत्तिसुरवरगंजुलि । हलुप्फ लिन पवत्तयंतिनवणेहि मह्रसव । इयतिहुत्राणंदचंद ज यपास सुहुभ्नव ॥ १२॥ निम्मल केवल किरणनियर विहुरिय तमपयहर । दंसिसयल पयत्थसत्थ वित्थरिष्पहार । क लिकलुसि जणघूतोय लोयहप्रगोयर । तिमिरई निरु हरपासनाह भुवणत्तय दियर ॥ १३ ॥ तुहसमरणजल वरि ससित्त माणवमइमेइणि । वरावरसुहुमत्थबोह कंदलदलरेइ णि । जायइफलनर रियहरिय दुहदाहप्रणोवम । इयमइ इणिवारिवाह दिसपासमई मम ॥ १४ ॥ कयविकल क लाणवल्लि नल्लूरिप्रहवणं । दाविप्रसग्ग पवग्गमग्ग दुग्गइग मवारणं । जयजंतुहजणएणतुल्ल जंजणियहियावहु । रम्मध म्मसोजयनपास जयजंतुविश्राम ॥ १५ ॥ भुवणारनिवा सदरि परदरसणदेवय । जोइणिपूणखित्तवाल खुद्दासुरपसु वय । तुहनत्तठसुन सुष्ठु प्रविलचिहि । इयतिहुण व सहपास पावाइ पणासहि ॥ १६ ॥ फणिफणफार फुरंतरय ए करंरंजिनहयल । फलिणीकंदलदल तमाल निप्पल
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रत्नसागर.
सामल । कमगसुरनवसग्गवग्ग संसग्गप्रगजित्र। जयपञ्च क्खजिणेसपास थंनणयपुरहित्र ॥ १७ ॥ महमणुतरलुपमा णुनेय वायाविविसंठनु । नियतणुरविअविणयसहाव भालस विहिलंघनु । तुहमाहप्पपमाणदेव कारुणपवत्तठ । इयमइमा अवहीरपासपालहिविलवंतन ॥ १८ ॥ किंकिंकप्पिनणेयकलुणु किंकिंवनजंपिन । किंवनचिनिकिदेव दीणयमविलंबित । कासनकियनिष्फल्ललल्ल अह्महिंदुहत्तइं । तहविनपत्तनताणकिं पि पइंपहुपरिचत्तइं ॥ १९॥ तुहुं सामिहुतुहूं मायवप्प तुहूं मि त्तपियंकरु । तुटुंगइतुहुँमइतुहिजताणतुटुंगुरुखेमंकरु । हवंदु नरनारिअवरागराग्लनिनग्गठ । लीणन्तुहकमकमल स रण जिणपालहिचंगठ॥२० ॥ पइंकिविकयनीरोयलोयकिविपा वियसुहसय । किविमइंमंतमहंतकेवि किविसाहियसिवपय । किविगंजिरिनवग्गकेवि जसधवलिअनूअल । मइंअवहीर हिकेणपाससरणागयवडल॥ २१॥ पञ्चुवयारनिरीहनाह निप्पण पञ्ण । तुहुंजिणपासपरोवयार करुणिकपरायण। सत्तुमित्त समचित्तवित्तिनयनिंदिसममण । माअवहींरिअजुग्गवि म इंपासनिरंजण ॥ २२ ॥ हवंबहुबिहदुहतत्तगत्ततुहुंदुहनासणप रु । हनंसुयणहकरुणिकगणतुहुंनिरुकरुणाकरु । हनंजिणपा सअसामिसालतुहंतिहुअणसामित्र । जंअवहीरहिमइंफखंत इयपासनसोहिय ॥ २३ ॥ जुग्गाजुग्गविनागनाहनहजोअणतु हसम । जवणुवयारसहावन्नाव करुणारससत्तम । समविसमइ किंघणनिएइ नुविदाहसमंतठ । इयदुहबंधवपासनाहमइंपालथु पंतन ॥ २४ ॥ नयदीणहदीणयमुएविअप्सविकिविजुग्गय । जंजोइय उवयारुकरइ उवयारसमुज्जय । दीणहदीणनिहीणजेण
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परकीसूत्र. तइंनाहिणचित्तन । तोजुग्गनअहमेवपास पालहिमई चंगन ॥ ॥ २५ ॥ अहअमुविजुग्गयविसेसकिविमलहिदीणह । जंपा सविनवयारुकरइ तुझुनाह समग्गह । सुच्चिअकिलकल्लाणजेण जिणतुह्मपसीयह । किंअमुण तंचेव देव मामइंअवहीरह ॥ ॥ २६ ॥ तुहपत्थण नहु होइ विहल जिजाणन किंपुण । हनंदुक्खिन निरु सत्तचत्त दुक्कनस्सुयमण । तंमत निमि सेणएण एन विङाइ लभ्नइ । सञ्चभुक्खयवसेण किं नंबरूप च्चइ ॥ २७ ॥ तिहुअणसामिश्र पासनाह मइंअप्पपयासिन । किऊनजंनियरूवसरिसुनमणुवहुजंपिन । अमुणजिणजगतुह समोविदख्खिपदयासन । जइअवगिमसितुहिजअहहकिहहो सुहयासन ॥ २८ ॥ जइतुहरूविणकिणविपेत्र पाइणवेलविन तनजाणुंजिणपासतुह्म हतअंगीकरिअन । इयमहयचिअर्जन होइसातुहळहावण । रक्खंतहनियकित्तिणेयजुङइवहीरण ॥ ॥ २९ ॥ एवमहारिहजत्तदेवइअपवणमहसन । जंप्रणालिय गुणगहण तुम्हमुणिजणप्रणिसिद्धन । इयमइंपसियसु पासना हथंनणयपुरठि । इयमुणिवर सिरिअन्नयदेव विसवइप्राणिं दिअ ॥ ३० ॥ इतिश्रीस्थंननक पार्श्वनाथ स्तवनम् ॥ * ॥
॥ * ॥ अथ परकीसुत्र लि० ॥ * ॥ तित्थंकरेअ तित्थे । अतित्थसिद्धयतित्थसिद्धेय । सिंद्धेयजिणे यरिसी । महरिसिनाणंचवंदामि ॥१ जेयइमंगुणरयणसायर। मविराहिकणतिन्नसंसारा । तेमंगलंकरित्ता । अहमविश्राराह पानिमहो ॥ २॥ मममंगलमरिहंता। सिद्धासाहसयंचधम्मो
मुत्ती । अऊवयामद्दवंचेव ॥ ३॥ लोगंमिसंज
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रत्नसागर. याजकरंति । परमरिसिदेसियमुयारं । अहमविनवहितं । म हवयनच्चारणंकावं ॥४॥ सकिंतमहन्वयनच्चारणा । महवयनच्चा रणापंचविहापन्नत्ता ॥ राईनोयणबेरमहा (तंजहा) सवा उपाणाइवायावरमणं । सवामुसावाया-वेरमणं । सवा-श्र दन्नादाणावेरमणं । सबानमेहुणावेरमणं । सबानपरिग्गहा
वेरमणं । सबानराईनोयणाग्वेरमणं । तत्थइखलु पढमेनंतेम हवए पाणाइवायानवेरमणं ॥ सबंनंतेपाणाइवायपच्चरकामि । सेसुहमंवा बायरंवा तसंवा थावरंवा नेवसयं पाणेअइवाएका नेवन्नेहिं पाणेअइवायाविका पाणेअइवायंतेवि अन्नेनसमणु जाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए का एणं नकरोम नकारवेमी करतंपि अन्नं न समाजाणामि तस्सनंतेपडिक्वमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणंवोसरामि ॥ सेपाणाइवायाएचनविहेपन्नत्ते ॥ (तंजहा) दवन खित्त कालन जावन दबउणंपाणाइवाए उसुजीवनिकाएसु खित्तणं पाणा इवाए सयललोए कालणं पाणाइवाए दियावा राउवा नावनणं पाणाइवाए रागेणवा दोसेणवा जंपियमएइमस्सधम्मस्स केव लिपन्नत्तस्स अहिंसालक्खणस्स सञ्चाहिहियस्स विषयमूलस्स खंतीपहाणस्स अहिरमसोवलियस्स नवसमप्य नवस्स नववं अचेरगुत्तस्स अप्पयमाणस्स निक्खावित्तियस्स कुक्खीसंबलस्स निरग्गिसरणस्स संपक्खालियस्स चत्तदोसस्स गुणगाहियस्स निवियारस्स निवित्तीलरकणस्स पंचमहत्वयजुत्तस्स असंनिहि संचयस्स अविसंवाइयस्स संसार पारगामियस्स निवाणगमण पऊवसाण फलस्स पुर्वि अन्नाणयाए असवणयाए अवोहि ए अणनिगमेणं अनिगमेणवा पमाएणं रागदोसपडिव
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परकीसुत्र. छयाए वालयाए मोहयाए मंदयाए किड्डयाए तिगारब गरुयाए चनक्कसावगएणं पंचेंदियवसहेणं पडिपुन्ननारीयाए सायासोक्ख मणुपालयतेणं इहंवानवे अन्नेसुवानवग्गहणेसु पाणाइवान कनवा कारिनवा कीरंतोवा परोहिंसमणुना तंनिंदामी गरि हामी तिविहं तिविहेणं मणेणं बायाए कारणं अईयनिंदामि पडपन्नंसंबरेमि अणागयंपञ्चरकामि सबंपाणाइवायं जावजीवाए अणिस्सिनहिं नेवसयं पाणे अइवाएका नेवन्नेहिं पाणे अइवा याविका पाणेअइवायंतेवि अन्नेनसमणुजाणामि (तंजहा) अ रिहंतसक्खियं सिद्धसक्खियं साहुसक्खियं देवसक्खियं अप्प सक्खियं एवंहवई निक्खूवा निक्खूणीवा संजय विरय पडिहय पच्चक्खायपावकम्मे दियावा रानवा एगोवा परिसागडेवा. सुत्ते वा जागरमाणेवा एसखलु पाणाइवायस्स वेरमणे हिए सुहे खमे निस्सेसिए प्राणुगामिए पारगामिए सवेसिं पाणाणं सबे सिं नूयाणं सबेसिसत्ताणं अक्षणयाए असोयणयाए अजू रणयाए अतिप्पणयाए अपीडणयाए अपरियावणयाए अणुदवणयाए महत्थे महागुणे महाणुनावे महापुरिसा पचिन्ने परमरिसिदेसिएपसित्थे तंडक्खक्खयाए कम्मरकयाए मोक्खयाए बोहिलानाए संसारुत्तारणाए त्तिकट्ठ नवसंपऊ त्ताणं विहरामि पढमनंते महबए नवहिनामि सबाउपाणाइ वायानबेरमणं ॥१॥ अहावरेदोच्चेनंतमहबए मुसावायानवेरम णं । सबंनंतेमुसावायंपञ्चक्खामि । सेकोहावा लोहावा नयावा हासावा नेवसयं मुसंवएका नेवन्नेहिंमुसं वायाविका मुसंवा यंतेवि अन्नेनसमणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं म गणं वायाए कारणं नकरेमि नकारवेमि करतंपि अन्नंनसमणु
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रत्नसागर
जाणामि तस्सनंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पा वोसरामि । सेमुसावाएचन विहेपन्नत्ते ( तंजहा ) दव खित्त कालावणं मुसावाए सबदवेसु खित्तन मूसावाए लोए वा लोएवा काल मुसावाए दियावा राजेवा नावनणं मुसावा ए रागेणवादोसेवा जंपियमए इमस्सधम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स हिंसालक्खणस्स सच्चा हिडियस्स विषयमूलस्स खंतिपहाण स्स हिरण सुवलियम्स नवसमप्पनवस्स नवबंनचेरगुत्तस्स प्यमाणस्स निक्खावित्तियस्स कुक्खीसंबलस्स निरग्गिस रणस्स संपरकाज़ियस्स चत्तदोसस्स गुणगाहियस्स निब्बिया रस्स निवित्ती लक्खणस्स पंचमहबय जुत्तस्स संचयस्स विसंवाईयरस संसारपारगामियस्स निवाणगमण पवशाणफलस्स पुविन्नणयाए प्रसवणयाए बोहिए
संनिहि
निगमेणं अभिगमेणवा पमाएणं रागदोस पडिवद्वयाए वालयाए मोहयाए मंदयाए किड्डयाए तिगारवगरुयाए चन क्कसाच्योवगएणं पर्चेदियवसणं परिपुन्ननारियाए सायासोक्ख मणु पालयतेणं इहंवानवे अन्नसुवा जवग्गहणेसु मुसावा नासिोवा नासाविनवा नासिऊंतोवा परेहिंसुमन्नान तंनिं दामि गरिहामि तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं यं निंदामि पडुपन्नंसंबरेमि अणागयं पच्चक्खामि सर्वमुसावायं जा वीवाए प्रणिस्सिनहिं नेवसयंमुसंवएका नेवन्नेहिं मुसंवाया विका मुसंवायतेविन्नेनसमण जाणामि (तंजहा) अरिहंतस क्खियं सिद्धसक्खियं साहुसक्खियं देवसक्खियं प्रप्पसक्खियं एवं हवई निक्खुवानिक्खुणीवा संजय विरय पडिहय पञ्चक्खाय पावकम्मे दियावा राजवा एगनवा परसागडेवा सुत्तेवा जागरमांणे
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पक्खी सुत्र
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वा सखनुमुसावायस्स वेरमणे हिए सुहे खमे निस्सेसि श्राणु गामिए पारगामिए ससिपाषाणं सवेसिंनूयाणं सबैसिंजीवाणं सवेसिंसत्ताणं दुक्खणयार सोयायाए जूरणयाए अति पया पीडया परियावणयाए प्रणुद्दवणयाए महत्थे महागुणे महाणुभावे महापुरसाणुचिन्ने परमरिसिदेसिय सत्थे तंदुक्क्याए कम्मक्खयाए मोक्खयाए बोहिलानाए संसारु तारणाए तिकट्टु नवसंपत्ताणं विहरामि ॥ दोच्चेनंते महबए नव निमिधान मुसावायानवेरमणं ॥ २ ॥ ग्रहावरेतच्चेनंते महबए
दिन्नादाणा वेरमणं सर्वते अदिन्नादापच्चक्खामि ॥ सेगा मेवा नगरेवा रवा पंवा वहुंवा गुंवा थूलंवा चित्तमंतंवा चित्तमंतंवा नेवसयंत्रदिन्नंगिहिया नेवन्नेहिंत्र्यदिन्नंगि एहावि का प्रदिन्नंगिएहंतेवि अन्नेनसमणुजाणामि जावकीवाए तिवि हँ तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं नकरेमि नकारवेम करतंपि अन्नंन समणुजाणामि तस्समंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहा मावोसरामि दिन्नादाणेच विहे पन्नत्ते ( तंजहा ) दव खित्तो कालो नाव दवन दिन्नादाणे गहाण दिन्नादाणे गामेवा नगरेवा रमेवा काल दिन्नादाणे दियावा राजेवा भावनां प्रदिन्नादाणे रा गेवा दोसेवा जंपियमए इमस्सधम्मस्स केवल पन्नत्तस्स हिंसालक्खणस्स सच्चा हिडियस्स विषयमूलस्स खंतीपहाणस्स अहिर सुवलियम्स नवसमप्पनवस्स नवबंजचेरगुत्तस्स अप्प यमाणस्स भिरकावित्तियस्स कुक्खीसंबलस्स निरग्गिसरणस्स संपक्खालियस्स चत्तदोसस्स गुणगाहियस्स निधियारस्स नि वित्त लक्खणस्स पंचमहवयजुत्तस्स संनिहिसंचयस्स वि
धारणि दबेसु खित्तन
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रत्नसागर. संवाइयस्स संसारपारगामियस्स निवाणगमणपजावसाणफल स्स पुचिअन्नाणयाए असवणयाए अबोहिए अणनिगमेणं अ निगमेणवा पमाएणं रागदोसपमिवद्धयाए वालयाए मोहयाए में दयाए किड्डयाए तिगारबगरुपाए चनक्कसानवगएणं पंचेंदिय वसहेणं पडिपुन्न नारियाए सायासोक्खमणुपालयंतेणं इहवानवे अन्नसुवा नवग्गहणेसु अदिन्नादाणं गहियंवा गहावियंवा घिप्पं तंवा परोहिंसमणुन्नातंनिंदामि गरिहामि तिविहंतिविहेणं मणे एणं वायाए कारणं अईयं निंदामि पडुपन्नंसंबरोमि अणागयंपच्च क्खामि सबंनंतेप्रदिन्नादाणं जावजीवाए अणिस्सिहिं नेवस यंअदिन्नगिएहज्जा नेवन्नेहिं अदिन्नंगिएहाविका अदिएहगि एहंतेवि अन्नेनसमणुजाणामि (तंजहा) अरिहंतसक्खियं सिद्धस क्खियं साहुसक्खियं देवसक्खियं अप्पसक्खियं एवंहवई निक्खू वा निक्खूणीवा संजय विरय पमिहय पञ्चक्खायपावकम्मे दिया वा रानवा एगनवा परिसागवा सुत्तेवा जागरमाणेवा एसखल मेहुणस्सवेरमणे हिए सुहे खमे निस्सेसिए आणुगामिए पारगा मिए सबेसिंपाणाणं सबेसिनूयाणं सवेसिजीवाणं सबेसिसत्ताणं अक्खणयाए असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणयाए अपी डणयाए अपरिश्रावणयाए अणुदवणयाए महत्थे महागुणे म हाणुनावे महापुरिसाणचिन्ने परमरिसिदेसिएपसत्थे तंजक्ख क्खयाए कम्मक्खयाए मोक्खयाए बोहिलानाए संसारुत्तारणा ए त्तिकट्ट नवसंपऊत्ताणं विहरामि ॥ तच्चेनंतमहबएअनुठिन मिसबा अदिन्नादाणान्वेरमणं॥३॥ अहावरेचनत्थेनंतेमहबए मेहुणाग्वेरमणं सबंनंतेमेहुणं पञ्चक्खामि । सेदिबंवा माणुसं वा तिरिक्खजोणियंवा नेवसयं मेहुणंसेविका नेवन्नहिं मेहुणं
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पक्खी सुत्र. सेवाविमा मेहुणंसेवंतेवि अन्नेनसमणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं नकरेमि नकारवोमि करतंपी अन्नंन समणुजाणामि तस्सनंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणंवोसरामि ॥ सेमेहुणेचनविहेपन्नत्ते (तंजहा दव खित्तन कालने नाव दबनणंमेहुणे रूवेसुवा रूवसहग एसुवा खित्तनणंमेहुणे नढलोएवा अहोलोएवा तिरियलोएवा कालनणं मेहुणे दियावा राग्वा नावणं मेहुणे रागणवा दोसे एणवा जंपियमए इमस्सधम्मस्स केवलिपणत्तस्स अहिंसाल क्खणस्स सच्चाहिध्यिस्स विणयमूलस्स खंतीपहाणस्स अहिर न सुवलियस्स नवसमप्प नवस्स नवबंनचेरगुत्तस्स अप्पय माणस्स निक्खावित्तियस्स कुक्खीसंबलस्स निरग्गीसरणस्स संपक्खालियस्स चत्तदोसस्स गुणगाहियस्स निधियारस्स निधि त्तीलक्खणस्स पंचमहवय जुत्तस्स असंनिहि संचयस्स अ विसंवाहियस्स संसारपारगामियस्स निवाणगमण पऊवसाण फलस्स पुचिअन्नाणयाए असवणयाए अबोहीए अणनिगमेणं अनिगमेणवा पमाएणं रागदोषपडिवद्धयाए वालयाए मोहयाए मंदयाए किड्डयाए तिगारवगरुयाए चनकसा वगएणं पंचें दियवसहेणं पडिपुन्ननारियाए सायासोरक मणुपालयंतेणं इहं वानवे अन्नसुवा नवग्गहणेसु मेहुणंसेवियंवा सेवावियंवा से विजंतंवा परेहिंसमणुमा तंनिंदामि गरिहामि तिविहं तिवि हेणं मणेणं बायाए काएणं अइयं निंदामि पडुपन्नंसंबरोमि अ णागयं पञ्चक्खामि सबंमेहुणं जावजीवाए अणिस्सिनहिं नेव सयं मेहुणंसविका नेवन्नेहिं मेहुणं सेवाविजा मेहुणं सेवतेवि अन्नेन समणुजाणामि ( तंजहा ) अरिहंतसक्खियं सिद्धस
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रत्नसागर. क्खियं साहुसक्खियं देवसक्खियं अप्पसक्खियं एवंहवइ नि क्खूवा निक्खूणीवा संजयविरयपमिहय पच्चक्खाय पावकम्मे दियावा राग्वा एगोवा परिसागवा सुत्तेवा जागरमाणेवा एस खलु मेहुणस्सवेरमणे हिए सुहे खमे निस्सेसिए प्राणुगामिए पारगामिए सवेसिं पाणाणं सवेसिं नूयाणं सवेसिंजीवाणं सवेसिं सत्ताणं अदुक्खणयाए असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणया ए अपीडणयाए अपरिश्रावणयाए अणुदवणयाए महत्थे महागु णे महाणुनावे महापुरिसाणुचिो परमरिसिदेसिएपसित्थे तंदु क्खक्खयाए कम्मक्खयाए मोक्खयाए बोहिलानाए संसारु त्तारणाए त्तिकट्ट नवसंपऊत्ताणं विहरामि॥ चतत्थेनंते महबए नवनिमिसवान मेहुणा वेरमणं ॥४॥अहावरेपंचमेनंतमहत्व ए परिग्गहा वेरमणं सबंनंतेपरिग्गहं पच्चक्खामि सेअप्पंवा ब हुंवा अणुंवा थूलंवा चित्तमंतंवा अचित्तमंतंवा नेवसयं परि ग्गहं परिगिहिजा नेवन्नहिं परिग्गहं परिगिएहाविजा परि ग्गहं गिएहंतेवि अन्ननसमजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं नकरोमि नकारवेमि करतंपि अन्नंनसमणुजाणामि तस्सनंते पमिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणंवोसरामि। सेपरिग्गहेचबिहेपन्नत्ते (तंजहा)दव खि त्त काल नावन दवनणंपरिग्गहे सचित्ताचित्तमीसेसु दवेसु खि त्तनणं परिग्गहे गामेसुवा नगरेसुवा रसुवा कालनणं परिग्गहे दियावा राजवा नावनणंपरिग्गहे अप्पग्घेवा महग्घेवा रागणवा दोसेणवा जंपियमए इमस्स धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स अहिंसात क्खणस्स सञ्चाहिध्यिस्स विणयमूलस्स खंतिपहाणस्स अहिरन्न सुवन्नियस्स नवसमप्पत्नवस्स नवबंन अप्पय निक्खावित्तिय
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पक्खी सुत्र
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स्स कुक्खी संबलस्स निरग्गीसरणस्स संपक्खालियरस चत्तदोस स्स गुणगाहियस्स निवियारस्स निबत्तीलक्खणस्स पंचमहाय जुत्तस्स संनिहिसंचयस्स विसंवाइयस्स संसारपारगामिय स्स निवांणगमणपवसाणफलस्स पुविन्नणयाए प्रसवण या बोहिनिगमेणं अभिगमेणवा पमाणं रागदोसप डिबद्धयाए वालयाए मोहयाए मंदयाए किड्डयाए तिगाव गरु आए चक्कसानवगणं पंचेंद्रियवसणं पडिपुन्न नारियाए सा यासोक्ख मणुपालयंतेणं इहंवानवेन्नेसुवा जवग्गहणेसु परि हो गहिवा गाविनवा घिप्पंतोवा परेहिंसमणुन्नान तंनिंदा मि गरिहामि तिविहतिविहेणं मणेणं वायाए कारणं निंदा मि पडुप बरेमिणागयं पच्चक्खामि सर्व्वपरिग्गहं जावजी वाए णिस्सिन हिं नेवसयं परिग्गहं परिगिरिहा नेवन्नेहिंप रिग्गहं परिगिएहाविका परिग्गहं परिगिएहंतेवि अन्नेनसमणु जाणामि ( तंजहा ) ॥ रिहंतसक्खियं सिद्धसक्खियं साहुस क्खियं देवसक्खियं प्रप्पसक्खियं एवंहवइनिक्खूवा निक्खुणी वा संजय विरय पंडिहय पञ्चक्खाय पावकम्मे दियावा राजेवा एगोवा परिसागवा सुत्तेवा जागरमाणेवा एसखलुपरिग्गहस्सवे रमणे हिए सुहे खमे निस्सेसिए णुगामिए पारगामिए स बेसिंपाणाणं सबेसिंनूयाणं सधेसिंजीवाणं सधेसिंसत्ताणं क्या सोयणयाए जूरणयाए प्रतिप्पाणयाए प्रपीड या परियावणयाए प्रवणयास महत्थे महागुणे महा जावे महापुरिसाणुचिन्ने परमरिसिदेसिए पसत्थे तंदुक्खक्ख याए कम्मक्खयाए मोक्खयाए बोहिलानाए संसारुत्तारणाए त्तिकट्ट नवसंपऊत्ताणंविहरामि ॥ पंचमेनंते महवए नवनिमि
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रत्नसागर. सबा परिग्गहा-वेरमणं ॥५॥ अहावरे बहेनंतेवए राईनोयणा व वेरमणं सबंनंतेराईनोयणं पचक्खामि ॥ सेअसणंवा पाणंवा खाइमंवा साइमंवा नेवसयं राई मुंजिका नेवन्नेहिं राइं जुजावि जा राइंगँजंतेवि अन्नेनसमणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं नकरेमि नकारवेमि करतंपि अन्नंनसमणुजाणामि तस्सनंते पडिक्वमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं बोसरामि । सेराईनोयणेचबिहेपन्नत्ते (तंजहा) दवन खित्त काल नावन दवनणं राईनोयणे असणेवा पाणेवा खाइ मेवा साइमेवा खित्तनणं राईनोयणे समयखित्ते कालणं राईनो यणे दियावा रानवा नावनणं राईनोयणे तिक्खेवा कडुएवा कसा इलेवा अंबिलेवा महुरेवा लवणेवा रागणवा दोसेणवा जंपिय मए इमस्स धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स अहिंसालक्खणस्स सच्चा हिध्यिस्स विणयमूलस्स खंतीपहाणस्स अहिरन्नसुवलियस्स नवसमप्पनवस्स नवबनचेरगुत्तस्स अप्पयमाणस्स निक्खावि त्तियस्स कुक्खीसंबलस्स निरग्गिसरणस्स संपक्खालियस्स च त्तदोसस्स गुणगाहियस्स निवियारस्स निवित्तीलक्खणस्स पं चमहत्वयजुत्तस्स असंनिहिसंचयस्स अविसंवाइयस्स सं सारपारगामियस्स निवाणगमणपऊवसाणफलस्स पुर्विअन्ना णयाए असवणयाए अबोहिए अणनिगमेणं अनिगमेणवा पमाएणं रागदोसपमिबद्धयाए बालयाए मोहयाए मंदयाए कि ड्डयाए तिगारव गराए चनक्कसाठवगएणं पंचेंदियवसहेणं पडिपुन्ननारियाए सायासोक्खमणुपालयंतेणं इहवानवेन्नेसुवा नवग्गहणेसु राईनोयणं नुत्तंवा नुंजावियंवा मुंजंतंवा परेहिंस मान्नान तंमिंदामि गरिहामि तिविहं तिविहेणं मणेणंवायाए
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PEDIA
___पक्खी सुत्र. कारणं अईयं निंदामि पडुपन्नंसंबरेमि अणागयं पञ्चक्खामि स वं राईनोयणं जावजीवाए अणिस्सहिं नेवसयं राइंन्तुंजि आ नेवन्नेहिराईंग्नुंजाविता राइंगँजतेवि अन्नेनसमणुजाणा मि (तंजहा) अरिहंतसक्खियं सिद्धसक्खियं साहुसक्खियं दे वसक्खियं अप्पसक्खियं एवंहवइ निक्खूवा निरकूणीवा संज य विरय पमिहय पच्चक्खायपावकम्मे दियावा रानवा एगोवा प रसागवा सुत्तेवा जागरमाणेवा एसखलु राईनोयणस्सवेरमणे हिए सुहे खमे निस्सेसिए प्राणुगामिए पारगामिए सबेसिंपाणा णं सबेसिनूयाणं सबेसिंजीवाणं सबेसिसत्ताणं अक्खणयाए असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणयाए अपीडणयाए अपरि यावणयाए अणुद्दवणयाए महत्थेमहागुणे महाणुनावे महापु रिसाणुचिन्हे परमरिसिदेसिएपसत्थे तंऽक्खक्खयाए कम्मरक याए मोक्खयाए बोहिलानाए संसारुत्तारणाए त्तिक? नवसंप आत्ताणं विरामि ॥ उठेनंतेवए नवनिमि सबा राईनोयणावे रमणं॥६॥इच्चेइयाइंपंचमहत्वयाईराईनोयणवेरमणमाइं। अत्त हियहाए नवसंपऊित्ताणंविहरामि॥१॥ अप्पसत्थायजेजोगा। प रिणामायदारुणा। पाणाइवायस्स वेरमणे। एसवुत्तेअइक्कमे ॥२॥ तिब रागायजानासा । तिवदोसातहेवय । मुसावायस्सवेरमणे । एसवुत्ते अइक्कमे ॥३॥नग्गहंचप्रजाइत्ता। अविदिन्नेवनग्गहे। अदिन्नादाणस्सवेरमणे । एसवुत्तेअइक्वमे ॥ ४ ॥ सद्दारूवारसागं धा । फासाणंपवियारणा । मेहुणस्सवेरमणे । एसवुत्तेअइकमे ॥५॥इलामुडायगेहीय । कंखालोनेयदारुणे । परिग्गहस्सवे रमणे । एसवुत्तेअइक्कमे ॥६॥ अयमत्तेबाहारे । सूरखित्तेयसं किए । राईनोयणस्सवेरमणे । एसवुत्तेअइक्कमे ॥ ६॥ दंसणना
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रत्नसागर. णचरित्ते । अविरहित्तानिसमणधम्मे । पढमंवयमणुरक्खे । विरयामोपाणाइवायान ॥१॥ दसपनाणचरित्ते । अविराहित्ता हिनसमणधम्मे। बीयंवयमणुरक्खे । बिरयामोमुसावाया॥२॥ दसणनाणचरित्ते । अविरहित्ताहिनसमणधम्मे । तइयंवयम रक्खे । विरयामोअदिन्नादाणा ॥३॥ दंसणनाणचरित्ते । अ विराहिताछिनसमणधम्मे । चनत्थंवयमणुरक्खे । विरयामोमे हुणान॥४॥दसणनाणचरित्ते । अविराहित्तासिमणधम्मे । पंचमवयमारक्खे। विरयामोपरिग्गहान ॥५॥ दंसणनाणच रित्ते। अविरहित्तासिनसमणधम्मे । वयमणुरक्खे । विर यामोराईनोयणा ॥६॥ प्रालयविहारसमिळ । जुत्तोगुत्तोहि
समणधम्मे । पढमंवयमणुरक्खे। विरयामोपाणाइवाया॥१॥ श्रालयविहारसमि । जुत्तोगुत्तोधिनसमणधम्मे । वीयंवयमणु रक्खे । विरयामोमुसावाया ॥२॥ प्रालयविहारसमि। जुत्तोगुत्तोहिसमणधम्मे । तइयंवयमणुरक्खे । विरयामोअदि नादाणान ॥३॥ आलयविहारसमिळ । जुत्तोगुत्तोनिसमण धम्मे । चनत्थंवयमणुरक्खे । विरयामोमेहुणा ॥४॥पाल यविहारसमि। जुत्तोगुत्तोछिनसमणधम्मे पंचमवयमणुरक्खे । विरयामोपरिग्गहा ॥५॥ प्रालयविहारसमि । जुत्तोगुत्तो हिसमणधम्मे । ध्वयमणुरक्खे । विरयामोराईनोयपान ॥६ ॥श्रालयविहारसमिळ । जुत्तोगुत्तोनिसमणधम्मे । ति विहेणपमिकतो । रक्खामिमहत्वएपंच ॥७॥सावाजोगमेगं मिबत्तंएगमेवप्रमाणं । परिवहतोगुत्तो। रक्खामिमहबएपंच ॥१॥अणवऊजोगमेग। सम्मत्तंएगमेवनाणंतु । उवसंपन्नोजुत्तो रक्खामिमहबएपंच ॥२॥दोचेवरागदोसे । दुन्नियमाणाइप्रहरु
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पक्खीसुत्र.
हाई। परिवऊंतागुत्तो । रक्खामिमहबएपंच ॥ ३ ॥ डुविहंचरित्तध म्मं । पुन्नियमाणाइधम्मसुक्काई । नवसंपन्नोजुत्तो । रक्खाभिमहब पंच ॥ ४ ॥ किन्हानीलाकान । तिन्निले साप्पसत्थान । परि वतोगुत्तो । रक्खामिमहबएपंच ॥ ५ ॥ तेपासुक्का । तिन्नि यलेसान सुप्पसत्थान । नवसंपन्नोजुत्तो । रक्खामिमहा पंच ॥ ६ ॥ मासामणसञ्च्चविक | वायासच्चेणकरणसच्चेण । तिबि हे विसच्चविक । रक्खामि महबएपंच ॥ ७ ॥ चत्तारियऽहसि का । चनरोसन्नातह कसायाय । परिवतोगुत्तो । रक्खामि महबएपंच ॥ ८ ॥ चत्तारियसुहसिका । चनविहंसंबरं समाहिं च । नवसंपन्नोजुत्तो । रक्खामि महबएपंच ॥ ९ ॥ पंचेवयकामगु थे। पंचैवय न्हवे महादोसे । परवतोगुत्तो । रक्खामिमहब एपंच ॥ १० ॥ पंचेंद्रियसंवरणं । तत्तोपंचविहसंवसझायं । नव संपन्नोजुत्तो । रक्खामिमहबएपंच ॥ ११ ॥ बजीवनिकायवहं पियासा प्पसत्थान । परिवतो गुत्तो । रक्खामि मह
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पंच ॥ १२ ॥ विमतिरयं । वशंपियबवितवोकम्मं । नवसंपन्नो जुत्तो । रक्खामि महबएपंच ॥ १३ ॥ सत्तनयठाणाई । सत्तविहंचेवनाणविनंगं । परिवत्तो गुत्तो । रक्खामिमहव एपंच ॥ १४ ॥ पिंसणपासण । नग्गहसतिक्कया महशय णा । नवसंपन्नोजुत्तो । रक्खामि महबएपंच ॥ १५ ॥ मय ठाणाईं । व्यकम्माइतेसिवंधंच । परिवऊंतो गुत्तो रक्खामि महापंच ॥ १६ ॥ व्यपवयणमाया । दिट्ठाग्रहविहनिष्ठि अहिं । नवसंपन्नोजुत्तो । रक्खामि महवएपंच ॥ १७ ॥ नवपाव नियालाई । संसारत्थाय नवविहाजीवा । परिवतोगुत्तो । रक्खामि महब पंच ॥ १८ ॥ नवबंजचेरगुत्तो । दुनवविह
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रत्नसागर. नचेरपमिसुद्धं । नवसंपन्नोजुत्तो । रक्खामिमहवएपंच ॥ १९ ॥ .. नवघायंचदसविहं । असंबरंतहयसंकिलेसंच । परिवऊंतोगुत्तो। रक्खामिमहत्वएपंच ॥ २० ॥ चित्तसमाहिहाणा । दसचेवदसा उसमणधम्मच । नवसंपन्नोजुत्तो रक्खामिमहत्वएपंच ॥ २१ ॥ प्रासायणंचसबं । तिगुणंइक्वारसंविवऊतो । उवसंपन्नोजुत्तो । रक्खामिमहबएपंच ॥२२॥एवंतिदंमविर । तिगरणसुद्धोतिसल्ल निसल्लो । तिविहेणपमिक्वंतो। रक्खामिमहत्वएपंच ॥ २३ ॥ इच्चेयं महत्वयनच्चारणं थिरत्तं सल्लूहरणं धिइबलंवसा साहणछो पाव निवारणं निकायणा नावविसोही पमाग्गहणं निहिणाराह पागुणाणं संबरजोगो पसत्थमाणोवउत्तया जुत्तयानाणे परमझो उत्तमहो एसतित्थंकरेइ रागदोसमहणेहिं देसिपवयणस्ससारो उजीवनिकायसंजमं नवसंवसिन तिबुक्कसक्वयंगणं अनुवगया नमोत्थुते सिद्धबुद्धमुत्तनीरय निस्संगमाणमूरण गुणरयण सायर मणंतमप्पमे नमोत्थू ते महइ महावीर वडमाण सामिस्स नमोत्थू ते अरिहन नमोत्थूते जगवन (तिकट्ठ) इच्चेसा खलुमहत्वय उच्चा रणाकया इलामोसुत्तकित्तणं काळं नमोतेसिंखमासमणाणं जेहिं इमंवाइयं विहमावस्सयनगवंतं(तंजहा) सामाइयं १ चनवीस स्थन २ वंदणयं ३ पमिक्कमणं ४ कावसग्गो ५ पञ्चक्खाणं ६ सवेहंपिएयमि बिहे श्रावस्सए नगवंते ससुत्ते सत्थे सग्गथे सन्नित्तीए ससंगहणीए जेगुणावा जावावा अरिहंतेहिं नग वंतेहिं पन्नत्तावा परूवियावा तेनावेसद्दहामो पत्तियामो रोएमो फासेमो पालेमो अणपालेमो तेनावेसद्दहंतेहिं पत्तयंतेहिं रोयं तेहिं फासंतेहिं पालंतहिं अणुपालंतेहिं (अंतोपरकरस ) जंवाइयं पढियं परियट्टियं पुछियं अणुपहियं अणुपालियं तं इक्ख
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पक्खी सुत्र. क्खयाए कम्मक्खयाए मोक्खयाए बोहिलानाए संसारुत्तार पाए त्तिकट्ठ नवसंपऊत्ताणं विहरामी (अंतोपक्खस्स) जनवाइ यं नपढियं नपरियट्टियं नपुत्रियं नाणुपहियं नाणुपालियं संते वले संतेवीरिए संतेपुरसकारपरक्कमे तस्सालोएमो पडिक्कमा मोनिंदामो गरिहामो विहेमो विसोहेमो प्रकरणयाए अनुमो अहारिहंतवोकम्मं पायबित्तंपडिवलामो ॥ तस्समिहामिछक्क डं॥ नमोतेसिंखमासमणाणं जेहंइमंवाइयं अंगवाहिरियं नक्का लियं नगवंतं तंजहा दसवेयालियं कप्पियाकप्पियं चुल्लकप्प सुयं महाकप्पसुयं नववाइयं रायप्पसेणियं जीवानिगमो पन्नव णा महापन्नवणा नंदीअणुनंगदाराइं देविंदबन तंउलवेयालियं चंदाविजयं पमायप्पमायं पोरसिमंडलं मंगलप्पवेसो गणिवि मा विजाचरणविणिबन जाणविनत्ती अाणविनत्ती प्रायवि सोही मरणविसोही संलेहणासुयं वीयरागसुयं विहारकप्पो च रणविसोही प्रानरपच्चक्खाणं महापच्चक्खाणं सबेहिंपिएयंमि अंगवाहिरिएनकालिए नगवंते ससुत्ते सत्थेसग्गंथे सन्नित्ती ए ससंगहणीए जेगुणावा नावावा अरिहंतेहिं नगवंतेहिं पन्नत्ता वा परूवियावा तेनावे सद्दहामो पत्तियामो रोएमो फासेमो पा लेमो अणुपालेमो ते नावेसद्दहंतेहिं पत्तियंतेहिं रोइंतेहिं फा संतेहिं पालतेहिं अणुपालतेहिं (अंतोपरकस्स ) जंवाइयं पढियं परियट्रियं पुत्रियं अणुपेहियं अणुपालियं तंदुक्खक्खयाए कम्मक्खयाए मोक्खयाए वोहिलानाए संसारुत्तारणाए त्तिकट्ठ नबसंपऊत्ताणं विहरामि (अंतोपक्खस्स) जनवाईअं नपढियं न परियहियं नपुत्रियं नाणुपेहियं नाणुपालियं संतेवले संतेवी रिए संतेपुरसक्कारपरक्कमे तस्सालोएमो पडिकमामो निंदा
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रत्नसागर. मो गरिहामो विउट्टेमो बिसोहेमो अकरणयाए अनुछेमो अहा रिहंतवोकम्मं पायबित्तंपमिवजामो ॥ तस्समिठामिउक्कडं ॥ ॥ नमोतेसिंखमासमणाणं जेहिंइमंवाइयं अंगवाहरियं कालि यं जगवंतं (तंजहा) उत्तरायणाइं दसानकप्पो ववहारो इसि नासियाइं निसीहं महानिसीहं जंबूद्दीवपन्नत्ती सूरपन्नत्ती चंद पन्नत्ती दीवसागरपन्नत्ती खुड्डियाविमाणपविनत्ती महल्लियावि माणपविनत्ती अंगचूलीयाए वंगचूलीयाए. विवाहचूलीयाए अरणोविवाए वरुणोविवाए गरुलोविवाए वेसमणोविवाए वेलं धरोविवाए देविंदोविवाए नछाणसुए समुघाणसुए नागपरियाव लियाणं निरयावलीयाणं कप्पियान कप्पवडिंसिया पुप्फि या पुष्फचूलिया वाहीदसा आसीविसनावणा दिछीविस जावणान चारणसमणनावणा महासुविणनावणाने तेअग्गि निसग्गाणं सबेहिंपिएयंमि अंगवाहिरए कालिए नगवंते ससुत्ते सप्रत्थे सग्गथे सन्नित्तीए ससंगहिणीए जेगुणावा नावावा अरिहंतेहिं नगवंतेहिं पन्नत्तावा परूवियावा तेनावे सहहामो प त्तियामो रोएमो फासेमो पालेमो अणुपालेमो तेनावेसद्दहतेहिं पत्तहिंतेहिं रोयंतेहिं फासंतेहिं पालतेहिं अणुपालंतेहिं ( अंतो पक्खस्स ) जंवाइयं पढियं परियहियं पुछियं अणुपेहियं अणु पालियं तंदुक्खक्खयाए कम्मक्खयाए मोक्खयाए वोहिलाना ए संसारुत्तारणाए त्तिकद्दू नवसंपऊत्ताणं विहरामि ( अंतोप क्खस्स ) जनवाइयं नपढियं नपरािट्टयं नपुत्रियं नाणुपेहियं नाणुपालियं संतेवले संतेवीरिए संतेपुरसक्वारपरक्कमे तस्सा लोएमो पमिकमामो निंदामो गरिहामो विनट्टेमो विसोहेमो अकरणयाए अनुमो अहारिहंतवोकम्मं पायबित्तं पमिवजा
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• पक्खी सुत्र. मो तस्समिबामिकडं ॥ नमोतेसिंखमासमणाणं जेहिंइमंवा इयं ज्वालसंगं गणिपिगं नगवंतं (तंजहा) आयारो सूअग डोहाणांग समवा विवाहपन्नत्ती नायाधम्मकहाननवासगदसा • अंतगडदसा अणुत्तरोववाइदसान पन्हावागरणं विवागसु यं दिध्विान सबेहिपि एयंमि ज्वालसंगं गणिपिमगं नगवतेहिं पन्नत्तावा परूवियावा तेनावे सद्दहामो पत्तियामो रोऐमो फा सेमो पालेमो अणुपालेमो तेनावे सदहंतेहिं पत्तियंतेहिं रोयते हिं फासंतेहिं पालंतेहिं अणुपालंतेहिं (अंतोपक्खस्स) जंवाइ यं पढियं परियहियं पुखियं अणुपहियं अणुपालियं तंउक्ख क्खयाए कम्मक्खयाए मोक्खयाए वोहिलानाए संसारुत्तारणा ए तिकट्ठ नवसंपजित्ताणंविहरामि (अंतोपक्खस्स) जं नवाइयं न पढियं न परियट्टियं न पुखियं नाणुपेहियं नाणुपालियं संतेव ले संतेवीरिए संतेपुरसक्वार परिक्कमे तस्सअलोएमो पडि कमामो निंदामो गरिहामो विहेमो विसोहेमो अकरणयाए अ नमो अहारिहंतवोकम्मं पायबित्तंपडिवङामो तस्समिना मि उक्कडं ॥ नमो तेसिंखमासमणाणं जेहिंइमंवाइयं ज्वाल संगं गणिपिडगं नगवंतं सम्मं काएण फासंति पालति पूरंति तीरंति किहति सम्मंश्राणाए अाराहति अहंचनाराहोम त स्समिठामि उकडं ॥ सुयदेवया नगवई । नाणावरणीय क म्मसंघायं । तेसंखवेनसययं । जेसंसुयसायरेनत्ति १ इतिश्री पाक्षिकसूत्रं समाप्तं ॥ * ॥
॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ पालिकखामणा ॥ * ॥ ॥ ॥ इबामिखमासमणो पियंचमे जंने हहाणं तुहाणं
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रत्नसागर. अप्पायंकाणं अनग्ग जोगाणं सुबयाणं सायरिय नवशायाणं नाणेणं देसणेणं चरित्तर्ण तवसाअप्पाणं नावेमाणाणं वहुसुन्नेणने दिवसो पक्खो चोमासियो संवचरित्रो वइतो अन्नोयनेकल्लाणणं पजु वहिन सिरसा मणसा मत्थएणवंदामि तुनेहिंसम्म । इतिगुरु वचनं ॥ इडामिखमासमणो पुविंचेइयाइं वंदित्ता नमंसित्ता तुप्लेणं पायमूले विहरमाणेणं जेकेई बहुदेवसिया साहुणोदिछा सम गावा गामाणुगामइक माणावा रायणिया संपुढति उमराय णिया वंदंति अऊयावंदंति अऊयावंदंति सावयावंदंति सावयाच्वंदति अहंपिनिसलो निकसा तिकट्ठ सिरसा मण सा मत्थएणवंदामि ॥ इतिशिष्यसाधू वचनं ॥ इहां गुरुववचन अहमविवंदामेवि चेइयाइं ॥ २ ॥ अनुग्जिामि तुनेणं संतियं अहाकप्पंवा वत्थंवा पमिग्गहंवा कंबलंवा पायपुढणंवा रजहर एवा अक्खरंवा पायंवा गाहंवा सिलोगंवा अवा हेवा पसि एंवा वागरणंवा तुष्नेवि यत्तेणंदिन्नं मएप्रविणए अपमिडियं ॥ तस्समिबामि उक्कम ॥ इतिसाधुवचनं ॥ ॥ इहां प्राय रियसंतियं ॥ इति गुरुवाक्यं ॥ २॥ इहामि खमासमणो अहमविपुवाई कयाइंच मेकियकम्माइं आयारमंतरे विणयमं तरे सेवि सेवाविन अवग्रहिन सारिने वारि चोइ पडिचो इन वियत्तामे पडिचोयणा नवहिनहिं तुनणं तवतेयसिरिए इमाउचानरंतसंसारकंतारासाहस नित्थरिस्सामि तिकट्ठ सिर सा मणसा मत्थएणवंदामि ॥ इति शिष्यवचनं ॥ इहाचार्यव चनं नित्थारगपारगाहोह ॥ इति श्रीपालिकखामणकानि॥2॥
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सातेस्मरण. ॥ * ॥अथ सातेस्मरणस्तोत्र महाप्रनाविक ॥ * ॥ .॥ ॥अजियंजिप्रसवनयं । संतिंच पसंत सबगयपावं । जयगुरुसं तिगुणकरे । दोविजिणवरेपणिवयामि ॥१॥गाहा ॥ ववगयमंगुलजावे। तेहविनलतवनिम्मलसहावे। निरुवममहप्पनावे।थोसामिसुदिउसनावे॥२॥ गाहा ॥ सबमुक्खप्पसंतिणं । सबपावप्पसंतिणं । सयाप्रजिय संतिणं । नमो अजियसंतिणं ॥३॥ सिलोगो॥अजियजिणसुहपवत्तणं । तवपुरिसुत्तमनाम कित्तणं । तहयधिश्मइपवत्तणं । तवयजिणुत्तमसंतिकित्तणं ॥४॥मागहिआ॥ किरिश्राविहिसंचिय कम्मकिलेस विमुक्खयरं । अजियंनिचियंच गुणेहि महामुणिसिधिगयं । अजियस्सय संति महामुणिणोवित्र संतिअरं । सययं म मणिबुइकारणयंचनमंसणिणं ॥ ५॥ आलिंगणिकं ॥ पुरिसाजइ5 क्खवारणं । जश्यविमग्गह सुक्खकारणं । अजियं संतिं च नावन । अन्न यकरे सरणंपवाहा ॥ ६॥ मागहिआ॥ अरइरइ तिमिरविरहिय । मुव रय जरमरणं । सुर असुर गरुड नुअगवइ । पयय पणिवश्यं । अजिय महमविय सुनयनयनिनण मन्नयकरं । सरणमुवसरिअ जुविदिविऊमहियं सययमुवणमे ॥७॥ संगययं ॥ तंचजिणुत्तम मुत्तमणित्तमसत्तधरं । अऊव मद्दव खंतिविमुत्ति समाहिनिहिं । संतिअरंपणमामि दमुत्तमतित्थयरं । सं तिमुणीममसंतिसमाहिवरंदिसन ॥८॥सोवाणयं ॥ सावत्थिपुवपत्थिवंचवर हत्थि मत्थयपसत्तवित्थिणसंथियं थिरसरिजवळ । भयगललीलाय माणव रगंधहत्थिपत्थाणपवित्रं । संथवारिहं हत्थिहत्थवाहुं । धंतकणगरुअगनि रुवहयपिंजरं । पवरलक्खणोवचित्र सोमचारुरूवं । सुइमुहमणानिराम परम रमणिऊवरदेवडंहि । निनायमहुरयरयसुहगिरं ॥९॥ वेढन ॥ अजिअंजिया रिगणं । जिसवनयंत्रवोहरिन । पणमामिअहंपयन । पावंपसमेनमेजयवं ॥१०॥ रासानुधन ॥ कुरुजणवयहत्थिणानर । नरीसरोपढमं । तन्महा चकवट्टिनोए। महप्पन्नावो । जोवावत्तरिपुरवरसहस्स । वरणगरणिगमजण वयवई । वत्तीसारायवरसहस्साणजायमग्गो । चनदसवररयण नवमहानिहि चनसहिसहस्सपवरजुवईण सुन्दरवई । चुलसीहयगयरहसयसहस्ससामी उन्न वश्गामकोमिसामी । आसी जो जारहम्मिनयवं ॥ ११॥ वेढन ॥ तंसंतिसंति
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रत्नसागर. अरं । संतिएहं सवन्नया । संतिथुणामिजिणं संतिविहेन्मे ॥१२॥ रासाणंदियनं इख्खागविदेहनरीसर नरवसहामुणिवसहा । नवसारयससिसकलाणण विग यतमा विहुअरया । अजियन्तमतेप्रगुणेहिमहामुणि अमिअबला विनलकु ला। पणमामितेनवनयमूरण जगसरणाममसरणं ॥१३॥ चित्तलेहा ॥ देव दाणबिंदचंदसूर वंदहन्तुजिछपरम । लहरूवधंतरुप्पपट्टसेय सुघनिधिधव ल। दंतपंति संतिसत्ति कित्तिमुत्ति जुत्ति गुत्ति पवर । दित्ततेयबिंदधेयसवलोय जाविअप्पन्नावणे । पइसमेसमाहिं ॥ १४ ॥ नारायन ॥ विमलससिक लाइरेअ सोमं । वितिमिरसूरकलाइरेअतेयं । तिप्रसवईगणाइरेअरूवं । धर णीधरपवराइरेअसारं ॥१५॥ कुसुमलया॥ सत्तेय सयाजियं । सारी रेय बले अजिअं । तवसंजमेय अजिअं । एसथुणामि जिण मजिअं ॥१६॥ नुअंगपरिरिंगिअं॥सोमगुणेहिं पावइनतं नवसरयससि । तय गुणहिं पावर नतं नवसरयरवि । रूव गुणेहिं पावश्नतं तियसगणवई । सारगुणेहिं पावइन तं धरणिधरवई ॥ १७ ॥ खिजिअयं ॥ तित्थवरपवत्तमं तमरयरहिनं । धीरजण थुप्रचिअं चुअकलिकलुसं । संतिसुहपवत्तयं तिगरणपयन । संतिमहंमहामुणिं सरणमुवणमे ॥ १८ ॥ ललियअं ॥ विणणय सिरर इअंजलि रिसिगुणसंथुअंथिमिश्र। विबुहाहिव धणवइनरवइ । थुप्रमहि अचिअंबहुसो । अइरुग्गय सरयदिवायर । समहिअ सप्पनंतवसा । गयणं गणविअरण । समुइन चारण वंदिअंसिरसा ॥ १९ ॥ किसलयमाला ॥ असुरगरुलपरिबदि । किन्नरोरेगनमसि । देवकोमिसयसंथुधे । समण संघपरिवंदिअं॥२०॥ सुमुहं ॥ अन्नयं अणहं अरयं अरुणं। अजियं अजियं पयनपणमे ॥ २१॥ बिविलसियं ॥ आगयावरबिमाणदिवकणग रहतुरय पहकरसइहिंहुलियं । ससंनमोरयणखुनिअलिअचलकुंमलं । गयतिरीड सोहंतमलिमाला॥२२॥ वेढन॥ जंसुरसंघासासुरसंघा। वेरविनत्तानत्तिसुनु त्ता। आयरनूसिअसनमर्पिमिश्र। मुहसुविमित्र सबबलोघा । उत्तमकंचणर यणपरूवित्र। नासुरनूसणनासुरिअंगा। गायसमोणयनत्तिवसागय । पंज लिपेसिअसीसपणामा ॥ २३॥ रयणमाला ॥वंदिऊणथोऊणतोजिणं । ति गुणमेवय पुणोपयाहिणं । पणमिकणयजिणंसुरासुरा । पमुइया सनवणार
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सातेस्मरणतोगया॥ २४ ॥ खित्तयं ॥ तं महामुणिमहंपिपंजली। रागदोसनयमोहवडि अं। देवदाणवनरिंदवंदिगं । संतिमुत्तममहातवंनमे ॥ २५ ॥ खित्तयं ॥ अंबर रंतर बियारणियाहिं । ललियहंसवहुगामिणिश्राहि । पीणसोणित्थणसालणि
आहि । सकलकमलदलनोयाणिआहि ॥ २६ ॥ दीवयं ॥ पीणनिरंतरथणनर बिणमिअगायलयाहिं । मणिकंचणपसिढिलमहल सोहियसोणितडाहिं । वर खिंखिणि नेर सतिलय वलय विनूसणिग्राहिं । रयकर चनर मनोहर सुंदर दंसणिआहिं ॥ २७॥ चित्तक्खरा ॥ देवसुंदरीहिं पायवंदित्राहि वैदिप्रायज स्सतेसुविक्कमाकमा। अप्पणोनिलाडएहि मंमणोड्डणप्पगारएहि केहिकेहिंवी । अवंगतिलयपत्तलेह नामएहिं चिल्लएहिंसंगयंगयाहि । नत्तिसन्निविहिवंदणाग याहिं हुं तितेवंदित्रा पुणोपुणो ॥२८॥ नाराय॥ तमहंजिणचंदं । अजिअं जिअमोहं । धुप्रसवकिलेसं। पयपणमामि ॥२९॥ नंदिअयं ॥थुअवंदि अस्सा। रिसिगण देवगणेहिं । तोदेवबहुहिं । पयपणमिअस्सा । जस्सजगुत्त मसासणयस्सा । जत्तिवसागयपिंमियाहि । देववरवरसाबहुआहिं । सुरवररइ गुणपंमिअयाहिं ॥३०॥जामुरिअं ॥ वंससद्दतंतितालमेलए। तिमखरानि राम सदमीसएकएअ । सुइसमाणणे असुघसऊगीअपायजालघंटिआहि । बलयमेहला कलावनेनरा निराम सदमीसएकएय। देवनट्टिाहिं । हावनाव विनमप्पगारएहिं । नचिकणअंगहारएहिं । वंदिआय जस्सतेसुविकमाकमा। तयंतिलोयसबसत्त संतिकारयं । पसंतसबपावदोसमेसहं । नमामिसंतिमुत्तमं जिणं॥३१॥नारायन॥ उत्तचामर पडागजुअजव मंमिश्रा। जयवर मगर तुरग सिरिवमुलंउणा। दीव समुद्द मंदिर दिसागय सोहित्रा। सत्थिन वसहसीह सिरिवत मुलंगणा॥३२॥ ललिययं ॥ सहावलहा समपश्वा । अदोसञ्छा गुणोहजिका । पसायसिहा तवेणपुहा सिरीइंश्छा रिसीहिंजुहा ॥३३॥ बाण वासिया ॥ तेतवेण धुप्रसवपावया। सब्बलोअहिअमूलपावया। संथुआ अजिअसति पावया । हुँतुमेसिवसुहाण दावया ॥३४॥ अपरंतिका ॥ एवंतवबल विग्नं॥थुअंमए अजियसंति जिजुअलं। ववगयकम्मरयमलं। गयंगयं सासर्यविमलं ॥३५॥गाहा ॥ तंबहुगुणप्पसायं । मुक्खसुहेणपरमेण , अविसायं । नासेनमे विसायं । कुणकप्रपरिसावित्र पसायं ॥ ३६ ॥ गाहा॥
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रत्नसागर
तमोएन नंदि । पावेन नंदिसेामनिनंदिं । परसाविय सुहनंदिं । ममय दिसन संजमे नंदि ॥ ३७ ॥ गाहा || पक्खियचानुम्मासे । संवबर राइएयदि। सोबो सहिं । नवसग्गनिवारणो एसो ॥ ३८ ॥ जो पढइ जो निसुणइ । नननकालंपि प्रजिअ संति थु । नहु हुँति तस्सरोगा । पुव्वुप्पणा विनासंति ॥ ३९ ॥ जइइवह परमपर्यं । ग्रहवाकित्ती वित्थमा नवणे तातिछुकुधरणे । जिणवणे प्रायरंकुह ॥ ४० ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ इति श्री अजितशांतिस्तवनं प्रथम स्मरणं ॥ १ ॥ * ॥
॥ ॥
॥ ॥ नासिकम नक्खनिग्गय पहाले गिणं । वंदा रूण दिसंतर auri faaru मग्गावलिं । कुंदिन दंतकंति मिसन नीहंतनाणंकुरु । केरेदोवि दुइसोलस जिणे थोसामि खेमंकरे ॥ १ ॥ चरमजलहिनीरं जोमिणिऊं जलीहिं । खयसमयसमीरं जोजणिका गई ए ॥ सयलन हयलंवा लंघए जोपएहिं ॥ अजि महवसंतिं सोसमत्थोथुनं ॥ २ ॥ तहविहु बहुमाणु वासिनत्तिनरेण । गुणकणमिव कित्ते हामिचिंतामणिव । अनमहव प्रचिंता तसा मत्थन सिं । फलहर लहुस बिपिहिमे ॥ ३ ॥ सयत्नजयहि आणं नामिमित्ते काणं । बिहडइलहुकुछा। निद्यदोघट्टव । नमिरसुरकिरीडू घठपायारविंदै । सययमजिप्रसंती ते जिणि देविंदे ॥ ४ ॥ पसरइ वरकित्ती वदेहदित्ती । विलस नविभित्ती जायए सुप्पवित्ती । फुरइ परमतित्ती होइसंसारबित्ती । जिण अपयजत्ती ही चिंतोरुसत्ती ॥ ५ ॥ ललियपयपयारं जूरिदिवंगहारं । फुडवणरसनावो दारसिंगारसारं । प्रणिमिसरमणिक दंसण
जीया। इवपणमणमंदा कासि नट्टोवहारं ॥ ६ ॥ थुप्रजिअसंती | ते कयाससंती । कणयरयपसंगा बनाएजाणमुत्ती । सरजसपरिरंगा रंजिनिवा
नही। घण्थघुसिकु पंकपिंगीकयव ॥ ७ ॥ बहुविनयजंगं वत्थुणिचं प्रणिचं | सदसदनिलप्पा लप्पमेगागं । इयकुनयविरुधं सुप्पसिङ्घचजेसिं । वयणमवयणि ते जिणे संजरामि ॥ ८ ॥ पसरइतिअलोए ताव मोहंधयारं । नमजय मसां ताव मिळत् । फुरइफुन फलंता संतणाणं सुपूरो । पयम मजियसंती जाणसूरोनजाब ॥ ९ ॥ अरिकरि हरि तिएह एहंदुचोराहि वाही । समररुमर मारी रुदखुद्दोवसग्गा । पलयमजिप्रसंती कित्तणेजत्तिजंती । निवि
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सातेस्मरण.
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'डतरतमोहा नक्खरा लंखिमव ॥ १० ॥ निचित्रपुरदारु दित्तऊाणग्गिजाला । परिगय मिव गोरं चितियं जाण रूवं । कणयनिहसरेहा कंतिचोरं करिता । चरथर मिह लहिं गाढसं निव ॥ ११ ॥ डविनिवडिप्राणं पत्थित्तासिप्राणं । जनहिल हरिहरं ताणगुत्तिठियाणं । जलिय जलणजाला लिंगिश्राणं चाणं । जणयइ लहुसंतिं संतिनाहाजिणं ॥ १२ ॥ हरिकरिपरिकियां पक्कपाइक्कपुणं । सयलपुहवि र बड्डिनंप्राणसऊं । तणमिच परिलग्गं जेजिणामुत्तिमग्गं । चरण मणुपवणा हुतुतेमे पसला || १३ || उणससिवयणाहिं। फुल्लनिचुप्पलाहिं थणनरन मिरीहिं मुठिगिज्जोदरीहिं । ललिनुयाहिं पी - सोणित्थनीहिं । सयसुर रमणीहिं वंदिया जेसि पाया ॥ १४ ॥ रिस किमिन कुछ गंवि का साइसार । खयजर वणला साससोसोदराणि । नहमुह दसकुकारोगे । महजिण पाया सुप्पसायाहरंतु ॥ १५ ॥ इयगुरुहतासे पक्खि ए चानमासे । जिणवरडुगथुत्तं वचरेवा पवित्तं । पढह सुणह सिहाहचित्ते कुह मुह विग्धं जेण वाएहसिग्वं ॥ १६ ॥ इयविजया जियसपुत सिरि प्रजिअ जिणेसर । तहइरा विससेण तणय पंचमचक्कीसर । तित्थंकरसोल समसंति जिणवल्लहसंतह । कुरुमंगल ममहरसुपुरि मखिलंपि तह ॥ १७॥ इति श्रीलघुप्रजितशांतिस्तवनं द्वितीयं स्मरणं २ ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ नमिकणपणयसुरगण। चूडामणिकिरणरंजमुणिणो । चटनणजु अनं महानय ।पणास संथ बुद्धं ॥ १ ॥ सङिप्रकरचरणनहमुह । निवुड्डनासा विवणलावणा । कुछमहारोगानल । फुलिंगनिद्दसबंगा ॥ २ ॥ तेतुहचलणा राहण। सलिलंजलि सेवनियच्छाया। वणदवदवागिरिपाय व पत्ता पुणोलहिं ॥ ३ ॥ दुवायखुनिजननिहि । नप्त्रमकल्लोलनीसणारावे । संनंतनयविसंतुल । निकामयमुक्कवावारे ॥ ४ ॥ प्रवदलि जाणवत्ता । खणेणपावंतिइडियंकूलं । पासजिणचलणजुलं । निच्चंचिप्रजेनमंतिनरा ॥ ५ ॥ खरपवणु६श्रवणदव | जानावलिमिलि प्रसयल डुमगहणे । तमु धमयवहु । जीसणरवनीस ंमिवणे ॥ ६ ॥ जगगुरुणोकमप्रलं । निवावियसयल तिहुणाजोयं । जेसंनरंतिम नकुणइजलणोजयंतेसिं ॥ ७ ॥ विलसंतनोगनीषण । फुरियारुणनयतरत्नजीहालं । नग्गनु अंगंनवजलय । सबनीसणा
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रत्नसागर. यारं॥८॥मतिकीडसरिसं । दूरपरिच्छूटविसमविसवेगा। तुहनामक्खरफुडसिघ । मंतगुरुप्रानरालोए ॥९॥ अडवीसुनिलतकर । पुलिंदसलसद्दनीमासु । जयविहलुवाकायर । नटूरिअपहियसत्थासु ॥१०॥ अविलुत्तविहवसारा । तुहनाहपणाम मित्तवावारा। ववगयविग्वासिग्घं। पत्ताहियइबियंगणं ॥११॥ पङलिबानलनयणं । दूरवियारिअमुहंमहाकायं। नहकुलिसघायविप्रलिय । गयंदकुंजत्थलालोयं ॥१२॥ पणयससंनमपत्थिव । नहमणिमाणिकपडिअपमिमस्स । तुहवयण पहरणधरा । सीहंकुचंपि नगिणंति ॥१३॥ ससिधवलदंतमुसलं । दीहकरूमालवढि नबाहं । महुपिंगनयणजुअलं । ससलिलनवजलहरायारं ॥१४॥ नीमं महागइंदं। अच्चासन्नपितेनविगिणंति। जेतुमचलणजुअलं मुणिवस्तुंगंसमवीणा ॥१५॥ समरम्मितिक्खखग्गा । निघायपविधनुर्द्धअकवंदे । कुंतबिणिजिन्न करिकलह । मुक्कसिक्कारपनरम्मि।। ॥१६॥ निजिप्रदप्पुघररिननरिंद। निवहानडाजसंधवलं। पावंतिपावपसमण । पासजिणतुहप्पनावेण ॥१७॥रोगजलजलणविसहर। चोरारिमयंदगयरणनयाई। पासजिणनामसंकित्तणेण । पसमंतिसवाइं॥१८॥ एवंमहालय हरं । पासजिणिंदस्ससंथवमुआरं । नवियजणाणंदयरं । कल्लाणपरंपरनिहाणं ॥१९॥रायनयजक्खरक्खस्स । कुसुमिणऽस्सनणरिक्खपीडामु । संकासुदोसुपंथे नवसग्गेतहयरयणीसु ॥२०॥ जोपढइजोअनिसुण । ताणंकरणो यमाणतुंगस्स। पासोपावंपसमेन । सयलनुवणचिअञ्चलणो ॥ २१॥ ॥ इति श्रीपार्थजिनस्तवनं तृतीयस्मरणं ॥३॥॥ ॥ ॥
॥ ॥ तंजयनजएतित्थं । जमित्थतित्थाहिवेणवीरेण । सम्मंपवत्तिअंनवसत्त । संताणसुहजणयं ॥१॥ नासिअसयलकिलेसा निहयकुलेसापसत्थ सुहलेसा । सिरिवघमाणतित्थस्स । मंगलंदितुतेअरिहा ॥२॥ निद्दढकम्मवीा। बीआपरमेहिणो गुणसमिघा। सिघा तिजयपसिघा । हणंतु त्थाणितित्थस्स ॥३ ॥ आयारमायरता। पंचपयारं सयापयासंता। आयरिआतहतित्थं । निहयकुतित्थंपयासंतु ॥ ४ ॥ सम्मसुअवायगावायगाय । सिवायवायगावाए। पवयणपमिणीयकए । वर्णतुसबस्ससंघस्स ॥ ५ ॥ निवासाहुणुऊया। साहूणंजणिप्रसवसाहका । तित्थप्पनावगाते । हवंतुपरमे
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सातेस्मरण. हिणोजइणो॥६॥जेणाणुगयंनाणं । निवाणफलंचचरणमविहवइ । तित्थ स्सदसणंतं । मंगुलमवणेनसिधियरं॥७॥निम्मोसुप्रधम्मो। समग्गनब्बंगि वग्गकयसम्मो । गुणसुछिअस्ससंघस्स । मंगलंसम्ममिहदिसन॥८॥रम्मोच' रित्तधम्मो संपाविअन्नवसत्तसिवसम्मो। नीसेसकिनेसहरो। हवनसयासयल संघस्स ॥९॥ गुणगणगुरुणो गुरुणो। सिवसुहमइणो कुणंतु तित्थस्स । सिरि वघमाणपहुपयमिअस्स । कुसलंसमग्गस्स ॥१०॥ जियपमिवक्खाजक्खा । गोमुहमायंगगयमुहपमुक्खा। सिरिखनसंतिसहिया । कयनयरक्खासिवंदितु ॥ ११ ॥ अंबापडिहयमंबा। सिघासिघाइअापवयणस्स । चक्केसरिवइरुट्टा । संतिसुरादिसनमुक्खाणि॥१२॥सोलसवितादेवीने दिंतुसंवस्समंगलंविग्नं। अजुत्तासहिान । विस्सुअमुयदेवयाइसमं ॥ १३॥ जिणसासणकय रक्खा। जक्खाचनवीससासणसुरावि। सुहनावासंतावं । तित्थस्ससयाषणासंतु॥१४॥ जिणपवयणमिनिरया। विरहाकुपहानसबहासब्बे। बेयावच्चकरावित्र। तित्थ स्सहवंतुसंतिकरा ॥१५॥ जिणसमय सुघसमग्ग । वहिअनवाण जणिअसाह जो। गीयरई गीयजसो । सपरिवारोमुहंदिसन ॥ १६ ॥ गिहगुत्तखित्तज लथल । वणपब्बयवासिदेवदेवीन । जिणसासणहिणं । हाणिसवाणिनि हणंतु ॥१७॥ दसदिसिपालासक्खित्तपालया नवग्गहासनक्खत्ता । जोइणि राहुग्गहकालपास कुलिअघपहरोहं ॥१८॥सहकालकंटएहिं । सविडिवत्थेहिं कालवेलाहिं । सवेसवत्थसुहं । दिसंतुसबस्ससंघस्स ॥१९ ॥ नवणवश्वाण मंतर । जोइसवेमाणिप्रायजेदेवा । धरणिंदसकसहिआ। दलंतुपुरिआइंति स्थस्स ॥ २०॥ चकंजस्सजलंतं । गाइ पुरपणासितमोहं । तंतित्थस्स जगवन । नमोनमो वक्ष्माणस्स ॥ २१॥सोजयनजिणोवीरो । जस्सऊविसा सणंजएजयइ । सिधिप्पहसाहणंकुपह । नासणंसवनयमहणं॥ २२॥ सिरिनस जसेणपमुहा । हयनय निवहा दिसंतुतित्थस्स । सबजिणाणंगणिहारिणो । णहंवनिप्रसवं ॥ २३ ॥ सिरिवघमाणतित्थाहिवेण । तित्थंसमाप्पिअंजस्स । सम्मंसुहम्मसामी। दिसम्सुहं सयलसंघस्स ॥२४॥ पयइएनदिअाजे । लद्दा पदिसंतुसयलसंघस्स इयरसुराविहुसम्मं । जिणगणहरकहियकारिस्स ॥२५॥
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रत्नसागर.
इयजोपढइतिसंऊ। उस्सज्जंतस्सनस्थिकिंपिजए। जिणदत्ताणा एठिन। सुनिअिठोसुहीहोइ ॥२६॥8॥ इतिगणधरदेवस्तुतिः। चतुर्थस्मरणं ॥४॥ * ॥
॥ ॥ मयरहिअंगुणगणरयण । सायरं सायरं पणमिळणं । सुगुरुजण पारतंतं । नहिव थुणामितंचेव ॥१॥ निम्महियमोहजोहा । नियविरोहाप पट्ठिसंदेहा। पणयंगिवग्गदावित्र। सुहसंदोहामुगुणगेहा ॥ २॥ पत्तसुज इत्तसोहा। समत्तपरतित्थजणियसंखोहा । पमिनग्गमोहजोहा । दंसिअसुम - हत्थसत्थोवा ॥३॥ परिहरिप्रसत्थवाहा । हयउहदाहासिवंबतरुसाहा । संपा विअसुहलाहा । खीरोदहिणुवअग्गाहा ॥ ४ ॥ सुगुणजणजणिपुङा । सोनिरवङगहिअपवळा । सिवसुहसाहणसझा । नवगिरिगुरुचूरणेवता ॥ ॥५॥अऊसुहम्मप्पमुहा। गुणगणनिवहासुरिंदविहियमहा । ताणतिसंऊं नामं । नामनपणासइजियाणं ॥६॥ पमिवजिअजिणदेवो । देवायरिनपुरंत अवहारी। सिरिनेमचंदसूरि । नकोयणसूरिणोसुगुरु ॥७॥ सिरिवधमा णसूरी। पयमीकयसूरिमंतमाहप्पो । पमिहयकसायपसरो । सरयससंकुवमुह जण ॥८॥ सुहसीलचोरधप्परण । पच्चलोनिचलोजिणमयंमि । जुगपवरसुघ सिचंत । जाणपणयसुगुणजणो ॥९॥ पुरनमुखह महिवसहस्स । अणहि खवाडएपयडं। मुक्काविारिकणं । सीहेणवदवलिंगिगया ॥१०॥ दसमलेरयनिसिविप्फुरंत । सबंदसूरिमयतिमिरं । सूरेणवसूरीजिणेसरेण । हयमहिअदोसेण ॥११॥ सुकइत्तपत्तकित्ती । पयडिअगुत्ती पसंतसुहमुत्ती। पहयपरवाइदित्ती। जिणचंदजईसरोमंती ॥१२॥ पयडिअनवंगसुत्तत्थ । रयणुक्कोसोपणासिअप सो। जवनीअनविजणमण । कयसंतोसोविगयदोसो॥१३॥ जुगपवरागमसारपरूवणा । करणबंधुरोधणिअं । सिरिअनयदेवसूरी। मुणिपवरोपरमपसमधरो॥१४॥ कयसावय संतासो । हरिवसारंगनग्गसंदेहो । गय समयदप्पदलणो । आसाइअपवरकबरसो ॥१५॥जीमनवकाणणम्मित्र। दंसिप्रगुरुवयणरयणसंदेहो । नीसेससत्तगुरुन। सुरीजिणवलहोजयइ ॥१६॥ नवरडिअसचरणो। चनरणुन्गप्पहाणसच्चरणो । असममयरायमहणो । नट्ठमुहोसहरजस्सकरो ॥१७॥ दंसिनिम्मलनिच्चल । दंतगणोगणिप्रसावन्त्थजन । गुरुगिरिंगरुम्सरहुव्व । सूरिजिणवलहोहोत्था ॥१८॥ जुगपवरागमपी
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सातेस्मरण. नसपाण। पीणियमणाकयानबा । जेणजिणवलहेणं। गुरुणातंसबहावंदे ॥१९॥ विप्फुरिअपवरपवयण । सिरोमणी बूढऽवह खमोय जोसेसाणंसेसुव । सहइसत्ताण ताणकरो ॥२०॥ सच्चरित्राणमहीणं । सुगुरूणंपारतंतमुवहइ जयइजिणदत्तसूरी। सिरिनिलनेपणयमुणितिलन ॥ २१ ॥ॐ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति श्रीगुरुपारतंत्र्यं पंचमस्मरणं ॥५॥ॐ॥
॥ॐ॥ सिग्घमवहरनविग्धं । जिणवीराणाणु गामिसंघस्स। सिरिपास जिपोथंनण । पुरनिनिहिानिछो॥१ गोयमसुहम्मपमुहा । गणवर णोविहिअन्नबसत्तसुहा । सिरिवठमाणजिणतित्थ । सुत्थयंतकुणंतुसया॥२॥सकाइ णोसुराजे। जिणवेयावच्चकारिणोसंति । अवहरिप्रविग्घसंवा। हवंतु तेसंघसंतिकरा ॥३॥ सिरिथंनणयठियपाससामि । पयपनमपणयपाणीणं । निदलिअहरिप्रविंदो। धरणिंदोहरनपुरिपाइं॥४॥ गोमुहपमुक्खजक्खा । पडिहय पमिवक्खपक्खलक्खाते । कयसगुणसंघरक्खा । हवंतुसंपत्तिसिवसुक्खा ॥५॥ अप्पडिचक्कापमुहा। जिणसासण देवयानजिणपणिया। सिघाइश्रा समेया। हवंतुसंघस्सविग्घहरा ॥६॥ सकाएसासच्चनरपुरहिन । वधमाण जिणनत्तो। सिरिबंनसंतिजक्खो। रक्खनसंघ पयत्तेण ॥७॥ खित्तगिह गुत्तसंताण । देस देवाहिदेवयातान। निवरपुरपहियाणं । नबाणकुणंतुसुक्खाणि ॥८॥ चके सरिचक्कधरा। विहिपहरिनजिकंधराधणिनं । सिवसरणलग्गसंघस्स । सब हाहरनविग्याणि ॥९॥तित्थवश्वघमाणो । जिणेसरोसंगन्मुसंघण । जिण चंदोनयदेवो । रक्खनजिण वल्लहपहुमं ॥१०॥ सोजयनवघमाणो । जिणेसरो
सरुवहयतिमिरो। जिणचंदानयदेवा। पहुणो जिणवल्लहाजेय ॥ ११॥ गुरु जिणवल्लहपाए नयदेवपहुत्तदायगेवंदे। जिणचंदजिणेसरवधमाण । तित्थस्स बुढिकए ॥१२॥ जिणदत्ताणंसम्मं । मन्नंतिकुणंतिजेयकारंति । मणसावयसा वनसा। जयंतु साहम्मिातेवि ॥१३।। जिणदत्तगुणेनाणाइणो। सयाजेधरंतिधारंति । दंसिअसियवायपए। नमामिसाहम्मितेवि ॥६॥ ॥ इति षष्टं स्मरणं ॥ ॥ ॥॥ नवसग्गहरंपासं । पासवंदामिकम्मघणमुकं । विसहरविसनिणासं । मंगलकलाणावासं ॥१॥ इत्यादि ॥ नवेनवेपासजिणचंद॥२॥ ॥ इतिश्रीपार्श्व जिनस्तवनं ॥ इति सप्तस्मरणानि ॥॥
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रत्नसागर. ॥ ॥ अथ लघुशांतिलि || ॥ शांतिंशांतिनिशांतं । शांतिंशांताशिवनमस्कृत्य । स्तोतुशांतिनिमित्तं । मंत्रपदैःशांतयेस्तौमि ॥१॥ उमितिनिश्चितवचसे । नमोनमोनगवतेहतेपूजां । शांतिजिनायजयवते । यशस्विनेस्वामिनेदमिनां ॥२॥ सकलातिसेषकमहा । संपत्तिसमन्वितायशस्याय । त्रैलोक्यपूजितायच । नमोनमः शांतिदेवाय ॥३॥ सर्वामरसुसमूह । स्वामिकसंपूजितायनजिताय । नुवन जनयालनोद्यत । तमायसततंनमस्तस्मै ॥ ४॥सर्बशरितोष नाशन कराय। सर्वाशिव प्रशमनाय। पुष्टग्रहचूत पिशाच शाकनीनां प्रमथनाय ॥५॥ यस्येतिनाममंत्र । प्रधानवाक्योपयोगकृततोषा । विजया कुरुतेजनहित । मिति चनुता नमततं शांति ॥६॥नवतु नमस्ते जगवति । विजये सुजये परापरैरजिते । अपराजिते जगत्यां । जयतीति जयावहे नवति ॥७॥ सर्वस्यापिच संघस्य । जद्रकल्याण मंगलप्रददे । साधूनांचसदाशिव । तुष्टिपुष्टिप्रदेजीयाः॥॥नव्यानां कृतसिधे। नितिनिर्वाण जननि सत्वानां । अन्नयप्रदाननिरते । नमोस्तु स्वस्तिप्रदेतुभ्यं ॥ ९॥ लक्तानां जंतुनां । शुनावहे नित्यमुद्यतेदेवी । सम्यग्दृष्टीनांच । धृति रति मति बुधि प्रदानाय ॥१०॥ जिनशासननिरतानां । शांतिनतानांच जगतिजंतूनां । श्रीसंपतकीर्तियशो। वर्षनिजयदेवि विजयस्व ॥ ११ ॥ सलिलानल विषविषधर । इष्टग्रह राजरोग रणनयतः राकसरिपुगणमारी । चौरोतिश्वापदादिभ्यः ॥ १२ ॥ अथ रद रद मुशिवं । कुरु २ शान्तिंच कुरु कुरु सदेति। तुष्टिंकुरु २ पुष्टिं। कुरु २ स्वस्ति च कुरु कुरुत्वं ॥१३॥ नगवति गुणवति शिवशांति । तुष्टि पुष्टि स्वस्तीह । कुरु २ जनानां । मिति नमो नमो जाँ जी हुँजः। यः कशी फद फट स्वाहा ॥ १४ ॥ एवं यन्नामाकर । पुरुस्सरसंस्तुता जयादेवी । कुरुते शांन्ति निमित्तं । नमो नमः शान्तये तस्मै ॥१५॥ इतिपूर्बसूरिदर्शित । मंत्रपदविदनितः स्तवः शांतेः। सलिलादिनयविनाशी । शांत्यादिकरच लक्ति मतां ॥ १६ ॥ यश्चैनं पठति सदा । श्रयणोति जावयतिवा यथायोगं । सहि शान्तिपदं यायात् । सूरिः श्रीमानदेवश्च ॥१७॥ ॥ इति लघुशान्तिस्तोत्रं ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
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वृधशांति. ॥ * ॥ अथ वृद्धशांति ॥ ॥
॥ * ॥ जो जो जव्याः शृणुतवचनं प्रस्तुतं सर्वमेतत् । ये यात्रायां त्रिभुवनगुरोरार्हता क्तिनाजः । तेषां शान्तिर्भवतु भवतामर्हदादिप्रनावा । दारोग्य श्री धृति मतिकरी क्लेश विध्वंसहेतुः ॥ १ ॥ नोनोव्यलोकाइहहि नरतै रावत विदेहसजवानां । समस्ततीर्थकृतां जन्मन्यासनप्रकंपानन्तरं । अवधिना विज्ञाय सौधर्माधिपतिः । सुघोषाघंटा चालनान्तरं । सकलसुरा सुरेंद्रैः सह समागत्य सविनयमप्रहारकं गृहीत्वा । गत्वा कनकाद्रिशृंगे। विहितजन्मानिषेकः । शान्ति मुद्घोषयति ततोहं कृतानुकारमिति कृत्वामहाजनो येन गतस्स पंथाः । इति भव्य जनैः सहसमागत्य । स्नात्रपीठे स्वात्रंविधाय । शान्तिमुद्वषयामि । तत्पूजा यात्रास्त्रात्रादि महोत्सवानन्तरं । इतिकृत्वा कर्ण दत्वा निशम्यतां स्वाहा । पुएयाह २ । प्रीयंतां २ भगवन्तोऽर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिन । त्रैलोक्यनाथा । स्त्रैलोक्यमहिता । त्रैलोक्यपूज्या । त्रैलोक्योद्योतकराः ॥ ॐ श्रीकेवलज्ञानी ॥ १ ॥ निर्धाणी । २ । सागर | ३ | महायश । ४ । विमल |५| सर्वानुभूति । ६ । श्रीधर | ७ | दत्त | ८ | दामोदर | ९ | सुतेजा । १० । स्वामी । ११ । मुनिसुव्रत । १२ । सुमति | १३ | शिवगति । १४ । अस्ताग । १५ । नमीश्वर । १६ । अनिल । १७ । यशोधर | १८ | कृतार्घ ॥१९॥ जिनेश्वर । २० | शुभ्रमति । २१ । शिवकर | २२ | स्यन्दन । २३ । संप्रति । २४ ॥ * ॥ एते प्रतीत चतुर्विंशतितीर्थंकराः ॥ * ॥ श्रीरुषन ॥ १ ॥ अजित । २ । संभव | ३ | अभिनन्दन । ४ । सुमति । ५ । पद्मप्रभ । ६ । सुपार्श्व । । चंद्रप्रन । ८ । सुविधि । ९ । शीतल । १० । श्रेयांस । ११ । वासुपूज्य । १२ । विमल । १३ । अनन्त । १४ | धर्म । १५ । शान्ति । १६ । कुंथु । १७ । र । १८ । मह्नि । १९ । मुनिसुव्रत । २० । नमि । २१ । नेमि । २२ । पार्श्व | २३ | वर्धमान । २४ । प्रमुखावर्त्तमानजिनाः ॥ ॥ ॥ श्रीपद्मनाम । १ । सूरदेव । २ । सुपार्श्व | ३ | स्वयंप्रन । ४ । सर्वानूति । ५ । देवश्रुत । ६ । नदय । ७ । पेढाल । ८ । पोट्टिल । ९ । शतकीर्ति । १० । सुव्रत । ११ । मम । १२ । निष्कषाय । १३ । निष्पुलाक | १४ | निर्मम | १५ | चित्रगुप्ति । १६ । समाधि । १७ । संवर । १८ । यशो
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रत्नसागर धर । १९ । विजय । २० । मनि । २१ । देव । २२ । अनन्तवीर्य । २३ । नईकर । २४ ॥ * ॥ एते नावितीर्थकराजिनाः॥॥
॥ॐ॥शान्ताः शान्तिकराः नवंतु मुनयो मुनिप्रवरा । रिपुविजयपुर्नि वकान्तारेषु उर्गमार्गेषु रक्षतु वो नित्यं । ॥ न श्रीनानि । १। जितशत्रु ।२। जितारि । ३ । संवर। ४ । मेघ । ५। धर। ६। प्रतिष्ट । ७। मह सेननरेश्वर । ८ । सुग्रीव । ९ । दृढरथ । १० । विष्णु । ११ । वसुपूज्य । १२ । कृतवर्म । १३ । सिंहसेन । १४ । नानु । १५ । विश्वसेन । १६ । शुर। १७ । सुदर्शन । १८ । कुन । १९ । सुमित्र । २० । विजय । २१ । समुद्रविजय । २२ । अश्वसेन । २३ । सिधार्थ । २४ ॥ ॥ वर्तमान चतुर्विशतिजिनजनकाः॥ * ॥न श्रीमरुदेवा। १ विजया।२। सेना। ३ । सिघार्था ।४। सुमंगला । ५। मुसीमा।६। पृथिवीमाता । ७ । लक्ष्मणा । ८॥ रामा।९। नंदा । १० । विष्णु । ११ । जया । १२ । स्यामा। १३ । सुयशा ११४ । सुत्रता । १५ । अचिरा । १६ । श्री।१७। देवी ।१८ । प्रजावती । १९ । पद्मा । २० । वप्रा ।२१। शिवा । २२। वामा । २३ । त्रिशला। २४॥ ॥ ॥ वर्तमानजिनजनन्यः ॥ ॐन श्री गो मुख । १। महायक्ष । २। त्रिमुख । ३ । यदनायक । ४। तुंबरु । ५। कुसुम।६। मातंग । ७॥ विजय । ८।अजित । ९ । ब्रह्मा ।१०। यदराज ।११। कुमार । १२ । षण्मुख ।१३ । पाताल ।१४। किन्नर । १५ । गरुम । १६ । गंधर्व । १७ । यदराज । १८ । कुवेर । १९ । वरुण। २० । नृकुटि । २१ । गोमेध । २२ । पार्थ ।२३। ब्रह्मशांति । २४ ।॥ ॥ वर्तमानजिनयदाः॥ * ॥ ॐ चक्रेश्वरी । १ । अजितबला ।२। रितारी । ३ । काली। ४ । महाकाली । ५। श्यामा ।६।शांता। ७। नृगुटी । ८ । सुतारका ।९ । अशोका । १० । मानवी 1.११ । चंमा । १२ । विदिता । १३ । अंकुशा । १४ । कंदर्पा । १५ । निर्वाणी । १६ । बला।१७। धारणी । १८ । धरणाप्रिया । १९ । नरदत्ता । २० । गांधारी । २१ । अंबिका । २२ । पद्मावती २३ । सिघायिका । २४ ॥ ॥ * ॥ वर्तमानचतुर्विंशति तीर्थंकरशाशनदेव्यः ॥ * ॥ न जी श्रीपति कीर्ति कांति बुधि लक्ष्मी मेधा विद्या साधन प्रवेशनिवेशनेषु । सुगृहीतना
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वृधशांति. मानो जयंति ते जिनेंद्राः न रोहिणी। १। प्रज्ञप्ती। २ । बज्रशृंखला । ३। वज्रांकुशा। ४। चक्रेश्वरी।५। पुरुषदत्ता।६ । काली।७। महाकाली।८। गौरी । ९ गांधारी । १० । सर्वास्त्रमहाज्वाला । ११ । मानवी। १२। वैरोट्या ।१३। अच्छुप्ता ।१४। मानसी । १५ । महामानसी । १६ । एताः षोमशविद्यादेव्यो रदंतुमे स्वाहा । आचार्योपाध्यायप्रति चातुर्वर्णस्य श्रीश्रमणसंघस्य शान्तिवतु । न तुष्टिवतु । पुष्टिनवतु । न ग्रहाश्चंद्र सूर्या गारक बुध बृहस्पति शुक्र शनैश्चर राहु केतु सहिताः सलोकपालाः सोम यम वरुण कुबेर वासवादित्य स्कन्द विनायक येचान्येपि ग्राम नगर क्षेत्रदेवतादय स्ते सर्वे प्रीयंतां २ अनीणकोस कोष्ठागारा नरपतयश्च भवंतु स्वाहा। न पुत्र मित्र भ्रातृ कलत्र सुहृत स्वजनसंबंधिबंधुवर्गसहिताः नित्यंचामोदप्रमोदकारिणो जवंतु । अस्मिंश्च नूमंगले आयतननिवासिनां । साधु साध्वी श्रावक श्राविकाणां । रोगोपसर्ग व्याधिःख दौर्मनस्योपशमनाय शांतिनवतु । न तुष्टि पुष्टि शधि वृधि माङ्गल्योत्सवाः नवंतु । सदा प्राउजूतानि पुरितानि पापानि शाम्यतु । शत्रवः पराङ्मुखा नवंतु स्वाहा । श्रीमते शान्तिनाथाय । नमः । शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश । मुकुटाभ्यर्चितां हये॥१॥शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान् । शान्तिः दिशतु मे गुरुः । शान्तिरेव सदातेषां । येषां शांतिगृहे गृहे ॥ २॥ नन्मृष्टरिष्ट पुष्ट ग्रहगति पुःस्वप्नसुनिमित्तादि संपादितहितसंपत् नामग्रहणं जयतुशांतेः॥३॥श्रीसंघपौरजनपद राजाधिपराज संनिवेशानां। गोष्टीपुरमुख्यानां। व्याहरणैाहरेहांतिं ॥४॥श्री श्रमणसंघस्य शांतिनवतु । श्रीपोरलोकस्य शांतिर्नवतु । श्रीजनपदानां शांतिर्नवतु । श्रीराजाधिपानां शांतिनवतु । श्रीराजसंनिवेशानां शांतिनवतु । श्रीगोष्टिकानां शांतिवतु । स्वाहा २॥ नक्षी श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा । एषा शांति प्रतिष्टा यात्रास्नात्रावसानेषु । शांतिकलशं गृहीत्वा । कुंकुम चंदन कर्पूरा गुरुधूप वास कुसुमांजलिसमेतः। स्नात्रपीठे श्रीसंघसमेतः।शुचिः शुचि वस्त्रश्चंदना जरणालंकृतः। पुष्पमाला कंठेकृत्वा। शांतिमुद्घोषयित्वा शांतिपानीयं मस्तके दातव्यामिति । नृत्यंतिनृत्यं मणिपुष्पवर्ष । सृजति गायंतिच मंगलानि स्तोत्राणि गोत्राणि पठति मंत्रान् । कल्याणजाजोहि जिनानिषेके
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रत्नसागर. ॥१॥ अहतित्थयरमाया शिवादेवी । तुम नयरनिवासिनी अह्म शिवं तुम शिवं । असुहोवसमं शिवं भवतु स्वाहा ॥१॥ शिवमस्तु सर्वजगतः । परहितनिरतानवंतु नूतगणाः । दोषाःप्रयांतु नाशं । सर्वत्र सुखी जवतु लोकः॥२॥ नपसर्गाः क्यं यांति । विद्यते विघ्नवल्क्षयः । मनः प्रसन्नतामेति । पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥३॥ * ॥ इति श्रीबृहबांतिः समाप्ता॥8॥
॥अथ दूजकी स्तुति॥ ॥ ॥ महीममणं पुन्न सोवन्न देह । जणाणंदणं केवल नाण गेहं । महा नंद लबी बहु बुधिरायं । सुसेवामि सीमंधरं तित्थरायं ॥१॥ पुरातारगा जेह जीवाण जाया। जवस्संति ते सब नबाणताया। तहा संपयं जेजिणा वट्टमाणा सुहं दितु तेमे तिलोयप्पहाणा ॥२॥ पुरुत्तार संसार कुवारपोयं । कलंकावली पंक पक्खाल तोयं । मणोवंडियत्थे सुमंदार कप्पं । जिणंदागमं वंदिमो सुमहप्पं ॥३॥ विकोसे जिणंदाणणं नोजलीणा । कला रूव लावण सोहग्ग पीणा । वहंतस्स चित्तंमि णिचंपि काणं । सिरी नारही देहिमे सुचनाणं ॥४॥8॥ ॥ इति श्री सीमंधरजीरी स्तुतिः॥१॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ पंचमी स्तुती॥ ॥ ॥ पंचानंतक सु प्रपंच परमानंद प्रदान क्रमं । पंचानुत्तर सीम दिव्य पदवी वश्याय मंत्रोपमं । येन प्रोज्वल पंचमी वरतपो व्याहारि तत्का रिणां । श्रीपंचानन लांउनः सतनुतां श्री वर्धमानः श्रियं ॥१॥ये पंचाश्रव रोदसाधनपराः पंचप्रमादी हराः। पंचाणबत पंचसुब्रत विधि प्रज्ञापना सादराः कृत्वा पंचषीक निर्जयमथो प्राप्तागतिं पंचमी । तेमी संतु सुपंचमी ब्रतनृतां तीर्थकराः शंकराः॥२॥पंचाचार धुरीण पंचम गणाधीशेन संसूत्रितं। पंच ज्ञान विचारसार कलितं पंचेषु पंचत्वदं । दीपानंगुर पंचमार तिमिरे ष्वेकाः दशी रोहिणी। पंचम्यादि फल प्रकाशनपटुं ध्यायामि जैना गमं ॥३॥ पंचानां परमेष्टिनां स्थिरतया श्रीपंचमेरु श्रियां। जक्तानां नविनां गृहेषु बहुशोया पंचदिव्यं व्यधात् । प्रह्वे पंचजने मनोमृत कृतौ स्वारत्नपंचालिका । पंचम्यादि तपोवतां नवतु सा सिघायिका नायिका ॥४॥ इति श्री ज्ञान पंचमीस्तुतिः॥
॥ ॥ वीरं । देवं । नित्यं वंदे ॥१॥ जैनाः । पादा। युष्मान् पांतु
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श्रीगौतमरास. ॥२॥ जैनं । वाक्यं । नूया। झुत्यै ॥३॥ सिधा । देवी। दद्यात् । सौख्यं ॥४॥ ॥ ॥ इति लघ्वीत्रीचंदसि श्रीवीर स्तुतिः॥६॥॥ ॥ ॥ ..
॥अथ अष्टमी स्तुतिः॥ ॥ॐ॥ चन्वीसे जिनवर प्रणमुंहुं नितमेव । आम्म दिनकरियै चंद्राप्रजुनी सेव । मूरति मनमोहे जाणे पूनिमचंद । दीगंमुख जायै पामेपरमानंद ॥१॥ मिल चोसठ इंद्र पूजै प्रनुजीना पाय। इंद्राणी अपहराकरजोमी गुणगाय । नंदीश्वर श्री. मिल सुरवरनी कोड। अहाही महोडवकरतां होमा होम ॥२॥ सेठेजा सिखरै जाणी लाल अपार । चौमासे रहिया गणधर मुनि परिवार । नवियणनें तार देइ धरम नपदेश । दूध साकरथी पिण वाणी अधिक विशेस ॥ ३ ॥ पोसो पडिकमणो करियै ब्रतपचखाण । आठम तप करतां
आठकरमनी हाण। आठमंगल थायें दिन २ कोडि कल्याण । जिन सुखसूरि कहै इम जीवत जनम प्रमाण ॥ * ॥ इति अष्टमी स्तुतिः॥८॥
॥सर्वदिन स्तुतिः॥ ॥॥ मूरति मनमोहन कंचन कोमलकाय । सिघारथ नंदन त्रिसला देवि सुमाय । मृगनायक लंउन सातहाथ तनु मान । दिन दिन सुख दायक स्वामी श्रीबधमान ॥१॥सुर नरवर किन्नर वदित पद अरिविंद । कामित जर पूरण अनिनव सुरतरुकंद । लवियणनें तार प्रवहण समनिसि दीस। चोवीसे जिनवर प्रणमुं.विसवावीस ॥२॥अरथै करि आगम नाष्या श्रीनगवंत । गणधर तेगुंथ्या गुणनिधि ग्यान अनन्त । सुरगुरु पिण महिमा कहिनसके एकन्त । समरूं सुखदायक मनसुध सूत्रसिद्धन्त ॥३॥ सिघायिका देवी वारे विघनविशेष । सहु संकट चूरै पूरै आस असेष । अहनिसि करजोडी सेवै सुर नर इंद। जंपई गुणगण इम श्रीजिनलाल मुरिंद॥४॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥ इति श्रीमहावीर जिनस्तुतिः॥९॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ दशमी स्तुतिः॥ ॥ ॥ अश्वसेन नरेसर वामा देवी नंद । नवकर तनु निरुपम नील वरण सुखकंद । अहिलंगण सेवित पनमावइ धरणिंद। प्रहकती प्रणमुं नि
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रत्नसागर. तप्रति पासजिणिंद ॥१॥ कुलगिरि वेयडर कणयाचल अनिराम । मानुषोत्तर नंदी रुचिक कुंमल सुखठाम ।जवणेसर ब्यंतर जोइस वेमाणीय धाम । बरते जेजिनवर पूरो मुझ मनकाम ॥२॥ जिहां अंगइग्यारे बारैनपांग उबेद । दसपइन्ना दाख्या मूलसूत्र चनुन्नेद । जिन आगम षटद्रव्य सत्तपदारथ जुत्त । सांजलि सरदहतां तूटै करम तुरत्त ॥३॥ पनमावइदेवी पायद परतत । सहु संघना संकट दूरकरेवा दद । तेसमरो जिननक्ति सूरि कहै इकचित्त । सुख सुजस समांपो पुत्र कलत्र बहुवित्त ॥ ४॥ ॥ॐ॥ इति श्रीपार्श्वजिनस्तुतिः॥१०॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ एकादशी स्तुतिः॥ ॥ ॥अरस्य प्रबज्या नमिजिनपतेानमतुलं । तथा मझे जन्म ब्रत मपमलं केवलमलं । बलदै कादश्यां सहसिलस उद्दाम महसि ॥ वितौ कल्याणानां पतु विपदः पंचक मदः॥१॥ सुपवेंद्र श्रेएया गमन गमनै मिवलयं । सदा स्वर्गत्यैवा हमहमकया यत्र सलयं । जिनानामप्यापुतण मति सुखं नारकसदः॥ (दितौ ० ) ॥२॥ जिना एवं यानि प्रणिजग पुरात्मीय समये। फलं यत्कर्तृणा मितिच विदितं सुद्धसमये । अनिष्टा रिष्टानां दिति रनुभवेयु बहुमुदः ॥ (हितौ ० )॥३॥ सुरास्सेंद्रा स्सर्वे सकल जिन चंद्र प्रमुदिताः तथाच ज्योतिष्का खिल जवननाथा समुदिताः । तपो यत्कर्तृणां विदधति सुखं विस्मितहृदः (वितौ ०)॥४॥ ॥ॐ॥इति मोनै कादशीस्तुतिः ॥ ११॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥
.. ॥अथ चतुर्दशी स्तुतिः॥ ॥ॐ॥ देंद्रेकि धपमप धुधुमि धोंधों ध्रसकि धर धप धोरवं । दोंदोंकि दोंदों दाग्मिदि दाग्मिदिकि द्रमकि द्रण रण द्रेणवं । अजिङ्गेकि ड्रेनें ड्र णण रण रण निजकि निज जन रंजनं । सुरशेल सिखरे भवति सुखदं पार्श्वजिनपति मऊनं ॥१॥ कट रेंगिनि थोगिनि किटति गिगडदां धुधुकि घुट नट पाटवं । गुण गुणण गुण गण रणकिणेणे गुणण गुण गण गौरवं । ऊ ड्रि झोंकि ऐझें झूणण रण रण निजाक निज जन सजना । कलयंति कमला
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१५ तिथोंकी स्तुति. कलित कलमत्त मुकल्लमीस महेजिनाः ॥ २॥गक कि → → गिक्षिक गज्ञिपट्टा ताड्यते । तललोंकि लों लोषि षिनि मेंषि मेंषिनि वाद्यते।
जकिन थुगि थुगिनि धोंगि धोगिनि कलरवे । जिन मत मनंतं महिम तनुता नमति सुर नर मुबवे ॥३॥षुदांकि खुदां षुषुडदिदां षुषुडदि दोंदों अंबरे । चाचपट चचपट रणकि ऐणे मणण मेंमें कंबरे। तिहां सरग मपधुनि निधप मगरस सस ससस सुर सेवता । जिन नाट्यरंगें कुशलमुनिसं दिसतु शासन देवता॥४॥ इति श्रीजिन कुशलसूरिजीकृत पार्थजिन स्तुतिः॥१४॥
॥अथ चैत्रीपूनम स्तुतिः॥ ॥ ॥ सेज गिरि नमियै कषन देव पुंमरीक। शुनतपनी महिमा सुणि गुरु मुख निरनीक । शुधमन नपवासै विधिसुं चैत्यवंदनीक। करियै जिन आगल टाली वचन अलीक ॥१॥ शक स्तवनादिक प्रथम तिलक दश वीस । अक्त गिण तीसे चढता तिम चालीस । पंचासनी पूजा जा षइ इम जगदीस । तेहीज नितप्रणमुं स्वामी जिन चनवीस ॥ २ ॥सुदि पदनी पूनम चैत्रमास शुनवार । विधिसेतीलहीये आगमसाख विचार । इम सोलवरस लग धरियै न्यान नदार । करतां नरनारी पामे नवनोपार ॥३॥ सोवन तनचरणे नयणे तिम परिविंद । चक्केसरी देविय सेविय नर मुर वृंद । कामितसुखदायक पूरयमन आणंद । जंपै गणनायक श्रीजिनलाल सूरिंद ॥४॥इति श्रीचैत्री पूनिमस्तुतिः॥१५॥॥॥ ॥॥
॥अथ नवपदस्तुतिः॥ ॥ ॥ निरुपम सुखदायक जगनायक लायक शिवगति गामी जी। करुणासागर निजगुण आगर सुन्न समता रस धामी जी । श्री सिद्ध चक्र शिरोमणि जिनवर ध्यावे जे मन रंगै जी। ते मानव श्रीपाल तणी परि पामें सुख सुर संगे जी। ॥१॥ अरिहंत सिघ आचारज पाठक साधु महा गुणवंता जी। दरसण नाण चरण तप नत्तम नवपद जग जय वंता जी। एहनो ध्यानधरंता लहीये अविचल पद अविनासी जी। तेसगला जिननायक नमीयै जिनए नीति प्रकासी जी॥२॥ आसूमास मनोहर तिमवलि चैत्रकमास जगी जी। नजवाली सातमथी करिये नव आंबिल नव दिवसे जी। तेर
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रत्नसागर. सहस बाल गुणिये गुणणो नवपदकरो सारो जी। इण परि निरमल तय आदरिये आगम साख नदारो जी॥३॥ बिमल कमलदल लोयण सुंदर श्री चक्केसरि देवी जी । नवपद सेवक नविजन कैरा विधनहरो सुर सेवीजी । श्रीखरतरगड नायक सदगुरु श्रीजिननक्ति मुणिंदाजी । तासु पसायें इणपरि पनणे श्रीजिनलान सुरिंदा जी॥४॥ॐ॥इति श्रीनवपदस्तुतिः॥8॥१६॥
॥अथ पर्युषणस्तुतिः॥ ॥ ॥ वलि वलिहुंध्यावं गाऊं जिणवरवीर । जिण परब पजूसण दाख्या धरमनी सीर । आसाढ चौमासे हुंती दिनपंचास । पडीकमणो संवबरी करियै त्रिणनपवास ॥१॥ चौवीसे जिनवर पूजा सतरप्रकार । करियै नलजावें नरिये पुण्यनंमार । वलिचैत्यप्रवाडे फिरतां लान अनंत। इम परब पजूसण सहुमें महिमावंत ॥ २॥ पुस्तक पूजावी नव वाचना ये वचाय । श्रीकल्पसूत्र जिहां मुणतां पाप पुलाय । प्रतिदिन परनावना धूप अगर नक्खेवो । इम नवियण प्राणी परब पजूसण सेवो ॥ ३ ॥ वलि साहमी बबल करिये वारंवार । केइ नावना नावे केइ तपसी सीलधार। अमदीह पजूसण इम सेवत आणंद । सुयदेवी सानिध कहै जिनलानसूरिंद ॥ ४ ॥ ॥ इति श्रीपर्जूषणापर्व स्तुतिः ॥ * ॥ १७॥ ॥
॥ ॥अथ पनतिथोंका स्तवन लिख्यते॥॥ ॥ * ॥ मुगुण सनेही साजण श्री सीमंधरस्वामि । अरज सुणो इक जग गुरु मुझ आसा विसराम । पूरबविदेहें विजयनली पुष्कलावई नाम । जिहां विचरै जिनवरजी धनते नयरीगाम ॥१॥ धनते लोक सुणे जे जोजनगा मनी वाणि। धनते महीयल चरणधरै जिहां जिनवर जाण । धनते विजन जे रहै प्रनुताहरे परसंग । वदनकमल निरखी नितमाणे नवअंग॥२॥ सुगुरु मुखै प्रनु सुजस तुह्मीणो सांजलकान । मिलवाने नलसै मनमाहरो धरुं इक ध्यान । जगति जुगति करवानी चै मुझसगलीजोम । पिण प्रनुलग पुहची जे तेहनही पगदोम ॥ ३ ॥ आमा डुंगर अतिघणा विचवहै नदियांपूरि किम मुझथी अवरायै प्रनुजी एतलीदूर। आंखडली नलगों करै जोयवा मुख जिनराज । पांखडानी पाई नही ते विन किमसरे काज ॥ ४ ॥वाट
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तिथोंका मोटा बोटा स्तवन
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डली वहतो कोई न मिलै सेंगूसाथ । कागलियो लिख हुँ जिम तेहनें हाथ | जाणूं ससिहर साथ कहुं संदेशाजेह । पि अलगो थई ऊपरि वामै निकले तेह ॥ ५ ॥ जो कोई रीते प्रभुजी तुमथी एथ प्रवाय। तो इ
रतनावासी विजन पावन थाय । साहिबनीतो सुनिजर सगलै सरिषी होय । पिणपोतानी प्रापति सारू फलप्रतिजोय ॥ ६ ॥ अलगोढुं पिणमाहरे तुमसुं साचीप्रीति । गुण गुणवंतना आवे हीयने खिण २ चीत । हुंलुं सेवक तुंबे माहरो तमराम । नहिंय विसारूं जीवुं जांलगि ताहरो नाम ॥ ७ ॥ साचै दिलथी मुसुं धरज्यो धरमस्नेह । करुणाकर प्रजु कर जो मोपरि महिर अह । दूसमकाल तणो दुखटालो दीनदयाल । पालो विरुद संभालो निज सेवकसुं कृपाल ॥ ८ ॥ सविधा अलग थकी पिण करै अरदास । पण मोटानी महिरबतां नविथाय निरास । केईवसै प्रभु पासे के वसैबे दूर | राजमहिरनी रीते सकलनें जाणें हजूर ॥ ९ ॥ शिवसुख दायक नायक लायक स्वामि सुरंग । ध्यायक ध्येय स्वरूपलहे निज आत्मनमंग । सहिजे एक पलक जोथायै प्रनु तुकसंग | लानन्दय जिनचंद्र लहै नितप्रेम अभंग १० ॥ ॥ * ॥ इति श्री सीमंधरस्वामी स्तवनं ॥ * ॥ १ ॥ ॥ ॥ श्रीसंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन ॥
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॥ * ॥
॥ * ॥ श्रीसंखेसर पास जिनेसर जेटियै । जवना संचित पाप परा सब मेटियै । मनधर जाव अनंत चरणयुग सेवता । प्रणहुँतें इककोमि चतुरविध देवता ॥ १ ॥ ध्यानधरूं प्रजुदूरथकी हुँ ताहरो । जल जिमलीनो मीन सदा मनमाहरो । जव २ तुमहीजदेव चरणहूं सिरधरूं । जवसायरथी तार अरज आहीजकरूं ॥ २ ॥ जूख त्रिषा तप सीत आतम एनविस है । तप जप संयम भारतणो नवि निरवहै । पिए जिणवरना नामतणी आसतघणी । एहिज
आधार जगतगुरु प्रह्ममणी ॥ ३ ॥ तुम दरसण विनसामि जवो दधि हूं फिरयो । सहिया दुक्ख अनेक न कारज कोसरयो । मिलिया हिव प्रभु मुज्ज सदासुख दीजीयै । चनगइ संकट चूर जगतजस लीजीये ॥ ४ ॥ यादवपति श्रीकृष्ण तणी आरति हरी । सेनाकीध सचेत जरा दूरैकरी । परचा पूरण पास
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. रत्नसागर..... रयण जिमदीपतो । जयवंतो जिणचंदसयल रिपुजीपतो॥ * ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥ इति श्रीपार्थजिन स्तवनं ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ द्वितियादिन सीमंधरस्तवन॥ ॥ ॥ सफल संसार अवतार ए हुं गिणुं । सामि सीमंधरा तुह्म नगते जएं। बेटवा पायकमल नाव हीयमै घणो। करीय सुपसाय जे वीनतुं ते सुणो॥१॥ तुह्मसुं कूड अरिहंतसुं राखियै । जिसो अ तिसोकर.जोमि करि जाषिये । अति सबल मुझ हियै मोह माया घणी । एक मन नगति किमकरूं त्रिनुवन धणी ॥२॥ जीव आरति करै नव नवी परिगडै । रीसचटको चढे लोन वयरी नडै । नयण रस वयण रस काम रस रसीयो। तेम अरिहंत तूं हियडै नवि वसीन ॥३॥ दिवसनें राति हियडै अनेरो धरूं । मूढमन रीझवा वलिय माया करूं । तूंहीज अरिहंत जाणे जिसो आचरूं । तेम कर जेम संसार सागर तरूं ॥ ४॥ कम्मवसि सुक्खने उक्ख जेहुँसहुँ । मनतणी वात अरिहंत किणनें कहुं । करि दया करि मया देव करुणापरा । मुक्ख हरि सुक्ख करि सामि सीमंधरा ॥ ५॥ जाण संयोग आगम वयण पिणसुणुं । धर्म नकराय प्रनुपाप पोते घएं । एक अरिहंततूं देव बीजो नही । एह आधार जग जाणज्यो अझ सही ॥६॥धण कणय माय पिय पुत्त परियण सहू । हस्यो बोल्यो रम्यो रंगरातो बहू । जय जयो जगतगुरु जीव जीवन धरा । तुझ समवम नही अवर वाव्हे सरा॥७॥अमिय सम वांणि जाणुं सदा सांगलं । वार वर परषदा मांहि आवी मिर्छ । चित्तजाणं सदा सामि पाय-नगुं । किम करूं ठाम घुमर गिरि वेगलू॥८॥नोलडा नगतितूं चित्तहारै किस्यै । पुण्यसंयोग प्रनु दृष्टिगोचर हुस्यै । जेहनें नाम मन वयण तन ननस्यै । दूरथी ढूकमा जेम हियडै वसे ॥९॥जल नलो एणि संसार सहु ए अने। सामि सीमंधरा ते सहू तुम पठे। ध्यान करतां सुपन मांहि आवीमिलै । देखिये नयण तो चित्त आरति टलै ॥१०॥ सामि सोहा मणा नाम मन गह गहै । तेहसं नेह जे वात तुमची कहै । तुम पाय नेटवा अति घj, टलवर्नु । पंख जो होयतो सहिय आवीमिखं ॥११॥ मेरुगिर लेखणी आजकागल करूं। खीर सागर तणा दूध खडिया जरूं । तुम मिलवा तणा सामि संदेसमा । इंद्र
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तिथोंका मोटा बोटा स्तवनपिण लिखिय नसके अझै एवमा ॥१२॥आपणे रंग जरिवात सुण जेतली। ऊपजे सामि न कहाय मुख तेतली। सुणो सीमंधरा राज राजेसरा । लामने कोमि प्रनुपूरि सवि माहरा ॥१३॥ पुव्व नवि मोह वसि नेह हुवै जेहनें। समरिये एणि संसार नित तेहनें। मेहनें मोर जिम कमल जमरोरमें । तेम अरिहंता चित्त मोरै गमें ॥१४॥ खरो अरिहंतनो ध्यान हियमें वस्युं । वापमो पापहिव रहिय करस्यै किसुं। गमि जिम गुरुडवर पंख आवे वही । ततखिण सर्पनी जाति नसकै रही ॥१५॥ पापमें कऊ सावज सहु परिहरी । सामि सीमंधरा तुझ पाय अणु सरी। सुच चारित्र कहियै प्रनू पालमुं। मुक्ख जंमार संसार जय टालसुं॥१६॥ तुह्म हुंदास हुं तुझ सेवकसही। एहमें बात अरिहंत आगलिकही। एवडी माहरी जगति जाणी करी। आप ज्यो वापजी सार केवल सही ॥१७॥ कलश ॥इम शधि वृधि समृधि कारण पुरित वारण सहुकरो। नवज्काय वर श्री क्तिलाने थुण्यो श्रीसीमंधरो। जयजयो जगत गुरु जीव जीवन करो सामि मया घणी । करजोडि वलि वलि वीनतुं प्रनु पूरि आस्या मनतणी ॥१८॥ ॥श्री॥ ॥8॥ ॥श्री॥ ॥१॥ इति श्री सीमंधरजीरी वीनती संपूर्ण ॥२॥ ॥ श्री ॥ ॥ श्री ॥ ॥
॥अथ पंचमी वृद्धस्तवन ॥ ॥ ॥ प्रणमुं श्रीगुरुपाय । निरमल न्याननपाय । पांचमि तप जणुंए। जन्म सफल गिणुंए ॥१॥ चनवीसमो जिनचंद । केवल न्यान दिणंद। त्रिगमै गहगह्योए । नवियणनें कह्यो ए ॥२॥ न्यान वमो संसार । न्यान मुगति दातार । न्यान दीवो कह्योए । साचो सरदह्योए॥३॥न्यान लोचन सुविलास । लोकालोक प्रकास । न्यान विना पसुए। नर जाणे किसुंए ॥४॥ अधिक आराधक जाण । नगवती सूत्रप्रमाण । न्यानी सर्बतुए। किरिया देशतुए॥५॥ न्यानी सासोसास । करम करै जेनास । नारकिने सहीए। कोड बरस कहीए ॥६॥ न्यानतणो अधिकार । वोख्या सूत्र मझार । किरिया डै सही ए। पिण पाचै कही ए ॥७॥ किरिया सहित जो न्यान । हुवैतो अति परधान । सोनाने सुरो ए। संख दूधै नरयो ए ॥ ८॥ महा निशीथ मकार। पांचमि अदर सार । नगवंत नाषीयोए । गणधर साखियो ए॥९॥ (ढाल ?
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रत्नसागर.
पहिली काल हरानी ) ॥ ॥ पांचमि तप विधि सांगलो । जिम पामो जव पारोरे । श्रीअरिहंत इम नपदिसे । नवियणनें हित कारोरे ॥ प० ॥ १० ॥ मिगसर माह फागुण जला । जे प्रसाद वैसाखोरे । इण षटमासै लीजिये । शुदिन सद्गुरु साखोरे ॥ प० ॥ ११ ॥ देव जुहारी देहरे। गीता रथ गुरु बंदीरे । पोथी पूजो न्याननी । सगति हुवै तो नंदीरे ॥ प० ॥ १२ ॥ बेकर जोमी जावसुं । गुरु मुख करो उपवासोरे । पांचमि पडिक्कमणो करै । पढो पंडित गुरु पासोरे ॥ प० ॥ १३ ॥ जिए दिन पांचमि तप करो । ति दिन आरंभ टालोरे । पांचमि तवन थुई कहो । ब्रह्म चारिज पिण पालोरे ॥ ॥ प० ॥ १४ ॥ पांचमास लघुपंचमी । जाव जीव नत्कृष्टी रे | पांच बरस पांच मासनी । पांचमि करो शुभ दृष्टीरे ॥ पां० ॥ १५ ॥ ( ढाल २ नवालानी ) ॥ * ॥ हिव नवियणरे पांचमि जमणो सुणो । घर सारूरे वारू धन खरचो घणो । ए अवसर आवंतां वलि दोहिलो । पुएय जोगेरे धनपामंता सोहिलो। (बालो ) सोहिलो बलीय धन पामतां पिण धर्म काज किहां बली । पंचमी दिन गुरु पास यावी कीजीये कावसग रखी। त्रिण न्यान दरसण चरण टीकी देइ पुस्तक पूजीयै । थापना पहिली पूजकेसर सुगुरु सेवा कीजीये ॥ १६ ॥ सिद्धांतनी रे पांच परत वीटांगणा । पांच पूठारे मुख मल सूत्र प्रमुख तणा । पांच मोरारे लेखण पांच मजी सणा । वासकुंपारे कांबी वारू वरतणा । (नवालो ) वरतणा वारू वलिय कमली पांच फिल मिल प्रति ली । थापना चारिज पांच ठवणी मुहपती पर पाटली। पट सूत्र पाटी पंचकोथल पंच नव कर वालियां । इण परै श्रावक करे पांचमि नजमणो नजवालियां ॥ १७ ॥ वलि देहरेरे स्नात्र महोच्छव कीजिये । घर सारूरे दानवली तिहां दीजिये । प्रतिमानेरे प्रागंलि ढोवणो ढोइयै । पूजानारे जे जे उपगरण जोइये । (उल्लालो ) जोइये नप गरण देव पूजा काज कलशभृंगार ए । आरती मङ्गल थालदीवो धूपधाणो सारए । घनसार केसर अगर सूकम गुलहणो दीस। पंचपंच सगली वस्तु ढोवो सगतिसुं पचवीस ए ॥ १८ ॥ पांचमीतारे साहमी सर्व जीमारियै । रात्री जोगेरे गीत रसाज गवाडियै । इण करणी रे करता न्यान आराधियै । न्यान दरसणारे उत्तम मारग साधियै ।
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( उल्लालो ) साधियै मारग एह करणी न्यान जहीये निरमलो । सुर लोकने नरलोक माहें न्यान तते गलो । अनुक्रमें केवल न्यान पामी सासता मुख जेल है । जे करै पांचमी तप अखंति वीर जिणवर इम कहै ॥ १९ ॥ कलश ॥ इम पंचमी तप फल प्ररूपक वर्धमान जिलेसरो । मथुरायो श्रीमरिहंत भगवंत अतुल बल अलवेसरो । जयवंत श्रीजिनचंद सूरज सकल चंद नमु॑सीयो । वाचना चारिज समय सुंदर जगति नाव प्रसंसीयो ॥ २० ॥ ॥ २० ॥ इति श्रीपंचमी वृद्ध स्तवन संपूर्ण ॥ * ॥ ॥ अथ पंचमी लघुस्तवन ॥
॥ ॐ ॥
1111 ॥ ॥
॥ * ॥ पांचमि तप तुमे करोरे प्राणी । निरमल पामो न्यानरे । पहिली न्याननें पढे किरिया | नही कोई न्यान समानरे ॥ प० ॥ १ ॥ नंदी सूत्रमें न्यान वखायो । न्यानना पंच प्रकाररे । मति श्रुत अवधि मनपर्यव । केवल न्यान श्रीकाररे ॥ पां० ॥ २ ॥ मति अठावीस श्रुति चवदैवीस। अवधि
संख प्रकाररे। दोय नेद मन पर्यव दाख्यो । केवल एक प्रकाररे ॥ पां० || ३ || चंद्र सूरज ग्रह नक्षत्र तारा । तेस्युं तेज आकासरे । केवल न्यान समो नही कोई । लोका लोक प्रकासरे ॥ प० ॥ ४ ॥ पारसनाथ प्रसाद करीनें । महारीपूरो नमेदरे । समय सुंदर कहै हुपिण पासुं। न्याननो पंचमों नेदरे ॥ पां० ॥ ५ ॥ इति श्रीपार्श्व जिनस्तवनं ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ अथ अष्टमी लघुस्तवन ॥
॥ * ॥ अमल कमल जिम धवल विराजै । गाजै गोमी पास। सेवा सारै जेहनी । सुर नर मन धरिय नलास ॥ १ ॥ सोनागी साहिब मेरावे । अरिहां सुग्यानी पास जिणंदावे । (प्रकणी) सुंदर सूरति मूरति सोहै । मोमन अधिक सुहाय । पलक २ में पेखतां । मानुं नव नवी बवीय देखाय ॥ २ ॥ सोजागी० [अ० ॥ नवदुख गंजण जनम निरंजन । खंजन नयन सुरंग । श्रवण सुणी गुण ताहरा । माहरा विकस्या अंगो अंग ॥ ३ ॥ सो० ॥ ० ॥ दूरथकी हुँ आयो वहनें । दे वहलो दीदार । प्रारथियां पहिडेनही । साहिबा एह उत्तम आचार ॥ ४ ॥ सोनागी० प्र० ॥ प्रभु मुख चंद विलोकित हरखित । नाचत नयन चकोर । कमल हसै रवि दे
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रत्नसागर. खनें । जिम जलधर आगम मोर ॥ सो० ॥ ५॥ किसकै हरि हर किसके ब्रह्मा। किसके दिल में राम । मेरै मनमें तूं वसै । साहिब सिव सुखनो गम ॥ सो० अ०॥६॥ माता वामा धन्य पिता जसु । श्रीअश्वसेन नरेश । जनम पुरी वणारसी। धन धन काशीनो देस ॥ सो अ० ॥७॥ संवत सतरैसै वावीस । वदि वैसाख वखाण । आठम दिन जल जावमुं। मोरी जात्र चढी परिमाण ॥ सो० अ० ॥ ८॥ सानिध कारी विधन नि वारी। पर नपगारी पास । श्रीजिनचंद जुहारतां । मोरी सफलफली सहु आस ॥ सो अ०॥९॥ इति श्री पार्श्वजिन स्तवनं ॥८॥ ॥ ॥
॥अथ दशमी वृद्धस्तवन ॥ .. ॥ॐ ॥ पास जिनेसर जगति लोए। गवडी पुर मंमण गुण निलाए। तवन करिस प्रनु ताहरो ए। मन वंडित पूरो माहरो ए॥१॥ नयरी नाम वणारसि ए । सुर नयरी जिन रिकै वंसी ए। तेण पुरी दीपतो ए। अस्वसेन राजा रिपु जीपतो ए॥२॥वामा तसुघरि नार ए। तमु गुणहि नलनै पार ए। तासु न्यर अवतार ए। तमु अतिसय रूप नदार ए॥३॥ चवद सुपन तिण निसि लह्याए। अनुक्रम करि तेसहु मन ग्रह्याए। पूनूपतिनें कह्या ए। करजोमि कह्या जे जिम लह्या ए॥४॥ (ढाल २)। प्रथम सुपनगज निरख्यो। मायतणोमन हरख्यो। बीजै वृषन नदार। धरणी जिण धरयो भार ॥५॥ तीजै सिंह प्रधान । जसुबल कोयनमान । चनथें देखी श्री देवी । कमल वसै सुर सेवी ॥६॥ पांचमै पुष्फनी माला । पंचवरण सुविशाला। जछे दीओएचंद । ग्रहगण केरोएइंद ॥७॥ सातमें सूरज सार । दूरकियो अंधकार । ठमें धजलहकंती । वरण विचित्र सोहंती ॥८॥ नवमें पूरण कुंच। रियो निरमल अंन । देखि सरोवर दसमें । मनह थयो अति विशमें ॥९॥ समुद्र इग्यारमें गमें । खीर जलधि जसु नामें । बारम देव विमान । वाजिनध्वनि गीत गान॥१०॥तेरम रतननी राशि। दहदिसि ज्योति प्रकाशि। सुपन चवदमें ए दीगे। पावक धूमथी मीगे॥११॥ सुपन कह्यासुविचार। हरष्यो नृपनदार। पुत्ररतन होस्यै ताहरै। थास्यै नदय हमारे॥१२॥(हा) चवदमुपन श्रवणेसुणी। हरषकियो मुविचार। सुंदर सुत तुमे जनमस्यो। कुल
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तिथोंका मोटा बोटा स्तवन. दीपक आधार॥१३॥वामाप्रीतम वचन सुणि।वी मंदर ऊत्ति। देव सुगु रुकीरत करी । जनम कियो सुकयस्थ ॥१४॥ इण अनुक्रमि कग्यो दिवस कीधा सुपन विचार। ते घरि पहुता आपणै। दीधा दान अपार ॥१५॥ (दाल)३॥8॥ हिवजनम्या जगगुरु जगत्रहुन जयकार। खिण इक नार कियै पायो सुक्ख अपार । दिशिकमरी मिलकर सूत्रकरम निशिकीध । करि थानक पुहती बंगित तेहनो सिद्ध ॥ १६ ॥ तिणहीज निशि चौसठ इंद्रमिली तिहां आवै । लेई निज जगतै सुरगिर स्नात्र करावै। करि जनम महोडव जननी पासे ठगवै । तिहांथी सुर सबमिली दीप नंदीसर जावै ॥१७॥ इम रयण विहाणी ऊगो दिवस नदार । घर२ गाईजै कीजै मङ्गलच्यार। इग्या रम दिवसे मिली सहू परिवार । तसु नाम दियो श्री नत्तम पास कुमार ॥१८॥ प्रनु वाधै दिन २ कलाकरी जिम चंद । त्रिहुं न्यान विराजित रूप जिसो देविंद। गुणकला विचरण विद्या तणोय निधान । योवन वय आयो परणायो राजान ॥१९॥ (ढाल ४)॥ ॥ कुमर पदै प्रनु रहितां काल सुखै गमें ए। आयो मन वैराग संयम लेवासमें ए। तव लो गंतिय देव जणावै अवसरू ए । देई संवबरी दान याचक जन सुख करू ए॥ २० ॥ स्वामी संयमलेइ इंद्रादिक सब मिल्या ए । देश बिदेश विहार करी क्रम निरदल्या ए। पामीय केवल न्यान सुरै महिमा करी ए। थापिय चनविह संघ मुगति रमणी वरी ए ॥ २१ ॥ ( ढाल )॥५॥ ॥ ॥ इम श्रीगौमी पास तणा गुण जे नर गावै । ते नर नारी इह पर लोगसु बंबित पावै । संघ करी संघ पत्ति जिके गवमी पुर जावै। चोर धाड संकट टलै विधन वुराई न आवै ॥२२॥धरणराय पनमावइ जास वहे सिर आण । सांवल वरण सुशोजित नवकर काय प्रमाण । कल्पवृद्ध चिन्तामणि काम गवी सम तोले । श्री गुणशेखर सीस समय रंग इण परिवोले ॥२३)॥ इति श्री पार्थ जिन स्तवनं ॥१०॥ ॥2॥
॥अथ एकादशी वृद्धस्तवन॥ ॥ ॥ समवसरण बैग जगवंत। धरम प्रकास श्री अरिहंत । बारे परषदा बैठी जुडी। मिगसर सुदि इग्यारस वमी ॥१॥ मल्लिनाथना ती
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रत्नसागर.
न ल्याए । जनम दिवानें केवल न्यान । अरि दीक्षा जोधी रूवमी ॥ मिः ॥ २ ॥ नमिनें ऊपनो केवल न्यान | पांच कल्याणक प्रति पर धान । ए तिथिनी महिमा ए वमी || मि० ॥ ३ ॥ पांच भरत ऐरवत इम हीज | पांच कल्याणक हुवै तिम हीज । पंचासनी संज्ञा परगमी ॥ मि० ॥ ४ ॥ प्रतीत नागति गिणतां एम । दो से कल्याणक थायै ते । कुण तिथ एतिथ जे वमी ॥ मि० ॥ ५ ॥ अनंत चौवीसी इण परि गिणो । लाभ अनंत उपवासां तणो । ए तिथि सहु तिथि सिर राखमी ॥ मि० ॥ ६ ॥ मोन पर्णे रह्या श्री मल्लिनाथ । एक दिवस संयम व्रत सा थ। मोनतणी परिव्रत इम पमी ॥ मि• ॥ ७ ॥ अठपुहरी पोसो लीजीयै । चौविहार विधj कीजीये । पि परमादन कीजै घमी ॥ मि• ॥ ८ ॥ वरस इग्यार कीजै उपवास | जावजीव पिए अधिक उल्हास 1 ए तिथ मोक्ष त णी पावी ॥ ॥ मि० ॥ ९ ॥ कजमणो कीजै श्रीकार न्यानना उपगरण इ ग्यार २ || करो कानसग्ग गुरुपाये पमी | मि० ॥ १० ॥ देहरे स्नात्र करी जे वली । पोथी पूजी जै मनरली । मुगति पुरी कीजै हूकमी ॥ मि० ॥ ॥ ११ ॥ मोन इग्यारस मोटो पर्व । आराध्यां सुखलही सर्व । बत पच्चक्खा करो आखमी ॥ मि० ॥ १२ ॥ जेसन सोल इक्यासी समें । कीधो तवन सहू मन गमै । समय सुंदर कहे करो द्याही || मि० ॥ १३ ॥ इति श्री एकादसी वृध स्तवनं संपूर्ण ॥ ११ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ तुमेरे मनमें प्रभु तुमेरे दिलमें। ध्यान धरूं पल २ में । पास जिणेसर अन्तर जामी । सेवकरुं बिन २ में ॥ ( ० १ ) ॥ काहू को मन तरुणीसुं राच्यो । काहू को चित्त धनमें । मेरो मन प्रजु तुमहीसुं रा च्यो । ज्युं चातक चितघनमें । ( ० २ ) जोगीसर तेरी गति जाणें । अलख निरंजण बिनमें । कनक कीरति सुख सागर तुमही । साहिब तीन वनमें ॥ ( ३ ॥ इति पार्श्व जिन स्तवनं ॥ ११ ॥
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॥ अथ सास्वता असास्वता जिन बिंब नमस्कार स्तवन ॥
॥*॥ (देशी सूरती ) प्रहवी प्रभु ध्यानधरं नमुं सिध अनन्त । त्रिभुवन मां नमणकरुं जेबिंबरहंत । जुवन पति व्यन्तर योतषि बैमानिक मांह | अ
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तिथोंका मोटा गेटा स्तवन. द्लुत सास्वता बिंबनमुं मनधरि नहाह॥१॥ पंचमेरु वेताब्य हिमाचल निषध प्रमाण । नीलवंत चित्रसेल कुंमल गजदंत बखांण ॥ रुचक नंदीसर मानु षोत्तर आदि सास्वता जांण । रिषनानन चंद्रानन वारिषेण बधमाण ॥२॥
आठकोम अरुउप्पन लाख सत्ताएं हजार ॥ चवसै उयासी चैत्य सास्वता मंगलकार । सहस अठावीस नवसै पचवीस कोम मिलाय । तेपन लख चवसै अठ्यासी जग जिनराय ॥३॥ केइ आचार्य मते आठकोम सत्ता वन लाख । दोयसै अाएं त्रिनुवनमा सहुचैत्यनी साख । अहावन लख पनरैसै वयालीसकोस । अमतीस सहस बिंबसहु सतप्रसीकी जोम ॥४॥ मगध कोसल अंग बंग कलिंग काशी कुरुदेस । सोरठ कछ विदेह जां गल कुसावर्त्त कहेस । नंग सोबीर वैराट मलय सांमिल सूरसेन । वरण पंचाल दशार्ण कुणाल देसमें चैन ॥ ५ ॥ लाट बिदर सिंधु देससह केकइ अई जांण । साढा पचवीस देश जरतमें आर्य प्रधांन । दोय कोम अहावन लाख ग्यासी हजार । नवस तिहुत्तर ग्रांम नगर मांह बिंब अपार ॥ ६ ॥ वसुसत सातअसी जंबुप्रीप सह आर्य होय । धातकी खं सहस एक सातसै चौतीस जोय । एताही अई पुष्करमांहें देस गि णाय । ग्रांम नगर माहै बिंब अनेक नमुं गुणगाय ॥७॥ सिपशेल उर्जि त शिखरगिरि मोटाधांम । अष्टापद चंपा पावापुरि शिवसुख गंम । तारंगा अर्बुद राजग्रही क्षेत्र प्रमाण । अंतरीक धूलेवा राणपुरो जगनांण ॥ ८॥ श्रीप असंख्या जल थल पर्वत सिखर सुहाय । कनक धातु पाखाण रयण सहु बिंबरहाय । इम त्रिहुंलोक असास्वती सास्वती थांपना देख । त्रि करण सुधै नित प्रति प्रणमुं सहु गुण लेख ॥ ९॥ थापना जगवंते कही आगम मांह प्रमाण। अंग नपांग देखी मन निश्चय राखो सुजाण । जे नत्सुत्र वचनके नाषक जासी निगोद । अनंत काल नमतां कृणनर नहिं पांमें विनोद ॥ १० ॥ सोम्य मूरत प्रनुनी देखी नविपांमें वोध । आद्र कुमरकी रीते देखो आगम सोध । द्रव्यनाव विधिसंयुक्त सुर नर पूजे जेय । गुण पिमस्थ पदस्थ रूपस्थ रूपातीत लेय ॥ ११॥ रिषनादिक चौवीस तिर्थकर नमुं मन लाय । गणधर सहु संघ मंगलकारी नित प्रति थाय ।
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रत्नसागर. . जन्म मरण सहु मुख दूरै करो दीनदयाल । गढ खरतर गुरु लक्ष्मीप्रधां न मोहन प्रतिपाल ॥ १२॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति त्रिनुवन मंमण सर्व जिन बिंब नमस्कार स्तवनं ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ वैराग्य सिज्जाय लि०॥ ॥ ॥ नूलो मन जमरा कांइनमें । जमियो दिवसने रात । माया रोवांध्यो प्राणीयो । जमीयो परमल जात ॥१॥०॥ कुंन काचो काया कारमी । जेहना करोरे जतन्न । विणसतां वार लागै नही । निरम ल राखोरे मन्न ॥२॥०॥ केहना गेरू केहना वाठरू । केहनां मा यनै बाप । प्राणी जास्ये एकलो । साथे पुण्यनें पाप ॥३॥०॥श्रा स्यातोमूंगर जेवमी । मरवो पगलां रै हेठ । धन संची संच कांई करो। करवो देवनी वेठ ॥ ४॥५०॥ लख पति उत्र पति सबगए । गएलाखोंके लाख । गरन करीरे गोखे वैसता। लए जलबल राख ॥५॥नू० ॥ जव सायर जल मुख नरयो। तिरवो जैरे जेह । विचमें बीह सबलो अवै । क रमें वायने मेह ॥६॥०॥ नलट नही मारग चालवो । जायवो पहिलै रे पार । आगलि नही हटवाणीयो । संबल लेज्योरे साथ ॥७॥५०॥ मूरख कहै धन माहरो । धन केहनो न थाय । वस्त्रविना जाय पोढवो । ल ख पति लाकम मांय ॥८॥०॥ महमंद कहै वस्तु वोरीय । जे कुरा वैरे साथ । अपणो लान नवारीयै । लेखो साहिब हाथ ॥ ९॥ ॥ इति ॥
॥अथ क्रोधनी सिज्जाय लि०॥ ॥ ॥ कडुवारे फल कोधना। ग्यानी इम बोले । रीसतणो रस जाणिइं। हलाहल तोले ॥क० ॥१॥ क्रोधे कोमि पूरखतणो । संजम फ. ल जाय । क्रोध सहित तप जे करै । ते तो लेखे न थाय ॥२॥क० ॥ साधु घणो तपियो हुं तो। धरतो मन बैराग। शिष्यना क्रोध थकी थयो। चंग कोसियो नाग ॥क० ॥३॥ आगि कठे जे घर थकी । ते पहलू घरवालें। जलनो जोग जो नवि मिलै । तो पासेनुं पर जालें।क० ॥४॥ क्रोध तणी गति एहवी । कहे केवल नांणी । हांणि करे जे हेतनी । जा
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पोसह सिज्ञाय जगचूमामणि.
९९ लवजो इमजाणी॥क० ॥५॥ उदय रतन कहै क्रोधनें । काढजो गलें सा ही। काया करजो निरमली। नपशम रसनाही॥क०॥६॥ॐ॥ ॥2॥ इति क्रोधसिज्जाय सं० ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ उपदेशमाला पोसह सिज्जाय लि०॥ ॥॥ जगचूमामणि जून। सनो वीरो तिलोय सिरि तिल। एगो लोगा इचो । एगो चक्खू तिहुणस्स ॥ १॥ संवबर मुसल जियो । उम्मासे बघमाण जिणचंदो। इइ विहारिया निरसणा। जएकए व माणेणं ॥ २ ॥ जइता तिलोय नाहो । विसहइ बहुयाइं असरिस जस्स । इय जीयंत कराई। एस खमा सव्व साहूणं ॥ ३ ॥ न चइकाइ चालेन । महइ महा वघमाण जिण चंदो । वसग्ग सहस्सेहिवि । मेरु जहा वाय गुंजा हिं॥ ४॥ जद्दो विणीय विण । पढम गणहरो समत्त सुयनाणी। जाणतो वि तमत्थं । विझिय हियन सुणइ सव्वं ॥५॥ जं आण वेइ राया। पयइन तं सिरेण इछति । इय गुरुजण मुह जणियं । कयं जलिन डेहिं सोयब्बं ॥६॥जह सुरगणाण इंदो। गह गण तारागणाण जहचंदो । जहय पयाण नरीदो। गण स्सवि गुरू तहा णंदो॥७॥बालुत्ति महीपालो।न पया परि हवइ एस गुरु नव मा। जंवापुरने का। बिहरंतिमुणी तहा सोवि ॥८॥ पमिरूवो तेयस्सी । जुग प्पहाणा गमो महुर वको। गंजीरो धिईमंतो। नवएस परोय आयरिन ॥९॥ अपरिस्सावी सोमो । संगह सीलो अजिग्गह मईय । अबिकत्थणो अ चवलो। पसंत हिय गुरू होई ॥ १० ॥ कइयावि जिण वरिंदा । पत्ता अयरामरं पहं दान। आयरिएहिं पवयणं । धारिफाइं संपयं सयलं ॥११॥ अणुगम्मए जगवई । राय मुयजा सहस्स बंदेहिं । तहवि न करेइ माणं । परियबइ तं तहा नूणं ॥ १२ ॥ दिण दिक्खियस्स दमगरस । अनिमुहा अडचंदणा अजा । नेबइ आसण गहणं । सो बिण सव्व असाणं ॥ १३ ॥ वरससय दिक्खियाए । अजाए अऊ दिक्खिन साहू । अनिगमण बंदण नमसणेण । विणएण सो पुझो ॥ १४ ॥ धम्मो पुरस प्पनवो। पुरस वर देसिन पुरस जिहो । लोएवि पहू पुरसो। किंपुण लोग त्तमे धम्मे ॥ १५ ॥ संबाहणस्स रणो । तइया बाणारसीइ नयरीए । कना
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रत्नसागर.
सहस्स महिथं । सी किररूववंतीणं ॥ १६ ॥ तहविय सा रायसिरी । न लट्टंती न ताइया ताहिं । उयरहिए इक्केण । ताइया अंगबीरेण ॥ १७ ॥ महिलाणस्रु बहुयाणवि । मानु इह समत्त घर सारो । रायपुरिसे हिं निजइ । जणेवि पुरसो जहिं नत्थि ॥ १८ ॥ किं परजण बहु जाणा वणाहिं । वर मप्प सक्खियं सुकयं । इह नरह चक्कवट्टी । प्रसन्न चंदोय दिता ॥ १९ ॥ वेसो विप्पमाणो । संजम पसु वट्टमाणस्स । किं परिय त्तियवेसं । विसं नमारे खतं ॥ २० ॥ धम्मं रक्खइ वेसो । संकइवेसेण दिक्खिनाम अहं । उम्मग्गेण पर्यंतं । रक्खइ राया जणवन्य ॥ २१ ॥ अप्पा जाइ अप्पा | जहन सक्खिन धम्मो । अप्पा करेइ तं तह | जह अप सुहावहं होई ॥ २२ ॥ जं जं समयं जीवो । प्रविस्सइ जेण जेण जावेण । सो तंमि तंमि समए । सुहा सुहं बंधए कम्मं ॥ २३ ॥ धम्मो मए हुतो । तोनवि सी उन्ह वाय विज्जडिन । संवर मणसीन । बाहुबलि तह किलिसंतो ॥ २४ ॥ नियगमइ विगप्पिय चिंतिएण । स द बुद्धि चरिए । कत्तो पारत हियं । कीरइ गुरु अणुवसे ।। २५ ।। थो निरोवयारी । प्रविणीनं गनि निरखणामो । साहुजणस्स गरहिन । जणेवि वयणियं लहइ ॥ २६ ॥ थोवेणवि सप्पुरिसा । स कुमारुब्ब के इबुज्छंति । देहे खण परिहाणी । जंकिर देवेहिं सेकहियं ॥ २७ ॥ जइ तालव सत्तम सुर | विमाण वासीवि परिवति सुरा । चिंतितं सेमं । संसारे सासयं कयरं ॥ २८ ॥ कहतं जन्नइ सुक्खं । सुचिरेणवि जस्स दुक्ख मलि हियए । जंच मरणावसाणे । जव संसाराष्ट्र बंधिंच ॥ २९ ॥ नवएस सहस्से हिवि । बोहिऊं तो न बुज्ऊई कोई। जह बंजदत्त राया। नदाइ निव मारन चैव ॥ ३० ॥ गयकन्न चंचलाए । अपरिचत्ताइ राय लीए । जीवा सकम्म कलिमल | जरिय जरातो पति महे ॥ ३१ ॥ बोत्तलवि जीवाणं । सक्कराईति पावचरियाई । जयवं जा सा सा सा । पच्चाए सो हू इणमो ते ॥ ३२ ॥ पनि वृद्धि कण दोसे। नियए सम्मंच पायवमियाए । तो किर मिगावईए | उप्पन्नं केवलं नाणं ॥ ३३ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति पोसह सिज्जाय समाप्ता उपदेश माला ॥ *॥
॥४॥
॥ *॥
॥*॥
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राईसंथारा पोसहसिशाय. ॥ * ॥ अथ राईसंथारा पोसह सिज्झाय ॥ * ॥
*॥ निस्सिही २ णमो खमासमणाणं । गोयमाईणं महामुणीणं । (नवकार ३ करेमिनंते ३ कहीयै)। अणुजाणह चिहिजा । अणुजाणह परमगुरू । गुणं गण रयणे हिं मंमिश्र सरीरा । बहु पमिपुन्ना पोरिसी । राई संथारए गमि ॥१॥णु जाणह संथारं । बाहु वहाणेण वामपासेणं । कुक्कुन पाय पसारण । अंतरंतु पमज्जए नूमि ॥ २ ॥ संकोश्य संमासं । नवट्टतेय काय पमिलेहा । दवाई नवगं । ऊसास निरंजणा लोयं जश्मे हुज पमान। इमस्स देहस्सि माइरयणीए । आहार मुवहि देहं । सवं तिविहेण बोसरिअं ॥ ४ ॥ आसव कसाय बंधण। कलहा लक्खाण पर परीवाने । अरइ रई पैसुन्नं । माया मोसंच मिबत्तं ॥ ५ ॥ वोसरिसु इमाइं मुक्खमग्ग । संसग्ग विग्घ नूआई । जुग्गइ निबंधणाई । अहारस पाव घाणा ॥ ६॥ एगोहं नत्थि मे कोवि । नाह मन्नस्स कस्सवि । एवं अदीण मणसो । अप्पाण मणुसासए ॥७॥ एगो मे सास अप्पा । नाणदं सण संजुना सेसामे बाहिरा जावा । सब्वे संजोग लक्खणा ॥ ८॥ सं जोग मूला जीवेणं । पत्ता उक्खपरंपरा । तझा संजोग संबंधं । सवं तिवि हेण वोसरे ॥९॥ अरिहंतो महदेवो । जाव जीवं मुसाहुणो गुरुणो । जिण पन्नत्तं तत्तं । इय सम्मत्तं मए गहियं ॥१०॥ चत्तारिमंगलं। अरि हंता मंगलं । सिघामंगलं । साहू मंगलं । केवलि पन्नत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा । अरिहंता लोगुत्तमा । सिघा लोगुत्तमा । साहू लो गुत्तमा । केवलि पन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो ॥ चत्तारि सरणं पवजामि । अरिहंते सरणं पवजामि । सिधेसरणं पवळामि । साहू सरणं पवजा मि । केवलि पन्नत्तं धम्मं सरणं पवमामि ॥ अरिहंता मंगलं मज् । अरिहंता मज्ज देवया । अरिहंता कित्ति अत्ताणं । बोसिरामित्ति पावगं ॥१॥ सिचाय मंगलं मज्छ । सिघाय मा देवया । सिचाय कित्ति अत्ताणं । बोसिरामित्ति पावगं ॥२॥ आयरिया मंगलं मज्ज। आयरिया मज्जदेवया । आयरिश्रा कित्ति अत्ताणं । वोसिरामित्ति पावगं ॥३॥ नव माया मंगलं मऊ । नवज्माया मज्ज देवया । नवज्जाया कित्ति
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रत्नसागर. अत्ताणं । वोसिरामित्ति पावगं ॥४॥साहूणो मंगलं मज्ज । साहूणो मज्ज.. देवया । साहूणो कित्तिअत्ताणं । वोसिरामित्ति पावगं ॥५॥ पुढवि दग अगणि मारुन । इक्किके सत्त जोणि लक्खान। वण पत्तेय अणंते । दस चन दस जोणि लक्खान ॥१॥ विगलिंदिएसु दो दो। चनरो चनरोय नारय सु रेसु । तिरिएसु हुँति चनरो। चन्दस लक्खाय मणुएसु॥२॥खामेमि सब्ब जीवे । सब्बे जीवा खमंतुमे। मित्तीमे सब्ब नूएसु । बैरं मज्जन केणवि ॥३॥ एवमहं आलोइन निंदिअ । गरहिअ मुनिश्र सम्मं । तिबिहेण पडिकंतो बंदामि जिणे चन्वीसं ॥४॥खमित्र खमावि मइ खमित्र । सब्बहजीव निकाय । सिघह साख बालोयणह । मज्जह बैर ननाय ॥ ५॥ सब्बे जीवा कम्मवसु । चनदह राज मंतु । तेमइं सब्ब खमाविश्रा । मज्झवि तेह खमंतु इति राई संथारा गाथा समाप्ता ॥ * ॥ ॥ॐ॥ ॥॥
॥ ॥ अथ सदाकालका अवश्य कर्त्तव्य । सामायक, पमिक्कमणा अठपुहरी (तथा) चौ पुहरी पोसा, । देवबांदणा, पञ्चक्खाण पारणा, छ म्मासी तप चिंतना, सर्बकी अनुक्रमें शास्त्रानुसारे विधि लि०॥ ॥
॥ ॥ प्रणम्य श्रीजिनाधीशं । सदगुरुं च विशेषतः । श्राद्धाहोरात्र कृत्यानि । लिख्यन्ते लोकनाषया ॥१॥॥
॥अथ प्रथम प्रनात सामायकविधि लि०॥॥ ___॥॥ श्रावक दोय घडी रात्र रह्यां पोशहशालाये । अथवा गुरुकनें । अथवा घरने एक प्रदेश (आवी) प्रथम दिवस संध्याये पमिलेह्या वस्त्र पहिरी। (जो) गुरूरो योग न हुवै (तो) आप प्रमार्जित थानकै । खमासमण पूर्व क तीन नवकार गुणी थापनाजी थापै (प) खमासमण देई कहै । इडा कारेण संदिस्सह नगवन् । सामायक मुहपत्ती पमिलेहुं (गुरुकहै पनि लेह) पढे इल्वंकही । दूजी खमासमण देई । मुहपत्ती पमिलेहै। कुलो हो य खमा कहै । इला० सं० न० । सामायक संदिस्साबू (गुरु कहै संदि स्सावेह ) पजे इलंकही । वलेख देनें कहै । इलाका० सं० ज०। सामायि क गर्नु (गुरु कहै गएह) पड़े इवें कही । खमासमण देई । अर्घावन तकाय ऊलो थको । तीन नवकार गुणी कहैं । इनकार नगवन पसानकरी
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प्रनातसामायक राईप्रतिक्रमण विधि. . १०३ सामायिकदम नच्चरावोजी (गुरु कहे उचरावेमो) पठे। करेमिचंते सामाश्यं (इत्यादि) सामायकसूत्र । गुरुवचन अनुनाषण करतो थको । तीनवार नच री। खमासमण देई । डाकासंन । इरियावहियं पडिकमामि (गुरुको पमिक्कमह ) प इलं कही । इछामि पमिक्कमित्रं इरियावहियाए (इत्यादि पाठकहै) इरियावही पमिकमी। एक लोगस्सनो कानसग्गकरी । णमो अ रिहंताणं कही । कानसग्गपारी । मुखें प्रगट लोगस्स कही। खमासमण देई इछा० सं० न० । वैसणो संदिस्सावू (गुरु कहै संदिस्सावेह) पने लुक ही। वले खमासमण देई। इछाका० सं० ज०। बैसणो गर्ल (गुरु कहे ग एह ) पछे श्वं कही । खमासमण देई । इछाका० सं० न० । सिज्जाय सं दिस्सा (गुरुकहै संदिस्सावेह) प इडं कही। वलेखमासमण देई । इला का० सं० न० । सिज्जाय करूं (गुरुकहै करेह ) इलु कही। वले खमासमण देई। कनो थको आठ नवकार सिकाय करै । तथा शीतकालादि हुवै (तो) खमासमण देई । इलाका संज। पांगरणो संदिस्सावू (गुरु कहै संदिस्तावेह ) प श्वं कही । खमासमण देई। इवा० सं००। पांगरणो पमिग्याळ (गुरु कहै पमिग्याएह) पछे श्ठं कही वस्त्रग्रहण करे। तथा सामायकवंत (अथवा) पोसहीता श्रावकप (कोई ) सामायकवंत (अथ वा) पोसहीतो श्रावक वांदै (तो) वंदामो एहवं कहै । जो कोई बीजो वांद (तो) सिज्जायं करेह । एहवो कहै ॥ * ॥ ॥ॐ॥ इति प्रनात सामायक ग्रहणविधि ॥१॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ राई प्रतिक्रमण विधि लिख्यते ॥ * ॥
॥ (हिवे) एक खमा समण देई । इलाका० सं० न०। चैत्यवंदन करूं (गुरुकहै करेह ) प→ इहं कही। जयन सामी २ ( इत्यादि जय वीय राय सूधी चैत्यवंदन करै । पहें खमासमण देई । इचाका०सं० ज० । कुसुमिण पु स्मुमिण राई प्रायछित्त विसोहणत्थं करेमि कान्सग्गं (गुरु कहै करेह) पचै इबँकही। कुसुमिण पुस्सुमिण राई प्रायवित्त बिसोहणत्थं करेमि का नसगं । अन्नत्थू ससिएणं ( इत्यादिकही) (४) लोगस्सनो कानसग्ग। चंदेसु निम्मलयरा ॥ सूधी चिंतवी । णमो प्रारहंताणं कही । कानसग्ग
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रत्नसागर. पारी। मुखै लोगस्स कहै (जो) रात्रे मोटको गुण संबंधी दूसण लागो हुवै (तो) कानसग्ग मांहें । सागरवरगंजीरा । सूधी चिंतवीय (इतिसंप्रदायः।
॥ * ॥ किहां इक पहिला कुसुमिण पुस्समिण कानसग्ग करी । पठे चैत्यवंदन करवो कह्यो । पिण परमार्थ एकहीजलै । प । पमिक्कमण वेला सीम सिज्जाय ध्यान करै ॥ * ॥ हिवै पमिक्कमण ठाववानो अवसर हुवां ___॥१खमासमण देई ( श्री आचार्यजी मिश्र ) कही वांदीयै ॥ २
खमासमण देई (श्री नपाध्यायजी मिश्र) कही वांदीय ॥ ३ खमासमण। जंगम युग प्रधान वर्तमान नहारक श्रीपुज्यजी का नाम कही वांदीयै ॥ ४ खमासमणे । सर्व साधूजीकुं वांदीय ॥ इम च्यार खमासमणे पडि. कम णो ठगवी । इबकार समस्त श्रावको वांदूं (कही) गोडा लीय वैसी मस्तक नमावी । दोय हाथे । मुहपत्ती मुखें देई । सबस्सवि राइय ( इत्यादि कहै ) पिण इला कारेण संदिस्सह इवं ( इसोन कहै ) पने शकस्तव कही। कलो थई । करोमि नंते सामाइयं । सावजं जोगं पञ्चक्खामि ( इत्यादि कही) इनामि गर्न कानसग्गं । जोमे राइन ( इत्यादि पाठ कही ) तस्मुत्तरी । अन्नत्थू ससिएणं कही । चारित्र शुधि निमित्तें ॥१ लोगस्सनों कानसग्ग करी (पारी) दर्शन शुधि निमित्तें । लोगस्स कही । सबलो ए अरिहंत चेइयाणं करोमि कानसग्गं । वंदण वत्तिा ए ( इत्यादि कही)१ लोगस्सनो कान्सग्ग करी ( पारी) झानातीचार शुधि निमत्तें। पुक्खर वर दीवढे। (कही) सुयस्स भगवन करेमि कानसग्गं । वंदणव त्तिाए ( इत्यादि कही ) कानसग्ग करै । कानसग्ग मांहें । आजृणा चौपुहरी रात्रि मांहें । इत्यादि आलोयण पाठ चिंतवे ॥ ॥ ॥ (अनें एनावैतो) आठ नव कार चिंतवीयै। पवै कानसग्ग पारी। सिघाणं बुघाणं (कही) संमासा प्रमार्जन पूर्वक बैसी (मुहपत्ती पमिलेहै ) पचै दो वांद णादै ( ते इम ) अविग्रह बाहिर ऊनो थको। आधो नमी ॥ इहामि खमा स। वंदि० जाव० । नि० । अणुजाणह मेमिनग्गरं (इतरो कही) जृमि प्रमार्जतो धको । निस्सही कही । कांइक अवग्रह मांहि पैसी । संमा सा प्रमार्जी । ककडू वैसी। मावै हाथ मुहपत्ती लेई । मावे कान थी जी
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राई प्रतिक्रमण बिधि.
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मणा कान लगें निलाम पूंजी | मुहपत्ती आगे मेल्ही । तेहनें मध्यभागै गुरुचरण कल्पना करी । अहो कायं ( इत्यादि आवर्त्त करी ) क्युं हिक कं चो नमी । मस्तकै अंजली करी । गुरुसांझी दृष्टिराखी । खमणिको ने किलामो (इत्यादि पाठ कहे ) पढे । फेर जत्ताने | ( इत्यादि आवर्त्तन कर) ऊनो थई । पाठै पगे भूमि पुंजतो । अवग्रह बाहिर स्वस्थानें वी। आवस्सिया ( इत्यादि पाठ ) सर्व कहैं । बीजी वार बले इम हीज करे। (पिण) अवग्रह बाहिर न नीकलै । तिहां कनोज सर्व पाठ कहै । आवसियाए पद नकहै । (इम सर्वत्र जाणिवूं ) पर्ने अवग्रह मांहि रही कहै । इछाका सं० ० । राइयं आलोवूं ( गुरु कहै आलोएह ) यन् । इवं आलोएम जोमेराईन (इत्यादि पाठ कचरतो) कानसग्ग मां हैं चितव्या । रात्रिसंबंधी प्रतीचार | गुरु समक्ष आलोवे । पर्ने । सवस्सवि राज्य ( इत्यादि पाठ कहै ) तिहां इछाका० सं० न० एपद कहिवै करी । आलोया प्रतीचार नों प्रायश्चित्त मांगे ( गुरु कहै पक्कि मह ) पर्ने । इवंतस्स मिचामि डुक्करुं ( कही ) संमासा प्रमार्जी । प्रासणें बैसी। जीमणो गोमो कंचोराषी । गावो गोमो नीचो करी ( एहवूं कहै ) गवन् सूत्र (गुरु कहै जगह ) प इ कही । ३ नवकार । ३ करेमि अंते ( अथवा ) १ नवकार । १ करेमि नंते ( कही ) इछामि पक्कि मि । जोमेराइन ( इत्यादि कही ) बंदित्तू सूत्र । तनिंदे तंच गरिहामि ( सूधी कहै ) पबै कुनो थई । अब्नु हिनमि आराहणाए ( इत्यादि संपूर्ण कही ) वे बांदा देई || अवग्रह मांहि थको हीज कहै । इछाका ० ॥ सं० । ० । अनुष्ठिनमि अनिंतर । राइयं ( कही ) संमासा प्रमार्जन पूर्वक गोडालीये वैसी । बेबांह पडिलेही । मुहपत्ती वांम हाथसुं मुखें देई । दक्षिण हाथ गुरु सांझो करी। नींचो नम्यो थको । जंकिंचि अप्यत्तियं ( इत्यादि संपूर्ण कहै ) तिवारै गुरु पिण मित्रामि दुक्कडं कहै ) पढे । बे बांदादेई । म प्रमार्जता । पाठे पगे अवग्रह बाहिर आवी | आयरिय उवझाए । इत्यादि गाथा ३ कहे । पबै । करेमि नंते । इछामि गमि कानसग्गं । तस्सुत्तरी । (इत्यादि कही ) कानसग्ग करे । कानसग्ग मांहें ।
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रत्नसागर. श्रीवीर कृत उम्मासीतप चिंतवै (जो) उम्मासी तपन जाणे (तो) ६ खोगस्सा अथवा, २४नवकारनो कावसग्ग करै ऐसी प्रवर्तीहै । पजे जे पच्चक्लाण करखो हुवे (ते) हियामांहि धारी। कानसग पारी । लोगस्स कही। ककडूबेसी। मुहपत्ती पडिलेही। बे वांदणा देई । सकल तीरथ नामलेई । नमस्कार करी (कहै) इह कार नगवन पसान करी पञ्चक्खाण करावो जी (प) सुरु मुखें पञ्चकखाणकरें । गुरु अन्नावै थापना समहें (अथवा ) साधर्मी मुर्खे पचक्खांण करे (प.) इलामो प्राणुसहिं कही, बैस (तिवारै ) गुरु १ शुई कह्यां पढ़। मस्तकै अंजली करी । नमो खमासमणाणं ! नसो क्षेत्सि था कही ॥ संसार दावानल इत्यादि (अथवा) नमोस्तु वर्ष मानाय । त्यादि (अथवा) पर समय तिमर ( इत्यादि तीन गाथा लणी ) शक्रस्त व कहै । पचै । कनो थई । अरिहंत चेईयाणं करेमि कानसग्गं । वंदणवत्ति आए (इत्यादि कही) कानसग्ग मांहें १ नवकार चिंतवी। एक श्रावक प्रथ म कानसग्ग पारी । नमो सिधा कही । एक गाथा स्तुति कहै। बीजा सर्व कानसग्ग मांहें रह्या सुणे (प) णमो अरिहंताणं कही। कानसग्ग पार । इम आगै पिण जाणवो । (प) लोगस्स कही। सबलोए अरिहंत देहाणं । बंदणवत्ति । अन्नत्थू० । (इत्यादि कही) १ नवकारनों का नुसरग करी (पारी) बीजी स्तुति कही। सिधाणं बुधाणं कहै । (प.) वे यावच गराण । अन्नत्थू० कही । १ नवकारका० करी। (पारी) नमो ति सिधा कही । चौथी स्तुति कही । (बैसी.)। नमोत्थुणं कहै । घले तीन खमासमणे । पूर्वोक्त रीतें । आचार्य । नपाध्याय । सर्व साधू वांदे। इति प्रजाती पमिकमण विधिः ॥ * ॥ ॥ * ॥ 8॥ का ॥ ॥ पुनःइतना विशेष है॥
॥ इतनी विधि कियां पाळे थिरता हुवै (तो) नत्तर दिशे । सीमंधर स्वामी सांहमां बैसी । कम्म नूमी २ ( इत्यादि ) संपूर्ण चैत्यबंदन करे (प्रति ) अरिहंत चेईयाणं करेमि कानसम्गं । वंदणवत्ति अन्नत्थू० कही। १ नवकार चितवी ( पारी) सीमंधरस्वामीनी स्तुति कहै । इम हीज थिरता हुवै (तो) श्रीसिचाचलजी नो चैत्यवंदन करे ।। पले पमिलेहए
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राई प्रतिक्रमण सामायकपारण विधि. कर (तेइम) खमासमणदेई । इलाका० सं० । पमिलेहण संदिस्सान (गुरु कहै संदिस्साएह) बीजै खमासमणे । इहा० सं० न० । पमिलेहण करूं ( गुरु कहै करेह) पछै । कही। मुहपत्ती पमिले है । (इमहीज दोइ खमासमणे । अंग पमिलेहण संदिस्सा । अंग पमिलेहण करें (कही) धोतियो कणदोरो पमिलेही । खमासमणदेई । इहकार नगवन् पसान करी पडिलेहण पडिलेहा वोजी (इम कही) थापनाचार्य पडिलेही। राखै (अने) जो गुर्वा दिक थापनाचार्य पमिलेहै । तोपिण । खमासमण देई आग्यामांगै । पछै खमासमण देई । इला० सं० न० । मुहपत्ती पडि लेहुँ (गुरुकहै पडिलेहेह) पड़े इई कही। मुहपत्ती पडिलेही । दोय खमासमणे श्बाका० सं० न० । नही पडिलेहण संदिस्साऊं । करुं (कही) कंबल वस्त्रादि पडिलेहै । पढे । पोसहशाला प्रमार्जी । काजो विधमुं परठी । खमासमण देई । इरियावही पडिक्कमें (एमूलबिध जाणवी)॥ॐ॥ इतरी स्थिरतानहुवै तो पिण दृष्टि पडिलेहण करवी । हिवणां पिण प्रायें इमहीज करता दीसै॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ * ॥ हिवै सामायक पारणेंकी विधि कहै॥* ॥ ॥॥ प3 सामायक पारे । १ खमासमण देई । मुहपत्ती पडिलेहै फेर खमासमण देई इबा० सं० ज । सामायक पारु (गुरु कहै पुणोवि कायबो) पचै यथाशक्ति कही। वले खमासमण देई (कहै ) इचाका सं० न० । सामायक पारेमि ( गुरु कहै यारोनमोत्तव्वो) पत्रे तहत्तिक ही। अर्ज नम्र ऊनो थको। तीननवकारगुणी । नीचो गोमालीय बैसी । मस्तक नमावी । जयवंदसन्ननदो ( इत्यादी गाथा कहै)(अथवा) पहिला सामायक पारी । पत्रै पडिलेहण करै ( इहां ) यथायोग्य अवसरे गुरूने सुहराई पूजे (ते इम एक खमासमण देई कहै । इहकार नगवन् मुहराई, सुखतप शरीर, निरावाध, संयम यात्राः सुखें निरवहै जी, पूज्यजी साता (इत्यादि पूरी) बीजी खमासमण देवै । श्रीजिन पति मुरि जीनी समाचारीमें इम कह्यो ॥१॥ति सामायक पारणविधिः॥॥
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रत्नसागर.
॥ * ॥अथ संध्याकाल सामायक बिधि लि०॥
॥ॐ॥ हिवै पानले पहुर धर्मशाला प्रमार्जी । वस्त्रादि पमिलेहै । जो अवेलो आयो हुवै (तो) दृष्टि पमिलेहण करै । पचै । गुरु आगै (अथ वा)थापनाचार्यजी आगै आवी । नूमी प्रमार्जी । आसण बांम पास यूं की । खमासमण देई ( कहै) इछाका० सं० न० । सामायिक मुह पत्ती पमिलेहुँ (गुरु कहै पमिलेहेह) प. इथं कही । वले खमासमणदेई इलाका० सं० न० । सामायक संदिस्सा ( गुरु० संदिस्सावेह ) फेर खमासमण देई । इलाका० सं० न० । सामायक गन ( गुरु ठाएह) पढ़ इलं कही । फेर खमासमण देई । अर्घावनत थई । तीन नवकार गु पी (कहै) इडकार जगवन् पसान करी सामायिक दंग नचरावो जी (गुरु नचरावेमो) प । करेमि नंते सामाश्यं (इत्यादि) सामायक सूत्र गुरुवचन अनुनाषण करतो थको । तीन वार नचरी । खमासमण देई। इछाका० सं० न० । इरिया वहियं पमिकमामि (गुरु कहै पमिकमह) प3 इदं कही । इलामि पमिक्कमि । इरिया वहियाए ( इत्यादि पाठे इरि यावही पडिक्कमी । १ लोगस्स नो कासग्ग करी । णमो अरिहंताणं क. ही। कानसग्ग पारी । मुखें प्रगट लोगस्स कही । नीचावैसी । मुहपत्ती पडिलेही । वांदणा देई (कहै) इन्कार नगवन पसान करी पञ्चक्खाण करावोजी पवै (गुरु) दिवस चरम पञ्चक्खाण करावै ॥ गुरु अन्नावै था पनाचार्य समहें (अथवा) स्वमुखें (तथा ) वमेरा साधर्मी मुखें पचखै (अने) जो तिविहार नपवास कीधो हुवै (तो) मुहपत्ती पमिलेही । पञ्चक्खाण करै । वांदणा नद्यै (अने) जो चनविहार नपवास हुवै (तो) पच्चक्खाण करवो नही । ते माटै । मुहपत्ती नही पमिलेहै । एविस्तार वि धि । प १ खमासमण देई । इहाका० सं० न० । सिशाय संदि स्सा (गुरु कहै संदिस्सावेह ) पचै इई कही । वले खमासमण देई । इच्छा । सं० । न। सिज्ञाय करु (गुरु० करेह ) पढ़ इचं कही । ख मासमण देई । ऊनो थको (मधुरस्वरें)८ नवकाररनी सिशाय करे । पड़े खमासमण देई । इछा० सं० न० । बैसणो संदिस्सा ( गुरु० सं
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- देवसी प्रतिक्रमण विधि. दिस्सावेह ) फेर खमासमण देई । इडा० सं० न० । वैसणो गर्ने । (गुरु० गएह) प छ कही। जो शीतकालादि हुवे (तो) खमास मण देई । इहा. सं० ज० । पांगरणो संदिस्सा (गुरु० संदिस्सावेह) फेर खमासमण देई । श्वा० सं० प्र० । पांगरणो पमिग्घा ( गुरु० यमिग्घाएह ) श्वंकही शुलध्यान करै ॥१॥ इति संध्यासामायिक विधिः ॥
* ॥ अथ देवसी पक्किमण विधि लि० ॥ * ॥
॥ ३ खमासमण देई ॥ इहा० सं० प्र० । चैत्य वंदन करूं (गुरु कहै करेह ) पढ़ इलु कही । जयतिहुयण । जय महायस (प्र मुख) नमस्कार कही । नमोत्थुणं कही । अरिहंत चेश्याएं० (इत्यादि पूर्वोक्त रीतें)च्यारे थुई ए देव वांदै । च्यार खमासमणे प्राचार्यादिक बांदी । प3 इकार समस्त श्रावको वाहुं । इम कही गोमालिय बैसी। मस्तक नमावी । सवस्सवि देव सिय (इत्यादि) तस्स मिठामि मुक्कडं क है (पिण) इहा कारेण संदिस्सह श्वं ( एपद न कहै ) पछै ऊना थई। कमि ते सामाश्य० । इछामि ठगन कान सग्गं । जोमे देवसिन० ॥ तस्सुत्तरी० ॥ अन्नत्थू ससिएणं० ॥) इत्यादि कही ( कानसग्ग करै । काठसग्ग माहें । आजूणा चौपहरा दिवसमें) (इत्यादि पाठ मनमें चिं तवी) णमो अरिहंताणं कही । कानसग्ग पारी । लोगस्स कहै । संमा शा प्रमार्जन पूर्वक बैसी। मुहपत्ती पमिलेही। बे बांदणा देवै । पछै अवग्रह मांहि ऊनो थको कहै । इडा० सं० ० ॥ देवसियं आलोकं । गुरु कहै आ लोएह । पठे। इळ आलोएमि० पाठ कहै । आजूणा चौपहर दिवस । लघु अतीचार आलोवै । पछै सबस्सवि देवसिय (इत्यादि) इहा कारेण संदिस है। सूधी कहै । तिवारै (गुरु कहै पमिक्कमह ) पछै । इई तस्स मिला मि मुक्कम (कही) संमाशा प्रमार्जी । प्रमार्जित नूमें आसणे बैसी कहै । जगवन सूत्र नएं (गुरु कहै नणह ) पड़े इडं कही । तीन नवकार ३ करोमि नंते (अथवा) १ नवकार १ करेमि नंते ( कही ) इहामि पनि कमिनं । जोमेदेवसी ( इत्यादि कही) एक श्रावक बंदित्तू कहै । बी जा सर्व भुणे । प कलो थई । अनुहिनमि आराहणाए ( इत्यादि सं
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परनसागर पूर्ण पाठ कही)बे वांदणा देव । अवग्रह मांहिज कलो थको । इलाका सं० प्र० । अनुनिमि अप्निंतर । देव सियं खामेनं ( गुरु कहै खामेह) प, इखं खामेमि देवसियं (कही) गोमालीय बैसी । वाम हाथे मुह पत्ती मुखें धरी । दक्षिण हाथ गुरु सनमुख करी । मस्तक नमावी ( सर्व पाठ कहे ) पने विधिमुंबे बांदणादे । आयरिय नवशाए (इत्यादि ३ गाथा कही) करोमिनंते सामाश्यं ॥ इनामि गर्न कानसग्गं (इत्यादि कही) चारित्र शुधिनिमित्तै दोयलोगस्सनो कासग्ग करे (पारी ) दर्शन शुद्धि निमित्तें प्रगट लोगस्स कही । सबलोए अरिहंतचे। वंदण । अन्नत्थू० कही ॥१ लोगस्सनों कानसग्ग करै ( पारी ) ज्ञान शुधि निमित्तें । पुक्खरवर दीवढे ( कही) सुयस्स नगवन । वंदण व० । अन्नत्थू कही। १ लोगस्सनों कानसग्ग करै ( पारी ) सिघाणं ( कही ) वेयावच्च गराणं न कहै । पढ़। सुयदेवयाए करेमि कानसग्गं । अन्नत्थू कही । एक नवकारनों कानसग्ग करी । गुरु संयोग नही हुवै ( तो ) एक श्रावक कान्सग्ग पारी । नमोत्सिघा कही । श्रुतदेवतानी स्तुति कहै। (गुरु हुवै तो गुरु कहै) बीजासर्व स्तुति सुणकै कानसग्ग पारें। पढ़। खित्त देवयाए करेमि कानसग्गं । अन्नत्थू कही। एक नवकार चिंतवी । पूर्वली परें (क्षेत्र देवतानी स्तुति कहै ) प कनो थको। १ नवकार कही। संमाशा प्रमार्जी। ककडू बैसी । मुहपत्ती पमिलेही । विधमुंबे वांदणा देई । इलामो अणुसहिं कही । बैसे ( प3 गुरु एक स्तुति कयां पूर्व : श्रावक समस्त मस्तकें अंजली करी। णमो खमासणाणं । णमो सिधा कही। णमोस्तु वर्ष मानाय ) इत्यादि तीन स्तुति कहै ( श्राविका । णमो खमासमणाणं । कही । संसार दावानी तीन स्तुतिकहै । प णमों त्थुणं कही । एक श्रावक खमासमण देई कहै । इछाका सं० म० । स्तवन नएं। बीजा सर्व खमासमण देई कहै । इला० सं० ० । स्तवन सानलं (गुरु कहै जणह, सांजलह) पठे आसणे बैसी । नमो सिधा पूर्वक । वमो स्तवन कहै । परे तीन खमासमणे । आचार्य उपाध्याय सर्व साधू बांदी। चोथे खमासमणे इडा० सं० ज । देवसी प्रायवित्त
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अठ पुहरी पोसह ग्रहणबिधि
१११ बिशुधि निमित्तं कानसग्ग करूं (गुरु कहै करेह ) पड़े इवं कही। देवसी प्रायद्वित्त विसुधि निमत्तें । अन्नत्थू कही । च्यार लोगस्सनो कानसग्ग कर ( पारी ) लोगस्स कहै । पर खमासमण देई । इला का० सं० ज। खुद्दो वदव नहमावणत्थं करेमि कानसग्गं । अन्नत्थू० ) इत्यादि कही) च्यार लोगस्सनो कानसग्ग करै ( पारी ) लोगस्स कहै ॥ वैसी। खमासमण देई । थंनणा पार्श्वनाथ जीनों चैत्य वंदन करै । जय वीयराय कह्यां पड़े खमासमण पूर्वक मस्तक नमावी ॥ सिरि थंत्रणयध्यि पास सामिणो ( इत्यादि दोय गाथा कहै) ऊना थई । वंदणव० अन्न कही ४लोगस्सनो कानसग्ग करै (पारी ) प्रगट लोगस्स कहै (इम हीज) दादा जी श्रीजिन दत्त सूरिजीनो कानसग्ग करै) पारी मुखे लोगस्स कहै । पड़े। दादाजी श्रीजिन कुशल सूरिजीनो कानसग्ग करै। (पारि) मुखे लोगस्स कहै परे । गोटी शांति कहै (जो) शांति न आवै ( तो ) १६ नवकारनो कानसग्ग करै । पठे। ३ खमासमण देई । चनक्कसायनो चैत्यबंदन जय बीयराय सूधी करै । सर्व मंगल कहै ॥ चनक्कसायनो चैत्यबंदन सूती बखत करनेकाहै ( पिण ) हिवणा प्रवृत्ति ऐसीजहै ॥ पढ़ पूर्वोक्तरीतै सामा यक पारे। इति देवसी पमिकमण विधिः संपूर्ण ॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ अथ अपुहरी पोसह विधि लिख्यते ॥ ॥
॥ रात्रीने पाउले विघमियै निद्रा दूर करीनें । पंचपरमेष्टि स्मरण करी। गृहचिंता परिहरी। पर्वदिवस थकी। प्रथम दिवसें। पमिलेही राख्याजे पोसहना नपगरण लेई । पोसह शालायें थापनाचार्य समीपें । अथवा गुरुनों संयोग हुवे (तो) गुरुने पासें आवी । नूमीप्रमार्जी । एक खमा समण देई । इरियाबही पमिक्कमें । पछै खमासमण देई । इलाका० सं० ज०। पोसह मुहपत्ती पमिलेहुं । ( गुरु कहै पमिलेहेह ) इडं कही। स्वमासमण देई । मुहपत्ती पमिलेहै । पचै कनो थई । खमासमण देई। इबाका सं००। पोसह संदिस्सा (गुरु कहै संदिस्सावेह)। प इहू कही। खमासमण देई । इबाका० सं० न०। पोसह ठग) गुरुकहै । गएह (पछै इई कही। खमासमण देई। कनो थई । आधो सरीर नगावी ।
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रत्नसागर. मुखे मुहपत्ती देई । मधुर स्वरे। तीन नवकार गुणी कहै । इल्लकार जग वन पसान करी। पोसह दमक नचरावोजी ) गुरु० नच्चरावेमो) । प करे मिन्नंते पोसहं । आहा । जाव अहोरत्तंवा । अप्पाणंबो० ॥ एपाठ तीनवार गुरुवचन अनुजाषण करतो ऊचरै ॥ * ॥ पछै एक खमासमणे । हल्ला का० सं० ज० । सामायक मुहपत्ती पमिलेहुं (गुरु कहै पमिलेहेह) वीजी खमासमण देई । मुंहपत्ती पमिलेहै । पचै । दोय खमासमणे सामायक संदि स्सानं । सामायक गनं ( कही) खमासमण देई । अर्घावनत गात्रकनो थको । तीन नवकार । तीन करेमि नंते ऊचरी । दोय खमासमणे । जैसणो संदिस्सानं । बैसणो ठावं । कही । पछै दोय खमासमणे । सिशाय संदिस्सा । सिशाय करूं (कही) खमासमण देई । कुनोथको। पाठ नवकारनी सिशाय करै । सीतादि परीसहै दोय खमासमणे । पांगरणं संदि स्सा । पांगरणुं पमिग्यानं (कहै)। ए सर्व सामायक विधि पूर्व कही है तिमहीज करवी । (पिणइतनो विशेष है ) पहिला इरियावही पमिकमीहै । ते माटै । इहां सामायक दमक कचरयां पछै । इरियावही नही पलिकमी जै॥ ॥ पी चैत्यवंदन । जय बीयराय सूधी करी । कुसुमण पुस्समिण कानसग्ग करै । पछै पमिक्कमण वेला सीम सिशाय ध्यान करै । पहें पूर्को तरीतें पमिकमण करै (पिण इतरो विशेषहै ) च्यारे थुई ए देव वांद्यां पीठे । खमासमण देई (कहै ) इलाका सं० न० । बहुवेलं संदिस्साळ (गुरु कहै) संदिस्सावेह ( प. इदं कही ) खमासमण देई ( कहै ) इहाका० सं० न० । बहुवेलं करुं ( गुरु कहै करेह ) प इ, कही। तीन खमासमणे ॥ श्री आचार्यजी मिश्र १ । श्रीनपाध्यायजी मिश्र २ । तीजै सर्व साधू वांदी । कम्म चूमिहि २ । ( इत्यादि नमस्कार नणे ) जो पमिलेहण वेला नही हुवै (तो) सीमंधर स्वामीनो चैत्य वंदनादि करी । सिशाय करै । हिवै पमिलेहण वेला पमिलेहण करै)। ते विधिपूर्नलिखोले । ( तोपिण) संपें फेर लिखेंहें ॥ * ॥ दोय खमासमणे । इन्डा सं० न० । पमिलेहण करुं (कही) मुहपत्ती पमिलेहै । पदोय खमा समणे । अंग पहिलेहण संदिस्साङ । अंग पमिलेहण करूं (कहै ). पठे
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देववंदन (तथा) पञ्चखाण पारणविधि.. ११३ (गुरु वचने) इडं कही । धोतियो कणदोरो पमिलेही । वस्त्र पहिरी । खमासमण देई । इनकार नगवन पसानकरी पमिलेहण करावोजी। ( इम कही)।थापनाचार्य पमिलेही थापै । अनें जो (गुर्वादिक) थापनाचार्य पमिलेहैं । (तो) पिण ( खमासमण देई । नक्त रीतें आग्यामांगे। प3 खमासमण देई । इलाका० सं० न० । नपधि मुहपत्ती पमिले हुं (गुरु कहै पमिलेहेह) पचै श्वं कही । मुहपत्ती पमिलेही । दोय खमास मणे । इलाका० सं० न० । नही पमिलेहण संदिस्सा (गुरु० संदिस्सा वेह) ही पमिलेहण करुं ( गुरु० करेह ) पढ़ इवं कही । कंबल वस्खा दि पमिलेही। पोसहसाला प्रमार्जी। काजो विधिसुं परिठवी । एक खमा समण देई रियावही पमिक्कमें ( इहां आचार दिन करमें कह्यो) ॥ ॥ दोयखमासमणे । इलाका० सं० । वसती संदिस्सा । वसती पमिलेहुं (कही) । वसती मात्रो प्रमुख प्रमार्जे (इत्यादि) पिण विधि प्रपा प्रमुखमें न कह्यो ॥ ॥ हिवै एक खमासमणे । इलाका० सं० न । सिझाय संदिस्सा । (गुरु कहै संदिस्सावेह) बीजै खमासमणे । इडाका सं ० । सिशाय करुं । (गुरु कहै करेह) पने इछ कही। नवकार १ कथन पूर्वक (नपदेश माला) प्रमुख सिज्ञाय करी । नवकार एक कही । धर्म ध्यान करै । लणे, गुणे, वखांण सुणे ॥ ॥ इम करतां पूंण पुहुर दिन चढयां । नम्घामा पोरिसी शागम्या । बहु पमिपुन्ना पोरिसी। कही । खमासमण देई । इरियावही पमिकमी । दोय खमासमणे । इबाका० सं० ० । पमिलेहण करुं । (गुरु वचने) । इचं कही । मुह पत्ती पमिलेही । पान नोजन पात्र पमिलेही राखै । पसिज्माय ध्यानकरै ॥
॥ ॥ हिदे काल वेलायें । आवस्सही पूर्वक देहरै जई । पांचेशकस्त वे देववांदे ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ हिवै पांचेशकस्तवे देवबांदण विधि दो प्रकारसें लिखिये हैं ॥ ॥ तीन प्रदक्षिणा देई । तीनवार नमस्कार करी । नूमि प्रमार्जी। पुरुष हुवै तो) प्रचूजी सुं दक्षिणपासे बैसे । स्त्रीहुवै ते वांम पासे बसे । पढे । इहाका० सं०प० । चैत्य वंदन करूं । इद्धं कही । पछै नमोत्थुणं
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रत्नसागर.
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कहै । खमासमण देई । इरिया वही परिकमें । एक लोगस्सनो कान्सग्ग करे । मुखे लोगस्स कहै । संकाशा प्रमार्जी बैसे तीन (तथा) व्यार (तथा) पांच आदि देई । नमस्कार कहै । जंकिंच नाम तित्थं । (इत्यादि कही ) पढे । नमोत्थुणं कहे ( ऊनो थई ) अरिहंत चेई याणं करेमि का नसग्गं । वंदण वत्ती । अन्नत्थू० । कही । १ नवकारनो कानसम्ग करे ( पारी ) एक थुई की गाथा कहै । पबै लोगस्स । सब लोए परि० ! वंद अनत्थू० । कही । १ नव० । ( पारी ) २ थुई की गाथा कहै । पबै । पुक्खर वरदी० । सुप्रस्सनग० । वंदण० । नत्थू० । कहीं । १ नव का ० ( पारी) ३ थुई कीगा । पबै सिद्धाणं बुद्धाणं । वेयाववगराणं । अनत्थू० । (इत्यादि कथन पूर्वक) चोथी थुईसे देववादी । नमोत्थूणं कहै फेर अरिहंतचे कही । इसीतरे । चार थुईए देव वांदी बैसे । नमोत्थुणं कहै । नमोई सिधाचार्ये पा० ( इत्यादि कही ) पढे स्तवन कहे । पढे जय वीराय कही। (नमोत्थुणं) सधे तिविहेण वंदामि पर्यंत कहै ॥ * ॥ इम पांचे शक्रस्तवे देववंदन विधिः ॥ ॐ ॥ प्रवचन सारोवार प्रमुख ग्रंथमें कही ) ॥ * ॥ तथा चैत्य वंदन वृहद्भाष्य में इम कह्यो ॥ १ ॥ ॥ नमस्कार कथन पूर्वक । शक्रस्तव कही । इरियावही प्रति क्रमणादि करे। वली नमस्कार कथन पूर्वक शक्रस्तव कही। दोयवार व्यार थुईसें देववांदे । फेर शक्रस्तव कही । जावंति चेश्याई गाथा जणी । खमाममण पूर्वक । जा वंति के बीजी गाथा कही । स्तवन कहै । वली नमोत्थुणं कही । जय वीय राय कहे ॥ * ॥ इति देव वंदण विधिः ॥
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॥ ॐ ॥ पबै निरसही पूर्वक पोसहशाला मांहि श्रावी । इरियावही पनि कर्मे । पर्ने सिज्ञाय ध्यान करे ॥ ॐ ॥ जो तिविहार उपवास कियो हुवै (तो) पच्चक्खाण वेला पूर्ण हुवां । जलपीकुं पच्चक्खाण पारै ॥ ॐ ॥ ॥ * ॥ हिवै पच्चक्खाण पारणें की बिधि लिखिये है ॥ ॥
॥ ॐ ॥ खमासमण देई । इरियावही परिकमें । फेर एक खमा० । इ डा० [सं० प्र० । पञ्चक्खाण पारवा मुहपत्ती पडिलेहुं ( गुरु कहे पनि० ) पबै इले कही । खमा देई । मुहपत्ती पमिले है । फेर एक खमा० देई ।
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पुरी पोसह बिधि.
इच्छा० [सं० प्र० । पाणहार अमुक पच्चक्खाण पाऊँ ( गुरु कहे पुणेोवि (Tat ) प यथाशक्ती कही । खमासमण देई । इवाका० सं० ज० ॥ पाहार पारियुं (गुरु कहे प्रयारो नमोत्तवो) पबै तहत्ति कही । १ नव कारगुणी । अमुक पच्चक्खाण फासियँ । पालियं । सोहियं । तीरियं । किहियें। आराहियं । जंच नाराहियं । तस्स मिलामि दुक्क ( कही ) चैत्य वंदन करे मात्र सिशाय करी । यथा संभवै । अतिथि संबिनाग करी पाणी पीवै ॥ ॐ ॥ तथा नृपधान वाही हुवै । ( तो ) पोरसी प्रमुख पच्चक्खाण 'पारी । आहार करै । पबै आसण वैठो थको हीज | दिवस चरम पच्चखै । पछै । इरियावही पकिमी। चैत्य वंदन करे । ( ए चेत्यवंदन आहार संवरण निमित्ते है ) । ॥ ॥ इति पच्चक्खाण पारणेंकी विधि ॥ ॥ ॥ * ॥
॥ * ॥ पर्ने जो बहिर्भूमि जावणो हुवै ( तो ) आवस्सहीकही । नप योगीथको । निर्जीव स्थंमिले जई। प्रणुजाह जस्सुग्गहो कही । पूर्व । उत्तर । सूर्य ग्रामादिकनें पूठि देई । मल मुत्र परिठवै । प्राशुक जलें शुद्ध थई । वार तीन बोसिरामि २ । एहवूं कहिवै करी । मल मुत्र बोसरावी पोसह शालायें । निस्सही पूर्वक ( पैसी ) इरियावही परिकमे । खमासमण देई । कहै । इवाका० सं० न० 1 गमणा गमणं आलोयह (गुरु कहै लोह) प इवं कही । गमणागमण आजोवै ॥ ॥ ( तेइम )
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वरसही करी । प्राशुक देशें जई । संकाशा पूंजी । थंडिलो पडिलेही । उच्चार प्रश्रवण बोसरावी । निस्सही करी । पोसह शालायें प्राव्यो आवंति जंतेहिं । जंखंडियं । जंविराहियं । तस्समिन्छामि दुक्कडं ॥ इम कही बैसे । पबै पमिलेहण वेला सीम सिज्जाय ध्यान करे | हिवै पाबनै पुहुर । इरियावही पडिक्कमी । खमासमण देई कहै । इछाका सं० प्र० । परिहण करूं । (गुरु कहैक० ) पबै इवं कही । दूजै खमास मणें । इछाका० सं० प्र० । पोसहशाला प्रमार्जू ( गुरु कहै ) प्रमार्जह पढे कही । मुहपत्ती पहिलही । दोय खमासमणें । अंग पनिलेहण संदिस्सां | अंग पंडिलहण करूं । ( कहै ) प ( गुरुवचनें ) इछं कही मुहपत्ती परिलेही । दंगासणो पूंजणी प्रमुख सोंप्रमार्जी । पोसहशाला प्रमा
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॥ नपधानवाहा (प) एक लाखमासमण समासमणे व
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रत्नसागर. जें (प) काजो शुध करी । ऊधरी। एकांतें बिखरतो परठवी । इरियाव ही पमिकमी । खमासमण पूर्वक कहै । इनकार नगवन पसान करी प डिलेहणा पडिलेहावोजी। पडे थापनाचार्य पमिलेही । थापे । गुरु समीप ( अथवा ) थापनाचार्य समीप । एक खमासमण देई । इलाका सं० ज० । मुहपत्ती पमिलेहुँ ( गुरु कहै पडिलेहेह पवै इहं कही ) खमासमण देई । मुहपत्ती पडिलेहै । प, दोय खमासमणे । इवा० सं० न. सिशाय संदिस्सा । सिशाय करुं (कही) नुक्तरीतें कणमात्र सिशाय करी। तिविहार नपवास कीधो हुवै । (तो) गुरुशाखें । पाणिहार पञ्चखे ॥ नपधानवाही प्रमुख । आहार कीधो हुवै (तो) वांदणां दोय देई। पच्च क्खांण करै॥ ॥ (प ) एक खमासमण देई । इलाका० सं० न० । नप धि मिला पमिलेहण संदिस्मा । बीजै खमासमणे । इलाका० सं० न. नपधि मिला पडिलेहुँ (गुरुवचनें ) इडं कही । दोय खमासमणे । इहा का० सं० न । बैसणो संदिस्सानं । बसणोठानं । कही (बैसै ) वस्त्र कंबला दि पमिलेहै। पुंजणी हुवै (तो) ते पिण । मुहपत्ती सुं पडिलेहै। उपवा सी तो। तेमाटें। सर्वपालो कमिपट्टो धोतीयो कणदोरो पमिलेहै ॥ * ॥ नपधानवाही प्रमुख नोजन कीधो हुवै (तो कमिपहादि पमिलेह्यां पड़े। वस्त्रकंबलादि पमिलेहै । (एविशेष बै)। पलै कालबेला सीम सिज्माय ध्या न करै । (पीछै) नच्चार प्रश्रवण २४ मिला पडिलेहै (जो) चनदस हुवै । (तो) पाखी चनमासी पमिकमणो करै। संवरिये संवचरी पनि कमणो करै ॥ ॥ तिहां देवसी पमिक्कमणो पूर्वे लिख्यो । तिमहीज करै। (पिण इतरो विशेष बै)। इला० । देवसियं आलोएमि । इत्यादि । देव सी आलोयां पढ़ । ठाणे कमणे । चंकमणे । (इत्यादि पाठ कहै ) (तथा ) खुद्दो वद्दव कान्सग्ग कियां । पत्रै । दोय खमासमणें । इलाका० सं० जा सिझाय संदिस्सा । सिज्ञाय करूं (कही) बैठो थको । तीन नवकार प्रमुख सिशाय करै इति ॥ * ॥ पालिकादि तीन पमिक्कमणाकी विधि आगे लिखी है ।। ॐ ॥ ॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ हिवै पनिकमणो हुवां पढ़ । साधुनी वेयाच कर । पोरसी
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राईसंथारा( तथा ) पोसहपारणेंकी विधि. ११७ सीम सिशाय ध्यान करै । जो लघुनीति प्रमुख करवी हुवै तो आसऊ कहितो थको । नूमि प्रमाजै । मिल स्थानकें जई। देहसंका निवारै । प्रश्रवण वोसरावी । स्वस्थानकें आवै । (जगवन् ) बहु पमिपुन्ना पोरसी । (इम कही) खमासमण देई । इरियावही पमिक्कमें । पीछे राई संथारा बिधि करै ॥ ॥
॥ ॥ ॥ॐ॥हिवै राई संथारा विधि लि० ॥ * ॥ | खमासमण देई । इडा० सं० न० । राई संथारा मुहपत्ती पमिले हुं। (गुरु कहै पमिलेह) प. इहं कही । खमासमण देई । मुहपत्ती पमिलेहै । एक खमासमणें । इना० सं० न० । राई संथारो संदिस्सा । बीजे खमासमणें । इला० सं० ज० । राई संथारो गवू (प) गुरुवचनें।
छ कही। चनक्कसाय पमिम खुरण । (इत्यादि नमस्कार कथन पूर्वक जय बीयराय सूधी चैत्यवंदन करै । जूमि प्रमार्जी । संथारो नत्तर पट्टो पाथरै । पचै शरीर प्रमार्जी । निस्सही २ इम कही। संथारे बैसी । तीन नव कार । तीन करेमि नंते । कचरी । णमो खमासमणाणं । गोयमाईणं महा मुणीणं । अणुजाणह चिहिजा ।अणुजाणह परमगुरु। (इत्यादि ) राई संथा रा गाथा जणी । वामहाथ सिराणे देई । सोवै । निद्रानावै । जांसीम । मुनि वर चरित्र चिंतवै । पसवामो फेरै (तो)शरीर संथारो प्रमार्जी फेरवे । जो देह शंकाये ऊ7 (तो) पूर्वोक्त विधे देहशंका निवारी। इरियावही पनि कमें। प जघन्ये पिण । तीन गाथानी सिज्ञाय करी सोवै ॥॥ ॥ ॥ इति राई संथारा विधि कही।॥ ॥
॥ हिवै रात्रीने पानिल पुहर की। नवकारादि गुणी । इरियावही पडिकमें । खमासमण देई । कुमुमिण पुस्मुमिण कानसंग्ग करी। पूर्वोक्त बिधै सामायिक लेवै । इहां इरियावही न पमिकमें । पचै दोय खमासमणे । सिझाय संदिस्सावी । आठ नवकारगुणी । पमिक्कमण वेलासीम सिझाय करै । पडिकमण वेला हुवां । पमिकमणो पूर्बली परे करै । (पिण इतरो विशेष)। राई आलोयां पढ़। संथारा नवदृणकी (इत्यादि पाठ कहै ) इम संपूर्ण पमिकमणो करी । पमिलेहण वेलायें । पूर्वोक्त विधै पमिलेहण
कुणी । अणूजावा महाथ सिराणे तो शशिका निवा
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रतसागर. करी। धर्मशाला पूंजी। काजो ऊधरी । इरियावही पमिकमें। दोय खमास मणे । सिशाय संदिस्सावी। नपदेशमाला प्रमुख सिशाय करे। प. पोमहपारे। ॥॥हिवै पोसहपारणेंकी विधि लिखिये है।
॥ खमासमण देई । मुहपत्ती पमिलेहै । फेर । खमासमण देई कहै । इबा० सं० ज० । पोसह पाएं (गुरु कहै पुणोवि कायबो) पर यथा शक्ति कही । खमासमण देई (कहै) । इला० सं० न० । पोसह पारयूं । (गुरु कहै आयारो न मोत्तबो)। पबै तहत्ति कहै । खमासमण देई । तीन नवकार अर्धावनत गात्र ऊनो थको गुणी । खमासमण देई । मुहपत्ती पमिलेहै । पीछे खमासमण देई कहै । इलाका० सं० न० । सा. मायक पारं ( गुरु कहै पुणोवि कायवो । प यथा शक्ति कही । खमा समण देई । इहाका० सं० न० । सामायक पारयूं ( गुरु कहै आयारो न मोत्तबो ( पढ़ तहत्ति कही ) खमाममण देई । अर्घावनत गात्र कुनो थको। हाथ जोड्यां । मुहपत्ती मुखें दियां थकां । तीन नवकार गु णी । शंमासा पमिले है । गोडालीय बैसी । मस्तक नमावी । जयवं दस ननदो ( इत्यादि लावनारूप गाथा कहै ) प3 पोसहना नपगरण संबरी। देह रै जई। देव जुहारै । घरे आवी । आहार निष्यन्न हुवो देखी । साधु समीपें आवै । अतिथि संविनाग बत साचवण निमित्तें । साधु नणी नि मंत्रणा करी । घरे लेजावै । साधू पिण शुध आहार लेई । स्वस्थानकें आ वै । तिवार पठे साधूने जे आहार दीधो । तेहनो हीज । शेष आहार आ प करै ॥ इति अठपुहरी पोसह ग्रहण पारण विधिः॥ * ॥ ॥ॐ॥
॥हिवै दिन ऊगां पढ़ पोसहलै तेहनी विधि लि०॥
॥ॐ॥ घर थकी निश्चित थई । धर्मस्थानके आवी । सर्व नपगरण प मिलेही। कचरो विधिसुं परिठवी । इरिया वही पमिकमें । खमासमण पूर्व क आग्या मांगी। पोसह मुहपत्ती पमिलेहै । आगे पोसह ग्रहणनी वि धि पूर्वे लिखी है । तिमहीज जाणवी (पिण) दिवस पोसह हीज करणो हुवै (तो) (पोसह दमक ऊचरतां) जावदिवसं पज्जुवासामि । ( एह वो पाठ कहै ) अनें जो । अठपुहरी करवो हुवै (तो) जाद अहोरत्तिं प
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दिवसपोसह रात्री पोसह बिधि.
११९ ज्जुवासामि । ( एहवो कहै) पठे सामायिक विधि सर्व करी। चैत्यवंदण कुसुमिण पुस्मुमिण कानसग्ग करी । पमिकमणों करी । दोय खमासमणे बहु वेलं संदिस्सावै २ (अनें जो) पूबै पमिकमणो गुरु साथे करयो हु वै (तो) पभिक्कमणाने अंतें । पडिलेही राख्या । जे वस्त्र । ते पहरी । पोस है सामायक सर्व विधि करी । दोय खमासमणे । बहुवेलं संदिस्सावै । २ (तथा) जो गुरु से जूदो पडिकमणो करयो हुवै (तो) गुरु पासै आ वी । पोसह सामायक सर्व विधि करी । आलोयण खामणादि निमित्तें। मुहपत्ती पहिलेही । बे वांदणा देई । इलाका० सं० न० । राश्यं आलो कं। (गुरु कह लोएह) पढ़ राई आलोवै । फेर १ खमासमण देई। बाका० सं० ज० । अब्नुनिमि अग्निंतर । राईयं खामेमि (गुरु कहे खामेह) पीछे सर्ब पाठ कहै । राई खामें । पहिला पडिकमणामें नवकारसी पचख्योथो । तेमाटें । पठे। गुरु शाखै पच्चक्खाण नपवासनो करै। पछै । दो य खमासमणें । बहुवेलं संदिस्सा-० ३। (ए तीन प्रकारका विकल्प जाण वा)। हिवे पमिलेहणतो पूर्वे करी । (तो पिण) । आदेश मांगवो। (तेइम ) खमासमण देई । इवा० सं० न० पमिलेहण संदिस्सा । वीजे खमासमणे । पडिलेहण करुं (कही) मुहपत्ती पमिले है । पर्छ। इमहीज दोय खमासमणे अंग पडिलेहण संदिस्सावी । मुहपत्ती पडिलेहै । पछै । वाले खमासमण देई । इनकार नगवन पसान करी पमिलेहण पमिलेहावो जी। (इम कहै) पठे। एक खमासमण देई । इलाका० सं० ज० । नपधि मुहपत्ती पमिलेहुं (कही) कोई वस्त्र अण पमिलेझो राख्यो हुवै (तो) पडिलेहै । ( नहींतो) वली आसण पडिलेहै । पचै दोय खमासमणें । सिशाय संदिस्सावी । नपदेशमाला प्रमुख सिशाय करै। आगे सर्व क्रिया पूर्वे अठपुहरी पोसहमें लिखी । तिमहीज जाणवी । पिण इहां । अठ पुहरी पोसहीतो) पाउली रातें वली सामायिक न लेवै । जिणे दिवस सं बंधी चौपुहरी पोसह लीधो हुवे । (ते) पाउल पुहर । पच्चक्खांण कियां पढ़। दोय खमासमणे । नहीपडिलेहण संदिस्सानं । नही पडिलेहण करूं । (कहै ) पिण थंमिला पद नकहै । अनें मिला नही पडिलेहैं । यह
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रत्नसागर
निकेवल दिनसंबंधी पोसह ग्रहण करणेंमें विशेष विधिही सो बतलाई ॥ * ॥ इति दिन संबंधी पोसह ग्रहण विधि संपूर्णम् ॥ ॐ ॥ ॥ ॥ अथ रात्रि संबंधी चौपहरी पोसहनी विधि जि० ॥ ॥
॥ ॐ ॥ तिहां जिणें प्रथम चौप्रहरी पोसो ऊचरयो है । पढे संध्यानी पमिलेहण करतां । रात्रि पोसहनो नावथयो । (तो) पच्चक्खाण किया पनै । दोय खमासमणें । पोसह मुहपत्ती पकिलेही । तीन नवकार गुणी तीनवार पोसह दमक उच्चरै । ( तिहां ) जाव रत्तिं पज्जुवासामि (इम ) पाठ ऊचरै । पबै । सामायक विधि पूर्वं लिखी है तिम करे ( पिए ) सामायक नचरयां पनी । दोय खमासमणें । सिझाय संदिस्सावी । आठ नवकार कही। बैसणो संदिस्सावी । पांगरणो संदिस्सावै । पीछे । दोय खमासम । इछाका० सं० प्र० । नही मिला पनि लेहण संदिस्सानं । नही मिला पनिलहेण करूं ( गुरु कहै करेह ) कही । उपधि पमिले है ) आगे सर्वक्रिया पूर्वे लिखी तिम जांणवी । (तथा) जे श्रावकउपवासी तो । व्यग्रपणें । दिवसें पोसह न करी सक्यो । ते रात्रि पोस हनों जावथयां। पाबले पुहर धर्म स्थानके यावे । जो वसती प्रमार्जी हुवै । ( तो सरयो ) नहींतो वसती प्रमार्जी । काजो परठवी । सर्व उपग रण पमिलेही । इरियावही परिकमें । पीठै चौबिहार पच्चक्खाण करी । दाय खमासमणे । पोसह मुहपत्ती पभिलेही । दोय खमा समण देई । पो सह संदिस्सावे । फेर । खमासमण देई । तीन नवकार गुणी । तीनबेर पोसह दंगक कचरे । ( तिहां ) दिवस मेसं रतिं पज्जुवासामि (कहै ) संध्या हुवै। (तो) रतिं पज्जुवासाभि कहे पीछे। बिहुँ खमासम सामायक मुहपत्ती परिने है । दोय खमासमण देई । सामायक मंदिरसावै । फेर खमासमण देई । तीन नवकार गुणी । तीन करेमिनंते ऊचरै । दोय खमासमण देई । सिझाय संदिस्सावी । आठ नवकार कहै। फेर दो खमा सम देई । सो संदिस्सावी । शीतादिकै बे खमासमण देई । पांग रणं संदिस्सा। पीछे । बे खमासमण देई । अंग पडिलेहण संदिस्सावी ! मुहपत्ती पहिले है । फेर बे खमा समण देई । नही थंमिला पहिलेहण
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रात्रि पोसह २४ थंमिलापाठ.
१२१ संदिस्सावी । (जो ) अण पमिलेह्यो नपगरण हुवै । (तो) पमिलेहै (जो) सर्व नपगरण पमिलेह्या हुवै । ( तोपिण ) थानक शून्यता टालवा नणी। वले आसण पमिलेहै । पमिक्कमण वेलासीम सिशाय ध्यान करै । पी। नचार प्रश्रवणना (२४) थंमिला पमिलेही पमिकमणों करै । ( तथा ) पाउलीरातें। वली सामायक नलेवै। इतना निकेवलरात्रिसंबंधी पोसहलेवाना विकल्प जाणवा)॥ * ॥ इति रात्रि पोसह विधि संपूर्णम् ॥ ॥१॥ ॥ ॥अथ २४ थंमिला पमिलेहण पाठ लि० ॥ ॥ .
॥ आगाढे आसन्ने नच्चारे पासवणे अणहियासे ॥ १॥ आगाढे मझे नच्चारे पासवणे अणहियासे ॥ २ ॥ आगाढे दूरे नचारे पासवणे अणहियासे ॥ ३ ॥ आगाढे आसन्ने पासवणे अणहियासे ॥ ४ ॥ आगाढे मई पासवणे अणहियासे ॥५॥ आगाढे दूरे पासवणे अणहियासे ॥६॥ ॥आगाढे आसन्ने नच्चारे पासवणे अहियासे ॥ ७ ॥ आगाढे मशे नच्चारे पासवणे अहियासे ॥ ८ ॥ आगाढे दूरे नच्चारे पासवणे अहि यासे ॥९॥आगाढे आसन्ने पासवणे अहियासे ॥ १० ॥ आगाढे मझे पासवणे अहियासे ॥११॥ आगाढे दूरे पासवणे अहियासे ॥१२॥ ॥ अणागाढे आसन्ने नचारे पासवणे अणहियासे ॥ १३ ॥ अणागाढे मझे उचारे पासवणे अणहियासे ॥ १४ ॥ अणागाढे दूरे नचारे पासवणे अणहियासे ॥१५ ॥ अणागाढे आसन्ने पासवणे अणहियासे ॥ १६ ॥ अणागाढे मझे पासवणे अणहियासे ॥ १७ ॥ अणागाढे दूरे पासवणे अणहियासे ॥१८ ॥ ॥ अणागाढे आसन्ने नच्चारे पासवणे अहियासे ॥१९॥ अणागाढे मशे नच्चारे पासवणे अहियासे ॥ २० ॥ अणागाढे दूरे उचारे पासवणे अहियासे ॥ २१ ॥ अणागाढे आसन्ने पासवणे अहि यासे ॥२२॥ अणागाढे मशे पासवणे अहियासे ॥ २३ ॥ अणागाढे दूरे पासवणे अहियासे ॥ २४ ॥ एथंमिला पमिलेहण पाठकहा ॥॥॥॥ ॥ ॥ हिवै मिला कहां २ करणा सोकहे है॥8॥..
॥ ६ थंमिला सय्याकै दोनुं तरफ, दहणें पासे (३) वामपासे (३) पमिले है ॥ ६ थंमिला दरवोकै जीतर पासे दहिणे ३ वामें ३ पमिले है।
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रत्नसागर. ६ थंमिला दरवों के बाहर दो पासे पमिले है ॥ ६ मिला ( जहां) नचार प्रश्रवणकी जगा दोनुं तरफ पमिले है॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति २४ थंमिला पमि लेहण विधि संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ पाक्षिकादिक पडिक्कमण विधि लिख्यते॥ ____ (तिहां) प्रथम बंदित्तू सूत्र पर्यंत । देवसिक पमिकमी । १ । खमासमण देई । देवसी आलोइयं पमिकता । इडा० सं० न०। पदी मुहप . त्ती पमिलेहुँ । (चौमासै ) चौमासी० मुह० (संवहरी) संवबरी मुहपत्ती पमिलेहुं । प3 (गुरुकहै पमिलेह ) प इडं कहै । दूजी खमासणदेई । मुहपत्ती पमिलेही। वांदणाथै । तिहां ( पक्खीमें ) पख्खो बइकतो । (चौमासी में) चौमासी वइक्वंतो। (संवबरीमें ) संबडरो वइक्तो । इम यथा योग्य कहै । ( पछै गुरु कहै ) पुण्यवंतो देवसीने स्थानिक, पाक्खिक (चनमासिक) संवडरिक नणज्यो । गक जयणा करज्यो । मधुर स्वरै पमिकमज्यो । खासै सो विवरा सुफ खासज्यो। मामलमें सावचेत रहज्यो पठे सगलाही कहै । तहत्ति । प की । इलाका० सं० न० । संबुधा खामणेणं । अब्नुहिनवि अग्निंतर । पक्खियं (३) खामें (गुरु कहै खामेह) पवै मस्तक अंजली करतो थको । इदं खामेमि पख्खियं ( ३ ) कही । गोमालीयें वैसी । मस्तक नमावी । दक्षिण हाथ गुरु साहमो करी मुहपत्ती मुखें देई । (पक्खियें ) पनरसन्हं दिवसाणं । पनरसन्हं राईणं । जंकिंचि अप्पत्तियं । ( इत्यादि सर्वपाठ कहै ) चनमासे ॥ चनएहं मासाणं । अहएहं पक्खाणं । वीसोत्तरसो राइं दियाणं । जंकिंचि अप्पत्तियं (इत्यादि कहै ) संवकरीयें। वाल सएहं मासाणं । चोवीसएहं पक्खा एणं । तिन्निसय सठि राइं दियाणं । जंकिंचि अप्पत्तियं ( इत्यादिकहै ) तिवारे (गुरु पिण मिठामि मुक्कम कहे )। तिहां दोय साधु नचरता हुवे (तो) पाखिये (३) चौमामीयें (५) संबरिये (७)साधुनें खमावै । प ऊठी । अवग्रह मांहि रह्यो कहै । इलाका० सं० ० । पक्खियं आलो वू (गुरु कहै आलोएह ) पडे इथं आलोएमि। जोमे पक्खिन (३) अइ यारो कन ( इत्यादि सूत्र जणी ) संस्पै ( अथवा ) विस्तारें । पाखी
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पाही चौमासी संबचरी पडि बिधि. . चौमासी। संवहरी । अतीचार आलोवे। पड़े। सबस्सवि पक्खिय (३ ) इत्यादि । इलाकारण संदिस्सह पर्यंत कहै । तिवारै ( गुरु कहै ) चनत्थे ण पमिकमह (चौमासै) बहेण पमिकमह (संबढरीयें )।अट्टमेण पमिक मह । इहं। तस्समिहामि उक्कडं ( कही ) प्रादशावर्त वांदणादेवै । पछै । इहा कारेण संदिस्सह नगवन् । देवसियं आलोइयं पमिकता (१) पत्तेय खामणेणं । अब्नुछिनमि अनिंतर । पक्खिय। (३) खामेळं। (गुरु कहै खा० ) पछै । इबँखामेमि पक्खियं । ३ ( इत्यादि पाठ ) सर्व पूर्वे कह्यो । तिम कही। मिहामि उक्कम देई । खमावै । पचै । बे वांदणादेई । जगवन् देवसियं आलोइयं पमिकता। पक्खियं (३) पमिक्कमावेह । (गुरु कहै सम्म पमिकमह)। प. बँकही । करेमि ते सामाश्यं । इद्यामि गमि कानसग्गं । जोमे पक्खिन (३)(इत्यादि कही) तस्सुत्तरी० अन्न त्थू कही । कानमग्ग कर) गुरु पाखी सूत्र कहै । ते सांजलै । अर्ने गुरु थकी जूदा पमिकमता हुवै (तो) एक श्रावक खमासमण देई । कहै
जगवन सूत्र नपुं । (गुरु० लणह)। इसो वचन मनमें धारी । (इवं कही। कलो थको। हाथ जोगी। मुहपत्ती'मुखें देई । तीन नवकार कही । मधुर स्वर सूत्रार्थ मनमें चिंतवतो। (बंदित्तू सूत्र गुणें ) बीजाश्रा वक । करेमि नंते । इडामि गर्ने कानसग्गं । तस्मुत्तरी (अन्नत्थू कही) कान्सग्गमें रह्या सुणे (सूत्रप्रांते ) णमो अरिहंताणं कही( कानसग्गपारी) ऊना थका तीन नवकार गुणी (बैस ) प तीन नवकार ( ३ ) करे मि नंते कही। इनामि पमिकमिळं। जो मे पक्खिन (३) इत्यादि कही। (वंदित्तू सूत्र गुणे) पमिकमे देवसियं सर्व । ( एहनें ठिकाणे ) पमिकमे पक्खियं । चौमासीयं । संवबरीयं ( सर्व कहै ) पचै की । अनुनिमि आराहणाए ( इत्यादि परीपूर्ण नणी) खमासमण देई । श्वा० सं० न०। मूल गुण उत्तरगुण अतीचार विशुधि निमित्तं । कानसग्ग करूं (गुरु कहै करेह (ष इवं कही। करोमि ते सामा० । इछामि गर्न कानुसग्गं । तस्सु । अन्नत्थू । (इत्यादि कही) पाखियें (१२) लोगस्स । चौमासे। (२०) लोगस्स । संवबरीये (४०) बोगस्सनो कान्सग्ग करै । एक नव
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रत्नसागर. कार ऊपर । कान्सग्ग करी । (पारी) लोगस्स कहै । बैसी । मुहपत्ती पमिलेही । बे वांदणा देई । इडा० सं० ज०ः । समाप्ति खामणेणं । अ ब्नुन्निमि अप्निंतर । पक्खियं । (३.) खामेळं (गुरु कहै खामेह) पड़े। इडं खामेमि पक्खियं । (इत्यादि पाठ) पूर्वे कह्यो । तिम कहै । (प) इनाका० सं० न० । पाखी (३.) खामणा खामू (गुरु कहे )। पुण्यवंतो च्यारवर खमासमण देई । तीन २ नवकार कही। पाखी (३) समाप्त खा मणा खामह । पचै । श्रावक एक खमासमण देई । मस्तक नींचो नमावी तीन नवकार गुणें । इम च्यार वार कहे । पठे। (गुरु कहै नित्थारग पार गाहोह (प। श्रावक कहै । छ । इलामो अणुसहिं (कही) (गुरु कहै ) पुण्यवंतो । पाखीनें लखै। एक उपवास । (अथवा) दोय आंबिल) थवा) तीन नीवी । (अथवा) च्यार एकासणां । (अथवा) बेहकार सि
काय करी । एक नपवासनी पैठ पूरज्यो । पाखीने स्थानकै देवसिक नं णिज्यो॥इम चौमासै एसर्व गणो कहणो । संवबरीयें त्रिगुणो कहणो पचै जिणे तपकीधो हुवै । ते पइयिं कहै । न कीधो हुवै । ते कहै त हत्ति । पछै बे वांदणां देई । अब्नुनिमि अग्निंतर । देवसियं खामेमि। इत्यादि कहै ) पचै बे वांदणा देई । आयरिय नवशाए तीन गाथा कहै । इम आगै सर्व विधि । देव सिक पमिकमणानी करै । पिण इतरो विशेष है। श्रुत देवतानो कानसग्ग करी । स्तुति कहै । पीछे जवण देवयाए करे मि कानसग्गं ( इत्यादि विधे ) नवन देवतानों कानसग्ग करी। स्तुतिकही। देत्र देवतानो कानसग्ग करै । (तथा) तीने पर्वे । वमो स्तवन अजित शां ति कहणो । लघुस्तवन । नपसर्ग हर स्तोत्र कहणो । तथा पमिक्कमणो पूरो हुवां । पढे । एक श्रावक गुर्वाझायें । नमोहसिघा कही । शांति स्तोत्र १७ गाथा प्रमाण कहै । बीजा सर्वसुणे । जिणांने रात्री पोसह न हुवै (ते) पोसह सामायिक पारी सांगले ॥४॥ इति पालिकादि (३) पडिकमणविधिः कही॥ * ॥
॥रात्री प्रतिक्रमण मांहें उम्मासी तपचिंतन बिधिः॥ ॥ॐ॥श्रीमहावीर स्वामीना तीर्थमें नत्कृष्टो उम्मासी तपहै ॥ रे जीव
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जम्मासी तपींचतवन. . १२५ ते करि सके । नकरिसकुं । इम एक दिन हो । करि सके (न करिसकुं) इम एकेक दिन केगे करतां । नगुण तीस दिन कणा उम्मास हुवे । तिहां सूधी पूनिये । प। (पंचमासी) करि सके । न करिसकुं । एक दिन क एणी पंचमासी करि सकै (न करिसकुं)। इम एकेक दिन जो करतां नगुण तीस दिन कपी । पंचमासी लगें पूछियें । पर्छ। (चनमासी) एक दिन कणी । दोय दिन ऊणी । इमहीज त्रिमासी । उमासी । यावत् (एक मासकरि सके) । नकरि सकुँ । पठे। एक दिन कणो कियां । सो लह दिननो चौत्रीसम तप थाइ । ते करि सकै (न करिसकुं )। पछै । बेबे जात घटावतां पूनिय । (इम) वत्रीसम करि सकै (न करिसकुं)। (इम) त्रीसम । अठा वीसम । गवीसम । चौवीसम। बावीसम । बीसम । अगर सम । शोलसम । चौदसम । बारसम । दशम । अहम । बह। चनत्थ तप करि सके । (न करि सकुं)। (इम) आंबिल । निवी। एकासणो पुरिमट्ठ । पोरसी । नवकारसी । (तांई) जो पच्चक्खांण करवो हुवै । (सो) मनमें धारी । कानसग्ग पारै ॥ इति उम्मासी तप चिंतवन विधिः॥
॥ ॥ अथ प्रशस्तिः ॥ * ॥ ॥ ॥हा॥श्रीजिन चंद सुरिंद। नितुराजत गल राजान। वाचक मृत धर्म गणि । सीस मा कल्याण ॥१॥ सय अढार अमतीस मनि । जेशलमेरु मुथान । श्रावक विधि संग्रह कियो । मूल ग्रंथ अनुमान ॥२॥
॥ ॥ प्राचार ग्रंथनामः॥ * ॥ श्रीजिनप्रनसूरि कृत विधि प्रपा ॥१॥ खरतर मंमलाचार्य तरुण प्रन सूरि कृत षमावश्यक वालाबोधं ॥२॥ सामाचारी शतकं ॥३॥ वंदावृत्ति ॥४॥ प्रवचन सारोघारवृत्तिं ॥५॥ आचार दिनकरं ॥६॥ श्रीजिन पं तिसूरि सामाचारी पत्रं ॥७॥ शिवनिधानो पाध्याय कृत लघु विधि प्रपा दि॥ ८॥ ग्रंथाश्च विलोक्य अयं विधि प्रकाशो निर्मित ॥१॥ इति श्रावक विधि प्रकाशः परि पूर्णतामगात् ॥2॥
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रत्नसागर.
॥ * ॥ अथ साधू (अने) श्रावक । दोनुं टंक पक्किमणो करे । तेन हेतु ( नांव ) मुतलब लिखते ॥ ॐ ॥
॥ * ॥ तिहां पापसेती निवर्त्तन होणो (ते) पडिकमणो कहिये || तथा ॥ ग्यानाचार १ दर्शनाचार २ चारित्राचार ३ तपाचार ४ वीर्या चार ५ ( एपंच आचार सुधि निमित्तें) श्रीगुरु साखें । अनें गुरु नावे | थापनाचार्य शाखे पक्किमणो करखो (तेहना व अध्ययन ) सामाइयं १ | चनवीसत्थन २ । वंदणयं ३ । पडिक्कमणं ४ | कानसग्गो ५ । पच्चक्खाण ६ मिति ( तिहां ) सामायिकें करी चारित्राचारनी सुविथायै । चनवीसत्यें करी दर्शना चारनी सुता थायै । वांदणें करी ग्यानादिक आ चार सुधथाये | पक्किमणें करी ग्यानादिकना प्रतीचारांनी सुधि थायै ।
परिक्रमणाथी जे प्रतीचार शुधनथाइ (ते) कानसग्गे शुद्धथाइ । पच्चक्खाणें करी तपाचार शुद्धथाइ । अनें वीर्याचार इ एकरी शुद्ध थाइ ॥ हिवै देव वांदनादि अनुक्रमें पकिमणो थापै । ( तेहना हेतु कहै ) ॥ सुपकिमणो मोनो कारण वे । ते मंगल विना निर्विघ्नपणें प्रमाण नचढे । तिसवास्ते धेरै अवश्य मंगल करवो । तिहां मंगल तो अनेक प्रकारनो है । पिण श्रीदेव गुरु वंदन सरीखो वीजो मंगल कोई नही (तेमाटे ) प्रथम नमस्कार शक्रस्तव पूर्वक च्यारे थुईए देववांदी । च्यारे खमासमणे गुरुवां दे || लोकमें पिए पहिलां राजानें नमस्कार करी ( प ) प्रधान प्रमुखनें नमें । इहां राजा समान तीर्थंकर (अने ) प्रधानादिक समान प्राचार्या दिक (इम मंगल कर ) पक्किमणानें धुरे समस्त प्रतीचारनो बीजक ( सबरसवि देवसिय ) इत्यादि कही मिलामि डुकरं देवे । पढें ज्ञानादिक Hit | चारित्रना अधिकपणा हुँती । प्रथम चारित्राचार शुद्धि निमित्तें । करेमि ते सामाइयं ( इत्यादि तीन सूत्र नणें ) तिहां समता परिणामें
धर्म कार्यकरवा (ते मार्के) प्रथम सामायक आवश्यक कह्यो ॥ ॥ पबै प्रजातनी पहिलेह थी मांगी | दिवसना कीधा प्रतीचार गुरु प्रा आलोइवा । ते धारयां विना नली रीतें आलोबाइ नही (ते माटें) कानसग्ग करे । प्रतीचार मनमें धारै । पबै लोगस्स कहै (जे माटे ) एसामायिका.
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प्रतिक्रमण हेतु.
१२७ दिक सुध मार्ग (इइ) रिषनादि चळवीस तीर्थकरे आपसेव्यो (अने) व्य जीवनें नपदिस्यो। ते कारणें । बीजै आवश्यके चनवीस नगवंतनी स्त वना करवी कही॥ ॥ पछै धर्ममांहें विनयना प्रधानपणा हुंती । गुरुनें वांदणा देई । अतीचार आलोइवा । अनें वांदणारे । तेशरीर सुध विना नदेणी (ते माटे) प्रथम मुहपत्ती पमलेही । सुधकरी । तिणथी काया पनि लेहे ॥ तीजै आवश्यके वांदणा देवी कही ॥ ॥ प3 गुरु आगै । अती चार आलोई प्रायश्चित्त मांगै ( गुरु कहै पमिक्कमह ) (जे माटे) कित ना इक अतीचार तो आलोयां थी सुचथया। अनें कितना इक न थया (ते सुच करवानो) चोथो आवश्यक पमिकमणो कह्यो ॥ ॥ तिहां न्तम कार्य सर्व नवकार पूर्वक करवा (ते माटे) प्रथम नवकार कहै । अ ने समन्नाव धारी पमिकमवु (ते माटे) पढ़ सामायिक सूत्र कहै । तिवार पने साधु श्रावक आप आपणा अतीचार पमिकमवा निमित्तें सूत्रनणे । पछै समस्त अतीचार रूप जार निवर्त्तवे करी । हलको हुवो थको। ऊनो थई सूत्र पूर्ण करै । इम अतीचार पमिकमी। श्रीगुरुने विषै पोतानो कीधो कोई अपराध खमाइवा निमित्तें । वांदणा देवै । प3 गुरु प्रमुखनें खमावी कानसग्ग निमित्तें । फेर वांदणा देवै । ए वांदणा गुरुनें अपणो आधीन पणो जणाइवा निमित्ते पिण जाणवी । पछै (श्रावक) आयरिय नवशाए ( इत्यादी तीन गाथा नणे) हिवे आलोयण पमिमकणा थी शुध न थया (जे) चारित्रादिकना मोटा अतीचार (ते)शुध करवानें अर्थ पांचमो आ बश्यक कानसग्ग करै ॥ ॥ तिहां । प्रथम सामायिकादि तीन सूत्र न णी। चारित्राचार सुधि निमित्तें दो लोगस्स चिंतवै । इहां तीजी वार वले सामायक उच्चारण कीधो (ते) सर्व धर्म क्रिया समता परिणामें की धी सफल थाइ । ए अर्थे । पछै ज्ञान थी समकित अधिको है (ते मारें) दर्शनाचारशुधि निमित्तें लोगस्स कही। सबलोए (इत्यादि) सूत्र नणी। एक लोगस्सनो कानसग्ग करै । पचै श्रुतज्ञानाचार शुधि निमित्तें । पुक्खरवर दीवढे ( कही) सुयस्स जगवन (इत्यादि नणी) बीजो एक लोगस्सनो कानसग्ग करै (इहां) प्रथम कानसग्ग दोय लोगस्सनो कह्यो । ते ज्ञाना
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- रत्नसागर. दिक थी चारित्रनो अधिकपणो ने (ते माटे) वली । ग्यानादिकनी अपेक्षा यें, चारित्रने अतीचार घणा लागे । तेपिण कारण जाणवो । पचै । झान । दर्शन । चारित्राचार । निरतीचार पणे आचरवाना फलनूत श्रीसिघ नगवान, तिणारी स्तवना । सिघाणं बुघाणं ( इत्यादि नणे) पछै । हिवणां नपगारी श्री महावीर स्वामी ( ते माटे ) जो देवाण विदेवो ( इत्यादि तेहुंनी स्तवना करै ) प महा तीर्थपणा हुती । नमिल शेल सिहरे ( इत्यादि तीर्थ स्तवना कर) इम । चारित्र, दर्शन, झानाचार सुच करी । समस्त धर्म क्रियानो श्रुतझान कारण (तेमाटें) श्रुति समृ धि निमित्तें । श्रुत देवतानों कानसग्ग करी स्तुति कहै । पचै जेहना क्षेत्र में रहियै । क्षेत्र देवतानों कानसग्ग करी । स्तुति कहै । (सिघांत माहें) तीजै ब्रतें निरंतर अवग्रह याचना रूप नावना कही । ते साचवणे नि मित्तें ए कानसग्ग संनवै है । ए दोनु कानसग्ग पूर्वधारीये आचरया है। (आवश्यक वृत्ति, चूर्णि, नाष्यादिक माहे) श्रीहरिजद्र सूरि प्रमुख मोटे आचार्ये कह्याचै (ते माटें) प्रमाण है । प3 कासग्ग थी । केई. अती चार सुघन थया ते सुधकरवानें । बडो आवश्यक पच्चक्खाण कह्यो ॥ * ॥ तेपूर्वे कीयो होय (तो) इहां तेहनें ठगमें । मंगलीक निमित्तें। नवकार एक कही। मुहपत्ती (अनें ) काया पमिलेही । श्रीगुरुने वांदणादेई । इलामो अणुसहिं कहै। तुह्मारी आझायें में पमिक्कमणो कीधो । एहवं गुरुने जणा विवा निमित्तें । ए वांदणा कह्या । इतरे पमिकमणो परिपूर्णथयो॥ॐ॥ (हिवै ) निर्विघ्नपणे पमिक्कमणो पूर्ण हुवा थकी घणो हर्ष ऊपनो । तिणे करी। गुरु एक स्तुति कह्यां थकां । सर्वसाधु श्रावक वर्षमान स्वरे । तीन स्तुति कहै (इहां गुरुना वचननें अंते) शिष्यादिक । नमो खमासमणा एं (एहवो गुरुने नमस्कार कहै ) ते गुरु वचननो बहुमान रूपठे। पठे शकस्तव कही । आचार्यादिकनें वांदै । सर्व धर्म क्रिया श्रीदेवगुरु भक्ति पूर्वक सफल थायै (ते मा.) पमिक्कमणांने प्रारंने (तथा) अंतें। देव गुरु वंदन कह्यो॥ * ॥ हिवै पमिक्कमणां मांहें । चारित्रादि सुधि निमित्तें । पूर्वे कानसग्ग कीधा जे । तोपिण वली विशेष शुधि निमित्तें । च्यार लोगस्स
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सीमंधर जिन चैत्य स्तवन.
१२९ नो कानसग्ग करी । मंगल निमित्तें लोगस्स कहै । जे साधु श्रावक आत्मा र्थीहुवे । ते ए हेतु समजी । विधि पूर्वक नपयोग सुं पमिक्कमणो करै। ते लीलायें नवसमुद्र तरै । सिधि संपदा वरै॥ ॥आवश्यक वृत्त्यादेः। प्र तिक्रमण हेतवः। निबघा नाषयोघृत्य । साधु श्राघादि हेतवे ॥१॥ वा चकामृत धर्माणां । शिष्यणात्म हितेना ।कमाकल्याण गणिना ।वीका नेर पुरे मुदा ॥२॥ इति प्रतिक्रमण हेतवः संपूर्णम् ॥ ॥
॥ ॥ श्री सीमंधरजिनचैत्यवंदन ॥॥ ॥ जयजय त्रिनुवन आदिनाथ पंचमगति गामी ॥ जयजय करुणा शांतिदांत विजन हितकामी ॥ जयजय इंद नरिंदवृंद सेवत सिरनामी। जयजय अतिशय नंतवंत अंतर गति जामी ॥१॥ पूर्व विदेह विराजताए। श्री सीमंधर स्वामि । त्रिकरण सुध त्रिहुंकालमें । नित प्रति करूं प्रणाम ॥२॥ इति॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥ * ॥ अथ सीमंधरजिनस्तवन॥७॥ ॥ पूर्वविदेह पुखलावती । जयोजगापतीरे । श्रीसीमंधरस्वामि प्रहसमनित नमुरे॥१॥ जगत्रय नाव प्रकाशता। नविप्रतिवो धतारे। नपगारी अरिहंत ॥ प्रह० ॥२॥धन्यनयरी धन्यते नरा । धन्यते धरारे ॥ बिचरै जिहां जिन राज। प्र०॥३॥धन्य दिवश धन्य तेघमी । देखKांखमीरे । जतिवडल जगवंत । प्रह° ॥४॥ महरनिजर अवधारजो। पतितन्धारजोरे। जिनहरख घणे ससनेह । प्रहसम नितन मुंरे॥५॥ ॥ इति पदम् ॥
॥ॐ॥ पुनः॥ * ॥ ॥श्रीसीमंधरसाहिबा । वीनतमी अवधारलालरे । परम पुरुष परमेसरू। आतम परम आधारलालरे०॥ श्री० ॥१॥ केवल ग्यान दिवाकरू । नांगे सादिअनंत लालरे नासक लोकालोकको । ग्यायक गेयअनंतलालरे॥श्री० ॥२॥ इंद्रचंद्रचक्कीसरू । सुरनर रहे कर जोम लालरे । पदपंकज सेवे सदा । अणहुंतें इककोम लालरे॥श्री०॥३॥ चरणकमल पिंजरवसे । मुऊ मन हंस नितमेवलालरे । चरणसरण मोहि आसरो । नवर देवाधिदेवलालरे॥
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रत्नसागर.. ॥श्री०॥४॥अधमनधारण गे तुमे । दूर हरो नवपुःखलालरे । कहे जिन हरष मयाकरी। दे ज्यो अविचल सुरकलालरे (श्री०॥५॥ ॥इति सीमंधरजिनस्तवनम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥श्री सिद्धगिरी चैत्यवंदन ॥१॥ ॥ जय जय नाजिनरिंद नंद सिघाचलमंमण । जय २ प्रथम जिणंद चंद नव पुःख विहंमण । जयजय साधु सुरिंद वृंद वंदिय परमेश्वर । जय २ जगदा नंद कंद श्री रिषन जिनेश्वर ॥ १॥ अमृत समजिन धर्म नोए। दायक जगमें जाण । त्वत्पद पंकज प्रीतिधर । निसदिन नमत कल्याण ॥२॥ इति०॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥सिघो विजाइचक्की नमि विनमि मुणी घुमरियो मुणिं दो वाली पनि संबो जरह सुग मुणी सेलगो पंथगो अरामो कोमी पंच द्रावड नरवई नारन पंडुपुत्ता। मुत्ताएवं अणेगे विमल गिरि महं तित्थमेयं नमामि ॥१॥
॥॥अथ सिद्धगिरी स्तवन ॥ ॥ ॥॥आज पुंमर गिरिलेटिया । प्रगट्यो परमानंदा । मोह तिमर दूरेजए । जागा नवनयफंदा॥०॥१॥ मरुदेवाजीकेलामला । नाजिराय के नंदा रिषजजिनेसर सुखकरू । दिनमणिज्युदीपंदा ॥ आ० ॥ २ ॥ पूर बनिनाएं रायणतले । आया प्रथम जिणंदा। नेमिविना सहुजिनवरै । इन गिरि कोंसेवंदा॥ आ० ॥३॥ कलुकाले इण जरतमें। तारण काऊ समंदा। अनंत जीव मुगतैगया। वीतराग नापिंदा॥आ० ॥४॥ चौमुख जिननें आदले । नववसिबिंब सोहंदा । आत्मागुण निरमलकरी । मोहन सुःखपा वंदा॥०॥५॥ ॥ ॥ इति सिगिरी स्तवनम् ॥ॐ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥सिघाचल गिरिनेव्यारे । धन्य नाग हमारा। सि० (टेरे ) एगि रखरनी महिमा मोटी । कहतांनावेपारा । रायण रूंख समोसरया स्वामी । पूरब निनाणूं वारारे॥धन्य० सिघा० १॥ मूलनायक श्रीआदिजिनेसर। चौमुख प्रतिमा चारा । अष्ट द्रव्यसुं पूजालावे । समाकित मूल आधारारे॥
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पंचतीर्थी चैत्यवंदन.
१३१ ध० सि०२॥ नाव जगतिसुं प्रनुगुण गावे अपणा जनम सुधारा । यात्राकरी जविजन सुननावे नरक तिर्यंच गति वारारे॥ध० सि० ३॥ दूर देशांतर थी हूंआयो श्रवण सुणीगुण ताहरा। पतित नधारण विरुध तुमारो। एतीरथ जगसारारे॥ध०सि० ४॥ संवत अढार वयांसी आषाढे । वदि आठम जोमवारा प्रनुजीके चरण प्रताप संगमें । मारतन प्रनुप्यारारे ध० सि०५॥ इति पदम् ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥
॥॥श्रीआदिजिनचैत्यवंदन॥ॐ॥ - जय २ जगदानंदन । जयजय वरनानि नंदन जिणंद । जय २ करुणा सागर । मनोरथा अद्य फलतामे ॥१॥ अद्य मे सफलं जन्म । अद्य मे सफला क्रिया। प्रयास सफलोमेद्य । दर्शना दादिमप्रनो ॥२॥ प्रातरुत्थाय एनाहं। मारुदेवो नमस्कृतः । हेलयामोहनूपाल । तेन नूनं नमस्कृतः॥३॥ सुकृतं संचितंयेनः। उकृतं तेन मुंचितं । येनः प्रथमनाथस्य । चरणां नोजनं चितं ॥४॥ त्रिभुवना नयदान विधायनी । त्रिनुवना इनुति वंचित दायनी। त्रिनुवनः प्रनुतः पदशालिने । जगवते रिषजाय नमोनमः॥५॥ इति॥
॥॥श्रीशान्तिजिनचैत्यवंदन ॥ ॥ शांतये शांति कामाय । विनशांति विधायिने । नमः शांति स्वरूपाय । शांतेपदमुपेयुषे ॥१॥ अशिवं शमया मास । गर्नसंस्थोपि यःपुराः । तन्ना माग्रहणादेवः। विघ्नासाम्यंति सांप्रतं ॥२॥ श्रीशांति नाम मंत्रयो । जपेत् निर्मल मानसः। श्रेयःसंपद्यते तस्य । पापशांतिवेदपि ॥३॥ इति ॥ * ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ शोलम जिनवर शांतिनाथ सेवो सिरनामी । कांचन वरण सरीर कांति अतिशय अनिरामी। अचिरा अंगज विश्वशेन नरपति कुलचंद । मृगलंटन धरपति कमल सेवा सुरवृंद ॥१॥ जगमांह अमृत देवए । जासु अखंमित आण। एकमने आराधतां। लहिये कोमिकल्याण॥२॥इति॥ ॥॥
॥ ॥श्रीनेमिजिनचैत्यबंदन ॥ ॥ प्रहसम प्रणमुं नेमिनाथ जिनवर जयवंत । यादवकुल अवतंस हंस उत्तम
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रत्नसागर.. गुणवंत । समुद्रविजय शिवा देवीमात मति सहज नदार । सुंदर स्याम सरीर जोति सोहे सुखकार ॥१॥ गढगिरनारइजिणे लह्योए । अमृत समतस बाण ध्यानधरंता एहनो। प्रगटे परम कल्याण ॥२॥॥ ॥॥इति ॥॥ ॥
॥ श्रीपार्श्वजिनचैत्यवंदन ॥ ज्ञीश्रीपार्श्वनाथाय । विश्वचिंतामणीयते । नधरणेंद्र वैरोट्या। पद्मादेवी युतायते॥१॥ सिताष्ट दलमध्यस्थ । वच पद्मासनायते । नअसिमानसाश्री। लब्धा लक्ष्मी नमोनमः ॥२॥ नदिक्पाला ग्रहाधीशं । यहाणीयत सेविता। ग्रहायुता हूजया । दापरा जितयान्वितः ॥३॥ शांतितुष्टि महापुष्टि । पति कीर्ति विधायिने । विम्वाला नलवेत्ताला । सर्वाधि व्याधि नाशने॥४॥ श्रीशंखेश्वर मंझण । पार्थजिन प्रणतिकल्प तस्कल्प । चूरयदृष्ट नातं । पूरय मे बांछितं नाथः ॥ ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥२॥ ॥अनिनव मंगल माला । करणं हरणं पुरंति रितस्य । श्री पार्श्वनाथ चरणं । प्रतिपन्नो जावतः सरणं ॥१॥ आयासेन विना लदमी। विनादेपेण वैनवं । विनै वत्तपसा सिधि। जपतां पार्श्वनामते॥२॥पार्थजिनशा सनंते । निवम महामोह तिमर विध्वंसि । महिरन दीपकल्पं । तनोतु तेजो विवेकाख्यं ॥३॥ तुरेषां चरणो जिव्हे । कुरुस्तोत्रं चरणोनमः । हर्षासु मुचितां दृष्टी ।
आएषु परमेश्वरः॥४॥नवे नवांतरे वापि । मुम्खेवा यदिवा सुखे । पार्थ ध्यानेनमयांतु । वासुराः पुन्य नामुराः॥५॥ ॥ इति ॥१॥
| | पुनः॥३॥ ॥ ॥अमर तरु कामधेनु । चिंता माणि काम कुंन माईया। तुहसामि पास सेवय । गयांई सवेवि दासत्तं ॥१॥ खंमिति जगंदर । ज्वर काश शास शूलतन निवहा । सिरि सामल पास पहु । तुह नाम पयंम पवणेण ॥२॥जय धरणिंदनमंसिभ । पनमावइ पमुह सेवित्र सुपास । शी अझै ममसिधि कुणसु पास ॥३॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥ पुनः॥४॥ ॥ ॥नममहरन जरं । ममहरन विड्डरं मरंमा मरं। हर चोरारि मारिवाही।
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तपग विशेषसूत्र विधिसंग्रह -
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हरन ममं पास तित्थयरो ॥ १ ॥ एगंतर जरं निच्चजरं । सीजरं नएहजरं वेला जरं । तह तइयजरं चनत्थजरं । हर ममं पास तित्थयरो ॥ २ ॥ जिए दत्ताणा पालण परस्ससंघस्स बिहि समुग्गस्स | आरोग्ग सोहग्गं अपवग्गं । कुनपास जिणो ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ 1111
॥ * ॥
॥ * ॥ श्री बीरजिन चैत्यवंदन ॥ ॥
वं जगदाधार सार सिवसंपति कारण । जन्म जरा मरणादिरूप भवताप निवारण | श्री सिधारथ तात मात त्रिशला तनजात । सोवन वरण सरीखीर त्रिभुवन विज्ञात ॥ १ ॥ अमृत रूपे राजताए । चनवीसम जिननाण । दमा प्रमुख कल्याण गुण आपोकरिसुपसाय ॥ २ ॥ इति ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ २ ॥ ॥
॥ वीरस्सर्व सुरासुरेंड महितो वीरं बुधा संश्रिताः । वीरेणा निहतस्स कर्म निचयो वीराय नित्यंनमः । वीरास्तीर्थमिदं प्रवर्त्तमतुलं वीरस्य घोरें तपो । श्री वीरे धृतिकीर्ति कांति निचयः श्री वीरभद्रदिशः ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ ॐ ॥ अथ तप ग विशेष विधि संग्रह ॥ ॥ ॥ * ॥ थ पंचिंदि ॥ * ॥
॥ पंचिदि संवरणो । तह नवविह बंजचेर गुत्तिधरो । चनविह कसाय मुको । इ प्रहारस गुणेहिं संजुत्तो ॥ १ ॥ पंचमह वयजुत्तो । पंचविहायार पालण समत्थो । पंच समिन तिगुत्तो । छत्तीसगुणो गुरु मज्ज़ ॥ २ ॥ इति ॥ * ॥ थखमा समण ॥
॥ इवामि खमासमणो वंदिनं जावणिकाएं निसीही आए मत्थएण वंदामि ॥ ॥ इति ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ सुगुरुनें शातासुख पृच्छा ॥
॥ इकार सुहराइ सुहदेवसी सुखतप शरीर निरावाध सुख संजम जात्रा निर्वहोबोजी स्वामी शाताबेजी जात पाणीनो जान देजोजी ॥ इति ॥ ॥ * ॥ अथ सामायक पारवागाथा ॥ ॥ ॥ सामाइय वयजुत्तो । जावमणे होइ नियम संजुत्तो । बिन्न प्रसु
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रत्नसागर. कम्मं । सामाइअ जति आवारा ॥१॥ सामाइअं मिनकए । समणो इव सावन हवइ जमा। एएण कारणेणं । वहुसो सामाइअंकुडा ॥२॥ सामा यिक विधिं लीधु विधि पारिन। विधिकरतां जे कोइ अविधि हुवो होय । ते सविहं मन बचन कायायें करी मिहामि कम ॥ इति ॥ ॥ ॥
॥ ॥अथ जगचिन्तामणिचैत्यवंदन ॥१॥ ॥ इलाकारेण सं० । चैत्यवंदन करूं ॥ई॥ जगचिंतामणि जगनाह । जगगुरु जगररकण । जगबंधव जगसत्थवाह । जगलाव विप्ररकण ॥१॥ अहावय संपवित्र रूव । कम्मठ विणासण। चनवीसंपि जिनवर जयंतु अप्पमि हय सासण॥१॥कम्मनूमिहिं कम्मनूमिहि । पढमसंघयणि नक्कोसय सत्तारसय। जिणवराण विहरंतलन । नवकोडिहिं केवलिण । कोमि सहस्स नवसाहु गम्मइ । संपइ जिणवर वीसमुणि । बिहुँ कोमिहिं वरनाण। समणह कोमी सहसदु । थुणिजअ निचविहाण ॥२॥ जयनसामी जयनसामी रिसह सत्तुंजि । नजिंत पहुनेमिजिण । जय वीर सच्चनरि मंगण । तर अहिं मुणिमुवय । महरि पास उहरिभ खंमण ॥ अवर विदेहिं तियरा । चिहुं दिसि विदिसि जंकेवि । तीणागय संपइअवं जिण सबेवि ॥ ३॥ सत्ता गवइ सहस्सा। लरकाउप्पन्न अहकोडीन । वत्तीस बासिाइं । तिअलोए चेइए वंदे ॥५॥ पनरसकोडि सयाइं। कोमी बायाललरक अडवन्ना। बत्तीस सहस असिआई। सासय बिंबाइं पणमामि ॥ ५ ॥ जंकिं चिनामतित्थं कहके नमोत्थुणं कहे । जावंति चेइयाइं। जावंति केविसाहू ॥ नमोतिसिघा०॥ नवसग्गहरं पासं॥कहकै भावपूर्वक जो स्तवन बोलना होय सो बोलके दो, हाथ जोम मस्तक चढाय जयवीयराय संपूर्ण कहै ॥
॥ ॥ अथ जयवीराय॥॥ ॥ जयवीराय जगगुरु । होनममं तुह पजावन जयवं । नवनिवेन। मग्गा। णुसारिया इह फल सिधि ॥१॥ लोग विरुष्चान । गुरु जण पूजा परत्थ करणंच । सुह गुरु जो गोतवयण सेवणा आनव मखमा ॥ २॥ वारि माइ जइ विनिआ । वंधणं वीराय तुह समए । तहवि ममहुआ सेवा नवे नवे तुह्म चलणाणं ॥३॥ पुरक रकन कम्म रकन । समाहि मरणंच
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तपग विशेष विधिसंग्रह.
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बोहिला जो ॥ संपऊन महए। तुहनाह पणाम करणेणं ॥ ४ ॥ सर्व मंगल मांगल्यं । सर्व कल्याण कारणम् || प्रधानं सर्व धर्माणं जैनं जयति शासनम् ॥ ५ ॥ पीछे ऊनाहोके ॥ अरिहंत चेइयाणं || वंदण वत्तित्राए । अन्नत्थू कहके एक नवकारको कावसग्ग करके स्तुतिकहे ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ कल्ला कंदं स्तुति ॥
॥
॥ * ॥
॥ कलाकंद पढमं जिणंदं । संतितवो नेमिजिएं मुणिदं । पासं पयासं सुगणि कठाणं ॥ जत्तीय वंदे सिरि बध माणं ॥ १ ॥ अपार संसार समुद्दपारं पत्ता सिव दिंतु सुइक्कसारं । सवे जिणंदा सुर विंद वंदा | कल्लाण वल्लीप विशाल कंदा ॥ २ ॥ निवाणमग्गे वरजाकप्पं । पणा सियासे स कुवाइदप्पं । मयं जिलाणं सरणं ब्रहाणं । नमामि निचंति जगप्पहाणं ॥ ३ ॥ कुंदिंडगो कीनुसार वन्ना । सरोज हत्थाकमले निसन्ना । वाए सिरी पुत्रय वग्गहछा । सुहायसा अह्मसया पसत्था ॥
॥ *॥
॥ * ॥ अथ विशाल लोचन ॥ ॥
॥ ॐ ॥ विशाल लोचन दलं । प्रोद्यद्दंताशुकेशरं । प्रातवर जिनेंद्रस्य मुख पद्मं पुनातुवः ॥ १ ॥ येषा मनिषेक कर्म कृत्वा । मत्ता हर्ष नरात् सुखं सुरेंद्राः । तृणमपि गणयतिनैव नाकं । प्रातःसंतु शिवाय ते जिनेंद्राः ॥ २ ॥ कलंक निर्मुक्त ममुक्त पूर्णतं । कुतर्क राहु ग्रसनं सदोदयं ॥ अपूर्व चन्द्र जिन चन्द्र भाषितं । दिनागमे नौमि बुधैर्नमस्कृतं ॥ ३ ॥
॥ * ॥ अथ भगवानादि बंदन ॥
॥
|| जगवानहं ॥ आचार्यहं ॥ उपाध्यायहं । सर्वसाधुहं ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ प्रतीचारनी गाथा ॥ # ॥ ॥ नामि दंसणं मिय । चरणमि तवे तहय विरियंमि । श्रायरणं प्रायारो । एसो पंचहा मणि ॥ १ ॥ काले विणए वहुमाणे । नवहा तहय निन्हवणे । वंजण प्रत्थ तन्नए । अठविहो ना मायारो ॥ २ ॥ निस्संकिनिक्कंखि । निव्वितिगिना श्रमूढ दिडी | नववूह थिरीकरणे । वच्छल्न पनावणे अठ ॥ ३ ॥ पणिहाण जोगजुत्तो । पंचहिं समइहिं तिहिं
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रत्नसागर
गुत्तहिं । सचरित्ता यारो । विहो होइ नायवो ॥ ४ ॥ वारस विहमि वितवे । निंतर बाहिरे कुशलदिछे । गिलाइ अणाजीवी । नायवो सोतवायारो ॥ ५ ॥ सण मूणोरिया । वित्तीसंखेवणं रसच्चायो । काय किलेसो संली | वझोतवोहोइ ॥ ६ ॥ पायवित्तंविण । वेयावचं तहेव सिशो | जाणं नरसग्गोविय । निंतर तवोहोइ ॥ ७ ॥ प्रणगूहिय बलविरियो । परिक्कम जोजहुत्तमानत्तो । जुंज हाथामं । नायवो वीर आयारो ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ सुत्रदेवता स्तुति ॥
॥
॥ सु देवया भगवई नाणा वरणी प्रकम्म संघायं । तेसिंखवेन सययं । जेसिंसु सायरे जत्ती ॥ १ ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ खेत्रदेवता स्तुति ॥
॥
॥ जीसे खित्तेसाहु | दंसणनाणेहि चरण सहिएहिं । साहंति मुरकमग्गं । सादेवी हरन पुरियाई ॥ १ ॥ इति ॥ ॥
॥ ॥
॥ * ॥ थट्टाइज्जेमुमुनिवंदन ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ अढाइजेसु दीवसमुद्देसु । पन्नरससु कम्मभूमी || जावंत केविसाहू स्यहरण गुपरिग्गहधारा ॥ पंच महवय धारा प्रहारस सहस्स सीलांगधारा ॥ अरक यायारचरित्ता, तेसवे सिरसा मासा मत्थवंदामि ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ वरकनक ॥ ॥
॥ वरकनक शंख विद्रुम । मरकत घन सन्निनं विगतमोहं । सप्ततिशतं जिनानां । सर्वामर पूजितं वंदे ॥ १ ॥ इति ॥
॥ ४ ॥
॥ * ॥ अथ पोसह पारवा गाथा ॥ * ॥
॥ सागरचंदो कामो | चंदवर्किंसो सुदंसणोधन्नो । जेसिंपोसह पमिमा । अखमियाजीवितेवि ॥ १ ॥ धन्नासलाहणिका सुजसा आनंद कामदेवाय । जेसिंपसंसइ जयवं । दढव्वयंतं महावीरो ॥ २ ॥ पोसहविधेंलीधुंविधें पारिकं । विधिकरतां जे कोइ प्रविधि हो । तेसविहुं मन बचन कायायें करी मिचामिडुक्करुं ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ 11 11
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रहेसर, मन्हजिणाणं सकलतीर्थ.
॥ * ॥ अथ नरहेसरनी सझाय ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ नरहेसर बाहुबली । अनय कुमारो ढंढण कुमारो | सिरिणियानत्तो । अयमत्तो नागदत्तो ॥ १ ॥ मे थूलिनदो । वय ररिसि नंदिसेण सीहगिरी । कयवन्नो सुकोसल । पुंरियो केसि कर कंडू || २ || हल विहल सुदंसण | साल महासाल सालिनहोय । vai दसन्नो । पसन्नचंदो जसनदो ॥ ३ ॥ जंबू पहु बँकचूलो । गय सुकमा प्रति सुकुमालो । धन्नो इलाइ पुत्तो । चिलाइ पुत्तो बाहुमुणी ॥ ४ ॥ प्रागरि अऊ रक्खि । अज्ज सुहथ्थी नदायगो मलगो । कालयसू रिसंबो। पज्जुन्नो मूलदेवो ॥ ५ ॥ पनवो विन्दुकुमारो | अद्दकुमारो दढ प्पहारी । सिस क्रूरगड । सिज्जंजव मेहकुमारो || ६ || एमाइ महा सत्ता । दिंतु सुहं गुणगणेहिं संजुत्ता । जेसिं नाम ग्गहणे । पावपबंधा विलय जंति ॥ ७ ॥ सुलसा चंदन बाला । मणोरमा मयणरेहा दमयंती । नमया सुंदरी सीया । नंदा दा सुनद्दाय ॥ ८ ॥ राइमई रिसिदत्ता । पनमावई अंजणा सिरि देवी । जिह सुजिह मिगावई । पजावई चित्रणा | देवी ॥ ९ ॥ बंजी सुंदरी रुपिणी । रेवई कुंती सिवा जयंतीय । देवीई दोवई धारणी | कलावई पुप्फचूलाय ॥ १० ॥ पनमावईय गोरी । गंधारी लष्मणा सुसीमाय । जंबूवई सच्चजाया । रुप्पिणी कन्हछ महिसीओ ॥ ॥ ११ ॥ जक्खाय जख्खदिन्ना । नूय तह चैव नृपदिन्नाय । सेणा वेणा रेणा । मणी थूलिनस्स ॥ १२ ॥ इच्चाई महासईओ । जयंति
कलंक सील कलियो । प्रवि वऊई जासिं । जस पडहो तिहुणे सयले ॥ १३ ॥ इति सता सतीनी सिझाय ॥ १ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ मन्हजिणाणं सिझाय ॥ * ॥
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॥ ॐ ॥ मन्ह जिणाणं प्राणं । मि परिहरह धर सम्मत्तं । बहि यावरसयंमि । नज्जुत्तो होई पर दिवसं ॥ १ ॥ पसु पोसहवयं । दाएँ शीलं तवो जावो । संज्ञाय नमुक्कारो । परो वयारो जयणा ॥ २ ॥ जिणपूया जिलथुणिणं । गुरुथु साहम्मित्राणवतं । ववहारस्सय सुधी । रहयत्ता तिथ्थयत्ताय ॥ ३ ॥ नवशम विवेक संबर । नासा समि
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रत्नसागर. उजीव करुणाय । धम्मिन जण संसग्गो । करणदमो चरिण परिणामो ॥ ४ ॥ संघोवरी वहुमायो । पुथ्थय लिहणं पन्नावणा तित्थे । सहाण किच मेअं। निचं गुरुवएसेणं ॥५॥ इति ॥ ५० ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥
॥॥अथ सकल तीर्थ वंदना ॥ ॥ * ॥ सकल तीर्थ वं, करजोड । जिनवरनामें मंगल कोम । पहेलें स्वर्गे लाख बत्तीश । जिनवर चइत्य नमुं निशदीश ॥ १ ॥ बीजे लाख अद्यावीश कह्या तीजे बारलाख सर्दह्या। चोथे स्वर्गे अमलख धार । पांचमे बंदूं लाखज चार ॥२॥ न स्वर्गे सहस पचास । सातमें चालीश सइस प्रसाद । आठमें स्वर्गे व हार । नव दशमें बंदूं शत चार ॥३॥ अग्यार बारमें त्रणशे सार । नवग्रेवेयकें त्रणशे अढार । पांच अनुत्तर सर्वे मली। लाख चौराशी अधिका वली॥ ४॥ सहस सत्ताएं त्रेवीश सार॥ जिनवर जुवन तणो अधिकार । लांबा शो जोजन विस्तार । पचास ऊंचा बोहोत्तर धार ॥५॥ एकशो अशी बिंब परिणाम । सन्नासहित एक चैत्यें जाण । शो कोम वावन कोम संजाल । लाख चोराणु सहस चौपाल ॥६॥ सातशे ऊपर साठ विशाल । सबी बिंब प्रणमुंत्रण काल । सात कोमनें बोहोत्तर लाख । नुवनपतीमां देवल नाख ॥ ७॥ एकशो अशी बिंब प्रमाण । एक एक चइत्ये संख्या जाण । तेरशे कोम निव्याशी कोम. साठ लाख वंदूं करजोम ॥ ८॥ बत्रीशैनें ओगणसाठ । तिर्गलोकमां वह त्यनो पाठ । त्रण लाख एकाएं हजार । त्रणशे वीश ते निंब लुहार ॥९॥ व्यंतर योतिषीमां वली जेह । शाश्वता जिनवर वंदू तेह । रिखान चंद्रानन वारिखेण । वर्धमान नामें गुणशेण ॥ १०॥ समेत सिखर वंदूं जिनवीश ! अष्टापद बंदू चौवीश । विमलाचल में गढ गिरनार । प्रावूनपर जिनवर जुहा र॥ ११॥ शंखेश्वर केशरीयो सार । तारंगे श्रीअजित जुहार । अंतरीक वरकालो पाश । जीरावलोने थंनण पाश ॥१२ ॥ गाम नगर पुर पाटण जह । जिनवर चैत्य नमूं गुण गेह । विहरमान बंदूं जिन वीश । सिद्ध अनंत नमुं निशिदीश ॥१३॥ अढी प्रीपमां जे अणगार । अढार सहस शीलांगना धार । पंच महावत मुमती सार। पाले पलाने पंचाचार ॥१४॥
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सकलाईव शांतिकर स्तोत्र
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बाह्य निंतर तप उजमाल । ते सुनि वंदूं गुणमणि माल । नित नित कठी कीर्ति करूं । जीव कहे जब सायर तरूं ।। १५ ।। इति ।। १५ ।। ॥ * ॥ थ सकलात् स्तोत्र ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ ॐ ॥ सकलाई प्रतिष्ठान । मधिष्ठानं शिव श्रियः । नूर्भुवः स्वस्त्रयीशान । माहत्यं प्रणिद्महे ॥ १ ॥ नामाकृति द्रव्यभावैः । पुनत त्रिजगनं । क्षेत्रे काले सर्वस्मि । न्नर्हतः समुपास्महे ॥ २ ॥ श्रादिमं पृथिवीनाथ | मादिमं निःपरिग्रह | मादिमं तीर्थनाथंच । रुषनस्वामिनं स्तुमः ॥ ३ ॥ अर्हत मजितं विश्व | कमलाकर जास्करं । अम्लान केवला दर्श । संक्रांत जगतं स्तुवे ॥ ४ ॥ विश्व नव्य जनाराम । कुल्या तुल्या जयंतु ताः देशना समये वाचः । श्रीसंनव जगत्पतेः ॥ ५ ॥ अनेकांत मतांनोधि । समुल्लासन चंद्रमाः । दद्यादमंद मानंद | जगवान जिनंदनः ॥ ६ ॥ सत्किरीट शाणाम्रो । तेजितां निखावलिः । भगवान् सुमतिस्वामी । तनोत्वनिमता निवः ॥ ७ ॥ पद्मपत्र प्रनोर्देह । नासः पुष्णंतु वः श्रियं । अंतरंगारी मथने । कोपाटो पादिवारुणाः ॥ ८ ॥ श्रीसुपाश्वंजिनेंद्राय | महेंद्र महितांये । नमश्चतु वर्ण संघ । गगनाजोग नास्वते ॥ ९ ॥ चंद्रपन पत्रोश्चंद्र । मरीचि नि चियो ज्वला । मूर्त्ति मूर्त्तसित ध्यान । निर्मितेव श्रियेऽ स्तुवः ॥ १० ॥ कराम ल कवचिं । कलयन् केवलश्रिया । अचिंत्य महात्म्य निधिः । सुविधिर्बो as स्तुवः ॥ ११ ॥ सत्वानां परमानंद। कंदो दनवांबुदः । स्याप्रादामृत निस्पंदी | शीतलः पातुवो जिनः ||१२|| नवरोगार्त्त जंतूना । मगदंकार दर्शनः निःश्रेयस श्रीरमण | श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तुवः ॥ १३ ॥ विश्वोपकारकी जूत । तीर्थ कृत्कर्म निर्मितिः । सुरासुर नरैः पूज्यो । वासुपूज्यः पुनातुवः ॥ १४ ॥ विम ल स्वामिनो वाचः । कृतककोद सोदराः । जयंति त्रिजगच्चेतो । जलने मल्यहेतवः । ॥ १५ ॥ स्वयंजू रमणस्पधि । करुणा रस वारिणा । अनंत जिदनंतांवः । प्रयचतु सुखनियां ॥ १६ ॥ कल्पद्रुमसधर्माण। मिष्टप्राप्तौ शरीरिणां । चतुर्द्धा धर्म्मदेष्टारं । धर्मनाथं मुपास्महे ॥ १७ ॥ सुधासोदर वाग्ज्योत्स्ना । निर्मली कृत दिङमुखः । मृगलक्ष्मा तमः शांत्यै । शांतिनाथ जिनोस्तु वः ॥ १८ ॥ श्रीकुंथुनाथो भगवान् । सनाथो तिशयर्च्चिनिः । मुरा
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रत्नसागर. सुर नृनाथाना । मेकनाथोऽस्तुवः श्रिये ॥ १९ ॥ अरनाथस्तु जगवां । श्व तुर्थारननोरविः चतुर्थ पुरुषार्थश्री । विलासं वितनो तुवः॥ २० ।। सुरासु र नराधीश । मयूर नव वारिदं । कर्मद्रून्मूलने हस्ति । मल्लं मल्लि मजिष्टु मः ॥ २१॥ जगन्महा मोहनिद्रा । प्रत्यूषसमयोपम । मुनि सुव्रत नाथस्य देशना वचनं स्तुमः ॥२२॥ लुठंतो नमतां मूनि । निर्मली कार कारिणं । वा रि प्लवा इवनमः पातुं पादनखांशवः॥२३॥ य वंश समुद्रेः । कर्म कल हुताशनः । आरेष्टनेमि नगवान् । नूयाम्रोऽरिष्ट नाशनः ॥ २४ ॥ कमठे धर गद्रेच । स्वोचितं कर्म कुर्वति । प्रनुस्तुल्य मनो वृत्तिः। पार्श्व नाथः श्रियेऽ स्तुवः ॥ २५ ॥ श्रीमते बीरनाथाय।सनाथायाद्लुत श्रिया। महानंदा सरोरा ज। मरालायाहते नमः॥ २६ ॥ कृतापराधेपिजने । कृपामंथरतारयोः । ईषडाष्यादयोर्नद्र। श्रीबीर जिननेत्रयोः ॥२७॥ जयति विजितान्यतेजाः। सुरा सुराधीश सेवितः श्रीमान् । विमलस्त्रास विरहित । त्रिभुवन चूमामणि जंगवान् ॥२८॥ वीरः सर्व सुरासुरेन्द्र महिता बीरं बुधाः संश्रिताः । वीरेणानिहतः स्वकर्म निचयो वीराय नित्यं नमः । वीरातीर्थ मिदं प्रवृत्त मतुलं वीरस्य घोरं तपो । श्रीवीरे पति कीर्ति कांति निचयः । श्रीवीरनद्रं दिश ॥ २९ ॥ अवनि तल गतानां कृत्रिमा कृत्रिमानां । वरभुवन गतानां दिव्य वैमानिकानों । इह मनुज कृतानां देवराजार्चितानां। जिनवर भुवना नां जावतोहं नमामि ॥ ३० ॥ इति ॥ ५२॥ ॥ ॥ ..
॥ॐ॥अथ शांतिकर स्तोत्र ॥॥ ॥ॐ ॥ संतिकरं संतिजिणं । जगसरणं जयसिरीइ दायारं । समरामि अत्त पालग। निवाणी गरूमकय सेवं ॥ १ ॥ ओं सनमो विप्पोसहिप त्ताणं । संतिसामिपायाणं । ब्रौं स्वाहा मंतेणं । सबाशिव रिअ हरणाणं ॥२॥न संति नमुक्कारो । खेलोसहि माइ लधि पत्ताणं । सोझी नमोस वो सहि । पत्ताणं चंदेइसिरीं ॥३॥ वाणी तिहुअण सामिणी । सिरि देवो जख्खराय गाणि पिमगा । गह दिसिपाल सुरिंदा । सयाचि रख्खंतुजिणवत्ते ॥४॥ रख्खंतु ममरोहिणी । पन्नत्ती वजासिंखला सया। वजकसि चक्केसरी नरदत्ता कालि महाकाली ॥५॥ गोरी तह गंधारी ।महजाला माणबीअवई
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शांतिकर स्तोत्र श्री सीमंधर सिद्धगिरी चैत्य •
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रुट्टा । अत्ता मासिया । महामाणसिया देवी || ६ || जख्खा गोमुह महजख्खा | तिमुह जख्खेसु तुंबरू कुसुमो । मायंग विजय अजियो । बनो मासुर कुमारो ॥ ७ ॥ बम्मुह पायाल किन्नर । गरुतो गंधव तहय जख्खिंदो । कुबेर वरुणो जिनकी । गोमेहो पासमायंगो ॥ ८ ॥ देवीओ चक्केसरी । प्रजिया पुरिधारी कालि महा काली । अच्चुत्र संता जाला । सु तारया सो सिरिवा ॥ ९ ॥ चंगा विजयंकुसि पन्नइत्ति । निवाणि अनुप्रा धरणी । वरु बृत्त गंधारी । व पनमावई सिधा ॥ १० ॥ इत्र तिथ्थ रख्खण रया । अन्नेवि सुरा सुरी चक्रहावि । व्यंतर जोइणि पहा । कुतु रख्खं सयाह्मं ॥ ११ ॥ एवं सुद्दिडि सुरगण । सहियो संघस्स संति जिल चंदो । मझवि करेन रख्खं । मुणि सुंदर सूरि थुमहिमा ॥ १२ ॥ इ संतिनाह सम्मद्दिधि । रख्खं सरइ तिकालं जो । सबोवद्दव रहियो । सलहर सुह संपर्यं परमं ॥ १३ ॥ तव गल गया दिलयर। जुगवर सिरि सोम सुं दर गुरूणं । सुपसाय लघ गणहर । विजा सिद्धिं नगइ सीसो ॥ १४ ॥ ॥ ॥ श्री सीमंधर जिन चैत्य वंदन ॥ ॥
॥ * ॥ सीमंधर परमातमा । शिव सुखना दाता । पुख्खल वई विजये जयो । सर्व जीवना त्राता ॥ १ ॥ पूर्व विदेह पुंरुरीगिणी । नयरीयें शो है । श्री श्रेयांस राजा तिहां । प्रविण मन मोहे ॥ २ ॥ चनद सुपन निर्मल लही । सत्यकी राणी मात । कुंथ पर जिन अंतरें । श्री सीमंधर जात ॥ ३ ॥ अनुक्रमें प्रजु जनमीया । बली यौवन पावे । मात पिता हरखें करी । रुकमिणी परणावे ॥ ४ ॥ जोगवी सुख संसारनां । संजम मन ला वे । मुनिसुबत नमी अंतरे । दिक्षा प्रनु पावे ॥ ५ ॥ घाती कर्मनो दाय करी । पाम्या केवल नाण । वृखन लंबनें शोभता । सर्व भावना जाए || ॥ ६ ॥ चौराशी जस गणधरा । मुनिवर एक शो कोड । त्रण उवनमां जो तां । नहिं कोई एहनी जोड ॥ ७ ॥ दस लाख का केवली । प्रभुजीनो परिवार | एक समय एय कालना । जाणे सर्व विचार ॥ ८ ॥ नदय पेढा च जिनांतरे ए । थाशे जिनवर सिद्ध । जस विजय जिन प्रणमतां । शुभ चंबित फल जी ॥ ९ ॥ इति चैत्य वंदन ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
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रत्नसागर.
॥ # ॥ पुनः द्वितीय चैत्य वंदन ॥
॥
॥ ॥ श्री सीमंधर जग धणी । मरतें आवो । करुणावंत करु णा करी । प्रमने वंदावो ॥ १ ॥ सकल नक्त तुमें धणी ए । जो होवे म नाथ । जवो जव हुँ हूं ताहरो । नहीं मेनुं हवे साथ ॥ २ ॥ सयल संग बंकी करी ए । चारित्र लेशुं । पाय तुमारा सेविनें । शिवरमणी वरिशुं ॥३॥ ए अलजो मुजने घणो ए। पूरो सीमंधर देव । इहां थकी हुँ वीनवुं । अ वधारो मुऊ सेव ॥ ४ ॥ इति द्वितीय चैत्य वंदन ॥ ॥
॥ * ॥
॥ ॥ श्री सिद्धगिरी चैत्य वंदन ॥ * ॥
॥ * ॥ विमल केवल ज्ञान कमला । कलित त्रिभुवन हितकरं । सुरु राज संस्तुत चरणपंकज । नमो आदि जिनेश्वरं ॥ १ ॥ विमल गिरिवर शृंग मंरुण प्रवर गुण गण नूधरं । सुर असुर किन्नर कोमि सेवित न मो० ॥ २ ॥ करती नाटक किन्नरी गण गाय जिन गुण मनहरं । निर्ज रावली में अहनिश ॥ नमो० ॥ ३ ॥ पुंडरीक गणपति सिद्धि साधी । को मि पण सुनि मन हरं । श्री विमल गिरिवर शृंग सिधा ॥ नमो० ॥ ४ ॥ निज साध्य साधन सुरिंद मुनिवर । कोमिनंत ए गिरिवरं । मुक्ति रमणी व रया रंगें ॥ नमो० ॥ ५ ॥ पाताल नर सुरलोक मांही । विमल गिरिवर तो परं । नहि अधिक तीरथ तीर्थप ति कहे ॥ नमो० ॥ ६ ॥ इम विमल गि रिवर शिखर मंगण । दुःख विहंरुण ध्याइ यें । निज शुद्ध सत्ता साधनार्थे परम ज्योतिनें पाइए ॥ ७ ॥ जित मोह कोह विछोह निद्रा । परम पद स्थि ति जयकरं । गिरिराज सेवा करण तत्पर । पद्मविजय सुहित करं ॥ ८ ॥ ॥ ॥ पुनः सिद्धगिरी चैत्य वंदन ॥ ॥
॥ * ॥ श्री शत्रुंजय सिद्ध खेत्र । दीठे दुर्गति बारे । जाव धरीनें जे चढे । तेने जवपार उतारे ॥ १ ॥ अनंत सिनो एह गम । सकल तीरथ नोराय । पूर्व नवाणुं रिखनदेव । ज्यां ठवी प्रजुपाय ॥ २ ॥ सूरज कुंक सोहा मणो । कवम जक्क अभिराम । नाभिरायां कुलमंरुणो जिनवर करूं प्रणाम || ३ || इति द्वितीय चैत्य ॥ * ॥
॥ ॥
॥ * ॥
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सुणो चंदाजी, सीमंधर ( तथा ) सिधगिरी स्तवन. १४३
॥ ॥ श्री परमात्मा चैत्य वंदन ॥ ॥ । ॥ ॥ परमेसर परमातमा । पावन परमिठ । जय जगगुरु देवाधि देव । नयणे में दिह ॥१॥ अचल अकल अधिकार सार । करुणा रससिं धु। जगती जन आधार एक । निःकारण वंधू ॥२॥ गुण अनंत प्रनुता हरा ए। किम ही कल्यान जाय । राम प्रनु जिन ध्यानथी। चिदानंद सु ख थाय ॥३॥इति ॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ श्री सीमंधर जिन स्तवन ॥8॥ ॥ ॥ सुणो चंदाजी सीमंधर परमातम पासें जावजो । मुझ वीनतमी प्रेम धरीने इण परें तुमें संनलावजो । ( ए आंकणी) जे त्रण्य नुवननो नायकले। जस चौशठ ईंद्र पायक । नाण दरसण जेहनें खायक जै ॥ सुणो० ॥ १ ॥ जेनी कंचन बरणी कायारे । जस धोरी लंग्न पाया। पुंमरीगणी नगरीनो राया ॥ सुणो० ॥२॥ बार पर्षदा मांहि बिराजै छै । जस चौत्रीश अतिशय गजै । गुण पांत्रीश वाणीयें गाजे ने । सुणो० ॥३॥ नविजननें ते पनि बोहेजे। तुम अधिक शीतल गुण शोहे । रूप देखी नविजन मोहे ॥ सुणो० ॥ ॥४॥ तुम सेवा करवा रसीओ बुं । पण नरतमां दूरे वसीओ बुं । महा मोह राय कर फसीओ बुं ॥सुणो० ॥५॥ पण साहिब चित्तमां धरीयो तुम आणा खड्ग कर ग्रहीयोने। तब कांइक मुझथी डरीयो ॥ सुणो० ॥ ॥६॥ जिन नत्तम पूठे हवे पूरो । कहे पद्म विजय थाऊं शूरो । तो वा धे मुज मन अति नूरो॥ सु०॥७॥ ॥॥ ॥ ॥ ॥॥
॥ ॥श्री सिद्धगिरी स्तवन ॥॥ ॥॥ आंखमीये रे में आज । शेठेजो दीगरे। सवा लाख टकानो दहामोरे । लागे मुनें मीठोरे (ए आकणी) सफल थयो मारा मननो क माहो ॥ वाला मारा ॥ नवनो संशय नाग्योरे । नरक तिर्यंच गति दूर नि वारी। चरणे प्रनुजीने लाग्योरे॥शेत्रु० ॥१॥ मानव नवनो लाहो लीधो वा०॥ देहडी पावन कीधीरे । सोना रूपानें फूलडे वधावी। प्रेमें प्रदक्षिणा दीधीरे॥शेर्नु० ॥२॥ दूधडे पखालीने केशर घोली ॥ वा० ॥ श्री आ
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रत्रसागर. दीवर पूज्यारे। श्री सिधाचल नयणे जोतां । पाप मेवासी पूज्यारे । शेर ॥३॥ स्वयमुख सुधर्मा सुरपति आगें । वा० ॥ वीरजिणंद इम बोसें। त्रण नुवनमा तीरथ मोटुं । नहिं कोइ शेजा तोलेरे ॥ शेजें ॥ ४॥ इं. सरीखा ए तीरथनी वा०॥ चाकरी चित्तमां चाहेरे। कायानी तो कासल टाले । सूरज कुंममां नारे ॥शे० ॥ ५ ॥ कांकरे कांकरे श्रीसिघखेत्रे वा ॥ साधु अनंता शीधारे । ते माटे ए तीरथ मोटुं । नधार अनंता की धारे ॥ शेड्नु ॥६॥ नानिराया सुत नयणे जोतां ॥ वा० ॥ मेह अमीरस बूठयारे। नदयरतन कहे आज मारे पोतें। श्री आदीश्वर तूठयारे । शेजे
॥ ॥ पुनः सिद्धगिरी स्तवन ।।
॥ विमलाचल नित वंदियें। कीजै एहनी सेवा । मानुं हाथ ए धर्मनो शिवतरु फल लेवा ॥ वि० ॥१॥नऊल जिन गृह मंमली । ति हां दीपे नत्तंगा । मार्नु हिमगिरि विभ्रमें । आई अंबर गंगा ॥ वि० ॥ ॥२॥ कोइ अनेरूं जग नहीं। ए तीरथ तोले। इम श्रीमुख हरिप्रोगले श्री सीमंधर बोले ॥ वि० ॥३॥ जे सगला तीरथ करया। जात्रा फल लहीयें। तेहथी ए गिरि नेटतां । शत गएं फल कहीयें ॥वि० ॥४॥ जनम सफल होय तेहनो । जे ए गिरि वंदे । सुजश विजय संपद लहे। तेनर चिरनंदे॥ वि०॥५॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ श्री पंच तीर्थ स्तवन ॥॥ : ॥ ॥ श्लोक ॥ श्री शठंजय मुख्य तीर्थ तिलकं श्री नानिराजंगजं वंदेश्वत शैल मौलि मुकुटं श्रीनेमिनाथं यथा। तारंगे अजितं जिनं गु पुरे श्रीमुव्रतं स्थंजने । श्रीपार्थ प्रणमामि सत्यनगरे श्रीवर्धमानं त्रिधा ॥१॥ वंदेऽनुत्तर कल्प तल्प नुवने ग्रैवेयके व्यंतरे । ज्योतिष्का मर मंदराद्रि वसतो स्तीर्थकरा नादरान् । जंबू पुष्कर धातकीषु रुचके नंदीश्वरे कुं डले । येचान्येपि जिना नमानि सततं तान् कृतिमा ऽकृत्रिमान् ॥ २ ॥ श्री महीरजिनास्य पद्म ज्ञदतो निर्गम्यते गौतम । गंगा वर्तन मेत्य या प्रवि नवे मिथ्यात्व वैताढ्यकं । उत्पत्ति स्थिति संहति त्रिपथगा ज्ञानां बुधा वृधिगा। सामे कर्ममलं हरत्व विकलं श्रीमादशांगी नदी ॥ ३॥ शक्रश्चंद्र
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नेमराजुल, ग्राऊसिज्ञाय, ५ तिथी चैत्यवंदन.
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रवि ग्रहा व धरण द्र शांत्यंबिका । दिगपालाः सकपर्द्दिगो मुखगणा श्रक्रेश्वरी भारती । येन्ये ज्ञानतपक्रिया व्रतिविधिः श्रीतीर्थयात्रादिषु । श्री संघस्य तुरा चतुर्विध सुरा स्ते संतु मकराः ॥ ४ ॥ इति श्रीपंचतीर्थ ॥ ॐ ॥ ॥ * ॥ नेमराजुल सिज्ञाय ॥ ॥
॥ * ॥ नदी जमुनाके तीर क्रमे दोय पंखीया (ए देशी ) पिनजी पि नजीरे नाम जपुं दिन रातियां ॥ पिनजी चाल्या परदेश । तपे मोरी बातीयां । पग पग जोती वाट वालेसर कब मिले । नीर विछोह्यां मीनके । तेव ॥ १ ॥ सुंदर मंदिर सेज साहिब विण नविगमे । जिहारे वालेसर नाम तिहां मारू मन नमे । जो होवे सऊन दूर तोहि पासें बसे । किहां सायर किहां चंद देखी मन नवसे ॥ २ ॥ निःस्नेहीभुं प्रीत मकरजोको सही | पतंग जलावे देह दीपक मनमें नहीं । माणसनो विजौग म होजो केहनें । सालेरे साल समान हइमां तेहने ॥ ३ ॥ विरह व्यथानी पी जोवन वय प्रति दहे । जेनो पियु परदेश ते माणस दुःख सहे । कुरी कुरी पंजर कीध, काया कमला जिसी । हजु न आ व्योम मजी नयणें हसी ॥ ४ ॥ जेने जेहशुं रंग टाल्यो ते नवी टलै चकवा रयणी विजोग तेतो दिवसें मलै । प्रांबा केरो स्वाद निंबू ते न वि करे | जे नाह्या गंगा नीर ते बिल्लर केम तरे ॥ ५ ॥ जे रम्या मालती फूल धत्तूरे केम रमे । जेहनें घीयशुं प्रेम ने तेले केम जमें। जेहनें चतुरशुं नेह ते वर शुं करे | नव जोबन तजी प्रेम वैरागीथे फरे ॥ ६ ॥ रा रूपनिधान के पोहती सहसावनें । जइ वांद्या प्रभु नेम संजम ले ई ऐकमनें । पांयां केवल ज्ञान के पोहती मन रख्नी । रूपविजय प्रनुनेम लेटे आशा फजी ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ 1111
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॥ * ॥
ऊखा सिज्ञायः ॥
॥ * ॥ माखो तूटानें सांधो को नहींरे । ति कारण मकरो जीव नादरे। जरा आव्याने शरणं को नहींरे । हिंसा बोमीनें दया पालरे ॥ आ० ॥ १ ॥ कुटुंब कबीला नारी कारणेंरे । मूरख संच्यां बहुला पाप र। चोर तणी परे की क्रूरशेरे । सहीश इहलोक परलोक संतापरे ॥
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रत्नसागर. आ॥ २॥ ऊंचा चणाव्या मंदिर मालियारे । दे दे धरतीमें ऊंडी नीवरे एक दिन अणजाण्युं की चालबुरे । मुख दुःख सहशे आपणो जीवरे आ०॥३॥ चक्रवर्ति हरिबल राणो केशवोरे । जो जो वली इंद्र मुरांनो नाथरे।। ऊगी कगीने नवेही आथम्यारे । जो जो कोइ अचरज वाली वा तरे॥ आ०॥४॥ अथिर संसार तजी मुनी नीसरयारे। करता मुनि नव ला विहाररे । जारंग पंखीनी दीधी नेपमारे । न धरे ममता नेह लगाररे ॥ आ०॥५॥ चारित्र पाले रूमी रीत°रे । देवे मुनि अपनो उपदेशरे । तीको मुनिवर सिधासी मोहनेंरे। जश लेई इह लोक परलोकरे ॥ आ० ॥ ॥६॥शब्द रूप देखी समता धरोरे । मकरो मुनि लण्यानुं अजिमानरे । कृषि चोथमल सूत्र देखिनेंरे । जोम कीधी जालोर मकाररे ॥आऊ ॥७॥
॥ ॥ पंचतीर्थी चैत्यवंदन ॥॥ ॥ ॥ आज देव अरिहंत नमुं। समरूं तारूं नाम । ज्यां ज्यां प्रति मा जिनतणी । त्यां त्यां करूं प्रणाम ॥ १ ॥ शेठेजय श्रीआदिदेव । नेम नमुं गिरनार । तारंगे श्री अजित नाथ । आबू रिखान जुहार ॥२॥ अष्टा पद गिरि ऊपरें । जिनचोवीशी जोय ॥ मणिमय मूरति मानशुं । जरतें जरावी सोय ॥३॥ समेत शिखर तीरथ वडुं । ज्यां वीशे जिन पाय । वै नारकगिरि ऊपरें । श्री वीर जिनेश्वर राय ॥४॥ मांझवगढनो राजियो। नामें देव सुपाश । रिखन कहै जिन समरतां । पोहोचै मननी आश ॥ ५ ॥
॥ॐ ॥ दूज तिथीको चैत्य वंदन ॥3॥ ॥ * ॥ इविध धर्म जिणें नपदिश्यो । चोथा अभिनंदन । बीजै ज न्म्या ते प्रनु । जवपुःख निकंदन ॥ १॥ इविध ध्यान तुझे परिहरो। आदरो दोयध्यान । एम प्रकाश्युं सुमति जिन । ते चविया बीज दिन । ॥२॥ दोय बंधन राग द्वेष । तेहने जवि ताजियें । मुझ परे शीतल जिन क है। बीज दिन शिव नजियें ॥३॥जीवा जीव पदार्थहैं। करोनाण सुजाण वीज दिनें वासुपूज्य परें। लहो केवल नाण ॥४॥ निश्चय नय व्यवहार दोय । एकांत न ग्रहीयें। अर जिन बीज दिने चवी । एमजिन पागल क हीयें ॥५॥ वर्तमान चौवीशीये । एम जिन कल्याण । बीजदिनें केई या
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पांचतिथ चैत्यवंदनः स्तुति..
१४७ मीया। प्रनु नाण निर्वाण ॥६॥ एम अनंत चौवीशीयें । हुआ बहुत कल्याण । जिन नत्तम पद पद्मने । नमतां होय सुख खाण ॥७॥इति ।।
॥ ग्यान पंचमीको चैत्य वंदन ॥ ॥ ॥ ॥ त्रिगडे बेठा वीरजिन । नाखे नविजन आगे। त्रिकरणशुं त्रि हुँ लोक जन । निसुणो मन रागें ॥१॥ आराहो लवि मावसे । पांच म अजुवाली।झान आराधन कारणें । येहज तिथि निहाली ॥ २॥ झान विना पशु सारिखा। जाणो इण संसार । ज्ञान आराधनथी लद्यु । शिवपद सुखश्रीकार ॥३॥ ज्ञान रहित क्रिया कही। काश कुसुम नप मान । लोका लोकप्रकाशकर । ज्ञान एक परधान ॥ ४॥ ज्ञानी सासो सासमें । करे कर्मनो खेह । पूर्व कोमी वरसां लगे । अज्ञानेंकरे तेह ॥५॥ देश आराधक क्रिया कही । सर्व आराधकज्ञान । ज्ञान तणो महिमा घणो । अंग पांचमे जगवान ॥६॥ पंच माश लघु पंचमी । जावजीव नत्कृष्टी। पंच वरश पंच माशनी । पंचमी करो शुनदृष्टी ॥ ७॥ एकावनही पंचनो ए । कानसग्ग लोगस्स केरो। ऊजमणुं करोनावशुं । टाले नव फेरो ॥८॥ इण परें पंचमी भाराहीयें ए । आणी नाव अपार । वरदत्त गुण मंजरी परें। रंग विजय लहोसार ॥९॥इति चैत्य वंदनं ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ अष्टमीको चैत्य वंदन ॥ ॥
महा शुदि आठमनें दीने । विजया सुत जायो । तेम फागुण शुदि आठमें । संजव चव आयो ॥१॥ चइतर वदनी आठमें । जनम्या शेषन जिणंद । दिदा पण ए दिन लही। हुआ प्रथम मुनिचंद ॥२॥ माधवशुदि आठम दिने । आठ कर्म करया दूर । अनिनंदन चोथा प्रनु । पाम्या सुख जरपूर ॥३॥ एहीज आठम ऊजली । जन्म्या सुमति जिणं द । आठजाति कलशें करी । न्हवरावे सुर इंद्र ॥४॥ जन्म्या जेठवदि आग्में । मुनि सुव्रत स्वामी । नेम आषाढ शुदि आपमें । पंचमी गति पामी॥५॥ श्रावण वदनी आठमें । नमि जन्म्या जगनाण। तिम श्रावण शुदि आठमें । पासजीनो निर्वाण ॥ ६ ॥ जावा वदि आठम दिने चविया स्वामी सुपास। जिन नत्तम पदपद्मने । सेव्यांथी शिववास ॥७॥
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रत्नसागर. ॥॥अथ एकादशीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ * ॥शाशन नायक वीरजी प्रजुकेवल पायो । संध चतुर्विध थाप वा। महसेन वन आयो ॥१॥ माधव सित एकादशी । सोमल जिया इंद्रचूति आदें मल्या। एकादश विग्य ॥२॥ एकादशसें चतुगुणा । तेह नो परिवार । वेद अर्थ अवलो करे। मन अनिमान अपार ॥३॥ जीवा दिक संशय हरीए । एकादश गणधार । वीरें थाप्या वंदियें। जिन शासन जयकार ॥ ४॥ मति जन्म अर मति पाश । वर चरण विलाशी ॥ष जअजित सुमति नमी । मली घनघाति विनाशी ॥ ५ ॥ पद्मपन शिव वास पास। नवनवना तोडी। एकादशी दिन आपणी। रिछि सगली जो डी॥६॥ दश खेने निहुँ कालनां । दैदशै कल्याण । वरस अग्यार एका दशी । आराधो वर नाण ॥७॥ अगीयार अंग लखावीयें । एकादश पाग । पूंजणी ठवणी विंटणी । मसी कागल काग ॥ ८॥ अगीयार अनत गंमवा ए। वहो पमिमा अगियार । खिमाविजय जिन शासनें। सफल करो अवतार ॥ ९ ॥ इति ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ सीमंधर जिनवर सुखकर साहेब देव । अरिहंत सकलनी। जाव धरी करूं सेव । सकलागम पारग गणधर नाखित वाणी । जयवंती आणा ज्ञान विमल गुणखाणी ॥१॥ ॥ ॥ ॥et ए थुई चार वखत पण कहेवायळे ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ श्री सीमंधर जिनस्तुति॥॥ ॥ ॥ श्री सीमंधर देव सुहंकर । मुनि मन पंकज हंसाजी। कुंथुअर जिन अंतर जनम्या तिहुश्रणयश परशंसा जी। सुबत नमि अंतर वरदी हा शिक्षा जगत निरासेंजी । उदय पेढाल जिनांतरमा प्रजु जाशे शिव वहु पासें जी ॥ १ ॥ बत्रीश चनसहि चन्सठि मलिया इग सय सहि उकिटा जी ॥ चन अम अम मली मध्यम कालें वीस जिनेश्वर दिहा जी। दो चउ चार जघन्य दशजंबू धायई पुख्खर मारें जी॥ पूजो प्रणमो आचारांगें प्रवचन सार उघारें जी ॥ २ ॥ सीमंधर वर केवल पा मी जिनपद खवण निमित्तेजी ॥ अर्थनी देशन वस्तु निवेशन देतां सु
बहू पास
चन अम
जंबू धाय
पर वर केवल
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२।५। ८।११।१५। पांचतिथी स्तुति. १४९ णत विनीतेंजी । प्रादश अंग पूरवयुत रचिया गणधर लब्धि विकसिया जी। अपजावसिय जिनागम बंदो अदर पदना रसिया जी ॥ ३ ॥ णा रंगी समकित संगी विविध नंग व्रतधारी जी । चनबिह संघ ती स्थ रखवाली सहु नपद्रव हरनारी जी । पंचांगुली सुरी शासन देवी देती तस जश कधीजी । श्री शुनवीर कहे शिव साधन कार्य शकलमां सिधीजी ॥४॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥अथ वीजतिथिकी स्तुति॥॥ ॥ ॥ दिन सकल मनोहर वीज दिवस सु विशेष । राय राणा प्र एणमें चंद्र तणी ज्यां रेख । तिहां चंद्रविमाने शाश्वत जिनवर जेह । हु बीज तणे दिन प्रणमुं आणि नेह ॥१॥ अभिनंदन चंदन शीतल शीतल नाथ । अरनाथ सुमति जिन वासुपूज्य शिव साथ । इत्यादिक जिनवर जन्म ज्ञान निरवाण । हुं बीज तणे दिन प्रणमूं ते मुविहाण ॥ २ ॥ पर काश्यो बीजें दुविध धर्म नगवंत । जेम विमला कमला विनुल नयन विकसंत । आगम अति अनुपम जिहां निश्चय व्यवहार । बीजें सवि कीजें पातिकनो परिहार ॥ ३ ॥ गजगामिनी कामिनी कमल सुकोमल चीर । चकेसरि केसरी सरस सुगंध शरीर । कर जोमी बीजें हूं प्रणमुं तस पाय । इम लब्धिविजय कहे पूरो मनोरथ माय ॥ ४ ॥ इति
॥अथ पंचमीनी स्तुति ॥ ॥ ॥ ॥ श्रावण शुदि दिन पंचमी ए । जनम्या नेम जिणंद तो । श्याम वरण तन शोजतो ए। मुख शारदको चंद तो । सहस वरस प्रनु आनखो ए । ब्रह्मचारी नगवंत तो। अष्ट करम हेलें हणीए । पोहोता मुक्ति मकार तो। वासुपूज्य चंपापुरि ए । नेम मुक्ति गिरनार तो। पावापुरी नगरीमां वली ए। श्री वीरतणुं निर्वाण तो । समेत सिखर वीश सिघ हुआ ए। शिर वहुँ तेहनी आण तो ॥२॥ नेमिनाथ ज्ञानी हुवा ए। नाख्यो सार वचन्न तो॥ जीवदया गुण वेलमी ए। कीजै तास जतन्न तो । मृषा न बोलो मा नवी ए । चोरी चित्त निवार तो। अनन्त तीर्थकर इम कहे ए । परहरिये परनार तो॥३॥ गोमेद नामें जद नलो ए। देवीश्री अंबिका नाम तो।शा
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१५० . रत्नसागर... सन सानिध्य जे करे ए। करै बलि धरमनां काम तो। तपगह नायक गुण नि लोए । श्री विजय सेन सूरिराय तो । रिखान दास पाय सेवताए । सफ ल करे अवतार तो॥४॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ अष्टमीनी स्तुति ॥ ॥ ॥ * ॥ मंगल आठ करी जस आगल जाव धरी सुरराजाजी । आ ठ जातिना कलश करीने न्हवरावें जिनराजाजी । वीर जिनेश्वर जन्म महोत्सव करतां शिव सुख साधेजी। आठमर्नु तप करतां अम घर मंग ल कमला वाधैजी ॥ १॥ अष्ट करम वयरी गजगंजन । अष्टापदपरे व लीयाजी । आठमें आठ सरूप विचारी । मद आये तस गलियाजी। अ ष्टमी गतिपरें पहोता जिनवर फरस आठ नहिं अंगजी । आठमयूँ तप करतां अम घर नित्य नित्य वाधे रंगजी ॥२॥ प्रातीहारज आठ बि राजे । समवसरण जिन राजेजी ॥ आठमे आठ शो आगम जाखी । जदि मन संशय लांजेजी । आठे जे प्रवचननी माता पाले निरतीचारोजी। आठमनें दिन अष्ट प्रकारे जीवदया चित्त धारोजी ॥३॥ अष्ट प्रकारी पूजा करीनें मानव जव फल लीजेंजी । सिघाइ देवी जिनवर सेवी अ टमहासिधि दीजेंजी । आठमर्नु तप करतां लीजें निर्मल केवल ज्ञान जी। धीर विमल कवि सेवक नय कहे तपथी कोडकल्याणजी ॥४॥
॥ ॥ अथ एकादशीनी स्तुति ॥ ॥ ॥ एकादशी अति रूप्रमी । गोविंद पूजे नेम । कोण कारण ए प र्व मोहोटुं । कहो मुमशुं तेम । जिनवर कल्याणक अति घणां । एकशो ने पंचाश । तेणें कारण ए पर्व मोहोटुं । करो मौन उपवास ॥१॥ गिमार श्रावक तणीप्रतिमा । कहै ते जिनवर देव । एकादशी एम अधिक सेवो । वन गजा जिमरेव । चौवीश जिनवर सयल सुखकर जैसा सुरतरु चं ग। जेम गंगनिर्मल नीरजेहवु करो जिनसुं रंग । अगीबार अंग लखाविये। अगीयार पागसार । अगीआर कवली विटणां ठवणी पूंजणी सार । चाबखी चंगी विविध रंगी शास्त्रतणे अनुसार । एकादशी एम उजमो। जेम पामियें न वपार॥३॥वर कमलनयणी कमलवयणी कमल सुकोमल काय । नुजडंग
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पांचतिथी स्तुति.
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चंग खंग जेहनें समस्तां सुख थाय । एकादशी एम मन वशी गणि हर्ष पंमित शीश | शासन देवी विधन निवारो संघ तषां निश दीश ॥ ४ ॥ ॥ * ॥ अथ स्नातस्याचवदशनी स्तुति ॥
॥
॥ ॥ स्नातस्या प्रतिमस्य मेरुशिखरे । शच्या विनोः शैशवे । रूपा लोकन विस्मया हृत रस भ्रांत्या भ्रमचक्षुषा । नन्मृष्टं नयन प्रजा धवलि तं क्षीरोदकाशकया । वक्रं यस्य पुनः पुनः सजयति श्रीवर्द्धमानो जिनः ॥ ॥ १ ॥ हंसां साहत पद्मरेणु कपिश कीरार्णवां जो नृतैः । कुनै रप्सरसां प योधर जर प्रस्पर्धिनिः कांचनैः । येषां मंदर रतशैल शिखरे जन्माभिषे कः कृतः । सर्वे सर्व सुरा सुरेश्वर गणै स्तेषां नतोहं क्रमान् ॥ २ ॥ द्र * प्रसूतं गणधर रचितं द्वादशांगं विशालं । चित्रं वव्हर्थ युक्तं मुनिगण वृष नैर्धारितं बुधिमद्भिः । मोक्षाग्रप्रानृतं व्रत चरण फलं ज्ञेय जाव प्रदीपं ।
त्या नित्यं प्रपद्ये श्रुत मह मखिलं सर्व लोकैक सारं ॥ ३ ॥ निष्पक व्योमनील तिमल सदृशं बालचंद्रा दंष्ट्रं । मत्तं घंटावेण प्रसृत मदज वं पूरयतं समंतात् । प्रारूढो दिव्य नागं विचरति गगने कामदः कामरूपी । यः सर्वानुभूति दिशतु मम सदा सर्व कार्येषु सिद्धि ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ अथ श्रीशत्रुंजय स्तुति ॥
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॥ ॥ श्री शत्रुंजय गिरि तीरथ सार । गिरिवर मांहे जेम मेरु नदार । ठा कुरराम अपार | मंत्र मांहिं नवकारज जाएं । तारा मांहे जेम चंद्र बखाणुं । जलधर मांहे जल जाएं। पंखी मांहे जेम उत्तम हंस । कुल मांहें जिम कपननो वंश | नाभि तणो जे अंश । कुमावंत मांहे जेम अरिहंता । तपशू रा मुनिवर महंता । शत्रुंजय गिरि गुणवंता ॥ १ ॥ रूपन अजित संभव अनिनंदा । सुमतिनाथ मुख पूनम चंदा । पद्म प्रन सुख कंदा । श्रीसुपा व चंद्र सुविधी । शीतल श्रेयांस सेवो बहु बुद्धी । वासुपूज्य मति सुधी विमल अनंत जिन धर्म ए शांती। कंथ पर मनि नमुं एकांती । मुनिसुव्रत शुद्ध पंथी । नमी पाशने वीर चौवीश । नेम विना ए जिन त्रेवीश । सिव गिरि आव्या ईश ॥ २ ॥ जरतराय जिन साथै बोले । स्वामी शत्रुंजय गिर कुण तोले। जिननुं वचन अमोले । रुषन कहे सुणो भरतराय । बहरी पा
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रत्नसागर. लंता जे नरजाय । पातिक नूको थाय । पशु पंखी जेइण गिरि आये। जव त्रीजे ते सिघज थावे । अजरामर पद पाये। जिनमतमें शेजो वखाण्यो। ते में आगम दिलमांहे प्राण्यो । सुणतां सुख नराण्यो॥२॥ संघ पति जरत नरेसर आवे । सोवन तणां प्रासाद करावे । मणिमय सूरति गये। ना निराया मरुदेवी माता । ब्राह्मी सुंदरी बहेन विख्याता । मूर्ति नवाएं माता गोमुखनें चकेसरी देवी। शेढंजय सार करे नित्य मेवी । तणगह ऊपर हेवी श्रीविजय सेन सूरीश्वर राया। श्री विजयदेवसूरी प्रणयी पाया। षन दास गुणगाया ॥४॥इति ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ सीमंधर जिन स्तुति॥ ॥ ॥ महाविदेहखेडे सीमंधर स्वामी सोनाना सिंहासणजी । रूपानां कोशीशा विराजे रत्नना दीवा दीपेजी । कुंकुमवर्णी गहुंली विराजे मोतीना अदत सारजी । त्यां बेग सीमंधर स्वामी बोलै मधुरी वाणीजी ॥१॥ केशर चंदन नरीरे कचोली । कस्तूरी वरासजी । पहलीरे पूजा अमारीरे होजो कगम ते परनातजी॥॥
॥ ॥ॐ॥ अथ सामायक लेवा विधि ॥ ॥ प्रथम नंचे आसनें पुस्तक प्रमुख मुंकीनें। श्रावक,श्राविका,कटा सणुं । मुहपत्ती, चरवलो लई । शुध बस्त्रपहरी । जग्या पुंजी। कटासण ऊपर बेशी, मुहपत्ती मावा हाथमा मुख पासें राखी । जमणो हाथथापना जीसन्मु ख राखी। एक नवकार गणी (पंचिंदिन) कही । इच्छामि खमासमण देई। हरि या वहिया। तस्सनत्तरी । अन्नत्थ ऊससिएणं । कहै। एक लोगस्सनो (अथवा) चार नवकारनो कानसग्ग करै (पारी) प्रगट लोगस्स कहै । खमासमण देई । इलाकारण संदिसह जगवन् सामायक मुहपत्ती पमिलेहुँ । इई ॥ इमकही ।मुहपत्ती,तथा,अंगनी पमिलेहणना पंचाश बोल कही। सुहपत्ती पमिलहीऐं। पनी खमासमण देई । इलाकारण संदिसह जगवन् सामायक संदिस्साचं ॥ इडं ॥ वली खमासमण देई । इला० ॥ सामायक गर्नु । ढं। एम कही। बे हाथ जोमी । एक नवकार गणी । इछकार भगवन पसाय करी सामायक दंभक उबराबाजी। पली शुरु भमुख बमेल करोमि
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सामायक लेवापारवा देवसिक प्रतिक्रमण... १५३ जंते कहे । पछी खमासमण देई । इबा वैसणो संदिस्सा ॥ खमा० इला ॥ वैसणो ठगळं ॥ खमा ० इछा ॥ सिशाय संदिस्सा ॥ खमा ० इछा ॥ सशाय करुं। इछ । एम कही ।त्रण नवकार गणवा । पीबे घमी सशाय धर्म ध्यान करवू । इति सामायक लेवानी विधि ॥१॥
॥॥अथ सामायिक पारवा विधि ॥ ॥ .. ॥ ॥ खमासमण देई । इरिया वही पमिकमाथी (यावत् ) लोगस्स सूधी कही। खमा०॥छा ॥ मुहपत्ती पमिलेहुं (एम कही) मुहपत्ती पमिले ही। खमासमण देई ॥ इहा ॥ सामायिक पारुं। यथाशक्ती । वली खमास मण देई ॥ इहा ॥ सामायिक पारयु तहत्ती कही । परी जमणो हाथ चरवला ऊपर अथवा कटासणा ऊपर थापी । एक नवकार गणी (सामाश्य वयजुत्तो °) कहिए ॥ पी जमणो हाथ थापना सामो सवलौ राखीने एक नवकार गणी ॥ इति सामायिक पारवानो विधि ॥॥
॥ ॥ दैवशिक प्रतिक्रमण विधि॥ ॥ ॥ॐ॥ प्रथम सामायिक लीजें । पाणी वापरयुं होय (तो) मुहप त्ती पडि लेहवी । अनें आहार वावरयो होय (तो) वांदणां बेदेवा । तिहाबी जा वांदणांमां (आवसीआए) ए पाठन कहेवो । पठी यथा शक्ति पञ्चख्खा ण करवू । पी खमासमण देई । इछा० कही । वमेरायें (अथवा ) पोतें। चैत्यवंदन कहेवू । परी जंकिंचि०। नमोथ्थुणं० कही। कनाथईने । अरिहंतचे इयाणं कही। एक नवकारनो काकस्सग्ग करी । नमोऽर्हत् । कहीनें। प्रथम थुई कहेवी॥ पी। लोगस्स सवलोए अरिहंत चेइयाणं कही। एक नवकार नो कानसग्ग पारीनें । बीजी थुई कहेवी ॥ परी पुख्खरवरदी० कही। सु अस्स नगवो करेमि कानस्सग्गं । वंदण । कही। एक नवकारनो कान ।। स्सग्ग पारी । त्रीजी थुई कहेवी । पी सिघाणं बुधाणं कही। वेयावच्च ग राणं० करेमि कानस्सग्गं । अन्नत्थू० । कही। एक नवकारनो काऊसग्ग पारी । नमोऽर्हत् । कही। चोथी थुई कहेवी ॥ परी बेशीनें नमोथ्थुणं कहे, (पी) चार खमासमण देवापूर्वक । लगवान्, आचार्य, नपाध्याय, सर्व सा धुभ्यः । प्रतें थोन वंदन करीयें । परी इलाकारेण ॥ (देवसिक प्रतिक्रमण
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रत्नसागर.
ग) एम कही । जमणो हाथ, चवला अथवा कटासणा ऊपर थापीने। इ सवरसवि देवसि० ॥ कहेतुं ॥ पनी ऊना थई । करेमि ते । इवामिठामि कानसग्गं । जोमे देवसिप्रो० ॥ तस्स उत्तरी कहीनें ॥ प्रतीचारनी आठ गाथानी कानसग्ग करवो । आठ गाथा न आवडे तो आठ नवकारनो का नसग्ग करवो ॥ ते कानस्सग पारीनें लोगस्स कहवो । पढी बेसीनें । त्रीजा आवश्यकनी मुहपत्ती पडिलेहीनें । वांदा बे देवां || पी कना थईनें । इवा कारे० || देवसि आलोनं ॥ इवं आलोएमि जोमे देवसिप्रो० ॥ कहीने सात लाख कहेवा । पत्नी अदार पापस्थानक आलोइनें । सवस्सवि देवसि
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| कही बेस । बेसीनें एक नवकार गणी । करेमि । इवामि पनि क्कमितं कहीने ॥ वंदित्तु कहेतुं ॥ पनी वांदणां बे देवा । पबी । अहिं । प्रनिंतर देवमित्र्यं खामीनें । वांदणां बे देवा । पढी कना थई आयरिय न वझाए, कहने । करेमि ते ॥ इवामि गमि० जोमे देवसिप्रो० ॥ तस्स उत्तरी• ॥ कही। वे लोगस्स, अथवा, आठ नवकारनो कानसग्ग करवो। ते पारीनें लोगस्स कही । सबलोए अरिहंत चेइयाणं । वंद कही। एक लोग स्स (अथवा ) चार नवकारनो कानसग्ग पारीनें । पुख्खरवरदी ० ॥ सुरस are करेमि || वंदण करीनें । एक लोगस्स ( अथवा ) चार नवका नो कासरग करवो । ते पारीनें । सिधाणं बुधाणं कही । सुत्र देवया ए करेमि कासगं । अन्नत्थू कही । एक नवकारनो कानसम्म करवो । ते पारी | नमोऽर्हत० कही । ( पुरुष ) सुय देवयानी पहेली थुई कहेवी ( अ ) स्त्रीयें, कमल दलनी पहेली थुई कहेवी । पी खेत्र देवया करेमि कासगं० ॥ एक नवकारनो का सग्ग पारी । नमो कही । क्षेत्र देवतानी बीजी थुई । स्त्रीयें (तथा) पुरूष बन्नेनें कहेवी । पढी एक नवकार प्रगट गुणी ( बेसीने) बघा आवश्यकनी मुह पत्ती पहिने | वे वांदणां दीजे (पक्षी) सामायक, चक्रवीसथ्थो वंदनकः प मिक्कमणुं, कानसग्ग, अर्ने पच्चख्खाण करुँबुंजी । एम ए आवश्यक संजा रखा । पबी इवामो अणुसद्धिं । नमो खमासमणां । कही । नमोऽर्हत् कहनें पुरुष । नमोस्तु वर्धमानाय । कहे। अने स्त्रीयां संसार दावानी थुई त्रप
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- राई प्रतिक्रमण विधि. कहे । परी नमोथ्थुणं कही स्तवन कहेवु (पी) वरकनक कही जगवान् आदे वांदवा । परी जमणो हाथ नपधी ऊपर थापी । अढाइओसु कहेवू । पनी दे वसिअ पायबित्तनो कानसग्ग चार लोगस्स (अथवा) शोल नवकारनो क खो। ते कानसग्ग पारी । प्रगट लोगस्स कही। बेसीने । खमासमण दे। हा । सिशाय संदिसा । बिजु खमासमण देई । इबा सिशाय नएं।एम सिशायनो आदेश मागी। एक नवकार गणी । सिझाय कहवी। परी एक नवकार गणी । खमासमण देई सुख्खख्खो कम्मख्खो नो कानसग्ग। चार लोगस्सनो संपूर्ण (अथवा) शोल नवकारनो करवो । ते एक वरें (अथवा) पोतें पारीने । नमों ऽहंत कही । लघुशांति कहीनें । प्रगट लोगस्स कहै (पी) शरिया वही०॥ तस्स नत्तरी० ॥ कही ॥ एक लोगस्स ( अथवा ) चार नवकाररो कासग्ग करी । प्रगट लोगस्स कहेवो । पी चनकसाय० ॥ नमुथ्थुणं. कही ॥ जावंति, बे । क हीने। वसग्ग हरं० ॥ जयवीयराय० कही । मुहपत्ती पडिलेहवी। पी इनामि० ॥इडा० सामायिक पारुं यथाशक्ति । इनामि० । इडा का०॥ सामायिक पास्युं, तहत्ति कही पी जमणो हाथ नपधी ऊपर स्थापी । ए क नवकार गणीने सामाइन वयजुत्तो कहेQ । परी थापलि स्थापना होय तो एक नवकार गणी कठे । एवं प्रतिक्रमण विधि कह्यो । बा की अंतरविधि मोहोटाथी समजवो। इति देवसी प्रतिक्रमण विधि ॥ ॥
॥ ॥ अथ राई प्रतिक्रमण विधि ॥॥ ॥ ॥ प्रथम पूर्वली रीतें सामायिक लेवू । पीडा । इहा।कही कुमुमिण समिणनो कान्सग्ग चार लोग्गस्सनो ( अथवा ) शोल नव कारनो करी । पारी । प्रगट लोगस्स कहेवो । पनी खमासमण देई । जगचिंतामणिर्नु चैत्यवंदन, जय वीयराय सुधी कहेवू । पठी चार खमा सण पूर्वक । नगवान् । आचार्य । नपाध्याय। अने सर्व साधु । प्रत्यकें बांदवा । पठी खमासमण बे देश । सशायनो आदेश मांगी। एक नवकार गणीनें । नरहे सरनी सशाय कहीने (फरी) एक नवकारगणवो। पनी इड कार सुहराईनो पाठ कहेवो। परी इलाका। राई प्रतिक्रमण ठगळं । क
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रत्नसागर. हीने। जमणो हाथ नपधी ऊपर थापीने । पनी । इडं सबस्सवि राश्य 3 चिंतिय० ॥ कही। नमोथ्थुणं ( तथा ) करेमि नंते कही।इनामि गमि कान सग्गं० ॥ तस्सनत्तरी० कही ॥ एक लोगस्स (अथवा) चार नवकारनो का नस्सग्ग। पारीनें । प्रगट लोगस्स कही । सबलोए अरिहंत०। कही । एक लोगस्स (अथवा) चार नवकारनो कानसग्ग करवो । परी । पुख्खर वरदी०॥ सुअस्स० ॥वंदण०॥ कही।अताचारनी आठ गाथानो (अथवा) न आवमे तो । आठ नवकारनो कानस्सग्ग पारी । सिघाणं बुघाणं कही ने। त्रीजा आवश्यकनी मुहपत्ती पमिलेही । वांदणां वे देवा । (तिहांथी लेने) अनुठिो खामि । वांदणां वे दीजें (तिहां सुधी) देवसीनी रीतें जाणवू । पण (जे) ठेकाणे देवसिअं आवे (ते) ठेकाणे राश्यं कहेवू । पी आयरिश्र नवशाए० ॥ करेमि ते ॥ इडामि गमि० ॥ तस्स न तरी० कही ॥ तपचिंतामणि करतां न आवमे तो। चार लोगस्स (अथवा) शोल नवकारनो कानस्सग्ग करवो । ते पारी प्रगट लोगस कही । हा आवश्यकनी मुहपत्ती पमिलेही। वांदणां बे देवा । (पी) सकल तीर्थ वंदन करीने । यथाशक्तियें पच्चख्खाण करवू । परी इलाकारेण संदिसह नगवन् । सामायिक, चम्बीसत्थो, वंदन, पमिकमण, कानसग्ग, पञ्चख्खाण, क स्युं जी । एम आवश्यक संजारवा । पी पच्चख्खाण करयुं होय तो करघु ने जी (अने) धारयुं होय तो धारयुं ग्रेजी । एम कहे, । परी इडा मो अणुस िनमो खमासमणाणं० ॥ नमोर्हत् । कहीने । विशाल लोचन० ॥ नमोथ्थुणं० ॥अरिहंत चेझ्याणं० ॥ कही । एक नवकारनो कानसग्ग पारी । नमोऽर्हत् कही । कल्याणकंदं नी प्रथम थोय कहेवी पी लोगस्स । पुख्खरवरदी० ॥ सिघाणं बुघाणं० कही ॥ अनुक्रमें चार थोयो कहीए गए (तिहां सुधी) सर्व कहेवू । परी नमोथ्थुणं० कही। जग वान् आदि चारने । चार खमासमणेवांदवा। पी जमणो हाथ नपधी ऊपर थापी। अट्ठाइसु कहेवू । (पी) सीमंधर स्वामीनुं चैत्यवंदन, स्तवन जयवीय रायः॥कानसग्ग, थोय, पर्यंत कहीये । तिहां सुधी करवु ॥ परी खमासमण पूर्वक श्रीसिघाचलजीनुं चैत्यबंदन, स्तवन, जयवीयराय, कानसग्ग०॥
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पक्खी प्रतिक्रमण विधिः अने थोय कहीयें जियें । तिहां सुधी करवू । पठी सामायक पारवानी विधि नीरीते सामायक पारदुं ॥इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ पख्खि प्रतिक्रमण विधि ॥ || प्रथम दैवसिक प्रतिक्रमणमां वंदित्तु कही रहियें (तिहां सुधी) सर्व कहेवू । पण चैत्यवंदन, सकलार्हतनु, कहेवू । अनें थोयो, स्नातस्यानी कहेवी। पग खमासमण देईनें । इलाकारण संदिसह नगवान् । देवसिअं आ लोईअं पमिकता । इलाकारेण ॥पक्खि मुहपत्ति पमिलेहुँ । एम कही मुह पत्ती पमिलेहिये । पठी वांदणां बे दीजें । परी इलाकारे० संबुचा खामणे रणं अनुडिओहं अग्निंतर । पख्खिरं खामेळं इथं खामेमि पक्खिनं । पन्नरस दिवसाणं । पन्नरस राइनाणं । जंकिंचि अपत्तियं० कही । इलाकारेण सं० ॥ पक्खिनं आलोएमि इह आलोएमि । जो मे पक्खिो अईआरोको कही। इलाकारेण सं०॥पक्खी अतीचार आलोकं (एम कही) वृक्षप्रतीचार कहियें। पी एवंकारे श्रावकतणे धर्मे श्री समकित मूल बारव्रत। एकशो चो वीश अतीचार मांहें । जे कोई अतीचार । पद दिवस मांहे । सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हुअो होय तेसवे हुँ मने वचने कायायें करी मिडामि उक्कम । सबस्सवि पख्खिा चिंतित्र। उन्नाासिय । चिडियइहाकारेण सदिसह नगवन् तस्स मिडामि मुक्कम ॥ इहकारि जगवन् पसायो करी प ख्खीय तप प्रसाद करोजी। एम नच्चार करी प्रावी रीतें कहिए ॥ चनथ्थेण एक नपवास । बे आंबिल त्रिण नीवि। चार एकासणा। आठ बेआसणा बे हजार सज्ञाय । यथाशक्ति तपकरी प्रवेश करयो होय (तो) पइछी कहीए करवो होय (तो) तहत्ति कहीयें। न करवो होय (तो) अण बोल्या रही में। पनी वांदणा (बे) दीजे । परी इलाका० ॥ पत्तेत्र खामणेणं अप्नति
ओहं अग्निंतर।पक्खिरं खामेकं । इडं खामेमि पक्खिअं। पन्नरस दिवसाणं । पन्नरस राईयाणं । जंकिंचि अपत्तियं०॥पी वांदणा (बे) दीजें । परी दे वसिअं आलोईअं पमिकता ।इबाका०॥ जगवन् पक्खियं पमिकमुं । स म्मं पमिकमामि । इदं ॥ एम कही । करेमिनंते सामाश्यं० कही ॥ शामि पमिकमिळं । जोमे पक्खिो कहेवो । पठी खमासमण देई । इलाकारेण
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रत्नसागर. संदि०॥ पक्खिसूत्रपहुँ। एम कही। त्रण नवंकार गणी । साधु न होय तो त्रण नवकार गणीने। श्रावक वंदित्तु कहे। (पी) सुअ देवयानी थुईकहेवी पी हेग बेसी । जमणो ढिंचण कलो राखी । एक नवकार गणी । करेमि जंते ॥छामि पडि० कही ॥ वंदित्तु कहे, ॥ परी करोमिनंते० इछामि गमि कानसग्गं । जोमे पक्खिओ ॥ तस्स उत्तरी०॥ अन्नथ्थ० ॥ कहीने बार १२ लोगस्सनोकानसग्ग करवो (ते लोगस्स) चंदेसुनिम्मलयरा, सूधी कहेवा ॥ (अथवा ) अमतालीश नवकारनो। काऊसग्ग करी पारखो ॥ पारीनें । प्रगट लोगस्स कही । मुहपत्ती पमिलहिनें। वांदणा बे दीजें । परी इलाका ॥ समाप्ति खामणेणं । अनुष्ोिहं अप्निंतर० ॥ पक्खिरं खामेऊ । इडं खामेमि पक्खिरं । पन्नरस दिवसाणं । पन्नरस राइ याणं । जिंकिंचि अपत्तियं० कही। परी खमासमण देईनें । इलाका० ॥ कहीं। पक्खि खामणा खामुं । एम कही खामणा चार खामवां ॥ परी देव सी प्रतिक्रमणामा वंदित्तु कह्या पग। बेवांदणां देईनें (तिहाथी) ते सामा यक पारीयें। तिहां सर्व सूधी देवसीनी पेठे जाणवू । पण । सुत्र देवयानी थुईने ठेकाणे, झानादिनी थोयो कहेवी । स्तवन अजित शांतिनुं कहेवू । सशायनें ठिकाणे नवसग्गहरं (तथा) संसारदावानी थुई। चार कहेवी ॥ अनें लघुशांतिने ठेकाणे मोहटी शांति कहेवी ॥ * ॥ इति पक्खी प्रति०॥
॥ ॥ अथ चौमासी प्रतिक्रमण विधि ॥ * ॥ - ये ऊपर कह्या मुजब पक्खिना विधि प्रमाणे करवु (पण ) एटलं विशेष । जे बार लोगस्सना कानसग्गने ठेकाणे ( वीश) लोगस्सनो कान्स
ग करवो (अने) पक्खिना आगारने ठिकाणे । चनमाशीना केहवा । यथा। तपने ठेकाणे । नणं बे नपवास । वार आंबिल । उ निवी । आठ एकाश णा शोल वेपासणा । चार हजार सशाय । ए रीते कहीए॥ इति ॥ ....
॥ॐ ॥अथ संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि ॥ * ॥ ॥ * ॥ एपणऊपर लख्या मुजब । पख्खिना विधि प्रमाणे करवू (पण) बार लोगस्सना कानसग्गने ठेकाणे । चालीश लोगस्स(अथवा)ए कशोनें शाठ नवकारनो कानसग्ग करवो (अने) तपनें ठेकाणे। अध्म अत्तं
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पञ्चक्खाण पारवा विधि । श्री महाबीर बंद. 1, १५९ (एटले) त्रण नपवास उ आंबिल। नवनीवि । बार एकासणां । चौवीस वेत्रा सणां अने उ हजार सशाय (ए रीते कहेवू ) अने पख्खिना आगारने ठेकाणे संवत्सरीना आगार कहेवा ॥ इति पंच प्रतिक्रमण विधिः संपूर्णः॥॥
॥॥अथ पडिलेहण करवानो विधि॥ ॥ ॥ ॥ नवकार पंचिंदिअ कही । इरीयावही पमिकमवी । थापना होय तो नवकार पंचिंदिअन कहे, । परी तस्सनत्तरी कही । एक लोगस्स (अथ वा) चार नवकारनो कान्सग्ग करी ! प्रगट लोगस्स कही। कने पगें बेसी मुहपत्ति, चरवलो, कटासणुं, नत्तरासण, धोतीनं, कंदोरो आदिनो पमिलेहण करवू । पी काजो काढी । जीव कलेवर सचित्त आदि जोवू । पगी काजो कहामनार थापनाजी सन्मुख कनो रही। इरिया वही पमिकमें । पी। का जो परउववा जग्या शोधी । त्रणवार अणुजाणह जस्सगो कही। काजो परवे। परीत्रण वार, वोसिरे, कहे ॥ इति पडिलेहण करवानो विधि ॥१॥
॥ * ॥अथ पच्चख्खाण पारवानो विधि ॥ ॥ ॥ ॥ प्रथम इरियावहियाए पमिकमीयें (पी) जगींचंतामणिर्नु चइत्यवंदन । जयवीयराय सुधी करवु (पी) मन्हजिणाणंनी सशाय कही मुहपत्ती पमिलेही । इहामि ० ॥ इलाका ० ॥ पञ्चख्खाण पारूं । यथाशक्ति इन्जामि ॥छाका०॥ पचख्खाण पारयुं । तहत्ति । एम कही। जमलो हाथ, कटासणां (अथवा ) चरवला ऊपर थापी एक नवकार गणी । पञ्चख्खाण करयुं होय ते कहेवू । ते लखीये गयें ॥ नग्गएसूरे नमुक्कार सहि। पोरिसिं साढपोरसिं । गठिसहियं मुंठिसहिअं पच्चख्खाण करयुं चनविहार । आंबिल, नीवि, एकासएं, बे आसणुं, करमु तीविहार । पच्चख्खाण कासि अं। पालिअं। सोहिअं । तीरिअं । किट्टियं । आराहिलं । जंच न आरा हि। तस्स मिठामि मुकम। एमकही। एक नवकार गणवो ॥इति ॥॥
॥अथ श्रीमहाबीरजिन बंद ॥ॐ॥ ॥ॐ ॥ सेवो वीरने चित्तमां नित्यधारो। अरिक्रोधनें मन्नथी दूरवारो। संतोष वृत्ती धरो चित्तमांहिं । राग द्वेषथी दूर थारो नबाहि ॥१॥ पड्या मोहना पासमां जेह प्राणी । शुध तत्त्वनी वात तेणें न जाणी। मनु जन्म
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रत्नसागर..
देव
पामी वृथा कां गमोबो । जैन मार्ग बंकी जुलाकां नमोबो || २ || लो श्री मानी नीरागी तजोबो । सलोनी समानी सरागी अजोबो । हरी ह रादि अन्यथी शुं रोबो | नदी गंग मूकी गलीमा पडोबो || ३ || के हार्थे च धारा । के देव घाले गले रुम माला । के देव त्संगें राखे बेवामा । केइ देव साथै रमें वृंद रामा ॥ ४ ॥ केइ देव जपे ले ई जपमाला । केइ मांसनक्की महाविकराला । केइ योगिणी जोगिणी जोग रागें । केइ रुद्रणी बागनो होम मांगे ॥ ५ ॥ इसा देव देवी तणी प्राश राखे । तदा मुक्तिनां सुःखने केम चाखे । जदा लोनना थोकनो पार ना व्यो । यदा मधनो बिंदु मन्ननाव्यो || ६ || जेह देवलां आपणी आ श राखे । तेह पिंनें मन्नशुं लेा चाखे । दीन हीननी जीम ते केम माजे । फुटो ढोल होये कहो केम वाजे ॥ ७ ॥ अरे मूढ भ्राता नजो मोक्ष दाता । अलोनी मनूने जो विश्वख्याता । रत्न चिंता म णि सारिखो एह साचो । कलंकी काचना पिंडशुं मत राचो ॥ ८ ॥ मंद बुधी जेह प्राणी कहेबे । सवि धर्म एकत्व नूलो नमेवे । कीहां सर्षवाने कहां मेरु धीरं । कहां कायरानें कीहां शूरवीरं ॥ ९ ॥ कीहां स्वर्णथालं कीहां कुंनखमं । कीहां कोद्रवानें कीहां खीरमंड । कीहां खीरसिंधु कोहां कारनीरं । कीहां कामधेनु कीहां बागखीरं ॥ १० ॥ कीहां सत्यवाचा की हां कूडवाणी । कहां कनारी कीहां रायराणी । कीहां नारकीनें कहां देव जोगी । कीहां इंद्र देही कीहां कुष्ट रोगी ॥ १९ कीहां कर्म घाती कहां कर्म धारी । नमो वीर स्वामी जोअन्य वारी । जिसी सेजमां स्व मथी राज्यपामी । राचे मंदबुद्धि हरि जेह स्वामी || १२ || अथिर सुःख सं सारमा मन्त्र माचै । जना मूढमा श्रेष्टशुं इष्ट बाजे । तजो मोह माया ह रो दंजरोशी। सजो पुण्य पोशी जो ते अरोशी ॥ १३ ॥ गति चार सं सार पार पामी | व्या आश धारी प्रभू पाय स्वामी । तुहीं तुहीं तु हीं प्रनु पर्म रागी । जब फेरनी श्रृंखला मोह जागी ॥ १४ ॥ मानीये वीर जी अर्ज एक मोरी। दीजे दासकुँ सेवना चरण तोरी। पुराय उदय हुआ गुरु आज मेरो । विवेकें लह्यो में प्रभु दर्श तेरी ॥ १५ ॥ इति ॥ ॥॥
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श्री नवकार वृधबंद.
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रत्नसागर. पांचशे माल । दीधे नवकारें गया देवलोकें विलसे अमर विमान । ए मं प्रथकी संपति वसुधामां लही विलसे जैन विहार ॥ सो० ॥ १३ ॥ आगे चोवीशी हुई अनंती । होशे वार अनंत । नवकार तणी कोई आद न जाणे एम नाखै अरिहंत ॥ पूरव दिशि चारे आदि प्रपंचें समस्यांसंप तिसार । सो० ॥ १४ ॥ परमेष्टी सुरपद ते पण पामे जे कृत कर्म क
गेर ॥ पुंमरगिरिकपर प्रत्यक्ष पेख्यो मणिधरने एकमोर । सह गुरु सन्मुख विधियें समरतां सफल जनम संसार ॥ सो० ॥ १५ ॥ सूलीकारोपण तस्कर कीधो लोहखरो परसिघ । तिहांसे नवकार सुणाव्यो पाम्यो अमरनी च। शेठने घर आवी विघ्न निवारयो सुरें करी मनोहार॥सो० ॥१६॥ पंचपरमेष्टि झानज पंचह पंच दान चारित्र ॥ पंच सिशाय महा व्रत पंचहु पंच सुमति समकित्त । पंच प्रमाद विषय तजो पंचह पालो पंचाचार ॥॥ सो० ॥ ॥ १७ ॥ कलश (उप्पय) नित जपीयें नवकार सार संपति सुखदाय क। सिघ मंत्र ए शाश्वतो एम जंपेश्री जगनायक । श्री अरिहंत सुसिध शुध आचार्य प्रणीजें । श्री नवशाय सुसाधु पंच परमेष्टि थुणीजें । नव कार सार संसारजे । कुशल लाजवाचक कहे । एक चित्तें आराधतां विधि रुधि वंचित लहे ॥१८॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥ पुनः नवकार बंद ॥ ॥ ॥ॐ॥ सुख कारण नवियण समरूं श्रीनवकार। जिन शासन आगम चनदै पूरबसार । इण मंत्रनी महिमा कहितां नलहुं पार । सुरतरु जिम चिंतित वंचित फल दातार ॥१॥ सुर दानव मानव सेव करै करजोम। नुइ मंगल विचरै तारै वियण कोम । सुरदै विलसै अतिसय जास अनंत। पहिले पद नमियै अरि गंजन अरिहंत ॥ २ ॥ जे पनरै नेदै सिघ थया जगवंत । पंचमि गति पुहता अष्ट करम करिहंत । कल अकल सरूपी पंचा नंतक जेह । जिनवर पाय प्रणमुं बीजैपद वलि एह ॥ ३ ॥ गढ मार धुरंधर सुंदर ससिहर सोम । करि सारण वारण गुणउत्तीसे थोम । श्रुत जाण शिरोमणि सागर जेम गंभीर । तीजै पद नमियै आचारज गुण धीर ॥४॥श्रुतधर गुण आगम सुत्र जणावैसार । तप विध संयोगे नाणे अरथ
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आत्मरक्षा, श्री शंखेश्वरलंद.
१६३ विचार । मुनिवर गुण युत्ता ते कहियै नवकाय । चौथे पद नमियै अह निश तेहना पाय ॥ ५॥ पंचाश्रव टाले पाले पंचाचार । तपशी गुण धारी बारी विषय विकार । तस थावर पीहर लोक मांहै जे साध । त्रिविधै ते प्रणमुं परमारथ गुण लाध ॥६॥अरि करि हरि सायण मायण नूत वेत्ताल । सवि पापपणासै थास्ये मंगल माल । इण समरयां संकट दूरटलै तत्काल । जंपै जिण गुण इम सुरवर सीस रसाल ॥७॥इति नवकार स्त _ ॥ ॥ अथ श्रीनवकार मंत्र आत्म रदा ॥॥
॥ परमेष्टी नमस्कारं । सारं नव पदात्मकं । आत्मरक्षा करं वज्र पंजरानं स्मराम्यहं ॥१॥ नमो अरिहंताणं । शिरस्कं शिर सिस्थितं । , नमो सब सिद्धाणं । मुखे मुख पटंबरं ॥ २॥ नमो आयरि याणं । अंगरख्या तिशायिनी। न नमो नवशायाणं । आयुधं हस्तयो दृढं ।
नमोलोए सबसाहूणं । मोचके पादयो सुन्ने । एसो पंच नमुक्कारो । शिला वज्रमईतले । सब पावप्पणासणो । वप्रो वज्र मयोवही । मंगलाणंच स बसि । खादि रंगार घातका । स्वाहां तंच पदं ग्येयं । पढमं हवइ मंगलं । वप्रो परि वज्रमयं । पिधानं देहरकणे । महाप्रनावा रद्देयं । क्षुद्रो पद्रव नाशनी परमेष्टी पदोइनूता । कथिता पूर्व सूरिभिः। यश्चैवं कुरुते रतां । परमेष्टी पदै सदा । तस्यनस्या भयं व्याधी । राधिश्चापि कदाचनः॥ इति आत्मरक्षाः
॥ ॥ अथ श्री शंखेश्वर पाश्वजिन बंद ॥ ॥
* सेवो पाश संखेसरो मन शुद्धे । नमो नाथ निचे करी एक बु वें । देवी देवतां अन्यनें शुं नमो गे । अहो नव्यलोको जुला कां नमो गे ॥१॥ त्रैलोकना नाथने शुं तजोगे। पड्या पाशमां नूतने का जजोगे । सुरक्षेनु मी अजा शुं अजो गे । महापंथ मूंकी कुपंथें व्रजो डगे ॥ २ ॥ तजे कोण चिंतामणी काचमाटें । ग्रहे कोण रासनने हस्ति साटें । सुरद्रुम नपार कुण आक वावे । महा मूढ ते आकुला अंत पावे ॥३॥ किहां कांकरो ने किहां मेरुशृंगं । किहां केशरीने किहां ते कुरंगं किहां विश्वनाथं किहां अन्य देवा । करो एकचित्तें प्रनु पाश सेवा ॥४॥ पूजो देव प्रनावती प्राणनाथं । सहू जीवने जे करे ने सनाथं । महा तत्व
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रत्नसागर. जाणी सदा जेह ध्यावे । तेहनां फुःख दारिद्र दूरे गमावे॥५॥ पामी मा नुषोने वृथा कां गमो नगे। कुशीलें करी देहनें कां दमो नगे । नहीं मुक्तिवास विना वीतरागं । जो नगवंतं तजो दृष्टिरागं ॥६॥ नुदयरत्न लाखे स दा हेत आणी । दयानाव कीजें मोहे दास जाणी । मोरे आज मोतीयडे मेह वूग । प्रनु पाश शंखेश्वरो आपतूग॥७॥ ॥ .. ॥॥
॥ ॥ अथ श्रीगौतमाष्टक बंद ॥ ॥ .. ॥ ॥ वीर जिणेसर केरो शीश । गौतम नाम जपो निशदीश । जो कीजें गौतमनुं ध्यान । तो घर विलशै नवे निधान ॥१॥ गौतम नामें गि रिवर चढे । मनवंगित लीला संपजे । गौतम नामें नावे रोग। गौतम नामें सर्व संजोग ॥२॥ जे वैरी विरुत्रा वंकमा । तस नामें नावे ढूकमा। जूत प्रेत नविममे प्राण । ते गौतमनां करं वखाण ॥३॥ गौतम नामें निर्मल काय । गौतम नामें वाधे आय । गौतम जिनशासन शणगार । गौतम ना में जय जयकार ॥ ४॥ शाल दाल सुरहा घ्रत गोल । मनवंटित कापड तंबोल । घरेसुघरणी निर्मल चित्त । गौतम नामें पुत्र विनीत्त ॥५॥ गौत मनदयो अविचल जाण । गौतम नाम जपो जग जाण । मोहोटा मंदिर मेरुसमान । गौतम नामें सफल विहाण ॥ ६॥ घर मयगल घोमानी जोड वारू बिलशै वंचित कोड । महीयल मानें मोहोटा राय । जो तूठे गौतमना पाय ॥७॥ गौतम प्रणम्यां पातिक टले । उत्तम नरनी संगत मले। गौतम नामें निर्मल झान । गौतम नामें वाधे वान ॥ ८॥ पुण्यवंत अवधारो सहु । गुरु गौतमना गुण डे बहु । कहे लावण्य समय कर जोम । गौतम तूठे संपति कोड ॥९॥ इति ॥ १०९ ॥ ॥
॥ ॥ ॥॥अथ श्री शोल सतीनो बंद ॥॥
॥आदि नाथ आदें जिनवर वंदी । सफल मनोरथ कीजियें ए। प्रनातें कठी मंगलीक कामें । सोल सतीनां नाम लीजियें ए॥१॥ बाल कुमारी जग हितकारी । ब्राह्मी जरतनी बेहेनमी ए। घट घट व्यापक अवर रूपें । शोल सतीमांहि जे वमी ए ॥२॥ बाहुबल गिनी सतीय शिरोमणि । सुंदरी नामें रिषन सुताए । अंग स्वरूपी त्रिभुवन माहे । जे
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१६ सतीबंद, तीर्थमाला स्त र ह अनोपम गुणजुता ए ॥३॥ चंदनबाला वालपणाथी । शीयलवती शुच श्राविका ए । अमदना बाकुला वीर प्रतिलाभ्या । केवल लही व्रत मावि का ए ॥४॥ नग्रसेन धुश्रा धारिणी नंदनी । राजिमती नेम वल्लना ए। जोवन वेशें कामने जीत्यो । संजम लेइ देव उखना ए ॥५॥ पंच जर तारी पांमव नारी । द्रुपद तनया वखाणीयें ए । एक शो आठे चीर पूराणां शीयल महिमा तस जाणीयें ए ॥६॥ दशरथ नृपनी नारी निरुपम । को शल्या कुलचंद्रिका ए । शीयल सलूणी राम जनेता । पुण्य तणी प्रनालि का ए॥७॥ कोशंबिक ठगमें शतानिक नामें । राज्य करे रंग राजीयो ए। तस घर घरणी मृगावती सती । सुरनुवनें जश गाजीयो ए॥८॥सुलसा साची शीयलें न काची । राची नहीं विषयारसें ए । मुखडुं जोतां पाप पु लाए । नाम लेतां मन नखसे ए॥९॥ राम रघुवंशी तेहनी कामनी । ज नकसुता शीता शती ए। जग सहु जाणे धीज करतां । अनल शीतल थ यो शीयलथी ए ॥ १० ॥ काचे तांतणे चालणी बांधी । कूवाथकी जल काढीयु ए । कलंक नतारवा सतीय सुनद्रा । चंपा बार नघाडीयुं ए॥ ॥ ११ ॥ सुरनर वंदित शीयल अखंमित । शिवा शिवपद गामिनी ए । जेह ने नामें निर्मल थइयें । बलिहारी तस नामनी ए॥ १२॥ हस्तिनागपुरे पां मुरायनी । कुंतानामें कामिनी ए। पांमव माता दशे दशारनी। बहेन पति व्रता पद्मनी ए ॥ १३ ॥ शीयलावती नामें शीलवत धारिणी । त्रिविधे तेहनें वंदीयें ए । नाम जपंतां पातिक जाए । दरिशण पुरित निकंदियें ए ॥१४॥ निषधा नगरी नलहनरिंदनी । दमदंती तस गेहिनी ए। संकट पडतां शीयलज राख्युं । त्रिभुवन कीर्ति जेहनी ए ॥ १५ ॥ अनंग अजीताजग जन पूजित । पुप्फचूला में प्रनावती ए। विश्व विख्याता कामितदाता। शो लमीसती पदमावती ए॥१६॥वीरें जाखी शास्त्रे साखी । नदयरतन लाखे मु दा ए।वाहाणं वातां जे नर नणशे । ते लेशे सुख संपदा ए॥१७॥ इति॥
॥ ॥ अथ श्री तीर्थमाला स्तवन ॥॥ ॥ ॥शेनुंजय शषन समोसरया। जला गुण नरयारे । सीधा साधु अनंत । तीरथ ते नमुरे । तीन कल्याणक तिहां थया । मुगतें गयारे । ने
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रत्नसागर.
मीसर गिरनार ॥ ती० ॥ १ ॥ अष्टापद एक देहरो । गिरि सेहरोरे। जरतें जराव्या बिंब ॥ ती० ॥आबू चौमुख अतिनलो। त्रिभुवन तिलोरे । विम ल वसइ वस्तुपाल ॥ती० ॥२॥ समेतशिखर सोहामणो । रलीयामणोरे। सीधा तीर्थकर वीश ॥ती० ॥नयरी चंपा निरखीये । हीये हरखीयेंरे । सीधा श्री वासुपूज्य ॥ ती॥ ३ ॥ पूर्वदिशें पावापुरी । रुहें नरीरे । मुक्ति गया महाबीर ॥ ती० ॥ जेशलमेर जुहारीयं । पुःख वारीयेंरे । अरिहंत बिंब अ नेक॥ ती० ॥ ४ ॥वीकानेरज वंदीयें। चिरनंदीयेंरे । अरिहंत देहरा आ ठ॥ ती० ॥ सोरिसरो शंखेश्वरो । पंचासरोरे । फलोधी थंनणपाश ॥ ती० ॥ ५॥ अंतरीक अंजावरो । अमीमरोरे । जीरावलो जगनाथ ॥ ती० ॥ त्रैलोक्य दीपक देहरो। जात्रा करोरे । राणपुरे रिसहेस ॥ ती० ॥ ॥६॥श्रीनामोलाई जादवो। गोमी स्तवोरे ॥श्रीवरकाणो पाश ॥ ती० ॥ नंदीश्वरनां देहरा । बावन जलारे। रुचक कुंमले चार चार ॥ ती० ॥७॥ शाश्वती अशाश्वती। प्रतिमा उतारे। स्वर्ग मृत्यु पाताल ॥ती०॥ तीरथ जात्रा फल तिहां । होजो मुज इहारे। समयसुंदर कहे एम॥ ती० ॥ इति ॥ * ॥
॥॥अथ श्री राणकपुरजीतुं स्तवन ॥॥ ___॥ * ॥ श्रीराणपुरो रलीयामणुरे लाल । श्री आदीसर देव । मन मो
अ॒रे । नत्तंग तोरण देहरुरे ला०॥ निरखीजें नित्यमेव ॥ म० ॥ १ ॥ च नवीश मंमप चिहुं दिशेरे ला० ॥ चनमुख प्रतिमा चार ॥ म० ॥ त्रिनुव नदीपक देहरैरे ला० ॥ समोवम नहीं संसार ॥ म० ॥ श्री० ॥ २ ॥ देहरी चोराशी दीपतीरे ला० ॥ मांड्यो अष्टापद मेर ॥ म० ॥ नलें जुहारया जोयरांरे ला० ॥ सूतां की सवेर ॥ म० ॥ श्री० ॥ ॥ ३॥देश जाणीतुं देहरुंरे ला० ॥ मोटो देश मेवाम ॥ म० ॥ लख्ख नवाएं लगावि यारे ला०॥ धन धन्नो पोरवाम ॥ म० ॥ श्री० ॥ ४॥ख रतर वसई खांतशुंरे ला०॥ निरखंतां सुख थाय ॥ म० ॥ पांच प्राशाद बी जा वलीरे ला॥जोतां पातिक जाय ॥ म०॥ श्री०॥ ५॥ आज कृता रथ हूं थयोरे ला०॥ आज नयो आणंद ॥म० ॥ यात्रा करी जिनवर तणीरे ला० ॥ दूरे गयुं मुख दंद ॥ म०॥श्री० ॥ ६ ॥ संवत शोल
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श्री महाबीर हालरियो.
१६७ जियंतरैरे ला०॥ मागशिर माश मकार ॥म० ॥ राण पुरें यात्रा करीरे ला॥ समयसुंदर सुखकार म०॥श्री०॥७॥इति ॥१॥
॥ ॥अथ श्री सीमंधर जिन स्तवन ॥॥ ॥ * ॥ पुक्खलवइ विजयें जयारे । नयरी पुंमरीगणी सार । श्री सीमंधर साहिबारे । राय श्रेयांस कुमार। ( जिणंदराय धरज्यो धर्म सनेह ) ॥ १ ॥ ( आंकणी ) ॥ मोहोटा न्हाना अंतरोरे । गिरुमा नवि दाखंत । शशि दारिशण सायर वधैरे । कैरव वन विकसंत ॥ जि० ॥ २ ॥ गम कुठाम न लेखवैरे । जग वरसंत जलधार । करदोय कुसुमें वासियरे । गया सवि आधार ॥ जि०॥ ३ ॥राय ने रंक सरिखा गणे रे। नद्योतें श शि सूर । गंगाजल ते बिहु तणा रे। ताप करे सवि दूर ॥ जि० ॥ ४ ॥ सरिखा सहुने तारवा रे । तिम तुमे गे महाराज । मुजशुं अंतर किम क रो रे। बांह ग्रह्यानी लाज ॥ जि० ॥ ५ ॥ मुख देखी टीलं करे रे। ते न वि होय प्रमाण । मुजरो माने सवि तणो रे । साहिब तेह सुजाण ॥ जि. ॥ ६ ॥ वृषनलंउन माता सत्यकी रे। नंदन रुकमणी कंत । वाचक जश इम वीनवे रे । जयनंजन नगवंत ॥ जि०॥७॥ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥अथ श्री महावीर स्वामीनुं हालरिकं प्रारंन॥॥
॥ ॥ माता त्रिशला फुलावे पुत्र पालणे । गावे हालो हालोहालस्वानां गीत । सोना रूपाने वली रत्ने जमिन पाजणुं । रेशम दोरी घूघरी वागे लुम बुम रीत । हालो हालो हालो हालोमारा नंदनें ॥१॥ जिनजी पार्श्व प्रनुथी वरस अढीशें अंतरें । होशे चोवीशमो तीर्थकर जिन परमाण । केशी स्वा मी मुखथी एवी वाणी सांगली । साची साची हुइ ते मारे अमृत वाण। हा०॥२॥ चौदे स्वपर्ने होवे चक्रीके जिनराज । वीता बारे चक्री नहि हुवे चक्री राज । जिनजी पाश प्रजुना श्री केशी गणधार । तेहने वचनें जाण्या चोवीशमा जिनराज । मारी कूखें आव्या तारण तरण जिहाज । मारी कूखें आव्या त्रएय नुवन शिर ताज । मारी कूखें आव्या संघ तीर थनी लाज। हुँतो पुण्य पनोती इंद्राणी थइ आज ॥ हा० ॥ मुमने डो होलो नपन्यो जे बेसुं गज अंबामीयें । सिंहासन पर बेसुं चामर उत्र ध
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रत्नसागर.
राय । ए सहु लक्षण मुजने नंदन ताहरा तेजना । तेदिन संत्राने आनं द अंग न माय ॥ हा० ॥ ३ ॥ करतल पगतल लक्षण एक हजारनें व े । तेहथी निश्चय जाएया जिनवर श्री जगदीश । नंदन जमणी जंगें लंबन सिंह बिराजतो । में पहले सुपने दीठो विशवा वीश ॥ हा० ॥ ५॥ नंदन नवला बंधव नंदीवर्धनना तमे । नंदन जोजाइयोना देवरको सुकुमाल हसशे जोजाइयो कही देवर माहरा लामका । हसशे रमशेनें वली चुंटी खणशे गाल । हशशे रमशे नें वली कुंसा देशे गाल || हा० ॥ ६ ॥ नंदन नवला चेमा राजाना जाणेज हो। नंदन नवला पांचशें मामीना जाणे ज बो । नंदन मामलियाना जाणेजा सुकुमाल । हशशे हाथे न वाली कहीने नाहना नाणजा । श्रांख्यो प्रांजी ने वली टबकुं करशे गाज ॥ हा० ॥ ७ ॥ नंदन मामा मामी लावशे टोपी आगलां । रतने जमीमा कालर मोती कशबी कोर। नीला पीलानें वली राता स वे जातिनां । पहेरावशे मामी मारा नंद किशोर ॥ हा० ॥ ८ ॥ नंदन मामा मामी सूखमली सहु जावशे । नंदन गजुवे जरशे लाडू मोती चूर | नंदन मुखमां जोड़ने लेशे मामी नामणां । नंदन मामी कहेशे जीवो सुख भरपूर | हा० ॥ ९ ॥ नंदन नवला चेडा मामानी साते सती । मा री मत्रीजीने बेन तमारी नंद । ते पण गुंजो नरवा जाखणसाई जावशे । तुमनें जोइ जोइ होशे अधिको परमानंद ॥ हा० ॥ १० ॥ रमवा काजें लावशे लाख टकानो घूघरो । वली शुका मेनां पोपट ने गजराज । सार स हंस कोयल तीतरने वली मोर जी । मामी लावशे रमवा नंद तमारे का ज ॥ हा० ॥ ११ ॥ बप्पन कुमरी अमरी जलकलशें नवरावीया । नंदन तमने मनें केलीघरनी मांहे | फूलनी दृष्टि कीधी योजन एकने मंगलें । बहु चिरंजीवो आशीष दीधी तुमने त्यांहे ॥ हा० ॥ १२ ॥ तम ने मेरू गिरिवर सुरपतियें नवराविया । निरखी हरखी सुकृत लाभ कमाय । मुखमा ऊपर वारुं कोटी कोटी चंद्रमा । वली तनपर वारुं ग्रह गणनो स मुदाय ॥ हा० १३ ॥ नंदन नवला जणवा नीशालें पण मूंकशुं । गजपर बागी बेसामी मोहोटे साज । पसली जरशुं श्रीफल फोफल नागरवेलशुं ।
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आनंदघनजी कृत स्तवन सूखमली लेशुं नीशाली आने काज ॥ हा०॥१४॥ नंदन नवला मोहो टा थाशोने परणावशुं। वहूवर सरखी जोमी लावशुं राजकुमार । सरखा वेवाइ वेवाणुंने पधरावशुं । वर वहू पोखी लेशुं जोर जोइने दीदार ॥ हा०॥ ॥ १५ ॥ पीअर सासर मारा बेहु पद नंदन ऊजला । माहरी कूखें आव्या तात पनोता नंद । माहरे प्रांगण वूठा अमृत दूधै मेहुला । मा हरे आंगण फलिा सुरतरु सुखना कंद ॥ हा० ॥ १६ ॥ इणि परें गा युं माता त्रिशला सुतनुं पालएं । जे कोइगाशे लेशे पुत्र तणा साम्राज। बलीमोरा नगरें वरणव्युं बीरनुं हालाँ। जय जय मंगल होजो दीपविजय कविराज ॥ हा०॥ १७॥ इति०॥ॐ॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥
॥ * ॥अथ निंदावारक सशाय॥ * ॥
॥ निंदा मकरजो कोश्नी पारकीरे। निंदानां बोल्या महा पापरे वयर विरोध वाधे घणोरे । निंदा करतां न गणे माय बापरे ॥ निं० ॥१॥ दूर बलंती कां देखो तुझेरे। पगमा बलती देखो सहु कोयरे । परना मैला में धोयां लूगडांरे। कहो केम ऊजला होयरे ॥ निं० ॥ २ ॥ आप सं जालो सहुको आपणोरे । निंदानी मूको परी टेवरे । थोमे घणे अवगुणे सहु नरयारे । केहनां नलिया चुए कहेनां नेवरे ॥ निं०॥३॥ निंदा करे ते थाये नारकी रै। तप जप कीg सहु जायरे । निंदा करो तो करजो आ पणी रे। जेम छूटकवारो थायरे ॥ निं० ॥ ४ ॥ गुण ग्रहजो सहुको तणोरे । जेहमां देखो एक विचाररे । कृष्णपरें सुख पामशोरे । समयसुं दर सुखकाररे॥ निं०॥५॥ॐ॥ ॥इति ॥ ॥8॥ ॥ॐ॥
॥*॥अथ श्रीआनंदधनजी कृत स्तवन सं०॥*॥.. ॥*॥ करम परीक्षाकरण कुमरचल्योरे॥ए देशी॥8॥
॥ॐ॥षनजिनेश्वर प्रीतम माहरोरे । मन चाहुरे कंत । रीज्यो साहेब संग न परिहरेरे । नांगे सादि अनंत ॥ षन ॥ १ ॥ प्रीत स गाईरे जगमां सहु करे रे। प्रीत सगाई न कोय। प्रीति सगाईरे निरुपाधि क कहीरे । सोपाधिक धन खोय ॥ ऋषन० ॥ २ ॥ कोई कंत कारण काष्ट नकण करैरे । मिलसुं कंतने धाय ए मेलो नवि कहीये संवेरे ।
२२.
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१७०
.. रत्नसागर. मेलो ठाम न गम ॥ षन० ॥३॥ कोई पति रंजन अति घणो तप करैरे। पति रंजन तन ताप । ए पति रंजनमें नवि चित्त धरयुरे । रंजन धातु मिलाप ॥ षन्न०॥४॥ कोई कहे लीलारे अलख अलख तणारे। लख पूरे मन आस । दोष रहित ने लीला नवि घटेरे । लीला दोष वि लास ॥ षन्न ॥५॥ चित्त प्रसन्नेरे पूजन फल कपुरे । पूज अखंमित एह । कपट रहित थई आतम अरपणारे । आनंद घन पद एह ॥ १०॥६॥
॥ ॥ अथ श्री अजित जिन स्तवनम् ॥4॥ ॥ ॥ माझं मन मोयुरे श्रीबिमलाचलें ॥ ए चाल ।। ..
पंथडो निहालुं रे बीजा जिनतणोरे। अजित २ गुण धाम जे तें जीत्यारे तेणे हुँ जीतियोरे। पुरुष किस्यु मुझ नाम ॥ पंथ० ॥१॥ चरम नयण करी मारग जोवतोरे । नूलो सयल संसार । जेणे नयणे करी मारगजोइयेरे। नयण ते दिव्य विचार ॥ पंथ ॥२॥पुरुष परंपर अनुभव जोवतां रे । अंधो अंध पु लाय । वस्तु विचारेरे जो आगमें करी रे। तो चरण धरण नही ठाय ॥ पंथ ॥३॥ तर्क विचारें रे वाद परं परारे। पार न पहोचे कोय । अनिमा वस्तु वस्तुगतें कहे रे। ते विरला जग जोय ॥ पंथ०॥४॥ वस्तु विचारें रेदिव्य नयण तणोरे । विरह पड्यो निरधार । तरतम जोगरें तरतम वासनारे । वा सित बोध आधार ॥ पंथ ॥५॥ काल लबधि लही पंथ निहालसुरे। ए आस्या अविलंब । ए जन जीवैरे जिनजी जाणजोरे । आनंद घन मत अंब ॥ पंथ०॥६॥इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥अथ श्री संनवजिन स्तवन ॥ॐ॥ | ॥रातमी रमीनें किहां थी आवियारे ॥ ए चाल .
॥ ॥ संनवदेव त धुर सेवो सवेरे । लही प्रनु सेवन नेद । सेवन का रण पहेली नूमिकारे। अनय अप्रेश अखेद ॥ संनव० ॥ १ ॥ जयचंच लताहो जे परिणामनी रे । प्रेष अरोचक नाव । खेद प्रवृत्तीहो करतां थाकीय रे। दोष अबोध लखाव ॥ संनव० ॥ २ ॥ चरमावर्तहो चरम करण तथारे। नव परिणति परि पाक । दोष दले वली दृष्टी खुले अलीरे प्रापति प्रवचन वाक । संभव ॥३॥ परिचय पातिक घातिक साधतूं
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आनंदघनजी कृत स्तवन संग्रह -
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रे । प्रकुशल अपचय चेत । अथ अध्यातम श्रवण मनन करीरे । परीशी जन नय हेत ॥ संभव ० ॥ ४ ॥ कारण जोगेंहो कारज नीपजेरे । एमां कोई न वाद । पण कारण विण कारज साधीयेंरे । ए जिन मत ननमाद || संभव ॥ ५ ॥ मुग्ध सुगम करी सेवन आदरेरे । सेवन अगम अनूप देजो कदाचित सेवक याचनारे । आनंदघन रस रूप ॥ संजव० ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ श्री अभिनंदन जिन स्तवन ॥ * ॥ ॥ * ॥ प्राज निहेजोरे दीसे नाहलो ॥ ए चाल ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ अभिनंदन जिन दरिशण तरसीये । दरशण दुर्लनदेव । मत २ दैरे जो जई पूबीयें। सहु थापे ग्रह मेव ॥ अनि० ॥ १ ॥ सामान्ये करी दरशण दोह लूँ । निरणय सकल विशेष । मदमें घेरथोरे अंधो किम करे। रवि शशि रूप विलेख । अनि ॥ २ ॥ हेतु विवादें हो चित्त धरी जोईयें । प्रति दुरगम नय वाद | आगमवादें हो गुरुगमको नही । ए शवलो विषवाद || अनि० ॥ ३ ॥ घाती हूँगरामा प्रतिघणा । तुऊ दरिशण जगनाथ । धीठाई करी मार ग संचरूं। सेंगू कोई न साथ ॥ अनि ॥ ४ ॥ दरिशण २ रटतो जो फरूं तो रण रोऊ समान । जेहने पीपासा हो अमृत पाननी । किम नाजे विष पान ॥ अभि० ॥ ५ ॥ तरस न आवेहो मरण जीवन तणो । सीजे जो दरिशण काज | दरिशण दुर्लन सुलन कृपा थकी | आनंदघन महाराज ॥ ० ॥ ६ ॥ * ॥
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॥ * ॥ अथ श्री सुमति जिनस्तवन लिख्यते ॥
॥ * ॥ राग वसंत (तथा) केदारो ॥ *॥ ॥ * ॥ सुमति चरण कज प्रातम अरपणा । दरपण जिम अविकार । सुग्यानी ॥ मति तरपण वहु सम्मत जाणियें । परिसरपण सुविचार ॥ सु ग्यानी ॥ सुमति० ॥ १ ॥ त्रिविध सकल तनु घर गत आतमा । वहिरात मधुरि भेद || सु० ॥ बीजो अंतर प्रतम तीसरो । परमातम प्रविवेद ॥ सु० ॥ सुमति० ॥ २ ॥ तम बुधें हो कायादिक ग्रह्यो । बहिरातम अ घरूप । सुग्यानी । कायादिकनो हो साखी घर रह्यो । अंतर आतम रूप ॥ सुग्यानी ॥ सुमति० ॥ ३ ॥ ज्ञानानंदेवो पूरण पावनो । बरजित सकल
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रत्नसागर.
नपाधि ॥ मुग्यानी ॥ अतिंद्रिय गुण गण मणि आगरू । इय परमातम साध ॥ सुग्यानी॥ सुमति०॥४॥वहिरातम तज अंतर आतमा। रूपथई थिर जाव ॥ सु०॥ परमातमर्नु हो आतम जाव५ । आतम अरपण दाव मु० ॥ सुमति ॥५॥ आतम अरपण वस्तु विचारतां । जरमटले मति दोष ॥ सु० ॥ परम पदारथ संपति संपजे । आनंदघन रस पोष सु० ॥ सुमति०॥६॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ श्री शीतलजिनस्तवन लि०॥॥ __ * ॥ गुणह विसाला मंगलीक माला ॥ ए चाल ॥१॥
॥ॐ॥शीतल जिनपति ललित त्रिनंगी । विविध जंगी मन मो हैरे ॥ करुणा कोमलता तीवणता । नदाशीनता सोहेरे ॥ शी० ॥ १ ॥ सर्व जंतु हित करणी करुणा । कर्म विदारण तीवणारे । हाना दाना रहित परणामी । नदाशीनता विकणारे ॥ शी० ॥ २ ॥ परपुःख बेदन इछा करुणा, तीक्षण पर मुख रीफेरे। नदासीनता नजय विलक्षण । एक गमें केम सीफेरे ॥ शी० ॥ ३ ॥ अन्नयदान ते मलक्ष्य करुणा । तीक्ष्णता गुण जावेरे । प्रेरण विणु कृत नदाशीनता । इम विरोध मति नावेरे ॥शी०॥ ॥४॥शक्ति व्यक्ति त्रिनुवन प्रजुता। निग्रंथता संयोगॅरे। योगी जोगी व क्ता मौनी। अनुपयोगि नपयोगेंरे॥शी ॥५॥ इत्यादिक बहु नंग त्रि जंगी। चमत्कार चित्त देतीरे। अचरिजकारी चित्र विचित्रा । आनंदघन पद लेतीरे॥ ॥ इति ॥
॥ ॥ ॥ ॥ ___॥॥अथ श्रीकुंथुजिनस्तवनप्रारंनः॥2॥
॥ * ॥ रागगुर्जरी अंबरदेहो मुरारी हमारो० ए चाल ॥ ॥ ॥ ॥ मनईं किमही न बाजे हो ॥ कुंथुजिन म० ॥ जिम जिम जतन करीने राखं । तिम तिम अलगुंजाजे हो ॥ कुं० ॥१॥ रजनी वास र वसती कजम । गयण पायालें जाय । साप खायने मुखj थोडुं । एह
खाणो न्याय हो। कुं०॥२॥ मुगतितणा अनिलाषी तपीया । झानने ध्यान अभ्यासें । वयरीडु कांइ एह चिंते । नाखे अवलें पासें हो ॥ कुं० ॥३॥आगम आगम धरने हाथें । नावे किणविध आंकू । किहां कणे
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२४ जिनचै० स्त० थुई, चौमाशी देववंदन.
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जो करी हटकूं। तो व्याज ताणी परें वांकूं हो ॥ कुं० ॥ ४ ॥ जो ठग कहूं तो ठगतो न देखें । साहुकार पण नाही । सर्व मांहेने सहुथी अल गुं । चरिज मन माँही हो || कुं० ॥ ५ ॥ जे जे कहुं ते कांन न धारे । आपमतें रहे कालो ॥ सुर नर पंकित जन समजावे । समजे न महा रोसालो हो | कुं० ॥ ६ ॥ में जाएयुं ए लिंग नपुंसक । सकल मरढ़नें ठेले । बीजी वातें समरथ वे नर । एहनें कोइन केले हो ॥ कुं० ॥ ७ ॥ मन साध्यं तेणें सगळं साध्यं । एह बात नही खोटी । एम कहे साध्युं ते नवी मानुं । कहिवत मोटी हो ॥ कुं० ॥ ८ ॥ मनडुं दुराराध्य ते वस आएं। ते आगमथी मतिप्राणं । आनंदघन प्रजु माहरु प्राणो । तो साचुं करी जा हो ॥ कुं० ॥ ९ ॥ इति ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ अथ देव वांदवानो विधि ॥
॥
॥
वमखं
॥ प्रथम इरियावही पंडिकमवाथी मांगीनें ( यावत् ) लोगस्स कही पनी उत्तरासण करी । चैत्यवंदन । नमुत्थुणं कही, प्रधुं जयवीराय । नव मखंमा सूधी हाथ जोगी । कहे। (वली) चैत्यवंदन, कहीने । नमुत्थु । कही. ( यावत्) चार थोयो कहीये बीयें तिहां सूधी बधुं कहेतुं । पछी नमु थु कही । (वी) चार थोयो कहीयें त्यां सुधी वधुं कहेतुं । पठी नमुत्थुणं; ( तथा ) बे जावती कही । स्तवन कही । मधुं जयवीराय का सूधी कही। पी चैत्यवंदन कही । नमुत्थुणं कही। (आखो ) जयवीय राय कहेवो ॥ इहां सवारें देव वांदवां । (तेमां ) मन्ह जिलाएं नी सझाय कवी | मने मध्यान्हे ( तथा ) सांजे देव वांदवामां सझाय न कहेवी ॥ इति देव वांदवानो विधि ॥ ॥ * ॥ ज्ञान विमलजी कृत, चनमाशी देववंदन विधिः ॥ ॥ ॥ प्रथम इरियावही पक्किमी कानसग्ग करी । लोगस्स० कही एक खमासमण देई । इछाका० श्री रुपनजिन आराधनार्थं चैत्यवंदन करूँ । एम कही चैत्यवं करै ॥ ॥
॥ * ॥
॥ *॥
॥ * ॥
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॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ श्री आदि जिन चैत्य वंदन ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ प्रथम जिनेसर रुषन देव । सबथी चविया । वदि चनर्थे
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रत्नसागर. आषाढनी । शर्के संस्तविया । अहमी चैत्रह बदि तणी । दिवसें अनुजा या । दिदा पण तिणहीज दिने । चननाणी थाया । फागण वदि इग्या रसी ए । ज्ञान लहे शुन ध्यान । महा वदि तेरशें शिव लह्या । परमानंद निधान ॥ १॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ ॥ इहां नमुत्थुणं । अरिहंत चेश्याणं० । वंदण वत्तिया कही। एक नवकारनो कावसग्ग पारी । ४ थुई क्रमसें कहियें। ते लिखियै जीयें।
॥॥ अथ थोय जोमो प्रारंभः॥॥ ॥॥ षन जिन सुहाया श्री मरुदेवी माया । कनक वरण का या मंगला जासजाया । बृषन लंडन पाया देवनर नारी गाया । पण सय धनु गया ते प्रनु ध्यान ध्याया ॥ १ ॥ ए तीरथ जाणी जिन त्रेवी श नदार । एक नेम विना सवि समवसरया निरधार । गिरि कमणे आ वी पोहता गढ गिरनार । चैत्री पूनम दिने ते वंदूं जय कार ॥२॥ झाता धर्म कथांगें अंत गम सुत्र मकार । सिधा चलें सीधा बोल्या बहु अणगार । ते माटें ए गिरि सवि तीरथ शिरदार । जिन बेटे थावे । सुख संपति विस्तार ॥ ३ ॥ गौमुख चक्केश्वरी शासननी रखवाल । ए ती स्थ केरी सानिध करे संजाल । गिरुत्रो जस महिमा संप्रति कालें जास। श्रीज्ञान विमल सूरी नामे लील विलास ॥ ४॥ इति ॥ ॥१॥ . ॥ * ॥ इहां। नमुत्थुणं, जावंती (बे) कही नमोर्हत् कही स्तवन कहे.
॥ ॥ अथ श्रीआदिजिन स्तवन प्रारंजः ।। * ॥ ॥ ॥ (ललनानी देशी) आदि करन अरिहंतजी । नलगमी अवधार ललना ॥ प्रथम जिणेसर प्रणमीयें । वंचित फल दातार ॥ ललना ॥१॥ आदिकरण अरिहंतजी (ए आंकणी) नपगारी अवनी तले । गुण अनंत जगवान ॥ ललना ॥ अविनाशी प्रत्यकला । वरते अतिशय धाम ॥ खलना ॥ ० ॥२॥ गृहवासें पण जेहनें । अमृत फलनो आहार ॥ल लना। ते अमृत फलने लहै । एजुगतुं निरधार॥ललना॥आ॥३॥वंश इहवाग ने जेहनो। चढतो रस सुविशेष ॥ ललना॥जरतादिक थया केवली अनुन्नव फल रस देख ॥ ललना ॥ आ॥४॥ नाजिराय कुलमायो
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२४ जिनचे स्त० थुई,चौमाशी देववंदन. मरु देवी सर हंस ॥ ललना ॥ षनदेव नित वदियें । ज्ञान विमल अवतं साललना॥॥५॥ इति श्रीषन जिन स्त॥१॥ ॥ ॥
॥ पी जय वीयराय अ| कह । एक खमासमण देई । इना श्री अजितनाथजी आराधनाथ चैत्यवंदन करुं ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ श्री अजित नाथ चैत्य वंदन॥॥
*॥ शुदि वैशाखनी तेरशें । चविया विजयंत । माह शुदि आठमे जनमिया । बीजा श्री अजित । माहशुदि नवमें थया । पोषी इग्यार स । नज्वल नज्वल केवली । थया अन्य कृपारस । वैशाख शुक्ल पंचमी दिने ए। पंचम गति लह्याजेह । धीर विमल कविरायनो । नय प्रणमे धरी नेह ॥२॥ इति ॥ परी नमोत्थुणं अरिहंत चे कही । एक नवकारको कावसग्ग करके । थुईकी गाथा कहै (इसी तरै सब ठिकाणे विध करवो)॥
॥ॐ॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥१॥ * ॥ अजित जिन पतीनो। देह कंचन जरीनो। नविकजन नगीनो जेहथी मोहलीनो । हुँ तुज पदलीनो । जम जलमांहे मीनो । नवि होय ते दीनो । ताहरे ध्याने पीनो ॥१॥ इति अजित नाथ थोय ॥२॥
॥ ॥ अथ श्री संनवनाथ चैत्य वंदन ॥ * ॥ ॥ ॥ सत्तम ग्रैवेयक थकी । चविया श्री संत्रव । फागुण शुदि आ उम दिने । शुदि चनदसी अनिनव ॥ १ ॥ मृगशिर मासें जनमीया । त णी पूनम संजम। कार्तिक वदी पंचमी दिने । लहे केवल निरूपम । पंच मी चैत्रनी कजली ए । शिव पोहोता जिनराज । ज्ञान विमल प्रनु प्रणम तां। सीफे सगला काज ॥३॥इति चैत्य वंदनं ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ थोय प्रारभ्यते॥॥ ॥ ॥ जिन संभववारु । लगने अश्वधारु । जवजलनिधि तारु । काम गद तीव्र दारु । सुरतरु परिवारू । दूसमाकाल मारू । शिव सुख किरता रु। तेहना ध्यान सारु॥१॥ इति थोय समाप्त ॥३॥ ॥ ॥
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रत्नसागर. ॥॥अथ श्री अनिनंदन जिन चैत्य वंदन ॥ ॥
॥ ॥जयंत विमान थकी चव्या । अजिनंदन राया। वैशाख शुदि चौथे माघ सुदि बीजे जाया।माहाशुदि वारशें ग्रहिय दिख्ख । पोषशुदि चनदस। केवल शुदि बैशाखनी । आठमे शिव सुख रस । चनथा जिनवरनें नमी ए॥ चन्गति भ्रमण निवार । ज्ञान विमल गणपति कहे। जिन गुणनो नही पार।।
॥ ॥ अथ स्तुति प्रारभ्यते॥॥ ॥ * ॥ अभिनंदन वंदो । साम्य माकंद कंदो। नृप संबर नंदो । घ र्षिता शेष कंदो । तम तिमिर दिणंदो । लंबनें वानरिंदो। जस आगल मंदो । सौम्य गुण सार दिंदो॥१॥इति थोय ॥४॥ ॥ ॥
॥॥अथ श्री सुमतिनाथ चैत्यवंदन॥॥ ॥ ॥ श्रावण शुदि बीजे चव्या। मेहलीने जयंत । पंचमी गति दाय क नमुं । पंचम जिन सुमति । शुदि वैशाखनी आठमें । जनम्या तिम सं जम । शुदि नवमी वैशाखनी। निरुपम जस शम दम । चैत्र इग्यारस ऊज ली ए । केवल पामें देव । शिव पाम्या तिणे नवमीयें । नय कहे करो तस सेव ॥१॥इति चैत्य वंदन ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥
॥॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥४॥ ॥ॐ॥ सुमति सुमति आ पुःखनी कोमि कापे । सुमति सुजन व्यापे । बोधिनु बीज व्यापे । अविचल पद थापे । जाप दीप प्रतापें । कुमति कदही नावें । जो प्रनु ध्यान व्यापे ॥१॥इति सुमति जिन ॥५॥
॥अथ श्री पद्म प्रन चैत्यवंदन ॥४॥ ॥ ॥ नवम ग्रेवेयकथी चव्या। माहावदि कह दिवसें । कातीवदि बा रसे जनम । सुर नर सवि हरषे । वदि तेरस संजम ग्रहे । पद्मप्रन स्वामी चैत्री पूनम केवली । वलि शिवगति पामी । मृगशिर वदि इग्यारसें । रक्त कमल समवान । नय विमल जिन राजनुं । धरीयें निरमल ध्यान ॥१॥
॥अथ थोय प्रारभ्यते॥॥ ॥ * ॥ पद्मप्रनु सोहावे । चित्तमां नित्य आवे । मुगति वधु मनावे ।
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२४ जिनचै० स्त० थुई, चौमाशी देववंदन.
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रक्त तनु कांति फावे । दुःख निकट नावे | संतती सौख्य पावे । प्रनु गुणगण ध्यावे । अष्ट महा सिद्धि थावे ॥ १ ॥ ॥ ६ ॥
11 11
॥ ॥ अथ श्री सुपार्श्वजिन चैत्य वंदन ॥
॥
॥ * ॥ बघा ग्रैवेयकथी चवी । जिनराज सुपास । जादरवा वदि प्राठ मे । अवतरिया खास । जेठ सुक्ल बारसी जएया । तस तेरसे संजम । फा aashaa | शिव लहे तस सत्तमि । सत्तम जिनवर नामथी ए । साते ईति समंत । ज्ञान विमल सूरि नितु लहे । तेज प्रताप महंत ॥ १ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥
॥
॥ * ॥ फले कामित आशे नामथी दुःख नाशे । महिम महि प्रकाशे सा तमा श्री सुपासें । सुरनर जस दास । संपदानो निवास । गाय जवि गुणरास: जेहना घरी वास ॥ १ ॥ इति ॥ * ॥ ७ ॥
॥
॥ अथ श्री चंद्र प्रजजिन चैत्य वंदन ॥ ॥ * ॥ चंद्रप्रत्र जिन आठमा । चंद्रपत्र सम देह | अवतरीया विजय तथी । वदि पंचमी चैत्रेह । पोष वदि बारसें जनमीया । तस तेरसे साध फागुण वदिनी सातमे । केवल निराबाध । प्राद्रव सातम शिव लह्या ए । पूरी पूरण ध्यान | महासिद्धि संपजे । नय कहे जिन अभिधान ॥ १ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥
॥ ॥ * ॥ शुभ नरगति पामी नद्यमें धर्म्मधामी । जिन नमो शिरनामी चंद्र पन नाम स्वामी । मुऊ अंतरजामी जेहमां नहिय खामी । शिवगति वरगामी सेवना पुरायें पामी ॥ १ ॥ इति ॥ ८ ॥ ॥
॥ अथ सुविधिनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥
॥ * ॥ गोरा सुविध जिणंद नाम । बीजं पुप्फ दंत । फागुण वदि नव में चव्या । मेहली सुर आनंत । मृग शिर वदि पंचमें जाया । तस बढ़ें दिक्षा । काती शुदि त्रीजें केवली । दिये बहु परें शिक्षा | शुद्धि नवमी जा द्रवातणी । जर अमर पद दोय । धीर विमल सेवक कहे । ए नमतां सुखहोय ॥ १ ॥ इति स्तवनं ॥ ॥
॥
॥ * ॥
*
* ॥
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रत्नसागर. । ॥ॐ॥अथ थोय प्रारभ्यते॥॥ ॥ ॥ सुविधि जिन लदंत । नाम वली पुप्फ दंत । सुमति तरुणि कंत । संतथी जेह संत । कीयो कर्मपुरंत । लहि लीला वरंत । नव ज लधि तरंत । तेनमीजे महांत ॥१॥इति थोय ॥ * ॥९॥
॥ ॥अथ श्री शीतलनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥ ॥ॐ॥ प्राणत कल्पथकी चव्या। शीतल जिन दशमा । वदि वैशा पनी उठे । जाणि दाघज्वर प्रशम्या॥ महावदि बारस जनम दिख्या । तस बारसें लीध । वदि पोष चनदश दिने । केवली परसिघ । वदि बीजे वै शाखनी ए। मोद गया जिनराज । ज्ञान विमल जिनराजथी । सीके स गला काज॥१॥ इति ॥
___॥ ॥अथ थोय प्रारभ्यते॥ॐ॥ ॥ ॥ सुण शीतल देवा वालही तुझ सेवा । जेम गज मन रेवा। तुंही देवाधि देवा । पर आण वदेवा शम नित्यमेवा । सुख सुगति लहे वा हेतु मुख खपेवा ॥१॥ इति ॥ ॥१०॥ ॥ ॥ ॥॥
॥॥अथ श्री श्रेयांसनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ ॥ ॥ अच्युत कल्पथकी चव्या । श्रेयांस जिणंद । जेठ अंधारी दि वस बहें। करत वहु आनंद । फागुण वदि बारसें जनम । दीदा तस ते रस । केवली माह अमावसि । देसना चंदन रस । वदि श्रावण त्रीजे ल ह्या ए। शिव सुख अखय अनंत । सकल समीहित पूरणो । नय कहे ए जगवंत ॥१॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥
॥॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥१॥ ॥ * ॥ सविजिन अवतंस । जास इख्याग वंश । विजित मदन कंस शुध चारित्रहंस । कृत जय विध्वंस । तीर्थनाथ श्रेयांस । वृषन ककुद अं श। ते नमुं पुण्य वंश ॥१॥ ॥११॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ श्री वासु पूज्य चैत्य वंदन ॥॥ .. ॥ ॥ प्राणतथी इहां आविया । ज्येष्ठ शुदी नवम । जनम्या फागु
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२४ जिनचैत्य, थुई, स्त०, चौमासी देववंदन.
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चौदशी । प्रमावसी संजम । माह शुदि बीजे केवली । चौदशि आषा ढी । यदि शिव पाम्या कर्म कष्ट । सवि दूरे काढी । वासुपूज्य जिन बारमा ए । विद्रुम रंगें काय । श्री नयविमल कहे इस्युं । जिन नमतां सुख थाय ॥ ॥ ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥
॥ * ॥ वसुदेव नृप तात । श्री जयादेवी मात । अरुण कमलगात । महिष लंबन विख्यात । जसगुण अवदात। शीत जाणे निवात । होय नित सुखशात । ध्यावतां दिवस रात ॥ १ ॥ इति ॥ * ॥ १२ ॥ ॥ * ॥ अथ विमलनाथ चैत्यवंदन ॥
॥ * ॥
॥
॥ * ॥ म कल्पथकी चव्या । माधव शुदि बारस | शुद्धि महात्रीजें जया । तस चोथे व्रत रस । शुदि पोष बहें लह्या । वर निर्मल केवल । यदि सातमि आषाढनी । पाम्या पद अविचल । विमल जिलेसर वंदि ए । ज्ञान बिमल करी चित्त । तेरसमो जिन नितु दिये । पुएय परिवल वित्त ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ १३ ॥ ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ *॥
॥ * ॥ थ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥
॥ ॐ ॥ विमल विमल नावे वदतां दुःख जावे । नव निधि घर वै विश्वमां मान पावे । सुवर लंबन फावे नोमिनर स्वेद थावे । मनु विनति जपावे । स्वामिनुं ध्यान ध्यावे ॥ १३ ॥ इति विमलनाथ स्तुति ॥ ॥ अथ श्री अनंतनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥
॥ * ॥ प्राणत थकी चविया इहां । श्रावणवदि सातम | वैशाखवदि तेरसी दिनें । जनम्या चनदस रातम । वदि वैशाखे चनदसि । केवल पुण्य पा म्या । चैत्रशुदि पंचमीदिने । शिववनिता काम्या । अनंतजिनेश्वर चनदमा ए । कीधा दुष्मन अंत। ज्ञानविमल कहेनामथी। तेज प्रताप अनंत ॥ १४ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥
॥ * ॥ अनंत जिन नमीजें कर्मनी कोट बीजें । शिव सुख फल ली जें सिधि लीला वरीजें । बोधि बीज मोह दीजें एटलं काज कीजें । मुऊ मन प्रति रोजे स्वामिनुं कार्य सीजे ॥ १ ॥ * ॥ १४ ॥
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रत्नसागर.
॥ * ॥ अथ श्री धर्मनाथ जिन चैत्यवंदन ॥
॥
॥ ॐ ॥ वैशाख सुदि सातमे । चविया श्री धर्म । विजय थकी माह मास नी । शुदि बीजें जनम । तेरस माहिं कुजली । लीयें संजम नार । पोषि पूनमे केवली | गुणना जंडार । जेठी पांचमि कजली ए । शिवपद पाम्या जेह । नय कहे ए जिन प्रणमतां । वाधे धर्म सनेह ॥ १५ ॥ ॥ * ॥ थथाय प्रारभ्यते ॥
॥ * ॥
॥
॥ * ॥ धर्म जिन पतीनो ध्यान रस मांहें जीनो । वररमण शचीनो । जेहने वर्ण लीनो । त्रिभुवन सुख कीनो लंबने वज्र दीनो । नवि होय ते दीनो जेहने तुं वसीनो ॥ १ ॥ * ॥ इति ॥ १५ ॥
॥ ॐ ॥
॥ अथ श्री शांतिनाथ चैत्यवंदन ॥
॥
॥ * ॥ नाद्रवा वदि सातम दिने । सवघ्थी चविया । वदि तेरस जेंठें जया । दुःख दोहग समीया । जेठि चनदस वदि दिने । लीये संजमवेम । केवल नऊल पोसनी । नवमी दिन खेम । पंचम चक्री परवडा ए । शोल मा श्रीजिनराज । जेठ वदि तेरशें शिव लह्या । नय कहे सारो काज ॥ १६ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥
॥ * ॥ जिन पति जयकारी पंचमो चक्रधारी । त्रिभुवन सुखकारी सप्त जय तिवारी । सहस चनसठनारी चन्द रत्नाधिकारी । जिन शांति जीतारी मोहे हस्ति मृगारी ॥ १ ॥ शुभ केशर घोली मांहें कर्पूर चोली । पेहरी सीत पटोली वासिये गंधधूली । जरी पुष्पपटोली टालीयें दुःख होली । सवि जिनवर टोली पूजीयें नाव लोली ॥ २ ॥ शुभ अंग इग्यार तेम नपांग वलि बार। मूल सुत्रते चार नंदी अनुयोगद्वार । दशपयन्न नदार बेदखद व्रत्ति सार । प्रवचन विस्तार जाप्य नियुक्तिसार ॥ ३ ॥ जय जय जय नंदा जैन दृष्टी सुरिंदा | करे परमानंदा टालता दुःखदा । ज्ञानविमल सुरिंदा साम्य माकंद कंदा | वरविमल गिरिंदा ध्यानथी नित्य नदा ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ स्तवन प्रारंभः ॥ ॥
॥ * ॥ (मोतीमानी देशी ) सकल समीहित सुरतरु कंदा । शांति कर
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२४ जिनचैत्य थुई, स्त० चौमाशी देववंदन. १८१ ण श्री शांति जिणंदा । साहिबा जिनराज हमारा । मोहना जिनराज हमा रा॥ सा॥ (ए आंकणी) त्रिकरण शुध चरण तुज विलगो । पलक मा व न रहुं हिवे अलगो ॥ सा० ॥१॥ विलगो ते अलगो केम जाशे । 5 ड्यो पण तुझे नवि बंडाशे ॥ सा० ॥ प्रनु तुझे कोश्शुं नेह न लावो । वी तराग कही सवि समजावो ॥सा० ॥२॥ बीजा अवर कहो एम समजे पण गेरु दीधाथी रीफे ॥ सा०॥ बालकना हग्थी नवि चाले । जे मांगे ते मावित्र आले ॥सा०॥३॥ नक्तिखांची मन मांहे आएयो । सहज स्वनावे पण में जाण्यो ॥ सा०॥ माहरे एक प्रतिज्ञा साची । तुम पदसे वा अंकें जाची ॥ सा०॥४॥ कबजे आव्यातो बूटीजें । जेह मुह मांगे तेहज दीजें ॥सा०॥ अन्नेद पण जो मनमां मलशो । कबजेथी प्रनु तो नीकलशो ॥ सा०॥५॥ अख्खय नाव निधी तुम पास । आपी दासने पूरो आश । ज्ञान विमल समकित प्रनुताई। दीधी साहेब एह वडाई ॥सा०॥
॥ ॥ अथ श्री कुंथुनाथ जिन चैत्यवंदन ॥१॥ ॥॥श्रावण वदि नवमी दिनें सबष्थी चविया । वदि चनदश वैशा खनी जिन' कुंथु जणीया। वदि पंचमी वैशाखनी लीये संजम जार । शुदि त्रीजें चैत्रहतणी लहे केवल सार । पडवा दिन वैशाखनीए पाम्या अ विचल ठगण । बहा चक्री जयकर ज्ञानविमल सुख खाण ॥१७॥ इति ॥
॥॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥॥ ॥ ॥ जिन कुंथु दयाला गग लंउन सुहाला । जस गुण शुन मा ला कंठे पेहरो विशाला। नमति जवि त्रिकाला मंगल श्रेणि माला। त्रिनुव न तेजाला ताहरे तेज माला ॥१७॥ इति कुंथुनाथ जिन स्तुति ॥ ॥
॥ॐ॥अथ श्री अरनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ ॥ ॥ सरवारथथी आविया फागुण शुदि बीजें । मृगशिर शुदि द शमी जण्या अरदेव नमीजे । मृगशिर शुदि एकादशी संजम आदरीयो काती नऊल वारसें । केवल गुण वरीप्रो। शुदि दशमी मृगशिर तणी ए शिवपद लहे जिननाथ । सत्तम चक्रीने नमुं नय कहे जोमी हाथ ॥१८॥
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रत्नसागर..
॥ * ॥
थ थोय प्रारभ्यते ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ अरजिन ए जुहारूं कर्मनो क्लेश वारूं । अहनिश संजारू ताह रूं नाम धारूं । कृत जय जय कारूं प्राप्त संसार सारूं । नविहोय ते साख आपणो आप तारूं ॥ १ ॥ ॥
॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ अथ श्री मल्लिनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥
॥ ॐ ॥ चव्या जयंत विमानथी फागुण शुदि चनथें । भृगशिर शुदि इग्यारसें जनम्या निग्रंथे । ज्ञान लह्या एकदिने कल्याणक तीन । फागु सुदि बारमें लहे शिव सदन दीन । मल्लिजिणेसर नीजमाए । नगली शमा जिनराज । णपरण्या अणनूप पद । जवजल तरण जहाज ॥ १९ ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ * ॥
॥ * ॥ जिन मल्ली महिला वानबे जेहनीला । ए अचरिज लीला स्त्री तणें नाम पीला । दुशमन सवि पील्या स्वामि जोने वसीला । अविचल सुख लीला दीजियें सुणि रंगीला ॥ १९ ॥ इति मल्लिजिन स्तुति ॥ * ॥ ॥ * ॥ श्री मुनि सुव्रत जिन चैत्यवंदन ॥ * ॥
॥ * ॥ पराजितथी आविया । श्रावण शुदि पूनम । प्राग्म जेह अंधारी । थयो सुव्रत जनम । फागुण शुदि बारस व्रते । वदि बारसें ज्ञान फागुणनी तेम जेवनी । नवमी कृष्ण निर्वाण । वर्ण श्याम गुण नऊला । ति हुय करे प्रकाश । ज्ञान विमल जिनराजना । सुरनर नायक दास ||२०|| थथोय प्रारभ्यते ॥
।
॥ * ॥
॥ ॥ ॥ मुनि सुव्रत स्वामी हुं नमुं शीश नामी । मुऊ अंतर जामी का मदाता कामी । दुःखदोहग वामी पुण्यथी सेव पामी । शम्या सर्व दा रामी राज्यता पूर्ण पामी ॥ १ ॥ इति ॥ २० ॥
॥ * ॥
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॥ * ॥ अथ श्री नमीनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥
॥ * ॥ शो शुदि पूनम दिने प्राणतथी प्राया । श्रावणवदि आ म दिने नमी जिनवर जाया । वदि नवमी आषाढनी थया तिहां अणगा
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२४ जिनचत्य०, थुई स्त०, चौमाशी देववंदन. १८३ र । मृगशिर शुदि इग्यारसे वर केवल धार । वदि दशमी वैशाखनी ए। अ खय अनंता सुख्ख । नय कहे श्री जिननामथी। नासे दोहग उक्ख ॥ २१॥ . .. ॥ * ॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥ * ॥ .....
॥ॐ॥ नमी जिनवर मानो जेह नही विश्वगनो । सुत बप्रा मानो पुण्य केरो खजानो । कनक कमल वानो कुल जे जे कृपानो । सविनुवन प्रमानो तेहशुं एक तानो ॥ २१॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥
#॥अथ श्री नेमीनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ - ॥ अपराजितथी आविया । काती वदि बारस । श्रावण शुदि पंचमी जण्या। यादव अवतंस । श्रावण मुदि बडे संजमी ।आसोज अमावस नाण। शुदिआषाढनी आठमे । शिवसुख लहे प्रमाण। अरिह नेमि अणपरणीया ए। राजिमतीना कंत । ज्ञान विमल गुण एहना । लोकोत्तर वृत्तंत ॥२२॥ इति॥
॥॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥ * ॥ ॥ ॥ गया शस्त्रागारें शंख निज हाथ धारें। कियो. शब्द प्रचारें वि श्व कंप्यो तिवारें। हरि संशय धारे। एहनी कोइ सारे । जयो नेम कुमारे । बालथी ब्रह्म चारे॥१॥ चार जंबू प्रीपें विचरंता जिन देव । अमधात की खंभे सुरनर सारे सेव । अम पुष्कर अर) इणिपरें वीस जिनेश । संप तिए सोहे पंच विदेह निवेश ।। २ ॥ प्रवचन प्रवहण शम जवजल नि धिने तारे । कोहादिक मोटा मतणा जय वारें । जिहां जीवदया रस स रस सुधारस दाख्यो । वि नाव धरीने चित्त करीने चाख्यो॥३॥ जिन शासन सान्निध्य कारी विघन विमारे। समकित दृष्टी सुर महिमा जास वधारे। शेचेंज गिरि सेवो जिम पामो अवपार । कवि धीर विमलनो शिष्य कहे सुखकार ॥४॥ ॥॥ ॥ ॥
॥ ॥ ॥ॐ॥अथ स्तवन प्रारंन॥8॥ ॥ रहो रहोरे यादव दो घमीया।दोघमीयां दोचार धमीयां । रहो रहोरे यादव०॥ (ए आकणी)। मोज महिराण शिवादेवी जाया । तुमें गे आधार अमवडीयां ॥१॥ रहो॥नाह विवाह चाह करीआए । क्युं जावत
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रत्नसागर.
॥
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रहो ०
फिर रथ चमीयां ॥ रहो ० पशुय पोकार सुणीय किय करुणा । बोरुदी ए पशुपंखी चमीयां ॥ रहो ० २ ॥ गोद विधानं में बली जानुं । करूं वीन ति चरणे पमीयां ॥ पियुविण दीहते वरिस समोवड । न गमें स्वपनमें सेजडीयां ॥ रहो० ॥ ३ ॥ विरह दिवानी बिजपति जोवन । वामी वनघर सेरडीयां ॥ रहो ० ॥ अष्टवांतर नेह निवाहत । नवमे नवते वीब मीयां ॥ रहो ० ॥ ४ ॥ सहसा वनमांहे स्वामि सुणीनें । राजुल खत गिरि चमीयां ॥ रहो ० ॥ पियुकर निजशिरें हाथे देवा । बत चाखे चारित्र शेलडीयां ॥ रहो ० ॥ ५ ॥ जादववंश विभूषण नेमजी । राजुल मीठी वेलमीयां ॥ रहो ० ॥ ज्ञानविमल गुणे दंपती निरखत । हरषत होत मेरी आंख मीयां ॥ रहो ० ॥ ६ ॥ ॥ * ॥ अथ श्री पार्श्वनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥
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॥ ॐ ॥ कृष्ण चोथ चैत्रहतणी प्राणतथी श्राया । पोषवदि दशमी ज नम त्रिभुवन सुख पाया । पोषवदि इग्यारशें लहे मुनिवर पंथ । कमठासुर उपसर्गनो टाल्यो पलीमंथ । चैत्रकृष्ण चोथह दिनें ए । ज्ञानविमल गुण नूर । श्रावण शुदि आठमें लह्या । अविचल सुख भरपूर ॥ २३ ॥ इति ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥
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॥ * ॥ जलधर अनुकारें । पुण्यवती वधारे । कृत सुकृत संचारे वि घननें जे विकारे । नवनिधि आगारें कष्टनी कोडि वारे । मुऊ प्राणाधारे मात वामा मल्हारे ॥ १ ॥ र जनम सुहावे वीर चारित्र पावे । अनुभव लयलावे केवल ज्ञान पावे । षटजे कल्याण संप्रतिजे प्रमाणें । सवि जिनवर
श्री निवासाहि ठाए ॥ २ ॥ दश विधि आचार ज्ञानना जिहां विचार दश सत्य प्रकार पच्चख्खाणादि विचार । मुनि दश गुण धार जेजया जिहाँ नदार । ते प्रवचन सार ज्ञानना जे आगार ॥ ३ ॥ दश दिशि दिशि पाला जे महा लोग पाना । सुरनर महिपाला शुद्ध दृष्टी कृपाला । नय विमल विशाला ज्ञान ही मयाला । जय मंगल माला पास नामें सुखाला ॥ ४ ॥ ॥ ॥ अथ स्तवन प्रारंभ ॥ * ॥
॥ * ॥ थारे माथे पचरंगी पाघ सोनेरो बोगलो मारुजी ॥ ए देशी ॥
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२४ जिनचैत्य, थुई, स्त०, चौमाशी देववंदन. १८५ अनुपासजिणेसर जुवन दिनेसर संकरो ॥ साहिबजी ॥ ली ला अलवेसर धीरम मंदर जूधरो ॥ साहिबजी॥ तुं अगम अगोचर कृत शुचि सुंदर संवरो॥सा०॥ पद नमित पुरंदर तर्नु उबि निरमल जलधरो। सा० ॥१॥ तुं अदय अरूपी ब्रह्मसरूपी ध्यानमां ॥ सा॥ ध्याये जे जोगी तुमगुण जोगी झानमां ॥ सा० ॥ व्यवहार प्रकासी निश्चयवासी निजमतें ॥सा०॥ जिन आतम दरसी अमल अजेसी नयमतें ॥सा॥ ॥२॥ षट दर्शन नासे युक्ति निरासें शासनें ॥सा ॥ स्यादवाद विशा लें सहज समाजे जावनें ॥सा०॥ तुं ज्ञानने ज्ञानें आतम ध्याने आत मा ॥ सा०॥ परमागम वेदी नेद अनेदी नही तमा ॥ सा० ॥३॥ एक अनेके बहुत विवेकें देखियें ॥सा॥ आतम ततकामी अगुण अ कामी लेखियें ॥ सा०॥सविगुण आरामी बगे बहु नामी ध्यानमां॥ सा०॥ आपेगत नामी अंतरजामी झानमां ॥सा०॥४॥ तुं अनीयत चारी नि यत विचारी योगमां ॥सा०॥ अध्यातम सेली एम बहु फेली आगमें॥ सा॥तुं धर्म संन्यासी सहज विलासी समगुणें ॥सा०॥ मोहारि विना शी तुं जित काशी कवितणे ॥सा०॥५॥ ज्ञान दर्शन खायक गुणमणी लायक नाथ ॥ सा०॥पुर्गति पुःख घायक गुणनिधि दायक हाथ ॥ सा०॥ जित मन मथ सायक त्रिनुवन नायक रंजणो ॥ सा०॥अनेकांति एकांती तुं वेदांती अगंजणो ॥ सा०॥६॥ध्यानाननयोगें पुदगल जोगें तें दह्या ॥ सा०॥ अंतररिपु हणीया मूलथी खणीया नविरह्या ॥ सा ॥ तुंहेतु समीयो सुरवर नमियो सहुकह।सा०॥ए जगथी न्यारो चरित्र तुमारो कुणलहे ॥ सा० ॥७॥ इम तुम गुण थुणीयें कर्मनें हणीये पलकमां ॥ सा०॥ पण नवि अवगणिये सेवक गणीयें ललकमां ॥ सा०॥ वामाचे नंदा त्रिजुवन इंदा सं थुणे ॥सा०॥ ज्ञानविमल सूरिंदा तुमपय बंदा गुण नणसा०॥८॥इति॥॥
॥ ॥ अथ श्री वर्धमान जिन चैत्यवंदन ॥१॥ ॥ॐ॥शुदि आषाढ उह दिवसें प्राणतथी चवीया । तेरस चैत्रह शुदि दिने त्रिशलायें जणीया । मृगशिर वदि दशमी दिनें आपे संजम आराधे
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रत्नसागर. शुदि दशमी वैशाखनी वर केवल साधै । काती कृष्णा अमावसीए । शिव गति करे नद्योत । ज्ञान विमल गौतम लहे । पर्व दीपोत्सव होत ॥ २४॥
॥ ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥ ॥ लह्यो नवजल तीर धर्म कोटीर हीर । पुरति रज समीर मोह मूसार सीर। पुरित दहन नीर मेस्थी अधिक धीर । चरम श्री जिनवीर चरण कटपट्ठ कीर ॥१॥इम जिनवर माला पुण्य नीर प्रवाला । जग जंतु दयाला धर्मनी शास्त्र शाला । कृत सुकृत सुगाला झान लीला विशाला सुरनर महिपाला वंदता ने त्रिकाला ॥२॥श्री जिनवर वाणी प्रादशांगी रचाणी । सगुण रयण खाणी पुण्य पीयूष पाणी । नवम रस रंगाणी सिद्धि सुखनी निशाणी। मुह पीलण घाणी सनिलोनाव जाणी ॥ ३ ॥ जिनमत रखवाला जे वली लोग पाला । समकित गुण वाला देव देवी कृपाला । करो मं गल माला टालिने मोह हाला। सहज सुख रसाला बोध दीजें विशाला॥४॥
॥ * ॥ अथ स्तवन प्रारंन ॥ * ॥ ॥ॐ॥ आज गईथी हुँ समवसरणमें ॥ ए चाल ॥ ॥ ॥ ॥ वंदोवीरजिणेसर राया। त्रिशलामाता जायाजी।हरिलंगन कंचन वनकाया। मुझ मन मंदिर आयाजी॥वंदोवीर० ॥१॥षम समये शासन जे हना। शीतल चंदन गयाजी। जे सेवंतां नविजन मधुकर । दिन दिन होत स वायाजी ॥ वंदो० ॥२॥ते धन्य प्राणी सदगति जाणी । जस मनमां जिन
आयाजी । वंदन पूजन सेवन कीधी। तेकाजननी मायाजी॥ वंदो०॥३॥ कर्म कठिन नेदन बलवत्तर। वीर बिरुद जिन पायाजी। ए कल मल अतुली बल अरिहा । उशमन दूर गमायाजी ॥ वंदो० ॥ ४॥ वंनित पूरण संकट चूरण तुं मात पिता तुं सहायाजी । सिंहपरें चारित्र आराधी। मुजश निशान ब जायाजी ॥ वंदो० ॥५॥ गुण अनंत जगवंत बिराजे । वर्धमान जिनराया। जी। धीर विमल कवि सेवक नय कहे । शुध समकित गुण दायाजी॥वंदो०॥ ॥५॥इति ॥ इहां । पूरण जय वीयराय कहेवो ॥ॐ॥ ॥ ॥ . ॥ ॥अथ श्री शाश्वता अशाश्वता जिन चैत्यवंदन ॥ ॥
* ॥ सकल मंगलकार एही । सिघ सकल पयहाण । स्यावाद सा
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सास्वता असास्वता जिन चैत्य०
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धन पद एही अध्यातम गुणगण ॥ १ ॥ ( सहीए नमो जिला ) ॥ २ ॥ ए (कणी) | बिहूं तेरलख्ख सग्ग कोमि जवणवई । सासय जिणहरमाणं । तेरशें नव्याशी कोमी सग्गसठि बिंबह परिमाणं || ३ || सही ० ॥ मेरु वैताढ्य वखारा कंचन | यमक कुंरुद्रह जाएं । एकत्रीश ओगण्यासी जिनवर | मानवलोकें वखाणुं ॥ ४ ॥ स० ॥ त्रिलख इक्यासी सहस चारसो त्र्याशी अधिक बिंब जाएं। रुचक कुंडल नंदीसर प्रमुखें । सुंदर अशी वेश्या णं ॥ ५ ॥ स० ॥ अशत शय सहसा चालीसा । बिंबतणुं परिमाणं । सरवाले बत्रीश गुण सही । तिर्यक लोकें चेईयाणं ॥ ६ ॥ स० ॥ प्रतिमा त्रण लख सहस एकाणुं । चनसय तेवीस परिमाणं । साठ चौबारा वर त्रिवारा | रुचक कुंड नंदीठाणं ॥ स० ॥ बार देवलोकें नवग्रेवेयकें। उत्तर पंच बिमाणं । लाख चोराशी सहस सत्ताएं । त्रेवीश चेई जाएं ॥ ७ ॥ स० ॥ एकसो बावन कोमि लख चोराणं । सहस चुमालीस आएं। सातशें साठ ऊपर नई लोकें । जिन परिमा मन आएं ॥ ९ ॥ ॥ स० ॥ त्रिभुवन मांहे सासय जिनहर । सगवन्न लख्ख बसें ब्याशी । आठ कोथि प्रतिमा संख्या । सुणजो सम कित वासी ॥ १० ॥ स० ॥ पन्न र कोडी बेतालीश कोमी । तेम ग्रहावन्न लख्खा । बत्रीश सहस अशी व लि साधिक। सासय बिंबनी संख्या ॥ ११ ॥ स० ॥ एकसो वीश त्रिबारें प्रतिमा । चोमुखें शत चौवीश । पांच सजा तिहां साठ वधारो । एकशत अशी जगीश ॥ १२ ॥ ० ॥ रुष चंद्रानननें वर्धमान । वारिखेण चननामें व्यंतर ज्योतिषी मांहे असंख्या । जिन घर पमिमा मानें ॥ १३ ॥ स० ॥ सकल सुरासुर भावना जावे । समकित गुण दीपावे । परित्त संसार करी शिव जावे । कुमति तेम न जावे ॥ १४ ॥ ० ॥ पातालेनें तिर्यक लोकें । पास धणु परिमाण । कप्पें सग्गकर पणसय धणु माणुं । सासय असासय जाण ॥ १५ ॥ स० ॥ तीर्थ विशेष वली शासय विणु । शत्रुजा दिक बहुला । ते सविहूने त्रिविधें नमतां । पातक जाये सगला ॥ १६ ॥ स० ॥ ज्ञानविमल प्रनुनाम जपता । लहीये कोडि कल्याण | मनह मनोरथ सगला सीजे । जनम सफल सुविहाण ॥ १७ ॥ स जयहर
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रत्नसागर. जगवंताणं जयतुर । नमो जिणाणं सहीए । नमो अविचल आदि गराणं । सहीए नमो अरिहंताणं ॥ १८॥ सही०॥ इति श्री सर्वजिन नमस्कारः॥ (इहां) एकलोगस्सनो कानस्सग्ग "चंदेसु निम्मलयरा” सूधी एक जण करे ते कानस्सग्ग पारी । पली चार थोयो कहेवी (ते लखीयें जीयें.)॥ ॥ॐ॥
॥ ॥अथ थोय प्रारभ्यते॥॥ ॥ * ॥ षनदेव नमुं गुण निर्मला। दूध मांहे जिम नेली सीतोपला। विमल शील तणा सिणगार । नवनव मुझने चित्ते रुचै ॥१॥ जेह अनंत थया जिनकेवली। जेह हसे विचरंतां जेवली। जेह असासय सासय त्रिहुं जगें। जिन पमिमा प्रणमुं नित झगमगे॥२॥सरस आगम दीर महोदधी त्रिपदी गंग तरंग करी वधी । नविक देह सदा पावन करे । उरित ताप रजो मल अपहरे॥३॥ जिनप शासन नासन कारिका । सुर सुरी जिन आणा धारिका । ज्ञान विमल प्रनुतायें दीपता। रित पुष्ट तणा जय जीप ता॥४॥ इति श्री शाश्वत अशाश्वत जिन स्तुति ॥ २५॥ ॥ॐ॥
॥ अथ विधिः ॥ ॥ ॥ ॥ इहां एकजण मोटी शांति कहे ( अने) बीजा सर्व कान सग्गमां सांजलै । पी सर्वे जणा कानसग्ग पारीने । प्रगट एक लोग्गस्स पूरो कहै। पी बेसीने, एकवीश नवकार, प्रगटपणे सर्व जण गणे (पी) सर्वेजण, मुख थकी आवी रीतें कहेः-श्रीशेजुंजायनमः॥१॥श्रीपुंमरीकाय नमः॥२॥श्री सिद्ध क्षेत्राय नमः ॥३॥श्री विमलाचलाय नमः॥४॥ श्री सुरगिरये नमः॥५॥श्री महागिरये नमः॥६॥श्री पुण्यराशये न मः॥७॥श्रीपर्वताय नमः॥८॥श्री पर्वतेंद्राय नमः॥९॥ श्री महा तीर्थाय नमः ॥१० ॥ श्रीशाश्वताय नमः ॥ ११ ॥ श्रीदृढशक्तये नमः ॥१२॥ श्री मुक्तिनिलयाय नमः॥ १३ ॥ श्रीपुष्पदंताय नमः ॥१४॥ श्री महापद्माय नमः॥ १५॥ श्री पृथ्वीपीठाय नमः १६ ॥ श्री सूरन द्र गिरये नमः॥ १७ ॥ श्री कैलासगिरये नमः॥१८॥ श्री पातालमू लाय नमः ॥ १९॥ श्री अकर्मकत्रेय नमः ॥ २० ॥ श्री सर्वकामपूर
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सिधगिरी गिरनार प्रमुख पंचतीर्थ स्तवन. १८९ एणाय नमः॥२१॥०॥ ए सिघ गिरीना (२१) नाम सर्वने मुखें प्रगट कही ने (पी) पांच तीर्थना पांच स्तवन कहेवां ते लखीये गयें ॥१॥
॥ ॥ प्रथम श्री सिद्धगिरी स्तवन ॥ * ॥ ॥ॐ ॥ नीलमी रायण तरूतले । साहेलमीयां। पीलमा प्रनुजीना पाय गुण मंजरीयां । ऊजले ध्याने ध्याइयें ॥ सा० ॥ अहीज मुगति नपाय । गुण ॥१॥शीतमी गयायें वैसीयें ॥ सा० ॥ रातडो करी मनरंग॥गु ण ॥१॥ नाही धोई निर्मल थई ॥ सा० ॥ पहेरी वस्त्रादिक चंग ॥गुण ॥२॥ पूजीयें सोवन फूलमे ॥ सा०॥नेह धरीने श्रेह ॥ गु०॥ ते त्री जे नवे शिवलहे ॥ सा०॥थाये निर्मल देह ॥ गु० ॥ ३ ॥ प्रीत धरी प्र दक्षिणा॥ सा॥दी अहनें जे सार ॥ गुण ॥ अनंग प्रीति होने जेहने ॥सा०॥ नवनव तुम आधार ॥ गुण॥ ४ ॥ कुसुम पत्र फल मंजरे ॥सा०॥शाखा थमने मूल ॥ गुण ॥ देवतणा वासा अडे ॥सा०॥ तीरथने अनुकूल ॥ गुण ॥५॥ तीरथ ध्यान धरी मनें । सा० ॥ सेवो एहने नचाहि ॥ गुण ॥ ज्ञानविमल गुरु जाखियो । सा० शेठेजा महातम मांहि गुण इति श्री शेठेजा स्तवनं ॥ ॥ॐ॥ ॥
॥ ॥ अथ श्री गिरनार तीर्थस्तवन॥॥ ॥ ॥ देखी कामनी दोयके कामें व्यापीयो हो के का० ॥ए चाल ॥
॥ ॥ नेमनिरंजन देवके सेव सदा करूं हो लालके ॥ से० ॥ अहनिश ताहरूं ध्यानके दिल माहे धरूं हो लाल ॥ दिल०॥शंख लंउन गुणखाणके अंजन वान हो० के॥अं०॥राजिमतीना कंतके परण्या विणु अने हो॥ पर०॥१॥ तुंहीज जीवन प्राणके आतमराम हो० के ॥ आत॥माहरे परमा धारके ताहरू नाम हो० के॥ ता०॥ समुद्र विजयना नंदन नितुनित वंदता होके० नित०॥कीजीयें करुणा वंतके कर्म निकंदना हो के॥कर्म०॥ ॥२॥जीत्या मनमथ राज रही गढऊपरै हो के॥ रही। पहरी शील स नाह नदास ऐसी धरै हो ऊदा० ॥ सवि जिनवरमां स्वामि तुझे अ धिकू करयुहो० ॥ तुझे ॥ कुमरपणे धरी धीर महाव्रत उच्चस्या हो० के॥ महा०॥३॥आठ अवांतर नेहजे तेह कवेखीने होला० ॥ तेह० ॥ करु
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रत्नसागर.
एगा कीधी केवल पशुवां देखीनेहो ० के ॥ पशु ० ॥ पूरण पाली प्रीत वली निज नारनें हों • ॥ वली ० ॥ पी संजम जार पोहोंचामी पारनें हो० ॥ पो० ॥ ४ ॥ जण जणशुं जे प्रीत करे ते जन घणाहो ० ॥ करे० ॥ निखाहे घरी नेहके ते विरला सुया हो ॥ ते वि० ॥ राजिमतीनो कंत वखाणे कविजना हो ० ॥ वखा ॥ तुझेतो दीधो बेहके तेहना थिरमना हो ० के ॥ तेहना० ॥ ५ ॥ जादव नाथ सनाथ करो मुऊने सदाहो ० || करो || दिप्रो मुऊ शिर हाथ होवे जेम संपदा हो० ॥ होवे ० ॥ जलि जलि मरे पतंग दीवानें मन नही हो० ॥ दीवा० ॥ नाऐं मन असवार, घोड़ो दौने सहीहो• ॥ घोडो• ॥ ६ ॥ सबला साथै प्रीत निबलनें नवि कही हो ० ॥ निंबल ० ॥ पण लागीजे थोकी, किहां जा वही हो ० ॥ कहां• ॥ जे सज्जनशुं होय ते जीम न गंजीयेहो ० के ॥
० ॥ तुमचा मुनि ज्यारे हो तो, कर्मनें मंजीयेहो ० के ॥ कर्म० ॥ ७ ॥ तो दुशमन होय दूर, कोणे नविगंजीये हो० ॥ कोणे० ॥ प्राणाधार पवित्रके, द रशन दीजीयेंहो के ॥ दर० ॥ ज्ञानविमल सुखपूर, मलीनें कीजीयें हो म० ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ 11 11
०
॥ * ॥
॥ * ॥ अथ श्री प्राबूतीर्थ स्तवन० ॥ * ॥ ॥ * ॥ चालो चाजोने राज गिरिधर रमवा जइयें (ए चाल ) ॥ * ॥ ॥ * ॥ आवो आवो राज श्री अर्बुद गिरिवर जड़यें || श्री जिनवर नी नक्ति करीनें आतम निर्मल थइयें || वो ० ॥ प्रकरणी ॥ विमल व सहीना प्रथम जिणेसर । मुख निरखें सुख पइयें । चंपक केतकी प्रमुख कुसुम वर । कंठे टोमर ठवियें ॥ आवो ॥ १ ॥ जिमणे पासे लुग वसही श्री नेमीसर नमीयें । राजि मती वर नयणें निरखी। दुःख दोहग सवि गमी यें || वो ० ॥ २ ॥ सिधाचल श्री कृषन जिणेसर । रेवत नेम समरी | दो वसिनी यात्रा करता । विहुं तीरथ चित्त धरीयें ॥ आवो० ॥ ३ ॥ hu in विविध कोरणी । निरखी हियडै वरियै । श्री जिन वरना बिं ब निहाली । नरजव सफल करीयें ॥ आवो० ॥ ४ ॥ अविचल गढ प्रादीश्वर प्रणमी ! अशुभ करम सवि हरीयें । पाश शांति निरखी जब नयणें । मन मोह्यो डुंगरीयें ॥ आवो० ॥ ५ ॥ पाजें चढतां नजम
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पंचतीर्थस्तवन पर्युषण स्तुति.
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वाधे । जेम घोडे पाखरीयें । सकल जिनेसर पूजी केशर । पाप पडल सवि हरीयें | वो ॥ ६ ॥ कण ध्यानें प्रजुने ध्यातां । मनमांहि नवि मरीयें ज्ञान विमल कहे प्रभु सुपसायें । सकल संघ सुख करियें ॥ आवो० ॥ ७ ॥ ॥ * ॥ अथ श्री अष्टापद गिरि स्तवन ॥ ॥
॥ * ॥ अष्टापद गिरि यात्रा करणकुं । रावण प्रतिहरी आया । पुप्फ क नामें विमानें बेशी । मंदोदरी सुहाया ॥ १ ॥ श्री जिन पूजीयें लाल । समकित निर्मल कीजें । नयणें निरखी हो लाल । नरनव सफलो कीजें । ही हरखी लाल । समता संग करीजें । ( प्रकणी ) चनमुख चनगति ह रण प्रसादें । चनवीसे जिनवैठा । चनदिशि सिंहासन समनासा । पूरबदिशि दोय जिठा ॥ श्री० ॥ २ ॥ संभव आदें दक्षिण चारे। पश्चिमे आठ सुपासा । धर्म आदि उत्तर दिशि जाणो । एवं जिनचनवीशा ॥ श्री० ॥ ३ ॥ बैठा सिंह त आकारै । जिन हर जरते कीधा । रयण बिंब मूरति थापीनें । जगजश वाद प्रसिधा ॥ ४ ॥ करे मंदोदरी राणी नाटक। रावण तांत बजावे । मादल वी रा ताल तंबूरो। पगव उम उम कावे ॥ श्री० ॥ ५ ॥ भक्ति जावें एम नाटक करतां । तूटी तंती विचालें । साधी प्राप नसा निज करनी । लघु कलाशुं ततकाजें ॥ श्री० ॥ ६ ॥ द्रव्य भावशुं भक्ति न खंडी । तो अक्षय पद साध्युं समकित सुरतरु फल पामीनें । तीर्थंकर पद लाभ्युं ॥ श्री० ॥ ७ ॥ इणि परें विजन जे जिन मागें । बहुपरें भावना जावे । ज्ञान विमल गुण तेह नाह निश। सुर नर नायक गावे ॥ श्री० ॥ ८ ॥ इति० ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ अथ श्री समेत शिखर स्तवन ॥
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॥ ॥ समेत शिखर गिरि जेटीयेंरे । भेटवा भवना पास । आत म सुख वरवा जणीरे । ए तीरथ गुण निवासरे ॥ १ ॥ जवियां से वो तीरथ ह । समेत शिखर गुण गेहरे ॥ वि० ॥ से० ॥ ( ए आ कणी ) ॥ समेत शिखर कलपें कह्योरे । वीश टुंक अधिकार । वीश तीर्थंकर शिव वरचारे । बहु मुनिनें परिवाररे ॥ ज० ॥ २ ॥ से० ॥ सिध खेत्र मां हे व स्यारे । जाखे नय व्यवहार । निश्चय निज स्वरूपमां रे । दोय नय प्रजुजीना सार ॥ ज० ॥ ३ ॥ से० ॥ स० ॥ आगम वचन विचारतां रे । अति दुर्ग
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... रतसागर. मनयवाद । वस्तु तत्व जिणे जाणीयें रे। ते आगम स्यादवादरे॥०॥४॥ से॥स०॥ जय रथ राय तणी परेंरे । जात्रा करो मनरंग । नव पुःखने देश अंजलीरे। थाये सिधि वधूनो संगरे ॥०॥५॥स०॥ समकित युत जात्रा करैरे। तो शिव हेतु थाय । जव हेतु किरिया त्यागथीरे । आतम गुण प्रगटायरे ॥०॥६॥से ॥ जेह समयें सम कित थयोरे । तेह समयें होय नाण । ज्ञान विमल गुरु नाखीयोरे । आवश्यक भाष्यनी वाणरे ॥ ज०॥७॥से ॥स०॥ इति चौमाशी देववंदन विधिः॥ ॥ॐ॥
॥॥अथ श्री पर्युषणपर्व स्तुतिः॥४॥ ॥ॐ॥ सत्तरनेदी जिन पूजा रचीने स्नात्रमहोबव कीजैजी । ढोल द मामा भेरी नफेरी मल्लरिनाद सुणीजैजी। वीरजिन आगल भावना जावी मानवनव फल लीजैजी । परब पजूसण पूरब पुण्यें आव्या इंम जागी जैजी ॥ १ ॥ मास पास वली दशम वालस चत्तारी अह कीजै जी। ऊपर वलि दशदोय करीने जिन चौवीश पूजीजेंजी । बमा कल्पनो बहकरीने वीरवखाण सुणीजैजी। पमवाने दिन जन्म महोत्सव धवल मं गल वरतीजैजी ॥२॥ आठ दिवसलगे अमर पलावी अहमनुं तप कीजै जी। नागकेतुनी पर केवल लहियै जो सुननावें रहियैजी । तेलाधर दिन त्रण्य कल्याणक गणधर वाद वदीजैजी । पास नेमीसर अंतर त्रीजै झपन च रित्र सुणीजजी॥३॥ बारशै सुत्रने समाचारी संवत्सरी पमिक्कमियजी।
चैत्यप्रवामी विधिसुंकीजै सकल जंतुनें खामीजैजी। पारणाने दिन सामीव त्सल कीजै अधिक कमाईजी। मान विजय कहै सकल मनोरथ पूरो देवी सिचाईजी ॥४॥ इति ॥ * ॥
॥ ॥ ॥ॐ॥ ॥ * ॥अथ श्री नेम राजीमती बारमाशो॥ * ॥ ॥ ॥ सीयालै खाटू नलीरे लाल (ए चाल)॥१॥ ॥ ॥तोरणथी रथ फेरीयोरे लाल । नीतुर नेम कुमार । प्रेमविलूधी प दमणी हो लाल । वीनवै राजुलनार ॥१॥ (हो रंगीला नेम, मुणमांहरी अर दास)। सहीयांसुं राजुल कहै हो लाल । मगसिर नायो पीन । प्रीतम विण हिवमाहरो हो लाल । धीरज न धरै जीव ॥२॥ हो । पोसमहीनो आ.
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नमिराजुल बारेमासो तथा स्तवन. वीयो हो लाल । आयो मोऽख देण । तो सूरतनें सांवलाहो लाल । देखण तरसैनेण ॥३॥हो० ॥ माहमहीनो सीपमैहो लाल। प्रीसंग पो नारि प्रीतम बिगहुँ एकली हो लाल । केमरहुं निरधार ॥ ४ ॥ हो० ॥ होली खेलै हेतसुंरे लाल । फागुणमें नरनारी। हुँ किणसुं खेलू हिवै हो लाल। पास नही जरतार ॥५॥हो० ॥ चैतमहीने चांदणीरे लाल । संजोगण सुख दैण । विरहणने बालम विनारे लाल । रोवत जावै रेण ॥६॥ हो० ॥वन हरीया वैसाखमेरे लाल । मांजररही महकाय । अरजसुणी अबला तणी हो लाल । तपत मिटावो आई॥७ हो० ॥ जेठ तपै लू आकरो हो लाल । दाजै कोमल गात । ससनेही साहिव विनारे लाल । कुण पूलै मुमवात ॥८॥ हो० ॥आसाढे काली घटा हो लाल । ननमि आयो मेह । कंत मिल्या नि ज नारसुंरे लाल। धरती मिलीया मेह ॥ ९॥ हो० ॥ श्रावण चमकै दाम नी हो लाल । धनवरसै जमलाइ । इण रुत सूतां एकली हो लाल । क्युं क रिरेण विहाइ ॥१०॥हो॥ काली कालाहण मिली हो लाल । जाद वडै वरखंत । अरज सुणीने साहिवा हो लाल । पूरो मोमन खंत ॥११॥ हो० ॥ आशोजे आंसूमरै हो लाल । नाह विना निसि दीस । सारन पूरी साहिबे हो लाल । राखिरह्यो मनरीस ॥१२॥ हो० ॥ काती द्रिढ गती करीरे लाल । जाइ मिली गिरनार । देखी मुख निज नाहनो हो लाल । सफ ल गिणे अवतार ॥ १३ ॥ हो० ॥ संयमले पीन से हथै होलाल । पांमैन वनो पार । इणपर पालै प्रीतमी हो लाल । धन धन ते नरनारि॥१४॥जे कीधी पसुकपरे हो लाल । मो परिकरिज्यो देव । चंदनणी द्योकरि दयाहो लाल । प्रनुचरणारी सेव ॥ १५॥ हो ॥ ॥
॥ ॥ इति श्री नेमिराजुल बारै मासो संपूर्णम् ॥ * ॥ ॥ॐ॥अजीमगंजे नेमिजिन नूतन चैत्य प्रतिष्टास्त०॥ॐ॥
॥ केशरियाने ज्याजको० (इस चालमें)॥॥ : ॥ * ॥ आज सखि प्रनु दरशण में पायो । मेरो रोम रोम हुलसायो
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रत्नसागर.
० ॥ अनंत काल जव जल माहि जमतां । मिथ्या मत जरमायो । कुमति नारसंग इतनत कोलत । चेतन बहु दुःख पायो ॥ ० ॥ १ ॥ पुन्य संयो गै नरनवपामी । सुमति नार संग चायो । हीनपुयतें मोह पकरकें । विषय क षाय रमायो ॥ ० ॥ २ ॥ सुगुरु प्रसादै प्रनुगुण महमा । श्रवण सुणी हरषायो । अवसर पाय नेम पद पंकज । अलि जिम चित्त लुनायो ॥ श्र० ॥ ३ ॥ समुद्र बिजै सिवादेवीके नंदन । सह सुर नर दिल जायो । इंद्र ई द्राणी मंगल गावत । मोतियन चोक पुरायो ॥ ० ॥ ४ ॥ धन्य घमी धन्यभाग हमारो । आनंद आज सवायो । तारण तरण बाल ब्रह्मचारी नेम जिनंद वधायो ॥ ० ॥ ५ ॥ पूरब देश अजीमगंज में । श्री संघ चित्त कमायो । स्थापना चैत्य बिंब की करनें । जिनत्रम जगदीपायो ॥ श्र० ॥ ६ ॥ सिखि सागर रजनीस नंद सन् । माधव सुद मुनि जायो । श्री जिन चंद सुरिंदके श्री बर । हितप्रिय मोहन गायो ॥ ० ॥ ७ ॥ १९४३, वै । सु । ७ ॥ अजीमगंजे पंचायती श्री नेमिजिन नूतन चैत्य प्रतिष्टा स्तवनं ॥ ॥ ॥ * ॥ नवपद स्तवन ॥ ॐ ॥
॥ जीया चतुर सुजाण । नवपदके गुण गायरे || जी० ॥ नवपद महिमा जगमें मोटी । गणधर पारन पायरे जी० ॥ १ ॥ करम निकाचित दूर करणकों । सुंदर सुध नपायरे ॥ जी० ॥ २ ॥ इनको पुष्ट आलंबन करतां अजरामर सुखपायरे ॥ जी ॥ ३ ॥ ए जिननए आगामी होयगे । नवप द संग सायरे ॥ जी० ॥ ४ ॥ परम क्षमा शिव रमणी वरके । शमर श मर गुणगारे || जी० ॥ ४ ॥ इतिपदम् ॥ ॥ ॥ ॥ सकल शाश्वता अशाश्वता चैत्य नमस्कार स्त० ॥ ॥ ॥ * ॥सद्भक्त्या देवलोके रवि शशि नुवने व्यंतराणां निकाये | नक त्राणां निवाशे ग्रहगण पटले तारकाणां विमाने । पाताले पन्नगेंद्र स्पुटिक मणिक ध्वस्तसांद्रां धिकारे । श्री मत्तीर्थं कराणां प्रति दिवस महं तत्र चै त्यांनिबंदे ॥ १ ॥ वैताढ्ये मेरुशृंगे रुचक गिरवरे कुंरुले हस्तिदंते । वकारे कुट नंदीश्वर कनक गिरौ नैषधे नीलवंते । चित्रेशैले विचित्रे यमक गिखरे चक्रवाले हिमाद्रौ ॥ २ ॥ श्री० ॥ श्री शैले वंध्य श्रृंगे विमल गिरवरे अर्बुदे पाव
॥ * ॥
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मंदरजानेकी पूजन करनेकी विधि १९५ केवा। सम्मेते तारकेवा कुलगिरि शिखरे ष्टापदे स्वर्ण शैले । सह्याद्रौ चोड़ यंते विपुल गिरवरे गुऊरे रोहणाद्रौ॥३॥ श्री० ॥ आषाढे मेदपाटे कित तट मुकटे चित्रकोटे त्रिकोटे । लाटे नाटेच धाटे विकट घन तटे देवकूटे विराटे । कर्णाटे हेमकूटे निकट तरकटे चित्रकोटेच नोटे ॥ श्री० ॥ ४ ॥ श्री माले मालवेवा मलपति निखले मेखले पिछलेवा । नेपाले नाह लेवा कुवलय तिलके सिंघले मेखलेवा । डाहले कोशलेवा विगलित सलिले जंगलेवा तवाले ॥ श्री० ॥५॥अंगे वंगे कलिंगे सुगत जनपदे सुप्रियागे तिलंगे । गौमे चौमे मुरेंद्रे वर तर द्रविमे नद्रीयाणे पुरेंद्रे । आद्रे माद्रे पुरिंद्रे द्रवियल कुवले कनि कुब्जे सुराष्ट्रे ॥ श्री० ॥ ६ ॥ चंपायां चंद्र मुख्यां गजपुर मथुरा पत्तने चोङयिन्यां । कौशव्यां कौशला यो कनक पुरवरे देवगिर्या सकाश्यां । नासिक्ये राजगेहे दशपुर नगरे नहले तांमलिप्त्यां ॥७॥ श्री० ॥ स्वर्गे मर्यंत रके गिरि शिखर दे स्वर्नदी नीरतीरे। शैलाये नागलोके जलनिधि पुलने नूरुहाणां निकुंजे। ग्रामे राये वनेवा स्थल जल विषमे उर्गमध्ये त्रिसंध्यं ॥ ८॥ श्री० ॥ इत्थं श्री जैन चैत्यं स्तुति मति मनसा नक्तिनाजां प्रसिघात् । प्रोद्यत्कल्याण हेतुः कलि मलि हरणे ये पठते विशिष्टं । तेषां श्री तीर्थ यात्रा फल मति मतुलं जायते मानवानां । कार्य सिच्चि स्तवोच्चै प्रजवति सततां चित्त मानंद कारी ॥ ९ ॥ इति श्री तीर्थ माला स्तुति संपूर्णम् ॥ * ॥
॥ ॥ श्री आदिजिन आरती॥2॥ ॥ॐ ॥ अपहरा करती आरती जिन आगै। हारे जिन आगैरे जिन आगे। हारे एतो अविचल सुखमा मांगे । हारे नानीनंदन पाश ॥ अप बरा०॥१॥तार्थई नाटक नाचती पाय ठमके । हारे दोयचरणे फांऊर ऊमकै। हारे सोवन घूघरी घमके । हारे लेती फूदमी बाल ॥ अप० ॥ २ ॥ तालमृदंगनें वांशली मफबीणा । हारे रूमा गावंती स्वरकीणा। हारे मधुर सुरा सुर नयणां । हारे जोती मुखहुं निहाल ॥ अप० ॥३॥ धन्य मरुदेवी मातनें प्रनुजाया । हारे तोरी कंचन वरणी. काया। हांरे मेंतो पूरवपुन्ये पाया। हारे तोरो देख्यो दीदार ॥ अप० ॥ ४॥ प्राणजीवन
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रनमागर.
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परमेश्वर प्रनुप्यारो हारे प्रनु सेवक हुँ ढुं तारो । हारे नवो नवना मुख मा वारो। हारे तुमे दीनदयाल ॥ अप०॥५॥ सेवकजाणी आपणो चित्त धरजो। हारे मोरी आपदा सगली हरजो। हारे मुनि माणक सुखीन क रजो। हां रे जाणी पोतानुं बाल ॥ अप० ॥६॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥ अथ श्राह दिन कृत्य (तथा) देव वंदन नाष्यसें
मंदर जाणकी पूजन करनेकी विधि॥॥ ॥ॐ॥ प्रथम श्रावक दो च्यार घनी रात्ररहते ठळके (प्रथम ) दिलमें न वकार मंत्रका स्मरण करै ॥ में कोणहुं, क्या मेरी जातिहै, क्या मेरा कृत्य है, क्या मेरा धर्महै (इत्यादि) धर्म जागरणासें दिलकों सावचेत करै (पीछे) मलमूत्रकी बाधा दूर करके, अंगशुचीचूत करै ॥ सामायक, प्रतिक्रमणादि करके, विधिसंयुक्त घरदेराशरकी पूजाकरै ( पीने ) यथाशक्ती अन्ला वस्त्र आनूषण पहरके, घोमा, हाथी. रथ, पालखी, सिपाई, नोकर, नाई, बंधु (इत्यादि) परिवार सहित पूजाके लायक, फल फूल प्रमुख, उत्तम, द्रव्य हाथ में लेके । नव्यजीवोंकों मोक्ष मार्ग दिखाता हुआ, जिनशाशनकी प्रभाव ना करता हुआ, जिनमंदर जावै । जिनमंदरमें प्रवेश करके १० त्रिक बिधि शाचवन करै ( सो १० त्रिक लिखतेहे) (पहिला त्रिक) ३ निस्सही ) कहणेंका (जिसमें ) १ निस्सही, जिनमंदरमें पैशतेही कहै ( कहे पीने ) संसार घर संबंधी कुटनी कार्य विचारणा न करै ॥१॥ (दूसरी) निस्सही, प्रदक्षिणा तीन दिये पीछे कहै । जिन मंदरमें फूटा टूटा ठीककरानेकी सारसंगाल रक्खीथी सोनीठोमै । इहां द्रव्य पूजा करणी मोकली रही ॥२॥ तीसरी निस्सही कहे पीने, निकेवल नाव पूजा करै । पिण द्रव्य पूजा न करै ॥ ॥ यह प्रथम निस्सही त्रिक कहा ॥॥ ॥
॥ ( दूसरा त्रिक ) ज्ञान त्रिककी आराधना करनेकों प्रजूके द विणावर्त्तसें तीन प्रदक्षिणादेवै ॥ ॥ (तीसरा त्रिक) मूल नायकजीके बिंबकों पंचांग मिलाके, तीन वेर नमस्कार करै ॥३॥( चौथा त्रिक ) प्र जूकी अंग १ । अग्र २ । नाव ३॥ त्रिविध प्रकार पूजा करै ।। ( अब निस्सही किये पीछे । कृत्य, अकृत्य (तथा ) पूजा विधि, संक्षिप्त लिखते हैं।
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मदरजानेंकी पूजन करनेकी विधि १९७ निस्सही किये पीने, मनोगुप्ती, बचन गुप्ती, काय गुप्ती, करके युक्त रहै। पां चो इंद्रियांको बशमें रक्खै । गमनां गमनमें उपयोगी रहै। गीतादिक अन्य का सुनके चित्तमें व्याकुलता न रक्खे। कुबनी देव कार्यको गेमके और कार्यकी विचारणा न करै । राज कथादि संपूर्ण विकथा गेम । जन्म (और) कर्मके, अनुगत बचन न बोले (अर्थात् ) कोईके माता पितादिक का किया थका, खोटा कार्यकों प्रगट न करै ( तथा ) कर्मानुगत बचन आंधेकों आंधा, गोलेकों गोला ( इत्यादि बचन ) नबोलै ॥ निस्सही किये पाने जिंन मंदरमें धर्म संयुक्त, आत्म हितकारी, प्रमाणोपेत बचन बो लना चाहिये ॥ (जिसनें) मन, बचन, कायाके खोटै व्यापारोंका निषेध अपनी आत्मासे कियाहे ( उसके नावसें ) निस्सही होय (और) जिसने दूषणका त्याग न कियाहे । उसके केवल शब्द नच्चारण मात्र , द्रव्य निस्सही होय ( इसवास्ते ) पूजायोग्य उत्तम वस्त्र पहरके, आठतहके नऊ ल वस्त्रसें मुखकोश बांधे। धूपादिकसें अंग अपना सुच करै । जावसें, दूशरी निस्सही कहते, मुलांनारैमें प्रवेश करै । जयणा संयुक्त पूजा करै । पूजा करते हुए, शरीरमें खाज न खुणे । खेल खंखार न करै। निकेवल नगवानकी स्तवनामें चित्त रख्खे । प्रथम सुगंधयुक्त जल पंचामृतसें स्नात्र करावै । सु कमाल अहा कोमल मुगंध युक्त वस्त्रसें लगवानका अंगलूहै । कपूर क स्तूरी मिश्रित सुध केशर चंदनका विलेपनकरै॥सुन्नवर्ण, सुनगंध युक्त, जी वादि रहित, निर्दोस। गुलाब, चंपा, चंपेली केवमा, जाई, जुई, मोगरादिक पुष्पसें पूजा करै । अष्टांग धूप अगरबत्ती खेवै ॥ मंगलदीप करै । अखंग नकाल अवतांसें प्रनूके सन्मुख अष्ट मंगलीक लिखै ॥ दर्पण १ । नद्रास ण २ । वर्धमान सरावसंपुट ३ । श्रीवत्स ४ । मयुग ५ । कलश ६ । स्वस्तिक ७ । नंद्यावर्त ८ । (ऐसा) अष्ट मंगलकी रचना करै । पंच वर्ण फूलोंसे अष्ट मंगलीक पूजै। सुंदर कुंकम मिश्रित चंदनसे हत्थोदेव । नत्तम नैवेद्य चढावै । अब्बा खाद्य फल चढावै । ( इत्यादि ) पूजाकीबिधि, आरती पर्यंत । राय प्रशेणी, ग्याताधर्म कथा, जीवानिगमादि, सिधांतोमें लिख्ये मुजब करै (पीजे) अंतरंग नक्तीसें प्रचुके सन्मुख नाटक करै ॥ (जैसें)
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रत्नसागर.. देवेंद्र, दानवेंद्र नारद, इनोंने (तथा) नुदाई राजाकी, राणी प्रनावतीने द्रोपदीने नाटक किया (और) रावण प्रमुख, कई जीवोंने अष्टापदादि ऊपर नाटक करके, तीर्थकर गोत्र नपार्जन किया (तैसें) प्रजूके सन्मुख शंकारहित होके । नत्तम पुरुष नाटक करे ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ 8 ॥
॥ ॥ (अब ) जल चंदन पुष्पादिकसें पूजा करै (सो) अंगपूजा ॥१॥ प्रचूके सन्मुख नैवेद्य प्रमुख चढावै (सो) अग्र पूजा ॥२॥ प्र नूके सन्मुख शकस्तवादि गीत गान नाटकादिक करै (सो) नाव पूजा ॥२॥ ( यह द्रव्य पूजाका विचार गर्जित चोथा त्रिक कहा ) ॥१॥ (अब पांचमा त्रिक)॥ ॥ तीन अवस्था विचारणी ॥ पिंमस्थ (१) प दस्थ (२) रूपातीत ॥३॥ इसमें पिमस्थ अवस्थाके तीन नेद ॥ जन्मा वस्था॥१॥ राज्यावस्था॥२॥श्रमणावस्था॥३॥ (और) केवल अ वस्थाको विचार करणा (सो) पदस्थ अवस्था ॥ निरंजनाकार (सो) सिघावस्था । तिसकुं रूपातीत अवस्था कहतेहै ॥ ॥ (अबउहात्रिक) तीन दिशा बगेमके प्रनूके सामने निजर रखै । नर्घ १॥अध २ ॥ तिर जी ३॥ दहणी । वांइ। पिगमी । निजर नही करै ॥ ॥ (अब सातमा त्रिक) तीन वेर धरती प्रमार्जकैं। उस ठिकाणे चैत्यवंदन करै ॥ ॥ (अब आठमा त्रिक)॥ ॥ वर्णादिक तीन संपदाका ॥ हरफशुधन चारण करै (सो ) वर्ण शुधि ॥ १ ॥ हरफोंके अर्थपर आलंबन रक्खै (सो) अर्थशुधि २ ॥ आलंबन एक जिन प्रतिमाका रक्खै ( सो ) मन सुधि ॥ ३॥ ॥ ( अब नवमात्रिक ) ॥ * ॥ तीन मुद्रा करनी ॥ जोग मुद्रा १॥ जिनमुद्रा २॥ मुक्ताशुक्ति मुद्रा ३॥ (इसमें ) जोग मुद्रा किसकुं कहते है ॥ पद्म कोशाकारै । दोनुं हाथ परस्पर अंगु ली मिलानी। एजोग मुद्रायें सक्रस्तव कहिये १॥ कानसग्ग मुद्रा (सो) जिन मुद्रा २॥ (और) दोसीपका जोमा तिस आकार हाथ रखना। (सो) मुक्ता शुक्तिमुद्रा ३॥ इस मुद्रासें प्रणिधान (जय वीयराय) इत्यादि करें (अब दशमात्रिक)॥ ॥ प्रणिधान तीन ॥ जिन बंदन प्रणिधान १॥ मुनि वंदन प्रणिधान २। प्रार्थना प्रणिधान ३॥इसमें (जो) जावंति चे
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मंदरजानेकी पूजन करने की विधि इयाइं (इत्यादि) इहसंतो तत्थ संताई (तक) जिन वंदन प्रणिधान १॥ जावंति केवि साहु ( इत्यादि)तिविहेण तिदंम विरियाणं (इहां तक)मु नि वंदन प्रणिधान २॥ जय बीयरायसें (लेके) आनवम खमा तक। प्रा र्थना रूप प्रणिधान ३॥ ॥ (ऐसें दशत्रिकका पहला द्वार कहा) ॥8॥ (अब पांच अनिगमन साचवणेका दूसरा द्वार कहतेहैं)॥ ॐ ॥ सचित्त द्रव्य कुशमादिक अपनेपास होय, उसकुं अलग रख देना १ ॥ (और) राज चिन्ह, मुगट, बत्र, खम्ग, चामर, पाका, अचित्त वस्तू गेमना । आ नूषण प्रमुख पहस्या रखना २। मन एकाग्र करना ३॥ एक पट्ट उत्तरासंग करना ४॥ जिन बिंब देखतेही (नमो नुवण वंधुणो) ऐसें नमस्कार करना ॥५॥ ॥ ए दूसरा पार कहा॥ ॥ (अब तीसरा द्वार दो दिशीका) पुरष दहणी दिशा वैग। नगवंतकों वांदे ॥ स्त्री, बांइ दिश बैठके नगवंत को बांदे ॥ ॥ (अब चौथा धार तीन अनिग्रह) ॥ * ॥ अनिग्रह देव बांदणांमें कहाहे ॥ (जघन्य ) नव हाथ दूर वैठके देव वांदे १॥ (मध्यम) नव हाथसें नपरांत बैठके देव वांदे २॥ (नत्कृष्ट ) ६० हाथ दूर वैठके देव वांदै ३॥ (अब पांचमा धार चैत्यवंदनका)॥ ॥ (सो) जघन्य १॥ मध्यम २॥ नत्कृष्ट ३॥ तीन भेद है (तिहां) णमो अरिहंताणं (इत्या दिक कहके) वा । एक दोय गाथाका नमस्कार कहके । शकस्तव कहना (ए जघन्य चैत्य वंदन १) जिस देव वंदनमें स्थापनार्हत स्तवदंझक । नमोत्थुणंसें (लेके) अरिहंत चेश्याणं (इत्यादिक संपूर्ण कही) एक स्तुति कहै (सो)॥ मध्यम चैत्यवंदन (तथा) कोई आचार्य कहै ॥ पांच दमक सहित । थूई गाथा (४) कहै (सो) मध्यम चैत्यवंदन कहिये॥(तथा) विधिपूर्वक शकस्तवादि पांच दमक । जय वीयराय पर्यंत । आठे थुई ए देव बांदै । (सो) नकृष्ट चैत्य वंदन कहियै ॥ ॥ (अब उहा प्रार पंचांग प्रणिपात करै । दो जानु । दो हाथ (और) मस्तक (ए) पांच अंग मिलायके जमीनमें लगावै ॥ ॥ (अब सातमा प्रार)॥ ॥ जव न्ये एक गाथासें लेकर नत्कृष्ट एक सो आठ श्लोक (तथा) काव्यसें प्रनू की स्तवना करै ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥
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रत्नसागर.
॥ ॥ अथ मोटी पंचतीर्थ प्रारती ॥ ॥
॥ * ॥ पहली रे आरती प्रथम जिणंदा । शत्रुंजय मंमण रुपन जि दा। जय जय आरती आदिजिणंदकी ॥ दूशरी भारती मरुदेवी नंदा । जुगला धरम निवार करंदा ॥ जय० ॥ १ ॥ तीशरी आरती त्रिभुवन मो हे । रत्न सिंघासन मारा प्रभुजीनें सोहे ॥ जय० ॥ चोथी प्रारति नित्य नवी पूजा | देव रूप देव प्रवर न दूजा ॥ जय० ॥ ॥ पांचमि प्रार ति प्रभुजीनें जावे । प्रभुजीना गुण सेवक इम गावे ॥ ज० ॥ ३ ॥ * ॥ आरती कीजें प्रभु शांति जिणंदकी । मृगलंबनकी में जानं बलिहारी । जय जय आरती शांति तुमारी । विश्वसेन अचिराजीको नंदा । शांति जिद मुख पूनमचंदा ॥ जय० ॥ ४ ॥ आरति कीजें प्रभु नेम जिणंद की । शंख लंबनकी में जानं बलिहारी ॥ ० ॥ समुद्रविजय शिवा देवीको नंदा । नेमि जिणंद मुख पूनमचंदा ॥ ० ॥ ५ ॥ रति कीजै प्रभु पाश जिणंदकी । फणिदलंबनकी में जानं बलि हारी ॥ अश्वसेन वामा देवीको नंदा । पाश जिणंद मुख पूनमचंदा ॥ प्र० ॥ ६ ॥ आरति कीजै महाबीर जिणंदकी | सिंह लंबनकी में जानं ब लिहारी ॥ ० ॥ शिवारथ त्रिशलाको नंदा | बीरजिणंद मुख पूनम चंदा ॥ ० ॥ ७ ॥ आरति कीजें प्रभु चोवीश जिणंदकी। चोवीश जिदिकी में जान बलिहारी । चरणकमल नित सेवत इंदा । चोवीश जि द मुख पूनम चंदा ॥ ० ॥ ८ ॥ कर जोगी सेवक इम बोले । नहि कोई माहरा प्रभुजीनें तोले ॥ ० ॥ ९ ॥ ॥ ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥
० ॥
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॥ श्रीः ॥
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* ॥ * ॥ वडो नवकार ॥ ॥
GD
॥ ॐ ॥ किंकप्पत्तरु रे प्रयाण चिंतन मणनिंतरि । किंचिंतामणि का मधेनु हौबहुपरि । चित्रावेली काजकिसे देतंतर जंथन । रयणरासि कारण किस सायरनलंघन । चवदह पूरबसार युगे लौ ए नवकार । सय 'काज महियलसरै उत्तरतरै संसार । केवलिनासिय रीतिजिके नवकार आरा है | जोगविसुक्ख अनंत अंत परमप्पयसा है । इणकारों सुररिधि पुत्त सुहविलसै बहुपरि । इणजाणें मुरलोक इंदपद पार्मेसुन्दरि । एहमंत्र सासतो जगे अचिंत चिंतामणिएह । समरण पापसवेटलै रिद्धिसिद्धि नि यगेह ॥ २ ॥ नियसिर ऊपर जांण मझचिंतवै कमलनर । कंचनमय उदलसहित तिहांमांहिंकनकवर । तिहांबैठा अरिहंतदेव पनमासण फिट कमणि । सेयवत्थ पहरेवि पढमपय चिंतन नियमणि । निवारिय चनगइग मण पामिय सासय सुक्ख । अरिहंताणई तुमलहो जिमप्रजरामर मुक्ख ॥ ३ ॥ पनरनेय तिहां सिद्ध बीयपद जे प्राराहै। रातैविद्रुमत वानि यसोहग साहइ । रातीधोवत पहिर जपइ सिहं पुबई दिसि । सयल लोय तिहां नरहोइ ततखिणसईबसि । मूलमंत्र वसीकरण अवरसहु जगधं ध । मणिमूली प्रोषधकरबुद्धिहीण जाचंथ ॥ ४ ॥ दक्षिणदिसपंखडी जपै णमो आयरियाणं । सोवनवाह सीससहित नवएसहनाणं । रिद्धि सिद्धि कारणें लाभ ऊपर जे ध्यावइ । पहिरवि पीलावत्थतेह मनवंबियपावइ । इ जानवनिधिहुवै रोगकदेनविहोइ । गजरथ हयवरपालखी । चामर
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रत्नसागर.
सिरजोइ ॥ ५ ॥ नीलवण नवजाय सीस पाढंता पछिम | राहि अंग धारं मणोरम । पविमदिश पंखडी कमल ऊपर सुहऊाणं । जोवो परमाणंद देवराय तासु विमाणं । गुरु लघु जे लक्खै विदुर तिहां नरबहुफल हो । जावविहणा जे जपै तिहां फलसिद्ध न कोइ ॥ ६ ॥ सर्वसाधु उत्तरविभाग सांमजा बइछा । जिस धर्मलोय पयासयत चारित गुणा | मकाएहिं जपै जे एकै काणै । पंचवण तिहां नाणका एण गुण एहपमाणें । अनंतचोवीसी जगहुईए । होसी अवर अनंत । आ दिकोई जाणें नही इण नवकारह मँत ॥ ७ ॥ एसो पंच नमोकारो । पद दिशिगनेहिं । सब पावप्पणासणी पदजप नेरेहिं । वायवदिस जाएह मं गलाणचसबेसिं । पढमंहव मंगलं ईसाणपएसिं । चिहुंदिस चिह्नं विदिसे मिलिय दल कमल वेइ । जो गुरु लघु जाणी जपै सो घणपापखवेड ॥ ८ ॥ इणप्रभावधरणिंदहुन पायाजहसामी । समली कुमर उप्पल जिल्ल सुरलोयहगामी । संबल कंवल बेबलध पहुता देवांकप्पे । सूलीदीधो चोर देव थयोनवकारह जप्पें । शिवकुमार मनवंचिकरि । जोगीलीयो मसांण । सोनापुरसो सीधलो । इणनवकार प्रमाण ॥ ९ ॥ कबैठो चोर एक आकासैगामी । हिफिट्टी हुई फूलमाल नवकारह नामी । वाबरुमा चारं बाल जलनदीप्रवाहै । वींध्यो कंटहि नयर मंत जपियो मनमां है । चिंत्या का सवे सरे । ईरति परति विमास । पालितसूरि तणी परे । विद्या विकास ॥ १० ॥ चोरधाड संकट टलै राजावसिहोवै । तित्थंकर सो होइ लाखगुणविधि जोवै । साइण माइण नूत प्रेत वेताल न पुहवड़ ।
धि व्याधि ग्रहणी पीड ते किमहि न होवइ । कुछ जलोदर रोग सबे नास एहमंत । मयणासुंदरितणीपरै नवपय जाण करत ॥ ११ ॥ एक जीह इनमंत्रणा गुण किता बखाणुं । नाणही बनमत्थएह गुण पारन जाएं । जिमसेजै तित्थरान महिमा नदयवंतौ । तिममंतह बुरि एह मंत्रराजा जैवंतौ । तित्थंकरगणहरपणिय चन्दै पूवसार । इणगुण अंत
कोलह गुणगुरुन नवकार ॥ १२ ॥ प्रडसंपय नवपय सहित इगसठ लघु प्रहर । गुरुमकर सत्तेव एहजाणो परमादर । गुरुजिणवतहसूरिन
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तिमय पहुत्त दोसावहार.
२०३ णे सिवसुक्खहकारण । नरय तिरियगइ रोग सोग बहुउक्त निवारण । जल थल पन्वय वन गहन समरण हुवे इकचित्त । पंचपरमेष्टि मंत्रहतणी सेवा देज्यो नित्त ॥१३॥ इति पंच परमेष्टि नमस्कारमहात्म्यसंपूर्णम् ॥
॥॥अथ तिजय पहुत्त स्तोत्र ॥॥ ॥ ॥ तिजय पहुत्त पयास । अह महा पाडिहेर जुत्ताणं । समय खित्त हिआणं । सरेमि चकं जिणिंदाणं ॥१॥ पणवीसा य असीया। पन रस पणास जिणवर समूहो । नासेन सयलरिअं । नविआणं जत्तिजुत्ता णं ॥२॥ वीसा पणयाला विश्र। तीसा पणहत्तरी जिणवरिंदा। गह जूत्र रक्ख साइणी । घोरुवसग्गं पणासेन ॥३॥ सत्तरि पणतीसावित्र। सही पंचे व जिणगणोएसो । वाहि जल जलण हरि करि । चोरारि महानयं हरन ॥ ४ ॥ पणपणाय दसेवन । पराठी तहयचेव चालीसा । रक्खंतु मे सरीरं देवा मुरपणमित्रा सिघा ॥ ५ ॥ न हरहुंहः सरसुंसः । हरहुंहः तहयचेव सरसुंसः। आलिहअ नामगन्नं । चकं किर सब नई ॥ ६ ॥न रोहिणि पणत्ति वऊश्रृंखला । तहय वजअंकुसिया । चकेसरि नरदत्ता । कालि महा कालि तहयगोरी ॥७॥ गंधारि महाजाला। माणवि वइरुट तहयअबुत्ता। माणसि महमाणसिआ। विङादेवीन रक्खंतु ॥ ८ ॥ पंचदस कम्मनूमिसु नप्पणं सत्तारं जिणाणसयं । विविहरयणाण वणो । वसोहिअं हरन पुरि आई ॥ ९ ॥ चनतीस अइसय जुआ । अह महापामिहेर कयसोहा । ति स्थयरा गयमोहा। काए अवा पयत्तेण ॥ १० ॥ न वरकणय संखविदुम । मरगय घणसंनिहं विगय मोहं । सत्तरिसयं जिणाणं । सवामरपूअं वंदे स्वाहा ॥ ११ ॥ नुवणवइ वाणमंतर । जोइसवासी विमाणवासीय। जे केवि उठदेवा। ते सवे नवसमंतु मे स्वाहा ॥ १२ ॥ चंदण कप्पूरेणं । फलहे लिहिकण खालिअंपीअं । एगंतर गहमुग्गय । साइणिनूअंपणासेइ ॥ १३॥ इय सत्तरिसय जंतं । सम्ममंतं वार पमिलिहिअं । पुरिभारि विजय तंतं । निम्नंतं निच्चमच्चेह ॥१४॥इति सप्तत्युत्तरशतजिनचक्र स्तोत्रं ॥
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रत्नसागर.
॥ॐ॥अथ दोसावहार स्तोत्र ॥॥... ॥8॥दोसावहारदक्खो। नालीयायर वियासिगोपसरो। रयणत्तयस्सज णन। पासजिलो जयन जयचक्खू ॥१॥ कयकुवलय पमिबोहो । हरिणं कियविग्गहो कलानिलन । विहियार विंद महणो । दियरात्रो जयन पास जिणो॥२॥ कंतीनिजिाणंतो। सिंदूरं पुहविनंदणो कूरो । जयजंतुअम यवको । मुमंगलो जयन पहुपासो ॥ ३ ॥ नप्पलदलनीलरुई । हरिमंगल संथुप्रो इलाणंदो। रयणीयरदारने मह । बृहोपसीयऊ पासजिणो ॥ ४ ॥ नाहियवाय वियहो। नायत्थोणायरायकयपून । सिरिपासनाहदेवो । देवाय रिन सुहंदिसन॥५॥रायावह समुऊल । तणुप्पह मंमलोमहानूई । असुरे हिंनमिजंतो। पासजिणिंदो कवीजयन ॥६॥ तिमिरासि समारूढो । संतो
उक्खावहोजयंमिथिरो । बहुल तमासरिससरी । जहचक्खुसुन जयनपासो ॥७॥ कवलीकयदोसायर। मायमरहं अहो तणुविमुकं । लोयानरणीनूयं । पासजिणं सत्तमंसरह ॥ ८॥ पुरिपाइं पासनाहो । सिहावमाली नहो न वणकेळ । दूरंतमरासीन । सत्तमगणहिन हरन ॥ ९॥ इय नवगह थुइग नं। जिणपहसूरीहिं गुंफिअं थवणं । नुहपास पढइ जोतं । असुहाविगहा नपीडति ॥१०॥ इति नवग्रहस्तुतिगर्जित श्रीपार्थजिनस्तोत्रम् ॥ ॥
॥ ॥ अथ जगद्गुरु ९ ग्रहस्तोत्र ॥॥ ॥॥ जगद्गुरु नमस्कृत्य । श्रुत्वा सदगुरुनाषितं । ग्रहशांति प्रवि ख्यामि । लोकानां सुखहेतवे ॥ १ ॥ जिनेंद्राः खेचराझेया । पूजनीया विधिक्रमात । पुष्पैविलेपनै धूपैः। नैवेद्यै स्तुष्टिहेतवे ॥२॥ पद्मप्रनस्यमार्त्तमः चंद्र चंद्रप्रनस्यच । वासुपूज्योचूमिपुत्रो । बुधोप्यष्टजिनेश्वराः ॥ ३ ॥ विमलानंतधर्माणां । शांति कुंथु नमि स्तथा । वर्धमानो जिनेंद्राणां । पादपद्मे बुधंन्यसेत् ॥ ४॥षनाजितसुपार्था । श्चानिनंदनशीतलौ । सुमतिःसंन वःस्वामी। श्रेयांसश्चबृहस्पतिः॥५॥ सुविधे कथितः शुक्रः । सुबतश्वश नैश्चरः। नेमिनाथोनवेद्वाहुः। केतुः श्रीमत्रिपार्श्वयोः ॥ ६ ॥ जन्मलग्नेचरा शौच । यदा पीमंति खेचराः । तदा संपूजयेनीमान् । खेवरैः सहितान जि नान् ॥७॥ पुष्पैगंधादिनिधूपै । नैवेद्यैः फलसंयुतैः । वर्णसदृस दानश्च
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जगजुरु० जिनपंजरस्तोत्र.
२०५ वासोनिर्दक्षिणान्वितैः॥८॥, आदित्यसोम मङ्गल । वुधगुरुशुक्र शनैश्च रोराहुः । केतुःप्रमुखाखेटा । जिनपतिपुरतोवतिष्टंतु ॥९॥ जिननांमकृतोचा रा। देशनववर्णके। स्तुताश्चपूजितालया। ग्रहाः संतुसुखावहा ॥ १० ॥ जिनानामग्रतः स्थित्वा । ग्रहाणांतुष्टिहेतवे । नमस्कारशतंजक्त्या । जपेदष्टो त्तरं नरं ॥ ११ ॥ नद्रबाहु स्वाचेदं । पंचमः श्रुतकेवली । विद्याप्रवादतः पूर्वादू । ग्रहशांतिर्विनिर्मितः॥१२॥ इति श्रीनवग्रहशांतिकारकजिनस्तोत्रं॥
॥ ॥ अथ धम्मो मंगल स्वाध्याय॥॥ ॥ॐ॥धम्मो मंगलमुकिटं । अहिंसा संजमो तवो। देवावि तं नमसंति । जस्स धम्मेसयामणो॥१॥ जहा सुम्मस्सपुप्फेसु । नमरो आविअइरस । नय पुप्फ किलामेइ । सोअपीणेइअप्पयं ॥२॥ एमेए समणावुत्ता। जेलोए संति साहुणो । विहंगमाव पुप्फेसु । दाणनत्तेसणेरया ॥ ३॥ वयंच वि तिलब्नामो । नवकोइनवहम्मइ । अहागडे सूरीयंते । पुप्फेसुन्नमरो जहा ॥४॥ महुकारसमाबुघा । जे जति अणिस्सिा । णाणापिमरयादता । तेणवुचंति साहुणोत्तिबेमि ॥५॥ उमपुफियानामायणंसम्मत्तं ॥ १ ॥
__॥ अथ जिनपंजरस्तोत्र ॥॥ ॥ ॥ नक्षी श्री अअिभ्योनमोनमः। अशी श्री सिद्धेभ्यो नमोनमः । ॐक्षी श्री अर्ज आचार्येभ्योनमोनमः । न झी श्री अनिपा ध्यायेभ्यो नमोनमः । नक्षी श्री श्री गौतमस्वामि प्रमुख सर्वसाधुभ्यो नमोनमः॥१॥ एषः पंचनमस्कारः। सर्वपापदयंकरः । मंगलानांचसर्वे षां। प्रथमं जवतिमंगलं ॥२॥नमीश्री जएविजए । अहंपरमात्मननमः । कमलप्रनसूरिंद्रो। नाषतेजिनपंजरं ॥ ३ ॥ एकनक्तोपवासेन । त्रिकालंयः पदिदं । मनोनिलषितंसर्व । फलंसलनतेध्रुवं ॥ ४॥ नूशज्या ब्रह्मचर्येण क्रोधलोनविवर्जितः । देवताग्रेपवित्रात्मा । षण्मासैलनतेफलं ॥ ५ ॥ अतिस्थापयेन्मुनि । सिद्धंचकुर्ललाटके । आचार्य श्रोत्रयोर्मध्ये । पा ध्यायंतुघ्राणके ॥६॥ साधुवृंदं मुखस्याये ॥ मनःशुविधायच। सूर्यचंद्र निरोधेन । सुधीःसर्वार्थसिद्धये ॥७॥ दक्षिणे मदनषी । वामपार्वे स्थितो
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२०६
रत्नसागर.
जिनः । अंगसंधिषु सर्वज्ञ । परमेष्टिशिवंकरः ॥ ८ ॥ पूर्वाशांश्रीजिनोर | दाग्नेयंविजितेंद्रियः । दक्षिणाशांपरंब्रह्म । नैरुतिंचत्रिकालवित् ॥ ९ ॥ प श्चिमाशां जगन्नाथो । वायवंपरमेश्वरः । उत्तरांतीर्थकृतसर्वा । मीशानींचान रंजनः ॥ १० ॥ पातालंभगवानई । नाकाशं पुरुषोत्तमः । रोहिणी प्रमुखा देव्यो । रकं सकलं कुलं ॥ ११ ॥ रुषोमस्तकंरके । दजितोपिविलोचने । संभवःकर्णयुगलं । नाशिकां चानिनंदनः ॥ १२ ॥ नष्टौ श्रीसुमती रक्षेत् । दंता पद्मनोविजुः । जिह्वां सुपार्श्वदेवोयं । ताल्लु चंद्रप्रनोविजुः ॥ १३ ॥ कंठं श्रीसुविधीत् । हृदयं श्रीसुशीतलः । श्रेयांसोवाहुयुगलं वासुपूज्यः करद्वयं ॥ १४ ॥ अंगुली र्विमलोर । दनंतोसौस्तनावपि । सुधर्मो प्युदरा स्थीनि । श्रीशांतिर्नानिमंगलं ॥ १५ ॥ श्रीकुंथुर्गुह्यकरदे। दरोरोमकटीतटं । मल्लिरुरूपृष्ठिवंशं । जंघेचमुनिसुव्रतः ॥ १६ ॥ पादांगुलीर्नमीरक्षेत् । श्रीने मिश्चरणद्रयं । श्रीपार्श्वनाथः सर्वांगं । वर्द्धमानचिदात्मकं ॥ १७ ॥ पृथिवी जलतेजस्क । वाय्वाकाशमयंजगत् । रक्दशेषपापेभ्यो । वीतरागोनिरंजनः ॥ १८ ॥ राजद्वारेश्मशानेवा । संग्रामेशत्रुसंकटे । व्याघ्रचौराग्निसर्पादि । नूतप्रेताश्रिते ॥ १६ ॥ कालमरणप्राप्ते | दारिद्र्यापत्समाश्रिते । अपु त्वेमहादोषे । मूर्खत्वेरोगपीमिते ॥ २० ॥ माकिनी शाकिनी ग्रस्ते । महा ग्रह गणार्दिते । नत्तारे ध्ववैषम्ये । व्यसनेचापदिस्मरेत् ॥ २१ ॥ प्रातरेव समुत्थाय । यः स्मरेज्जिनपंजरं । तस्य किंचिद्भयं नास्ति । लभ्यते सुखसंपदं ॥ २२ ॥ जिनपंजर नामेदं । यः स्मरत्यनुवासरं । कमलप्रत्नराजेंद्रः । श्रि सजनतेनरः ॥ २३ ॥ प्रातः समुत्थायपठेतकृतो । यस्तोत्रमेतनिपंज राख्यं । प्रसादयेत्सः कमलप्रनाख्यं । लक्ष्मीं मनोवांबितपूरणाय ॥ २४ ॥ श्रीरुद्रपल्लीवरेण्य | देवप्रजाचार्य्यपदाब्जहंसः । बादींद्रचूकामणिरेषजे नो । जीयाहरुः श्रीकमलप्रनाख्यः ॥ २५ ॥ *॥
॥ ॥ इति श्रीजिनपंजरस्तोत्रसंपूर्णम् ॥ ॥
॥ * ॥ ॥ * ॥
॥ * ॥ ॥ ॐ ॥
॥ * ॥ इस महाप्रजावीक जिनपंजरस्तोत्रकों सुधगुरू के पास सीखके प्रजातसमें सदगुणें तो कोई शरीर में उपद्रव न होय ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
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जिनसहश्रनाम.
२०७ ॥ ॥ अथ लघु जिनसहस्रनामः ॥ ॥ ॥ ॥ नमत्रिलोकनाथाय । सर्वज्ञाय महात्मने । वो तस्यैव नामा नि। मोक्ष्यसौख्यानिलाषया ॥ १॥ निर्मलः शाश्वतो शुचः । निर्विकल्यो निरामयः। निःशरीरो निरातको । सिधः सूक्ष्मो निरंजनः॥२॥ निष्कलं को निरालंबो। निर्मोहो निर्मलोत्तमः । निर्नयो निरहंकारो। निर्विकारो थनिषक्रियः ॥३॥ निर्दोषो निरुजःशांतः। निर्नेद्यो निर्ममःशिवः । निस्त रंगो निराकारो। निष्कर्मोनिष्कलपनुः॥ ४॥ निर्वादो निरुपझानः। नि रागो निरघोजिनः। निःशब्दःप्रतिमश्लेष्टः । नत्कृष्टो झानगोचरः॥ ५॥ निःसंगात् प्राप्तकैवल्यो। नैष्टकः शब्दवर्जितः । अनिंद्यो महापूतात्मा। जग शिखर शेखरः॥६॥ निःशब्दो गुणसंपन्न । पापताप प्रणाशनः । सोपि योगात् शुनंप्राप्तः। कर्मद्योतिबलावहः॥७ ॥ अजरो अमरः सिधः। अ र्चित अदयो विनुः । अमूर्तः अच्युतोब्रह्म । विष्णुरीश प्रजापति॥ ८॥ अनिंद्यो विश्वनाथश्च । अजो अनुपमोनवः । अप्रमेयो जगन्नाथ । बोधरूपो जिनात्मकः॥९॥ अव्ययः सकलाराध्यो। निष्पन्नो ज्ञानलोचनः । अछे यो निर्मलो नित्यः । सर्वसत्यविवर्जितः ॥ १० ॥ अजेयः सर्वतोनद्रः। निष्कषायो नवांतकः । विश्वनाथः स्वयंवुचः वीतरागोजिनेश्वरः ॥ ११॥ अंतको सहजानंदः । अवाङ्मानसगोचरः । असाध्यःशुधश्चैतन्यः। कर्म नो कर्मवर्जितः॥१२॥ अनंतो विमल झानी। स्पृहीश्च निष्प्रकाशकः । कर्मा जितो महात्मानः । लोकत्रयशिरोमणिः॥१३॥ अब्याबाधो वरःशंनुः । विश्ववेदी पितामहः। सर्वनृतहितोदेव । सर्वलोकसरण्यकः॥ १४ ॥ श्रा नंदरूपचैतन्यो । नगवां स्त्रिजगजुरुः । अनंतानंतधीशक्तिः । सत्यव्यक्तव्य यात्मकः ॥१५॥ अष्टकर्मविनिर्मुक्तः । सप्तधातुविवर्जित। गौरवादित्रया दूरः । सर्वज्ञानादिसंयुतः ॥१६॥ अन्नयः प्राप्तकैवल्यः । निर्माणो निरपे दकः। निष्कलं केवलज्ञानी। मुक्तिसौख्यप्रदायकः ॥ १७ ॥ अनामयो महाराध्यो । वरदो ज्ञानपावकः । सर्वेशःसतमुखावासः। जिनेंद्रोमुनिसंस्तुतः ॥१८॥अन्यूनपरमझानी। विश्वतत्वप्रकाशकः । प्रबुछो जगवान्नाथः । प्र स्तुतः पुण्यकारकः ॥१९॥शंकरः सुगतो रौद्रः। सर्वज्ञो मदनांतकः। ईश्व
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२०८
रत्नसागर. रो जुवनाधीशः । सचित्तः पुरुषोत्तमः ॥ २०॥ सदोजातमहात्मानं । विमुक्तो मुक्तिवक्षनः। योगींद्रो नादिसंसिधः । निरीहो झानगोचरः ॥ २१ ॥ सदा शिवां चतुर्वक्रः। सत्सौख्य त्रिपुरांतकः । त्रिनेत्रः त्रिजगत्पूज्यः । कल्याणको ष्टमूर्तिकः॥२२॥ सर्वसाधुजनैवैद्यः। सर्वपापविवर्जित । सर्वदेवाधिकोदेवोः। सर्वनृत हितंकरः॥ २३ ॥ स्वयंविद्यो महात्मानं । प्रसिधःपापनाशनः । तनुमात्रश्चिदानंदः । चैतन्यश्चैत्यवैनवः ॥२४॥ सकलातिशयोदेव । मु क्तिस्थोमहतांमहः । मुक्तिकार्यायसंतुष्टो। निरागः परमेश्वरः ॥ २५ ॥ महा देवो महावीरो । महामोहविनाशकः । महानावो महादर्शः । महामुक्तिमा दायकः ॥ २६ ॥ महाज्ञानी महायोगी । महातपो महात्मकः । महर्षि को महावीर्यो । महांतिकपदस्थितः ॥२७॥ महापूज्यो महावंद्यो । महा विघ्नविनाशकः । महासौख्यो महापुंसो । महामहिमअच्युतः ॥ २८ ॥ मुक्ता मुक्तिजसंबोधः एकानेकविनिश्चलः । सर्वबंधविनिर्मुक्तो । सर्वलोकप्रधानकः ॥२९॥ महाशूरो महाधीरो। महापुःखविनाशकः । महामुक्तिप्रदोधीरो। म हाहयो महागुरुः ॥३०॥निर्मारोमारविध्वंसी। निष्कामोविषयाच्च्युतः।न गवंतो महाशांतो । शांतिकल्याणकारकः ॥३१॥ परमात्मा परंज्योतिः । परमेष्टी परमेश्वरः। परमात्मापरानंदोः । परंपरम आत्मकः ॥३२॥ प्रस्तुता नंतविज्ञानी । सख्यानिर्वाणसंयुतः । नाकृतिं नाक्रोवर्णी। व्योमरूपो जिता त्मकः ॥३३॥ व्यक्ताव्यक्तजसंबोधः । संसारखेदकारणः । निरवंद्योमहा राध्यः । कर्मजिधर्मनायकः ॥३४॥ बोधसत्सु जगद्वंद्यो । विश्वात्मा नर कांतकः । स्वयंचू पापहत्पूज्यः। पुनीतोविनवःस्तुतः ॥ ३५॥ वर्णातीतो म हातीतो। रूपातीतो निरंजनः । अनंतझानसंपूर्णो । देव देवेशनायकः॥३६॥ वरेण्योनवविध्वंसी। योगिनांझानगोचरः। जन्ममृत्युजरातीतः । सर्वविघ्नहरो हरः॥३७॥ विश्वदृक्नब्यसंवंद्यः। पवित्रोगुणसागरः । प्रसन्नः परमा राध्यः लोकालोकप्रकाशकः ॥ ३८ ॥ रत्नगर्नो जगतस्वामी । इंद्रवंद्यःसुरर्चितः । निष्प्रपंचोनिरातंको । निःशेष क्लेशनाशकः ॥ ३९॥ लोकेशो लोकसंसेव्यो लोकालोक विलोकनः । लोकोत्तमो निलोकेशो । लोकाय शिखरस्थितः
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बुटकर महामनावीकस्तोत्र.
२०९ ॥४०॥ नामाष्टकसहस्राणि । ये पठन्ति पुनः पुनः । ते निर्वाणपदंयांति । मुच्यतेनात्र संशयः ॥४१॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥3॥ ॥ ॥ इति नद्रबाहुस्वामिना विरचितं लघुसहस्रनाम संपूर्णम् ॥ * ॥
॥ ॥ अथ जुटकर महाप्रनावीकस्तोत्र ॥ ॥ ॥ सकलमङ्गल केलिनिवेशनं । सहृदयं हृदयं गमदेशनं । अनि नतोत्तम भक्तिसुरेश्वरं । नमत शीतलनाथ जिनेश्वरं ॥१॥ सहजसुन्दर सण मंन्दिरं। विमल केवलबोध विकस्वरं । अतिसुवर्णसुवर्ण समद्युतं । प्रवरबंधुरल
संयुतं ॥२॥(युग्मं ) यदीयनक्ति विनां नवे नवे । नवेदनीष्टार्थनिदा नमजुतं । सएव नन्दात्म समुद्भवो जिनः। समर्चनीयः खलुशीतलः अनुः॥३॥ कर्मानितप्तान् नविनः सुशीतलान् । कुर्वन्मुदावाक सुधया दयापरः । सदेव देवो भवतात्सदैव मे । सदिष्ट सिध्यै जिनराजशीतलः॥४॥ अधिगतशि वशर्मा वीतमोहादिकर्मा । दृढरथ तनुजन्मा सर्वतः साधधर्मा । त्रिदशमहित मूर्तिः स्फूर्तिमत्पुण्यकीर्तिः। जयतु गतनवार्त्तिः शीतलः सौम्यमूर्तिः॥५॥ ॥ ॥ इति श्रीशीतलजिनःस्तोत्रम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ - ॥ ॥ विशदगुण विचित्रं सच्चरित्रं दधानो।दलित पुरितराशि विश्वविश्वा वदातः। प्रकट महिमरम्यो ऽर्मतीनामगम्यो । जयतु जिनपतिः श्रीपार्थचिं तामणीशः॥१॥कमठ कुमतिवली मूल मुन्मूलयन्ती । पदमकृतपदाब्जे यस्य तृङ्गीवपद्मा । अविकृतमति कायोत्सर्गमुद्रान्वितोसौ । जगतिबहुमतोस्मान् पातुवामांगजन्मा ॥२॥ अविचलमणिविभ्रत सत्फणानां सहस्रं । बहुलविम लनास्व नूषणोनासिगात्रः । गुरुतर वरनक्त्या सक्तचित्ताङ्गनाजां। जवतु शिवसमृध्यै चाश्वसेनिर्जिनेंद्रः ॥३॥ कुपितकरिमृगेश व्याजदावानलाब्धि प्रहरणगदगुप्त्यातंकशंकापहर्ता । विकसितमुखपद्मः सत्पुरेसूरताख्ये । जयतु जुजगलमीभ्राजमानोजिनेंद्रः॥४॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति पार्श्वजिनस्तोत्रम् ॥ ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥
॥ ॥ यस्य शानदयासिन्धो । दर्शनंश्रेयसे ध्रुवं । सश्रीमानपार्श्वतीर्थेशो निषेव्यः सततं सतां॥॥वामासूनार्यशः पुंजै । रगाधस्यानघागुणाः । स्मर्यते येन सस्मार्यो । भवेत् प्राचीन बर्हिषां ॥ २॥ विहाय विषयासक्तान् ।
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२१०
रनसागर. संसारिक सुरासुरान् । सेव्यता मदयोधीराः । पार्थ देवो पर प्रनुः॥ ३॥ जिनाः सर्वार्थदानेन । येन कल्पद्रुमाअपि । नवेदभ्यर्चितो लोके । सश्रियेचामृतायच ॥ ४ ॥ संस्तुतो मधुरश्लोकैः । जैनलानप्रदायकः । कल्याणकारको नूयात् । श्रीमान्शंखेश्वरःप्रनुः ॥५॥ ॥ ॥॥ ॥ ॥ इति श्रीसमस्यामयीशंखेश्वरपार्श्वजिनस्तुतिः॥ ॥ ॥१॥ - ॥ ॥ लक्ष्मीनिदानं गुरुकर्मदानं । सर्मदानं जगतेददानं । यदेशपा वी शितपादपाय । नुवामिपाइँनवनेदपाय ॥ १ ॥ स्मेरातसीसूनसमप्र जावा । समप्रनावा नवदीयमूर्तिः। विनाति वामांप्रनव त्रिलोके । जवत्रि लोकेन समर्चनीय ॥२॥ तवेशपत्यं कजमादरेण । हृद्यादधाना जनताद रेण । मुक्तानवेदेकपदे पराया। निर्वेशवनसौख्यपरंपरायाः॥३॥ निःशेषनू वर्षितदानवारी।र्यन्मानसे त्वं प्रियसे सदैव।सएव गव्युत्तम दानवारी। प्रोचारि तोदामयशाःसदैवः॥४॥देवाधि देवाधिहर स्त्वमेव॥सुझान मुझाननि बुधरू यः। सारांग सारांग वितीर्णनूयः। कल्याण कल्याणकृदंगनाजां॥५॥ यैरय॑से त्वं वरवैद्यराज । मनोनिरामैः सुमनोनिरामै । कर्मानिधैरुशितनूघनास्ते । विसारिलोकेश विसारि लोके ॥६॥इत्थं ते जिनपुंगवस्य नगवन् प्रोदाम धामान्वितं । पादाब्जं परनागनृतात्रनुवन स्तुत्यंस्तुवन्तोनिशं । ददं कर्मविप व पददलने नव्या नवंतु दमाः। कल्याणाश्रय मुक्तिमाप्नुमखिलं ती| जवांनोनिधिं ॥७॥इति विविधयमकयुक्तश्रीपार्श्वजिनस्तुतिः॥॥
॥ ॥शालिनीछन्दः ॥॥गौमीग्रामे स्तंनने चारुतीर्थे । जीराव ख्यां पत्तने लोद्रवाख्ये । वाणारस्यांचापि विख्यातकीर्तिश्रीपार्श्वेशं नौमि शंखे श्वरस्थं ॥१॥ इष्टार्थानां स्पर्शने पारिजातं । वामादेव्यानन्दनं देववंद्यं । स्वर्गेनूमौ नागलोके प्रसिधं ॥श्रीपा० ॥२॥नित्वानेद्यं कर्मजालं विशालं । प्राप्यानन्तं झानरत्नंचिरत्नं । लब्धामंदानंद निर्वाणसौख्यं ॥३॥श्रीपा०॥ विश्वाधीशविश्वलोके पवित्रं । पापागम्यं मोहलक्ष्मीकलत्रं । अंगोजादं सर्व दा सुप्रसन्नं । श्रीपा० ॥ ४ ॥वर्षेरम्येखंगदो गचंद्र । संख्येमासे माधवे कृष्णपदो । प्राप्तं पुण्यै दर्शनं यस्य तंच ॥श्रीपा० ॥५॥ ॥ ॥ ॥ इतिशंखेश्वरजिनस्तवः ॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥
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बुटकर महाप्रजावीकस्तोत्र
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॥ ॐ ॥ विशदसद्गुण राजि विराजितं । घनघना घननाद विभाजितं । नजत नक्तिरेण रमेश्वरं । जगति पार्श्वजिनेश मनेश्वरं ॥ १ ॥ विविधवर्ण विभूषितविग्रहाः । विहितदुर्द्दमदपकनिग्रहाः । वसुयुगार्कमिताः सुकृताकराः। जिनवराः प्रभवंतु शिवंकरा ॥ ३ ॥ रुचिरवर्ण निवधमनिन्दितं । सुमनसां प्रकरैरभिवंदितं । निखिलसाधुजनाः खलुनिर्मिदं । जिनमतं नमतां चितश मदं ॥ ३ ॥ सकलव्य सरोजविकाशिका | कुमतिसंत मसोच्चयनाशिका । जिनवरानन पद्मगतोन्मुदा । भवतु वाग्जिनलान शुभार्थदा ॥ ४ ॥ ॥ * ॥ इति पार्श्वजिनस्तोत्रम् ॥ ॥
॥ *॥
॥ ॐ ॥
॥ ॥ श्रीमत्पार्श्व जिनेश्वरस्यविलसद् ज्ञानामृतांनोनिधेः । सद्भावेन परस्वरूपविरते मुक्तयास्पदेतस्थुषः । सद्भूतप्रतिबिंवतस्तु सुतरां गौमीपुरोगा सिनः । सोल्लासं प्रणिपत्य सत्य मनसा तत्रैव नित्यं स्मरे ॥ १ ॥ यत्पादां बुज दर्शनोत्सुकधियो नव्या ब्रजंतोध्वनि । स्पृश्यंन्ते नहि पुष्टजंतुनिवहैर्वन्यै नवा तस्करैः । नैवोज्वालदवानलै र्जलचराकी र्जिनैर्जातुनो। सःश्रीपार्श्वविनु र्व्यचिन्त्यमहिमा दृश्योनकेषांजवेत् ॥ २ ॥ हित्वान्तः करणादृतं कुटिलतां मोहादिनोद्भावितां । धृत्वा निर्म लजावनांच विधिना यद्भक्तिमातन्विता।जभ्य ते नरराज निर्जर वर श्रेणी सुखानिक्रमा । न्मुक्तिश्री रपि सैवसुधमनसा संसे व्यतांविश्वपाः ॥ ३ ॥ ॥ इति श्रीगोडीपार्श्वजिनस्तोत्रं ॥ * ॥
॥ * ॥ श्राद्यः श्रीरुषन स्ततोजितजिनः श्रीसंनवस्तीर्थकृत् । सुश्रीमान भिनंदनश्च सुमतिः श्रीसद्मपद्मनः । पृथ्वीकुक्षिनव सुपार्श्वजिनपस्तीर्थेशचं द्रप्रनः । सर्व्वज्ञः सुविधिर्जिनो मुनिमतः श्रीशीतलः सौम्यदृक् ॥ १ ॥ श्रेयांस प्रनुवासुपूज्य विमला नंतेश धर्मेश्वराः । शांतिः कुंथु रर स्ततो जितरिपु मल्ल जिनः सुतः । तौ नमिनेमिशुमुनिपौ विश्वत्रयेविश्रुतौ । श्रीमत्पार्श्वजिनः
सिमहिमा श्रीवर्धमानः प्रजुः ॥ २ ॥ एते श्रीजिनपुङ्गवाः परमचिद्रूपाश्च तुर्विंशति । निश्शेषोत्तम व्यजंतुहृदयां भौजप्रबोधोद्यतः । वंद्यन्ते सुरवृन्दवं द्यविशदश्लोक जानिर्भय । श्रीसंपत्तिनिवास विक्रमपुरेसद्भक्तितः प्रत्यहं ॥३॥ ॥ * ॥ इति चतुर्विंशति जिनस्तवनम् ॥ * ॥ ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
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रत्नसागर. ॥ अथ मंगलाष्टकं लिख्यते ॥॥ ॥8॥श्रीमन्नम्र सुरासुरेन्द्रमुकुट प्रद्योतिरत्नप्रना। भास्वत्पादनखेन्दव प्रवचनां जोधौ व्यवस्थायिनः। ये सर्वे जिनसिधसूरिमुगतास्ते पाठकासाधवः स्तुत्या योगिजनैश्च पंचगुरवः कुर्वतु मे मङ्गलं ॥१॥ सम्यग्दर्शनबोधवृत्तमम लं रत्नत्रयं पावनं । मुक्तिश्रीनगरायनं जिनपतेःस्वर्गापवर्गप्रदः । धर्मःसु क्तिसुधाश्च चैत्यमखिलं जैनालयं श्यालयं प्रोक्तंततत्रिविधं चतुर्विध ममीकुवै तुमे मङ्गलं ॥२॥नानेयादिजिनाधिपा स्त्रिनुवने ख्याताश्चतुर्विंशतिः। श्री मन्तो जरतेश्वरप्रनृतयो येचक्रिणो प्रादश । ये विष्णु प्रतिविष्णु लागलधराः सप्ताधिकाविंशती । त्रैलोक्ये नयदा त्रिषष्टिपुरुषाः कुर्वतु मे मङ्गलं ॥३॥ कैलाशे वृषनस्य निर्वृतिमही वीरस्य पावापुरी। चंपांयां वसुपूज्य सझिानपतेः। सम्मेदशैलेर्हतां । शेषाणामपि चोर्जयन्तशिखरे नेमीश्वरस्याहतो । निर्वाणा विनयः प्रसिधविनवाः कुर्वतु मेमङ्गलं ॥४॥ ज्योति यंतर नावनामरगृहे मेरौकुलाद्रौस्थिता । जंबू शाल्मलि चैत्यशाखिषु तथा वहार रूप्पादिषु । इक्ष्वाकारगिरौच कुंमलनगेनीपेच नंदीश्वरे। शैलेयेमनुजोत्तरे जिनगृहाः कुर्व तु मे मङ्गलं ॥५॥ यो गर्नावतरोपिजयत्यर्हतां जन्मानिषकोत्सवे । योजातः परिनिक्रमे वचनवोय केवलज्ञाननाक । यः कैवल्यपुरप्रवेश महिमासंजावितः स्वर्गिनिः कल्याणानिच तानिपंचसततं कुर्वतुमे मंगलं ॥६॥येपंचौषधिश्चयः श्रुततपो शचिंगता पंचये । येचाष्टांगमहानिमित्तकुशला येष्टौविधाचारणा । पंचज्ञानधराश्च येपिबलिनो ये बुधि घीश्वरा । सप्तैते सकलाश्च ते गण नृताः कुर्वतुमे मङ्गलं ॥७॥ देव्याश्चाष्ट जयादिका निगुणिता विद्या दिका देवता ॥ श्रीतीर्थकर मातृकाश्च जनका यहाश्च यदीश्वराः । प्रात्रिंश तत्रिदशा ग्रहा निधिमुरा दिकन्यकाश्चाष्टधा । दिक्पाला दश इत्यमीमुरगणाः कुर्वतु मे मङ्गलं ॥८॥ इत्थं श्रीजिनमङ्गलाष्टकमिदं कल्याण कालेहतां । पूर्वाएहेपि महोत्सवेपि सततं श्रीसौख्यसंपत्करं । ये शृएवंति पगंति तैश्च मनुज धर्मार्थकामान्विता। लक्ष्मीराश्रयतेविपायरहिताः कुर्वतु मे मङ्गलं ॥९॥ ॥ इति श्रीमङ्गलाष्टकं संपूर्णम् ॥
॥ ॥
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मंगलाष्टक (वा) परमात्मा स्तोत्र.
॥ ॥ अथ परमात्मास्तोत्रः ॥ ॥
॥ शिवं शुद्ध बुद्धं परं विश्वनाथं । नदेवं नबंधु र्नकर्म नकर्त्ता । नगं न संग नवा नकामं । चिदानन्दरूपं नमोवीतरागं ॥ १ ॥ नबंधो नमोक्को नरा गादिलोकं । नजोगं नजोगं नव्याधि नशोकं । नक्रोधं नमानं नमाया नलोनं ( चि० ) ॥ २ ॥ नहस्तौ नपादौ नत्राणं नजिह्वा । नचतु र्नकरी नवक्त्रं ननि द्रा । नस्वाद नखे नव नमुद्रा | ( चि० ) || ३ || नजन्मं नमृत्यु नमोद नचिंता । नक्कलद नभीतं नकृष्यं नतुंदा । नस्वामी ननृत्यं नदेवो नमर्त्या । चि० ॥ त्रिदं त्रिखने हरे विश्वव्यापं । ऋषीकेश विद्वंशकम्मरिजालं । नपु एयं नपापं नप्रक्ष्या नप्राणं ( चि० ) ॥ ५ ॥ नवाल्यं नवृद्धं नविद्वि न्नमूढा । di नद्यं नमूर्त्ति मीहा । नकृष्णणं नशुक्कं नमोह नतंद्रा । ( चि० ) ॥६॥ नत्राद्यं नमध्यं नत्यं नमन्या । नद्रव्यं नत्रं नदृष्टो नजव्या । नगुर्वो न शिष्यो नाद्यो नदीनं ॥ ( चि० ) ॥ ७॥ इदंज्ञानरूपं स्वयंतत्ववेदी । नपूर्ण नशून्यं सचैतन्यरूपं । अन्योनिभितां नपरमार्थमेकं । ( चि० ) ॥ ८ ॥ आत्मा रामगुणाकरं गुणनिधि चैतन्यरत्नाकरं । सर्वे जूतगतागते सुखदुख जातात्वया सर्वगं । त्रैलोक्याधिपति स्वयंस्वमनसाध्यायंति योगेश्वराः । वंदे तंहरिवंश हर्षहृदयं श्रीमान नूदर्च्छतः ॥ ९ ॥ ॥ इति श्रीपरमात्मास्तोत्रं ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ नमस्कारस्तोत्र ॥ ॥
॥ ॐ ॥ दर्शनं देवदेवस्य । दर्शनं पापनासनं । दर्शनं स्वर्गसोपानं । दर्श नं मोक्षसाधनं ॥ १ ॥ दर्शनेन जिनेंद्राणां । साधूनां वंदनेनच । नतिष्टति चिरं पापं । चिद्रहस्ते यथोदकं ॥ २ ॥ दर्शनं जिनसूर्यस्य । संसारध्वांतना शनं । बोधनंचित्तपद्मस्य । समस्तार्थप्रकाशकं || ३ || दर्शनं जिनचंद्रस्य । मृतवर्षणं । जन्मदाघविनासाय । बृंहणंसुखवारिधेः ॥ ४ ॥ जिनेनक्ति जिनेनक्ति । जिनेनक्ति दिनेदिने । सदामेस्तु सदामेस्तु । सदामेस्तु जवे जवे ॥ ५ ॥ नहित्राता नहित्राता । नहित्राता जगत्रये । वीतरागसमोदेवो । न जूतो न जविस्यति ॥ ६ ॥ अन्यथाशरणं नास्ति । त्वमेवशरणं मम । तस्मात् सर्वप्रयत्नेन । ररक्ष जिनेश्वर ॥ ७ ॥ वीतरागं मुखंदृष्ट्वा । पद्मरागस मनं । नैकजन्म कृतं पापं । दर्शनेन विनश्यति ॥ ८ ॥ तो मंगलं नित्यं
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रत्नसागर. सिघाजगतिमंगलं । मंगलंसाधवोमुख्यं । धर्मःसर्वत्रमंगलं ॥ ९॥ लोको त्तमाइहार्हतः सिघालोकोत्तमाः सदा । लोकोत्तमोयतीशानां। धर्मोलोको त्तमोर्हतां ॥१०॥ शरणं सर्वदाहंतः । सिघाशरणमंगलां । साधवः शरणं लोके। धर्मशरणमर्हतां ॥११॥ इति श्रीनमस्कारस्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॥
॥ॐ॥अथ ऋषिमंगल स्तोत्र ॥॥ ॥ॐ॥ आद्यंतादारसंलद । महावाप्ययस्थितं । अग्निज्वाला समंना द। बिंउरेखा समन्वितं ॥ १॥ अग्निज्वालासमाक्रांतं । मनोमलविशोधकं देदीप्पमानं हृत्पद्मे । तत्पदं नौमि निर्मलं ॥२॥ अति मित्यरंब्रह्म । वाच कंपरमेष्टिनः सिधचक्रस्य समीजं । सर्वतः प्रणिदध्महे ॥ ३ ॥ ॐ नमो हद्भ्य ईशेभ्यः। न सिधेभ्योनमोनमः । ॐनमः सर्बसूरिभ्यः। नपाध्यायेभ्यः ॐ नमः ॥४॥ नमः सर्बसाधुभ्यः । न झानेभ्योनमोनमः । न नम स्तत्त्वदृष्टिभ्य । श्चारित्रेभ्यस्तु ॐ नमः ॥५॥ श्रेयसेस्तु श्रियेस्त्येत । द हदाद्यष्टकंशुग्नं । स्थानेष्वष्टसुविन्यस्तं । पृथग्बीजसमन्वितं ॥६॥ आद्यं पदंशिखांरो । त्परंरदेोत्तुमस्तकं । तृतीयं रोनेत्रेने। तुर्यरोवनासिकां॥७॥ पंचमंतु मुखरंदेत् । षष्टंरकेवघंटिकां । नाभ्यंतंसप्तमंरके । द्रोत्पादांतमष्टमं ॥८॥ पूर्वप्रणवतः सांत । सरेफोम्यब्धिपंचषान् । सप्ताष्टदशसूर्याकान् । श्रितोविंऽस्वरान्पृथक् ॥९॥ पूज्यनामाकरापाद्याः । पंचातोशानदर्शन। श्चारित्रेभ्यो नमो मध्ये। झीं सांतह समलंकृतः॥१०॥ ॥ ॐ जाँ। ही। हुँ।। । । सौं। ज्ञः। असिानसा ज्ञानदर्शनचारित्रेभ्यो नमः। ॥ जंबूवृदधरोमीपः । दारोदधिसमादृतः । अहंदाद्यष्टकरष्ट । काष्टाधिष्टैरलंकृतः॥ ११ ॥ तन्मध्य संगतोमेरुः । कूटनदैरलंकृतः । नच्चै रुच्चस्तरस्तार । स्तारामंमलमंमितः ॥ १२॥ तस्योपरिसकारांत । वीजम ध्यास्यसर्वगं । नमामि बिंबमाहत्यं । ललाटस्थं निरंजनं ॥१३॥ अवयं निर्मलंशांतं । बहुलं जामयतोशितं । निरीहं निरहंकारं । सारं सारतरंघ नं ॥ १४ ॥ अनुचतं शुग्नं स्फीतं । सात्त्विकं राजसंमतं। तामसं चिर संबुद्धं । तैजसंशर्वरीसमं ॥ १५ ॥ साकारंच निराकारं । सरसं विरसंपरं परापरं परातीतं । परंपर परापरं ॥ १६ ॥ एकवर्ण द्विवर्णच । त्रिवर्ण
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Pon
कृषिमंगल स्तोत्र.
२१५ तुर्यवर्णकं । पंचवर्ण महावर्ण । सपरंच परापरं ॥१७ ॥ सकलं निष्कलं तुष्टं । निर्वृतं भ्रांतिवर्जितं। निरंजनं निराकारं । निर्लेपं वीतसंश्रयं ॥१८॥ ईश्वरं ब्रह्मसंबुद्धं । बुद्ध सिहं मतंगुरु। ज्योतीरूपं महादेवं । लोकालोक प्रकाशकं ॥ १९ ॥ अर्हदाख्यस्तु वर्णीतः सरेफोविंऽमंमितः । तुर्यस्वरस मायुक्तो । बहुधानादमालितः ॥२०॥ अस्मिन्वीजे स्थिताः सर्वे । वृष जाद्याजिनोत्तमाः । वर्णेनिजैनिजैर्युक्ता । ध्यातव्या स्तत्रसंगताः॥२१॥ नादश्चंद्रसमाकारो । विपुर्नीलसमप्रनः। कलारुणसमासांतः। स्वर्णानः सर्व तोमुखः॥ २२ ॥ शिर संलीन ईकारो। विनीलावर्णतः स्मृतः। वर्णानुसारसं लीनं । तीर्थकृन्ममलंस्तुमः ॥२३॥ चंद्रप्रन पुष्पदंतौ। नादस्थितिसमा श्रितो । विमध्यगतौनेमि । सुब्रतो जिनसत्तमौ ॥२४॥ पद्मप्रनुवासुपूज्यौ । कलापदमधिष्टितौ । शिरईस्थितिसंलीनौ । पार्श्वमलीजिनेश्वरौ ॥२५॥ शेषास्तीर्थकृतःसर्वे । हरस्थाने नियोजिताः । मायावीजादप्राप्ता । श्चतुर्विं शतिरहतां ॥ २६ ॥ गतरागद्वेषमोहाः । सर्वपापविवर्जिताः । सर्वदाः सर्व कालेषु । ते नवंतु जिनोत्तमाः॥२७॥ देवदेवस्ययश्चकं । तस्य चक्रस्य या विना । तयाहादित सर्वाङ्ग । मामांहिनस्तु माकिनि ॥२८॥ देवदेवस्य० । मामांहिनस्तु राकिनी ॥२९॥ देवदे० । मामांहिनस्तु लाकिनी॥३०॥ देव० । मामांहिनस्तु काकिनी ॥३१॥ देवदे० । मामांहिनस्तु शाकिनी ॥३२॥ देव० । मामांहिनस्तुहाकिनी ॥ ३३ ॥ देव०। मामांहिनस्तु याकिनी॥ ३४ ॥ देव०। मामांहिंसंतुपागाः॥ ३५ ॥ देव० । मामांहिं संतु हस्तिनः॥ ३६ ॥ देवदे० । भामांहिंसंतु रादसाः॥३७॥देव० । मामांहिंसंतुवाहयः ॥ ३८॥ देव० । मामांहिंसंतु सिंहकाः॥३९॥देव। मामांहिंसंत उर्जनाः ॥ ४० ॥देव० । मामांहिंसंतु नूमिपाः॥ ४१॥श्री गौतमस्ययामुद्रा । तस्यायानुविलब्धयः। तानि रभ्युद्यतज्योति । रहंसर्व निधीश्वराः ॥४२॥ पातालवासिनो देवा। देवानूपीछि वासिनः । स्वी सिनोपि ये देवाः । सर्वे रदंतु मामितः ॥ ४२ ॥ येऽवधिलब्धयो येतु । परमावधिलब्धयः । ते सर्वे मुनयोदेवाः । मांसं रदंतु सर्वदा ॥४४॥ जनान्तवेत्तालाः । पिशाचामुजलास्तथा । ते सर्वे प्युपशाम्यंतु । देवदेव
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रत्नसागर. प्रत्नावतः ॥ ४५ ॥ नक्षी श्रीश्च पृति लक्ष्मी । गौरी चंमी सरस्वती । जयांबा विजयानित्या । क्लिन्ना जिता मदद्रवा ॥ ४६॥ कामांगा कामबा णाच । सानंदानंदमालिनी । माया मायाविनी रौद्री । कला काली कलि प्रिया ॥ ४७॥ एताः सर्वा महादेव्यो । वर्ततेयाजगत्त्रये । मासर्वाःप्रय छतु । कांतिंकीर्तिधतिमतिं ॥४८॥ दिव्यो गोप्यः सः प्राप्यः । श्रीकृषि मंगलस्तव । जाषितस्तीर्थनाथेन । जगत्त्राण कृतेनघः ॥ ४९ ॥ रणेराज कुलेवन्हौ । जलेऽर्गे गजे हरौ । श्मशाने विपिने घोरे । स्मृतो रकृति मानवं ॥ ५० ॥ राज्यभ्रष्टा निजं राज्यं । पदभ्रष्टा निजं पदं । लक्ष्मी भ्रष्टानिजां लक्ष्मी ॥ प्राप्नुवंति न संशयः॥ ५१॥ नार्यार्थी लभते नायी। पुत्रार्थी लनते सुतं । वित्तार्थी लनते वित्तं । नरःस्मरण मात्रतः ।। ५२ ॥ स्वर्णरूप्पे पटेकांस्ये । लिखित्वा यस्तुपूजयेत् । तस्यैवाष्टमहासिधि । हे वसति शाश्वती ॥ ५३ ॥ नूर्यपत्रेलिखित्वेदं । गलके मूर्धनि वा जुजी धा रितं सर्वदा दिव्यं । सर्वनीति विनाशकं ॥५४॥ नूतैःप्रेतहेर्यकैः । पिशा चैर्मुजलमलै । वातपित्तकफोद्रेक । मुच्यते नात्रसंशयः ॥ ५५ ॥ नूलुवः स्व त्रयीपीठः । वर्तिनःशाश्वताजिनः । तैःस्तुतै वैदितै दृष्टै । यत्फलतत्फलश्रुती ॥५६॥ एतजोप्यं महास्तोत्रं । नदेयं यस्यकस्यचित्। मिथ्यात्ववासिने दत्ते। वालहत्यापदेपदे ॥ ५७॥ आचाम्लादितपःकृत्वा । पूजयित्वा जिनावली । अष्टसाहनिको जापः । कार्यस्तत्सिधिहेतवे ॥ ५८ ॥ शतमष्टोत्तरंपात ।। र्येपठति दिनेदिने । तेषांनव्याधयोदेहे । प्रनवंति नचापदः ॥ ५९ ॥ टमासावधियावत् । प्रातःप्रातस्तुयःपठेत् । स्तोत्रमेतन्महातेजो। जिनबिंब स पश्यति ॥ ६० ॥ दृष्टे सत्यहतोबिंबे । नवेसप्तमके ध्रुवं । पदंप्रामोति शुधात्मा । परमानंदनंदितः ॥६१॥ विश्ववंद्यो नवेध्याता । कल्याणानि चसोनुते । गत्वास्थानंपरं सोपि । नूयस्तु न निवर्त्तते ॥ ६ ॥ इदं स्तोत्रं महास्तोत्रं । स्तुतीनामुत्तमंपरं । पठना स्मरणा झापा । सभ्यते पदमुत्तमं ॥ ६ ॥ इतिश्रीशषिमंगलस्तोत्रं ॥ ॥ केपक श्लोकान्निराकृत्यमूलयं. प्रकल्पानुसारेण । लिखितं । गणिः श्रीदमाकल्याणोपाध्यायः । तस्योपरि मयापि लिखितं इदं स्तोत्रं ॥॥
॥
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नक्तामर स्तोत्र.
॥ * ॥ अथ नक्तामर स्तोत्र ॥ * ॥
॥ * ॥ नक्तामरप्रणत मौलिमणिप्राणा । मुद्रद्योतिकं दलितपापत मोवितानं । सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगंयुगादा । वालंबनंजवजलेपततांज नानां ॥ १ ॥ यः संस्तुतः सकल वाङ्मयतत्वबोधा। तबुद्धिपटुभिः सुरलोक नाथैः । स्तोत्रैर्जगत्रितय चित्तहरैरुदारैः । स्तोष्पे किलाहमपितं प्रथमंजिनेंद्र ॥ २ ॥ युग्मं । बुद्ध्याविनापि विबुधावित्पादपीठ । स्तोतुं समुद्यतमति विंग तत्र पोहं । बाळंविहाय जलसंस्थित मिंटुविंब । मन्यःक इछति जनः सह साग्रहीतुं ॥ ३ ॥ वक्तुंगुणानगुणसमुद्र शशांक कांतान् । कस्तेमः सुरगुरु प्रतिमोपि बुद्ध्या । कल्पांतकाल पवनोतनक्रचक्रं । कोवातरीतुमलमंबुनि धिं नुजाभ्यां ॥ ४ ॥ सोहं तथापि तवनक्तिवशान्मुनीश । कर्त्तुस्तवं विग तशक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्यात्मवीर्य मविचार्य मृगोमृगेंद्र । नाभ्येति किं नि जशिशोः परिपालनार्थे ॥ ५ ॥ अल्पश्रुतं श्रुतवतं परिहासधाम । त्वद्भक्ति रेव मुखरीकुरुते बलान्मां । यत्कोकिलः किलमधोमधुरंविरौति । तच्चारुचाम्र कलिकानिकरैकहेतु ॥ ६ ॥ त्वत्संस्तवेननवसंततिसन्निव । पापंदणातू यमुपैति शरीरभाजां । आकांतलोकमलिनीलमशेषमाशु | सूर्यांशुभिन्न मि व शारधकारं ॥ ७ ॥ मत्वेतिनाथतवसंस्तवनमयेद । मारभ्यते तनुधि यापि तवप्रभावात् । चैतोहरिष्यतिसतां नलिनीदलेषु । मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूदबिंदुः ॥ ८ ॥ प्रास्तांतवस्तवनमस्तसमस्तदोषं । त्वत्संकथापि जगतां दुरितानिति । दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रजैव । पद्माकरेषु जलजानिवि काशनांजि ॥ ९ ॥ नात्यद्भुतं भुवनभूषण नूतनाथ । नृतैर्गुणैर्भुविभवंत म निष्टवंतः ॥ तुख्या नवंति जवतो ननु तेन किंवा । नृत्याश्रितं य इहनात्म समकरोति ॥ १० ॥ दृष्ट्ानवंत मनिमेषविलोकनीयं । नान्यत्रतोषमुपयाति जगस्यचक्षुः । पीत्वापयः शशिकरद्युतिदुग्धसिंधोः । कारंजलंजलनिधे रसि तुकः चेत् ॥ ११ ॥ यैः शांतरागरुचिभिः परमाणनिस्त्वं । निर्मापितस्त्रिनु वनैक जलामजूत । स्तावंतएवखनुते पणवः पृथिव्यां । यत्तेसमानमपरंनहि रूप मस्ति ॥ १२ ॥ वक्कतेसुरनरोरगनेत्रहारि । निःशेषनिति जगतत्रितयो यमानं । बिंबं कलंकमलिनं क्वनिशाकरस्य । यद्वासरे नवति पांडुपलाशक
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रत्नसागर. ख्यं ॥१३ ॥ संपूर्णमंमलशशांककलाकलाप । शुभ्रागुणात्रिन्नुवनं तवलंघ यंति । ये संश्रितास्त्रिजगदीश्वरनाथमेकं । कस्तानिवारयति संचरतोयथेष्टं ॥१४॥ चित्रं किमत्रयदिते त्रिदशांगनानि । र्तीतं मनागपिमनो नविकार मार्ग। कल्पांतकालमरुता चलिताचलेन । किंमंदरादिशिखरं चलितंकदा चित् ॥ १५ ॥ निमवर्ति रपवर्जित तैलपूरः । कृत्स्नंजगत्त्रयमिदं प्रग टी करोषि । गम्यो न जातु मरुतां चलिता चलानां । दीपोपरस्त्वमसिना थ जगत्प्रकाशः ॥ १६ ॥ नास्तं कदाचिदुपयासिनराहुगम्यः । स्पष्टी क रोषि सहसायुगपऊगति । नांगोधरोदरनिरुघमहापनावः । सूर्यातिशायिम हमासि मुनींद्रलोके ॥ १७ ॥ नित्योदयं दलितमोहमहांधकारं । गम्यं न राहुवदनस्य नवारिदानां । विभ्राजते तव मुखाब्ज मनल्पकांति । विद्योतय ऊगद पूर्वशशांकबिंब ॥ १८ ॥ किं शर्वरीषु शशिनान्हि विवस्वतावा । युष्मन्मुखेंदालितेषुतमस्सुनाथ। निष्पणशालिवनशालिनिजीवलोके।कार्य कियऊलधरैलनारननैः॥ १९ ॥ ज्ञानयथा त्वयि विनाति कृतावकाशं । नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु । तेजःस्फु रन्मनिषु याति यथा महत्वं । नैवंतु काचसकले किरणाकुलेपि ॥ २० ॥ मन्नेवरं हरिहरादय एव दृष्टा । दृष्टे षु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति । किं वीक्रितेन नवताजुवियेन नान्यः । कश्चि न्मनोहरतिनाथ नवांतरेपि ॥ २१ ॥ स्त्रीणांशतानिशतशो जनयंतिपुत्रान् नान्याश्रुतं त्वउपमं जननीप्रसूता। सर्बादिशोदधति नानि सहस्ररस्मिं । प्रा च्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालं ॥ २२॥ त्वामामनन्तिमुनयः परमं पुमांस। मादित्यवर्णममलं तमसःपुरस्तात् । त्वामेवसम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु । ना न्यःशिवः शिवपदस्य सुनींद्रपन्थाः॥२३॥ त्वामव्ययं विनु मचिंत्य मसंख्य माद्यं । ब्रह्माण मीश्वर मनन्त मनङ्गकेतु । योगीश्वरं विदितयोग मनेक मेकं । ज्ञानस्वरूप ममलं प्रवदन्तिसन्तः॥ २४॥बुधस्त्वमेव विबुधार्चितबुधिबोधा। त्वंशंकरोसि जुवनत्रय शंकरत्वात् धातासिधीर शिवमार्ग विधेर्विधानात् । श्य तं त्वमेव जगवन् पुरुषोत्तमोसि ॥ २५॥ तुभ्यं नम स्त्रिनुवनार्तिहराय नाथ। तुभ्यं नमः दितितलामलजूषणाय । तुभ्यं नम नि जगतः परमेश्वराय। तुभ्यं नमो जिनलवो दधिशोषणाय ॥ २६ ॥ कोविस्मयोत्र यदि नामगुणरशेषै।
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जक्तामर स्तोत्रस्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश । दोषैरुपात्त विबुधाश्रयजातगर्वैः । स्वमां तरेपि न कदाचिदपीड़ितोसि ॥ २७॥ नचैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूखा । मा जाति रूपममलं नवतो नितान्तं । स्पष्टोक्षसकिरणमस्ततमोवितानं । बिम्ब खेरिवपयोघरपार्श्ववर्ति ॥ २९ ॥ सिंहासने मणिमयूख शिखाविचित्रे । वि भ्राजते तव वपुः कनकावदातं । विम्बं वियप्रिलसदंशुलतावितानं । तुङ्गो दयादिशिरसीव सहस्र रशमः॥ २९ ॥ कुंदावदातचलचामरचारुशोनं । वि भ्राजते तव वपुः कलधौतकांतं । नद्यनशांक शुचिनिओर वारिधार । मुच्चै स्तटं सुरगिरेरिवशातकौंन ॥३०॥ त्रयं तवविनाति शशांककांत । मुच्चैः स्थितस्थगितनानुकरप्रतापं । मुक्ताफलप्रकरजालविवृधिशोनं । प्रख्यापयत् त्रिजगतःपरमेश्वरत्वं ॥३१ ॥न्निद्रहम नवपंकज पुंजकांति । पर्युक्षसन्नख मयूख शिखानिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेंद्रधत्तः । पद्मानि तत्र वि बुधाः परिकल्पयन्ति ॥ ३२ ॥ इत्थं तथा तव विनूति रनूजिनेंद्र । धर्मोप देशन विधौ न तथा परस्य ॥ यादृक् प्रनादिनकृतः प्रहतान्धकारा । ताह
कुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोपि ॥ ३३ ॥ श्योतन्मदा विलविलोल कपोल मूल । मत्तभ्रमझमरनाद विवृष्चकोपं । ऐरावतानमिनमुचत मापतन्तं । दृष्ट्वा अयं नवतिनोनवदाश्रितानां ॥३४॥ निकोनकुंज गलज्वल शोणिताक्त । मुक्ताफल प्रकरचूषित नूमिनागः । बचक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोपि । नाका मति क्रमयुगाचलसंश्रितंते ॥ ३५ ॥ कल्पान्तकालपवनोचतवन्हिकल्पं । दावानलं ज्वलितमुज्ज्वलमुत्स्फुलिङ्गं। विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं। त्वं नामकीर्तनजलं शमयत्यशेष ॥३६॥ रक्तकणं समदकोकिल कंपनीलं । क्रोधोतं फणिनमुतफण मापतन्तं । आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशंकः । त्वन्नाम नागदमनी हृदि यस्य पुंसः॥३७॥ वलगत्तुरङ्ग गजगर्जित नीमना द। माजौबलं बलवता मपि नूपतीनां । नद्यदिवाकरमयूख शिखापविछ । त्वत्कीर्तनात्तमश्वाशुनिदामुपैति ॥ ३८ ॥ कुन्ताग्रचिन्नगजशोणितवारिवा ह। वेगावतारतरणातुरयोधनीमे । युधे जयं विजितऽर्जयजेयपदाः । त्व त्पादपंकजवनाश्रयिणो लन्नन्ते॥ ३९ ॥अंगोनिधौ हुनितनीषणनचक्र । पागनपीठजयदोलणवामवाग्नौ । रङ्गत्तरंगशिखरस्थितयानपात्रा । स्वासं
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रत्नसागर
विहायभवतः स्मरणाद्व्रजन्ति ॥ ४० ॥ ननभीषणजलोदरनार जुनाः । शौच्यांदशा मुपगतायुतजीविताशाः । त्वत्पादपंकज रजोमृतदिग्धदेहा । म यवन्ति मकरध्वज तुल्यरूपाः ॥ ४१ ॥ प्रपाद कंठ मुरशृंखलवेष्टिताङ्गा । गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजंघाः । त्वन्नाममंत्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः । सद्यः स्वयं विगत बंध या भवन्ति ॥ ४२ ॥ मत्त प्रिपेंद्र मृगराज दवानलाहि संग्रामवारिधि महोदरबन्धनोत्थं । तस्याशु नाशमुपयाति जयं जियेव । य स्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥ ४३ ॥ स्तोत्रस्रजं तव जिनेंद्रगुणैर्निबधां । त्या मया रुचिरवर्ण विचित्रपुष्पां । धत्तेजनो य इह कंठगतामजस्रं । तंमानतुंग मवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥ ४४ ॥ इतिश्रीभक्तामरस्तोत्रम् ॥ २॥ ॥ ॥ * ॥ अथ कल्याणमंदिरस्तोत्र ॥ ॥
॥ * ॥ कल्याणमन्दिर मुदारमवद्यदि । जीता जयप्रदमनिन्दित मंह पद्मं । संसारसागरनिमदशेषजंतु । पोतायमानमनिनम्यजिनेश्वरस्य ॥ १ ॥ यस्यस्वयं सुरगुरुर्गरिमांबुराशेः । स्तोत्रं सुविस्तृतमति नविनुर्विधातुं । तीर्थेश्व रस्य कमठस्मयधूमकेतो । स्तस्याहमेष किलसंस्तवनं करिष्ये ॥ २ ॥ ( युग्मं ॥ ) सामान्यतोपि तव वर्णयितुं स्वरूप । मस्मादृशाः कथमधीश नवंतधीशाः । धृष्टोपि कोशिकशिशु र्यदिवादिवांधो। रूपं प्ररूपयति किं किलघर्म रश्मेः ॥ || ३ || मोहदया दनुजवन्नपि नाथमर्त्यो । नूनं गुणान् गुणयितुं न तव क्षमेत। कल्पान्तवान्तपयसः प्रकटोपि यस्मा । न्मीयेत केन जलधे र्ननु रत्नराशिः ॥ ४ ॥ अभ्युद्यतोस्मि तवनाथ जडाशयोपि । कर्त्तुस्तवं लसदसंख्य गुणाकर स्य | बालोपि किं ननिजबाहु युगं वितत्य । विस्तीर्णतां कथयति स्वधि यांबुराशेः ॥ ५ ॥ ये योगिनामपि न यांति गुणास्तवेश । वक्तुं कथं जवति 'तेषु ममावकाशः। जातातदेव मसमीक्षित कारितेयं । जल्यंति वा निजगि रा ननु पक्षिणोपि ॥ ६ ॥ आस्ताम चिंत्यमहिमा जिनसंस्तवस्ते । नामा पिपाति नवतो नवतो जगति । तीव्रातपो पहतपांथ जनान्निदाघे । प्रीणा ति पद्मसरसः सरसोनिलोपि ॥ ७ ॥ हर्त्तिनि त्वयिविनो शिथलीभवंति । जंतो कृणेन निवडापि कर्म्मबंधाः । सद्यननुजङ्गममया इवमध्यभाग | मभ्यागते वनशिखंमिनिचंदनस्य ॥ ८ ॥ मुच्यंत एव मनुजाः सहसाजिनेंद्र |
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न किं तदपिमही हृदयेदधानाः ॥२॥ क्रोधस्वापत्यमा
कल्याणमंदर स्तोत्र. रोट्टै रुपद्रवशतै स्त्वयिवीक्तिपि । गोस्वामिनि स्फुरिततेजसि दृष्टमात्रै । हॊरै रिवाशुपशवः प्रपलायमानैः॥९॥ त्वंतारको जिनकथं नविनां तएव । त्वा मुम्हंति हृदयेन यउत्तरंतः। यादृति स्तरति यऊल मेषनून । मंतर्गतस्यम स्तः सकिलानुनावः ॥१०॥ यस्मिनहर प्रनृतयोपि हतप्रनावा । सोपि त्वया रतिपतिः पितादणेनः । विध्यापिता हुतनुजः पयसाथ येन । पीतं न किं तदपिपुरवामवेन ॥ ११ ॥ स्वामि तुल्य गरिमाणमपिप्रपन्ना। स्त्वांजंतवः कथमहो हृदयेदधानाः । जन्मोदधिं लघुतरंत्यतिलाववेन । चिं त्यो नहंतमहतां यदिवा प्रनाव ॥१२॥ क्रोधस्त्वया यदि विनो प्रथमं निरस्तो। ध्वस्तास्तदावतकथं किलकर्मचौराः । प्लोषत्यमुत्र यदिवा शि शिरापिलोके । नीलगुमानि विपिनानि न किं हिमानी॥१३॥ त्वां योगि नो जिन सदा परमात्मरूप । मन्वेषयंतिहृदयां बुजकोशदेशे । पूतस्य नि मलरुचेर्यदिवा किमन्य । दकस्य संजविपदं ननुकर्णिकाया ॥१४॥ ध्याना जिनेश जवतो नविनः दाणेन । देहविहाय परमात्मदशां ब्रजति । तीबान लापलनाव मुपास्यलोके । चामीकरत्वमचिरा दिवधातुनेदाः ॥१५॥ अन्त सदैव जिन यस्य विनाब्यसेत्वं । नव्यै कथं तदपि नाशयसे शरीरं । एतत्स्वरूप मथ मध्यविवर्तिनोहि । यघ्यिहं प्रसमयंति महानुन्नावाः॥१६॥ आत्मामनीषि निरयं त्वदनेदबुध्या । ध्यातोजिनेंद्रनवतीह नवत्पन्नावः। पानीयमप्य मृतमित्यनु चिंत्यमानं । किं नामनो विषविकार मपाकरोति॥१७॥ त्वामेव वीततमसं परवादिनोपि । नूनंविनो हरिहरादि धियाप्रपन्नाः। किंका. चकामलिगिरी शसितोपि शंखो। नो गृह्यते विविधवर्ण विपर्ययण ॥१८॥ धर्मोपदेशसमये सविधानुन्नावा । दास्तांजनोनवति ते तरुरप्यशोक । अ भ्युमते दिनपतो समहीरहोपि । किंवा विबोधमुपयाति नजीवलोकः ॥१९॥ चित्रविनो कथमवाङ्मुखवंतमेव । विष्वकपतत्यविरलासुरपुष्पवृष्टिः । त्वजो चरे सुमनसां यदिवामुनीश । गडंति नून मधएवहि बंधनानि ॥२०॥ स्थाने गन्नीरहृदयोदधिसंनवायाः। पीयूषतां तव गिरः समुदीरयति । पीत्वा यतः परमसंमदसंगनाजो। जव्याबजंति तरसाप्यजरामरत्वं ॥ २१ ॥ स्वा मिन् सुदूरमवनम्य समुत्पतन्तो । मन्ये वदंति सुचयः सुरचामरौवाः । यस्मै
एतत्स्वरूप मम यस्य विनाव्यसेत्वं नवमचिरा दिवधातु
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रत्नसागर. नतिं विदधते मुनिपुंगवाय । ते नूनमूर्ध्वगतयः खन्नु शुचनावाः ॥ २२ ॥ श्याम गलीरगिर मुज्वलहेमरत्न । सिंहासनस्थमिहनव्य शिखंमिनस्तां । आलोकयन्ति रनसेन नदन्तमुच्चै । श्चामीकरादिशिरसी वनवांबुवाहं ॥२३॥ नगडता तवशति द्युतिमंमलेन । लुप्तबद बविरशोक तरबनूव । सानिध्यतो पि यदिवा तव वीतराग । निरागतां ब्रजति कोन सचेतनोपि ॥ २४ ॥ नो जो प्रमादमवधूय नजध्वमेन । मागत्यनिर्वृतिपुरी प्रति सार्थवाहं । एतन्नि वेदयति देव जगत्त्रयाय । मन्ये नदन्ननिननः सुरइंनिस्ते ॥२५॥ नद्यो ति तेषु जवता नुवनेषु नाथ । तारान्वितोविधुरयं विहताधिकारः । मुक्ताक लापकलितो छसितातपत्र । ब्याजातत्रिधारततनुर्बुवमभ्युपेतः॥२६॥ स्वेन प्रपूरित जगत्त्रय पिमितेन । कांति प्रताप यशसामिव संचयेन । माणिक्य हे म रजत प्रविनिर्मितेन । शालत्रयेणनगवन्ननितोविनासि ॥२७॥ दिव्य स्रजो जिन नमत् त्रिदशाधिपाना । मुत्सृज्यरत्नरचितानपि मौलिबंधान् । पा दौ श्रयंति जवतो यदिवा परत्र । त्वत्सङ्गमे सुमनसो नरमन्तएव ॥२८॥ त्वं नाथ जन्म जलधेर्विपराङ्मुखोपि । यत्तारयस्य सुमतो निजपृष्टलग्नान् । युक्तंहि पार्थिव निपस्य सतस्तवैव । चित्रविनो यदसिकर्म विपाकशून्यः॥२९॥ विश्वेश्वरोपि जनपालक उर्गतस्त्वं । किंवाकर प्रकृतिरप्य लिपिः त्वमीश। अज्ञानवत्यपिसदैव कथंचदेव । ज्ञानंत्वयि स्फुरति विश्वविकाशहेतुः॥३०॥ प्राग्जार संघृतननांसि रजांसिरोषा । पुत्थापितानि कमठेन शठेन यानि ।
गयापितै स्तवननाथ हता हताशो। ग्रस्तस्त्वमीनि रयमेव परंपुरात्मा॥३१॥ य र्जित घनौघमदद्मनीम । भ्रश्यत्तडिन्मुशल मांसलघोरधारं । दैत्येन मुक्त मथस्तरवारिदभ्रे । तेनैवतस्य जिनस्तर वारिकृत्यं ॥३२॥ ध्वस्तोई केशविकृताकृतिमर्त्य मुंग । प्रालंबनृद्भयदवऋविनिर्यदाग्निः । प्रेतब्रजः प्रतिन वंतमपीरितोयः । सोस्यानवत्यतिनवं नवपुःखहेतुः ॥३३॥ धन्यास्त एव जुवनाधिप ये त्रिसंध्य । माराधयंति विधिवधितान्यकृत्याः। प्रत्युल्लसत्पु लकपदमलदेहदेशाः । पादत्र्यं तवविनो नुविजन्मनाजः ॥३४॥ अस्मि हापार जववारिनिधो मुनीश । मन्येन मे श्रवणगोचरतां गतोसि । आक. र्णितेतु तवगोत्र पवित्रमंत्रे । किंवा विपरिषधरी सविधंसमेति ॥ ३५ ॥ ज.
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कल्याणमंदिरस्तोत्र.
२२३ न्मांतरेपि तव पादयुगं नदेव । मन्ये मया महित मीहित दानददं । तेनेह जन्मनि मुनीश परानवानां । जातो निकेतन महं मथिता शयानां ॥३६॥ नूनं नमोहतिमिरा वृतलोचनेन । पूर्वविनो सकृदपि प्रविलोकितोसि । मर्मा विधौ विधुरयंति हिमामनर्थाः । प्रोद्यत्प्रबंधगतयः कथमन्यथै ते ॥ ३७॥ आकर्णितोपि महितोपि निरीदतोपि । नूनं नचेतसि मया विटतोसिनत्या। जातोस्मि तेन जनबांधवपुःखपात्रं । यस्माक्रियाः प्रतिफलंति ननावशून्याः ॥३८॥ त्वं नाथ पुःखिजनवत्सल हे शरण्य । कारुण्यपुण्यवसते वशिनांवरे एय । नत्यानते मयि महेश दयांविधाय । दुःखांकुरोद्दलन तत्परतां विधेहि ॥३९॥ निःसंख्यसारशरणंशरणंशरण्य । मासाद्यसादितरिपुप्रथितावदातं । त्वत्पादपंकजमपि प्रणिधानवंध्यो। बध्योरिमचेदजुवनपावनहाहतोस्मि॥४०॥ देवेन्द्रवंद्यविदिताखिलवस्तुसार । संसारतारकविनोनुवनाधिनाथ । त्रायस्व देव करुणा हदिमांपुनीहि । सीदंत मद्यनयद व्यसनांबुराशे ॥४१॥ यद्य स्तिनाथ नवदंति सरोरुहाणां । नक्ते फलं किमपिसंतत संचितायाः। तन्मे त्वदेक शरणस्य शरण्ययाः । स्वामीत्वमेव नुवनेत्र नवांतरेपि ॥४२॥ त्थंसमाहितधियो बिधिवजिनेंद्र । सांद्रोतसत्पुलक कंचुकितांगनागाः। त्व प्रिंबनिर्मल मुखांबुजवघलक्ष्या। येसंस्तवंतवविन्नो रचयंतिनव्याः॥४३॥ जननयनकुमुदचंद्र । प्रनासुराः स्वर्गसंपदोजुक्ता । ते विगलितमलनिचया। अचिरान्मोदं प्रपद्यते॥४४॥8॥इति कल्याणमंदिरस्तोत्रं संपूर्णम् ॥१॥
॥ * ॥ अथ सेव्रुजरास ॥8॥ ॥ ॥ श्रीरिसहेसरपायनमी । आणीमनाणंद । रासनणुं रलियाम णो। सेव॒जैनोमुखकंद ॥१॥ संबतच्यारसतोतरै । हुवाधनेसरसूर । तिण से@जमहातमकियो । शिलादित्यहजूर ॥२॥ वीरजिणंदसमोसरया । से चुंजैकपरजेम । इन्द्रादिक आगलिकह्यो । सेजमाहातमएम ॥३॥ से जतीरथ सारिषो। नहीं तीरथकोय । स्वर्गमृत्यु पातालमै । तीरथसगलाजो य॥४॥ नामैनवनिधिसंपजै । दीगंपुरितपुलाय । नेटतां नवनयटले । से वंतांसुखथाय ॥५॥जंबूनामैदीपए। दक्षिणरतमकार । सोरठदेसमुहाम यो । तिहां 3 तीरथसार ॥ ६॥ * ॥ ढालपहिलीः रामगिरि ॥ॐ॥
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रत्नसागर. । सेजोनें श्रीपुंमरीक । सिपत्रकहुं तहतीक । विमलाचलनेकरूं परणाम। एसे-जैना इकवीसनांम ॥१॥ सुरगिरिने महागिरि पुन्यरास । श्रीपद पर्वत इंद्रप्रकास । महातीरथपूरवेसुखकाम ए॥२॥ सासतोपर्वतनें दृढशक्ति । मुक्ति निलो तिणकीजैनक्ति । पुप्फदंत महापदम सुगम । ए० ॥३॥ पृथ्वीपीठ सुनद्र कैलाश । पातालमूल अकर्मकतास । सर्वकाम कीजै गुणग्राम । एक ॥४॥श्रीसेज़ुजैनाइकवीसनाम । जपैजवेठाप्रपणैठांम । सेजजात्रानोफल लहै । महावीरनगवंतइमकहै ॥५॥ ॥हा॥ ॥ सेठेजोपहिलैमरै असीजोयणपरमांण । पिहुलो मूल ऊंचपण । बीसजोयणजाण ॥१॥सि त्तरजोयणजाणवो । बीजै अरैविशाल । बीसजोयणऊंचोकह्यो । मुआवंदणा त्रिकाल ॥२॥साठजोयणतीजैअरै । पिहलो तीरथराय । सोलजोयण कंचोसही। ध्यानधरूं चितलाय ॥३ ॥ पचासजोयण पिहुलपण । चोथै अरै मझार । ऊंचो दसजोयण अचल । नितप्रणमें नरनार ॥४॥ वार जो यण पंचम अरै । मूलतणे विशतार । दोजोयण ऊंचोग । सेठेजतीरथ सार ॥५॥ सातहाथ है अरै । पिहुलो परवतएह । ऊंचोहोस्यै सनध नुष । सासतोतीरथएह ॥६॥ ॥ ढाल ॥ जिनवरसुं मरोमनलीणो॥१॥ केवलन्यानी प्रमुखतीर्थकर । अनंतसीधाइणगमरे । अनंतवली सीसे इ गगमै । तिणकरुं नितपरणामरे ॥१॥ सेव॒जैसाधुअनंतासीधा । सीमसीव लीय अनंतरे । जिससेठेजतीरथ नहीनेट्यो । तेगरनावासकहतरे ॥ से ॥२॥ फागुणमुदि आठमनें दिवसै। रिषजदेव सुखकाररे।रायणरूंख समोस स्यास्वामी । पूरबनिना) बाररे । से० ॥ ३ ॥ जरतपुत्रचैत्रीपूनमदिन । इणसेज गिरिआयरे। पांचकोडघ्र पुमरीकसीधा । तिण पुमरीक कहायरे । से०॥४॥ नमि बिनमि राजाविद्याधर । बेबेकोडिसंघातरे । फागुणसुदिदशमी दिनसीधा । तिणप्रणमुंपरनातरे । से० ॥५॥ चैत्रमासवदि चनदसनेदिन नमिपुत्री चौसहिरे । अणसणकरि सेजैगिर ऊपर । एसहुसीधा एकरे। से ॥६॥ पोतरा प्रथम तीर्थकर केरा। द्रावमने वारिखिल्लरे । कातामुदि पूनमदिनसीधा । दशकोडिसुं मुनिशिल्लरे । से० ॥णापांचे पांडव इणगिरसी धा। नवनारद रिषिरायरे । संब मजून गयाइहां गते । आरेकरमखपायरे।
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वृघसेजुजराससे० ॥८॥ नमिविना तेवीसतीर्थंकर । समोसस्या गिरिशंगरे । अजित शांति तीर्थकरबेकं । रह्या चोमासोरंगरे ॥ से० ॥ ९ ॥ सहससाधुपरिवार संघातै । थावच्चा सुकशाधरे। पांचसै साधुसुं सेलगमुनिवर । सेठेजै सिवमुख लाधरे ॥से०॥ १०॥ असंख्यातामुनि सेजेजैसीधा । भरतेसरने पाटरे । राम अने जरतादिक सीधा । मुक्तितणी एवाटरे ॥ से॥११ ॥ जालिमया लीने नवयाली । प्रमुख साधुनीकोमिरे । साधुअनंता सेव॒जैसीधा प्रणमुं बेकरजोमिरे ॥ से० ॥ १२॥ ढालचौपाईनी ॥ * ॥सेजैनाकडं सोलनधार । तेमुणिज्यो सहुको सुविचार । सुणतां आणंद अंगनमाय । जनमजनमना पातिकजाय॥१॥ षनदेव अयोध्यापुरी। समवसस्या स्वामी हितकरी नरतगयो बंदणकाज । येनपदसदियोजिनराज॥२॥जगमांहै मोदा अरिहंतदेव । चौसठ इंद्र करैजसुसेव । तेहथीमोटो संघकहाय । जेहनें प्रणमें जिनवरराय॥३॥तेहथीमोटो संघवीकह्यो। जरतसुणीने मनगहगह्यो। नरत कहैतकिमपामियै । प्रनु कहै सेजै जात्राकियै ॥ ४॥ परतकहै संघवीपद मुश। थेआपोहुं अंगजतुश। इंद्राण्याप्रकृतवास । प्रनु आपै संघवीपदता स॥४॥ इंद्रतिणबेला ततकाल । नरत सुन्नद्रा विहुंनेमाल । पहिरावी घर संप्रेमिया । सखरसोनानारथापिया ॥ ६ ॥ रिषनदेवनी प्रतिमावली । रत्नतणीदीधीमनरली। जरतै गणधर घरतेडिया । सांतिक पोष्टिक सहु तिहां किया ॥७॥ कंकोत्रीमुंकी सहुदेस । जरततेडायोसंघासेस । आयोसंध अयोध्यापुरी। प्रथमथकी रथजात्राकरी॥८॥संघ नगति कीधी अतिघणी। संघचलायो सेव॒जानणी । गणधर वाहूबलकेवली । मुनिवरकोडि साथेलि यावली ॥९॥ चक्रवर्तिनी सगलीरिधि । जरतें साथे लीधीसिछि। हयगयरथ पायक परवार । तेतो कहतां नावैपार ॥ १० ॥ जरतेसर संघवीकहवाय । मारगचैत्य उधरतोजाय । संघ आयो सेजैपास । सहुनीपूगी मननीपास ॥ ११॥ नयणे निरख्यो सेजेजराय । माणि माणक मोत्यांमुं वधाय । तिण गमै रही महोवाकियो। जरतें आणंदपुर वासियो ॥ १२ ॥ संघसेठेजा ऊपर चढयो । फरसंता पातिक ऊडपड्यो । केवलन्यानी पगला तिहां । प्रणम्यारायण रूंख जिहां ॥१३॥ केवलन्यानी सनात्रनिमित्त । ईशानेंद्र आ
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रत्नसागर. णीसुपवित्त । नदीसेQजै सोहामणी । जरतेंदीगी कौतुकलणी ॥१४॥ गणधर देवतणे नपदेस । इंद्रैबलिदीधो आदेस । श्रीआदिनाथ तणोदेहरो । जरत करायो गिरिसेहरो ॥१५॥ सोनानो प्रसाद उत्तंग । रतन तणी प्रतिमा मनरंग । नरतै श्रीआदीसरतणी। प्रतिमाथापी सोहामणी ॥१६॥मरुदेवानी प्रतिमानली। माहीपूनिम थापीरली।बाही सुंदरी प्रमुखप्रासाद। जरतैथाप्या नवलैनाद॥१८॥इमअनेक प्रतिमाप्रासाद। जरतकराया गुरुमुप्रसाद। जरत तणोपहिलो नचार । सगलोही जाणे संसार ॥ १९ ॥ ॥ ढाल सिधूमो
आसानरी ॥ ॥जरत तणे पाटै आठमें। दम वीरज थयो रायोजी। जरत तणीपर संघकीयो । सेजेजसंघवी कहायो जी ॥ १ ॥ सेQजैनघारसांजलो। सोलमोटा श्रीकारोजी । असंख्यात वीजावलि । तेह नकहुं अधिकारोजी से ॥ २ ॥ चैत्यकरायो रूपातणो । सोनानो बिंबसारोजी । मूलगोविं बनमारीयो । पत्रिमदिश तिणवारोजी। से० ॥३॥ सेजुजैनी जात्राकरी। सफलकियो अवतारोजी। दमवीरज राजातणो । एबीजो नघारोजी ॥ से ॥४॥ सोसागरोपम वितिक्रम्या। दमवीरजथी जिवारोजी । ईशानेंद्रकरा वीयो। एतीजो नचारोजी ॥ से° ॥५॥ चोथा देवलोकनो धणी । माहेंद्र नाम नदारोजी । तिणसे-जैनो करावीयो । ए चोथो नघारोजी ॥ से ॥६॥ पांचमा देवलोकनोधणी । ब्रह्मेद्र समकित धारोजी । तिणसे-जैनो करावीयो। ए पांचमो नचारोजी॥से ॥७॥ जुवनपती इंद्रनोकीयो । ए
हो नघारोजी। चक्रवर्त्तिसगरतणोकीयो। ए सातमो नारोजी॥से०॥८॥ अनिनंदन पासै मुण्यो । सेजेजनो अधिकारोजी । व्यंतरइंद्र करावीयो । ए पाठमो नघारोजी। से० ॥९॥ चंद्रप्रनुस्वामिनोपोतरो। चंद्रशेखरनाम मल्हारोजी । चंद्रजसराय करावीयो । ए नवमो नघारोजी । से॥१०॥ शांतिनाथनी सुणीदेशना। शांतिनाथ सुत सुविचारोजी । चक्रधर राय क रावीयो। ए दशमो नचारोजी। से० ॥११॥ दशरथसुत जगदीपतो। मुनि सुबत स्वामी वारोजी । श्रीरामचंद्र करावीयो। ए इग्यारमोनघारोजी॥ से ॥ १२ ॥ पांमवकहै अम्हेपापीया । किमबूटां मोरीमायोजी । कहै कुंती सेजेजतणी । यात्रकीयां पाप जायोजी ॥ से ॥ १३ ॥ पांचेपांमव संघ
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वृषसेढंजरास.
२२७ करी। सेठेज नेट्यो अपारोजी। काष्टचैत्य विंबलेपना। ए बारमो नचारोजी। से ॥१४॥ मम्माणी पाषाणनी । प्रतिमां मुंदरसरूपोजी । श्रीसेठेजैनो संघकरी। थापी सकल सरूपोजी। से० ॥ १५ ॥ अठोत्तर सोवरसांगयां विक्रमनृपथी जिवारोजी । पोरवाडजावळ करावीयो । एतरमो नारोजी। से० ॥ १६ ॥ संवत बार तिमोत्तरै । श्रीमाली सुविचारोजी । वाहमदे मुहते करावीयो। ए चवदमो नघारोजी ॥ से ॥१७॥ संबत तेरै इकोत्तरै। देसल हर अधिकारोजी । समरै साहकरावीयो। ए पनरमो नुघारोजी। से० ॥१८॥ संवत पनर सत्यासीयै । वैसाखवदि सुन्नवारो जी । करमेंमोसी करावीयो । एसोलमो नघारोजी ॥से॥ १९ ॥ संप्रतिकालै सोलमो । एवरतेचैनघा रोजी। नितनित कीजै वंदना। पामीजै नवपारोजी ॥ से० ॥२०॥ उहा। वलिसेठेज महातमकहुं । सांजलो जिम तेम । सूरिधनेसरइमकहै । महावी रकयो एम ॥१॥ जेहवो तेहवो दरसणी। सेजै पुजनीक। नगवंतनो वेसवां दतां । लानहुवैतहतीक ॥२॥ श्रीसेव॒जाऊपरै । चैत्यकरावैजेह । दल परमाण समोलहै। पल्योपममुखदेह ॥३॥ सेठेज ऊपर देहरो । नवो नीपावैकोय । जीर्णोधार करावतां । आठगुणो फलहोइ ॥ ४ ॥ सिरपरि गागरधरी । स्नात्र करावै नारि। चक्रवर्तिनी स्त्रीथई । सिवसुख पामेंसार॥५॥ काती पूनिम सेजे। चढिनै करै नपवास। नारकी सौसागर समो। करै करमनो नास॥६॥कातीपरब मोटो कह्यो । जिहां सीधा दशकोमि । ब्रह्म स्त्री वा सकहत्या । पापथी नाखैगेम ॥ ७ ॥ सहसलाख श्रावग नणी। भोजन पुन्यविशेष । सेजेज साधु पमिलानतां । अधिको तेहथी देख ॥ ८॥ ॥ ढाल ५॥ ॥धन २ अयवंतीमुकुमालनें एहनी ॥ ॥ सेजैगयां पाप बूटी यै । लीजै आलोयण एमोजी । तप जप कीजै तिहां रही । तीर्थकर कह्यो तेमोजी॥१॥से । जिणसोनानी चोरीकरी। ए आलोयणतासोजी। चैत्रीदिन सेठेज चढी । एककरै नपवासोजी ॥ २ ॥ से० ॥ वस्तु तणी चोरीकरी । सात आंबिल सुध थायोजी । काती सातदिन तपकीयां । रतनहरण पाप जायो जी॥३॥ से०॥ कांसी पीतल तांबा रजतनी । चोरी कीधी जेणोजी। सातदिवस पुरमढकरै । तो बूटै गिरि एणोजी ॥४॥से० ।
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૨૨૮
रत्नसागर. मोती प्रवाला मूंगीया। जिण चोरया नरनारोजी। आंबिलकरि पूजाकरै । त्रिणटंक सुध आचारोजी ॥ ५ से० ॥ धान पाणी रसचोरीया । जे जेट सिक्षेत्रोजी । सेठेज तलहटीसाधुनें । पमिला. सुध चित्तोजी ॥ ६ से। वस्त्रानरण जिणेहरया। तेबूटै इण मेलोजी । आदिनाथनी पूजाकरें। प्रहठीवहुवेलोजी॥७ से०॥ देवगुरुनो धनजेहरै । तैसुध्थायेएमोजी । अधिकोद्रव्य खरचै तिहां। पात्रपोषै बहुप्रेमोजी॥ ८॥से ॥ गायनेंसघो मामही। गजनोचोरणहारोजी । चैतेवस्तु तीरथै । अरिहंतध्यान प्रकारोजी ॥९॥से०॥ पुस्तक देहरापारका । तिहां लिखै अपणो नामोजी । बूटे सम्मासीतपकीयां । सामायक तिणठामोजी॥१०॥से०॥ कुंवारी परिव्राजका सधव अधव गुरु नारोजी । ब्रतलांजै तिणनें कह्यो । बम्मासी तप सा रोजी॥११॥से०॥ गौ विप्र स्त्री वालक रिषी। एहनोघातक जेहोजी। प्रतिमा आगै आलोवतां । बूटै तप करि तेहोजी ॥१२॥ से०॥ ॥ ढाल ६ कुं मरनले आवीयोए ॥ एहनी ॥ ॥ संपतिकालै सोलमोए । एबरतैठे नघार । सेठेज यात्रा करूंए । सफल करुं अवतार ॥ १ से० ॥ नहरी पालतां चालीयैए। सेजेज केरी वाट ।। से० ॥ पालीताऐ पहुचीयैए । संघ मिल्या बहुथाट ॥ २॥ से०॥ ललितसरोवर पेषीयैए । वलि सत्तानीवाव । से०॥ तिहां विसरामोलीजियैए। वमनैचौतरै आवि ॥३॥ से० ॥ पाली ताणे पाजमीए । चढीयै नठिपरजात ॥ से० ॥ सेठेजनदीय सोहामणीए। दूर थकीदेखंत ॥ ४॥ से०॥ चढिय हिंगुलाजनें हमए । कलिकुंमनमीय पास। से० ॥ वारीमांहे पैसीयैए । आणी अंगनवास ॥ ५ ॥से । मरुदेवी हूँ क मनोहरूए। गजचढी मरुदेवी माय ॥ से० ॥ शांतिनाथ जिनसोलमोए। प्रणमीजैतसुपाय ॥ से ॥६॥ वंस पोरवाडै परगमोए। सोमजीसाहमल्हार । से। रूपजी संघवी करावीयोए। चौमुखमूलनधार॥से०॥७॥चौमुखप्रतिमा चरचीयैए। जमतीमांहि जलाबिंब । पांचेपांमवपूजियए । अदनुतादिप्रलंब से०॥९॥खरतरवसहीखांतिसुंए । बिंब जुहारं अनेक ॥से॥ नेमिनाथ चवरी नमुंए । टाढूअलगनग॥०॥९॥ धरमवार महिनीसरुंए । कुगतिकरं अतिदूर ॥ से०॥ श्रावं आदिनाथदेहरैए। करमकरुं चकचूर ॥ से० ॥१०॥
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वृषसेठेजरासमूलनायक प्रणमुंमुदाए। आदिनाथ नगवंत ॥ से० देवजहारं देहरैए । न मतीमांहि लमंत ॥ से० ॥११॥ सेठेजेकपरि कीजीयैए । पांचेगम सनात्र । से। कलश अठोत्तरसो करुंए । निरमल नीरसुगात्र ॥ से ॥ १२ ॥ प्रथ म आदीसर आगलेए । घुमरीक गणधार ॥ से॥ रायणतलपगलानमुंए । शांतिनाथ सुखकार ॥ से०॥ १३ ॥रायणतलपगलानमुंए । चौमुखप्रति माच्यार। से० ॥ बीजीनूमि बिंबावलीए। घुमरीकगणधार ॥से०॥१४॥ सूरजकुंमनिहालीयैए । अतिनलीननकामोल ॥से ॥ चेलणातलाई सिध सिलाए । अंगफरसुं नक्षोल से० ॥ १५ ॥ आदिपुरपाजै ऊतरूंए । सिमबमलविसरांम ॥ से०॥ चैत्यप्रवाड इणपरि करीए । सीधावंरितकाम ॥ से ॥ १६ ॥ जात्राकरी सेजेज तणीए । सफलकीयो अवतार ॥ से॥ कुसलखेममुं आवीयोए । संघसहपरिवार ॥ से॥ १७ ॥ सेव॒जरास सो हामणोए। सांजलज्यो सहुकोई ॥से० ॥ घर बैठां नणेजावसुंए । तमुजा त्राफलहोइ॥से॥१८॥ संवत सोल वयांसीयैए । सावणवदिसुखकार । से० ॥रासनएयो सेजेजतणोए । नगर नागोर मकार ॥ से ॥ १९॥ गिरवो गउखरतरतणोए। श्रीजिनचंदमुरीस । से। प्रथमसिष्य श्रीपूजनाए। स कलचंद सुजगीस ॥ से०॥२०॥ताससीसजगजाणीयैए । समैसुंदरनवमाय। से । रासरच्यो तिणरूवडोए। मुणतां आणंदथाय॥ से ॥२१॥ ॥ ॥ इति श्रीसेजेजरास संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ श्रीसम्मेतसिखरजीकोरास ॥॥ ___॥ ॥ वांदी वीस जिनेसरू । रचस्युं रासरसाल । तीरथ शिखर समेतनी । महिमा बडी विशाल ॥ १ ॥ मोटो तीरथ महियलै । प्रगट्यो शिखर समेत । कोडाकोडी मुनिवरू । सिधि गए इहखेत ॥ २ ॥ तीरथ शिखर समेतए । फरस्यां पापपुलाय । नविजन नेटो जावमुं । ज्युं सुख संपद थाय ॥ ३ ॥ महिमा सिखरसमेतनी । कहि नसकै कविकोय । गुण अनंत जगवंतना । तिमए तीरथ होय ॥ ४ ॥ ढाल ॥१॥ चौपईनी ॥ ॥ गिरवर शिखर समो नहीकोय। एहनी महिमा सबजग होय । वीसजिनेसर मुगतैगया । मुनिजन ध्यानधरीनै रह्या ॥१॥
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२३०
रत्नसागर. प्रथम अयोध्यानगरी नली । तिहां जितशत्रु नरेसर बली । विजया राणी ने सुतजाण । अजित कुमर सहुगुणनीखाण ॥२॥ जसुइंद्रादिक सेवा करै । इंद्राणी अतिउचव धरै । तीर्थकरनी पदवी लही । अंतर अरिजिण साध्या सही ॥३॥ अनुक्रम इमनोगवतां लोग । पुन्यप्रसाद मिल्यो सहु जोग । अवसर दै संबबर दांन । संजम लीनो आप मुजान ॥४॥ कर्मख पावी पाम्यो ग्यान । केवलदर्शन लह्योप्रधान । विचरै पुहवी मंमल मांहि । नब्यजीव प्रतिबोधन तांहि ॥५॥ सिंह सेनादिक गणधरनया । पंचा णवै संख्या सहु थया । एकलाख मुनिवर परिबरया । श्रावक श्रावकणी वहुकरया ॥६॥ तीन लाख वलि तीस हजार । साधवियां जाणो मुवि चार । श्रावक सहस अठाएं सही । दोय लाख संख्या गहगही॥७॥ पांच लाख पेंतालीस हजार । श्रावकणी संख्या सुबिचार । बहुत्तर लाख पूरबनो आय । कंचनवरण सरीरसुहाय ॥८॥ साढा व्यारसे धनुष स रीर । मानलह्यो प्रनु गुण गंभीर । गजलांउन प्रजुजीनो जाण । अमृतसम जसुमीठी वाण ॥९॥ अनुक्रम प्रनुजी सिखरसमेत । गिरवर पर आव्या निजहेत । सहस मुनिस्वरने परिवार । मासखमण अणसण कर सार ॥१०॥ चैत्री सुदि पूनिमनें दिनें । मुक्तिगए प्रनु तीरथरणें । जूचर खे चर किनरसुरी। इंद्रादिक सहु नबव करी ॥ ११ ॥थाप्यो तीरथ मोटो मही। अठा महोचव कियोसही। ए तीरथनी जात्राकरै । ते नवियणप्रह यसुख लहै ॥ १२॥हा॥ * ॥ श्रीसंभव जिनराजजी । गएइहांनिर्वाण । शिखरसमेत मुहामणो । प्रगट्यौ तीरथ जाण ॥१॥ * ॥ सुगुणसनेही साजन श्रीसीमंधरस्वाम, एचान ॥ सावत्थी नगरी जरी धनसंपद सहुथोक। जैतारीनृप राजकरै सुखियासबलोक । सेनाराणी मीठीबाणी गुणनी खाण। जेहने सुत श्रीसंनव जनम्या सकल सुजाण ॥१॥कंचनबरण सरीरमनोहर प्रजुनोजाण । लंग्न अश्वतणो सोहै प्रनुनो परधान । साउलाख पूरबनो प्रनुनो आयुप्रमाण । धनुख च्यारसै उच्चपणे प्रनुदेह बखाण ॥ २ ॥ एकसो दोय संख्यायें प्रजुनें गणधर होय । दोयलाखमुनि जेहनै गुणवरता जगजो य। तीन लाख श्रमणी वली ऊपर सहस उत्तीस । जूसंगल विवरै प्रनु श्रीसं
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श्रीशिखरजीको रास.
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नव जगदीस ॥ ३ ॥ तीन लाख वलि सहस त्र्याएं श्रावक लोक । षट्लख सहस बत्तीस श्रावणी संख्याथोक । त्रिमुख यक्ष अरु पुरितादेवी सानिध कार । बिचरंतां प्रजु सकल संघमें जय जय कार ॥ ४ ॥ सहस भ्रमण परिवारै प्रभुजी शिखर समेत । एकमास संलेखणकीनी निज पदहेत। इस गिरि ऊपर पायो प्रभुजी पढ़ निरखां । तीरथमहिमां महियल मोटी थइय सुजाण ॥ ५ ॥ * दुहा ॥ प्रभिनंदन जिन वंदियै । पायो पद निवांण । शिखर समेत सुहामणो । नेटो तीर्थसुजाण ॥ १ ॥ सहसश्रमणसुं सुकसंजमधरो एचाल ॥ * ॥ नगरी अजोध्या सुरपुरी समजली। संबरराजा सोहेमनरली । सिद्धार्थ राणी तसुनंदए । अभिनंद जिन प्रगट्याचंदए ( नल्लालो ) चंदए सोवन वरणसोहै धनुष साढीतीनसे । सुंदर शरीर प्रमाण द्युतिकर कपिलंबन तेति बसे । पूर्वजाख पचास आयु गणधर इक्सो सोलए । तीनलाख मुनि लाखार्या सहस त्रिसत्सोलए ॥ १ ॥ ( चाल ) सहसयासी दोलख श्राद्धनी । संख्या चौलखसत्तावीसनी । श्रावकएयांरी संख्या जाणए । नायक यह कालिकाठाण ( नल्लाजो ) ठाणए शिखर समेत ऊपर मासएक संलेख ा। इकसहस साधू परवरथा प्रभु मुक्ति पहुचे पेषणा । इमही अयोध्या मेघ नरवर देवी मात सुंमगला । श्रीसुमति जिनवर नए नंदन सदाहोत सुमंगला ॥ २ ॥ (चाल) सोवनवर्ण धनुषतनुतीनसै। लंबन क्रौंच सोहै सुन हसे। पूरब लाख पच्यासी आए। इकसौ गणधर गुणगण जानए (नहालो ) जानए मुखि सो सहसवीस प्रमाणए। पलक त्रीस हजार साध्वी श्रावक दोय लक्षजाणए । संख्या इक्यासी सहस ऊपर श्रावका इम प्रानीयै । पणलाख सोले सहस तुंबरु महाकाली मांनीये । श्रीशिखर ऊपर सातसंख्या सहस साधुसुरंगए । करमासकी संलेखणा प्रभुमुक्तिपुहता चंगए ॥ ३॥ (चाल) इम कोसंबी नगरीतातए । धरनृपतात सुसीमामातए। पद्ममनुतसु अंगजना थए । लंबनकमल तणो सुमहाथए ( नल्लालो ) हाथए धनुषप्रमाणपुरा ढा ईसै तनुकहो | तीन लाख पूरब थितकहावै एकसोगणधर जहौ । लखतीन ती सहजार साधू वीससहस लखच्यारए । साधवी दोयलख सहस बिहंतर श्राव कसंख्या सार ॥ ४ ॥ ( चाल ) पांचलाख बलि पांचहजारए | श्रावकरयांरी
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रत्नसागर. संख्यासारए । कुसुमदेव स्यामादेवी कही । लालबरण तनुसोहै प्रचुसही। (नलालो) सोहए सिखरसमेत ऊपर आठसेत्रिण मुनिवरा । करमास संले खन प्रनुनी सेव करहै सुरवरा । श्रीपदमप्रजूजी मुक्तिपहुता गिरशिखर महिमानई । तमु चरणपंकज वालवंदे हृदय आणंद गहगही ॥५॥हा॥ श्रीसुपास जिणंदना। पदपंकज आराम । नविजन भ्रमर सुसेवतां । पामें बंजितकाम ॥१॥श्रीसीमंधर साहिबा, ए चाल ॥ ॥ नगर वणारसी सोनता। राजा तात प्रतिष्टलालरे । देवी पृथवीमातजी । स्वस्तिकलंबन सिष्टलालरे॥१॥श्रीसुपार्श्वजिणंदजी । वीस पूरबलख आयुलालरे। धनुष दोयसैदेहनो । कंचनवरण सुहाय लालरे ॥ २ ॥श्री० ॥ पंचाणवै गणधर कह्या । साधू त्रिणलाख होय लालरे । च्यारलाख तीस ऊपरै । सहस साध वियां जोय लालरे॥३॥ श्री० ॥ सहससतावन लदनी । श्रावकसंख्या थाय लालरे । च्यारलाख वलीत्रेणवै । सहस श्रावकणीनाय लालरे ॥ ४ ॥ श्री० ॥ मातंगयह सांतासुरी । पांचसै मुनि परवार लालरे । करित्रणसण मुगतैगया। नामलियां निस्तार लालरे॥५॥ श्रीसु०॥ नगर चंद्रपुर इण परै । राजातात महेस लालरे। देवी मातालक्ष्मणा । सुत चंद्राप्रनु वेशला लरे ॥ ६ ॥ श्रीचंद्राप्रजु वंदियै । चंद्रबरण तनुदेह लालरे । लंउन चंद्रतणो जलो। धनुषदोढस देह लालरे॥७॥श्रीचं० ॥ अविक कमल प्रतिबोधता सेवै सुर नर यह लालरे । दसलाखपूरब आऊखा । तेणवै गणधर दहाला लरे॥ ८ ॥श्रीचं०॥ दोयलख सहस पचाणवै । मुनिश्रमणी तीनला ला लरे। असीसहस संख्याकही। श्रावकवलि दोयलकलालरे॥९॥ श्रीचं० ॥ लाखपचास ऊपरवली । श्राविका चननदधार लालरे । सहसइकाणवै क. परे । प्रनुजीनो परिवार लालरे । ॥१०॥ श्रीचं० ॥ विजयदेव नृकुटीमुरी। सहससाधु परिवार लालरे । संलेखन इकमासनी। पुहता मुक्तिमझार लालरे ॥ ११ ॥ श्रीचं० ॥ हा ॥ जय श्रीसुविध जिनेसरू । जगपति दीनदया ल । समेतसिखर मुगतेगया। विजनके प्रतिपाल ॥ ढाल ॥ ॥ श्रीविम लाचलसिरतिलो एचाल ॥ * ॥ नयर काकंदी नरपति । एम पितामुग्रीव । देवीरामा मातासुत भए सुविधसुनजीव ॥ १॥ रजतवरण समतनुसत।ध
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श्रीशिखरजीकोरास.
२३३ नुष एकपरिमांण। दोय लाख पूरब कह्यो। प्रनुनो आयु सुजाण ॥२॥अध्या सी संख्यानये। गणधर परम प्रधान । लख दो मुनि विंशति सहस । इकल खश्रमणीजांण ॥ ३ ॥ दोयलद श्रावक कह्या । अरु गुणतीसहजार । एक त्तर चौलख सहस । श्रावकणी सुविचार ॥ ४ ॥ सुरीसुतारा सुरअजित । श्रीसंघ सानिधकार । सहससाधु परिवारसुं। आए सिखर सुचार॥५॥माससं लेखण कर प्रनु । मुक्तिगए इहठोर । तीरथ महिमा महियलै । प्रगटी च्यारु नर ॥६॥ इमहीज शीतलनाथनो। हिवसुणज्यो अधिकार । नदिलपुर दृढ रथ पिता । मातनंदा सुखकार॥७॥लंउन सुन्न श्रीवबनो। श्रीशीतल जिन चंद। कंचनवरण नेऊधनुष । मानसरीर अमंद ॥ ८ ॥ एकलाख पूरब क ह्यो । प्रनुनो आयुप्रमाण । इक्यासी गणधर कह्या। मुनि इकलाख सुजाण ॥ ९॥ एकलाख चालीससहस । श्रमणी संख्या नेर । सहस तयासी दोय लख । श्रावक संख्या जोर ॥ १०॥ सहस अठावन लदौ । श्रावकणी सु विचार । देवी असोका ब्रह्मयद । सहु संघ सानिधकार ॥ ११ ॥ सिखरस मेत सहस्रएक। साधूने परिवार । मुक्तिगए प्रजुमासकी । संलेखन करसार ॥१२॥ * ॥ ढाल ॥धन २ संप्रतिसाचौ राजा एहनी ॥ ॥ सिंहपुरी नगरी तिहाराजा। विष्णुनरेसर तातजी । कंचनवरण श्रेयांस प्रनृजी। नपज्या विष्णु सुमातजी॥१॥ नमोरे २ श्री त्रिनुवन राजा । खडग लंग्न प्रनु पायजी । धनुष असी देहमांन चौरासी । लाख वरसनो आयुजी ॥ २ ॥ न० ॥ गणधर बहुत्तर सहसचौरासी । मुनि श्रमणी तीन लाजी । तीन सहस बलि सहस गुण्यासी। श्रावक पुण दोय लक्खजी॥३॥नमो० ॥ अडतालीस सहस बलि चौलख । श्राविका जाणो सारजी । जद अमर सुरी मानवी जांणो। श्रीसंघ सानिध कारजी॥४॥न०॥ सहस मुनीसरने परिवारै । प्रनुजी सिखर समेतजी । मास संलेखन कर प्रनुपुहता । मुक्तिम हिल सुखहेतजी॥ ५ ॥ न०॥हिव कंपिलपुर तातनूपति । श्रीकृतवर्मसुमा तजी। स्यामादेवी अंगजनपना। विमलनाथजगतातजी॥३॥न०॥ सूकरलं उन सोवनकाया। साउधनुष देहीमांनजी। साठलाख बढरनोआयु। शिष्य स तावन जानजी॥७॥नासाठसाहस मुनि अमसय इकलख। श्रमणी श्रावक
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रत्नसागर. जांणजी। आठसहस दोयलद श्राविका । चौलनसंख्या आंणजी॥८॥न०॥ षामुख सुरवर विदितादेवी । प्रनुजी सिखरसमेतजी। षटहजार साधुपरिवार। मुक्तिगए सुखहेतजी॥९॥नगानगरीनाम अजोध्या नरवर । सिंहसेन जगसार जी। सुजसामात तिणे सुतजायो। प्रनुजी अनंतकुमारजी॥१० न० ॥ लंदन श्येन सोवनसमकाया। धनुषपचास प्रमाणजी। तीसलाख वढरनोआयु । गण धर पचवीस आणजी॥११॥न०॥ गसठसहसमुनीसरसोहै। वासहश्रमणीह जारजी। उहजार लाख दोय श्रावक । श्रावकणी इमधारजी॥१२॥न०॥ च्यारलाख वलि चवदहजारए । अंकुसादेवी होयजी । पातालयद श्रीसंघकै सानिध । कारी नितप्रति जोयजी ॥१३ न० ॥ आठसैमुनिवरने परिवारै। शि खरसमेत प्रधानजी ।माससंलेखन करगिरकपर। पुहतापद निरवांणजी॥१४ न० ॥ * ॥ हा ॥ * ॥ असें धर्मजिणेसरू । पुहता पदनिर्वाण । शिखर समेत गिरंदपर । नमो २ जगनांण १॥॥ जगतगुरु त्रिशलानंदनजी एचा ल ॥॥रनपुरी नगरीधणीजी। जानुराय सुजाण । राणीसुब्रता मातनेजी। धर्मनाथ गुणखांण ॥१॥ जगतपति धर्मजिनेसरसार ॥धनुषतालीस तनुक योजी । वज्रलंग्न सुखकार ॥२ ज० ॥ चोतीसगणधर मुनिकह्याजी। चौ सहसहस प्रमाण । श्रमणी वासठ सहस स्युंजी। श्रावक दोयलमान ॥३॥ ज० ॥ च्यारसहस वलि ऊपरांजी । चौलाख एक हजार । श्रावकणी सं ख्याकहीजी । दसला आयुविचार ॥ ४ ज० ॥ किंनरसुर यत्नासुरीजी। एकसहस परिवार । समेत शिखर मुगलैंगयाजी । वांदू वारहजार ॥ ५॥ज० हथणापुर विश्वसेननाजी । अचिरामात नदार । शांतिजिनेसर जनमियाजी। त्रिनुवन जय २ कार ॥६॥ (जगतपति शांति जिनेसरसार)॥ मृगलांगन सोवनसमोजी। देही धनुषचालीस । आयुवरषइकलाखनोजी। बत्तीस गणधर सीस ॥७॥ ज० ॥ वाससहस मुनि सैजी । इगसठ श्रमणी हजार। दो यलाख श्रावककह्या जी। ऊपरनेऊ हजार ॥ ८ ॥ ज० ॥ सहसत्रयाण श्रा विका जी। तीनलाख परिवार । गरुम्यक देवीसुरी जी । श्रीसंघ सानिधकार ॥ ९॥ज॥ नवस मुनि परिवारस्युंजी । आया शिखर समेत । मासखमणकर मुक्तिमें जी। पुहता निजपदहेत ॥ १०॥ ज० ॥ असें हथिणा पुर जलोजी
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श्रीशिखरजीकोरास.
२३५ राजासूर सुतात । कुंथुनाथ जिन जनमीयाजी । कंचनतनु श्रीमात ॥ ११॥ (जगतपति कुंथुजिनेसर सार) ॥ गगलंटन पेंतालीसनोजी। धनुषदेहनो मान । सहस पंचाणवे वरषनोजी । आयु प्रनुनोजान ॥ १२ ॥ ज० ॥ पेंती सगणधर दीपताजी । साउसहस मुनि जान । उसै साउसहस वलीजी। श्र मणी संख्यामान ॥ १३ ॥ ज०॥ सहस गुणियासी लकनीजी । श्रावक सं ख्या होय । सहस इक्यासी तीन लाखनी जी।श्राविका संख्याजोय ॥१४॥ ज०॥ सातसै साधू परवस्याजी। देवीबला गंधर्ब । कुंथुनाथ मुगरौं गयाजी। माससंलेखणसर्व ॥१५॥ ज०॥ * ॥ हा ॥ ॥श्रीअरिनाथ जिनं दनो । कहस्युं अब अधिकार । श्रोता सुणज्यो प्रेमधर । थास्यैलानअपार ॥ १ ॥ ( देसीविछियानी ) अरेलाला श्रीजिनकुशल सूरी सरू ए चा०॥ ॥अरेलाला श्रीअरिनाथ जिनेसरू । जिहां नगरी अयोध्या चंदरेलाला। तात सुदर्शन मातजी। नंदादेवी ना नंदरे लाला ॥ २॥ श्री अ०॥ लंडन नंद्यावर्तनो। वीसधनुष देहीनो मानरेलाला। कंचनवरण सुहामणो । आयु सहस चोरासी प्रमाणरे लाला ॥ ३ ॥ श्री० ॥ इकलाख श्रावक ऊपरै । वली संख्या अधिकी जाणरे लाला । सहसवहुत्तर तीननी । लद श्राविका संख्या प्राणरे लाला ॥ ४ ॥ श्री० ॥ देवदेवी सानिधकरे । इकसहस मुनि परिवाररे लाला। मुक्ति गए इणगिरि प्रनु । कर माससंलेखन साररे ला ला ॥५॥ श्री० ॥ मिथिलानगरी प्रनावती । मात पिता श्री कुन रायरे लाला । लंबनकलस पचीसनो । वपु धनुष सोवनसम कायरे ला ला ॥ ६ ( श्रीमतिनाथ जिनेसरू)॥ सहस पचावन वर्षनी । थित ग णधरअठावीसरे लाला । विककमल प्रतिवोधता। जगनायक श्रीजगदीसरे लाला॥७॥ श्रीम० ॥ चालीस सहस मुनीसरू । श्रमणी पचावनसहसरे लाला । सहस त्रयासी लदनी । श्रावकनी संख्या साररे लाला ॥ ८ ॥ श्रीम० ॥ श्राविका सित्तरसहसनी । लहतीन संख्या सुविचाररे लाला । सहस मुनी परिवारमुं । गए मुक्ति संलेखण धाररे लाला ॥ श्रीम० ॥राज ग्रही राजा पिता । सुग्रीव पद्मावती मातरे लाला । श्यामवरण तनु शोलतो। जे कपिल लंडन विख्यातरे लाला ॥९ (श्रीमुनिसुव्रतस्वामिजी)॥धनुष
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रत्नसागर
वीस देही तणो । प्रायुववर तीसहजाररे लाला । अष्टादश गणधर थया । तीससहस मुनीसर साररे लाला ॥ १० ॥ श्रीमु० ॥ श्रमणी सहस पचीसनी । संख्यावहुत्तर हजाररे लाला । इक लक्ष ऊपरि श्राविका । तीन लक्ष प चास हजाररे जाला ॥ ११ ॥ श्री मुनि० ॥ वरुणयक देवी नली । नर दत्ता सानिधकाररे लाला । सहस मुनि परिवारसें । गए मुक्ति महल सुख साररे लाला ॥ १२ ॥ श्री० ॥ विजयपिता विप्रामातजी सोवन सम श्रीनमिनाथ रे लाला । नीलकमल लंबन कह्यो । वपु धनुख पनर आयु साथरे लाला ॥ १३ ॥ ( श्रीनमिनाथ जिनेसरू ) || दसहजार वरस तणो । गणधर सित्तर परमाणरे लाला । वीस इकतालीस सहस किम । साधु साधवी संख्या जाणरे लाला ॥ १४ ॥ श्रीनमि० ॥ इकलख सित्तर सहस नी । तीनलक सहस वलि होयरे लाला । श्रावक संख्या श्राविका । अ नुक्रमकरि संख्या जोय रे लाला ॥ १५ ॥ श्री० ॥ विचरंता नूरुलै । या सिखर समेत मजार रे लाला । भ्रकुटी यह गंधारी सुरी । इक स हस मुनि परिवाररे जाला ॥ १६ ॥ श्री० दुहा ॥ * ॥ परमेसर श्री पास नी । महिमा जगति विख्यात । सिखर सिरोमणि सहसफण । जगजी वन जगतात ॥ १ ॥ * ॥ ढाल ॥ आदरजीव क्षमागुण प्रदर एहनी ॥ ॥ * ॥ जय जय परमपुरुष पुरषोत्तम । पारस पारस नाथ जी । सांवरिया साहिव जग नायक । नाम अनेक विख्यात जी || २ || जय २ सिखर समेत सिरोमणि । श्रीसांवरिया पास जी। ध्यावै सेवें जेनरतेहनी । पूरे वंबित सजी ॥ २ ॥ जय० २ ॥ कासीदेस वणारसि नगरी । श्री श्वसेन नरिंद जी । वामा माता जग विख्याता । तेहना सुत सुख कंदजी || ॥ ३ ॥ जय० २ ॥ पन्नग लंबन नीलवरण बबि । देही शुभ नवहाथ जी। एक सो वरस प्रमाणें । गणधर दस प्रनु साथजी ॥ ४ ॥ जय ० २ ॥ सोल सहस मुनिवर अरुश्रमणी । कही प्रगतीस हजार जी । मंगल विचरे नविजनकुं । वोधवीज दातारजी ॥ ५ ॥ ज० ॥ चोस स इस लाख इक श्रावक । गुणचालीस हजार जी । तीन लाख श्रावकणी संख्या । पार्श्व यक्ष सुर सारजी ॥ ६ ॥ ज० ॥ वीस जिनेसर मुगतै पुह
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श्री शिखरजीकोरास(वा) गौतमरास. - २३७ ता। महिमा थश्यअपार जी। तिणए तीरथ प्रगट्यो जगमें । मुक्तितणो दातार जी॥७॥ जय० २॥ नहरी पालै जेनर नावै । लेटै सिखर गि रिंद जी। ते नर मनबंडित फल पामें। ए सुरतरुनो कंदजी॥८॥जय०२॥ बहुबिध संघ तणी करै जक्ति । संघपति नांम धराय जी । सफल करै संपद निज पामी । जेहनो सुजस सवाय जी ॥ १० ॥ जय० ॥ परनव सुरनर संपद पामें । जात्रा करै गहगाटजी । साधर्मी बबल मुनि नक्ती । पूजा नव थाट जी॥ ११ ॥ जय० ॥ टुक टुंक पर चरण प्रचूना। पूजो नविजन नाव जी । ध्यान धरो जिनवरनो मनमें । आनंद अधि क नाव जी॥१२॥ ज० ॥ रास रच्यो श्रीसिखर गिरिनो। सुणतां न वनिधि थाय जी। तिणए नविजन नाव धरीनें । सुण ज्यो मनथिर लाय जी॥१३॥ ज०॥ खरतर गडपति महिमा धारी । कीरति जग विख्यात जी । जय श्रीजिन सौनाग्य सूरीसर। अमृतबचन सुगात जी ॥ १४ ॥ ज०॥ तासुपसायै रासरच्यो ए । अमृत समुद्रनें सीस जी । बालचंद्र निज मति अनुसारै । सोधो विबुध जगीस जी॥१५॥ ज०॥संवत नगणीसै सित मोत्तरे। सुदि बैशाष सुढाल जी । रास अजीमगंज मांहि कीलो । नण तां मंगल माल जी॥ १६ ॥ ज०॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥ इति श्री सिखरजीको रास संपूर्णम् ॥ २०१॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ गोतम रास लिख्यते ॥॥ ____॥ बीरजिणेसर चरण कमल कमलाकय वासो। पणमवि पनणिसु सामि साल गोयम गुरु रासो । मण तणु वयणे कंत करवि निसुणहु नो नविया। जिम निवसै तुम देह गेह गुण गण गह गहिया ॥१॥जंबूदीव सिर नरह खित्त खोणी तल मंगण । मगहदेस सेणियनरेस रिनदल बल खंम '। धणवर गुबर गाम नाम जिहां गुण गण सजा । विप्पवसै वसु नुइ तत्थ तसु पुहवी नजा॥२॥ ताणपुत्त सिरि इंदनूय नूवलय पसिघो । चवदह विजा विविहरूव नारी रस लुचो । विनय विवेक विचार सार गुण गणह मनोहर । सात हाथ मुप्रमाण देह रूवहि रंगावर ॥ ३ ॥ नयण वयण कर चरण जणवि पंकजालपामिय । तेजहि तारा चंद सूरि आकास मामि
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રરૂ૮
रत्नसागर. य। रूवहि मयण अनंग करवि मेल्यो निरधामिय । धीरम मेरु गंगीर सिंधु चंगम चय चामिय ॥ ४ ॥ पेखवि निरुवम रूव जास जणजप किंचिय एकाकी किल नित्त इत्थ गुण मेख्या संचिय । अहवा निच्चय पुत्व जम्म जिणवर इण अंचिय । रंना पठमा गवरि गंग रतिहा विधि वंचिय ।। ५॥ नय बुध नय गुरु कविण कोय जसु आगल रहियो । पंचसयां गुण पात्र गत्र हीमेंपर वरियो । करय निरंतर या करम मिथ्या मति मोहिय । अण चल होस्ये चरमनाण देसणह विसोहिय ॥६॥(वस्तु) ॥ ॥ जंबूदी व जंबूदीव जरह वासंमि। खोणीतल मंगण । मगह देस सेणिय नरेसर। वरगुवर गाम तिहां। विप्प वस वसनूइ । सुंदर तमु पुहवि लजा। स यल गुण गण रूव निहांण । ताणपुत्त विजानिलो। गौयम अतिहि सुजाण ॥७॥ (जास)॥ चरम जिणेसर केवलनांणी। चोविहसंघ पश्छा जाणी। पावापुर सामी संपत्तो। चनविह देव निकायहि जुत्तो॥ ८॥ देवहि समवस रण तिहांकीजै। जिणदी मिथ्या मत गजै । त्रिनुवन गुरु सिंहासन बैग। ततखिण मोह दिगंतपइसा ॥९॥क्रोध मान माया मदपूरा । जायै नाठा जिम दिन चोरा । देवघुकुन्नी आगासे वाजी। धरमनरेसर आव्यो गाजी ॥१०॥ कुसम वृष्टि विरचै तिहां देवा । चठसठ इंद्रज मांगेसेवा । चामरन असिरोवरि सोहै । रूवहि जिणवर जगसह मोहै ॥ ११ ॥ नपसम रसन्नर वर वर संता। जोजनवाणि वखाण करंता । जाणवि वर्षमान जिण पाया। सुर नर किन्नर आवइराया ॥१२॥ कंत समोहिय जलहल कंता । गयण विमाणहि रण रण कंता। पेखवि इंद नूइ मनचिंते । सुरावे अम जज्ञ हुवंते ॥ १३ ॥ तीर तरंडक जिमते वहिता । समवसरण पुहता गह गहिता । तो अनिमाने गोयमजपै । इण अवसर कोपै तणुकंपै ॥१४॥ मूढा लोक अजाण्युं बोलै । सुर जाणंता इम कांइ मोलै । मो आगल कोइ जाण नणीजै । मेरु अवर किम अोपम दीजै ॥१५॥ (वस्तु) वीर जिणवर वीरजिणवर नांण संपन्न पावापुर सुरमहिय । पत्तनाह संसारता रण । तिहिं देवइ निम्माहिय । समवसरण बहु मुक्ख कारण । जिणवर जग नजोयकरे । तेजहिकर दिनकार । सिंहासण सांमी ठव्यो । हुन तो
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श्री गौतमरास.
२३९ जय जय कार ॥१६॥ (जास) तोचढियो घणमाण गजै । इंद नूइ नूय देवतो ॥ हुंकारो करसंचरिय । कवणसु जिणवर देवतो॥जोजन नूमि समो सरण । पेखवि प्रथमारंनतो ॥ दहदिस देखै विबुध वधू । आवंती सुररं जतो ॥१७॥ मणिमय तोरण दंम ध्वज । कोसीसै नवघाटतो ॥ वय रविवर्जित जंतुगण । प्राती हारिज आठतो ॥ सुर नर किन्नर असुर वर। इंद्र इंद्राणी रायतो॥चित्त चमकिय चिंतवए । सेवंतां प्रनुपायतो॥१८॥ सहस किरण सांमी वीरजिण । पेषवि रूप विसालतो ॥ एहअचंनव संभव ए। साचो ए इन्द्रजाल तो ॥ तो बोलावई त्रिजग गुरु । इंद्रनूइ नामेण तो ॥ श्रीमुख संसा सामि सवे । फेमै वेदपएण तो ॥१९॥ मान मेल मदठेल करे । जगतहिं नाम्यो सीसतो ॥ पंचसयांसुं ब्रत लियो ए । गो यम पहिलो सीसतो ॥ बंधव संजम मुणवि करे । अगननूइ आवेयतो॥ नाम लेई आनास करे । ते पिण प्रतिबोधेय तो ॥२०॥ इण अनुक्रम गणहर रयण । थाप्पा वीर इग्यारतो ॥ तो नपदेशै जुवन गुरू । संयम सुं व्रतवार तो ॥ बिहुँ उपवासें पारणो ए । आपणपै विहरंत तो ॥ गो यम संयम जगसयल । जय जय कार करंत तो ॥ २१ ॥ (वस्तु) ॥ ॥ इंद्र नूइ २ चढियो बहुमान । हुंकारो करि कंप तो । सम वसरण पहुतो तुरंततो ॥ जेहसंसा सामिसवे । चरमनाह. फेमै फुरंततो॥ बोधबीजसंजाय मने । गोयम अवहि विरत्त ॥ दिक्खलेई सिख्यासही। गणहरपयसंपत्त ॥२२॥ (नास ) ॥ * ॥ आज हुप्रो सुविहाण । आज पचेलम पुण्यनरो। दीग गोयमसामि । जो निय नयणे अमियरो॥ समवसरण मशार । जे जे संसा ऊपजै ए । ते ते पर नपगार । कारण पूर्व मुनिपवरो॥२३॥ जीहां दीजै दीख । तीहां केवल ऊपजै ए । आपकनें अगहुँत । गोयम दीजै दान इम । गुरु ऊपर गुरु नक्ति । सामी गोयम नप निय । अणचल केवल नाण । रागज राखै रंगनरे ॥२४॥ जो अष्टापद सैल । वंदै चढ चनवीस जिण । आतम लबधि वसेण । चरम सरीरी सो जमुनि । इय देसणा निसुणेह । गोयम गणहर संचरिय । तापस पनरसए रण। जो मुनि दीगे आवतोए ॥२५॥ तप सोसिय निय अंग । अमां स
1 * ॥ इंद्र नाथन । जय जयरणोए । आपण लवन गुरू ।
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२४०
रत्नसागर.
गतिन ऊपजैए । किमचढस्यै दृढकाय । गज जिम दीसे गाजतोए । गिरु ओए अनिमान । तापस जो मन चिंतवै ए । तो मुनि चढियो वेग । प्रावि दिनकर किरण || २६ || कंच मणि निप्पन्न | दंग कलस ध्वज बम सहिय । पेषवि परमाणंद । जिणहर जरतेसर महिय । निय २ काय प्रमाण | चिहुँ दिसि संठिय जिगह बिंब | पण मवि मन उल्लास। गोयम गहर तिहां वसिय ॥ २७ ॥ वयर सामिनो जीव । तिर्यक जूंनक देवतां । प्रतिबोध्या पुंगरीक । कंडरीक अध्ययनत्रणी । बलता गोयमसाम सवि तापस प्रतिबोध करे । लेई आपण साथ । चाले जिम जूथाधिपति ॥ २८ ॥ खीरखां घृत आण । अमिय वूठ अंगूठ ठवे । गोयम एकण पात्र । करावे पारणो सवे । पंचसयां सुननाव । नमन गरियो खीर मिसे साचा गुरु संयोग । कवलत केवल रूप हुय ॥ २९ ॥ पंचसयां जिणनाह । समवसरण प्राकारत्रय । पेषवि केवल नाण । उप्पन्नो नकोयकरे । जाणें जा विपीयूष | गाजंती घनमेघजिम । जिणवांणी निसुणेवि । नाणीहुआ पंचस यां ॥ ३० ॥ ( वस्तु ) इ अनुक्रम २ नाणसंपन्न | पनरैसै परिवरिय । हरिय पुरिय जिनाह वंद | जाणेवि जगगुरु वयण । तिहिंना अप्पाण निंदइ । चरमजिनेसर इमजणे । गोयम मकरिस खेव । बेहजाय प्रापणसही । हो स्यां ॥ ३१ ॥ (नास ) ॥ ॥ सामियो ए वीरजिणंद । पूनमचंद जिम नासिय । विहरियो ए नरह वासंमि । वरसबहुत्तर संवसिय । ठवतो ए काय पनमेण । पायकमल संधै सहिय । प्रावियो ए नयणा णंद । नयर पावापुर सुरमहिय ॥ ३२ ॥ पेषियोए गोयम सामि । देवसमा प्रतिबोधकरे आपणो त्रिसलादेवि । नंदन पुहतो परमपए । वलतोए देव आकास । पेषवि जाएयो जिसमेंए। तो मुनिए मनविषवाद । नादभेद जिमकपनो ए ॥ ३३ ॥ इसमें ए सामियदेख । आपकनासूं टालियो ए । जाणतोए तिहुनाह । जोक विहारन पालियो ए । प्रतिजजोए कीधलो सामि । जायो केवल मांगस्यैए । चिंतव्योए बालक जेम । हवा के लाग यै ॥ ३४ ॥ हूं कि वीरजिणंद । जगतहिं जो जोलव्योए । आ पणोए चलो नेह | नाह नसंपै साचव्याए । साचाए एवीतराग । नेह
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श्री गौतमरास. न हेजै लालियो ए। तिणसमेंए गोयमचित्त । राग वैरागे वालियोए॥३५॥ आवतो ए जो नबह । रहितो रागें साहियो ए । केवलए नाण नपन्न । गोयम सहिज नमाहियो ए । तिहुअणए जय जय कार । केवल महिमा सुर करै ए। गण धरुण करय बखांण । विया जवजिम निस्तरै ए ॥ ३६ ॥ (वस्तु)॥ पढम गणहर २ वरषपच्चास । गिहवासै संवसिय । तीसवरस संजम विनूसिय। सिरिकेवल नाणपुण। वारवरस तिहुअण नमंसिय। राजग्रही नयरी उव्यो। वाणवइवरसान। सामीगोयम गुण निलो। होस्यै सिवपुर गन ॥३॥ (जास)॥ * ॥ जिमसहकारै कोयलटहुके। जिम कुसमावन परमल महकै। जिमचंदन सोगंधनिधि । जिम गंगाजल लहिरयां लहकै । जिमकणया चल तेजें फलकै । तिम गोयम सोनाग निधि ॥३८॥ जिम मानसरोवर निवसै हंसा । जिम मुरतरुवर कणय वतंसा । जिम महुयररा जीव वने ॥ जिम रयणायर रयणे विलसै । जिम अंबर तारा गण विकसै । तिम गोयम गुरु केलघने ॥ ३९ ॥ पूनम निसि जिम ससियर सोहै । सुरतरु महिमा जिम जगमोहै । पूरब दिसि जिम सहस करो। पंचानन जिम गिरवर राजे । नरवइ घर जिम मेंगलगाजै ॥ तिम जिन सासन मुनि पवरो ॥ ४० ॥ जिम गुरु तरुवर सोहै साखा । जिम उत्तम सुख मधुरी भाषा । जिम वन केतकि मह महै ए । जिम जूमीपति नुयबल चमकै । जिम जिनमंदिर घंटारणकै । गोयम लवधै गहगह्योए ॥ ४१ ॥ चिंताम णि करचढीयो अाज । सुरतरु सारै वंगिय काज । कामकुंल सहु वसिहु
आए। कामगवी पूरै मनकामी । अष्ट महासिधि आवै धामी । सामी गो यम अणुसरोए ॥४२॥ पणवदार पहिलो पनणीजै । मायावीजो श्रवण सुणीजै । श्रीमति सोना संभवो ए । देवां धुर अरिहंत नमीजै । विनय पहु न्वकायथुणीजै । इण मंत्रै गोयम नमो ए ॥ ४३ ॥ परघर वसतां काय करीजै । देस देसांतर काय नमी जै । कवण काज आयास करो। प्रहमी गोयम समरीजे । काज समग्गल ततखिण सीके । नवनिधिविलसे तिहां घरे ॥४४॥ चवदय सय वारोत्तर वरसै । गोयम गणहर केवल दि वसै। कीयो कवत्त नपगारपरो । आदहि मंगल ए पनणीजै । परबमहोबव
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रत्नसागर.
पहिलो दीजै । रिधि वृद्धि कल्याण करो ॥ ४५ ॥ धनमाता जिण नयरे धरियो । धन्य पिता जिए कुल अवतरियो । धन्य सुगुरु जिए दीखियो ए । विनयवंत विद्यानंकार । तसुगुण पुहवि नलम्नड़ पार । वमजिम सा खा विस्तरोए । गोयम स्वामिनो रास जणीजै । चनविहसंघ रलियायत कीजै । रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥ ४६ ॥ कुंकुम चंदन बको दिरावो । माणक मोतियां चोक पुरावो । रयण सिंघासण वैसणो ए । तिहां बैठी गुरु देसना देसी । नविक जीवना काज सरेसी । नित नित मंगल नदय करो ॥ ४७ ॥ इति गोतमरास संपूर्णम् ॥ इति षट् रासः ॥
॥ ॥ * ॥ राग प्रजाती जेकरे । प्रहनगमते सूर । नूखा जोजन संप जै । कुरला करे कपूर ॥ १ ॥ अंगूठे अमृत बसे । लब्धितणा नंगार । जे गुरु गोतम समरियै । मनवंबित दातार ॥ २ ॥ पुंरीक गोयम मुहा । गणधर गुण संपन्न । प्रहऊठीनें प्रणमतां । चवदेसे बावन्न ॥ ३ ॥ खंति खमं गुणकलियं । सुविणियं सबलधि संपणं । वीरस्स पढमसीसं । गोयमसा मी नमसामी ॥ ४ ॥ सर्वारिष्ट प्रणासाय । सर्वानीष्टार्थदायने । सर्वलब्धि निधानाय । गोतमस्वामिने नमः ॥ ५ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ ॐ ॥ अथ स्तुति संग्रह ॥
॥
॥ ॐ ॥ पंच विदेह विषै विहरंता । वीस जिनेसर जग जयवंता । चरणकमल त नामुं सीस । ग्रहनिसि समरूं ते जगदीस ॥ १ ॥ पंचमे रु पासै जलकंता । सोहै बीस महा गजदंता । तिए ऊपरि बै जिल्वर वी स। ते जिवर पण निसि दीस ॥ २ ॥ गणहर कहिय दुवालसमंग | थानकवीस जण्या तिहां चंग । तिणकपरि जे प्राणै रंग । तेनर पा सुक्ख जंग || ३ || जिणसास देवी चनवीस । पूरै मुऊमन तणीजगी स। संघतणा जेविघन निवारै । ति प्रण जन मन वंबित सारै ॥ ४ ॥ ॥ ॐ ॥ इति वीसविहरमाणस्तुतिः ॥ २ ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ अथ श्रीपार्श्वजिन स्तुति ॥ *
॥
॥ ॐ॥
॥ * ॥
॥ ॐ ॥ सम दमोत्तम वस्तु महापणं । सकल केवल निर्मल सदगुणं । नगर जेसलमेर विनूषणं । जति पार्श्वजिनं गतदूषणं ॥ १ ॥ सुर नरेश्वर
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१५ तिथोंकी स्तुति. नम्र पदांबुजाः । स्मर महीरुह नंग मतं गजाः। सकल तीर्थकराः सुख कारका । इह जयंतु जगऊन तारकाः ॥ २ ॥ श्रयति यः सुकृती जिन शासनं । विपुल मंगलकेलि विनासनं । प्रबल पुण्य रमोदय धारिका। फलति तस्य मनोरथ मालिका ॥ ३ ॥ विकट संकट कोटि विनासिनी । जिनमताश्रित सौख्य विकासिनी । नर नरेश्वर किप्यार सेविता । जयतु सा जिनशासन देवता॥४॥ ॥ इति श्रीपार्श्वजिनस्तुतिः॥३॥ ॥ॐ॥ . ॥॥अथ श्रीआदिजिन स्तुति॥॥ .
॥ * ॥ वर मुत्तियहार सुतारगणं । परचित्त कलत्त सुपत्तधणं। पयपंकय उप्पय देवगणं । श्रीअव्वुय वंदूं आदिजिणं ॥१॥ तियलोय नमंसिय पायजुआ
घणमोह महीरुह मुत्तिगया। परिपालिअनिचल जीवदया। ममहंतु जि णागम सुक्खसया ॥२॥ पणयंगि महातम रोरहरं । कक्षाण पयोरुह बुढिकरं। सुहमग्ग कुमग्ग पयासकरं । पणमामि जिणागम मन्हि करं ॥३॥ सिरिइंद समुऊन गायलया। सुहमाण विणम्मिय एगलया। असुरिंद सुरेंद सुरप्पण या। ममवाणि सुहाणि कुणेसुसया॥४॥॥ इति श्रीआदिजिनस्तुतिः॥४॥
॥ ॥ अथ श्रीवीरजिन स्तुति ॥॥ -॥॥ यदंजिनमना देव । देहिनः संति सुस्थिताः । तस्मै नमोस्तु वीराय । सर्वविघ्नविघातिने ॥ १॥ सुरपति नत चरण युगान् । नानेयजि नादि जिनपती नौमि । यश्चन पालनपरा । ऊलांजलिं ददतु सुखेभ्यः ॥ २॥ वदंति वृंदारुगणा ग्रतो जिनाः। सदर्थतो यद्रचयंति सूत्रतः। गणा धिपा स्तीर्थ समर्थन कणे । तदंगिना मस्तु मतं नु मुक्तये ॥ ३ ॥ शक्रः सुरा सुरवरै स्सहदेवतानिः । सर्वज्ञ शासन सुखाय समुद्यतानिः । श्रीवर्ष मान जिनदत्त मतप्रवृत्तान् । नव्यान् जनान्नयतु नित्य ममङ्गलेभ्यः ॥४॥ इति श्रीमहावीरस्तुतिः अणोऊारी॥ ५॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ श्रीअजितजिन स्तुति ॥ ॥ ॥ ॥ विश्वनायक लायक जितशत्रु विजयानंद । पयजुग नितप्रणमै देव अनैदेविंद । नावलहिरी गहिरी सव मनधरीय अमंद । श्रीसूरतसहिरै वंदो अजितजिणंद ॥ १ ॥ आठ प्रातीहारज अतिसय वलि चौतीस।
घातिने । देहिनः स्तुति ॥ जनस्तुतिः ।
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. रत्नसागर. . दिलरंजण देसन तेहना गुण पेंतीस । अगणित रिधधारी आचारीमां ईस । एहगुणना धारक वाहुं जिनचौवीस ॥ २ ॥ सुध अरथ अनोपम जिन जाषित सिंघांत । स्यामाद नयादिक हेतु युक्त नविभ्रांत । पाप कर दम पाणी सदगतिनी सहिनाणी । सुणिये नितनविका आगमकेरी वाणी ॥३॥ सासणनी साचीदेवी सानिधकारी । सुख कष्ट निवारण सेवीजै सुखकारी । साचै मनसमरै ते सुख लान अपारी । जिनलान पयंपै हो ज्यो जय जय कारी॥ * ॥ इति अजितनाथ स्तुतिः॥६॥ ॥ ॥
॥॥अथ श्रीशीतलजिन स्तुति॥॥ -- ॥ ॥ सुख समकित दायक कामित सुरतरु कंद । दृढरथ नृपराणी नंदा केरोनंद । नद्दलपुर सामी फेमै नवनाफंद । चित्तचोखै नमियै श्रीशी तल जिनचंद ॥१॥ अतीत अनागत हुआ होस्ये अनंत । संप्रतिका लै जेहेत्रविदेह विचरंत । त्रिहुं नवणे ठवणा सासय असासय संत । ते सगला त्रिकरण प्रणमुं श्री अरिहंत ॥२॥ कालिक नक्तालिक अंग अ नंगपविठ । नय नंग निक्खेपा स्यादवाद मित सिह । नविजन नपगारी नारी जिन नपदेश । श्रुत श्रवणे सुणतां नासै कोमिकलेस ॥ ३ ॥ ब्रह्म जद असोका सासन सुरि सुविचार । संघ सानिधकारी निरमल समकि तधार । चिंता उखचूरै पूरय मनहजगीस । ध्यान तेहनो धरीय कहै जिनला ज सूरीस ॥४॥॥ ॥ ॥ इति श्रीशीतलजिनस्तुतिः॥७॥
॥ ॥ अथ समवसरण नावगर्नित स्तुति ॥ ॥
ॐ॥ मिल चौविहसुरवर विरचै त्रिगडो सार । अढी गाऊ चंचो पिहलो जोयण बार । विच कनक सिंहासण पदमासन सुखकार । श्री तीरथनायक वैसे चौमुखधार ॥१॥ तीनत्र शिरोवरि चामर ढालै इंद देव इंनि वाजै मांजै कुमतीफंद । नाममल पूर्व फलके जाण दिणंद । ति हुअण जन मन मोहै सयलजिणंद ॥२॥ द्रव्य नावसु उवणा नाम नि
खेपाच्यार। जिण गणहर नाष्या सूत्रसिधांत महार। जिनवरनी पमिमा जि नसारिषी सुखकार । सुननावै वंदो पूजो जग जय कार ॥ ३ ॥ पुःखहर णी मंगलकरणी जिनवरवाणी । नववेद कृपाणी मीठी अमिय समाणी । म
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१५ तिथोंकी स्तुति
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नसुधे आणी प्रतिबूको नविप्राणी । सुयदेविपसायें पामें जयति सुनांणी ॥ ४ ॥ * ॥ इति श्रीसमवसरण नावगर्जितस्तुतिः ॥ ८ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ श्रीनेमिजिन स्तुति ॥
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॥ * ॥ सुर असुर बंदिय पायपंकज मयणमल्ल अदोनितं । घन सुघन स्याम सरीर सुंदर शंख लंबन सोभितं । सिवा देवि नंदन त्रिजग वंदन विक कमल दिनेश्वरं । गिरनार गिरिवर सिखर वंदु नेमिनाथ जि नेश्वरं ॥ १ ॥ अष्टापदें श्री आदि जिनवर वीर जिनपावापुरे । वासुपूज्य चंपापुरयसीधा नेमि वय गिरिवरे । सम्मेत सिखरें वीस जिनवर मुगति पहुता मुनिवरू । चनवीस जिनवर तेहवडुं सयल संघें सुखकरू ॥ २ ॥ इग्यार अंग उपांगबारे दसपयन्ना जाणियें । बछेद ग्रन्थ प्रसत्थ प्रत्था च्यार मूल वखाणियें । अनुयोग द्वार नदार नंदी सूत्र जिनमत गाइये । इह वृत्ति चूरणि नाष्य पैंतालीस आगम ध्याइये || ३ || दुहुँ दिसें बा लक दोय जेहनें सदानवियण सुखकरू । दुखहरे अंबा लंब सुंदर पुरिय दोह पहरू । गिरनार मंरुण नेमि जिनवर चरण पंकज सेवियें । श्रीसंघ सहुनें सदामंगल करो अंबा देवियें ॥ ४ ॥ इति गिरनार मंकण श्रीनेमि जिनस्तुतिः ॥ ९ ॥ ॥
Il it
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॥ * ॥ श्रीदेवार्य । विश्वेवर्यं । पूर्णानंद । नक्तयावंदे ॥ १ ॥ तीर्था धीशाः । शुद्धादेशाः । सर्वेीष्टं । शं कुर्वे तु ॥ २ ॥ प्राचो । वाचो युक्तया । कृप्ताः सद्भिः । पापं तु ॥ ३ ॥ शांता कांता । सिधा देवी । शांत्यै दांत्यै । शश्वद्भूयात् ॥ ४ ॥ इति श्रीवीर प्रभु स्तुतिः ॥ १० ॥ ॥ * ॥ अथ श्रीशीतलजिन स्तुति ॥
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॥ * ॥ त्रिभुवन जन नायक दायक वंबित दान । नवि कमल वि कासन सासन सूर समान । प्रणमुं बहुनावे नंदाराणी नंद । श्रीसूरत स हिरै शीतलनाथ जिणंद ॥ १ ॥ नऊन गुण धारी अविकारी अरिहंत ।
विजन हितकारी महिमावंत महंत । नपगारी अविचल जयकारी जग दीस | नित निरमल चित्तै वंदो जिन चौवीस ॥ २ ॥ जिहां नैगम संग्रह आदिकनय सुविचार | स्यादस्ति प्रमुख वलि सप्तनंगि विस्तार । पैंतीस
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२४६
रत्नसागर. गुणेकरी सोनै अति सुविसाल । तेकंठे ठवियै जिनवाणी वरमाल ॥ ३ ॥ कमलासन सोहै नील वरण तनुकांत । निज च्यार जुजै करि राजे अतिसय वंत । श्रीदेवी अशोका सोक हरण सुखकंद । इम नक्तै पन णे श्रीजिनलाल सूरिंद॥४॥ ॥ इति श्रीशीतल जिनस्तुतिः॥११॥
॥ ॥ अथ श्रीपार्श्वजिन स्तुतिः॥॥ ॥ ॥ श्री सर्वज्ञ ज्योतीरूपं विश्वाधीसं देवेंद्र। काम्याकारं लीलागार साध्वाचारं श्रीतारं । झानोदार विद्यासारं कीर्तिस्फारं श्रीकारं । गीर्वाणे र्वन्धं सानंदं नक्त्या वन्दै श्रीपार्थ ॥१॥ जागृप्रीपे जंबूप्रीपे स्वर्ण श्शेले श्रीशैले। चंचच्चके ज्योतिश्चके तुगत्वाढये वैताढये । श्रेयस्कारे वक्तस्कारे देवावासे सोल्लासे । येवर्त्तन्ते सर्वाधीशा स्तेसौख्यं वो देयासुः ॥ २ ॥ स म्यग् ज्ञानं शुध्ध्यानं श्रुत्वा ध्यानं सन्मानं । त्रैलोक्य श्रीरामारम्यं विद्यं प्राकाम्यं । अर्हक्रां जोजोद्भूतं शश्वत्पूतं संगीतं । लक्ष्मीकांतं वर्णो पेतं वंदेव्यक्तं सिघांतं ॥३॥ नव्यानां नक्त्यानां कल्याणं कुर्वती बिभ्रा णा । शीर्षे सोमीर कोटीरं तारं हारं बदोजे । विख्याता जोगेंद्रोपेता सा लंकारा प्रल्हादं । यछंती पद्मादेवी सद्बुधि वृर्षि वैदुष्यं ॥४॥॥ इति श्री पार्श्वजिन स्तुतिः॥१२॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ श्रीदपिमाला स्तुतिः॥ * ॥ - ॥ पापायां पुरि चारु षष्टतपसा पर्यकपर्यासनः । मापाल प्रजु हस्तपाल विपुल श्रीशुक्लशालामनु । गोसे कार्तिक दर्श नागकरणे तूर्यार कांते शुग्ने । स्वातौ यः। शिवमाप पाप रहितं संस्तौमि वीर प्रनु ॥१॥ यज नांगमनोद्भव व्रतवर झानावराप्ति दाणे । संन्याशु सुपर्व संततिरहो चक्र मह स्तत् दाणात् । श्रीमन्नानिनवादि बीरचरमा स्ते श्री जिनाधीश्वराः । संघाया नघचेतसे विदधतां श्रेयांस्यनेनांसिच ॥२॥ अर्थात्पूर्वमिदं जगाद जिनपः श्रीवर्षमानानिधः। तत्पश्चा जणनायका विरचयां चकुस्तरां सूत्रतः। श्रीमत्तीर्थ समर्थनेक समये सम्यग् दृशां नूस्पृशां । जूयाञाबुक कारक प्रवचनं चेतश्चमत्कारियत् ॥३॥ श्रीतीर्थाधिप तीर्थ भावनपराः सिद्धायि का देवता। चंचच्चक्रधरा सुरासुर नता पायादपायादसौ । अर्हन श्रीजि
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१५ तिथोंका मोटा गेटास्तवन.
२४७ नचंद्रगी स्सुमतिनो नव्यात्मनः प्राणिनो । याचके वम कष्टहस्ति निधने सार्दूलविक्रीमितं ॥ ४॥ इति दीपमालिका स्तुतिः॥१३॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥सिधारथ ताता जगत विख्याता त्रिसलादेवी माय । तिहां ज गगुरु जनम्या सब उखविरम्या महावीरजिनराय । प्रनुलेई दिदा कर हित शिख्या देईसंबचरीदान । बहु करमखपेवा शिवसुखलेवा कीधो तपशुनध्यान ॥१॥ वर केवलपामी अंतरजामी वदिकाती शुनदीस । अमावसजातें पिउलीरातें मुगतिगया जगदीस । वलि गौतम गणधर मोटामुनिवर पाम्या पंचमज्ञान । थयातत्वप्रकासी शीलविलासी पहुतामुगति निदान ॥२॥ सुरपति संचरिया रतननधरिया रातथई तिहां काली । जन दीवा कीधा कार जसीधा निसाथई नजवाली। सहुलोकै हरखी निजरेनिरखी परबकियो दी वाली। वलि भोजन जगते निज निज सगतें जीमें सेवसुहाली ॥३॥ सिघायिकादेवी विधनहरेवी वंचित दै निरधारी । करै संघनेसाता जिमजग माता एहवी शकति अपारी । जिणगुण इमगावै शिवसुखपावै सुणज्यो जविजनप्राणी । जिनचंदजतीसर महामुनीसर जप एहवी वाणी ॥४॥ ॥ इति श्री दीपमालिका स्तुति ॥१४॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ मोटा गेटा स्तवन संग्रह ॥ ॥ ॥ॐ॥ मनमोहन महाराज ।तीन जुवन सिरताज ॥आ लाल नगर बहान पुर राजीया जी॥१॥ पास जिणंद प्रधान । निरमल सुगुण निधान॥ आडे लाल ॥ वामा सुत वमि नागीया जी ॥२॥सेवक नीसंजाल । करीय खरी ततकाल ॥आ लाल ॥ संकट सहु प्रनु परि हरयाजी ॥३॥ चिंता करी चकचूर । प्रगट्यो आनंद पूर ॥आने लाल ॥वाट विषमता पिणटली जी॥४॥प्रनुजीने परसाद । वीता सहु विखवाद ॥आरे लाल । मन बंबित मुफ सहु फल्याजी॥५॥ध्यान समाधिनी थाप । मिलीयागे प्रनु आप ॥ आने लाल ॥ देज्यो दरसण वलि सदाजी॥६॥ अमृत धर्म सुजाण । सीस दमा कल्याण ॥ आने लाल ॥ वाचक इम वीनती करै जी॥७॥॥ ॥ ॥ॐ॥ इति श्रीमन मोहन पार्श्वनाथ स्तवनम् ॥ ॥ ३ ॥ ॥
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२४८
रत्नसागर.
, ॥ ॥ अथ श्री पार्श्व जिनस्तवन ॥8॥ ॥ ॥जय २ श्रीजिन राज । जग जन अन्तर जामी। तारण तरण जिहाज । परमातम परिणामी ॥ १ ॥ परम पुरुष परमेस । परमानंद प्र धान । परम प्रकास विसेस । निरमल ज्ञान निधान ॥ २ ॥ जगपति पा स जिणंद । प्रनु तुम हो नप गारी । सुनियै सेवक जान । असी अरज हमारी ॥ ३ ॥ मोह महामद नूलि । में बहुकाल गमायो। निजपर जा व विवेक । सुघ सुनाव नपायो ॥ ४ ॥ निरमल चेतन नाव । कर्म कलं कित कीनो। ताकारण गुण गोमि । पर ओगुण चित दीनो ॥ ५ ॥ निज अवगुण सुणिकान । दिलमें रोस नरानं । अग्रता निज गुणगान । मुनिवैकुं कमाई ॥ ६ ॥ आश्रव पांचे असुन । दिलसें दूर नजावै । कुम ति कदाग्रह जोग । समता सुघ न आवै ॥ ७ ॥ अब कबु पुण्य संयोग । प्रनु तुम मुद्रा देखी । सुघ अध्यातम लीन । नाव अमुच नवेखी ॥ ८ ॥ निरखि २ अनुबिंब । मनमें आनंदपाऊं । गाऊं तुझगुणग्राम । देव अवर नविचाहुं ॥९॥ करुणाकरि प्रनुमुझ । प्रातम निरमल कीजै । सुघदसा प्रगटाय । मोह विकलता जीजै॥१०॥ नव२ निजपद सेव । प्रनु सेवककुं दीजै। श्री जिन शक्ति पसाय । सुमति विलाश वरीजै ॥११॥ ॥४॥ ॥ ॥ इति श्री पार्श्वजिन स्तवनं ॥४॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ . ॥ नविका श्रीजिनबिब जुहारो ॥ आतम परम आधारोरे । (न विकाश्रीजि०) जिनप्रतिमा जिनसारषी जाणो । नकरो संकाकाई। गमवाणीने अनुसारै । राखो प्रीत सवाईरे॥न० श्री०॥ १॥ जे जिनविं ब स्वरूप न जाणें । तेकहिये किम जाणे। नूला तेह अज्ञाने नरिया । न ही तिहां तत्वपिगणोरे॥न श्री० ॥ २ ॥अंबम श्रावक श्रेणिक राजा। रावण प्रमुख अनेक। विविध परै जिन नगति करंता । पाम्या धरम वि वेकरे॥न श्री०॥ ३ ॥ जिन प्रतिमा बहु जगत जोतां। होय नि श्चय उपगार। परमारथ गुण प्रगटै पूरण। जोज्यो आद्र कुमाररे ॥ न. श्री०॥४॥ जिनप्रतिमा आकारे जलचर। बहु जलधि मकार । तेदेखी
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१५ तिथोंका मोटा बोटास्तवन.
२४९
बहुला महादिक । पाम्या विरत प्रकाररे ॥ ज० श्री० ॥ ५ ॥ पांचमा गै जिन प्रतिमानो । प्रगटपणें अधिकार । सूरीयानसुर जिनवर पूज्या । राय पसेणी मजाररे ॥ ज० श्री० ॥ ६ ॥ दशमें अंगे हिंसादाखी । जिनपूज्यां जिनराज । एहवा आगम अस्थमरोमी । करियै केम प्रकारे ॥ ज० श्री ॥ ७ ॥ समकित धारी सतीय द्रूपदी । जिनपूज्या मनरंगे । जोज्यो एहनो अरथ विचारी । द्वै ग्याता अंगेरे ॥ ज० श्री० ॥ ८ ॥ विजय सुरै जिम जिनवर पूजा । कीधी चितथिर राखी । द्रव्य जाव विहुं भेदे कीनी । जीवा निगम ते साखीरे ॥ ज० श्री० ॥ ९ ॥ इत्यादिक बहु आगम साखै । कोइ संका मति कर ज्यो। जिनप्रतिमा देखी नित नवलो । प्रेम वणो चित धर ज्योरे ॥ ज० श्री० ॥ १० ॥ चिंतामणि प्रनुपासपसायै । सरधा हो ज्यो सवाई । श्रीजिनला सुगुरु नपदे । श्रीजिन चंद्र सवाईरे ॥ ११ ॥ ० श्री० ॥ इति श्रीचिन्तामणि पार्श्वजिनस्तवनं ॥ ६ ॥ ॥
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॥ * ॥ अंतरजामी सुण लवेसर | महिमा त्रिजग तुमारी | सांगल आयो तुमतीरे । जन्ममरण दुखवारो ॥ १ ॥ ( सेवक अरज करैबेहो राज | म्हनें शिवसुख आलो ) ॥ ( प्रकणी ) सहुकोनां मनवंबित पूरो । चिंता सहुनी चूरो । एह विरुदळे राज तुह्मारो । किम राखो बो दूरो सेव० ॥ २ ॥ सेवकनें विल विलतो देखी। मनमें महिरन धरसो । करुणासा गर किम कहवासो । ज्यो उपगार नकरसो ॥ सेव० ॥ ३ लटपटनो हिव कामनही । परतिख दरसण दीजै । धुंवा धीजूं नहीसाहिब । पेट पड्यां पतीजै ॥ ४ ॥ श्री संखेसर मंगण साहिब । वीनती अवधारो । क हे जिनहर्ष मयाकर सुऊपर । जवसायरथी तारो ॥ सेवक० ॥ ५ ॥ इति श्री पार्श्वजिनस्तवनं ॥ * ॥ ६ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
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॥ ॥
॥ ॥ पुनः ॥
॥ * ॥ जयकारी जिनराज । पुरसादाणीरे । वामासुत वरदाय । निरम
लनाणीरे ॥ १ ॥ पांचकमल सँग । आतमहरख्यारे ॥ २ ॥
३२
अंग । निरुपम निरख्यारे । तीनकमल मुफ वदन महोदय देख | चंद लजाएंरे । गगन |
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२५०
रत्नसागर.
जमें निसदीस । इम मन आणुरे ॥ ३ ॥ सुरमणि ज्युं सुखकार । नयण वि राजे रे। हृदय कमल सुविलास । थाल ज्युं गजे रे ॥ ४ ॥ प्रनु कर चर ण विलोक । पंकज हारयो रे। ततखिण निज संवास । जलमें धारयो रे ॥५॥इम सरवंग नदार । श्रीजिन राया रे। साचै पुण्य संयोग । सा हिब पायारे॥६॥ प्रनु गुण अनुन्नव नीर । सांग सुरंगेरे । टाल्यो पा तिक पंक। आतम संगैरे॥७॥ वरस अढार चौतीस । वदि वैशाखै रे । मनु हर पांचम दीस । सहु संघ साखें रे ॥ ९ ॥ नगर महेवा मांहि । पास जुहारया रे। श्रीजिन चंद मुणिंद । वंगित सारया रे ॥९॥ ॥ इति पार्श्व जिन स्तवनं ॥ ॥७॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ..
॥ ॥अथ श्रीषनजिन स्तवन ॥१॥ ॥ ॥ (दाल) पाटो धरजी पाटीय पधारो ए० ॥ सुणि २ सेजेज गि रस्वामी । जगजीवन अंतरजामी । हुँतो अरजकरुं सिरनामी । कृपानिध वीनती अवधारो॥१॥नवसायर पार उतारो । निज सेवक वानवधारो॥ कृ०॥प्रनु मूरति मोहन गारी। निरख्यां हरखे नरनारी । जान वारी हुं वार हजारी ॥ कृ० ॥२॥ हिव किसिय विमासण कीजै । मुझ ऊपर महिर धरीजै । दिलरंजन दरसण दीजै ॥ कृ०॥३॥ आज सयल मनोरथ फ लिया। नव नवना पातिक टलिया। प्रनु जो मुझ सैमुख मिलिया ॥ कृ०॥ ॥४॥ समरयां संकट टलि जायै । नव नव नित मंगल थायै । मुझ आ तम पुण्य नरायै । कृ०॥ ५ ॥ कर जोमी वीनति कीजै। केसर चंदन च रचीजै । दिन धन धन तेह गिणी जै ॥ कृ०॥६॥ प्रनु दरस सरस लहितोरो । अति हरखित हुवो चित्त मोरो । जिम दीगं चंद चकोरो ॥ कृ० ॥७॥ परतिख प्रजु पंचमै ओरै । विसमा जय संकट वारै । सहु सेवक काज सुधारै ॥ कृ०॥८॥ सेवो स्वामि सदा सुखदाई। कमणा न रहै घर काई। बाधै संपति सोन सवाई ॥ कृ०॥९॥नानिराय कुलंबर चंदा। जव जन मन नयण आणंदा । अोलगै सुर असुर सुरिंदा॥ कृ० ॥१०॥ जयकारी रिषन जिणंदा। प्रहसम धर परम आणंदा। वंदै श्रीजिन भक्ति सूरिंदा ॥ कृ०॥ ११॥ इति श्री षन देवजी स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ ॥
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... १५ तिथोंका मोटा बगेटा स्तवन. २५१ ॥ ॥ अथ श्रीविमलजिन स्तवन ॥ ॥ ॥ ॥ घर अंगण सुरतरु फल्योजी । कवण कनक फल खाय । गयवर वांध्यो वारणेजी । खर किम आवेदाय ॥१॥ विमल जिन माहरे तुझसुं प्रीति । मुर सकलंकित मुं मिल्यां जी। हीयडो हीसे केम ॥ वि० २॥ ॥२॥ मन गमता मेवा लहीजी । कुणखल खावा जाय । आदर साहिब नो लहीजी । कुणब्ये रांक मनाय ॥ वि० ॥३॥ पाच ते कुण काचनें जी। अलव पसारै हाथ । कुण सुरतरु थी कठिन जी । वांवल घाले वा थ॥ वि०॥४॥ देव अवर जो हुं करूं जी । तो प्रनु तुमची आण । श्री जिनराज नवो नवैजी । तुंहीज देव प्रमाण ॥ वि०॥५॥ ॥॥ इति श्री विमल जिन स्तवनं ॥९॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ श्रीशीतल जिन स्तवन ॥ ॥ ॥ ॥ मोरा साहिब हो श्री सीतलनाथकि। वीनती सुणो इकमोरमी। मुख नांजै हो जग दीन दयाल कि । बात सुणीमें तोरमी ॥१॥ (मो.) तिण तोरैहो हुँ आयो पासकि । मुझ मन आस्या जै घणी । कर जोडी हो कहुं मननी बातकि । तुं सुणि जे त्रिनुवन धणी ॥ २॥ (मो०) हुँ नमियोहो नव समुद्र मकार कि । उक्ख अनंता में सह्या । ते जाणे हो तुं हीज जिन राज कि । में किमजायें ते कह्या ॥३॥ (मो० ) नाग जो गै हो तोरो श्री नगवंत कि । दरसण नयणे निरखियो । मन मान्यो हो मोरे तुं अरिहंत कि । हियमो हेजे हरखियो ॥४॥ (मो०) एक निश्चै हो में कीधो आज कि । तुझ विण देव बीजो नही । चिंतामणि हो जो पायो रतन कि । काच ग्रहै कहो कुण सही ॥ ५ ॥ (मो०) पंचामृ तहो जिण लोजन कीध कि । खन खायवा मनकिम थीयै । कंठ तांइहो जो अमृत पीधतो । खारो जल कहो कुण पीयै ॥ ६ ॥ (मो०) मोती कोहों जो पहरयो हारकि । चिरमठि कुण पहिरै होय । जसु गांठे हो लाख कोमि मरत्थ कि । व्याज काढी दाम कुण लीये ॥ ७ ॥ (मो०) घर मांहें हो जो प्रगट्यो निधानतो । देस देसांतर कुण नमें । सोना नोहो जो पोरसो सीधतो । धातुरवादी कुण धमें ॥ ८ ॥ (मो०) जिण
काडी दामण पहिरे हो" (मो० तारहो
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૨
रत्नसागर.
को हो जवहर व्यापार कि । मणि हारी मन किम गमें । जिण कीधो हो सदा हाल हुकम्म कि । ते तूं कारो किम खर्मे ॥ ९ ॥ (मो० ) तूं साहिब हो मोरो जीवन प्राण कि । हुँ सेवक प्रजु ताहरो । मुऊ जीवत हो आज जनम प्रमाण कि । जव दुख नागो माहरो ॥ १० ॥ ( मो० ॥ तुम मूरति हो देखता प्राय कि । समवसरण मुऊ संचरे । जिन प्रतिमा हो जिन सरिषी जाय कि । मूरख जे सांसो करे ॥ ११ ॥ ( मो० ) तुझ दरसण हो मुऊ प्राणंद पूर कि । जिम जग चंद चकोरमा । तुहा नामें हो मोरा पाप पुलाय कि । जिम दिन कुर्गे चोरमा ॥ २ ॥ ( मो० ) तुम्ह दरसण हो मुऊ मन नवरंग कि । मेह आगम जिम मोरमा । तुहा नामें हो सुख संपत्ति थाय कि । मन वंबित फल मोरडा ॥ १३ ॥ ( मो० ) हूँ मां हो हिव अविहरु प्रेम कि । नित नित करूं निहोरमा । सुऊ दे यो हो स्वामी जव जव सेव कि । चरण न बोऊं तोरमा ॥ १४ ॥ ( मो० ) कलश ॥ इम अमर सर पुर संघ सुख कर मात नंदा नन्दनो । सकलाप शी तल नाथ स्वामी सकल जन श्रानंदनो । श्रीवह लंबन वरस कंचन रूप सुंदर सोह ए । एतवन कीधो समय सुंदर सुणित जनमन मोह ॥ १५ ॥ इति श्री शीतल नाथ जिन स्तवनम् ॥ १२ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ अथ ८४ आसातना स्तवन लि० ॥
॥ * ॥ (ढाल ) विलसै कहिनी ॥ जय २ जिए पास जगत्र धणी । सोना ताहरी संसार झुणी । आयो हुं पिण घर आस घणी । करिवा सेवा तुम चरण तणी ॥ १ ॥ धन २ जे न पडै जंजाले । उपयोग सुं जैसे जिन थाले । सातना चनरासी टालै । सास्वता सुख ते हीज संजालै ॥ २ ॥ जे नाखै श्लेखम जिन हरमें । कलह करै गाली जूयरमें । धनुषादि कला सीखा दूकै । कुरलो तंबोल नखें थूकै ॥ ३ ॥ सुरे वायवडी लघु नीत तणी | संज्ञा कुंगुलिया दोष सुणी । नख केस समारण रुधिर क्रिया । चांदीनी नाखे चांबडिया ॥ ४ ॥ दांतानें वमन पीये कावो । खावे धांणी फुली खावो । सूने सामण विसरावे । अज गज पसुनें दाम दावे ॥ ५ ॥ सिर नासा कान दसन आखे । नख गान वपुषना मल नाखे । मिलणो
॥
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८४ सातना (तथा) २४ जिनदेहमान स्तवन.
२५३.
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लेखो करे मंत्रणो । विहचण अपणो करि धन धरणो ॥ ६ ॥ बेसै पग ऊपर पग चढियां । थापै गंणा बने ढूंढणीयां । सूकवै कप्पर पप्पन व मियां । नासीय बिपै नृपभय पमियां ॥ ७ ॥ शोके रोवे विकथाज कहै । इहां संख्या बेतालीस लहै । हथियार घरेनें पशु बांधे । तापे नांणों प रखे ॥ ८ ॥ जांजी निसही जिन गृह पेसै । धरे उत्रने मगपमें बेसै । पहिरे वस्त्र नें नही । चामर वीजैं मनठाम नही ॥ ९ ॥ तनु तेल सचित्त फल फूल जीये। भूषण तजि आप कुरूप थीये | दरसाथी सिर अंजलि नधरे । इग सारै उत्तरा सँग न करे ॥ १० ॥ बोगो सिर पेच मोम जो मैं । दडिये रमनें वैसे होने । सयणांसुं जुहार करे मुजरो । करे म चेष्टा कहै वचन बुरो ॥ ११ ॥ धरै धरणो जगमे नवंठी । सिर गुंथे बांधे पालं ठी । पसारे पग पहरे चाखमीयां । पग ऊटक दिरावे दुर वमीयां ॥ १२ ॥ कर दम है मैथुन मं । जूमा वलि ओंठ तिहां बं । नवाडे गुझ करे । वयदां | काढे व्यापार तणी कयदां ॥ १३ ॥ जिनहर परनाजनो नीरधरे ।
घोले पीवाराम भरे। दूषण जिन जवनमें एदाख्या । देव वंदन नाष्यमें जे जाया ॥ १४ ॥ सुज्ञानी श्रावक सगतितां । आसातन टाले वार सतां । परमाद वसे कोई थायै । आलोयां पाप सहूजायै ॥ १५ ॥ तंबोल नें जोजन पान जूा । मल मूत्र सयन स्त्री जोग हुआ । भूषण पनही ए जघन्य दसे । वरज्या जिन मंदिर मांहिवसे ॥ १६ ॥ द्रव्यतनें जावत दोय पूजा । एहनाहीज नेदकह्या दूजा । सेवा प्रजुनी मन सुद्ध करै । ि त सुख लीला तेह वरै ॥ १७ ॥ ( कलश ) ॥ * ॥ इम जव्यप्राणी नाव आणी विवेकी शुभ वातना । जिन बिंब अरचे परी वरजै चोरासी आसातना । ते गोत्र तीर्थंकर उपार्जे नमें जेहनें केवली । नव झाय श्री धमसीह वंदे जैन सासन ते वली ॥ १८ ॥ इति श्रीचौरासी आसातना स्तवनं ॥ १३ ॥ ॥
॥ * ॥ अथ २४ जिनदेहमान स्तवन लिख्यते ॥ ॥
॥ * ॥ प्रणमुं षत्र जिनेसर पाय । धनुष पांचसै उंचीकाय । बीजो अजित जिन मुऊ मन बसै । मान धनुष साढाच्यारसे ॥ १ ॥ तीजो सं जव सुख दातार । ऊँची काय धनुष सोच्यार । अभिनंदन जिनसुं मनली
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• २५४
रत्नसागर.
| देह धनुषसो साठा तीन ॥ २ ॥ पंचम सुमति नाथ भगवान । धनुष तीनसो देहीमान । पदम प्र पूरे मन स । देह धनुष दोयसे पंचास ॥ ३ ॥ सामि सुपारस सत्तम होय । देह प्रमाण धनुषसो दोय । चंद्रा प्र जिन मुऊ मन वसै । देह प्रमाण धनुष दोढसै ॥ ४ ॥ सुविध नाथ न मियै सुविवेक । तूंच प्रमाण धनुषसो एक । सीतल नाथ नमें जगसवे । देह प्रमाण धनुष जसुनिवे ॥ ५ ॥ श्रीश्रेयांस नमुं कलसी । ऊंच प्रमाण धनुष तनु असी । वासपूज्य वारम जिन चंद | मान धनुष सित्तर सुख कंद ॥ ६ ॥ विमल विमल गुणकरि गंभीर । साठि धनुष जसुमान सरीर । अनन्त ज्ञान अनन्त प्रकास । देह प्रमाण धनुष पंचास ॥ ७ ॥ पनरम ध रमनाथ जगदीस । मान धनुष जसु पैंतालीस । शांति करण सोलम जिन शांति । देह धनुष चालीस सोनंति ॥ ८ ॥ सतरम कुंथु जिन जगदाधार ।' मान धनुष पेंत्रीस नदार । र हारम दीन दयाल । त्रीस धनुष तनु ति सुविशाल ॥ ९ ॥ मल्लिनाथ जिन नगुणीसमो। मान पचीस धनुष पय नमो । बीसम मुनिसुव्रत अरिहंत । वीस धनुष तनु मान कहंत ॥ १० ॥ इक्वीसम नाम जिन राजान । पनरै धनुष तनु रूप निधान । बावीसम श्रीने मि जिद | दस धनु दीपै जाण दिद ॥ ११ ॥ तेवीसम श्रीपारस नाथ । नील वरण सोहै नव हाथ । चोवीसमा जिनवर श्रीवीर । सात हाथ जगना थ सरीर ॥ १२ ॥ इण परि ए जिणवर चौवीस । प्रणमें प्रहसम धरीय जगी स। तांघर रिद्धि सिद्धि नवरंग । रंगविनें प्रणमें मुनि रंग ॥ १३ ॥ इति श्रीचोवीस जिन देह मान स्तवनं ॥ * ॥
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॥ * ॥ अथ २४ जिन आयुप्रमाण स्तवन लि० ॥ ॥ * ॥ रुषन देव प्रणमुं जिनराय । लाख चोराशी पूरब प्राय | बीजो अजित जसृ सूत्रै साख । प्रान बहुत्तर पूरबलाख ॥ १ ॥ तीर्थकर संजव तीसरो । लाख पूरब साठरो । अभिनंदन पूरै मन आस । आनला ख पूरब पंचास ॥ २ ॥ सुमतिनाथ पंचम जगदीस । आठ लाख पूरब चालीस । श्रीपदम प्रनूनी ए थितिजाण । लाख तीस पूरब परि माण ॥ ३ ॥ श्रीसुपार्श्व लख पूरब वीस | दस लख पूरब चंद प्रभु ईस ।
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२४ जिनायुमान (तथा ) ६३ शिलाका स्तवन
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सुविध नाथ लख पूरब दोय । इक लख पूरब शीतल थिति होय ॥ ४ ॥ नवरस चोरासी लाख । श्रीश्रेयांस तणो श्रुत साख । लाख बहुत्तर व रसां तणो । वासु पुज्य परमायुष गिणो ॥ ५ ॥ विमल आन लख सावि वरीस । वरस अनंत तणो लख तीस । लाखवरस दस धरम दिणंद | ला खवरस श्रीशांति जिद ॥ ६ ॥ वरस सहस थिति पंचाणवे । श्रीकुंथु ना थ तणीसंवै । सहस चोरासी र जिनतणी । मवि सहस पंचावन जणी ॥ ७ ॥ वरस संपूरण त्रीस हजार। मुनि सुव्रत परमान नदार । वी स सहस नमिजिन थिति नणी । वरस सहस नेमीसर तणी ॥ ८ ॥ पास वरस एकसो सुख कंद । वरस बहुत्तर वीर जिनंद । रुषन तणा तेरै अवतार । सात चंद्र संतीसर बार ॥ ९ ॥ सुव्रत नव नव नव नेमीस । पार्श्व वीर दश सत्तावीस । त्रिहुं त्रिहुं जव सतरै जगदीस । सगला जव एकसो प्रगतीस ॥ १० ॥ सिद्धि नही सहुनें धन धन्न । गणधर चवदे से बावन्न । सहुनें मुनि लख अठावीस । सहस ऊपर अमतालीस ॥ ११ ॥ लाख चमाल बयांन हजार । षडधिक सहु साधवी सोच्यार । श्रावक ला ख पचावन धुरै । अमतालीस सहस ऊपरै ॥ १२ ॥ एक कोमि श्राविका सुजगीस। लाख पांच सहस प्रगतीस । ए संघ चतुर्विध सहु जिन त । रंगविनें प्रणमें हित घणें ॥ १३ ॥
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इति श्रीचोवीस जिन आयु प्रमाण स्तवनं ॥ ॥ ॥ * ॥ थ ६३ सिलाका पुरुष स्तवन लि० ॥ * ॥
॥ * ॥ ( ढाल १ ) धरम महारथ सारथि सारं । एचाल ॥ ॥ सदगुरु चरणकमल मनधारं । त्रेसठ उत्तम नराधिकारं । पनणसु श्रुत अनुसारं । जेहने नाम लियै निस्तारं । आपण सफलहुवै अवतारं । पामी जै जव पारं ॥ १ ॥ षन अजित संभव अभिनंदन । सुमति पदम प्रजु नयना नंदन सत्तम तेम सुपास । चंद्र प्रजुने सुविध सीतल जिन । श्रेयांस वासपूज्य जिण सुरमणि । विमलगुणें करवास ॥ २ ॥ अनंत धर्म श्रीशांति जिनेसर कुंथुनाथ परमलि सुहंकर । मुनि सुब्रत नमि नेमि । पार्श्व वीरए जिन चोवीस जगवल जगगुरु जगदीस । प्रणमीजै घर प्रेम ॥ ३ ॥ ( ढाल २ ) प्रथ
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रत्नसागर. म सुपनगज निरखो एचाल ॥ ॥ प्रथम नरतनर इंद्र । बीजो सगरमु रिंद। मघवा तीजो नदार । चोथो सनत्कुमार ॥४॥ पांचम सांति चक्कीस। ब्गे कुंथु गणीस । सातमो अर नरनाथ । आठम मुनूमि सनाथ ॥५॥न वमो पदमनरेस । हरषण दसम कहेस । इग्यारम जय ताम । बारम ब्रह्म दत्त नाम ॥ ६॥ एह चक्कीसर वार । खेत्रनरत सिणगार । मघवा सनत् कुमार । पुहता स्वरग मकार ॥७॥ मुनुम अनें ब्रह्मदत्त । सत्तम निरय निरत्त ।आठ थया सिवगामी। तेप्रणमुं सिरनामी॥९॥(ढाल ३)॥8॥ मुनिवर आर्य सुहस्ति एचाल ॥ * ॥ पहिलो त्रिपष्टि जाण । शिप्रष्ट दूसरो तीजो स्वयं प्रनु जाणिये ए। पुरषोत्तम ए चोथो । पंचम परगमो । पुरुष सिंह प्रमाणीये ए॥९॥ो पुरुष पुमरीक । दत्त तिम सातमो । लक्ष्म ण नामें आठमोए । नवमो कृष्णनरेस । एनव केसवा । प्रहकली एपिण नमुए ॥१०॥ तिहां पहिलो वासुदेव । नारकी सातमी । आगला पंच नठी गयाए । सातमो पंचम नैर। चौथी आठमो। नवमो तीजी नारीयाए ॥११॥ अचल विजयनें जद्र । सुप्रनु मुदर्शण । आनंद नंदन सुन्नमतीए । रामचंद्र बलभद्र । बलदेव एनव । आठ थया तिहां सिवगती ए ॥ १२॥ बलजद्र ब्रह्म देवलोक । काल नसप्पणी । जास्यै सिवकृष्ण सासणेए । अथवा नि पुलाक नाम । तीर्थकर होस्ये । चवदमो इम बहुश्रुत नए ॥ १३ ॥ (ढाल) कुमर पणें प्रनु रहतां काल सुखे गए एचाल ॥ ॥ अस्वग्रीवनें तारक मेरुक बाल मधु तिसा ए। निशुंन वलय प्रल्हाद रावण जरासिंधु जिसा ए। ए नव प्रति वासुदेव नरक गति गामिया ए। ते पिण नाव जि णेस केई प्रणमुं मुदा ए॥१४॥ ( ढाल ५) सफल संसारनी ॥ * ॥ सां तिने कुंथु अरि एहनव एकही। चक्रधर तीर्थकर दोय पदवी लही । वीर वासुदेव अरिहंत नव जू जूया। देह तिण साठ पिण जीव गुण सठ थया ॥१५॥ वासुदेव वलीय बलदेव केरा पिता । एकहीज थाय नवएण ले खे बता । तीन चक्रधर तणा मिलिय बारै टल्या । एम वेसठना तात इक वन मिल्या॥ १६ ॥ तीन चक्र बत तणी टाल दीजै जिसे । माय सहुनी थई साठ लेखै इसै। एह नर रयणनो ध्यान नित जे धरै। तेह सुर पदलही
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मंगल कमला, श्रीअजित शांतिस्तवन. २५७ मोक्ष पदवी वरै ॥ १७॥ (कलश) इम थुण्या तीर्थकर चक्कीसर वासु देव वलदेव ए । प्रति वासुदेव सुसेवजेहनी करै सुर नर सेव ए । त्रेसह सिलाका पुरुष उत्तम जगें जयवंता सदा । प्रहसमें तेहना चरण पंकज नमें मुनि वसतो मुदा ॥१८॥ इति त्रेसह सिलाका पुरष स्तवनं॥ ॥2॥ ॥ ॥ अथ अजितशांतिजिनस्तवन लिख्यते ॥ १॥
॥ ॥ मंगल कमला कंदए। सुखसागर पूनिमचंदए । जगगुरु अजि य जिणंदए । शांतीसर नयणानंदए ॥१॥ बिहुँ जिनवर प्रणमेवए। बि हुं गुणगाइस संखेवए । पुण्य नंमार नरेसए । मानवनव सफल करेसए ॥२॥ कोमहि लाखपचासए । सागर जिणसासण जासए । रिसहजिणे सर वंसए । नवशाय सरोवर हंसए ॥३॥ इण अवसर तिहां राजीयोए। राजा जितशत्रु जग गाजीयोए । विजया तसुघर नारए । बिहुँ रमयति पासासारए॥४॥ कूखहि जिन अवतारए। तिणराय मनाव्योहारए । न्यरव स्यो दसमासए । पनु पूरी जणणी आसए ॥५॥ बिहुँ जण मन आणंदी योए। सुतनाम अजिअजिण तो दीयोए । तिहुप्रण सयल नडाहए । क्रम . क्रम वाधै जगनाहए ॥६॥ हंस धवल सारस तणीए । गति सुललित नि जगति निरजपीए । मलपति चालै गैलए । जाणें नयण अमीरस रेलए ॥७॥ अवरन समो संसारए । बलि न्यान बिबेक विचारए । गुणदेखी गज गहगह्योए। लंगण मिसि पगलागी रह्योए ॥८॥ जोवनवय जब आवीयोए। तब वररमणी परिणावियोए। पीयसाधै सब काजए । प्रनु पालै पुहवीराजए ॥९॥ हिव हथणानर गमए । विश्वसेण नरेसर नामए । राणी अचिरा देवए। मनहर सुखमाणे बेवए ॥१०॥ चवदह सुपनें परवरयोए । अचिरा जयरे सुत अवतरयोए। मानवदेव बखांणीयोए। चक्कीसर जिणवर जाणीयोए ॥११॥ देस नयर हुइ संतए । तिणनाम दीयो सिरि शांतए । जिणगुण कुण जाणे कहीए । तिहुँ नुवणे तसु नपमानहीए ॥१२॥ नयण सलूणो हिरणलोए। बनसिंघे वीहै एकलोए । नयण समाधि निरोधए । इणनयणे नारिबिरोधए ॥१३॥ गीतही राग सुरंगए । पिण पनणे लोक कुरंगए । तो नलग्यो शशि संकए । तिणपाम्यो नाम कलंकए ॥१४॥ इणपर मृग अति खल.
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२५८
रत्नसागर
नज्योए । जयनंजण स्वामी सांजल्योए । आणंदीयो मनप्रापणोए । पा यसेवै मिस लंबण तणो ॥ १५ ॥ लीलापति परणें घणीए । नव नवीय कु मरि रायां तणीए । बल बल रियण जोगवै । पीयराय जलीपर जोगवैए ॥ १६ ॥ कुमरतणें मंगल समेंए । पंचाससहस बरसां गए । तौतेजै दियर जिसोए। ऊपन्नो चक्करयण तिसोए ॥ १७ ॥ साधी जरह बहखंगए। बरतावी प्रण प्रखंए । चवदरयण नवनिहि सहीए । वसु सोलसहस जक्खै ह ए॥ १८ ॥ सहसबहुत्तर पुरखराए । बत्तीस मौम्बध नरखराए । पायक गामै कोए । न्निवै नमें वेकरजोमए ॥१९॥ इयं गय रह वर जूजुवाए। लखचौरा सी मंदिर हुवाए । लाख त्रि वाजित्र घम घमैए । बत्तीस सहस नाटक रमेए । ||२०|| रूपजिसी सुरसुंदरीए । लक्षण लावन्य जीला जरीए । जंगम सौ
देहरी | इसी चौसठसहस अंतेरीए ॥ २१ ॥ अवरज रिधि प्रकार ए । मणि कंचण रयण जंकारए । ते कहिवा कुण जाणए । वपु वपुरे पुण्य प्रमाणए ॥ २२ ॥ इम चक्कीसर पंचमोए । चौथो दूसमशूशम समोए । वरस सहस पचवीसए । सबपूरी मनह जगीसए ॥ २३ ॥ इणपरि बिहुँ तिर्थकराए । चिरपाली राज विविहपराए । जाणी अवसर सारए । बिहुँ लीधो संजमनार ॥ २४ ॥ बिहुँ खमदम धीरम धरीए । बिहुँ मोह मयण मद परहरीए । विहूं जिण जाण समाणए । बिहुँ पाम्यो केवलनाणए ॥ २५ ॥ बिहुं देवहि कोहि महिय । बिहुँ चौतीसे अतिसय सहिय । समवसरण बिहुँठाणए । बिहुं जोयणवांणि बखांणए || २६ || नाचे रण कत नेरीए । बिहुं प्रागलि इंद्र अंतेनरीए । टिग मिग जोवै जग सहुए रंगहि गुणगावै सुरबहुए ॥ २७ ॥ विहुंसिर छत्र चमर बिमल । बिहुँ पगतल नव सोवन कमल । बिहु जिन तर्फे बिहारए । नविरोग नसोग नमारिए ॥ २८ ॥ बिहुँ नवयार जुवणनरीए । विहं सिद्धि रमणि सयंबरीए । विहं जी जवकंदए । बिहुँ नदयो परमाणंद ॥ २९ ॥ इम बीजानें सोजमोए । जांणे चिंतामणि सुरतरुसमोए । थुणि तिसंग बिहाणए । तिहां इह परिभव नवि हाणए ॥ ३० ॥ बिहुँ नव मंगलकरण । विहुं संघसयल पुरियहरण | बिहुं वरकमल वयण नयण । बिहुं श्री जिनराय जुवण
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मुहपत्ती पमिलेहण (वा) सिगिरी स्तवन- २५९ रयण ॥३१॥ इमनगते नोलिमतणीए । श्रीअजिय शांति जिण थुइ जणीए । सरण बिहुँ जिणपायए । सिरि मेरुनंदन वझायए ॥३२॥ इति श्री अजित शांतिजिन वृघस्तवन संपूर्णम् ॥ * ॥
॥॥अथ मुहपत्ती पमिलेहण स्तवन ॥ ॥ . ॥ ॥ (ढाल कपूर हुवे अति ऊजलोरे एचाल) ॥ ॥ वरधमान जिनवर तणाजी । चरण नमुं चितलाय । ग्यान क्रिया जिण नपदिस जी। शिव मुखतणो नपाय ॥१॥ (विक जन धर श्रीजिन नपदेस । बूटे कर्म कलेस न०) ॥ पमिलेहण मुहपति तणीजी । नाषी पचवीस । तिहां एनाव विचारीयै जी । इम ना जगदीस ॥२॥ (न०) प्रथम बेपास विलोकियै जी। सूत्र अरथनी दृष्टि । एपमिलेहण दृष्टिनी जी । करे ध मनी पुष्टि ॥ ३ ॥ (ज०) समकित मिथ्या मिश्रनीजी । मोहनी तीन नो त्याग । कामराग स्नेहराग ने जी । तज वलि तिम दृष्टिराग ॥ ४॥ (०) सीष वधू तक गुरु थकी जी । वाम हाथ करनान । नव अखो मा आदरो जी। नव पखोमा गमान ॥५॥ (०) देव तत्व गुरु तत्व मुंजी। धर्म तत्व गृह सार । कुगुरु कुदेव कुधर्मनो जी । तीन तणो परिहार ॥६॥ (ज०) ग्यान दरसण चारित्रना जी । संग्रह तीन आचार । तजो विराधन तीन एजी। एह अरथ अवधार ॥ ७॥ (न०) मन वच कायानी सदाजी । गुपति गृही जे मुच। परिहरीयै वलि जाणनें जी। तीने दंम विसुच॥ ८॥ (न०) पमिलेहण पचवीसए जी। मुह पत्ती नी सार । हिव पमिलेहण अंगनी जी । ते पिण चतुर विचार ॥९॥ (०) हास्य अरति रति दोयनें जी। सुछ करो वाम वांह । तजि नय शोक गंउना जी। दक्षिण पिण कर साह ॥१०॥ (न०) धुरली ले श्या तीन एजी। ते शिर थी करि दूर। रिधि रस शाता गारवो जी। करि मुख थी चकचूर ॥११॥ (०) काढ सख्य तीन नर थकी जी । माया नियाण मिथ्यात । च्यार कषाय वे वगलथी जी। क्रोधादिक करिघात॥१२॥ (ज०) तज खटकाय विराधना जी। चरण बिएहे सुध होय । ए पमिले हण अंगनी जी। पचवीसे तुं जोय ॥१३ ॥ (ज० ) इम पडिलेहण जे
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रत्नसागर. कर जी । धर मन ग्यान विवेक । सकल करम दूर करै जी । पामें सुक्ख अनेक ॥ १४ ॥ (म० कलश ) इम वीरजिणवर तणा मुख थी अरथ गण धर सांगली । कहै सूत्र वाणी मन सुहाणी सुणो नवियण मन रली। जब शाय वर सिरि लडकीरति मुख थकी ए संग्रही । मुह पती पमिलेहण तणी विधि ललि वचन गणि कही ॥१५॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति श्रीमुह पत्ती पमिलेहण स्तवनं ॥ १४॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ सिद्धगिरि स्तवन लि०॥ ॥
॥श्री विमलाचल शिर तिलो। आदीसर अरिहंत । जुगला धर मनिवारणो। नयनंजण जगवंत ॥१॥ श्री० ॥ मुऊ मन ऊलट अति घणो (रे) सोदिन सफल गिणेस । स्वामी श्रीरिसहे सरू । जब नयणे नि रखेस ॥२॥ श्री० ॥ जंगम तीरथ विहरता। साधु तणे परिवार । आदि जिणंद समोसरया । पूरब निनांणुंवार ॥३॥श्री०॥ अचरा विजया नंद ने। जग बंधव जगतात । इण गिरि चनमासे रह्या । थिवर कहै ए वात ॥ ४॥श्री०॥ पामें शिव सुख सासता। गणधर श्री पुंगरीक । पुंगरगिरि तिण कारणे । नगति करो निर जीक ॥ ५॥ श्री० ॥ नमिनें विनमिस होदरू । विद्याधर बलवंत । सेजेज सिखर समोसरया । जे गरुवा गुणवं त॥६॥ श्री० ॥ थावच्चा मुनिवर सुक । सहस २ परिवार । पंथग वय णे जागीयो। सो सेलग अणगार ॥७॥श्री० ॥ पांव पांच महाबली। सुणी जादव निरवाण । ते सीधा सिधा चलै । सुर नर करै वखांण ॥ ८ ॥ श्री० ॥ इम सीधा इणडूंगरे । मुनिवर कोमा कोमि । पाज चढंता सांन
। ते प्रणमुं कर जोडि ॥९॥श्री ॥ जे वाघणि प्रति बूझवी । ते दर वाजे जोय । गोमुख यह कवड मिली । सानिध कारी होय ॥ १० ॥ श्री० ॥जे विधसं यात्रा करै । सुर नर सेवकतास । राज समुद्र गुण गा बतां । अविचल लीलविलास ॥११॥श्री० ॥ इति से→जय स्तवनं ॥ ॥
॥ ॥ अथ श्री रिषन जिनेसर स्तवन लि०॥ 18 | शान जिनेसर दिनकर साहिब । वीनतमी अवधारोरे (ज गनातारू । मुझ तारोजी कृपा निधि स्वामी) ॥ जग जसवाद प्रगट ता
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बीरसुणो मोरीबीनती स्तवन.. २६१ हरो। अविचल सुख दातारोरे ॥ ज०॥१ मु० ॥ निजगुण नोक्ता पर गुण लोप्ता । आतम सगति जगायारे ॥ ज० अविनासी अविचल अविकारी शिववासी जिन रायारे ॥ ज० मु० ॥ इत्यादिक गुण श्रवणे निसुणी। हुँ तुम चरणे आयोरे॥ ज० ॥ तुम रीफावण हेतै ततखिण । नाटक खेलम चायोरे॥ ज०॥ ३ मु०॥ काल अनंत रह्यो एकेंद्री । तरु साधारण पा मीरे॥ज ॥वरस संख्याता वाल विकलेंद्री। वेषधरया मुख धामीरे॥ज ॥४॥मु०॥सुर नर तिरि वलि नरक तणीगति । पंचेंद्रीपणो धारयोरे ज० ॥चोवीसे दंडक मांहि नमियो। अबतो हुँ पिण हारयोरे॥ ज०॥५॥ सु०॥नवनाटक नितकरतो नवनव । हुं तुम आगलि नाच्योरे ॥ ज०॥ समरथ साहिब सुरतरु सरिषो । निरखी तुमने जाच्योरे॥ ज०॥६॥ मु०॥ जो मुझ नाटक देखी रीम्या । तो मुझ वंडित दीजैरे ॥ ज० ॥ जो नविरी ऊया तो मुझ भाषो । वलि नाटक नवि कीजैरे ॥ ज०॥७॥मु०॥लालच. धरि हु सेवा सारुं। तुं मुखडा नविकापरे॥ ज०॥ दातासेती सूंबनलेरो । बहिलो कतर आपरे॥ ज० ८ मु०॥ तुझ सरिषा साहिब पिण महारो। जो नवि कारज सारोरे ॥ ज०॥ तो मुझ करम तणी गति अवलो। दोस नकोई तुमारोरे॥ ज० ९ मु०॥ दीनदयाल दयाकरि दीजै । सुध समकि त सहिनाणीरे॥ ज०॥ सुगुण सेवकना वंबित पूरो । तेहीजगुण माणिखाणी रे॥ ज० १० मु० ॥ वर्ष अढारै गुणतालीसै । ज्येष्टसुदी सोमवारोरे॥ ज०॥ लालचंद प्रतिपददिन नेट्या। वीकानेर मझारोरे॥ ज०११ मु०॥॥ ॥ इति श्री शषन देवजी स्तवनं ॥१६॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ श्री महाबीर वीनती लि०॥ ॥ ॥ वीर सुणो मोरी वीनती। कर जोमीहो कहुं मननी वात । बाल कनी परिवीनतुं । मोरा सामीहो तूं त्रिभुवन तात ॥१॥वी०॥तुम दरसण वि गहुँ जम्यो । नव मांहेंहो सामी समुद्र मकार । सुक्ख अनंता मैं सह्या । ते कहितांहो किमावै पार॥२॥ वी० ॥ पर नपगारी तुंप्रनु। उखजांजेंहो जग दीनदयाल । तिणतोरै चरणें हुं आवीयो । सामी मुझनेहो निज नयण निहा ल॥३॥वी० ॥ अपराधी पिण उधरया। तें कीधीहो करुणा मोरासाम ।
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रत्नसागर. हुं तो परम जगत ताहरो। तिणतारोहो नहीं ढीलनो काम ॥ ४ ॥ वी० ॥ शूलपाणि प्रति बूझव्या । जिण कीधाहो तुमनें नपसर्ग । मंक दीयो चंझको सीये । तें दीधोहो तसु आठमोसर्ग। ५॥ वी० ॥ गोशालो गुनही घणुं। जिण बोल्याहो तोरा अवरणवाद । ते बलतो तें राखीयो । सीतलेस्याहो मूं की सुप्रसाद ॥ ६ ॥ वी० ॥ ए कुण इंद्रजालीयो । इम कहितां हो आ यो तुमतीर । ते गोतमनें तें कीयो । पोतानोहो प्रनुतानो वजीर ॥ ७॥ वी० ॥ वचन नत्थाप्या ताहरा । जे गड्योहो तुमसाथ जमाल । तेहनें पिण पनरै नवे । सिव गामीहो तें कीधो कृपाल ॥८॥वी०॥ अमत्तो रिषि जेरम्यो। जल मांहेहो बांधी माटीनी पाल। तिरती मूंकी काचली।तें तारयो हो तेहनें ततकाल ॥९॥वी० ॥ मेघकुमर रिषि दूहव्यो। चितचूकोहो चारि तथी अपार । एकावतारी तेहनें । तें कीधो हो करुणा नंमार ॥१०॥ वी०॥ बार वरस वैस्याघरे । रह्यो मुंकीहो संयमनोनार । नंदखेण पिण कधरयो । सुर पदवीहो दीधी अतिसार ॥ ११ ॥ वी० ॥ पंच महाबत परिहरी । ग्र हवासैहो बसिया. वरस चौवीस । ते पिण आद्रकुमारनें । तें तारयो हो तोरी एह जगीस ॥ १२ ॥ वी० ॥ राय श्रेणक राणी चेलणा । रूप देखीहो चित चूका जेह । समवसरण साधु साधवी । तें कीधा हो आराधिक तेह ॥ १३ ॥ वी० ॥ विरत नहीं नहीं आखमी । नहीं पोसोहो नहीं आदर दीख । ते पिण श्रेणिकरायनें । तें कीधोहो सामी आ पसरीख ॥ १४ ॥ वी० ॥ इम अनेक तें ऊधरया । कहुं तोराहो केता अवदात । सारकरो हिवमाहरी । मनमांहेहो आणो मोरमी वात ॥ १५ ॥ वी ॥ सूधो संजम नविपलै । नही तेहवोहो मुझ दरसण नाण । पिण आधारमै एतलो । इक तोरोहो धरं निश्चल ध्यान ॥ १६ ॥ वी० ॥ मेह महीतल वरसतो । नविजोवैहो सम विखमी ठगम । गरुआ सहिजे गुण क
। स्वामी सारो हो मोरा बंबित काम ॥१७॥ वी० ॥ तुम नामें सुख संपदा तुम नामें हो उख जायै दूर । तुम नामें वंगित फलै । तुम नामें हो मुफ
आणंद पूर॥ १८ ॥ वी० ॥ (कलश)॥ ॥ इम नगर जेशलमेर मंग ण तीर्थकर चौवीसमो। सासना धीसर सिंह लंगन सेवतां सुरतरु समो।
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२४ दमक स्तवन.
२६३ जिणचंद त्रिसला मात नंदन सकल चंद कला निलो । वाचना चारज स मय सुंदर संथुण्यो त्रिनुवन तिलो॥ १९॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति श्री महावीर जिन स्तवनं ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ * ॥ अथ चोवीस दंमक स्तवन लि० ॥ * ॥ ॥ ॥ (ढाल आदर जीव कमागुण आदर) एचाल ॥ * ॥ पूर म नोरथ पासजिनेसर। एहकरुं अरदासजी । तारण तरण विरुद तुम सान लि । आयो हुं धरि आस जी॥१॥ (पू०) इण संसार समुद्र अथागै जमियो नवजल मांहि जी। गिल गिचिया जिम आयो गिडतो । साहिब हाथे साहिजी॥२॥ (पू०) तुं ग्यानीतो पिण तुझ आगै । वीतक कहीयै बात जी। चौवीसे दंमक हुँ जमियो । वरणुं तेह विख्यात जी॥३॥ (पू०) साते नरक तणो इक दमक । असुरादिक दस जाणजी । पांच थावर ने तीन विकलेंद्री। नगणीस गिणती आणजी॥ ४॥ (पू०)॥ पंचेंद्री तिर्यंच ने मानव । एह थया इकवीस जी । व्यंतर ज्योतिषीने वेमानिक । इम दंग क चोवीस जी ॥ ५ ॥ ( पू० ) पंचेंद्री तिर्यंच अनें नर । परयाप्ता जे हो य जी। एचौविह देवां मे नपजै । इम देवां गति दोय जी॥ ६ ॥( पू०) असंख्यात आऊखै नर तिरि । निहचै देवज थायजी । निज आळखे सम के न । पिण अधिकै नवि जायजी ॥७॥(पू०) नवनपती के व्यंतर तांई । समूर्णिम तिरयंच जी। सरग आठमा तांई पुहचै । गरनज सुकृत सं चजी॥८॥( पू० ) आऊ संख्याते जे गरनज । नर तिरयंच विवेक जी। बादर पृथवीने वलिपाणी । वनस्पती प्रत्येक जी ॥ ९ ॥(पू०) परि याप्ता इण पांचे ठामें । आवी नपजै देवजी । इण पांचामाहें पिण आगै । अधिकाई कहुं हेवजी ॥ १० ॥ (पू० ) तीजा सरग थकी मांमी सुर । एकेंद्री नवि थाय जी । अहम थी ऊपरिला सगला । मानव मां है जायजी ॥११॥ 8 ॥ ( पू० ) ( ढाल २ आज निहेज्योरे दीसे नाहलोएचाल।) ॥ ॥ नरक तणी गति आगति इण परे । जीवन में संसार । दोय ग तिने दोय आगति जाणीयै । वलीय विशेष विचार ॥१२॥ ( न०) संख्या तै आऊ परयापता । पंचेंद्री तिरयंच । तिम हीज मनुष्य एहिज बे नरक
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रत्नसागर. में। जायै पाप प्रपंच ॥१३॥ ( न० ) प्रथम नरक लगि जाय असन्नि यो। गोह नकुल तिम बीय । गृध्र प्रमुख पंखी त्रीजी लगे। सीह प्रमुख चो थीय ॥ १४ ( न० ) पंचमी नरकै सीमा सापणी । उही लगि स्त्री जाय। सातमीये माणस के माउलो। ऊपजै गरजज आय ॥ १५ ॥ (न०) न रक थकी आवै बिहुँ दमकै । तिरयंच के नर थाय । ते पिण गरज ने परयापता । संख्या ती जसुप्राय ॥ १६ ॥ (न) नारकियांने नरकथी नीसरयां । जे फल प्रापत होय । नत्कृष्टे नांगै करि तेकहुं । पिण निश्च नही कोय ॥ १७॥ (न०) प्रथम नरकथी चवि चक्रवर्ति हुवे । बीजी हरि बलदेव । तीजी लगि तीर्थकर पद लहै । चोथी केवल हेव ॥ १८ ॥ (न०)पंचमी नरकनो सरव विरति लहै । नही देस विरत्त । सातमीन रक नो समकित हीज लहै । न हुवै अधिक निमित्त ॥१९॥ (न०॥ ढाल ३)॥ * ॥ (करम परीक्षा करण कुमर चल्यो रे) ए चाल ॥8॥ मानव गति विण मुगति हुवै नहीरे। एहनो इम अधिकार । आऊ संख्या ते नर सहु दंगकरे । आवी लहै अवतार ॥२०॥ (मा०) तेक वाऊ दमक वेतजीरे। बीजा जे बावीस । तिहाथी आयाथायै मानवीरे। सुख सुःख कर्मस रीस ॥ २१॥ (मा०) नर तिरयंच असंखी आनखैरे । सातमी नरकना तम । तिहां थी मरनें मनुष्य हुवै नही रे । अरिहंत भाष्यो एम ॥ २२ ॥ (मा० ) वासुदेव बल देव तथा बलीरे । चक्रवर्तिने अरिहंत । सरग नर गना आया ए हुवेरे । नर तिरथी न हुवंत ॥२३॥ (मा०) चौविह दे व थकी चवि ऊपरे । चक्रवर्ति बल देव । वासुदेव तीर्थकर ए हुवै रे। बैमानक थकी बेव ॥ २४ ॥ (मा०) ( ढाल ४ नानि अने मरुदेवा) ए चाल ॥ ॥ हिव तिरयंच तणी गति आगति कहीये अशेष । जीवनमें इण परजव मांहें करम विशेष । आऊ संख्याती जे नर तिर्यच विचार । तेस गला तिरयंचा मांहें लहै अवतार ॥२५॥ जिण तिरयंचां मां हे आवै नारक देव । ते कह्या पहिली तिण कारण नकहुं हेव । पंवेंद्री तिरयंच संख्यातं आकर जेह । ते मरी चिहुं गतिमां जावे इहां नही संदेह ॥ २६ ।। थावर पांच तीने विकलेंद्री पाने कहावे । तिहाँ थी मानसंख्याता नर ति
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इरियावही मिलामि उक्कमसंख्या स्तवन. २६५ रयंचमें आवे । विकल चवी लहै सरब विरति पिण मुगति न पावै । तेक बाऊ थी आयो तेहनें समकितनावै ॥२७॥ नारक वरजीने सगलाही जी व संसार । पृथवी आन वनस्पती मांहि लहै अवतार । एतीने इहांथी चवि आवै दसे ठगमें । थावर विकल तिरी नर मांहे नतपत पामें ॥२८॥ पृथ वी काय आदि देई दस दंमके एह । तेऊ वाऊ मांहे प्रावी नपजे तेह । म नुष्य विना नवमां हे तेक वाळ बे जावै । विकलेंद्री ते दसमांहि जावै पूग ही आवै ॥२९॥ एम अनादि तणो मिथ्याती जीव एकंत । वनस्पती मां हे तिहां रहीयो काल अनंत । पुढवी पाणी अगनि अनेंचोथो वलि वाय । काल चक्र असंख्याता तांइ जीव रहाय ॥३०॥ बेइंद्री. तेइंद्री अनें चौरिंद्री मकार । संख्याता वरसां लगै नमियो करम प्रकारे । सात आठ नव लगि तां नर तिरयंचमें रहियो । हिव मानव जव लहिनें साधुनो वेषमें रहियो ॥३१॥ राग देष बूटे नही किम हूवे बूटकवार । पिण महारे मनसुध ताह रो एक आधार । तारण तरण में त्रिकरण सुधै अरिहंत लाधो । हिव संसार घणो नमिवो तो पुदगल आधो ॥३२॥ तुं मन वंठित पूरण आपदाचू रण सामी।ताहरी सेवलही तो में नवनिध सिध पामी। अवरन कांइ इबंदण जव तुंहीज देव । सूधै मन एक होज्यो जव जव ताहरीसेव ॥ ३३ ॥ (क लश)॥इम सकल सुखकर नगर जेशल मेर महिमा दिन दिने । संवत्तसतरे नगणतीस दिवस दीवालीतणें । गुण विमलचंद समान वाचक विजेहरष सुसीसए । श्री पासना गुण एम गावै धरमसी सुजगीसए॥३४॥ ॥१॥ इति श्री चौवीस दंमक स्तवनम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥
॥इरियावही मिमि दुकमसंख्या स्तवन लि०॥ ॥ ॥प्रनु प्रणमुरे पास जिणेसर थंनणो एहनी ॥ ॥ पद पंक जरे प्रणमी बीरजिनंदना। त्रिकरण मुधरे करि मुनिवर पय वंदना । अम तैरे पमिकमी जिम इरियावही । श्रीवीर नीरे वाणी तहत्तकरि सरदही । (न०) सरदही वाणी मन सुहाणी चित्त आणी तेवली । मिहामि पुक्क म तणी संख्या कहिसुं जिम कही केवली । नू दग जलण तिम वान वण सइ विगल पण इंद्री तणी। करतां विराहण करम बंध्या दूर ते करिवा नं
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रत्नसागर.
णी ॥ १ ॥ ( चाल ) पुढवी दगरे वाऊ तेऊ वणस्स | पण थावररे वादर हम दसे । प्रत्येकजरे वणस्स इग्यारह थया । बावीसेरे पत्तग अ पत्तया । (उल्लालो ) पत्त अपत्तग वखाण्या विगल तिय बहनालए। जल थल खचर नुयंग डुइपण इंद्रिय तिरि अमालए। वम्मादि साते न रक पुढवी नारकी तिहां सात जे । ते चवद नेदै करी जाणो पतय अ पजत्त जे ॥ २ ॥ ( चाल ) पनरह बिधरे सुर गिए परमाहम्मिया । किज विखियारे त्रिविध करम ते निम्मिया । जंनिय दूसरे नव लोगांतिक जाणियै सोलह विधरे व्यंतर देव वखाणियै । ( नल्लालो ) वखाणियै दसविध जुवन पतिना तार रवि शशि रिषि गहा । चर थिर दसेविध जोइसी सुर वखाएया जिणवर जहा । बारह बिमानक पण अणुत्तर नवग्रीवेके नव भएया। पत पत्ता अधिक सतसंख्यागिया ।॥ ( ढाल २ ) मेघ आगम सही ए० ॥ पंचनरत वलि ऐवत पंच पंच विदेहवर भूमिका ए । खेत्र ए पनरह करम भूमि जाणीयै प्रसिकसि मसिहि आजीविकाए । हेमवत खेत्र वलि तिम हरिवर्ष रम्यक ऐरण्यवत सहीए । मेरुपिण पाखती चारि २ खेत्र दस कुरु अकरम भूमीकहीए ॥ ४ ॥ हिमगिरि सिहरीय दाढ चीयारि व वण समुद्रमांहि विस्तरीए । सात २ अंतर दोय पाम्रै दीप बप्पन्न अन्तर धरीए । दोइसे नेद दुइ प्रागला जांणि मणुय पत्त प्रपत्तयाए । एक सौ एक समुमिद तीनसे तीनमा थयाए ॥ ५ ॥ ( ढाल ३ ) ॥ ( हिव जनम्या जगगुरु० ) ए० ॥ पणस्य त्रेसविविध जीवसहू बे एह ever आदिक दस गुणित करीजे तेह | पणसहस बसै वलि त्रीस अ धिकते जाणि । ते रागै दोसे दुगुणा करी वखाण ।। ६ ।। हुइ सहस इ ग्यारह दुइसय साठि प्रमाण । ए प्रवचनवाणी जाणी हितर आपण । मनवच काया करि त्रिगुणाकरित्रिक । तेतीस सहस सत सातमसी निःसंक ॥ ७ ॥ वलि करण करावण अनुमति त्रिगुणा किव । इक्लक्ख सहसरंग तिसय चालीस प्रसिद्ध । अतीत अनागत वर्तमान वलिकाल जे थइयविराधना तिणी त्रिगुण संजाल ॥ ८ ॥ तीन लाख सहस च्यार वेसे अधिक तेथाय । अरिहंत प्रमुख बह साखे बगुणा जाय। इम लाख
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पंचसमवाय स्तवन
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अढारह वलि सहस चन्वीस । इकसो वीसोत्तर हुइ संख्या निसदीस ॥ ९ ॥ ( ढाल ४ ) चोपईनी ॥ ॥ इण परि मिलामि डुक्करुंदेई । नविक तरया जवजल निधिकेई । तरे बै वलि गलि तरिसी । निरमल केवल लखमी वरिसी ॥ १० ॥ इरियावही धरम गंगाजल । न्हाण करे प्रातमक रि निरमल । में मुखनाषै वीर जिणेसर । सूत्रकरी गूंथे ते श्रुतधर ॥ ११ ॥ इम पक्किमी मुनिवर प्रमत्तो । वीरसीस केवल पदपत्तो । त्रिकरण सुध तपय प्रणमी जै । मानव जनम सफल इम कीजे ॥ १२ ॥ ( कलश ) ॥ ॐ ॥ इम वीरजिणवर ग्यान दिएयर सयललोय सुहंकरो । तियलोय सामी सिधिगामी सुद्ध धरम धुरंधरो । नवजाय लक्ष्मी कीर्त्ति सीसैं जैनवा णी मन धरी । गणि विल्सन तवन करि इम संयो जावै करी ॥ १३ ॥ इति इरियावही मिचामि दुक्कम संख्या स्तवनं ॥ ॐ ॥ 11 11
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॥ * ॥ अथ पंचसमवाय स्तवन लि० ॥
॥ ॥ सिधारथ सुतवदियै । जगदीपक जिनराज । वस्तुनाव सब जा पिये। जिन श्रागम थी आज ॥ १ ॥ स्यादवादथी संपजै । सकल वस्तु विख्यात । सप्तरंगी रचना विना । बंधन बैसे वात ॥ २ ॥ वाद वदे नय जूजु
। आप आप गम। पूरण वस्तु विचारतां । कोई न आवै काम ॥ ३ ॥ अंध प्ररूपै एहगज । ग्रही अवयव एकेक । दृष्टिवंत लहै पूर्णगज । अ वयव मिली अनेक ॥ ४ ॥ संयुत सकल नये करी । जुगत २ सुध बोध । धन जिनसासन जगजयो । तिहां नही कोई विरोध ॥ ५ ॥ ( ढाल १ मा साजरी राग ॥ ) श्रीजिन सासन जगजयकारी । स्यादवाद शुद्धसरूपरे । नयएकांत मिथ्यात्वनिवारण। अकल अभंग अनूप ॥ ६ ॥ श्री० । कोई कहै एकाल तर्फे वस । सकल जगत गत होयरे । कालै नपजै विणसे का लै। वरन कारन कोयरे ॥ ७ ॥ श्री० । कालै गर्भ धेरै जगवनिता । कालै जनमें तरे । काले बोलै काले चाले! काले कालै घर सूतरे ॥ ८ ॥ श्री० ॥ का दूध की ही थायै । काले फल परिपाकरे । विविध पदारथ का ल पाये। अंतकरै बेवाकरे ॥ ९ ॥ श्री० ॥ जिन चनवीसे बारचकवै । वासुदेव बलवंतरे । कालै कविलत कोई नदीसे । जसुकरता सुर सेवरे
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रत्नसागर. ॥१०॥श्री०॥ तत्समेणि अवसर्पणि आरा । चै जूज़ये नांतरे। घटरितु काल विशेष विचारो। निन्ननिन्न दिन रातरे॥ ११ ॥श्री०॥ काले बाल बिलास मनोहर । यौवन कालाकेशरे । बुट्टपणे हुयवलि २ धुर्बल । सकति नही लवलेसरे ॥१२॥श्री०॥(ढालर गिरु आ गुण श्रीवीरजी ए चाल)॥ ॥ ॥ तब सुनाव बादी वदैजी। कालकिसुं करै रंक । वस्तु सुनावै नीपजे जी । विणसे तिमज निस्संक ॥ १३ ॥ ( बिवेकी जुनो २ वस्तु सु जाव ) ॥ उतै योग जीवनवती जी । वांमणि न जणे बाल । मुंबनही महिला मुखे जी । करतल ऊगै न बाल ॥ १४ ॥ बि० ॥ विणस नाव नवि संपजै जी । किमह पदारथ कोय । अंब नलागै नींव+जी। वागवसते जोय ॥१५॥ वि०॥मोर पीउ कुणचीतरै जी। कुण करै संध्या रंग । अंगवि विध सविजीवनाजी। मुंदर नयन कुरंग ॥ १६ ॥ बि० ॥ कांटा बोरवंबूल नाजी । कुणे अणियाला कीध । रूप रंग गुण जूजूाजी । तस फल फू ल प्रसिघ ॥ १७ ॥ बि० ॥ विसहर मस्तके नितवसैजी। मणिहरै विस तत काल । परबत थिर चल वायरोजी । नरध अगननी माल ॥ १८ ॥ वि०॥ मन तुंब जलमां तरैजी । बूझै काग पाहाण । पंख जाति गयणे फिरे जी। इणपरै सहिज बिनाण ॥ १९ ॥ बि० ॥ वाय झूठ थी नपसमें जी। हरडै करै विरेच । सीफेनहि कणकांगमो जी । सकल सुनाव अनेक ॥ २० ॥ बि० ॥ देश विशेषै काठनोजी । नुयमां थायै पाखाण । संख अस्थिनो नी पजे जी । क्षेत्र सनाव प्रमाण ॥ २१॥ बि० ॥ रवि तातो शशि सीयलो जी। नव्या दिक बहु नाव । उए द्रव्य आपापणा जी । न तजै कोई सुन्नाव ॥ २२॥ बि०॥ ॥ (ढाल३) कपूर हुवै अति जलो रे एचालकाल किसुं करै बापमोरे । वस्तु सुजाव अकऊ । जो नहोइ नवतव्यता जी । तो किम सीजे का रे ॥ २३ ॥ (प्राणी मकरो मनजंजाल)॥ एतो ना वी जाव निहाल रे ॥ प्रा० ॥जलधितरै जंगल फिरै जी। कोमि यतन करें कोय । अणनावी होवै नहीं जी। नावी होय ते होय रे ॥ २४ ॥ प्रा०॥ आंब मौर वसंतमा जी । मालै कोई लाख । खरया केई खांखटी जी। केइ आंबा केई साखरे ॥ २५ ॥ प्रा० ॥ वांउल जिम जवतव्यता जी। जि
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पंचसमवाय स्तवन
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२ दिशे नजाय । परवस मन माणस तणो जी । तृण जिम पूठे धाय रे ॥ २६ ॥ प्रा० ॥ नियत वसै विए चिंतयूं जी । आावी मिल ततकाल । वरसां सोनुं चिंतव्यो जी । नियम करै विसराल रे ॥ २७ ॥ प्रा० ॥ आठमो चकि सुमि तेजी । समुद्र पड्यो विकराल । ब्रह्मदत्त चक्री तणा जी । नयन हरै गोवाल रे ॥ २८ ॥ प्रा० ॥ कोकूहा कोयल करे जी। किम रा खीसरे प्राण । हेमी शर ताकीयो जी । ऊपर में सींचापरे ॥ २९ ॥ प्रा० ॥ आहेमी नागें कस्यो जी। बाण लग्यो सींचाण । कोकूहो नमी गयो जी। जो नियत परमाणरे ॥३०॥ प्रा० ॥ सत्र हराया संग्राम मांजी। रानपड्यां जीवंत । मंदिर मांहें मानवी जी । राख्याही नरहंतरे ॥ ३१ ॥ प्रा० ॥ (ढाल ४ राग मारुणी मनोहरणी ) ॥ ॥ काल स्वभाव नियत मति कूमी । करम करे ते थाय । करमें नरय तिरय नर सुर गति । जीव भवंतरे जाय ॥ ३२ ॥ (चेत न चेतयोरे करम न छूटै कोय ) ॥ करमें राम वस्या वनवासे । सीता पामी आल। कर्मै लंका पति रावणनुं । राज्य थयो विसराल ॥ ३३ ॥ चे० ॥ कर्मे कीमी कर्मे कुंजर । कर्में नर गुणवंत । कर्मे रोग सोग दुख पीमित । जनम जायै विलसंत ॥ ३४ ॥ ( ० ) कर्मे वरस लगे रिसहेसर । उदक न पा
अन्न । कर्में जिनमें जोन गिमारै । खीलारोप्या कन्न ॥ ३५ ॥ ० ॥ कर्मे एक सुख पालै वैसै । सेवक सेवै पाय । एक हय गय चढ्या चतुर नर । एक आगल कजाय ॥ ३६ ॥ ० ॥ नद्यम मानी अंधतणी परि । जगहीं मै हाहुतो । कर्म वली ते लहै सकल फल । सुख र सेजै सूतो ॥ ३७ ॥ चे० ॥ नंदर एकै कीधो नद्यम । करंमीयो करकोले । मांहे घणा दिवसनो भूखो । नागरह्यो मकोले ॥ ३८ ॥ ० ॥ बिवर करी मूषक तसु मुखमां दीये प्रापणं देह । मार्ग नही वन नाग पंधारया । कर्म मर्म जोवो एह ॥ ३९ ॥ चे० ॥ (ढाल ५ मी ) | ( तो चोढियो घण मान गजै एचाल ) ॥ * ॥ हिव नद्यम वादी नए एच्यारे प्रसमत्थतो । सकल पदारथ साधवा ए । नद्यम एक समरत्थतो ॥ ४० ॥ नद्यम करतां मानवी ए । स्युं नविसी काजतो । रामें रयणायर तणी ए । लीधो लंका राजतो ॥ ४१ ॥ करम नियतिनें अनुसरे ए । जेहमां सत्वन होयतो । देवल बाघ मुख पंखि
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रत्नसागर.
या ए। पिन पैसंता जोयतो ॥ ४२ ॥ विण नद्यम किम नीकले ए । तिल माथी तेलतो । उद्यम थी ऊंची चढेए । जोवो एकेंद्रिय बेलतो ॥ ४३ ॥ उद्यम करतां इसमें ए । जेह नसीर्फे काजतो । ते फिर नद्यमथी हुवैए । जो नववे वाजतो ॥ ४४ ॥ नद्यम करि करयां विनाए । नविरंधाये न्नतो । आावी न पकै कोलीयोए । मुखमां खेपै जन्नतो ॥ ४५ ॥ कर्म पूत
म पिता । द्यम कीधा कर्म्म तो। नद्यम थी दूरे टलै ए । जोन कर्म नों मर्म तो ॥ ४६ ॥ दृढप्रहार हत्या करीए । कीधा पापअनंततो । नद्य मी षट मासमां ए| आप थया अरिहंत तो ॥ ४७ ॥ टीपै सरवर नरे ए । काकरे २ पालतो । गिर जेहवा गढ नीपजै ए । उद्यम सकत निहालतो ॥ ४८ ॥ नद्यमथी जल विंदुए । करे पाहाणमां ठामतो । नद्यम थी विद्या न ए । उद्यम जो दामतो ॥ ४९ ॥ ( ढाल ६ ) एबिंगी किहा राखी एदेशी ॥ * ॥ एपांचेही वाद करंतां । श्री जिनचरणे आवै । मीयर जिन वयण सुणीनें । आणंद अंग नमायैरे ॥ ५० ॥ ( प्राणी समकित मतिम न आणोरे । नय एकांत मताणोरे । ते मिथ्या मत जाणोरे । प्रकणी ) ॥ एपांचे समुदाय मिल्या विण । कोई काज न सीजै । प्रांगुल जोगे कवल तणी पर । जे बूजै तें रीजैरे ॥ ५१ ॥ प्रा० ॥ आग्रह आणी कोई एकने ।
मां दिये बाई । पण सेनामिल सकल रणं गए । जीतै सुनट लमाईरे ॥ ५२ ॥ प्राणी | तंतुसनावे पट नपजावै । काल क्रमें बणाई नवतब्यता होयें ते नीपजे । नही तो विघन घणाईरे ॥ ५३ ॥ प्राणीस० । तंतुवाय नद्यम नोक्तादिक । नाग्य सबल सहकारी । एपांचे मिल सकल प दारथ । नतपत जोवो विचारी रे ॥ ५४ ॥ प्राणी ० ॥ नियति वसें हलुकर्म थइने निगोद थकी नीकलियो । पुरायें मनुज नवादिक पामी । सदगुरुनें जई मिलियोरे ॥ ५५ ॥ प्रा० ॥ नवथितनो परपाक थयो तब । पंक्ति वीर्य नलसियो । नव्यस्वनावै शिव गति गामी। शिव पुर जईनें वसियोरे ॥ ५६ ॥ प्रा० ॥ वर्धमान जिन इस परि वीनवे । सासन नायक गावो । संघ सकल सुख दाई जेहथी । स्यादबाद रसपावोरे ॥ ५७ ॥ प्रा० ॥ (कल श) इम धर्म नायक मुगति दायक वीर जिनवर संथुएयो । सय सतर संबत:
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१४ गुणस्थान स्तवन. वन्हिलोचन वर्ष हर्ष धरी घणो । श्री विजय देव सूरींद पटधर विजय प्रनु मुर्णिदए । कीर्ति विजय वाचक सीस इण परि विनय कहै आणंदए ॥५८॥ इति पंच समवाय स्तवनं समाप्तम् ॥ ॥
॥ॐ ॥ १४ गुणठाणास्तवन लि.॥॥ ॥ ॥थंत्रणपुर श्रीपास जिणंदो। एचाल ॥ ॥ सुमतिजिणंद सु मतिदातार। वंडं मनसुध वारंवार । आणीनाव अपार । चवदै गुणथानक सुविचार । कहिस्युं सूत्र अरथ मनधार । पामें जिम नवपार॥ १॥ प्र थम मिथ्यात कह्यो गुणगणो । बीजो सास्वादन मन आणो । तीजो मि श्र वखाएं। चोथो अविरत नाम कहाणो । देशविरति पंचम परमाणो बहो प्रमत्त पिगणुं ॥२॥ अपरमत्त सत्तम सलहीजै । अहम अपूरब क रण कहीजै । अनिवृत्ति नाम नवम्म । सूखमलोन दसम सुविचार। उपशां त मोह नाम इग्यार । खीणमोह बारम्म ॥३॥ तेरम सयोगी गुणधाम । चनदम थयो अयोगी नाम । वरणं प्रथम विचार । कुगुरु कुदेव कुधर्म बखाण । तेह लवण मिथ्या गुणगण । तेहना पंचप्रकार ॥ ४॥ (ढाल २) सफल संसारनी ॥ * ॥ जेह एकान्त नय पक्ष थापी रहै। प्रथम एकान्त मिथ्यामती ते कहै । ग्रंथ नथापि थापै कुमति आपणी । कहै विपरीति मिथ्यामती ते नणी॥५॥ जैन शिव देव गुरु सहु नमें सारिखा । तृतीय ते विनय मिथ्यामती पारिखा। सूत्र नवि सरदहै रहै विकलप घणें । सं सयी नाम मिथ्यात चोथो नणें ॥६ ॥ समझ नही काय निज धंधरातो रहै । एह अज्ञान मिथ्यात पंचम कहै । एह अनादि अनंत अन्नव्यनें। करिय अनादि थिति अंत सुनव्यनें॥७॥जेम नर खीर घृत खमजीमनें वमें। सरस रस पाय वलि स्वाद केहवोगमें । चौथ पंचम के गण चढिने परौं। किणहि कषाय वसिाय पहिले अम॥ ८॥ रहै विच एक समयादि षट
आवली। सहीय सासादने थिति इसी सांगली। हिव इहां मिश्रगुण गण त्रीजो कहे । जेह नत्कृष्ट अंतर महुरत लहै ॥ ९ ॥ (ढाल ३ ) बेकर जोगीताम ॥ एहनी॥ * ॥ पहिला चार कषाय । शमकार समकिती। कैतो सादि मिथ्यामती ए । ए बेहिज लहै मिश्र । सत्य असत्य जिहां।
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रत्नसागर. सरदहणाबे नतीए ॥१०॥ मिश्र गुणालय मांहि । मरण लहै नही । आ नवंबंध नपमै नवो ए। कैतो लहै मिथ्यात । के समकित लहै । मतिसर खी गति पर जवै ए ॥ ११ ॥ च्यार अप्रत्याख्यान । नदय करी लहै । म तिविण किहां समकित पणो ए। ते अविरत गुणगण । तेतीस सागर । साधिक थिति एहनी नणो ए॥ १२॥ दया नपशम संवेग । निरवेद आ सता। समकित गुण पांचे धरैए । सहु जिन वचन प्रमाण । जिन सास न तणी। अधिक २ नन्नत करै ए॥१३॥ केईक समकित पाय । पुदग ल अरधतां । नत्कृष्टा नवमें रहै ए । केईक नेदी गठि । अंतर महुरते। चढते गुण सिवपद लहै ए ॥१४॥ च्यार कषाय प्रथम्म । त्रिणवलि मोह नी। मिथ्या मिश्र सम्यक्तनीए । साते प्रकृतिजास । परही उपसमें । ते नपसम समकित धणी ए ॥ १५ ॥ जिण साते क्य कीध । ते नर वायकी । तिणहीज नव सिव अनुसरैए। आगलि वांध्यो आन । तातें तिहां थकी । तीजै चोथै नवतरै ए ॥ १६ ॥ (ढाल ४) इणपुर कंबल कोइन लेसी ॥ ए चाल ॥ ॥ पंचम देसविरति गुणगण । प्रगटै चनकमी प्रत्याख्यान । जेण तजै बावीस अन्नन् । पाम्यो श्रावकपणो प्रतद ॥ १७ ॥ गुण इक वीस तिके पिण धारै । साचाबारै ब्रत संनारै । पूजादिक षटकारज साधै। इग्यारै प्रतिमा आराधै ॥१८॥ आरत रोद्र ध्यान हुवे मंद । आयो मध्य धरम आनंद । आठ बरस कणी पुवकोम। पंचम गुण ठगणे थिति जोम ॥१९॥ हिव आगै साते गुणथान । इक २ अंतर महुरत मान । पंच प्रमाद वसै जिण ठाम । तेण प्रमत्त हो गुणधाम ॥ २०॥ थिवर कलप जिन कलप आचार । साधै षट् आवस्यक सार । नद्यत चोथा च्यार क षाय । तेण प्रमत्त गुणगण कहाय ॥ २१ ॥ सूधो राखै चित्तसमाधै । धर मध्यान एकांत आराधै। जिहां प्रमाद क्रिया विधनासै । अपरमत्त सत्तम गुण नासै ॥ २२ ॥ ( ढाल ५) नदी यमुनाकै तीर नमै दोय पंखीया ॥ ए चाल ॥ ॥ पहिले अंस अहम गुणगणा तणें । प्रारंने दोयश्रेणि संखेपै.ते गणें । नपशम श्रेणि च? जे नरहुवे उपसमी। पक श्रेणि काय क प्रकृति दशक्य गमी ॥ २३ ॥ तिहां चढता परिणाम अपूरब गुण ख
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१४ गुणस्थान स्तवन.
ર૭રૂ हैं। अहम नाम अपूरब करण तिणें कहै । सुकल ध्याननो पहिलो पायो आदरै। निरमल मन परिणाम अमिग ध्याने धरै ॥ २४॥ हिव अनिवृत्त करण नवमो गुण जाणियै । जिहां नाव थिर रूप निवृत्ति न जाणिये । क्रोध माननें माया संजलणा हणें । नदै नही जिहां वेद अवेद पणों ति लों ॥२५॥ जिहां रहै सूखम लोन कांइक शिव अनिलखै । ते सूखम संपराय दशम पंमित दखै । संत मोह इण नाम इग्यारम गुण कहे । मोह प्रकृति जिण गम सहु नपसम लहै ॥ २६ ॥ श्रेणिचढ्यो जो काल करै किणही परै । तो थायै अह मिंद्र अवर गति नादरै । च्यारवार सम श्रेणि लहै संसारमें। एक नवै दोय श्रेणि अधिक न हुवै किमें ॥ २७॥ चढि इग्यारम सीम समी पहिलै पमै । मोह हुदै नत्कृष्ट अरध पुगदल रमै । खिपक श्रेणि इग्यारम गुणगणो नही । दशम थकी बारम्म चढे ध्याने रही ॥ २८ ॥ ( ढाल ६ एक दिन कोई मागध आयो पुरंदर पास)॥ए चाल ॥ ॥ खीण मोह नामें गुण गणो बारम जाण । मोह खपायो नमो आयो केवल नाण । प्रगट पणें जिहां चारित अमल यथा प्रख्यात । हिव आगै तेरम गुणगण तणी कहै वात ॥ २९ ॥ घातीय चौकमी दयगई र हीय अघातीय एम । प्रकृति पच्यासी जेहनें जूना कापम जेम । दरसण झान वीरज सुख चारित पंच अनंत । केवल ज्ञान प्रगट थयो विचरै श्री जगवंत ॥३०॥ देखे लोक अलोकनी गनी परगट वात । महिमावंत अ ढारे दूषण रहित विख्यात । आठेवरसे कणी कही इक पूरब कोमि । नक ष्टी तेरम गुण ठाणे ए थिति जोमि ॥ ३१ ॥ कर सेलेसी करण निरूध्या मन वच काय । तेण अयोगी अंत समइ सहु प्रकृति खपाय । पांचे लघु अक्रर कचरतां जेहनो मान । पंचम गतिपामें सिवपद चनदम गुणथान । ॥३२॥त्रीजै वारमें तेरमें माहै न मरै कोइ । पहिलो बीजो चोथो पर जव साथे होइ। नारक देवनी गतिमाहे लाने पहिलाच्यार । धुरला पांच तिरी मांहिमणुए सर्ब विचार ॥३३॥ (कलश)॥इम नगर बाहम मेरुमं मणा सुमति जिण सुपसानले । गुणगण चवद विचार वरण्यो नेद आग ननें नलै। संवत्त सतरैसै उत्तीसै श्रावण वदि एकादसी । वाचक विजय श्री
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रत्नसागर. हरष सानिध कहै मुनि इम धर्मसी ॥३४॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति श्री चतुर्दश गुण स्थान विचार स्तवनं ॥ * ॥ ॥॥ ॥॥
॥ ॥ समवसरण विचार गर्षित स्तवन लि० ॥ * ॥
॥ ॥ (हा) श्रीजिन सासन सेहरो । जगगुरु पास जिणंद । प्रण मी जेहना पाय कमल । आवी चौसठ इंद्र ॥१॥ तीर्थकर आवै तिहां । त्रिगमो करै तयार । सम कित करणी साचवै । एह कहुं अधिकार ॥२॥ करै प्रसंसा समकिती । मिथ्थात्वी होवै मूंक । सूर्य देख हरखै सहू । घणे अंधारै घूक ॥३॥ॐ ॥ ढाल वीर बखाणी० एचाल ॥ * ॥ आप अरिहंत जलै आविया जी । गावै अपळरह गंधर्व । समवरण रचै सुरवराजी । सं खेपै ते कहुं सर्व ॥ ४॥आ०॥ जुवन पति वीश इंद्रे मिल्या जी । सोलह ब्यंतर सार । जोइश 5 दश वेमाणिय जुया जी । चौसठ इंद्र सुविचार ॥५॥ आ० ॥ पवन सुरपुंज परमार जैजी । नृमि योजन समनान। मेघ कुमर रचै मेघनें जी। करीय सुगंध टिमकान ॥६॥ आ० ॥ अगर कपूर सुन्न धूपणाजी । करय श्री अगन कुमार । वांएव्यंतर हिव वेगसुं जी । रचय मणिपीठका सार ॥ ७ ॥ आ० ॥ पुहुप पंच वरण ऊरध मुखै जी। वरष ए जानु परिमाण । नवणव देव त्रिगमो नलो जी। करय ते सुणन सुजाण ॥ ८॥आ० ॥ रचय गढ प्रथम रूपा तणोजी । सोवन कांगरै सा र। रवि शशि रयण कोसीसको जी। कनक नो बीय प्रकार ॥९॥ आ०॥ रतन गढ रतननें कांगर जी । रचय वेमाणि सुरराज । जलो त्रीजोगढ जी तरजी। जीहां विराजै जिनराज ॥ १० ॥ ॥जीत ऊंची धणुं पांचसै जी । सवा तेत्रीस विसतार । धनुषसै तेरगढ आंतरोजी । प्रौल पंचास ध णु च्यार ॥११॥आ०॥ दश पंच २ त्रिहुं गढतणी जी । पावमी वीशह जार। थाक श्रम नहीय चढतां थकां जी । एक कर उबविस्तार ॥ १२ ॥ आ० ॥ पंच धणु सहस पृथवी थकी जी । नच रहै त्रिगढ आकाश । ते हतल सहु यथा स्थित वसै जी । नगर आराम आवाश ॥१३॥ आ० ॥ तोरण चिहुं २ दिस तिहां जी। नील मणि मोर निरमाण । उसय धणु मध्य मणि पीठिका जी । नच जिण देह परिमाण ॥१४॥आ०॥ च्यार आस
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निकूणे करात कूण जिन वावमाण ए । वारकर
समवसरण स्तवन
२७५ ण तिहां चिहुं दिसेंजी । मोतीयें काक माल । सम विचकूण ईसांणमें जी॥ देव बंदो सुविसाल ॥१५॥ प्रा०॥ देव मुनि नाद नपदिसै जी। जिन गुण गावसी तेह । अह्म जिम आई शिर ऊपरें जी । गाजसी तेह गुण गेह ॥१६॥ आ०॥ (ढाल) सफल संसारनी॥ ॥ पुवदिशि आसणे आइ वैसै पहू । सुरकृत चौमुख रूपदेखे सहु । दीपै अशोक तरु वार गुण देह थी। देखि हरषै सहू मोर जिम मेहथी ॥ १७॥ मोतियां जालि त्रिण नत्र सु विसालए । रूप चिहुं चिहुं दिसें चामर ढालए । योजन गामनी बांणि श्री जिनतणी । जगवंत नपदिसें बार परषद नणी ॥ १८॥ प्रदक्षिणा रूपथी अगनिकूणे करी । गणधर साधवी तिम वेमाणीय सुरी । ज्योतषी नुवणनी वितरी स्त्री पणें । नैश्त कूण जिन वाणि ऊनी सुणे । त्रिहुं तणा पति वाय कूणमें जाणए । सुर वैमाणीय नर नारि ईसाण ए । वारह परष दा मद मकर डोमे ए । नूख त्रिष वीसरै सुणे कर जोमए ॥ १९॥ पूठ जाममल तेज प्रकास ए । जोयण सहस धज ऊंच आकास ए । ऊल हलै तेज ध्रुम चक्र गगनें सही । महक सहु बारणे धूप धांणा सही ॥ २०॥ वाहण वहिल सहुधरीय पहिलै गठै । होइ पग चारि नरनारि ऊंचा चढे । जिन तणी वाणि सुणि जीव तिरजंच ए । वैर तजि वीय गढ रहै सुख संच ए ॥ २१॥ पुण्यवंत पुरषते परषद बारमें । सुणे जिन वाणि धन गणय अवतार में । चौविह देव जिण देव सेवा रचै । मणिम यी माहिली प्रोलमांहे वसै ॥२२॥ चिहुं दिसि वाटली वावि चौ जाणी यै । विदसि चौकूण दोइ २ वखाणियै ॥ आठ जिहां वावि जल अमृत जेम ए । स्नान पाने वपु निरमल हेम ए ॥ २३॥ जय विजय जयंत अपराजिया । मध्य कंचण गढे प्रोल वसंतिया । तुंवरु पुरुष खटंग अर्चि माल ए । रजतगढ प्रोलना एह रखवाल ए ॥२४॥ पहिल त्रिगमो नहुन जिण पुर ग्राम ए। देव महर्षिक रचै तिण गम ए । करण वारवार नहीं का रण कोई ए । आठ प्रातीहारज ते सही होइ ए ॥२५॥ जिण समवसर णनी शधि दीठी जीय । तेह धन धन्य अवतार पायो तियै । पास अरदा स सुणी वंगित पूरज्यो । हिव मुझ ताहरो सुच दरसण हुज्यो॥२६॥
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२७६
रत्नसागर.
(कलश) इम समवसरणें रुविवरण सह जिनवर सारखी । सरद है ते है सुख समकित परम जिन भ्रम पारखी । प्रकरण सिद्धांते गुरू परंपर सुणी सहु अधिकार ए । संस्तव्यो पास जिणंद पाठक धर्म वर्धन धार ए ॥ २७ ॥ इति समवसरण विचार भाषा गति स्तवन ॥ ॥
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॥ * ॥ अथ प्राबूजी तीर्थ महिमा स्तवन ॥ ॥ * ॥ जात्रीमा नाई आबूजीनी जात्र करे ज्यो । जात्र नणी नमहे ज्यो । तुझे नरभव जाहों जीज्योरे ॥ जात्री० ॥ पंचतीरथी मां हे बाजै । आबू मारुमै देस विराजेरे ॥ जा० ॥ स्वरगथी वादे लागो । उँचो अंबरीये जाइ जागोरे ॥ १ ॥ जा० ॥ एतो देवांनो वास कहावै । निरखता त्रिपति नथावेरे ॥ जा० ॥ एतो डूंगरीयानो राजा । एहनीबे वारह पाजारे ॥ २ ॥ जा० ॥ हरितु वास वणाव्यो । एतो चंपला अंबलां बायोरे ॥ जा० ॥ सरवर ऊरणा जाजा । जिहां तिहां वनवेल्यां प्राकारे ॥ ३ ॥ जा० ॥ जार ढारे वराई । एतो इहांहीज निजरे आईरे ॥ जा० ॥ दह दिस परमज
वै। फूलमानो रंग सुहावेरे ॥ ४ ॥ जा० ॥ ऊपर भूमि विसाला | देव a. दीठा रखीयाला रे ॥ जा० ॥ विमल मंत्री वरदाई | चक्केसरि देवि सहाई रे ॥ ५ ॥ जा० ॥ पोरवाम वंस वदीतो । जिण दल पतिसाही जीतोरे ॥ जा० ॥ 'देव ते करायो । पाहण आरास मँगायो रे ॥ ६ ॥ जा० ॥ जीणी २ कोरणी
रयो । दल मांख जेम नकेरथोरे ॥ जा० ॥ नवी २ जांतिवनाई । जिहां तिहां कोरणीया किणाईरे ॥ ७ ॥ जा० ॥ उत्तरे पाहणजेतो । जोषीजै पाहण ते तोरे ॥ जा० ॥ प्रादिजिणेसर सामी । प्रतिमा थापी हित कामीरे ॥ ८ ॥ जा० नगणीस कोम सोनईया । द्रव्य लागति करि जस जीयारे ॥ जा० ॥ करजो डीनें आगे । मंत्री जिनवर पाय लागे रे ॥ ९ ॥ जा० ॥ पूठै चढीया हा थी । मंगाणा पति साह साथी रे || जा० ॥ इण देवल सम वढकोई । नूमं कल मांहि न होईरे ॥ जा० ॥ १० ॥ वलि तिण वंस विगताला । वस्तपाल अने तेजपालारे ॥ जा० ॥ देवनमी रिधिपाई । इहां तियाँ पिए सफल क राईरे ॥ ११ ॥ जा० ॥ तेहवो जिणहर पासें । वारकोमनी लागति नासैरे जा० ॥ देवराणी जेठाणी । आालानी अजब कहांणीरे ॥ १२ ॥ जा० ॥
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आबूजी (तथा) शीतल जिन स्तवन. २७७ इहां देवल सोह बधारी । नेमनाथजी वाल ब्रह्मचारीरे ॥ जा० ॥ कसवट पांहण केरी। मूरति सुरमा रंग हेरीरे॥१३॥ जा०॥ देवल वामो दीगे। तेतो लागै नयणे मीठोरे ॥ जा० ॥ तिहां केई देवल पासै । लोकजोवै घ णो तमासोरे॥१४॥ जा० ॥ त्रिणगान आगल जाईये । देवल देखी सुख लहीये रे ॥ जा०॥ चौमुख प्रतिमा च्यारो। आदिनाथ देव जुहारोरे॥१५॥ जा०॥ सोवनमें साते धातो। किग मिग रही दिनने रातोरे॥ जा० ॥म ण चवदेसे चम्मालौ। जिण बिंबनो मार निहालोरे ॥ जा० ॥ १६ ॥ श्रीमाली नोम सोनागी। जिणवरथी जसुलय लागीरे ॥ जा० ॥ एहनी करणी वाह वाहो । इहांलीधो लखमी लाहोरे ॥ १७ ॥ जा०॥ ए डुंगरी यै आवी। जिण जात्रकरै मननावीरे ॥ जा० ॥ जिहां तिहां पूज रचावै । नाटकीया नाच करावेरे॥१८॥जा०॥ रातीजोगो दिवरावो । जिणवर ना जस गुण गावोरे॥ जा०॥ साहमी वबल कीज्यो । जातमलीनो ज स लीज्योरे ॥ १९॥ जा०॥ आगेथी आवी चाली। वातां केई अचरिज वालीरे॥ जा० ॥ सुणीय जे कोई । अहिनाणे जो ज्यो तेईरे ॥ २० ॥ जा०॥ ए तीरथ गुणगावे । जात्रानो फलते पावै रे ॥ जा ॥ए तीरथ स म तोले । कुणावै रूप चंद वोलैरे॥२१॥ जा० इति आबूजी स्तवन॥१॥ ॥ ॥ अथ श्रीशीतल जिन चैत्य प्रतिष्टा स्तवन ॥ ॥
॥॥नवी जिनपूजोरे शीतल जिन पतीरे। नयना नंदन चंद। प्रनु जी विराजैरे सूरति बिंदरैरे। नंदा देवीना नंद ॥१॥०॥ जग हितकारी रेजिनजी अवतरयारे। श्रीदृढरथ नृप गेह । श्रीवह सोहै रे लांउन सुंदरूरे । कनकवर्ण प्रनुदेह ॥२॥०॥ विषय निवारीरे संयम संग्रह्योरे । लाधु के वल नांण । सघन घनाघन जिमध्रम दरसतारे । विचरया त्रिनुवन नांण ॥ ३ ॥न । वेदनी प्रमुख जे सेष रह्या हुतारे । च्यार अघाती कर्म । दूर निवारयारे अनुक्रम तेहनें रे। पाम्युं शिव पद सर्म ॥ ४ ॥ ॥ संप तिकाले रे श्रीजिन राजनोरे। पूजीजै प्रतिबिंब । प्रतिदिन लहीयैरे प्रनु सुप्र साद थीरे। वांगित फल अविलंब ॥ ५ ॥ ज० ॥ श्रीजिनवरनो बिंब बि लोकतांरे। उकृत दूर पुलाय। इंद्रीयनिग्रह सुग्रह संपजैरे। समकित पिण दृढ
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रत्नसागर. थाइ॥६॥०॥श्रीसङ्गुरुना मुखथी सांनख्यारे। एहवा वचन विलास। ते वहुमानेंरे निज चित्तमें धरयारे। नेमीसुत भाईदास ॥७॥०॥ चैत्य कराव्युरे सुंदर सोनतोरे। मनधरि अधिक नतास। शीतल प्रजुनोरे बिंब नरावीयोरे। सहस फणा वलि पासवान ॥ वरस अधारह सत्तावीसमेंरे। माधव मास मकार। नऊल प्रादसी दिवस थापीयारे। विंब अनेक नदार॥९॥ ज०॥ एकसो इक्यासी सहु मेलै थयारे। बिबादिक सुविचार । कीध प्रतिष्टा ते दिन तेहनीरे। विधपूर्वक मन धार ॥ १०॥०॥श्री जिनलान सूरी श्वर दीपतारे । श्रीखर तर गलाण । तासपसाय में शीतल जिन थुएपारे । विबुध कमाकल्याण ॥ ११॥०॥ ॥ इति शीतल जिन स्तवनं ॥॥ ॥ ॥ अथ अढाई द्वीप २० विरहमान स्तवन ॥ ॥ ..॥ ॥ वंषु मनसुध विहरमाण जिणेसर वीस । दीप अढीमें दीप जे वंता जगदीस । केवल ग्यांननें धारै तारे करि नपगार । किण २ गमें कु ण २ जिन कहिस्युं सुविचार ॥ १॥ पंतालीस लद जोयण मानुन क्षेत्र प्रमाण । बलियाकार आधै पुष्करसीमा जाण । दोय समुद्रे सोहे दीप अढाई सार । तिणमें पनरै करमा नूमीनो कहूं अधिकार ॥ २ ॥ पहिलो जंबूदीप समै विच थाल आकार । लांबो पिहलो इकलख जोयणनें विसतार। मोटो तेहनें मध्य सुदरशण नामें मेर। तिणथी दिसा विदिसांनी गिणती च्या रे फेर ॥ ३ ॥ मेरुथकी दवाणदिसि एहनरत सुनकेत्र । पांचसै गवीस जोयण उकला तेहनो वेत्र । उत्तरखंममें एहवो ऐरवतोत्र कहाय । इण विहुं करमांनूमी अरा गई फिरता जाइ ॥ ४ ॥ तेत्रीस सहस्र उसै चौरा सी जोयण जाण । च्यारकला ए महाविदेह विखन वखाण । वावीससै तेरे जोयण एकविजे पहुलाण । एहवी वत्तीस विजय विराजे जेहनें गण॥ ५॥ मे रुविच कर पूरब पत्रिम दोय विनाग। सोलेर विजय तिहां विचरे श्रीवीतराग। सासते चोथे आरै तारै श्रीअरिहंत । एहवो महाविदेह करम चूमि त्रीजीतंत ॥६॥ पूरखविदेह विजै पुष्कलावति आठमी ठाम। पुमरीकणीनगरी तिहां श्री सीमंधर स्वांम । वप्रविजै पचीसमी विजया पुरनो नाम।पत्रिम विदेह वीजोयु गमंधर कीजै प्रणाम ॥७॥ तिमहीज नवमी वहविजै वलि पूरबविदेह । नयर सु
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२० बिहरमान ढाई द्वीप स्तवन
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सीमा बीजो बाहु नमुं धरि नेह । नलिनावर्त्त चौवीसमी पछिम विदेह वखाण । वीतसोका नगरी तिहां चौथो सुवाहु जांण ॥ ८ ॥ ए च्यारेई जिणवर जंबूद्वीप मजार | महाविदेह सुदरशण मेरुतर्णे परकार । एहवो जंबूद्वीप महागढ जेम गिरंद । खाई रूपै दोइलख जोयण लवण समंद ॥ ९ ॥ ( ढाल दीवाली दिन ावी चाल ) | दीपै बीजो दीपए । धन २ धातकीखं । पिहुलो चिहुँ लख जोयणे । मंगल रूपे मंम ॥ १० ॥ दी० ॥ दोइ जरत दोइ ऐखत । दो व महाविदेह | करमभूमी षट् जिहां । नणहीज नामें एह ॥ ११ ॥ दी० ॥ पूरब पछिम धातकी । खंग गिणीजै दोन । विजयमेरू पूरब दिसे | पछिम अचलमेरु जोइ ॥ १२ ॥ दी० ॥ इक २ मेरुनें प्रांतरे । करमभूमि तीन २ । निज २ मेथी मांगिनें । लेखो चिहुं दिस लीन ॥ १३ ॥ दी ० ॥ श्रीसुजात जिन पांचमो । बडो स्वयंप्रभू ईस । रिषजानन जिन सातमो । समरीजे निस दीश ॥ १४ ॥ दी ० ॥ अनंत वीरज जिन आठमो । ए च्यारे जिन राय । पूरब धातकी में महाविदेह रहाय ॥ १५ ॥ दी ० ॥ पहिली चिहुं जिननी परे । विजय नगर दिशिठाण । तिलहीज नामें अनुक्रमें विजय मेरु महि ना ॥ १६ ॥ दी० ॥ नवमो सूर प्रनु नमुं । दसमो देवविशाल । इम वज्रधर इग्यारमों । त्रिकरण नमुं त्रिहुंकाल ॥ १७ ॥ दी० ॥ वारमो चंद्रानन जिन । पश्चिम धातकी माँहि । बिचरे च्यारे जिणवरा । अचलमेरु नचाहि ॥ १८ ॥ दी० ॥ हवो धातकी खमए । परदक्षणा परकार । अलख जोयण वींटीयो समुद्र कालोदधि सार ॥ १५ ॥ दी० ॥ ( ढाल ३ पहिली प्रतिमा एकरामा सनी चाल ) ॥ कालोदधिनें पैले पारए । बढ्यो चूमी जेम विचालए। सोलह लख जोयण विसतारए । दीप पुष्कर वर प्रति सुखकारए । ( न० ) सुखकार पुष्कर दीप त्रीजो तेहनें प्रधैपगै । विचपड्यो परबत मानुषोत्तर मनुष्यक्षेत्र तहांलगे । ति अधिकर हलाख जोयण अरधपुष्कर एक ए । तिहां करमभूमी बए कहीजे धातकी खंग जेमए ॥ २० ॥ ( ढाल ) प्रा पुष्करनें पूरब दिसे । मंदरनामें मेरु तिहांसे । पचिम विऊमाली मेरुए । इहां किया इतरो नामें फेरए । (०) फेरए इतरो इहां नांमें अवरठामें को नही । एक एक मेरे तीन तीने करमभूमी तिहां कही । इम भरत ऐखत महा
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रत्नसागर. विदेह नामसरखो हेतए । तिणहीज नामें विजै सगली सासता,मखेतर ॥२१॥ ( ढाल ) धातकीखमै तिम पुष्कर सही । इहां खेत्रांनी रचना वि ध कही। वार २ कहतांए विसतारए । पहिला परलेज्यो सुविचारए । (न) सुविचार वाकी तेहसगलो नगर तिमहीज मनगमें । पूरबै पछिम जेहनीते तेह तिमहीज अनुक्रमें । श्रीचंद्रवाहु नुजंग. ईसर नेम च्यार तिर्थ करा। पूरबै पुष्कर अरधमां हे सरबजीव सुखंकरा ॥२२॥ (ढाल ) वैरसन बंधु जिन सतरमो । श्रीमहानद्र अहारम नित नमो । देवजसा नगणीसम देव ए । जसोरिच वीसम जिण देवए । (न) जिणच्यार पुष्कर अरध मां हि कह्या पछिम लागए । तिहां मेरु विद्युन्मालि चिहुंदिशि विचरता बीत रागए। चौरासी पूरबलाख वरसां आन इक २ जिनतणो । पांचसै धनुष सरीर सोहे सोवन वरण सुहामणो ॥ २३॥ (दाल) कालजघन्य एजिण वीसए । हिव नतकृष्टे नेदकहीसए । एकसो सत्तरि तिहां जिणवर कहै। पांचे भरते जिमपांचे लहै । (न०) जिणलहै पांचे तेमपांचे ऐरवत मि ल दशहुवा । इक २ विदेहै वत्तीस विजयां तिहां पिणवै जू जू आ । एक सो सत्तरि एम जिनवर कोमिनवसय वलि केवली । नव सहस कोमी अवर मुनिवर वंदीयै नित ते वली ॥ २४ ॥ ( ढाल ) इहां जरतें ऐरवतें आजए पांचों आरे नही जिनराजए । धन २ पांचे महाविदेहए । विचरै वीसे जिन गुणगेहए । ( न० ) गुणगेह दोष अढार वरजित अतिसया चौतीसए । चौसहि इंद नरिंद सेवित नमुं ते निसदीसए । तिहां आज तारण तरण विचरै केवली दोय कोमए । दोईसहस कोमि सुसाधु वीजा नमुं बे कर जो मए ॥ २५ ॥ (कलश) इम अढीदीपै पनर करमानूमि खेत्र प्रमाणए । सि धांत प्रकरण महिलाष्या वीस विहरमाणए । श्रीनगर जेशलमेर संवत सतर गुणतीसै समै । मुख विजय हरष जिणंद सानिध नेहधरि ध्रमसीनमें॥ ॥ २६॥ इति श्रीमरुपर्वत कर्मजूम्यादि विचार गर्मितं विंशति विहरमा ण जिनानां वृधिस्तवनं ॥ ॥१ जंबुनीप, २ धातकी खंग, आधो पुष्करीप, एवं २ ॥ श्रीपमें ५ नरत ५ ऐवत, ५ महाविदेह, १५ कर्मचूमीमें बिचरता सास्वता २० बिहरमानको मेरा नमस्कार हुवो ॥॥ ॥ ॥
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सास्वता प्रसास्वता जिन बिंब संख्या स्तवन. २८१ ॥ अथ सकल शास्वताचैत्य नमस्कार स्तवन ||
॥॥(ढाल वेकर जोगीताम एचाल)॥रिषनानन बधमांन। चंद्रानन जिन । वारिषेण नामें जिणाए ॥१॥ तेह तणा प्रासाद । त्रिनुवन सासता प्रणमुंबिंब सोहामणाए ॥२॥ चेईहर सगकोमि । लाख बहुत्तर । चे ईय प्रतिमा सो असीए ॥३॥ तेरेसै निव्यासी कोमि । साठ लाख सुंद र। नुवनपती मांहि मन वसीए ॥४॥ बार देव लोक प्रासाद । चौरासी लाख । सहस निन्नूनें सातसैए ॥५॥ (ढाल २ आव्यो तिहां नरहर एचाल) ॥ * ॥ हिवे नव ग्रीवेक पंचानुत्तर सार । चेईहर त्रणसय त्रेवीसा सुविचार प्रत्येकै प्रतिमा वीसासो तिहां जांण । अमत्रीस सहस सत साठ अबै गु ण खांण ॥६॥ नंदीसर वांवन कुंमल रुचिक वखांण । चक २ चेई हर साठ सबे त्रिहुं गंण । इकसो चौवीसे गुण प्रतिमा चिहुंनांम । चारसै चालीसा सात सहस प्रणमाम ॥७॥ नंदीसर विदिसै सोलस कुलगिरि तीस। मेरूवन अस्सी दस कुरु गजदंते वीस । मानुषोत्तर परबत च्यार २ इखुकार । असो अति सुंदर वदस्कार मकार ॥ ८॥ (ढाल ३)॥ दिग्गज गिरचालीस । असीद्रह सुजगीस । कंचन गिर वरुए। एक सहस धरुए ॥९॥ वृत्त दीरघ वैताद्य । वीस सतरसो पाढ्य । सत्तर महानदीए। पं च चूला सदीए ॥ १०॥जंबू प्रमुख दसरुक्ख । इग्यारसै सत्तर सुक्ख । कुं मत्रणसय असीए । वीस जमग वसी ए॥११॥ ( ढाल ४)॥त्रिण सहस सो एक निवांणुंरे। जिनवर प्रासाद वखांणुं । वीस सो ए अंक गुणीयै रे । ती र्थकर प्रतिमा थुणीयै ॥१२॥ त्रिण लाख सहस वलि व्यासीरे । प्रतिमा आठ सोने असी। सरवालै सब मेली जैरे। जिनवर प्रासाद नमीजै ॥१३॥ आठ कोमि सत्तावन लक्खारे। दोयसै निव्यासी कयरुक्खा । हिव प्रतिमा ग्यांन कहीजैरे। जिनवरनी आंण वहीजै ॥ १४ ॥ पनरैसै वैतालीस को मीरे । अमवन लख अधिके जोगी। उत्तीस सहस अधिक कहीयैरे । प्रति मा सगली सरदहीयै ॥ १५ ॥ (ढाल ५ मी)॥जोइस वितर प्रतिमा सा सती। असंख्यात वलि जेहोजी। पाय कमल तेहना नित प्रणमीयै । सो वन वरण सुदेहोजी ॥१॥ विनय करी जिन प्रतिमा वंदीय । सुंदर सकल
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रनसागर. सरूपोजी। पूजै प्रतिमा चोविह देवता । वलिय विद्याधर नूपोजी ॥२॥ वि०॥ जिन प्रतिमा वोली जिन सारखी। हित सुख मोह नी दानोजी। न वियणनें जवसायर तारखा । प्रवहण जेम प्रधानोजी ॥३॥ वि० ॥ जीवानि गम प्रमुख मांहि नाषीयो । एसहु अरथ विचारोजी । सनिलितां नण तां सुख संपदा । हियमै हरष अपारोजी॥४॥वि०॥ (कलश)॥ इम सास ता प्रासाद प्रतिमां संथुएया जिनवर तणा । चिहुं नाम जिण चंद तणा त्रिनुवन सकलचंद सुहावणा । वाचना चारज समय सुंदर गुणनणे अजिरा मए । त्रिहुं काल त्रिकरण शुच होय ज्यो सदा मुझ परणांमए । इति शास्वता जिनचैत्य बिंबसंख्या स्तवनं ॥॥ ॥ ॥
॥ * ॥ अथ श्रीधरमनाथ स्तवन लि०॥ॐ॥ ॥ ॥हारे हुँतो जरवागईथी त्रटजमुनाके तीरजो एचाल०॥ हारे झारे धरमजिणं दसु लागी पूरण प्रीतजो। जीवमलो ललचाणो जिनजीनी उलगेंरेलो। हारेमुनें थास्पें कोइक समेंप्रनु सुप्रसन्न जो । वातम्लीतबथास्पे माहरी सबि वगेरेलो॥१॥हारेकोई पुर्जननो नेस्यो माहरो नाथजो। नलव स्ये नहिक्यारे कीधी चाकरीरेलो।हारमोरा स्वामीसरीषो कुणने उनियां माहिं जो। जईयेरे जिम तेहने घर आस्याकरी रेलो॥२॥ हारेजस सेव्यांसेती स्वार थनी नसिघजो। ठगलीरे सीकरवी तेहथीगोठडीरेलो। हारेकांई झुलुखायते मि गइनें माटेंजो। क्याहीरे परमारथनी नहि प्रीतडीरेलो ॥३॥हरिप्रेनु अंतरजां मी जीवनप्राणाधारजो। वायोरे नवि जाण्यो कलियुग वायरो रेलो। हारेमोरा लायक नायक जगति वबल लगवांनजो । वारूरे गुणकेरा साहिब सायरूरे लो ॥ ४ ॥ हारेनु लागी मुमने ताहरी माया जोरजो । अल गारे रह्याथी होइन जोगलोरेलो । हारे कुण जांणें अंतर गतिनी विण महाराजजो । हेजेंरे हसी बोलो मी आंमलोरेलो ॥ ५ ॥ हांरेताहरे मुखने मटकें अटक्यूं माहीं मन्नजो । आंखमली अणीपाली कांमण गारीयुरेलो । हारे माहरा नयणां लंपट जोवे खिण खिण तुमजो। रातीरे मजुरागे नरहे वारीयां रेलो ॥६॥ हारे प्रजु अलगा तोपिण जाणज्यो करीने
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दर्शन धार (तथा) अष्टापद स्तवन. ર૮રૂ हजूरजो। ताहरीरे बलिहारी हुंजावं वारणे रेलो। हारे कवि रूपविबुधनो मो हन करै अरदासजो। गिरूआ थई मन आंणो ऊलट अतिघणोरेलो॥ ७ ॥ इतिश्री धर्म नाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ दर्शन दार स्तवन ॥४॥ ॥॥समकित धारगुजारे पेसतांजी। पापपडल गयादूररे । मोहन मरूदे वीनोलामलोजी।दीगे मीगे आनंदपूररे॥१॥स०॥आयूवरजित सातकर्म नीजी। सागर कोमा कोमीहीणरे । स्थिती पढम करणे करी जीवनेंजी। वीरज अपूरबनो घरलीधरे ॥२॥स०॥जुगलजागी आद कषायनीजी। मिथ्यातमो हनी सांकलसाथरे। बार ज्वामा सम संवेग नांजी। अनुन्नव नवनें वेठो नाथरे ॥३॥स०॥तोरण बांधु जीवदया तणुंजी। साथीयो पूरो सरधारूपरे । धूपव टी प्रजुगुण अनुमोदनाजी। निगुण मंगल आठ अनूपरे ॥ ४ ॥ स०॥सं बरपाणी अंगपखालणेजी। केशर चंदन उत्तम ध्यांनरे।आतम गुण रुची मृग मद मह महेंजी। पंचाचार कुशम परधानरे ॥ ५ ॥ स०॥नाव पूजानें पा वत आतमाजी। पूजो परमेसर पुन्यपवित्ररे । कारणजोगें कारज नीपजेजी खिमा बिजय जिन आगम रीतरे॥६॥स०॥ ॥ ॥ ॥॥ इति श्री आदीश्वरजिन स्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ .
॥अथ श्रीअष्टापद तीर्थ-स्तवन ॥ ॥ ॥ ॥ मनडो अष्टापद मोह्यो माहरोजी । नाम जपु निसदीसजी।च त्तारी अध्ठ दश दोय वंदियाजी। चिहुंदिस जिन चौवीसजी॥१॥म०॥जो जन जोजन अंतरेंजी। पावम साला आठजी । आठ जोजन ऊंचो देहरोजी मुख दोहग जाये नाराजी ॥२॥ म०॥ परतें जराव्या जला देहराजी। सोने प्यारा थंनजी। आप भूरति करे सेवनाजी। जांणे जोईजै कनजी॥३॥म०॥ गौतमस्वामि तिहां चढ्याजी । आंणी नागीरथ गंगजी । गोत्र तीर्थकर वां धियोजी। रावण नाटक रंगजी॥४॥म०॥ देवे नदीधी मुमने पांखमीजी
आई केम हरजी । समय सुंदर कहै वंदनाजी। प्रह ऊगमतें सूरजी ॥५॥ म०॥ इति श्री अष्टापद स्तवनं ॥ * ॥
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रत्नसागर.. . ॥ ॥ अथ श्री अजित जिन स्तवन ॥ॐ॥ ॥ * ॥ (अनंत जिन आपज्योरे)॥एचाल ॥झानादिक गुण संपदारे तुझ अनंत अपार । तेशांजलतां ऊपनीरे । रुचि तिण पारनतार ॥१॥अजि तजिन तारज्योरे। तारज्योदीन दयाल । अजित जि० (प्रांकणी ) जे जे कारणजेहनोरे । सामग्री संयोग । मिलतां कार्य नीपजेरे। कर्ता तनय प्रयोग ॥२॥ अ० ता॥कार्य सिधि कर्ता वसुरे। लहि कारण संजोग । निज पद कारक प्रनु मिल्यारे । होय निमित्त मनोग ॥ ३ ॥ अ० ता. अ० अज कुल गत केसरी लहरे। निज पद सिंघ निहाल । तिम प्रजुनक्तं लवि लहरे। आतिम शक्ति संजाल ॥४॥ (अ० ता.)॥ कारण पद कता परे करि आरोप अनेद । निज पद अर्थी प्रनुथकीरे । करै अनेक नमेद ॥ ५ ॥ (अ० ता० अ०)अहवा परमातम प्रचूरे। परमानंद स्वरूप। स्पामाद सत्तार सीरे। अमल अखंम अनूप ॥६॥ (अ० ता० अ०.) आरोपित सुख भ्रमट ख्योरे।जास्यो अव्याबाध । समस्यो अनि लाखी पणोरोकर्ता साधन साध्य ॥७॥अ० ता० अ० ॥ग्राहकता स्वामित्वतारे । व्यापक प्रोक्ता नाव । का रणता कारज दशारे । सकल ग्रां निज नाव ॥८॥ अ० ता० अ० ॥ श्रधा नासन रमणतारे। दांनादिक परिणाम । सकल थया सत्तारसीरे। जिन वर दरशन पॉमि ॥९॥अ.ता. अ॥ तिणें निर्यामक माहणारे। वैद्य गोष आधार । देवचंद सुख सागरूरे। नाव धरम दातार ॥१०॥ अ० ता० अ०॥ इति श्री अजित जिन स्तवनं ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ अथ सिशायमाला लिख्यते ॥ * ॥ ____॥ ॥ ढंढण रिषजीनें बंदणा ॥ हुंबारी ॥ तकृष्टो अणगाररे ॥ हुँबारी लाल ॥ अनिग्रहलीधो एहवो ॥ हुं० ॥ लेस्यु सुछ आहाररे. ॥ हुं० ॥१॥०॥ नितप्रति कठै गोचरी ॥ हुं० ॥ नमिलै शुष आहाररे ॥ १० ॥ मूल नले अणसूझतो ॥ १० ॥ पंजर कीधो गातरे ॥ हुँ ॥२॥ ढं० ॥ हरिपूलै श्रीनेमिनें ॥ हुं० ॥ मुनिवर सहस अढाररे ॥ हुँबा ॥ उतकृष्टो कुण एहमैं ॥ १० ॥ मुझनें कहो विचाररे ॥ हुँबा० ॥ ढंढ० ॥ ॥३॥ ढंढण अधिको दाखियो । ०॥श्रीमुख नेमि जिणंदरे ॥ १० ॥
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सिशायमाला. कृष्ण माह्यो वांदवा ॥ हुँ०॥धन जादव कुल चंदरे ॥ हुँ० ॥४॥ढं०॥ गलियारें मुनिवर मिल्या ॥ वा ॥ वांद्या कृष्णनरेसरे ॥ हुँ० ॥ किणही मिथ्यात्वी देखनें ॥ हुँ०॥ एयो नावविसेसरे ॥ ९ ॥ ५ ॥ ढं॥ मुफ घरआवो साधुजी ॥१॥ ल्यो मोदक चै सुघरे ॥ ९० ॥ मुनिवर विहरीने पांगुरया॥हुं॥आया प्रनुजीने पासरे ॥ ९॥ ६ ॥॥ मुफलब धै मोदक मिल्या॥हुँ॥ कहोनें तुमे किर पालरे॥०॥लबधिनही बच ताहरी ॥हुं।। श्रीपति लबधि निधानरे॥ हुँ॥७॥ढं०॥ एलेवा जुगतो नहीं ॥ ९ ॥ चाल्या परउवा काजरे ॥ हुँ॥ईंटनिवा, जाइनें ॥ ९॥ चूरै करम समाजरे ॥ ९ ॥ ८ ॥ ढं॥ आणी चढती नावना ॥ १०॥पाम्यो केवल नाणरे ॥ हुं ॥ ढंढणरिषि मुगतें गया॥१॥ कहै जिन हरष सुजाणरे ॥ हुँ० ॥९॥ ढं॥इति ढंढण मुनी सिशाय संपूर्णम् ॥
॥॥अथ धन्नारिषि सिशाय॥॥
॥श्रीजिन वांणी रे धन्ना । अमीय समाणी मोरा नंदन । मन मतो मानीरे नंदन तारें ॥१॥ तुं अतिही बैरागीरे धन्ना । धरमनो रागी मोरा नंदन । माहरो तो मनमोरे किम परचावसुं॥ २ ॥ दस दिसि दीसै रे धन्ना। तो विनसूनी ( मो०)। अनुमति देतारे जीन. बहै नही ॥३॥ वत्तीसे नारीहो धन्ना । अतिही पियारी । (मो )। बाणी तो वोलैरे मधुर सुहामणी ॥४॥वालकतो कामणीरे धन्ना । वय पिण तरुणी । (मो०)।गज गति चालैरे चाल सुहा वणी ॥ ५ ॥ ए घरमंदिर धन्ना । ए सुख सज्या।( मो०) कोमिबत्तीसे धननो तूं धणी ॥६॥ए धन मांणोरे धन्ना । वय पिण जाणो । ( मो०) नोगवि लेज्योरे नोग सुहा मणो॥७॥बत अति दोहिलोरे धन्ना। नहीय सुहेलो (मो०) सुगम नही जैरे साधु कहावणो॥८॥घर घर निदा हो धन्ना । गुरुतणी सिख्या। (मो) कहनी तो रहणीरे नही छै सारषी ॥ ९ ॥ इक बारें सुणीयै हो धन्ना । आगम नणीयै । (मो०)। जिनवर जाणोहो मुक्कर जोग ॥१०॥ बनवासै रहणा हो धन्ना । परीसह सहनो। (मो)। . कोमल केसांरे लोच करावणो ॥११॥ साचो तें नाष्यो हो अम्मा।
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શુક્
रत्नसागर.
न आख्यो ( मोरी अम्मा) डुकर मारग जननी दाखीयो ॥ १२ ॥ सुख अभिलाषी हे अम्मा । न आखी। ( मोरी अम्मा ) | कायरमारग जननी दाखीयो ॥ १३ ॥ एजग स्वारथी हे अम्मा । नही परमारथि । (मोरी अम्मा)
खारे परदास मुरायो ॥ १४ ॥ में इम जाएयो हे अम्मा । बी खायो । ( मोरी अम्मा ) । एधन जोवन श्राऊ थिर नही ॥ १५ ॥ अनुमति दीजै हे अम्मा । ढीलन कीजै । ( मोरी ) । जोखिए जाइसु फिर
वै नही ॥ १६ ॥ अनुमति प्रापी हो अम्मा । जीव सुखपायो ॥ ( मो० ) संजम लीधोरे मनमां गह गह्यो ॥ १७ ॥ बद्ध २ पारणें हे अम्मा । विग य निवारण || ( मो० ) ॥ बीरबख्याएयो सुरनर आगलै ॥ १८ ॥ सुख सं जम पालै हे अम्मा । दूषण टालै ॥ ( मो० ) ॥ अंग इग्यारह अरथ रू काज ॥ १९ ॥ संजम पाल्यो हे अम्मा । नव पख वाम || मो० ॥ मास संथारै हो सरबारथ सिद्धि लह्यो ॥ २० ॥ * ॥ इति श्रीधन्नारुषि सिज्ञाय संपूर्णम् ॥ ॥
॥ * ॥
॥ ॥ अथ कर्म सिशाय लिख्यते ॥
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॥ देव दानव तीर्थकर गणधर । हरिहर नरंवर सबला । कर्म प्र माणें सुख दुख पाम्यां । सबल हुवा महा निबलारे प्राणी । कर्म्म समो नही कोई ॥ १ ॥ यादी सरजीनें कर्म्म प्रटारया । बरस दिवस रह्या भूखा । बीरनें वारे बरस दुख दीधा । उपना ब्राह्मणी कूखै रे ॥ प्रा०॥२ क० ॥ साठ सहस सुत मारया एकदिन । जोध जुवान नर जैसा । सगर हवो महापुत्रनो दुखियो । कर्म्म तथा फल भैसारे ॥ प्रा० ॥ ३ क० ॥ बत्तीस सहस देसांरो साहिब । चक्री सनत कुमार । सोले रोग शरीर में नपना । कर्म कीयो तनु बाररे ॥ प्रा० ॥ ४ क० ॥ कर्म्म हवाल कीया हरीचंदनें बेची सुतारा राणी । बार बरस जगमाथै आयो । नीच तर्फे घर पाणी रे प्रा० ॥ ५० ॥ दधिवाहन राजानी बेटी । चावी चंदनबाला। चौपदज्युं चौहटा में बेची । कर्म्म तथा ए चालारे ॥ प्रा० ॥ ६ क० ॥ संजूम नामें आ ठमो चक्री । कर्मे सायर नाख्यो । सोलै सहस जह ऊना देखें । पिण किणही नविराख्योरे ॥ प्रा० ॥ ७० ॥ नह्मदत्त नामें बारमो चक्री । क
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॥ * ॥
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सिझायमाला.
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मैं कीधो धो । इमजाणी प्राणी थेकांई । कर्म कोई मति बांधोरे ॥ प्रा० ॥ ८० ॥ उप्पन कोम यादवनो साहिब । कृष्ण महाबल जाणी । अटवी मांहि मूंवो एक लमो । बिल २ करतो पाणीरे ॥ प्रा० ॥ ९क० ॥ पांव पांच महा झुजारा । हारी द्रोपदा नारी । बारै बरस जग बन रम बनिया । नमिया जेम नीख्यारीरे ॥ प्रा० ॥ १० क० ॥ बीस जुजा दस मस्तक हुँता । लखमण रावण मारयो । एक लकै जग सहु नर जीत्यो ते पिण कर्म्मसुं हारयोरे ॥ प्रा० ॥ ११ क० ॥ लखमण राम महा बल वंता । अरु सतवंती शीता । कर्म प्रमाणे सुख दुःख पाम्या | बीतक बहु तसबीतारे ॥ प्रा० ॥ १२ क० ॥ समकितधारी श्रेणिक राजा । बेटे बांध्यो मुसकै । धरमी नरनें करम धकायो । करम जोरन किसकारे ॥ प्रा० ॥ १३ क० ॥ सतीय सिरोमणी द्रौपदी कहीयै । जिन सम अवरन कोई । पांच पुरुषनी हुइ ते नारी । पूरब कर्म्म कमाईरे ॥ प्रा० ॥ १४ क० ॥
मानगरी नो जे स्वामी । साचो राजा चंद | मांई कीधो पंखी कूक हो । कर्म नाख्यो ते फंदरे ॥ प्रा० ॥ १५ क० ॥ ईशरदेव पारबती नारी करता पुरुष कहावै । हिनिस महिल मसाण में बासो । निख्या जोजन खावेरे ॥ प्रा० ॥ १६ क० ॥ सहस किरण सूरज परितापी । रातदिवस रहै
तो । सोलकला ससिधर जगचावो । दिन २ जायें घटतोरे ॥ प्रा० ॥ १७ क० ॥ इम अनेक खंड्या नर करमें | जांज्या ते पिण साजा । कवि हरष करजोगीनें वीनवै । नमो २ करम महाराजारे ॥ प्रा० १८ ० ॥ इति श्री कर्म्मसिज्ञाय संपूर्णम् ॥
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॥ * ॥ अथ शीता सिज्ञाय लि० ॥ ॥
॥ * ॥ जल जलती मिलती घणी रे । कालो काल अपाररे । सुजाण शीता । जाएँ केसू फूलियारे लाल । राता खैर अङ्गाररे ॥ सु० ॥ १ ॥ धी ज करै शीतासतीरे लाल । सील तणें परिमाणरे ॥ सु० ॥ लखमण राम खुशीथयारे लाल । निरखे राणो रारे ॥ सु० ॥ २ ॥ स्नान करी निरमल जलेंरे लाल । पावक पासें आयरे ॥ सु० ॥ ऊनी जाऐं सुरङ्गनारे लाल । अनुपम रूप दिखायरे ॥ सु० ॥ ३ ॥ नर नारी मिलीया घणारे लाल । ऊ
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रत्नसागर. जा करै हाय हायरे॥सु०॥जस्म हुसी इण आगोरे लाल । राम कर अन्यायरे ॥ सु०॥४॥राघव बिन बांग्यो हुवैरे लाल । सुपनेंही मन कोयरे॥सु०॥ तोमुफ अगनि प्रजालज्योरे लाल । नहीं तो पाणी होयरे सु०॥५॥इम कहि पैठी आगमेरे लाल । तुरत अगनि थयो नीररे॥सु०॥ जाणे द्रह जलसुं नरयोरे लाल । फीलै धरम सुधीररे ॥ सु० ॥ ६ ॥ देव कुशम बरषा करैरे लाल । एह सती सिरदाररे॥ सु० ॥ शीता धीजै ऊतरी रेलाल । साख नरैसंसाररे॥सु०॥७॥रलियायत सहुको थयारे लाल। सगलै थया नगरंगरे ॥ सु० ॥ लखमण राम खुसी थयारे लाल। शीता शील सुरंगरे॥सु०॥८॥ जगमांहें जस जेहनोरे लाल । अविचल शील कहायरे॥सु०॥ कहै जिन हरष सती तणारे लाल । नित प्रणमी जै पा यरे ॥ सु०॥९॥इति शीतासती सिशाय समाप्तम् ॥8॥ ॥ॐ॥
॥ॐ॥ अथ अनाथी कृषि सिशाय लि० ॥ॐ॥ __॥श्रेणिक रय वामी चढ्यो । पेखियो मुनी एकंत । बर रूप कां तै मोहियो । राय पूरे कहै रे बिरतंत ॥ १॥ श्रेणिकराय हुरे अनाथीनि ग्रंथ । तिणमें लीधोरे साधूजीनो पंथ ॥ (श्रे०)॥ इण कोसंबी नगरी वसें । मुमपिता परघल धन्न । परवार पूरै परवरयो । हुं तेहनोरे पुत्र रतन ॥श्रे०॥२॥इक दिवस मुफ वेदना। ऊपनी ते न खमाय । मात पिता सहु झूरी रह्या । तोही पिणरे समाधि न थाय ॥ श्रे० ॥३॥ गोरमी गुणमन नरमी । नरमी अबला नार । कोरमी पीमामें सही । नही कीधीरे मोरमी सार॥श्रे०॥४॥बहु राज बैद्य बुलाया। कीधला कोमिन पाय । बावना चंदन लेपिया। पिण तोहीरे दाह नविजाय ॥श्रे० ॥५॥ बेदना जो मुफ उपसमें । तो ले, संजम नार । इम चिंतवतां वेदन गई बत लीधोरे हरष अपार ॥श्रे०॥६॥ जग मांहि को केहनो नही । तेन णी हुँरे अनाथ । बीत रागनो धरम बाहरो। कोइ नहीरे मुगतिनो साथ श्रे॥७॥ करजोमी राजा गुणस्तवै । धन धनतूं अनगार । श्रेणिक सम कित तिहां लहै । बांदी पुंहचैरे नगरमकार ॥ श्रे०॥८॥ मुनिवर अनाथी
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सिशायमाला.
२८९ गावतां । कर्मनी तूटै कोमि । गणि समय सुंदर तेहना । पाय बांदै रेबे करजोमि ॥श्रे०॥९॥ इति अनाथी मुनी सिज्जाय समाप्तम् ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ प्रतिक्रमण सिशाय लि०॥ ॥ ॥ ॥ करि पमिक्कमणो नावसुं । दोयघमी सुन्न काण ॥ लालरे ॥ परनवजातां जीवनें। संबल साचो जाण ॥ लालरे ॥१॥ ( करि पमिक्कम णो नाव सुं०)॥श्रीमुख बीरसमुच्चरे । श्रेणिकराय प्रतिबोध ॥ ला० ॥ लाखखंगी सोना तणी। दीयै दिन प्रतिदान ॥ ला॥२ (करि०)॥ लाख बरस लग तेहने । इम दीय द्रव्य अपार ॥ ला० ॥ इक सामायकनी तु ला। नावै तेह लगार ॥ला० ॥ ३ ( करि० ) सामायक परसादथी। लहीये अमरबिमान ॥ ला॥धरमसीह मुनिवर कहै। मुगति तणो ए नि दान॥ ला॥ ४ (करि)॥ ६ ॥ इति प्रतिक्रमण सिज्ञाय संपूर्णम्॥ ॥
॥॥अथ सप्तव्यसन सिज्ञाय लि० ॥ * ॥ ॥ॐ॥ सात बिसननारे संग मतां करो। मुण तेहनों सुबिचार ॥ बिवे की॥ सात नरक नारे नाई सातेई । आपै उक्ख अपार ॥ बिबेकी । १ सा॥ प्रथम जुवानेंरे बिसनपड्यां थकां। पांमव पांच प्रसिघ ॥ विवेकी ॥ नलराजा पिण इण बिसनें पड्यो । खोइ सहू राज रिच ॥ बि० २ सा०॥ दूसरे मांस प्रवण अवगुण घणां । कर परजीव संहार ॥ बि० ॥ महा स तकनी नारी खेती। नरक गई निरधार ॥ बि०३ सा० ॥ तीजै मदरा पा न बिसनतजी। चितधरी बली चाह ॥ बि० ॥ दीपायणरिष हव्यो जाद वें। प्रारकानो थयो दाह ॥ बि० ४ सा०॥ चोथै बिसनें वेश्याघर बसै। लोकमें न रहै लाज ॥ बि० ॥ कयवन्नादिकनो गयो कायदो । कुबिसनें रे काज ॥ बि० ५ सा० ॥ पाप आहे कुविसन साचवै । प्राणी हणीयें प्रहार ॥ बि० ॥ मारी मृगली श्रेणिक नृप गयो । पहिली नरक मझार ॥ बि० ॥ ६ सा०॥ चोरीने बिसने करी । जीव लहै उक्खजोर ॥ बि० ॥ मुंज देवराजाय मारीयो। चावो हुंमक चोर ॥ बि०७ सा० ॥ परस्त्रीय सं गत कुबिसनसातमें। हाणि कुजस बहु होय ॥ बि० ॥ राणो रावण शीता अपहरी। नास लंकानोरे जोय ॥ बि० ८ सा०॥इम जाणी प्रव्य तुमे आ
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रत्नसागर. दरो। सीख सुगुरुनीरे सार । बि० ॥ इण नव परनव आणंद अति घणा । कहै ध्रमसी सुखकार ॥ बि० ९ सा० ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ उपदेस सिशाय लि॥॥ ॥ ॥ दमका नांहि नरोसा साहै। करले चलनेका सामान ॥ १ ॥ तन पिंजरसें निकश जाएगा। जिनमें पंजी प्राण ॥द०१॥ लख चौरासी जोजन लटक्यो । उपनों गरना धान । सवानवमास बश्यो अंधकूपमें। मनु ष्यरूप सनमान ॥ द०२॥ नत्तम कुल में जनम लियो है। सुखमें खाण अ रुपाण। नीरपमयां तेरै कोइयन साथी। साथी दान अरु ध्यान ॥ द० ॥ ॥३॥आशा त्रिशनां बिकथा निद्रा । कुमता रूप निधान । दिन २ बधै पापकी संगत । ब्यापैं क्रोध अरुमान ॥ द०॥४॥ चलते फिरते सोवत जागत। करत खाण अरुपाण । उिन २ आयु घटतहैं तेरो। होत देहकी हाण ॥ द०॥५॥ माल मुलक अरु सुखसंपत में । होय रह्या गलता न । देखत२ विनस जायगा । मतकर मान गुमान ॥द०६ ॥ जूठा सब यह जगत पसारा । नारी विषकी खान । माया ममता आदिके बैरी । इनसे कहा पहचान ॥ द० ७ ॥ पांचू चोर मुंसें घर तेरो । इन की खोटी बाणि । अठबैरी तेरे संग फिर तुहै। मोह बमा सुलतान ॥ द० ॥ ॥८॥ कोइ रहणे पावे नही जगमें । यह तु निहाचै जानि । अजहुं गं मि समकि कुटलाई । मूरख तर अज्ञान ॥ द०॥९॥ नाई बंध अरु स जन संबंधी। राखै तेरा मान । अंतसमें कोई कामन आवै। किसपै मान गुमान ॥ द० ॥१०॥ जप तप शील पालो मुन्न संगत । देह सुपात्रे दान । सेंहित साध चरण चितल्यावो । प्रनु लज तज अनिमान ॥ द०॥
॥११॥ इति उपदेश सिज्जाय संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ - ॥ ॥ जंजं बिहिणा लिहिअं । तंतं परिणमइ सयल लोयस्स । इह जा णे विणधीरा । बिहुरेवि नकायरा हुंती॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥अथ बाहूबलजीनी सिशाय लि०॥॥ .
॥ॐ॥ईमर प्रांबा आंबलीरे । एचाल ॥ * ॥ बाहूबल चारित ली · योरे। साचो धरिबैराग। जरतेसर इम बीनवैरे। बार २ पाय लाग । हरष
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सिझायमाला.
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नर मुसुं बोलज्यो रे ( थानें बाबाजीरी प्राण | थानें रुषत्र देव जीरी आण । तो मकरो खेंचा ताण । थेतो माहरै जीवन प्राण ) । हरष० । बो०] । (कमी ) ॥ १ ॥ हुंतो नाई ताहरो रे । जेमैं कीधो दोस । तो पि खमज्यो जाई मारे । गरुवा नकरै रोस || ह० ॥ २ ॥ आवो बां हदेई मिलां रे । जोवो यांख नवाम । बोलो मीठा बोलमारे। पूरो मननो लाम ॥ ६० ॥ ३ ॥ खीलो नाखुं तोमनें रे । जिए कुल जाई बेढ । नायो आयुध सालमेंरे । ज्युं बांजण वर ढेढ ॥ ६० ॥ ४ ॥ जानीना नतंनमारे। किमलायै कान | जातां पांव बहे नहीं रे । तुमनें मुंकी रान || ह० ॥ ॥ ५ ॥ तूं जीत्यो हूं हारीयोरे । देव नरै बैसाख । तुम सरिखो जगको नही रे । मुऊ सरिषा ै लाख || ह० ॥ ६ ॥ माथै सूरज प्रावीयोरे । प सीनो सारो गात । बैसो जोजन जीमियै रे । खारक दाख निवात ॥ ह० ॥ ॥ ७ ॥ निन्नांणूं एक मतें रे । मुऊनें जोनी जाण । ते सहु मुऊनें परि हरयो रे ज्युं बरसा बाण | ह० ॥ ८ ॥ तुंमाहरे जीवन आतमारे। तुंहीज माहरै बांह । दिस सूनी नाई बिनारे । प्रावोनें घरजांह || ह० ॥ ९ ॥ बोल घणाई बोलियारे । नरतेसर महाराज । हाथीना दांत जे नीकल्यारे । ते पाबान वीजाय ॥ ० ॥ १० ॥ अभिमानी सिर सेहरो रे । बाहूबल रिषिराय सीधा करम खपाय रे । विमल कीरति गुणगाय ॥ ० ॥ ११ ॥ ॥ ॥ इति बाहूबल सिज्जाय संपूरणम् ॥ ॥ 11 11
॥ ॥ अथ चेलणा महासती सिज्ञाय लि० ॥
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॥
॥ * ॥ वीरवांदी वजतां थकांजी । चेलणा दोगेरे निग्रंथ । राति वन मांहि कासग रह्यो जी । साधतो मुगतिनो पंथ ॥ १ ॥ वीर वखाणी राणी चेला जी । सतीय सीरोमणि जाण । चेडा राजानी साते सुता: जी । श्रेणिक शीयल परमाण ॥ २ ॥ वी० ॥ शीत ठंठार सबलो प जी । चेलणा प्रीतम साथ । चारितीयो चित्तमें वस्यो जी । सोवडि वाहिर रह्यो हाथ ॥ ३ ॥ वी० ॥ ऊवक जागी कहैं चेला जी । किम करतो हुस्यै तेह | कुसती मन माहिं ए कुणवस्यो जी । श्रेणिक पमयोरे संदेह ॥ ४ ॥ वी० ॥ अंतेर परो जालज्यो जी । श्रेणिक दीयोरे प्रदेस । नग
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स्त्नसागर
वंत सांसो जियो जी । चम कियो चित्तनरेस ॥५ ॥ वी० ॥ वीरवादी वल तां थकां जी । पैसतां नगर मकार । धुंवानो धोर देखी करीजी। जा जा हरे अजय कुमार ॥ ६ ॥ वी० ॥ तानो वचन पाली करी जी । बतलि यो अजय कुमार । समय सुंदर कहै चेलणा जी । पामिया जवतणो पार ॥ ७ ॥ वी० ॥ इति चेलणा महासती सिझाय संपूर्णम् ॥
॥ * ॥ अथ बाहूबलजी सिशाय लि० ॥ ॥
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॥ * ॥ राजतणा प्रति जोनीया । जरत बाहूबल जैरे । मूठि नपा मी मारिवा । बाहूबल प्रतिबृज़ैरे ॥ १ ॥ बीरा झांरा गजथकी कतरो । बा 'झी सुंदरी जासैरे । षन जिणेसर मोकली । बाहूबलनें पासै रे ॥ १ ॥ बी० ( गजचढ्यां केवल न होई रे ) ॥ २ ॥ बी० ॥ जोचकरी चारितलीयो । व लियो अभिमानोरे । लघु बंधव वांडुं नही । कानसग्ग रह्यो सुन ध्या नोरे ॥ ३ ॥ बी० ॥ बरस दिवस कानसग रह्यो । बेलमियां वींटाणोरे । पंखी माला मांगीया । सीत ताप सूकाणोरे ॥ ४ ॥ बी० ॥ साधवी बचन सुया इसा । चमक्यो चित्तमकारोरे । हय गय रथमें परिहरथा । पिण न विमुक्यो अहंकारोरे ॥ ५ ॥ बी० ॥ वैरागे मन वालीयो । मूंक्यो निज
मनोरे । पांव उपामी वांदिवा । ऊपनों केवल नाणोरे ॥ ६ ॥ बी० ॥ पहुतो केवल परषदा । बाहूबल रिषि रायारे । अजर अमर पढ़वी लहै । समय सुंदर वंदे पायारे ॥ ७ ॥ बी० ॥ इति बाहूबल सिझाय संपूर्णम् ॥ ॥
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*॥
॥ ॐ ॥
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॥ ॥ अथ अरणकमुनी सिज्ञाय लि० ॥ ॥ * ॥ रणक मुनिवर चाल्यागोचरी । तमकै दाजै सीसोजी । पाय उ जरांणारे बेलूपर जलै । तन सुकमाल मुनीसो जी ॥ १० ॥ मुख कमला णोरे मालतीफूलज्युं । ऊनो गोखने हेठोजी । खरे दुपहुरे रे दीठो एकलो । मोही माननी मीगेजी ॥ २ ॥ ० ॥ वयण रंगीलैरे नयणे वेधियो । रिषथं भ्यो तिवारी जी । दासीनें कहे जाय नंतावली । नरिष तेडी प्राणो जी ॥ ३ ॥ ० ॥ पावन कीजै रिषिवर प्रांगणो । वहिरो मोदक सारो जी । नव जोवन रस काया कांइदहो । सफल करो अवतारो जी ॥ ४ ॥ प्र० ॥ चंद्रा
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सचित्त चित्त सिझाय.
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वदनी रे चारित चूकव्यो । सुखविलसे दिन रातोजी । इकदिन गोखैरे रमतो सोगटै । तब दीवी निज मातो जी ॥ ५० ॥ अरणक प्ररणक करती मायफिरे । गलिये गलिये मजारो जी । कहि कि दीठो रे माहरो अर जो । पूबै लोक हजारो जी ॥ ६ ० ॥ नतर तिहां थीरे जननी पाय न म्यो । मनमें लाज्यो तिवारोजी । धि धिग् पापीरे माहरा जीवनें । एहमें
कारज कीधो जी ॥ ७० ॥ गन घुखंतीरे सीला ऊपरै । प्ररणक अणसण कीधो जी । समय सुंदर कहै धनते मुनिवरू । मनबंबित फल सी धोजी ॥ ८० ॥ इति रणक मुनि सिझाय संपूर्णम् ॥ ॥ * ॥ अथ सचित्त चित्त सिशाय ॥
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॥ ॥ ( ढालचौपईनी ) ॥ प्रवचन अमरी समरी सदा । गुरुपद पंकज प्रणमीमुदा । वस्तु तणा कहुँ काल प्रमांण । सचित्त चित्त विधि है जिम मां ॥ १ ॥ बिहुँ रुतु मिली चौमासा मांन । षटस्तु मिलीनें वरिस प्रमां
। वर्षा शीत नृष्ण त्रिकाल । त्रिहुं चौमासें वरस रसाल ॥ २ ॥ श्रवण जाद्रव आसू मास । काती इम वरसाला वास । मागसिर पोस माहनें फा ग। ए च्यारे सीयाला लाग ॥ ३ ॥ चैत्र बैशाखनें ज्येष्ट प्रसाद । नृष्णकाल एच्यार गाढ । वर्षा शरद शशिर हेमंत । वशंत ग्रीष्म षट्कतु इम तं ॥ ४ ॥ रायुं विदल रहे चनुयाम | नंदन आठपुहुर अभिराम । प्रहरसोल दधि कां जी बाब । पढे रहैतो जीवनिवास ॥ ५ ॥ पापड लोइया वटक प्रमांण । च्यारपहुर तिम पोलीमांन । पनर दिवस वर्षापकवान । त्रीसदिवस सीयाला मां ॥ ६ ॥ वीस दिवस उन्हालै रहै । पबै प्र थायै जिनकहै । मात्र प्रमुख नीवी पकवांन । चलितरमै तसकाल प्रमाण ॥ ७ ॥ धांन धोयण बवमी पर माण । दोयघकी जवांणी जांण । फल धोयण एक प्रहर प्रमाण । त्रिफला जल वमनुं मांन ॥ ८ ॥ त्रिणवारे ककलिनं जेह । सुधनुष्णजल कहियै तेह | प्रहर तीन चन पंच प्रमाण । वर्षा शीत उन्हालै जांण ॥ ९ ॥ श्रा बण माद्रवमै दिनपंच | मिश्रलोट प्रणचालित संच । मिगसर पोसे त्रिण दिन जांण । श्रासू काती चनदिन मांन ॥ १० ॥ माह फागु को प याम | चैत्र वैशाष च प्रहर प्रमाण । जेठ आसाढ प्रहर त्रिण जोय । ति
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रत्नसागर. ण नपरांत सच्चित्त ते होय ॥ ११ ॥ गोहूं शालि पमधान कपास । जव त्रि णवरसैं अचित्त होय खास । विदल सर्व तिल तूंवरदाल । पांच वरसै होइ अचित्त विशाल ॥ १२ ॥ अलसी कोद्रव कांगने ज्वार । सातेवरसें अचि त्त विचार । शीत ताप वर्षादिक जोय । सचित्त जोनि अचित्त तेहोय ॥ १३ ॥ हरमै पीपर मिरच विदाम । खारक द्राख एला अनिराम । जोय ण शत जल वटमां वहै । साठिजोयण थलमांहै रहै ॥ १४ ॥ सचित्तवस्तु प्रवहणनी जेह । थाइं अचित्त प्रवचन कहै एह । धूम अगनि परीयापणे करी । अचित्तयोनि तसथायै खरी ॥ १५ ॥ बारपहुर रहै जगलीराव । सोलपहुर राईता अजाब । कमाह विगय परिसेक्यो धांन । पहिरचोवीस गोमूत्रनुमान ॥१६॥ अति खारं घृत कालातील । पलटाई वर्णादिक रील। काचो दूधरहै बहुबार । एह अन्नद कहै मुनिसार ॥ १७ ॥ हुँढणीयादिक विदलनीदाल । सेक्या धांनपरें तसकाल । च्यारपहुर सीरो लापसी । विदलपरै ते प्रवचन वसी ॥ १८ ॥ प्रथम दिवस प्रारंभी गिण्यो । काल प्रमाण सवि केहर्नु नण्यो । चलित रस जेहनो जिहांथाय । तिहां ते वस्तु अन्नद कहिवाय ॥ १९ ॥ धवलो सैंधव कह्यो अचित्त । श्राप विधैं अख्यरां प्रतीत । एकालादिक नेहरा जेथाय । तेह अचित्त थापना न थाय ॥ २० ॥ गीतारथनें वयण जोय । आचीरण अनाचीरण होय । आई धांन अंकुर नीक लै । तबते वस्तु अन्नदमा निलै ॥ २१ ॥ गेरू मणसिल लवण हरियाल । आवै जलवट मांहि रसाल । तेह अचित्त होइ प्रवचन साखि । पिण ले बानी नही तमुन्नाखि ॥२२॥ इम बोल्यो लवलेश विचार । विस्तर प्रवचन सारोधार । धीरविमल पंमित सुपसाय । कवि नय विमल कहै सिशाय॥२३॥ इति सचित्त अचित्त वस्तु स्वरूप सिशाय ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥अथ १९ दोश कासग्ग सिशाय लि०॥॥
॥ॐ ॥ सकल देव समरी अरिहंत । प्रणमी सदगुरु गुणे महंत । नगणी सदोष कानसग्ग तणा । बोलु श्रुतअनुसारै सुण्या ॥ १ ॥ घोटक दोष कह्यो बलिएह । वांको पगराखै बलिजेह । लत्तादोष बीजो हवैसुणो । मील हला वै जे अति घणो ॥ २ ॥jठीगण लैई जेरहै । थंनदोष ते तीजो कहै । मा
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नणं । अंगुली हला । नांपण चा
पनरमो धरै। पाहा जिनराज ॥
___१९ कावसग्ग दोष ( तथा ) आलोयण सिझाय. २९५ सदोष चौथो कयो एह । मस्तक अमकावी रहेजेह ॥ ३ ॥ पग अंगूठग मे लीरहै । नघिदोषते पंचमकहै । बेळं पग नेलाकरे जेह । ननल दोष हो कह्यो एह ॥ ४ ॥ गुह्यगमि राखै निजहाथि । शवरी दोष कह्यो जगनाथ । मुख चालना करै अति घणी । खलित दोष अहम तेसुणी॥५॥धूंघट ता पीने जेरहै । बहुदोष ते नवमो लहै । लम थडतूं पहिरै पहिराणुं । दशमें दोष लंबोत्तर नj॥६॥ हृदय स्थल आबादितरहै । ते थण दोष इग्यारमो लहै । वस्खासुं ढाक्यो सविदेह । संयति दोष बारसमो एह ॥ ७॥नांपण चा लोकरै अति घणं । नमुहदोष तेरसमो नपुं । अंगुली हलावै संख्याकाज। चवदमो दोष कह्यो जिनराज ॥ ८ ॥नेत्र तणा चालाजे करै । वायस दोष पनरमो धरै । पहिरयावस्त्र संकोमी रहै । कपित्थदोष सोलसमो लहै ॥९॥ मस्तक धूणावै अतिघणुं । ते सिरकंप सतरमो नएं । महिरानी परि जे वडव मैं। वारुणी दोष अगरमो चमै ॥१०॥ मूकदोष कह्यो नगणी समो। तेह करी कानसग मतगमो। त्रिणदोष एमाहिला टले । सोल दोष साधवीने मिले ॥११॥ लंबुत्तर १ थणने २ संयती ३। दोष एह बोल्या जगपती। बहूदोष चौ थौ जबमिले । च्यार दोष श्राविकानें टले ॥१२॥ कानसगथी समता मुख थाय । कठिन कर्मनी कोमि पुलाय । कानसग करतां सवि सुख होइ। कानस ग सम तप नकह्यो कोय ॥१३॥ दोष रहित कानसग कीजीयै । जिम स हिजै शिवफल लीजीयै । पंमित धीर विमलनो सीस । कवि नय विमल कहै निशिदीश ॥१४॥ इति कानसग्गना १९ दोष सिशाय संपूर्ण ॥॥॥
॥ ॥अथ आलोयण स्वरूप सिशाय लि०॥8॥
*॥(ढाल सफल संसार एचाल)॥एधन सासन वीरजिनवर तणो। जा स परसाद नपगार थायै घणो। सूत्र सिघांत गुरु मुख थकी सांजली। लहीय सम कित अनें विरति लहीय बली ॥१॥ धर्मनो ध्यान धर तप जप खप करै । जिण थकी जीव संसार सागर तिरै । दोष लागा जिके गुरु मुख आलो इयै । जीव निर्मल हुवै वस्त्र जिम धोश्यै ॥२॥ दोष लागैतिके च्यार प्र कारना। धुरथकी नामनें अरथ ते धारणा । किणही कारण वसै पापजे की जीयै । प्रथम ते नांम संकप्प कहीजीय ॥३॥ कीजीये जेह कंदर्प प्रमुषे
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रत्नसागर. करी । दोष ते बीय परमादसंझा धरी । कूदतां गर्वतां होय हिंसा जिहां। दर्पण नामकरी दोष तीजो तिहां॥४॥विणसतां जीव जीवनेगि नरकरे जिको । चौथो आकुट्टियादोष ऊपजै तिको । अनुक्रमें च्यारए अधिक इक एकथी। दोष धर प्रायश्चित्त लेह विवेकथी॥५॥ (ढाल २) अन्यदिवस कोई मागधायो पुरंदरपास ए चाल ॥॥पाटी पोथी कवली नवकरवाली जोय । ग्याननानपगरण तणी आशातन कीधी होय । जघन्यथी पुरमट्ट एकासणो आंबिल नपवास । अनुक्रम एह आलोयण सुगुरु वताईतास ॥६॥ एजो खंमित थायै अथवा किहां गमाय । तोवलिनवा करायां दो ष सहु मिटजाय । थापना अणपमिलेह्यां पुरमट्ठनो तपधार । गिरतां एकास णाने गमतां चौथ विचार ॥७॥ दर्शनना अतीचार तिहां पुरमट्ठजघन्य । एकासण आंबिल अहम चिहुंनेदे मन्न । आशातन गुरु देवनी साहमीटुं अप्रीति । जघन्य एकासपनी आलोयण चढती रीत ॥ ८॥ अनंतकाय
आरंन विनास्यां चौथ प्रसिघ । बि ति चनरिंद्री वसायां एकासपथी वृक्ष । बहु बि ति चौरिंद्रिय हण्यां बि ति चन नपवास । संकल्पादि चिहुंविधि उगुणा गुण प्रकाश ॥ ९॥ नदेही कुलिया वमा कीडी नगरा जंग। व हुत जलोयां मूंक्या दसउपवास प्रसंग । वमन विरेचन कृमिपातन प्रांबि ल इक एक । जीवांणी ढोलंतां दोश्पवास बिबेक ॥ १० ॥ संकप्पादिक एक पंचेंद्री उपद्रव होइ । दोश् त्रिण आठ दसे नपवासै आलोयण जोइ । बहुपंछंद्री उपद्रव छ अहमें दश वीश । चिहुं प्रकार चढती आलोयण सुणलेसीस ॥ ११ ॥ पंचेंद्रीनें लकमी प्रमुखें कीध प्रहार । एकासण आंबि ल नपवासने उह विचार । साध समहें लोकसमहें राजसमन । कूमा आ लदीयां पुश्चौथरु प्रतच ॥१२॥ नपवास दश दंमायां तेम मरायां वीस । इकलख असीसहस नवकार गुणो तजिरीस । पख चौमाश वरस लग इक त्रिण दश उपवास । अधिको क्रोधकरै तो आलोयण नहिं तास ॥१३॥ खूभावमना दोषकीयां गुरु ऊपर रोस । जीवविराधन कीधा बहु असतीना पोस । करीय मुवालस बारहजार गुणो नवकार । मिडा दुका देई आलोवो वारोबार ॥ १४॥ (ढाल ३) बेकर जोगीतांम् ॥ एवाल ॥ विणकी
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आलोयण ( तथा ) कषायसिशाय. धां पञ्चखांण । विणदीधा बांदणा । पमिक्कमणा विध पांतरैए । अणोमानें अ सिशाय । तिहां अविधै जण्यां । इक २ आंबिल आचरैए ॥१५॥ गंठ सीने एकत्र । निवी आंबिल । नांगै आलोयण इमेंए । एक पांच षट् आठ। नवकरवालीय । गुण नवकार अनुक्रमेंए ॥१६॥ उपवासनंग नपवास ।
आंबिल कपरां । अधिकोदंम वखांणीयैए । पांचम आठम आदि । जंगकी या बली। फिरग्रही पातिक हाणीयैए ॥१७॥ ऊखल मुशल आग । चूलो घरटीयै। दीधै अहम तपकरैए । मांगीसूई दीध । कातरणी बुरी । आंबिल चढता आदरैए ॥ १८॥ जीव करावै युध । रात्री भोजन । जल तिरणो खे लण जूशोए । पापतणा नपदेश । परद्रोह चिंतव्यां । नपवासइक २ जूजूत्रो ए॥ १९॥ पनरै करमादांन । नियमकरी नंग । मद्यमांस माखण नष्या ए। आलोयण नपवास । संकप्पादिक । चिहुँ नेदें चढता लिख्याए ॥२०॥ बोल्या मिरखाबाद । अदत्ता दांनत्यु । जघन्य एकासण जांणीय ए । अति नत्कृष्टी एण । जांण आलोयण । नपवास दस २ आणीयै ए॥२१॥(ढाल ४) ॥ सुगण सनेही मेरे लाला (एचाल ) चौथै व्रत नागै अतीचार । ज घन्य नहालोयण धार । मध्यइ दस नपवास बिचार। नत्कृष्टा गुण लखन वकार ॥ २२॥ परिग्रह विरमणदोष प्रसंग। तीन गुण ब्रत माहै नंग। च्यार सिहा बतनें अतीचारे । आंबिल त्रिणप्रत्येकें धारै ॥ २३ ॥सीलतणी नव वामि कहाय । तिहां जोलागो दोष जणाय । त्रीयनें फरस हुआं अबिबेके। इक बिल कीजै प्रत्येकें॥२४॥ साधु अनें श्रावक पोसीध । एकेंद्रीस चित्त संघट्टे कीध । वीसर नोलें सचित्त जल पीध । दंग एकासण आंबिल दीध ॥२५॥ विण धोआं विण लूह्या पात्र । एकासण तिम पुरमढ मात्रै । गई मुह पत्ती आंबिल सारो। तिम नधै अष्ठम अवधारो ॥ २६ ॥ च्यार आगार बमी राखै ।बत पचखांण करै षद साखै । दोषे मिहामि मुक्कम दाखै । आ लोयणलेतां अनिलाखे ॥ २७ ॥ आलोयणनो अति विस्तार । पूरो कहितां नावै पार । तोपिण संदेपै तंतसार । निरमल मन करतां विस्तार ॥ २८ ॥ धन श्रीवीर जिनेसर स्वामी । जसु आगम वचनें विधि पामी । जीतकल्प ठगणांगै आदि । वली परंपर गुरु सुप्रसाद ॥ २९ ॥ (कलश) इम जेह ध
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रत्नसागर.
रमी चित्त विरमी पाप सर्व लोइनें । एकांत पूढे गुरु वतावै शक्तिवय तसु जो इनें । बिधएह करसी तेहतिरसी धरमवंत त धुरै। ए तवन श्रीश्रमसी ह कीधो चौपनें फल वधि पुरै ॥ ३० ॥ इति आलोयण स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ इहां क्रोधका सिज्ञाय प्रतिक्रमण विधमें विषप्राएहें ॥ ॥ * ॥ अथ मानकी सिज्ञाय लि० ॥ ॥
॥ * ॥ रेजीव मांन नकीजिये । मानें विनय नावैरे । विनय विना विद्या नहीं। तोकिम समकित पावेरे ॥ १ ॥ २० ॥ समकितविन चारित्र नहीं । चारित्र विण नहीं मुक्तीरे । मुक्तिना सुखडे सास्वता । तेकिम जहीई जुक्तीरे ॥२॥रे| बिनय बो संसारमा । जगमांहे अधिकारी रे । मानें गुणजाये गली । प्रा णी जोज्यो विचारी रे || ३ || मानकियो जो रावणें । ते तो रामें मारयोरे । रजोधन गरवै करी | अंतेवर ते हारयोरे ॥ २० ॥ ४ ॥ सुका लाकमा सारिखो। दुख दाई ए खोटोरे। उदय रतन कहै माननें । देज्यो तुमे देसो टोरे ॥ ३० ॥ ५ ॥ * ॥ इति मानकी सिझाय संपूर्ण ॥ ॥ *॥
॥ * ॥ अथ मायाकी सिज्ञाय लि० ॥ * ॥
॥ * ॥ समकितनूं मूल जाणीये जी । सत्य वचन साख्यात । साचा में समकित बसें जी । मायामां मिथ्यातरे ( प्रांणी मकरिस माया जगार ॥ १ ॥ मुख मीठी कुठे मनेंजी । कूम कपटनो कोट । जीनेंतो जी जी करै जी । चितमां ताके चोटरे ॥ प्रां० ॥ २ ॥ आप गरजें प्राघो पमै जी । पि न धरे विसवास । मनसुं राखे प्रांतरोजी । ए मायानो पासरे ॥ प्रा० ॥ ३ ॥ जेसुं बांधी प्रीतमी जी । तेसुं रहे प्रतिकूल । मयल नबंरे मन त गोजी । ए मायानो मूलरे ॥ प्रां० ॥ ४ ॥ तप कीधो माया करीजी | मि
सुं खैरे । मलि जिनेसर जाणजो जी । तो पाम्या स्त्री वेदरे प्रा० ॥ ५ ॥ नृदय रतन कहै सांगलोजी । मेलो मायानी बुद्धि । मुगति पुरी जावा तणोजी । ए मारगळे सुधरे ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ ॥ ॥ * ॥ थ लोनकी सिझाय लि० ॥ ॥ * ॥ तुमे लक्षण जो ज्यो लोभनारे । लोनै जन पामें खोजनारे ।
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लोनकी (तथा) भरतजीकी सिशाय. २९९ लोनें माह्या मन मोहला करैरे। लोनें पुरघट पंथे संचरैरे ॥ तु० ॥ १॥ तजे लोन तेहना लेनं नामणारे । बलि पाय नमीने करुं खामणारे । लो ने मरजादा नरहै केहनीरे । तुमे संगत मेलो तेहनीरे ॥ तु० ॥२॥ लोने घर मेहली रणमां मरैरे। लोन नंचते नीचुं आचरैरे । लोनें पापन णी पगला नरैरे । लोनै अकारज करतां न औसरैरे ॥ तु०॥ ३॥ लो जे मनहुँ नरहें निरमलरे। लोने सगपण नासें वेगलुरें। लोनें नरहै प्रेतने पावतुंरे । लोने धन मेले बहु एगरे ॥ तु० ॥ ४ ॥ लोने पुत्र प्रतें पिता हणेरे । लोनें हत्या पातिक नविगणेरे । ते तो दाम तणे लोनें करीरे। ऊपर मणिधर थायें ते मरीरे ॥ तु० ॥ ५ ॥ जोतां लोननें थोन दीसे न हारे। एहवो सूत्र सिघांते कयुं सहीरे । लोनें चक्री संजूम नामें जुवोरे । ते तो समुद्र मांहे बूमी मुंवारे ॥ तु०॥ ६ ॥ इम जाणीने लोनने म ज्योरे। एक धर्म सुं ममता ममज्योरे । कवि नदय रतन नाषे मुदारे। वंडु लोन तजै तेहनें सदारे ॥ ७॥ इति श्री लोनकी सिशाय संपूर्ण ॥१॥
॥ ॥ अथ नरत चक्रवर्ति सिशाय लि०॥ ॥ ॥ * ॥ रतजी मनहीमें वैरागी । मनहीमें वैरागी । नरतजी म. ॥ टेक ॥ सहस बत्तीस मुगट वच्च राजा । सेवा करै बडनागी । चौसह सहस अंतेवरि जाके । तोही न हुवा अनुरागी। (नरतजी मनहीमें वैरागी)॥ १ ॥ लाख चोरासी तुरंगम जाके । बन्नु कोडहै पागी। लाख चोरासी गजरथ सोहिये । सुरता धरम सुं लागी ॥ जर० ॥ २ ॥ च्यार कोड मण अन्नज नपसे । लुण दशलाख मण लागे । तीन कोड गोकुल नित दूमे। एक कोडि हलसागी ॥ नर० ॥ ३ ॥ सहस बत्तीस देस वम मागी। नए सरबके त्यागी । उन्नु कोड गांमके अधि पति । तोही न हुआ अनुरागी ॥ जर० ॥४॥नव निध रतन चनगमा वाजें । मन चिंता सरब जागी । कनक कीरत मुनिवर वंदतहे । दीजो सुमति में मांगी ॥५॥पर० ॥ ॥ इति जरतजीकी स्वाध्याय संपूर्ण ॥ ॥ ॥
॥ ॥ गन धान उतपत्ति विचार वैराग्यसि ॥ ॥ ॥ ॥नतपति जोय जीव आपणी । मनमांहि विमास । गरनावासे
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३००
रत्नसागर.
जीवको । वसीयो नवमास ॥ १ ॥ ० ॥ नार तणी नाजीतले । जिन व चनें जोय । फूलती जिम नालिका । तिम नामी है दोय ॥ २ ॥ ० ॥ तसुतल जोनि कहीजिये । वर फूल समान । प्रां तणी मांजर जिसो । तिहां मांस प्रधान ॥ ३ ॥ ८० ॥ रुधिर श्रवै तिहां मांसथी। रितुकाल स ara | रुधिर शुक्र जोगे करी । तिहां नपजै जीव ॥ ४ ॥ ० ॥ जे प्र पावन पवनें करी । वासित दुरगंध । तिणथानक तूं ऊपनो । हिव हू अंध मंध ॥ ५ ॥ न० ॥ नामी वांसतणी घणुं । नरीयै रूवाल । तातीलोह सिलाकतें । जालै ततकाल ॥ ६ ॥ ० ॥ तिम महिलानी जोन में । बै नव लख जीव । पुरुष प्रसंगे तेसहू । मरि जाय सदीव ॥ ७ ॥ नं० ॥ ऊपजै नर नारी मिल्यां । पांचेइंद्री जेह । तेह तणी संख्या नही । तजो कारज एह ॥ ८ ॥ ८० ॥ नवलख जीव टिकै तिहां । उत्कृष्टीवार । जीव जघन्य पर्णे टिकै । एक दोय त्रिण च्यारि ॥ ९ ॥ ० ॥ जीव जघन्य तिहां रहे । महुरत परिमाण | बार बरसनी थिति तिहां । उत्कृष्टी जाण ॥ १० ॥ ० ॥ तिहां गरनै कोइ जीवको । जंपै जग दीस। फिर नर आावंतो रहे । संबत्सर चोवीस ॥ ११ ॥ ८० ॥ महिला वरस पिचावनें । कहीयै नीरबीज । पिचहत्तर वरसां परै । थायै पुरुष बीज ॥ १२ ॥ ० ॥ जी मी खै नर बसे । तिम बामें नारि । बीच नपुंसक जाणीयै । जिन वच न विचार ॥ १३ ॥ ० ॥ हिव सामान्य पणें इहां । यो गरनावास ! सातदिना ऊपरि रहे । नरगत नवमास ॥ १४ ॥ ० ॥ आठ बरस तिर यंच रहे । नत्कृष्टे काल । गरना वासै जोगव्यां । इम बहु जंजाल ॥ १५ ॥ ० ॥ कारमण कायें कर लीयो । पहिलो प्रहार । शुक्र पर्ने श्रोणित तणो | नही झूठ लिगार ॥ १६ ॥ ० ॥ परजापत पूरी नही । तिहां वि सवा वीस | ति प्राहारै तुथयो । कदारक सीस ॥ १७ ॥ ० ॥ पवन अनदरे तिको । ऊपजायै अंग । अगनिकरे थिर तेहनें । जब सरस सुरंग ॥ १८ ॥ ० ॥ कठन पण प्रथवी रचे । अवगाह आकास | पांच नूत शरीरमें । इम करै प्रकाश ॥ १९ ॥ ० ॥ बारै महुरत तां पढे । वि लसै नरनारि । गरनतणी उतपति तिहां । नही अवर प्रकार ॥ २० ॥
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गर्नाधान नतपत्तिविचार सिशाय. ३०१ नु० ॥ कलिल हुवै दिन सातमै । अबुद दिन सात । अरबुदथी पेसी वधै। घनमांस कहात ॥ २१॥न ॥ मांसतणी बोटी हुवै । अमताली स टंक । प्रथम मास जिनवर कहै। मन धरो निस्संक ॥ २२ ॥ न०॥ सुथिर मांसबीजै हुवै। हिवै तीजै मास । करम तणे वसि ऊपजै । मा ता मन आस ॥ २३ ॥१०॥ चोथै मासै मातना । प्रणमें सहु अंग । हाथ अर्ने पग पांचमें । तिम सुतकोसंग ॥ २४ ॥ न० पित्त रुधिर बडे पमै। सातमें इण संच । नव धमणी नस सातसै। पेसी सय पंच ॥२५॥ न०॥ रोमराय पिण सातमें। साढी तीन कोमि । नपजे कणे केतले । इम आगम जोड ॥ २६ ॥न आठमै मासे नीपनो। इम सकल शरीर । कंधै शिर वेदन सहै। जंपै जिनबीर ॥ २७॥ न ॥शोणित शुक्र सले षमा। लघुनें वमनीत । वात पित्त कफ गरनथी। थायै नरनीत ॥२८॥ न०॥ मात तणी सुंहटी लगै। बालकनो नाल । रस आहार करै तिहां। आवै तत काल ॥२९॥ न० ॥ जननी ल्यै आहार ते । जाय नाडो ना ड। रोम इंद्री नख चख बधैं । तिम मीजीने हाम॥३०॥न० ॥ सबहु अंगै ऊलसै । सरबंग आहार । कवल आहार करै नहीं। गरनै सुविचार ॥३१॥०॥मास बीजै किण जीवनें । थायें ज्ञान विनंग। अथवा अवधि कही जीयै । तिण ज्ञान प्रसंग ॥ ३२ ॥ न० ॥ कटक करै वैक्री यपणें । झुमी नरकै जाय। को जिन वचन सुणी करी । मरी सुर पिण थाय ॥३३॥ न० ॥ कंधैमुख गोमा हीयै । सहि तो बहु पीक । दृष्टि आगलि विहुं हाथमुं। रहै मुहीनीम ॥ ३४॥ न० ॥ नरविण वस्त्र ज लादिक । ऊपजै आधान । अथवा बिहुँ नारी मिल्यां । कह्यो गरन विधान ॥३५॥ न०॥कोई नत्तम चिंतवै। देखी मुख वास । पुन्य करी तिम नीकलं । नाकं गरजावास ॥३६॥ १० ॥ ऊंठकोमि चांपै सुई। कोई समकाल। तिणथी गरनै अठगुणी। सहै वेदन बाल ॥३७॥१०॥ माता नूखी नूखीयो । सुखणी मुखथाय । माता सूती ते सूवै । परवस दि न जाय ॥३८॥१०॥गरज थकी मुख लखगुणो । जामें जिनवार । जन्मथयां मुख वीसरे । धिम् मोह विकार ॥ ३९॥ १०॥ नपज्या अशु
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रत्नसागर.
चि पणै जिहां । मल मूत्र कलेस । पिंम अशुचि करि पूरीयो । किहां सुचि लवलेस ॥४०॥ न०॥ तुरत रुदन करतो थको। जामें जिणवार । मात पयोधर मुख ठवै । पीय दूध तिवार ॥ ४१ ॥ न दिन दिन दीसै दीपतो। करै रंग अपार । लाम कोम माता पिता । पूरै सुविचार ॥ ४२ ॥ न० ॥ श्रोत्र इग्यारै नारिने । नव नरने जाण । रात दिवस वहिता रहै । चेतो चतुर सुजाण ॥ ४३ ॥ नु० ॥ सात धातु साते त्वचा। चै सातसै नाम । नवसे नाडी पिंममैं । तिम तीनसै हाम॥४४॥ न०॥ संधि एकसो साग्छ । सत्तोत्तरसो मरम । तीन दोष पेसी पांचसै । ढांकी चरम ॥ ४५ ॥ न०॥ रुधिर सेर दस देहमें । पेसाब सरीष । सेर पांच चरवी तिहां । दोय सेर पुरीष ॥ ४६ ॥ ॥ पित्त टांक चोसठ अ । वीरज बत्तीस । टांक बत्तीस सलेखमां । जाणे जगदीस ॥४७॥०॥ण परमाण थकी यदा।
छो अधिको थाय । ब्यापै रोग शरीर में । नवि चालै काय ॥४८॥न ॥ पोख्यो पहिलै दाहकै । इम वधियो अंग। खान पान चूषण जला । करे नवनवा अंग ॥ ४९ ॥ १० ॥ हिव बीजै दसकै लण्यो। विद्या विवध प्र कार । तीजै दसकै तेहनें। जाग्यो काम विकार ॥ ५० ॥न ॥ जिण था नक तुं ऊपनो। तिणमें मन जाय । चौथे दसकै धन तणो । करै कोमि न पाय ॥५१॥ नु०॥ पहुतो दसकै पांचमैं । मनमें ससनेह । बेटाबेटी पो तरा । परणावै तेह ॥ ५२॥ न०॥ दसके प्राणीयो । वले परवस था य। जरा आवी जोवन गयो। तृष्णा तोही न जाय ॥५३॥ नु०॥आवै दसकै सातमें । हिव प्राणी तेह । बल नागो बूढो थयो । नारी न धरै स नेह ॥ ५४॥ न० ॥ आठमें दसकै मोसलो । खुलिया सहु दांत । कर कंपावै सिर धुणे । कर फोकट वात ॥ ५५ ॥ १० ॥ नवमें दसकै प्राणी यो। तन सूकत जाय । साले वचन बहुवां तणां । दिन झूरतां जाय ॥५६॥ १०॥ खाट पड्यो ५ रखू करै। सहु गाली देह । हाल हुकम हालै नहीं। दीयो परजन नेह ॥ ५७॥ ॥ आंख गलै बेपुम मिले। पके मुंहमै लाल। बेटा बेटीने बहू । नकर. सार संजाल ॥ ५८॥ १० ॥ दसमें दसकै आवीयो। तब पूरी आय । पुण्य पाप फल नोगवी । प्राणी
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गर्भाधान नतपत्तिविचार सिझाय.
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परजव जाय ॥ ५९ ॥ ० ॥ दस दृष्टांते दोहिलो । लह्यो नर व सार । श्री जिन धरम समाचरो । पामो जिम जवपार ॥ ६० ॥ ० ॥ चरण पर्णे जे तप तपै । पालै निरमल शील । ते संसार तरी करी । लहै अविच ल लील ॥ ६१ ॥ ० ॥ कोमि रतन कवमी सटे । कांई गरे गिंवार | धरम खै पि जीवनें । नही कोई आधार ॥ ६२ ॥ न० । काया माया कारमी । कारमो परिवार । तन धन जोवन कारिमो । साचो धरम संचार ॥ ६३ ॥ ० ॥ चवदै राज प्रमाण ए । बै लोक महंत । जनम मरणकरि फरसियो । तेवार प्रांत ॥ ६४ ॥ ० ॥ आप सवारथिया सहू । न ही केहन कोय। विण स्वास्थ अण पूजतां । सुत पिए वेरी होय ॥ ६५ न० ॥ जरा न आवै जांलगे। जांलग सबल शरीर । धरम करो जीवतां ज गे । होइ साहस धीर ॥ ६६ ॥ ० ॥ आरजदेस लह्यो हिवै । लाधो गुरु संयोग । अंग थकी आलस तजो । करो मुक्कृत संयोग ॥ ६७ ॥ ० ॥ श्री नमिराय तणी परै । चेतो चित मांहि । स्वारथना सहुको सगा । को ई किणरो नांहि ॥ ६८ ॥ ० ॥ जोग संजोग तजीसहू । थया जे गार धन धन तसु माता पिता । धन धन अवतार ॥ ६९ ॥ ० ॥ सुरतरु सुरमणि सारिखो । सेवो जिन धरम । जिणथी सुख संपति वधै । कीजे तेहिज क र्म ॥ ७० ॥ ० ॥ तंडुल वेयाली । एहनो अधिकार | तिथी कध रने को । नहीं ऊठ लिगार ॥ ७१ ॥ ० ॥ ( कलश ) इह जेनधर्म विचार सांजलि लीये संयम जार ए । परि सींह केरा सदा पालै नेम नि रती चार ए । संसारना सुख सकल जोगवि ते लहै नवपार ए । न हरष सुसीस रंगै इम कहै श्रीसार ए ॥ ७२ ॥ ८० ॥ ॥ इति उपदेश वहुत्तरी संपूर्ण ॥ ॥
श्रीजि
॥ * ॥
॥ अथ बिजय सेठ विजयासेगणीको चोढालियो लि० ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॥ प्रह ऊठीरे पंच परमेष्टि सदा नमुं । मनसूधैरै तेहनें चरणे नित नमुं । धुरि तेहनें रे अरिहंत सिद्ध वखाणियै । आचारजरे उपाध्याय मन प्राणियै । ( नव्वालो) आणियै निज मन नाव सुद्वै नृपाध्याय नर्मू बली । जे पनरह करम जूमि मांहे साधु प्रणमुं ते वली । जिम कृष्ण
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रत्नसागर. पहनें सुक्लपक्वलि शील पाल्योते सुणो। जरतारने स्त्री विन्हे तेहनो चरित जावेसुं नणो॥१॥ ( ढाल )नरत त्रैरे समुद्र तीर दवाण दिसे। कबदेसैरे बिजय सेठ श्रावक वसै । शील ब्रतरे अंधारा पदनो लियो । बाला पणैरे एहवो निश्चो मन कियो। ( नबालो) मन कीयो एहवो तेण निश्चै पख्य अंधारै पालस्युं । हुं शील निश्चै एह विरुन विषय सेवा टालस्युं । इक अ सुंदर रूप बिजया नाम कन्या तेवली। तिण शुक्ल पवनो शील लीधो सुगुरु जोगै मन रली ॥२॥ (दाल) कर्म जोगरे मांहो मांहि ते विहुँ तणो । शुन्न दिवसैरे हुओ विवाह सुहामणो। तब विजयारे शोलै श्रृंगार जला करी । पिन मंदिररे पोहती मन नबट धरी। (नबालो) मन धरी उलट अधिक पहुती पिया पासै सुन्दरी । ते देखि हरषे सेठ बोले शील निश्चो संजरी। मुफ शील निश्चो पख अंधारै तेहना दिन तीन। ते नेम पाली सुकलप ख्य हुं लोग जोगवस्युं पवे ॥ ३॥ (चाल) इम सांजलरे बिजया तब वि लखी थई। पिऊ पूरे किम चिंता तुमनें नई। तब विजयारे कहै शुक्ल पद ब्रतमें लीयो । ब्रत चोथेरे बाला पण निश्चो कीयो। (उबालो) बाला पणेम कीयो निश्चे शुक्लपद बत पालस्युं। तो नन्नै पद हिव शील पाली नियम दूषण टालस्युं । तुझे अवरनारी परणने हिव सुक्ल पक सुख जोगवो कृष्ण पक्ष निज नियम पाली अनिग्रह इम जोगवो ॥ ४॥ (दाल)तब व लतोरे तमु जरतार कहै इसो। विषया रसरे कालकूट विषकै तिसो । ते 5 मीरे शील बत दोनुं पालस्यां । एह वारेमात पिता न जणावस्यांन०॥ मात पिता जब जाणस्ये तब दिख्य लेसां धरदया। इम अनिग्रह लेइनें ते जाव चारित्रीया थया। एकत्र सज्या सयन करतां खमंग धारा ब्रत धरै । मन वचन काया करी सूधो शील बेळं आचरै ॥५॥ (ढाल )॥बिमल के वली एक । चंपा नयरीयै । ततखिण आवि समोसरयाए । आणी अधिक विवे क। श्रावक जिण दासोकहै विनय गुण परिवरयो ए॥६॥सहस चोरासी साधु मुफ घर पारणो । करै मनोरथ तो फलै ए । केवल ज्ञान अगाध । कहै श्रावक सुणो। एह वाततो नवि मिलैए ॥७॥ किहां एतला अणगार। किहां वलि सूफतो। जातपाणी नही एतलोए । तो हिव तेह विचार । करो तुझे
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विजयसेठ (तथा) कमलावती सि०
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हिवै
जिम तिम। फल अह्म हुवै तेतलोए ॥ ८ ॥ देस । सेव बिजय वली। बिजया जार्या तसु घरैए। जावयती ग्रह वास । तेहनें जोजन दधां फल हुवै तेतलो ॥ ९ ॥ जिणदास कहै जगवंत । तेमांहि एतजा कुण गुणकुण व्रत घणा ए । केवली कहे अनंत । गुण तसु शीलना । कृष्ण शुक्लपक्ष व्रत तणा ए ॥ १० ॥ ( ढाल ) ३ ॥ दानकहै जगहुँ बमो एचाल || केवलीनें मुख सांगली | श्रावक तेजिनदासरे । कदे हिवा बीयो । पूरै निज मन आसरे ॥ ११ ॥ ( धन २ शील सुहामणो ) ॥ शी ल समो नही कोईरे । शीलै देव सानिध करे । शीजथी शिव सुख होईरे ॥ ६० ॥ १२ ॥ सेठ विजय बिजया जणी । जगतसुं भोजन देईरे । सहस चोरासी साधुना । पारणानो फल लेईरे ॥ ध० ॥ १३ ॥ मात पिता पूबै तेहनें। एहनो शील वखापरे । केवलीनें मुख जिम सुरायो । तिम कहै ते गुण जागरे ॥ ६० ॥ १४ ॥ सहस चोरासी साधुनें । पारणो दीये कोई जायरे । कृष्ण शुक्ल पक्ष दंपती । भोजननो फल थायरे ॥ ६० ॥ १५ ॥ मात पिता जबजाणीयो । प्रगट हुआ संबंधरे । सेठ विजय बिजया ली यो | चारित्र प्रतिबंधोरे ॥ ६० ॥ १६ ॥ ( ढाल ) ४ ॥ केवलीनें पासै । चारित्र लेई उदार । मन ममता मूंकी । पालै निरती चार ॥ १७ ॥ प्राठ क रम खपावी । पाम्यो केवल नाण । ते मुगतै पहुता । दंपती सुगण सुजा
॥ १८ ॥ तेहना गुण गावै । जावे जे नर नार । ते वंबित सुख लहै । पहुँचै नवनें पार ॥ १९ ॥ ( कलस ) इम कृष्णपक्षनें शुक्ल पख्यै शील पाल्यो निरमलो । ते दंपतीना जाव सुर्वे सदा सुन गुण सांगलो । जिम डुरिय दोहरा दूर जायै सुक्ख थायै बहुपरै । वलि सकल मंगल मनह बँ बित कुशल नित घर अवतरे ॥ इति कृष्ण शुक्ल पक्ष चौढा० ॥ * ॥
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॥ * ॥ अथ इखुकार राजा नृगुप्रोहित सि० ॥ * ॥
॥ * ॥ महिला में बैठी राणी कमलावती । जीणीतो न मारगखेह । ala तमासो खुकार नगरमें । कोतिक उपनो मन में एह ॥ १ ॥ (सांगल हे दासी आज नगरमें बहदो किम घणो ) । कातो परधान सखी मंगीया ॥ काकेई लूंट्या राजा गांव। काकोई गाडयो धन नीसरयो । गामा रह्या बे
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३०६
रत्नसागर
गमो गम ॥ २ ॥ सां० ॥ ० ॥ नातो परधान बाइजी मंसीया । ना को राजा लूंच्या गांव। जगू परोहित धन तज नीसरयो । राजारै धन लेवा चाव ॥ ३ ॥ ( सांजल हे राणी हुकम करो तो कोई गामो इहां धरां ) ॥ वे टांतो तिरा संजम जीयो । वरज्यो घणुं ही पिता मात । ते पिण चारित ले वा मह्या । जगू जशा तिणें मोह लल चात ॥ ४ ॥ ( सांनल हे० हु क० ) ॥ इम सुण कमलावती राणी इम कहै । इहां तो कमी नहीं काय । सांभलने राणी माथो धुणीयो । राजारी ममता नही गय ॥ ५ ॥ ( सां० दासी राजानें एवातां जगती नही ) । महिलांसं राणी कमलावती । आई राजारे हजूर । वचन कहै राजानें आकरा । जाणें पोरस चढियो बोलै सूर ॥ ६ ॥ ( सांगलहो राजा ब्राह्मण बोकी रिक्युं दरों ) । कर जोगी कमला कहै । सांजल कंत सुजाण । ब्राह्मण जेरिव परिहरी । ते तो मां है | ( सां० । राजा० ) ॥ ७ ॥ एरिवसुं अप कांई घणो इसी । राजारा मोटा है नाग । वमियै आहाररी बांबा कुण करे । कै कुतरा के काग ॥ ८ ॥ सां० ॥ राजा० । ब्रा० । बमियो आ हार पी नर नखे । नही परसंसवा जोग । जगू प्रोहित रिव तजनीस रयो । थे जाएयो बै आसीह्मां रे जोग ॥ ९ ॥ ( सां । राजा ब्रा० ) ॥ संकलपियाको पाटो किमलीये । सांगलहो महाराज । दान दियो थे पहिलां हाथसुं । ते पूगे लेतांनावे थानें लाज ॥ १० ॥ (सां राजा ब्रा० निचैतो मरणो राजा इक दिनें । बोमीनें काम विसेष । बीजो तो जगमें सरणो को नही । तारै जिनजीरो भ्रम एक ॥। ११ ॥ ( सां० राजा ) ॥ सगलै जगतरो धन जो करी । थे वालो नंमारां रे मांहि । तो पिण त्रिसना राजा पापणी । त्रिपत न मनको थाय ॥ १२ ॥ ( सां० ब्रा० ) ! सांज खकार राजा बोलीयो । तुं नाषैनी वचन संजाल । कातनें रा पी फोलो बाजीयो । काकोई कीधी मतवाल ॥ १३ ॥ ( सां० । राणी राजानें करमा वचन न वोलीयै ) । नांतो राजाजी कोलो वाजीयो । नाकोई कधी मत वाल । ब्राह्मणरो वमियो धन थे दरो | वरजण आहो भूपाल ॥ ( सां० राजा बा० ) ॥ १४ ॥ वलतो राजा राणीनें इम कहै ।
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इखुकार राजा कमलावती राणी सि०
३०७
हूं
इसकी बैरागण थाय । अजूंतो निजरां आवै नही । तुं बेठी बै घर मांय ( सां० । राणी राजानें कर० ) || १५ || उत्तर बालीतो दीसै नही । इसकी आई बै मतवाल । हुंतो घर बोमीनें नीसरी । थे पिण बोको हो नूपाल । ( सां० । राजा आग्या देवो तो संयम आदरुं ) ॥ १६ ॥ रतन जगतरो राजा पींजरो । तिणमें सूवटो पडियो कंद । इस रीते थांरै राजमें रहिनें पासुं प्राणंद । ( सां० राजा आग्या ) ॥ १७ ॥ सनेह रूपिया तांत तोनें। प्रारं धनसुं रहस्यां दूर । विरकत थई मोन पणें रह्या । थे पिण होयज्यो सूर ॥ ( सां० राजाप्रा० ) ॥ १८ ॥ दवतोलागी हो राजा वन म । हिरण सिसा बलै मांय । गिरधपंखी ज्युं प्रामिष देखनें । मन मां हरषित थाय । ( सां० राजा राग द्वेषरा जांगा लग रह्या ) ॥ १९ ॥ मांहो मां खेधो इसको । दस प्राण रहित कीधो काल । दुसमणतो म पायो घणो । जाणें ते माहरो मिटियो साल । ( सां० हो रा जा रागद्वेष ) ॥ २० ॥ इण दिष्टांतै लोनी मूरख थका । मुरकरह्या जोग मांहि । पेलानें दुखियो देखी चेतै नही । जागी राग द्वेषरी जाय ॥ ( सां० राजा राग ० ) ॥ २१ ॥ मांसरी बोटी पंखीरी चांचमां । नरपासै पंखी प यो प्राय । आमिष सम जोग बोनें । चारित्र लेस्यां चित्त लाय ॥ (सां० प्राणी संयमथी सुखपांमीयै ) ॥ २२ ॥ महल पिलंगादिक प्रथि खै । ते पांया है आप हाथ । कामनोगमें रक्त होय रह्या । ते तज होयसां नाथ ॥ ( सां० राजा सं० ) ॥ २३ ॥ पांचे इंद्रयांरा जोग बोमनें । द्रव्य जावै हलकाथाय । सहज वान पंखीनीपरै । विचरस्यां अपणी दाय ॥ (सां० प्राणी सं० ) ॥ २४ ॥ गिरध पंखीज्युं जोग जाणजो । एह काम वधारै संसार । सापज्युं मोर थकी मरतो रहै । ज्यूं पापसुं संकस्यां इण वार ॥ ( सां० । प्राणी सं० ) ॥ २५ ॥ सोक तजी संतोषसुं । लेस्यां संय मनार । ममता तजी समता ग्रहो । करस्यां नम्र विहार (सां० प्राणी सं० ) ॥ २६ ॥ तन धन जोवन कारमो । चंचल वीज समान । खिए २ खूटै खो। मूरख करैरे गुमान ॥ ( सां० प्राणी सं० ) ॥ २७ ॥ हस्तीज्युं वंधण तो वनसुखै जाय । करम बंधण तूटै संयम लियां । सुणो
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रत्नसागर. कहुं महाराय ॥ (सां० राजा सं० ) ॥ २८ ॥ इम सुणनें इखुकार राजा चेतियो । गोमीनें मोटको राज । कायरनें तो ए तजतां दोहिलो । बिन सहित सारया काज ।। (सां० राणी सं०)॥२९॥ मोह न राख्यो परिग्रह
गेमके । पायो जिन धरम सुजाण । तपस्या सगलांही आदरी। नत्कृष्टो पराक्रम आण ॥ (सां० प्राणी सं० ) ॥३०॥ सुधसंयम पाले सदा। सु मति गुपति दयाल । नमरानी परै करै गोचरी । रिष टालै दोष वयांल ॥ (सां प्राणी सं०) ॥ ३१ ॥ तारण तरण जिहाज जै । जव्य जीवनें न तारै पार । केवल ज्ञान नपायनें । सुख पाम्यां श्रीकार ॥ ३२॥ ( सां प्राणी सं०)। मोहनिवारी प्राणी समझने । निरमल भावना जाव । गए जणा थोमा कालमें। मुगति बिराज्या जाय । (सां प्राणी सं०)॥ ३३॥ राजा सहित राणी कमलावती । नृगु पुरोहित जशा नार । प्रोहित नृगुना दोय दीकरा । शिव सुख पाम्यो सार ॥ ३४ ॥ (सां प्राणी सं०) इति श्री इखुकार राजा नृगु प्रोहितरो अधिकार संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥(अब नव पदके (९) चैत्यवंदन (९) स्तवन(९)थुई लिखते हैं।।*॥
॥ ॥ अथ अरिहंतपद चैत्यवंदन लि०॥॥ ॥ॐ॥श्री इष्टदेवायनमः॥ ॥ जय २ श्री अरिहंत नानु । जवि क मल विकाशी । लोकालोक अरूपि रूपि । समवस्तु प्रकाशी ॥१॥ समुद्वा त मुन केवलै । दय कृत मल राशी । शुक्ल चरम शुचि पादसें । यो बर अविनाशी ॥ २ ॥ अंतरङ्ग रिपु गण हणीए । हुय अप्या अरिहंत। तसु पद पंकजमें रहित । हीर धरम नित संत ॥ ३ ॥ इति अरिहंत पद चैत्यबंदनं ॥ जिंकिंचि० । नमोजत्० ॥ * ॥
॥॥अथ प्रथम पद स्तवन लि०॥॥ ॥ * ॥ (पूजो मनरली, हां हो दादा कुशल सुरिंद पू० एदेशी )॥ श्रीतेरमगुण बसिकै कंत । कर्मकुं नंजै श्री अरिहंत । ( मन मानले )। अष्ट समय में समय तीन । सबै आहार थी होवें हीन ॥ ( म० )बादर काये मन बच जोग। तनु २ से फुन दृढ तनु योग॥ (म० ) सुखम कायते मन बच रोक । निज बीर्ये ताकुं कर फोक ( मन० )॥२॥संझी मात्रके मन
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नवपदके (९) चै० (९) स्त० (९) थुई ३०९ व्यापार । बेइंद्रीने वाक्य प्रचार (म०) आदि समय रह्यो पणक सुजी व । सुखम लह्यो तिण जोग अतीव ( म०) एषां योग थी समयें एक। हीना संख गुणो कर बेक ( मनमा० ) समया संखें जोग निरोध । कृत्वा जो लह्यो जोगी सोध ( मन० ) बेद समें ना हारता पाय । कुशल कहै ते श्री जिनराय । ( म० ) तेरमे गुणमें गुण समें देव । आपोसा जगकुं नितमेव ( म०)॥५॥ इति अरिहंतपद स्तवनम् ॥१॥8॥
॥॥अथ अरिहंत पदस्तुतिः॥॥ ॥ ॥ सकल द्रव्य पर्याय प्ररूपक लोकालोक सरूपो जी । केवल ग्यान की ज्योति प्रकाशक अनंतगुणें करि पूरो जी । तीज जव थानक आराधी गोत्र तीर्थकर नूरोजी । बारै गुणांकरी एहवा अरिहंत आराधो गुण नूरोजी ॥ इति अरिहंत पदस्तुतिः॥१॥ॐ॥
॥ ॥अथ सिद्धपद चैत्यबंदन ॥२॥ ॥ ॥ॐ॥श्री शैलेसी पूर्वप्रांत । तनु हिंनत नागी । पुव पन्यपसंगसें करधगत जागी॥ १ ॥ समय एकमें लोकप्रांत । गये निगुण निरागी । चेतन नूपें आत्मरूप । सुदिसा लही सागी ॥ २ ॥ केवल सण नाण थी ए। रूपातीत स्वभाव । सिच नये तसुहीर धर्म । बंदे धरि सुन्न नाव ॥३॥ इति सिधपद चैत्यवंदन ॥२॥ ॥
॥ ॥ अथ सिद्धपद स्तवन लि०॥ ॥ . - ॥ ॥ थारे महिला ऊपर मेह रोखै बीजली॥ (ए चाल)॥ॐ॥ अष्ट बरस नग मास हीना कोडी पूर्वमें ( म्हारालाल ही० ) । नतकृष्टो करै बास सयोगी धाममें ( म्हा० स० ) ॥ अजोगी के अंत तजे नव नव्य ता (म्हारा त०)। शैलेसीलहै कर्म दलै गुणश्रेणिता ( म्हा० द०)॥१॥
स्वादर पंच काल रहै ते योगमें । (म्हा०र०) तेरस प्रकृतिनो अन्त करीनें अन्तमें (म्हाक०) गमन करै नगरऊसें अक्रिय होयनें (म्हा० अ०) पुत्व पयोग असंग स्वनाव प्रबंधने (म्हा स्व० २) इषु गुण नवपरमाण जोजन लके कही (म्हा जो०) वर्तुल बिसदा नाश निरालंबन सही (म्हा०नि०) मध्ये जोजन अष्ट घनाकृति अन्तमें ( म्हा०प० ) मही पदाथी हीन जणी
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रत्नसागर. सिघांतमें (म्हान०)॥३॥तनुपजारा नाम शिलासें जोयनें (म्हा०शि०) युग लोचनमें नाग अलोककुं स्पर्शनें । लघु अंगुल बत्तीस प्रमाणऽवगाहना (म्हा०प्र०) दृधिधनु शतपंच गुणासें हीनता (म्हा) मिलिया एकमें नंत अबाधा नालही (म्हा. अ.) अष्ट प्राणधरि रम्य सिरीही जो सही (म्हा० सि०) बीजोपद श्रीसिघ धरो मन गेहमें (म्हा० धरो) कुशलनये जग जीव मिलोगा तेहमें (म्हारा मि०)॥५॥१॥इति सिधपद स्तवनम् ॥*॥
॥॥अथ सिद्धपदस्तुतिः॥2॥ - ॥ * ॥ अष्ट करमकुं धमन करीने गमन कियो सिववाशी जी । अव्या बाध सादि अनादि चिदानंद चिदराशी जी । पर मातम पद पूरण विलाशी अघ घन दाघ विनाशी जी । अनंत चतुष्टमय शिवपद ध्यावो केवल ग्यानी नाशी जी॥॥
॥ ॥ इति सिधपद स्तुतिः॥२॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ * ॥अथ तृतीय पद नमस्कारः॥ * ॥ ॥ॐ॥जिन पदकुल मुखरस अनिल । मितरस गुण धारी । प्रवल सबल घन मोहकी। जिणते चमुहारी ॥१॥ ज्वादिक जिनराज गीत । नयतन विस्तारी । नव कूपै पापें पमत । जगजन निस्तारी ॥ २ ॥ पंचा चारी जीवके । आचारिज पदसार । तिनकुं बंदे हीर धर्म । अठोत्तर सो बार ॥३॥ इति आचार्य पद नमस्कारः॥३॥
॥ॐ॥ ॥ॐ॥अथ श्राचाये पद स्तवन लि०॥॥ ॥ ॥ (नणदल बींदलीलै एचाल )॥ ॥ खंती खमगथी जेणें । हायो क्रोध सुन्नट सम देणेहो। ( गणपति गुणपखी ) । मान महागि रि बयरे । अति सोनन मद्दव बयरें (होग० १) दंगरूप बिश बेली । वर अजब कीसै ठेलीहो (ग)। मुर्बा बेलथी नरियो । लोह सागर मुत्ते तरियोहो(ग०)॥२॥ मदन नाग मद हीनो। जिण दम शम जंत्र की नोहो (ग) मोह महामन तामयो । पुण बैराग मुगरें पाड्यो हो (ग) ॥३॥दोश गयंद बस कीनो। धरि नपशम अंकुस लीनो हो (ग) अं तरंग रिपुनद्या । सुर बर पिण जिण णिषेद्याहो (ग० ४) रस कृति गुणथी.
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नवपदके (९) चै० (९) स्त०(९) थुई. ३११ लीनो। सुत्र अरथै आगम पीनोहो (ग) आचारिज पद एहवो । धरी जीव कुशलता सेवोहो (ग)॥५॥ इति आचार्य स्त० ॥३॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ आचार्यपद स्तुतिः॥॥ ॥ * ॥ पंचाचारकुं पालै नजवालै दोष रहित गुणधारी जी । गुण उत्तीसे आगमधारी प्रादश अंग विचारी जी । प्रबल सबल घनमोह हरणकुं अनिल समो गुणवाणी जी । कमा सहत जे संयम पालै आचारज गुणध्यानीजी ॥ इति आचार्य पद स्तुति ॥३॥
॥* ॥ अथ चतुर्थ पद नमस्कारः॥ * ॥ ॥ ॥धन धन श्री नवझाय राय । सठता घन नंजन। जिनवर दिसत वाल संग । कर कृत जन रंजन ॥ १॥ गुणवण नंजण मण गयंद । सुय शृणि कियगंजण । कुणालंध लोय लोयणें । जत्थय सुय मंजण ॥२॥ महा प्राणमें जिन लह्यो ए। आगमसें पद तुर्य । तिन अहि निश हीर । धर्म । बंदे पाठक वर्य ॥३॥इति नपाध्याय चैत्य० ॥४॥ ॥
॥॥अथ उपाध्याय पद स्तवन लि०॥ * ॥ ॥॥ शांवलिया अलगा रहोनें। (एचाल) हुयनें ३ दूरी हुयनें । चेतन ना सठने ( दूरीहोयनें) तुं मुफपास क्युं आवै ( दू० ) तुमने कुण वतलावे । (दू० आंकणी) तो संगै निज पंचेंद्रीनो । रचना चरम जुलाणो । नाणाबरणी खय नपशमसे । जावेंद्री मंमाणो ( दू० ) ॥१॥ द्रव्य ते परजाप्तेंकीना । जाति नाम व्यपदेश । एवंतो गो तुरग गजादिक किण कर्मे उपदेश (दू० )॥२॥ इत्यादिक बहु मुझकुं शंका। तेरे संगे ला गी। नीलवर्ण की शमतासेती । मेंनयो तोसुं रागी (दू०)॥३॥ नप क हीयें हणीयो नवियानो। अधियां लानत आय । आधीनां मन पीमाना में । मायो येन बिलाय (दू०)॥४॥आधिक्य स्मरीयै बर आगम । सुत्र से ते नवज्ञाय । तत्सेवातें हणि सठताकुं । चेतन कुशलता पाय ( दू० ) ॥५॥ इति चतुर्थ पद स्तवनम् ॥॥
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रत्नसागर. ॥ॐ॥अथ नपाध्याय पद स्तुतिः॥ * ॥ ॥ * ॥ अंग इग्यारै चनदै पूरब गुण पचवीसना धारी जी। सूत्र अस्थधर पाठक कहियै जोग समाधि विचारी जी । तप गुण सूरा आगमपूरा नय निदपै तारी जी । मुनि गुणधारी बुध विस्तारी पाठक पूजो अविकारी जी॥ ॥ इति उपाध्याय स्तुति ॥४॥8॥
॥ ॥ अथ पंचमपद नमस्कारः॥॥.. ॥ॐ॥दंशण नाण चरित्त करी। वर शिवपद गामी । धर्म शुक्लसु चि चक्रसें । आदिम खय कामी ॥ १ ॥ गुण पमत्त अपमत्ततें । जये अंतरजामी । मानस इंदिय दमनन्त । शम दम अनिरामी॥२॥चारुति घन गुण गण जरयो ए। पंचम पद मुनिराज । तत्पद पंकज लमतहै हीर धर्मके काज ॥ ३॥ इति साधुपद चैत्यवंदनं ॥५॥ ॥
॥ ॥ अथ साधु पद स्तवन लि०॥॥ ॥ॐ ॥ मालन मालन मति कहो ( एचाल) निकषाया जगजन कहै। धारे चरगति बसनसें रोसहो (मुनिंदजी) रागहीन नय तुं करै । (साहि बा) शिव रमणीसें हेतहो ( मुनिंदजी)॥१॥सर्वप्रमादतजी रहै (सा० )
पूरब कोमहो (मु०) शत सोगम आगम करै (सा० ) लघुकाले गुण आदिहो मु०॥२॥स्त्यानर्षि निद्रानदै सा। पामें कर्म निकंद हो(मु०) प्रचला निद्रामें रही (सा० )। बारम गुणनो बास हो (मु०)॥३॥ स्थिति रस घात प्रमुख करै (सा०) जो गुण संख्या तीत हो (मु०) तो पिण तिण जगमें लही (सा०) त्रिक धन गुणनी ख्यात हो (मु०)॥४॥ रयण त्रयसें शिव पथें (सा० ) साधन परवर जीव हो (मु०)। साधु हुवई तमु धर्ममें (सा.) कुशल भवतु जगती वहो (मु०)॥५॥ इति ॥५॥
॥ ॥ अथ साधू पद स्तुतिः ॥ ४ ॥ ॥ॐ ॥ सुमति गुपतिकर संजम पालै दोष बयालीश टालैजी। षटकाया गोकल रुख वालै नवबिध ब्रह्मव्रत पालैजी । पंच महाबत सूधा पालै धर्म शुक्ल नजवालै जी ॥ कृपक श्रेणिकरि कर्म खपावे दमपद शुण नपजावे जी ॥ इति साधू पदस्तुति ॥ ५ ॥ ॥ * ॥
अथ साथ मजम पात दीपावेजी पत्र खपाने
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नवपदके (९ ) चै० (९ ) स्त० ( ९ ) थुई.
॥ * ॥ अथ दर्शनपद नमस्कार लि० ॥ ॥
॥ * ॥ हुय पुग्गल परियदृ । ढ परमित संसार | गंठिनेद तब क रिल है । सब गुण आधार ॥ १ ॥ कायक बेदक शशि संख । नवशम पण वार । बिनाजेण चारित्र नाए । नही हुवै शिव दातार ॥ २ ॥ श्रीसुदे व गुरु धर्मनी । रुचि लवन अभिराम । दरशनकुं गणि हीर धर्म । ग्रह निश करत प्रणांम ॥ इति दर्शनपद नमस्कारः ॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ अथ दर्शनपद स्तवन लि० ॥
॥
॥ ॥ रामचंद्र बाग आंबो मोह रह्योरी (ए चाल ) ॥ ॥ देव श्रीजिनराज । गुरुते साधु जल्योरी । धर्म जिनेश्वर प्रोक्त । लक्षण बोधि तोरी ॥ १ ॥ बोधलानके काज । सप्तम नरक जलोरी । तेण बिना सुर लोक । तातें अधिक बुरोरी ॥ २ ॥ मिथ्या तापे तप्त । बोधही बांहलहेरी । उपशम ख्यायक वेद । ईश्वर तीन कहेरी ॥ ३ ॥ नव सायर हे अपार ।
प्रस्ताव कोरी । जसु जाने ते होय । गोसपद मात्र खरोरी ॥ ४ ॥ यदनावें प्रमाण | नाण चारित नलारी । बोध धर्ममें जीव । लाने कु शल कलारी ॥ ५ ॥ इति दर्शनपद स्तवनं ॥ ६॥ ॥ * ॥
॥ * ॥ अथ दर्शन पदस्तुतिः ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ जिनपन्नत्त तत्व सुधासरधै समकित गुण नज वालै जी । नेद बेद करि प्रतम निरखी पशु टाली सुर पावै जी । प्रत्या ख्यानें समतुल्य जाप्यो गणधर अरिहंत सूराजी । ए दरशण पद नित नित बंदो जवसागरको तीरा जी ॥ इति दर्शनपद स्तुति ॥ ६ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ ग्यानपद नमस्कार लि० ॥ * ॥
*
३१३
॥ * ॥
॥ * ॥ विप्रादिक रस राम वन्हि । मितं श्रादम नाण । नाव मिला पसें जिन जनित । सुयं बीश प्रमाण ॥ १ ॥ नवगुण पडव नहि दोय | मण लोचन नांण । लोकालोक सुरूप जाण । इक केवल जाण ॥ २ ॥ नानावरणी नासथीए । चेतन नाण प्रकाश । सप्तम पदमें हीर धर्म । नित चाहत अवकाश ॥ इति ज्ञानपद चैत्यबंदनं ॥ *॥
॥ * ॥
४०
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३१४
रत्नसागर
॥ ॥ अथ ग्यानपद स्तवन । लि० ॥ * ॥
॥ * ॥ झांरै प्रति नारंगे (ए चाल ) जिनवर जाषित आगम नणि या । तत्व यथास्थिति गमिया जी ( म्हारै जगजनतारू ) ते उत्तम बरना कहायै । जवि जन ग्रहनिशि चाहै जी ( म्हा० ) ॥ १ ॥ न का कुपंथ सुपंथा । पेयापेय ग्रंथाजी ( म्हा० ) देव कुदेव हित हित धारी । जाणें जेण विचारी जी ( म्हा० ) || २ || श्रुति मति दोय द्री सा । तेण परो बिचारूजी । ( म्हा० ) नही मण केवल है वारू | जीव प्रत सुधारू जी ( म्हा० ) ॥ ३ ॥ प्रयवि जस्स बलें जगजाणें । लोकादिक अनुमानें जी । ( म्हा० ) त्रिभुवन पूजै जासु पसायें । धारी शुद्यवसायें जी ( म्हा० ) ॥ ४ ॥ नाणा वरणी उपशम हृयथी । चे तन नाकुं बिलशैजी ( म्हा० ) । सप्तम पद में नविजन हरषै । निशदिन कुशलता निरखै जी (म्हा० ) । इति नाणपद स्तवनं ॥ ७ ॥ * ॥
॥ * ॥ अथ ग्यान पदस्तुतिः ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ मतिश्रुत इंद्री जन्नित कहियै जहीये गुण गंभीरो जी । आतमधारी गणधर विचारी द्वादश अंग बिस्तारोजी । अवधि मनपर्यव केवल वलि प्रत्यक्ष रूप अवधारोजी । ए पांच ग्यानकुं बंद पूजो जविजननें सुखकारो जी ॥ ॥ इति ज्ञानपदस्तुति ॥ ७ ॥ ॥
॥ * ॥ अथ अष्टमपद नमस्कार लि० ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ जस्स पयायें साहु पाय । जुग २ समितेंद | नमन करें सुन जावलाय । फुण नरपति वृन्द ॥ १ ॥ जंपै धरि अरिहंतराय । करि कर्म निकंद । सुमति पंच तीनगुप्तियुत । दै सुक्ख प्रमंद ॥ २ ॥ इषु कृति मान कषाय थीए । रहित लेस सुचिवंत । जीव चरत्तकुं हीरधर्म । नमन करत नितसंत ॥ ३ ॥ इति चारित्रपद चैत्यवंदनं ॥ ८ ॥ ॥
॥ ॥
॥ * ॥ थचारित्र पद स्तवन लि० ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ निर्विकल्प अज निर्गुणी । चिदानास निस्संग (सुग्यानी सां लो) मूर्तिहीन चेतन करै । रूपी पुदगल रंग || ( सुग्यानी सां० )
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नवपदके (९) चै० (तथा ) २४ जिनचैत्य० ३१५ ॥ १॥ स्यक कारण बर्गणा ॥ कार्ये कारण नाव (मु०) कृत्वा जोग सुधामता । लब्धा संखस्वनाव (सु०)॥ २ ॥ पर्याप्ता लघु जोगमें । बृ घि लहै जुगमान (सु०) मध्ये वसु समयें लहै । अंते नौ तेजाण (सु) ॥ ३ ॥ सहकारी मानस मुखा । कारण रम्य वलेण (सु०) प्राप्ताघस्र प्र कारता। सप्त प्रनृतका तेन( सु०) ॥ ४ ॥ तद्रोधन रूपी जलो। चेतन संयमधाम ( सु० ) कर घन मिल पद धर्ममें । कुशल नवतु अनिराम (सु०)॥५॥ इति चारित्रपद० ॥ ॥
॥ॐ॥अथ चारित्र पदस्तुतिः॥१॥ ॥ ॥ करम अपचय दूर खपावै आतम ध्यान लगावै जी। बारै भावना सूधी नावै सागरपार नतारै जी । षटखम राजकुं दूर तजीने चक्री संजमधारै जी । एहवो चारित्रपद नित बंदो तम गुण हि तकारै जी॥ इति चारित्र पद स्तुतिः॥८॥॥
॥ ॥ ॥ ॥ अथ तपपद नमस्कार लि०॥ ॥ ॥॥श्री ऋषनादिक तीर्थनाथ । तनव शिव जाण । बिहिअंत रपि बाह्य । मध्य प्रादश परिमाण ॥ १ ॥ बसु कर मित आमोसही । आदि कलब्धि निदान । नेदै समतायुत खिणें । दृग्धन कर्म विमान ॥२॥ नव मो श्रीतपपद नलोए। इनारोध सरूप । बंदनसें नित हीरधर्म । दूरनवतु नवकूप ॥३॥इति तपपद चैत्यवंदनं ॥९॥ ॥ ॥॥
॥ ॥ अथ तपपद स्तवन लि०॥॥ ॥ॐ ॥ वारश नेद नण्या जिनराजै। वाह्य मध्यतणा जगकाजैरे। (शि वपद श्रेणिं)। तिण नव सिद्धितणा बरग्याता । जिनवर पिण तपना कर्ता रे॥१॥ (शि०) शमता सहिते जिनते नारी । जली कर्म चमु पिणहारी रे ( शि० ) जीव कनकसे कर्म कचोरा । दहै तप पावनका जोरारे (शि०)॥ २ ॥ तप तरुवरना कुशमहै शधि । देव नरनी फलते सिघी रे ( शि० ) पाप सकलहै तमनी राशी । तप जानूसें जाये नाशी रे (शि०)॥ ३ ॥ जस्स पसाये लहियै वारू । लब्धां सगली जगहित कारू रे (शि०) अति मुक्कर फुण साध्यता हीना । काम तातें बारू कीनारे।
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- रत्नसागर. (शि०)॥ ४ ॥ इला रोधन रूपी कहियै । तपपदही चेतन बहियैरे (शि०) पाठक हीर धर्म कृपासें । नवपद कुशलाईं नासेरे॥ शि० ॥ ५ ॥ इति श्रीतपपद स्तवनम् ।। ॐ ॥ ॥ ॥ ॥2॥
॥ अथ तपपदस्तुतिः॥॥ ॥ * ॥ इछारोधन तपते जाष्यो आगम तेहनो साखी जी । द्रव्य नावसें प्रादश दाखी जोगसमाधि राखी जी । चेतन निजगुण परणित पेखी तेहीज तप गुण दाखी जी । लबधि सकलनो कारण देखी ईश्वरसें सुख नाषी जी॥ इति तपपदस्तुतिः॥९॥॥
॥ ॥ अथ २४ जिन चैत्यवंदन लिं० ॥ ॥ ॥ ॥ श्री मद्देषन सर्वज्ञ । वृषनांक सुवर्णरुक् । जय देवाधिदेवाह। न्नानि राजेन्द्र नन्दन ॥ १ ॥ युगस्पादौ त्वयायेन । ज्ञान त्रय युतेन यत् । जनन्या मरुदेवायाः। पावनं जठरं कृतं ॥ २॥ इति षन स्तुतिः ॥ १॥
॥ ॥ अर्हता जितनाथेन । गजलांबन शालिना। जित शत्रू महीपाल । पुत्रेण कनकत्विषा ॥ ३ ॥ विजया कुक्षि रत्नेन । जगवंस्त्वयका जिनः । जिता रागादयो येन । वदेत्वां सर्वदा मुदा ॥ ४॥ इत्य जितस्तुतिः॥२॥
॥ * ॥ जितारि नृपतेर्वात् । शंनवः शंनवानिधः । शेनायानंदनो हे म। वर्णो गंधर्व लांउनः॥५॥ सर्व सौख्यप्रदो मुख्य । ज्ञान दर्शन संयु तः। मुनीनां पुङ्गवो देवो । नित्यं दिशतुमांजिनः॥६॥ इति शंभव स्तुतिः३
॥ॐ ॥ सिघार्थानंदनं सार्व । वीतरागं जगत्पतिं । श्री संबर समुत्पन्नं पूवगांकं हिरण्यन्नं ॥ ७॥ अभिनन्दन नामानं । विशुध हृदयः सदा । यस्तो ति परयानत्या । सना लोकेनिनंद्यते॥८॥ इत्यनिनंदन स्तुतिः॥४॥
॥ ॥ मेघानिध धरित्रीश । तनयो मङ्गलपदः । क्रौंच लक्षण क्षेम । मरीचि मङ्गलांगजः॥९॥ सत्यं मुमति नाथेश । मुमतिं तनुसत्तमां । जवि नां पुण्यकर्तृणां । स्वर्ग सौख्यवलिप्रदं ॥१०॥ इति सुमति स्तुतिः ॥ ५ ॥
॥ॐ॥ सुशीमा पुत्र सत्कोक । नदाति धराधर । धरा निधनृपोजूत । पा लक्षण धारक ॥ ११॥ नवाब्धौ जवसंकीर्णे । इस्तरे पततां नृणां । त्राणाय सततं देव । पद्मप्रन जिनेश्वर ॥ १२ ॥ इति पहावन स्तुतिः॥६॥
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२४ जिनचैत्य बंदन. ॥ ॥ श्रीसुपार्शनिधो देवः । पृथ्वीजः स्वस्तिकांकनृत् । प्रतिष्ट नृप संजात । श्चामीकर करोजिनः ॥१३॥ समुद्र इव गंभीरः। कर्मणां वेदने परः । यः सार्वः परमब्रह्मा । रतनौमि सदा विनूं ॥४॥इति सुपार्श्व स्तुतिः ७
॥ ॥ चंद्रप्रन प्रनोकांत । चंद्रलकण संयुत । स्तमापति विज्ञान । तमो व्यूह विनासनः॥१५॥ संसार जलधेर्नाथ । महसेन नृपोनवः । लक्ष्म -णा पुत्र मांस्वामि । नव केवल वोधनृत् ॥१६॥ इति चंद्रप्रन स्तुतिः॥८॥
॥ ॥ (अत्राद्यबत्रवंधः श्लोकः)॥ संस्तु तो वो ददत्वाशु । सुरासुर नरेश्वरैः। सुविधिर्वाछित शर्म । मुग्रीव नृपनंदनः ॥१७॥ यस्यासीजननी रामा। माननीया दिवौ कसां। मान मुक्तो वदातोयो। मायौ मकरलांजिनः ॥१८॥ इति सुविधनाथ स्तुतिः॥९॥8॥
॥ ..॥॥ (चामर बंधाविमौ)॥श्रीमठीतलनाथेश । नन्दा दृढरथात्मजा। जास्वत्सुवर्ण वदेह । श्रीवत्सांद्यांक धारकः॥१९॥ त्वदीय चरणांनोजः। सेवकानां वपुर्तृतां । प्राक् कृतं वृजनब्यूहं । पुष्टं शंजोद्यहे बिनौ ॥१०॥ इति शीतलनाथ स्तुतिः ॥१०॥॥
॥ॐ॥ विष्णु वैशार्क वद्देवो। बिष्णु पुत्रो हिरण्यनः । श्रेयो वृधि करो जस्रं । खमंगलांगिन नृऊिनः॥२१॥ हित्वा कर्म रिपून् सार्व । श्रेयांस त्रै यसैः सह । परज्ञान मयेनत्वं । महानन्दपदं परं । इति श्रेयांस स्तुतिः॥११॥
वरी वर्ति तरामीहा । नवतां अवतां यदि । ऊटिति छेदितुं चि ते। नोनब्याः प्रामु महारं ॥ २३॥ त्तदानजध्व मेनहि। वासुपुज्यं जया सुतं । वसुपूज्य कुलोत्तंसं । महिषां कंच रक्तनं॥२४॥इति वासुपूज्य स्तुतिः२
॥*॥ श्रीमग्रिमलनाथेंद्र । कृतवर्म समुद्भव । शूकरांक धर श्यामा । पुत्रकल्याण दीधिते॥२५॥चंद्रवानिमल झान । त्वदीय स्मरणं विना। कुर्व नप्येतिनो ब्रह्म। प्रक्रियां नातिविस्तरां ॥ २६॥ इति विमलस्तुतिः॥१३॥ _*॥ हेमवर्णस्य पुत्रस्य । सुयशः सिंह सेनयोः। देवस्य श्येनचिन्हस्य । वर्यानन्त गुणोदधेः॥२७॥ इंद्रादयोपि यस्यांतं । गुणानां लेनिरे नहि । अनन्तस्य गुणान्तस्य । कमोवक्तुं नरः कथं ॥२८॥ इत्यनन्तस्तुतिः॥१४॥
॥*॥ सुब्रतापुत्र वज्रांक । जानुवंशार्कसन्निन । कनकपन सर्वज्ञ। ध
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रत्नसागर. र्मनाथानिधेश्वर ॥ २९ ॥ तवागोपि पुरश्चारी। नृतले यात्यशोकतां । अनु त्तरफलाः संति । सतां संगत योपिहि ॥३०॥ इति धर्मनाथ स्तुतिः ॥१५॥
॥॥ विश्वसेन धराधीशं । नन्दनं मृगलवाणं । आचिरेयं सुवर्णागं । क लायामि जिनेश्वरं ॥३१॥ तं श्रीमहांति नामानं । यस्याग्रे कुर्वते मुदा। प्राज्यां सुमनसां वृष्टिं । विबुधा विबुधप्रियां ॥३१॥ इति शांतिनाथ स्तुतिः
॥ श्रीयुतायाः श्रियपुत्र । श्रेयस्कर हिरण्यन । सूरि नूपति संजात । बागलाणधारक ॥३३॥ कुंथुनाथजिनेशस्य । तीर्थकर जगत्पते । मदीयं पापसंदोहं । नवांतर कृतं धनं ॥३४॥ इति कुंथुनाथ स्तुतिः॥१७॥ १ ॥
॥ ॥ सुदर्शन नृपोतं । नन्दावकि संयुतं । अंनोज वन्निराले। देवीपुत्रं सुवर्णनं ॥३५॥ जगन्मुख्यागुणाः सर्वे । धुर्यप्रनुतया जिनं । च रीकर्मि नमस्तस्मा । अरायपरमात्मने ॥३६॥ इत्यरनाथ स्तुतिः॥१८॥
॥ॐ॥ कुंन प्रनावती पुत्रौ । नीलवर्णो घटांकनृत् । जगन्मित्र इव ध्वा न्त । नाशना प्रिदितः सदा ॥३७॥ नत्र त्रय युतोनाति । देवयो विष्टपत्र ये। तस्य श्रीमद्धिनाथस्य । स्मरणेन मुदा सखे ॥३८॥ इति मन्निनाथ स्तुतिः
॥७॥ सुमित्र नृपतेः सूनो। पद्माकुदि पवित्रकृत् । कुर्म लक्षण धर्म दायक श्यामलहवे ॥३९॥ मुनिसुबत देवेन । वीणकारि मंगल । देहि त्वं मेव्ययीनावं । पदं तत्पुरुषोत्तमः॥४०॥ इति मुनिसुव्रत स्तुतिः ॥२०॥
॥8॥श्रीमप्रिजय नूपाल । कुलोत्तंस हिरण्यरुक । वप्रासुत नमिना थ। नीलोत्पल सदंकनृत् ॥४१॥ यस्ते पंच जनोदेवः । निन्दाच कुरुतेश्व यं । सएति परमझानं । कोपि नात्र संशयः॥४२॥ इति नमिनाथ स्तुतिः।
॥ ॥ शिवायास्तनयेवर्ये । समुद्रविजयोनवे । हरिवंश हरौ शंजौ। शंखांके कमल प्रने॥ ४२ ॥ त्यक्त राजी मती स्नेहे । नेमनाथे जितस्मरे । सिधि प्रमदयामाला। प्रत्यकेपि जिनेश्वरे ॥४४॥ इति नेमनाथ स्तुतिः २२
॥ अवशेनाख्य नूपाल । सुतेन परमष्टिना । वामेयेन दितायेन । कमठ स्यानिमानता ॥ ४५ ॥ तस्मै श्रीपार्श्वनाथाय । नमोस्तु मामक सदा। पवनासन चिन्हाय। नीलवर्णाय संनवे॥४६॥इति श्रीपार्श्वनाथ स्तु० । ॥ ॥ श्रीमत्सिघार्थ वंशार्क । त्रिशलेय जगन्मणे । महा नाद ध्वजा
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. २४ जिन (तथा) नवपद चैत्यबंदन ३१९ हैत । कल्याणं कर सर्बदा ॥ ४७ ॥ चरमस्तीर्थ कृमीर । मोहेनहनने मृ गात् । त्वज्ञक्ति दत्तचित्ताय । कमलां देहिमे जिनः॥४८॥ इति स्तुः॥२४॥
॥ ॥ इति श्रीदमा कल्याणजी कृत २४ जिनेश्वर स्तवना संपूर्णम् ॥ __॥ ॥ अथ बुटकर नमस्कार लि० ॥१॥
॥ ॥ यत्र श्रीजरतेश्वरः शुचिमनाः पूर्वादि दिनुक्रमात् । तीर्थेशः किल युग्मवर्णवसुदिक संख्यान संख्यश्रियः । साधु स्थापयतिस्म विस्मित हृदा दृश्यं नगाधीश्वरं । तं चाष्टापद तीर्थराजमनिशं द्रष्टुं समीहे स्वयं ॥१॥ इत्यष्टापद स्तुतिः ॥ ॥
॥ॐ॥ लसनि पंचाशदधीश्वरालय। विराजिते श्रीमति शाश्वताश्रये। नन्दीश्वरे बीपवरे जिनेश्वरान् । वंदे प्रमोदानवनीति शांतये ॥१॥॥ * ॥ इति नंदीश्वर स्तुतिः ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥शकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त मेघो। पुरिततिमिर जानुः कल्प वृतोपमानुः। नवजल निधिपोतः सर्व संपत्ति हेतुः । स भवतु सततंबः श्रे यसे पार्श्व देवः॥ इति श्री पार्श्व जिन स्तुतिः ॥ * ॥ ॥॥ - ॥ ॥ दर्शनारित ध्वंसी। वंदना सांगित प्रदः । पूजना त्पूरकः श्री पां। जिनःसादात्सुरद्रुमः॥१॥इति जिन स्तुतिः॥ ॥ ॥१॥
॥ ॥ सुवर्ण वर्ण गजराजगामिनं । प्रलंब वाहु सुविशाल लोचनं । नरा मरेंद्रे स्तुतपादपंकजं । नमामि नक्तया षनं जिनोत्तमं ॥ १॥ ॥ इति आदिजिन स्तुतिः ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ नमस्कार समोमंत्रः । शत्रु जय समोगिरिः। वीतराग समो देवो। न नूतो न भविष्यति ॥१॥ दिठे तुह मुहकमले । तिन्निविणहाइ निरवसेसाइं। दारिदं दोहग्गं । जम्मंतर संचियं पावं ॥ १ ॥ पाताले यानि बिंबानि । यानि बिंबानि नूतले। स्वर्गेपि यानि बिंबानि । तानि वंदे निर न्तरं ॥१॥ प्रशमरसनिमग्नं दृष्टियुग्मं प्रशन्नं । वदनकमलमंकः कामिनीसं गशून्यः। कर युग मपि यत्ते शस्त्र संबंध वंध्यं । तदासि जगति देवो वीतराग स्त्वमेव ॥ १ ॥ ॥ इति सर्व जिन स्तुतिः॥१॥
॥ ॥ हत्था जेह सुलक्षणा । जे जिनवर पुजन्त । एकण धम्में बा
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३.२०
रत्नसागर.
हिरा । परघर कम्मकरं ॥ १ ॥ जव बीजांकुर जनना । रागाद्याःदय मु पागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा । हरो जिनोवा नमस्तस्मै ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ ॥ अथ सदाके देववंदनमें (तथा) दशमें दिन । नदी पारणकी विधिमें कहका ( चै० ) ( स्त० ) थुई लि० ॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ नवपद चैत्यवंदन ॥ ॥
॥ ॐ ॥ जो घुरि सिरि अरिहंत मूलदढ पीढिपइनि । सिद्धि र नव काय साहु चिहुंसाहगरिठिन । दंसण नाण चरित्त तवहिं परसा सुन्द रू । तत्तक्खर सर वग्ग लधि गुरुपय दल मंबरू । दिशिवाज जक्ख जक्खणी मुह सुर कुसुमेहिलंकियन । सो सिङ्घचक गुरुकप्पतरु अझ मम वंटि यदिय ॥ १ ॥ * ॥
॥ *॥
॥
॥ * ॥ पुनः नवपद चैत्यवंदन लि० ॥ ॥ श्री अरिहंत उदार कांति । प्रति सुन्दर रूप । सेवो सिद्ध नन्तशांत । तम गुण नूप ॥ १ ॥ आचारज नवजाय साधु । शमता रस धाम । जिनभाषित सिद्धांतशुद्ध । अनुभव अभिराम ॥ २ ॥ बोधबीज गुण संपदाए | नाण चरण तव शुद्ध । ध्यावो परमानन्दपद । ए नवपद प्रवि रु६ ॥ ३ ॥ इह परभव आनन्द कंद | जगमांहि प्रसिधौ । चिंतामणि समजास जोग । बहु पुण्यै लौ ॥ ४ ॥ तिहु प्रण सार अपार एह महिमा मनधारो | परिहर परजंजाल जाल । नित एह संजारो ॥ ५ ॥ सिधचक्र पदसेवतां । सहजानन्द स्वरूप | अमृतमय कल्याण निधि । प्रगटे चेतन जूप ॥ ६ ॥ इति श्री सिधचक्र नमस्कार संपूर्णम् ॥
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॥ ॐ ॥
॥ ॥ अथ नवपद वृद्धस्तवन लि० ॥ ॥
॥ * ॥ सुरमणी समसहु मंत्रमां | नवपद निरामी रे लोय। (अहो नव ० ) करुणा सागर गुणानिधी । जग अंतरजामीरे लो० । (अहो जग ० ) ॥ १ ॥ त्रिभुवन जनपूजित सदा । लोकालोक प्रकासी रे । लो० (अहो लोका० ) । एहवा श्री अरिहंत जी । नमुं चित्त उल्हासीरे लो० । ( ० न० ) २ । अष्ट करम दलक्ष्य करी । थया सिद्ध सरूपी रे लो० । (प्र० थ० ) सि नमो जवि नावथी । जे अगम अरूपी रे लो० ( ० जे )
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नवपद चैत्य, स्तवन, थुई. ३२१ ॥३॥ गुण उत्तीसे सोनता। सुंदर सुखकारीरे लो। (अ० सुं० ) आ चारज तीजै पदै। वं अविकारीरे लो। ( अहोवं० ) ॥ ४ ॥ आगम धारी नपशमी। तप पुविध आराधीरे लो। ( अ० त० ) चोथै पद पाठ क नमो। संवेग समाधीरे लो। अ० सं० ) ॥ ५॥ पंचाचार पालणपरा पंचाश्रव त्यागीरे लो। (अहोपं० ) गुण रागी मुनि पांचमें । प्रण, वम जागीरे लो। (अ० प्र०)॥६ ॥ निज परगुणने नेनखै ॥ श्रुत श्रक्षा
आवै रे लो । (अ० श्रु०) है गुण दरशण नमो। आतम शुन्न पावै रे। (लो० अ० आ०)॥७॥ ग्यान नमो गुण सातमें । जे पंच प्रकारे रे लो० ( अ० जे० ) लोकादिक षद द्रव्यना सहुन्नाव विचारैरे लो (अ० स० )॥ ८ ॥ आठमें चारित्र पद नमो । परनाव निवारी रे (लो० अ०प० ) खंत्यादिक दस धर्मनो। जेह छै अधिकारी रे लो । (अ० जे०)॥९॥ नवमें वलि तपपद नमो । बाह्याभ्यंतर दैरे लो० । (अ० बा० ) बांध्या काल अनंतना।जे कर्म न दे रे लो। (अ० जे० ) ॥१०॥ए नवपद बहुमानथी । ध्यावै शुन्न नावै रे लो । (अ० ध्या० ) नृप श्री पालतणी परे । मन वंचित पावरे लो। ( अ० म० ) ॥ ११ ॥
आसू चैत्रक माशमां । नव आंबिल करियैरे लो। ( अ० न० ) नवनेली विधियुत करी। शिव कमला वरियैरे लो। (अ०शि०)॥ १२ ॥ सिध चक्रनी बहुपरै । वर महिमा कीजैरे लो। ( अ० व० ) श्री जिनलान कहै सदा । अनुपम जश लीजैरे लो०। (अ० अ०)॥१३॥ इति०॥ * ॥
॥ * ॥ पुनःनवपद स्तवन लि० ॥ॐ॥ ॥ॐ॥ (राग मारु)॥ तीरथनायक जिनवरू जी । अतिसय जास अनूप । सिघ अनन्त महागुणी जी । परमानंद सरूप । (विक मन धारज्योरे)॥१॥धारज्यो नवपदध्यान (न० श्री आचारज गणधरूरे । गुण उत्तीश निवास। पाठक पदधर मुनिवरू जी। श्रुतदायक सुविलाश (०)॥२॥सुमति गुपतिधर सोनता जी । साधू शमतावंत । सम्यग् दर्शन सुंदरू जी । ज्ञान प्रकाश अनन्त । (ज०)॥३॥संबर साधना चरण ने रे। तप नत्तम विधि होय । ए नवपदना ध्यान थीरे। निरुपाधिक
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रत्नसागर.
सुख होय । ( ० ) ॥ ४ ॥ अमृतसम जिनधर्मनोरे । मूलए नवपद जा | अविचल अनुभव कारणें जी । नितप्रतिनमत कल्याण ( ० ) ॥ ५ ॥ || ❀ || FF: || # ||
॥ * ॥ ( राग प्रजाती) नवपद ध्यान धरोरे (जविका न०) मन व च काया कर एकते। बिकथा दूर हरो रे ( न० ॥ १ ॥ मंत्रजमी प्ररुतंत्र घरा । इन सबकों बिसरोरे । अरिहंतादिक नवपद जपनें । पुण्य जंकार नरोरे ॥ २ ॥ (न० ) अमसिध नव निध मंगल माला । संपति सहज व रोरे । लालचंद याकी बलिहारी । शिवतरु बीज खरोरे ॥ ३ ॥ ( नव० ) ॥ इति श्रीसिधचक्र स्तवनं ॥ ॥
॥ * ॥
॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ * ॥ अथ नवपद थुई लि० ॥ * ॥
॥ ॥ नित प्रति हुं प्रणमुं सिवचक्र सुन नाव । हिवकारज सिद्धि नो लाधो एह उपाय । ऊ नाम पसायें आरति व्याधि पुजाय । इग तुक अनुग्रहाथी सुख संपति मुऊ थाय ॥ १ ॥ श्री अरिहंत नमिये सिद्ध सूरी नवज्ञाय । मुनिवर त्रिक करनें देशण नाण सुहाय । दुगविधि चारितें बुध विध तप मन जाय । ये नवपद ध्यावतां निरुपम शिव सुख थाय ॥ २ ॥ विद्या परवादै जानो ए अधिकार | श्रीगुरु उपदेशें सिद्धचक्र धार । प्रवच न अनुसारें जाप्यो एह विचार । जविजन नित ध्यावो सुरतरु गुणनंकार ॥ ३ ॥ जिनधरम अनुरागी चक्केसरि सुखकार । सेवक पै सुख संपति परिवार। हिव निद्धि नदयकरि चारित्र नंदी मन जाय । जिनचंद सूरी सर खरतर पति सुपसाय ॥ * ॥ इति नवपद स्तुतिः ॥ ॥ 1111 थ जैतीसंयुक्त नवपदली करण विधि जिं० ॥ ॥ ॥ * ॥ ( प्रथम ) सोज शुदि ७ (अथवा ) चैत्रसुदि ७ सें बनी स रू करे । ( कदास ) तिथि घटी हुवे तो बह से, वढी होय तो, आठम सें सरू करै । (पिण) आंबिल नव पूनिमतक करै । ( तिहां ) प्रथम नू मि शुद्ध करके । मांणादिक में चित्रत करे । पीछे बाजोट ऊपर सिद्ध चक्र थापे त्रिकाल पूजा करें। (सोलिखते हैं ) प्रजात समय राई परिक्क मण करके। पीछे वस्त्र मिले है। (जहां ) सिद्ध चक्र स्थापना हे । तहां
॥* ॥
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नवपद व्लीकरण बिधि.
३२३ आयके पांच शकस्तवे देव वांदे। पीछे नव चैत्ये । (अथवा) नव प्रतिमा आगे। नव चैत्यवंदण करें। वास होप पूजा करें। पीछे केसर चंदनसें पू जा करें। पीछे मध्यान्ह समय, पांचशक स्तवे देव बांदै । पीने गुरु पासे आयके । राई आलोवे । अनुनिमि खमायके विलनो पञ्चक्खाण करै। प्रथम अरिहंत पदका वरण सपेद है। (इससे) आंबिल में चावल (अने) गरम पाणी यह दोइ द्रव्य लेसुं । असो आंबिल पचखै । (पी) अरिहंत पदके बारे गुण है सो चिंतविके बारै नमस्कार करै । सो लिखते हैं (प्रथम सर्व ठिकाणे) इजामिखमासमणो । वं० इत्यादि कहिके नमस्कार करै ।।
॥ ॥अरिहंतके. १२ गुणः॥ॐ॥ १॥ अशोक वृद्ध प्रति हार्य संयुताय श्री अरिहंताय नमः॥ २॥ पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि॥ ३॥ दिव्यध्वनि प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ४॥ चामरयुग प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ५॥ स्वर्ण सिंहासण प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ६॥नाममल प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ७॥ऽनिप्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ८॥त्रत्रय प्रातिहार्य संयुताय श्रीअरि०॥ ९॥झानातिशय संयुताय श्रीअरि०॥ १०॥ पूजातिशय संयुताय श्रीअरि ॥
११॥ वचनातिशय संयुताय श्रीअरि०॥ . ___ १२॥ अपाया पगमातिशय संयुताय श्रीअरि०॥
॥ ॥ इत्यादि नमस्कार करके । अन्नत्थू ससियणं । (कहिके) १२ बारे लोगस्सको कानसग्ग करें। एकलोगस्स प्रगट कहै । पीछे स्वस्थान क जाकें । चैत्यवंदन करै । पचक्खाण पारिके। आंबिल करै । पहले ज ल पीवे (जब) चैत्यनंदन करिके पावै । पीजै फेर चैत्यनंदन करिके तिवि हार पचक्खाण करै । ( शी णमो अरिहंताणं)। इस पदको २००० गुणनो करै । श्रीपालजीको चरित्र नवपद महिमा सुरें। पूण पहिर दिन
तिशय संयुताको अन्नत्य प्रगट को न के। पतिवि
गुणन पचक्लाण करत्यनंदन कारखाण पार गट कहै । म कहिके ) १२
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रत्नसागर.
रहणेंसें (तीसरीवेर) पांच शक्रस्तवे देव वांदे । सामायक लेके दिन बते पक्किमणो करै । आरती के समय, दीप, धूप, कुशम, पूजा करे। (अथवा ) पहिले भारती प्रमुख करिके पीछे परिक्रमणो करै । ( सोनेंके समय ) इ रिया बही पक्किमके । चैत्यबंदन करिके । राई संथारा गाथागुणके सोवै । निद्रा नावे (जहांतक) नवपदका गुण स्मरण करे ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ द्वितीय दिवश विधि लि० ॥ ॥
॥ ॐ ॥ अब इसीतरे दूसरे दिन प्रजाति करणी सब करिके, सिद्धपदका लाल वर्ण है। (इसीसें) गहुँके रोटीको (आंबिल करें (झी णमो सि i) इसपदको गुणगो दो हजार करै । सिपदके आठगुण है। सो (८) गुणांको गुरु नमस्कार करावे ( सो लिखते हैं ) । ॥ * ॥ सिद्ध पदके (८) गुण ॥
॥
१ ॥ अनन्त ज्ञान संयुताय श्रीसिधाय नमः ॥ २ ॥ अनन्त दर्शन संयुताय श्रीसि० ॥
३ ॥ अव्यावाध गुण संयुताय श्रीसि० ॥ ४ ॥ अनन्त चारित्र गुण संयुताय श्रीसि० ॥ स्थिति गुणसंयुताय श्रीसिं० ॥
५ ॥
६ ॥
रूपी निरंजन गुण संयुताय श्रीसि० ॥ ७ ॥ गुरुलघु गुण संयुताय श्रीसि० ॥ ८ ॥ अनन्तवीर्य गुण संयुताय श्रीसि० ॥
॥ ॥ यह आठे नमस्कार करिके । अन्नत्थूससि० आठ लोगस्सकौ कानसग्ग करै । एक लोगस्स कहिके पारै । पीछे पूर्वोक्त करणी अनुक्रमसें करे ॥ * ॥ इति द्वितीय दिवश विधिः ॥ २ ॥ *॥
11*11
॥ * ॥ अथ तृतीय दिवश विधि लि० ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ पूर्वोक्त विधिसें प्रजात कर्तव्य करें । आचार्यपद पीले वर्ण है (इसीसे ) चिणाकी दालका बिल करे। (झी णमो आयरियाणं ) इस पदको गुणनो दोहार करै । प्राचार्य पदके ( ३६ ) गुण याद कर के, बत्तीस नमस्कार करै ( सो लिखते हैं ) ॥ ॥
॥ ॐ ॥
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जेती संयुक्त नवपद नवीकरण विधि.
॥ * ॥ आचार्य पदके (३६) गुण ॥ ॥
१ ॥ प्रतिरूप गुणसंयुताय श्री आचार्याय नमः ॥ २ ॥ सूर्यवत्तेजस्वी गुणसंयुताय श्री प्राचार्याय नमः ॥ ३ ॥ युगप्रधानागम संयुताय श्री प्राचार्याय नमः ॥ ४ ॥ मधुरवाक्य गुण संयुताय श्रीप्राचार्याय नमः ॥ ५ ॥ गांभीर्य गुण संयुताय श्रीप्राचार्याय नमः ॥ ६ ॥ धैर्य गुणसंयुताय श्रीमा० ॥
७ ॥ उपदेश गुणसंयुताय श्रीप्राचार्याय नमः ॥ ८ ॥ परिश्रावी गुण संयुताय श्रीमाचा० ॥ ९ ॥ सौम्य प्रकृति गुण संयुताय श्रीप्रा०
१० ॥ शील गुण संयुताय श्री० ॥
११ ॥ विग्रह गुण संयुताय श्री० ॥
१२ ॥ अविकथक गुण संयुताय श्रीप्राचार्याय नमः ॥
१३ ॥ चपल गुण संयुताथ श्रीमा० ॥
१४ ॥ प्रसंत वदनगुण संयुताय श्रीमा० ॥
१५ ॥ मा गुण संयुताय श्री० ॥
१६ ॥ जुगुण संयुताय श्रीमा० ॥ १७ ॥ मृदु गुण संयुताय श्रीप्रा० १८ ॥ सर्व संगमुक्तिगुण संयुताय श्रीप्रा० ॥ १९ ॥ द्वादश विधि तपगुण संयुताय श्रीमा० ॥ २० ॥ सप्तदशविध संयमगुण संयुताय श्री० ॥ २१ ॥ सत्यबतगुण संयुताय श्रीप्रा० ॥ २२ ॥ शौचगुण संयुताय श्रीमा २३ ॥ किंचन गुण संयुताय श्रीमा● २४ ॥ ब्रह्मचर्यगुण संयुताय श्रीमा० २५ ॥ नित्य भावना जावकाय श्रीमा २६ ॥ शरण जावना जावकाय श्रीमा
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रत्नसागर.
२७ ॥ संसार स्वरूप जावना जावकाय श्रीप्रा० ॥ २८ ॥ एकत्व स्वरूप भावना जावकाय श्रीप्रा० ॥ २९ ॥ अन्यत्वं आवना जावकाय श्रीमा० ॥ ३० ॥ शुचि भावना जावकाय श्रीमा० ॥ ३१ ॥ श्रव भावना जावकाय श्रीप्रा० ॥ ३२ ॥ संबर जावना नावकाय श्रीप्रा० ॥ ३३ ॥ निर्जरा भावना नाव काय श्री० ॥ ३४ ॥ लोक स्वरूप जावना नाव काय श्री० ॥ ३५ ॥ बोधकुर्लन भावना जावकाय श्री० ॥
O
३६ ॥ धर्म्म दुर्लभ भावना जावकाय श्री० ॥
॥ * ॥ यह बत्तीस नमस्कार करिके । अन्नत्थू ससिएणं ( इत्यादि) कहि के । बत्तीस (३६ ) लोगस्सको कानसग्ग करै । एक लोगस्स ऊँचे स्वरसें कहिके पारे । यथोक्त करणी । अनुक्रमसें करे ॥ ॥
॥ * ॥ अथ चतुर्थ दिवश विधि लि० ॥
॥
॥ ॐ ॥ ( ँझी णमो नवझायाणं ) इस पदको ( २ ) हजार गुणनो करे | हरया मूंग की दाल प्रमुखका बिल करे । नपाध्याय पदके (२५) गुण यादकर के नमस्कार करे ॥ * ॥
॥ ॥ उपाध्यायके (२५) गुण ॥ ॥
१ ॥ आचारांग सुत्र पठन गुण युक्ताय श्रीनपाध्याय नमः ॥ २ ॥ सुयगमांग सुत्र पठन गुण युक्ताय श्रीउपाध्याय नमः ॥ ३ ॥ श्रीठाणांग सुत्र पठन गुण युक्ताय श्रीनरः ॥
४ ॥ श्रीसमवायांग सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥ ५ ॥ श्रीभगवती सुत्र पवन गुण युक्ताय० ॥ ६ ॥ श्रीमाता सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥ ७ ॥ श्रीनुपाशकदशा सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥ ८ ॥ श्रीमन्त गरुदशा सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥ ९ ॥ श्रणुत्तरोवबाई सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥
॥ * ॥
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जैती संयुक्त नवपद लीकरणबिधि. ३२७ १०॥श्रीप्रश्न व्याकरण सुत्र पठन गुण यु०॥ ११॥श्रीविपाक सुत्र पठन गुण यु०॥ १२॥ नत्पाद पूर्व पठन गुण यु०॥ १३॥ आग्रायणी पूर्व पठन गुण युक्ताय०॥ १४॥वीय प्रवाद पूर्व पठन गुण युक्ताय० ॥ १५॥ अस्ति प्रवाद पूर्व पठन गुण युक्ताय०॥ १६॥ज्ञान प्रवाद पूर्व पठन गुण युक्ता०॥ १७॥ सत्य प्रवाद पूर्व पठन गुण यु०॥ १८॥ आत्म प्रवाद पूर्व पठन गुण युक्ताय० ॥ १९॥कम्मे प्रवाद प्रवे पठन गुण युक्ताय०॥ २०॥ प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व पठन गुण युक्ताय० ॥ २१॥ विद्या प्रवाद पूर्व पठन गुण युक्ताय०॥ २२॥ अबिंध्य प्रवाद पूर्व पठन गुण यु०॥ २३॥ प्राणायाम प्रवाद पूर्व पठन गुण यु०॥ २४ ॥ क्रिया विशाल पूर्व पठन गुण यु०॥ २५॥ लोक बिंडसार पूर्व पठन गुण यु०॥
* ॥ इस रीतसे पचवीश नमस्कार करै (खमाहोके ) अन्नत्थूस (इत्यादि कहिके) पचवीश लोगस्सका कानस्सग्ग करै। एक लोगस्स क हके पारे। (पी) पुर्वोक्त करणी करै। इति चतुर्थ दिवश विधिः॥ ॥
॥अथ पंचम दिवश विधि लि० ॥१॥ ॥ ॥ (नक्षी णमोलोए सबसाहूणं) इस पदको ( २ ) हजार गुणनो करै। साधु पद कालै वर्ण है (इससे) नमदका आंबिल करै । सर्व साधु पदके सत्तावीश गुण चिंतवके नमस्कार करै ॥ * ॥
॥ॐ॥साधु पदके (२७) गुण ॥ ॥ १॥प्राणातिपात विरमणव्रत युक्ताय श्रीसाधवे नमः॥ २॥ मृषावाद विरमण ब्रत यु श्रीसा॥ ३॥ अदत्तादान विरमण ब्रत यु० श्रीसा॥
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रत्नसागर. ४॥ मैथुन विरमण ब्रत यु० श्रीसा॥ ५॥परिग्रह विरमण ब्रत यु० श्रीसा॥ ६॥रात्रिनोजन विरमणबत यु० श्रीसा०॥ ७॥ पृथ्वीकाय रछकाय श्रीसा॥ ८॥अप्पकाय रदकाय श्रीसा०॥ ९॥ तेनकाय रदकाय श्रीसा॥ १०॥ वाकाय रदकाय श्रीसा॥ ११॥ वनस्पतिकाय रदकाय श्रीसा०॥ १२॥ त्रसकाय रदकाय श्रीसा॥ १३॥ एकेंद्री जीव रछकाय श्रीसा॥ १४ ॥बेइंद्रीजीव रक्षाय श्रीसा० ॥ १५ ॥ तेइंद्री जीव रक्षकाय श्रीसा॥ १६ ॥ चौरिंद्रीजीव रक्षकाय श्रीसा॥ १७॥ पंचेंद्रीजीव रदकाय श्रीसा॥ १८॥ लोन निग्रह काय श्रीसा॥ १९॥दमा गुण युक्ताय श्रीसा० ॥ २०॥शुन नावना नाव काय श्रीसा०॥ . २१॥प्रतिलेखनादि क्रिया शुधकारकाय श्रीसा॥ २२॥ संयम योग युक्ताय श्रीसा॥ २३॥ मनोगुप्ति युक्ताय श्रीसा०॥ २४॥ वचनगुप्ति युक्ताय श्रीसा॥ २५॥ काय गुप्ति युक्ताय श्रीसा॥ २६॥ सीतादि प्राविंशति परीशहसहण तत्यरायः॥ २७॥ मरणांत नपसर्ग सहण तत्पराय श्रीसा॥
॥ इस रीतसे सातवीश नमस्कार करै (खमा होके ) अन्नत्यू स० ( इत्यादि कहिके ) सातवीश लोगस्सका कानसग्ग करै । एक लोग स्स कहके पारे (पीने) पूर्वोक्त करणी करै । (यह पंच परमेष्टि पदके
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जैती संयुक्त नवपद नलीकरण विधि.
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सर्व गुण मिला सें) (१०८) होय (इसीसें ) जैनमें मालाके दाणे (१०८) होते है ॥ इति पंचम दिवश विधिः ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ षष्टम दिवस विधि लि० ॥
॥
॥
॥ ी णमो दंसणस्स ) इस पदको (२) हजार गुणनो करै । दर्शन पद सफेद वर्ण ( इसमें ) तंडुलका प्रांबित करे । सम्यक्तके सतस गुण चिंतव नमस्कार करै ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ सम्यक्तकें सतसहिद लि० ॥
१ ॥ परमार्थ संस्तवरूप श्री सद्दर्शनाय नमः ॥ २ ॥ परमार्थ ज्ञातृसेवन रूप सद्दर्शनाय नमः ॥ ३ ॥ व्यापन्नदर्शन वर्जन रूप सद्दर्शनाय नमः ॥ ४ ॥ कुदर्शन वर्जन रूप सद्दर्शनाय नमः ॥
५ ॥ शुश्रूषा रूप सद्दर्शनाय नमः ॥ ६ ॥ धर्म राग रूप सद्दर्शनाय नमः ॥ ७ ॥ वैयावृत्त रूप सद्दर्शनाय नमः ॥ ८ ॥ प्रियरूप सद्दर्शनाय नमः ॥
२९ ॥ सिद्ध विनयरूप सद्दर्शनाय नमः ॥ १० ॥ चैत्य विनयरूप सद्दर्शनाय नमः ॥ ११ ॥ श्रुत विनयरूप सद्दर्शनाय नमः ॥ १२ ॥ धर्म विनयरूप सद्दर्शनाय नमः ॥ १३ ॥ साधुवर्ग विनयरूप सद्दर्शनाय नमः ॥ १४ ॥ आचार्य विनयरूप सद्दर्शनाय नमः ॥ १५ ॥ उपाध्याय विनयरूप सद्दर्शनाय नमः ॥ १६ ॥ प्रवचन विनयरूप सद्दर्शनाय नमः ॥ १७ ॥ दर्शन विनयरूप सद्दर्शनाय नमः ॥
१८ ॥ संसारे जिनसार मिति चिंतनरूप सद० ॥
१९ ॥ संसारे जिनमतिसार मिति चिंतनरूपस० ॥ २० ॥ संसारे जिनमतिस्थित साध्वादिसार मिति चिंतनरूप सद्द० ॥
४२
॥
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रत्नसागर. २१॥ शंका दूषण रहिताय सदर्शनाय नमः॥ २२॥ कांदा दूषण रहिताय सद्दर्शनाय नमः॥ . २३ ॥ विचिकित्सा रूप दूषण रहिताय०॥ २४ ॥ कुदृष्टि प्रशंसा दूषण रहिताय॥ २५॥ तत्परिचय दूषण रहिताय०॥ २६ ॥ प्रवचन प्रनावक रूप स०॥ २७॥धर्मकथा प्रनावक रूप स०॥ २८ ॥ वादी प्रजावक रूप स०॥ २९ ॥ नैमित्तक प्रनावकरूप स०॥ ३०॥ तपस्वी प्रनावकरूप सद्द०॥ ३१॥ प्राप्तयादि विद्या नृत्यनावकरूप स०॥ ३२॥चूर्ण जनादि सिमनावकरूप स०॥ ३३॥ कविप्रनावकरूप सद्दर्शनाय नमः॥ ३४॥ जिनशाशने कौशलता नूषनरूप स०॥. ३५॥ प्रनावना नूषणरूप स०॥ ३६॥ तीर्थसेवा नूषणरूप स०॥ ३७॥थैर्यता नूषणरूप सदर्शनाय नमः॥ ३८॥ जिनशाशने नक्ति नूषणरूप०॥ ३९॥ नपशम गुणरूप सदर्शनाय नमः॥ ४०॥ संवेग गुणरूप श्रीस०॥ ४१॥ निर्वेद गुणरूप श्री सदर्शनाय नमः॥ ४२ ॥ अनुकंपा गुणरूप श्रीस०॥ ४३॥ आस्तिका गुणरूप श्रीस० ॥ ४४॥ परतीर्थकादि वंदन वर्जन रूप श्रीस०॥ ४५॥ परतीर्थकादि नमस्कार वर्जनरूप श्रीस॥ ४६॥ परतीर्थकादि आलाप वर्जनरूप श्रीस०॥ .. ४७.परतीर्थकादि संलाप वर्जनरूप ॥
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... ३३१
जैती संयुक्त नवपद क्लीकरण विधि. ४८ परतीर्थकादि अशनादि दानवर्जनरूप श्रीस॥ ४९॥ परतीर्थकादि गंधपुष्पादि प्रेषण वर्जनरूप श्रीस॥ ५०॥राजानियोगाकार युक्त श्रीस० ॥ ५१ ॥ गणानि योगाकार युक्त श्रीस॥ ५२॥ वलानि योगाकार युक्त श्रीस०॥ ५३॥ सुरानि योगाकार युक्त श्रीस०॥ ५४॥ कांतार वृत्याकार युक्त श्रीस०॥ ५५॥ गुरु निग्रहकार युक्त श्रीस० ॥ ५६॥ सम्यक्त चारत्र धर्मस्य मूलमिति चिंतनरूप श्री०॥ ५७॥ चारत्र धर्म पुरस्य धार मिति चिंतन श्रीस०॥ ५८॥ चारत्र धर्मस्य प्रतिष्ठानमिति चिंतन श्रीस०॥ ५९॥ चारत्र धर्मस्याधार मिति चिंतन श्रीस॥ ६०॥ चारत्र धर्मस्य लाजन-मिति चिंतन श्रीस०॥ ६१॥ चारित्र धर्मस्य निधि सन्निन मिति चिं० श्री०॥ ६२॥ अस्ति जीवेति श्रघानस्थान युक्त श्रीस०॥ ६३॥ सचजीव नित्यति श्रधान स्थान युक्त श्री० ॥ ६४॥ सचजीव कर्माणि करोतीति अचान स्थान यु० श्री०॥ ६५॥ सचजीव कृत कर्माणि वेदयतीति अघान स्थान यु०॥ ६६ ॥ जीवस्यास्ति निर्वाणमिति श्रधान स्थान युक्त श्री० ॥ ६७॥ अस्ति पुनर्मोको पायेति श्रधान स्थान यु० श्रीस०॥
॥* इस रीतसे सतसहि नमस्कार करै । ( खमाहोके ) अन्नत्थू ससि एणं० (इत्यादि कहिके (६७) लोगस्स (अथवा) ७ लोगस्सको काव सग्ग करै । एक लोगस्स कहके पारै । (पीजे पूर्वोक्त करणी करै ॥ * ॥
॥अथ सप्तम दिवश बिधि लि० ॥४॥ ॥ॐ॥ ( शी णमो नाणस्स) इस पदको (२) हजार गुणनो करै। झान पद नज्वल वर्ण है (इससे) तंमुलका आंबिल करै। इक्कावन नेद ग्यान पदके चिंतवके नमस्कार करै॥ ॥ ..
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रत्नसागर. ॥ * ॥ अथ ज्ञानपदके (५१) नेद लि० १॥ स्पर्श नेंद्री व्यंजनावग्रह मतिज्ञानाय नमः॥ २॥ रसनेंद्री व्यंजनावग्रह मति ज्ञानाय नमः॥ ३॥घ्राणेंद्री ब्यंजनावग्रह मति झानाय नमः॥ ४॥श्रोत्रंद्री व्यंजनावग्रह मतिज्ञानाय नमः॥ ५॥ स्पर्शनेंद्री अर्थावग्रह मतिज्ञानाय नमः॥ ६॥ रसनेंद्री अर्थावग्रह मतिज्ञानाय नमः॥ ७॥घ्राणेंद्री अर्थावग्रह मति ज्ञानाय नमः ॥ ८॥चकुरिंद्री अर्थावग्रह मति ज्ञानाय नमः॥ ९॥श्रोत्रंद्री अर्थावग्रह मति ज्ञानाय नमः॥ १० ॥ मनावग्रह मति ज्ञानाय नमः॥ ११॥ स्पर्शनेंद्री ईहा मति ज्ञानाय नमः॥ १२॥ रसनेंद्री ईहा मति ज्ञानाय नमः॥ १३॥घ्राणेंद्री ईहा मति ज्ञानाय नमः॥ १४॥ चरिंद्री ईहा मति ज्ञानाय नमः॥ १५॥श्रोत्रंद्री ईहा मति ज्ञानाय नमः॥ १६ ॥ मनें करी ईहा मति झानाय नमः॥ १७॥ स्पर्शनेंद्री अपाय मति ज्ञानाय नमः॥ १८॥ रसनेंद्री अपाय मति ज्ञानाय नमः॥ १९॥घ्राणेंद्री अपाय मति ज्ञानाय नमः॥ २०॥ चक्षुरिंद्री अपाय मति ज्ञानाय नमः॥ २१॥ श्रोत्रंद्री अपाय मति ज्ञानाय नमः॥ २२॥ मन करी अपाय मति ज्ञानाय नमः॥ २३॥ स्पर्शनेंद्री धारणा मति झानाय नमः॥ २४ ॥ रसनेंद्री धारणा मति झानाय नमः॥ २५॥घ्राणेंद्री धारणा मति ज्ञानाय नमः॥ २६ ॥ चक्षुरिंद्री धारणा मति० ॥
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जैती संयुक्त नवपद नलीकरण विधि. ३३३ २७॥श्रोत्रंद्री धारणा मति०॥ २८॥ मनो धारणा मति ज्ञानायनमः॥ २९॥ अदर श्रुत ज्ञानाय नमः॥ ३०॥ अनदर श्रुत झानाय नमः॥ ३१॥ संझी श्रुतज्ञानाय नमः॥ ३२॥ असंझी श्रुतज्ञानाय नमः॥ ३३॥ सम्यक् श्रुतग्यानाय नमः॥ ३४॥ मिथ्या श्रुतग्यानाय नमः॥ ३५॥ सादि श्रुतग्यानाय नमः॥ ३६ ॥ अनादि श्रुतग्यानाय नमः॥ ३७॥ सपये वसति श्रुतग्यानाय नमः॥ ३८॥अपर्य वसति श्रुतग्यानाय नमः॥ ३९॥ गमिक श्रुतग्यानाय नमः॥ ४०॥अगमिक श्रुतग्यानाय नमः॥ ४१॥ अंग प्रविष्ट श्रुत०॥ ४२ ॥ अनंग प्रविष्ट श्रुत०॥ ४३॥ अणुगामि अवधिग्यानाय नमः॥ ४४॥ अणूणगामि अवधिग्यानाय नमः॥ ४५ ॥ वट्टमान अवधि०॥ ४६॥हीयमान अवधि०॥ ४७॥ प्रतिपाती अवधि०॥ ४८॥अप्रतिपाती अवधि०॥ ४९॥ रुजुमति मनः पर्यवग्यानाय नमः॥ ५०॥ विपुलमति मनः पर्यवग्यानाय नमः। ५१॥लोका लोक प्रकाशक श्री केवलग्यानाय नमः॥
॥ ॥ इस रीतसे (५१) नमस्कार करै । (खमा होके ) अन्नत्थ ऊससिएणं० (इत्यादि कहै ) (५१) लोगस्सका कान्सग्ग करिके । प्रगट :
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- रत्नसागर.. लोगस्स कहै । पीने सर्व पूर्वोक्त करणी करें। इति सप्तम दिवश विधिः॥ ७॥
॥ * ॥ अथ अष्टम दिवश विधि लि०॥ * ॥ ॥॥(नक्षी णमो चारित्तस्स ) इस पदको ( २ ) हजार गुणनो करै । चारित्र पदका नज्वल वर्ण है । (इसीसें) तंडुलका आंबिलकरै । सि तर नेद चारित्र पदके। चिंतवके नमस्कार करै ॥ * ॥ ॥ॐ॥
॥ॐ ॥अथ चारित्र पदके (७०) नेद लि० ॥ * ॥ १॥प्राणाति पात विरमणरूप चारित्राय नमः॥ २॥ मृषावाद विरमणरूप चारित्राय नमः॥ ३॥अदत्तादान विरमण रूप चारित्राय नमः॥ ४॥ मेथुन विरमण रूप चारित्राय नमः॥ ५॥परिग्रह विरमण रूप चारित्राय नमः॥ ६॥कमा धर्म रूप चारित्रेभ्यो नमः॥ ७॥आर्यव धर्म रूप चारित्रेभ्यो नमः॥ ८॥ मृडता धर्म रूप चारित्रेभ्यो नमः॥ ९ मुक्तधर्म रूप चारित्रेभ्यो नमः॥ १०॥तपो धर्म रूप चारित्रेभ्यो नमः॥ ११॥ संयम धर्म रूप चारित्रेभ्यो नमः॥ १२॥ सत्य धर्म रूप चारि०॥ १३॥शौच धर्म रूप चारि०॥ १४॥अकिंचन धर्म रूप चारि० ॥ १५॥ बंन धर्म रूप चारि० १६ ॥ प्रथवी रक्षासंयम चारित्रेभ्यो नमः ॥ १७॥नदग रहा संयम चारि० ॥ १८॥ तेक रक्षा संयम चारि०॥ १९॥ बाऊ रक्षा संयम चारि०॥ २०॥ वनस्पति रक्षा संयम चारि०॥ २१॥ वेइंद्री रक्षा संयम चारि०॥
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जैती संयुक्त नवपद नजीकरण बिधि
२२ ॥ तेइंद्री रक्का संयम चारि० ॥ २३ ॥ चौरिंद्री रक्का संयम चारि० ॥ २४ ॥ पंचेन्द्री र संयम चारि० ॥ २५ ॥ जीव रक्षा संयम चारि० ॥ २६ ॥ प्रेा संयम चारि० ॥
२७ ॥ नपेक्षा संयम चारि० ॥
२८ ॥ अतिरक्त वस्त्र नक्तादि परठण त्यागरूप संयम चारि० ॥ २९ ॥ प्रमार्जन रूप संयम चारि० ॥
३० ॥ मनः संयम चारि० ॥
३१ ॥ वाक्संयम चारि० ॥
३२ ॥ काया संयम चारि० ॥
३३ ॥ आचार्य वैयावृत्यरूप संयम चारि० ॥ ३४ ॥ उपाध्याय वैयावृत्यरूप संयम चारि० ॥ ३५ ॥ तपस्वी वैयावृत्यरूप चारि० ॥ ३६ ॥ लघुशिष्यादि वैयावृत्य रूप चारि ॥ ३७ ॥ गिलाण साधु वैयावृत्यरूप चारि ० ॥ ३८ ॥ साधु वैयावृत्य रूप चारि० ॥ ३९ ॥ श्रमणो पाशक वैयावृत्यरूप चा० ॥ ४० ॥ संघ वैयावृत्यरूप चारि० ॥
४१ ॥ कुल वैयावृत्य रूप चारित्रे० ॥
४२ ॥ गए वैयावृत्य रूप चारि० ॥
४३ ॥ पशुपंगादि रहित वशति वसण ब्रह्य गुप्त चारि० ॥
४४ ॥ स्त्री हास्यादि विकथा वर्जन ब्रह्म गुप्त चा० ॥
४५ ॥ स्त्री प्राशन बर्जन ब्रह्म गुप्त चा० ॥
४६ ॥ स्त्री अंगोपांग निरीक्षण वर्जन ब्रह्म ० ४७ ॥ कुड्यंतर सहित स्त्री हाव नाव सुणन वर्जन ब्रह्म० ॥ ४८ ॥ पूर्व स्त्री संभोग चिंतन वर्जन ब्रह्म० ॥
३३५
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। ३३६
... रत्नसागर. ४९॥ अति सरस आहार वर्जन ब्रह्म॥
५० ॥अति आहार करण वर्जन ब्रह्म॥ . ५१॥ अंग विजूषा वर्जन ब्रह्म
५२॥ अणशण तपोरूप चारित्रेभ्योनमः॥ ५३॥ कणोदरी तपो रूप चा०॥ ५४ ॥ वित्ति संखेव तपो रूप चा०॥ ५५॥ रस त्याग तपो रूप चा०॥.. ५६ ॥ कायकिलेस तपो रूप चा०॥ ५७ ॥ संलेखणा तपो रूप चा०॥ ५८॥ प्रायवित्त तपो रूप चा०॥ ५९॥ विनय तपो रूप चा०॥ ६०॥ वेयावच्च तपो रूप चा०॥ .. ६१॥ सिज्काय तपो रूप चा०॥ ६२॥ध्यानतपो रूप चारित्रेभ्योनमः ॥ .. ६३॥ नपसर्ग तपो रूप चा०॥ ६४॥ अनंत ग्यान संयुक्त चा०॥ ६५॥ अनंत दर्शन संयुक्त चा०॥ ६६ ॥ अनंत चारित्र संयुक्त चा०॥ ६७॥ क्रोध निग्रह करण चा०॥ ६८॥ मान निग्रह करण चा०॥ ६९॥ माया निग्रह करण चा०॥ ७०॥ लोन निग्रह करण चारित्रेभ्यो नमः ॥ ..
॥९॥ इस रीतसे (७०) नमस्कार करै । (खमा होके)। अन्नत्थू ससि एणं० (इत्यादि कहै ) (७०) लोगस्सका कानसग्ग करिके। एक लोगस्स कहै (पी) पूर्वोक्त करणी सब करै । इति अष्टम दिवस विधिः ॥ ॥
_* ॥ नवम दिवश विधि लि० ॥ ॥ ॥(क्षी णमो तवस्स ) इस पदको (२) हसार गुणनो करै।
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जैती संयुक्त नवपद नवीकरणंबिधि.
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तप पढ़का नज्वल वर्ण है (इसी सें) तंडुलका बिल करे । पच्चास जेद तप प दके चिंतवके नमस्कार करे ॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥ अथ तप पदके (५०) नेद लि० ॥ ॥
१ ॥ यावत् कथक तपसे नमः ॥
२ ॥ इत्वर तप नेद तपसे नमः ॥ ३ ॥ बाह्य णोदरी तपनेद तपसे नमः ॥
४ ॥ अभ्यंतर कणोदरी तपनेद तपसे नमः ॥ ५ ॥ द्रव्यतप वित्ती संखेप तपभेद तपसे नमः ॥ ६ ॥ क्षेत्रतप बित्ती संखेप तपनेद तपसे नमः ॥ ७ ॥ कालतप वित्ती संखेप तपनेद तपसे नमः ॥ ८ ॥ नाव तप वित्ती संखेप तपनेद तपसे नमः ॥ ९ ॥ काय किलेस तपनेद तपसे नमः ॥
१० ॥ रस त्याग तपसे नमः ॥
११ ॥ इंद्री कषाय जोग विषयक संजीणता तपसे नमः ॥ १२ ॥ स्त्री पशु पंककादि वर्जितस्थान अवस्थित संजीप ता० ॥
१३ || आलोयण प्रायवित्त तपसे नमः ॥
१४ ॥ परिक्रमण प्रायवित्त तपसे नमः ॥
१५ ॥ मिश्र प्रायवित्त तपसे नमः ॥ १६ ॥ विवेक प्रायवित्त तपसे नमः ॥ १७ ॥ नृपसर्ग प्रायवित्त तपसे नमः ॥ १८ ॥ तप प्रायवित्त तपसे नमः ॥ १९ ॥ द प्रायवित्त तपसे नमः ॥ २० ॥ मूल प्रायवित्त तपसे नमः ॥ २१ ॥ प्रणवस्थित प्रायवित्त तपसे नमः ॥ २२ ॥ पारंचिय प्रायवित्त तपसे नमः ॥ २३ ॥ त्याग विनय रूप तपसे नमः ॥ २४ ॥ दर्शन विनय रूप तपसे नमः ॥
२३
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रत्नसागर. २५ ॥ चारित्र विनय रूप तपसे नमः॥ २६ ॥ गुर्वादिक मनविनय रूप तपसे नमः॥ २७ ॥ वचन विनयरूप तपसे नमः॥ २८ ॥ काय विनयरूप तपसे नमः॥ . २९॥ नपचारक विनयरूप तपसे नमः॥ ३०॥आचार्य वेयावच तपसे नमः॥ ३१॥ नपाध्याय वेयावच्च तपसे नमः॥ .. ३२॥ साधू वेयावच तपसे नमः॥ ३३॥ तपस्वी वेयावच्च तपसे नमः॥ ३४॥ लघु सिख्यादि वेयावच्च तपसे नमः॥ ३५॥ गिलाण साधु वेयावच्च तपसे नमः॥ ३६॥श्रमणो पाशक वेयावच तपसे नमः॥ ३७॥ संव वेयावच्च तपसे नमः॥ ३८॥ कुल वेयावच तपसे नमः॥ ३९॥ गण वेयावच्च तपते नमः॥ ४०॥वायणा तपसे नमः॥ ४१॥ प्रचनातपसे नमः॥ ४२॥ परावर्तना तपसे नमः॥ ४३॥ अनुप्रेदा तपसे नमः॥ ४४॥ धर्म कथा तपसे नमः॥ ४५ ॥ आर्तध्यान निवृत्त तपसे नमः॥ ४६ ॥ रोद्रध्यान निवृत्त तपसे नमः॥ ४७॥धर्म ध्यान चिंतन तपसे नमः॥ ४८॥ शुक्रध्यान चिंतन तपसे नमः॥ ४९॥ वाह्य नपसर्ग तपसे नमः॥ ५०॥ अभ्यंतर नपसर्ग तपसे नमः॥
॥ ॥ इस रीतसे (५०) नमस्कार करै । ( खडा होके) अन्नत्थू
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तपस्या ग्रहण की (तथा) संखेप ऊजमणा बिधि ३३९ ससि एणं ( इत्यादि कहै ) ( ५०) लोगस्सका कानसग्ग करिके । एक लोगस्स कहै । (पी) पूर्वोक्त करणी करै ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ तपस्या ग्रहण करणेकों गुरूकेपास जाणेकी
विधिः लिख्यते॥ ॥ * ॥ प्रथम शुन्न दिन, शुन्न घमी देखके अन्हा वस्त्र आनूषण पहरे । लिलामके तिलक करै । दोव । सरसुं। मस्तकमें धारण करै । हाथके मो ली बांधके । अदत । सुपारी। श्रीफल । नेवेद्य । यथाशक्ति रोकनाणो लेके । नवकार गुणतोथको । गुरूके पास जावै । प्रादशावर्त बांदणा कर के । ग्यान पूजा करै । पीछे बहुत प्रमोदवंत होके । गुरुके मुखसें ननो तप ग्रहण करै ( सो ) तपस्या ग्रहण करणेकी विधि आगै लिखेंगे ॥ इति तपस्याग्रहण करणकों पोशाल जाणेकी विधिः ॥ ॥
॥अथ संक्षेप जमणा विधिः लि०॥॥ * ॥ पंच वर्णके धान्यसें सिघचक्रकों मंमन करै । सिघचक्रजी के चौ तरफ तीन गढ चूमीके आकार वनावे । पहिलै गढमांहे । अष्टदल कमलके आकार नवपद स्थापन करै । पद २ के वर्ण गुण प्रमाणे । रत्नादिक चढावे । ( और ) पंचवर्णके फूल । पंचवर्णके धान्य । नवना खेरका गोटा रंगके । जिसपदका जैसा वर्ण होइ ( तैसे ही ) रंग का गोला चढावै । पंच वर्णी । नव धजा चढावै ॥ दूसरै वलयमें । सोले श्रीफल ( अथवा ) पूंगी फल चढावै । तीसरै वलयमें ( ४८ ) बुहारा चढावै ॥ नव निधानके ठिकाणे (९) नव बमा फल चढावै ॥ दश दिग्पा ल । नवग्रहकों । पक्वान्न प्रमुख चढावै ॥ इत्यादिक विधिसंयुक्त । सिध चक्र स्थापना। घर देहरासर आगे करै। ( और ) जिनमंदिर मांहे । बाह्य मंडपै ५ ॥ ७ हाथ प्रमाणे मंमल रचना करै । विस्तारसे सब बिधि गुरुके बचनसें करके । नवपदजीकी पूजा पढायके कलस ढालै । धवल मंगल गीतगान गावै । वाजिव बजावै। (इसीतरे ) महा महोठव । नदार चि त्तसें करै । मंगल दीप आरती प्रमुख करै । दूसरे दिन विसर्जन करै ॥ इति संखेप सिधचक्र मंगल विधिः॥॥
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रत्नसागर.
॥॥सिद्धचक्र संखपग्द्यापन विधिः॥ ॥ ॥ * ॥ अब दशमें दिन गुरूके पास आके ननी तपकों पारें । तप पारण की विधि आगे लिखेंगे। (तथा) नद्यापनमें ग्यान नक्तिके कारण । ९पूग। ९ विटांगणा । ९.पुस्तक । ९ लेखण । ९ ठवणी । ९ फिल मिल । ९ रुमाल । ९ मोरा। ९ मिजासणा। ९ थापना। ९ चंद्रया। ९ पूठि
आ। ९ आरती। ९ कलश । ९ जापमाला। ९ मंदर। ९ प्रतिमा।९ तिलक । ९ मुगट । ( इत्यादिक) अनेक नव नव चीज वणावै । शक्ति न होय तो यथाशक्ती रोकनाणो चढावै । देव पदको देवपदमें देवै । गुरु पद को गुरु पदमें देवे । ग्यानपदको ग्यानखाते लगावे । इत्यादिक यथाजोग्य शुन क्षेत्रे खरच करै ॥ इति सिघचक्र संदेप नद्यापन विधिः॥ * ॥ ॥॥अथ द्वादशमाश सकल पर्वाधिकार लि० ॥ॐ॥
॥ॐ ॥ तत्र प्रथम चैत्रमाश चतुपर्वाधिकारः॥१॥ ॥ * ॥ चेत्रमास में । चैत्र सुद ७ सें लेके, चैत्र सुद १५ पर्यंत ९ दिन अति उत्तम है। ( सो ) अति नत्तमता का कारण कहते है । बार मासमें तीन अहाही महोचव आता हे । ( जिसमें ) । चैत्र आसोज का दोय अहाई महोठव सास्वता है । चैत्र सुद ८ (सें ) चैत्र सुद पूनम आसोज सुद ८ (से) आसोज सुद १५ ( यह ) दोनुं मासके आठ दिनोंमें । निश्चै सेती । च्यारुनिकाय के देवता इंद्र सब नेला होके । आ उमा नंदीसर दीप जावै ( पुन्याहं २ ) कहते थके । अष्ट द्रव्यसें पूजन करै । गीत गान नाटकादिकसें अनेक तरेकी भक्ति करै । पीछे नवमें दिन । अपणे २ जन्मकुं सफल मानते हुए । अपनें २ । देवलोक जावै । ( इसी माफक ) तीसरी अहाई आसाढ चौमासेकी ( १४ ) पीने । (४२) दिन जानेसें, संबहरी पर्व साचवणे को आठ दिन अहाई महोडव करें । अब यह नव दिनोंमें । चार पर्वसेवन करणे योग्य है ॥ * ॥ प्रथम नवपद जीकी नली। इसी नव दिनोंमें विधिसंयुक्त करे । (सो) विधिपूर्वे लिखी है । इससे इहां न लिखी। यह सिघ चक्रममल (और ) नवपदजी की नलीका अधिकार ( दशमा विद्या प्रवाद पूर्बसें ) नघरण करके । जव्य
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अष्टापदन्ली०, श्रीबीरजन्म०, चैत्री पूनम विधि. ३४१ जीवोंके अनंत सुखप्राप्तिके कारण । चवदै पूर्वधारक श्री जद्रबाहु स्वामी जीने प्रशिध किया । ( इसीसें ) सर्व नव्य जीवोंके यह तप प्रमाण है । यह तपकों अपणी कुयुक्ति लगायके । जो पुरष खमन करते है । उस का, अनंत संसार । नगवानका बचनसें मालूम होता है ( शास्त्रोंमे लिखा है ) हे गोतम । अपणी कुटलताईसें ( जो ) सुत्रको एक हरफ नथा पण करेंगा ( सो ) अनंत संसार बढावेगा । ( सुत्र किसकुं कहते है ) सु त्तं गण हर रश्यं । तहेव पत्तेय बुधि रश्यंच । सुय केवलिणा रश्यं । अ निन्न दस पुविणा रश्यं ॥ १॥ (अर्थ) गणधरोंका रचाहुवा (तेसेंही) प्रत्तेक बुधिका रचा हुआ । श्रुतकेवली चवदै पुर्वधारी का रचा हुवा। संपूर्ण दश पूर्वधारीका रचा हुआ कों । जगवानने सुत्रकी संज्ञा कही है इसीसें प्रमाण है ॥ ॥ ... ॥ ॥ अथ अष्टापदन्लीकरण विधि ॥ ॥
॥ ॥ इसी चैत्रमासमें सुद (८) से लेके। पूर्णमासी तक । (केई जव्य जीव) अष्टापदजीकी नेती करते है ( जिसमें ) पमिकमणा । देववंदन । देवपूजा । इत्यादिक सर्ब विधि नवपदजीकी नेली तुल्य कर (इतना विशेष है ) श्रीअष्टापद तीर्थाय नमः । (इसी पदको) २००० गुणनो (वा) बीस जाप करै । अरिहंत पदके १२ गुणकों नमस्कार क रे। आंबिल (वा) एकासणेको पञ्चक्खाण करै । पीने पूर्णमाशीके दिन अष्टापदजी पर्वतकी स्थापना करके । विधिसंयुक्त ( २४ ) जगवंतकी पूजा करै (एसें ) चैत्र । आसोज । दो नेली करणेंसें । चार वर समें । एक नेनी करनेसें आठ वरसमें संपूर्ण होय । पीने नक्तिसंयुक्त क जमणो करै (साहमी वडल करै ( इत्यादि) विशेष विधि गुरुके मुखसें जानके करै )॥ ॥ इति द्वितीय अष्टापद नली पर्वाधिकारः कथितः ॥ ॥ ॥श्रीवीरजिन जन्म कल्याणक पवाधिकारः॥॥
॥ ॥ (अब तीसरो पर्व) चैत्र सुद १३ के दिन । श्रीमहावीरस्वा मी को जन्म कल्याण नयो है (इसीसें) सर्व ठिकाणें । धर्मरागी पुरुष गुरूके मुखसें समझके जलयात्रादिक संपूर्ण जन्मकल्याणकको महोब
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रत्नसागर. व करें। (एसेंही) रुघीवंत श्रावककों, धर्मका नद्योत के खातर, सर्वत्र गवंतके कल्याणकके दिन (जो) कल्याणक होय । नसीका महोत्सव करना चाहिये। असी शक्ति न होय ( तो) शाशनके अधिपति । देवा धिदेव (श्रीमहाबीर स्वामीके) च्यवन कल्याणकसे लेके । निर्वाण क ल्याणक पर्यन्त । (जिस दिन ) जो कल्याणक होय । नसीका महोडव पूजन करणा चहियै ( इसीसे) धर्मका नद्योत होय। श्रीसंघमें परम आ नंद होय ॥ * ॥ इति शासनाधिपति जन्मकल्याणक पर्वाधिकारः कथितः।।
॥॥चैत्री पूनम पर्वाधिकारः॥४॥॥
* ॥ चैत्री पूनम पर्वका अधिकार ( समाचारी शतकानुसारे ) लिखते है॥ * ॥ प्रथम चावलके पुंजरों से→जय पर्वतको स्थापन कर (तिसपर) पट्टा रखके । श्रीपुंमरीक गणधर (वा) श्रीषन देव स्वामी का बिंबस्थापन करै। अदत मोत्यां करके पर्वतकों वधावै । केशर चंदनसें पर्वतकों पूजे । सब श्रीसंघ इकठे होके । पर्वतके चौफेर तीन प्रदक्षणा देवै । पीछे पूजन सरू करै (यथा)॥ ॥ दश (१०)बीश (२०) तीश (३०) चत्ता (४०) पन्ना (५०) पुप्फदामेण लहई। चनत्थ उहम अहम दसम वालसम फलाइंच ॥ १॥ अब प्रथम (१०) प्रकारसे पूजनके अधिकार लिखते है ॥ ॥ एकाग्रचित्तसें । अष्टमंगलीक आगे रखके शुशोदकसें मूलप्रतिमा को न्हवण करावै । पीछे श्रीसंघ खमा होके। दश नमस्कार नच्चार पूर्वक । १० फूल ( तथा ) १० फूलमाला चढा के। प्रतिमाके १० तिलक करै। (यथाशक्ति) सुपारी । नालेर ( इत्या दि) सर्ब चीज नत्कृष्टसें दश २॥ जघन्य नालेर १ सुपारी १० और फ लफूल यथासंभव चढावै । धूप खेवै । कपूरकी आरती करै । पीछे सिक गिरि गुणगनित चैत्यबंदन करके । पांचशक स्तवे देव वांदै । १० खमा स मण देके (श्रीसिपत्र पुंमरीक गणधराय नमः) इस पदकों १० वेर नम स्कार करै । पीने (श्रीसेजेजय पुमरीक आराधनार्थ करेमि कानसग्गं)। अन्नत्थू ससि कहके । १० लोगस्सका कावसग्ग करै । ( इहां केई आ चार्य कहै ) बहुत उछव होय । वेला कम रहै । (तब ) एक लोगस्स
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चैत्रमास ( ४ ) पर्बाधिकार स्तवन
३४३
को कावसग्ग करे । १० जैतीके ठिकाएँ १० गाथाको स्तवन कहै ।
पीछे अनेक प्रकारका बाजित्र बजावै ॥
"
॥ इति प्रथम पूजाविधिः ॥ ॥ ॥ * ॥ (अब इसी तरे ) बीश । तीश । चालीश । पञ्चाश यह च्या पूजाके नेद जान लेना | ( इतनाही विशेष है ) दूशरी पूजामें १० के ठिकाणें २० की विधिकरें ॥ तीसरी पूजामें १० के ठिकाऐं । ३० की विधि करै ॥ चौथी पूजामें १० के ठिकाऐं सब बिधि ४० की करे ॥ पांच मी पूजामें सब विधि ५० की करै । (तथा) सिद्ध क्षेत्र श्रीपुंमरीकाय नमः । इस पदको २००० गुणनो करे। उत्कृष्टसें पांचू पूजामें । जूदी २ धजा चढावै । जघन्यसें पांच पूजा किये पीछे १ धजा चढावै । यह तप । गुरूके मुखसें लेके । जघन्ये १ बरस । ( वेसी होसकै तो ) ७ बरस । न तत्कृष्ट १२ बरस । विधि संयुक्त तपस्या करै । गुरूके मुखसें उपदेश सु
। संपूर्ण तप हुवां पीछे | सिध गिरीकी यात्रा करै । ग्यान पूजा करै । गुरु जती करै । साहमी चल करै । (यह ) चैत्री पूनम के दिन | श्री न देव स्वामीके । प्रथम गणधर श्री पुंमरीकजी। पांचकोमि साधू साथ सुखकों प्राप्तनये (इसीसें ) प्रथम श्रीभरत चक्रवर्त्ति । चैत्री नमको आराधन करके। श्री पुंमरीक गणधर की प्रतमा स्थापन करके । (यह ) चैत्री पूनम पर्व्व प्रसिद्ध किया । यह चैत्री पूनम आराधन करनें सें। इस नवमें अनेक सुख संपदा प्राप्त होय । स्त्रियोंके पुत्र पुत्र्यादिक की बांबा पूरण होय । (र) आधि व्याधि सोग संताप सब दूर होय । परजवमें देवादिक रुविप्राप्त होय । की कर्मी होनेंसें प्रदय सुखको प्रा स होय ॥ इति चैत्र माश पर्वाधिकारः ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ चैत्री पूनम स्तवन लि० ॥ * ॥
॥ ॥ (ढाल ) पयप्रणमीरे जिन वरना सुपसानले । पुंकरगिररे गा इसहुं सुत्र जानलै । मति सुरगिररे सहस जीन जो मुख हुवै । किम ते नररे विमला चलना गुण तवै । ( नल्लालो ) किम तबै गुणगण एह गि रिना जिहां मुनि सीधा बहु । गिररायना गुण अनंता कहै जिणवर मु ख सहु । निज जनम सफलो करण कारण केतला गुण जाषियै । तिर
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रत्नसागर. यंच नारक तणी गतिना पुःख दूरै राखिये ॥१॥ ( चाल ) जिन राजारे पहिलो आदि जिनेसरू । तमु नंदनरे चक्रवर्ति जरतेसरू । तसु अंगजरे पुंमरीक गुण गण निलो । शम दम रसरे विनय बिवेक गुणे जलो (नल्लालो) गुणनलो अनुक्रम आदि जिनवर पास संयम सिवा री। पुमरीक गणधर प्रथम विहरै सुमति गुपतै संचरी । पण कोमि साथे विमल गिरवर मुगति पदवी पाव ए । सुदि चैत्र पूनिम तेण ए गिरी पुंमरीक कहावए ॥२॥ (चाल) हिव चैत्रीरे पूनिम पर्व सुहामणो । सेठे जैरे आराध्यां फल हुवै घणो । मन सुघरे आपणपै थानक रही । आ राध्यांरे यात्र पुन्य पामें सही (नलालो) ते पुन्य पामें दान तप जप ध ने ध्यान मने धरै । बहु नाव न त्रिविध पूजा आदि जिनवरनी करै । नावना नावै तेण दिवशै पंच कोमि गुणो फलै । अनुक्रमे ते नर मुगति पामी सिघ सुंदरने मिलें ॥३॥(चाल) दश वीशारे तीश चालीश पूजा कही। पन्नासारे श्रावक निरती सरदही। चन्थ उठेरे अहम दसम वा लसैं । पूजा फलरे अनुक्रम ए मुझ मन वसैं । ( नल्लालो ) मनवस पूज कपूर धूवै मासखमण फले वली । सामन्न धूवे पक्खनो फल जे करे मननी रली। हिव पूजनी विधि जेम गुरु मुख सुणीअडे परंपरा । ते मोहमाया कप टळमी सुणो नवीयण सादरा॥ ४ ॥ ॥ (ढाल) तंकुल राशि विमल गिर थापी । तमुऊपरि पट्टादिक आपी । प्रतिमा आदि जिणेसर केरी । पुमरी कनी थापी निवेरी ॥५॥ सेठेज गिरिने मन चिंतीजै । करमतणा मल दूर करीजै। मोती तंजुल करीय वधावो। तीन प्रदक्षिण पूजरचावो ॥६॥ मंग लीक पहिला तिहां आठ । करमबंध दूर करि आठ । प्रतिमा मूल सनात्र करेवा । जिनवरना गुणहीयडै धरेवा ॥७॥ कनाथई नवकार गुणंता । दश दश जैती तिलक करंता । माला पुष्प पुंगीफल ढोवो । मेरु नरण वर धूप नखेवो ॥ * ॥ ( ढाल ) शक स्तव पांचे देववादै । जघन्यना वंदण पाप बेदै । दशे नमस्कार करंत जैती । राखी करी दृष्टि जिनेंद्र सेती ॥९॥ आराधिवा कीजै कानसग्ग । जिणे कीये नाजै कर्म वग्ग । लोगस्स न झोय दसे वखाणुं । वेला प्रमाणे अहिं एगाणुं ॥ १० ॥ इणे प्रकार धुर
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नंदीश्वर दीपस्तवन तपस्याबिधि. पूज एह । इसी परे बीजी च्यार तेह । दशां तणी वृधि तिहां गिणीजे । एक चित्त सूधै सुन्न पुन्य कीजें ॥ ११ ॥ धजा तणो रोप तिहां करीजै । एकेक पूठे अथवा गिणीजे । सहुत्तरै आरति मंगलेवो । प प्रनु आगलि ते करेवो ॥ १२ ॥ ( कलश ) इम करिय पूजा यथायोगै संघपूजा आद रो। साहमी वडल करो नविका नव समुद्र लीलावरो । संपदा सोहग तेह मानव शचि वृधि बहुलहै । श्री अमरमाणिक सीस सुपरै साधु की रति इम कहै ॥ १३॥ इति श्रीचैत्री पूनिम स्तवनम् ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ नंदीसर द्वीप स्तवन लि०॥ ॥ ॥ * ॥ नंदीसर बावन्न जिनाले । शाश्वता चौमुखसोहै रे । खना नन चंद्रानन वारषेण । वरधमान मन मोहेरे (नं० )॥१॥ आठमोदीप नंदीसर अदनुत । वलयाकार विराजैरे । तेहनें मध्य चिहुं दिश शोनत । अंजन गिरवरगजैरे॥२॥ (नं०) जोयण सहस चनरासी ऊंचा । ऊंच पणे अनिरामारे । मूलै पृथुल सहसदश जोयण । वरि सहस इक श्या मारे ॥३॥ (नं० ) ते ऊपर प्राशाद प्रजुना । अति नत्तंग नदारारे । सा धूजंघा विद्याचारण । वांदै विविध प्रकारारे॥ ४॥ (नं० ) चैत्ये चैत्ये एक सो चोवीस । बिंब संख्या सविदाखीरे । ध्यावो सेवो नविजन नक्ते । सुध आगम करि साखीरे॥५॥ (नं०) ऊंचपणे सहु जोयण बहुत्तर । सो जोयण आयामारे । पिहुलपणे पंचास जोयणना । प्रनु प्राशाद सुगमारे ॥६॥ (नं०) धनुष पांचसैं आयत प्रनुनी। बिविध रतनमय कायारे। जि न कल्याणक नबव करवा । सुरपति जगते आयारे॥७॥ (नं० ) अंजन अंजन चिहुं गिरी नवरे । चौमुख वावि बिशालारे। वावि वावि विच इक इक पर्वत । राजतरंग रसालारे॥८॥ (नं० ) चौसहि सहस जोयण उत्तंगै। दश सहस सम पिहुलारे। चिहुंदिशि सोल सोहै दधिमुख गिर । तिहां प्रा शाद सुविमलारे॥९॥ (नं० ) वावि वाविनें अंतर विदिशैं । रतिकर पर्व त रूमारे । दोय दोय संख्या ए जगदीस । कह्या नही एकूमारे ॥१०॥ (नं० ) जोयणसहस मान दश ऊंचा। दश दश सहस विस्तारारे। मल्लरि स म संगण जगदगुरु । निश्चय ए निरधारारे॥ ११॥ (नं०) ते ऊपर प्राशा
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रत्नसागर.
द सतोरण | अंजनगिरि परि माणें रे। जिन प्रतिमानी संख्या तेहिज । श्रीजि नराज वखाएँ रे ॥ १२ ॥ ( नं० ) इम प्राशाद प्रजूना बावन । नंदीसर वरप्री पैरे । द्रव्य जाव विध पूज करंता । मोह महाजड जीपैरे ॥ १३ ॥ ( नं० ) प्रवचन सार नचार प्रकरणें । जीवाभिगमैं जाणोरे । इम अधिकार नै ग्रंथ अनेकै । इहां का मत आणोरे ॥ १४ ॥ ( नं० ) जिम सुरपति विरचै ति हां पूजा । ते अनुभव इहां ल्यावोरे । ध्यावो जिम पावो परमातम | जैन चंद्र गुणगावोरे ॥ १४ ॥ ( नं ० ) इति नंदीसर द्वीप स्तवनम् ॥ 112 11 ॥ अथ नंदीश्वर तपस्याकरण विधि लि० ॥ ॥ * ॥ शुभदिन शुभ घमी गुरूके पास नंदीश्वर तप ग्रहण करे । नंदीश्वर प्रीपके चारूं दिश तरफ (५२) चैत्यकी अपेक्षायें । अमावस के मावस ( ५२ ) नृपवास करै । जिस दिन जो माहाराजके नामका उपवा स होय । उसी नामको २००० गुणनो करे ( सो लिखते है ) ॥ ॥ ॥१॥ रुषमाननजी सर्वज्ञाय नमः ॥ॐ॥२॥ श्रीचंद्राननजी सर्वज्ञाय नमः ॥ * ॥ ॥ ३ ॥ श्रीवारषेणजी सर्व ० ॥ ४ ॥ ॥ श्रीवर्धमानजी सर्व० ॥ ॥
॥
॥
(यह ) च्यार नामकों ( ४ ) वेर सुलटा ( ४ ) वेर नजटा गिणें । अनुक में ( १३ ) नृपवास करनें सें एक नली होय ॥ (४) वार नली करणेंसें, यह तप संपूर्ण होय । पीछे शक्ति माफक ऊजमणो करै । नंदीसर द्वीप को मंगल बणावै । पूजा करावे । (इत्यादि महामहोव करके ) । ग्यान पूजा करे । साहमी बल करे । मंगल पूजाकी बिसेष विधि गुरूके बचनसें जाणके करै । इति नंदीसर तपस्याधिकारः ॥
॥ * ॥
य
॥ * ॥ वैशाखके महिने में ( मिती ) बैशाख सुद ३ है (सो) तृतीया नामसें पर्व प्रसिद्ध है ( इस दिन ) श्रीषन देव स्वामीके | चारित्र ग्रहण कियां पीछे | वारै माशीका पारणा । सोमयश राजाके पुत्र । श्रीश्रे यांस कुमरजीके हाथसें । इक्षुरस सेती हुवा (नसी समय ) नलम दानकें प्रभावसे | सर्व देवगण प्रमोदवंत होके । सुगंध जलकी वर्षा ॥ १ ॥ सुगंध पुष्पों की वर्षा ॥ २ ॥ ( १२॥ ) कोन सोनइयोंकी वर्षा ॥ ३ ॥ आकास
॥ *॥
थ बैशाख माशमध्ये पर्वाधिकार लि० ॥
॥ ॐ ॥
॥
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ज्येष्ठ, आषाढ, माश पर्वाधिकार
३४७
सें हो दानं २ ऐसें उदघोषणा ॥ ४ ॥ देव मुनि बात्रि ॥ ५ ॥ ऐसे पांच द्रव्य प्रगट किये । श्रेयांस कुमरका जश तीन नुवनमें विस्तरण हु आ । ( इसी दिन ) आहार देणेंकी विधि सबकों मालुम हुई। इस दान के प्रभावसें श्रेयांस कुमर प्रय सुखकों प्राप्त हुवा । ( इसी ) य तृतीया पर्व श्रीसंवमें परम मंगलकारी है । इस पर्व के आसें । अछे वस्त्र आभूषण पहरके । भगवंतके मंदर जावै । प्रष्ट द्रव्यसें पूजन करे । स्ना अष्ट प्रकारी। सत्तरभेदी ( इत्यादिक) पूजा करावे | पीछे गुरूके मुख सें, एकासादिक पच्चक्खाण करके । पकी महमा सुर्णे । अपने घरमें मंगलीक जोजन तैयार होनें सें । गुरूकों वहरायके । सर्व कुटुंब इकट्ठे होके जीमें। और (जो ) मंगल कार्य करणा होय (सो) इसी दिन करे । ( इस माफक ) इस पकों जो नव्यजीव सेवन करेंगे। नसीके तप तेज सदा वढते रहेंगे। अजं विस्तरेण ॥ इति श्रय तीज पर्वाधिकारः ॥ अथ तृतीय ज्येष्टमाशा पर्वाधिकारः ॥
॥
॥
॥ * ॥ ज्येष्ट कृष्ण त्रयोदशी (१३) के दिन ( शोलमा ) श्रीशांति नाथ स्वामीका निर्वाण कल्याणक है । ( इसीसें ) यह दिन बमा उत्तम है । सर्व ठिकाणें श्रीसंघ इकट्ठे होके । । विधि संयुक्त शांति पूजाका महो
करावे । शांति जल तेजाके । अपने २ घरमें छींटे । इस शांति पूजाके करानें । मारी जा । (इत्यादि समुदाइक रोग) कभी श्री संघ में व्याप्त न होय (अथवा ) कोई श्रावकके घरमें रोग चालो रहतो होय (वा) बहुत चिंता रहती होय ( तो ) इसी दिन शांति पूजाका छव कराणा चाहिये । ( इससें ) आधि व्याधि ग्रहादिककी पीमा सर्व दूर होय । अ नेक मंगल श्रेणी प्रवर्त्तन होय ॥ इति ज्येष्टबद ( १३ ) पर्वाधिकारः ॥ ॥ ॥ * ॥ आषाढ माश मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ ॥
*
॥ * ॥ प्राषाढ सुद १४ के दिन । चौमाशी १४ इस नाम से पर्व प्रसिध है (सो) लिखते है | ( यथा ) सामायका वस्यकपोषधानि । देवार्चन स्नात्र विलेपनानि । ब्रह्मक्रिया दान तपो मुखानि । जब्या चतुर्मासक मंरुनानि ॥ १ ॥ ( अर्थ ) जोजव्या एतानि सामायकादि धर्म कृत्यानि । चतुर्माश
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३४८
सामायक को है । (यथा शक्ति के भगवान के हव। केइ नाना
रत्नसागर. कस्य मंडनानि अलंकार जूतानि विद्यते ॥ अहो लब्य प्राणी जीवो ( यह ) सामायक कों आदलेके (जो) धर्म कृत्यहै (सो) चोमासे के मंमनहै। अलंकार समानहै । (यथा शक्ति) यह चौमासे पर्वमें । केइ जीव । सा मायक । पमिकमणा । पोशा । करै । केइ नगवानके मंदरमें नानाप्रकार की पूजा करै । केइ शीलबत पाले । केइ सुपात्र दान देवे । केइ नाना प्र कारकी तपस्या करै जैसो धर्मकाम अपणी शक्तिसें बण आवै (सो करै ) इसमें विरोध नहीं । कोई प्रकारमें धर्मका नद्योत करणा चाहियै (जिससे ) सर्व श्रीसंघमें कल्याण माला प्रगट होय । और चौमा शी (१४) के दिन । सर्ब मंदर दरशन करनेकों जावै । पांच शक स्त व देव बांदै । पीछे गुरूके पास जाके । चौमासे पर्वका व्याख्यान सुरें। सर्ब चीजका प्रमाण करके । नपरांत सोगन लेवै । सांऊको चौमाशी प मिक्कमणो करै। ( इसी माफक ) काती चौमाशै । फागुण चौमाशकों पिण सेवन करै ॥ इति चतुर्माश पर्वाधिकारः कथितः॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥अथ श्रावण माश मध्ये तपस्याधिकार कथ्यते॥७॥
॥* ॥श्रावण माशमें कई नब्य जीव । मम्माई आदिक खेत्रोमें। नाना प्रकारकी पूजा नाटकादिनचव, अंगी रचना करायके चौमाशै पर्व: का नद्योत करते हैं। ( इसी माफक) सर्बठिकाणे नाना प्रकारकी पूजा कराणी चहियै । और बहुत ठिकाणे की श्रावकण्यां इस महिने में कई तरकीतपस्या करै है । ( जिसमें ) नत्तम फलकी देने वाली कई तपस्या ( विधि प्रपाक ग्रंथसें ) नघरण करके । संखेपविधिसें इहां लिखतेहे ॥
॥ ॥ अथ बुटकर तपस्या विधि लि०॥ * ॥ ___॥ * ॥ पुरिमट्ठ १ । एकासण १ । नीवी १ । आंबिल १। नपवास १। (यह १ नली) इसी तरै पांच नली करै । तपो दिन २५ । ऊजमणे (२५)। लाडू चढावै ॥ ॥ इति इंद्रि जय तप॥१॥* ॥ ॥ ॥
॥ ॥ एकासण १ । नीवी १ । आंबिल १ । नपवास १ । (इसी तर) ली च्यार करै । तपो दिन १६ । ऊज मणे १६ लामू चढावै ॥ * ॥ ॥ ॥ इति कषाय जयतपः २॥ ॥ ॥ ॥
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श्रावण माश तपस्याधिकारः
३४९ ॥ ॥ नीवी १ । आंबिल १ । नपवास १। (इसी तरै)नी ३ । करै। · तपोदिन ९ । जमणे नव । लाडू चढावै ॥ ॥ इति योगशुधि तपः ॥३॥
॥ ॥ इकसार नपवास ३ । (अथवा ) एकांतर नपवास ३ । जमणे ज्ञान पूजा करे ॥ * ॥ इति नाणतपः॥४॥॥ ॥ ॥ ॥ . ॥ ॥ इकसार नपवास ३ । ( अथवा ) एकांतर उपवास ३ । ऊजमणे स्नात्र पूजा करावै ॥ ॥ इति दर्शन तपः॥५॥ ॥ ॥
॥ ॥ इकसार नपवास ३ (अथवा) एकांतर उपवास (३) ऊजमण । गोतम स्वामीकी पूजा करै ॥ इति चारित्र तप॥६॥॥..
॥ॐ॥ अहम १ । १। नपवास १ । एकाशण १ । एकल गणो १ । दत्ति १ । नीवी १ । आंबिल १ । (यह एक नेली) इसी तरै, ननी आठ करें। तपोदिन (८८) जमणे रूपानो वृद। सोनानो कुहामो करायके । ग्या न खाते देवै ॥ इति आठ कर्म सूमण तपः॥७॥
॥ ॥ * ॥ लाद्रवा वदि चनथसें लेके । पनरै दिन पर्यंत (इकसार) एका शणा ( अथवा ) बिपाशणा करै । घर देहरासर आगे (अथवा ) अद्वै ठिकाणे कलश स्थापन करै । एक मुही चावल सदा कलशमें नरै। संव बरीके दिन कलश ऊपर नालेर रखके । महोत्सव पूर्वक मंदर लाके देव आगे रक्खे । स्नात्र पूजा करै । शान पूजा करै ॥ * ॥ इति अवयनिधि तपः॥८॥ॐ॥ श्रीवासु पूज्य पूजा पूर्वक । रोहणी नक्षत्र दिने। नपवास। (वा) नीवी । आंबिल । सात वरश, सात माश करै (श्रीबासु पुज्य स्वामी सर्वज्ञाय नमः) इस पदको २००० गुणनो करैः । गुरूके पास स्तवन सुणे (सो) स्तवन आगे लिखेंगे॥ जमणे ज्ञानके नपगरणसें। ज्ञान अक्ति गुरुनक्ति करै ॥ इति रोहिणी तपः ॥ * ॥
॥ सुदपदके पांचमके दिन । श्रीनेमि । अंबिका, पूजा पूर्वक । पांच एकाशणादिक तप करै। अंबिका देवीकों बेस चढावै॥ ॥ इति अंबिका तपः॥ ॥
॥ ॥
॥ॐ॥ ॥ ॥ सुद परमें इग्यारसके दिन । सिद्धांत पूजापूर्वक । मोन संयु क्त नपवास करै ॥ इति श्रुत देवता तपः॥
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३५०
रत्नसागर
सुद पक्ष । एकांतर । उपवास ८ । पारणें बिल ८ । एवंदिन (१६) जमणे ग्यानपूजा करें। इति सर्वांग सुन्दरतपः ॥ १२ ॥ ॥ ॐ ॥ चैत्रमाशे । एकांतर उपवास १५ ॥ एवंदिन (३०) नेको ( अथवा ) रूपैको वृक्ष । अनेक फल सहित चढावै ॥ इति सौभाग्य कल्पवृक्ष तपः ॥ १२ ॥ * ॥
॥
जमणे सो
॥
॥ ॐ ॥॥
॥ ॥ परिवा। बीज । तीज। अनुक्रमसें, पूनम पर्यंत (१५) उपवा स । जो तिथि भूलै । सोतिथि और करै । ऊजम एकसो वीश (१२० ) लाडू मंदर चढ़ावै । नात्र करावे ॥ इति सर्व्व सुखसंपत्ति तपः ॥ १२ ॥ * ॥
॥ * ॥ वरशातना च्यार माश (और) पोष । चैत्र । यह षमाश टाल के बोटी पांच तप सरू करे। अंधारी, अजुप्राली पांचम, माश ५ लग । एकाशणादिक तप करे। ऊजमर्णे ज्ञान पूजा करें ॥ इति बोटी पांचम तपः १५
॥ ॥ सुद पांचमकों, पांच वरश, पांचमाश, उपवास करें। उपवासकै दिन देव वांदनादिक क्रिया करे । ऊजमणें पुस्तकादिक ज्ञानोपगरण । पकवान फल, कलशादिक, पांच ५ चढावै ॥ सत्तर नेदी पूजा करावे । साहमी बहल करै । इति ज्ञानपंचमी तपः ॥ १६ ॥ ॥
॥ ॥
1111
॥ ॥ आषाढ सुदि । परिवा। बीज । तीज । चौथ। पांचमें । एकाशणा दिक तप करै । शोग वृक्ष पूजा पूर्व्वक, देव आगे नेवेद्य चढावे । ( इसी तरै) वरस १ । तपकरे । जमणे चावलांसें । प्रशोग वृक्ष लिखके पूजा करे ||
॥ * ॥ इति शोग वृक्ष तपः ॥ १७ ॥ * ॥ प्राषाढ वदि (७) श्रीविम नाथ पूजा पूर्व्वक उपवास | श्रावण वदि ( ७ ) श्रीनन्तनाथ पूजा पूर्व्व
वास ॥ काती वदि ( ७ ) श्रीयादिनाथ पूजा पूर्व्वक उपवास ॥ पोष दि ( ७ ) श्रीपार्श्वनाथ पूजा पूर्व्वक उपवास करे। स्नात्र करें । ऊजमर्णे चावला लोकनाल वनाके, साते राज, सात पावडी करिके । तिस ऊपरि सिद्धिक्षेत्र (तिसकों) सोनें रत्नोंको मुकट चढावै ॥ इति मुकट सप्तमीतपः १८
॥ * ॥ आसोज सुदि ८ तांई एका शणादि तप करे । आठ प्रकारकी पूजा करै । नेवेद्य चढावै । पहिले वरश अष्टापदकी एक पावकी । इसी तरै
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श्रावण, माश तपस्या धिकारः आठे वरशे आठ पावमी । अष्टप्रकारी पूजा पूर्वक आराधिये । ऊजमणे अष्टापद पूजा करावै । पकवान फन सर्ब चवीश चढावै ॥ ॥ इति अष्टापद पावमीतपः॥१९॥ ॥ ___ ॥ सुदपदके ८ आठमके दिन। नपवाश (अथवा) आंबिल (८) करै । ऊजमणे दूधका कटोरा नरके । आठ लामू, देव आगलि चढावै । इति अमृत पाठमि तपः॥२०॥
॥ ॥ ॥॥ ॥ बदपद ( अथवा ) सुद पदके दशमके दिन । दश नपवास ( अथवा ) बीश एकाशणा करै । जमणे अखंमित घी धार पूर्बक तीन। प्रदक्षिणा देवै ॥ इति अखम दशमी तपः॥ २१॥
॥ ॥ ॥3॥ बदपद (अथवा) सुद पक्के ११ इग्यारसके दिन । सिधांत पूजा पूर्वक । एकाशण । नीवी । आंबिल । ( वा ) नपवास ११ करै । कुजमणे ११ अंगकी पूजा करै ॥ इति श्री इग्यारअंग तपः॥२२॥ ॥
॥ ॥ सुद पदके १४ चनदस के दिन । एकासणादि १४ तप करै । ऊजमणे ग्यानपूजा करै । चवदप्रकारके पकवान प्रमुख चढावै ॥१॥ इति १४ पूर्वतपः॥२३॥ ॥ॐ॥
॥ पांच अमृत तेला। मास ६ में करै। (प्रथम तेले) सिखरण पारणो। (दूसरै तेलै) सीरको पारणो। (तीसरे तेल) लापशीकोपार णो। (चौथै तेले) लामूको पारणो। (पांचमें तेने) खीरको पारणो। सर्व पारणें प्रथम साधूकों विहराके पारणो करै ॥ इति पंचामृत तेला तपः ॥२४॥ अहम १। एकाशणो १॥ अहम १। एकाशणो १॥ अहम १ । एकाशणो १॥ए मोटो रत्नोत्तर तपः॥२५॥ ॥
॥ ॥ आंबिल १२ करके । ऊजमणे रूपाको चक्र, मंदर चढावै (तो) सदा जय होय । विणज व्यापारमें लान होय । ऊगमै जीत होय ॥ ॥॥ इति धर्म चक्रतपः ॥२६॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ नपवास ५ व्याशणां ५। एकांतरै करै। इति पांच महाव्रत तपः२७
| | नपवाश १ एकाशणो १ । नीवी १ । आंबिल १ । व्याशणो १॥ नपवास १ । एकाशणो १। नीवी १ । आंबिल १। व्याशणो १ । एवं दिन
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रतसागर.
१०। पूनमसें सरू करे। पारणे साधू पमिलानै । ग्यान पूजा करें ॥ * ॥ इति दालिद्र हरण तपः ॥ २८ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥ एकेंद्रिय नपवास १ । बेंद्रीयें बह १ । तेंद्रीय अध्म १। चौरिंद्री ये दशम १। पंचेंद्रीय प्रादशम १। उकायें चतुर्दशम १। तप करै । ऊज मणे, सुंखमीसें, स्त्री ६ जीमावे ॥ * ॥ इति उक्काय आलोयण तपः॥२९॥ ॥ ॥ नीवी (आठ) निरंतर करै । इति सासू सुखतपः॥३०॥ ॥ ॥ ॥ आंबिल (आठ) निरंतर करै ॥इति सुसरसुख तपः ॥३१॥ ॥ ॥ ॥ 16 (पांच) करै ॥ इति पुत्री सुख तपः॥३२॥ ॥ॐ॥ ॥ * ॥ अष्ठम (पांच ) करै इति बेटा सुख तपः॥ ३३॥ ॥॥ ॥ ॥ नपवास (आठ) एकांतरकरै ॥ इति नार सुख तपः॥३४॥४॥ ॥ ॥ निवी (पांच) निरंतर करै ॥ इति जेठ मुख तपः ॥ ३५ ॥ ॥ ॥ ॥ एकाशणा (पांच ) निरंतर करै ।। इतिदेवर सुखतपः॥३६॥ॐ॥ 38 ५। एकाशणा पांच । एकांतर करै ॥ इति पिता माता मुख तपः ॥३७॥
॥ ॥ इत्यादिक कई तरैकी तपस्या बहुत ठिकाणेकी श्राविका करें है । ( इसीसें ) सर्व श्राविकाके नपगारार्थ शास्त्रोंसें नघरण करके । संखे प विधिसें इहां लिखी है । वेसी शक्ति होय (तो) पूजा । साहमी बबन तीर्थ यात्रा । (इत्यादिक ) सातुं शुनखेत्रोंमें । अपणा धन खरच करै । धर्मका नद्योत करै । इस तपस्या के प्रनावसें। (इस नवमें ) संसार सं बंधी पुखदालिद्र दूर होके । सर्व कुटंबमें मुख संपदा होय । ( परनवमें) देवादिक रुधी प्राप्त होय । (किंबहुना) इति बुटकर तपस्या विधिः॥ ॥
॥ * ॥अथ नाद्रवमाशमध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ॐ॥
॥ ॥ नाद्रवमहिनेंमें । मिती नाद्रवासुद ४ (तथा) कई मतके अ पदायें ५ तिथकों । संबवरी नामसें पर्बप्रशिच है। (प्रथम इस संबनरी पर्वकी महमा कहते है ) (जैसें) जगत्रमें अनेक मंत्र है । पर नवकार मंत्र समान को मंत्र नही (१ ) तीर्थो में शत्रुजय समान कोईतीर्थ नही (२) पांच दानमें । अन्नयदान । सुपात्रदान । समान कोई दान नही (३) गुणमांहें विनयगुण (४)। ब्रतमांहें ब्रह्मबत (५)। नियम
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जाद्रव माश पयूषण पर्वाधिकारः ३५३ माहे संतोष नियम (६ )। तपमांहें नपशम तप (७) दर्शनमाहे जैन दर्शन (८)। जलमांहें गंगाजल (९)। अलंकारमाहें चूमामणि (१०) ज्योतिषी मांहें चंद्रमा ( ११ )। तेजवंत मांहें सूर्य (१२) । तुरंग मांहे पंच वक्षन किशोर (१३) नृत्यकलावंत मांहें मोर (१४) गज मांहें अरावण (१५) दैत्यमांहें रावण ( १६)। वनमांहें नन्दनवन (१७)। काष्ट मां चंदन (१८) साहसीक मांहें विक्रमादित्य (१९) । न्यायवंत मांहें श्रीराम ( २० ) रूपवंत मांहें काम ( २१) । सती मांहें शीता ( २२ )। सुगंध मांहें कस्तूरी (२३) वस्तु माहें तेजनतूरी ( २४ )। वाजिनमाहें जंना ( २५) स्वीमाहें रंना ( २६ ) धातुमांहें स्वर्ण ( २७ ) दातारमाहें कर्ण ( २८)। गौ माहें कामधेनु ( २९)। वृद्ध माहें कल्पवृक्ष (३०)। जलमाहें अमृत (३१) स्नेहमाहें घृत (३२)। (इत्यादिक ) सर्व वस्तू में एक एक चीज नत्तम होती है । (इसी माफक) सर्व पर्वोमे उत्कृष्ट रा जाधिराज, श्री संबबरी पर्व (दूशरो नाम) श्रीपhषणा पर्बकों । नगवंत श्री महाबीर स्वामीजीने नत्तम वर्णन कियो॥ ॥ (अब श्री पयूषण पर्व आनेसें) (प्रथम) श्रीसाधुके करने योग्य धर्मकृत्य कहते है ॥ ॥ संबबरी प्रतिक्रमण करै॥१॥ लोचकरावै २ तेलैका तप करै ३॥ सर्ब मंदरोमें जगवंतकी नाव स्तवना करे ४ । सर्व श्रीसंघसें खमावै ५। यह पंचकारणके वास्ते,श्रीतीर्थकर गणधरोनें श्रीपयूषणा पर्ब प्रवर्तन किया।
॥ ॥ अबशुधश्रावक संबरी पर्व आराधन करनेकों, आठदिन अ हाही महोछव करै (सो) कल्पलता शास्त्रसें लिखतेहे ॥ ॥ प्रथम श्रुतज्ञानकी भक्ति करै । कल्पसुत्रजीकों बिधि संयुक्त अपने घर लेजा वै। रात्री जागरण करावै । (प्रनात समय ) नगरके सर्व श्रीसंघकों निमंत्र रण करै । यथायोग्य सत्कार सन्मान करै । पीने पुस्तक ग्राहक पुरुष सर्बसें नत्तम वस्त्र आनूषण पहरकै । मुगट, उत्र, चामर, (इत्यादिक सहत) सा ख्यात इंद्र महाराजको रूप बनाके हाथी ऊपर (अथवा) पालखी क पर वेठे । अष्टमंगलीक रचित थालमें पुस्तक धरके । अपने दोनुं हाथमें थाल रक्खे। दोनुं तरफ पुरष अहा बस्त्र आनुषण पहरकै । चमर ढाले ।
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३५४
रत्नसागर. अनेक प्रकारके बाजिव बाजते हुये । दानें देते हुये, नाना प्रकारके श्रुत झानके गुण वर्णन करते हुये । नगरमें प्रदक्षिणा तुल्य फिरके । गुरूके पास आवै । गुरू पिण खमा होके । विनय संयुक्त पुस्तककों नमस्कार करके आ गै रखै । श्री संघके आझासे वाचना पूर्वक वाचै ॥ १ ॥ नगरमें सब ठिका णें अमारि पम्हो फेरावै । दूशरो अपने बचनसें ( तथा ) द्रब्यसें । कसाई धोबी। जमनुंजा ( इत्यादिक ) सर्वके आरंन गेमावै ॥ २ ॥ सुपात्र दा न देवै ॥३॥ विदाम, सुपारी, नालेरादिककी, परनावना करै ॥ ४॥श्रीबी तराग देवकी नदार नक्तिसें पूजा करै । चौदस के दिन । संबबरीके दिन चतुर्विध श्रीसंघ इकठे होके । सर्व मंदर दरशन करने को जावै ॥५॥ सचित्तका परिहार करै ॥ ६॥ ब्रह्मचर्य पालै ॥ ७॥ चनत्थ। 16॥ अह मादिक । तप करे ॥ ८ ॥ अपने २ वित्तके अनुसार, जन्म कल्याणक को महोबव करै ॥ ९॥ अठ पहरी पोशो करै ॥ १० ॥ संबन्चरी प्रतिक्रम ण करै ॥ ११ ॥ निशल्प होके सर्व श्रीसंघसें खमावै ॥ १२ ॥ पारणेंके दिन पोशह पमिक्कमणे वाले साधर्मी जाइयोंकी भक्ति करै ॥ १३ ॥ गुरू अक्ति करै ॥१४॥ संबचरी दान देवे । साहमी बचल करै ॥१५॥ इस विधि संयुक्त ( यह ) कल्पसुत्र एकचित्त सुणनेंसें, आराधन करनेसें, आठ अवमें सिधि स्थानककों प्राप्त होय । (और) केई नत्तम जीव । अत्यंत शुन्न नाव रखके । अमादिक तप करिके युक्त, कल्प मुत्रजीकों बाचते है।
और सुणने वाले, प्रमाद, निद्रा, बिकथा गेमके । अध्मादिक तप करके युक्त । इकचित्तसें शुच नाव रखके । इकबीश वेर सुणते है (सो) पुरष दे वगतिको प्राप्त होके । तीशरै नव सिद्धि स्थानकों प्राप्त होते है ॥ * ॥ इस पयूषणा पर्वके महोसव (जो) नव्यजीव करते है । (सो) धन्य है । धर्मके प्रनावीक है । अपणे लक्ष्मीसें धर्मका द्योत कर है । नसी पुरषां कों नमस्कार है ॥ 8 ॥ (अब कल्प सुत्रजीका महात्म कहते है ) ॥ ॥ यह कटपसुत्र, नवमा पूर्वसें नघरण किया हुवा । दशाश्रुत स्कंधका आठमा अध्ययन है । सर्व श्रीसंघके मंगलके कारण । श्रुतकेवली । श्रीनद्रबाहु स्वामी प्रसिद्ध किया है । यह कटपमुत्रके अनंते विषय है। ( जैसें ) सर्व
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कार्तिक माश दीपमाला पर्वाधिकारः -- ३५५ नदीकी बालूके जितने कण होय (तिसमें पिण) एक सूत्रके अनंते बिष य हे । इस कल्पसूत्रके महात्म (जो) देवाचार्य । हजार जीन करके क है ( तो पिण) महात्मका एक अंश कह सकता नहीं । असा इस पर्व का महात्म जानके (जो) नव्यजीव शुद्ध नावसे सेवन करेंगे (सो) अनेक तरैसें, घी, वृधी, मुख, सौनाग्यकों, प्राप्त होंगे (और) परनवमें देवादिक रुसी पायके मुक्तिसुखकों प्राप्त होंगे ॥ इति पयूषण पर्वाधिकारः ॥ ६ ॥ ॥ ॥ अथ आश्विनमाश मध्ये पवाधिकार लि०॥
॥॥आशोज महिने में। मिती आशोज सुद ७ से लेके । आशो ज सुद १५ तांई। नवपद नेनी ( तथा ) अष्टा पद नेनी बिधि संयुक्त करै। सो सर्व बिधि पूर्वे लिखी है । नसी माफक करै ॥ ॥ इति॥ ॥ ॥ ॥ अथ कार्तिक माश मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ ॥
॥ ॥ कार्तिक महिने में । मिती कार्तिकवद अमावस है (सो) दीप मालिका नामसें पर्व प्रशिच है। (यह) दीपमालिका पर्व कबसें प्रशिच हुआ ( सो लिखते है ) चोबीशमा तीर्थकर । श्रीमहावीर स्वामी। समस्त साधु, साध्वी, साथ विचरते थके । अंतकी चोमाशी पावापुरी आयके रहे (नहां ) आगामी कालके सर्व नाव । नव्यजीवोंके आगे प्ररूपण किये। फेर । आपणा अंतसमय जानके । हस्तिपाल राजाके शुक्लशालामें प्रायके रहे । ( अपनें पर ) गौतम स्वामीका बहुत स्नेह देखके । निजीक गाम में, एक देव शर्मा ब्राह्मणकों। प्रतिबोध देने के लिये भेजा । (पिगडी) प झाशन धारन करके । सोलै पहर अखंम देशना देते हुये । पूरण बहुत्तर बरशको श्राऊखो पालके ( इसी ) अमावसके दिन । पिउली दो घमी रात्र रहनेंसें सिधि स्थानककों प्राप्त नए । जिस समय नगवंतका निर्वाण क ल्याणक हुआ ( नस समय ) चौसठ इंद्र देवता गणके आने जानेसें बमा नद्योत हुआ। और (जो) सर्व राजा, पोषधमें बैठे हुए थे ( सो) नाव न द्योतका अस्तपणा देखके । सर्व ठिकाणे रत्न धरके द्रव्य नद्योत किया । एकमके: प्रातसमें देवतावोंके आते जाते बचन सुणके । श्रीगौतम स्वामी कों केवल ज्ञान नत्पन्न हुवो । ( दूजके दिन ) सुदर्शना वैन । अपना
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रत्नसागर.
भाई नंद वर्धन राजाको घरमें बुलायके जिमाया। शोक दूर करायो । (जिस सें) नाई बीज प्रवर्तन हुई। (इसीसें) यह दीवाली पर्व बका उत्तम है। इस दीवाली रात (जो ) गुणनो करे ( सो लिखते हैं ) ॥ १ ॥ श्री महावीर स्वामी सर्व ज्ञाय नमः ॥
१२ ॥ श्री महावीर स्वामी पारंगताय नमः ॥ ३ ॥ श्री गौतम स्वामी सर्वज्ञाय नमः ॥
॥ * ॥ इस एक २ पदको २००० गुणनो करै । उपवास करे । रा श्री जागण करे । निर्वाणके समय अष्ट द्रव्य थालनरके मंदर जावै । रोशनी करे। निर्वाण कल्याणककी आरती करे। दीपमाला चैत्यवंदन करके स्तवन बोले । निर्वाण कल्याणक अधिकार सुणें । गौतम रास सुणें । (इत्या दिक) नदार चित्त, सर्व ठिकाणें दीवाली पर्वका नव करना चाहिये ॥ ॥ ॥ अथ निर्वाण आरती लि० ॥
॥
॥
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॥ ॐ ॥ जय जगदीशर प्रति अलवेशर । बीर प्रजुराया ॥ पतित नधारण जव जयनंजण । बोधबीज दाया ॥ ( जय २ जिनराया । प्रारति करुं मन जाया । होय कंचन काया ) ॥ १ ( ज० ) ॥ त्रीकुंम नगर अति सुंदर । सिधारथ राया । सुदि आसाढ बठके दिवशै । त्रिशला कुकुमाया (ज०) ॥ १ ॥ चवद सुपन देखी प्रति उत्तम । निज प्रीतम भाषे । रथ नेद सहु निचे करनें । जिन गुण रस चाखे ( ज० ) ॥ २ ॥ चैत्र सुदी तेरश दिन उत्तम । सहु ग्रह उच्चपावै । जन्म लेई दिश कुमरी सहुना । आशन कंपावै ( ज०) ३ ॥ नव कर जावै निज थानक । इंद्र सहु वै । मेरु शिखरपर स्नात्र महोचव । करि आनंद पावे ( ज० ) ॥ ४ ॥ वसु धारा दृष्टीकर सहु सुर । निज थानक जावै । सिधारथ करें जन्म महो व । अचरज सहु पावै ( ज० ) ॥ ५ ॥ कंचन बरण तेज प्रति दीपत | हरिलंबन बाजै । कुल इख्वागु अंग सहू लक्षण । शशिज्युं मुख राजै ( ज० ) ॥ ६ ॥ दान संबर दे प्रभु लेवै । चारित्र सुख दाई । मार्ग सीख दशमी बद पa । उत्तम तरु पाई ( ज० ) ॥ ७ ॥ बार बरश बद्मस्थ प णामें । डुक्कर तप पालै । माधव सुद दशमी के दिन कुं । दोख सहु टा
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कार्तिक माश, दीपमाला, ग्यानपंचमी, पर्वाधिकार ३५७ ( ज० ) ॥ ८ ॥ केवल पाय सबीसुर संगै। पावा पुर आवै । गुणगण लंकृत देशना देकें । संघ सहु पावै ॥ ९ ॥ नूमंमल बिच बहुतजीवकुं अविचल सुख देवै । नर सुर इंद्र सबीमिल पूजै। जगमें जश लेवै (ज०) ॥ १०॥ चरम चौमाशि पावापुरि करकै । अंत समय जाणी । हस्तिपा लकी शुक्ल शालमें। सोलै पहर बाणी ( ज° ) ॥११॥ पर्यकासन 36 तपस्या । इक चित गुणधामी । कार्तिक कृष्ण अमावसके दिन । शिवक मला पामी ( ज० ) ॥ १२ ॥ इंद्रादिक निर्वाण महोब्व । करि प्रनु गु ण गावै । देवमुखै गणधर गुरु गोतम । सुणनें पढतावै ( ज० )॥१३॥ बीतराग गुण मनमें धारी । अनित्यनाव नावै । केवल ग्यान प्रगट हुय ततखिण । सुर नर गुण गावे (ज.)॥ १४॥ पंच कल्याणक शाशन पतिकी । आरति ज्यो गावै । शिवमुख लक्ष्मी प्रधान मिले जब । मोहन गुण पावै (ज०)॥१५॥ इति पंच कल्याणक आरती संपूर्णम् ॥ * ॥
॥ * ॥अथ श्री दीपमाला चैत्यवंदन ॥ * ॥ ॥ ॥ जय जय श्री जिन वर्धमान । सोवन समवान । सिंह लंबन सिधार्थराय । त्रिशला सुत नांन ॥ १ ॥ वरस बहुत्तर आऊदेह । करसत्त प्रमाण ॥ षनादिक सम जासवंस । इक्ष्वाग सम जाण ॥२॥ बहनत्त संजम लियोए। कुंमग्राम पुर गम । गणधर इग्यारे सहित । आपो शिव पुर स्वाम ॥३॥ चवद सहस मुनि स्वामि सीस । बत्तीस सहस । श्रमणी श्रावक एक लाख । गुणस सहस ॥४॥ तीन लाख श्राविका । वली सहस अढार। सुर मातंग सिचाइका । नित सानिधकार ॥ ५॥ एकाकी पावा पुरीए । बहनत सुजाण । प्रनु पोहता अमृत पदे । करो संघ कल्याण ॥६॥ इति ॥
॥ ॥ पीने जंकिंचिनामतित्थं । नमोत्थुणं० । कही। दीपमाला निर्वा णक कल्याणकको स्तवन बोले ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ निर्वाण कल्याणक स्तवन लि० ॥ ॥
॥ॐ॥ मारग देशक मोह नोरे। केवल ग्यान निधान । जावदया सागर प्रनूरे । पर नपगारी प्रधानोरे ॥ १॥ ( वीर प्रनु सिध थया) संघ स कल आधारोरे। हिव इण जरतमां । कुण करस्यै नपगारोरे॥२॥ (बीर
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... रत्नसागर. प्रनु सिघ थया)। नाथ बिहूणी सैन्य जूरे । बीर बिहूणोरे संघ । साथै कुण आधार थीरे। परमानंद अनंगोरे॥ ३॥ (बीर० ) मात बिहूणा बालज्युरे । अरहो परो अथमाय । बीर विहूणा जीवमारे । आकुल व्याकुल थायै रे॥४॥ (बी०)॥शंसय नेदक बीरनोरे । विरहते केम खमाय । जे दीठे सुख ऊपरे। ते विण किम रहिवायोरे॥५॥ (बी० ) ॥ निर्या मक नव समुद्रनोरे। नव अटवी सत्थवाह । ते परमेशर विन मिल्यारे । किम वाधे नबाहोरे ॥६॥ (बी०)॥बीर थकां पिण श्रुततणोरे । हुँतो परम आधार। हिवणा श्रुत आधाररे । एह जिन आगम सारोरे ॥७॥ (बी० )॥ इण कालै सब जीवनें रे । आगमथी आनंद । ध्यावो सेवो नवि जनारे । जिन पमिमा सुख कंदोरे ॥८॥ (बी० ) ॥ गणधर आचारज मुनीरे। सहुनें इणपरि सिघ । जव जव आगम संगथीरे । देवचंद्र पद लीधोरे॥९॥ (बी० ) ॥ इति निर्बाण कल्याणक स्तवनं ॥ ४ ॥
॥ ॥ ग्यान पंचमी पवाधिकारः२॥8॥ ॥ * ॥ दशरो कार्तिक महिनेमें, कार्तिक सुद पंचमी। (सो ) ग्या नपंचमी नामसें पार्व प्रशिध है । ( इस दिन ) सर्व नव्य जीवांकों ज्ञानको बिशेष आराधन करनो चहिये। झानके समान संसारमें उत्तम पदार्थ कोईबी नही । सर्व तत्वमें ज्ञान समान कोई तत्व नही । मोद मार्ग साधनको शान समान कोई उपाय नही । इस ज्ञान पंचमीको आराधनसें अनेक पुष्ट कर्म बिछेद होय। गुंगापणो, मूर्ख पणो, वक्रपणो, (और ) कोढादिकके रोग, सर्ब दूर होय । (अनुक्रमें ) ज्ञानावरणी कर्मके क्य होनेसें पांचों ज्ञान प्रगट होय ( जैसें ) वरदत्त गुणमंजरीके रोगादिकके सर्ब नपद्रव दूर होके । मनोरथ पूर्णलए । नसी माफक (जो ) ज्ञानपंच मीका आराधन करेगा। उसीका मनोरथ पूर्ण होगा ॥ ॥#॥
॥ ॥ ग्यान पंचमी देव बंदन विधिः॥॥ ॥8॥ प्रथम पवित्र स्थानके । चौकी पट्टे ऊपर ग्यानको स्थापन करै। तिस आगे पांच साथिया करै । फल, फूल, प्रमुख चढावै । पांच वत्तीको दीपक चढावै। अगर कपूरको धूप खेवै। पूजा पढके । वास तोप, कपूर
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कार्त्तिक माश ग्यानपंचमी देववंदन बिधिः
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सें, ग्यान पूजा करै । यथा शक्ती । रोकनाणो चढावै । (तथा) पूठा, विटां गणादि चढावै । ( ज्ञानपूजा लिखते हैं ) ॥ ॥ नमंति सामंत मही नाहं । देवाय पूयं सुविहेय पुविं । नत्तीय चित्तं मणिदामएहिं । मंदार पु प्फं पसवेहि नाणं ॥ १ ॥ तहेव सड्ढा मणि मुत्तिएहिं । सुगंधपुष्फेहि वरंसि एहिं । पूयंति वदति नमंति नाणं । नाणरसजानाय जवक्खयाय ॥ २ ॥ यह पूजा पढके, ज्ञान पूजा करे। (इसी तरे) द्रव्य पूजा करके (पीछे) नावपूजा करे ( सो लिखते हैं ) । १ खमासमण देके । इरिया वही परिकमें । लो गस्स कहै । (बैठक) मुहपत्ती परिने है । अणुजापह | मेमी नग्गहं ( इत्यादिक) दो वांदणा देवै । पीछे पांच खमा समण देके । ज्ञानको नमस्कार कहै ॥ ॥
॥ * ॥ अथ ज्ञानको नमस्कार लिख्यते ॥
॥
॥ ॥ सकल वस्तु प्रतिनाश जानु निरमलसुख कारण | सम्यग्दर्श न पुष्टहेतु जव जलनिधि तारण । संयम तप आनंद कंद अन्ना निवारण मार विकार प्रचार ताप तापित जिन ठारण ॥ १ ॥ स्यादवाद परिणाम धर्मपरणति परिबोहण । साहु साहुणी संघ सर्व आराधन सोहण । मो ह तिमर विध्वंस सूर मिथ्यात्व पणासण । श्रातमशक्ति अनंत शुद्ध मनु ता परगास ॥ २ ॥ मति श्रुति अवधि विसुद्ध नारा मणपऊव केवल । द पचास क्षायोपशमिक एक कायिक निरमल । दोय परोक्ष प्रथम ति हां पुगपरत दीसतः । सकल प्रतक्ष प्रकाश जास ध्रुव केवल अपरमित ॥ ३ ॥ धर्म्म सकलनो मूल शुद्ध त्रिपदी जिन नाशै । बाहिर अंग प्रधान खंध गणधर सुप्रकाशै । शाखा श्रीनिर्युक्ति नाष्य परिशाखा दीपैं । चूरण टीका पत्र पुष्प संशय सब जीपै ॥ ४ ॥ पंचोंगी सार बोध को जिन पंच
अंगे । नंदी अनुयोग द्वार शाख मानो मन रंगे । वीरपरंपर जीत अनु जव नपगारी | अभ्यासो गम गम निरुपम सुखकारी ॥ ५ ॥ मोह पंकहर नीरसम सिद्धांत अबाधै । देव चंद्र आणासहित नय जंग अगाधै। ए श्रुतज्ञान सोहामणो । सकल मोक सुखकंद । जगतै सेवो नविकजन । यामो परमानंद ॥ ६ ॥ ॥ इति ज्ञानस्तुति ॥ ॥ ( इत्यादि ) नमस्कार क
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रत्नसागर..
हिके । णमोत्थुणं॰ । जावंति चेयाई ० । जावति केवि साहू० । नमोर्हसि . ( कहके ) प्रणमुं श्रीगुरुपाय ० ( इत्यादि) ज्ञानके स्तवन बोलै । जय वीयराय • कहै | वंद० । प्रनत्थू कहके । एक नवकारको कानसम्म करे । थुई कहे ॥ ॥
॥ * ॥ अथ थुई लि० ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥
॥ ॐ ॥ देविंद वंदिय पएहि परूवियाणि । नाणाणि केवल मोहिम ई सुयाणि । पंचावि पंचम गई सिय पंचमीए । पूया तवो गुणरयाण जि यार्दितु ॥ १ ॥ * ॥ यह स्तुति कहके । ( ज्ञान आराधवा निमित्तं करे मि का सग्गं ) तस्सुत्तरी । अन्नत्थू कहके । १ लोगस्सको का सग्ग करे (पारके) बोधा गाधं० ( इत्यादि गाथा पढके ) पीछे आणि बो हियनाणं । सुयनाणं चैव नहिनाणंच । तह मणपऊव नाणं । केवलनां च पंचमयं ॥ १ ॥ यह गाथा कहके । इहामि खमा० । श्रीमति ज्ञानाय नमः॥ १ ॥ श्री श्रुतिज्ञानाय नमः ॥ २ ॥ श्रीअवधिज्ञानाय नमः ॥ ३ ॥ श्री मनः पर्यव ज्ञानाय नमः ॥ ४ ॥ समस्त लोकालोक जास्कर श्री केवल ज्ञा नाय नमः ॥ ५ ॥ ( इसी तरै ) पांच नमस्कार करै । थिरता होय तो (५१) ज्ञानके गुणांकों नमस्कार करे (सो) पूर्वे नवपदजीकै गुणनें में लिख्या है। नसी माफक करै । पीछे (की मो नाणस्स ) इस पदको २००० गु नोकरै । कम थिरता होय (तो) ५ जाप करे । ज्ञान पंचमीका व्या ख्यान सु । थिरता होय ( तो ) इग्यारै अंगकी सिझायों पढै (वा) सुर्णे (सो) इग्यारै अंगकी सिझायों लिखतेर्हे ॥ * ॥
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॥ ॥ अथ प्रथम आचारांग सिज्ञाय लि० ॥ ॥ * ॥ (ढाल हठीलानी ) पहिलो अंग सुहामणोरे । अनुपम आ चारांगरे । ( सुगुण नर ) वीर जिनं दै जाषियो रे लाल । नबवाई जास नवं गरे ( सु० ) ॥ १ ॥ बलिहारीए अंगनी रे लाल । हुँ जानं वारं वाररे ( सु० ) विनयै गोचरी प्रदरे रे लाल । जिहां साधु तणो प्राचाररे (सु० बलि०) ॥ २ ॥ सुखंध दोय जेहनारे । प्रवर अध्ययन पचवीशरे ( सु० ) नद्देशा दिक जाणियैरे लाल । पिच्याशी सुजगीसरे ( सु० ब० ) ॥ ३ ॥ हेतु जुग
॥ * ॥
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इग्यारै अंग सिशायां तिकर सोनतारे। पद अट्ठार हजाररे (मु०) । अवर पदने नेहमरे लाल । संख्याता श्रीकाररे (सु० ब० ) ॥ ४॥ गमा अनंता जेहमांरे । वलि अ नन्त पर्यायरे (सु० )। त्रस परित्ततो इहां रे लाल । थावर अनन्त कहा यरे (मु० ब०)॥५॥ निबध निकाचित सासतारे । जिनप्रणीतए नावरे (सु०) सुणतां आतम कलसेरे लाल । प्रगटै सहिज स्वनावरे ( सु० ब०) ॥६॥ सुगुण श्रावक वारू श्राविकारे । अंगै धरीय नसासरे (सु० ) विधि पर्वक तुमे सांगलोरे लाल । गीतारथ गुरु पासरे (सु० ब०)॥७॥ए सि घांत महिमानिलोरे । कतारै नव पाररे (सु०) विनयचंद्र कहै माहरैरे ला ल। ए हीज अंग आधाररे (सु० बलि०)॥८॥ इति आचारांग सिशाय॥१
॥ ॥ अथ सुयगमांग सूत्र सिशाय लि०॥॥ ॥ ॥ (ढाल रसीयानी)। बीजोरे अंग तुमे सांनलो। मनोहर श्रीसु गमांग ( मोरा साजन)। त्रिणसे तेशठ पाखंडी तणो । मत खंड्यो धर रंग (मो.)॥१॥ (मीठीरे लागै वाणी जिन तणी) जागैजेहथीरे ग्यांन (मो रा सा० )। ए वाणी मन नाणी माहरै । मानुं सुधारे समान (मोरा०) (मी ठी० ) ॥२॥रायपसेणी नवांग जेहनो। एतो सुत्र गंजीर मो० । बहुश्रु त अरथ जाणे सहु । हीर नीर धनुर तीर ( मो० मी०)॥३॥ एहनारे सुयखंध दोयछै । वलि अध्ययन तेवीश ( मो०)॥ नद्देशा समुद्देशा जिहां जला। संख्यायैरे तेत्रीश (मो० मीठी०)॥४॥नय निक्षेप प्रमाण नरया। पद उत्तीश हजार ( मो०)। संख्याता अक्रर पद मांहे । कुण लहे तेहनोरे पार ( मो० मीठी०)॥५॥गमा अनंता पर्याय वली । द अनन्त जिण मांहि ( मो०)। गुण अनन्त त्रस परित्त कह्या । थावर अनन्त जेमांहि ( मो० मी०)॥६॥ निबद्ध निकाचित जेसा सयकमा। जिनपन्नत्तारे जाव (मो०)। नाषीरे सुंदर एह प्ररूपणा । चरण करण नोरे जाब (मो० मीठी) ॥णाकरीय जगत जुगत ए सुत्रनी। निहश्चै लहीयेरे मुक्ति (मो०)। विनयचं द्र कहै प्रगटै एह थी। आतम गुणनीरे शक्ति ( मो० मीठी०)॥८॥१॥ इति श्रीसुयगडांग सिशायः॥२॥ ॥ ॥ ॥ ॥
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रत्नसागर. ॥ ॥ अथ (३) गणांग सूत्र सिशाय लि०॥ॐ॥ ॥ ॥ (ढाल) आठ टकै कंकणो लीयोरी (ए चाल) त्रीजो अंग जलो कह्योरे। (जिनजी) नामें श्रीगणांग । (मोरो मन मगन थयो)। हारे देखी २ जाव । हारे जीवाजीव स्वनाव (मो०) सबल जगत करी गजतोरे । जि० । जीवानिगम नपांग (मो०)॥१॥ एह अंग मुझ मन व स्योरे । जि० ॥ जिम कोकिल दलअंब (मो०) गुहिर जाव कर जाग तोरे ॥ जि०॥आजतो एह आलंब (मो० ॥२॥ कूट शेल सिखरी सिलारे। जि०॥ काननमें वलिकुंम ( मो०) गह्वर आगर द्रह नदीरे॥ जि०॥जेहमें अरे नदंम (मो०)॥३॥ दश ठगणा अतिदीपतारे॥ जि०॥गुण पर्याय प्र योग ॥ मो० ॥ परित्त जेहनी वाचनारे ॥ जि० ॥ संख्याता अनु योग (मो०)॥४॥ वेष्ट शिलोक निजुत्तमुंरे ॥ जि० ॥ संगहणी पनि चि त्त (मो०) ए सहु संख्याता जिहांरे ॥ जि० ॥ सुणतां नलसै चित्त (मो०)॥५॥ सुयखंध इक राजतोरे । जि० । दश अध्ययन नदार ( मो०) नदेशादिक वीशबैरे। (जि० ) पद बहुत्तर हजार (मो०)॥६॥ रागी जिन शासन तणोरे। जि०॥ सुणे सिघांत वषांण ( मो०)। विनय चंद्र कहै ते हुवैरे॥ जि०॥ परमारथरा जाण (मो०)॥७॥ ॥ ॥ इति श्रीगणांग सूत्र सिझायः॥8॥ ॥ ॥ अथ (४) समवायांग सूत्र सिशाय लि०॥8॥
॥ ॥ ( ढाल ) थारा महिलां ऊपर मेह वोके वीजली. (ए चाल) ॥ ॥ चौथो समवायांग सुणो श्रोता गुणी हो लाल ॥ सुणो० ॥ पन्नवणा नपांग करी सोनावणी हो लाल । करी सो०॥ अरध मागधी भाषा साखा सुरतणी हो लाल ॥ साखासु०॥समकित नाव कुसुम परमल व्यापी घणो हो लाल ॥ पर० ॥१॥ जीव अजीवनें जीवाजीव समास थी हो लाल ॥ जीव०॥लहीयै एहथी नाव विरोध कांइ नथी हो लाल ॥ वि० ॥ नांगा तीन स्वसमयादिकना जाणीयै हो लाल ॥ यादि० ॥ लोक अलोकनें लो कालोक वखाणीय होगालो०॥२॥ एक थकी नेसत समवाय प्ररूपणा होला ल ॥ सम०॥कोमा कोम प्रमाणक जीव निरूपणा हो० ॥ जी० ॥ बारस
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इग्यारै अंग सिशायां विह गणि पिटक तणी संख्या कही हो ॥त०॥ सासता अरथ अनंतकि जै एहना सही होलाल ॥३०॥३॥ सुय खंध अध्ययन नदेशादिके न ला हो लाल ॥ न०॥ संख्यायें एक एक प्रत्येकै गुणनिला हो० ॥ प्रत्ये० ॥ पद एक लाख चौमाल सहस ते उत्तरा हो० ॥ स०॥ पदनें अग्र नदन सं छाता अकरा हो ॥२०॥४॥नाष्य चूर्णि नियुक्ति करी सोहै सदा हो करी०॥ सुणतां नेद गंभीर त्रिपत न होय कदा हो० ॥ त्रिप० ॥ जेहनमा अंगकि अन्तरगतिहसी हो० ॥ अन्त० ॥ जनवरसं ते जोर कुणन हुवै खुसी हो० ॥ कुण० ॥५॥ जाग्यो धरम सनेह जिणंदमुं माहरो हो । जिणं०॥ तजिया शास्त्र मिथ्यात सुत्र जाण्यो खरो हो० ॥ सु० ॥ जिम मा लती लहीनॅग करीने नविरहै हो०॥ करी० ॥ ईश्वर शिर मुरगंग तजी परि नवि वहै हो॥तजी०॥६॥ एप्रवचन निग्रंथ तणो जुगतै वमो हो । तणो० ॥साकर सेलमी द्राष थकी पिण मीठमो हो ॥ थकी० ॥ स्युं कही यै बहुवात विनयचंद्र इम कहै हो० ॥ वि०॥ एहना सुणने नाव श्रोता अति गहगहै हो०॥श्रोता०॥७॥इति श्रीसमवायांग मूत्रसिशाय सं० ॥४॥
॥॥अथ (५)नगवती सूत्र सिशाय लि०॥४॥
॥ ॥ ( ढाल पंथीमानी)। पंचम अंगे जगवती जाणीयैरे । जिहां जि नवरना वचन अथाहरे । हिमवंत परबत सेती नीकल्यारे। मानु परतिख गंगप्रवाहरे (पं०)॥१॥ सूरपन्नत्ती नामें परगमीरे । जेहनी छै नद्दाम न्यांगरे । सूत्र तणी रचना दरीया जिसीरे । मांहिला अरथ ते सजन तरं गरे ( पं० )॥२॥ इहां तो सुयखंध एक अति जलोरे । एक सो एक अध्ययन नदाररे। दश हजार नदेशा जेहनारे। जिहां किण प्रष्ण उत्तीश हजाररे ( पं० )॥३॥ पद तो दोयलाख अरथे नस्यारे। ऊपरि सहस अठ्यासी जाणरे । लोकालोक स्वरूपनी वर्णनारे। बिवाह पन्नत्ती अधिक प्रमाणरे ( पं० ) ॥४॥ करियै पूजा अनें परनावनारे । धरियै सदगुरु ऊपररागरे । सुणिय सूत्र नगवती रागसुंरे। तो होय नव सागरनो त्यागरे (पं०)॥५॥गोतम नामें द्रव्य चढाइयैरे। सम्यक ज्ञान उदय होय जेमरे। कीज साधु तथा साहमी तणीरे। नगति युगति मन आणो प्रेमरे ( पं० )॥६॥
* ॥ ( ढाल पंथानात परबत सेती
मारे । जेहनी उनका
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... रत्नसागर...... इण विधिसुं एह सूत्र आराधतांरे। इण नव सी वंचित काजरे । परजव विनय चंद्र कहे तेलहैरे। मोहन मुगति पुरीनो राजरे ( पंच० ) ॥ ७ ॥ इति श्रीनगवती सूत्र सिशाय सं० ॥५॥॥
॥ ॥ ॥ ॥ (६)शातासूत्र सिशाय लि० ॥ * ॥ ॥ॐ॥(ढाल ) कितलख लागा राजाजीरै मालियै । ( एदेशी )। हो अंग ते ज्ञाता सूत्र वखाणिये जी । जेहना चै अरथ अधिक नईम हो (झांरा सुणजो धरिनेह सिधांतनी वातमीजी)। श्रवणे सुणतां गाढो रस ऊ पजै जी। मधुर ता तर्जित जिम मधु खंम हो (ह्मां० ) ॥१॥ जंबुद्दीव पन्नत्ती नपांग जेहनो जी। इण मांह जिन पूजानी बिधि जोरहो (ह्मां०) अर्चिक सुणि परम शांतिरस अनुन्नवै जी । चर्चिक सुणि करै सम सोर हो (झां० ) ॥२॥ नगर न्धान चैत्य वनखंग सोहामणो जी। समवस रण राजाना मातने तातहो ( मां०) धरमाचारज धर्म कथा तिहां दा खवी जी। इहलोक परलोक शधि विशेष सुहात हो (ह्मां० )॥३॥ नो ग परित्याग प्रवज्या पर्षदाजी। सूत्र परिग्रह वारू तप उपधान हो (मां० ) संलेहण पञ्चखाण पादपोप गमनताजी । स्वर्ग गमन शुनकुल नतपत्ति हो (मां)॥४॥ बोधिलान वलितंतते अंतकृया कहीजी। धर्मकथाना दोय सुअखंध हो (ह्मां० ) । पहिलाना नगणीश अध्ययन ते आज जी। वीजाना दशवर्ग महा अनुबंध हो (झां ० )॥५॥ ऊंठ कोमि तिहां स बल कथानक गाषिया जी । भाष्यावलि न्गणीस देश हो (मां॰) । संख्याता हझार जला पद एहना जी। एह थकी जायै कुमति कलेश हो (झां० )॥६॥ विनय करै जे गुरुनो बहु परै जी । तेहनें श्रुत सुणतां बहु फल होय हो (ह्मां० )। ते रसिया मन बसिया विनय चंद्रनें जी। सो माह मिले जोयां एक कै दोय हो (ह्मां० )॥७॥ ॥' इति श्री ज्ञाता धर्म कथाङ्ग सिशायः ॥६॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ (७) उपाशकदशा सूत्रसिशाय लि० ॥ ॥
॥ ॥ (ढाल बिगियानी)। हिवै सातमो अंग ते सांनलो। नपाशग दशानांमें चंगरे । श्रमणो पाशकनी वर्णना । जसु चंदपन्नत्ती नपांगरे॥१॥
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इग्यारै अंग सिशायां मन लागो मोरो सुत्रथी । एतो जव वैराग तरंगरे। रसराता झाता गुण लहै। परमारथ सुविहित संगरे (म०)॥ २॥ इण अंगै सुयखंध एक अध्ययन न्देश विचाररे। दशरसंख्यायें दाखव्या। पद पिणसंख्यात हजाररे (म०)॥३ आणंदादिक श्रावक तणो। सुणतां अधिकार रसाल रे। रस लागै जागै मोहनी । श्रोता जननें ततकालरे (म०)॥४॥ श्रोता
आगलतो वाचतां। गीतारथ पामें रीफरे । जे अर्थ दग्ध समझ नहीं । ते हमुं. तो करवी धीज रे। (म०)॥५॥ दश श्रावकतो इहां जाषिया । पण सूत्र नण्यो नहीं कोयरे । ते माटै शुच श्रावक नणी । एक अरथ नी धारणा होय रे ( म०)॥ ६ ॥ साचो होय ते प्ररूपीयै । निस्संकपणे मुजगीसरे । कवि विनय चंद्र कहै स्युंथयो । जो कुमती करस्यै रीसरे (म०)॥७॥इति श्रीनपाशक दशांग सिशायः॥७॥॥
॥ * ॥(८) अंतगमदशांग सिशाय लि०॥॥ ॥ * ॥ (ढाल) बीर वखाणी राणी चेलणाजी। इस चालमें ॥१॥ आठमो अंग अंतगम दशाजी । मुणी करो कान पवित्र । अंतगम केवली जे थया जी । तेहनारे इहां आठ चरित्र ॥ १॥ कर्म कठिन दल चूरता जी। पूरता जगतनी आस । जिनवर देव इहां जासताजी । सा सता अर्थ सुविलास ( आ० )॥२॥ सकल निक्षेप नय जंग थीजी । अंग ना नाव अनंग । सहिज सुखरंगनी तलिगकाजी । कल्पिका जासु नवांग (आ०)॥ ३॥ एक सुय खंध इण अंगनोजी। वर्ग चै आठ अनिराम
आठ नद्देशा 3 वलीजी। संख्याता सहस पद गम ॥ (आ..) ॥ ४ ॥श्रा उमा अंगना पाठमें जी। एहवो अरे मीगस । सरस अनुन्नव रस ऊपजै जी। संपजै पुण्यनीरास (आ०) ॥५॥ विषय लंपट नर जे हुवै जी। निरविषयी सुण्या थाय । जिम महाविष विषधर तणो जी। नागमंत्रे सुण्या जाय (आ०)॥६॥अमृत वचन मुख वरसती जी। सरस्वती करोरे पसा य। जिम विनय चंद्र इण सूत्रनाजी । तुरतलहै अभिप्राय (आ.) ॥७॥ इति श्रीअंतगम दशांग सिशायः॥८॥॥ ॥ ॥ ॥
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रत्नसागर.
॥ ॥ अथ (९) अणुत्तरोवाई अंग सिशाय लि० ॥ * ॥
॥ * ॥ ( ढाल नणदल बिंदलीलै ए चाल)॥ * ॥ नवमो अंग अणु त्तरो वाई। एहनीरुच मुऊनें आईहो ( श्रावक सूत्र सुणो ) सूत्र सुणो हित आणी। एतो वीतरागनी वाणी हो (श्राव०) ॥ १ ॥ जसु कल्पाव तंसिकानामैं । सोहै न्वांग प्रकामें हो (श्रा ० ) एतो आगमनें अनुकूला। मार्नु मेरु शिखरनी चूला हो । (श्रा० )॥२॥ एतो सूत्रनो नाम सुणीजै । तिम तिम अंतर गति नीजै हो (श्रा०) । प्रगटै नवलसनेहा । एहथी न लसै मोरी देहा हो (श्रा० )॥३॥ अणुत्तर सुरपद पाया । तेहना गुण इणमें गाया हो (श्रा०)। नगरादिक नाव वखाण्या। तेतो है अंगै आ
या हो (श्रा०)॥४॥ इहां एक सुयखंध वारू । त्रिणवर्ग वली मनोहारू हो (श्रा०) । उद्देशा त्रिपासनूरा । संख्यात सहस पद पूरा हो (श्रा०) ॥ ५ ॥ सूत्र सुणावू अमे तेहनें । साची श्रधा हुय जेहने हो (श्रा० ) श्रोताथीप्रीत लगावू । निंदकनें मुंह न लगाईं हो (श्रा० )॥ ६ ॥ जे सुणतां करै बकोर । तेतो माणस नही पिण ढोरहो ( श्रा० ) । कवि बि नयचंद्र कहै साचो। श्रुत रंगै सहुको राचोहो (श्रा० ) ॥७॥ ॥ इति ॥८॥
॥अथ (१०) प्रष्णव्याकरण सिशाय लि० ॥ ॥ . ॥ ॥ (ढाल ) आघा आम पधारो पूज (एहनी ) ॥ ॥दशमो अं ग सुरंग सुहावै । प्रष्णव्याकरण नामें । सूत्र कल्पतरु सेवै ते तो। चिदा नंद फल पामें। (आवो २ गुणना जाण । तुमनें सूत्र सुणावू ) । (टेक) ॥ १ ॥ पुप्फकली ज्यु परिमल महकै । गुरु परागर्ने रागै । तिम नपांग पु फिका एहनो। जोर जुगति करि जागै । ( आवो० ) ॥ २ ॥ अंगुष्टा दिक जिहां प्रकास्या । प्रष्णादिक अतिरूमा । ते अठोत्तर सत एतो । सूत्र मध्य मणि चूमा (आ० ) ॥३॥ आश्रव धार पांच इहां प्राण्यां पांचे संबर धारा । महा मंत्र वाणीमां लहीयै । लबधि नेद सुखकारा । (आ.) ॥४॥ सुय खंध एक दशमें अंगै । पणयालीस अझयणा । पणयालीस नदेशवलीपद । सहस संख्यात नीरयणा (आ.) ॥५॥ जे नर सूत्रसुणे नही कानें । केवल पोष काया । मायामांहि रहै लपटाणा ।
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ग्यानपंचमी देववंदन सिझाय
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ते नर इम हीज आया । ( ० ) ॥ ६ ॥ सूत्र मांहि तो मारग दोय बै | निश्चय नय व्यवहारा । विनय चंद्र कहै ते आदरियै । तजि मन मद न विकारा । ( ० ) ॥ ७ ॥ इति श्री प्रष्णव्याकरण सूत्रसिझायः ॥ १० ॥ ॥ * ॥ अथ ( ११ ) विपाकसूत्र सिझाय लि० ॥ ॥
॥ ॥ (ढाल कमखानी ) ॥ ॥ सुणोरे विपाक श्रुत अंग इग्यारमो । तजो विकथा वृथा जे अनेरी । ललित नवांग जसु प्रवर पुष्फ चूलिका । मूलिका पाप आतंक केरी ( सु० ) ॥ १ ॥ असुन किंपांक सम कृतफल जोगवी । नरकमां गरकथया जेह प्राणी । सुकृतफल जोगवी स्वर्गमां जे गया ! तास वक्तव्यता इहां आणी ( सु० ) ॥ २ ॥ दोय श्रुत खंधनें बी श अध्ययन वलि । बीश उद्देश इहां जिन प्रयुंजे । सहस संख्यात पद कुं द मचकुंद जिम । बहुल परिमल भ्रमर चित्तगुंजै ( सु० ) ॥ ३ ॥ सरसचं पकलता सुरभि सहनें रुचै । अन्य उपगारनी बुद्धि माटे । सूत्र नपगार तेह थी सबल जाणियै । जेहथी पुरुष सुख अचल खाटै ( सु० ) ॥ ४ ॥ बंधनें मोहना बेनं कारण । दुकृतनें सुकृत जोवो बिचारी । दुक्कतनें पर हरी सुकृतनें आदरी। जिन वचन धारियै गुणसंभारी ( सु० ) ॥ ५ ॥ मकररे मकर निंद्या निगुण पारकी । नारकी तणी गति कांई वांधै । नारकी प्रकृत तजि सहज संतोष जज । लाग श्रुत सांगली धरम धंधै ( सु० ) ॥ ६ ॥ सुक्खनें क्ख विपाक फल दाखव्या । अंग इग्यारमें बीत रागे । चिरजयो वीरशासन जिहां सूत्र थी। कवि विनय चंद्र गुण ज्योति जागे (सु० )॥७॥ इति श्रीविपाकसूत्र सिझायः ॥ ११ ॥ 11 11 ॥ *॥
॥
॥ * ॥ थ इग्यारे अंगकी बना लि० ॥ ॥* ॥ ( ढाल वधावानी) अंग इग्यारह में थुएया। (सहेलीए) आज था रंगरोलकि (स०) नन्दी सूत्र मांहि एहनो (स० ) । यो सर्व निचोल कि ॥ १ ॥ ( सहेलीए आज वधामणा ) पसरी अंगइग्यारनी (स० ) मुज मन मंप बेल कि । सींचते हरखे करी (स० ) अनुभव रसनी रेलकी ॥ २ ॥ हे घरी जे सांजलै (स० ) । कुंण बूढा कुण बालकि । तो ते फल लहै फ्रूट रा (स० ) स्वादें प्रतिहि रसाल कि || ३ || हरख पार घरी हीयै ( स ० )
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रत्नसागर. अहम्मदावाद मकारकि । नासकरी ए अंगनी (स.) वरत्या जय जय कार कि॥४॥ संवत सतर पचावनें (स.)। वरषा ऋतु नन माशकि । दशमी दिन शुदि पक्षमा (सु० ) पूरण थई मन आसकि ॥५॥श्रीजिन धर्मसूरि पाटवी (स.)। श्रीजिनचंद्र सूरीसकि । खरतर गबना राजीया ( स० ) त मु राजै सुजगीसकि ॥६॥ पाठक हरख निधानजी । सहेछ । ज्ञान ति लक सुपसायकि । विनय चंद्र कहै में करी (स.)। अंग इग्यार सिशा यकि । (सहे० )॥७॥ इति श्रीइग्यारै अंग सिशायः॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः ज्ञानको स्तवन लि. || ॥ ॥ राग तुमरी ॥ * ॥ मरैरे मनमांनी ज्ञानजरी । (मे० ) परनप गारी सुगुरु बताई । पांचू दे करी। मति श्रुति अवधि अवर मन पर्यव। केवल बोधवरी । ( मे० )॥१॥ तपकर अग्नि मूंस देशनकी । करमें धनल करी। सक्रिय संयम करतासुं मिल । सिघ रसानधरी । ( मे०)॥२॥ पूरण पुन्य मिली मोय सजनी । सकला नन्ददरी। बालकहै अब विसरत नांहीं। पल दिन एकघरी । (मे० ) ॥३॥ इति ॥ * ॥
॥2॥ पुनः आगम स्तवन लि०॥॥ ॥ * ॥ श्रुत अतिहनलो। संघसकल आधार नमुं त्रिभुवन तिलो।(आं कणी ) अरथै श्री बीर जिणंद आख्यो । सूत्रे श्रीगणधर गुरु नाष्यो । तनय थी जे मुनिवर राख्यो ॥१॥ (श्रु०)। जेह थी जगनाव सकल जाणे । नय एकान्त मुनि जन नवितांणें । निश्चइ व्यवहार ते मन आणें ॥२ (श्रु०) जिहां अङ्ग नपाङ्ग अतिरूडा । उबेद पइन्ना नहिं कूमा । मू लसुत्र नन्दी अनुयोग चूमा ॥३॥ (श्रु० )। जिहां निरयुगती सुत्रै संगी वलि भाष्य चूरणि टीका चङ्गी । पंचम अंगै कही पंचाङ्गी ॥४॥(श्रु०) जिहां साधु श्रावक मारग लहियै। संवेग पखी बलि सरदहिये । एत्रिण विन नवमारग कहियै ॥ ५॥ (श्रु०) । जेहनी अनुपेहा नित करिये । नपचारै दूषण परिहरियै । आराध्यां निज अनुन्नव वरियै ॥ ६॥ (श्रु० ) जिन आगमना जे गुणगावै। शुघाशय जे मनमें ध्यावे । ते दमा क ल्याण सदा पावै ॥७॥ (श्रु०)॥इति आगम स्त० ॥ * ॥
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सिघागरी स्तवन ॥ * ॥ अथ कार्तिक चौमाशाधिकार लि० ॥ * ॥ ॥ ॥ कार्तिक महिनेमें मिती कार्तिक सुद १४ कैदिन। सब मन्दर दर्शन करनेकों जाना। व्याख्यान सुणना । सामायकादिक धर्मकृत्य कर ना (इत्यादिक) सर्व अधिकार पूर्वे, आसाढ चौमाशे तुल्य जानके, कार्ति क चौमाशैका सेवन करै ।। इति कार्तिक चौमाशा सेवनविधिः॥४॥ ॥॥अथ कार्तिक पूर्णमाशीका अधिकार लि०॥ * ॥
॥ प्रथम कार्तिक बद १ से सेवेंजरास सुणे निवी (वा) एका शणा, व्याशणादिक तप करै। दोनुं टंक पमिक्कमणो करै। देव वंदनादिक करै । (क्षी श्री सिक्षेत्र अनन्तसिघाय नमः ) इसीको एक जाप स दा करै । शक्ति होय (तो) सिघ गिरी यात्रा करनेको जावै । काती पूनमके दिन विस्तार संयुक्त सिगिरीकी पूजा करावै । अहाही महोचव करै । बिस्तारसें देवबंदनादिक बिधि करै ( २१.) वेर सेवेंजरास सुरें।
झी श्री सिध्देत्र अनन्त सिघाय नमः । इसी पदसें ( २१ ) जेती देवै । (कदास ) सिघ गिरी जाणे की सक्ती न होय (तो) जहां सिघ गिरीका पटमंड्या होय । नहां महोचव संयुक्त दर्शन करनेको जावै । पूजा दिक सब विधि करै । उ नत्त करके (वा) चतुर्थ नत्त करके । इस पर्व को आराधन करै। गुरुनक्ति करै। साहमी वठल करै । ( इत्यादिक) विधिसंयुक्त सिमगिरीकी सेवना करनेसें । सर्ब अशुन्न कर्म विध्वंस होके मंगलमाला प्रवर्तन होय ॥ ॥ (इस दिन) श्री द्रावम बारखिल्ल प्रमुख द शकोमि साधु सिधिस्थानक प्राप्त नए ( जिससें) इस दिन (जो) धर्मकृत्य किया हुआ, निस्संदेह दशकोमि गुणा फलै । (इस ) चरतोत्रमें सिधगिरी के समान, कोई नत्तम तीर्थ नहिं । (में पिण सन् ) नगणीसतीशमें। चैत्रीपून मको यात्रा करता हुवा । सब जगवंतकै बिंबोंका दरशण करके गिणती किया (सो) बारै हार । तीनसै । अहावन १२३५८ बिंब हुआ। और बहुत ठिकाणे चरणोंकी स्थापना है । अनन्ता साधु अणसण लेके परम पदकों प्राप्त नए हैं (इसीसें) जो आसन नव्वी जीव होंगे(सो) सुघनावसें
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रत्नसागर. इस तीर्थकों सेवन करेंगे। और जो सेवन करते हैं । नसी पुरुषोंकों नम स्कार है । नसी पुरुषोंके जीवतव्य धन्य है ॥॥
॥8॥ ॥ ॥ अथ सिद्धगिरीके स्तवन लि० ॥ * ॥ ॥8॥ (देशी गरबानी)। ते दिन क्यारे आवसी हे । (जोरे वहिनी)। जासु सिघाचलनी जात ( मोरी सहीयां हे.) । पाजै चढतां प्रेम सुंहे । (जोरे वहिनी)। गाइयै गुण अखियात । ( मोरी सहीयां हे । तेदि० )॥१॥ अदनुत ऊंचो देहरो हे । (जोरे वहिनी) मूल नायक आदिनाथ। (मोरी सहीयां हे )। नोली नगत नली परै हे। (जोरे०) निरख्यां होय सनाथ । (मोरी० ते.)॥२॥ नाही निरमल नीरसुं हे । (जोरे०) पहिर खीरोदक चीर । (मोरी०) केसर नरीय कचोलमी हे। (जोरे०) पूजसुंमुगुण सुधीर । (मोरी ते)॥३॥ रूमी रायण गहमीहे । ( जोरे०) आदि जिणंद न दार। (मोरी०) तिहां जगनाथ समो सरया हे । (जोरे०) पूरब निनाएं बार । (मोरी० ते)॥४॥ण गिर वरियै ऊपरा हे। (जोरे० )। सीधा साधु अनंत । (मोरी०) चौमाशे रह्या दोय जिनवरा हे । (जोरे०) अजि त जिणेसर शांति । ( मोरी ते)॥५॥ चेलणा तलाई सिघ सिला हे। (जोरे०) अदभुत नलका कोल। (मोरी०)सिघवम से-जै नदी वहै।(जोरे०) करियै नित रंगरोल । (मोरी० ते)॥६॥ इण झंगर दी थका हे। (जोरे० ) ऊपजे परमानंद । ( मोरी०) गहिरी गिरवर गंहडी हे । (जोरे) चाहै नित जिणचंद (मोरी० तेदि०)॥७॥ इति सिघाचलजी स्तवनम्॥१॥
॥ ॥ पुनः॥१॥ ॥॥आज आपे चालो सहीयो सिद्धाचल गिरजश्यै। सुणि वहनी ए गिरनी महिमा । आदिजिनंद इम नाखी । लरथादिक नरपतिनें आग ल । इंद्रादिक सहु साखीरे (आज०)॥१॥ण गिरवरिय काल अनं ते। साधु अनन्ता सीधा । जनम मरणनां उख.नोमीनें । अमल अखय गुण लीधारे (०)॥२॥ इण गिर सनमुख पगला परतां । आतम सुध सुनावै । कोम नवारा पातिक कीधा । एक पलकमें जावैरे (०) ॥३॥ सासतो तीरथ ए सेठे जो। जोतांलागै मीठो। तीन जुवनमें इण गिर
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सिधगिरी स्तवन. तोले। वीजो कोईन दीगेरे (आ.)॥४॥ नीरंजनमुं नेह धरीनें । आगै न्लग करस्यां । अद्भुत आदि जिनेसर निरखी । प्रेम सुधारस पीस्यारे (प्रा.)॥५॥ पुहसुगंधा लेइ पचरंगा । हार सुगंधा गूंथी । पहिरावी प्रनु कंठ लहिस्यां । शिव मारगनी सूथीरे (आ०)॥६॥गहिर स्वरे जिन वर गुण गातां । यात्र निनाणूं करियै । मन गमती जमती विचनमतां । जव सायर निसतरियैरे (आ.)॥७॥ पूरबनिनाणूं वार प्रथम जिन । राय गरूखे आया। ते तीरथ सुन्न जावै फरसी। करियै निरमलकायारे (आज०) ॥८॥लान नदै ए गिरवर लहियै । कहै इम केवल नाणी । श्रीजिनचंद स दा हित बबल । प्रेम घणे चित आणीरे (आ.)॥९॥इति ॥ * ॥
॥ ॥ पुनः ॥ ॥ॐ॥ (श्रीचंद्रा प्रनु पाहुणोरे ए देशी) ॥ ॥ नमोरे नमो सेज गिरीरे । त्रिकरण शुध त्रिकालरे । पाप पमल दूरै टलैरे । तूटै करम जंजालरे। (नमो० ) ॥ १ ॥ पूरब निनाएं समोसरयारे । प्रथम जिनंद जगदीशरे । वावीशम जिनवर विनारे । समो सरया तेवीशरे। (नमो०) ॥२॥ साधु अनन्त अणशण ग्रहीरे । सीधा एहीज गेमरे । काल आगामी वलि सीमस्यैरे । साधु अनन्ती कोमिरे ( नमो०)॥३॥ अनंत कल्याणक नूमिकारे । महिमावंत महन्तरे । सासतो तीरथ ए सही रे। अतिशय जास अनन्तरे (न०) ॥४॥ कोमि नवंतर जेकियारे पातिक विविध उपाय रे । सेठेजै सनमुख चालतां रे । पग पग ते सहु जायरे। ( नमो०)॥५॥धनदिन तेहीज जाणमुंरे। वहिस्युं सेठेज केरी वा टरे। नहरी यथाविध पालस्यूरे । संघ सहित गहिगाटरे (नमो०)॥६॥ पगपग नमव अति घणारे । पग पग याचक दानरे । प्रेम नगति साहमी तणीरे। जीर्णोधार प्रधान रे (नमो०)॥७॥धन ते गिर राय निरखसुरे। वढती मंगल मालरे। मणि मोतीयडे वधावस्युं रे । रजत सोवन नर थालरे (नमो०) ॥८॥ धन दिन ते गिर फरसस्युंरे । करस्युं पावन मोरी का यरे। जगति जुगति जुहारसुंरे। नानि नन्दन जिन रायरे ( नमो०)॥९॥ द्रव्य जाव करमुं मुदारे। पूजा विविध प्रकार रे । नावै भावना नावसुंरे।
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रत्नसागर.
करसुं सफल अवताररे (नमो० ) ॥ १० ॥ रतनत्रयी जमती नली रे । देसुं ते घर बुधिरे । जव जव भ्रमण निवारसुंरे । लहिसुं तम सुधिरे ॥ ( न मो० ) ॥ ११ ॥ विध फरसा मन माहरो रे | मोहि रह्यो दिन रातरे । पुन्य प्रबल थी पामियो रे । जगिरी केरी जातरे (नमो० ) ॥१२॥ नाथ धूलेवा सु पसाय थी रे । कारज सगला सिधरे । कहै जिन हरष सूरी सदारे । होय जो मंगल वृधरे ( नमो० ) ॥ १३ ॥ इति सिद्धा० ॥
11 * !!
॥ ॐ ॥ पुनः ॥ ॥
॥ * ॥ (देशी पंथीडानी ) ॥ अंग नमावो मोनें प्रतिघणो । नेटवा बि मल गिरंदरे । (थीमा ) । नाभिराया कुल चंदलो । जिहां वसै मरुदेवी नन्द रे । (पंथीका ) । वहिलं बोलैरे पंथी झांरा वहिलं बोलैरे ॥ १ ॥ सेतुंजो
कितनी दूररे (पंथीका वहि० ) । पाली ताणो नगर सुहामणो । रूमी ललिता सरनी पालरे ( पंथीमा ) जिहां अंबारे वमला घणा । कुक रही चंपलानी कालरे ( पंथीका वहि० ) ॥ २ ॥ धन ते पंखी पारेवना । सेज वसिया सोररे ( पंथीका ) । ऊमाहो करीनें जे घर रहै । मांणस नहीं ते ढोर रे ! ( पंथीका वहितुं० ) ॥ ३ ॥ सेंत्रुज वाटेजी चालतां । कीणी जीणीकमै खेहरे । (पंथीका ) । मैला थायै संघना कापमा । निरमल थायै देहरे | ( पंथीका वहितुं० ) ॥ ४ ॥ ऊंचो देहरो आदि नाथ रो । आगल चौक विसाल रे ( पंथीका ) । जिहां मिलमिल घणा मानवी । गावै प्रगुण माजरे । ( पंथीका वहिर्तुं ० ) ॥ ५ ॥ घस केसर नरवाटका | पूजै जिनवर गरे । ( पंथीडा ) । फूलाहंदो सौ प्रजुसिर सेहरो । दि बलानी जोति गरे । ( पंथीडा व० ) ॥ ६ ॥ ए गिरवर दीगं माहरै । ऊपजै परमानन्दरे । ( पंथीमा ) मोनें नेटणरोजी कोम । प्रेम घणें जिनचंदरे । (पंथीका व० ) ॥ ७ ॥ इति सिधाचलजी स्तवनम् ॥ ४ ॥
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॥ * ॥ जात्रानिनाएं करियै विमल गिरि ( जात्रा ० ) ॥ पूरबनिनाएं वार सेलुंज गिरि । रुषनजिनंद समोसरियै ( विम० जा ० ) । कोडि सहस जव पातिक तूटै । सेज सामें नग नरियै । (
विमल ० जा ०
) १ ॥ चौ
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सिद्धगिरी स्तवन
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'थ दोयम तपस्या । करि चढियै गिरवरियै । ( वि० जा० ) पुंरु रीक पद जपियै हरखें। अध्यवसाय शुभ धरियै ( वि० जा० ) ॥ २ ॥ पापी वी निजर न देखे । हिंसक पिण धरियै ( वि० जा ० ) । भूमि संथारीनें नारितो संग । दूर थकी पर हरियै ( वि०जा० ) ॥ ३ ॥ कल याहारीनें सचित्त परि हारी । गुरु साथै पद चरियै ( वि० जा ० ) पक्किम ा दोय विधसुं कीजै । पाप पकल विष हरियै ( वि० जा ० ) ॥ ४ ॥ कलि काले तीरथमोटो । प्रवहण सम जवदरियै ( वि० जा ० ) । उत्तम ए गिर वर सेवतां । पदम कहै नवतरियै । ( विम० जात्रा ० ) ॥ ५ ॥ 1111
॥ ॥ पुनः ॥ ॥
॥ * ॥ आज बधाई म्हांरै रंग बधाई । मोतीयमे० । ए चाल ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ सिद्धगिरी नेटो जवि नावे | ज्युं सुखसंपति आनंद थावे । सि० ॥ ए गिरवरकै नेटणसेती । पूरब संचित अघ सहु जावै ॥ सि० ॥ ॥ १ ॥ राय रखे रिषन जिनेसर। पूरब निनांएं आया स्वभावै ॥ सि० ॥ पुंर गिरकी महमा जिननें । भरतादिक सब जनकुं सुणावै ॥ सि० ॥ २ ॥ सासतो तीरथ तीन जुवनमें। शिवपुरि पाज प्रत्यक्ष कहावै ॥ सिं० ॥ को कि अनंत साधू इस ऊपर । मुक्तिगये इस गिरके प्रभावै ॥ सि० ॥ ३ ॥ एकवार गिरकुं नेटसें । सहस कोरुना पातक जावै ॥ सि० ॥ नानिरा
मरुदेवी नन्दन । आदिजिनंद नेट्यां सुखपावै ॥ सि० ॥ ४ ॥ अनु तबिंब अनोपमसोत्रित । चौमुख जिनवर प्रति मननावै ॥ सि० | देशदे शांतरसें बहु नरगण | आय नलीविध पूज रचावै ॥ सि० ॥ ५ ॥ कपूर क स्तूरी केसर घोली । मनसुध प्रनुके चरण चढावै ॥ सि० ॥ आज हमारे सुरतरु प्रगट्यो । मनमें हरष आनन्द रावै ॥ सि० ॥ ६ ॥ आज रखी कंचनमइ गो । विमलाचल जेट्या सुनावै ॥ सि० ॥ मुर्शिदाबाद प्र जीमगंज में । गोत्र दूधेड्या प्रगट कहावै ॥ सि० ॥ ७ ॥ मोहतिमर अघ दूर करणकों | बुध सिंह यात्राकरी सुनावै ॥ सि० ॥ गगन जोग ग्रह इंदु संबवर । चैत्रनुज्वल तेरस मन जावै ॥ सि० ॥ ८ ॥ प्राग्रह श्रीम
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रत्नसागर. जयराजकुं। साथ जलीबिध यात्रा करावै ॥ सि० ॥ संघ साथ श्री लक्ष्मी प्रधानना। शिष्य मोहन प्रजुना गुणगावै ॥ सि ॥९॥ इति ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ जिनबिंब संख्यागर्षित सेव॒जरास लि०॥॥
॥ * ॥ दूहा ॥ आदिजिनंद दिनंदसम । ज्योति रूप जगतेय । आ तम गुण परकास कर । नवियणकुं सुख देय ॥ १ ॥ वाग्देवी प्रणमी करी। सद्गुरु सीस नमाय । सिघ क्षेत्रका गुण कहुं । सुमताने सुपसाय ॥ २॥ सुमता वचने चालतां । सदा सुरंगी देह । सुरपति नरपति सहुनमें। पामेंशिवसुख तेह ॥३॥ सुमता जिम चेतन जणी । समभावे चित आय । प्रथम बात एही कहुं । सुणो नवी चितलाय ॥ ४ ॥ * ॥ ढाल १ मारू जीकी ॥ * ॥ सुमता कहे चेतन नणी। साहिबजी। गेमो मिथ्या जालहो। इक चित्ते एगिरि सेवियेसा ॥ ज्यो निज गुण नी चाहहो॥इक०॥१॥ काल अनादीसें रह्यो। सा० ॥ कुमति कथन बस होयहो । नवमांहे जमतां मुखसह्या ॥ सा० ॥२॥ जन्म मरणकरि नव नवा ॥ सा० ॥ नटज्युं वेश व नां वहो । चनुगतिमें नाटक तुम कियो ॥ सा० ॥ ३ ॥ नरक निगोदमें तुम रह्या ॥ सा ॥काण नहिं पाम्यो सुख हो । किम जूलो मुख देखी जिसा ॥ सा०॥४॥ देव मनुष्य अवतार में । सा० ॥ मोह विटंबणाः ख हो । चित्तधरने पुजन गंमिये । सा०॥५॥ बल अपणो फोरयां बि नां । सा॥ऊन नपमे पायहो । जशलीजे पुऊन कय करी ॥ सा० ।। ६॥ मुमकुंकदेय न संनरी ॥ सा० ॥ तोपिण अवसर देखहो। तुमागे बात सहू कही ॥ सा ॥७॥ नत्तम नर जिणनें कह्यो ॥ सा ॥ होय गुण अवगुण जांणहो। बलि जांणे मित्र कुमित्रनें ॥ सा० ॥ ८ ॥ मुझसे प्रेम धरी करी ॥ सा ॥ कीजे वचन प्रमाण हो । जिन मारग नत्तम आदरौ ॥ सा ॥ ९॥ चारित्र धर्मनी आगन्या ॥ सा॥ धारो शिर पर आजहो । जिम पामो रंग बधामणा ॥ सा० ॥ १० ॥ सुध सरधा जलकुं ग्रही॥सा॥बोवो समकित बीज हो । नवपद्धव धर्म तरू हुये ॥ सा ॥ ११॥ नत्तम नर सुरपति पणो ॥ सा ॥ पुष्प सुगंधी जाण हो । फलइणका शिव सुख पांमस्यो । सा ॥ १२ ॥ उत्तम ग्यांन प्रकाशसें ॥
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.. सिद्धगिरी बिंबसंख्या गर्जित रास... ३७५ सा० ॥ सहु देखे निजरूप हो। परमातम पदकुं पिगंणिये ॥ सा० ॥ १३ ॥ तुं मुफ बबलहे सदा ॥ सा० ॥ तुम गुण अपरं पारहो । परमातम पद तुंही अ॥ सा० ॥ १४ ॥ पिण निश्चे ब्यवहार में ॥ सा० ॥ निश् नयकुं जांणहो । व्यवहारे शुद्ध क्रिया करी ॥ सा० ॥ १५ ॥ निज निज शक्ती अनुसरे ॥ सा० ॥ पालै व्रत मन शुषहो । नव पदनो ध्यान हिये धरी। सा० ॥ १६ ॥ सिघ गिरी प्रवहण चढी ॥ सा० ॥ वगै शिवपुर जायहो। जव सायर पार पामो सुखे ॥ सा० ॥ १७॥ इण परि सुमता आयके । सा० ॥ समझावे नवि चित्तहो । सुखपांमे समझे नविजिके ॥ सा०॥ ॥ * ॥ (हाः)॥ इणपर सुमता बयणसुण । आसन नबी जीव । हरख धरी व्रत आदरे। धर्म अमृत रस पीव ॥१॥ सिद्ध गिरी इक अवसरे । आयाबीर जिणंद । इन्द्रादिकसहु आयनें । वांद्या धर आणंद ॥ २ ॥ सिध गिरीना गु णसहू । सुणवा जवि चितधार । प्रनुपद पंकज नमण कर । बैग करी इकतार ॥३॥ जगवन दीनी देशना । सिद्धगिरी सम आज । जगमें कोई तीरथ नहीं। परतिख शिवपुर पाज॥४॥काल अनादीसें रह्यो। नाम उगम पर सिक साधु अनंता इण गिरे। अणसण लही सिव लिच॥५॥ नामलियां सहुन यटले। मुख दालिद्र हुये दूर। दिनदिन अधकीसंपदा। पांमे सुख भरपूर॥६॥ ॥ ॥ (ढाल २)॥ जंबूझीप माहे कह्योरे लाल दक्षिण जरत प्रमाणरे । (नविकनर) सहु देशां मांहे सिरैरे लाल । सोरठ देश वखांणरे ॥ १ ॥ इण गिरनी महमा बीरे लाल । कहे न सके कोई पाररे॥ न०॥ ( बीर जिनंदे भाषियोरेलाल)॥२॥ बिमलाचल प्रणमुं सदारे लाल । श्राध गुणां समनांमरे ॥४०॥ घर बैठां शुन्न नावथीरे लाल । ध्यान कीयां सुख पांमरे॥न० ॥ बी० ॥ ३ ॥ प्रथम अनादी कालमेरे लाल । अनंत सीधा इहां आयरे ॥ न० ॥ अनंत साधु बलि सीधसीरेलाल । प्रण मुंए गिरिरायरे ॥०॥ बी० ॥ ४॥ फागुण सुदि दशमी दिने रे लाल । पूरब निनाएं वाररे॥०॥ आदि जिणंद समोसरयारे लाल। चरण नमुंमु खकाररे ॥ ज० ॥ बी० ॥ पुंमरीक गणधर नमुरे लाल । पंचकोमि मुनिसाथरे । न० ॥ चैत्री पूनम दिन आयनेंरे लाल । काली शिवपुर बा
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रत्नसागर.. थरे॥१०॥बी०॥६॥ नमि बिनमि दोदो कोमसें रेलाल। इणगिरि कीनो वासरे॥०॥ फागुण सुद दसमी दिने रे लाल । अविचल ज्योति प्रका शरे॥० ॥७॥नमि पुत्री चौसठ कहीरे लाल । अणशण लही शिव पायरे॥१०॥द्रावड संग काती पूनमें रेलाल । दसकोमि सीधा इहां आ यरे॥०॥बी०॥८॥राम जरत पांमव कह्यारे लाल । बलि नारद नव आयरे॥न॥थावचा सेलग मुनीरेलाल । जालि मयाली शिव पायरे। ज०॥बी०॥९॥अजित शांति चौमासो रह्यारे लाल । विजीवां हित काजरे॥०॥ नेम विना सहु आवियारे लाल । एशिव पुरनी पाजरे। न०॥बी०॥१०॥ साधु अनंता प्रतिकंकरे रे लाल । सीधा ध्यान लगायरे ज०॥ मनमोहन गिरि सेवतांरे लाल । पातिक दूर पुलायरे ॥४०॥ बी० ॥११॥ (उहाः)॥ करजोमी नितप्रतिनमुं । सहू साधु मननाय । सेनुं ज महातम ग्रन्थसें । नेद सुणो चितलाय ॥१॥ जरता दिकसे आजलग सोले नचार कहाय । ग्रंथान्तर में जेहना । नेद कह्या समझाय ॥२॥सं प्रतिकाले एरह्यो । षोडसमो नचार । करमचंद मोसी तणो। जशरह्यो जग वि स्तार ॥३॥ देव नुवन जिम सोजता । नवबसि चैत्यना नाव । मुरपति नर पति सहुनमें । प्रगट्यां आतमदाव ॥४॥सहु बिंबनी संख्या कहुं । जेनव बसिमें होय । मूलनायक वसिनांममें । प्रगट कहुं जोय ॥५॥ (ढाल३) ॥ ॥ नमोरे नमो सेजेजगिरीरे। (ए चाल)॥8॥प्रणमुं ए गिरिरायनेंरे। धन्य दिवस थयो आजरे । सुमताने सुपसायथीरे। मनबंबित फल्या काजरे ॥१॥प्र०॥ प्रथम बिमल बसि आयनेंरे । पूज्या जिनप्रति बिंबरे । सहु चैत्यामें सोनतारे । उप्पनसै उप्पन बिंबरे ॥२॥प्र०॥ नानिराय सुत जा णियै रे । मूल नायक उवि शांतिरे । मोतीबसीमें बिंबरह्यारे । पचवीशसै बया लीस क्रांतिरे॥३॥प्र०॥ बालावसिमें सोनतारे । च्यारसै षट् बिंबजाणरे । मूलनायक दोनुं बसीतणारे । आदिनाथ गुणखांणरे ॥ ४॥०॥ अद्भुत बिंब मनोहरूरे । इग्यारै कर ऊंचो जाणरे। विस्तारमांन नवहाथनोरे। मुमब लन जिम प्राणरे ॥५॥ प्र० ॥ चौथी प्रेमाबसि हुँ नमुरे । आदिनाथ जग नाथरे । पांचसे अमतीश जिहां रह्यारे । बिंब मिख्यां सहु साथरे॥प्र०
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जिनबिंब संख्यागति सेज रास
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॥ ६ ॥ अजितनाथ स्वामी तणी रे । पांचमी हेमावसि थायरे । अमसठ ऊपर तीनसैरे । बिंबनमुं गुण गायरे ॥ प्र० ॥ ७ ॥ ऊजमवसी बही जांणियैरे पद्म जगत्रांणरे । रिखजानन चंद्राननें रे । बारिखेण बधमांनरे ॥ ८ ॥ प्र० ॥ बावन जिनांला सास्वतारे । चौमुख नंदीसर जावरे । च्यारसै गुणती श सोजतारे। बिंब अनोपम रावरे ॥ ९ ॥ प्र० ॥ मूलनायक पार्श्व प्रजुत णी रे । प्रतिमा साकरवसि मांयरे। और तयांसी बिंबबैरे । नयणेदीगं सुख पायरे ॥ ११ ॥ प्र० ॥ आदिनाथ बींपाबसीरे । बीशबिंब सुविसालरे । नव मी खरतरबसि बिंबनी रे । श्रोपमा रविजिम जालरे ॥ ११ ॥ प्र० ॥ यादी शर चौमुख तीरे । प्रतिमा चार सुख दायरे । और बिंब तेवीशसैरे | पंच दश देष्यां मनजायरे ॥ १२ ॥ प्र० ॥ बारै सहस त्रिणसे ऊपरैरे । अठाव न बलि होयरे । इम नवबसि सह चिंबनी रे । संख्या कहीमें जोयरे ॥ १३ ॥ प्र० ॥ पांव मंदर जाणियेंरे । मरुदेवी टुंक सुखकाररे। शाशनदेवीनी मंद री रे | नेमचवरी धर्मद्वाररे ॥ १४ ॥ प्र० ॥ रायण तल पगजानमुंरे । गणधर मंदर जायरे । चवसे बावन तणारे । नित नित प्रणमुं पायरे ॥ १५ ॥ पुं मरीक बिमोहनी रे । देष्यां मनवस थायरे । नीमकुंम सुचिजल नरयो रे । सूर्यकुं जलनारे ॥ १६ ॥ प्र० ॥ त्रिण षट् बारे गाउनीरे। नमती देनं तीनरे । नलका फोल दरशण करी रे । सिद्धसिला सिधचीरे ॥ १७ ॥ प्र० ॥ चेलणा तलाई सोमतीरे । प्रजित शांति थुंभ प्रातरे । जान्वाइँगर हस्त गिरीरे । कदमगिरी कीनीजातरे ॥ १८ ॥ प्र० ॥ इत्यादिक दरशण करी रे । सिsan सेनं आयरे । अगिणत चरण प्रभूतणारे । नमणकरुं मन लायरे ॥ १९ ॥ प्र० ॥ देवपुरी जिम सोनतोरे । मूंगर प्रतिहि बिसालरे । सहुज नपदना जात्रवीरे । पूजै सहस मिल जालरे ॥ २० ॥ प्र० ॥ इम सिद्धगिरि मन जायनें रे । त्रिकरण नमुं त्रिहुँ कालरे । ओर नमुं सहु नव्यनें रे । जे शुभ आग्या पालरे ॥ २१ ॥ प्र० ॥ प्रतिदिन एगिरवर चढी रे । अष्टद्रव्य लेई हाथरे । द्रव्य नाव पूजा करैरे । मोहन सहु जगनाथरे ॥ २२ ॥ प्र० ॥ ॥ * ॥ ( डुहा ) ॥ इण परि संख्या बिंबनी । करि प्रातम सुखदाय । अधि क बिंब कोइ थापसी । नमसुं चित्त लगाय ॥ १ ॥ मंदबुद्धि संयोगसें । रही
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रत्नसागर.
होय कबु मूल । तोपि प्रोगुण बांके । संघ हुवै अनुकूल ॥ २ ॥ प्रबल पुन्य संयोग । मुसरिया सबकाज | दरसण पायो गिरितणो । पाम्योजग जश आज ॥ ३ ॥ दानशील तप भावना । नेद धरमना च्यार | जावदिनां सहु बारसम । नाव सहु मुखत्यार ॥ ४ ॥ जिन प्रतिमा जिन सारखी । नग वन् वचन प्रमाण । जाव धरी प्रभु पूजतां । लहिये सुख निर्वाण ॥ ५ ॥ शिव सुखसे वेमुखजिके । मिथ्या दृष्टी जीव । जिन प्रतिमा उत्थापकर बांधे जवनी नीव ॥ ६ ॥ धन्य दिवश जे कगमें। मुऊ आवे शुभ नाव । मन वंचित सुख जब मिले। प्रगटै निज गुण दाव ॥ ७ ॥ चिंतामणि सुरत रुसमो। एतीरथ सुखकार । दिनप्रति गुणकोंसमरके । पामुँ जवजल पार ॥ ८ ॥ (ढाल) सेडुंजसाधु अनंतासीधा ( इस चाल मे ) एतीरथनी अद्भुत महमा । धा रो चित्तमकाररे। पंचप्रमाद विषय सुखबंकी। जेटो गिरि सुखकाररे । एती ॥१॥ मनुषा जन्म पायके जेजवि । नेटै नहिं गिरि एहरे । तेनर गरजावास कहिये पशुसम गिणती तेहरे ॥ ए० ॥ २ ॥ जो तीरथनी महिमा सुके । नत्थापे निज बुधिरे । ते नर काल अनंतो नमसी । दुर्लन पांमें सिरे ॥ ए ॥ ३ ॥ इम जां णी मन भावधरीनें । नवि मिल आवेधायरे । बहरी संयुत गिरकुं सेवे । प्रात कुठ मन जायते ॥ ए० ॥ ४ ॥ इह जव परभव मांहेकीधा । जे नर पाप अघोररे । ते इस गिरके फरसाण सेती । दूरहोय सह चोररे ॥ ए० ॥ ५ ॥ रोग सोग स हुनामें नासे । तूटै करम कठोररे। दुष्ट देव देवी कामण सहु । जागे तीरथ जो ररे ॥ ए ॥ ६ ॥ आलोयण लेई प्रजु साखे । पापमेल सहु धोयरे । क्षिणमें निजगुण नज्वलपांमें । रजक दृष्टांत तुं जोयरे ॥ ए० ॥ ७॥ समकित धारी जे सुखरनी । थापनारही इहां जोयरे । धर्मबंधव जाणी वसुद्रव्ये । पूजा करे स हु कोयरे ॥ ९० ॥ ८ ॥ देव सहाये सहु संघमां हे | आनंद मंगल होयरे । ईत उपद्रव जय नहिंब्यापे । दुख दालिद्र सहु खोयरे ॥ ९० ॥ ९ ॥ तीरथ यात्रा कर तीरथनी । जगति करो मन शुधरे । तीर्थंकर पिए तीर्थनमीनें । देनपदेश सुबु धिरे ॥ ८० ॥ १०॥ निज निज शक्ति प्रमाणें जेनवि । सेलखेत्र निज वित्तरे । ख रचे निज मन जाव धरीनें। पांमें सह जगकित्तरे ॥ ए० ॥ ११ ॥ जिम ती रथ गुण गुरु मुख सुणिया । परतिख पांग्या आजरे। इस विध बिंबचरण स
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लघु सेवेंजरास पंचढाल हु बंदी। सारया आतम काजरे ॥ ए० ॥१२॥धन ए चैत्री पूनम दिवश सन् नगणीसे तीशरे। धन्यधमी धन्यवेला एहीज। पाम्यां त्रिभुवन ईशरे।ए. ॥१३॥ दीन दयाल दया निध उत्तम । रिषनदेव जिनरायरे। एहीजदेवरह्या त्रिनुवनमें । मोहनगुणनां दायरे॥ए०॥१४॥(हाः)॥ करजोमी बीनतिकरूं सुणोगरीबनिवाज । कर्म सघन दूरेकरी। दीजे त्रिनुवन राज ॥१॥ मोसे अधम संसारमें । कर्म सघन बस होय। तपजप संयम नहिपले । किमपांमुं पद तोय ॥२॥ जे तुमरी आग्याधरे । तेहनें दोजगराज । एहमें प्रनुअचरज नहि। अचरज मुझनें काज॥३॥शशिगुण माहरोदेखके । खमिये सहु अपराध । तु मरा वचन हियेवस्या । अचल अमृत रस स्वाद ॥ ४॥तीन तत्व चोलरंगसें। रंगाणी मुझदेह । अबमिथ्यात पतंगको । रंगचढे नहि रेह ॥ ५ ॥ तुम सहाये जोमाहरो । चेतन निजगुणपाय । तो अविचल आग्याधरुं। तन मन व चन लगाय॥६॥ इम वीनति प्रनुनी करी। समकित निरमल काज । द्र व्य क्षेत्र काल नाव विन । मिलेन शिवपुर राज॥७॥ रत्न जमित सिंहा सणें । रयण आनूषण सार। अद्भुत रथ बैठे प्रनु । नकव करे नर नार॥८॥ (ढाल)॥आज महोबव रंगरलीरी (इस चालमे)। आज नबवदिन मुझमन जायो॥०॥ संघसहु मिल गावे वधाई । रथ बैग सोहे जिन रायो॥आ॥ ॥१॥ वीणा मृदंग ताल कंसाला । मधुर ध्वनी अंबर रहिगयो । आ॥२॥ मुर्शिदावाद पूरब दिश गजे । अजीमगंज गंगापार वसायो॥प्रा० ॥३॥बुध सिंह विसनचंद मिलनाई। गोत्र जुधेड्या मांय कहायो॥आ०॥४॥ गिरि महमासुण नाव धरीनें । विधसें यात्र करी सुखपायो॥०॥५॥ पुन्य संयोग मिल्यो मोय सजनी । आनंद दायक संव सवायो॥०॥६॥आ ज अंगणमोय सुरतरु फलियो। पुखदालिद्र सहु दूरगमायो॥०॥७॥ आजमनोरथ सहु मुझ फलिया। आज आनंद मंगल बरतायो॥०॥८॥ गुरु खरतर जिन आग्या पालक । सोहे हंससूरि महारायो॥ आ०॥९॥पा उक पद लायक गुणसोनित । सुगुण प्रमोद चेतन गुण पायो॥आ॥१०॥ विद्या विशाल वाचक सुखदायक । पंमित लक्ष्मी प्रधांनपसायो॥ प्रा०॥११॥ तासुशीश मोहन हित जांणी । नत्तम ए तीरथ गुणगायो. ॥ आ० ॥ १२ ॥
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रत्नसागर
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| | पुनः॥ .... ॥ॐ॥ जावधर धन्य दिन आज सफलो गिरायो । आजमें सजनि आ नंद पायो॥ना०॥ हर्ख धरि निजरि नरि बिमलगिर निरखकर । रजत मणि कनक मोतिय वधायो ॥ ना०॥ १॥ पग पगै नमगधर पंथनित पूतां। धन्य दोय चरण जिहां तलक आयो । आज धनदीह जागी सु कृतकी दिशा । आज धनदीह दिन सुजश गायो ॥मा० ॥२॥ दूर पुर गत टालिय यात्र विधमुं करी । पुन्य नंमार पोते नरायो । वदत जिनराज मनरंग सुरगिर सिखर। रिपन जिनचंद सुरतरु कहायो ॥ना० ॥३ ॥ ॥ इति सिघगिरी स्तवनं ॥8॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति कार्तिक माश चतु पर्वाधिकारः॥८॥॥ ॥ ॥
मार्गशीर्ष माश पर्वाधिकार लि० ॥ * ॥ . ॥ ॥ मिगसर महिनेमें मिती मिगसर सुद ११ (सो) मोन इग्या रस नामसे पर्व प्रसिद्ध है । इस दिन दैढसै कल्याणक हुये ( सो लि खते हैं) जन्म । दिदा । केवलज्ञान । यह । तीन कल्याणक । श्रीमल्लिनाथ स्वामीके हुये । श्री अरनाथ स्वामीने दिवा अंगीकार करी ॥ श्रीनमि नाथ स्वामीनें केवल ग्यान नत्पन्न भयो । (ऐसें) इस भरतक्षेत्रमें बर्त मान चौबीशीके पांच कल्याणक हुए (इसी माफक) पांच नरत । पांच ऐरवतमें। चौबीशीके पांच२ कल्याणकमिलानेसें । पच्चास कल्याणक हुये अतीत । अनागत । वर्तमान । कालके अपेवायें। दैढसै कल्याणक हुये। इसीसें यह दिन वमा नत्तम है (इस दिन) मोन संयुक्त नपवास करै । अठ पहरी पोसो करके । मोन इग्यारसको गुणनो करै । पोशहकी शक्ति न हो य (तो) देशावगासी लेके गुणनो करै । ( एसें) इग्यारै बरशमें, इग्यारे उपवास करै। और (जो) इग्यारस करनेकी इडा हो (तो) माशमें बद सुदकी। दोनुं एकादशी। इग्यारै बरश, इग्यारै महिनां करै । यह तपस्या करतां इग्यारे अंग शुधनावसे सुरें। इग्यारै अंग लिखायकै देवै । पढने वाळू का सहाय्य करै । तपस्या ग्रहण करनेको (पारनेको) गुरूके मुखसें विधि करै । यथा शक्ति आगम पूजा साहमी वडल करे ॥ इति ॥
सुदकी। दो एका शुधनावसें मुणे । कानेको (पारनेका
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मोन एकादशीको गुणनो ॥ * ॥अथ मोन एकादशीको गुणनो लि० ॥ * ॥ ॥ ॥ जंबूहीपे भरतकेत्रे ॥ ॥धातकीखेमे पूर्वनरते अतीत २४ जिनपंच कल्या अतीत २४ जिन पंचकल्या णक नामः॥ ॥१॥ एक नामः ॥ * ॥४॥
॥ ॥ प्रथम ॥ ॥ ॥ ॥ द्वितीय ॥१॥ ४॥श्रीमहायश सर्वज्ञाय नमः॥ ४॥श्रीअकलंक सर्वज्ञाय नमः॥ ६॥श्रीसर्वानुनूति अर्हते नमः॥ ६॥श्रीसुनंकर अर्हते नमः॥ ६॥श्रीसर्वानुनूतिनाथाय नमः॥ ६॥श्रीसुनंकरनाथाय नमः॥ ६॥श्रीसर्वानुनूतिसर्वज्ञाय नमः॥ ६॥श्रीमुन्नंकर सर्वज्ञाय नमः॥ . ७॥श्री श्रीधरनाथाय नमः॥ ७॥श्रीसप्तनाथाय नमः॥ ॥ ॥जंबूद्वीपे भरतकेत्रे ॥ ॥धातकीखमे पूर्वनरते वर्तमान २४ जिन पंच वर्तमान २४जिनपंच कल्या कल्याणक०॥ ॥२॥ एक नामः॥ ॥५॥ २१॥ श्रीनमि सर्वज्ञाय नमः॥ २१॥श्री ब्रह्मेद्र सर्वज्ञाय नमः॥ १९॥श्री मल्लि अर्हते नमः॥ १९॥श्री गुणनाथ अर्हते नमः॥ १९॥श्री मल्लिनाथाय नमः॥ १९॥ श्री गुणनाथ नाथाय नमः॥ १९॥ श्री माल्लि सर्वज्ञाय नमः॥ १९॥श्री गुणनाथ सर्वज्ञाय नमः॥ १८॥श्री अरिनाथाय नमः॥ १८॥श्री गांगिलनाथाय नमः॥ ॥ ॥ जंबूद्वीपे भरतकेत्रे ॥॥धातकी खंडे पूर्वनरते। अनागत २४ जिन पंच अनागत २४ जिन पंच कल्याणक० ॥ * ॥३॥ कल्याणक नामः ॥ ॥६॥ ४॥श्री स्वयंप्रनु सर्वज्ञाय नमः॥ ४॥श्री सांप्रति सर्वज्ञाय नमः ॥ ६॥श्री देवश्रुत अर्हते नमः॥ ६॥श्री मुनिनाथ अर्हते नमः ॥ ६॥श्री देवश्रुत नाथाय नमः॥ ६॥श्री मुनिनाथ नाथाय नमः॥ ६॥श्री देवश्रुत सर्वज्ञाय नमः॥ ६॥श्री मुनिनाथ सर्वज्ञाय नमः॥ ७॥श्री नदय नाथाय नमः॥ ७॥श्री विशिष्ट नाथाय नमः ॥
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रत्नसागर. ॥ ॥ पुष्कराईपूर्वनरते ॥॥धातकीखेमे पश्चिमनरते अतीत २४ जिन पंच अतीत २४ जिन पंच कल्याण कल्याणक०॥ ॥७॥ क नामः ॥ * ॥ १०॥ ॥प्रथम ॥
॥हितीय॥ ४ ॥ श्रीमृडु सर्वज्ञाय नमः॥ ४॥श्रीसर्वार्थ सर्वज्ञाय नमः॥ ६॥श्रीव्यक्त अर्हते नमः॥ ६॥ श्रीहरिनद्र अर्हते नमः॥.. ६॥ श्रीव्यक्त नाथाय नमः॥ ६॥श्रीहरिनद्र नाथाय नमः॥ .. ६॥श्रीव्यक्त सर्वज्ञाय नमः॥ ६॥श्रीहरिनद्र सर्वज्ञाय नमः॥ ७॥ श्रीकलाशत नाथाय नमः॥ ७॥श्रीमगधाधि नाथाय नमः॥ ॥ * ॥ पुष्कराई पूर्वनरते ॥8॥धातकीखेमे पश्चिमन्नरते वर्तमान २४ जिनपच वर्तमान २४ जिन पंच कल्या कल्याणक० ॥ ॥ ८॥ एक नामः॥ ॥ ११॥ २१॥ श्रीअरण्यवास सर्वज्ञाय नमः॥ २१॥ श्रीप्रयच सर्वज्ञाय नमः॥ १९॥श्री योगनाथ अर्हते नमः॥ १९॥श्री अदोन अर्हते नमः॥ १९॥श्री योगनाथ नाथाय नमः॥ १९॥श्री अदोन नाथाय नमः॥ १९॥श्री योगनाथ सर्वज्ञाय नमः॥ १९॥श्री अकोन सर्वज्ञाय नमः॥ १८॥श्री अयोग नाथाय नमः॥ १८॥श्री मान सिंह नाथाय नमः॥ ॥ ॥ पुष्कराई पूर्वनरते ॥ॐ॥धातकीखेमे पश्चिमतरते अनागत २४ जिन पंच ... अनागत २४ जिन पंच कल्याणक नामः॥ ॥९॥ कल्याणक०॥ ॥१२॥ ४॥ श्री परमसर्वज्ञाय नमः। ४॥श्री आदिकर सर्वज्ञाय नमः॥ ६॥श्री शुचार्ति अर्हते नमः॥ ६॥श्री धनद अर्हते नमः॥ . ६॥श्री शुघाति नाथाय नमः॥ ६॥श्री धनद नाथाय नमः॥ ६॥श्री शुषार्ति सर्वज्ञाय नमः॥ ६॥श्री धनद सर्वज्ञाय नमः॥ ७॥श्री निष्केश नाथाय नमः॥ ७॥श्री पौष नाथाय नमः।।
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मोन एकादशीको गुणनो
॥ ॐ ॥ पुष्करार्द्ध पश्चिमन रते अतीत २४ जिन पंच कल्याणक० ॥ *॥ १३ ॥
॥ प्रथम ॥
४ ॥ श्री प्रलंब सर्वज्ञाय नमः ॥ ६ ॥ श्री चारित्रनिधि अर्हतेनमः ॥ ६ ॥ श्री चारित्रनिधि नाथाय नमः ॥ ६ ॥ श्री चारित्रनिधि सर्वज्ञाय नमः ॥ ७ ॥ श्री प्रशमजित नाथाय नमः ॥ ॥ ॥ पुष्करार्द्ध पश्चिमनरते वर्तमान २४ जिन पंच
कल्याणक ० ॥ * ॥ १४ ॥ २१ ॥ श्री स्वामि सर्वज्ञाय नमः ॥ १९ ॥ श्री विपरीत ते नमः ॥ १९ ॥ श्री विपरीत नाथाय नमः ॥ १९ ॥ श्री विपरीत सर्वज्ञाय नमः ॥ १८ ॥ श्री प्रसाद नाथाय नमः ॥
॥
॥ पुष्करार्द्ध पश्चिमत्नरते अनागत २४ जिन पंच कल्याणक ० ॥ ॥ १५ ॥ ४ ॥ श्री अघटित सर्वज्ञाय नमः ॥ ६ ॥ श्री भ्रमन्द्र महते नमः ॥ ६ ॥ श्री भ्रमणेंद्र नाथाय नमः ॥ ६ ॥ श्री भ्रमर्णेन्द्र सर्वज्ञाय नमः ॥ ७ ॥ श्रीरिषनचन्द्र नाथाय नमः ॥
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॥ ॥ जंबूद्वीपे ऐरवतक्षेत्रे प्रतीत २४ जिन पंच कल्याणक० ॥ ॥ १६॥ ॥ द्वितीय ॥
४ ॥ श्री दयांतसर्वज्ञाय नमः ॥ ६ ॥ श्री अभिनंदन अर्हते नमः ॥ ६ ॥ श्री अभिनंदन नाथाय नमः ॥ ६ ॥ श्री अभिनंदन सर्वज्ञाय नमः ॥ ७ ॥ श्री रत्नेश नाथाय नमः ॥ ॥ ॐ ॥ जंबूद्वीपे ऐरवतक्षेत्रे वर्त्तमान २४ जिन पंच कल्या एक नामः ॥ * ॥ १७ ॥ २१ ॥ श्री शामकाष्ट सर्वज्ञाय नमः ॥ १९ ॥ श्री मरुदेव महते नमः ॥ १९ ॥ श्री मरुदेव नाथाय नमः ॥ १९ ॥ श्री मरुदेव सर्वज्ञाय नमः ॥ १८ ॥ श्री प्रतिपार्श्वनाथाय नमः ॥
॥
॥ जंबूद्वीपे ऐरवत क्षेत्रे अनागत २४ जिन पंच क ल्याणक नामः ॥ ॥ १८ ॥ ४ ॥ श्री नंदिषेण सर्वज्ञाय नमः ॥ ६ ॥ श्री व्रतधर ते नमः ॥ ६ ॥ श्री व्रतधर नाथाय नमः ॥ ६ ॥ श्री व्रतधर सर्वज्ञाय नमः ॥ ७ ॥ श्रीनिर्वाण नाथाय नमः ॥
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रत्नसागर.
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॥ * ॥ धातकीखंडे पूर्वऐरवते अतीत २४ जिन पञ्च कल्या एक नामः ॥ * ॥ १९ ॥ ॥ प्रथमः ॥
४ ॥ श्री सौदय सर्वज्ञाय नमः ॥ ६ ॥ श्री त्रिविक्रम अर्हते नमः ॥ ६ ॥ श्री त्रिविक्रम नाथाय नमः ॥ ६ ॥ श्री त्रिविक्रम सर्वज्ञाय नमः ॥ ७ ॥ श्री नारसिंह नाथाय नमः ॥ ॥ ॐ ॥ धातकीखं पूर्वऐरवते वर्त्तमान २४ जिन पंच कल्याणक नामः॥॥२०॥ २१ ॥ श्री खेमन्त सर्वज्ञाय नमः ॥ १९ ॥ श्री संतोषित अर्हते नमः ॥ १९ ॥ श्री संतोषित नाथाय नमः ॥ १९ ॥ श्री संतोषित सर्वज्ञाय नमः ॥ १८ ॥ श्री काम नाथाय नमः ॥ ॥ * ॥ धातकीखं पूर्वऐरवते अनागत २४ जिन पंच कल्याणक० ॥ * ॥ २१ ॥ ४ ॥ श्री मुनिनाथ सर्वज्ञाय नमः ॥ ६ ॥ श्री चन्द्रदाह अर्हते नमः ॥ ६ ॥ श्री चन्द्रदाह नाथाय नमः ॥ ६ ॥ श्री चन्द्रदाह सर्वज्ञाय नमः ॥ ७ ॥ श्री दिलादित्य नाथाय नमः ॥
॥ * ॥ पुष्करार्द्ध पूर्व ऐरवते ॥ प्रतीत २४ जिन पंचकल्या एक नामः ॥ * ॥ २२ ॥ ॥ द्वितीय ॥
४ ॥ श्री अष्टाहिकसर्वज्ञाय नमः ॥ ६ ॥ श्री वणिक अर्हते नमः ॥ ६ ॥ श्री वणिक नाथाय नमः ॥ ६ ॥ श्री वणिक सर्वज्ञाय नमः ॥ ७ ॥ श्री उदयज्ञान नाथाय नमः ॥ ॥ ॐ ॥ पुष्करार्द्ध पूर्वऐरवते वर्त्तमान २४ जिन पंच कल्याणक० ॥ * ॥२३॥ २१ ॥ श्रीतमोकन्दन सर्वज्ञाय नमः ॥ १९ ॥ श्री सायका महते नमः ॥ १९ ॥ श्री सायका नाथाय नमः ॥ १९ ॥ श्री सायकाळ सर्वज्ञाय नमः ॥ १८ ॥ श्री खेमन्त नाथाय नमः ॥ ॥ # ॥ पुषकरार्द्ध पूर्वऐरवते अनागत २४ जिन पंच कल्याणक नमः ॥ २४ ॥ ४ ॥ श्री निर्वाण सर्वज्ञाय नमः ॥ ६ ॥ श्री रविराज ते नमः ॥ ६ ॥ श्री रविराज नाथाय नमः ॥ ६ ॥ श्री रविराज सर्वज्ञाय नमः ॥ ७ ॥ श्री प्रथमनाथ नाथाय नमः ॥
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मोन एकादशी गुणनो. ॥ धातकीखेमे पश्चिमऐर ॥॥ पुष्कराई पश्चिमऐरवते वते अतीत २४ जिन पंच अतीत २४ जिन पंच .. कल्याणक० ॥ ॥२५॥ कल्याणक नामः ॥ ॥२५॥ ॥ ॥प्रथम ॥
॥ ॥ द्वितीय ॥ ॥ . ४॥श्रीपुरूरव सर्वज्ञाय नमः ॥ ४॥श्रीप्रश्ववृन्द सर्वज्ञाय नमः॥ ३॥श्रीअवबोध अर्हते नमः॥ ६॥श्री कुटिल अर्हते नमः ॥ ६॥श्री अवबोध नाथाय नमः॥ ६॥श्रीकुटिल नाथाय नमः ॥ ६॥श्रीअवबोध सर्वज्ञाय नमः॥ ६॥ श्रीकुटिल सर्वज्ञाय नमः ॥ ७॥ श्रीविक्रमेंद्र नाथाय नमः॥ ७॥श्रीवर्धमान नाथाय नमः॥
॥धातकीखेमे पश्चिम ऐर ॥॥ पुष्कराई पश्चिम ऐरवते वते वर्तमान २४ जिन पंच वर्तमान २४ जिन पंच कल्याणक नामः॥॥२६॥ कल्याणक० ॥ ॥ २६ ॥ २१॥ श्रीसुशान्त सर्वज्ञाय नमः॥ २१॥ श्रीनन्दिक वर्षमानाय नमः॥ १९॥श्रीहर अर्हते नमः॥ १९॥श्रीधर्मचन्द्र अर्हते नमः॥ १९॥ श्रीहर नाथाय नमः॥ १९॥ श्रीधर्मचन्द्र नाथाय नमः॥ १९॥श्रीहर सर्वज्ञाय नमः॥ १९॥ श्रीधर्मचन्द्र सर्वज्ञाय नमः॥ १८॥श्रीनन्दकेश नाथाय नमः॥ १८॥श्रीबिबेक नाथाय नमः॥ ॥ * ॥धातकीखेमे पश्चिमऐर ॥ पुष्ाई पश्चिमऐर वते अनागत २४ जिन पंच वते अनागत २४ जिन पंच कल्याणक नामः ॥ २७ ॥ कल्याणक० ॥ ॥३०॥ ४॥श्रीमहामृगेन्द्र सर्वज्ञाय नमः॥ ४॥श्रीकलाप सर्वज्ञाय नमः॥ ६॥श्रीप्रसौचित अर्हते नमः॥ ६॥श्रीविसोम अर्हते नमः ॥ ६॥ श्रीप्रसाचित नाथाय नमः॥ ६॥श्रीविसोम नाथाय नमः ॥ ६॥श्रीप्रसौचित सर्वज्ञाय नमः॥ ६॥श्रीविसोम सर्वज्ञाय नमः ॥ ७॥ श्रीधर्मेन्द्र नाथाय नमः ७॥श्रीधारण नाथाय नमः॥
॥ ॥ इति श्रीमौन एकादशी गुणनो संपूर्णम् ॥2॥
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रत्नसागर.
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॥ अथ विधि ॥ ॥
॥ ॥ एकेक कल्याणक की एकेक माला गुणनेंसें दैटसे माला होय (जो ) नव्यजीव शुरू चित्तसें गुरोंगे ( सो ) अल्प जवमें अनंत सुखकों प्राप्त होंगे इति मार्गशीर्ष माश पर्वाधिकारः ॥ ॥
॥ * ॥थ पोष मास मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ ॥ ॥ पोष महिनेंमें, मिती पोषबद १० ( सो ) पोष दसमी नामसे प प्रसिद्ध है । इस दिन श्रीपार्श्वनाथ स्वामीका जन्म कल्याणक है । इसी से यह दिन श्री संघ में परम आनंदकारी है । इस दिन श्रीपार्श्वनाथ स्वा मीको अधिकार सुर्णे । एकाशणादिकको पच्चक्खाण करे | जहां श्री पार्श्व नाथ स्वामी नामसँ तीर्थ प्रसिद्ध होय । नहां यात्रा करणें को जावै । कदास यात्रा करने को न जाय सकै ( तो ) जहां श्रीपार्श्वनाथ स्वामी की स्थापना होय । जहां महोचव संयुक्त दर्शण करने को जावै । जलयात्रा दिक महोaa करके प्रष्टोत्तरी स्नात्र करावे ( अथवा ) पंचकल्याणक जी की (वा) सतर नेदी पूजा करावै । रात्री जागरण करावै । तोरण बांधै । गीत गान नाटकादिकसे अनेक तरे के नव करे (और) जन्म कल्याण कादिक ॥ पाश जिनेसर जगति जोए० ॥ वाणी ब्रह्मा बादनी ० ॥ इत्या दिक पार्श्वनाथ स्वामीके गुण गर्भित स्तवन पढै । ( वा ) सुणें । इसी तेरे इस पर्व को सेवन करनें सें । आधि व्याधि सोग संताप सर्ब दूर होंगे । अनेक तरैरुद्धि वृद्धि सुख सौभाग्यकों प्राप्त होंगे ॥ ॥
॥ * ॥ थ जन्म कल्याणकको स्तवन लि० ॥ ॥ ॥ * ॥ श्रीचंद्रा प्रनु जिनवर साहब सुणियो० ( इस चाजमें) । पोश दसम दिन पारश प्रजुको । जन्म जयो सुखदाई । ( में वारी जावुं ० ) । काशी देश बणारसी नगरी । प्रस्वशेन कुल आई । ( में० ) वामांतर अ वतार लियो है ॥ सहु जीवन गुण दाई ॥ ( में ) १ ॥ एक सहस डोत्तर लक्षण । अनुपम रूप सुहाई । (में० ) । नील वरण छवि तीन ग्यानयुत । पार्श्व प्रतू बरदाई । ( में वा० । २ । पो० ) । नरक जीव पि ए कि सुख पावत। दिश कुमरी मिलाई । ( ० ) सूतिका कर्म क
॥ * ॥
॥
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पोष १० बिधि, जन्मकल्याणक स्तवन ३८७ री निजथांनक । गई सहु हरष नराई ( मेंबा० । ३ । पो०)॥ आशन कंपित सहु सुरवरना । देख ग्यांन नेद पाई । कोमा कोमि देव देवांगना मिल सहु आगल धाई । ( में बा० पोश० ) ४ ॥ सुरपति सक्र पंव रूपै कर । मेरु सिखर ले जाई । ( में० ) । स्नात्र महोछव अधिक आ नंदसें । बसुबिध पूज रचाई । (मेबा० । ५ । पो०)। बत्तीसबध ना टक प्रनु आगल । तत्ताथेई तान सुणाई । ( में० ) सात तीन इकवीश ने द कर । मिष्ट बचन गुण गाई । ( मेंबा०। ६ । पो०)। इम नलवकर प्रनुकों लेई । माता पास बैठाई। ( में० ) । रत्नकुदि धारक तूं जगमें। तूंसहु सुर नर माई। ( मेंबा० पो०)।७। हरखधरी धनधान्य बहूबिध । राजरिच फैलाई । ( में० ) नंदीशर अहाई महोठव । करि सहु थानक जाई। ( मेंबा० ॥ ८ ॥ पोश० )। अश्वसेन कुलकम आचारै । जन्मन लव अधकाई । ध्वजतोरण बाजित बहू विध । मंगलध्वनि बरताई। (में बा० पोश०) ॥ ९ ॥ इम प्रनु जन्म कल्याणक दिवस । सहु संघ हरख बधाई। ( में० ) लक्ष्मी प्रधान मोहन प्रजुसेवै । अहनिशि ध्यान लगाई। ( मेंबा पो०)। १०॥ ॥ इति जन्म कल्याणक स्तवनं ॥8॥ ॥ ॥ अथ श्रीगौडीपार्श्वजिन वृद्धस्तवन लि० ॥ ॥
॥ * ॥ (दूहा ) बाणी ब्रह्मावादनी। जागै जग विख्यात । पाशतणा गु णगावतां । मुझ मुख वसज्योमात ॥ १ नारंगै अणहलपुरै । अहमदा वा दै पाश । गौमीनो धणी जागतो । सहुनी पूरे आस ॥ २ ॥ शुन वेला शुनदिन घमी । महुरत एकममाण । प्रतिमा ते इह पाशनी। थई प्रतिष्टा जाण ॥३॥ * ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ गुणहि विशाला मंगलीक माला। वामानो सुत साचोजी । धण कण कंचण मणि माणकदे । गौमीनो धणी जाचोजी॥४॥(गु०) अलहणपुर पाटण मांहे प्रतिमा । तुरक तणें घर हूंतीजी। अश्वनीनूमि अश्वनीपीडा। अश्वनी वालि विगूती जी॥५॥(गु०) जागंतोज राजेहनें कहियै । सुहणो तुरकनें आपैजी । पाश जिनेसर केरी प्रतिमा। से वक तुऊ संतापैजी ॥ ६ ॥ ( गु० ) प्रह कठीने परगट करजे । मेघा गोगनें देजे जी । अधिको मलेजे ऊो मलेजे । टक्का पांचसै लेजेजी
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॥७॥ (गु०) नहिं आपिस तो मारीस मुरमीस । मोर बंध बंधास्यैजी। पुत्र कलत्र धन हय हाथी तुझ । लाउ घणी घर जास्यै जी॥८॥(गु०) मारग पहिलो तुमने मिलस्यै । साहथवाह जे गोगजी । निलवट टीलो चोखा चे ढ्या । वस्तु बहै तमुपोठीजी॥९॥ (गु)॥॥(दूहा)॥४॥ मनसुवीहनो तुरक मो। मांने वचन प्रमाण । बीबीने सुहणा तणो। संनलावै सहिनाण ॥१०॥ बीबी बोलै तुरकनें । वमा देव है कोइ । अबसताब परगटकरो। नहीं तर मारै सोय ॥ ११॥ पाउलीरात परोमीयै। पहली बंधै पाज । सुहणा माहे से बनें। संनलावै यह राज ॥१२॥ * ॥ ( ढाल)॥* ॥ एम कही या आयो राते । सारथ वाहुनें सुहणे जी। पाशतणी प्रतिमा तुं लेजे। लेतो शिरमत धुणे जी॥ १३॥ (एम०) पांचशेटका तेहनें आपे । अधिको म
आपिस वारोजी। जतन करी पुहचामे थानकि । प्रतिमा गुण संनारो जी॥१४॥ (एम० ) तुझने होसी बहु फलदायक । गाई गोठीने सुण जे जी। पूजीस प्रणमीस तेहनापाया । प्रहनीने थुणजे जी॥१५॥ (एम.) सुहणो देईनें सुरचाल्यो । अपने थानक पहुतो जी। पाटण मांहें सारथवाहू हीडै तुरकनें जोतोजी ॥१६॥ (ए०)॥ तुरकै जातां दीगे गोठी । चो खा तिलक लिलाम जी । संकेत पहुतो साचोजाणी । बोलावै बहुलाम जी ॥१७॥ (ए) मुज घरि प्रतिमा तुमनें आपुं । श्रीपाश जिणेसर केरी जी। पांचसै टक्का जो मुफ आपै । मोलन मांगुं फेरीजी ॥ १८॥ (ए.) नांणो देई प्रतिमा लेई । थानक पहुतो रंगेजी। केशर चंदन मृगमद घोली विधमुं पूजा रंगेजी ॥१९॥ (ए०) गादी रूमी रूनी कीधी। ते मांहि प्रतिमा राखैजी । अनुक्रम आव्या परिकरमांहे। श्री संघने सुरसाखे जी ॥२०॥ (ए०) नव दिन २ अधिकाथाय । सत्तर द सनात्रोजी । गम २ ना दरशण करवा । आवै लोक प्रनातोजी ॥ २१॥ (ए० )॥8॥ (दूहा) इकदिन देखै अवधिमुं। परिकर पुरनो नंग । जतनकरुं प्रतिमा तणो । तीरथ अझै अनंग ॥ २२॥ सुहणो आपै सेठनें । थल अटवी नाम । महिमा थास्यै अति घणी । प्रतिमा तिहां पुहचाड ॥ २३॥ कुश ल खेम तिहां अवै। तुमने मुझनें जाणि । संका गेमी काम करि । कर
नद सनात्रोजी ।
रखा। आवै लोक प्रकार
(दूहा ) कवि
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- पोषमाश, ० वाणी ब्रह्मा वादनी, स्तवन ३८९ तो मकरि संकाणि ॥ २४॥ * ॥ (ढाल )॥६॥ पाश मनोरथ पूरा करै । वाहण एक वृषन जो तरै । परिकरथी परियाणो करै । इक थल चढ बीजै ऊतरै ॥ २५ ॥ बारै कोस आव्या जेतले । प्रतिमा नविचाले ते तले । गोगी मनह विमासण थई । पास नुवन ममावू सही ॥ २६॥ आ अटवी किमकरुं प्रयाण । कुटको कोइ नदीस पाहाण । देवल पास जिनेसर तणो मंमा किम गरथै विणो ॥२७॥ जलविन श्रीसंघरहस्यै किहां । सिला वटो किम आवै इहां । चिंतातुर थयो निद्रालहै। यदराज आवीनें कहै ॥ २८॥ गुंहली ऊपर नांणो जिहां । गरथवणो जाणी जे तिहां। स्व स्तिक सोपारीने गणि । पाहण तणी नबटस्यै खाणि ॥ २९ ॥ श्रीफल सजल तिहां किल जूओ । अमृत जल नीरसरसी कूओ । खाराकूत्रा तणो इह सैनांण । नूमि पड्यो चै नीलो गण ॥३०॥ सिलावटो सीरोही वसै। कोढपरावियो किसमिसै। तिहां थकी तूं इहां आण जे । सत्यवचन मा हरो मान जे ॥३१॥ गोठीनो मनथिर थापियो। सिलावटैने सुहणो दि यो। रोगगमीनें पूरुं आस । पाश तणो मंझे आवास ॥३२॥ सुपन माहे मान्यो तेवैण । हेम वरण देखाड्यो नैण। गोठी मनह मनोरथ हुवा। सि चावटैने गया तेमवा ॥३३॥ सिखा वटो आवै सूरमो । जीमें खीरखांम घृत चूरमो। धम घाट करै कोरणी । लगन नलै पाया रोपणी ॥ ३४॥ थन २ कीधी पूतली । नाटक कौतिक करती रली । रंग मंम्प रलियाम जो रसै। जोतां मानवनों मन वसै ॥३५॥ नीपायो पूरो प्रासाद । स्वर्गस भो ममे आवास। दिवश विचारी इंमो घड्यो । ततखिण देवल ऊपर चड्यो ॥३६॥शुन लगन शुन वेलावास । पचासण वैठा श्रीपास । महिमा मोटी मेरुसमान । एकल मिल वगमे रहै वान ॥३७॥ वात पुराणी में सां नली। तवन मांहि सूधी सांकली। गोठी तणा गोतरीया अडै । यात्र करीने परने पछै ॥ ३८॥ * ॥ (दूहा) ॥ विघन विमारण यह जगि । तेहनो अकल सरूप । प्रीत करै श्रीसंघसें । देखामै निजरूप ॥ ३९ ॥ गिरुओ गौमी पाशजिन । आपै अरथनंमार । सानिध करे श्रीसंघनें । आस्या पूरण हार ॥ ४० ॥ नील पलाणे नीलहय । नीलो थइ असवार । मारग चूका
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टाले
मानवी | बाट दिखावण हार ॥ ४१ ॥ ॥ (ढाल ) ॥ वरण दार तो लहै जोग । विघन निवारै टाले रोग । पवित्र थई समरे जे जाप । सगला पाप संताप ॥ ४२ ॥ निरधननइ घरि धननो सूत । पै पुत्री यानें पुत्र । कायरने सूरापण धरै । पार उतारै लही वरै ॥ ४३ ॥ दो ना सोना । विहूणाने प्रापै पग । गम नहीं तेहनें बैठा । मन बंबित पूरै अभिराम ॥ ४४ ॥ निरधारयानें ये आधार । जवसायर ऊतारै पार । आारतीयानी प्रारत जंग । धरै ध्यान ते लहै सुरंग ॥ ४५ ॥ समस्यां साद दीये यह राज । तेहना मोटा अबै दिवाज । बुद्धीनें बु कास | गूंगा द्ये वचन विलास ॥ ४६ ॥ दुखियानें सुखनो दातार । जय गंजण रंजण अवतार । बंधन तूटै वेमी तणा । श्री पार्श्वनाम अक्षर सम रणा ॥ ४७ ॥ * ॥ (दूहा ) ॥ ॥ श्री पार्श्वनाम अक्रूर जपै । विश्वानर विक राज । हस्त यूथ दूरैटले । दुवर सींह सियाल ॥ ४८ ॥ चोरतणा जयचूक वै। विष मृत मकार । विषधरनों विष कतरै । संग्रामें जय जय कार ॥ ४९॥ रोग सोग दालिद्र दुख । दोहग दूर पुजाय । परमेशर श्री पाशनो । महिमा मंत्र जपाय ॥ ५० ॥ ॥ ( कमखानी चाल ) २ ॥ ॥ जितुं रंजितुं गंज उपशम घरी । श्री श्री श्रीपार्श्व प्रकार जयंते ॥ नूतनें प्रेत फोटिंग ब्यंतर सुरा नपसमै । वार इकवीश गुणं ॥ ५१ ॥ ( नं० ) डु घरा रोग सोगा जरा जंतनें । ताव एकांतरा पुत्तपतै । गर्नबंधन व्रणं सर्प वि विषं । चालिका बालमेवा ऊखते ॥५२॥ ( नं०) साइणी माइणी रोहणी रंकणी । बोटका मोटका दोषहुतें । दाढ नंदरतणी कोल नोला तणी । स्वा न सीयाल विकरालदंते ॥ ५३ ॥ ( नं०) धरणेंद्र पदमावती समरसोनावती । वाट घाट अटवी प्रटते । लखमी जोडुं मिलै सुजश वेलावजै । सयल या फलै मन हसंते ॥ ५४ ॥ ( नं० ) अष्ट महानय हरै कान पीकाट । तर सूज सीसगनते । वदत वर प्रीतसुं प्रीति विमला प्रनू । श्रीपार्श्व जिन नाम अभिराम मंतै ॥ ५५ ॥ ( नंजितुं ) ॥ * ॥ इति श्रीगोगी पार्श्व नाथजी वृद्धस्तवन सं० ॥ * ॥ इति पोषमाश पर्वाधिकारः ॥
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माघमाश पर्वाधिकार. ॥ॐ॥अथ माघ माश मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ * ॥
॥ॐ ॥ माघ महिनेमें, मिती माघ वदि १३ (सो) मेरु तेरस नाम से पर्व प्रसिघ है । (इस दिन) श्रीषन देव स्वामीको निर्वाण कल्या णक है। (इसीसें ) जगवंत महाराज इसदिनकों नत्तम कहा है । (इस दिन) चौविहार नपवास करै । रत्नामई, पांचमेरू नगवानके आगे चढा वै। बीचमें १ बमो मेरू । च्यारं दिश गोटामेरू । (ऐसें ) पांच मेरू चढावै । ऐसी शक्ती न होय (तो) सोनेके । चांदीके (वा) घृतके । मेरू करके च ढावै । आगै चारुं दिश तरफ चार चार नंद्यावत करै । अष्टप्रकारी सत्तर दी । पूजा पढायके । अष्ट द्रव्यसें पूजाकरै ॥ * ॥ पीछे ॥१॥ श्रीषनदेव स्वामी पारंगताय नमः)॥इसी पदको दो हजार गुणनो करै। और जो कोई तेरसके दिन पोशह करै (तो) पूजादिक सब बिधि पार dके दिन करै । अतिथि संविनाग करके पारणो करै । इसी विध संयुक्त १३ तेरै बरश (अथवा) १३ तेरै माश तपस्या करै । पीने शक्ति माफ क बहुत नववसें नद्यापन करै । तीर्थोकी यात्रा करै । साहमी बबल (करै ॥ इहां दृष्टांत कहतेहें। (जैसें) अयोध्या नगरीमें । अनन्तवीर्य रा जाको पुत्र । पिंगल राय कुमर । गांगिल मुनीके पास । इस पर्वका अ धिकार सुनके । तपस्या करी । तपस्याके करनेसे । सबै रोग दूर हुये। तपस्या पूर्ण होनेसें । तेरै १३ मंदर बनवाया । १३ तेरै रत्नां मई । सुवर्ण मई । रूपै मई । प्रतिमा स्थापन करी ॥१३ बेर, संघ सहत तीर्थों की या त्रा करी । तेरै बेर साहमी बबल किया । बहुत प्रकारमें ज्ञान नक्ति करी । अंतमें महसेन कुमरको राज्य देकै । श्रीसुव्रताचार्य समीपै दिदाय हण करी । अनुक्रमें चवदै पूर्वको पढके । सर्ब कर्मकों कय करके । अ नंत सुखकों प्राप्त हुवा । इसी का बिस्तार संबन्ध । मेरु तेरशका बखाण सुणनेंसें मालुम होगा । जो भब्य जीव इस पर्वकों बिधि संयुक्त सेवन करेगा । (सो) इस नवमें परनवमें अनेक सुखकों प्राप्त होगा॥ * ॥ इति माघ माश पर्वाधिकारः॥॥ ॥ ॥ ॥॥
धिकार सुनके मारे १३ मंदर 7 ॥१३ बेर संघ प्रकारसें जान मांग
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रत्नसागर.
॥ * ॥ अथ फाल्गुन माश मध्ये पर्वाधिकार लि० ॥ ॥ ॥ * ॥ फाल्गुन महिनेंमें, मिती फाल्गुन सुद १४ (सो) तीसरे चौ माशे की चौदश नामसें पर्व प्रसिद्ध है । इस दिनको (सर्व कर्तव्य ) आ षाढ चौमाशे तुल्य करे। सो पूर्वे लिख्यो है ॥ ॐ ॥
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॥ # ॥ इहां विशेष होलीको अधिकार लिखते हैं ॥ ॥ ॐ ॥ श्रमण भगवंत श्रीमहाबीर स्वामी । बारे माशमें ६ मोटका पर्व कहा । ३ तीन चौमाशा । २ दो नली । १ पर्यूषणा । एवं ६ | ( जिसमें ) २ नी । १ पर्यूषणा । यह ३ पर्वका अढाई महोचवतो सर्व ठिकाणें न व्य जीव करतेहैं । और कार्त्तिक चौमाशैका नव प्रायें बहुत ठिकाणे होता है । (परंतु ) कलकत्ते जैसा महोचव कोई ठिकाऐं देखा नहीं। (और) फा ल्गुन चौमाशैका नव मुर्शिदाबाद में श्रद्धा होता है । पर कोई महोइव में आज्ञा बिरुध जो काम होय (सो) प्रशंसनीक नहीं । एकतो जगवंत के समोसरणके साथ । आज कालके । अमीर लोक । धूपकै करसें, खेह के करसें । आपतो जाते नहीं ( निकवेज ) समऊ पुरुषाकों नेज देतेहें । पीछे बे पुरुष मदोन्मत्त हुए थके । कूदतां नाचतां, जागतां । सम सरको बाला देते लेजाते हैं । (उसमें ) जितनी आशातना होती है । जितना कर्मबंधता है । उसका जागी हम नहीं || जगवंत को धर्म, विनय मूल १ । दया मूल २ । चारित्र मूल ३ है । ( इसमें ) धन्य है जिसके माता, पिता, (सो) बिनय बिबेक संयुक्त शुभावसें । सर्व धर्मकार्य करके धर्मat gain करे । नसी पुरुषांकों नमस्कार है । उसी महोछवकी प्रशंसना है । ( इससें ) आत्मार्थी धर्मज्ञ पुरुष है ( सोतो ) शेशका चौमाशा पर्व जानके । सर्व ठिकाणें । जगवंत कै धर्मको नद्योत करते थके । शुभ ध्यानरूप अनीसें ( अष्टकर्म ) रूपी काष्टकों जलाके होली करते हैं । ( पीछें) सुबोध जलसें स्नान करके अत्यन्त सुन्दरता को प्राप्त होते हैं ।। अब द्रव्यै, जावै, दो प्रकारसें, होलीका अधिकार कहरों की इच्छायें ( प्रथम ) द्रव्य होलीका अधिकार लिखते हैं ॥ इस फाल्गुण माशमें, चौदश पूर्णमाशी के दिन ( कई ) अज्ञानी जीव,
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॥ ॐ ॥
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___ फाल्गुनमाशे, द्रव्य, जाव, होली अधिकार ३९३ बिबेकरों, श्री जिनधर्मसें, विकल हुए थके । नीच जातके परंपराकों प्राप्त हुए थके । लक्कम गणादिक. जलायके अग्निमई द्रव्य होलिका करै है। महा नत्तम चौमाशै पर्वका बिराधन कर है । ( दूशरे दिन ) मलमुत्रा दिकसें क्रीमा करै है । खोटा बचन बोलै है । रासन माथे चढ़े है। अनेक जीवांकों पुःख नत्पादन कर है। (ऐसे जीव) शुधबीतराग देवकी आग्यागे मके। जांम नरमा के कुल परंपराको प्राप्त होते है । मिष्टान्न भोजनका खा णा गोमके। बिष्टाको नोजन करते हैं । दूधका पीणा गेमके। जानते थके पिसाब पीते हैं। (ऐसे पुरुष ) निकेवल कांके वंध सघन करके। नीच ग तिकों नपार्जन करते हैं । अनर्थदंमसें अनन्त नव संसारकी स्थिति बां धते हैं। ( इस वास्ते ) आत्मार्थी नव्यजीवांकों । इस माफक । द्रव्य हो ली करनी नचित नहिं । (निकेवल ) नाव होली करनी उचित है ॥ वसं तके स्तवन बोलै । रात्री जागर्ण करावै । नगवानके मंदरमें पूजा करावै। महोचव निकाले । नाना प्रकारके नाटक करै । साहमी बहल करै । सा धर्मी लाई आपसमें नाना प्रकारकी क्रीमा करै । (आगै ) राजा लोक जी, बसंत ऋतु आनेंसें सऊन संबंधी साथ । नाना प्रकारके । जल । चं दन । केशर । अबीर । गुलाल । इत्यादिकसें क्रीडाकरी (सोतो) फेरनी शास्त्रों में देखते हैं । (परंतु ) यह मल मुत्रादिकसें खेलना । होली जलानी। पादत्राण खाणा । जम चेष्टा करनी । अपने धर्मकी मर्यादा । अपनें कु लकी मर्यादा । सर्व गेमके । नांड नरमाके गोदी वैठना । नाम नरमा के कुलकी मर्यादा करनी। ऐसी क्रीमा उत्तम पुरुषोंकै (और )जिनधर्म वा ले नव्य जीवोंके । कोई ठिकाणे करनी कही नहीं। यह क्रीमा निकेव ल महामिथ्यात्वी नीच पुरषोंने चलाई ही। नसी पुरुषोंके देखादेख पायें अज्ञानी जीव, सबकोई करनेकों लग गए। (देखो बडा आश्चर्य है)। जब मंदरजीमें पूजादिक महोदवका काम होता है। उस बखत बहुत को फुरसत न होती है । ( और जो केइ आते है )। ननोंकों स्नात्रिया होनेंमें । अगामी नाटक करने में । बमी लजा मालम होती है । (और होलीके दिन) माता, पिता, नाई बैन, सर्बकी लका बोझके । बहुत
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रत्नसागर. दिलमें खुसी होके । पागलके माफक । नपानत खाते फिरते है । मन
आवै ज्युं बोलतेहें । कोई बेश्यादिक का नाटक करायकै हमारु बगशीस कर देते हैं । मनमें जानें, हमनें बड़ा नाम किया। पर अहो जाइयो। इसमें तुमारा कुछ नाम नहीं है। निकेवल महा अशुन्न कर्म पैदा होता है। तुमारा कल्याण जबई होगा। ऐसी नमंगसें सर्व की लड़ा गेमके । जगवानका नन्नव करो । रात्री जागर्ण करो। नाटक करो । धर्मका नद्यो त करो। ( इसी तरै) होली खेलो (सो) तुमारा इह नव बी सुधरेंगे। परनवबी सुधरेंगे । (यह) द्रव्यै, नावै, दोर्नु होलीकाः यथावस्थित स्वरूप लिखा है । इसको आत्मार्थी धर्मज्ञ पुरष तो देख करकै प्रसन्न होंगे। यह खोटे मारग को बंध करने की प्ररूपणा रक्खेंगे। (और जो ) महामूर्ख अज्ञानी जीव होंगे (सो) अपनें खेलनेके वास्ते । सच्ची बातकोंनी कुयु क्ती लगायके कुछ ठहरावेंगे । महारोस धारण करेंगे । (जैसें ) कोइके पिताको गाली देनेंसें रोस नत्पन्न होय ( इसी तरै) यह नंम चेष्टा की निंदना देखकै महारोस धारण करेंगे। (और जो) मध्यस्थ जीव होंगे (सो) ऐसा बोलेंगे। यह बात सच है। किसका पर्वहै । किसका खेलना है। निकेवल इसमें अनर्थ दम लगता है । (परंतु) हम इकेला क्या करें। सर्व नाई बंधकों खेलते देखकै । हमसें रहा जाता नही । इसमें खेलते हैं। ( पर ) यह पृथा बंध होयतो अडीहै । ( इसीसें ) अहो देवानुप्रियो सर्व ठिकाणे यह नीच खेलकों गेमके । नत्तम खेल खेलनेकी प्रवर्तना क रो। जिसमें तुमारा तप तेज सदा बढता रहै । सदा आनन्द रहै । यह बारै माश के सर्ब कर्त्तव्य । मेंने अपनी बुद्धिसें न लिखा है । (किंतु ) प्रा चीन आचार्योंके व्याख्यानकी पचति देखके । सर्ब बालजनके नपगारार्थे संदिप्तसें शुध जाषामें प्रगट किये हैं (इसमें ) आगम बिरुध नो अधको क हनेंमें आयो होय (तो) त्रिकरण सुधै मिहामि मुक्कम देताहूं। (और) नीं च कर्मके बंध गोमानेकों । कठोर बचननी बोला है (सो) बाचकै । गु णको ग्रहण करना। परंतु रोस धारण न करना । मेरै तो शुध नवकार मंत्र गुणने वाले है ( सो) सर्व परम मित्र है । सर्वके तप तेज बढते देख
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द्रव्य भाव होली पर्वाधिकार, स्तवन ३९५ कै, मेरा चित्तमें परम आनंद होता है । (और ) त्रिकरण शुबै सर्ब जीवा जोनिसें वेर बेर खमाता हुं ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥
॥ * ॥ खमिय खमाविय में खमिय । सबह जीव निकाय । सिघह साख आलोयण । मशह बैर ननाय ॥ १॥ सवे जीवा कम्मवमु । चवदह राज नमंत । ते सब खमाविश्रा। मशवितेह खमंतु॥इति फाल्गुन मा०॥॥
॥ ॥ अथ नाव होली खेलनके स्तवन लि०॥8
॥ * ( रागधमाल ) होरी खेलियै नरबहुरन ऐसोदाव । ( हो) दयामिठाई अति जलीरे। तप मेवा परधांन । सील अथाणो अति नलौ (वारी) संयम नागर पांन। (हो०) ॥१॥ लेस्या मादल नाव मफरे क्रोध मान दोय ताल । पांच सुमतिको अरगजो (वारी) नवतत्व लेहु गुलाल । (हो)॥२॥ मुमता केसर घोलीयरे । दमवाको विरकाव । ग्यांन पिचरको पकरकै (वारी)। मुगति वधू चितलाय। (हो०) ॥३॥ ऐसा साज वनायकैरे। षनदेव गुण गाय । श्री जिनचंद इम खेलतां (वारी) नव नव पातिक जाय। (हो०)॥ ४ ॥ इति पदम् ॥॥
॥ ॥राग वसंत होरी तालयत् ॥ॐ॥ - ॥ * ॥ जय बोलोरे पाश जिनेशरकी ॥ (ज.)॥ मस्तक मुगुटसोहै मनमोहन । अंगीया सोहै केशरकी। (जै०)॥१॥ त्रिनुवन ज्योति अखं मित तनकी । स्याम घटा जैसी जलधरकी ॥ ( ज०)॥२॥ बालपणेम अदनुत ग्यानसुं । करुणा कीधी विषधरकी ॥ (ज०)॥३॥ कमठ नमा य वायज्युं वादल। जीतकरी अपने घरकी॥ (ज०)॥४॥मात वामा नयरे जिनजायो । राणी अश्वसेन नरेसरकी ॥ (ज.)॥५॥ अष्ट कर म दल सबल खपाए। श्रेणि चढया जे शिवपुरकी ॥ (ज०)॥६॥ कहै जिन चंद मेरे प्रनुपारस । जैसी गया सुरतरु की॥ (ज०)॥७॥ ॥ .. ॥ ॥ पुनः वसन्त होरी॥॥
॥ ॥ मधुवनमें जाय मची होरी ॥ (म०)॥ ग्यान गुलाल अबीर न मावो। सुमता केशर रंगघोली ॥ (म०)॥ १॥ अमृत रूप धरम जिन वरको । सुचकमा कहै करजोडी ॥ (म०)॥२॥ इति पदं ॥३॥
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रत्नसागर. ॥ * ॥ पुनः वसंत होरी॥ * ॥ ॥ ॥ यादव मनमेरो हरलीयोरे॥ (या० )॥ संजम दूती कान लगी जब । शिवनारीपर चित्त दीयोरे॥(या०)॥१॥ तोरणथी रथ फेर चले हो । नवनव नेह अलग कीयोरे॥ (या०) ॥ २ ॥ मोह गेम गिरनार सिधाए । नेमि जिणंदनें कहा कीयोरे ॥ (या०)॥ ३॥ तुमहो तीन नु वनके साहिब । सुरनर कहै तुमे चिरंजीयोरे ॥ ( या० )॥ ४॥ वारवार मेरी वंदना हुयज्यो। चंद कहै मन हरखीयोरे॥ (या०)॥५॥ इतिपदं ॥४॥
* ॥ पुनःवसन्त होरी॥ॐ॥ ॥ ॥इक सुणले नाथ अरज मेरी ( इ० )॥ १॥ इह संसार गहर तर सिंधु । जमर पम्त जिहां नवफेरी ( इ० ) ॥ २॥ क्रोधादिक बहु मगर मन है । ग्रहत जंतु नकरत देरी ॥ (३०)॥३॥ ऐसे जलधिसें पार करो तो। तारण तरण विरुदतेरी ॥ ( इ० ) ॥ ४॥ धरम जिनेसर जग परमेशर । दूरकरो मुखकी बेरी ॥ ( इ० ) ॥ ५॥ परम कमागुण दायक , लायक । अनुपम कीरति जगतेरी॥ (३०)॥६॥ इति पदं॥ ॥॥
॥ॐ ॥ पुनः होरी॥॥ ॥ ॥सांवरो सुखदाई । जाकी उवि वरणि न जाई । ( आंकमी)। श्री अश्वसेन वामानन्दनकी । कीरति त्रिभुवन गई । समेत सिखर गिर समन प्रनुको । देख दरश हरखाई । हृदय मेरो अति हुलसाई ( सांव० ) ॥ १ ॥ आज हमारे सुरतरु प्रगट्यो । आज आनन्द बधाई। तीन जुवन को नायक निरख्यो । प्रगटी पूर्ब पुण्याई । सफल मेरो जनम कहाई ॥ (सांव० )॥ २ ॥ प्रनुके सरस दरश विन पाये । नव नव नटक्योमें नाई अब तेरो चरण शरण चित चाहत । वाल कहै गुण गाई । प्रजुजीसें लगन लगाई (सां० )॥३॥ इति पदम् ॥ #॥
॥ ॥ पुनः रागिणी बसन्त ।। ॐ ॥ ॥ ॥ नेना हरखाइ । आज तेरी मूरत निरखी ॥ ( ३० )॥ नवनव संचित पाप करम सब । देखत दूर पुलाई । सुमति वधारण कुमति विमा
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वसंत होली स्तवनसंग्रह
३९७ रण। ज्ञान बिमल नलसाइ॥ (आज०) ॥ १ ॥ बामानन्दन अतिगवि सुन्दर । महिमा वरणी नजाई । दीन दयाल दयाकर दीजै । आनन्द हरख सवाई॥आ०॥२॥ इति पदम् ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ पुनः होरी॥ॐ॥ . ॥॥ मनमोहन गजगतकी गामनी । आज चली गिरनार कामिनी ॥ (म० ) ( आंकमी ) ॥ सुंदर रूप बनाय सखी सब । सिखरसेल जेसें चमके दामनी ॥ ( म०)॥१॥ नेम प्रजुको व्याह मनायो । मोसें प्रीति लगाइ जामनी ॥(म०)॥तोरण आय चले मोह ोमी । कौन चूक मोपे काढी जामनी ॥ (म०)॥२ ॥ मेंन तजंगी नव नव कैरी । प्रीत बनी जैसी इंदु दामनी॥ (म०)॥३॥राजुल पहली प्रीतम सेती। वा लकहै नई मुगति गामनी ॥ (म.)॥४॥इति पदम् ॥ * ॥....
॥ ॥ पुनः होरी॥॥ ॥ * ॥ रंग लग्यो गुरु ज्ञान । होरी चेतन खेलै । (रंग) शील सुरंगी चीरमंगाये। पहिरेआप सुजान ॥ ( हो° ) ॥ पर मन्दिर तज अविचल लीजै। धर्म दया धर ध्यान ॥ ( हो० ) ॥ हिल मिल आप परमरस चाखे सुमति सखी पहिचान ॥ ( हो० ) ॥ज्ञान गुलाल लाल रंग लागे। सानै अदनुत वान ॥ ( हो ) ॥ सुमति अबीर नडाय जगतमें। बैठे शिव पुर थान (हो०)अनुन्नव राग मगन गुण गावै । तप जप सुन्दर तान (हो०) ऐसा खेल नविक जन धारै । बंचित पावै दान (हो.) इति पदम् ॥१॥
॥॥ पुनः होरी (ताल यत् )॥ ॥ ॥ ॥ चिदानन्द खेले फाग। हो हो होरी आई ॥ मन मृदङ्ग बजे त न मांहि । गावत आगम राग ( हो ) ॥ ज्ञान गुलाल सदा रङ्ग लागे खेलत सुनत सुहाग ( हो ) समकित केशर चीर रङ्गाउ। पहिरो मन वेराग (हो०)॥ लाख चौराशी रामत गंमी । च्यारूं गतिसें नाग (हो०) अविचल सुख पंचम गति पावै। योग यतन कर जाग ॥ ( हो ) ऐसा खेल नविक जन धारै । पावै जव दधि पार ( हो० ) चेतनता सुध होय जगत में । समकित के रङ्गलाग ( हो ) ॥ ॥ इति पदम् ॥॥
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३९८
रत्नसागर.
॥ * ॥ ( पुनः होरी ) ॥ ॥
॥ * ॥ होरी आई, मेरो मन भयो, प्रसन्न प्रसन्न नयो, प्रसन्न न न न है । ( हो ० ) ब्रज बनिता मिल नेम कुमर सङ्ग । फाग रमत हियै हसन हसन हसननन नन्हे ( हो० ) ॥ १ ॥ बाजे तेताल मृदंग जांऊ गफ । बी की धुनि जिम मेघ गरजन गरजन गरजन नन नहे ( हो० ॥ २ ॥ नमत गुलाल लाल नए बादल । हरि हलधर हीये हरखन हरखन हरखन नन्हे ( हो ० ) ॥ ३ ॥ सबल आधार चरण जिनजीको । सेवक कों नित दीजीये दरशन दरशन दरशन न न नहे ( हो० ) ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ ॥ ( पुनः होरी ) ॥ ॥
॥ ॐ ॥ होरी खेलो नेम धाय धाय । पुरजनकी लाज मेरी करे बजाय ( हो ० ) ज्ञान गुलाल अबीर नमावो । क्षमा करो रङ्ग लाय लाय ( ० हो ० ) ॥ १ ॥ शील संजम व्रत पान मिठाई । ध्यान धरूङ्गीमें गाय गाय ( ० हो ० ) ॥ २ ॥ प्रष्ट कर्म की खेह नमावो । ज्ञान हि ये लाय लाय ( दु० हो ० ) || ३ || जगत चन्दकी अरज बीनती । श रण गही में तेरी जाय २ ( ० हो ० ) ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥ ॥ * ॥ पुनः होरी ॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ मेरै घटकी गगरया रङ्गसें जरी । शिव पुरकी वात पूहुँ कबकी खरी । ( मे० ) परम जोत प्रभु सिद्ध सिला पर । परमातम निज ध्यान धरी । ( शि० ) ॥ १ ॥ मोहन रङ्गनरो रंग शिवपुर । अजर अमर पद सुक्खकरी ( शि० ० ) ॥ २ ॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॥
|| * || GA: TTT || * ||
॥ ॐ ॥ में नें देखी अनोखी होरी रे (में० ) सहसा वनकी कुंजगजिन में। अनुपम सोर मच्यो री ( ० ) ॥ १ ॥ यादवपति श्रीनेमकुमरजी । सुमतासखी मिल गौरी ( ० ) ॥ २ ॥ सुमता केशर नर पिचकारी । भारत है बरजोरी ॥ (० ) ॥ ३ ॥ ज्ञानगुलाल नकै प्रतिनारी । अ बीर नै नरजोरी । ( ० ) ॥ ४ ॥ कपूर कहै प्रभु मोकुं खेलावो । अर ज सुणो इक मोरी ( ० ) ॥ ५ ॥ इति पदम् ॥ *॥
॥ **
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वसंत हाली स्तवनसंग्रह...
॥ ॥ पुनः होरी ॥ ॥ ॥ इकसुणलै नाथ अरज मेरी इस चालमें॥3॥ ॥ ॥ तुमे ध्यावोरे अंतरीक पारसकुं॥ तु०॥ अंतरीक प्रनुके ध्यावणसें दूरकरे मुख दालिद्रकुं॥ तु०॥ अस्वसेन कुलमें चिंतामणि । जिमरवि ऊगो
सरदऋतुकुं॥ तु०॥१॥ बांमानर अवतार लियोहै । नव्यजीवनें तारणकुं • ॥ तु०॥नील वरण तनज्योति अखंमित लिंउन अहि सुखकारणकुं॥ तु०॥ ..
॥२॥ दक्षिणदिशमें सिरपुर नगरे । जिहां नेव्या जिनराजकुं॥ तु०॥ पार्थप्रनुको दरशण पायो । दूर हुआ नंव नटकणसुं ॥ तु०॥३॥ प्रगट प्रनूको अतिशय पेख्यो । अधर रहत नूमि ऊपरकुं॥ तु०॥ कपूर कस्तूरी केशर चंदन । अष्टद्रव्य लेके पूजनकुं॥ तु०॥ ४॥ अष्टकरम शत्रूकुंजीपके । जायचव्या राजशिवपुरकुं ॥ तु०॥ दूधेड्या गोत्र नत्तम बुधसिंहपति । वि शनचंद हितकारणकुं ॥तु०॥५॥ नगणीसै गुणतीसै फागुण । यात्राकरी मुद तेरशकुं॥ तु०॥श्री अजेराज ग्यानकुं चाहे । मुक्ति कमल इडा पूरणकुं ॥ तु०॥६॥ इति श्रीअंतरीक पार्श्वजिन स्तवनं ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः होरी राग काफी ॥ ॥ ॥ ॥ बाबो षन बेठे अलवेले । मारो गुलाल मुठी नरके । बाबो० ॥ मुठी नरके पसली नरके ॥ बाबो० ॥ चुत्रा चुआ चंदन और अरगजा । केशरकी मटकी नरके ॥ बाबो० ॥१॥ रतन जडित शिर उत्र बिराजे । अंगी जमाव जमी जरके ॥बाबो० ॥२॥ बाहें बाजूबंध बहिरखा बिराजे । फूलनके गजरे सरके ॥ बाबो० ॥ नाजिराया मरुदे बीको नंदन। रमिये नवि आदेशरसें ॥ बाबो० ॥ आदिखान है दास तु मारो। तार लीओ अपनो करकें ॥ बाबो० ४॥॥ इति ॥१॥
॥ ॥ पुनः होरी॥ ॥ ॥ ॥ नेमन जाणे मोरी पीर । पीर पर रर रर रर । नेमन जाणे० ॥ तोरणथी रथ फेरवी चाल्या। दाऊयो हैयमा केरो हीर । हीर अर र रर रर ॥ नेम०॥१॥ चंदबदनी मृग लोयणीरे। प्रेमनो मारयो मुनें तीर । तीर तर रररररर ॥ नेम० ॥२॥आंशुमां करती धरणी ढलीरे । जाणे आशाढो
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४००
रत्नसागर. नीर । नीर ऊररररररर ॥ नेम ॥३॥ शिवराज कहे नेम राजुलें रे। कर्म रूपी फाड्या चीर । चीर चररररररर ॥ नेम० ॥ ४॥ इति॥ ॥॥
॥ पुनः होरी राग टप्पो॥॥ ॥ ॥ गिरिराजकू हमारी वंदनारे । जिनराजकू हमारी वंदनारे ॥ जव पुःख वारण शिवमुख कारण । देखत जव नहीं फंदनारे। गिरि०॥ ॥१॥ नाजिराया मरु देवीको नंदन । प्रणमुं रुषन जिनंदनारे॥ गिरि० ॥२॥निशि वासर प्रनु ध्यान तुमारो । जिम चातक दिल चंदनारे ॥ ॥ गिरि०॥३॥ चतुर कुशल कहे शरण तुमारो। सिधगिरि कर्मनिकंद नारे॥ गिरि०॥ जिन ॥४॥ ॥॥... ॥ ॥
॥ॐ॥ पुनः राग होरी॥ * ॥... ॥ ॥ दरशन कीयो आज सिखरगिरिको ॥ दर० ॥ देख्यो मधु बन शीता नालो। ताको नीर वहेछे अति नीको ॥द० ॥ १ ॥ वीश को शथी. दरशन दीगे। नागो नरम सकल जियको ॥द०॥२॥ वीशे टुंके वीश गोमटमी । तामें चरण जिनेसरको ॥द०॥३॥ अब जिनवरके शरणें आयो। रसतो पायो मुगति पदको ॥द०॥४॥ ॥ ॥
॥ॐ॥ पुनः होरी ॥ * ॥ ॥ ॥ सिघ गिरि जीको दरशन करले ॥ संघ यात्रा । संघयात्रा करनेसें पाप कटत है। सिच० ॥ (आंकणी) कोटि अनंता इन गिरि सिधा । ताकुं शीश नमय ले ॥संघ०॥ ॥१॥रिखन जिनेश्वरजीको दरशन । शुध आतम पावन करले ॥ संघ० ॥ २ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन । जव नवका दुःखहरले । संघ० ॥३॥ इति ॥ ॥ ॥
॥ * ॥ पुनः होरी ॥ ॥ * ॥ मेरो चेतन खेले होरे । असी होरी । आज बरजोर रही। मेरो० ॥ मन कर मोज प्रेमकर पाणी। करुणा केशर घोरी॥ प्रेसी०॥१॥दया मिठाई तप बहु मेवा। समरस विमल कटोरी ॥ ऐसी० ॥२॥ गुरुके बचन वारी मृदंग वजतहे । दे मफ झान कटोरी ॥ ऐसी० ॥३॥ दान कहे सुमता सखीयनसें । चरण रहो जुग जुग जोरी ॥ ऐसी०॥४॥इति ॥॥
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नाव होली खेलन विचार स्तवन. ॥ ॐ ॥ पुनः होरि ॥ ॐ॥
॥ * ॥ अनंतानंत प्रभुजीनी वाणी । प्रशातना तजरे प्राणी ॥ ना० ॥ श्री शीतल जिन शीतल वचनें । जाव दया चित्त आणी अनंता ॥ १ ॥ जे जीव देव द्रव्यनें खावे । थई लोन वशे अन्नाणी ॥ अनंता ॥ २ ॥ सागर शेठ परें दुःख पामी । थई नारकीयें शुं प्राणी ॥ अनंता ॥ ३ ॥ देवद्रव्य जे विधि ए वधारे । ते जिन थइ वरे शिवराणी ॥ अनंता० ॥४॥ धर्मचंदकर जोडी रागें । तारजो केवल नाणी ॥ अनंता ॥५॥ ॥ * ॥ पुनः होरी ॥ *॥
॥ मोहे अपने रंग में रंगदे || मेरे साहेब | मेरे साहेब | आदि जिणंद चंद || मोहे० ॥ ( आंकणी ) ॥ रंग तुंही रंग रेंज तुही हे । संजम रंग मोहे रंगदे || मोहे ० ॥ १ ॥ रंग मिथ्यात लग्यो हे अनादि को । सो अब इनकुं खिनदे || मो० ॥ २ ॥ रतत्रयी ऋषि तेरी में देखी । सो अब मुजकुं सऊदे || मो० || ३ || ज्ञान दर्शन चारित्र रंग हे । वाबिच केवल धरदे || मोहे० ॥ ४ ॥ कहत नूधरदास समकित पावे । याप समाना करदे || मोहे ॥ ५ ॥ इति ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥
४०१
॥ * ॥ पुनः होरी ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ मेरे पाश प्रभुजीके रंग मंरुप मांहे । खेजत संत वशंत ॥ ज्ञान गुलाल विवेक अरगजा । विनय अबीर विलसंत ॥ मेरे० ॥ १ ॥ गुण प्रेम पिचरकी छूटत । समता सखिय मिलंत || आगम लहर फूली फूलवाडी । मुनिवर भ्रमर गुंजंत ॥ मेरे० ॥ २ ॥ अंग आभूषण पंचेंद्रिय वंश | गुरु सेवा सलहंत ॥ बार भावना गहेरे कसुंबा । पीवत मन हरवंत ॥ मेरे० ॥ ३ ॥ अद्द्भुत पंचमहाबत वागा । पहिरै तन शोहंत ॥ कहे जिन चंद्र प्रजुकी कृपासें । निरखे नवल वर्शत ॥ मेरे० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ * ॥ पुनः होरी ॥ ॥
॥ ॐ ॥ रंग मच्यो जिन द्वार ॥ चालो खेली ए होरी || पाशजीके दरवाररे || चालो || फागुनके दिनचार ॥ चालो० ॥ रंग० ॥ (प्रांकणी ) ॥ कनक कचोली केशर घोली । पूजो विविध प्रकाररे ॥ चाल ॥ १ ॥
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४०२
रत्नसागर.
कृष्णागरुको धूप घटत हे । परिमल महके अपाररे ॥ चालो० ॥२॥ लाल गुलाल अबीर नमावत । पाशजीके दरबाररे ॥ चा० ॥३॥जर पिचकारी गुलालकी गिरको । वामा देवी कुमाररे ॥ चालो० ॥४॥ ताल मृदंग वीण मफ बाजे । नेरी मुंगल रण काररे ॥चालो०॥५॥ सब सखीयन मिल नाटक करके । गावत मंगल साररे ॥ चालो॥६॥ रत्नसागर प्रनु भावना जावे । मुख बोले जयकाररे॥ चालो० ॥७॥ * ॥
॥ ॥ पुनः होरी ॥ * ॥ ॥ * ॥ नेमजीसें कहीयो मोरी । शामरेसें कहीयो मोरी । तोरण आए कोने नर माए । गेम चले अनिमानी ॥ अरे लाला ॥गेम चले० ॥ पशुवन के शिर दोष चढायो । तोमी प्रीत पुरानी॥ दयादिलमें नही आनी॥ (शामरेसें०) ॥१॥ चूक पमी सो मुहसें कहीयो । ऐसी ना करी ए शोधानी॥ अरे०॥ आठ नवोंकी प्रीत बंधाणी। नवमे चले क्यु जानी॥शाम तेरी सुरत पिगनी (शामरेसें० ) ॥२॥ या जोरी जुगमें पूर नेह लागी, राजुल गुलकी बानी ॥ अरि०॥ बीनति सुन अमर पद दीजे। रंग विजय सुखदानी॥वा गमन निदानी (शामरेसें)॥३॥
॥ॐ॥ पुनः होरी॥ॐ॥ ॥ * ॥ महाराज तोरे मंदिरमे बरसे रंग । हारे हो। श्री चिंतामणि पाश प्रनुजी (तोरे मंदिरमें० )॥टेक ॥ ज्ञान गुलाल अबीर अरगजा। सुमता नीर सुचंग (हारे हो०)॥१॥ अनुन्जव लहर फूली फूलवामी । दिन दिन चढते रंग (हारे हो०)॥२॥ नपशम वागा अंग अनोपम । शुक्ल ध्यानके संग (हारे हो.)॥३॥ अमरचंद चिंतामाणि चित्त धर। तुज° अविहम रंग (हारे हो०)॥४॥ इति ॥॥ ॥ ॥ॐ॥
॥ * ॥ पुनः होरी ॥॥ ॥ ॥ तोरी अंगीयां बनी है सुरंग । (हां रे हो) श्री चिंतामणिपाश ॥ प्रनुजी तोरी०॥ सुविवेकी श्रावक मिल आए । आणी नाव अग्नंग ॥ हारे हो श्री० ॥ ग्रह बंधीकी नांत नली है। बुंटीया नव नव रंग ॥ हारे हो श्री चिं०॥ १ ॥ जरकस जापो खूब बन्यो है । कोर केवमा संग ॥ हारे हो
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नाव होली खेलन बिचार स्तवन ४०३ श्री चिं०॥ मस्तक मुकुट काने दोय कुंमल । बाजूबंद सुचंग ॥ हारे हो श्री चिं०॥२॥ फूलनकी गलमाल सोनत है। सौरंग वास सुगंध ॥ हारे हो श्री चिं०॥ त्रिनुवन साहब तखत बिराजे । महिरवान मन रंग ॥ हारे हो श्रीचिं० ॥३॥ सुर नर याकी सेवा करत है। रात दिवश धर रंग ॥ हारे हो श्री चिं०॥ मुनिजर है साहेबकी सबपर। संघ है सकल सुरंग ॥ हारे हो श्री चिं०॥ भावना जावो जिन गुण गावो । अमर घणे रंग ॥ हारे हो श्री चिं० ४॥इति ॥
॥ ॥ ॥ (पुनःहोरी)॥ ॥ ॥ ॥ चिंतामणि चित्त ध्यावो रे। वजित फल पावो ॥ सकल नविक जन मिलकर आवो । राग फाग गुण गावोरे॥ वंचित० ॥१॥ अबीर गुलाल लाल संग लावो । नर नर मुठीया नमावोरे॥ वं०॥ कुंकुम केशरकुं गिरका वो। नाव शुक्ल नल जावोरे॥० ॥२॥ अंगी चंगी पुहप बनावो दीपक ज्योति दीपावोरे॥०॥ दरस सरस करके सुख पावो । पुण्य नंमार जरावारे ॥०॥३॥ वाजिव वाजा विविध वजावो । नृत्य संगीत नचावो रे॥०॥ अमर सिंधुर आनंद बधावो । जिनजीसें लय लावोरे॥ ४॥
पुनः होरी॥॥ 30 ॥ ॥ मत मारो पिचकारीरे। मेंतो सगरी नीज गई ॥ म०॥ ताल मृदंग बजत मन मांहि । गावत आगम राग ॥ लाल मेंतो सगरी नीज गई ॥ मत०॥१॥ज्ञान गुलाल सदा रंग लागो। खेलत मुमति सोहाग॥पी या मेंतो सगरी नीज गई ॥२॥समकित केशर चीर रंगाळं । पहिरं मन बैराग॥ लाल मेंतो० ॥३॥ लख चौराशी रामत गेहूं। चारों गति सो हाग ॥ पिया मेंतो० ॥ ४॥ ऐसा खेल खेले सब प्यारी। शिव सुंदरी व रमांग। लाल मेंतो० ॥ ५ ॥ ज्ञानसागर प्रनु बिविध प्रकारें। इण विध खेले फाग॥ लाल मेंतो०॥६॥ ॥ इति ॥ .. .... ॥ * ॥
पुनः होरी॥॥ - ॥ ॥ हारे तुंतो जिन मज विलंब न कर हो । होरीके खेलश्या । हां० ॥ (आंकणी) ॥ समता लहेर संयममां गीली । ममता लहेर परिहर
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४०४
रत्नसागर. हो॥ हो० ॥१॥ विनय संचारीमें गरि पिचकारी । होरेतुंतो, शिवरमणीकुं वरहो। हो ॥ ज्ञान गुलाल जरी तिहां जोरी। हारे तुंतो, खेल वसंत घर घर हो॥ हो ॥२॥शील सुगंध आनूषण अंगे । हारे तुंतो. आतम अं नुन्नव वर हो ॥ हो० ॥ज्ञान विज्ञान फूली फूल वारी। हारे तुंतो, गुंजत मनमधुकर हो॥ हो० ॥३॥वामानंदन पाश जिनेसर । हारे तुंतो, जगना यक जग गुरहो ॥ हो॥ श्रीजिनलान कहे प्रजु संगे । हारे तुतो, सम तारस अनुसर हो ॥ हो ॥४॥ इति ॥ ॥
॥ ॥ पुनः होरी ॥ * ॥ ॥ नेम मिलेतो बातां कीजीये ॥ होप्यारे । नेम मि० ॥ टेक।। मेंहूं तुमारी खिजमतगारी । प्रेमका प्याला पीजीए । हो॥ने ॥१॥ हम है केतकी तुम हो नमरा। फिर फिर वासना लीजीये।। हो० ॥ ने॥२॥ मेंहुं धरती तुम हो मेहुला। कबहुं तो मिलना कीजीये ॥ हो॥ने०॥३॥ नेम राजुल मिल मुक्ति सिधाए । रूपचंद पद दीजीये ॥हो॥ने०॥४॥
॥॥ पुनः होरी॥ ॥ * ॥ आतमतत्व विचारो झानसें । करम कटे ज्युं शुक्ल ध्यानसें ॥ आ (आंकणी)॥पुद्गल जीव सरूप पिगन्यो। ममता मिट गइ सारी जान सें॥कर्म कटे ज्युं शुक्ल ध्यानसें ॥०॥१॥ क्रोधादिक अरी अंधकार सम; नाश यो सब ज्ञान जानसें ॥ ० ॥ २ ॥ परमातम पद पावत सोई। विनय जजत पद अचल थानसें ॥०॥३॥ इति ॥
॥॥ पुनः हारी॥8॥ ॥ॐ॥ लाल तेरे नयनोंकी गति न्यारी ॥ एतो नपशम रसकी कयारी ॥ लाल०॥ ( आंकणी ) ॥कामक्रोधादिक दोष रहित हे। नयन नये अं विकारी ॥ निद्रा सुपनदशा नहिंयामें। दर्शनावरण निवारी लाल ॥१॥
ओरनयनमें काम क्रोध हे । बहुत जरी हे खुमारी ॥ परधन देख हरनकी इडा। या हे हुशियारी॥लाल०॥ २ ॥ऐसा लबन हे नयनोमें । क्यु पामे जव पारी ॥ ओही बिचार करो दिल अपनें। होत कर्मसें भारी॥
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नाव होली खेलनविचार स्तवन.
४०५ लाल० ॥ ३ ॥धर्म बिना कोई सरनां नहिं हे । एसो निश्चे धारी ॥ विनय कहे प्रनु भजन करो नित । ओही तारन हारी॥ लाल०॥४॥इति॥
॥ॐ॥ पुनः होरी ॥॥ ॥ ॥दर्शन बिन जीव संसार जम्यो ॥ दर्शन० ॥ चोराशी लख योनी नटकत । लहि मानव जव युहि गम्यो॥०॥ १ ॥ पुन्यनदय श्रा वक कुल पायो। घटमें ज्ञान उद्योग नयो॥ द० ॥२॥ माया ममता में निशदिन तुं । विषय विकारशुं नहिं विरम्यो॥द०॥३॥सार विवेक तुंधार रे चेतन । पटकत भ्रममें क्युं नटक्यो ॥ दु० ॥ ४ ॥ कहत हमाकल्याण निरंतर । जज नगवंत तेरो पापशम्यो॥द०॥५॥2॥
॥ ॥ पुनः होरी || 3 ॥ ॥ मत गेमो ह्मांने युहीरे। कोई चूक बतावो॥ मत०॥अबीर गुलाल नाव सब रमतां । हमशुं कदेय न खेलोरे॥ को० ॥१॥ रथ फेरी प्रनुजी घर आये । चढिया ने गिरनारी रे॥को० ॥ २ ॥ बहुत हगशुं व्याह रचायो जीव देख दया आणी रे॥को० ॥ ३ ॥राजुल कली अरज करत है। एक वार फिर जोवोरे॥को० ॥ ४ ॥ नेमि राजुल मिल मुक्ति सिधाए । पहेली राजुल नारीरे ॥को०॥५॥ ॥ इति ॥ ॥१॥
॥ ॥ पुनः होरी॥ॐ॥ ॥ ॥ अटक्यो चित्त हमारो री । जिन चरण कमलमें ॥ अट० ॥ शीत लनाथ जिनेसर साहिब । जिनवर प्राण आधारो री॥ जि० ॥ १॥ माता नंदादेवीको नंदन, दृढरथ नृपको प्यारो री॥ जि०॥ २ ॥ श्रीवन लग्न जनम दिलपुर । कुल इक्ष्वाग नदारो री ॥ जि०॥ ३ ॥ नेवु धनुष शरी र सुशोनित । कनक वरण अनुकारोरी॥ जि० ॥ ४ ॥ एक लत पूरबा यु कहिये । नाम लीआं निस्तारो री ॥ जि० ॥ ५ ॥ दीनदयाल ज गत प्रतिपालक । अब मोहे पार नतारोरी ॥ जि० ॥ ६ ॥ हरखचंद का साहेब सच्चे । हुँतो दास तुमारोरी॥ जि०॥७॥॥
॥ ॥ मंगल स्तवन ॥ ॥ ॥ ॥ मंगल राजै गिरनार । नेम पद मंगल है ( देवा० ) मंगल रा
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४०६
रत्नसागर.
जिमती पद मंगल | मंगल रह नेमि राज ( ने० ) मंगल गणपति मंगल पाठक । सब तपसी विचसार ( ने० ) मंगल धन धन्ना मुनि नायक । मैं गल सब अनगार ( ने० ) जय जय खेम कुशल गुरु जंपै । श्रानन्द घन अवतार ( ने० ) । इति पदम् ॥ * ॥ 1111
॥ * ॥
॥ * ॥ इम माश द्वादश मध्य जे सहु पर्व्व सेवन कारनें । सहु बा लजन नृपगार कारन शुद्ध भाषा सारनें ॥ संवत् रसानजनंदबसुधा नाद्र शित एकादशी । गुरु गढ़ खरतर कलिकता पुर मोहन भाषा उपदिशी ॥ १ ॥ * ॥ इति द्वादशमाश पब्र्बाधिकारः ॥ १२ ॥ सं १८३६ ॥
॥ * ॥ अथ द्वादश माश मध्ये प्रसिद्ध पर्वाधिकार कथनानंतर । सांप्र ति मखिलजिन पंचकल्याणक स्वरूप मुच्यते ॥ *॥
॥ ॐ ॥ जिस माशमें जितने दिन भगवंतके कल्याणकके है । सो स . नव्यजीवों के सेवन करने योग्य है । परंतुकोण तिथकों क्या कल्याण कहै । सो जाएया बिना सेवन कर सकते नही । ( और विशेष में ) पंच कल्याणक तपस्या करनेवाले जव्यजीवोंके अवस्य पंच कल्याणक टीप गुणनें बिना काम चलता नहीं । इसीसें गुणनो करनें माफक विधि प्रया कसें पंच कल्याणक टीप लिखते हैं ||
॥ * ॥ अथ पंच कल्याणक टीप लि० ॥ ॥ ( कार्त्तिक शुक्लपक्षे ) ॥ २ ॥ ३ ॥ श्रीसुविधिनाथजी सर्वज्ञाय ० ॥ १२ ॥ श्रीनाथजी सर्वज्ञाय० ॥ (मार्गशीर्ष शुक्लप के )॥९॥ १० ॥ श्रीमरनाथजी अर्हते नमः ॥ १० ॥ श्रीमरनाथजी पारंगताय ॥ ११ ॥ श्रीमरनाथजी नाथाय० ॥ ११ ॥ श्रीमल्लिनाथजी अर्हते ० ॥ ११ ॥ श्रीमल्लिनाथजी नाथाय० ॥
( कार्त्तिक कृष्णपक्षे ) ॥ ५ ॥
५ ॥ श्रीसंभवनाथजी सर्वज्ञायः ॥ १२ ॥ श्रीपद्मप्रभुजी ते नमः ॥ १२ ॥ श्रीनेमिनाथजी परमेष्टि ० ॥ १३ ॥ श्रीपद्मनुजी नाथाय ॥ ३० ॥ श्रीवर्धमानजी पारंगताय० ॥ (मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष )॥४ ॥ ५ ॥ श्री सुविधिनाथजी प्रहते• ॥ ६ ॥ श्रीसुविधिनाथजी नाथाय ॥
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पंचकल्याणक गुणनो तपस्या विधि ४० १०॥श्रीवर्धमानजी नाथाय नमः॥११॥श्रीमतिनाथजी सर्वज्ञा० ॥ ११॥श्रीपद्मपनुजी पारंगताय० ॥११॥श्रीनमिनाथजी सर्वज्ञाय० ॥
(पोष कृष्णपदे)॥५॥ १४॥श्रीसंभवनाथजी अर्हते० ॥ १०॥श्रीपार्थ नाथजी अर्हते॥ १५॥ श्रीसंनवनाथजी नाथाय०॥ ११॥ श्रीपार्थ नाथजी नाथाय०॥ (पोष शुक्लपदे)॥५॥ १२॥श्रीचंद्राप्रनुजी अर्हते नमः॥ ६॥ श्रीबिमलनाथजी सर्व०॥ १३॥ श्रीचंद्राप्रनुजी नाथाय०॥ ९॥श्रीशांतिनाथजी सर्व० ॥ १४॥श्रीशीतलनाथजी सर्वज्ञा०॥ ११॥श्रीअजितनाथजी सर्वज्ञा०॥ (माघ कृष्णपके॥५॥) १४॥श्रीअनिनंदनजी सर्वज्ञा० ॥ ६॥श्रीपद्मप्रलूजी परमेष्टिने०॥ १५॥ श्रीधर्म नाथजी सर्वज्ञा०॥ १२॥श्रीशीतलनाथजी अर्ह० ॥ (माघ शुक्लपके)॥९॥ १२॥श्रीशीतलनाथजी नाथाय॥ २॥श्रीअनिनंदजी अर्हते ॥ १३॥ श्रीषनदेवजी पारंगता॥ २॥श्रीवासुपुज्यजी सर्वज्ञाय० ॥ ३०॥श्रीश्रेयांसजी सर्वज्ञाय नमः॥ ३॥श्रीविमलनाथजी अर्हते॥ (फाल्गुन कृष्णपद)॥१०॥ ३॥श्रीधर्म नाथजी अर्हते० ॥ ६॥श्रीसुपार्श्वनाथजी सर्वज्ञाय० ४॥श्रीविमलनाथजी नाथाय० ॥ ७॥श्रीसुपार्श नाथजी पारं०॥ ८॥श्रीअजितनाथजी अर्हतेनमः॥ ७॥श्रीचंद्राप्रनूजी सर्वज्ञायः॥ ९॥श्रीअजितनाथजी नाथाय० ॥ ९॥श्रीसुबिधिनाथजी परमेष्टि०॥ १२॥श्रीअनिनंदनजी नाथाय० ॥ ११॥श्रीषनदेवजी सर्वज्ञाय०॥ १३॥ श्रीधर्म नाथजी नाथाय०॥ १२॥ श्रीश्रेयांसजी अर्हते नमः॥ (फाल्गुन शुक्लपदे)॥५॥ १२॥श्रीमुनिसुव्रतजी सर्वज्ञा०॥ २॥श्रीअरनाथजी परमेष्टिने ॥ १३॥ श्रीश्रेयांसजी नाथाय० ॥ ४॥श्रीमतिनाथजी परमेष्टि० ॥ १४॥श्रीवासुपुज्यजी अर्हते नमः॥ ८॥ श्रीसंजवनाथजी परमेष्टि०॥ ३०॥श्रीवासुपुज्यजी नाथाय ॥ १२॥ श्रीमल्लिनाथजी पारंगता० ॥ (चैत्र कृष्णपदे)॥५॥ १२॥श्रीमुनिसुव्रतजी नाथाय॥
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रत्नसागर. ४॥श्रीसुपार्श्व नाथजी परमेष्टि (चैत्र शुक्लपके)॥८॥ ४॥श्री पार्श्व नाथजी सर्वज्ञाय० ३॥श्रीकुंथुनाथजी सर्वज्ञाय० ।। ५॥ श्रीचंद्राप्रनृजी परमेष्टि०॥ ५॥श्रीअजितनाथजी पारंग०॥ ८॥श्रीआदिनाथजी अर्हते०॥ ५॥श्रीसंनवनाथजी पारंग०॥ ८॥श्रीआदिनाथजी नाथा ॥ ५॥श्रीअनंतनाथजी पारंग॥ (वैशाख कृष्णपदे)॥९॥ ९॥श्रीसुमतिनाथजी पारंग०॥ १॥ कुंथुनाथजी पारंगताय०॥ ११॥ श्रीसुमतिनाथजी सर्वज्ञा०॥ २॥श्रीशीतलनाथजी पारंग०॥ १३॥श्रीवर्धमानजी अर्हते०॥ ५॥ श्रीकुंथुनाथजी नाथाय०॥ १५॥श्रीपद्मप्रचूजी सर्वज्ञाय० ॥ ६॥ श्रीशीतलनाथजी परमेष्टिने ॥ (वैशाख शुक्लपदे)॥८॥
१०॥श्रीनमिनाथजी पारंग०॥ ४॥श्रीअनिनंदनजी परमे॥ - १३॥ श्रीअनंतनाथजी अर्हते॥ ७॥श्रीधर्म नाथजी परमेष्टि०॥ १४॥श्रीअनंतनाथजी नाथा०॥ ८॥श्रीअनिनंदनजी पारंग०॥ १४॥श्रीअनंतनाथजी सर्व०॥ ८॥ श्रीसुमतिनाथजी अर्हते ॥ १४॥श्रीकुंथुनाथजी अर्हते॥ १०॥श्रीवर्षमानजी सर्वज्ञाय०॥ (ज्येष्ट कृष्णपके)॥८॥ १२॥ श्रीबिमलनाथजी पारं० ॥ ८॥श्रीमुनिसुव्रतजी अर्हते०॥ (ज्येष्ठ शुक्लपद)॥४॥ ९॥श्रीमुनिसुव्रतजी पारं०॥ ५॥श्रीधर्मनाथजी पारंग०॥ १३॥ श्रीशांतिनाथजी अर्हते०॥ ९॥श्रीवासुपूज्यजी परमेष्टिने ॥ १३॥ श्रीशांतिनाथजी पारंग०॥ १२॥ श्रीसुपार्श्व नाथजी अर्हते॥ १४॥श्रीशांतिनाथजी नाथायः॥१३॥श्रीसुपार्थ नाथजी नाथाय० ॥ (आषाढ कृष्णपदे)॥३॥ (आषाढ शुक्लपद)॥३॥ ४॥श्रीआदिनाथजी परमेष्टि०॥ ६॥श्रीवर्धमानजी परमेष्टि० ॥ ७॥श्रीबिमलनाथजी पारंग॥ ८॥श्रीनेमनाथजी पारंग०॥ ९॥श्रीनमिनाथजी नाथाय० ॥ १४॥श्रीवासुपूज्यजी पारंग ।।
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पंचकल्याणक गुणनो तपस्या विधि. ४०९ (श्रावण कृष्णपदे)॥४॥ (श्रावण शुक्लपदे)॥५॥ ३॥श्रीश्रेयांसजी पारंगताय० २॥श्रीसुमतिनाथजी परमेष्टि०॥ ७॥श्रीअनंत नाथजी परमेष्टि० ५॥श्रीनेमिनाथजी अर्हते नमः॥ ८॥श्रीनमिनाथजी अर्हते नमः॥ ६॥श्रीनेमिनाथजी नाथाय० ॥ ९॥श्रीकुंथुनाथजी परमेष्टिने नमः॥ ८॥श्रीपार्श्व नाथजी पारंग०॥ (जादवा कृष्णपदे)॥२॥ १५॥श्रीमुनिसुव्रतजी परमे० ॥ ७॥श्रीचंद्राप्रनूजी पारंगता०॥ (नाद्रवा शुक्लपके)॥१॥ ७॥श्रीशांतिनाथजी परमे०॥ ९॥श्रीसुविधिनाथजी पारंग० ॥ ८॥श्रीसुपार्श्वनाथजी परमे०॥ (आश्विन शुक्लप)॥१॥ (आश्विन कृष्णपदे)॥२॥ १५॥श्रीसुविधिनाथजी परमेष्टि०॥ १३॥श्रीमहावीरजी गाप०॥ ॥ ॥ इति पंचकल्याणक संपूर्ण ॥ ३०॥श्रीनेमिनाथजी सर्वज्ञाय नमः ॥ ॥ग पहार षष्टमप्यस्तिः॥
॥॥अथ पंचकल्याणक विधि॥8॥ ॥ॐ॥ प्रथम शुनदिन शुन घमी गुरूकै पास । पंचकल्याणक तप ग्र हण करै । नपवास (बा) आंबिल एकासणा दिकको पञ्चख्खाण करै । तीन टंक देव बंदन करै । पमिकमणो करै । (जिस दिन) जो महाराजको कल्याणक होय । नसीको २००० गुणनो करै । और (पाश जिनेसर जग तिलोए०) इत्यादि पंच कल्याणक लावनित स्तवन पढे (वा) सुरें। जहां जगवंत के कल्याणक नूमि होय । (नहां) वझे महोबवसें संघ सहत यात्रा करने कों जावै । विधिसंयुक्त यात्रा करै । और सर्व नगवंतों के पंच कल्याणकको बव करै । (जो) शक्ति न हो (तो) शाश नके अधिपति श्रीमहाबीर स्वामी के षद कल्याणकका नबव जरूर करे ॥ ॥ अब २३ नगवंत की अपेक्षायें पांच, श्रीबीर प्रनूकीअपेवायें षट् कल्याणक संकेप नबव विधि लि० ॥ ॥१॥ चवन कल्याणक कों ( परमेष्टिनेनमः) कहियै ( इस दिन ) चवद स्वप्नादिक की पूजा क रायकै । चवन कल्याणकको नबव करै । हीरा चढावै ॥१॥ ॥
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४१०
रत्नसागर. * ॥२॥ जन्म कल्याणक कों (अर्हते नमः) कहीय ( इस दिन) जलयात्रादिक महोडव करके । अष्टोत्तरी स्नात्रादिक करावै । ब स्त्र चढावै ॥ २ ॥ ॥३॥ दिदा कल्याणक कों (नाथाय नमः) कहीये ( इस दिन ) समोसरण निकाले । अशोकवृदादिकके नीचे स्था पन करकै । दिवाको नबव करै । घृत गुम बस्त्रादिक चढावै । शक्तिमा फक दान देवै ॥३॥ * ॥ ४॥ केवल ग्यान कल्याणककों ( सर्वज्ञा य नमः) कहीयै । ( इस दिन ) समोसरणमें नगवंतकों स्थापन करकै । आठ प्रातिहार्य प्रगट करै । नाना प्रकारके नबव करै । बस्त्र आनूषण चढावै । सपेदगोला चढावै ॥४॥ ॥५॥ निर्वाण कल्याणककों (पारं गताय नमः ) कहीयै । ( इस दिन।) निर्वाण कल्याणक के जावगजित नवव करै लामूचढावै ॥५॥ (और ) उछा गर्जापहार कल्याणकका उडव करणा होय तो चवण कल्याणकके नव समान करै ॥६॥ (इसी तर) सर्व कल्याणकके नबव करै । तपस्या पूर्ण होने से । पंचकल्याणक जीकी पूजा करावै । गुरूनक्ति करै । साहमी बबल करै । ( इत्यादिक बिधि संयुक्त यह तपस्या (जो) नव्य जीव करेंगे (सो) अनन्त सुख को प्राप्त होंगे॥ इति पंचकल्याणक तपस्या धिकारः॥ * ॥
॥ॐ॥अथ पख वासैको स्तवन लि० ॥॥ ॥ ॥ सीमंधर करजो मया (एदेशी) जंबुप्रीप सोहामणो । ददि ण भरत नदार । राजग्रही नगरी नली । अलिका पुर अवतार ॥१॥ (श्री मुनिसुबत स्वामी जी)। समरंता सुख थाय। मनवंडित फल पामी यै। दोहग दूरपुलाय ॥२॥ (श्री) राज करै तिहां राजियो । मुमित्र नरेसर नाम । पटराणी पद्मावती । शीलगुणें अनिराम ॥३॥ (श्री) श्रावण ऊजल पूनमै । श्रीजिनवर हरिवंश । माताकुक्ति सरोवरै । अवतरी यो रायहंस । (श्री०) ॥४॥ जेठपढम पद अध्मी । जायो श्री जिनरा य ॥ जनम महोडव सुरकरै । त्रिनुवन हरख नमाय (श्री०) ॥५॥ शामल वरण सोहामणो । निरुपम रूपनिधान । जिनवर लंबन काउवो। वीशधनुष तनुमान (श्री०) ॥६॥ परणी नार प्रनावती । नोगपुरंदर
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पखवासको स्तवन तपस्या बिधिः ४११ साम । राजलीला सुखनोगवै । पूरै वंचित काम (श्री०) ॥७॥ तब लोगांतिक देवता । आवि जंपै जयकार । प्रनु फागुणवदि बारसे। लीधो संजम जार (श्री) ॥८॥ शुन फागुणवदि बारसै । मनधर निरमल ध्यान । च्यारकरम प्रनुचूरिया । पाम्यो केवलग्यान (श्री०) ॥९॥ (ढाल २) सुखकारण नवियण (एहनी)॥ ततखिण तिहां मिलिया चलिया सुरनर कोमि। प्रजुना पदपंकज प्रणवै वेकरजोमी । वेकरजोडी मचर गेमी समवसरण विरतंत । माणक हेम रूपमय त्रिगडो नत्र त्रय ऊलकंत । सिं हासन वैग तिहां स्वामी चोविह धर्मप्रकासै । बारै परखदा वैठी आगलि सुणे मन नव्हास ॥२४॥ तपने अधिकारै पखवासो तपसार । परिवा थी कीजै पनरह तिथ ऊदार । पनरह तिथि कीजै गुरु मुख लीजै जिस दिन हुवै नपवास । श्रीमुनिमुबत नाम जपीजै वांदी देव नल्लास । तप - ऊजमणे रजत पालणो सोवन पूतलीचंग । मोदक थाल देहरै मूंकी जि नवर स्नात्र सुरंग ॥११॥ तप करिये निरन्तर अहुरव दर्शनी जेम । मनबंबित केरा सुखपामी जै तेम । पुत्र मित्र परिवार परं अति वलनान रतार । जस कीरत सोनाग बमाई महियल महिमा जाण । परनव मुग ति फल लहीयै एतपनें प्रमाण ॥१२॥ थिर थापी चतुर्विध संघ तणो अधिकार । जरुवल प्रमुख नगरादिक करिया विहार । विहार करी प्रतिबो धै खंदक पंचसयां परिवार । कार्तिकसेठ जितसत्रु तुरंगम सुबतनाम कु मार । तीश सहस वरस आऊखो पालै जग दया सार । श्रीसम्मेत सिखर परमेसर पुहता मुगति मकार ॥१३॥ इम पंच कल्याणक थुणिया त्रि नुवन ताय । मुनिसुव्रत स्वामी वीशमो जिनवरराय । वीशमो जिनवर राय जगत गुरु जयनंजण जगवंत । निराकार निरंजन निरुपम अजरामर अ रिहंत । श्रीजिनचंद विनय शिरोमणि सकल चंद गणिसीस । वाचक सम य सुन्दर इम पनणे पूरो मनह जगीस ॥४॥ ॥ ॥ ॥॥ १॥इति पखवासा स्तवन संपूर्णम् ॥ ४४ ॥ * ॥
॥ ॥ अथ पखवासा तप बिधि लि०॥॥ ॥ ॥ प्रथम शुभ दिन गुरूके पास तप ग्रहण करकै मुद (१)
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४१२
रत्नसागर. पडिवासें । पूर्णमासी तक । इकसार पनरै नपवास करै । जो शक्ती न हो (तो) प्रथम सुद पक्की पडवा १ । द्वितीय सुद पक्की दूज २ (ऐसें) अ नुक्रमसें पनरै सुदपदमें तपस्या पूर्ण करै । श्री मुनिमुब्रत स्वामीके पंच कल्याणक प्रावगजित स्तवन पढे । गुरूको संयोग होय (तो) गुरूके पास सुणे॥ ॥
॥ ॥
॥ * ॥ ॥ ॥ श्रीमुनिसुव्रत स्वामी सर्वज्ञाय नमः॥॥ - ॥ ॥ इसीको (२०००) दो हजार गुणनो करै । और तपस्या ग्रहण करनेकी (तथा) देवबंदनादिककी विधि । पूर्व खुलासा लिख दी नी है । नसी मुजब बिबेकी जीव सब तपस्या की विधि करै । बिधि संयु क्त करने से उत्तम फल मिलता है ॥ ॥ इति पखवासा बिधिः॥॥
||अथ दश पच्चक्खाण स्तवन लि०॥. ॥ ॥ (दूहाः)॥सिघारथ नंदन नमूं । महावीर नगवंत। त्रिगमै बैग जिनवरू । परषदवार मिलंत ॥ १॥ गणधर गौतम तिण समें। पू श्रीजिनराय । दश पचखाण किसा कया। कीयां कवण फल थाय ॥२॥ (ढाल)॥१॥ सीमंधर करज्योमया ( एदेशी)॥श्रीजिनवर इम नपदिशै सांनल गोयम स्वाम । दश पचखाण कियां थकां । लहीयें अविचल ठगम ॥श्री० ॥३॥ नवकारसी १ । बीजी पोरसी २ ॥ साढ पोरसी ३ । पुरमट्ठ ४ ॥ एकासण ५॥नीवी ६॥ कही ॥ एकलगण ७ ॥ देव ढि ॥ (श्री ४)॥दात ८। अंबिल ९ । नपवास १० । ही ॥ एहीज दश पच्चख्खाण । एहना फल सुण गोयमा। जू जूवा करूं वखाण ॥ (श्री०५)॥ रतन प्रना १। शर्कर प्रना २ ॥ वालक ३ । तीजी जाण ॥ पंक प्रना ४। तिम धूम प्रना ५ ॥ तम प्रना ६ । तम तम ७ । ठाम । ( श्री० ६)॥ नरक सात कही एसही। करम कठिन करजोर। जीव करम वस ते सही। नपजै तिण हीज गेर (श्री० ७॥) बेदन नेदन तामना । नूख त्रिषा वलित्रास । रोम रोम पीमा करै। परमाहम्मी तास (श्री० ८) । रात दिवश खेत्रवेदना । तिलनर नहीं जिहां सुक्ख । किया करम जे लोग . वै। पामें जीव बहुक्ख (श्री०९)॥ इकदिनरी नवकारसी। जे करे नाव
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• १० पञ्चक्खाण स्तवन तपस्या बिधि. ४१३ विशुध्ध । सो वरस नरकनो आऊखो । दूर करै ज्ञानबुधि (श्री०१०)॥ नित्य करै नवकारसी । ते नर नरक न जाय । नरहै पाप वलि पाउला। निरमल होवै जी काय (श्री)॥११॥ ढाल २॥श्रीबिमलाचल सिर तिलो (ए चाल)॥ सुण गोतम पोरसी कियां । महामोटो फलहोय । जावसुं जे पोरसी करे। पुरगति दै सोय (सु० १२)। नरक मांहें जे नारकी। वरशें एक हजा र । करम खपावै नरकमें । करता बहुत पुकार ( सु० १३ ॥) एक दिवश नी पोरसी। जीव करै इकतार । करमहणे सहस एकना। निहचैमुं गण धार (सु०) १४ ॥ पुरगति मांहें नारकी । दसहकार प्रमाण । नरक आयु खिण एकमें । साढपोरसी कर हांण (मु०) १५ । पुरमट्ट कर नित जीवजे । नरकै ते नविजाय । लाख वरश करमने दहै । पुरमट्ठ करम खपा य (सु०) १६॥ लाख वरश दश नारकी। पामें दुःख अनंत । इतरा करम एकासणें । दूर करै मनखंत (सु०) १७॥ एककोमिवरसांलगे। करम खपावै जीव । नीवीय करतांनावसुं। पुरगति हणे सदीव (सु०) १८॥ दश कोमी जीव नरकमें। जितरो करै कर्म दूर। तितरो एकलगंणही । करैसही चकचूर (सु०) १९ ॥ दात करंता प्राणीयो । सो कोमी परमाण । इतरा वरश पुरंगति तणा। दै चतुर सुजाण ( सु०)२० ॥ आंबि लनो फल बहु कह्यो । कोमी एक हजार । करम खपावै इणपरै । नाव आंबिल अधिकार ( सु०) २१ ॥ कोमी सहस दशवरशही । सहे पुःख नरक मझार । नपवास करै इक नावसुं। तो पामें मुगति मझार (सु०) २२ ॥ ढाल ३॥ केके वरलाधो ( एदेशी) ॥ लाख कोमी वरसां लगे। नरके करतां रीवरे। (गोतम गणधारी) हम तप करतां थकां । सही न रक निवारै जीवरे ( गो २३) नरके वरश कोम लाखही । जीव लहें तिहां पुःखरे । ते पुःख अष्ठम तप हुंती । दूरकरी पामें सुक्खरे (गो०) २४॥ बेदन नेदन नारकी । कोमा कोमि वरसोइरे। कुगति कुमतिने पर हरो । दशमें एतो फल होइरे (गो० २५ ) नितफासू जल पीवतां । को , मा कोमी वरशनो पापरे । दूरकरै खिण एकमें । निश्चैहोय निः पापरे ( गो० २६ ) वलिय विशेष फल कह्यो। पांचम करै नपवासरे। पामेंग्यां
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४१४
रत्नसागर. न पांचेनला। करता त्रिनुवन परकासरे (गो०) २७ ॥ चवदश तप वि धसुं करै । चवदह पूरब होय धाररे। इम अनेक फल तपतणा । कहितां वलि नावै पाररे ( गो० २८)॥ मन वचने काया करी । तप कर जेनर नार रे। इग्यारै वरश एकादशी । करतां लहै नवपाररे (गो० २९)॥आठम तप आराधतां। जीव न फिरै संसाररे । अनंत नवांना पापथी। बूटै जीव निर धाररे (गो० ३०) ॥ तप हुंती पापी तरया। निसतरीयो अरजुन मालरे दृढपहारि तपसें तिरयो । चनहत्याना बूटा जालरे (गो० ३१)॥ तपना फल सूत्रे कया। पञ्चक्खाण तणा दश नेदरे । अवर नेद पिणले घणा। करतां दै त्रय वेदरे ( गो० ३२ )॥ कलशः ॥ * ॥ पञ्चक्खाण दश विध फल प्ररूप्या महावीर जिण देवए । जे करै नवियण तप अखंमित तासु सुरपय सेवए । संवत्त निधिगुण अश्व शशि वलि पोशसुद दशमी दिने। पदम रंग वाचक सीसगणिवर रामचंद्र तपविधि नणे (गो० ३३ )॥ ॥ इति दश पञ्चक्खाण वृध स्तवनं ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ १० पच्चक्खाण तपविधिः॥ ॥ * ॥ यह दश १० पच्चक्खाणके स्तवनमें । खुलासा दश पञ्चक्खा णके नेद (और ) बेला । तेला। पांचम । आठम । चौदश । ( इत्यादिक) तपस्या करनेके फल । जगवंत श्री महाबीर स्वामीके । बचन माफक । नत्तम पुरुषोनें रचना करी है । ( इसीसें ) धर्मरागी पुरुष । इसी स्तवनकों पढके । तपश्या करनेमें आदरवंत होताहै । और कोईकै दश पञ्चख्खाण तप करनेकी इछा हो ( तो ) पहलै दिन, । नवकारसी, दूशरे दिन पोर सी ( इसी तरै ) स्तवन मुजब १० पञ्चक्खाण तप । दश दिवशे सेवन करे। सदा स्तवन सुणे । गुरूको संयोग न हो ( तो ) आपपढे । अंतमें पू जाकरावे । शक्ती माफक नद्यापन करै ( इसी तपस्याके प्रसाद ) खोटी ग तिकों दूर करकै । अही गतिके बंध बांधै । महा ऐश्वर्यवंत होय । जाग्य वंत होय ॥ * ॥ इति दश पञ्चक्खाण तप बिधिः ॥ ॥
||2||अथ वीश स्थानक स्तवन लि०॥ ॥ ... ॥ ॥ श्रीसिघाचल भेटिये ( एदेशी )॥ वीश थानक तपसेवीयै।
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बीश स्थानस्तवन तपस्याविधि.
४१५
धर करि सुन परिणांम लाल रे । तीजै जव सेव्योथको । बांधे तीर्थ कर नाम लालरे । ( वी० ) ॥ १ ॥ तप रचना अधकी कही । ग्याता अंग म कार लालरे । सुणजो नवि तुमे नावसुं । चितसें करियै नच्चार लालरे ( वी० ) ॥ २ ॥ सुविहत गुरु पासै ग्रहै । वीश थानक तप एह लाल रे । निरदूषण सुनमहुरते । नचरीजै ससनेह जावरे ( वी० ) ॥ ३ ॥ अ रिहंत १ । सिद्धं २ । प्रवचननमुं ३ ॥ सूरि ४ । थिवर ५ | नवनाय ६ । लाजरे ॥ साधु ७ | नाण ८ | दंसण ९ | अरु | विनयं १० । नमुं नल साय लालरे ( वी० ) ॥ ४ ॥ चारित्र ११ । बंन १२ । क्रियापदे १३ ॥ तप १४ । गोयम १५ । जिण १६ । ईस लालरे ॥ चारित्र १७ । ग्यान नें १८ । श्रुत १९ । णी ॥ नमुं तीर्थ २० । पदवीश लालरे ( वी० ) | ५ ॥ वीश दिवशमें एकही । पद गुणनो करमेव लालरे । अथवा दिन वी शांलगे। वीशे पद गुणमेव लालरे ( वी० ) ॥ ६ ॥ एकनी षद्मास । पूरीजो नविहोय जालरे । फेरनवी करणी पनै । पिछली निष्फल जोय लालरे ( वी० ) ॥ ७ ॥ ब म उपवाससुं । अथवा देखी शक्ति लालरे । पोसहकर प्राराधियै । देववांदे निज प्रक्तिलाल (वी० ) ॥ ॥ ८ ॥ संपूरण पद सेवतां । पोसहरो नही जोग लाजरे । तोही सात पदैसही । पोसह करिये संजोग लालरे ( बी० ) ॥ ९ ॥ सूरि, थिवर पाठक पदे । साधु, चारित्र सुजांण लालरे । गौतम, तीर्थपदे, सही । सात थानक मनमान लालरे । ( वी० ) ॥ १० ॥ पद पद दीठ करै सदा दोय दोय जाप हजार लाजरे । परिक्रमणो दोय टंकही । करिये पूजा सार जालरे ( बी० ) ॥ ११ ॥ शक्ति मुजब तप कीजीये । एक नजी करो वीश लालरे । वीशा वीशी च्यारसे । तप संख्या कही एम लालरे ( वी ) ॥ १२ ॥ जिसदिन जो पद तप करे । तिसके गुण चितधार लालरे । कानसग्ग पर दक्षणा । मुख नणियै नवकार लालरे ( वी० ) ॥ १३ || जिस पदकी स्तवना सुणें । कीजै जिन पढ़ नक्ति लालरे ( वी० ) ॥ १४ ॥ मृतक जनम रितु कालमें । कविधारयो नृपवास लालरे । सोलेखै नहिं लेखो । निकेवल तपजास लालरे ( वी० ) ॥ १५ ॥ सावऊ त्या
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४१६
रत्नसागर. ग पणो करै। सोकन धारै चित्त लालरे। शील आनूषण आदरै । मुखK बोले सत्य लालरे। (वी०)॥१६॥ जेठ आषाढ वैशाखमें। मिगसर फागु ण माह लालरे । एषद् माशे माहिनें । व्रत ग्रहीय वम नाग लालरे (वी) ॥१७॥ तप पूरण हुवां थकां । कजमणो निरधार लालरे । कीजै शक्ति विचारनें । नव विवध प्रकार लालरे (वी०)॥१८॥बीश बीश गिणती तणा। पुस्तक पूग आदि लालरे । ग्यान तणी पूजा करै । मुंकीजे हठ वाद लालरे ( वी० ) ॥१९॥ फलवधी नगरनी श्राविका । कीधी विध चित्त लाय लालरे। जनम सफल करवा नणी। ओहीज मोद नपाय लालरे (वी० ) ॥२०॥(कलश)॥४॥ इम वीर जिनवर तणी आग्या धार चित्त मकारए । सहुदेख आगम तणी रचना रची तप विधसारए । वसुनंद सि घी चंद्र वरसे चेत्र मास सुहंकरू । मुनि केसरी शशि गब खरतर प्रणी स्तवना मन हरू ॥२१॥ इति वीश स्थानक तप स्तवनं संपूर्णम् ॥ * ॥ ॥॥अथ वीश स्थानक तपकरण विधिलि०॥॥
॥ * ॥ तिहां प्रथम शुन मुहुर्तके दिन । नंदी स्थापना पूर्वक । सुवि हित गुरुके समीप । वीश स्थानक तप । विधिपूर्वक नच्चरै । एक नली दो माशसें लेकै ( यावत् ) उम्माशें पूरी करै । (कदाचित् ) जम्माश मध्ये पूरी नकर सकै (तो) वा नली गिणती में नहीं। और नवी करणी पमै । एक म्लीके वीश पद है (तिहां) कोई वीश दिनमें। वीशो पद जूदा २ गिणे कोई वीशों दिनमें एकजपद गिणें । दूसरै वीशों दिनमें दूसरो पद । (ऐसें ) वीशों पदकी वीश ली करै । तिहां पदाराधनके दिन प्रबल शक्तिवंत । अध्म तप करिकै आराधै । वीश अहमें एकनी होय (ऐसें) वीश नली (४०० ) अहमें आराधै । और तिसमें होनशक्ति बह तप करकै आराधै। तिससे होनशक्ति चौविहार उपवास करके आराधै । तिससें हीन शक्ति त्रिविहार उपवास करके आराधै । तिससे हीन शक्ति आंबिल (तथा) ति विहार एकाशणा करके आराधे । तिहां शक्तिवान प्राणी । सर्व तपस्याके दिन अंठ पहरी पोसह करै । (हीन शक्ति) दिन पोसह करै । वीशों पद पोसह सेती आराधै ( जो ) पोसह शक्ति सर्व पदमें न हो (तो)
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बीशस्थानक स्तवन तपस्या बिधि गुणनो
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प्राचार्य पदे १ उपाध्याय पढ़े २ थिवर पदे ३ साधू पदे ४ चारित्र पदे ५ गौतम पढ़े ६ तीर्थ पदे ७ यह सात थानकै तो पोसहज करके आराधै । तथापि शक्ति न हो (तो) तिस दिन देशावगासिककरे । सावद्य व्यापार त्यजै । सो पिण नहोइ ( तो ) यथाशक्ति तप करी राधे । अपणी ही नानावै ( तथा ) मृतक जातक का सूतकमें उपवासादि तप न गिरों, न जावै । स्त्रियां पि तु समय का तप न गिणें (तथा) तपके दिन पोसह सहित करे (तो) वहोत श्रेयकारी है । सो न होसकै । (तो) तपके दिन जय टँक पक्किमण करै । तीन टंक देव बंदन करै । दो सहस्र (२०००) एक पदका जप करे । ब्रह्मचर्य पालै । भूमि शयन करें । तपकै दिन तिसावद्य प्रारंभ व्यापार न करै । असत्य न बोलै । सर्ब दिन तप पढ़के गुणकीर्त्तनमें रहै । (तथा) तपके दिन पोसह करे (तो) पार के दिन जिन aक्ति करके पारणो करै । ( जो ) तपके दिन पोसह नहो (तो) न सी दिन श्री जिन भक्ति करे । करावे । भावना जावे । ( तथा ) तपकै दिन पदके गुण द प्रमाण संख्याई कानसग्ग करै । ( तावन्मात्र ) तद्गुण स्मरण पूर्वक खमासमण देई वंदना करे । उस पदका गुण यादकरके उदात्त स्वरै स्तवना करें। हर्षित रहै ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ थवीश स्थानक गुणनो और कावसग्गका प्रमाण लिखते हैं ॥ * ॥
॥ ॥ (एमो अरिहंताणं ) ( २००० ) गुणनो । लोगस्स १२ कानस ग्ग ॥ ॥ १ ॥ * ॥ ( णमो सिद्धाणं ) ( २००० ) गुणनो । लोगस्स १५ कानसग्ग ॥ ॥ २ ॥ * ॥ ( णमो पवयणस्स ) ( २००० ) दो हजार गुणनो। लोगस्स ७ कानसग्ग ॥ ॥ ३ ॥ * ॥ ( रामो आयरियाणं ) ( २००० ) दो हज्जार गुणनो। लोगस्स ३६ कानसग्ग ॥ * ॥ ४ ॥ *॥ ( नमो थेराणं ) (२०००) दो हज्जार गुणनो । लोगस्स १५ कानसग्ग ॥ * ॥ ५ ॥ * ॥ (णमो नवझायाणं ( दो हज्जार गुणनो । लोगस्स २५ का उसग्ग ॥ ॥ ६ ॥ ॥ ( णमो लोए सबसाहूणं ) २००० गुणनो। लोग रुस २७ कानसग्ग ॥ * ॥ ७ ॥ * ॥ (एमो नापस्स) २००० गुणनो । लो
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रत्नसागर. गस्स ५ कानसग्ग ॥ ॥८॥ * ॥ (णमो दसणस्स (२०००) गुणनो। लोगस्स १७ कानसग्ग ॥१॥९॥॥(णमो विनयसंपणाणं ) २००० गुणनो। लोगस्स १० कानसग्ग ॥ ॥१०॥8॥ (णमो चारित्तस्स) २००० गुणनो । लोगस्स ६ कानसग्ग ॥ * ॥ ११॥ * ॥ (णमो बनवय धारीणं) २००० गुणनो। लोगस्स ९ कानसग्ग ॥ ॥१२॥ ॥(णमो किरिआणं ) २००० गुणनो । लोगस्स २५ कानसग्ग ॥ ॥१३॥ ॥ * ॥ (णमो तवस्सीणं) २००० गुणनो । लोगस्स १५ कासग्ग ॥ * ॥ १४॥ ॥ (णमो गोयमस्स ) २००० गुणनो। लोगस्स १७ कान सग्ग॥ ॥१५॥ ॥ (णमो जिणाणं ) २००० गुणनो। लोगस्स १० कान्सग्ग ॥ ॥१६॥॥ (णमो चरणस्स) दोहार गुणनो । लोगस्स १२ कानसग्ग ॥ * ॥१७॥ * ॥ (णमो नाणस्स ) २००० गुणनो । लो गस्स ५ कान्सग्ग ॥ ॥१८॥ * ॥ (णमो सुअनाणस्स) २००० गुण नो। लोगस्स १० कानसग्ग ॥ * ॥१९॥ ॥ (णमो तित्थस्स) २००० गुणनो। लोगस्स पांच कानसग्ग करे ॥ * ॥२०॥ॐ॥ ॥8॥ इति वीश स्थानिक गुणनो संपूर्णम् ॥ * ॥
इत्यादि विधिसंयुक्त वीशों नलीमें सर्व पदके नबव महोबव प्रनावना ऊजमणा पूर्वक करै । जिन शाशन के उन्नतिके कारण करै । इतनी शक्ति न हो (तो) एक नली तो विशेष नन्नवादि सहित करणी चाहिये। इहां बिधि प्रपाक ग्रंथसें वीश स्थानक सेवनविधि संक्षेप मात्र लिखी है (जो) गुरुको संयोग हुय । तबतो विस्तारसें बीशों पदकी जूंदी जूदी बि धि गुरुके मुखसें समझकै कर (जो) गुरुका जोग न हो (तो) बिबेक सं युक्त इस बिधिकों देखकै बीश स्थानक तप सेवन करें। बीश स्थानक तवन पढे (वा) मुणे । बीश स्थानकजीकी पूजा करावै । अपनी शक्ति माफक बीश बीश ग्यानोपरगण करावे । । देव पदको देव खातेलगावै । ग्यान पद को ग्यान खाते लगावै । गुरु पदको गुरु खाते लगावै । सर्व तीर्थोंकी यात्रा करै । साहमी बहल करै ( इत्यादिक) द्रव्ये, नावै विधिसंयुक्त सुध नावसें (जो) भव्य जीव यह बीश स्थानक पदकों सेवन करेंगे (सो) जिन नाम
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रोहणी स्तवन तपविधि. कर्मकों नपार्जन करके। तीशरै जव अनंत मुखकों प्राप्त होंगे। इत्यलंबिस्त रेण ॥ ॥ इति बीशस्थानक तपनी बिधि संपूर्णम् ॥ * ॥ ॥2॥
॥ ॥ अथ रोहणी तप स्तवन लि० ॥ * ॥ ॥॥शाशण देवत सांमणीए । मुफ सानिध कीजै ॥ नूलो अक्षर प्रगति भणी । समझाई दीजै ॥ मोटो तप रोहण तणोए । जिणरा गु ण गावें ॥ जिम सुख सोहग संपदाए वंचित फल पाईं ॥ १॥दक्षिण न रते अङ्गदेस ने चंपानयरी । मघवा राजा राज कर तिण जीता बैरी । पाट तणी राणी रूवमीए लखमी इण नामें। आठ पुत्र जाया जिणें ए मनमें मुख पांमें ॥ २ ॥ रोहणी नांमें पुत्रिकाए सबकुं सुखकारी । आठां पुत्रां ऊपराए तिणलागै प्यारी । वाधै चंद्र तणी कलाए जिम पख उजवाले। तिम ते कुमरी धाय माय पांचे प्रतिपालै ॥३॥ कुमरीरूपै रूवमीए घर अङ्गण बैठी। दीठी राजा खेलतीए तिण चिंता पैठी। तीन जुवन विच एहवी ए नहीं दूजी नारी। रंना पनमा गवर गंग इण आगल हारी ॥ ४॥ पुरुष न दीसै कोई इसो जिणने परणाएं । आख्यां आगल साल व धै तिण चयन न पाएँ । देश २ ना राजवीए ततखिण तेमाया। सबल सजाई साथ करी नरपति पिण आया ॥ ५॥ वीतशोक राजा तणोए डे कुमर सोनागी । कन्या कैरी खंमीए तिण सेती लागी । ऊना देखै स कल लोक चढीया केई पाला । चित्रसेन रै कंठ ठवी कुमरी वरमाला॥ ६॥ देव अनें देवांगनाए जपै जय २ कार । रलियायत थयो देखनें ए सारो संसार । करजोमी कहै लोक वखत कन्यारो जामो । वीत शोकनो कुमर थयो शिर ऊपर लामो॥७॥इम वीवाह थयो जलो ए दीया दांन अपा र। घर आया परणी करीए हरख्यो परिवार । वीतशोक निज पुत्रनणी अपणो पाट दीघो। आपण संयम अादरी ए जगमें जश लीधो ॥ ८॥ ढाल ॥ * ॥प्रनु प्रणमुरे पाशजिनेसर थंनणो (एदेशी)॥8॥तिण नयरीरे चित्रसेन राजा थयो । सुख मांहै रे केतलो काल वही गयो । इण अवसररे आठ पुत्र हुवा नला। चढते पखरे चंद जिसी चढती कला (कल्लालो) चढती कला हिव राय बैगे पास बैठी रोहणी । सातमी नूमें
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रत्तसागर.
कंत सेती कर क्रीमा अति घणी। आठमो बालक गोद ऊपर रंगसुं राणी लियो। पुत्रनें प्रीतम आंख आगल देखतां हरखे हियो ॥९॥ (चाल) इक कांमणरे गोख चढी द्रष्टे पडी। शिर पीटेरे दीनस्वरे रोवै खमी । बूढा यणरे मनगमतो बालक मुंग्रो। हुं एकजरे तिण अधिकेरो पुखहुवो (न०) मुखहुवो देखी रोहणी हिव कहै इम प्रीतम नणी । एनार नाचे अनें कूदै कहो किम मोटा धणी। एहवो नाटक आजतांड में कदे देख्यो नही। मुझनें तमासो अनें हाशो देखतां आवै सही ॥१०॥ (चाल)॥ इण वचनेंरे री सांणो राजा कहै ॥ तूंपापणीरे परतणी पीमा नवि लहै । ए पुखणीरे पुत्र मुंए तम फड करै । जब बीतैरे वेदना जाणी जै तरै । (न०) जाणें तरै तुं वात उखनी गरब गहली कामनी । इम कही राजा हाथ माल्यो तेह ना बालक नणी । सातमी जुयथी तलै नाख्यो तिसे हाहारवथयो। रोहणी हसती कहै प्रीतम पुत्र नीचे किम गयो ॥ ११ ॥ ( चाल ) हिव राजारे पुत्र तणे शोकै करी । थयो मुरबितरे रोवै अति आंख्यां जरी। पम्तो सु तरे सासणदेवत जांणियो । कंचन मइरे सिंहासण वैसांणियो। (नलालो) वैसांणियो करजोम आगे करै नाटक देवता । गोदीखिलावै के हसावै पा य पंकज सेवता। ऊपनो जूपतिने अचंनो देखी ए कारण किसो । जो कोई ग्यानी गुरुपधारै पूनिय सांसो इसो॥१३॥ (चाल) चिंतवतारे चा रितिया आया तिसै । राजा पिणरे पुहतो वांदणनें तिसै । सुण देशनारे पूर्व प्रश्न सुहामणो । कहो स्वामीरे पूरब नव वालक तणो ॥ (नबालो) बालक तणो नवनूप पू कहै इण पर केवली । रोहणी राणीरो नवांतर अनें राजानो वली । श्रीगुरु पासे पाउले नव रोहणी तप आदरयो । तप तणे सगते साधु जगते तुम्म नवसायर तरयो॥१३॥ (चाल) कहै राजा रेकिम रोहणितप कीजीयै । विधि नाषोरे जिम तुम पासे लीजीयै । तब मुनिवररे विध रोहणरा तप तणी । इम जपैरे चित्रसेन राजा मणी॥ (चाल) राजा लणी विधएह जंपै चंद्र रोहण तप आविय । नपवास कीजै लान लीजै नली नावना नावियै । बारमा जिनवर तणी प्रतिमा पूजियै म नरङ्गम् । इम सात वरसां लगे कीजै तजी आलस अङ्गसुं ॥१४॥॥ ॥
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रोहणी तपस्तवन, बिधि
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(ढाल ) ३॥ * ॥ वीरसुणो मोरी वीनती (एचाल ) ॥ * ॥ तप करियै रोहणि तणो । वली करियैहो ऊजमणो एम । तप करतां पातिक टलै । ति कीजै होतसेती प्रेम ॥ १५ ॥ ( ० ) || देव जुहारी देहरे । ति आगे हो कीजै वृक्ष अशोक । गुणनो बारम जिन तणो । जला नेवज हो धरीयै सहु थो क ॥ १६ ॥ त० ॥ केशर चन्दन चरचीयै । कीजै आगे हो प्राठे मङ्गलीक । विधसुं पुस्तक पूजीयै । ते पांमें हो शिवपुर तहतीक ॥ १७ ॥ (०) । सेवा कीजै साधूनी । वलि दीजै हो मुंह मांग्यादान | संतोषी जै साहमी । मन रङ्गे हो कर २ पकवान ॥ १८ ( त० ) पाटी पोथी पुंढणा । मिस लेखण होलि मिल सुजगीस। नवकरवाली वीटणा । गुरु आगे हो धरो सत्ता वीस ॥ १९ ( त० ) ॥ चोथो व्रत पिण तिणदीनें । इम पालै हो मन प्राण बिवेक । इस विध रोहणि आदरै । तेपां में हो आनन्द अनेक ॥ २० ॥ ॥ ॥ ( ढाल ४ धरम करो जिनवर तणो ) ॥ ॥ इम महिमा रोहण तणी । श्रीग्यांनी गुरु परकासै रे । चित्रसेननें रोहणी । वाशपूज्य तिर्थकर पासै रे ॥ २१ ( इ० ) ॥ इणपरि रोहणि आदरी । ऊपर ऊजमणो कीधोरे । चित्रसे ननें रोहणी । मनसूधै संजम लीधोरे ॥ २२ ( इ० ) ॥ प्राठे पुत्रे दरी । दि ख्या बारम जिन प्रागैरे । वलि नानाविध तप तपे । धरम तणी मति जागैरे ॥ २३ (इ० ) ॥ करि सण आराधना । जहि केवल शिवपद पायारे । जि नवाणी आणी हीयै । प्रभु चरणां चितलाया रे ॥ २४ ( इ० ) ॥ मनमोहन महिमानिलो । तवियो शिवपुर गामीरे । मनमान्या साहिब तणी । हिव पुन्यें सेवा पामी रे || २५ ( इ० ) ॥ ॥ कलश ॥ * इम गगन दुग मु नि चंद्र वरसे (१७२० ) चोथ श्रावण सुद जली । में कही रोहण तण महि मा सुगुरुमुख जिम सांगली । वाश पूज्य श्रमनें थया सुप्रशन चित्तनी चिं ताटली । श्रीसारजिन गुण गावतां हिव सकल मन आश्या फली ॥ २८ ॥ इति रोहणी तप स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥
॥ *॥
॥ ॥
॥ * ॥ अथ रोहणी तपविधिः॥॥
॥ * ॥ शुभ दिन गुरूके पास रोहणी तप ग्रहण करे । रोहणी नक के दिन उपवास करे | बारमा श्री बाश पूज्य स्वामीका पूजन करे । प्रा
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કરર
रत्नसागर. गै अष्ट मंगलीक रचना करे । अष्ट द्रब्य चढावै । देव बंदनादिक करके धर्मोपदेश शुणे ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ श्रीवाश पुज्यस्वामी सर्वज्ञाय नमः॥ॐ॥
॥ ॥ इसी को (२०००) गुणनो करे । ऐसें सात वरश (यह) तप करनेसें । सुख शौनाग्य बधैगा । विशेष अधिकार । यह रोहणी तप का स्तवन सुणनेंसें मालुम होगा (अलं विस्तरेण ) इति रोहणीतप विधिः॥
॥॥अथ उम्माशी तप स्तवन लि०॥ ॥ ॥ ॥ गोतम स्वामीरे बुध दो निरमली । आपो करिय पसाय । म हावीर स्वामी जे जे तप कीया । तेहनो कहिसुं विचार (वलि २ बांडु बीरजी सुहामणा) ॥१॥नावठ मंजण सेव्यां सुख करै । गातां नवनि धि थाय । बारै वरसां बीरजी तपकीयो । दूरकरै सहु पाप (व० ) ॥ २॥ वे करजोमी एडं वीनवु । श्रीजिन शाशन राय । नाम लियांथी नव निधि संपजै । दरशण पुरित पुलाय (व.)॥३॥ नव चौमाशा जिन जीरा जांणियै । एक कियो उम्माश । पांचे कणा उ वलि जाणीयै । वार के को जी माश (व०) ॥४॥ बहुत्तर माश खमण जग जीपता । दो माशीरे जाण । तीन अढाई दो दो कीया। दो दोढमाशी वखाण (व.) ॥५॥जद्र महानद्र शिवगति जाणीयै । नत्तम एहना प्रकार । बिचमें पा रणो स्वामी नवि कीयो । नवि कीयो चौथो आहार ॥४॥ (व०) तिहुं नपवासे प्रतिमा बारमी । कीधा बार जी माश । दोयसै बेला जिनजीरा जाणीयै । इम गुणतीस विलास ( व० )॥६॥ तीनसै पारणा जिनजीरा जाणी । तीन गुणतीश पचाश । एहमें स्वामी केवल पामिया। पांम्या मु गति आवास (व० )॥६॥(कलशः) इम बीर जिनवर सयल सुखकर अतही उक्कर तप करी । संयम सुपाली कर्म टाली स्वामी शिवरमणी वरी। सेवक पनवं बीर जिनवर चरण वंदित तुमतणा । संसार कूप पमंत राखो आपो स्वामी सुखघणा ॥७॥॥॥ इति उम्माशीतप स्तवनं ॥ ॥ॐ॥
॥॥अथ उम्माशी तप विधिः॥8॥ - ॥ * ॥शाशनके अधिपति श्री महावीर स्वामी। सबसें नत्कृष्ट उम्माशी
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बम्माशी तप स्तवन विधि
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तप कियो । ( इसीसें ) इस काल में संवयण बल पराक्रम के हीनपणासें इ कसार माशी तप न कर शके ( तोपि ) बम्माशीके ( १८० ) उपवास करनेसें । जघन्य म्माशी तपकै फलकों प्राप्तहोय । और देवबंदनादि सर्व क्रिया करे । उम्माशी तपका स्तवन शु। इस बम्माशी तपके स्तव नमें । सर्व तपस्या की संख्या कही है ॥ * ॥
॥ ॥
॥ * ॥
॥ ॥
१ ॥ श्री महावीर स्वामी नाथाय नमः ॥ * ॥ इसी को ( २००० ) गुणनो करै । भगवंत श्रीमहाबीर स्वामीके नाम सें तीर्थ प्रसिद्ध होय । नहां यात्रा करनेकों जावै । अनेकतरेसें शुमा वना जावै । शक्ति माफक उद्यापन करे । इस तपस्या के प्रशाद लघुकर्मी अनन्त सुख प्राप्त होय ॥ ॥ इति बम्मासी तप विधिः ॥ ॥ ॥ ॥ अथ बारे माशी तप स्तवन लि० ॥ ॥
॥ ॐ ॥ दांन नट घरी दीजीये। (एदेशी) ॥ ॥ त्रिभुवन नायक तुं ध णी | आदि जिणेसर देवरे । चौसठइंद्र करे सदा । तुऊपद पंकज सेवरे ( त्रिजु० ) ॥ १ ॥ प्रथम नूपाल प्रनु तुथयो । इण अवसरपणी कालरे । तुम सम अवरनको प्रतु । तुं प्रभु दीन दयालरे ( त्रि० ) ॥ २ ॥ प्रथम ती
करतुं सही । केवल ग्यान दिनंदरे । धर्म प्रज्ञापक प्रथम तूं । तूंही है प्रथम जिनंदरे । (त्रि ० ) ॥ ३ ॥ अंतर अरिजे प्रातम तथा । काल अनादि थितिहरे । ते तप शक्तिये तेंहण्या | आत्म बीरज गुण गेहरे ( ० ) ४ ॥ ताहरी शक्ति कुण कह शकै। जेहनो अंत न पाररे । प्रादश माशनो तप करयो । तेह प्रपानक साररे ( त्रि० ) ॥ ५॥ एह नत्कृष्ट तप वरणव्यो । आागम में जिन राजरे । ते करयुं प्रति करुं तप विना किम सरै काजरे (त्रि० ) ॥ ६ ) तीनशे साठ नपवास ते । जे इण पंचम कालरे । अवसर यादरे क्रम विना । ते पिण नवि सुविसालरे ( त्रि० ) ॥ ७ ॥ ए तप गुरुमुख प्रादरै । शास्त्र त अनुसाररे । पक्किम शादिक नावथी। सुक्रिया मन धाररे (त्रि० ) ॥ ८ ॥ चित्तसमाधि सुन जाव थी । धेरै ताहरो ध्यानरे । ते नर उत्तम फल लहै । बलिलहै उत्तम ग्यानरे ( त्रि० ) ॥ ९ ॥ काल अनादि संसारमें । जन्म मरण तथा डु
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रत्नसागर. खरे । ते लह्या धर्म पायांविनां । तप बिना किमहुवे सुक्खरे ( त्रि०) ॥१०॥ हिव लह्यो नर नव पुन्यथी । वलिलह्यो श्रीजिनधर्मरे । तत्वनी रुचिथईहे मुके । हिव मिट्यो मन तणो नमरे ( त्रि० ) ॥ ११ ॥ लव २ एक जिनराजनो । सरण हो ज्यो सुख काररे । कुगुरु कुदेव कुधर्मनो। में कियो हिवै परिहाररे ( त्रि० ) ॥ १२ ॥ दर्शन ग्यान चारित्र ए । मोह मारग सुविसालरे । नव २ जे मुझ संपजै। तो फलै मंगल मालरे ( त्रि०) ॥१३॥ श्रीजिनशाशन तप कह्यो । ते तप सुरतरु कंदरे। धन २ जेनर आ दरै। काटै ते करमनो फंदरे ( त्रि०)॥ १४॥ ( कलशः ) इम नानि नंदन जगत वंदन सकल जन आनंदनो । मेथुण्यो धन दिन आजनो मुफ मात मरुदेवी नंदनो। संबत सुनेत्रा कास निधि शशि नयर श्रीबालूचरै श्रीजिन सौनाग्य सुरिंदके सुपसाय विजयविमल वरे ॥१५॥ ॥ ॥ इति श्री बार माशी तप स्तवन संपूर्णः॥6॥
॥ ॥ अथ बारै माशी तपबिधिः ॥ ४ ॥ ॥ॐ ॥ प्रथमतिर्थकर श्री षनदेव स्वामी नत्कृष्ट बारै माशी तपस्या करी ( इसीसें) नव्य जीव बारै माशी तपस्याका नाव लायके ( ३६० ) तीन से साठ नपवास करै । जिस दिन व्रत होय नसदिन देववंदनादि क्रिया करै। बारै माशी तपका स्तवन मुणे ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ ॥१॥श्री ऋषनदेव स्वामी नाथाय नमः ॥ ॥ ॥
इसीको ( २००० ) गुणनो करै । तपस्या पूर्ण होनेसें सिधगिरी यात्रा करनेकों जावै । शक्तिमाफक उद्यापन उबव करै । इस तपस्याके प्रशाद जव्य जीवोंके कनी मुख दो भाग्य प्राप्ती न होय । सदा तप तेज बढतो रहे । इति बारै माशी तपस्याविधिः॥ ॐ ॥ ॥॥ ॥ ॥
॥ * ॥अथ अगाईस लब्धी तप स्तवन लि० ॥ ॥
॥ * ॥ (हा ) प्रणमुं प्रथम जिनेसरु । शुधमने सुखकार । लबधि अगवीस जिन कही। आगमनें अधिकार ॥ १ ॥ प्रष्ण व्याकरणे प्रगट नगवती मुत्रमझार । पन्नवणा आवस्यके । बारू लबधि विचार ॥२॥ आंबिल तप कर ऊपजे । लबधां अठावीस । एहिव परगट अरथसुं । सां
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२८ लब्धि तपस्या स्तवन बिधि -
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जलज्यो सुजगीस ॥ ३ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ सफल संसारनी ॥ ॥ अनुक्रमें हेव अधिकार गाथा तणें । लबधिना नाम परिणांम सरिषा नणें । रोग सहु जाइ जसु अंग फरस्यां सही । प्रथम ते लबधि वै नाम आमो सही ॥ ४ ॥ जासु मल मुत्र नंषध समा जाणीयै ॥ वीय विप्पोसही लबधि वखाणीयै । श्लेषम नषध सारिखो जेहनो । तीजी खेलोसही नांम बै तेह नो ॥ ५ ॥ देहना मैलथी कोढ दूरे हुवे । चोथी जल्लोसही नाम तेह नो वै । केश नख रोम सहु अंग फरसे सही । रहें नही रोग सब्बोसही ते कही ॥ ६ ॥ एक इंद्रिय करी पांच इंद्रिय तणा । नेद जाणें तिका नाम संन्निणा । वस्तु रूपी सहु जांणियै जिण करी । सातमी लबधि ते aria करी ॥ ७ ॥* ॥ (ढाल ) आव्यो तिहां नरहर (ए चाल ) ॥ ॥ * ॥ हिव प्रांगुल अढीयै कणो मांनुष क्षेत्र । संग्या पंचेंद्री तिहां जे वसय बिचित्र । तसु मननो चिंतित जांगें थूल प्रकार । ते रुजुमति नांमें अम लबधि विचार ॥ ८ ॥ संपूरण मानुष क्षेत्रे संज्ञावंत । पंचेंद्रिय जे तसुमन वार्तां तत । सुखम परजायें जाऐं सह परिणाम। ए नवमी कहीयै विपुलमती सुन नाम ॥ ९ ॥ जिए जबधि प्रभावे नही जाय आकाश । ते जंघा विकाचारण लबधि प्रकाश । जसु वचन सरापै खि में खेरुंथाय । ए लब्ध इग्यारमी आसी विस कहवाय ॥ १० ॥ सहु सूखम बादरदेखे लोकालोक । ते केवल लवधी बारमियै सहु थोक । गणधर पढ़ नहीयै तेरम लबधि प्रमाण । चवदम लबधे करी चव दै पूरब जाण ॥ ११ ॥ तीर्थकर पदवी यांमें पनरमी लबधि | सोलम सु खदाई चक्रवति पदरिधि । बलदेव तणो पद लहियै सतरमी सार । अ ढारमि आखा वासुदेव विस्तार ॥ १२ ॥ मिसरी घृत खीरें मेल्या जेह सवाद । एहवी है वाणी नगणी सम परसाद । णीयो नविनूलै सुत्र
रथ सुबिचार । ते कुष्टिक बुद्दी वीशम लबधि विचार ॥ १३ ॥ एकै प दमणीयैवै पद लख कोम । इक वीशमी लबधी पायाणु सारणी जोम । एकै रथै करी उपजै अरथ अनेक । बावीसम कहीयै बीज बुद्धि सुविबेक ॥ १४ ॥ ॐ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ कपूर हुवै अति कजलो
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रत्नसागर.
रे (एचाल ) ॥ ॥ सोलह देश तणी सहीरे । दाहक संगति वखाण । तेह लबधि तेवीसमीरे । तेजोलेश्या जाण ॥ १५ ॥ ( चतुरनर सुख ज्यो ए सुविचार ) | आगम अधिकार । वारू लबधि विचार ( च० ) चवदह पूरब धर मुनिवरुरे । नपजन्ता संदेह । रूप नवो रचि मोकलै रे । लबधि आहारक एह ( च० ) || १६ || तेजोलेश्या अगनिनें रे । उपशम वा जल धार। मोटी लबधि पचवीश मीरे । शीतो लेश्या जांण ( च० ) ॥ १७ ॥ जेण सगति सुं विकुर्वै रे । विविध प्रकारै रूप | सदगुरु कहै बावीसमी रे । वेक्रिय लबधि अनूप ( च० ) ॥ १८ ॥ एकणपात्रे आदमी रे । जीमावै केई लाख । तेह प्रवीण महाणसी रे । सत्तावीसमी साख ( च० ) ॥ १९ ॥ चूरै सेन चक्कीसनीरे । संघादिकनें काम । तेह पुलाक लबधि कही रे ।
हावीशमी नाम ( च० ) ॥ २० ॥ तेज शीत लेश्या बिहुँरे । तेम पुलाक विचार | भगवती सूत्रमें जाषियो रे । ए त्रिहुंनो अधिकार ( च० ) ॥ २१ || पन्नवणा आहारनी रे । कलपसूत्र गणधार। तीन तीन इक २ मिली रे । वारू आठ विचार ( च० ) ॥ २२ ॥ प्रष्ण व्याकरणें कही रे । बाकी लबधां वीश । सांजलतां सुख ऊपजै रे । दोलत हुवै निशि दीश ( च० ) ॥ २३ ॥ * ॥ ( कलशः ) ॥ ॥ संवत्त सतरैसै बवी मेरु तेरस दिन जलै। श्रीनगर सुख कर लूणकरणसर यदि जिन सुपसावलै । वाच ना चारज सुगुरु सांनिध विजय हरष विलासए । श्रीधर्म वर्धन स्तवन ज तां प्रगट ग्यान प्रकाश ए ॥ २४ ॥ इति ( २८ ) लब्धि स्तवनं ॥ ॥ अथ हाईस लब्धि तप विधिः ॥
॥
॥ * ॥ ( शुभदिन ( गुरुके पास ) । २८ लब्धि तप ग्रहण करे । अ नुक्रमसें २८ उपवास करे । स्तवन सु । ( जिस दिन ) जो लब्धी को नृपवास होय । नसी लब्धी कै नामको गुणनो करै । तप पूर्ण होनें सें । श क्ति माफक उद्यापन करै । यह तपस्या करनेंसें निर्मल बुद्धि नृत्पन्न होय | सदा आनंद रहे । इति २८ लब्धि तप विधिः ॥ ॥
थ १४ पूर्व स्तवन लि० ॥
॥ * ॥ ॥ ॥ (ढाल ) ॥
॥
॥ बेकर जोगी तांम (एचाल ) । जिनवर
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१४ पूर्व तप स्तवन बिधि. ४२७ श्री बधमान । चरम तीर्थंकर । प्रह कठी प्रणमुं मुदा ए॥ श्रुतधर श्रीग णधार । सूरि शिरोमणी । नमतां नवनिधि संपदाए ॥१॥ चवदै पूरब ना म । सुत्रै जूजूवा । वीरजिणंदे नाषीयाए ॥ तेहिव सुगुरुपसाय । वरणव स्युं इहां । आगममें जिम नपदिस्याए ॥२॥ पहिला पूर्व नत्पाद १। दूजो अग्रायणी २ । वीर्यवाद ३ तीजो नमुंए ॥ अस्ति नास्ति प्रवाद ४ । सत्ता जाणी यै । नारगरयण ५ पंचम गिणुंए ॥३॥ हो सत्यप्रवाद ६ । सत्तम आतम ७। कर्म प्रवाद अहम गिणोए ८॥ प्रत्याख्यान प्रवाद ९ । नामें नवम । विद्या प्रवाद दशमो कयोए १० ॥४॥इग्यारम नाम कल्याण ११ । प्राणायु वारमो १२ । क्रिया विलास तेरम नणोए १३ ॥ विसार इण नाम १४ । चवदै एकह्या । सास्त्र थकी में संग्रह्याए ॥५॥ (ढाल २) श्रीबिमलाचल सिरतिलो (एदेशी)॥नत्पादपूर्वसोहामणो । कोटी पद परि मांण । षटनाव प्रगट ते जिहां । त्रिपदी नावविनांण ॥१॥ सर्वद्र व्य पर्यय तणो । जीव विशेष प्रमाण । दूजो पूर्व अत्रायणी । निन्नू लख पद जाण ॥२॥ पदलख सत्तर जेहनी । संख्या परगट एह । वीर्य प्रबल ता जीवनी । नाषी तीजै तेह ॥३॥ चौथे पूर्वे जे कयो । अस्ति नास्ति प्रवाद । पदसंख्या साठ लाखनी। सप्त जंगी स्यानाद ॥४॥ ग्यानप्रवाद पद पंचमो। सूत्रे आएयो जोम । मत्पादिक पण नेदमुं। पद संख्या इक कोमि॥५॥ सत्य प्रवाद होकहुं । जाधू सत्य स्वरूप । संख्यापद इग को मनी । नाषी अगम अनूप ॥६॥ नित्यानित्यपणो इहां । आतमद्रव्य सुजाव । बबीस पद कोम जेहना । मुत्रेप्राण्यां नाव ॥७॥ कर्मप्रवाद तणो हिवै । प्रगट पणे अधिकार । लाख असी पद जेहना । कोडी इग निरधार ॥८॥ नवमो पूर्व कहुं हिवै । नामें प्रत्याख्यान । लाख चौराशी जेहवा । पद संख्याचित्त आन ॥ ९॥ अतिसय गुणसंयुत नणी । साधन साध्य निदांन । विद्या अनुपम सातशे । कोमी दस लख जान ॥ १० ॥ कल्याण नाम इग्यारमो । बीस कोम प्रमाण । ज्योतिष शास्त्र विचारणा चौवीह देवकल्याण ॥११॥ प्राणायु पद बारमो। उप्पन्न लख इग कोम । प्राण निरोधन जे क्रिया । शास्दै आएयो जोम ॥ १२ ॥ ख्यायिक्यादिक जे.
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रत्नसागर.
क्रीया। बंद क्रिया सुविसाल । पद संख्या नव कोमनी । तेरमी किरिया विशाल ॥१३॥ लोकसार विउ चवदमो । नामें अरथ निहाल । पद सं ख्या इग कोडनी । लाख पचवीश संजाल ॥१४॥ लोकप्रत्यय देखण जणी । संख्या गज परिमाण । सोलसहस अरु तीनशै । नर तयांसी जांण ॥ १५ ॥ पूरब संख्या एकही । गुणमालाथी देख । आगै बुधजन सोध ज्यो । बाकी देशविशेष ॥ (ढाल३) बीर जिणेसर नपदिशै (ए चाल)॥सूत्रे गुंथे गणधरा । अरथे अरिहंत नारे। ते श्रुत ग्यान नमुं सदा। पाप तिमर जिमनासै रे॥१॥ (वाणी रे जिनंदनी) सुणज्यो चित हित आणीरे। तत्व रमणता अनुसरै । संपूरण गुण खाणीरे (वा.)॥२॥ विषय कषाय तजी करी । ग्यान जगत नरधारीरे। विधि संयुत जिन मंदिरै । प्रनुमुखपा श जुहारीरे (वा.)॥३॥ तप जप संयम दरी। श्रीश्रुत ग्यान निधा नोरे । सदगुरु चरण नमी करी । संबर जोग प्रधानोरे (वा) ॥ ४ ॥ अ कृत लेई ऊजला । गुंहली सुंदर कीजैरे। नांण दसण चारित्रनी । ढिगली तीन धरीजैरे (वा०)॥५॥ चवद पूर्व ब्रत इणपरै । सुगुरु संजोगै लेईरे। विधिसुं पुस्तक पूजीये । चित अति आदर देईरे॥६॥(वा.) इम तप सं पूरण थयां । ऊजमणो हिव कीजैरे। घरसारू धनखरचनें । नर जव लाहो लीजैरे (वा.)॥७॥ पूठा परत विटांगणा । पूरब नाम प्रमाणोरे। नवकर वाली कोथली । लेखण ठवणी जाणोरे॥८॥ देहरै देवजुहारनें । आरती में गल कीजैरे । सनात्र पूजा वलि साचवी । तत्वसुधारस पीजैरे॥९॥ (वा० ) इण पर तप आराधतां । पुरगति कारण बेदैरे । चवदह रज्जु सिरोमणि । जीव अन्य गतिवेदैरे ॥ १०॥ (वा.) तप आराधन विध जणी। आगम वचने जोईरे । नवियण पिणतुमे आदरो । ज्युं नव भ्रम ण न होईरे॥११॥ (वा.) (कलशः) इमसयल सुख कर गढ खरतर तपै रविजिम क्रांतए । सौलाग्य सूरि मुणिंद इण पर कह्यो पूर्ववृत्तंत ए । सं बत अगरै वरश छिन्नूं नयर श्री बालूचरै । ए स्तवन नणतां श्रवणमुणतां सयल मन वंबित फलै ॥१२॥ ॥ इति चवदै पूर्व स्तवनं संपूर्णम् ॥ॐ॥
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- १५ पूरब, तिलक तपस्या स्तवन बिधि. ४२९ ॥ ॥ अथ (१४) पूरब तपविधिः ॥ ॥
॥ चवदै पूर्बकी तपस्याके (१४) उपवास करें। (जिस दिन जो पूर्वका नपवास होय । नसी पूर्वके नामसे (२०००) गुणनो करै। स्तवन सुरें। इस स्तवनमें १४ पूर्बके नाम । और बिधि सर्व लिखी है। नसी मुजब बिबेकी जीव गुरुसें समझके करै । यह तपस्याके करनेंसें ज्ञाना वरणादि कमका योपशम होय । शुन्न ज्ञानका उदय होय ॥४॥ इति १४ पूर्व तपविधिः॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ तिलक तपस्या स्तवन लि०॥ ॥ ॥॥ (दूहा)॥ ॥ सासण देवी सारदा । वांणी सुधारस वे ल। बालक हितनणी वगसियै। सुबुधि सुरंगी रेल ॥ १॥ नवम अंग जि नपूजतां । मनलहि सुनपरिणाम । तप तिलके फल पामियें । दवदंती गु णधाम ॥२॥ ॥ (ढाल)॥ * ॥ वीर जिणेसर नपदिसे ( एदेशी)॥ कमला जिम कुंमल पुरै । नुज बल नरपतिजीमोरे । पदमनी पदम सु वासना। श्वेतगज स्वप्नीमोरे (पदम०) ॥१॥ परतख्य फल ए पुन्य ना। प्रसवीमुता पूरै माशेरे । दवदंती नाम दीपतो । गुणमणि बुधि प्रका शेरे (प०) ॥ २ ॥ चौसठ कला विचकणा । रूप गुणें करी रंजारे। देव गुरु धर्म दीपावती । ब्रतधारी दृढ वनारे (५०) ॥३॥ प्रतिमा पूजै श्रीसांतीनी । देवे दीधी त्रिकालो रे । मात पिता प्रमोदमुं । स्वयंवर वर मालोरे। ( पदमनी० ) ॥ ४॥ नवमाया धिपश्री निषदनो । नल लिखी यो निनामरे। आनन्दमुं पंथावतां । पूरब पुन्य वाम रे (प०) ॥५॥ मशमरयणी तमन्नरी। मधु व कुंत इहां वनमेंरे। मणि नाले तेज दिनमणी। जाग्रत देखी अहो मनमें रे (प०)॥६॥ग्यांनधारी गुरु कोइ मिले। पूरीय एह प्रसन्नोरे। कर्म बलै मुनि आवीया । परीसह जीत मदन्नोरे (प०)॥७॥ पंच जीत पंच मालता । टालता पुस्सह सबलारे । संजम शुध सं
जालता । उद्यम शिव सुख कमलारे (प०) ॥८॥ (दूहा ) मणि तेजें - मुनि तरुठये । स्थथकी स्त्री जरतार। देवै तीन प्रदक्षिणा। विधसुं चरण जुहार
॥ ९॥ देशना सुण पावन थया। ग्यान सुधारस पाय । को तप परनव तिल
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कहै । कहिये श्रीमुनिराय ॥ १०॥ ॥ (ढाल) रथनृपावसुं ए (एचाल ) | मधुर स्वरे मुनिवर कहैए । नाणी गुरु सुपसाय । दीपक सहु लोकनाए । कर्म सुभासुन परनवे ए। इह जव फल निपजाय । करम गति वांकमीए ॥ ११ ॥ नहि नाप जव प्रागनो ए। नृप सुर्णे निरमल जाव। समकित सा हीयो ए । धर्मवतीको नृप बधु ए । जांएयोहे तत्व प्रस्ताव । साची जिन वा सनाए ॥ १२ ॥ चौथ प्रमुख नृप चूँपसुं ए। किरिया शुद्ध करी एह । जलै • चित्त जावसुं ए ॥ नवांग पूजे तिलकसुं ए। चाढे जिन चौवीश । रयण कंचण जड्याए ॥ १३ ॥ ॥ तिलक २ सें पांमियो ए । समकित एह सती स। जनम सफलो गि ए । भगवन तपविधि नाषीयै ए । नल क बोध वरीस । पीहर षटकायनाए ॥ १४ ॥ आदिनाथ अरिहंतनाए । षट् उपवास क हस । त्री चौबीहारस्युं ए ॥ चौथ दोय जिन बीरनाए । अजिता दिक बा वीस | आणा गुरु शिर वहीए ॥ १५ ॥ पोषध तीश त्रीनें थयाए । पूजन T ति क चढाय । तारक जगदीसनें ए । उद्यापन संघ नक्तिसुं ए । जन्म सफ ल नल राय । सूधैमन साधीयै ए॥ १६ ॥ सुण वांणी सम कित ग्रहैए । पयप्रणमी गुरु वीर । चित्त नमाहीयो ए ॥ इण पर जे नवि आदरे ए । थायै चरम शरीर । मूल सुख शाशतो ए ॥ १७ ॥ कलशः ॥ श्रीशांतिदाता त्रिज गाता नविक ध्याता सुखकरा । इम सतीय साध्यो तप आराध्यो सुजश बांध्यो शिव घरां । यागमे प्राखै सुरीय साखे सगुरु जाषे सुण यथा । सुध aria aविक जावै विजय विमल जिनवर कथा ॥ १८ ॥
॥ * ॥
इति तिलक तपस्या स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥
॥ *॥
॥
॥ तिलक तपस्या विधिः ॥
॥
॥ ॥ शुभ दिन गुरुके पास । तिलक तपस्या ग्रहण करके । तीश (३०) उपवास करै । (प्रथम) श्रीरूपनदेव स्वामीके (६) व उपवास करे (जब) ॥ ॥ ॥ * ॥ १ ॥ श्रीरुष देव स्वामी सर्वज्ञाय नमः ॥ ॥
इस पदको (२०००) गुरानो करे । फेर श्रीमहावीर स्वामीके ( २ ) दो उपवास करै । (जब ) ॥ ॥
॥ ॥
१ ॥ श्रीमहावीरस्वामी सर्वज्ञाय नमः ॥ ॐ ॥
॥ ॥
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शोलियातप स्तवन पेंतालीस आगमनाम तप बिधि. ४३१ इस पदको ( २००० ) गुणनो करै । और श्रीअजितनाथ स्वामीको आदलेके ( २२ ) बाईस जगवंतके ( २२ ) नपवास करै जब
॥॥१॥श्रीअजितनाथ स्वामी सर्वज्ञाय नमः॥ ॥ ॥. इसी अनुक्रमसें बाईस जगवंतको गुणनो करै । (जिस दिन)जो महाराजकै नामको नपवास होय । नसी नामको (२०००) गुणनो करै । और सर्व बिधि स्तवनमें लिखी है । नसी मुजब करै ॥ इति तिलक तपस्या बिधिः ॥ * ॥
॥ ॥ अथ शोलीयैको स्तवन लि० ॥ॐ॥ ॥ ॥ वीर जिनेसर नाषीयोरेलाल । सहु ब्रतमें सिर ताज (जवि प्राणीरे) । कषाय गंजन तप आदरो रेलाल । इणथी पातिक जाय (ज०वी०) ॥१॥ कोम बरष तप आदरैरे लाल । क्रोध गमावै फलतास (न०)।मान करै जे प्राणियारे लाल । ते जगमें न सुहाय (न०) ॥ २ ॥ व्रतमें माया आदरीरे लाल । स्त्री पणो पायो मल्लिनाथ (न० ) रूप पराव्रत कीया घणारेलाल । आषाढ चूति गणिका साथ ( न. ३ बी० ) च्यार कषाय चै मूलगारे लाल । नत्तम सोले नेद (न०) इम लव २ न मतो थकोरे लाल । जीव पामें वहु खेद (ज० ४ बी०) एकाशण बत जे करैरे लाल । लाख वरस दुख हांगरे (ज० ) नीवी ब्रत दूजो कह्योरे लाल । एधारो जिन वर वांण (न० ५) आंबिलनो फल बहु कटोरे ला ल। उपजै लबधि अपार (ज.) नपवास करतां नावसुंरे लाल । पामें जवनो पार (न० बी० ६) इम दिन शोले तप करैरे लाल । पूरण एब्रत थाय (ज०) देव गुरु पूजा करैरे लाल । तिणथी पातिक जाय (ज०७) ए तप आदरथी करैरे लाल । मन बंछित फल थाय (ज०) नर सुर रि घि पिण नोगवैरे लाल । निश्चै मुगति जाय (न० बी०)॥८॥ . इति १६ कषाय गंजन स्तवन संपूर्णम् ॥ इति शोलिया तप बिधिः ॥ॐ॥
॥ अथ शालियै तपकी विधिलि०॥७॥ ॥ ॥ क्रोध १। मान २ । माया ३ । लोन ४ । ( यह ४ कषाय में) अनंतान बंधियो १ । अप्रत्याख्यानियो २ । प्रत्याख्यानियो ३ । सं जलणो ४ । ( इस माफक ) एकेक कषायके च्यार च्यार नेद करने से
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१६ जेढ़ हुय ( यह ) १६ नेद कषाय के दूर करनें कों । प्रथम एकाशणो १। निवी २ । बिल ३ । उपवास ४ । इसी अनुक्रमसें १६ दिन तप करे । स्तवन सुर्णे । तप पूर्ण होणेंसें । यथाशक्ति उद्यापन करे ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ (४५) पैंतालीस आगम तप विधिः ॥
॥
॥ ॐ ॥ शुभ दिन गुरूके पास पेंतालीश आगम तप ग्रहण करे । २ दूज । ५ पांचम । ११ इग्यारस | ( इत्यादि ) ग्यान तिथिकै दिन । अनु 1 क्रम से उपवाश (वा) एकाशणा करे। ( जिस दिन ) जो श्रागमको तप हो य । उसी आगमको गुणनो करै । सिद्धांत लिखावै । सिद्धांत सु । प ढनें वालुंकों सहाज्य करे। अपने शक्तिमाफक । सर्व ठिकाणें ज्ञानकी वृद्धि करे । (प्रणमुं श्रीगुरुपाय ० ) इत्यादि ज्ञानके स्तवन सुणें । ऐसें (४५) दिन तपस्या पूर्ण होनेंसें । पैंतालीस (४५) आगम की पूजा करावै । मं दर पोशाल में ग्यानका उपगरण चढावै । (इत्यादि) अत्यन्त खुशी होके (४५) आगमका आराधन करै । यह तपश्या के करनेसें । मूरखपणा दूर होके । शुद्ध आत्म ज्ञानकी प्राप्ति होय ॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॥
॥
॥
(४५) (आगमके नामलिखते हैं ) ॥ * ॥ ॥ * ॥ प्रथम इग्यारै अंगको गुणनो ॥ * ॥
१ ॥ श्रीमचाराङ्गजी सूत्राय नमः ॥ १ ॥ २ ॥ श्रीसुयगमांगजी सूत्राय नमः ॥ २ ॥
३ ॥ श्री ठाणांगजी सूत्राय नमः ॥ ३ ॥ ४ ॥ श्रीसमवायांगजी सूत्राय नम ॥ ४ ॥ ५ ॥ श्रीभगवतीजी सूत्राय नमः ॥ ५ ॥ ६ ॥ श्रीज्ञाताधर्मजी सूत्राय नमः ॥ ६ ॥ ७ ॥ श्री पाशग दसाजी सूत्राय नमः ॥ ७ ॥ ८ ॥ श्रीमन्तम दसाजी सूत्राय नमः ॥ ८ ॥ ९ ॥ श्रीअनुत्तरोववाइजी सूत्राय नमः ॥ ९ ॥ १० ॥ श्रीप्रस्नव्याकरणजी सूत्राय नमः ॥ १० ॥ ११ ॥ श्रीविपाकजी सूत्राय नमः ॥ ११ ॥
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पैंतालीश ४५ आगम नाम, तपस्याबिधि.
॥ ॥ अथ बारै उपांग नामः ॥ ॐ ॥
१ ॥ श्री नववाईजी सूत्राय नमः ॥ १२ ॥ २ ॥ श्रीरायपसेणीजी सूत्राय नमः ॥ १३ ॥ ३ ॥ श्रीजीवाभिगमजी सूत्राय नमः ॥ १४ ॥ ४ ॥ श्रीपन्नवणाजी सूत्राय नमः ॥ १५ ॥ ५ ॥ श्रीजंबुद्वीप पन्नत्तीजी सूत्राय नमः ॥ १६ ॥ ६ ॥ श्रीचंदपन्नत्तीजी सूत्राय नमः ॥ १७ ॥ ७ ॥ श्रीसूरपन्नत्तीजी सूत्राय नमः ॥ १८ ॥ ८ ॥ श्रीकप्पियाजी सूत्राय नमः ॥ १९ ॥ ९॥ श्रीकप्पवसियाजी सूत्राय नमः ॥ २० ॥ १० ॥ श्रीपुप्फीयाजी सूत्राय नमः ॥ २१ ॥ ११ ॥ श्री पुष्पचूलियाजी सूत्राय नमः ॥ २२ ॥ १२ ॥ श्रीवन्हीदसाजी सूत्राय नमः ॥ २३ ॥ ॥ अथ वेदको गुणनो ॥ ॐ ॥
॥ १ ॥ श्रीव्यवहार बेद सूत्राय नमः ॥ २४ ॥ २ ॥ श्रीवृहत् कल्पजी सूत्राय नमः ॥ २५ ॥ ३ ॥ श्रीदसाश्रुतस्कंधजी सूत्राय नमः ॥ २६ ॥ ४ ॥ श्रीनिशीथजी सूत्राय नमः ॥ २७ ॥ ५ ॥ श्रीमहानिशीथजी सूत्राय नमः ॥ २८ ॥ ६ ॥ श्रीजीतकल्पजी सूत्राय नमः ॥ २९ ॥
॥ * ॥ अथ दश पयन्ना नामः ॥ ॐ ॥ १ ॥ श्रीचोशरण पयन्नाजी सूत्राय नमः ॥ ३० ॥ २ ॥ श्रीसंथारपयन्नाजी सूत्राय नमः ॥ ३१ ॥ ३ ॥ श्रीतं पयन्नाजी सूत्राय नमः ॥ ३२ ॥ ४ ॥ श्रीचंदाविडिया सूत्राय नमः ॥ ३३ ॥ ५ ॥ श्रीगणविडिया सूत्राय नमः ॥ ३४ ॥ ६ ॥ श्रीदेवविक्रिया सूत्राय नमः ॥ ३५ ॥
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रत्नसागर.. ७॥श्रीवीरथुवोजी सूत्राय नमः॥३६॥ . ८॥श्रीगद्याचारजी सूत्राय नमः॥३७॥
९॥श्रीजोतिष्करंगजी सूत्राय नमः॥३८॥ १० ॥ श्रीमहापचक्खाणजी सूत्राय नमः॥३९॥ ॥ ॥ मूलसूत्रजी का नामको गुणनो॥ * ॥ १॥श्रीआवस्यकजी सूत्राय नमः॥४०॥ २॥श्रीनत्तराध्ययन जी सूत्राय नमः॥४१॥ ३॥श्रीनवनियुक्तिजी सूत्राय नमः॥४२॥ ४॥श्रीदशमीकालकजी सूत्राय नमः॥४३॥ १॥श्रीअनुयोगहारजी सूत्राय नमः॥४४॥ २॥श्रीनंदीसूत्रजी सूत्राय नमः॥४५॥ ॥ ॥ अथ ११ गणधर तपश्या विधिः॥ ॥ ॥8॥ शुग्न दिन गुरूके पाश (११) गणधर तप ग्रहण करै । (११) दिन नपवाश (वा) एकाशणा करै । (जिस दिन ) जोगणधर महाराजको तप होय । नसी नामको ( २००० ) गुणनो करै ॥ ॥ ॥॥अथ (११) गणधरोंका नाम लिखते हैं ॥१॥
१॥श्रीइंद्रजूती गणधराय नमः॥ २॥ श्रीअग्निनूति गणधराय नमः॥ ३॥श्रीवायुचूति गणधराय नमः॥ ४॥ श्रीव्यक्तनूति गणधराय नमः॥ ५॥ श्रीसुधर्मास्वामी गणधराय नमः॥ ६॥श्रीमंमित स्वामी गणधराय नमः ॥ ७॥ श्रीमोर्यपुत्रजी गणधराय नमः ८॥श्रीप्रकंपितजी गणधराय नमः॥ ९॥ श्रीप्रचलजी गणधराय नमः॥ १०॥श्रीमेतार्यजी गणधराय नमः॥ ११॥ श्रीप्रनवजी गणधराय नमः॥
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. ११ गणधर, नवकार, सर्व तपग्रहण विधि. ४३५ ॥ यह (११) गणधर । नगवंत श्रीमहाबीर स्वामी के पास अर्थ शुणकै । सर्ब सूत्रके रचना करने वाले नए । ( इसी में ) सर्व नव्यजी व । परम मङ्गल जानकै । यह तपस्या करै । शुध नावसे गणधरपद आ राधन करै । गोतमरास सुणें । पूर्ण होनेसें । गणधर महाराजकी पूजा करै । आचार्यादिककी भक्ती करै । ( यथाशक्ति ) परमान्न भोजनसें सा हमी बहल करै ॥ इति एकादश गणधर तपविधिः॥॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ नवकार तपविधि लि०॥ ॥ ॥॥शुन दिन गुरूके पास नवकार तप ग्रहण करै । जिस पदका जितना हरफ होय । इतनाई नपवास करै। नसी पदको (२०००) गुणनो करै । ( सो लिखते हैं)॥
१॥णमो अरिहंताणं । नपवास ॥७॥ २॥ णमो सिघाणं । नपवास ॥५॥ ३॥ णमो आयरियाणं । नपवास ॥७॥ ४॥ णमो नवशायाणं । नपवास ॥७॥ ५॥णमो लोए सबसाहूणं । नपवास ॥९॥ ६॥ एसो पंच णमुक्कारो। नपवास ॥८॥ ७॥ सबपावप्पणासणो। नपवास ॥८॥ ८॥ मङ्गलाणंच सबसि । नपवास ॥८॥
९॥ पढमहवइ मङ्गलं । नपवास ॥९॥ ॥॥ ऐसें नवकार मंत्रका । ६८ नपवास करै । (किंकप्पत्तर रेअ याण०) इत्यादि नवकार मंत्रका फलगर्षित स्तवन सुणे (सो) पूर्व लिख्यो है । तप पूर्ण होनेसें । यथाशक्ति नवपदको नबव करै। (यह) नवकार मंत्र १४ पूर्वको सार नूत है । जो नव्यजीव शुधनावसे सेवन करेंगे (सो) अनेक सुखकों प्राप्त होंगे। इति नवकार तपविधि संपूर्ण ॥ ॥ ॥ अथ सबै तपस्या प्रथम गुरुके पास ग्रहण
. करै (सो) विधि लि०॥ ॥ ॥ * ॥ ( प्रथम ) ५ साथिया करें । ( नमंत० ) यह गाथा
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... लता
MM
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रत्नसागर. पढकै । शक्ति माफक ग्यान पूजा करें। इरियावही पमिकमें । एकलोगस्स को कानसग्ग करै। (पारकै) प्रगट लोगस्स कहै । नीचा वैठकै । मु हपत्ती पमिलेहै। दो वांदणा देवै । स्थापनाजीकों खमासमण देई (न गवन् ) अमुक तप गहणत्थं चेश्यं वंदावेह । ( इसो कहकै ) चैत्य वंदन करै । णमोत्थुणं (इत्यादि ) अरिहंत चेश्याणं० ( अन्नत्यू ) कहकै (४) थुई कहै । चोथीगाथा कहकै । नीचावैठे । णमोत्थुणं कहै । (ऊना होक) (श्रीशांतिनाथ स्वामी आराधनार्थ करेमि कान्सग्गं )। अनत्थू कहकै १ लोगस्सको कानसग्ग करै (पारकै) नमोऽर्हत सिधा । कहकै॥श्रीमते शांतिनाथाय । नमः शांति बिधायिने । त्रैलोक्य स्यामरा धीस । मुकुटाभ्यर्चितां जिये ॥१॥ यह थुई कहै (शांतिदेवता आराधना थे करेमि कानसग्गं ) अनत्थू कहै ॥ शांतिः शांतिकरः श्रीमान् । शांति दिशतु मे गुरुः । शांतिरेव सदा तेषां । येषां शांतिहे गृहे ॥१॥ यह थुई कहै । पीछे श्रुतदेवता । क्षेत्र देवता । नुवन देवताको कानसम्ग अनु क्रम में करै । एक एक नवकारको कानसग्ग करकै । अपणी २ थुई कहै । पीठे (शासनं ) देवताको कानसग्ग १ नवकारको करै ॥ या पाति शासनं जैनं । सद्य प्रत्यूह नाशनी। सानिप्रेत समृध्यर्थं । नूयानासनदेवता ॥१॥ यह थुई कहकै ( समस्त वेयावृत्तिकर आराधनार्थ करेमि कानसग्गं ) अ नत्थू० एक नवकारको कानसग्ग करै । (पारकै) श्रीशक प्रमुखा यहाः। जिनशासन संस्थिताः । देवान् देब्य स्तदन्येपि । संघरदंत्वपायतः॥१॥ यह थुई कहकै। नीचावैसे । नमोत्थुणं कहकै । जयवीयराय तांई। चैत्यवंदन करै । खमासमण देकै । नगवन् (अमुक तप गहणत्थं करेमि कानसग्गं ) एक लोगस्सको कान्सग्ग करै (पारकै ) लोगस्स कहै । खमासमण देकै । ३ नवकार गुणें । फेर खमासमण देकै (इकार नगवन् ) अमुक तप ग हण दमक नच्चरावो जी। गुरु कहै नच्चरावेमो । (ऐसा कहै ) ॥ अहएहं नंते । तुह्माणं समीवे । अमुकतवं न्वसंपऊत्ताणं विहरामि । (तंजहा) दव न। खित्तन। कालन। जावन । दवणं अमुकतवं । खित्तनणं इत्थवाअन्नत्थ वा। कालनणं जावपरिमाणं । भावनणं जावगहेणं नगहिझामि । बलेणं न
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सर्व तपपारण, (तथा ) जन्म मरणसूतक विचार. ४३७ उलिझामि। सन्निवाएणं ननविजामि। जाव अहोणवा । केणइ रोगायंकादि प रिणामवसेण । एसो मे परिणामोनपरिवाइ। तावमे एसतवो।(अन्नत्थ) राया नियोगेणं गणानियो गेणं । वलानियोगेणं देवानियोगेणं । गुरुनिग्गहेणं । वि त्तीकंतारेणं। अन्नत्थणा नोगेणं । सहस्सागारेणं । महत्तरागारेणं । सबसमाहि वत्तियागारेणं बोसरामि ॥ जोतप ग्रहण करै नसी तपका नाम लेके । गुरुके 'पास ३ वेर यह पाठ सुणे ॥ गुरु न हो (तो) थापनाचार्यजी समदै । तीन
वेर यह पाठ पढे॥ (पाने गुरू कहै ) हत्थेणं । सूत्तेणं । अत्थेणं । तमुन्न एणं । सम्मं धारिणीयं । गुरुगुणेहिं बुढाहि नित्थारगपारगाहोहि । (ऐसोगु रू कहै ) पीछे खमासमण देके (गुरू मुखै) पच्चख्खाण करै । (अथवा) गुरू न हो (तो) आपमुखै करै । इति सर्व तपस्या ग्रहणविधिः संपूर्णम् ॥
॥॥अथ सर्व तप पारण बिधि लि०॥ * ॥ .. ॥॥ प्रथम ग्यान पूजा करके । इरियावही पमिकमें। (अमुक तप पारिवा०) मुहपत्ती पमिले हैं । २ वांदणा देवै । इलाकारेण संदिसह जगवन् तुनेअगं अमुक तप पारावेह ( गुरु कहै पारावेमो ) इछामि खमासमणो° । इलाकारेण संदिसह नगवन् । अमुक तप निख्खवणत्थं कानसग्गं करावेह । (गुरुकहै करावेमो) पीने देववंदन करके । अमुकतप पारणार्थ करोमि कानसग्गं । अन्नत्थू कहकै । १ नवकारको कावसग्ग करै। स्तुति गाथा कहै । पीछे णमोत्थुणं कहै । (वैठकै) भगवन् अमुक तप करतां । प्रविधि प्रासातनायें करी । जो दूषण लागो होय । सोमन बचन कायाये करी मिहामि उक्कम । (और) ग्यान । जक्ति, द्रब्यसेंनावसें, किया होय (सो) प्रमाण फलदायक होजो । (गुरू कहै नित्थारगपार गाहोह) । पी। पञ्चख्खाण करै (अमुक तप आलोयण निमित्तं करे मि कानसग्गं) अन्नत्थु कहै। ४ लोगस्सको कान्सग्ग करै। प्रगट लोगस्स कहै। पीछे नपगरण पात्र अत्तपानादिकसें साधु भक्ति करै । अपनें शक्ति माफक ।
जैन विद्याभ्यास कराणे वाले। विद्यागुरूकी नक्ति करै । साहमी बबल करें। पहरावणी करै। पीने जाचकांकों दान सन्मान करै ॥ * ॥ ॥ॐ॥ इति सर्व तपस्या पारण विधि संपूर्णम् ॥
॥ ॥
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रत्नसागर. ॥ॐ ॥अथ सूतक विचार लि० ॥ * ॥ ॥ ॥ पुत्र जन्म होणेंसें १० दिन सूतक । पुत्री जन्म्यां दिन १२ सूतक । (और) जो स्त्रीकै पुत्र होय । नस स्त्रीकै एक माशको सूतक । पुत्र होते मरण पामें (तो) दिन १ सूतक ॥ परदेशे मृत्यु होइ (तो) दिन १ सूतक ॥ गाय । नेश । घोडी । सांढ । घर माह व्यावै (तो) दिन १ सूत क । मरण हुवां कलेवर घर वाहर लेजाय । जहांतक सूतक । दाश दाशी अपनी नेष्टायें रहते। पुत्र पुत्रादिकका जन्म मरण हो (तो) दिन ३ सूत क (और) जितना महिनाको गर्न गिरै । तितना दिन सूतक । ( अब) कोईकै जन्म मरणका सूतक होनेसें १२ दिन देवपूजा न करै । (जिसमें) मृतककै सूतकमें । घरका मूलकांधिया १० दिन देवपूजा न करै । नरव रका तीन दिन देव पूजा न करै । (और) मृतकनें ब्रूवा हो (तो) २४ पहर पडिक्कमण न करै (जो) सदाका अखंम नियम हो । (तो) समता जाव रखके संबर पणामें रहै । पर मुखर्से नवकार मंत्रकानी नचारण करै नहीं। स्थापना जी के हाथ लगावै नहीं । और जो मृतक कों बूवा न हो (तो) आठ पहर पमिकमण न करै । जेसकै जब बच्चा होय । तब १५ दिन पी दूध पीणो कल्पै । गायकै वच्चो होय (तो) १७ दिन पी दूध पीणो कल्पै । बकरीको दूध दिन ८ पीवै पीणो कल्पै ॥॥
॥१॥ ऋतुवंती स्त्री चारदिन लांमादिकनें न वै ॥ ॥२॥ चार दिन प्रतिक्रमण न करै ॥ ॥३॥ पांचदिन देवपूजा न करै ॥
॥४॥ रोगादिकारणे तीन दिवश नपरांत कोईस्त्रीके रक्त चलतादीसै जिसका बिशेष दोष नहीं । मुच बिबेकसे पवित्र होकर दिन ५ पीने थापना पुस्तक वै । जिन दर्शन करै । अग्रपूजा करै। परंतु । अंग पूजा न करै । साधुकों पमिलानै कतुवंती तपस्या करै सो तो सफल होय (परंतु) ऋतुदिनमें जिनपूजा, प्रतिक्रमणादिक, किया सफल न होय ॥ ऐसाचर्चरी ग्रंथमें कहाहै ॥ * ॥
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दिनप्रति १४ नियम चितारणेंकी विधि. . ४३९ ॥ॐ ॥ जिसके घरमें जन्म मरणका सूतक होय। नहां १२ दिन साधु आहार पाणी न वहरै ॥ सूतकवाले घरका जल अग्निसें १२ दिन देव पूजा न करै॥ ॥
॥ ॥ निशीथ सूत्रके १६ शोलमानद्देशामें जन्म मरण सूतक घर धुर्गउनीक कहा है ॥ॐ ॥ गायके मुत्रमें २४ पहरपी। नेशके मुत्रमें १६ पहर पी । गामर, गधेडी, घोमीके, मुत्रमें ८ पहरपी। नरनारीकै मुत्रमें चार पहर पीचै । समुर्बिम जीव नपजै ॥ * ॥
(इत्यादि ) संकेप सूतकका विचार इहां लिखा है । विशेष विचार शास्त्रांतरसें जाणना ॥ इति सूतक विचार संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ॐ॥ 1 ॥ श्रावक चवदै नियमका प्रमाणकर (सो)लि० ॥ - ॥ ॥ सचित्त १। दब्ब २। विगई ३॥ पाणहि ४ । तंबोल ५ । वत्थ ६ । कुसुमसु७ ॥वाहण ८ । सयण ९। विलेवण १०॥बन ११ । दिशि १२ । न्हाण १३ । लत्ते सु १४ । (अर्थः)॥ श्रावक नितप्रति नि यम संभालै । दिनमें जो बस्तु अपनें अंग खातै लगे । नसीका प्रमाण रक्खै । नपरांत त्याग करै । तहां प्रथम (सचित्त वस्तुको परिमाण करै) मट्टी सर्व जाति । पाणी सर्व जाति । जल, अग्नि, वायु । वनस्पतीका दन जेदन । तरकारी सर्वजाति । फल सर्वजाति । परवल । तोरी। केला। इत्या दि सच्चित्तका परमाण करै॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ (दूसरा द्रव्य परिमाण)॥ तहां धातु वस्तु की शली। (तथा) अपणी आंगुली बिनां । जो वस्तु मुखमै दीजै। सो सर्व द्रव्यकी गिण ती में आवै । नामांतर । स्वादांतर । स्वरूपांतर । परिणामांतर । द्रव्यांतर होणेंसें द्रव्यांतर होइ । (यथा) गहुं एक द्रव्य । तिसकी पतली रोटी। फी रणा रोटी । वेढवा रोटी। बाटी । यह सर्व द्रव्य जूदा कहिये । ( इस प्रकार) सर्व द्रव्य खांणेमें आवै । नात दालि । रोटी । मांमियो । पलेव । तरकारी सर्व जाति । पापम । खीचीया । लमू सबै जाति। फिणी घेवर । हेसमी । खाजा। (इत्यादि समस्त द्रव्य परिमाण करै) इहां नत्कृष्ट द्रव्यको ना म ले रक्खे (तो) एकही द्रव्य कहीयै । (जैसें) मेवैकी खीचमीका नाम
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रत्नसागर. लेके रक्खे (सो) अनेक द्रव्य निप्पन्न है ( परंतु ) एक द्रव्य कहिये । इति द्रव्य प्रमाण दूसरा नियमः॥२॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ (तीसरा विगय परिमाण नियमः)॥ ॥ (तहां ) दश विग यमें च्यार महाविगयका तो त्याग होताहै । (और ६ विगय ) घृत १ । ते ल २। मीठा ३। दूध ४ । दही ५ । कमाह विगय ६ । धारणा प्रमाण रखै ।
॥* ॥ (अथ चौथा पादत्राणनियमः।)॥ * ॥ तहां । जूती । ख माऊ। मोजा। आपणा । इतना विराणा । ऐसें दिन प्रतें धारणाप्रमाण मो कलारख्खै ॥ इति पाणहि नियमः॥॥ ॥॥ ॥ॐ॥
॥ॐ॥ (पांचमा तंबोल नियम मध्ये)॥ ॥ पांन (तथा ) बीमा। सुपारी । लवंग । इलायची । गेटी, वमी । जायफल । जावंत्री प्रमुख सब स्वादिम वस्तु । किरयाणा प्रमुख सर्वजात धारणा प्रमाण रक्खै ॥ इति तंबोल नियमः॥५॥8॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ (नहा बस्त्र नियम मध्ये )॥ ॥ पोसाक १ । तथा ४ । बूटा वस्त्र ५। तथा ७। मोकला रक्खै । पोसाक १ मध्ये । पघमी १ । जामो १॥ कमरबंधो १ । धोती १ । इकपट्टो नतरासण १ । यह पांच वस्त्रकी एक पोसाक कहीयै । असें नही कर सकै (तो) ४० तथा ५० कपमा दि न मध्ये मोकला । पराया वस्त्र लूल चूकमें आवै (तो) जयणा ॥ * ॥ इति वस्त्र नियमः॥६॥॥
(* ॥ अथ सातमा फूल नियमः ) ॥ * ॥ तिहां गुलाब । चंपे ली। वेला। केवमा । केतकी । कुंद । मचकुंद । सेवती । हजारा कमल (इत्यादि) सर्व फूलका धारणा प्रमाणे परिणाम करै ॥ * ॥ शति फूल नियमः ७॥ॐ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ ॥ * ॥ (आठमा बाहन नियमः ) ॥ * ॥ तिहां रथ । गामी । घुमव हिल । खम्सल । कोच । पालकी। घोमा। हाथी । चोपाला म्याना । (इत्यादिक) सर्ब थल वाहन जाती ॥ मोर पंखी । बतक । घुमदोम । लचकार । मगर । पनसोई । पलवार । बजरा। (इत्यादिक) सर्व नावजाति ।
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चवदै नियम चितारणेंकी बिधि. सर्व तिरता । फिरता । चरता यह तीन प्रकारके वाहन धारणा प्रमाणे राखै ॥ ॥ इति वाहन नियम ८॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ ( अथ शय्या नियमः)॥ ॥ तिहां पिलंग । खाट । तख त। चौकी । पट्टा गद्दी । खुरसी । वनात । पट्टसूजनी। सेठेजी । मुलीचा । चांदणी । सीतल पट्टी। सफ। चटाई सर्बजाति । दरखतकी गलका । चम मैका । कांबला । मुखमल । कारचोपी ( इत्यादि ) धारणा प्रमाणे शय्या प्रमाण करै ॥ * ॥ इति शय्यानियमः ९॥ॐ॥
॥१॥ ॥॥ ( अथ दशमा विलेपननियमः ॥ ॥ तिहां । सरसोंका । राईका । आटैका । तेल । फुलेल । सबै जातिका । केशर । चंदन । कपूर कस्तूरी । रोली ( इत्यादि ) शरीर सुख वास्ते । ( तथा ) रोगादिकारणे नेपधादिकका विलेपन फोमां ऊपरि मलम प्रमुख । आंखिमें अंजन (इ त्यादि ) अंगोपांगमें लगाणा (सो) विलेपन धारणा प्रमाणे परिमाण करै इति विलेपन नियमः १०॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ (अथ ब्रह्मचर्यनियमः ) ॥ ॥ तिहां रात्रिकों (तथा ) दिन कों । सूईमोरके दृष्टांत नोगादिकका प्रमाण करै । स्वमकी, मन, वचनकी, जयणा ॥ ॥ इति ब्रह्मचर्य नियमः॥११॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ (अथ दिशि नियमः) ॥ ॥ तिहां । पूरब १ । पश्चिम २ । नत्तर ३ । दक्षिण ४ । अग्निकूण ५। नैऋतकूण ६ । वायव्यकूण ७। ईशान कूण ८। अधोदिशि ९। नदिशि १०। यह दश दिशिकों अपनें जा नेका प्रमाण करै। चिठी लिखणी । आदमी नेजणा । देशांतरकी चीही वाचणी । तिसकी जयणा ॥ इति दिशि नियमः) १२॥ * ॥
॥ (अथ तेरमा स्नान नियमः) ॥ * ॥ तिहां । आजदिन म ध्ये स्नान २। तथा ४ । वेर मोकला । परंतु पाणीका तोल रखे ( तथा ) घमा प्रमुखका प्रमाण रखै । स्नान एक मध्ये इतनो पाणी खरच करूं । अ धिक नही ढोलुं॥ ॥ इति स्नान नियमः १३॥॥
॥ * ॥ (अथ चौदमा नात नियमः)॥ ॥ दिनमध्ये जात सेर २ तथा ४ । दो वेर ( तथा ) च्यारवेर खानं । नपरांत पुबिहार । (तथा)
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रत्नसागर. चौबिहार धारणा प्रमाणे रक्खै ( तथा ) दिनमध्ये जल पणे में आ वै। तिसका प्रमाण रक्खै । तोलसें तथा मापसें ॥४॥ इति चौदह नियम भाषा ॥१४॥ समाप्तम् ॥
॥ ॥ ॥ ॥ अथ द्वादश व्रतग्रहण करण विधि ॥ ॥ ॥ * ॥ प्रथम जिननुवन ( अथवा ) जिन प्रतिमा आगै शुध सपे द बस्त्र पहिरकै । चंदन केशरको तिलक करै । चावल चाढै । पीने । अ खंमतंकुल मुही ३ थाल मध्ये रक्खै । तिन ऊपर नालेर रोकनाणो धरै । तीन प्रदक्षिणा देकै । इरियावही पमिकमे । ( इबकार० ) सम्यक्त सामाई आरोहणार्थ चेश्याई वंदावेह ( गुरु कहै वंदावेमो) चैत्यवंदण करै । बाम पासै चावलांको साथियो करै । श्रीफल धरै । पी3 गुरू वर्धमान विद्या अनिमंत्रित श्रावक मस्तकै वास देष करै । वर्धमान स्तुतीसें देववंदन करावै। पीछे सतरै थूई में नवकार १ एकको का नसग्ग करै । पीने शासन देवी निमत्तै लोगस्स ४ कानसग्ग करै। (पार कै ) प्रगट लोगस्स कहै । पी नमस्कार ३ गुणकै । शकस्तव कहै। नमोझत् सिघा कहकै । बमो स्तवन कहै । पीने जयवीयराय कहै । इति नंदी विधिः॥ पीने खमासमण देई । श्रुतसामायक । आरोहणार्थ कानसग्गं करावेह ( गुरू कहै करावेमो ) पीछे सम्यक्त सामाइ आरोपणा थे करेमि कासग्गं । च्यार ४ लोगस्सको कानसग्ग करै ( पारकै प्रग ट लोगस्स कहै । पीने ३ बेर नवकार गुणकै । गुरुकै पास ३ वेर सम्यक्त दमक नचरै ॥ (गुरू) पाठ बोले । नशीकी मनमें धारणा रखे ॥१॥
॥॥ ( सूत्रं ) ( अहन्नं नंते ) तुह्माणं समीवे मित्तान पमिकमा मि । सम्मत्तं नवसंपजामि । नोमेकप्पइ । अऊप्पनिइ अन्नतीथिएवा । अन्नतीस्थि देवयाणिवा । अन्नतीथि परिग्गहिय अरिहंतचेश्याणिवा । वंदि त्तएवा । नमंसित्तएवा । पुर्वि प्रणालित्तएणं बाल वित्तएवा (तसिं) असणंवा। पाणंवा । खाइमंवा । साइमंवा दानवा । अणप्पानंवा । तेसिं गंधमलाइंपेसि नंवा । ( नन्नत्थ ) रायानियोगेणं । गणानियोगेणं । बलानियोगेणं । देवा नियोगेणं । गुरूनिग्गहेणं । वित्ती कतारेणं । तंचनविहं ( तंजहा) दवन।
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सम्यक्तमूल १२ व्रत धारन बिधि..
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खित्तन । कालन | भावनं । तत्थ ( दवन ) दंसणदवाईं हिगिच्च । ( खित्तन जावरह मझिम ( कालन ) जावजीवाए। ( जावन ) जाब बजे न बलिकामि । जाव सन्निवारणं ननविजामि । जाव केइ नम्माइ बसे । एसो दंसण पालण परिणामो नपरिवइ । तावमे एसो दंसणानिग्गहो । अन्नत्थणा जोगेणं । सहस्सागारेणं । महत्तरागारेणं । सवसमाहिवत्तिमा गाणं । वोसिर || ( पीठै ) नँझीं श्रीं अर्ह नमः ॥ ऐसे कर श्रीगुरुकै पाश हाथमें लिखा । जिनप्रतिमाकों वाशक्षेप चढावै । नवकार पढतो थको ३ प्रदक्षिणा देकै ( देव गुरू प्रतें वांदे ) पीछे श्रुत सामायिक थिरी करणार्थे । सत्तावीश नत्साशप्रमाणें । एक लोगस्सको कानसम्ग करे । एक लोगस्स कहकै पारे । पीछे सम्यक्तरूपी कल्पवृक्ष पायकै । अति आनंद से ऐसा निग्रह वचन बोलै ॥ अरिहंतो महदेवो । जावजीवं सुसाहुणो गुरुणो । जिन पन्नत्तं तत्तं । इय सम्मत्तं मए गहियं ॥ १ ॥ पीछे गुरू धर्म देशना देवै । मिथ्यात्व वरजै । नित्य चैत्यवंदन इतनी बेर करूंगा । इतना नवकार नित्य गुणुंगा । केशरादि द्रव्य वर्षप्रतें इतना चढाउँगा । ग्यान, दर्शन चारित्रके, क्ति इतनो द्रव्य खरचूंगा । शील व्रत इतनी पर्व तिथि पा लुंगा । नित्य पच्चक्खां इस माफक करूंगा (दिनकों) नवकारस्यादि बत ( तथा ) रात्रीकों चनविहार । त्रिविहार | दुविहार । प्रमुख । और । बा वीश । बत्तीश अनंत काय । विदल प्रमुख सर्ब बोडुंगा । ( इत्या दि ) अपनी धारणा माफक सर्वबस्तूका प्रमाण । गुरूके सन्मुख करे १२ व्रत ग्रहण करे । बारैव्रतकी टीप सुखें । जिसमें लिया हुवा व्रतको ती चार नलगे । ऐसा उपियोग सदार खै । इति सम्यक्तारोपण विधिः॥*॥ ॥ * ॥ प्राणातिपातव्रत दंगक लि० (१) ॥
॥
॥ * ॥ ( हन्नं नंते ) । तुह्माणं समीवे । थूलग पाणा वायं संकपि नुं निरवराहं पच्चक्खामि । जावीवाए। एग विहं । एगविहे (अथवा ) डुविहं । तिविहेणं । मणेणं । वायाए । कारणं । न करेमि । न कारवेमि | तस्स नंते । पडिक्कमामि । निंदामि || गरिहामि । अप्पाणं बोसरामि ॥ यह पहला व्रतका क बार ३ नचरावै ॥ १ ॥
11 11
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दवणं । नित्यावसयं पञ्चक्खा
वा । कालना
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रत्नसागर. ॥ * ॥ ( अहन्नं नंते । तुह्माणं समीवे। थूलगं मूसावायं । जीहा छेयाइहेनअं । कन्नालीयं । गोवालीयं । नोमालीयं । थापणमोसा । कूटसा खीयं । पंचविहं पञ्चक्खामि । दक्खिन्नाइ अविसए । दवन। खित्तन । काल नानावना दवनणं मूसावायं । खित्तनणं इत्थवा अणथवा । कालनणं जावजीवाए । नावणं जावगहेणं न गहिझामि । उलेणं न लिजा मि । अन्नण केणवि रोगाश्यं । एसो परिणामो न परिवमइ । ताव अनि ग्गह । बिहं । तिविहेणं । अन्नत्थणा जोगेणं । सहस्सागारेणं । महत्त रागारेणं । सव समाहिवत्तियागारेणं बोसरइ ॥२॥ .. ॥ ॥
॥ ॥ (अहन्नंनंते तुह्माणं समीवे )। अदिन्नादाणं । खत्तखणणाश्यं । चोरं काकरं । रायनिग्गह कारयं । सचित्ता चित्त वत्थुविसयं पञ्चक्खामि । द बन । खित्तन। कालन। जावन ॥ दबनणं । अदिन्नादाणं । खित्तनणं इत्थवा अणथवा । कालनणं जावज्जीवं । नावनणं जावगहेणं न गहिजामि । ब्लेणं न उलिजामि । अहोण केणवि रोगाईयं । एसो परिणामो न परि वई । ताव अग्निग्गह । विहं । तिविहेणं । अन्नत्थ० सहस्सा मह त० सब बोसिरइ ॥३॥
॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ (अहन्नं नंते तुह्माणं समीवे)। नदारिय वैक्रियनेयं । थूलमेह णं पञ्चक्खामि । अहागहियनंगएणं । दिवं । तिरित्थं । माणसियं । एगवि हैं। एगविहेणं । पञ्चक्खामि । दवन। खित्तन । कालना जावन ॥ दव नणं मेहुणं । खित्तनणं इत्त्थवा अणथवा । कालनणं जावजीवाए । नाव नणं । जावगहेणं न गहिकामि० । उलेणं० । अन्न० । सह । मह । सब । बोसरइ ॥४॥ - ॥ ॥ (अहन्नं नंते तुह्माणं समीवे)। परिग्गहंपडुच्च । अपरिमियपरि ग्गहं पच्चख्खामि । धणधनाइ नवविहवत्थु विसयं । इच्छापरिमाणं नवसंप जामि । अहागहियनंगएणं । (तंजहा ) दवन । खित्तन । कालन । ना वन । दबनणं । नवविहपरिग्गहं । खित्तनणं । इत्थवा अणथवा । कालन ए जावजीवं । जावनणं जावगहेणं । नगहिजामीनले। अन्न । सह । मह । सब० । बोसिरइ ॥५॥ ॥........ | |
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बारै व्रत नचरावण विधि.
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॥
॥ (हन्नं ते तुह्माणं समीवे । दिशिपरिमाणं पञ्चख्खामि । ( तं जहा ) दब्बन । खित्तनं । कालन । जावनं । दवणं । दिशिपरिमाणं । खित्तणं धारणा परिमाणं । कालनां जावजीवाए । भावनां । जावगहेणं न गहिज्जाम । जाव बले । तावप्रनिग्गह । अन्न० । सह० । मह० । स व० । बोसरइ ॥ ६ ॥ ॥ 11 11
॥ * ॥
॥ ॥ (अहन्नंनं तुह्माणं समीवे । जोगोवजोगवयं ( जोयणन ) नंतकाय बहुबीया राईनीयलाई परिहरामि । ( कम्मो ) पन्नरस क म्मादाणाई। इंगालकम्माइयाई । बहु सावकाई खरकम्माइयं । रायानियो गंच परिहरामि । (तंजहा ) दव्व । खित्त । कालने । जावन ॥ दव्वनी जोगोवनोगवयं । खित्तनणं इत्थवा अन्नत्थवा । कालनणं जावजीवाए । नावनणं जावगहेणं नगहिजामि० । बजे० । अन्न० । सह० । मह० । सब | बोसिरइ ॥ ७ ॥
॥ ॥
॥ *॥
॥ * ॥ (ग्रन्नं ते तुह्माणं समीवे । अन्नत्थदं पञ्चक्खामि । अव झा । पापोपदेश । हिंसोपकरणदांन । प्रमाद चरितं । चनविहं अन्नत्थ दं । जहा सत्तिए परिहरामि (तंजा ) दवन । खित्तनं । कालन । जा वन ॥ दवणं अन्नत्थदं । खित्तनणं इत्थवा अन्नत्थवा । कालनां जा बीवाए । भावणं जावगहेणं नगहि० । बलेां । अन्न० । सह० । मह० । सब० । बोसिरइ ॥ ८ ॥
॥ ॥
॥ *॥
॥ * ॥ ( ग्रहन्नं ते ) तुह्माणं समीवे । सामाइयं । पोसहोववासं । देसावगासियं । अतिथिसंविनागवयं । जहा सत्तीए परिवामि । इच्चयं सम्मत्तमूलं । पंचाणुव्वयं सत्तसिक्खावयं । दुवालसविहं सावगधम्मं नवसं पत्ताणं विहरामि (तंजहा ) । दवन० अन्नत्थणानोगेणं । सहस्सागारेणं । महत्तरागारेणं । सब्बसमाहि बत्तियागारेणं । बोसिरइ ॥ षट्साख । व बंडी । च्यारागार सहित पालूं ९ । १० । ११ । १२ ।॥*॥ इति श्रावककों संप बारैव्रत उच्चरावण विधिः ॥ ॥
॥ ॐ ॥ अथ मुनिमालका लि० ॥ ॥
॥ * ॥ रुषन प्रमुख जिणपाय युग प्रणमुं । शिवसुख दायक मनह न
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रत्नसागर. लास । पुंमरीक श्री गोतम आदिक । गणधरगुरु मन कमल विकास ॥ ॥१॥ (प्रहसम सूधा साधु नमुंनित । जावै श्रमण सुगुरु नगवंत । नाम ग्रहण करि पाप पखालू । परमानंद सुमति विकसंत ॥२॥ (प्र०) जरथ महामुनि प्रथम चक्कीसर । बाहूबल उपशम मार। सूरयसा दिक आठ मुनीसर । पाम्यो विमलाचल नव पार ॥३॥ (प्र.) रिखान बंस जे अनु क्रम हुवा। मुनिवर कोमी लाख असंख । श्रीसेजेजे शिवपुर सीधा। क ल मल कालक मुंकी कंख ॥ ४॥ (प्र०) सगर प्रमुख निरुपम नव चक्रव र्ति । साधु महाबल संयम सीह । अचलादिक बलदेव अष्टमुनि । राम रिषी सर नवम अबीह ॥५॥ (प्र०) श्रीप्रतिबुधि प्रमुह बह सुंदर। श्रीमल्लि नाथ पूरबनव मित्र । पहुता परम यतीसर शिवपुर। पाली श्रीजिन आण प वित्र॥६॥(प्र०)बंडुविस्नु कुमार लबधि निधि। खंदग सूरना सीस से पंच। कार्तिक सेठ सुसाधु कीर्त धर । श्रमण सुकोसल बत निरबंच ॥ ७ ॥ (प्र० ) श्रीयध्वंस अदोन मुसागर । प्रमुख आठ अणगार प्रधान । श्री रहनेमि नेमि जिन बंधव । निरमल गुण गण रयण निधांन॥८॥(प्र०)जा ली मयालीने नवयाली । पुरस सेण बारसेण प्रयुन्न । संब अनें अनिरुद्ध रिषीसर । सत्यनेमि दृढनेमि सुधन्न ॥ ९॥ (प्र०) कुमर अनीकज सा दिक षमुनि । गुणगिरुखो श्री गजसुकमाल । ढंढण रिष श्रीथावच्चा सुत । सहस साधु संजम सुकृपाल ॥१०॥ (प्र० ) ( राग धन्याश्री)॥१॥ सहस श्रमणसुं सुक संयम धरो। पंचसयांमुं सेलग मुनिवरो। सिद्ध थया श्री घुमर गिरवरो। करुणाकर प्रणमुं संपद करो। ( नला०) संपदकरो शम दम रिषीसर साधु सारण सोहए । अंतर प्रकास तिमर नासै नविक जन मन मोहए । प्रत्येक बुध प्रबुध नारद मुनि प्रमुख पेंतालए । दमदंत महा रिष कुंजवारे साधु नमुं त्रिहुं कालए ॥ ११ ॥ ( चाल ) रंग रिषजदत्त र तन त्रय मुणी । समरं देवानंदा साहुणी । पांचे पांमव प्रणमुं मुनिपती। केशि पएशी बोधक जिनमती। (नल्लालो) जिनमती कालक पुत्र मेहल थिवर आणंद रक्खियो । अणगारका सब धर्म नाष्यो साधि शिवपुर स क्खियो। कालासवेसी पुत्र प्रातम प्ररथ साधक उपसमइ । श्रीपुंगरीक
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मुनिमालका साधुवंदना
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महामुनीसर प्रणमीयै सुन संयमी ॥ १२ ॥ ( चाल ) बंडुंबलकल चीरी केवजी । श्रीमत्तो मुनिवर मनरली | श्रीकरकंडू डुमह नमि निग्ग या । निज २ देसे नरवर श्रीजुवा । (नहालो ) श्रीजुवा एरिषनादि देखी थया वम वइरागीया। संजम सिरिनजि मोह निद्रा तजीय जोगै जागी या । प्रत्येक बुधाच्या सिधा सिधथया एकण समें । सुप्रसन्न चंद मु निंद निरमम प्रेम प्रणसुं प्रहसमें ॥ १३ ॥ ( चाल ) खतै खुल्ल कुमार सु ध्याईयै । लोहच्चामुनि चरणे जयलाइयै । कालनदाई प्रमुख महामुखी । सं जम सुद्ध जयंती साहुणी ( नल्लालो ) साहुणी जाणी जग वखाणी प रम पद सुख पामीया । श्री श्रमण द्र सुभद्र सुंदर अचल प्रातम रामीया । श्री सुप्रतिष्ट यतीस सुबत साधुसुबत सेहरो | चारित्र रिष गुणवंत गोनद्र रुमा गरिमा सागरो ॥ १४ ॥ (चाल) सिरीसिव राय रिषीसर वंदीयै । दशा रणनद्र नमुं दुख बंदीयै । अर्जुन माली सुख संजम धरो । सुदृढ प्रहारी शिवरमणी वरो । ( न० ) शिवरमणीवरो श्रीकुरगरू मावंत प्रसिधन । वलि च्यार नयविहार तपसी सहत सुविहत सिघ्न । कोडिन्न दिन्न नें सेवाली पनर शतक तिडोत्तरा । गोतम प्रबोधत सिद्ध पुहता नमुं चरण करणा धरा ॥१५॥ (चाल) गरुप्रा श्रीगुणसागर गाईये। प्रथवी चंद्र प्रणम्यां सुख पाईयै । खंद कुमार सदा अभिनंदीयै । नमिह प्ररहमित्र मन प्राणंदीयै । ( न० ) आणंदी मेतार्य मुनिवर जगतिसुं समरी करी । रुष इलापुत्र चिलापुत्र मृगापुत्र ही धरी । श्रीइंद्रनाम निग्रंथ निर्मम धर्मरुचि धर्मागिरो । तेतली पुत्र सुबुद्धि बोधित सुजितशत्रु मुनीसरो ॥ १६ ॥ ( चाल ) नदय २ कर जगि २ जस तणो । श्रमणसुदंशण शील सुहावणो । श्रीमन्नयसुताद्रकु माए । चित्त चतुरनर चित चमकारए । ( न० ) चमकार सार सुजात रिषव देव सांनिध जश धणी । गांगेय गिरुवो गुणेगाजै सु जिनपालत हित ध णी। श्रीधर्मघोष सुसीस धर्मरुचि साधु श्रीजिनदेव ए| श्री कपिलरिषि ह रिकेश वलिमुनि नित नमुं निरलेव ॥ १७ ॥ ( चाल ) जति जयघोष वि जयघोषै जुन । सेवुं श्रुतधर श्री देवलसुन । श्रीरखुकार नृपति कमलाब ती । राणी ऋगुसुत प्रोहित सुनमती । ( नं० ) सुभमती जेहनी जशा जा
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रत्नसागर. र्या पुत्र दोय वखाणीयै । ए बहुं लेई चारु चारित्र मुगति पुहता जाणीय। दत्रिय मुनीसर साधु संजम धर्मरुचि सुमहाबती। निग्रंथ नाथ अनाथ बंई समुद्रपालमु संयती॥१८॥ (चाल) कुम्मापुत्र नमुं केवल कल्यौ । विध सुं शीतल शिवकमला मिल्यौ । धन २ धन्नो सुरगिर धीरए । वीरप्रशंश्यो तपगुण वीरए। (न०) श्रीवीर दिख्खित श्रीसुवाहु नद्रनंद कुमारए । आ दिक दसरिष चरिय जेहना सुख विपाक नदारए । श्रीचंमरुद्र सुशीस खंद ग खिमानिधि कहीय इण कलै । कुरुदत्तसुत तीसग सरोरुह रिष नम्यां आ स्याफले ॥१०॥ (चाल० ) अंगप्रमुख रिषच्यारे आदरी । विधिसुं संजम सिधि वधू बरी । अन कुमार मुनि अनयं करो । हल्ब विहल सु आतम हितकरो। (न०) हितकरो दयाधर मेघमुनिवर नंदिषेण आराधीयै। सुनक त्रनें सर्वानुनूती शमर शिवसुख साधीयै । श्रीसीह साधु अनें नदायन चरम राज रिषीसरो । श्रीशालनद्र सुधन्न मुनिवर समरतां मंगल करो॥२०॥ (राग धन्यासरी ) ॥ वम वैरागी वरनमुं । जुगवर जंबूसामि । प्रनव सि व्यं नव परगमौ । मुजश यशो नद्र स्वामि ॥ २१॥ (महामुनीसर नित नमुं जी। नामें घर नवनिछ । (वाधै रिच समृच )॥२२॥ (म०)॥ जग संजूति विजै जयो । भद्रबाहु कृतनद्र । जग जोगीसर जागतो। मुनिवर श्रीथूलनद्र ॥२३॥ (म०) नद्रबाहु स्वामी तणा। च्यारि शिष्य मुनिराय शीत परीसह जिण सह्या । सारया २ तम काज ॥२४॥ (म०)॥ अऊ महागिरि जांणीय । असमुहत्थि विशाल । संप्रति नृप पडि बोहीयो। श्री अवंती मुकमाल ॥२५॥ (म० )॥ आरिजसांमि प्रसंसीयो । अऊसुनदमु नीस । अजमंगु महिमानिलो। सीहगिरीस मुणीस ॥ २६॥ (म० )॥धन गिरि थिवर महामुनी। श्रीवयरस्वामि मुनिराय । अरहदि मुनि अपह स्यो। नद्रगुप्त निरमाय ॥२७॥ (म० )॥वयरसेन विद्यावरू । श्रीरकत गुरु दक्ष । पूसमित्र गुण गह गहै । प्रनु पुरवलका पद ॥२८॥ (म०) ॥ विसाधु सुविधइ नरयो । श्री मिल सुमहिट्ट । सूत्र अरथ रतने नरयो। दमाश्रमण देवढि॥२९॥ (म० ) ॥ पंचमकाल चरमामुनी। श्रीउपसै शूर दयाल । सुघक्रिया खरतर सही। जिन आग्या प्रतिपाल ॥३०॥ (म० )।
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चिन्नु नगवानको स्तवनइम पनर कर्मचूमी जिके । हुआ हुस्यै अनंत । वर्तमान श्रीसाधुजी । रतनत्रई गुणवंत ॥३१॥ (म० )॥ ब्राह्मी सुंदरी राय मई । साहुणी चंदन बाल । आदिक शीलवती सती। त्रिकरण सुघ त्रिकाल ॥३२॥ (म०)॥ संवत सोल उत्तीसए। श्रीविमलनाथ सुरसाल । दिदा कल्याणक दिने। गुंथी श्रीमुनि माल ॥३३॥ (म०)॥रिणीपुरै रलीया मणो। श्रीशीतल जिण चंद । सूरविजैराजे सदा। संघ अधिक आणंद॥ ३४॥ (म०)श्रीमति नद्र सुगुरू तणें । सुपसाय सुखकार । चारित संघ वखाणीय । सदा २ जय कार ॥३५॥ (म०) मनहर श्रीमुनिमालका । गुणगण परमलपूर । कंठठ वइ नत्तम जिके। पामें सुखजरपूर ॥३६॥ (क०) महामुनीसर गावतां सुरतरु सफल समान । अष्ट महा सिधि घरफलै । सदा २ कल्याण ॥३८॥ (म०)॥ इति मुनिमालका संपूर्ण ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥ वर्तमान चोवीसीवंडूं। मन सूधै नितमेवरी माई। षन अ जित संनव अभिनंदन । सुमति पदम अनुसेवरी माई ॥१॥ (वर०) श्रीसुपार्श्व चंद्रप्रनु प्रणमुं । मुविध शीतल श्रेयांसरी माई। वाशपूज्य विम ल अनंत धरम जिन । शांति कुंथु परसंसरी माई ॥२॥ (व० ) अरजि न मल्लि अनें मुनि सुबत । नमि नेमि पाश जिणंदरी माई। चोवीशमा श्रीबीर जिणेसर । प्रणमुं परमाणंदरी माई ॥३॥ (ब०)॥ ढाल २॥ प्रहशम सूधा साधु नमुं नित (एहनी)। नित नित अतीत चोवीशी नमी यै । जेहना नाम प्रगट ए जाण । केवलन्यानीने निरवाणी। सागर महा जश विमल वखाण ॥ ४॥ नि०)। सर्बानुभूति श्रीधर दत्त जिनवर । दामोदर सुतजा श्री स्वामि । मुनिसुव्रत सुमति शिवगति जिन । श्री अं स्ताग नेमीसर नाम ॥ ५ ॥ ( नि० ) ॥ अनिल यशोधर तेम कू तारथ । श्री जिनेसर सुधमति सुजगीस। शिवकर स्पंदन संपतिनामें। वंदीजै जिनवरचौवीश ॥ ६ ॥ (नि०) (ढाल३) सफल संसारनी ॥ जे नविस्संति अनागए कालए । तेहचौवीश प्रणमीस त्रिहुं कालए। प्र थम महाराज श्रेणक तणो जीवए । श्रीपदमनाभ प्रणमीस सदीवए ॥१॥ वीरनो पितरीयो नाम सुपासए । हुसी जिन बीय सुरदेव सुप्रकासए
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रत्नसागर. कोणिक सुत नदाई नरिंदए । तीसरो तेह सुपास जिणंदए ॥ २ ॥ सि ष्य श्रीवीरनो पोट्टलो साधए । चोथो स्वयंप्रनु नांमआराधए । दृढायुष जी व सिघांतमें जाणीयै । पंचम सर्वानुनूति प्रमाणीय ॥ ३ ॥ कीर्त इण ना म इक जीव कहीजीये। देव श्रुत तेग्गे स्वामि स लहीजीये। शंषश्रावक हुस्ये नदयजिण सातमो। आणंदनो जीव पेढाल जिण आठमो ॥ ४ ॥ सुनंदनो जीव ते नवम पोट्टल जिणं । शतक श्रावक शतकीर्ति दशमो भ णं । देवकी जीव मुनिसुव्रत इग्यारमो । सत्यकी जीव ते अमम जिण वा रमो॥५॥ वासुदेव जीव निकषाय जिन तेरमो । बलदेव जीव निपुलाक चवदम नमो। पनरमो निरमम देव सुलसाकही । रोहणी जीव चित्रगुप्त सोलम सही ॥ ६॥ समाधि जिन सतरमो श्रावका रेवती । अढारमो शद्दा ल जीव संबर जिनपती । दीपायन जीव यशोधर नगणीसमो । कृष्ण कोई जीव ते विजय जिनबीशमो ॥ ७॥ मानि इकवीशमो जीवनारद तणो । देव बावीशमो अंबम श्रावक लणो । तेवीशमो अमर जीव अनंत वीरज नमो । स्वाति बुध जीव ते नद्र चौवीशमो ॥ ८ ॥ एह आगाम चौवीश जिण जांणीया । प्रवचन सार नघारथी आणीया । केई पर सिघनें केई अप्रसिघ कह्या । शास्त्र अनुसारथी साच कर सरदह्या ॥ ९ ॥ * ॥ (ढाल २) ॥ ॥ आज नहेजोरे दीसे नाहलो० ॥ ॥ विहर मान जिण वीशे वंदीयै। महा विदेह विख्यात । सीमंधर युगमंधर बाहुजी । श्रीसु बाहु मुजात ॥ ६ ॥ ( वि० ) स्वयंप्रनु रिषनानन अनंतवीरजी । सूर प्रनु तेमविशाल । वज्रधर चंद्रानन चंद्रबाहुजी । नुजंग ईसर नेम नाल ॥७॥ (वि.) वैरसेन महानद्र नमुं वली । देवयशा यसो रिछ । अढी श्री पमें विचरे आजए । नाम लीय नव निघ॥८॥(वि० ढाल ४)॥ ॥ रे जीव जिन ध्रम कीजीयैः ॥ ॥ च्यार तीर्थकर शाश्वता । इणहीज अनिधान । रुपनानन चंद्रानन । वारिषेण वर्षमान ॥ ९ ॥ ( च्या० ) अठकोमि उप्पन लाखमुं। सत्ताणुं हजार । चनसै ग्यासी देहरा । त्रिहुं लो क मझार ॥ २० ॥ ( च्या० ) नवस पणवीश कोमीया । बिंब त्रैपन लाख । सहस अठावीश च्यारसै । अध्यासी नाख ॥ २१ ॥ ( च्या० )
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नपाधान तप स्तवन. जिन्नूं जिणवर नामए । समस्यां सुखदाय । प्रणम्यां पाप मिटै परा । सम कित सुध थाय ॥२२॥ ( च्या० )॥ कलशः॥इम त्रिण चौवीशी वीश बिहरमांन चौजिण शाशता । संथुण्यां सतरैस त्रयांले अधिक प्राणी आ सता । जिन रतन चिंतामणि तणी परि प्रघल वंचित पूरए । प्रहसमै त्रि करण मुघ प्रणमें सदा जिनचंद सूरए ॥ २३ ॥ * ॥ इति श्रीत्रिण चौवी शी, बीस बिहर मान. चौजिण शाश्वता, एवं निन्नू जगवंत नाम स्तवनं ॥ॐ॥
॥ ॥अथ नपधान तप स्तवन लि०॥ * ॥ ॥ ॥श्रीमहाबीर धरम परगासै । वैठी परषदबारजी । अमृत वचन सुणी अति मीठा । पामें हरष अपारजी ॥ १ ॥ सुणो २ रे श्रावक नपधा न बयां विन । किम सूझै नवकारजी। उत्तराध्ययन बहुश्रुत अध्ययनें । ए ह जएयो अधिकार जी॥२ ( मुणो० ) ॥ महा निशीथ सिघांत मांहे पि ण। नपधांन तप विस्तार जी । अनुक्रम सुघपरंपर दीसइ । सुविहित ग
आचार जी ॥२ (सु०)॥ तप नपधान वह्यां विन किरिया। तुद्व अलप फल जाण जी । जे नपधान वद्या नर नारी। तेहनो जनम प्रमाणजी ॥ ४ (सु०)॥तप नपधान कह्यो सिघांते । जो नवि माने जेहजी। अरिहं त देवनी आण विराधै । जमस्यै नव २ तेह जी॥५ (मु० ) ॥ अघड्या घाटसमां नर नारी। बिण नपधान होय जी। किरिया करतां आदेश निरदे श। काम सरै नही कोइ जी॥ ६ (सु०) इक घेवरनें खांमै जरियो। अति घणो मीठो थाय जी। एक श्रावक नपधान वहैतो। धन २ ते कहवायजी। ॥७॥ (मु०)॥ (ढाल)॥ नवकार तणो तप पहिलो बीसम जाण । इरिया वहीनो तप बीजो वीसम आण। इण बिहुँ नपधाने निश्चइ नांण मंमाण । बारै नपवासै गुरु मुख बेबे वांणि ॥ ८ ॥ पेंत्रीसम बीजो णमोत्थुणं नप धांन । त्रिण वायण नगणीस तप नपवास प्रधान । अरिहंत चेई तप चो थो चोकम एह । नपवास अढाई वाणएक गुण गेह ॥ ९ ॥ पांचमो लोग स्स तप अठावीसम नाम। साढापनरह उपवास वायणा त्रिणाम । पुख्खर वरदी तप हो उक्कड सार । साडात्रण नपवासे वांण एक मुविचार ॥ २० ॥ सिघाणं बुघाणं सातमो उपधान माल । नपवास करै इक चौविहार ततका
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रत्नसागर.
ल । एक बाणिकरै बलि गुरुमुख सरसरसाल । गबनायक पाशै पहरै माल विशाल ॥ ११ ॥ माल पहरण अवशर आणी मननगरंग । घर सारू वारू खरचै धन बहु नंग । अति नबव कीजै राती जोगो दिल खोल । गीतगान गवावे पावै अति रंग रोल ॥ १२ ॥ ( ढाल ) ॥ए साते नपधा न। विधसों जे वहै । ते सूधी किरिया करै ए । खिण न करै परमाद । जीव जतन करइ । पुंजि २ पगला नरै ए ॥ १३ ॥ न करै क्रोध कषाय । हम २ हस नही । मरम केहनो नवि कहै ए। नाणे घरनोमोह । नतकृष्टी करै । साधु तणी रहणी रहै ए ॥ १४ ॥ पहुरसीम सिशाय । करपोरशिज णी । ऊंचे स्वर बोले नहीं ए। मनमां हे नावै एम। धन २ ए दिन। नरनव मांहि सफल सही ए ॥ १५ ॥ जेसाते नपधान । बिधसेती वहै । पहिरै माल सोहावणीए । तेहनी किरिया शुध । वहु फलदायक । करम निर्जरा अति घणी ए॥१६॥परनव पामै रिछ । देव तणा सुख । बत्रीस वध नाटक पमै ए। लानै लील विलास । अनुक्रम शिव सुख चढती पदवी जे चढे ए॥१७॥ (कलशः)।इम वीरजिणवर नुवण दियर मात त्रिशला नंदणो। नपधानना फल कहै नत्तम नवियजण आणंदणो। जिणचंद जुग परधान सदगुरु सकल चंद मुनीसरो। तसुशीश वाचक समय सुंदर नणे वंचित सुख करो॥१८॥ ॥ॐ॥इति सात नपधांन गजित श्रीमहाबीर स्वामी वृध स्तवन संपूर्ण॥४॥
॥ * ॥ (इस ) स्तवनमें नपधान तप करनेकी सर्व विधि है । इसी मुजब विबेकी जीव करै। और नपधान तप ग्रहण (तथा) माला पहर ण बिधि इहां न लिखी है (सो) सुध गुरुकै पास । विधि प्रपाक ग्रंथसें जाणकै करै ॥ ॥ इति तत्वं ॥ * ॥ ॥#॥ ॥४॥ ॥ * ॥ अथ राग रागणी स्तवन लि०॥ ॥
ॐ॥ (राग कल्याण)॥ ॥ . ॥ ॥ टुक निजर महरदी करणाहो ॥ टु०॥ मेंहुं अधम पापकी मू रत । मेरा दोस न धरणा हो॥ (टु०) ॥१॥ अष्ट जवनकी प्रीत हमा री। नवमें नव निरवाहना हो ॥ (टु०) ॥२॥ रूपचंद जगतनकी वीन ती। आवागमण निवारणा हो ॥ (टु० )॥३॥ इति पदम् ॥ * ॥
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राग रागण्यांका स्तवन.
४५३ ॥ ॥ पुनः॥ * ॥ ॥ ॥ लोक चवदके पार किनारे । पूरण ब्रह्मका वासा है। (लो०) पेंतालीस लाख जोजनकी सिल्ला । फिटक रतन नजासा है । निरमल जो त विराजै साहिव । ग्यान ध्यान परकासा है। (लो०) १॥ पंच वर ण की धजा फलकै । क्याकहुं अजब तमासा है ॥ नाथ निरंजन नाम तुमारो। औरनकी क्या आसा है ॥ (लो०)२॥ चोसठ इन्द्र खमेवाके मारे। खिजमत बंदा खासा है ॥ रूपचंद कहै नाथ निरंजन । चरण क मलका दासा है। (लो०)॥३॥ ॥ ॥ इति पदम् ॥2॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ * ॥ सवी सखि वन ग्न (सबी० ) गढे । नानि नृपत जूके प्रारे आगे। (स०) रिषन कुमरको जनम जयो है । मंगल मुख्य नचारैरी॥ (स०) १॥ताल मृदंग रखाव मधुरी धुनि । वीणा वाजै सुरतारे । नाचत हाव नाव करी राजत । तानलेत सुरतारेरी (स०)॥२॥ सुरवनिता मिल गाइ वधाई। मोतीयन चोक सवारे । जगबंधव जगपतिकुं निरखत । आ नंद हर्ष अपारेरी॥ (स०)॥३॥इति पदम् ॥8॥
| | पुनः॥॥ ॥ ॥ हो जिनतेमे दरस परवारीयां (हो.) तुम विन जव २ में नट कंदा । अब मेंमी ओर निहारीयां ॥ (हो.) ॥१॥ अष्ट करम में लार लगे है । ननकुं वेग विमारीयां । चरण सरण गहे आण तुसाढे। रुपचंद गुणगारीयां ॥ (हो.)॥२॥इति पदम् ॥ * ॥
॥ पुनः॥॥ ॥॥हारे मारा रिषना जिणंदने गजरो चढानरे (मां०) चंवेली चंपा गुलाब ज्यानरे। जाइ जुई मोगरो मालती । बिध गुंथानंरे (मां०) १॥ अगर चंदन अश्त नैवेद्य लानरे । धूप दीप फलसुगंध पुण्य पावूरे (ह्मां०)२॥ इष्ट धरम आदिनाथ नाव नाव॒रे । रिषन दास पूरो आस गुण गावुरे॥ (झां०)३॥इति पदम् ॥ॐ॥
॥ ॥
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रत्नसागर.
॥ | पुनः॥ ॥ ॥ ॥ मन लीनो हमारो जिन चरणारे । पोत जलधि नव तरणारे॥ (म० टेरे)॥ आदि पुरश जगतारण नि शुण्यो । कर्म विकट घन हरना रे॥ (म०)१॥ नानि तात मरुदेवी माता ॥ नंद षन सुख करनारे ॥ (म०)२॥ सल्यादिक प्रगट न जग तत्पर । कुमतांगन दलटरनारे ॥ (म०)३॥ सारंग दृग शशिवदन मनोहर । अंग कनक सम बरनारे (म०) ४॥श्रीजिन हंस सूरीसर जंपै। जिन शमरण दिल धरनारे ॥ (म०) ॥५॥ इति श्री कृषन देव स्तवनम् ॥ * ॥
॥ ॥ (राग किंमोटी)(२)॥ॐ॥ ॥ॐ ॥अजित अजित जिन ध्यान । (झारै मनरे) (अ) (टरेः) जितशत्रु विजयाको नंदनरे । वंदन त्रय युत ग्यान । (मा० ) १॥ त्रिहुं जग तारन टारन अघ कोरे । वारुं तन धन ज्यांन ॥ (मा० अ०)२॥ जिन वचनामृत पान करीजैरे । केवल निरमले ग्यान ॥ (मा० ) ३॥श्री जिन हंस सूरि प्रनु पाएरे । निवृति पुरिंदरम्यान ॥ ( मा० अ०)॥४॥ इति श्रीअजित नाथ स्तवनम् ॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ यह अरजी मोरी सहियां । मोहितारलो गह बहियां । (य०) मैं नांहि जानुं सहियां (य०)। मैं तारण तरण सुण्यो छै । मैं यातें शरणो गहीयां । इनतें ज्वार लहियां ॥ (मो० य०)॥१॥ इन करमनकै वस होयकै। में नटक्यो चिहुं गति महियां । मैं नांहि जानुं सहियां ॥ (य०) २॥ हित करकै दास निहारै । कर जोडि पमिहुं पश्यां । शिव देति क्युं न सहियां । (मो० य०)॥३॥इति ॥ ॥
॥ ॥ (राग काफी) (५)॥ ॥ ॥ ॥ मुजरो मानी लीजै हो गोमीराय अरज सुणीने मारो (मु०) किरपा काज करी सेवकगर्ने । दिलनर दरशण दीजै हो (गो.) ॥१॥ गुणनिधि गवडी दरशण दीजै । सकल करम दलीजै हो (गो.)॥२॥ रूप विबुध कहै मो मन पनणे । प्रह की प्रणमी जै हो (गो०) ३॥ इति
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राग रागण्यांका स्तवन.
| | पुनः॥॥ ॥ ॥ तुममा प्रनु इण दिल वसणावे । तेंमा तो गुण सुर गावं दाहो ॥ (प्र०)॥१॥ संतके सागर गुणके आगर । जोही ध्यावै सो पावं दाहो ॥ (प्र०)॥२॥ तुमहो तत्वज्ञानके दाता । लविजन ताप मिटावं दाहो॥ (प्र०)॥ कहैं जिनचंद ऐसे प्रनुमेरे । चरणकमल चित लावं दाहो (प्र०)॥३॥इति पदम् ॥ *
॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥ पुनः॥॥ ॥ ॥ हम जानतहै तुम तारोगे । (हम) नानिराय मरुदेवी को नंदन । मेरी और निहारोगे ॥ (हम० ) ॥१॥ आदि जिनेसर अन्तर जामी । खामी कबुन विचारोगे ॥ (ह° ) ॥२॥ जगजीवन जगतारक तुमहो। एही विरुद संनारोगे ॥ (ह°)॥३॥ श्रीजिन सौनाग्य सुरिंद कुं साहिब । नवजल पार नतारोगे॥ (ह° )॥४॥इति पदम् ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ .. ॥ॐ ॥ पंथीमा पंथ चलैगो । प्रनु नजलै दिन च्यार ॥(पं० ) कूठी काया फूठी माया। झूठो सब परवार ॥ (पं० )॥ १ ॥ बालपणेमें खेल गमायो। जोवन माया जाल ॥ (पं०)॥ २ ॥ बूढापण आयो धरम न पायो। पाने करत पुकार ॥ ( पं० ) ॥ ३ ॥ क्याले आयो क्याले जा सी। पापपुण्य दोय लार ॥ (पं०)॥ ४॥ दया मया कर पाश ऐवंती। अब तेरोही आधार ॥ (पं०)॥५॥ इति पदम् ॥ १॥
॥ ॥ पुनः ॥ ॥ ॥ ॥ तेवीशमा जिनराज । जोमै थाहरे कौन जुमै गो (ते० )। अस्वसेन तात वामादेवी माता । तूं तारण संसार ॥ (जो०)॥१॥ कमठ विमारण नागकुं तारण । संनलाव्यो नवकार ॥ (जो०)॥२॥वि बुध कुशल कर जोमीनें वीनवै॥ लव २ देज्यो दीदार ॥ (जो०) ॥ ३ ॥
॥ ॥ (राग खंनायची)॥॥ ॥ * ॥ कैसें काज सरै महाराजा बिन (कैसें ) भ्रमत २ लख चौ
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रत्नसागर. रासीमें । सुख पुखसे जीया रुलत फिरै (म० के० ) । ए रिपु कर्मवैरी न टकावै । जाहीसें मेरो प्राण मरे ॥ (म० कै.)॥ २ ॥ जो जीव सुखकी बंग चाहै । प्रनु सेव्यां में सब काज सरै ॥ (म० के० )॥ ३ ॥ इति ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ . * ॥राजरी वधाई वाजे (महा.)। सरणाई सिरै नोबत बा जै। घनज्युं गाजै ॥ ( महा० )१॥इंद्राणी मिलमङ्गल गावै । मोतीयन चोक पुरावै ॥ ( महा०)॥२ ॥ सेवग प्रनुजीसें अरज करै । चरणारी सेवा प्यारी लागे ॥ (महा०)॥३॥इति ॥ * ॥
॥ ॥ (राग प्रमाणो)(१)॥ ॥ ॥ ॥ मोतिनकी माला जिनगलसोहै ( मोति०) मस्तक मुगुट सोहे मनमोहन । कुंमल लागत वाला ॥ (जि०)॥१॥नजोरी नजो तुम लो क सहिरके। नहीय नजै सो काला । माणकपर प्रनु महिर करो तो। अपणा विरुद संनाला (जि०)॥२॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ * ॥
॥ (राग सोरठ) (१)॥ ॥ ॥ * ॥रहे तुम आज क्युं जीवन पुराय ॥ (रहे० ) ॥ जोव जीवन सखीयनमें प्यारी । हारी हाहा खाय ॥ (२०)॥१ ॥ अविरत धुंबट पट नघारी। अनुन्नव मुख निरखाय । एते परनी मान न मेलै । मूलै व्याज वढाय ॥ ( रहे०)॥२॥जव परणित परिपाक इतै पर। आई धाई मा य। अति आग्रह सब ग्यान सारकुं। लीने कंठ लगाय ॥ (रहे० )॥३॥
॥ॐ॥ पुनः॥ ॥ ॥ * ॥ हेमाय वांकमी करमगति जायना कही । चिंतत और वनत कड औरे। होनहार सो होय रही ॥ (हेमाय वां०) ॥१॥ सकल साज समीयो व्याहनकुं। राजुलकों तब चाह जई। सुनी नेम गिरनार सिधाए । वदन विलख मुरमाय रही ॥ (हेमाय वां) ॥ २ ॥ शीता स तीयोंही पति लगता । जांनत सकल मही।। फूलो दोष दियो जब रुघ पति । पावक कुंममें धीज दही॥ (हे० वां० ) ॥३॥ कायक सुदृष्टी श्रे णक राजा। निज सुत कोणक बंधठई । सुध बुध विसरगई नरपतकी
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राग रागण्यांका स्तवन
४५७ आपणकी अपघात लही॥ (हे वां० )॥४॥ग्निमें रंक गिनकमें राजा। अकल कथा किम जांण कही। उलट पलट वाजी नटसीकी । नवल सरब में व्याप रही॥ (हे माय वां)॥५॥ इति पदम् ॥ ॥॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ ह्मांनु प्यारो लागे जी । थारो उपदेस। ( ह्मांनुं ) ॥ ग्यांन जगावण औगुण मेटण । संशय रहै न लेस ॥ (मां० ) ॥१॥ मोहतिमिर पुःख दूर करनकुं । गत वढावत हेत । चंद फतै नित एही चा है। समकित सुखको खेत ॥ (मां० )॥२॥इति पदम् ॥ ॥ ॥
| | पुनः॥ ॥ ॥ ॥ मेरो पीया परसंग रमत है। में केसें मनावूरी ( मे० ) । सो तन संग रैन दिन रमतां। मोहि न बुलावैरी ( मे०)॥ १० ॥ हाहा कर त सषी पश्यां परतहुं। कोई पीया मिलावैरी । विरहानल अति उसह पी या विन। कोन बुझावैरी (मे०)॥ २ ॥ सुमता संग ले अनुन्नव आ यो। सब परठ सुनावैरी । ग्यान सार प्यारी दो हिलमिल । सोरठ गावैरी (मे०)॥३॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥*॥ ॥ ॥
॥ ॥ (राग सोरठ मलार)॥ ॥ ॥ॐ ॥ वरषित वचन ऊरी हो (सुगुरु मेरे) (व०) श्रीश्रुत ग्यांन गगन तै ऊमटी । ग्यांन घटा गहरी हो (सुगुरु मेरे) (व०)॥१॥स्याद बाद नय विजुरी चमकित । देखत कुमति मरी। अरथ विचार गुहर धुनि गरजित । रहत न एक घरी हो॥ (सुगुरु मे० )॥२॥ श्रधानदी चढी अति जोरै। सुच सुनावधरी । सुन्नर परयो सुमता रससागर । समकित नृमि हरीहो ॥ (मुगुरु मेरे) ॥ ३ ॥ प्रगटे पुन्य अंकूरे चिहुं दिस। पा प जवास जरी । चातक मोर पपइया नविजन । बोलत उक्तिनरी हो॥ (सुगुरु मेरे व०)॥ ४ ॥ दया दान बत संयम खेती । नविक किसान करी । हरषचंद सुर नर शिव सुखकी । सहज सुनाव फली हो ॥ (मु० व० ) ॥ ५ ॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
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रत्नसागर.
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॥ ॐ ॥ या घरी में रंग वन्यो है झांरे । ( या० ) तत्वारथकी चर चा पाई । साधर्मीको संग (व० या० ) ॥ १ ॥ श्री जिनराज दयानिधि भेटे । हरष यो अंग अंग । सी विध जव २ मांहै मिलीयो । धर्मप्र सादनंग (व० या० ) ॥ २ ॥ इति पदम् ॥ ॐ ॥ ॥ * ॥ राग मलार ॥
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४५८
॥
॥ * ॥ चिहुं नर वदरिया वरसे ( आलीरी ) । अब घरर घरर घन ग रजै ॥ (चि०) ॥ नेम प्रभु गिरनार सिधाए । देखणकुं जीया तरसै ॥ ( चि०) ॥ १ ॥ दापुर मोर सोर सुन श्रवणें । नयनजए घन जरसे ॥ ( चि० ) ॥ २ ॥ ढुंढत ढुंढ सकल वन वनमें । कबहु पीयानां दरसै ॥ ( चि० ) ॥ ३ ॥ सो इ सफल जाऐंगे सजनी । दिवस घरी जिन फरसे ॥ ( चि० ) ॥ ४ ॥ ॥ * ॥ पुनः ॥ ॥
॥ * ॥ मोरवा पपइया बोले पीठ २ घनमें । नेम पीया रहे सहसाव नमें ॥ ( मो० ) निशि अंधीयारी कारी वीजुरी रावै । दूजी विरह
कुल इनमें ॥ ( मो० ) ॥ १ ॥ फिरमिर वरषत गरजत दाडुर ॥ सोरकरत रहे नदीयां रनमें। ( मो० ) ॥ २ ॥ आणंद ए सम देखण चाहे ॥ राजुल नइ है बैरागण बिनमें || ( मो० ) ॥ ३ ॥ इतिपदम् ॥ ॥ ॥ राग विहाग ॥ ॥
॥
॥ * ॥ समऊ नर जीवन थोरो । थोरो थोरो थोरो । ( स० ) || पल २ आयु घटत बिन २ ही । गलत जात जैसें नरो ॥ (स० ) ॥ १ ॥ या तनको तोही न नरोसो | बिन मासो बिन तोरो। जो कबु करै सो अबही करलै । पुन परहो जिम मोरो ॥ ( स० ) ॥ २ ॥ तन धन आदि सकल सामग्री गरज २ घनघोरो । रूपचंद त्रिसनाको बांध्यो । जान बूऊ जयो जोरो ॥ (स० ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ ॥
॥ * ॥
॥ *॥
॥ * ॥
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॥ * ॥ मत कर मान गुमान । योवन धन ठगहै । (म० ) वेलूकी
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राग रागयांका स्तवन
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air सको मोती । कोई घमी कोई पल है | ( यो० म० ) ॥ १ ॥ नदियां गहिरी नाव पुराणी । तारण हारा जिन है । रूपचंद कहे नाथ निरंजन खर जंगल घर है | ( यो० म० ) ॥ २ ॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ ॥
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॥ ॥ निसदिन जोनं थांरी वाटकी घर आवोनी ढोला । (नि० ) मुळ सरिखा तुक लाख है । मेरे तूंही अमोला । (नि० ) ॥ १ ॥ जोहरी मो ल करै लाजनका । मेरा लाल मोला। जिसके पटंतर को नहीं । उसका क्या मोला ॥ (नि० ) ॥ २ ॥ कोन सुनें किस करूं । किसपे मांडुं खो ला । तेरे मुखदीठे टलै । मेरे मनका गोला ॥ (नि० ) ॥ ३ ॥ मीत वि वेक कहै हितकरतुं । सुमता सुन बोला । श्राणंदघन प्रनु आवसी । सेमी रंगरोला || (नि० ) ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ राग जैवंती ( १ ॥
॥
॥ ॥ आज तो हमारे नाग बीर प्रभु आए है । ( प्रा० ) चंदना खमी दुवार चित्तसें करे विचार । देखत दीदार हीये हरष नराये है || ( ० ) ॥ १ ॥ आज मेरी आशफली । अली मेरे रंगरली । विकशी यातमकली । प्रभूपात्र पाए है | ( ० ) ॥ २ ॥ धनदिन आज मेरो ग यो सब कर्म मेरो । सुकृत बहुतेरो । भगवान दिल जाए है ॥ (०) ॥ ३ ॥ सिधारथ राय नंद सोहत सरद चंद । कहै जिनचंद चित आनंद वधा है | ( ० ) ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ * ॥ राग परज ॥ ॥
॥ * ॥ वावरोरे आज मनवो मारो ॥ ( वा० ) ॥ श्रपरंगीला वाकी सेज रंगीली। ओर रंगीलो वाको सांवरोरे ॥ (० ) ॥ १ ॥ आपन आ वैवारी न लिख जै । प्रीतकरन कुं नंतावरोरे ॥ २ ॥ आनंद घन पीया निजघर वै । मिटगयो मोह संतावरोरे ॥ ( ० ) ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ ॥ * ॥ राग जंगलो ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ रुपनविहारी थांरी तो बवि न्यारी ॥ (२० ) । प्रथम तीर्थकर प्रथम जिनेसर | प्रथम यती व्रत धारी हो । (रि० ) ॥ १ ॥ धनुष पांचसै मान
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रत्नसागर. मनोहर ! काया कंचन वानी हो ॥ (रि०)॥ २ ॥ नानिराय मरुदेवीको नंदन । वापरजीया कुरवानी हो ॥ (रि०) ॥३॥ युगला धरम निवारण स्वामी । प्रजुगे पर नपगारी हो ॥ (रि०)॥४॥ केवल पाय प्रजु मुक्ति सिधाए । आवागमन निवारी हो ॥ (रि०)॥५॥ आनंद घन प्रनु एती वीनती। तुमपर जानं बलिहारी हो ॥ (रि०)॥६॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ॐ॥ पुनः॥*॥ ॥ ॥ सुण मन हो न हार नटरैरे ॥ (मु०)॥चित कल न विचारत है नर । नही रवनेरे॥ (सु०)॥१॥ऊपर वाज पारधी नींचे। चिमियां कैसे वचैरे॥ (सु०)॥२॥ होनहार वस मस्यौहै पारधी । शर सींचांण मरैरे। (सु०)॥३॥ होत पदारथ जावी अश्या । क्युं जगचाह धरैरे॥ (मु०) ॥४॥नदय करमगत देख जगत की। जिनवर क्युं न नजैरे ॥ (मु०)॥५॥
॥ * ॥ पुनः ॥2॥ ॥ ॥ सहियोरी मिलचालो अनु पूजन काज ॥ (स० )॥ समवशरन विच आप विराजै। वीरनाथ महाराज ॥ (स०) ॥ १ ॥ श्रेणक रूप चेलणा राणी । नक्ति करत है आज ॥ (स०)॥२॥ निज निज द्रव्य लीय पुरके जन । नमंग नमंग सुन साज ॥ (स.)॥३॥ वे प्रनु दीन दयाल जगतके। हितकर धर्म जिहाज ॥ (स०)॥ इति पदम् ॥ ॥ .. ॥॥ (राग केहरवो) (२)॥ * ॥
॥ ॥ मनवा जिणंद गुण गायरे ॥ (म०)॥ याजिनजीके दरस सरस तें। मुखदोहग मिट जायरे॥(म.)॥१॥ मुगुरु वचन परतीत मानले ।
आतमसुं लय लायरे॥ (म०)॥२॥जव २ में तो कुं सुखदाई । आनंद बंबित पायरे ॥ (म०)॥३॥इति पदम् ॥ ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥ चालो देखोरी मधुवनको राव (चा०) वामानंदन पाशजिने सर। शिरपररे वाके चवर ढोलाय ॥ (चा०)॥१॥ तारण तरण जिनेसर लखके । नेटै सहु नवि चित सुख पाय ॥ (चाल)॥२॥ गंगा दरश नमाहोलागो। कबफरसुं वाके मन वच काय ॥ ( चा० )॥ इति पदम् ॥
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राग रागण्यांका स्तवन - ॥ * ॥ (राग घाटो) (२) ॥
॥
॥ ॐ ॥ मेरो मन वशकर जीनो। जिनवर प्रजुपाश ( मे० ) ॥ १ ॥ अखीयां कमल पांखमीयां । मुख सुंदर जास । ( मे० ) ॥ २ ॥ काने कुम ल दोय फलकै। शशि सूरज सम नास ( मे० ) ॥ नीलवरण तन सोहै । त्रिवन परकास ॥ (० ) || ३ || प्रभु तुम शरण रहीनें । समरुं सासोसा स ॥ ( मे० ) ॥ ४ ॥ लालचंद अरज सुणीनें । पूरो बंबित आश ॥ ( ० ) ॥ ५ ॥ इति पदम् ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥
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(
( रा० ) ॥ १ ॥
॥
( रा ० ) ॥ २ ॥
॥ * ॥ राखुरे हमारा घटमें। जिनराज नाम तेरा ॥ via मेरा | ग्यानका अंधेरा | जागा नया जेरा ॥ सूरति तेरी रागे । देख्यां विभाव त्यागे । अध्यात्म रूप जागे मुद्रा प्रमोदकारी । रुपसजू तिहारी । लागत मोहि प्यारी ॥ ( रा० ) ॥ ३ ॥ त्रैलोक्यनाथ तुम ही । हम है अनाथ गुन ही । करिये सनाथ हम ही ॥ ( रा० ) ॥ ४ ॥ प्रभुजी तिहारी साखै । जिन हर्ष सूरि जाखै । या ही राखै ॥ ( रा ० ) ॥ ५ ॥ ॥ इति पदम् ॥
दिलमां
॥ ॥
॥ * ॥ राग ठुमरी जंगलो ॥ * ॥
॥ * ॥ सुणो सुजाण नेमजी हां रे में खमी पुकारूं नेम तूही तूही तूंही । ( सु० ) ॥ परज करत हुँ मै पइयां परतहुं । इतनी अरज मेरी मांनो सुजाण (नेमजी हां० ) ॥ १ ॥ विन अवगुणं क्युं तजो मेरे साहिब महिर निजर मोपे आणो सुजाण (नेमजी ) ॥ २ ॥ हरख चंद नेमी राजेसर । हुं जव २ की चेरी सुजांण ( नेमजी ० ) ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥
|| || :Е£ || * ||
रा ० ) ॥ जागे
॥ * ॥ तेरै दरसको चाह लग्यो । सखी स्याम वरण वत लाजारे ( ते ० ) । वनमैं जाय प्रजु दिक्षा लीनी । हमकुं लार लगा जारे ( ते ० ) ॥ १ ॥ जाय चढे प्रभु गिरनार ऊपर । अब कैसें विसराज़ारे ( ते ० ) ॥ २ ॥ चैन विजै कहै धन २ राजुल । प्रभू चरणां चित लायजारे ( ते ० ) ॥ ३ ॥ इति
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रत्नसागर.
॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ * ॥ थांरै मुखमारीहो वारी राज । प्यारीळवी वरणी न जाय (थां०) सीस मुगट सोहै सिरटीको । कांने थांरे कुंमल सोनाय ( थां० ) ॥ १ ॥ मोहन गारी सूरत सारी । देख्यां झांरो मनको लोनाय ( थां०) नरजित नए निरखत ही । थांसुं प्रभु प्रीतमजी लगाय ( थां० ) ॥ २ ॥ जव २ पाश जिणंदजीकी सेवा। ऐसी ह्मां रे दिल मै चाव ( थां० ) । वालक है तुमही प्रजु मेरे । ह्मांरे प्रभु तुमही सहाय । ( ० ( ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ ॥ * ॥ (राग काफी कानौ ) ॥ ५०
॥
सी विधतेने पाईरे । कछु करणी करजा ( ० ) उत्तम नर जव जैन धरम रुचि । सुगुरु सेवा सुख दाईरे । जसु पातक ऊरजा ( ० ) ॥ १ ॥ हिंसा या झूट परत्रिया । परिग्रह मद फल चोरी रे । घट जायगा दरजा ( ० ) ॥ २ ॥ तप जप संयम शीलदान कर । आनंद सुमति सुहाईरे । व जलनिधि तरजा (०) ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥
॥॥
॥
11❀ 11 ( QT FITNEÌ ) || ❀ ||
॥ ॐ ॥ मोहि अपनो कर जांणो प्रभुजी ॥ ( मो० ) ॥ में मतिहीण महा हठवादी । सो तुमसें नहीं बानो । राग द्वेष अरु मोह महामद 1 वाधो खोट खजानो ॥ ( प्र० मो० ) ॥ १ ॥ ए रिपु कर्म पड्यो मुऊ के मै । किसविध बूटै पानो। कुमति कदा ग्रह मांहि कलूज्यो । ज्युं मदपा न वयानो ॥ ( प्र० ) ॥ २ ॥ हूँ जववाशी तूं शिववाशी। जानें सकल जिहांनो | विरुद लाखीणो सांम संजारो । तो हिव किम चित तांणो ॥ ( ० ) ॥ ३ ॥ क्ति सदाई शिवसुख दाता। संभवनाथ कहानो । श्रीजि न सौभाग्य सूरिने निजवर । दीजै सुखप्रधानो ॥ ( प्र ० ) ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ ॥ (राग भैरवी ) (१) ॥ ॥
॥ * ॥ नेम जिणंद जी से मखमली। मोरी रैन दिवस नित लग र हीरे ॥ ( मो० ० ) | पहली प्राय उन दोस्ती कीनी । ले पीछे बिटका यदईरे ॥ ( ने०) ॥ २ ॥ पशुवन पर प्रजु दया करीनें । शिवरमणीनें वर
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राग रागण्यांका स्तवन. लेईरे॥(ने०)॥२॥केइ नविक रसना कर दोस्ती । रत्न विमल पद पाय लईरे ॥ (ने) ॥३॥इति पदम् ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥ * ॥ ॥७॥आज प्रनु तोरै चरण लाग । मिथ्यात नींद में खोईरे॥ (आ०)॥ दरशण कर परसण जयोमेरे। आनंद चित अब पोईरे॥ (आ०)॥१॥ तुम विन ओर न कोई मेरै। देख्यो त्रिनुवन जोईरे॥०)॥२॥ दास तुमारो करत वीनती। तुम प्रनु जव जव होईरे ॥ (आ.)॥इति पदम् ॥
॥ ॥ पुनः ॥ ॥ ॥ * ॥रात गई अब प्रात होन नयो । क्या सोवे जीया जागरे (रा०) दोय घडी तमको अब रहीयो। उ धरम में लागरे॥ (रा०)॥ ॥१॥ जिनवाणी नर वीच धारलै । नर नरम सर्ब त्यागरे॥ (रा०)॥२॥ आणंद सुगुरु वचन हित मानो। ए सूधो शिव मागरे॥ (रा.)॥३॥
॥ पुनः॥ ॥ ॥ तुम विन दीनानाथ दयानिध कोन खबर लै मेरी । (तु०) भ्रम। त फिरयो संसार जगतमें। मेटो नवनी फेरी । (तु०)॥२॥॥ लव २ के प्रनु तुम जगनायक । राखो शरण तेरी । नदय आसरो पकड्यो तेरो शरन ग्रहीमें तेरी ॥ (तु.)॥३॥ इति पदम् ॥
॥॥राग विनास ॥१॥ ॥नोरन्जयो अब जाग वावरे ॥ (नो०) कोन पुन्यतें नर नव पायो। क्युं सूतो अब पाय दावरे ॥ (नो०) ॥१॥ धन वनिता सुत तात भ्रातकों । मोहमगन एह विकल नावरे । को इन तेरो तूं नहीं का को । इह संजोग अनाद सुनावरे॥१॥ (मो.) ॥२॥ आरज देश नत्तम गुरु संगत । पाई तें बहु पुन्य प्रनावरे । ग्यांनसार जिनमारग लाधो। क्यु डूबै अब पाय नावरे ॥ (नो०)॥३॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥
___ ॥ (राग खट्)॥ ॥ ॥ ॥ जागरे सब रेन विहानी (जा० ) नदयो नदयाचल रवि मंगल
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रत्नसागर.
पुन्यकाल क्युं सोवै प्रानी ॥ ( जा० ) ॥ १ ॥ कमल खंग वन वन विकसा नी। अजुवन तेरी द्रग घरानी । चेतन धर्म अनादि तुमारो । जन संग तसें सुध विसरानी । ( जा० ) ॥ २ ॥ तुम कुल दोय अवस्ता पश्यै । नींद सुपन एजम नीसानी । प्रतम रूप संचार प्रापणो । कब तुमारे घर कुमती घरानी ॥ ( जा० ) ॥ ३ ॥ सुध बुध जूली निरुपम रूपकी । तातें घट वध होत कहांनी । निश्चै ग्यान स्वरूप तुमारो । ग्यांनसार पद निज रजधांनी ॥ ( जा० ) ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥
॥
॥ * ॥ राग वेलावल ॥
॥
॥ ॥ सांवरो सलणो सखी मेरे मन जावनो । रूप देखाय मेरो मन ललचावनो ॥ ( सां० ) ॥ १ ॥ तोरणसुं रथफेर चने पीया । ना जानुं ए काहिको रुसावनो ॥ (सां० ) ॥ २ ॥ नव जव नेह निनाहो नेम तुम । याहीतें कहा वदन दुरावणो । आनंद राजुल याकी प्रीत कपटकी । जयो पीया मुगत सखीको पांवनो ॥ ( सां० ) इति पदम् ॥ ॥ ॥ * ॥ राग ललित ॥
॥ ॥ * ॥ आज रुषन घर आवे (देखो माई प्रा० ) रूप मनोहर ज गदानंदन । सबही मन नावे (दे० ) ||१|| केई मुगताफल थाल विशाला ।
मणि माणक जावै । हयगय रथ पायक केई कन्या । लेप्रनु वेग वधावै ॥ (दे० )॥ २ ॥ श्रीश्रेयांस कुमर दानेसर । इक्षुरस दान वहि रावै ॥ उत्तम दांन अधिक अमृत फल | साधुकीरत गुण गावै ॥ (दे०)॥३॥ ॥*॥ इति पदम् ॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ रागरामकजी ॥ ॥
॥ ॐ ॥ अंगन कलप फल्योरी । हमारे माई ( ० ) । रुचि वृद्धि सिद्धि सुख संपति दायक । श्रीशांतिनाथ मिल्योरी ( ह० ) ॥ १ ॥ केशर चंदन मृग मढ़ घोली । मांहि वरास मिल्योरी । पूजित श्री शांतिनाथजी की प्रतिमा । अलग नदेग टटयोरी ॥ ( ह० ० ) ॥ २ ॥ शरणें राख कृपाकर साहिब । ज्यूंपारेवो पल्योरी । समय सुंदर कहै तुह्मारी कृपासें । हुंरहिसं सोहिलोरी (ह० ० ) ॥ इति पदम् ॥ * ॥
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राग रागण्यांका स्तवन.
४६५ ॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥॥ठगेने मोरा आतमराम । जिन मुख जोवा जइयैरे। जिनजी नो दरसण चै अति दोहिलो । ते किम सोहिलो जाणोरे । वार २ मानव जव एहवो । जुम्वो मुसकल टाणोरे ॥ (०)॥१॥ च्यार दिवशनो चटको मटको। देखीनें मतराचोरे । विनसी जातां वार न लागै । काया घटकै काचोरे ॥ (०) ॥२॥ अनन्तगुणे नरियो हे जिनवर । पूरब पुण्यें पायोरे । एहनें देखी दिलमें आनन्द । कर तूं सदा सवायोरे ॥ (०)॥ ३ ॥ हीरो हाथ अमोलक आयो। मूढ हिवै मति गमजोरे। सहिज सलूणा पास जिणंद जीसुं। राजी हुय चित रमज्योरे॥ (क) ॥४॥मन मांनीता माहरा आतम। करजे मुकृत कमाईरे । लान उदय जिनचंद्र लहीनें । वरतूं सिघ वधाईरे। (ऊ)॥५॥ इति पदम् ॥
॥राग केदारो॥॥ ॥ ॥ मज मन नानि नन्दन देव (ज.) ॥ ध्यांन मुनीजन अमि गधार । सुर नर करत है सेव ॥ (०) ॥१॥ चक्री नूपति वमे सुर पति । वासुदेव बलदेव । नमत ब्रह्मा रुद्र नारद । शेष मणिधर सेव ॥ (ज)॥ २ ॥ अशरन शरनहै विरुद जाको। नक्तिबबल नेव। राजसिंह प्रनु षन शिरपर। नाथ है नित मेव ॥ (ज०)॥३॥ इति ॥ ॥
॥ ॥ ताल तुमरी॥॥ ॥ ॥ वोनेम रह जावो सदन । हम कोंन संतावोरे (आ०) व्याहन आए सझके सजन । पमुवनको सुन देख रुदन । गिरनारी चले निज गमि वतन । तकसीर वतावोरे ॥ (आ०)॥१॥ पूनम जैसे चं द्रवदन । मनमोहन मूरत स्याम वरन । मेरे नीकी लगी नव नवकी लगन मती नेह दिखावोरे॥ (आ०)॥२॥ संयम दूती लागी श्रवण । प्रनुकुं सिखाये नीके भ्रमन । सब फूठे पमेंगे कोल वचन। रथ फेरी न जावोरे॥ (आ०)॥३॥ कपूर कहे अनुजीके चरण । राजुल मन वैराग धरन। लेहुं दोड नेम जिनजीके शरण । शिवपुर तो वतावोरे ॥ (आ०)॥४॥
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रत्नसागर. ॥8॥ (खेमटा ताल दादरा)॥॥
॥अधम जगकाम नये आगीवान । हे ना निकला मुखसें क जी नगवान ॥ यार नहीं देखा समो सरणा । किया नवदधिमें उदर नर णा । दोमजो लेते प्रनूसरणा । दूर पुःख होते जनम मरणा । वैठ नव वरमें लगाया नहीं ध्यान । राज शिवपुरमें हुवा अपमान । मरो अब दे खके काल खगवान ॥ हे० ॥१॥नाम जो जिनके दान देते । तो आ ढुं मद तुमसे दूर रहते । यारजो जिनके चरण सेते । तो शषी सुमताकों तुमें देते । रहे तप जपमें सदा जोसूर । वरै वो नव नव अगम सुख नूर । करै कपूर करम चकचूर । देखा जिन नूर हुवे ऽख दूर । करो नव पार सुनो महरवान ॥ नानि ॥२॥ इति जिनपद स्तवनम् ॥ ॥१॥
॥ॐ॥ (राग पीलू)॥ॐ॥ ॥ ॥आयो सही अब जानें कहां शरणागतकों शरणागत तेरी । (आ.) तोहू समान मिल्यो नहीं कोई । हूंढ फिरयो धरती सब हेरी। (आ०) होय दयाल महा प्रनुजी अब। आन नई तुम सें नट नेरी ॥ (आ.)॥१॥ दास कल्याण करै वीनती सुन । पारशनाथ सुपारस मेरी॥ (आ.)॥२॥ इति पदम् ॥१॥
___॥ ॥ (राग खम्बाज)॥ * ॥ ॥ ॥ घमी २ पल २ दिन २ निश दिन । प्रनूको समरण करलै रे। (घ० ) प्रनु समरण सबं पाप कटतहै । अशुन्न करम सब हरलैरे ॥ (घ) ॥१॥ मन वच काय लगी चरणन नित । झान हियेमें धर लैरे॥ (घ) दोलत राम प्रनु गुणगावै । मनवंछित फल वरलै रे ॥२॥ इति पदम् ॥
॥अथ शिखरागिरी स्तवन ॥ ॥ ॥ ॥ तुमतो नले विराजो जी । शांवलिया महाराज शिखरपर न ले विराजो जी ॥ तेरै घाटै चौकी लागै । श्रावक जाण न पावै । हुकम कियो श्रीपाशजिनेसर । बांह पका लेजावै ॥ (तु.)॥१॥ ऊंचा नीचा परबत सोहै। तलै निलनका वासा । म पैंम पर सिंह धमूकै । जिहां लिया तुह्म वासा ॥ (तु० )॥२॥ ढूंक ढूंकपर धजा विराजै । कालरके
(राग खम्बान । प्रनको हालेर
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राग रागण्यांका स्तवन. मणकारै । कालरके ऊणकारै सेती। वाजै अविचल वाजा॥ (तु० ) ॥३॥ दूर देशथी यात्री आवै । पूजा आण रचावै । अष्टद्रव्य पूजामें लावै । मनवंचित फलपावै ॥ ( तु०)॥४॥ सुर नर मुनिवर वंदन आवै । महा परम सुख पावै । चंदखुस्याल चरणको सेवक । हरष हरष गुण गावै॥ (तु.)॥५॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ शिखर गिरेंद्र जुहारो। निज पातिक दूर निवारोरे ॥ (जवियां शि०)॥ इण सम तीर्थ न कोई। में देखा सहु जग जोई रे॥ (नसि०) ॥१॥ वीश जिनेसर आया। इहां मुक्ति पुरी सुख पायारे॥ (०)॥कोमा कोमी मुनि सीधा । जिहां अजर अमरपद लीधारे। (ज०) वीश चरण जिन सोहै । जविजन चात्रक मनमोह रे॥ (न० )॥२॥ध्रुव मठ मंदिर गजै । जिहां पास प्रनु महाराजरे॥ (न०)॥३॥ पावन तीरथ एहवो । इहां संसय धरवो न केहोरे (०) तीर्थ प्रासातन टालो । नविजन उहरीव्रत पालोरे॥ (०)॥ ४ ॥ नर नव लाहो लीजै । इण तीरथ म हिमा कीजैरे॥ (ज०) सय नगणीस ते तीसै । अगहन सुदि पंचमी दी सैरे॥॥ (ज०)॥५॥ दूगम गोत्र मुहावै । नवि चंद गोविंद गुण गावरे (०)। जात्रा करी मनरंग। चंदशिखर नणे अति चंगैरे ॥ (न० ॥६॥
॥ पुनः॥ ॥ .. ॥ * ॥ शांवरिया जैसें वणे तैसें तारो० ॥ (इस चालमें)॥ शांवरि यामें दीठो दरस तिहारो। मेरी जव नय वाधा टारो (शां० ) अश्वसेन नं दन जगवंदन । जगवंधव जगप्यारो । नीलवरण द्युति श्रीजिनवरकी वामा नदर अवतारो ॥ (शां० ) ॥१॥ कम विमारण शिव सुखकारण । तारण तरण निहारो । अलख अगोचर अगम अरूपी । निर्यामक सत्थवारो ॥ (शां० )॥ २॥ शिखर गिरी मंडन जिनवरजी । अदनुत महिमा वारो। करजोमी दोनं वीनती करत है। बुधसिंह अरजी धारो ॥ (शां० ) ॥३॥
॥ ॥ पावापुरी स्तवन लि०॥॥ ॥ * ॥ चरम प्रनु अरज हमारी धारो । मेरो आवागमन निवारो
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रत्नसागर.
(च०) (आंकमी) सिघारथ कुल जनम लियोहै। त्रिसला नदर अवतारो। सुरगण कोम मिली सुरगिर पर । स्नात्र महोदव सारो॥ (च०) १॥ व सुविध पूज रचत जिनवरकी । सफल करत अवतारो । जय जय शब्द करत सुर नरवर । जय २ जगदाधारो॥ (च०) २॥ वाल अवस्था अतु ल वली. प्रनु । सहजा अतिसय चारो । दिवा ले प्रनु केवलपायो। श्री संघ आनंदकारो॥ (च०)३॥ सुंदर सूरत मोहनी मूरत । नाथ निरंज न प्यारो। सीस मुगट सोहै अति सुंदर । गल मोतियनको हारो ॥ (च०) ॥४॥समवसरणकी अदभुत महिमा । देखत नयना गरो । नविजन चा त्रक अति हरषावै । स्वामी नाथ निहारो ॥ (च०)५॥ चरम चौमाशी पावापुरिमें । कीधी जग हितकारो । शोलै पहर लग अमग देसना। प दनिरबाण पधारो॥ (च०) ६॥ काल अनन्त जम्यो नव वनमें । कहत न आवै पारो। अब तो प्रनुको सरण ग्रहीमें । कबहु न गेडु लारो। (च० ) ७॥ दूगम गोत्रे इन्द्र चन्द्र सुत । चंद्र गोविंद ध्रमकारो । जात्रा करी प्रनुकी नगरंग। जनम कृतारथ म्हारो (च०)८॥ सय नगणीस ते तीस मनोहर । अगहन दशमी उजारो। सिषरचंद प्रनु शिवसुख दायक । पूरब पुन्य जुहारो॥ (च०) ९॥ इति पदम् ॥2॥
॥ ॥राग कैखो॥॥ ॥ * ॥ में मुख देख्यो गोमी पारसको । मेरो जनम सफल जयो आज ॥ आजरे में मुख देख्यो गोमी पारसको ॥ मेरो० ॥ (टेक) अन्यदेवनकू बहुत में ध्यायो । तोए न सरयोजी मेरो काज ॥ आ जरे ॥१॥ जव जव लटकत शरणे हुँ आयो । अब तो रखोजी मोरी लाज॥आजरे०॥२॥ कमठ हरावन नागईं तारन । संनलाव्यो नव कार ॥ आजरे० ॥३॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन । तारण तरण जहा ज॥ (नला० ) तारण तरण महाराज ॥ आ०॥ ४॥ इति ॥ ॥
॥8॥ किरपा करोरे गोमीपाश जिनेसर । तुम स्वामी अंतरजा मी॥ टेक ॥ नंचे नंचे गढपर पासजी बिराजे । चारे तरफ ज्ञानी ध्यानी किरपा० ॥१॥ नील वरण तोरो अंग बिराजे । बदनकी जाऊं वलिहा
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राग रागयां स्तवन.
४६९
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री किर० ॥ २ ॥ बांहे बाजुबंध बहेरखा बिराजे । कुंमलकी बबि हे न्यारी ॥ ० ॥ ३ ॥ ढूंढत ढूंढत में प्रनु पायो । पूरण पदवी अब पाई ॥ किर० ॥ ४ ॥ नाथ निरंजन नाम तुमारो । रूपचंद पदवी पाई || किर० ॥५॥ 11 ❀ 11 TF: || ❀ ||
॥ * ॥ मुजरा साहेब मुजरा साहेब । साहेब मुजरा मेरारे ॥ ॥ टेक ॥ 'साहेब सुविधि जिनेसर स्वामी । चरण पखालुं तेरारे ॥ मुजरा० ॥ १ ॥ केशर चंदन चरचूं अंगें। फूल चढावुं सेरारे । घंट बजावुं अगर नखें । करूं प्रदक्षिणा फेरारे ॥ मुजरा० ॥ २ ॥ पंच शब्द वाजित्र बजावुं । नृत्य करूँ अधिकेरारे ॥ रूपचंद गुण गावत हरखत । दास निरंजन तेरारे । मुजरा ॥ ३ ॥ ॥ इति० ॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ ॥
॥ * ॥ घंट बाजे घननननन । इंद्रलोक हरख जयो । जनमे वर्ध मान कुँवर । वीतराग तननननन || घंट० ॥ १ ॥ मृदंग ताल गुण बिशाल । ऊल्लरी नाद ऊननननन | घंट० ॥ २ ॥ रूपचंद रागरंग । होत ध्यान मगनननन ॥ ६० ॥ ३ ॥ ॥ ॐ ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ *॥
॥ * ॥
॥ ॥
॥ ॐ ॥ निरंजन सांइयांरे । सांइ मेरा टुकसा मुजरालेत ॥ टेक ॥ तुम हो तीरथका देवतारे । हम गिरिवरका मोर ॥ रुम कुम रुम कुम मे हुला बरसे। कांइ उम उम नाचे मोर || निरंजन० ॥ १ ॥ हम गुण का ली कोयलीरे । प्रभु गुण आंबा मोहोर । मांजरके परसादसें कां । करने लागी सोर || निरंजन ० ॥ २ ॥ तुमहो अमर देवतारे । हम केशरका बोम ॥ कनक कचोली हाथमां । कांइ पूजा करूं रंगरोल | निरंजन ० ॥ ॥ ३ ॥ तुमहो मोतिनकी जरीरे । हमगुण ठंडा जोर । रूपचंदकी येही अरज हे । दिलजर दरिशनदोर ॥ नि० ॥ ४ ॥ इति
॥ ॥
॥ * ॥ राग कल्याण ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ ऐसे सहेर बिच कौनसा दीवान है ॥ टेक पवनके कांगरे । दश दरवाजे मंमान हे ॥ ऐसे० ॥
॥
१ ॥
पानी के कोट पांच इंद्रीके
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४७०
रत्नसागर
वीश तस्कर । नगरकूं करत हैरान है | ऐसे० ॥ २ ॥ प्रजा पुकार सु न तब जाग्यो । चेतन राय सुजाण हे ॥ ऐसे० ॥ ३ ॥ ज्ञानको वाण वचन रस भेदे । हाथमें लाल कमान हे ॥ ऐसे० ॥ ४ ॥ रूपचंद कहे तेहनें वारो । दुशमन करत गुमान है || ऐ० ॥ ५ ॥॥॥ ॥ ॐ ॥ श्री आदिजिन स्तवन ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ य रहो दिल बागमें । सुन प्यारे जिनजी ॥ (कणी) चुन चुन कलीयों तोरे चरणे चढावुं । गुण अनंता तोरा रागमें ॥ सुन० ॥ ॥ १ ॥ मरुदेवी नंदन आदि जिनेश्वर । खेल अनंता तोरा बागमें || सुन ० ॥ ॥ २ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन । जानं विकसित बन फागमें ( सुन० ३ ) ॥ श्री नेमिजिन स्तवन लि ॥ ॥
॥
॥ * ॥ रहो रहोरे यादव दोय घमियां । दोय घमीयांरे अब चार घीयां ॥ २० ॥ एकणी ॥ प्रेमका प्याला बोहोत मसाला । पीव त मधुरी सेलमीयां ॥ रहो ० ॥ १ ॥ हाथशुं हाथ मिलाइ दीयो सांइ । फु. ला बिबा सेमीयां ॥ रहो ० ॥ २ ॥ राजुल बोमी चले गिरनारे । दी पत मोहन वेलमीयां ॥ रहो० ॥ ३ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन । मुक्ति वधू गुण वेलमीयां ॥ रहो ० ॥ ४ ॥ इति ॥ * ॥ ॥ *॥ ॥ * ॥ श्री गौडी पार्श्वजिन स्त० ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ बिराजो बंगला में । बिराजो मंदिरमें । प्रभु गोमीचा पारश नाथ ॥ बि० ॥ ए टेक ॥ चुवा चुवा चंदन और अरगजा । केशर में गरका ॥ ० ॥ १ ॥ शिरसोनेंको बत्र बिराजे | मोतियां तपेरे खिलाड ॥ बि० ॥ २ ॥ जव सागरमें माइ पड्यो हुँ । बांहे पकरू मुऊ तार || बि० ॥ ३ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन। आवागमन निवार || बि० ॥ ४ ॥ ॥ ॥ श्री नेमिजिन स्तवन ॥
O
॥
॥ ॐ ॥ कीनें देखा हमारा स्वामी । स्वामी अंतर जामीरे ॥ की ० ॥ टेक ॥ प्राठ जवनकी प्रीति प्रकाशी । नवमें गया शिवगामी रे ॥ कीनें ॥ १ ॥ सहसावनकी कुंज गलिनमें । मिल्या मुने अंतरजामीरे ॥ कीनें ॥ २ ॥ आप चले गिरनारकी ऊपर । नारी तारी केवल पामीरे ॥
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राग रागयांका स्तवन
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कीनें ॥
३ ॥ कहे नथू प्रजू नेम नगीनो। कहुं बनुं आज शिर नामी रे ॥ कीनें ॥ ४ ॥ * ॥ इति० ॥*॥ ॥ *॥
॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ राग आशावरी ॥
॥ ॐ ॥ अवधू सो जोगी गुरु मेरा । नस पदका करेरे निवेडा || वधू ॥ टेक ॥ तरुवर एक मूल बिन बाया । बिन फूले फल जागा | शाखा पत्र नहीं कर ननकुं । अमृत गगनें लागा ॥ प्र० ॥ १ ॥ तरुवर एक पंबी दोन बेठे । एक गुरू एक चेला ॥ चेलेनें जुग चुणचुण खाया । गुरू निरंतर खेला ॥ प्र० ॥ २ ॥ गगन मंगलमें
बिच कूवा । नहां हे प्रमीका वासा | सुगुरा होवे सो नर सर पी वे । नगुरा जावे प्यासा ॥ ० ॥ ३ ॥ गगनमंगलमें गन बिहानी । धरती दूध जमाया । माखन था सो विरला पाया। बाब जगत नरमाया ॥ ० ॥ ४ ॥ थड बिन पत्र पत्र बिन तुंबा । बिन जिभ्या गुण गाया | गावन वालेका रूप न रेखा । सुगुरु सोही बताया ॥ ० ॥ ५ ॥ प्रात म बिन नही जानें। अंतर ज्योति जगावे | वट अंतर परखे सोही मूरत | आनंदवन पद पावे ॥ ० ॥ ६ ॥ इति ॥ * ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ * ॥ अवधू ऐसो ज्ञान बिचारी । वामें कोण पुरुष कोण नारी ॥ अवधू (टेक) बम्मनके घर न्हाती धोती। जोगीके घर चेली । कल मा पढ पढ नईरे तुरकमी । आपही आप अकेली ॥ अवधू० ॥ १ ॥ सुस रो हमारो बालो जोलो । सासू बाल कुंवारी । पिनजी हमारो होढे पाल गये। में हुं फुलावन हारी ॥ अवधू० ॥ २ ॥ नहीं हुँ परणी नहि हुँ कुं वारी । पुत्र जणावन हारी। काली दाढीको में कोइ नही बोड्यो । ह जुए हुँ बाल कुंवारी ॥ अवधू० ॥ ३ ॥ अढी द्वीपमें खाट खली । गगन नशीकुं तलाई । धरतीको बेडो आजकी पिछोमी । तोए न सोम नराणी ॥ अवधू० ॥ ४ ॥ गगन मंगलमें गाय वीप्राणी । वसुधा दूध जमाई । स नरे सुनो नाइ विजोगां विलोवें । कोइ एक अमृत पाईरे ॥ अवधू० ॥ ५ ॥
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रत्नसागर. नहीं जाळं सासरीए नहीं जान पीयरीये । पीयुजीकी सेज विगइ ॥ आनं दघन कहे सुनो नाइ साधो । ज्योतसें ज्योत मिलाईरे॥ अवधू० ॥६॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ बेर वेर नहीं आवे। अवशर। बेर बेर नहीं आवे (ए टेक ) ज्यु जाणे त्युं करले जलाई। जनम जनम सुख पावे ॥अवशर० ॥१॥ तन धन जोवन सबही उठगे। प्राण पलकमें जावे ॥ अवशर० ॥ २॥ तन बूटे धन कोण कामको । कायकू कृपण कहावे ॥ अव० ॥३॥ जाके दिलमें साच वसत हे । ताकू फूठ न नावे ॥ अव० ॥४॥ आनंदघन प्रनु चलत पंथमें । समरि समरि गुण गावे ॥ अव०॥५॥ ॥
॥॥राग कैरवो॥2॥ ॥ॐ॥ ए जिनके पाये लागरे । तुनें कहीयें केतो ॥ ए जिनकेपा० ॥ (ए टेक)॥आगेइ जाम फिरे मद मातो । मोह निंदरीयाशुं जागरे। तुने ॥१॥ प्रनुजी प्रीतम बिन नहीं कोई प्रीतम । प्रनुजीनी पूजा व णी मागरे। तुनें ॥२॥ नवका फेरा वारी करो जिन चंदा । आनंदघन पाये लागरे ॥ तुनें ॥३॥ इति ॥ ॥ॐ॥
- |||| पुनः॥ ॥ ॥ॐ॥ हारे चित्तमें धरोरे प्यारे चित्तमें धरो । एती शीख हमारी प्यारे चित्तमें धरो। ( ए आंकणी ) थोमासा जीवनकाज अरे नर । कायेकू उल परपंच करो ॥ एती० ॥ १ ॥ कूड कपट परद्रोह करो तुम । अरे नर परनवथी न मरो ॥ एती० ॥ २ ॥ चिदानंद जो ए नही मानो तो। जनम मरणके दुःखमें परो॥ एती० ॥३॥8॥
॥॥राग गौमी॥ ॥.." ॥ ॥ अवधू निरपद विरला कोई। देख्या जग सब जोई ॥ अवधू० ॥ टेक ॥ समरस नाव नला चित्त जाके । थाप नत्थाप न होई ॥ विनाशीके घरकी बातां । जाणेंगे नर सोई॥अवधू० ॥१॥राव रंकमें नेद न जाणे । कनक उपल सम लेखे ॥ नारी नागणिको नहीं परिचय । तो शिव मंदिर देखे ॥ अवधू० ॥२॥ निंदा स्तुति श्रवणे सुणीनें । हर्ष
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राग रागण्यांका स्तवन.
४७३ शोक नवि आणें ॥ ते जगमें जोगीसर पूरा । नित चढते गुणगणे ॥ अवधू० ॥३॥ चंद्रसमान सौम्यता जाकी । सायर जेम गंजीरा ॥ अप्रमत्त नारंग परें नित्या । सुर गिरि सम शुचि धीरा ॥ अवधू०॥४॥ पंकज नाम धराय पंकशुं । रहत कमल जिम न्यारा ॥ चिदानंद ऐसा जिन उत्तम । सो साहेबका प्यारा ॥ अवधू०॥५॥8॥
॥ ॥ ॥ ॥राग प्रनाती॥१॥
. ॥ ॥ चालणां जरूर जाकुं ताकुं कैसा सोवणां (ए आंकणी ) जया जब प्रातकाल । माता धवरावे बाल । जगजन करत सकल मुख धोव णां ॥ चा० ॥ १ ॥ सुरनिके बंध बूटे घूवम नये अपूठे ॥ ग्वाल वाल मिलके । विलोवत विलोवणां ॥ चा०॥२॥ तज परमाद जाग तूंनी तेरे काज लाग॥ चिदानंद साथ पाय । वृथा नही खोवणा ॥ चा० ॥३॥
॥ॐ॥राग केरवो॥ ॥ ॥ॐ॥ समऊ परी। मोहे समऊ परी । जग माया अब झूठी मोहे ॥ समज ॥ ए आंकणी ॥ काल काल तुं क्या करे मूरख । नहीं नरोसा प ल एक घरी॥ जग० ॥१॥ गाफिल गिननर नांही रहो तुम । शिरपर घुमे तेरे काल अरी ॥ जग० ॥चिदानंद ए बात हमारी प्यारे । जाणो तुम चित मांहे खरी॥जग० ॥३॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥राग गजल ॥ * ॥ ॥ ॥ राजुल पुकारे नेम पिया। ऐसी क्या करी ॥ मुझे डोमके चले हो चूक हमसे क्यापरी ॥राजु० ॥१॥ हुइ आशकी निराश । नदाशीनताघमी॥ प्यारा बस नहीं हमेरा । प्रीतम पीरमें पमी ॥ राजु० ॥२॥ हमसें रह्यो न जाये। प्रीतम तुम बिना घमी ॥ संयम लीजीयें दयाल । दया धर्म आदरी॥ राजु०॥३॥निशदिन तुमेरा नाम । देते ज्ञानकी करी ॥ मुनि चंदविज य चरण कमल । चित्तमें धरी ॥राजु०॥४॥ॐ॥ ॥ ॥
॥॥राग धन्याश्री॥ * ॥ ॥ ॥ कौन किसीको मित्त । जगतमें कौन किसीको मित्त ॥ ए आं कणी ॥मात तात नरजात सजनसें । कांइ रहेत निचिंत ॥ज ॥१॥
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रत्नसागर. सबही अपने स्वारथके है । परमारथ नहिं प्रीत ॥ स्वारथ विणसे सगो न होसी । मित्ता मनमें चिंत ॥ ज० ॥२॥ न चलैगो आप इकेलो । तुंही सुं सुविदीत ॥ कोनहिं तेरो तुं नहीं किसको । एह अनादी रीत ॥ ज० ॥ ३ ॥ तातें एक नगवान नजनकी । राखो मनमें नीत ॥ ग्यान सार कहे येह धन्याश्री । गायो आतम गीत ॥ ज०॥इति ॥॥
॥ ॥ बधाई॥॥ ॥ ॥ बाजत रंग बधाई नगरमें ॥बा०॥ जय जयकार नयो जि नशासन । वीर जिणंदकी हाइ॥न ॥बा०॥१॥ सब सखियन मिल मंगल गावै । मोतीअन चौक पुराइ॥न०॥ बा० ॥ २ ॥ केशर चंदन जरीय कचोली । साहिब ज्योति सवाइ ॥न०॥ बा० ॥ ३॥ हरखचंद प्रनु दरशन देखत । आवत नैन जराइ॥न॥बा० ॥४॥ ॥
॥ ॥ राग केरवो ॥8 ॥ ॥जलांजी मेरो नेम चल्यो गिरनार । एकेली जानसें । मेरो०॥ राजुल कनी अरज करे ।। ( नलांजी मेरी ) अरज सुनो महाराज ॥ एके ली०॥ १ ॥ तोरण आय चले रथ फेरी। (नलांजी नवांतो ) पशुवनकी सुनी ने पोकार ॥ एकेली० ॥ २॥ सहसावनकी कुंजगजिनमें। (जलांजी
वांतो)पंच महाव्रत धार ॥ एकेली०॥३॥ हरखचंद प्रनु राजुल बिनवे । (जलांजी मेरो) होजो मुक्तिमें वास ॥ एके०॥॥
॥ श्रीसुपाश जिनराज ॥ए देशी॥॥ ॥ ॥ आदीसर जिनराज । त्रिनुवनके महाराज ॥ आजहो आयो रे में शरणे प्रनुजी तुम तणे जी ॥ १ ॥ नखस्यो ग्यान अंकूर । प्रगव्यो पुण्य पडूर । आजहो जागीरे मुझ भनमें तुमनी सेवना जी ॥ २ ॥ लगन लागी परपूर । दोष गये सब दूर । आजहो गेडु रे नहीं तुम प द सेवा सुखकरूजी ॥३॥ नानिराय कुल चंद । मरुदेवीके नंद । आज हो राखो रे प्रनु मुझकुं निज चरणे सदा जी ॥ ४ ॥ अमृत धर्म सुजाण । शीश दमा कल्याण । आज हो रागें रे प्रनु आगे आ विनती करेजी ॥५॥ इति आदिजिनस्तवनम् ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
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राग रागण्यां स्तवन.
४७५ ॥॥राग केरवो॥ ॥ ॥ॐ॥ रसना सफल नई। में तो गुन गाये महाराज ॥रसना०॥(एआं कणी) ॥ परम आनंद प्रगट नयो मेरे । जब देखे जिनराज ॥ रसना ॥ १ ॥ अति नज्वल जश सुन जिनजीको । संच्यो सुकृत समाज॥ नाक नमन करतां प्रनुजीकुं । सारया आतम काज ॥ रसना० ॥२॥ पदपंकज प्रनुके फरसतही । दूर गई दुःख दाऊ । कहत दमाकल्याण सुपाठक । अब मोहि अविचल राज॥ रसना॥३॥ इति ॥ ॥
॥॥राग केदारो ॥ ॥ॐ॥गोमी गाइयै मन रंग ॥गो । एक ध्याने एक तानें ॥ कर केदा रो संग ॥ गोमी० ॥१॥ जात्रा कीजै अमृत पीजै । नीर वहेरी गंग ॥ रोग शोग कलेश नासे । आलस नावे अंग ॥गो० ॥ २ ॥पोढतां प्रनु नाम लीजै । आणी मन नजरंग ॥ अनय तेहने कंघ मांहे । कदिय न होवे चित्त नंग॥गो० ॥३॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥2॥ ॥ ॥ हारे हुं तो मोह्योरे लाल । जिनमुखमाने मटके ॥ टेक ॥ नयण रसाला ने वयण सुखाला । चित्तहुँ लीधुं चटके ॥ प्रनुजी केरीन क्ति करतां । करम तणी कस तटके ॥ हारे० ॥१॥ मुझ मन लोनी जमरतणी परें । जिनगुण कमलें अटके । रत्न चिंतामणि मुंकी राचे । क हो कोण काच तणे कटके ॥ हारे० ॥ २ ॥ ए जिण थुणतां क्रोधादिक सह । आस पासथी हटके ॥ केवलनाणी बह सुखदाणी । कुमति कुग तिने पटके ॥ हां रे० ॥ ३ ॥ए जिनने जे दिलमां न आणे । तेतो चूल्या नटके॥ नाव नक्तिशुं नेलग करतां । वंचित सुखमे सटके ॥ हारे० ॥४॥ मूरत संभव जिनेश्वर केरी । जोतां हश्९ हटके । नित्य लान कहे प्रनु ए . मोहोटो । गुण गाऊं हुं लटके ॥ हारे॥५॥
॥१॥ ॥॥राग काफी॥॥ ॥ * ॥ प्रनुजीसें लागो मारो नेह सखीरी । अब कैसे कर बूटेरी ॥ प्र० ॥ टेक ॥ धिग धिग जगमें वाको जीयो । आपणा प्रनुजीसें रूसेरी ॥
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४७६
रत्नसागर.
प्र० ॥ १ ॥ जो कोइ प्रभुजीसें नेह करेगो । शिव पुरनां सुख लेहसेरी ॥ प्र०॥२॥ सेवा राम प्रतू गांव रेशमकी | लगी प्रीति नहीं तूटेरी ॥ प्र० ॥ ३ ॥ ॥ * ॥ राग रामगिरी ॥
॥ ॥ * ॥ रे जीव जिन धर्म कीजीयें । धर्मनाचार प्रकार || दान शीय ल तप जावना । जगमां एतत सार ॥ रे जीव ॥ १ ॥ वरश दिवस पारणें । आदीश्वर अणगार || इकुरस दान वहरावीयो । श्री श्रेयांस कुमार || रे जीव० ॥ २ ॥ चंपा पोल नधामीयां । चालणीयें काढ्यो नीर ॥ शतीय सुभद्रा यश थयो । शीयल मेरु गंभीर ॥ रे जीव० ॥ ३ ॥ तप करी का या शोषवी । रस निरस आहार || वीरजिणंद वखाणीयों । धन ध नो अणगार || रे जीव० ॥ ४ ॥ नित्य भावना जावतो । धरतो निश्चल ध्यान ॥ रत आरसा जुवनमें । पाम्यो केवल ज्ञान ॥ रे जीव० ॥ ५ ॥ जैन धर्म सुरतरु समो । जेनी शीतल बांय ॥ समय सुंदर कहे सेवतां । मन वंबित फल पाय ॥ रेजी० ॥ ६ ॥
॥ ॐ ॥
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॥ * ॥ पुनः ॥
॥
॥ * ॥ सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ । वेरन निद्रा तुं कहां से आई ॥ सोइ ० ॥ ए प्रांकणी ॥ निद्रा कहे तो बाली रे मोली । बने बने मुनि जनकूं नाखुं रे ढोली ॥ सो० ॥ १ ॥ निद्रा कहे में तो जमकी दासी । एक हाथमें मुक्ती र दूसरे हाथमें फासी ॥ सो० ॥ २ ॥ समयसुंदर कहे सुनो जाइ बनीयां | आप डुबे सारी डुब गइ दुनियां ॥ सो० ॥ ३ ॥ इति ॥ * ॥ ॥ * श्री चंद्राप्रभु स्तवन ॥ ॥
॥ * ॥ चंद्रा प्रभुजीसें ध्यानरे । मोरी लागी लगनवा ॥ चं० ॥ लागील गनवा बोगी न छूटे। जबलग घटमें प्राणरे | मोरी० ॥ चं० ॥ १ ॥ दान शीय ल तप जावना जावो । जैन धर्म प्रतिपालरे || मो० ॥ चं० ॥ २ ॥ हाथ जो कर अरज करत है । वंदत शेठखुशालरे | मोरी ० ॥ ३ ॥ इति ॥ * ॥ ॥ * ॥ श्री बीरजिन स्तवन ० ॥ * ॥
॥
॥ ते मुक्ति पुर गये रहेरे । वारी सकल करम दल खय कर ते ॥ मु० ॥ ए टेक || अविनाशी अविकार हे । परमातम शिवधामरे । समाधान
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लावण्यां संग्रह. सरवंगे रूपी। मेरे मन वसे वसेरे॥वारी० ॥१॥शुच बुच अविरुप हे। वहे अनादि अनंतरे॥ वीर प्रनुके आगे गौतम । अमृत पद लहे लहेरे॥ वारी०३
॥ ॥राग काफी॥॥ ॥ ॥ खतरा दूर करनां दूर करनां । एक ध्यान प्रनूका धरनां ॥ खतरा दूर करनां ॥ दू०॥ टेक ॥ जबलग पांचो निर्मल करनां । तब लग जिन अनुसरनां ॥ खतरा० ॥१॥ क्रोध मान माया परिहरनां । सुमति गुप्ति चित्त धरनां ॥ खतरा० ॥२॥ संबर नाव सदा मन धरनां । आतम पुर गति हरनां ॥ खतरा०॥३॥धन कण कंचन कुं क्या करनां । आखर एक दिन मरनां ॥ खतरा०॥४॥ज्ञान नद्योत प्रनु पाए परनां । शिव सुंदरी सुख वरनां ॥ खतरा०॥५॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥॥ ॥ ॥ पानीमें मीन पियासीरे। सुन सुन आवत हांसीरे॥ टेक॥ सुखसागर सब ठगेर नरयो हे। तुं कां जयो नदासीरे ॥ पानी० ॥१॥ आत्मज्ञान बिन नर नटकत हे । क्या मथुरा क्या काशीरे ॥पा० ॥२॥ मान मुनि कहे ए गुरु साचो। सहजे मिले अविनाशीरे॥ पा० ॥३॥ इति ॥
॥ ॥ गरवा चाल॥॥ ॥ ॥धन धन रे दीवाली मारे आजुनीरे । मेंतो बबी निरखी जिनराजनीरे॥धन धनरे दीवाली मारे आजनीरे ॥टेक ॥ पहेरी अंगी अलोकिक जातनीरे । मांही बुट्टी दीसे नांत नांतनीरे॥धन० ॥१॥ मणी हीरा मुकुटमां जया बहुरे । कानें कुंलनी शोना शी कहुंरे॥ धन॥२॥ मुने किरपा करी ते ९ कहुं कशीरे । मारे वाहाले मुफ सामुं जोयुं हसीरे ॥ धन० ॥ ३ ॥ पुनु शांति जिणंद हृदये वस्यारे। थई सूरशशीनी चढती दशारे॥धन॥४॥ इति ॥ ॥
. ॥॥ पुनः॥ ॥ ॥॥धन धन आजुनो दिन रलियामणोरे । सूरज सोनानो नग्यो सोहामणोरे ॥धन ॥ टेक०॥ वाहणुं वातां प्रनुने चरणे नम्योरे । जिन राज ते माहरे मन गम्योरे ॥धन ॥१॥ नव ग्रह समा थया मारे आ
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रत्नसागर. जथीरे । वली दशा ते श्री जिनराजथीरे ॥धन ॥२॥ मुख जोतां ते मुख सरवे गयुंरे । वालानुं ध्यान सदा चित्तमां रां रे॥धन ॥३॥आपी सेवा ते शुध मनथीखरीरे । सूर शशी ऊपरें करुणा करीरे ॥धन ॥४॥
॥ॐ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ मारे आज आनंद वधामणां रे । हुं तो लेनेरे वाहलाजीना जा मणारे ॥मा० ॥ टेक ॥ मुनें दास पोतानो जाणीयोरे। आथमतां ठेकाणे
आणियोरे॥ मारे० ॥१॥ प्राप्यु दरशन जे दुर्लन देवनेंरे । मुने कीg तु रहेजे मारी सेवमें रे ॥ मारे० ॥२॥ एवो दीधो जरोसो साचा गुरूरे । प्र नु विना जगत् मिथ्या सहूरे ॥ मारे० ॥ ३ ॥ लहेर करीने महारा मन रम्यारे । सूर शशीने जिनराजजी गम्यारे ॥ मारे० ॥ ४॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ सवा लाख टकानी जाये एक घडी ॥ स० ॥ ए संसार जैमा सांनेलां। घडपणा या घोडे चमी ॥ मांगी तुंगीने बत्र धरायो । केनो कंदोरो केनी कडी ॥ सवा० ॥ १ ॥ साधो नाई जिनने संनारो । जन्म दशा जेम आवी चमी । कहे लोंबो नजतुं जगवंतनें। मोरुजवानी ए वात खरी ॥ सवा०॥२॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
.. ॥ ॥ अथ लावण्या संग्रह ॥ १ ॥ ___॥ अगडकुंअगमधु बाजे चौघडा । सवाइका साहेबका । बननं उ ननं अवाज होता। महेल बनाया गगनोंका ॥ कल्याण पारशनाथ नाम का। नित नित बाजै चौधमा। तीन लोकमें सच्चा साहेब । पार्श्वनाथ अव तार बमा ॥१॥ बणारशी नगरीमें तेरा जनमहे । माता वामाके नंदा॥ अश्वसेनके कुलमें शोने । जैसा सरदपूनम चंदा ॥ स्वर्गलोकमें हुवा आ नंदा। इंद्राणी मंगल गावे ॥ तेत्रीश कोम देवता मिनकर । नबव करनेवू आवे ॥२॥ कोइ आवतां कोइ गावतां । कोइ नाम लेता देवा ॥ चोस 6 इंदर अरज करंता । चंद्र सूरज करता सेवा ॥ केई सुरनर साहेबके आगे । अरज करंता खमा खमा ॥ जिनके सरूपको पारन पावे । जिन का गुण हे सबसे बमा ॥३॥ दूर देशसें आया जोगी । बमे जोर तपश्या
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लावणी संग्रह. करता ॥ नीचें लगाता ज्वाला जोगी। बझे बमे मोकें खाता ॥ बार बरस की कमर प्रनुकी । डोटे पनमें बहोत कला ॥ बरोबरीके लीये सोबती । तपशीकू देखन्न चला ॥ ४॥ ज्ञान देखके बोले जोगीसें । ऐसी तपस्या क्युं करता॥ ने जोगी तेरे बमेलकमेमें । बमा नाग इक अध जलता ॥ पारस नाथ जोगीशुं कहेता। तोबी जोगी नही सुनता॥ लकडे दीये फेंक जंग लमें । लोक तमासा देखता॥५॥ क्या कीया बेजोगी तुमने । वमा नाग को जला दीया ॥ दिया सार नवकार नागईं। धरणीधर पदवीपायावी नमेदसें आया साहेब। संवत्सरीका दान दीया ॥ मात पिताकी आज्ञा ले कर। महाराजनें योग लीया ॥६॥राज जोमकै चले जंगलमें । जुगतीसें काउसग्ग कीया। बडे धीर गंभीर प्रजुने । तीन लोकमें नाम किया । नष्ण कालकी बड़ी धूपमें । नीरंजन निरंकार खडा । कमगसुरने कीया कडाका । ननमंडल बादल चा ॥७॥ नहि दिनको कमठासुरने । पीठ : ला दावा जगवाया ॥ मेघमालिकी सेना लेकर । जलकुं जलदी बुलवाया। बडा कीया घनघोर जोरसें । पवन चलाया मतवाला ॥ कडड कडड कर हुआ कमाका । चमक बीजका अजुवाला ॥ ८॥ मूशल धारा मेघ बरस ता। गगन गाजता चौताला। सात खूमकी बमी जमीमें । प्रनु खमा हे मतवाला ॥ नाक बरोबर आया पानी। नाथ निरंजन धीर बमा । पराजय नहि होय जिनूंका। ऐसा प्रनुका ध्यान चढा ॥ ९ ॥ संकटसें सिंहासन मोल्यो। हूवा घंटका अवाजा । अवधि झानसें इंद्रे देख्या । धान धान धरणी राजा । धरणीधर जलदीसें आया । पदमावतीकू संग लीया । पदमावतीने लीये शीशपरः । शेषनागनें उत्र कीया ॥ १० ॥ कोम नपाय कीये कमठनें । कुछ इलाज नही चलता । तरने वाला सा हेब ननकू । उलने वाला क्या करता । जीते श्री जिनराज हारके । कमठ हाथ दो जोम खमा । धरणीधर साहेबके आगे । अरजी करता खमा खमा ॥ ११॥ केवल पाय शिव पुरकू पहोंचे । पार्श्वनाथ शुन मत वाला। लगी ज्योतमें ज्योत दीपकी । तपे तेजका अजुवाला। वीशनगर में पार्श्वनाथका । देवल बनाया तेताला । बमे देवलमें इंदर सोहै । घंट
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रत्नसागर.
वाजता चौताला ॥ १२ ॥ बी जुगतमें सिंघासन कर । कोट बनाया देव का । जगो जगोपर शिखर चढाया । दरवाजा शुभ केवलका । नामंडल के आगे सोनता । मूल गंजारा आरसका । पीछें पचीश देरीयां सोजित | सिरे काम सिंघासनका ॥ १३ ॥ मूलनायकके ऊपर सोहे । सहस फणा प्रनु पारशका | चौमुखकी चतुराई बनी हे । बहु काम है सारसका । अ ढारसे पेंस सवाई | मुहूर्त्त फागुणमाश जला । सुदि त्रीजकं तखतें बेठे । जगो जगोपर नाम चला ॥ १४ ॥ देश देशके संघ बहु मिलकर । तेरे दर्शन कुं प्राया । जगतगुरू जिनराज जगतमें। बड़ी तेरी अक्कल माया । धर्म चंद जोगता सवाइने । बमा सामी वात्सल्य कीया । सकल संघकी आज्ञा लेकर । बडा शिखर नीशान दीया ॥ १५ ॥ करमचंद देवचं दने । खेम चंदने खूब कीया । पारसनाथकुं तखत वेठाके । जंगो जगो पर नाम कीया । कीर्त्ति विजय गुरु राजकुं प्रणमुं । पायगुरुका राज बा । गुलाबचंद साहेब के प्रागें । जिनशासनका काम बना ॥ १६ ॥ तेजा गा वत चँग रंगसें । ग्यान ध्यानसें खमा खमा ॥ हाथ जोड कर अरजी कर ता। पारसनाथजी तुंही बना ॥ बना काम तेरे हे साहेब । मुखसें नहिं कहणें आता ॥ शिव रमणीकुं वरी हे जिनजी । विजनकूं सुखके दाता ॥ १७ ॥ ॥ * ॥ अथ नेमनाथजीकी लावणी ॥ * ॥
॥ * ॥ नेमनाथ मोरी अरज सुनीजै । में हुं दाशी चरनोकी । तोरन फेर मत जा । तुमकुं सोगन यादवकी ॥ नेम० ॥ १ ॥ जान जेइ तुम ब्याहन आए । लारे सेना माधवकी ॥ बप्पन को यादव मिल आये। ए अवसर नहीं फिरनेंकी ॥ नेम० ॥ २ ॥ रथ फेरी गिरिवरकुं सि धाये। हमकुं बांकी नव जवकी । मेरे सामरे श्याम सजूने । में इहां नहीं अब रेनेंकी ॥ नेम० ॥ ३ ॥ सुए जिनजी में तोकुं कन हुँ । देखें सोना गिरिवरकी । मात पिता बंधव सब बंडी । जाशुं संगें यादवकी ॥ नेम० ॥ ॥ ४ ॥ हाथ जोरके वीनवे राजुल । बात सुनो पियु मुऊ घरकी । हमकुं ais चले निरधारी । अब हे प्रीतम सरणेकी ॥ नेम० ॥ ५ ॥ नेम कहे तुम सुनो हो राजुल । विषया रस है विष सरिखी । ये संसार असार निरंतर ।
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जिनदासकृत लावणी संग्रह
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कर करनी ए तरनेंकी ॥ नेम० ॥ ६ ॥ पियुजी पासें संयम लीनो । जि नसें कारज शरकी ॥ तपश्या करीनें उत्तम कीनी । ए जव पार कतरनें की नेम० ॥ ७ ॥ पीयुजी पहेलां राजुल नारी । पोहती सेज परमपदकी ॥ केवल पामी नेम सिधाए । येही शोनाहे जिनकी ॥ नेम० ॥ ८ ॥ चतुर कुशल ये कही लावनी । जिनसें काया ऊधरनेकी । अरिहंत ध्यान धरे दिलमां है । फिर फेरा नहिं फिरनेंकी || नेम० ॥ ९ ॥
॥ *॥
॥ * ॥ जिनदाशजी कृत १० घन लावण्यां ॥ ॥
* ॥ रे तुम जपो मंत्र नवकार । सफल करले अपनो ध्यान तुम मनमें धरो नर नार । खाण दुःखकी ए हे संसार न्याल अभी जिनदाश । रखो प्रजु मुऊ चरणोंके पाश ॥ १ ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ सरक जा कुमति नार काली । तेरी संगतसें गई जाली ॥ सोवत समताकी में टाली । श्रातमा तपमें नहिं घाली ॥ अनंत जब बीत गया खाली | वेदना निगोदकी जाली ॥ अमरपद जिनदाश मांगे । सदा पद प्रभुजीके लागे ॥ २ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
अवतार | करो प्रभु
।
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॥ * ॥ शीश नित ननुं नाभिनंदन | चरण पर चढे केशर चंदन । करत सब इंद्रादिक बंदन । कटत हे कर्मोंका फंदन । साध्यो तें शिवपुर को साधन । सर्व जीवनकुं सुख कंदन | जिनंद गुण जिनदाश गावे । सीस चरणोंसें नांवे ॥ ३ ॥
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11 11
॥ * ॥ बोलत हैया मेरा हसकर । चढावुं चंदन चूवा घसकर । पैठा में धर्मो में धसकर । पाप दल दूर गया खसकर । चेतन हुवा खका कमर कसकर । हटाया कर्मोका लसकर । श्री जिनराज जहाज खासा । शर जिनदाश लीया बासा ॥ ४ ॥
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॥ * ॥
॥ * ॥ समऊ मन मेरा मतवाला । तुझें नहिं कोइ हटकणवाला । वस्या तेरे हइये कुगुरु काला । दिया तें सुरगतिकुं ताला । फेरतो ममता की माला । वालतो भगवंत पर जाला । दयासें दे दिया ताजा । देखो जिनदासका चाला ॥ ५ ॥
॥ *॥
॥ ॥
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.... रत्नसागर... ॥ ॥ कीया में गणधर प्रेमपती । मुझे वरदायक हे सरसती । करी निर्मल निग्रंथ मती । पूठ पर खमे जागता जती। मुझे बलवंत नई सो ल सती । मिटी मेरी उर्गतकी सब गती । ऐसा घन जिनदाश गावे । अ चल पद भक्तिसें पावे ॥६॥ ॥ ॥ ॥ (8॥
॥ ॥ विकट घट पुरगतका जारी । नीर ज्यां जरती कुमति नारी। बरी नन नैनोंकी महारी । मुब्या केइ कामी संसारी । इनोंकी हो रही खुआरी । जीत्या कोइ सत्य धरमधारी । प्रनु तुम परमारथ पाया। शरण अब जिनदाश आया ॥७॥॥ ॥
॥ ॥ चेत नर निगोदका बासी । कराई जगमें तें हांसी । कुमतिकी पमी गले फांसी । सुमतिसुं रखी हे कदासी । कुमतिकी बसी सेज खासी। मान रह्यो ममताकुं मासी । हियो खोल अरिहंतकों परखो । करो जिनदा श आप सरखो॥८॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अफल नर तेरी जिंदगानी । शीख सुत्रोंकी नहिं मानी। कीया नहिं गुरु निग्रंथ ग्यानी । कानसें लगी कुमति रानी । जगतमें नतर गया पानी । गति तेरी पुरगतिकी ठगनी । सेवक तोरा जिनदाश बाजे। सुधारोगे तुमही काजें ॥९॥ॐ॥
॥ ॥ सफल नर तेरी जिंदगानी । शीख सूत्रोंकी तें मानी। कि या निज गुरु निग्रंथग्यानी । कानसें लगी सुमति रानी। जगतमें अधिक चढ्यो पानी। गति तेरी सुरगतिकी गनी। सेवक तेरा जिनदाश बाजे । सुधारोगे तुमहि काजें १०॥ॐ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ पुनः॥॥ ॥ ॥ चल चेतन अब न कर अपनें। जिन मंदिर जइये। कोसी की जूंमी ना कहीये रे । कीसीकी जृमी ना कहीयें ॥ चल ॥ (ए आंक पी)। चरन जिनवरजी का नेटो । चर० ॥ नवनव संचित पाप करम स ब। तन मनका मेटो । सुकृत कीजें । महाराज । सुकृत०॥ जिनवरका गु ण मज लीजै। समकित अमृत रस पीजै । लान जिनन्नतिको लहीयेरे ॥ लान०॥ चल०॥१॥ करो मत मुखसें वडाई ॥ करो० ॥तजतामस तन म
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जिनदासकृत लावणी संग्रह -
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नकी सुमतिसें घर रेनां नाई । रीतसें बोलो। मेरी जान। रीत० । प्रतम स मतामें तोलो । मत नरम पारका खोलो। मौन कर तन मनसे रहियें रे ॥ मौन | चल० ॥ २ ॥ जोबन दिन चार तणो संगी रे || जोबन० ॥ श्रं त समय चेतन ना चाले । काया पकी नंगी । प्रीत सब तूटी। मेरी जा न ॥ प्रीत० ॥ खाकी खरची खूटी । चेतनसें काया रूढी । सुख दुःख आप किया सहियें रे । सुख० ॥ चल० || ३ || जगतसें रहता कदा सी रे । जग । परख्या में जिनराज हरो । मेरी दुरगतकी फासी । तजो सब धंदा | मेरी जान । तजो० । जिनवर मुख पूनम चंदा । जिनदास तुमा रा बंदा । मेरे एक जिन दर्शन चहियें रे ॥ मेरे ० ॥ चल० ॥ ४ ॥ १ ॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ तुम जो जिनेशर देव । मुगति पढ़ पाईरे ॥ सुगति० ॥ ब अचल खंमित ज्योत । सदा सुखदाई रे ( ए ग्रांकणी ) में रुल्यो चोराशी मांहे मूल्य में नरम | मूल्यो ० ॥ महारे नदय अनंता दुःख | बांध्यां जब कर्म ॥ में कदियक हुन रंक । फिरयो तजि शरम | फिरयो० ॥ श्ररु कदियक राजा नयो । रथको गरम । जब गरब प्राण कर बोल्यो । पारका मर्म । पार० । पण निर्मल जुगमें जैन । कीयो नहीं धर्म । अब मनख जनममें चेत, घमी सुन आईरे । घमी० ॥ ० ॥ १ ॥ में सुर नरका सुख वार | अनंती पाया ॥ अनं० ॥ महारे शिव समताका सुःख । हाथ नहिं प्राया में कुगुरु ने कुदेव । जला कर ध्याया ॥ जला० ॥ में नलको अनादि अग्यान । विषयभोग जाया । में पंड्यो लोनके फंद | जोमतो माया ॥ जोन० ॥ पण लग्यो अंत जब प्राय । कालने खाया । अब परहर सब परमाद | धर्म कर जाईरे ॥ धर्म० अ० ॥ २ ॥ अब दुर्लन अवसर ल ही । तुं सुकृत कररे । तुं सुकृ० ॥ अव दान शीयल तप जाव। हीयामें धररे । तुं करमकी माला काट । पाप परिहररे ॥ पाप अब वार वार क हुं तोहे । जगतसें तररे । तुं निर्मल नयणें देख। नरकसुं कररे ॥ नर० ॥ तुं शीख सुगुरुकी मान । अग्यानी नररे । अब पर त्रीया कर जान बेन नें माइरे || बेन० ० || ३ || अब जिनवर मुऊ मन जायो सदा गुन गा
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रत्नसागर.
॥ सदा० ॥ अब इतनी किरपा करो । नरक नहीं जानं ॥ अब जव जव मांहीं देव | जिनेसरपानं जि० ॥ यें मन वच काया करी । चरण चित्त जानं । ए दया धरम हितकार । सदा में चानं ॥ सदा० ॥ ए चौरा शीके मांहे । फेर नहीं मानं । युं अरज करे जिनदाश । कीरत ए गाईरे ॥ कीरत • प्रब० ॥ ४ ॥ * ॥
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॥ * ॥ सुमति कुमति लावणी ॥ # ॥
॥ ॥ हां रे तुं कुमति कलेस नार । लगी क्युं केमे || लगी० ॥ च ल सरक खमी रहे दूर । तुजे कुण बेने (ए प्रकणी) हां रे तुं सुमतिको नरमायो । मुजे क्युं बोमी ॥ मुजे० ॥ मेरी सदा शाश्वती प्रीत | बिनकमें तोमी ॥ तु विन सुनी मेरी सेज । कहुं करजोमी ॥ कहुं० ॥ उठ चलो हमारे संग । सुखें रहो पहोगी । युं झुर झूर कुमति प्रांसु । आंखसें रेमे ।
ख० ॥ चल० ॥ १ ॥ हां रे तेरी नरक निगोदकी सेज । सेती में रू ठ्यो सेति ॥ पकड्यो साचो जिनराज । संग तेरो बुड्यो । तेरी मूरख मानें बात । हैयाको फूट्यो । हैया ॥ में सहेज हुवो हुँ दूर तार तेरो तूट्यो । तुं कर दूरसें बात । आाव मत नेमे ॥ प्रा० ॥ चल० ॥ २ ॥ मेरी अनंतकालकी प्रीत । पलक नहींपाली | पलक० ॥ सुमतिके लागो संग मुजे क्यों टाली । तुं सुमतिको शिरदार । सुनावे गाली ॥ सु० ॥ तेरी ह म दोनुं हे नार | गोरी र काली । तुं हमकूं ठेले दूर । सुमतिकुं तेरे ॥ सुम० ॥ चल० ॥ ३ ॥ अब कुमतिको ललचायो । रती नहीं रुगियो । रती० ॥ सुन कर सूत्रकी शीख । साच होय लगियो । चेतन कुमतिके सेज । दूरसूं नगियो | दूर० ॥ जिनराज बचनको ग्यान । हैयेमें जगीयो । जिन दाश कुमति तुं बात । खोटी मत खेमे ॥ खो० ॥ चल० ॥ ४ ॥ ॥ ॥
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॥ * ॥ तुम तजो जगतका ख्याल । इसका गानां ॥ इस० ॥ तेरी ल्प ऊमर खुट जाय । नरक नठ जानां । तें दिना चार जुग बीच। लिया हे वासा ॥ लिया• ॥ तेरे शिरपर बेठा काल । करेहे हासा । में बोलूं सा 'ची बात । झूठ नही मासा ॥ ० ॥ तूं सूता हे कुण निंद । किसी कर
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श्रीनेमि० मगसीपार्श्वजिन लावणी. ४८५ आसा ॥ अब सेव देव जिनराज । खलकमें खासा ॥ खल० ॥ तेरा जो बन पतंगका रंग । कुछ सब आसा. ॥ अब हीये धरो मेरी सीख । समजरे दिवाना ॥ सम०॥ तु०॥१॥ अब बुरी नली सब बात । मोन कर रीजें मोन ॥ ए मुख मीग संसार । नेद नही दीजें ॥ कर वीतराग विशवास । हिये धर लीजें ॥हिये॥ पण नीच नारका संग । माहे मत नीजें । अ ब सात विसनको संग । प्रीत मत कीजे ॥ प्रीत०॥ तोहे घरगति दे पहों चाय । तेरो तन गजे ॥तुं सुख सुखका सिरदार । रंक नही राना ॥ रंक० तुम० ॥२॥तुं बिसर गया जुग बीच । नाम जिनवरका ॥ नाम०॥ पच रह्या कुटुंबके काज । किया फंद घरका । तें दया धरम बिन खोया जनम सब नरका ॥ जनम०॥ तें पल्ले बांध्या पाप । कसाई सरखा ॥ अब लि या नही तें लान । बखत पर करका ॥ वखत० ॥ तेरीवीति बात सब जाय । जनम ज्युं खरका ॥ अब सुणो सीख सूतरकी । सुलटरेशानां ॥ सुल० ॥ तुम०॥३॥ तेरी चरण सेज पर पोट्या । आनंद दिल आया। आनं०॥ मेरी नगी चूख सब प्यास । सुधारस पाया । मेरे सिरपर तुम सिरदार । जिनेसर राया ॥ जिने ॥ में चावं चरनकी सेव । सफल कर काया। अब द्यो दोलत दरशनकी । मेरे एहि माया ॥ मेरे०॥ युं अरज करे जिनदाश अलप गुण गाया । अब बुरा कुगुरु उपदेश । सुणो मत जाया॥धरो०॥ तुम०॥७॥ ॥ ॥ ॥४॥ .... ॥ ॥ श्रीनोमिनाथ लावणी॥
॥ॐ॥दे गया दगा दिलदार। सुनो मेरी माई। सु० । लग रही नेम दरशनकी । सरस असनाई ( ए आंकणी)। अब अजब अलीजो नेम । मे रे शिर गजे ॥ मेरे० ॥ जादवकी देखी जान । जगत सब लाजै। एसो नेम नवल एकवींद। अनोखो गजे। अनो० । सुर नर सब गावे गीत। गगन में गाजे । अब दोम दोम सब उनीयां । देखन आई। दे। ल० दे०॥१॥ अब चढ्या नेम तोरनकुं आनंद दिल धर कर । आनं० । सज आये सुरंगी साज । कीलोला कर कर। में पायो परमानंद हरख हियो जर कर । हर ख० ॥ ले गयो पति नेमनाथ । मेरो चित्त हर कर ॥ सखि सुख संपत आं
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रत्नसागर. गनमें । आज चल आई॥० ल०॥०॥२॥अब इण अवसरमें सुर त । श्यामकी लागी ॥ श्या०॥ पशुअनकी सुनी पोकार । दया दिल जागी । जिन लही परवतकी वाट । तृष्णाकुं त्यागी ॥ तृष्णा०॥ शिवर मणीके शिरबिंद । बन्यो वैरागी । अब महेल चढी राजलकुं। खमी बट काई ॥ खमी०॥ल० दे०॥३॥ अब रेतीके सरवरमें । टिके नही पानी। टिके० जिन गुण गाया नहीं जाय । अलप जिंदगानी । अब कठण जीव पुरगतिको । बन्यो मै दानी ॥ब० ॥ जिनदाश करो नव पार। दया दिल आनी। अब शरण सतीके बेठालावनी गाई । ला ल०॥दे०॥४॥
॥ ॥ श्री मगशी पार्श्वनाथकी लावणी॥ ॥ ॥ मुलक बिच मगशी पारशका । बाज रह्या. मंका। मुगतिगढ जीत लीया बंकारे। मुग° मुलक० ( ए आंकणी) करम दल बलकू. दय कीयारे कर। मुगति महेलमें केलि करे । अनुनव अमृत पीया। शाशता जीया। महाराज । शा० । कल्याणक कारज कीया । अमरा पुर पदवी लीया। कमठ जशका कर गये फंका रे क० । मुल० ॥१॥प्रनु पारश नजले भाईरे । प्रनु । नाव जरमका मेट जोत । तेरी जगमें सवाई। टेककू टालो । महाराज ॥ टेक० ॥ चंचल चित्तसे मत वालो। गुमान गरवकुंगालो। गरवसें धूल मली लंका रे ॥ गर० ॥ मुलक० ॥ ॥ २ ॥ मेरे शुग्न लाग्य नदय आया रे ॥ मेरे०॥ण पंचम आरामां हे प्रनु । मगशी पारश पाया। पापसें मरता। महाराज ॥ पाप०॥ नवि जीव ध्यान दिल धरता । श्रावक नित समरण करता । मरण पुःख मिट्यां मेरे अंगका रे॥ मरण ॥ मुलक० ॥ ३ ॥ महीमा मगशीकी अब जानी रे मही० ॥ लही नघम मेरी आंख बिलोया । परब विना पानी । में जि नवर जाच्या। महाराज ॥ में जिन ॥ जिनदास जिनंदसें राच्या । मगशी पारश हे साचा । करो मत मनमें कोइ शंका रे ॥ करो मुलक० ॥ ४ ॥
॥ केशरीयानाथ लावणी॥ ॥ ॥ * ॥ सुणजो बातां राव सदा शिव । मत चढ जानां धूलेवा ॥ गढपति उनका बमा अटंका । मत मौ तुम उन देवा । (ए आंकणी. )
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वैराग्य लावणी संग्रह. सकतावत चंमावत बोले । हमही नोकर ननहींका । हीपति वाकू हा थ जोमे । तीन जुवन शिर हे टीका ॥ सु० ॥ १ ॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल सबेही । सुर नर वांकू ध्यावत हे । इंद्र चंद्र मुनि दर्शन आवे । मन की मोजां पावत हे ॥ सु० ॥ २ ॥ गया राज ननहींसें आवै । निधनिया कू धन देवे । बांऊ खिलावे सुंदर लमका । सदा सुखी जेप्रनु सेवे ॥ सु० ॥३॥तारे जिहाज समुद्रयें जइनें । रोग निवारे नव नवका । नूप नुजं गम हरि करी नदीयां । चोरन बंधन अरि दवका ॥ सु० ॥ ४ ॥ धौ धों धौ धौ धौंसा बाजे । दशो दिशामें हे मंका। नान तांतीया नहीं जलाइ। मत बतलावो गढ बंका ॥ सु० ॥ ५ ॥ रानाजीके कमरावकी । मानत नांहीं ये बातां । थारा किया थेहीज पावो । में नहीं आई थां साथां ॥ सु० ॥ ६ ॥ मूंब मरोडे चढे अनिमानें । जहेर नरया हे निजरूंमे । रुपनदेव है साहेब सच्चा । देख तमासा फजरुंमें ॥ सु० ॥ ७ ॥ मयाराम सुत नणे मूलचंद । बड़े सितांबर तुम देवा । फोज विखरगइ घर घर घोडा । ल जाराखो तुम देवा सु०॥८॥ ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ वैराग्य लावणी लिख्यते॥॥ ॥ ॥ जब तन दोस्ती है इह मस्ती । काया मंगलकी । सासो स्वा स समरलै साहिब । आन घटै दिलकी ॥ १ ॥ ( खबर नहीं है जुगमें प लकी। सुकृत करणा हो सोकरलै । कुण जाणे कलकी ) ( ख ) तारा मंगल रवि चंद्रमा । सबही चलाचलकी । दिवस च्यारका चमत्कार है । वीजलियां जलकी ॥ ( ख० ) ॥ २॥ यो जग है सुपर्ने की माया। नेस बूंद जलकी । विनस जावतां बेरन लागै। नियां जाय खलकी॥ (ख) ॥ ३ ॥ हंसाया देहीमें जब लग । खुसीहै मङ्गल की। हंसा गंम चल्या जब देही। मिटिया जंगलकी ॥(ख०)॥४॥ मन मावत तन चंचल हस्ती मस्ती है बलकी । सदगुरु अंकुश दीया आनकै । वातां नई सलकी॥ (ख०) ॥५॥ मात पिता सुत बंधव नाई। सब जन मुतलबकी । काया माया स बेकारमी । ए तेरै कब की ॥ ( ख ) ॥ ६ ॥ठ कपट कर माया जो मी । कर वातां जलकी । बोळकी गांठ बंधी शिर तेरै । कैसें होय हलकी
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रत्नसागर.
(ख० ) ॥ ७ ॥ देवधरम साहिबको समरण । ऐ वातां थलकी। राग द्वेष ऊपजै नही जिनकुं । बीनती खैमलकी ॥ ( ख ० ) ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ पुनः ॥ ॥
॥ ॐ ॥ अरज हमारी सुखो दीनपति । कौन जांति तिरणां । हम डु खी फिरत संसार चतुर गति । सो तुमसें निरना ॥ ( ० ) ॥ १ ॥ घोरा घोर नरक कै जीतर । नाना दुख जरना। मारन तारून बेदन जेदन | और देह धरनां ॥ ( अ० ) ॥ २ ॥ कबहुक तिरयंच योनि पायकै । गलै पास परना। कुधा तृषा अरु शीत उष्णता | मार मारकरना ॥ ( ० ) ॥ ३ ॥ देव विजूति पायकै सुंदर देख देख करना । जब माला मुर जावण लागी । सोच किये मरना ॥ ( ० ) ॥ ४ ॥ मनुषा जनम पायकै नटक्यो। कहुं नांही थिरनां । साहिब तुम सरणागत राखो । जनम मरण हरनां ॥ ( अ० ) ॥ ५ ॥ इति लावणी सं० ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ मुक्ति जाणेंकी गिगरी ॥ ॥
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॥ ॐ ॥ ( हा ) तीर्थंकर महावीरनें । कौशल गणधर साज । कानून प्ररूप्या है दया । सब जीवन हित काज ॥ १ ॥ दान शील तप जावना | अशल खुलासा सार । जिलपुरषां धारण किया । पोहचा मुगति मजार ॥ २ ॥ चवदै सहस साधु हुवा | आर्या बत्तीस हजार । लाखां श्रावक श्रा वका । पाया जव जल पार ॥ ३ ॥ ( चाल हीर रंका ख्यालकी ) ॥ ॥ मेरी अदालत प्रभुजी कीजिये। जिन सासन नायक मुगती जाणेंकी मिगरी दीजिये ( जि० टेर) खुद चेतन सुदई बना है। आतुं करम मुद्राला । दावा र स्ता मुगति मारगका । धोखा देजाय टालाजी (जिं०) ॥ १ ॥ तप कागद इष्टांम । लिया । तलवाणां खिमा बिचारी । सिझाय ध्यान मजमुंन बनाकर। अर जीन गुजारी जी (जि० ) ॥ २ ॥ में जाता था मुगति मारगमें । क रमूनें घेरा। धोखा देकर राह जुलाया। छंट लिया सब मेराजी (जि०) ॥ ३ ॥ वोहत खराब किया करमुंनें । चौरासीकै मांही। दुक्ख अनंता पा या मैंनें। अंत पार कबु नांही जी ( जि० ) ॥ ४ ॥ सच्चे मिले वकील कानूनी | पंच महाव्रत धारी । सूत्र देख मसोदा कीना । तबमें अरजी मा
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मुक्ती जाणेंकी अनुनवपद मिगरी. . ४८९ री जी (जि०)॥५॥पांचे सुमती तीन गुप्तीए। आ गवा बुलावो । शील असेसर वमा चौधरी । नसकुं पूल मंगावोजी (जि०)॥६॥अरजी गुजरी चेतन तेरी । हुवा सफीना जारी । हाजर आवो जुबाब लिखा वो। लावो साबूती सारीजी (जि०) ॥७॥ आढुं मुदाले हाजर आए। मोह मुगत्यार बुलाये । च्यार कषायरु आठे मदकुं । साथ गवाई में लाए जी (जि०)॥८॥ (टेर मुदालेकी)॥ जिनसासन नायक । झूठा दा वा है चेतनजीवका । (जि०) हमनें नहीं जखाया इसकूँ । ए हमरै घर आया। करजा लेकर हमसें खाया। ऐसा फरेब मचायाजी (जि०)॥९॥ बिषयनोग में रमिया चेतन । वाटा नफा न जाना। करजदार जब लारै लागा। तव लागा पिस्तानाजी (जि० झू०.)॥ १०॥ हाजर खमे गवाह हमारै । पूठियै हालजु सारा । बिना लियां करजा चेतनसें । कैसे करें किनाराजी (जि० झू०)॥११॥ (टेर ) ॥ चेतन कहै सताबी मांही । सुन शाशन सिरदार। इमानदार है गवा हमारै। जांणें सब संसार जी। (जि० मे०)॥१२॥ में चेतन अनाथ प्रनूजी। करम फरेबी नारी । जीव अनंते राह चलतकुं। लूंट चौरासीमें मारा जी (जि०)॥ १३ ॥ बमे २ पंमित इणलुटे। ऐसा दम बतलाया । धरम कहा नर पाप कराया। ऐसा करज चढायाजी (जि० मे०) हिंसा मांहीं धरम वताया । तपस्या सेती मिगाया। इंद्रिय सुखमें मगन करीनें। झूठा जाल फैलाया जी (जि. मे०)॥१५॥ ऐसा करो इनसाफ प्रचूजी। अपील होन न पावे । हक्क रसी चेतनकी होवै। जनम मरण मिट जावैजी (जि०)। ग्यांन दर्शन करी मुनसफी । दोनुकुं समझाया। चेतनकी मिगरी करदीनी । करमुंका करज वताया जी (जि०)॥ १७ ॥ असल करज जोथा कर्मोंका । चेत नसेती दिलाया। सुध संजम जद करी जमानत । आगैका सूध मिटाया जी (जि.)॥१८॥आश्रव गेम संबरकों धारो । तपस्यासें चितलावो। जलदी करज अदाकर चेतन । सीधा मुगतिकों जावो जी (जि० मे० ) ॥ १९॥ सुध संजम जदकरी जमानत । चेतन डिगरी पाई । फागुणमुद दशमी दिन मंगल । सन् नगणीस अगई जी (जि० मे०)॥२०॥ इति॥
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४९०
रत्नसागर.
॥ ॥ अथ अनुभव पद मिगरी जि० ॥ ॐ ॥
॥ ॥ साहब अदालत पर बैठ । श्रीपारश प्रवीण चैन उत्तम चला ए है । शील है सिरदार और दान है दरोगा जाकै दयारूपी वारण सत्त श्रावण पर आए है । ग्यान है चपरासी ताको लग्यो है मोहोस ताकी मालजामनी में श्री जिनवरजी लिखाये है। रोसकी रसुम और कमीसन लगे. कर्मन मोहको म्याद इस तार लटकाए है ॥ १ ॥ बैठके लिखेगा जब जी की जुबानबंदी तबके कुछ स्वाल जबाब सत्तगुरने बताए है। बोम का रसाजी पायो पकमयो अरिहंतजीको अनुभवपद पायवैकी निगरी करा य लाए है। अब तो दरकास मैनें करी है तुमारे पास साहब जिनराज अरज मेरी सुजीजीयै ॥ अष्टकर्म आ जाम करत है कारसाजी साह ब बुलाय इसके पिसे मान कीजीये ॥ २ ॥ में तो हूँ गरीब मेरी करेगा नुकीली कोन | पारश प्रवीण मेरी मिसल प्राज कीजीये । हारुं तो हाजर हजूर हीमें रह्यां करूँ । जीतूं तो लगाय जुगल चरनमें लीजीयै । अवतो फरीयाद नाथ करी है तुमारेपास मेरी दाद दीजिये तो रावरी बाई है । मुनसबकी बात और मामलत अदालतकी अबतोमें फिलमान अरजी लगाई है। झूठ मूठ कारसाजी करत है पांच तीन साचो मत जैन जा की अधिकाई है । मेरे ही पांच लोक मोहीकों झूठावत है ॥ जातेमें ग्वाही श्री जिनराजकी लिखाई है । बोन कारसाजी पायो पकड्यो रिहंत जीको अनुभव पद पायवैकी मिगरी कराय लाए है ॥ ॥ इति अनुवपद पाकी मिगरी संपूर्णम् ॥ ॐ ॥
॥ * ॥
॥ ॥
॥ * ॥ उपदेशरूप लावणी ॥ * ॥
॥ * ॥ सुकृत की बात तेरे हाथ । रतीनां रही रे ॥ रतीनां० ॥ पुदग में मान्यो सुख । कलपना कहीरे ॥ सुकृत• ॥ जुग मांहे जैन निज सार | संघातें प्रावे ॥ संघा० ॥ इसकुं तज कर कयुं बेठो | विषय गुण गावे । अमृतकुं लगो ढोल । विसन विषखावे ॥ विसन० ॥ मुग तिको मारग मेट | नवटमें जावे । थारी तु जिंदगानी मांहे । विकल बुद्धि नईरे ॥ विकल० ॥ पुदगल० ॥ १ ॥ थारे धन दोलत जंकार जरया हे
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जिनदासकृत लावण्यां संग्रह.
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मोती ॥ जरया० ॥ शत्रु सन सब बने । जगत होय गोती । कोई म सले तेल फुलेल । धोवे कोइ धोती ॥ धोवे० ॥ सन्मुख उठ आवे अब खा । तेरो मुख जोती । ऐसी संपत एक बिनमांहे । सरब कय नईरे ॥ सरव० ॥ पुदगल ० ॥ २ ॥ तें खटरस खाया खूब खजाना खोया ॥ ख ० ॥ निशिदिन सुखनर सुंदरिकी । सेजमें सोया । सजिया सोल सणगार । नारि सें मोद्या ॥ नार० ॥ तें अंतर घटका मेल । रती नहीं धोया । या नरक निगोदकी वाट । पकम कर लही रे || पकरु० ॥ पुदग० ॥ ३ ॥ मन मा तो आठ मदमांहे । गरवसें बोले ॥ गर० ॥ मैं सुख संपतको नाथ । मेरी कुण तोले । दुर्बल करता पोकार । पलक नहीं खोले ॥ प• ॥ आकर होय रह्या हजूर । चमर शिर ढोलै । अब अवसर आयो हाथ । चेत तु सहीरे ॥ चेत० ॥ पुदगल ० ॥ ४ ॥ कायासें कीयो लाम । बनाई चंगी ॥ बना० ॥ पल भर पर वारयो पुन्य तणो तिहां जंगी । पककी पर जव की वाट होय कुण संगी || होय ० पकी नंगी । जिनदास कहे करमोसुं गल में मान्यो० ॥ ५ ॥ ॥ १० ॥
।
॥
।
तेरो हंस गयो आकाश | काया
नहीं रे || जोर० ॥ पुद
जोर तेरो 11
11
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ * ॥ तुम तजकर राजुलनार तज्या सब वररे ॥ तज्या० ॥ में नर्मु नेमके पाय । गया गिरिवररे । में प्रीत पीयाकी कर कर पले लागी ॥ पल्ले० ॥ तुम त्याग चले बन खँ । हुवे वैरागी । अब राजुल सरखी सती । जावसें त्यागी ॥ जाव० ॥ थारे अंतर घटमें ज्योत । ग्यानकी जागी । युं रोती राजुल नार नयण नर नररे ॥ नय० ॥ में नमुं ॥ १ ॥ में अरज करूं कर जोन । करो मन परसन ॥ करो || मेरे शिरपर तुम शिरदार । देजो मोहे दरश न । अब सुख सखीयनका देख लग्यो मन तरसन || लग्यो || मेरे | आयो arun नीर | लग्यो नित्य बरसन । मेरे नेम मिलनकी प्राश । मिलूँ किम कररे ॥ मि• ॥ में० ॥ २ ॥ में नहिं कीनी तकसीर । चले क्युं रूठे ॥ चले० ॥ मेरे घरमे कुटुंब परिवार । चार दिश चूंटे में जो रहुँ घरके मांहे । जोबन सब लूँटे ॥ जो० ॥ में चलूँ पियाके साथ । प्रीत
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रत्नसागर. क्युं तूटे । मेरे नेम विना नहिं ओर । जगतमें वररे ॥ जग०॥ में ॥३॥ तुम तारी राजुल नार । मुगतिमें मेली ॥ मुग०॥ पीछे नेम गये निरवाण करम सब ओली । मे नित कगे परजात । नमुं पद पहली ॥ न०॥ मेरे नेम विना नहि और । जगतमें बेली । युं अरज करे जिनदाश । सु णो जिनवररे॥ सुणो० ॥ में ॥४॥२१॥
॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ आप समझका घर नहीं पाया । दूजैकुं क्या समझावे ।। बंका फिरे जिनदाश जगतमें । हीयो हाथमें नहीं आवे (ए आंकणी ) दरस सवाद चाहनकी चित्तमें । चानक अधिकी आय लगे । इंद्रीका पर वसमे पडियो । ग्यानकला कहो कैसें जगे । तृष्णाने जग लूंट लीयो हे। कपट करी परधनकुंठगे । खाय खाय लोही मांस वधारयो । प्राणी किस विध चले पगे। विषय विपतकी करे चूंथणी । चरचासुं चित्त नहीं लावे ॥बं०
आ॥१॥अपने अवगुनकुं नहीं देखे । दूजाका अवगुण नाखे । हिंसाही में हूओ हजूरी । दया दूर दिलसें नाखे ॥ गुणवंतका गुण लोप मेरो मन । अवगुणके रसकुं चाखे ॥ तिनुही प्रणमे रागधरा में । सरणे जिनवर किम राखे ॥ ठग फांसीगर चोर अन्याई। धन मीसें इनकुं ध्यावे॥० प्रा० ॥२॥ अवगुणकी मेरी खान आतमा । अजान होयसो मोहेपूजे । नहीं गाममें रुख अंबको । एरंग अंब सरिखो सूजे । पारख नहीं हे हीये ग्यानकी । गुण अवगुनकुं कुण बूझै । गामर देख कहे मुज घरमें । कामधेनु इतनी दूजे ॥ ऐसी मेरी अविनीत आतमा। अवगुन किम गाया जावै ॥ब आ० ॥३॥ौध मान मायामें मातो । लोन मांहें लपट्यो रहतो । गरथ गु मानी गमको गरजी । पीम पारकी नहीं सैतो । जगति नहीं गुरु देव धर मकी । कठण वचन सुखसें केतो । अंतर आंख न खुले हीयाकी । पूठ परम पदकुं देतो ॥ स्वांग सजी जिनदाश जैनको । माल मुलकको ठग खावे ॥ वंको० ॥ आप०॥४॥२९॥ इति ॥ ॥ ॥ॐ॥
॥॥सुगुरूकी लावणी॥॥ ॥ ॥ नमुं नमुं में गुरु निग्रंथकुं । वेजिन मुद्राधारी हे । पुजल
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गुपति गोपाहे ॥ न० ॥२॥
ज्ञान गस्थ तारी हे। जिन
लावण्यां संग्रह नवपद लावणी. ४९३ ऊपर प्रेम न करता । मनकी ममता मारी हे ॥न०॥१॥ गरब गालकर गुपति गोपवे । गत निग्रंथकी न्यारी हे। कनक कामिनीके नहिंजोगी। वेपूरा ब्रह्मचारीहे ॥ न०॥२॥ कायाके जीव अनाथी । ननके वे हित कारी हे । करम काटकर केवल पावे । ज्ञान गरथ गुण नारी हे ॥ न. ॥३॥शुच श्रघासें सुमति सेवी । निज आतमकुं तारी हे। जिनवरकुं जिनदाश वीनवे । ननके चरण बलिहारी है ॥ न०॥४॥ ॥१॥
॥ॐ॥कुगुरुकी लावणी॥2॥ ॥ॐ॥ त© तजं में नन कुगुरुकुं । कनक कामिनी धारी हे। ज्ञान ध्यानकी बात न जानें । अष्ट करमसें लारी हे॥त॥१॥करी कपा लें बनूत लपेटी। शिरपर जटा बधारी है । कान फामकर मुद्रा पहेरता उसके घरमें नारी हे॥त०॥२॥जोग लेई कर जीव विणासे । वे मद्य मांशाहारी हे । कूमा पंथी जगतकुं करता । मुखसें कहे आचारी हे ॥ त० ॥ ३ ॥ कहुं ओगुण कुगुरूका कब लग । साध नही संसारी हे। आप मुबे औरनकुं मुबावे । पुर्गतिका अधिकारी हे ॥ त० ॥ ४ ॥ समकि त श्रधा जैन धर्मकी। नहि कुगुरुकों प्यारी हे। जिनवरकुं जिनदाश वी नवे । कुगुरु संग खुवारी हे ॥ त०॥५॥ ॥५८॥ ॥ॐ॥
॥*॥श्री नवपद लावणी॥ॐ॥ .. ॥ ॥ जगतमें नव पद जयकारी। पूजतां रोग टले नारी (ए आं कणी ) पथम पद तीर्थ पती राजे । दोष अष्टादशकुं त्याजे । आठ प्रा तीहारज गजे । जगत प्रनु गुण बारे साजे ॥ दोहा ॥ अष्ट करम दल जीतके । सकल सिघ ते थाय । सिघ अनंत नजो बीजे पद । एक सम य शिव जाय । प्रगट नयो निज स्वरूप नारी ॥ जगत० ॥ १ ॥ सूरि प दमें गौतम केशी । नेपमा चंद्र सूरज जैशी । उगारयो राजा परदेशी । एक नवमांहें शिव लेशी ॥दोहा॥ चोथे पद पाठक नमुं । श्रुत धारी न वशाय । सब साहु पंचम पदें । धन धन्नो मुनिराय । वखाण्यो बीर प्रनु जारी॥ जगत० ॥२॥॥ द्रव्य खटकी श्रधा आवे । सम संवेगादिक पा वे । बिना ए ज्ञान नहिं किरिया। जैन दरशनसें सब तरिया ॥दोहा॥
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रत्नसागर.
झान पदारथ सातमें । पदमें आतमराम । रमतां रम्य अध्यातमें । निज पद साधे काम । देखता बस्तु जगत सारी ॥ जगत० ॥४॥जोगकी महिमा बहु जाणी। चक्रधर गेमी सब राणी । यती दश धरम करी सोहे। मुनि श्रावक सब मन मोहे ॥दोहा॥ करम निकाचित कापवा । तपकुठार करध्याय । कमायुत नवमुं पद धरे। कर्म मूल कट जाय । नजो तुम नवपद सुखकारी॥ पू० ज०॥ ४॥ श्री सिघचक्र जजोलाई । अचामल तप बि घिसें थाई। पाप त्रिहुं जोगें परिहरजो। जाव श्रीपाल परें करजो॥दोहा॥ संवत उगणीस सत्तरा समें । जेपुर श्री जिन पाश । चईत्र धवल पूनम दिने। सकल फली मुफ आश । बाल कहे नव पद बी प्यारी ॥ जगत० ॥५॥६१॥
॥॥श्री केशरीयानाथ लावणी॥॥ ॥ ॥ (दूहा ) आदिकरन आदिम जगत । आदि जिणंद जिनराज ॥
धूलेवनाथ जाचो धणी। वरनुं श्री महाराज ॥१॥ ॥ ॥ कास्यप गोत्र ईवाग वंशमें। मरुदेवा जननी जायो । नानि नरेसर वंश उजालन । आदि धर्म जश प्रगटायो ॥ १ ॥ चोसठ सुरपति देव देवी मिल । मंदिर गिरपै न्हवरायो । इसो षन निधि प्रगट कल्प तरू । सुरनर मुनिजन नित्य ध्यायो ॥२॥ खमंग देशमें नगर धूलेवें। जास दमामा घुरता हे । जाकी महिमा अपरंपारा । कविजन कीर्ति क रता हे ॥३॥ आदौ मूरत काल असंख्यकी । पूजी सुरगण असुरिंदा। सुरपति नरपति वंदित पद जुग । वलि पूजित सूरज चंदा ॥ ४ ॥ लाख अग्यार हजार पंचाशी । वरश पांचशे पंचासा । इतने बरश पर लंका गढमें । पूजित रावण गुनरासा ॥ ५ ॥रामचंद्र शीता अरु लग्मन । ए मूरत पूजन ल्याए । नयरी अयोध्या जाते अधबिच । नयर नजेणी ठह राए॥ ६॥ प्रजापाल नरपतिकी तनया । सुंदरि मयणां धरमनकी । बाप करम अरु आप करमकी। नई लमाई मरमनकी ॥७॥ आप करमके ऊपर नृपनें । कुष्टी वर परणाई । मयणां चिंतें कांई नवाई। करम ल खी सो बनि आई ॥८॥इकदिन जिन पूजन गुरुवंदन । आई श्री जिन मंदिर। वंदन पूजन करके इकचित । ध्यान धरे मन कंदरपें ॥९॥इति॥
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श्रीआदीश्वर धुलेवानाथ लावणी.
॥ ॥ मोतिदाम बंद ॥ ॥ ॥ ॥ तुंही अरिहंत तुंही जगवंत । तुंही जिनराज तुंही जगसंत । तुंही जगनाथ तुंही प्रतिपाल । तुंही मनमोहन तुंही दयाल ॥ १ ॥ तुंही जवनंजन नाव सरूप । तुंही अरि गंजल रंजन नूप । तुंही अविनासी तुं ही वीतराग । तुंही महाराज तुंही वमनाग॥२॥ तुंही गुणधाम तुंही विस राम। तुंही नवनिधि तुंही वमनाम । तुंही अघनाश तुंही अविनाश । तुंही मतिवंत तुंही मतिवास ॥३॥ तुंही गुन केवल रूप अनंत । तुंही जगतारन तारन संत । तुंही जगध्येय तुंही जगध्यान । तुंही चिद्रूप तुंही जग जा न॥४॥तुंही मम तात तुंही मम मात । तुंही मम भ्रात तुंही मम गत तुंही सरणागत राखण हार । तुंही मुख दोहग टालणहार ॥५॥१॥
॥॥ लावणीकी चाल में॥ ॥ ॥ ॥ करूं अरज एक तोपें जिनपति । कंत कुष्टसें नहीं डरते ॥ पूरब करमके लिखित लेख जे। किसके टारे नहीं टरते ॥१॥ पण तुझ शासन ज गत हेलना । जगत ढंढेरा बाजत है। आप कर्म अरु जैन धर्मके । फल पाईयें यो लाजत हे॥२॥ यो मुख मोसें सह्यो जात नहीं। आदिनाथ जग रखपा ला। करुना करके रोग निवारन । गुन कीजें जग प्रतिपाला॥३॥यह प्रस न होय फल बीजोरो। हाथ तणो फल तब दीनो । मयणा तब नवास नई । मन चिंते सव कारज सीनो॥ ४ ॥ तोदिन नमण नीर तनु फरसे कुष्ट रोग सब नासत हे । कामदेव अरु अमर समोवम । नृप श्रीपाल सोहावत हे ॥५॥ या कीरत प्रनु तिहारी नूतल । प्रगट प्रबल हे जश सेरो। बासू चैत्र मासमें महिमा। देश देशमें प्रनु तेरो ॥ ६॥ फिर वागम देश वमोद नगरमें । जगपर प्रनु करुना कीनी । कितने वरश लग महीमा महिमा । अविचल नूतल रिच दीनी ॥ ७ ॥ दिल्लीपर तुरकान नयो तब । पादशाह लमवा आयो। बूत चूत पथ्थरकी मूरत । जम मुलांसें नखरायो ॥ ८॥ बहुत दिनां लग कीवी लराइ । थाको यों वाचा बोले । देव हिंदको बमो जागतो। युं बोलत फिर फिर मोले ॥ ९॥ सुनो बात काजी मु खां तुम । एक बातसें त्रासँगा । गौ ब्राह्मण प्रतिपाल कहाई। गोवधसें
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रत्नसागर.
ये नासैगा ॥ १० ॥ गोवध करन लगे जब निजरें । देख शके क्यों प्रति पाला । करन युद्धजब जये महाबल । शस्त्र को ऊरु विकराला ॥ ११ ॥ ॥ ॥ ( दूहा) महायुद्ध करनें लगे। घाव चोराशी अंग ॥
॥
॥ करी मलोखा गामली। आये धुलेव सुरंग ॥ १ ॥ ॥ ॐ ॥ लावणी ॥ ॥
॥ ॐ ॥ गाम धुलेवे वंश जालमें । गुप्त रहे हैं प्रभु धरती । गाय एक कोडी बनीयनकी । आई वांहां चरती ॥ १ ॥ स्रवे तिहां पयधारा शिरपर । सांऊ समें फिर नहीं दूजे । रीस करी तव गोपालन पर । गौ पाल थरथर धूजे । दूजे दिन गौ लारें आयो । जह्यो नेद को बनीयनपें । शेठ प्राय जब नजरें देख्यो । चकित नयो हैं तन मन पें ॥ ३ ॥ मध्य रातमें सुपनो दीनो । रुषन नाथकी मूरत है । बाहिर निकासी करो लाप शी। जीतर मूरत पूरत है ॥ ४ ॥ नव दिनमें सब घाव मिलासी । मत कांठे तुं नव दिनमें । कियो शेठनें हुकुम प्रमाणें । आये संघ बहु ब दिन में ॥ ५ ॥ के उपवास के व्रतधारी । के अनुप्राणे पानंचले । कई लोक कुं दुःकर बाधा । कब प्रजुको दरसन मिले ॥ ६ ॥ युं सब लोकां दरस त रसकी। कहे लोक मूरत काढो । लाओ लाओ महाराजकी मूरत । संघ सवे लीनो आमो ॥ ७ ॥ जबर दस्तसें दिवस सातमें। लापशी बाहिर तवकीने। ससनर व्रण रहा ए। संघ लोक दर्शन दीने ॥ ८ ॥ फिर सुपनेमें द्रव्य दिखायो । संधे मिल देवल कीनो । मध्य विराजे रुपन तख तपर। कलियुग में यौं जश जीनो ॥ ९ ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ ( दूहा) संवत दार त्रेसठ । जान सदा शिवराय ॥ ॥ ॐ ॥ कियो धंगानो दुष्टनें । जाखं बरन बनाय ॥ १ ॥ ॥ ॥ मोतिदाम बंद ॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ सदाशिवराय चिंते मन एह । लुंटे बहुधाम जमीर जेह | ai पति नाथ धुव कहाय । लखो लग द्रव्य मंकार सुनाय ॥ १ ॥ जावां अब खूंटा गाम धुलेव । ग्रहुं सब माल जई तत खेव । आयो निज फोज लेइ दलगाज | तोपां दोयसाथ लीया बहु साज ॥ २ ॥ कंपु दोय जार जी
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धूलेवानाथ बडी लावणी.
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ए फीरंगाण | नंठां जर साथ लीये कोकवाण । तवां बहु लोक कहे महा राज | नही इह कारन कृत्य काज ॥ ३ ॥ ए तोबह जाजल देव कहाय । रहे नहीं लाज तिहांरिय कांय । तवां फिर बोले सदाशिव नूप। ग्रहुं सब माल अब चढी चूप ॥ ४ ॥ इसो कहि प्रावत पुष्ट करूर । कीयो नजराणह नाथ हजूर । रख्यो नहीं नाथ तवां नजराण। यो मन चक्कित मान गिलाण ॥ ५ ॥ तवां मन चिंत जंकारी बुलाय । मीठे वच बोल सबे ललचाय । लई संग प्राय मुकाम मकार । कियो तब कूच लई सब लार ॥ ६ ॥ करे तब गाम पुकार पुकार । जंकारि सबेय प्रकार पुकार । करो अब बाहर नाथ दयाल । गयो कहां गरीब निवाज । चढो व वाहर राखण नाज ॥ ७ ॥ * ॥
|| * || FET || | ||
॥ * ॥ न समें कोक शेठको । वहा तारण काज । गये अधि ष्ठायक नाथजी । नेरुं गए वहां गाज ॥ १ ॥ सुणो अरज पृथ्वीनाथजी । सहेर धूलेव मकार । किमो प्रकारज पुष्टनें। शीघ्र चलो जन तार ॥ २ ॥ आए तुरत महाराजजी । करवा जन संभाल । दो घोने दोनुं चढे । नेरुं अरु प्रतिपाल ॥ ३ ॥ लि कोप पें कियो । दश दिशि फोज हजार मार मार चौतरफ। नई लगाई त्यार ॥ ४ ॥ ॥ ॥ ॥ *॥
॥ ॥ भुजंगप्रयात बंद ॥
॥
॥ * ॥ कुकू कुकू कुकू वहे कोक बाणं । सणहाँ सणां तीर तरकस्स वाणं । धुबाके धमाके वहे नाल गोला । जिसा कर्कसा जम्मरा नयण मोला ॥ १ ॥ कितें अंग शस्त्ररा घाव लागे । कितें मारथें कंपते दूर जागे । कितें दंतपें तिरण लेवें वराका । कितें थरथरे त्रास होवें निराका ॥ २ ॥ किते रसुवा इलला पुकारे । किते दीन होके खुदायें संचारै । किते नाथपें केशरां खून माने । किते नाथकुं जागती जोत जाने ॥ ३ ॥ सदाशीवने घाव लग्गो टारे । पुनी जान जशवंत दोनुं संहारे । बनो को प जानी सबे फोज नाजी । हुइ केशरी नाथकी जीत बाजी ॥ ४ ॥ स दाशीवने प्राखडी टक लीनो । सवापांचशे रुकमरो खून दीनो । इसो नाथ धूलेवरो मर्द गाजी । सदा केशरा नाथरी जीत बाजी ॥ ५ ॥
॥
६३
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४९८
रत्नसागर.
॥ॐ॥(दूहा) या विध कलियुग जगजना। तारया कै जिनराज ॥
दीप विजय कविराजकुं । महेर करो महाराज ॥१॥ ॥ ॥ तुंही नवनिच तुंही अमसिघ । तुंही मन वंबित वजित रिध। तुंही सिरदार तुंही किरतार । तुंही सरणागत दीनदयाल ॥ १ ॥ तुंही काम कुंल तुंही कामधेन । तुंही सुरवृक्ष तुंही ममसेन । तुंही दवाणावर्त दायक देव । तुंही विसराम तुंही वमसेव ॥२॥ तुंही मम प्राण आधार जरूर । तुंही मम इजित दायक नूर । तुंही मम नूप तुंही पतशाह । तुंही मम रिधनं मार अगाह ॥३॥ तुंही मम मंत्र तुंही मम यंत्र । तुंही मम सत्य तुंही मन तं त्र। तुंही गगनायक तुंही श्री पूज्य । तुंही मम पुज्य तुंही जग पूज्य ॥४॥
॥ ॥ लावणी चाल ॥ ॥ ॥ ॥ नाथ धुलेवा कीरत सुनके। देश देश नृप आवत हे । केशरमें गरकाब रहेंतें । केशर नाथ कहावत हे ॥ १ ॥ सहेर परगणे देश देशावर फिरे मुहाई नाथनकी । हिंदु मुसल बम राणा हाजर । पूरै इडित सब मनकी ॥ २॥ जलवट थलवट वाट घाटमैं । रण रावल पुःख दूर हरे । एकचित्त ध्याने जे नित समरे । अखयं खजाना अन्नर नरे॥३॥ विधिमप धिधिमप धमप धमप मप । ताल पखावज राजतहें। गमगम दो गमगम दौ गमगम । धोंधों नोबत बाजतहें ॥ ४॥ हिंदूपति पतशाह नदेपुर । भीमसिं हके राजनमें । एह लावणी खूब बनाई । सकल संघके सागनमें ॥५॥ संवत अढार पच्चोत्तर वर्षे । फागुण सुदि तेरस दिवशै । मंगलकेदिन दीप विजयकुं। दरशन परसन दो उलसे॥६॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥कलश उप्पय बंद॥ ॥ ॥ * ॥ समवसरन जब शरन । तीन लोक कलिमल हरन । धुनि बरसत जल धरन । जरन पोष पावन करन । जुगल धर्म नीती हरन । सब करम ओघ घन जरन। मोह मल्ल अरि दरन । सुकनु बरन शुध चरन इंद्र चंद्र पद जुगल सेवन । जगद बिरुद तारन तरन । दीप विजय कविरा ज बहाघर । षन नाथ अशरन शरन ॥१॥ ॥
॥ ॥
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नेमकीजान लावणी संग्रह. ॥ * ॥ अषन नाथ महाराज । सबे पुःखदालिद्र नंजन । झपन्न नाथ महाराज । सबे नूप मनरंजन । रुपन नाथ प्रथ्विनाथ । समरयों वाहर धायें खननाथ पृथ्विनाथ । मंगल नाम गवायें । दीप विजय कविराज बहापुर खलक मुलक हाजर रहे । कलि जुग जयो देवतुं । सुरनर सबकीरत कहे॥२॥
॥ * ॥श्री नेमनाथकी जान वर्णन लावणी॥ॐ॥ ॥॥ नेमकी जान बनी जारी । देखनकुं आये नर नारी (ए आंक णी) अनंता घोडा ओर हाथी । मनखरी गिनती नहीं आती। ठंठ पर धजा जो फरराती । धमकसे धिरती थरराती ॥दोहा॥ समुद्र विजयका लामला। नेम गर्नुका नाम । राजुलदेकुं आये परणवा । नग्रसेन घर ठग म । प्रसन नई नगरी सब सारी । नेमकी जान वनी जारी॥१॥क मुंबल वाघा अंति जारी । काने कुंमल बिहे न्यारी । किलंगी तुररा सुख कारी । माल गले मोतीयनकी डारी ॥दोहा॥ काने कुंमल जग मगे। शीश मुगट फलकार । कोमि जानुकी करुं नेपमा । शोना अधिक अपार वाज रह्या वाजा टंकसारी ॥ नेम०॥२॥ बूट रही ननकी गहराई । ब्या हमें आये बडे जाई । रोखे राजुलदे आई । जानकुं देखी सुख पाई॥ दोहा॥ न्यसेनजी देखकें । मनमें करे विचार । बहोत जीव करि एका। वामो नरयो अपार । करी सब नोजनकी त्यारी ॥ नेम० ॥३॥ नेमजी तोरण पर आये । पशु जीव सबही कुरलाए । नेमजी वचन फरमाये । पशु जीव कायेकू लाये ॥दोहा॥ याको जोजन होवसी । जान वासते एह । एह बचन सुनी नेमजी । थर थर कांपे देह । जावसें चढगये गिर नारी ॥ नेम०॥४॥ पीनेसुं राजुलदे आई । हाथ जब पकड्यो दिनमां हीं। कहां तुं जावे मेरी जाई । और वर हेरं मुकताई ॥दोहा॥ मैरे तोवर अकही । होगया नेम कुमार । ओर जुवनमें वर नही । कोटी करो बिचार । दीवा जद राजुलने धारी॥नेम०॥५॥ साहेल्यां सबही समजावे । हिये राजुलके नहीं आवे । जगत सबो दरसावे । मेरेमननेम कुमर जावे । दोहा ॥ तोड्या कंकण दोरमा । तोड्या नवसर हार । काजल टीकी पान सो पारी । त्याग्यो सब सणगार । सहेल्यां सबही बिलखाणी ॥ नेम० ॥ ६ ॥
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रत्नसागर. तज्या सब सोले सिणगारा । आनूषण रत्नजडित सारा । लगे मोहे सबही सुख खारा । गेम कर चाली निरधारा॥दोहा॥ मात पिता परिवारकुं। तज तां न लागी वार । विजोग कर चली आपशुं । जाय चढी गिरनार । त रती नोमी मा प्यारी ॥ नेम०॥ ७ ॥ दया दिल पशुवनकी आई । त्याग जब कीनो उिनमांई । नेमि जिन गिरनारे जाई। पशुके बंधन बुडवाई ॥ दोहा ॥ नेम राजुल गिरनारपें । लीनो संजम दान। नवलराम करी ला वनी । नपन्यो केवल ज्ञान । जिनौकी किरिया बुधि सारी ॥ नेम०॥८॥
॥ ॥ श्री पार्श्वजिन आरती, लावणी चाल ॥॥ ॥ * ॥आरति करुं श्रीपार्थ प्रजुकी । जन्म बनारशी हे जिनका । घननं घननं वाजे घंट घण । ऐसा ध्यान धरूं जिनवरका ॥ आ० ॥१॥ जब कमासुर कोप कियो तब । स्याम घटा बिजुरी चमका । गिरुनो गाजजल मूशलधारा । धरम धरडका जन शंका॥ आ॥२॥ थररर आ सन कंपे सुरको । तव धरणीधर चित्त चमका । फण विस्तार हजार किये तब । ऊमक जाय प्रनु तन ढंका ॥ ० ॥ ३ ॥ जब पदमावति सब सि णगारे । ताथे नाचतले फिरका । ध्रमक ध्रमक धौं मादल वाजत । घननं घुग्घुरके घरका ॥ आ०॥ ४ ॥धीधी २ कट नोबत बाजै। धौधौं कट इंद नि धौंका । याविधगीत संगीत बजन सब । गांधर्व गान करे जिनका॥आ० ॥ ५ ॥ तननं तररर तंत ताल सब । मफ मोंमों करते मंका । रण फेर
के ऊणकारे । जागमदीकालरके ऊंका॥०॥ ६ ॥ सुर नर इंद्र सब जे जे करते । जीवत सफल नया जिनका । अमृत उदय तिणबेर नयो सुख । को विस्तार कहे तिनका॥०॥७॥इति
॥ ॥ ॥ ॥ आदि जिनेशर पारणो॥॥ ॥ ॥ आदि जिनेशर कियो पारणो । आ रस सेलडी ॥ आ० ॥ ( टेक ) घमा एकसो आठ शेलमी । रस नरियाने नीका । उलट नाव श्रेयांस वहिरावै । मांमदिवी आ बूकारे ॥ आ० ॥ १ ॥ देव कुंकुनी वाज रहीहे । सोनइयांरी वरखा । बारे माशशुं कियो पारणो । गइ नूख सब तिरखारे ॥ आ० ॥ २ ॥ शधि सिधि कारज मनो कामना। घर घर मंग
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चौमासो लावणी संग्रह. लाचार । पुनियां हरख वधामणा सिरै । आखात्रीज तिवाररे ॥ आ० ॥ ॥३॥ संकट काटो विघन निवारो । राखो हमारी लाज । बे कर जोमी नान्हू कहिता । षन देव महाराजरे॥०॥४॥ ॥
॥ * ॥श्री नेमिनाथ चौमासो॥ॐ॥ ॥ ॥ गई घटा गगनमें कारी । राजुलकुं विरह दुःख नारी ॥ ग. ॥ टेक॥ चौमासा लग्या रस नीना । अलि आषाढ रंग महीनां । चारु तरफसे वादल पीना। वीजुलीनें चमकनां कीना। दिल होल धमकता सी ना। मैं अबला सखी पति हीना (नमाना) सररररर चलत समीर । थर रररर करत सरीर । मररररर मरत समीर । अलि कैसी करुं तदबीर बुरी तकदीर । पीया बिन प्यारी । राजुलकुं विरह पुःख जारी ॥ ग० ॥१॥श्रावनमें श्याम घनघोर । जरजोर बोलते मोर । दाउर मिल करते दोर । पिक पिक पपैया सोर । म लग्यो बुंद ऊकजोर । बिच चमके दामिनी कोर । (नमावणी) खममममम ख घन माला। तडडडडड ज ल परनाला । अडडडडड नाला खाला। मैं पुःखी हुइ बेहाल हीयमें । साल हुई जलधारी॥रा०॥२॥नाद्रवमें पवन प्राचीना । बादलमैं धनु प रंगीना । जंगलमें नदी स्वरकीणा । ज्युं वाजे मनोहर बीणा । अबए से कहो क्या जीना। प्रीतमने मुझे दुःखदीना। (नमाना)युं विलपत मुख मुरझाई । सखीयन मिल दोम जगाई ।युं विलखत वचन सुनाई । सखी देखो पीयाकी रीत । तोमके प्रीत गये गिरनारी ॥रा०॥३॥आश्विनमेंजरा . नहीं धीर । यात्रु चंद नये वे पीर । न चली नेमके तीर । काटनकुं कर्म जं
जीर । प्रीतमसें लीयो अकसीर । व्रत संजम समकित हीर। (नमाना) शिव राजुल नेम सिधाये। इंद्रादिक जश गुण गाये । नविजन मिल शीश नमा ये। मुनि कहे कपूराचंद प्रेमसें बंद। जाळं बलिहारी ॥रा०॥४॥
॥॥श्री अजितनाथ महाराजकी लावणी ॥ * ॥ ॥ ॥ श्री अजितनाथ महाराज । गरीबनिवाज । जरूर जिनवरजी । सेवक शिरनामें तने नचारे अरजी। कर माफी मारावांक । रमलीयो रांक । अनंता नवमें ॥ २॥आव्यो बुं ताराशरण । बली पुःख दवमें । क्रोधादिक
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रत्नसागर.
धुकता चार | खरेखर खार | लग्या मुजकेमे ॥ २ ॥ वली पापी झारो नाथ । बेक बे। मुजरो मुज भगवान । करूं गुणगान । ध्यानमां धरजी ॥ २ ॥ सेवक० ॥ १ ॥ में पूरण कर्या बे पाप । सुणजो आप । कहुं कर जोगी ॥ २ ॥ मुऊ जुंगामां भगवान । जूल नहीं थोमी । जीवहिंसा अ परंपार । करी किरतार | हवेशुं कर्तुं ॥ २ ॥ तूं बहु बोली । साधनेंशुं हरवूं । तुक खोलामां मुऊ शीश । जाण जगदीश | गर्मे ते करजी ॥ २ ॥ सेवक० ॥ २ ॥ में किया बहुत कुकर्म । धरा नहीं धर्म पूर्ण हूँ पापी ॥ २ ॥
वो थई तारी प्राण । मेंज उत्थापी । में मूरख निंदा घणी । मुनि पर तणी । करी हरखायो ॥ २ ॥ परदारा देखी जबान । हुं ललचायो । किं कर कहे केशवलाल । प्राणीने व्हाल । दुःख तुं हरजी ॥ २ ॥ सेवक० ॥ ३ ॥ ॥ श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जावणी ॥
॥
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॥ ॥ मम्माई सहरमें चिंतामणि नेट्या चिंताचूरका ॥ टेक ॥ सब देशां काशी सिर, सिरे नगर वणारशी धार । सहुराजा शिरसेहरो' सिरे अश्वसेन कुल तारजी ॥ म० १ ॥ बामाकुखे अवतरया, सिरे नीजवरण तनधन्न । सतवरषांको आयु कहीजै, नवकर देहरतन्नजी ॥ म०३ ॥ मस्तक मुगुट काने युगकुंमल, हियमै नवसर हार अंगियां सहरयणेजमी, सिरै पीठनामंगल सारजी ॥ म० ॥ ३ ॥ तेजै रविजिम दीपता, सिरे मुखजिम पूनम चंद । हियको हेजे निरख तां, सिरै सब इंद्रिनो वृंदजी ॥ मम्माई • || नगणीसे गुणतीसमें, सिरै चैत्रक suta जाए। यात्रकरी सुनवेद तिथीकों, संघवी बुधसिंह जाणजी ॥ म० ॥ ५ ॥ लुंपक गण में सोनता, सिरे अजयराज जिनदास । संघ सहाये नेटिया, करे मुक्ति कमल अरदासजी ॥ म० ६ ॥ ॥ इति श्री बंबई मंगण श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ लावणी संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ वीठोमा, श्रीगौनी पार्श्वनाथ लावणी ॥ ॥ * ॥ वीठोडा मांहें प्रगट थयारे गौमी पाशजी ॥ वी० टेक ॥ मरुधर देशमें ग्राम वीठोमा, उत्तम धरती पाय । चंदनमल लोढाकों सुपनो, मिलियो, पुन्यपसायजी ॥ बी० १ ॥ संघसाथ चंदनमल वनमें, जोवे चिहुँ दिशफेर । द्वितीयशुक्ल नजरुद्र तिथीकों, दीठो प्रतढे रजी || बी०२ ॥ प्रतदेख मग
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मुम्बई, वीगेडा श्री पाजिन लावणी. ५० ३ नहुय दिलमें, अरजकरी करजोम। अचरजवाली बात हुई जब, प्रगट नया रॉय फोमजी॥३॥ ताम्रपात्रमें प्रनुमस्तकपर, जीवत अहिफण सार । केशर चंदन पुष्पादिकसें, पूजन अति मनुहरजी॥ बी० ४॥देशदेशके नविजन सुनके, उमंगधरी चितप्राय । गोमीचा पारशका दरशन, करतां दिलसुखपा यजी ॥ बी० ५॥ रजतवर्ण दोयहीरा अलकत, रविजिम तेजदी पाय। अति शय गुणपूरत प्रनु परितिख, शांति सूरत सुखदायजी॥ बी०॥६॥अधिक संघकी भक्तिदेखके, प्रनु रहे दिन इकवीस, नाद्रवदसुद तृतिया रजनीको अदृश विशवावीशजी ॥बी०७॥ कलयुगमें ए अचरजकारी, महमा अध की देख, नविजीवां मन आनंद नपनो, कुमति कदाग्रह रेखजी॥ बी० ८॥ धन्यधमी धन्य नाग हमारो, पायो प्रनुदीदार, नंदअनिल निधि चंद्र संवबर, सुन्नमहुरत तिथिवारजी ॥ वी० ९॥ करजोडी पारसप्रनु ध्यावे, सफल हुवे अवतार । लक्ष्मीप्रधान मिले शिवसंपद, मोहन हरख अपारजी ॥ बी०१०॥ इति लावणी संपूर्णम् ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥ श्रीषन जिनस्तवन ॥१॥ ॥ ॥ पोटो पोढोजी झपन्न विहारे । निद्रावश नयण तिहारे ॥पो॥ प्रनुपालस अंग हुलशाई । पूजे मरुदेवा माई ॥ पो० ॥ १ ॥ प्रनु नंदा सुमंगलाराणी। नन रुच रुच सेज संभारी॥पो०॥ २ ॥ प्रनु नवलसुं नेह सनेहा । मनवंडित फल देहा ॥ पो० ॥ ३ ॥ प्यारे सेवक हित कर गावे । मनवंचित फल पावे ॥ पो० ॥४॥ अजर अमर पद पावे । कर जोमी शीश नमावे॥ पो०॥५॥ इति॥॥
॥ ॥ ॥ॐ॥अथ दीवालीको स्तवन॥॥ ॥ ॥धन धन मंगल एरे सकल दिन । पूजी प्रनातें चालीरे ॥१॥ आज मारे दीवाली अजुवाली ॥१॥ गावो गीत वधावो गुरूने।मोतीमे था ल पूरावो । चार चार आगे चतुर सुहागण । चरण कमल चित्त सारीरे ॥ आज०॥ २॥ धन धुने धन तेरश दिवशै । काले काली चनदश । पाप ह णीजे पोसो कीजै। कर्म मेलो सर्व टालीरे॥आज सारे०॥ ३॥ अमावस की परब दीवाली । फरती जाक कमाली। घर घर तो दीवडीया फलके
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रत्नसागर.
रात दीसे अजुवाली रे | आज झारे० ॥ ४ ॥ श्रमावसकी पिल्ली राते । करम सहु टाली । श्री महाबीर निखाणे पोहोता । अजरामर सुख कारीरे ॥ आज झारे० ॥ ५ ॥ परिवा नें वली जुहार पटोला ए रत रूमी सारी ॥ गुरु गौतमनां चरण पखाली । रीऊ पामी रढीयाली रे ॥ श्राज मारे० ॥ ६ ॥ बीजें तो वली जावक बीज । बेनरमी प्रति वाहाली ॥ पांचे दिन होय रे पनोता । एवे एवे हरखे गाईरे ॥ आज झारे० ॥ ७ ॥ हरखविजय पंकित इम बोले । करोसहु सेव सुंहाली ॥ रूपविजय पंकित गुणगावै | जय जय वाजे ताली रे | आज झारे० ॥ ८ ॥ * ॥ ॥ * ॥ पुनः दीपमाला स्तवन ॥
ए
॥
॥ * ॥ झारे दीवाली रे थई आज । प्रनु मुख जोवाने ॥ सरया सरयारे से aari का । जवख खोवाने ॥ टेक ॥ महावीर स्वामी मुगतें पहोता ने । गौतम केवल ज्ञान रे || धन अमावस्या धनदीवाली झारे । वीर प्रभु निवाए | जिनमुख० ॥ झारे दीवाली ० ॥ १ ॥ चारित्र पाल्या नि र्मलांने । टाल्या ते विषय कषाय रे । एवा प्रजुनें वांदिये तो। नतारे जव पार ॥ जिन० ॥ मा० ॥ २ ॥ बाकुला वोहोरथा बीरजी ने । तारी चंदन बाला रे ॥ केवल लई प्रनु मुकर्ते पोहोता । पाम्या जवनो पार ॥ जि न० ॥ मा० ३ ॥ एवा मुनिनें वांदीयेंजे । पंचमज्ञानने धरतारे । समवसरण देई देशना रे ॥ प्रनु तारया नरने नार ॥ जिन० मा० ॥ ४ ॥ चौवीशमा जि सरू ने । मुकति तथा दातार रे । कर जोगी कवियण एमन्त्रणे । मारो न बनो फेरो टाल || जिनमुख० ॥ मा० ॥ ५ ॥ ॥
॥ * ॥ श्रात्मलघुता स्तवन ॥ ॥
॥ * ॥ यो जिनदास झूठो रे झूठो ॥ येने लेइ लाकडी कूटो | यो० ॥ सुकृत सामो पग नहिं नरतो । ग्यान हीयाको खुटो ॥ सुधारयो सुधरे न हिंघडतां । जैसो लकडको ठगे ॥ यो० ॥ १ ॥ जणवा गुणवाका गुण नहिं आया । कोरोही पकड्यो पूठो || गपोडा सुण कर लोक पूजता । ए अलग कालको ठूठो ॥ यो० ॥ २ ॥ पंडित गुरुकी सोबत पाई । चेत्यो नहिं हीयाको फूटो । साचा नरको संग न करतो । कूड कपट नहिं बूटो ।
॥ * ॥
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मंगल स्तवन श्री नेमिनाथ नवरसो. ५०५ यो० ॥३॥ गेहि बोले गेहि चाले । कपट करे एक मूठो ॥ साचो एह असार देखके । जिनदाश सबसूं रूठो ॥ यो० ॥ ४॥ * ॥
॥ मंगल स्तवन राग सामेरी॥॥ ॥ ॥ कीजे मंगल चार । आज घरे नाथ पधारया॥ कीजै ॥ (आंकणी)॥ पहेलु मंगल प्रनुजीकुं पूजू । घसी केशर घनसार ॥आज ॥१॥बीजं मंगल अगर नखे, । कंठेठ फुल हार ॥आज०॥२॥ त्री मंगल आरती तारुं । घंट बजावु रणकार ॥आज०॥३॥ चो) मंगल प्रनु गुण गाएं । नाचूं ते थैथैकार ॥आज०॥४॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन । चरण कमल जानं वार ॥ आज०॥५॥ इति ॥॥ ॥ ॥ अथ श्रीनेमनाथजीको नवरसो प्रारंनः॥॥
|| ढाल पहली, गवाकी देशीमें॥ . ॥ ॥ समुद्र विजय कुल चंदलो । शामलियाजी । शिवादेवी मात मलार । वर पातलियाजी । एक दिन रमवा नीसरया ॥शा० ॥ श्रा व्या आयुधशाला माहे ॥२०॥१ ॥ सारंग धनुष चढावियुं ॥ शा० ॥ तेणे मोठ्या आकाशें इंद्र ॥व०॥ चक्र नपामीने फेरव्यु ॥शा०॥ गदा लीधी कमरांहे ॥ व० ॥ २ ॥ नेमें शंख वजामीयो ॥शा०॥ तेणें मो च्या माहिना मेर ॥२०॥ शेष नाग तिहां सल सल्या ॥शा०॥ खलन लीया सायर सर्व ॥ व०॥३॥ गिरिवर ढूंक तूटी पड्यां ॥शा०॥ थरहर कंपे लोक ॥व०॥ कोइक वैरी ऊपनो ॥ शा० ॥ इम करता कृष्ण विचार ॥व०॥४॥आव्या तिहां नंतावला॥शा०॥ जिहां नेम कुमार। व०॥ रूपचंद रंगे मल्या ॥ शा०॥ ताहाँ बल जोवानी खंत ॥व० ५॥
॥ ॥ ढाल बीजी॥॥ कृष्ण कर लंबावायो॥ हसी बोलोजी । तुम वालो नेम कुमार। अंतर खोलोजी। कमलनाल परें वालीयो । हसी०॥ण नवि लागी वार ॥अंत० ॥१ नेमें कर लंबावीयो ॥ हसी०॥ कृष्ण नवि वाल्यो जाय ॥ अंत० ॥ हाथे कृष्णा हिंचोलिया ॥ हसी० ॥ तिहां हरि मन ऊंखो थाय अं० ॥२॥ नारी जो परणावीयें ॥ ह° ॥ तो बल नोरं थाय ।
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रत्नसागर. अं० ॥ एम विचारी कृष्णजी॥ह० ॥ निजअंतेनर समझाय ॥ अं० ॥३॥ नेम विवाह मनायवा ।। ह० ॥ सज थान सगली नार ॥ अं०॥ रूपचंद रंगें मिल्या॥ह ॥ताहरु अतुली बलअरीहंत ॥ अंत०॥४॥॥
॥ ॥ ढाल त्रीजी॥॥ ॥ ॥ राधाजी ने रुक्मणी । मोरा गिरधारी। सत्यनामा जांबुवती नार। मुकुटपर हुं वारी । चंद्रावती शिणगारीयें ॥ मोरा० ॥ गोपी मली बत्तीश हजार ॥ मुकुट०॥१॥ विवाह मानो नेमजी । देवर मोरा जी। मने करवाना बहु कोम । ए गुण तोराजी। नारी विनानुं आंगणुं ॥ देवर ॥जेम अलूणो धान ।। ए गुण ॥२॥ नारी जो घरमां वदे ॥ देवर० ॥ तो पामें प्राहुणा मान ॥ ए गुण ॥ नारी विना नर हाली जिसा ॥ देवर वली वांढा कहशे लोक ॥ ए गुण ॥ ३ ॥ नोकरवाद न कीजीयें ॥ देव०॥ ॥ तमें मकरो ताणो ताण ॥ ए गुण ॥ रूपचंद रंगें मल्या ॥ देवर० ॥ हवे नत्तर आपे नेम ॥ ए०॥४॥॥
_॥ ढाल चोथी॥॥ ॥2॥ नेम कहे तमे सांगलो॥ मोरी नानी जी । ए किशो काम विकार । में गत पामी जी। नारी मोहें जे पड्या ॥ मोरी०॥ ते रमवमिया गति चार ॥ में० ॥१॥ रावण सरिखो एलव्यो। मोरी० ॥ जे लइ गयो शीता नार ॥ में०॥ नारी विषनी कुंपली॥ मो० ॥ मायानी मोहन वेल ॥ में ॥२॥ उपन्न कोमि जादव मिल्या ॥ मोरी०॥इम कहे ते वारो वार ॥में०॥ रूपचंद रंगें मल्या॥ मोरी०॥ नेम नहिं परणे निरधार ॥ में ॥३॥
॥ ढाल पांचमी॥ॐ॥ ॥ * ॥ अवला बोल न बोलीयें । वर राजाजी । तमें परणो नेम कु मार । मकरो दिवाजाजी । एकवीश तीर्थकर थया॥ वर०॥ते तो सर्वे परण्या नार ॥ मकरो ॥१॥ नारी खाण रतन तणी ॥ वर०॥ तेनुं मू ख्य केणे नवि थाय ॥ मकरो० ॥ नारीमाहेथी नर नीपना ॥वर० ॥ तुम सरिखा श्रीनगवान । मकरो० ॥२॥ नेम न बोले मुखथकी। वर०॥ मां मयो विवाह मंमाण ॥ मकरो० ॥ नग्रसेन घर बेटगी । वर० ॥ ते
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- श्री नेमिनाथ नवरसो.
५०७ नामें राजुल नार ॥ मकरो० ॥ ३ ॥ लीधुं लगन तावतुं ॥ वर०॥आ प्या लीला श्रीफल हाथ ॥ मकरो॥ जीमण लाडू लापशी ॥ वर० ॥ वली सेवइयो कंसार ॥ मकरो० ॥ ४ ॥आग जलेवी पातली॥ वर०॥ वली मांहे घेवरनो जाग ॥ मकरो० ॥ खारी पुरीने दहीथरा॥ वर० ॥ व ली खाजाने मगदाल ॥ मकरो० ॥ ५॥लाखण साई हेशमी ॥ वर०॥ मांहे मोतीचूरनो स्वाद ॥ मकरो० ॥ कूर रांधो कमोदनो॥ वर०॥ मां हे मसूरनी दाल ॥ सबल दिवाजाजी ॥ ६॥ खारक खजूर में टोपरा ॥ वर० ॥ वली चारोलीने द्राख ॥ सबल०॥लवंग सोपारी एलची॥वर०॥ वली पानना बीमा चार ॥ सबल०॥७॥ सऊन कुटुंब संतोषीया ॥ वर०॥ बहु कीधी पेरामणी सार ॥ सबल०॥ जान लेई यादव चव्या ॥ वर० ॥ पाखरीया केकाण ॥ सबल० ॥ ८ ॥ हाथी रथ शणगारीया॥ वर०॥ केशरिया असवार ॥ सबल० ॥ इंद्र जोवाने आविया ॥ वर० ॥ इंद्राणी गावे गीत ॥ सबल० ॥९॥ तोरण आव्या नेमजी ॥ वर० ॥ते में निरखे राजुल नार ॥ सबल०॥ रूपचंद रंगे मल्या ॥ वर० ॥ए जोवा सरखी जान ॥ सबल० ॥१०॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥ ढाल ही॥॥ ॥ * ॥ सखी कहे वर शामलो॥ ए दीसेजी ॥ ते निरखे राजुल नार इइडं हीसे जी॥ काला गयवर हाथीया ॥ ए दी० ॥ वली कालो मेघ मलार॥ हश्डु०॥१॥ काली अंजन आंखमी ॥ ए दीसेजी ॥ तेनुं मूल केणे नवि थाय ॥ हरडु०॥ काली कस्तूरी कही ॥ ए दीसेजी ॥ काला कृष्णागरु केश ॥ हडु० ॥२॥ रूपचंद रंगें मख्या॥ ए दीसे जी ॥ सखि शामलीयो जरतार ॥ हइडु०॥३॥*॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ ढाल सातमी॥॥ ॥ पशुअ पोकार मुणी करी । शुध लीधी जी। विचारे श्रीवीतरा ग। तेणें दया कीधीजी। जो परणं तो पशु मरे ॥शु० ॥ मूकी अनुकंपा जाल तेणें ॥१॥ इम जाणी रथ वालीयो॥ शु०॥ फेरवतां दीनदयाल
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रत्नसागर.
| तेणें ॥ पशुबंधन सर्व तोमीया ॥ शु० ॥ ते सर्व गया वनमांहे || तेणें ॥ २ ॥ रूपचंद रंगें मख्या ॥ शु० ॥ प्रनु दीधुं वरसीदान ॥ तेणें ॥ ३ ॥ ॥ * ॥ ढाल आग्मी ॥
॥ ॥ * ॥ राजिमती धरणी ढख्या ॥ मोरा वहालाजी || अवगुण वि दीनानाथ || हाथ नकाल्यो जी ॥ प्रांगण यावी पाठा वया || मोरा छत्री कुलमां लगावी लाज ॥ हाथ० ॥ १ ॥ तमें पशु तणी करुणा करी ॥ मोरा० ॥ तमने माणसनी नहिं मेर ॥ हाथ० ॥ आठ जव थया एकता ॥ मोरा० ॥ कीधा तुमशुं रंग रोल ॥ हाथ० ॥ २ ॥ नवमे नवें तमें नेमजी ॥ मोरा ० ॥ मुऊने कां मेली जान ॥ हाथ० ॥ मारी आशा अं बर जेवी ॥ मोरा० ॥ तमें केम नपामी कंत ॥ हाथ० ॥ ३ ॥ में कूमा कलंक चढाविया ॥ मोरा० ॥ जाख्या अण दीठा आत || हाथ० ॥ में पंखी घाल्या पांजरे ॥ मोरा० ॥ वली जलमां नाखी जाल ॥ हाथ० ॥ ॥ ४ ॥ में साधुने संतापीया । मोरा । में माय विबोड्या बाल ॥ हाथ० ॥ में कीमी दर नघामियां ॥ मोरा० ॥ मरमना बोल्या बोल ॥ हाथ० ॥ ५ ॥
O
गल पाणी में जरया || मोरा० ॥ में गुरुनें दीधी गाल ॥ हाथ० ॥ में कठिण करम कीधा हशे ॥ मोरा• ॥ ते आावी लागा पाप || हाथ० ॥ ॥ ६ ॥ इम करतां राजुल आविया ॥ मोरा० ॥ श्रीनेमीशरनी पास || हाथ ॥ रूपचंद रंगें मख्या ॥ मोरा० ॥ राजुल लियो संयम जार ॥ हाथ० ॥ ॥ * ॥ ढाल नवमी ॥
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॥ ॥ ॥ श्रीनेम राजीमती एकठा || साहेलमीयां ॥ जइ चढिया श्रीगिर नार । जिनगुण वेलमियां । प्रठेथी राजुल आवियां ॥ सा० ॥ संजम वती राजकुमार ॥ जिन० ॥ १ ॥ श्राज्ञा ने राजुल एकजी ॥ सा० ॥ गिरनार नपर गुफामांहे ॥ जिन० ॥ वाटें जातां वर्षा थई ॥ सा० ॥ जीजाणां रा जुलनांचीर || जि० ॥ २ ॥ गुफा मांहे जइ शुकव्या ॥ सा० ॥ लागुं ते काचुं नीर ॥ जिन० ॥ प्रति सुकुमाल सोहामणं ॥ सा० ॥ राणी राजीम तीनुं शरीर ॥ जिन० ॥ ३ ॥ रहनेमि तपस्या करे ॥ सा० ॥ देखि राजिमती निचोवे चीर ॥ जिन० ॥ प्रगट थई ते बोलीयो ॥ सा० ॥ जानी म
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श्रीनेमि नवरसो, दाशशील चौढा.
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करो मन कदास ॥ जिन० ॥ ४ ॥ नेम गयो तो ननुं थयुं ॥ सा० ॥ आप णे करशुं भोग विलास || जिं० ॥ उत्तम कुलनो कपनो ॥ सा० ॥ तुं बोल वि चारी बोल || जि० ॥ ५ ॥ संयम रत्नने हारीया ॥ सा० ॥ वली कधी बनी घात ॥ जिन० ॥ रहनेमी तव वोलीयो ॥ सा० ॥ माता रा जीमती नगार ॥ जि० ॥ ६ ॥ नेमीसर करें मोकल्या ॥ सा० ॥ फरी ली धो संयम जार ॥ जि० ॥ नेम राजुल केवल लई ॥ सा० ॥ पोहोता मु क्ति मकार ॥ जिन० ॥ ७ ॥ पीयु पहेली मुगतें गयी ॥ सा० ॥ राजीम तीते िवार ॥ जि० ॥ रूपचंद रंगें मख्या ॥ सा० ॥ प्रनु नतारो नवपार ॥ जिन ॥ ८ ॥ * ॥ इति नवरसो सं० ॥ ॥ 11 11
॥ * ॥ अथ दान शील तप नाव चौ ढालियो ॥ ॥
॥ * ॥ प्रथम जिणेसर पाय नमी । पामी सुगुरुप्रसाद ॥ दान शीय ल तप भावना । बोलिश बहु संवाद ॥ १ ॥ वीर जिणंद समोसरया । रा जगृही उद्यान । समवसरण देवें रच्युं । बेग श्रीवर्धमान ॥ २ ॥ बेटीबारे परखदा । सुणवा जिनवर वाण ॥ दान कहे प्रजु हूं वो । मुऊने प्रथम वखाण ॥ ३ ॥ सांगलजो सहुको तुमे । कुंण बै मुझ समान अरिहंत दीक्षा अवसरें । आपे पहिलं दान ॥ ४ ॥ प्रथम पहोर दातारनुं ।
ये सह कोई नाम । दीधांरी देऊल चढे । सीजे वंबित काम ॥ ५ ॥ ती करने पारणें । कुण करशे मुऊ होड || वृष्टि करूं सोवन तणी । साढी बाहर को ॥ ६ ॥ हुं जग सगळं वश करूँ । मुऊ मोहोटी बे वात ॥ कु एकुण दान की तरया । ते सुणजो अवदात ॥ ७ ॥ *॥
॥ * ॥ ढाल पहेली, ललना कीदेशी ॥ # ॥
॥ * ॥ धन सारथवाह साधुने । दीधुं घृतनुं दान । ललना । तीर्थकर पद में दीयुं । तिणे मुम्ने अभिमान । ललना ॥ १ ॥ दान कहे जग हुँ वो । मुसरिखुं नहिं कोय ॥ ललना ॥ रुद्धि समृद्धि सुख संपदा । दानें दोलत होय ॥ जलना ॥ दा० ॥ २ ॥ सुमुख नामें गाथापति । पमिजा भ्यो णगार ॥ जलना ॥ कुमर सुबाहु सुख लहां । तेतो मुऊ नृपगार ॥ ललना ॥ दा० ॥ ३ ॥ पांचशें मुनिने पारणं । देतो वोहोरी आण | ल
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रत्नसागर.
लना ॥ नरत थयो चक्रवर्त्ति जलो । ते पण मुऊ फल जाण ॥ ललना ॥ दा० ॥ ४ ॥ माश खमणने पारणें । परिलाभ्यो रुषिराय ॥ ललना ॥ शालिनद्र सुख जोगवे । दान तणे सुपसाय ॥ ललना ॥ दा० ॥ ५ ॥ श्राप्या नमदना बाकुला । उत्तम पात्र विशेष ॥ जलना ॥ मूलदेव राजा थयो । दानतणां फल देख । ललना ॥ दा० ॥ ६ ॥ प्रथम जिणेसर पारणें । श्री श्रेयांस कुमार । ललना । सेलमीरस वहरावीयो । पाम्यो जवनो पार । ल लना ॥ दा० ॥ ७ ॥ चंदनबाला बाकुला । परिलाभ्या महावीर । ललना । पंचदिव्य परगट थया । सुंदररूप शरीर ॥ जलना ॥ दा० ॥ ८ ॥ पूरव जव पारेवडुं । शरणे राख्युं सूर ॥ ललना ॥ तीर्थकर चक्रवर्त्ति पणें । प्रगट्यो पुण्यपकूर | जलना ॥ दा० ॥ ९ ॥ गजनवें शशलो राखियो । करुणा कधी सार ॥ ललना ॥ श्रेणिकनें घर अवतरयो । अंगज मेघ कुमार ललना ॥ दा० ॥ १० ॥ एम अनेक में नवरया । कहतां नावे पार || जलना | समयसुं दर प्रभु बीरजी । मुऊ पहिलो अधिकार ललना ॥ दा० ॥ ११ ॥ ॥ || * || ZTET || * ||
॥ * ॥ शील कहे सुख दान तुं । किस्यो करे अहंकार । आडंबर ठे पोर । याचकशुं व्यवहार ॥ १ ॥ अंतराय वलि ताहरे । जोग करम संसार | जिनवर कर नीचा करे । तुमने पडो धिक्कार || २ || गर्व मकर रे दान तुं । मुऊ पुठै सहु कोय । चाकर चाले आगले । तो शुं राजा होय ॥ ३ ॥ जिन मंदिर सोना तणुं । नवं निपावे कोय । सोवन को की दान दिये । शीयल समुं नहि कोय ॥ ४ ॥ शीजें संकट सविटलें । शीलें जश सोनाग ॥ शीलें सुर सानिध करे । शीयल वमो वैराग ॥ ५ ॥ शीलें सर्प न नमे । शीजें शीतल माग । शीलें रि करी केशरी । जय जाये सवि नाग ॥ ६ ॥ जनम मरणना जयथकी । में बो काव्या अनेक । नाम कहुं हवे तेहना | सांगलजो सुविवेक ॥ ७ ॥ * ॥ ॥ # ॥ ढाल बीजी ॥ पास जिणंद जुहारियें ए देशी ॥ # ॥ ॥ * ॥ शील कहे जग हुं वको। मुफ़ वात सुणो प्रति मीठीरे ॥ लाजच लावे लोकनें । में दान तणी वात दीठी रे ॥ शी० ॥ १ ॥
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दान शील, तप, नाव, चौढालियो. ५११ कलह कारण जग जाणीयें । वली विरति नही पण कांइरे। ते नारद में सीऊव्या। मुफ जुन ए अधिकाईरे॥शी० ॥२॥ बांहे पहेरया बेरखा । शं खराजायें दूषण दीधोरे । काप्यो हाथ कलावती । ते में नवपल्लव कीधोरे ॥ शी० ॥३॥ रावण घर शीता रही । तो रामचंद्रे घर आणी रे । शीतार्नु कलंक नतारीयुं । में पावक कीधो पाणी रे॥शी० ॥ ४॥ चंपा बार न घामवा । वली चालणीये काढयुं नीरोरे । सतीय सुन्नद्रा जश थयो। में तस कीधी नीरोरे॥शी० ॥५॥राजा मारण मांमियो । राणी अन्नयायें दूषण दाख्योरे। शूनी सिंहासन में कीयो । में शेठ सुदर्शन राख्योरे॥ शी०॥६॥शील सन्नाह मंत्रीसरें। आवतां अरिदल थंभ्योरे । तिहां पण सानिधमें करी। वली धरम कारज प्रारंभ्योरे॥शी ॥७॥ पहिरण चीर प्रगट किया। में अष्टोत्तरशो वारोरे। पांझव नारी द्रौपदी। में राखी माम नदारोरे॥शी॥८॥ ब्राह्मी चंदन बालिका । वली शीलवती दमदंती रे । चेमानी साते सुता। राजिमती सुंदरी कुंतीरे ॥शी० ॥९॥ इत्या दिक में नघरया। नर नारीनां वृंदोरे। समयसुंदर प्रनु वीरजी। पहिले मुझ आणंदोरे॥शी० ॥१०॥ ॥
॥ॐ॥दोहा॥ ॥.. ॥॥ तप बोब्युं त्रटकी करी, दाननें तुं अवहील ॥ पण मुझ आग ल तुं किरयुं । सांजलरे तुं शील ॥ १॥ सरसा भोजन ते तज्यान गमे मीठा नाद । देह तणी शोना तजी। तुममा किस्यो सवाद ॥२॥ ना रीथकी मरतो रहे । कायर किश्युं वखाण । कूल कपट बहु केलवी। जि म तिम राखे प्राण ॥३॥ को विरलो तुम आदरे । बंमी सहु संसार । आ प एक तुं नांजतो। बीजा जांजे चार ॥ ४ ॥ करम निकाचित तोडवा। नांचं नव नय नीम । अरिहंत मुझनें आदरे । वरश उमाशी सीम ॥५॥ रुचक नंदीसर ऊपरें । मुझ लब्धे मुनि जाय । चैत्य जुहारे शाश्वता । आनंद अंग न माय ॥ ६॥ मोहोटा जोयण लाखना । लघु कुंथु आका र । हय गय रथ पायक तणां । रूप करे अणगार ॥७॥ मुफ़ कर फरसे नपशमे । कुष्टादिकना रोग । लब्धि असावीश ऊपजे । नत्तम तप संजो
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रत्नसागर. ग ॥ ८॥जे में तारया ते कहुं । सुणजो मन नलास । चमत्कार चित्त पामशो । देशो मुफ शाबास ॥९॥ ॥
॥ ॥ ॥ * ॥ढाल त्रीजी॥ नणदलनी देशी॥ॐ॥ .॥ ॥ दृढपहार अति पापीयो । हत्या कीधी चार हो । सुंदर । ते पण तिण जव उघरयो । मूंक्यो मुक्तिमकार हो ॥ सुंदर ॥ १ ॥ तप सरि खुं जगको नही । तप करे कर्मनुं सूमहो ॥ सुंदर ॥ तप कर, अति दो हिलं । तपमां नहीको कूम हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥ २ ॥ सात माणस नित मारतो । करतो पाप अघोर हो॥सुंदर ॥ अर्जुनमालीमें नघरयो। उद्या कर्म कठोर हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥३॥ नंदीषणने में कियो । स्त्रीबलन वसुदे व हो ॥ सुंदर ॥ बहुत्तर सहस अंतेनरी । सुख भोगवे नित्यमेव हो ॥ सुंदर॥ तप०॥४॥ रूप कुरूप कालो घणों । हरिकेशी चंडाल हो ॥ सुंदर ॥ सुर नर कोमी सेवा करे । ते में कीधी चाल हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥ ४ ॥ विष्णुकुमर लब्धे कियुं । लाख जोयणर्नु रूप हो ॥ सुंदर ॥ श्रीसंघ केरे कारण । ए मुझ शक्ति अनूप हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥६॥ अष्टापद गौ तम चढ्या । वांद्या जिन चोवीश हो ॥ सुंदर ॥ तापस पण प्रतिबूझव्या तेणें मुझ अधिक जगीश हो ॥ सुंदर ॥ तप०॥७॥ चौद सहस अण गारमा । श्री धन्नो अणगार हो॥ सुंदर ॥ वीण जिणंद वखाणीयो। ए पण मुफ अधिकार हो ॥ सुंदर ॥ तप०॥८॥ कृष्ण नरेसर आगलै । उक्कर कार कहाय हो ॥ सुंदर ॥ ढंढण नेमी प्रशंसीयो। मुफ़ महिमा सवि तेह हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥ ९॥ नंदीषण वोहोरण गयो । गणिकायें कीधी हास हो ॥ मुंदर॥ वृष्टि करी सोवन तणी । में तसु पूरी आश हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥ १० ॥ एम बलभद्र प्रमुख बहु । तारया तपसी जीव हो । सुंदर ॥ समय सुंदर प्रनु वीरजी । पहिलो मुझ प्रस्तावहो । सुंदर तप०॥२
॥ ॥ ढाल चौथी॥ ॥ . ॥ ॥नाव कहे तप तुं किशुं । मयुं करे कषाय । पूर्व कोमी जो तप तपे। कणमां खेरू थाय ॥१॥ खंधक आचारज प्रते । तें बाल्यो सवि देश । अशुन्न नियांणुं तुं करे । रुमा नही लव लेश ॥ २ ॥ श्रीपाय
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दान, शील, तप, जाव चौढालियो. . ५१३ न रुषि दूहव्या। सांब प्रद्युम्न सनाह । ते तब क्रोध करी तिहां । कीधो मारिका दाह ॥३॥ दान शीयल तप सांजलो । मकरो उठ गुमान । लो क सहुको साखदे। धर्मे नाव प्रधान ॥ ४ ॥ आप नपुंसक गे त्रणे। द्ये व्याकरण ते साख । काम सरे नहि कोर्नु । नाव नणे में पाख ॥५॥ रस विण कनक न नीपजे । जल विण तरुअर वृधि । रसवति रस न हि लवण विण । तिम मुफ विण नहि सिधि ॥६॥ मंत्र यंत्र मणि ओ षधी । देव धर्म गुरु सेव । जाव विना ते सवि वृथा। नाव फले नितमेव ॥७॥दान शील तप जे तुमें। निज निज कह्या वृत्तंत । तिहां जो ना वन हुँत तो । कोइ सिधी नवि हुंत ॥८॥ नाव कहे में एकले । तारया बहु नर नार। सावधान थइ सजिलो। नाम कहुं निरधार ॥ ९॥ * ॥
॥ॐ ॥ ढाल चौथी॥ * ॥ ॥ॐ॥ कानन मांहे कानसग्ग रह्योरे। प्रस्नचंद कृषिराय । ते में की धो केवलीरे। ततहण करम खपाय ॥ १ ॥ सोनागी सुंदर। नाव वमो संसार । ए तो बीजो मुफ परिवार ॥ सो० ॥ दानादिक विण एकलोरे। पोहोंचाईं नवपार ॥ सो॥२॥ (ए आंकणी) बंश नपर चढी खेलतो रे एलापुत्र अपार । केवल ज्ञानीमें कियोरे । प्रतिबोध्यो परिवार ॥ सो ॥३॥ नूख तृषा खमें अति घणीरे । करतो कूर आहार । केवल महि मा सुर करेरे । कूरगडू अणगार ॥ सो० ॥ ४ ॥ लानथी लोन वाधे घ णोरे। आण्यो मन वैराग । कपिल थयो मुनि केवली रे । ते मुफनें सो नाग॥ सो०॥ ५ ॥ अर्णिका सुत गहनो धणीरे । हीणजंघा बलि जा रण। कीधो अंतगम केवलीरे । गंगाजल गुणखाण ॥ सो॥ ६॥ पन्न रशें तापस नणारे। दीधी गौतमें दिक्ख । ततदाण कीधा केवलीरे। जां मुझ मानी शीख ॥ सो० ॥ ७ ॥ पालक पापीयें पीलियारे। खंधक सूरि ना शिष्य । जनम मरणथी गेमव्यारे। आपे मुझ आशीष ॥ सो० ॥ ८॥ चंम रुद्रनें चालतांरे । दीधो दंमप्रहार । नव दीक्षित थयो केवलीरे । ते गुरु पण तेणी वार ॥ सो० ॥ ९॥ धन रथ कारक साधुनेंरे। पडिलाभ्यो नल्लास । मृगलो भावना जावतोरे। पोहोतो स्वर्ग आवास ॥ सो० ॥ १० ॥ निज
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रत्नसागर.
अपराध खमावतीरे। मुंक्यो मनथी मान । मृगावतीने में दियुरे। निर्मल केवल ज्ञान ॥ सो० ॥ ११ ॥ मरुदेवी गज ऊपरेरे। देखी पुत्रनी झन । मुझने मनमांहे धरयोरे। ततहण पामी सिध॥ सो० ॥ १२ ॥ वीर बंदन चाल्यो मारगेंरे । चाप्यो चपल तुरंग । दईरनामें देवतारे । तेह थयो मुझ संग ॥ सो० ॥ १३॥ प्रनुपाय पूजन नीसरीरे। ऽर्गला नामें नार । काल धर्म विचमां करीरे । पोहोती स्वर्ग मकार ॥ सो० ॥१४ ॥ कायानी शोला कारिमीरे । रूप किसुं अभिमान । नरत आरीशा नुवनमारे। पाम्यो केवल झान ॥ सो० ॥ १५ ॥ आषाढनूति कलानिलोरे । प्रगट्यो नरत सरूप नाटक करतां पामियोरे । केवलज्ञान अनूप ॥ सो० ॥ १६ ॥ दिवा दिन कासग्ग रह्योरे। गजसुकुमाल मशाण ॥ सोमल शीश प्रजालियुंरे । सिधि गयो शुल जाण ॥ सो० ॥१७॥ गुणसागर थयो केवलीरे । सांगली पृथिवी चंद । पोते केवल पामियोरे। सेवकरे सुर इंद्र ॥ सो० ॥१८॥ एम अनेकमें नघरयारे । क्या शिवपुर वास । समयसुंदर प्रभु बीरजीरे । मुऊने प्रथम प्रकाश ॥ सो०॥ १९॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥दोहा॥॥ ॥ * ॥ बीर कहे तुमे सांनलो। दान शीयल तप नाव । निंदा चै अ ति पापिणी । धर्म कर्म प्रस्ताव ॥१॥ पर निंदा करतां थकां । पापें पिंक जराय। वेढ राढ वाधै घणी । धुर्गति प्राणी जाय ॥२॥ निंदक सरिखो पापियो। जूमो कोई न दिछ । वलि चंमाल समो कह्यो । निंदक वदन अ दिठ॥३॥ आदि प्रशंसा आपणी । करतो इंद नरिंद । लघुता पामें लो कमां। नासे निजगुण वृंद ॥४॥को केहनी म करो तुमे । निंदा ने अ हंकार । आप आपणे ठगमें रहो । सहुको नलो संसार ॥ ५ ॥ तो प ण अधिको नाव ने। एकाकी समरत्थ । दान शीयल तप त्रणे जलां । प ण नाव विना अयकत्थ ॥ ६॥ अंजन आंखें आजतां । अधिको आणी रेख । रजमांही तज काढतां । अधिको भाव विशेष ॥७॥ नगवंत हठ जंजण नणी। चारे समान गणंत । चार करी मुख आपणां । चनविध धर्म नणंत ॥८॥ ॥
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कार श्री कुंथुजिन चैत्यप्रतिष्टा स्तवन
॥ * ॥ ढाल पांचमी ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ वीर जिणेसर इम न रे । बेठी परखदा बार | मे प्राणिया रे । जिम पामो जव पाररे । धर्म हीये धरो ॥ १ ॥ र प्रकारो रे । नवियण सांगलो । धर्म मुक्ति सुख कारो रे ॥ ( एकणी ) धर्मथकी धन संपजे रे । धर्मथकी सुख होय । धर्मथकी आरति टलै रे । धर्म समो नहिं कोयरे ॥ धर्म० ॥ २ ॥ दुर्गति पकतां प्रा
या रे । राखै श्री जिनधर्म । कुटुंब सहुको कारीमुँरे । मत भूलो नवि जर्म रे ॥ धर्म० ॥ ३ ॥ जीव जिके मुखिया हुआरे । वली होवे होसी जेह ते जिनवरना धर्मथी रे । मत कोई करो संदेह रे ॥ धर्म० ॥ ४॥ सौल बासठ सरे । सांगानेर मकार ॥ पद्मप्रभु सुपसान्तेरे। एह
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धर्म करो तु धर्मना चा धर्म• ॥
यो अधिकार रे || धर्म० ॥ ५ ॥ सोहम सामी परंपरा रे । खरतर गद्य कुलचंद | युगप्रधान जग परगडोरे । श्री जिनचंद सूरीस रे ॥ धर्म ● ॥ ६॥ तास शिष्य प्रतिदीपतो रे। विनय वंत जशवंत । आचारिज चढती कला रे। जिन सिंह सूरिमहंत रे ॥ धर्म० ॥ ७ ॥ प्रथम शिष्य श्री पूज्यनारे | सकलचंद तस शिष्य । समयसुंदर वाचक जणें रे । संव सदा सुजगीस रे ॥ धर्म० ॥ ८ ॥ दान शील तप भावना रे । सरस रच्यो संवाद । जणतां गुणतां नाव रे। कषि समृद्धि सुप्रशादो रे ॥ धर्म० ॥ ९ ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ # ॥ चक्रेश्वरी देवी आरती ॥ # ॥
॥ * ॥ जय जय रति देवी तुमारी । नित्य प्रणम् हुँ तुम चरणारी जय० ॥ १ ॥ श्री सिधाचलगिरी रखवाली । नाम चकेसरी जग सोख्या जी ॥ जय० ॥ २ ॥ सुविहत गहनी शासन देवी | सकल श्री संघने सुःख करेवी ॥ जय० ॥ ३ ॥ निजवट टीलडी रत्न बिराजे । काने कुंमल दोय रवि शशि बाजे ॥ जय० ॥४॥ बांहे बाजुबंध बेरखा सोहे । नीलवर्ण स डु जन मन मोहे ॥ जय० ॥ ५ ॥ सोवन मय नित्य चूडी खलके । पा
घरमा घमघम घमके ॥ जय० ॥ ६ ॥ बाहन गरुन चड्या बहु प्रे में। तु गुण पार न पामुं केमें ॥ जय० ॥ ७ ॥ चूनडी जमामां देह प्रति दीपे । नवसरा हारे जग सहु जीपें ॥ जय० ॥ ८ ॥ नित नित मानी
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रत्नसागर. आरती नतारे। रोग सोग नय दूर निवारे ॥ जय० ॥९॥ तस घर पुत्र पुत्रादिक गजे। मन वंचित मुख संपद राजे ॥जय० ॥१०॥ देवचंद्र मुनि आरति गावे । जय जय मंगल नित्य बधावै ॥ जय० ॥११ ॥ ॥ * ॥ बीकानेर, श्री कुंथुजिनचैत्यप्रतिष्टा स्त० ॥ * ॥
॥ॐ॥ दादा चिरंजीवो० ॥ (इस चालमें) ॥ * ॥ आज हर्ष जयो त्रिनुवन नायक कुंथु जिनेसर बेटिया ॥ (आ.) प्रनु मस्तक मुगट बिराजै । रविजिम कुंम्लयुग गजै जै । गुण सगला अंग समाजै जै ॥ (आ०) ॥१ ॥ प्रनु चौतीश अतिशय धारक जै। बांणीना गुण बिस्तारक छै । सहु देवेंद्र जिणना पायक छै॥ (०) ॥२॥ प्रनु सिंहासण पर सोहै । जसु उत्रचामर शिर होवै जै। नवि यणना मनकुं मोहै , ( आ० )॥३॥ प्रनु ध्यांने जे होय रंग राता । ते पामें नवनिधि सुखशाता । अवसाने मुक्तिपुरी पाता (आ.)॥ ४ ॥प्रनु कुगुरु कुदेवकुं में ध्यायो । जब काल अनादी उखपायो । अबतो तुम शरणें हुं आयो (आ.) ॥५॥प्रनु बिरुध तुझारा चित धरने । नवन य टालो सुनिजर करनें । जिम जगमें सहु जस तुम वरनें (.) ॥६॥ संवत् नगणीस इकतीश । जेठ नज्वल दशमी मन हींस । करी चैत्य प्रतिष्टा शुन्न दीसै । (आ० )॥७॥ प्रनु आज सफल नयो दि न मेरो । रवि जिम प्रगट्या बीकानेरो । सहु आनंदकारक संघ तेरो (आ.)॥ ८॥ जिन हंस सूरीश्वर महाराजा। थाप्या अतिशय धर जिनराजा । गुरु लक्ष्मीप्रधान सेवणकाजा (आ.)॥९॥ ॥ इति बिक्रमपुर मध्ये श्री कुंथुनाथ जी चैत्यप्रतिष्टा स्तवनम् ॥ * ॥
॥ॐ॥श्रीशीतल जिन स्तवन ॥ॐ॥ ॥ ॥ (श्रीशंखेसर पाशजिनेसर)। (इस चालमें)॥ श्रीशीतल जिनचंद अनंत गुणाकरू । महा गोप महामाहण- जगपति सुख करू । जगगुरु जगदाधार शरण तोरै सदा । रहतां स्वपनमें उक्ख पांमुं नहीं हुं कदा ॥१॥ तूंही चिदानंद देव तूंही मुझ गुरु अझै । तूंही तात तुही मात तूं ही बंधवा । काम धेनुं चिंतामणि सुरतरु तुं सही । अक्षय
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कलिकत्ता मंगण श्री शीतल, शांति जिन स्तवन. ५१७ मुख दातार तुं ही पायो मही ॥२॥ तुमनांमें अडसिघ नवे निध पाइयै । दिन २ बढतो तेज कीरति जगनाइयै । इंद नरिंद सहू बस होय तुम सेव तां । नबव आनंद होय सहूगुण कैवतां ॥३॥ तप जप संजम नार कडू नहीं बणसकै॥ वहुल कर्मकै जोर चित नहिं रहसकै । जो आतम गुण ग्यांन प्रगट होय माहरो। तो पांमुं सहु नेद बिनकमें ताहरो । ब्रह्मा बिष्णु महेश जाणुं मुझ सारषा । बीतरागतुं देव करीमें पारखा । दीनदया ल दया निधि शिवसुख दीजियै । मोहन निजगुण पाय एही जश लीजिये इति जगन्मएमण श्रीशीतलजिन स्तवनम् ॥ ॥
॥ ॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ॐ॥ (श्रीसंखेसर पाश० ) (और) नदी जमुनाकै तीर नमै दो य पंखिया । (झांरा लाल न० ) इस चालमें ॥ दृढरथ नंदानंद पूरण अतिशय धरू । बदन कमलको तेज देखी लिपै दिन करू । अंगन पांग लवण दीसै सहु दीपता । रूपे सुर नर इंद सहूकुं जीपता॥१॥ मुगट कुंमल गलहार बाजूबंध सोहता। वतस्थल श्रीबन तिलक मनमो हता। उत्र चामर नाममल गुण सहु फरसता। अणियाला दोय नेत्र अ मीरस वरसता ॥२॥ देव नुवन जिम चैत्य बण्यो बहु जावसें । देखी प्र फुल्लित होय सहू गुण दावसें । अनुपम महमा देखि चित्त अति मोहि यो। आनंद अधिक अपार हियामें सोहियो॥ ३ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म सेव्यो बहुकालमें । मोह मिथ्यातकै जोर पडयो बहुजालमें । पूरण पु न्य हिव जोग प्रनु दरशण मिल्यो । जव जय संकट उक्ख सहू निश्चै ट ल्यो॥ ४ ॥ तारण जवजल मांहि शीतल प्रनु जाणियो । तुम गुण अपरंपार हिया में पिगंणियो । शिवसुख लक्ष्मी प्रधान सेवक वद्री नणी । मोहन प्रनु सुख कंद मिलै शीतल धणी ॥५॥ इति कलकत्ताममण श्री शीतलनाथजी स्तवनम् ॥ ६॥
॥*॥ ताल तुमरी॥॥ ॥ ॥ वीरप्रनु तेरी दोस्तीमें । मेरी मुमता सखी मेहरवान नईरे ॥ (वी.) आप नहीं आवै बोधा पठावै । तेरी सुरत कुरवांन नईरे॥ (वी०)
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रत्नसागर.
॥ १ ॥ शासन नायक एही अरज है। दीजै दरश वमी वेर नईरे (वी० ) ||२|| आश दाशकी पूरन कीजै । चरण शरण लपटाइ रही रे ( वी० ) ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ ॥
* ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ * ॥ जिन जीसें मोरी ० ( इस चाल में ) ॥ सदा सहाई शांति जिने सर जवदुख दूर गमाय ( जलांजी मला जव० ) । विश्वशेनके कुलमें सुर तरु | अचिराके नंद कहाय ( न० ) । जनम भूमि हथा पुर जाके । मृ ग लंबन सुखदाय ( ० ॥ १ ॥ स० ) ॥ तीश अधिक दश धनुष प्रमा
। काया कंचन सोनाय ( ० ) कुरुवंश कुल लाख बरश स्थित । केव लग्यांन बरदाय ( ० ॥ २ ॥ स० ) गर्न थकां प्रनु शांति करी जब । शांति नाथ पढ़ पाय ( ० ) जव जव जमतां शरणे आयो । अबतो करि
सहाय ( ० ॥ ३ ॥ स० ) ज्युं पारेवा ऊपर तुमनें । करुणा अधिक कराय ( ० ) परतिख प्रनुपुर कलि कत्तामें । सहु जन बांबित दाय ( ० ॥ ४ ॥ स० ) मुक्तिकमल कहे शिवसुख दायक । संकट दूर पुलाय ( ० ॥ ५ ॥ स० ) इति कलिकत्ता मंगन श्री शांतिनाथजी स्तवनम्॥॥॥ || * || TF: || ❀ ||
॥ * ॥ प्रभुजीकी महमा अजब बनीजी मारो मनको लियो रे लोनाय ( जलां जी पनु मनडोलियो रे जोनाय जी ) । विश्वशेन प्रचराजीके नं दा। शांतिनाथ मन नाय ( ० प्र० ) मस्तक मुगट काने युग कुंरुल ।
अंगियां रही (लां० प्र० ) ॥ १ ॥ मोहनी मूरत सोहनी सूरत सहु जनकं सुखदाय । नाम ग्रहण करतां जिनजीको । सुरगण पर्ने सहु पाय ( जलां० प्र० ) ॥ २ ॥ त उपद्रव दुख सहु टाले । नित प्रति मंगल थाय ( ० ) मुक्तिकमल कहै सुरतरु सरिखा । मनवंबित फल दा य (जलां० प्र० ) ॥ ३ ॥ इति द्वितीय शांतिनाथजी स्तवनम् ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ थ काती महोचव बधाई लि० ॥ ॥ ॥ * ॥ रथ चढ जाडु नंदन प्रावत है । ( इस चाल ) ॥ ॥ आज नगर में हरख बधाई । समवसरण प्रजु श्रावत है । (
० ) धरम
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श्रावककी अहोरात्र करणी.
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० )
जिनेशर जग परमेशर । शांति सूरत मनभावत है ( प्रा० ) ॥ १ नुपम रयण जमी नर अंगियां । मुगट कुंमल चित्त चावत है ( ॥ २ ॥ बत्र चामर नामंगल दीपत | नवसर हार सुहावत है ( ० ) ॥ ३ ॥ सरदशशि मुख कमल बिराजत । रविजिम तेज फैलावत है (प्रा० ) ॥ ४ ॥ नर नारी सह अंग आभूषण । लुल लुल शीश नमावत हैं ( प्रा० ) ५ ॥ मणि भुगता फल त श्रीफल । नर भर थाल बधावत है ( ० ) ॥ ६ ॥ बीणा मृदंग ताल कंसाला । मधुर ध्वनी गुण गावत है ॥ ७ ॥ सहुपुर इंद्र धजा प्रति दीपत । बिबिध बाजित्र सुहावत है ॥ ८ ॥ इत्यादिक मेंबर बहुविध । कहतां पार न आवत है ॥ ९ ॥ (०) कार्त्तिक सुद पूनम दिन हव । देख सहू सुख पावत है ( ० ) ॥ १० ॥ धन्यभाग कलिकत्ता पुरमें। मोहन प्रभु गुण गावत है । ( २ ) ॥ ११ ॥ इति कलकत्ता कार्त्तिक महोव वर्णन श्रीधरमनाथ स्वामी बधाई सं० ॥
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॥ ॐ ॥ अथ शासन नायक बधाई ॥ ॥ ॥ ( केशरियानें काजको लोक इस चालमें ॥ हमारे आज प्रानंद बधाई । प्रनु बीरचरण सुखदाई | ( हमारे आज आनंद बधाई ) सिधारथ नंदन जगवंदन | त्रिशला मात कहाई । क्षत्री कुंममें ज न्म लियो है । सुर नर मा धाई ( ह० प्रा० ) ॥ १ ॥ कंचन वरण धिक तन सोति । लंबन व्याघ्र सुहाई । तीन ग्यान संयुत प्रनु कहिये ।
विकुं सुखदाई ( ० ० ) ॥ २ ॥ केवल पाय सबी सुरसंगे । पा वा पुरमें आई । समवसरण विच देशनादेतां । परखदा बार बनाई ( ह०
० ) ॥ ३ ॥ नूमंगल बिच बहुत जीवकुं । जवजल पार लंबाई | च रम चौमाशि पावा पुरि करके । शिवपुर पंथ सिधाई ( ह० आ० ) ॥ ४ ॥ चौराशी लख जोनीमें फिरतां । काल अनादि गमाई । पुन्य संयोगे प्रजु तुम नेव्या । पातिक दूर पुलाई ( ह० प्रा० ) ॥ ५ ॥ तारण तरण जग तिजन बल । सिवरमणी बरदाई | लक्ष्मी प्रधान सेवे कर जोगी । मोहन क सुखपाई ( ० ) ॥ इति वधाई संपूर्णम् ॥ ॥
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रत्नसागर.
॥ * ॥ थ श्रावककी करणी लि०
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॥ * ॥ श्रावक तूं ऊठे परनात । च्यारघमी ले पिळलीरात । मनमें स मरे श्री नवकार । जिम ला जवसायर पार ॥ १ ॥ कवण देव कवण गुरुधर्म | कवण हमारे कुलकर्म । कवण हमारे बै व्यवसाय | एहवो चितवजे मन मांह ॥ २ ॥ सामायक लेजे मनशुधि । धरम तणी घरी हि
बुद्धि । पकिमणो कर रयणी तणो । पातक आलो आपणो ॥ ३ ॥ काया सगति करे पच्चखाण । सूधी पाले जिनवर प्रांण । जण जे गुण जेतवन सिझाय । जिए हुँती निसतारो थाइ ॥ ४ ॥ चीतारे, नित चन्दै नेम । पाले दया जीवै तां सीम। देहरे जाय जुहारे देव । द्रव्यत जावित कर जे सेव ॥ ५ ॥ पोशाले गुरु वंदन जाय । सुणे वखाण सदा चितलाय । निरदूषन सूकतो आहार | साधानें दीजे सुविचार ॥ ६ ॥ साहमी बल करि जे घणा । सगपण मोटा साहमी तथा । दुखिया हीणा दीना देख । करि जे तास दया सु विसेष ॥ ७ ॥ घर अनुसारै दीजे दान । मोटासूं मकरे अभिमान । गुरुनें मुख लेजे आखमी । धरम न मेल्हे एका घडी ॥ ८ ॥ वारूशुद्ध करे व्यापार । कंग अधिकानों परिहार । मजरे केहनी कूमी साप । कूमासोंस कथन मत नाष ॥ अनंतकाय कहियै बत्तीस वावीसे विसवावीश । ते नक्कण न करी जै किमैं । काचा कवला फल मत जिमैं ॥ १० ॥ रात्री भोजननो बहु दोष | जाणीनें करिजे सं तोष । साजी साबू लोहने गुली । मधु धाहडी मवेचे वली ॥ ११ ॥ वि मकरावे रंगण पास । दोषण घणा कह्या बै तास । पाणी गल जे बे बे वार। गल पीथां दोष अपार ॥ १२ ॥ जीवाणीनां करे जतन्न । पात . क बोडी करिजे पुन्न । बाणां इंधण चूल्हे जोय । वावर जे जिम पाप न होइ ॥ १३ ॥ घृतनीपर वावर जे नीर । प्रणगल नीर मधोए चीर । वारे व्रत सुधा पाल जे । प्रतीचार सगला टाल जे ॥ १४ ॥ कहिया पनरै क रमा दान । पाप तणी पर हरि जे खान । शीश मलेजे मनरथ दंग । मि थ्या मैल मनरिजे पिंड ॥ १५ ॥ समकित शुद्ध हीयमै राख जे । बोल विचारीनें माखजे । उत्तम ठग खरचे वित्त । परनुपगार करे शुभचित्त
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सेठेज खेलन विचार स्तवन. ५२१ ॥१६॥ तेल तक घृत दूध दही। नग्घामा मतमेले सही । पांचे तिथ मकरे आरंन । पाले शील तजे मनदंन ॥ १७ ॥ दिवश्वरम कीजे च नविहार । च्यारे आहार तणोपरिहार । दिवश तणा आलोए पाप । जि म लाजै सगला संताप ॥ १८ ॥ संध्या आवश्यक साचवे । जिनवर च रण शरण नव प्रवे । च्यारे शरणां दृढ करि रए । सागारी अणशण ले सुए ॥१९॥ करे मनोरथ मन एहवा । जाऊं तीर्थ शेजे जेहवा । समे त शिखर आबू गिरनार । बेटीस कबहुं धन अवतार ॥२०॥ श्राव ककी करनी चै एह । एहथी थायै नवनो नेह । आठे करम पमै पात ला। पापतणा बूटै आमला ॥ २१॥ वारू लहीये अमर विमान । अ नुक्रम पावै शिवपुर थान । कहै जिन हर्ष घणे ससनेह । करणी उख हरणी चै एह ॥ २२॥ इति श्रावककै अहनिशि कर्त्तव्य संपूर्णम् ॥१॥
॥॥श्रीपार्श्वजिन स्तवन लि०॥॥ ॥ ॥ सुण अर दाशा सुगुण निवाशा । अमचीपूरो प्रनु आशा रा ज (सु०) ॥ देख नदाशा अपणा दाशा । दीजै कलुक दिलाशा राज ॥१॥ (सु०) ॥ चामी चटकी नव मांहे लटकी । नाच्यो में विधन टकी राज (मु० ) हिव मन हटकी आपसुं अटकी । लागुं प्रनुपाय लटकी राज ॥२॥ (सु०) ॥ ते हम टाली मुगति संभाली। प्रीत अमे हीज पाली राज (सु०) एक हथाली वाजे ताली । वात अचंना वाली राज ॥३॥ (सु०) ॥ ते नपगारी पाश तुह्मारी । सेवामें विध सारी राज (मु०)॥ तत्व विचारी मन सुध धारी । श्रीधमशी सुख कारी राज ॥४॥(सु०)॥ इति श्रीपार्श्व जिन स्तवनम् ॥ * ॥
॥ ॥ अथ चौपम खेलन विचार स्तवन लि०॥॥ .
॥ ॥ (राग सोरठी)॥ * ॥ अरे माहरा प्राणीया (चतुर नर ) चौ पम इणविध खेलरे । अशुन करम मल कारकै (च०) । जाजम कर वै राग रे । वमीय विगयत वैसजो (च०)। जहां नहीं कुमतिको लागरे (अरे०)॥१॥ दान शील तप नावना (च०)। चोपड एह पसाररे। आठ दाव एक बोल में (च० ) आई करम निवाररे ॥२॥ (अरे०)
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. रत्नसागर. देव गुरु धर्म तीनुं जला (च०)। पाशा एही जाणरे । अवशर कर हा थे लीया (च० ) नऊल लेश्या आणरे ॥ ३ ॥ दरशण ग्यांन चारित्र जला (च० )तीनुंई गुपती विचाररे । नव तत्व सात हिरदे धरो (च०)। एसब शोला साररे॥४॥ (अ०) पड्या अठा रै रहणदे (च० ) पोबा रा ब्रत धाररे। दस लवण दस धरमहै ( च० )। हितकर हीयै विचाररे ॥५॥ (अ० ) षट्काया कमीपमी (च०) हिरदै दया विचाररे । पु न्य उदै पंजमी पमी (च०) पंच महा ब्रत धाररे॥६॥ ( अ ) च्यार तीन काणा पड्या (च०)। सातुंई विसन निवाररे । जे पुरगति दायक सही (च०)। वाधै अनंत संसाररे ॥ ७॥ (अ० ) चिहुं गति वाजी लग रही (च०) मुक्ख सह्या नरपूररे । करमकटै सुख ऊपजै (च०) रतनसागर कहै सररे॥८॥(अ०)॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति श्रीचौपम खेलन हित नपदेश सिशाय संपूर्णम् ॥ * ॥
॥ ॥ सेठेज खेलन विचार स्तवन लि० ॥ ॥ ॥ ॥ सेज खेल खिलारी । सब समझ देख सेठेजकी पात । ल ख दोलं दल अपनें परायें की जात । काऊ बिध कर मोह बादस्थाहकों मात । जब जाएं तोय चतुर खेलन खिलार (हे से० )॥१॥ प्राकुं कर्म पिया दे आगै फूकतेही आवै । काम क्रोध गज चलत थंनत नहीं थनै । लोन ऊंठ चारं खूटकी मरोड चल ध्यावै । मान मायाके तुरंग चालचपल देखावे। मिथ्या मत सो वजीर वीरवाकै ढंग गमो । वाकै मारवैकों दल अपनो संचार (हेसे०)॥२॥ तेरो ग्यान सो वजीर वीर तेरे ढंग ठामो । आठों अंग समकि तके पियादे हलकारो । त्याग सांढिया सवार पर सांढियां को मारो । सत्य व चन तुरंगसुं तुरंग निवारो। आमा शील दोय फील राखो दलकैअगामी । परद ल कर मारो दिन में संहार (हे से०)। जप तप सत व्रत याकै धेरै चिहुं नर जब वाकै चलने की काइ रहै नई गोर। जब तेरी होगी जीत दूजो हा रेगौ खेलारी । जब सुजश को तेरै शिर वधैगो मोड । गमे इंद्र धरणिंद्र तोरे ढोलेंगे चवर । तेरो जजन नजैगौ गुण अगाह (हे से) ॥३॥ इति सजनपुरूषोंके सेज खेलन विचार संपूर्णम् ॥ ॥ * ॥ ॥8
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श्री महाबीर स्वामीको पारणो.
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॥ # ॥ अथ श्रीमहावीर स्वामीको पारणो लि० ॥
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॥ ॥ (दुहा ) ॥ श्रीअरिहंत अनन्त गुण | अतिशय पूरणगात्र । मुनि जे ज्ञानी जे संयमी । ते कहीयै उत्तम पात्र ॥ १ ॥ पात्र तणी अनुमो दना | करतो जीसेठ । श्रावक अच्चुय गति लहै । नव यैवेकां हेठ ॥ २ ॥ दश चनमाशा बीर जी । विचरत संयम वास । वेशाजापुर प्रावीया । इ ग्यारमी चौमाश ॥ ३ ॥ ढाल । एकघर घोमा हाथीया जी ( एहनी ) ॥ चौमाशी एह इग्यारमीजी । विचरत साहस धीर । वेशालापुर वाहिरै जी । आव्या श्री महाबीर ॥ १ ॥ ( जगत्गुरु त्रिशला नन्दनजी ) नलैमें नै या श्री जिनराय । सखीरी चौक पूरावो आय । मेरै नाग अनोपम थाय ( ज० ) ॥ २ ॥ बलदेवनो बै देहरोजी । तिहां प्रभु कावसग्ग लीध । पच्च क्खाण चनमाशनो जी। स्वामी ए तप कीध ( जग० ) ॥ ॥ ३ ॥ जीरणसेठ तिहां रहैजी । पालै श्रावक धर्म । श्राकारै ति नलख्या जी । जां श्री जिन मर्म ॥ ( ज० ) ॥ ४ ॥ आज उपवासीया जी । स्वामी श्री बधमान | काल्हि सही प्रभु जीमस्यै जी । मैं हथ देस्युं दान ॥ ( ज० ) ॥ ५ ॥ सदा सेठ इम चिंतवै जी । होसी सफल मुफ़ प्रास | पक्ष माश गितां थकां जी। पूरी थई चनमाश ॥ ( ज० ) ॥ ६ ॥ सामग्री आहार नी जी । जीरण कीध तयार । प्रजुनो मारग देखतो जी । वैठो घरने वार ॥ ( ज ० ) ॥ ७ ॥ घरि आवे बे पाहुणा जी । निहुत्या एकणबार । प्रनुजी कान पधारसी जी । में निहुत्या वारंवार ॥ ( ज० ) ॥ ८ ॥ पी करि स्युं पारणो जी । हुँ मनुनें पनिलान । होय मनोरथ एहवो जी । तो विन बरसे आन ॥ ( ज ० ) ॥ ९ ॥ अवसर ऊठ्या गोचरी जी । श्रीसिधारथ पूत । देशालापुर अवतां जी । पूरण घरेय पहुत्त ॥ ( ज० ) ॥ १० ॥ मिथ्यात्वी जां नहीं जी। जंगम तीरथ एह । चेमीनें कहै एहवो जी । कां इक निका देह ॥ ( ज ) ॥ ११ ॥ चाटूनरने बाकुला जी। प्रजुने प्राणी ata | नीरागी तेहीलीया जी । तिहांप्रनु पारणो कीध ॥ ( ज० ॥ १२ ॥ देव वजावे दुडुनी जी। जय बोलै करजोकि । हेम वृष्टि हुई तिहां जी । साठी बारह कोमि ॥ ( ज० ) ॥ १३ ॥ कहो सेठ तूझेस्युं दीयो जी । की
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रत्नसागर
को
यो पारणो वीर। लोकां प्रतें इम कहे जी । में वैराई कीर ॥ ( ज० ) ॥ ॥ १४ ॥ राजादिक सहु ए कहै जी। धन धन पूरण सेठ । ऊंची करणी तैं करी जी । अवर सहू तुऊ हेठ ॥ ( ज० ) ॥ १५ ॥ जीरण सेठ सु तबैजी । बाजित्र पुंडुनी नाद । अनन्त कीयो किहां पारणोजी । मनमें थयो विखवाद || ( ज ० ) ॥ १६ ॥ हुं जगमें अभागीयो जी। मेरे नाया सांम । कल्पवृक्ष किम पामीयै जी । मारू मंडल गम ॥ ( ज० ) ॥ १७ ॥ जेता मनोरथ में कीया जी । तेता रह्या मनमांहि । निरधन जिम जिम चिं तवेजी। तिम तिम निरफल थाहि ॥ ( ज० ) ॥ १८ स्वामी तिहां कीयो पारणोजी । कीयो अथ विहार । या पाश संतानीया जी । तिहां मुनि केवल धार ॥ ( ज० ) वेशालापुर राजीया जी । लोकांसं आणंद | राय प्रश्न पूबै तिहांजी । सुगुरु चरण अरविंद ॥ ( ज ० ) ॥ २० ॥ मेरै नगरमें जी। जीवपुन्य जशवंत । कहै केवली आाजतो जी । जीरण सेठ म हंत ॥ ( ज० ) ॥ २१ ॥ राय कहै कि काररौंजी । जीरण सेठ महंत । दान दीयो जिनवीरनेंजी । पूरण ते जसवंत ॥ ( ज० ) ॥ २२ ॥ रायप्रतें कहै केवलीजी । पूरण दीनो दान । हेमवृष्टि फल तेहनें जी । वरन कोई प्रमाण (ज० ) ॥ २३ ॥ देवलोक तिए वारमैंजी। जीरण घाल्योबंध । विना दान दीना लह्यो जी । उत्तम फल संबंध ॥ ( ज० ) ॥ २४ ॥ धमी एक सुर डुनी जी । जो न सुणं तो कान । लहि तो जीरण तो सहीजी । केवल अविचल ठाण ॥ ( ज० ) ॥ २५ ॥ राजा जीरणने दीयोजी। अ धिक मान सन्मान । मुख्य नगर में थापीयोजी । जोवो पुन्यप्रमाण ॥ (ज०) ॥ २६ ॥ दान दीयो सुपात्रनें जी । ते निष्फल नवि जाय । पात्रदान अनु मोदतांजी । जीरण जिम फल थाय ॥ ( ज० ) ॥ २७ ॥ इम जाणी अनु दनाजी । दान सुपात्र रसाल । दान देवै सुपात्रने जी । तेहनें नमें मुनिमा ल ॥ ( ज० ) ॥ २८ ॥ इति श्री महावीर स्वामीको पारणो संपूर्णम् ॥ ॥ ॐ ॥ अथ सब पापादिक आलोयण स्तवन लि० ॥ ॥
॥ * ॥ बेकरजोगी वीनवूंजी। सुणि स्वामी सुविदीत । कूम कपट मूंकी करीजी । बात कहूं आपवीत ॥ १ ॥ ( कृपानाथ मुऊ वीनती अवधार)
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वेकरजोमी, आलोयण स्तवन. तुं समरथ त्रिनुवन धणीजी। मुझनें उत्तर तार ॥( कृ०)॥२॥ नवसायर जमतां थकां जी। दीग दुःख अनन्त । जाग संयोगै नेटीयोजी। जय नं जण जगवंत ॥ (कृ०)॥ ३ ॥ जे फुःख प्रांजे आपणोजी । तेहनें कही मैं पुःख । परपुःख भंजण तूं सुण्यो जी । सेवकनें द्यो मुक्ख ॥ (कृ०) आलोयण लीधां पखैजी। जीव रुलै संसार । रूपी लक्ष्मणा महासतीजी । एह सुणो अधिकार ॥ (कृ०)॥५॥ दूषम काले दोहिलोजी । सूधों गुरु संयोग । परमारथ पीठ नहीं जी । गमर प्रवाही लोग॥ (कृ०)॥६॥ तिण तुम आगलि आपणाजी । पाप आलोकं आज । माय बाप आग लि बोलतां जी । बालक केही लाज ॥ ( कृ० ) ॥ ७॥ जिन ध्रम २ सहू कहै जी । थापै अपणी वात । सामाचारी जूई जूई जी । संसय पॐ मिथ्यात ॥ (कृ०)॥ ८ ॥ जाण अजाण पणे करी जी । बोल्या नुत्सूत्र बोल । रतने काग नमावतां जी । हारयो जनम निटोल ॥ (कृ०) ॥ ९॥ जगवंत भाष्यो ते किहां जी। किहां मुफ करणी एह । गजपाखर खर किम सहै जी। सबल विमासमण तेह ॥ (कृ०)॥ १० ॥ आप परू' आकरो जी । जाणे लोक महंत । पिण न करुं परमादीयो जी। मासाहस दृष्टांत ॥ (कृ०)॥ ११ ॥ काल अनंत मैं लह्या जी। तीन रतन श्रीकार । पिण परमादै पामिया जी। किहां जई करुं पुकार ॥ (कृ०)॥१२॥ जाणुं नत्कृष्टी करंजी । नद्यत करुंग विहार। धीरज जीव धरै नहीं जी। पोते बहु संसार ॥ (कृ०)॥१३॥ सहज पड्यो मुझ आकरो जी। नगमें रूमीवात । परनंद्या करता थकां जी । जायै दिननें रात ॥ (कृ०)॥१४॥ किरिया करतां दोहिली जी । आलस आणे जीव । धरम पखै धंधै पड्योजी । नरगै करस्यै रीव ॥ (कृ० ) ॥ १५ ॥ अण हुँता गुणको कहै जी । तो हर निशि दीश । को हितसीख नली कहै जी । तो मन आएं रीश ॥ (कृ०)॥१६॥ वाद नणी विद्यानणी जी। पर रंजण नपदेश । मन संवेग धरो नहीं जी। किम संसार तरेश ॥ (कृ० ॥१७॥सु त्र सिघांत वखांणतांजी। सुणतां करम विपाक । खिण एक मनमांहि कपजै जी। मुझ मरकट वैराग ॥ (कृ० ) ॥१८॥ त्रिविध २ करि कचरूं जी। न
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रत्नसागर. गवंत तुम हजुर । वारवार नांजु वलीजी। बूटकवारो दूर ॥ (कृ०)॥१९॥ आपकाज सुख रचितां जी । कीधा आरंन कोम। जयणा न करी जी वनीजी। देव दयापर गेम ॥ (कृ०)॥ २० ॥ वचन दोष व्यापक कह्या जी। दाख्या अनरथ दंग । कूम कपट बहु केलवी जी । ब्रत कीधा शत खंम॥ (कृ०)॥२१॥ण दीधो लीजै त्रिणो जी । तोही अदत्तादान । ते दूषण लागा घणाजी । गिणतां नावै ग्यान ॥२२॥ (कृ०) चंचल जीव रहै नहीं जी । राचै रमणी रूप । काम विटंबण सीकहुं जी । ते तूं जाणे सरूप ॥ २३॥ (कृ०) माया ममता मैं पड्योजी । कीधो अधिको लोन । परग्रह मेख्यो कारमो जी । न चढी संयम सोन ॥२४॥ (कृ०). लागा मुआ. लाल जी। रात्री भोजन दोष । में मनमुक्यो माहरो जी। न धरयो धरम संतोष ॥२५॥ (कृ०) इण नव पर नव दूहव्याजी। जी व चौराशी लाख । ते मुफ मिडामि उक्कडंजी । जगवंत तोरी साख ॥ २६ ॥ (कृ०) करमा दांन पनरै कह्याजी । प्रगट अढारै पाप । जेमैं कीधा ते सहूजी । बगश २ माई बाप ॥२७॥ (कृ०) मुझ आधार एतलोजी। सरदहिणा सुध । जिन ध्रम मीगे जगतमेंजी । जिम साकर. दूध ॥ ॥२८॥ (कृ) रिषनदेव तुं राजीयोजी । सेजगिरि सिणगार । पाप आलोया आपणाजी । करप्रनु मोरी सार ॥२९॥ (कृ०) मर्म एह जिन धर्मनोजी। पाप आलोयां जाय । मनसुं मिहामि उक्कमंजी। देतां दूर पु लाय ॥३०॥ (कृ०) तुंगति तुं मति तूं धणीजी । तुं साहिब तुं देव । आणधरं शिरताहरी जी । जव २ ताहरी सेव॥ (कृ०)॥३१॥ (कलशः)॥ इम चढीय सेज चरण नेट्या नानि नंदन जिनतणा । करजोमि आदि जि णंद आगै पाप आलोया आपणा । श्रीपूज्य जिनचंद सूरि सद्गुरु प्रथम शिष्य सुजश घणे । गणि सकलचंद मुसीस वाचक समयसुंदर गणि नणे ॥३२॥ * इति आलोयणागर्षित स्तवनं ॥ ४॥ ॥ .
॥ ॥ पुनः पद्मावती आलोयण सिशाय ।। * ॥
॥ हिवै राणी पदमावती । जीवराशिखमावै । जाणपणं जगदो हिलो। इणनेला आवै ॥१॥ (तेमुफ मिडामि पुककं) । अरिहंतनी सा
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- पद्मावती आलोयण सिशाय.
५२७ ख । जेमें जीव विराधिया । चनरासी लाख ॥२॥ (ते.) सात लाख प्रथ बीतणा। साते अप्पकाय । सातलाख तेककायना । सातेवली वाय ॥३॥ (ते) दस प्रत्येकवनस्पती । चनदह साधारण । बिति चनरिंद्री जीव ना। बेबेलाख विचार ॥४॥ (ते) ॥ देवता तिरयंच नारकी । च्यार २ प्रकासी। चनदह लाख मनुष्यना। एलाख चनरासी॥५॥ (ते.) इण जव परजव सेविया । जे पाप अढार । त्रिविध २ कार परिहरु। पुरगति दातार ॥६॥ (ते०) हिंसा कीधी जीवनी । बोल्या मिरखावाद । दोष अदत्तादानना। मैथुन उनमाद ॥७॥ (ते०) परिग्रह मेल्यो कारिमो। कीधो क्रोध विसेष । मांन माया लोनमें कीया । वलि रागर्ने देष ॥ ८॥ (ते.) कलहकरी जीव दूहव्या । दीना कूडा कलंक । निन्दा कीधी पार की। रति अरति निस्संक ॥९॥ (ते) ॥ चाडी खाधी चौतरै । की धो थांपण मोसो । कुगुरु कुदेव कुधर्मनो । नलो आयो नरोसो॥१०॥ (ते)॥षाटकीनें नवमें किया । जीवना वधघात । चिमीमार नव चि डकला। मारया दिनराति ॥११॥ (ते०) मागीगरनव माउला । काल्या जलवासा धीवर नील कोलीनवे । मृग मारया पास ॥१२॥ (ते० )॥ काजी मुखाने नवै। पढी मंत्र कठोर । जीव अनेक जबै किया। कीधा पा प अघोर ॥ १३॥ (ते) ॥ कोटवालनें नवमें किया । अकराकर दं म। बंदीवांन मराविया । कोरमा उमी मम ॥१४॥ (ते.)॥ परमाधर मीनई नवे । दीधा नारकी दुख्ख । बेदन भेदन वेदना । तामणा अति ति क्ख ॥१५॥ (ते०)॥ कुंजारने अवमें कीया । निम्माह पचाव्या। तेली जव तिल पीलीया । पापी पेट नराय ॥१६॥ (ते.) हालीने जव ह ल खड्या। फामया पृथवी पेट । सूम निदान घणा किया । दीधा बलध चपेट ॥ १७॥ (ते.) मालीने नव रोपिया । नानाविध वृत्त । मूल प त्र फल फूलना । लागा पापना लद ॥१८॥ (ते) ॥ अधोवाई आंगमी। नरया अधिकानार । पोठी कंठ कीमा पमया । दया नावीलि गार ॥ (ते) १९॥ जीपानें नव नेतरयो । कीधा रांगणि पास । अग नि प्रारंन कीया घणा । धातुराद अभ्यास ॥ (ते) ॥२०॥ सूरपणे
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रत्नसागर..: रण जूझता। मारया माणस वृंद । मदिरा मांश नवा घणा । खाधा मूल में कंद ॥ (तें० ) ॥ २१॥ खाण खणावी धातुनी । पाणी ऊलंच्या। आ रंन कीधा अति घणा । पोते पापज संच्या ॥ (ते) ॥२२॥ अंगार कर्म कीया वली। धरमे दव दीधा । सुंसलेई वीतरागना । कूमा कोशज पीधा ॥ (ते०)॥२३॥ विल्ली नव नंदर लिया। गीलोई हत्यारी। मूढग मार तणे नवे । में जूं लीख मारी॥ (ते)॥ २४॥ नामलूंजातणे नवे । ए केंद्री जीव । ज्वारी चिणा गहुँ सेकिया। पामंतारीव ॥ (ते)॥२५॥ सांगण पीसण गारना। आरंन अनेक । रांधण इंधण आगिना । कीया पाप नदेग ॥(ते.)॥२६॥ विकथा च्यार कीधी वली। सेव्या पंच प्रमाद। इष्ट वियोगप ड्यां किया। रोदन विषवाद ॥ (ते०)॥२७॥ साधु अनें श्रावक तणा। बत लेईजागा। मूल अने उत्तर तणा। दूषण मुझ लागा॥ (ते. )॥२८॥ साप विधु सिंह चीतरा। शिकराने शमली । हिंसक जीव तणे नवै । हिं सा किधी सवली ॥ (ते) ॥२९॥ मूआवमै दूषण घणा । वलि गरन गलाव्या । जीवाणी ढोल्या घणा । सीलव्रत नंजाव्या॥ (ते) ॥ ३०॥ अव अनंत नमतां थकां । कीया कुटंब संबंध । त्रिविध २ करि बोसरूं । तिणसुं प्रतिबंध ॥ (ते) ॥ ३१ ॥ इणनव परनव इण परै । कीधा पाप अखत्र । त्रिविध २ करि बोसरूं । करुं जनम पवित्र ॥ (ते) ॥३२॥राग बैरामी जे सुणे । एत्रीजी ढाल । समय सुंदर कहै पापथी । बूटै ततकाल (ते० ) ॥३३॥ * ॥ इति श्री आलोयण सिझाय संपूर्णम् ॥ * ॥ ____ॐ ॥ पुन्य प्रकाश बालोयण वृधस्तवन ॥४॥
॥ ॥ दूहा ॥ सकल सिधिदायक सदा । चौवीशे जिनराय । सरु सामिनी सरसती । प्रेमें प्रणमुंपाय ॥१॥त्रिनुवनपति त्रिशलातणो । नंदन गुणगंनीर । शासन नायक जगजयो । वर्षमान वमवीर ॥२॥ एक दिन वीरजिणंदने । चरणे करी परिणाम । नविकजीवना हित नणी । पू गो तमस्वामि ॥ ३ ॥ मुगतिमारग आराधिइं। कहो किणिपरि अरिहंत । सु धा सरस तव वचनरस। नार्षे श्रीनगवंत ॥४॥ अतीचार १ आलोइए। व्रतधरीइं गुरुशाखि । जीव खमावो सयलजे । योनि चोरासी लाख ३॥५॥
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पुन्यप्रकाश आराधना स्तवन. विधिसुं वलिवोसरावीई। पापस्थानक अधार ४ । च्यारशरण नित अनुसरे५॥ निंदोरितप्राचार६॥६॥शुन्नकरणी अनुमोदिइं७। नाव अलोमनांणिका अणशण अवशर पादरी ९। नवपद जपो सुजाण ॥१०॥शुनगति आराधन तणा । एडै दश अधिकार । चित्तआणीने आदरो। जिम पामोनवपार ॥८॥
॥ ॥ (ढाल १) एचिंडी किहां राखी । इस चालमें ॥॥
॥ ॥ ज्ञान दरिशण चारित्र तप वीरज । ए पांचे आचार । एहतणा इहनव परनवना । आलोइये अतीचाररे ॥ १ ॥ प्राणी ज्ञान नको गुणखाणी । वीरवदें इमवाणीरे ॥ प्रा० ॥ गुरुन्नवीये नही गुरु विनयें । काले धरी बहुमांन । सुत्र अर्थ तनय करी सूधा। जणीइं वही नपधांनरे ॥ २ ॥ प्रा०॥ ज्ञानोपगरण पाटी पोथी। उव णी नोकरवाली । एहतणी कीधी आशातना। ज्ञान प्रक्ति नसंनालीरे ॥३॥प्रा०॥ इत्यादिक विपरीत पणाथी । ज्ञान विराध्युंजेह । आनव पर अव वलिय नवो नव । मिहामिछक्कम तेहरे॥प्रा०॥४॥ (समकितख्यो शुन्ध जाणी)। जिनवचनें शंका नविकीजें । नवि परमत अभिलाष । साधुत णी निंदा परिहरजो । फल संदेह मराखिरे ॥ प्रा०॥५॥स० ॥ मूढपएं उमो परशंसा । गुणवंतने आदरीइं। साहमीनें धर्मे करी थिरता । जगति प्र जावना करीयरे० ॥ प्रा० ॥६॥स०॥संघचैत्य प्राशाद तणोजे । अवर्ण वाद मनलेख्यो । द्रव्य देवको जे विणसारयो । विसंतां वेख्योरे॥प्रा०॥ ७॥स०॥ इत्यादिक विपरीत पणाथी । समकित खंड्युं जेह । आनव०॥ प्रा०॥८॥(चारित्रल्पो चितांणी) पांचमुमति त्रिणगुपति विराधी।आ ठे प्रवचनमाय । साधुतणे धरमें प्रमादें। अशुध वचन मन कायरे॥प्रा० ॥९॥ चा०॥श्रावकनें धर्मे सामायक । पोसहमां मनवाली । जे जयणा पूर्वक जे आठे । प्रवचनमायनपालीरे ॥ प्रा० ॥ १० ॥ चा० ॥ इत्या दिक विपरीतपणाथी। चारित्रमहोल्पुंजेह । पानव०॥ मिडामि० ॥ ११॥ चा०॥वारें नेदें तप नवि कीधो । उतें योगें निजशकतें । धर्मे मन वच का या वीरज । नविफोरविलं जगतेरे ॥ प्रा० ॥ १२ ॥चा०॥ तप वीरज आचारें इणपरें । विविध विराध्याजेह । आनव०॥ मिहामि०॥प्रा०॥
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रत्नसागर.... ।। १३॥चा० ॥ वलीय विशेषे चारित्रकेरा । अतीचार आलोइयें । वीरजि णेसर वयणसुंणीनें । पापमयल सविधोइये रे॥प्रा० ॥१४॥॥॥
*ढाल२॥पृथवी पाणी तेन । बान वनस्पती । ए पांचे थावरकराए। करीकरसण आरंन । खेत्रजेखेमीयां । कूवा तलाव खणावीयाए ॥.१ ॥ घर आरंनअनेक । टांकां नोरां । मेडी माल चिणावियाए। लिंपण गुंपण का ज। एणिपरै परपरें । पृथवी काय विराधीयाए ॥२॥धोयण नाहण पाणी। झीलण अप्पकाय । गेति धोति करि दूहव्याए । नाठीगर कुंभार । लोह सोवनगरा । नामनुजा लिहालागराए ॥ ३ ॥ तापण सेकण काजें । वस्त्र निखारण । रंगण रांधण रसवतीए । इणिपरकर्मादान । परिपरेंकेलवी । तेक वाक विराधीयाए ॥४॥वाडी वन आरांम। वावी वनस्पती । पान फूल फल चूंटीयाए । पौंहक पापड शाक । सेक्यां सूकव्या । जे द्यां बुंद्यां आथीयांए ॥५॥ अलसीने एरंग । घाणी घालीनें । घणा तिलादिक पीलीयाए । घाली कोल मांहिं । पीलीशेलमी । कंद मूल फलवेचीयाए ॥६॥ एम एकेंद्री जीव । हण्या हणावीया । हणतांजे अनुमोदीयाए । आनव परनवजेह । वलीय० ॥तेमुम० ॥७॥ क्रमी सरमीया कीडा । गामर गंडोला। इअल पूरा अलशीपाए । वाला जलो चूमेल । विचलित रसतणा । वली अथाँ णां प्रमुखनाए ॥ ८ ॥ इमबेइंद्रीजीव । जेमें दूहव्या । ते मुज० ॥ नदेही जूलीख । मांकड मक्कोडा । चांचड कीडी कंथुपाए ॥ ९॥ गद्दहीया घी मेल । कांनखजूरमा । गीमोला धनेरीयाए। इमतेइंद्री जीव । जेमें दूहव्यां तेमुझमि० ॥१०॥माखी मछर मांस । मसा पतंगीया । कंशारी कोलि या वमाए । ढींकण वीच्चू तीम। जमरा जमरीय। कौंता बग षम मांकडीए ॥ ११ ॥ इमचौरिंद्री जीव । जेमेंदू० ॥ तेमुझ० ॥ जलमांनांखी जाल । जल चर दूहव्या। वनमां मृग संतापीयाए ॥ १२ ॥ पीड्या पंखी जीव । पाडी पासमां । पोपट घाल्या पांजरेए ॥ इम पंचेंद्री जीव। जेमेंदू० ॥तेमुझ०॥१३॥ _* ॥ ढाल ३ प्राणी वाणी हितकरीजी ॥ एचाल ॥3॥
॥ ॥ क्रोध लोन लय हासथी जी । बोल्या वचन असत्य । कूडकरी धनपारकाजी । लीधांजेह अदत्तरे ॥ १ ॥ जिनजी मिन्ना
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पुन्यप्रकाश १० अधिकार आराधना स्तवन. ५३१ मि उक्कड आज । तुह्मसाई महाराजरे । जिनजी । देई सारू काजरे ॥ जि ॥ मि० ॥ ( आंकणी ) ॥ देव मनुज तिर्यचनाजी। मैथुन सेव्याजेह । विषयारस लंपटपणेजी ॥ घणं विटॅव्यो देहरे॥ २॥ जि०॥परि ग्रहनी ममता करीजी । जव २ मेली आथि । जेहजिहां ते तिहां रहीजी। कोईन आवै साथिरे॥३॥जि० ॥रयणी जोजन जे करयाजी । कीधा नद अन्नद । रसना रसनी लालचेंजी ! पापकरया परतदारे ॥ ४ ॥ जि० ॥ व्रत लेई वीसारीयाजी। वली नांग्यां पञ्चखांण । कपटहेतू किरियाकरीजी। की था आप वखांणरे ॥ ५॥ जि० ॥ त्रिणढाले आठे दूहेजी । आलोया अ तीचार । शिवगति आराधन तणोजी । एपहिलो अधिकाररे॥ ६ ॥जि०॥
॥ॐ॥ ढाल ४ ॥साहेलडीनी देशी ॥ ॥ ॥ ॥ पंचमहाव्रत आदरो ॥ साहेलमीरे० ॥ अथवा स्पो व्रत बार तो सा० ॥ यथा शक्ति व्रत आदरी ॥ सा० ॥ पालो निरती चारतो। बतलीधा संजारीये ॥ सा० ॥ हीयमै धरीय विचारतो । शिवगति प्रा राधन तणो॥ सा०॥ ए बीजो अधिकारतो। जीवसवे खमावीइं॥ सा० ॥ योनि चौराशीलाखतो। मनशु करो खांमणां ॥ सा० ॥ कोईशुरोषनरा खि तो । सर्वमित्र करी चिंतवो॥ सा० ॥ कोइ न जाणो शत्रुतो। रागद्वेष इम परीहरो॥ सा०॥ कीजै जन्म पवित्र तो।साहमी संव खमाविय। सा॥ जेनपनी अपतीत तो। सऊन कुटुंब करी खांमणा ॥ सा०॥ ए जिनशा सन रीततो० ॥२॥ खमीयें अनें खमावीयें ॥सा० एहीज धर्मनो सारतो। शिवगति आराधन तणो॥सा०॥एत्रीजो अधिकारतो। मृखावाद हिंसाचोरी ॥ सा०॥धनमूळ मेथुन्नतो। क्रोध मान माया तृष्णा ॥ सा० ॥प्रेमद्वेषपैशू न्यतो॥७॥ निंदा कलह न कीजीई॥सा०॥ कूडा न दीजे आलतो। रति अरती मिथ्यातजो॥ सा०॥ माया मोस जंजालतो॥८॥त्रिविध २ वोश रावियें ॥ सा०॥ पापस्थान अधारतो। शिवगति आराधन तणो ॥ सा०॥ एचोथो अधिकारतो॥४॥४॥ me | ढाल पांचमी ॥ वैनिसुणो इहां आवीयाए ॥ए चाल ॥॥ ॥ ॥ जनमजरा मरणें करीए। ए संसार असारतो । करयाकर्म सहु
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रत्नसागर.
अनुभवेंए । कोइन राखण हारतो ॥ १ ॥ शरण एक अरिहंतनुंए । शरणसिद्ध नगवंत तो । शरणधर्म श्री जैननोए । साधुशरण गुणवंततो ॥ २ ॥ अवरमोह सवि परिहरीए । चार शरण चित्तधारतो । शिवगति प्राराधनतणोए । ए पांचमो अधिकारतो ॥ ३ ॥ प्रनव परजव जे करयाए पापकर्म केई जाखतो । आत्मशाखें निंदीयैए । पक्किमीयें गुरु शाखितो ॥ ४ ॥ मिथ्यामति वर्त्तावित्र्याए । जे नाख्या नृत्सूत्रतो । कुमति कदाय हनॅवर्सेए ॥ वलि नृत्थाप्या सूत्रतो | घड्या घडाव्या जे घणाए घरटी हल हथियार तो । जव २ मेली मुंकीयाए । करतां जीव संहारतो ॥ ६ ॥ पापकरीनें पोषीत्राए । जनम २ परिवारतो । जनमांतर पुहतापनीए कोइन कीधी सारतो ॥ ७ ॥ जव परन्नव जे करयाए । इम अधिकरण अनेकतो । त्रिबिध २ वोसरावींइंए । आणी हृदय बिबेकतो ॥ ८ ॥ दुःकृत निंदा इम करीए । पापकरया परिहारतो । शिवगति आराधन तणोए । ए अधिकारतो ॥ ९ ॥ ॥ 118 11
॥ * ॥ ढाल बडी ॥ आदितुं जोड़नें आपणी ॥ ए चाल ॥ * ॥ धन २ ते दिन माहरो । जिहां कीधो धर्म । दान शीयल तप प्रादरी । टाल्या दुष्कर्म ॥१॥ ६० ॥ शत्रुजादिक तीर्थनी । जे कीधी यात्र । युगतें जिनवर पूजीया । वली पोष्या पात्र ॥ २ ॥ ६० ॥ पुस्तक ज्ञान लिखावीया । जिणहर जिचैत्य | संघ चतुर्विध साचव्या । ए सातेखेत्र ॥ ३ ॥६०॥ पडिक्कमणां सुपरें करया । अनुकंपादान । साधू सूरि नवझायनें। दीधा बहुमान ॥ ४ ॥ ६० ॥ धर्मका रज अनुमोदिये । इम वारोवार । शिवगति आराधन तणो । सातमो अधिकार ॥ ५ ॥ ६० ॥ नाव जो मन आणीये । चित्त प्राणी ठामि । समतानावे. नावीयें । एतमराम ॥ ६ ॥ ६० ॥ सुख दुःख कारण जीवनें । कोई अ वर न होइ । कर्म आपजे आचरया । जोगवींयें सोय ॥ ७ ॥ ६० ॥ समता विणजे नुसरे। प्राणी पुन्यकाम । बारि ऊपरिते जीपणुं । ऊंखर चित्राम ॥ ८॥ ध० ॥ जाव नली परें जावीई । ए धर्मनोसार । शिवगति आराधन तणो ॥ आठमों अधिकार ॥ ९ ॥ ६० ॥ ॥
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पुन्यप्रकाश स्तवन.
॥ * ॥ ढाल सातमी वत गिरि ऊपरे (एचाल ) ॥ ॥
॥ ॐ ॥ हवेप्रवसर जांणी करीय संलेखण सार । प्रशण आद रोयें पच्चखी चाराहार । जनता सवीमुंकी बांडी ममताअंग । एमा तम खेजें समता ज्ञांनतरंग ॥ १ ॥ गति च्यारें कीधा आहार नंत निःशंक । पण तृपतिनपाम्यो जीव लालचीन रंक | पुसहो ए बली वली अणशणनो परिणाम । एहथी पामीर्जे शिवपद सुरपद ठाम ॥ २ ॥ धन धन्ना शालिभद्र खंधो मेघकुमार ॥ प्रणशण आराधी पा म्यां जवनोपार | शिवमंदिर जास्यें करी एकअवतार । श्राराधन केरो ए नौमो अधिकार ॥ ३ ॥ दशमें अधिकारें महामंत्र नवकार । मनथी नवींमूंको शिव सुख फलसहकार | एजपतां जायें दुर्गति दोषबिकार । सुपरें ए समरो चन्द पूरनोसार ||४|| जन्मांतरें जातां जो पामें नवकार । तोपातिक गाली पामें सुरअवतार । एनवपद सरिखो मंत्र न कोईसार । इहनवनें परमवै सुखसंपति दातार ॥५॥ जुनील नीलणी राजा राणीथाय | नवपद महिमाथी राजसिं ह महाराय । राणी रतनवती वेहुं पाम्यांचे सुरभोग । इकनवथीलेस्यें सिद्धव धूसंयोग ॥ ६ ॥ श्रीमतीनें एवली मंत्रफल्यो ततकाल । फणिधर फीटीनें प्रगटथई फूलमाल । शिवकुंमरें योगी सोवन पुरसो कीध । इम एमंत्रे काज घणांनां सिद्ध । एदश अधिकारें वीरजिणेसर जाख्यो । आराधनकेरो विधि जिणें चित्तमाराख्यो । तिणेंपापपखाली नवनय दूरेंनाख्यो । जिन बिनय करंतां सुमति अमृत रसचाख्यो ॥ ८ ॥ ॥
॥ * ॥ नमोनविभावशुंए ॥ ए चाल ॥ ॥
॥ ॐ ॥ सिधारथराय कुलतिलोए । त्रिशला मात मल्हारतो । अव नीत तुझे अवतरयाए । करवा अह्म पगार ॥ १ ॥ ( जयो जिन वीर जीए ) टेक ॥ में अपराध करघाघणाए । कहतां नलहुँ पारतो । तुझचरणे व्याजणीए । जो तारे तो तारि ॥ २ ॥ ज० ॥ प्राशकरीनें वीनए । तुमचरणें महाराजत । प्राव्यानें नवेखशोए । तोकिमरहस्यें लाज ॥ ३ ॥ ज० करम अलूजण आकराए। जनम मरण जंजालतो । हुँहुँ एहथी कग्योए । विदेवदयाल ॥ ४॥ ज० ॥ आजमनोरथ मुजफल्याए । नाठा दुःखदंदोल
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रत्नसागर. तो। तूठगे जिनचोवीशमोए। प्रगट्या पुन्पकल्लोल ॥५॥ ज० ॥ लव २ वि नय तुझारमोए । नावनगति तुह्मपाय तो। देवदया करी दीजीयेंए । बोध बीज सुपसाय ॥६॥ज०॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ कलशः॥ इयतरणतारण सुगतिकारण पुःखनिवारण जगजयो। श्री वीरजिणवर चरणथुणतां अधिकमन नबटथयो ॥१॥श्री विजय देव सूरिंदपटधर । तीरथजंगम इणजगें। तपगडपति श्रीविजयप्रनसूरि सूरितेजें जगमगें ॥२॥श्रीहीरविजय सूरी शिष्यवाचक । कीर्तिविजय सुरगुरु समो। तस शिष्य वाचक विनय विजयें।थुण्योजिन चौवीशमों। सइसत्तर संवत् नग णत्रीसें रही रानेर चौमाशए। विजयदशमी विजयकारण किन गुण अभ्या सए । नर नवआराधन सिधिसाधन । सुकृतलील बिलासए । निराहते स्तवन रचियुं । नामें पुण्यप्रकाशए ।। ५ ॥ इति श्रीबीरजिन पुन्यप्रकाश० ॥
॥ ॥श्री नमि राजीमती सिशाय॥॥
॥ ॥ देशी ऊमादे जटियाणीरी॥ ॥ ॥ पहिली तो समरू हो सिघ बुधरी दाता सारदा । लायं गुरोरे पाय। प्रनु गुण गास्यां हो नेमीसर साहिब जिन तणा। सुजमत प्रापे मोरी माय ॥१॥ सोरी पुरहुंती हो नेमीसरसाहिब थेचदया। जानकरी याऽराय हसतीतो सिणगारयाहो नेमीसर साहिब थेनला। धोमलांरी गिणती नकाय वाजातो अवकाहो नेमीसरसाहिब वाजता ॥आया तोरणवार । महिल चढी नेहो राजुल जोवै हरखमुं। मनमांहें हरख अपार ॥ ३॥ आंख फरूकै हो सहेली मारी जीमणी । फिरताई दीस भरतार । वामो तो जरीयोहो नेमीसर साहिब जीवनो। पसुवानी सुणीरे पुकार ॥ ४॥ ऊनो तो रथनेहो नेमीसर साहिब राखीयो ॥ श्रे पशु वांध्यां किणकाज । गोरो तो होसीहो नेमीसर साहिब तुमतणो ॥ सारथी कहै छै महाराज ॥५॥ थोडा तो सुखनेहोइ ण राजुल नारी रै कारणें । होसीहो जीवांनोसंहार । जीव बंध्यानेहो नेमीसर साहिब गेडिया । जीवसवेतिणवार ॥६॥ अणपरणी राजलहो नेमीसरसा हिब मेमनें । जायचढ्या गिरनार । पाठेतो करमांमुंहो नेमीसरसाहिब जीतवा। लीयो संयम भार ॥ ७॥ राजुल तोरैहो नेमीसरसाहिन एकली।
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नेमनाथराजीमती सिझाय.
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जलविनमबली जेम | नवनवांरोहो नेमीसरसाहब बोमनें। नेमविन जीवुंकेम ॥ ८ ॥ सहीयां तो समजावैहो राजुल दुःख मत करो। एतो कालोबे जरतार पाहोतो राजुल नाषैहो सहेलीमारी थेसुणो । इानव ए जरतार ॥ ९ ॥ रा जुलतो चालीहो नेमीसर साहिब वांदवा | साथे तो घणुंरे परवार । गिरनारे चढतांहो सब आगे पाबै नीकल्या । एकली रही हैं राजलनार ॥ १० ॥ मेहा तोवरस्याहो नेमीसरसाहिब प्रतिघणा । नीज्या सब सिणगार । गुफातो दे खीहो राजलनारी प्रतिनली । चीरनिचोवै राजुल नारी ॥ ११ ॥ गहणा तो वा ज्या हो राजुल नारी रे अंगना । घूवरना ऊणकार । ऊणकातो सुणियाहो रह नेमि बैठे ध्यानमें । खोली बै पलक तिणवार ॥ १२ ॥ रूपै तो मोह्यो हो रहनेमि बैठो ध्यानमें। कहै सुंदर करो मोसुं प्यार । बोलीतो सुणकरहो रात्रुल
ढांकीयो । मांने बोगी बै नेमजरतार ॥ १३ ॥ जोजनतो जीम्योहो रहने मि खीरखांनो | उलटी करी नाखै तेम । वैनेंतो माणसहो रहनेमि पाठो नही जखै । जखसी कागकुत्ताजेम ॥ १४ ॥ हूं तो माताहो रहनेमि थारै सारखी । हुँ वा जाईनी नार। पापतो धरस्योहो रहनेमि मारे ऊपर । तो पकस्यो थेनरक मजार ॥ १५ ॥ एहवा वचनें हो रहनेमि राजुल पाए नम्यो । पापख मावै वारंवार । कपया तो पहरया हो राजुल नारी आपणा । पुहती बै प्रनु दरबार ॥ १६॥ राजलतो हरखैहो नेमीसर साहिब वांदीयां । वांदीनें लीधो सं यम जार। केवलतो पालीहो नेमीसर साहिब निरमलो । पुहती है मुगति मकार ॥ १७ ॥ केवल पालीहो नेमीसर साहिब आगनै । मिलीयाबै मु गति मजार | माणक्य रंगैहो नेमीसर साहिब गाईयो । झारा आवागम पण निवार ॥ १८ ॥ इति श्रीनेमि राजीमती सिझाय संपूर्ण ॥
॥
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॥ * ॥ अथ श्री शालिनद्रको शिलोको लि०॥ ॥४॥ सरसत सांमण समरूं मुखदाई । बधमानखामी प्रणमुं बरदाई । कुँवर शाखिजरो कहुं सिलोको । एक मनांथे सांजलज्यो लोको ॥ १ ॥ राज गृही नगरी जिनत्रम राजा । श्रेणक नांमें मोटो महाराजा । राणी चेलणा चोखी पटरांणी । शील संतोषै साची वखांणी ॥ २ ॥ मंत्रीसरकहियै नै कुमारो । सगली सजामें ते हीज सिरदारो । सेठ गोजद्र नगरी में सोहै । न
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रत्नसागर.
द्रा सेवांणी ते मन मोहै ॥ ३ ॥ सुख सेती रहता कितरे के दिवसे । सुत सॉल जद्र जन्म्यो शुभ दिवसे । बहिन सुभद्रा वीरो रमावे । मनकारे कोडे माता हुलरावै ॥ ४ ॥ इण विध वधतां हुवो जुवानो । पिता परणावै मोटी कर जांनो । वत्रीस गोरयांरो वालम कहीजै । सातमी जूमें सुखसेती रही जै ॥ ५ ॥ विहार करंता वन मांहै स्वांमी । प्राय कतरीया अंतर जांमी । गोद्र शेठ वांदणने वैठो। समकित धारी श्रावकसेठो ॥ ६ ॥ महावीर स्वा मी देशना दीधी । समयो श्रावकते दीख्याजीजीधी । व्रत लेईनें विधसुं वि चारे । अंतकाल आयां प्रणशण नचारे ॥ ७ ॥ वैमानिकवासी देवता वदीतो । साधु गोजद्र हुवो सुबदीतो । अविध प्रयुंजी जांणें विरतं तो । जोगी सालं देखे एकांतो ॥ ८ ॥ जवपुरबरी बात संजालै । नयणें आप रोवेटो निहालै । मन मांहे देवता इसको विमासै। आई निसरूं आगे जी पाशै ॥ ९ ॥ प्रागे तो लक्ष्मी इधकेरी हुँती । दैवतानी दीधी हूई अनं ती । पेई तेत्रीसे देवता पुहुचावै । सोने में ग्रहणा जमीया शहु प्रावै ॥ १० ॥ तेत्रीसमी पेटी तिणमां है नीकलै। सूरज चंदा ज्यूं तेजै ऊल हते । मांकने हीरा सोनांमें जमीया । घाट सुघाटै देवतारां घमीया ॥ ११ ॥ सेहरो साहूनें साल जद्र जोगो । लाखां कोडांरा के त्रैलोको । शा घमीयांरी ते शगलाई । नाखे आभूषण निरमायल खाई ॥ १२ ॥ दिन २ पई देवता ते ल्यावै । शोनईया हीरा मांणक लावै । उत्तरीया ग्रहणा निरमायल थावे । बलती पेयांरी शार नकरावै ॥ १३ ॥ राजा चक्रवर्त्ति शुहणे न देखे । एहवा आभूषण पहरनें नाखै । केशर कस्तूरी मजया गि वासे । चोवानें चंदन फुलवाद बारौ ॥ १४ ॥ आठ पोहरनें बत्रीशे वाडिया । पात्रांतो नाचे मुह आगे खमीयां । अपरा शरिखी नृपमा पावै । नांमणि बत्रीशे ते मन जावे ॥ १५ ॥ सुकलीणी सुंदर बत्रीशे राणी । पुन्य जोगे शेती एण दिन आणी । दिन २ बंध ते हेतशुं निरखे । नारी पत जगती हितशुंजी परख ॥ १६ ॥ एक दिन व्यापारी परदेशी या या । बशत अमोलक बिध २ री ल्याया । व्यापारी चोहटे वशतां देखाले । नगरीय लोक चावीनेहाले ॥ १७ ॥ रतन मे कांबल शालै निरखीने । वां
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शालनद्रजी शिलोको.
१९३७ णी या देखै बिधशुंपरखीनें। वाणीया पूर्व मोलवतावो । सवा लाख शोनश्या नगद दीरावो॥१८॥ मोल शुणीने शाहजी शलकै । कर २ में वातां माहो मां मुलकै । वलता वांणीया नेमानही पावै । कूमी शुण गहां कुशले घर जावै ॥ १९ ॥ इस बिध व्यापारी नगरीमें नमीया । जायै राजाकै चणेजी नमीया। व्यापारी बोलै शुणो महाराजा । शोलैई कांबल शह ताजा॥ ॥ २० ॥ इण कांबल में गुण एक मोटो । आपरे आगे न वोलु खोटो । आगमें धोयां मेलज बँटै । मोल कांबलनो इधको तिणमांटै ॥ २१॥ गुण शुणीने राजा गह गहीयो । कांवल एक लेवा घणु ऊमहीयो । नगद शोनई या नहीं मारो। महीनारी मोलत करो उधारो॥२२॥ वलता व्योपारी वोले इमवाणी । रावलीवांणी शाचीमें जांणी । शुणो महाराजा एक अरदाशो। पइशाखरचीरा नही अह्म पाशो ॥ २३ ॥ खरची दिवरावो कांबल रखवावो दूर देशांतर अह्मने जावो । परदेशी किम कर आपै ऊधार । नगद सोनइया कांबलच्योसार ॥ २४ ॥ इम कहि व्यापारी मेरैजी आया।
आए मेरेनें घणुं पिछताया । माहोमां मिलने मित्रांणो कीधो । आपणो एको कारिज नसीधो ॥२५॥ अब अगसुं आधेरा चालो। सहिर सख रोसो नयणे निहालो। किरीयांणो वेची कारज सारीजै । मुंवारी मासी इण परि मारीजै ॥ २६ ॥ मुखसूं इम कहिता परदेशी आवै । मनमें इधकेरो न बाट थावै । वांणी सुण इसमी नद्रा वोलावै । वहता व्यापारी ऊनारखावै ॥२७॥ सूरा व्यापारी दीसोगे वीरा । बोलोगे इम किम वोल अधीरा । वसतां देखावो मोल वतावो । आखता हुयनें परामतजावो ॥ २८ ॥ ब्यापा री कहै वमी विणयांणी । सही या लेसी वस्त अह्मांणी । फोकटणीवातां कहि २ नें फेरै । एवमोही मोल कठगसुं अरै ॥ २९ ॥ नाई कहीने नद्रा समझावै । इण घर हीरो अंतन आवै । नोले नूलागे किणरा निम काया। दीसोगे कोलांतणा दडकाया ॥ ३० ॥नद्रा तुंसांनल भोली विण यांणी। लीधी नहीं कांबल राजारी राणी । फूटरा घणुं फूंदालासाहो । पै ढीयां वैठा दीसे पतिसाहो ॥ ३१ ॥ कांबल देखीने ऊमाहो कीधो । मो लसुणीने विलखो मुंह कीधो । सवालाख सोनश्या एकणरा लागे । इस
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रत्नसागर.
मी नविजाये जीधी तुम आगे ॥ ३२ ॥ वलती सेठाणी वाणी इम जाषे । वीरा व्यापारी इम किम दाखै । कांवल सोलेने कामण वत्रीसो । सरचावुं किम कर वहुअर वत्तीसो ॥ ३३ ॥ वैत विचारी काकरावो । ठीक कहीनें मोल ठह राबो । व्यापारी बोलै सुणो सेठाणी । लाख वीशरी प्रांणो हिमाणी ॥ ॥ ३४ ॥ अंगारी तेमीनें नद्रा इम नाषै । रती एकरो अंतर मतराखै । व्यापारी एबै बोलरासूरा । दामगिणीनें देज्यो थे पूरा ॥ ३५ ॥ खोलै जंगारी मोटो नखारो । तीजो गिणवाने साथ हुवो त्यारो । व्यापारी मोटो इकला रेजी लेवै | दांम गिणीनें जिणनें सहु देवे ॥ ३६ ॥ पुखतो व्यापारी को ठार जोवै । अहिनां इंद्रपुर एहीज होवे । मोती परवाला मांणक मन.. मोह। हीरा सोनइया सखरा ते सोहै ||३७|| पांचरत्नांरो पारन पेखै । रोक रु पश्या दह दिश देखै । बिधि २ रो नांगो व्यापारी निरखै । पुखतो व्यापारी ले लेनें परखे ॥ ३८ ॥ चितमें व्यापारी एहवोज चितै । रहीहूं देखें सुहणो सुमरी । चकचूंदी आख्यां प्रवीने चमकै । ठीकसेती चाले पगल्यारै ठ मकै ॥ ३९ ॥ तो पडतो आखडतो अरकै । षम हडतो खिसतो खूणांसुं खरकै । तितरै जंगारी तडकनें बोले । ल्यो बेगोनांणो घालां थां खोलै ॥ ४० ॥ मालहमालांमाथे दिरावै । व्यापारीपाबा मेरे ते आवै । ति बेला श्रेणक राजातेडावे । व्यापारी प्रत आदर दिवरावै ॥ ४१ ॥ राजाजी कहै सुणो परदेश्यां । कांबल तुह्मांरी एक ह्मे जेश्यां । मोटी महाराणी हठनमूंकै । कांबल दीघां सहु धंध चूकै ॥ ४२ ॥ जिम तिम करीने जिनसां हो देवां । लाखसवारो लेखो नरदेवां । मांनो व्यापारी कांबल ले आवो । नहिं अवथे माहरो वचन फिरावो ॥ ४३ ॥ व्यापारी सुखसुंएहवो प्रकासै। सोले ईज कांबल हुताह्मपासे । सेठांणी नद्रा ते सहु जीया । दाम गिणीने प्र नें ति दीया ॥ ४४ ॥ अचरज पांमीनें राजा इम दाखै । सोदागर इसको क्रूमो कांई जाखै । हवो कुरै नगरी में आज । लाखांबीशांरो का ते काज ॥ ४५ ॥ सोदागर जंपै सुणो महाराजा । सोवनमें घर में रतनांरा बाजा । माल अलेखे तिसरे ह्मे दीठो । साजनद्र नांमें मोटो सेगे ॥ ४६ ॥ ऊगो प्राथमीयो तेनवी जांणै। मांनवरी देह सुरसुख मांगें | दरसण तेहनो दी
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गंजाणी । महाराजा मनमें सांसो नांणीजै ॥ ४७ ॥ सोदागिर मुखसुंवात सुनें । दिवरावै सीखसिरपाव देनें । ततखि तिण बेला राजा तेमावे । अनै कुमार हजूर आवै ॥ ४८ ॥ कुंवरजी आवे मुजरोजी कीधो । महाराजा मोटो सन मांनदीधो । जाषे इमराजा सांजल कुमार । बेगाजिहां जावो द्राघरवार ॥४८॥ जानो बेटो सानद्रसाह । श्रह्मनें देखणरो इधको चाह । तुरत कुँवरनें तेमीनें ज्यावो । वेगाहुइ जावो वारमल्यावो ॥ ५० ॥ कांबल एकलावो मोलकरीनें । सेठाणी प्रतै शनमांनदेनें । आाया कुंवरजी शेठाणी आगे । वि धि शेती कांबल एकजमांगैः ॥ ५१ ॥ वोलै इम कुंवर सुणौ शेगंणी । ह ठि करनें बैठी मोटी महाराणी । महाराजा कांबल एक मंगावे । परवारो मोज पूरो दिरावै ॥ ५२ ॥ इण वातै तिलभर कूरुम जांणो । को घरमै शुं कांबल एक प्रांणो । शालि कुंवरनें मेलो मो शाथ । वोलावै वेगो श्रेणक नर नाथ ॥ ५२ ॥ कुमाररा मुखशुं ए वात । शुणी शेठांणी जपै इम वात । या कुमरजी प्राप । दरशण तो दीठां सहुपुलीयाजी पाप ॥ ५४ ॥ तुझ शरिखा पुन्यवंत घरांगण आया । दुख दोहरा टलिया शहु शुख पाया । अरज मारी एक अवधारो । सेवक मनरा सहु कारज सारो ॥ ५५ ॥ शोलैमें कांबल शगलाईलीया । तिके वधारी बत्तीशकीया। कांब amhat वहुरनै दीधो । ऊपर नविरहियो कांबल कोई बीयो ॥ ५६ ॥ देवता दीघा भूषण वै । तिके पहिरंता तनसुख पावै । वहुमर किम नदै कांबल ते करमा । खरखरा लागै अंगै ते खरमा ॥ ५७ ॥ मेंलेई मुक्या उत्तम जांणेनें । नतंनो दीधो वहुपर प्रांणेनें । शाशुजी एशुं महिमांनी कीधी । एहवी अलविध शुं प्रांणीने दीधी ॥ ५८ ॥ कवटण करनें वहुवां पगलू है । नाख्या ते परहा निरमायल कृवै । कहोनें निरमायल किमकर दिरावै । निरमायल देऊं तो दूषण मुथावै ॥ ५९ ॥ मोलायक बीजो का रिज फुरमावे | महाराजा कुमर स्यांनै तेावै । नांन्हमीयो माहरो लीलानो लामो । गहनरीयो शोनै गणकेरो गामो ॥ ६० ॥ सातमी नूमें शुखशेती पोढै । नाटकीया नाचै अहिनिशि गोढै । काया मांनवरी कुमर ते दीशै । सोनां सुररायां इको ते दीसे ॥ ६१ ॥ दरसण तो कोई देख न पावै । लखगांनें लोक आवै
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रतसागर. न जावै । चालो हुंचालु महाराजापासै । नद्रा इमना मनरैनव्हास॥६२ ॥ दरबार आवै नद्रा मन मोली। शाथे शोगानें सहीयारी टोली । बेकर जोडी नद्रा इमबोले । प्रथवीपति राजा शमकुण तोले ॥ ६३ ॥ अरज अमारी एक अवधारो । महाराजा आंगण माहरे पधारो । सेवकर ऊपर सुनिजर कीजै। शाल कुमरनें दरशण दीजै ॥६४॥ वयणशुणीनें बोले महा राज । तूग तुऊ उपर आवां घर आज । जायै आगने जुक्त करावो । शा ल कुमरने सन्मुख ज्यावो॥६५॥ अशवारी करने राजाजी आया। मिल २ नै सुहब मोतीयां वधाया। सिंघासण आशण सोवनरा देवै । भारतीयां कर२ नवारणा लेवै॥६६॥राजारै आगै नद्रा ते आवै । जोजनरी उक्ती मुझने फु रमावै । राजाजी कहै युक्त करावो । महल तुमारा अमने देखावो ॥ ६७॥ आलश गेमीनें नद्रा ते आवे । हुकमति होदा जल ऊनो दिवरावै । पीठी न गटणा प्रथम करावै । शाथी शगलांनै शिनांन करावै ॥६८॥ क्रीडा पांणीरी करता तिण वेला। मंत्री महाराजा सगला शमेला । नत्तम अंगूठी राजाजी पारी । विलखाहुय जोवै शगली गोवारी ॥६९ ॥ राजाजी श्रेणक मनमें बिचारै । शगली रिघरो शारथो झारे । चिंता करीनै मनमांहे शोचे । पळ तावै पमीयां कलामालोचै ॥७०॥ सेगणी नद्रा तुरतज शमधी । वाणीयां होवै आगल वुधी। जल कल उघामी ऊनी जोवावै । पाणी वीउरीयांअंगूठी पावै॥७१॥ मुंद्रमली लेई घरमांहे आवै । केई अंगुठी अवर निकलावै । त्यां जेली करने नद्रा ते ल्यावे । नेलखनें राजा मनमें नमावै ॥ ७२ ॥ स्नान करीनै शहुकोई. शाथ । शालकुंवरनी देखे सहु प्राथ। पुन्यरो पूरो ए दीशे अं कूरो । शाहां शिरशोहै परतख्यशरो ॥७३॥ शोनाराथाल रूपारी चोकी । मुख मलरी गादी दीधी ए कोकी। रतनारा कारा पाणीरा जरया। खाशा गंगोदक षसबोवे करिया ॥७४॥ सेवांने साकर सेलमी ल्यावै । खारक खजुरां पास पुरशावै । खोपरा खासा खुरमाणी आवै । दाखांने निमजा दाममन्नावै॥ ७॥ अखरोट आंबा केला नारंगी। पिसता सदाफल जंबेरी चंगी। रायण बीजो रा खरबूजा खासा । ककडी साकरीयां नेला पतासा।। ७६ ॥ सरदा अंजीर अंगूर सखरा । बोर विदाम पुरसे ले सखरा । इण विधरामेवाने भाषीने पुरसे
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१४६ सगला आरोगै मनरै ते हरसे ॥७७॥ सीरा साबूनी सखरीसुहाली। लाडू बि धरा व्याव भरथाली। लाडू सेवीया खासा गुलावी । सिंघकेशरीया ज्यावै सतावी ॥७८॥ वाजणा लामू गाजणा लावै । कीटीरालाडू केशरिया आवै । लाजणालाडू मिरचाला भाव। लाजणांलाडूबाजणानावै ॥७९॥ मगदरालाडू दालीया मुगता। लाडू कस्तुरियाख्यावे ते गलता। मोतीजीचूर मिश्रीरालाडू । दीसते मोटा देहरारा गाडू ॥ ८० ॥ ऊगरीया लाडू गुंदीयां काखै । सहूकोपुरसंता जीजी मुख नाफै। पुर २ की पुरकी गुप चुप आवै । गूंदबमा घेवर जलेबी लावै ॥ ८१ ॥ पूरी कचोरी पेमा हेसमीयां । खुरमा नै दोठा षाजा मनगमीया । दरनिस्त फीणा इंदरसारूमा । आरी अकब री दहीथरा पूरा ॥ ८२॥ सकर पाराने लापशी आवै । सगला तिनसेती भ्रोकरनें थावै । तरकारयां आवै ततखिणताजी। बालोर बथवो चिणारी ना जी॥ ८३॥ सोवाने मेथी सरशुं सांगरिया । कैर कारेला पापर मोगरीयां कचनार कलीयां केवलाने फोग । आरोग्यां जाये तिणशुं सहुरोग॥ ८४॥ बरीयांने मोमी नीलाबली वोर । करूंदा कोठ करपटा जोर। चवलानी फलि यां घेघराकाचा । पालन पेठा अद्रक साचा ॥८५॥ अरवी बांवलीयां खासी काचरीयां । मिरचानें शंठ मुखसुंआचरीया। हलदीने खूण हींगसुंजा जी। तोरूं खंगनें टींडसी ताजी ॥८६॥ प्रांवलीयाआंबानीबू आचार । रा इरै नेला राईता त्यार । खाटो मिरचांरी खासोपलेव । होसों पुरसावै हितकर ने हेव।। ८७॥वासमतीचावल मुंगांरीदाल। मुरहाघीऊपर पुरसे रसाल। सि खरणनेयुक्त बूरो सिरावै। पाणी परघलसुं चलुां करावै ॥८८॥बीमापानारा लुंग सुपारी। तिलक करे देसूहव नारी । आजूषण बागा पंचमात्रावै । सिर दार देखी सहुनें पहरावै ॥ ८९ ॥ राजा श्रेणक इणबिध फरमावै । इणघर रो स्वामी निजर न आवै । अस्त्रीयां ऊनी हुकम हलावै । मां घरायां मु जरो क्युं नावै ॥९० ॥ आवीने नद्रा एम पयं पै। एकवार देखो घररी सहुसं पै। महल महिपति शें ऊपर जोवो । आराम करने शाइतइक शोवो ॥ ९१ ।। पहलीज नूंम प्रथवी पति चढीया । पूरा पुरषोत्तम शास्त्रे जे पढीया । मंमाण घररो मनशं आलोचे । रचीयो जाणे कर शास्त्रनें शोचे ॥९२ ॥ कपरली बी
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रत्नसागर. जी मते आवै । ज्यौतिक्रिगामिग निजरे देखावै । नद्रा कहै सुणीय मोटा तू पालो। ताजी देखावु तीजी है मालो॥ ९३ ॥तीशरी पोल चढीया तिण बेला। रतनारी जोत दीपै अतिकेला । आंख्यारै आगै अंधाली आवै । मन मां हे जाणे नद्रा नरमावै ॥ ९४ ॥ चौवारै चौथे चढीया तिण शेती हाथे कर कालै नद्रा हित शेती। निजर करीने निरखे ते नूम । धम २ आ वै धक्का करधूम ॥ ९५॥श्रेणक राजा एम विचारै । फशीया फंदमाहे आ वीइयां रै। कुशल घर जावां किणही प्रकार। दिन ऊगै करशी कवण दरबार ॥९६ ॥ आवीने जगा एम पयपै । प्रथवीपति मोटा क्युमन कंपै। सुख से ती कीजै इहां बिशरांम । तेमीहुँ ल्याई ताहरो गुलाम ॥ ९७ ॥ शाल कु. मरने सुखमै वतलायो । घर आंगण वेगे श्रेणक आयो । वखतावर मोटा लेख विया राजा। आप चढीने आया महाराजा॥९८॥को सिज्यासुंबालश गेमो राजा मिलनेरो राखै अतिकोमो। पूतपधारो राजारै पावै । तसलीम करनें तु रत तुंआवै ॥९९॥मातारा मुख सुं वाणी शुणवोले । किरीयांणो श्रेणक नां खोले खोले । माताजी पूगे काशं इण मोले । जार जलायो घररोशहु तोले ॥१०० ॥ इतरा दिन थेई काम चलायो । मन मान्यो माता हुकम हलायो अमकांणा काम रहोने अवै । नंमारनरीया मणिमांणक सवै ॥१०१॥ नाणा रीतोट झारे घरनांही । मुंहमांग्यो देइ नाखो घरमांही। किरियांणो कोई पा गे मत फेरो। कहोने कासुंथे पूगेगे एरो॥१०२॥ सतवंती नद्रा वाणी इम वोले । सुणरहो वेटा नूलोमतनोले । पृथवीपति राजा श्रेणक सनहीजै । आ पणरोस्वामी एह कहीजे ॥१०३॥ रूठोए राजा विषरूप जाणो । तूगेए राजा सुरतरु सुपीयाणो । इणरी सुनिजरसुं अपनीरिघोपै । करै निरधनीया कहीये जो कोपै ॥ १०४ ॥ आशइणारी वेटा बहु कीजै । पिण आसंगो पूरो नविकीजै । राजा वेसनर सरिखा जाणीजे । इण बातें कोई शांसो नां णीजें ॥१०५ ॥ मातारा हुकम माने तेसेठगे। पावै लागै नआवै फिरऊगे। श्रेणक राजारो सनावठो। खिणमां हे रूठगे खिणमाहे तूगे ॥१०६ ॥ जा ऐरो विलंब बेटा नहुकीजे । जाए राजारो दरशण कीजे । तो सूरत दीगं राजाजी रीजै । अण चिंत्या कारज इण बाते सीजै ॥ १०७ ॥
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मातारा वचन मीठा सुणकानें । विषधर वहु कोपै जुं पयपाने । मनमां हे कुंवर बैराग आणें । नवसागर माया काची सहु जाणें ॥ १०८ ॥ पूर्वलै जव पुन्य कीधो । साधांने फाशु प्रशन नवि दीधो । वीतराग बचनें शांशोमें धरीयो । दरशण देवांरो में नवि करियो ॥ १०९ ॥ सामा यक पोशो अवशर नवि कीधो । साधारै मुखसें शमकित नविलीधो ।
पुण्य कारण इण जव अवतरीयो । नारी शिवरमणी मुऊनें नवि वरि यो ॥ ११० ॥ परवश शेती पर शेवा करणी | मातारी शीख मन मांहे ध रणी । हवो विचारी प्रायो मन नंगे । नरपति ले वैठो आपण नवरंगे ॥ ॥ १११ ॥ शाल कुमररी शोना सराहै। मुखडो देखीनें राजा क्रमाहै । सुर गांरो बाशी सुरपति जुं प्रोपे । काया कुंवररी धकीज नृपै ॥ ११२ ॥ मोटो महीपत मनमें विचारे । ए दीशे पुन्य एणसंसारे । माया घर मुंकी महला मतवंती । काया कंचण जुं उत्तम दीपंती ॥ ११३ ॥ मांखणसम काया कोमलबे इारी । राग राखी ने राजा कर फेरी । कुमररी काया परसेवो व लीयो । कर फरसै ततखिण मील पर वलीयो ॥ ११४ ॥ नद्रा तिल वेला राजा प्रति जा । सीख कुमरनें द्यो शहुशाखे । जाये जनमंतर इ २ काया । परसेवा करनें फरिस्या नहु पाया ॥ ११५ ॥ स्वछंदाचारी सुख मांहे रहीयो आगम राजरो आजमें कहीयो । ऊठे सिय्यासुं जोलो कावडियो । अवसर राजरो इण नव लहीयो ॥ ११६ ॥ राजी होय राजा सीख समापी । रि
अविचल साखनें पी । कठ पंजर बंधन सुं सुक बूटे । वलतो फिर नावै वेगो ति खूंटे ॥ ११७ ॥ नतरी कांचलीये हिरु जिमत्रास | पा बो नवि जोवै परहो ते नासै। कुंवरजी चितरे नचाट बेठा । प्रवीने पोढ गरीखाट जे सेंठा ॥ ११८ ॥ सहु त्रीया आवी शनमुख कभी । मुख सेती उत्तर नवि दीयै मोनी । माहो मांहि पूबै महिला मन जोली । सांणो सा हब ना रंगरोली ॥ ११९ ॥ दोय चार घमीयां परखीनें दीठो । नाहरे चित्त सुं नेहरुलो नीठो । सासू सुं बोलै सरम खोजीनें । मुलकंती अंचल मुख ऊपर देनें ॥ १२० ॥ रावलो जायो राजी नही आज । मन खांचीयो दी सै सहीय आज । वी कुमरने समजावो आप । गुण अवगुण गुनो
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. रत्नसागर..
करावो माफ ॥ १२१ ॥ पूत पनोती पारकी जाई । विन अवगुण कां ना खो धसकाई । नेहडले जीनी गुणवंती गोरी । तिणसेती कीजै कांश चित चोरी ॥१२२ ॥ माता इतरा दिन हुं नवि समधो। सुन्न करमी होइने सम कित सही लघो । कायाने माया काची सहु जांणी । गोरी ए दीसै पुरंग त सहिनाणी ॥ १२३ ॥ माताजी मोनें अनुमति आपो । सदगुरु पस वामे दिदा समापो । रहि २ रे वेटा एहवो कोई दाखै । शाइत जर नसरे झारै तो पाखै ॥ १२४ ॥ सुंहणेही बेटा इसमो मति सोचे । वैत विचारी ऊंडो आलोचे । नरमायै किणरै बेटा नवि नमीये । आपणा घररो काई नवि गमीयै ॥ १२५ ॥ सहु वाते पूत तूं। सधीरो । बाई सुन्नद्रा तणे इक वीरो । नान्हमीया तो विण झारै नवि सरसी । कुटंबरी सार बेटा कुणकर सी ॥ १२६ ॥ कितराई वचन मोनीनें कहीया । मनमैं कुमररै ते नविर हीया । जीनो रंग चोल नगवंत धर्मे । मायारा जाल मूंक्या सुन्न कर्मे ॥ ॥ १२७ ॥ हठकर माता हठ करी राखै । तपस्या चारित्र नहुवै तो पार हल फलीयो हिवणा बालक बुध करिने । सही हुं जासुं नव सागर तरिने ॥ १२८ ॥ पंडित हुइनें बेटा मुणि बात । हुँ जानुं ताहरी सगली अंगधात । तो सेती चारित्र न पलै तिलमात । मुणरे बेटातूं वातरी वात ।। ॥ १२९ ॥ माता ए जाण्यो हुकम करि राखें । दिन दस आमा जिम ति महुं नां । इतरामें इणरी बुधी फिरजासी । ललचांणो कामणि लोनी योथासी ॥ १३०॥ पोतारी काया पहिली वसि कीजे। कामणि एकेकी दिन प्रति गेमीजै । वसि करि इंद्री घर वास वसीजै। करि र तपस्याने काया वसि कीजै ॥ १३१ ॥ सूधी सुण वात हियमामे धारे । कामणि एकेकी दिन प्रतिवारै । निरलोनी हुइनें लूखो मन राखे । चितसेती वेगे चारित्र रस चाखै ॥१३२ ॥ सातमें दिन संझयारी वेला । धन्नोजी धर्मी आवै एकेला। सालाने सीख देनें इम नाखै । ऊमो तूंसोच इवडो काई राखे ॥१३३ ।। थिर मन करिने चालोथे आगै । पूठ पूरव सुं हुं मन रागै । आंपे मिल दोऊ करणी आदरस्यां । वेगा नव सायर पार नतरस्यां ॥ १३४ ।। एक मन दोनु होइ नीसरीया। सिंह पाखरीया जाणे केशरिया । सांजल स्वा
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शालनद्रजी सिलोको, सारदमात. ५४५ मीरी देशना सूधी । सममा मन मांहे तुरत सुबुधी ॥ १३५ ॥ आयाघर पू ग आग्या ते मांग। लुलि २ मातानें पाए ते लागै । बंधन संकट सुं माता मुंकावो। कल्याण माहरो कोई जो चावो ॥१३६ ॥ कूडो कथन अब कीजें नवि माता । महाबीर वचनें अह्मे रंग राता । चारत्रिया होसां चित्तमांहे चोंका । धर्म करणी करनें गेमा जव धोंका ॥ १३७॥ आजूणा वचन नद्रा ते आखै । संजम लेसी ए सहू साखै । आमी अंतराय हुंस्याने होऊ । ब हिनोई सालो व्रतलो थे दोऊं ॥ १३८ ॥ सामग्री मेलै सहु साथे प्रा वै । गीत गुणवंती गुण बहु गावै । ढोल नगारा ढमके वजावै । प्रह की दरशण इण विधि पावै ॥ १३९ ॥ इरियावहि पडिक्कम पाप
आलोवै । मेल करमरा लागा सवधोवै । महाबीर स्वामी माथे कर दीधा साल धन्नारा कारज सहु सीधा ॥ १४० ॥ नोलामण देई नद्रा घरि
आवै । सुन्न मति देने गोरयां समझावै । तिन दिन सेती तपश्या ते साधे। भास खमणादिक करे मन बाधे ॥१४१॥ करमारी गोठ काटे बेन्नाई। किरीयारी कमणा राखे नही काई । अणसण करीने आऊखो पावै । सर्वा रथ सिधे वासो सुख पावे ॥१४२॥ महाविदेह मानव जव लहिसी। करणी कर आठे करम ते दहसी। सुपसा ए दांन सहु कारज सरसी । सालो बहिनोई दोनुं शिव बरसी ॥१४३॥ सालनद्र धन्नो साधु कहाया। प्रहसम कठे प्रणमुं ते पाया। गुण तिणांरा नवि जन गाया। मन सुध समरयां मुक्ति दे माया॥१४४॥ मुहता महाजन मोटा मति धारी । देवी धर दीपे गांव गुण कारी । मोटी महमाई थान विराजै । गया तिणरी इधकी ते गजै॥ ॥१४५॥ संवत सतरै इक्यासी वरसै । चौमासौ कीधो चितचूंप हरखै । खे मकीरतरी साख सवाई । तिणरा संतानिक वाचक वरदाई ॥१४६ ॥ सो म हरखनामें श्रमण कहीजै । लक्ष्मी समुद्र पाटे स लहीजै । गणी कनक प्रिय गुरु सुपसाया । गुण तिणरा में सिंहा मुनि गाया ॥१५७ ॥ इति ॥ ॥॥अथ श्री शांतिजिन वृद्धस्तवन लि॥॥
॥ सारद मात नमुं शिरनामी । हुंगानं त्रिनुवनके स्वामी । शांतिज शांति जपै सबकोई । त्यां घर शांति सदा सुख होई ॥१॥ शांति जपीनें
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रत्नसागर. कीजै कामा । सोही काम हुवै अनिरामा । शांति जपी परदेश सिधावै । ते कुशले कमला लेई आवै ॥२॥ गरन थकी प्रनु मार निवारी । शांतिज नाम दियो महतारी । जेनर शांतितणा गुण गावै । रिधि अचिंती जेनर पावे ॥३॥ज्यांनरकों अनुशांति सहाई । त्यां नरकों काई आरत नाई। जो कबु बैठे सोई पूरै । दालिद्र पुष्ट मिथ्या मति चूरै ॥ ४॥ अलख निरंजन जोत प्रकाशी । घट घट जीतरके प्रनु वासी । स्वामि स्वरूप कह्यो नहिं जावै । कहतां मोमन अचरज आवै ॥५॥ मारदिये सबही हथियारा। जीता मोहतणा दलसारा । नारतजी शिवसुं रंगराचे । राजतजी पिण सा हिब साचे ॥६॥ महाबल वंतज कहिये देवा । कायर कुंथुन एक हणेवा। शधिसयल प्रनु पाश कहीजे । निदा आहारी नाम नणीजै ॥७॥निं दक पूजक है समजायक । पिण सेवकही कों है सुखदायक । तज्यो परिय हतें जगनायक । नाम अतीत सबे बिधलायक ॥८॥ शत्रु मित्र समचित्त नणीजै । नामदेव अरिहंत नणीजै । सयलजीव हितवंत कहीजै। सेवक जाण महापद दीजै ॥५॥ सायर जैसा होय गंजीरा । दोष नहीं इक मां ह सरीरा । मेरुअचल जिम अंतर जामी । पिण न रहै प्रनु एकण ठामी॥ १०॥ लोक कहै जिनजी सहु देखे । पिण सुपनो कबहु नविपेखे । री सविना बावीस परीसह । सेन्याजीती ते जगदीसह ॥११॥ मान विना जग आण मनायो। माया विना सबसुं लय लाई । लोन विना गुण राशि ग्रहीजै । निकु नए त्रिगमो सेवीजै । निग्रंथपणे शिर उत्र धरावै । नाम जती पिण चवर ढोलावै । अन्नयदान दाता सुख कारण । आगल चक्र च लै अरिदारण ॥१२॥ श्री जिनराज दयाल नणीजै । करम सबे कोही मूलखणीजै। चोवीह संघज तीरथ थापै । लघणी देखै प्रनु आपै ॥१४॥ विनयवंत नगवंत कहावै ॥ नां काऊकों शीश नमावै । अकिंचनको विरुध धरावै । सोपद पंकज आतम ठगवै ॥१५॥ तजतरुणी निज गुणकों ध्या वै। शिवरमणीकों साथ चलावै । रागनही पिण सेवककों तारै । देष नहीं नि गुणा संगवारे ॥१६॥ तेरी महमा अदभुत कहियै । तेरा गुणको पार न लहियै । तुं प्रनु समरथ साहिब मेरा । हुं मनमोहन सबके तेरा ॥१७॥
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जीवचार प्रकरण.
५४७ तूंरे त्रिलोक तणो प्रतिपाला। हुंरे अनाथ अबुरे दयाला । तूं सरणांगत रा खण धीरा । तूंवलि तारक जै वडवीरा ॥१८॥ तूंही जिसो वम नागज पायो। तो मेरो कामचड्योरे सवायो। करजोडी प्रनु वीनकुं तो सुं । करो कृपा जिनवरजी मोसुं ॥१९॥जामण मरण निवारण वारो । नवसायरथी पारनतारो। सारंग हथणा पुर मंमण सोहै । तिहां श्री शांति सदा मनमोहै ॥२०॥ पदम सागर गुरु पाय पसाया। श्री गुण सागर के मन भाया । जे नरनारी इक चित्तगावै । ते मन बंबित शिवसुख पावै ॥२१॥ ॥ इति श्री शांतिजिन स्तवनं शांतिकरणार्थं ॥१॥ ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥अथ जीवचार लि०॥ॐ॥ ॥॥ नुवण पश्वं वीरं । नमिऊण नणामि अबुह बोहत्थं । जीव सरूवं किंचिवि । जह नणियं पुत्र सूरीहिं ॥१॥ जीवा मुत्ता संसारिणोत्र। तस थावराय संसारी । पुढवी जल जलण बाक। वणस्सई थावरा नेया ॥२॥ फलित्र मणि रयण विदुम । हिंगलू हरियाल मणसिल रसिंदा । कणगाइ धान सेढी । वणी अरणेदृय पलेवा ॥३॥ अनय तूरीसं । मट्टी पाहाण जाइन णेगा । सोवीरंजण लवणाई । पुढवी याइं इचाई॥४॥मंत रिरक मुदगं । नेसाहिम करग हरितणु महिया। हुंतिघणोदहि माई । नेया णेगान आनस्स ॥५॥इंगाल जाल मुम्मुर । नक्कासणि कणग विज्जुमा ईया। अगणिजीयाणं नेया। नायबा निनणबुझीए ॥६॥ ननामग नक्क लिया। मंमलि मुह सुध गुंजवायाय । घणतणु वायाश्या। याखनु वान कायस्स ॥७॥साहारण पत्तेया। वणस्सई जीवा उहामुए नणिया । जेसि मणंताणतणु । एगा साहारणा तेक ॥८॥ कंदाअंकुर किसलिय । पणगा सेवाल नूमिफोडाय । अवत्तिय गऊर मोत्थ । वत्थुला थेग पखंका ॥९॥ कोमल फलंच सबं । गूढ, सिराइ सिकाइ पत्ताइं। थोहरि कुमार गुग्गुल । गिलोइ पमुहाइ जिन्नरुहा ॥१०॥ इच्चारणो अणेगे । हवंति या अणंत कायाणं । तेसिं परिजाणणत्थं । लरकण मेयं सुए नणियं ॥ ११॥ गूढ सिर संधि पत्वं । सम जंग महीरगंच जिन्नरहं । साहारणं सरीरं । तविवरिअंच पत्तेयं ॥१२॥ एग सरीरे एगो। जीवो जे सिंतु तेज पत्तेया । फल फुल्ल गल्लि
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५४८
रत्नसागर.
कहा । मूला पत्ताणि बीयाणी ॥ १३ ॥ पत्तेय तरु मुत्तुं । पंचवि पुढवाइणो सयललोए । सहुमा हवंति नियमा । अंतमहुत्तान अहिस्सा ॥ १४ ॥ संख कवड्डय गंगोज । जलोय चंदाग अलस बहुगाइ । मेहरी किमि पुरगा । बेदिय माइ वाहाई ॥ १५ ॥ गोमी मंकण जूना | पिपीलि नदेहियाय मोडा | इल्लिय घयमिल्लीन । सावय गोगी जाई ॥ १६ ॥ गद्दय चोर कीडा गोमयीमा धन्नकीमाय । कुंथु गोवालिय इल्लिया । तेदिय इंदि गोवाई ॥ १७ ॥ चनरिंदियाय विच्छू । ढिंकुण मराय नमरिया तिड्डा । मनिय सा मसगा। कंसारी कवल मोलाई || १८ || पंचेंद्रियाय चहा । नारय तिरिया मणुस्स देवाय । नेरइया सत्तविहा । नायवा पुढविने एणं ।। १९ ॥ जलयर थलयर खयरा । तिविहा पंचेंदिया तिरिरकाय । सुसुमार मह कछव । गाहा मगराय जलचारी ॥२०॥ चनपय नरपरि सप्पा । जुय परि सप्पाय थलयरा तिविहा । गोसप्प नवल पहा । बोधवाते समासे ॥ २१ ॥ खयरा रोमय परकी । चम्मय परकीय पायडाचेव । नर लोगान वाहिं । समुग्ग परकी विप्रय परकी ॥ २२ ॥ सबे जल थल खयरा । समुहिमा गनया दुहा हुंति । कम्मा कम्मग भूमि । अंतर दीवा मणुस्साय ॥ २३ ॥ दसहा जुवणाहि वई । अ विहा वाण व्यंतरा हुँति । जोइसिया पंचविहा। डुविहा वेमाणिया देवा ॥ २४ ॥ सिधा पनरस नेया । तित्थ प्रतित्थाइ सिङ्घ नेणं । ए ए संखे वेणं । जीव विगप्पा समरकाया ॥ २५ ॥ ए ए सिं जीवा । सरीर माऊठिई सकायंमि पाणा जोणि पमाणं । जेसिंजं हितं नमो ॥ २६ ॥ अंगुल असंख जागो । सरीर मेगिंदियाण सवेसिं । जोयण सहस्स महियं । नवरं पत्तेय रुरकाणं || २७ ॥ वारस जोयण तिन्नेव गाउमा । जोयणंच अणुक्कमसो । बेइंदिय तेई दिय । चनरिंदिय देह मुच्चत्तं ॥ २८ ॥ धनुसय पंच पमाणा । नेरश्या सत्तमाइ पुढवीए । तत्तो श्रद्धूा । नेया रयणप्पहाजाव|| २९ ॥ जोयण सहस्स माणा । महानरगाय गया हुंति । धणु पहुंत्तं परकी । जुयचारी गान अपहृतं ॥ ॥३०॥खयरा धणु पहुत्तं । नुरगा जरगाय जोयण पहुत्तं । गाउय पहुत्तमित्ता समुहमा चनप्पा नणिया ॥ ३१ ॥ बच्चैव गानभाई। चनुप्पया गनयामुणे
कोस तिच मणुस्सा | नकोस सरीर माणेणं ॥ ३२ ॥ ईसारांत भुराणं ।
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जीवचार, नवतत्व प्रकरण. स्यणीन सत्त देह न्चत्तं । जुग जुग जुग चन गेविऊ । णुत्तरे इक्विक परि हाणी॥३३॥ बावीसा पुढवीए । सत्तय आनस्स तिन्नि वानस्स । वासस हस्सा दशतरु । गणाण तेऊ तिरत्ताऊ ॥ ३४ ॥ वासाणि वारसाक । वे दिय ते इंदियाण अणुक्कमसो । अनणापन्न दिणाई। चनरिंदीणं तु जम्मासा।। ॥ ३५॥ सुर नेरइयाण ठिई । नकोसा सागराणि तित्तीसं । चनपय तिरिय मणुस्सा । तिन्निय पलिनवमा हुंति ॥३६॥ जलयर नर नुयगाणं । परमाऊ होइ पुवकोडीक । परकीणं पुण नणिन् । असंख जागो अपलियस्स॥३७॥ सबे सुहमा साहारणाय । समुछिमा मणुस्साय । नकोस जहन्नेणं । अंतम हुत्तं चिय जियंति ॥ ३८ ॥ गाहणा नमाणं । एवं संखेवन समरकायं। जे पुण इनविसेसा । विसेस मुत्तान तेनेया ॥ ३९ ॥ एगिदि याय सो । असंख नसप्पणी सकायंमि । नववऊंतिचयंतिम । अणंत काया अणंतान ॥४०॥ संखिऊ समा विगला । सत्त: नवा पणिदि तिरि मणुया । नववऊंति सकाए । नारय देवा नोचेव ॥ ४१ ॥ दसहा जियाण पाणा । इंदिय ऊसास पान वलरूवा । एगेंदिएसु चनरो । विग लेसु उसत्त अहेव ॥४२॥ असन्नि सन्नि पंचेंदिएमु । नव दस कमण बोधवा। तेहिंसह विप्पगो। जीवाणं जन्नए मरणं ॥४३॥ एवं अणोर पारे । संसारे सायरंमि नीमंमि । पत्तो अणंत खुत्तो। जीवहिं अपत्त धम्महि ॥ ४४ ॥ तह चनरासी लरका । संखा जोगीण होश्जीवाणं । पुढवाईण चनएहं । पत्तेयं सत्त सत्तेव ॥४५॥ दस पत्तेय तरूणं । चन्दस लरका हवंति इयरेसु । वि गलें दियेसु दो दो। चनरो पंचेंदि तिरियाणं ॥ ४६ ॥ चनरो चन्रो नारय सुरेसु । मणुप्राण चनदस हवति । संपिमियाय सवे । चुलसी लरकान जोणीणं ॥ ४७ ॥ सिघाण नथिदेवो। न आन कम्मं न पाण जोणीन। साइ अणंता तेसिं । ठिई जिणंदा गमे नणिया ॥ ४८ ॥ काले प्रणाइ निहिणे । जोणी गहणम्मि नीसणे इत्थ । जमिया जमिहंति चिरं। जीवा जिनवयण मलहंता॥४९॥ तासंपइ संपत्ते । मणु अत्ते उल्लहे विसम्म ते। सिरि संति सूरि सिके । करेह नो नऊ मंधम्मे ॥५०॥ एसो जीव वियारो सेखवं रुईणजाणणा हेऊ । संखित्तो नपरियो । रुंदाने सुत्र समुद्दान ॥५१॥
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रत्न सागर.
॥ * ॥ अथ नवतत्व प्रकरण जि ॥ ॥
o
॥ * ॥ जीवा जीवा पुन्नं पावा । सव संबरोय निरणा । वंधो मुरकोय तहा । नवतत्ता हुँति नायबा ॥ १ ॥ चवदस चवदस वयालीसा । वयासीया हुति बायाला । सत्तावन्नं वारस । चन्नव नेया कमेणेसिं ॥ २ ॥ एग विह
विह तिविहा । बिहा पंच बबिहा जीवा । चेयण तस इयरेहिं । वेय गई करण काहिं ॥ ३ ॥ एगिंदिय सुहु मियरा । सन्नियर पििदया य स विति चऊ | पत्ता पत्ता । कमेण चनदस जीय ठाणा ॥ ४ ॥ प्रहार सरीर इंद्रिय । पत्ती प्राणपाण नास मणे । चन पंच पंच बप्पिय । इग विगला सन्नि सन्नी ॥ ५ ॥ धम्मा धम्मा गासा । तिय तिय नेया तव प्रधाय । खंधा देस पसा । परमाणु प्रजीव चन्द्रसहा ॥ ६ ॥ धम्मा धम्मा पुग्गल । नह कालो पंच हुंति जीवा । चलण सहावो धम्मो । थिर संठाणो ग्रहम्मोय ॥ ७ ॥ अवगाहो आगासं । पुग्गल जीवाण पुग्गला चनहा । खंधा देस पएसा । परमाणु चैव नाइव्वा ॥ ८ ॥ समया वलिय महुत्ता । दीहा परकाय मास वरिसाय । ननि पलिया सागर । नसप्पणी सप्पणी कालो ॥ ९॥ एगा कोडी सतसा लरक । सत्तहत्तरि सहस्साय । दोयसया सोलहिया । प्रावलियाणं महत्तमि ॥ १० ॥ तिन्नि सहस्सा सत्तय सयाईं । तेनत्तरिंच क सासा । एसमहुत्तो गणियो । सवेहिं अनंत नाणीहिं ॥ ११ ॥ सा नच्च गोय मडुग | सुरग पंचेंदि जाइ पण देहा। आइति तपूर्ण वंगा । प्राइम संघ यण संगणा ॥ १२ ॥ वन्न चनक्का गुरु लहु । परघा ऊसास प्राय बुझोयं । सुनखगई निमि तसदस। सुरनर तिरियान तित्थयरं ॥ १३ ॥ तस वायर पत्तं । पत्तेय थिरं सुनंच मुनगंच । सूसर आइ जसं । तसाइ दसगं इमं होई || १४ || नातराइ दसगं । नववीए नीय साय मित्तं । थावर दस नरयतिगं । कसाय पणवीस तिरिय दुगं ।। १५ ।। इग विति चन जाईन । कुखगड़ वाय हुँति पावस्स । पसत्यं वन्न चक्र । अपढम संघयण संठाणा ॥ १६ ॥ थावर हम अपऊं । साहारण अथिर असून पुन्नगाणि । दूसर प्रणाई हिं
सेहिं वीय दसगंतु ॥ १७ ॥ इंदिय कसाय प्रवय | जोगा पंच चन पंच तिन्नि कमा । किरिया पणवीसं । इमानं तान अणुक्कमसो ॥ १८ ॥ काइय
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नवतत्व प्रकरण अहिगरणिया। पानसिया पारतावणी किरिया । पाणांई वाया रंनिय। परि ग्गहिया माय बत्तीया॥१९ ॥ मिला दंसणवत्ती । अपच्चरकाणाय दिहि पुष्ठीय । पामु चिय सामंतो । वणीय नेसत्थि साहत्थी॥ २० ॥ आणवणि वियारणिया अणनोगा । अणवकंख पञ्चश्या । अन्ना पग समुदाण । पिऊ दोसे रिया वहिया ॥२१॥ समई गुत्ती परिसह । जइधम्मो नावणा चरित्ताणि । पण तिग ऽवीस दस बारह । पंच नेएहिं सगवन्ना ॥ २२ ॥ शरिया नासै सणा दाणे । नचारे समई सुय । मणगुत्ती वयगुत्ती । काय गुत्तीय अव्हा ॥ २३ ॥ खुहा पिवासा सी नन्हं । दंसा चेला रइत्थिन। चरिया निसीहिया सिझा । अक्कोस वह जायणा ॥ २४ ॥ अलान रोग तणफास । मल सकार परीसह । पन्ना अन्नाण सम्मत्तं । इय बावीस परीसहा॥ ॥२५॥ खंती मद्दव अऊव । मुत्ती तव संजमेय वोधवे। सच्चं सोयं अकिंच णंच । वनंच जइ धम्मो ॥ २६ ॥ पढम मणिच मसरणं । संसारो एगयाय अन्नत्तं । असुश्त्तं आसव संवरोय । तह निऊरा नवमी ॥ २७ ॥ लोग सहावो वोही । मुलहा धम्मस्स साहगारिहा। एयान लावणान। जावेयवा पयत्तेण ॥२८॥सामाश्यत्थ पढमं। नावणं नवेवीयं । परिहार विसु घीयं । मुहमंतह संपरायंच ॥ २९ ॥ तत्तो अहरकायं । खायं सबंमि जीव लोगंमि । जं चरिकण सुविहिया। वचंति अयरा मरंठाणं॥३०॥णसण मूणो इरिया। वित्ती संखेवणं रसच्चा । काय किलेसो संलीणयाय । वझो तवोहोइ ॥३१॥ पायबित्तं विण । वेया वचं तहेव सज्ञान । जाणं उस्सगोविय अप्रिंतर त होइ ॥३२॥ वारस विहं तवो निऊराय । वंधोय चन विग प्पोय । पयइ ठिई अणुनागो। पएस एहिं नाश्वो ॥ ३३ ॥ पयई सहावा वुत्ता । ठिई काला वहारणं । प्राणुनागो रसोणेन । पएसो दल संचन ॥ ॥ ३४ ॥ पड पमिहार सि मझा । हड चित्त कुलाल नंमगारीणं । जह एएसिं नावा । कम्माणवि जाण तहनावा ॥ ३५ ॥ संतपय परूवणया। दव पमाणंच खित्त फुसणाय । कालोय अंतरं जाग । नावे अप्पावर्ड चेव ॥ ३६ ॥ संतं सुध पइत्ता। विऊंांतं ख कुसुम वन असंतं। मुरकत्ति पयं तस्स नपरूवषा मरगणा ईहिं ॥ ३७ ॥ गइ इंदिय काए।
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रत्नसागर.
जोए वेए कसाय नाणेस। संजम दसणलेसा। जव सम्मे सन्नि आहारो॥३०॥ नर गइ पणिदि तसनव । सन्नि अहरकाय खश्य सम्मत्ते । मुरकोणहार केवल ।दसण नाणे नसेसेस ॥३९॥दवपमाणे सिघाणं। जीव दवाणि हुंति णं ताणि । लोगस्स असंखिो । नागे इक्वोय सबेवि ॥ ४० ॥ फुसणा अहिया कालो। इगसिघ पमुच्च साईयाणंतो । परिवाया नावान । सिघाणं अंतरं नत्थि ॥ ४१॥ सबजीयाण मणंते । नागे तेतेसि दसणं नाणं । खइए नावे परिणामिएय । पुण होइ जीवत्तं ॥ ४२॥ थोवा नपुंस सिघा।थीनर सिघा कमेण संखगुणा । इय मुरकतत्तमयं । नवतत्ता लेस जणिया॥४३॥ जीवाइ नवपयत्थे। जो जाणइ तस्स होइ सम्मत्तं । नावेण सद्दहंतो। अयाण माणेइ सम्मत्तं ॥४४॥ सवाई जिनेसर नासियाई । वयणाइ नन्नहा हुंति । इय बुधी जस्समणे । सम्मत्तं निचलंतस्स ॥४५॥ अंतो मुहुत्त मित्तंपि । फासिधे हुऊ जेहिं सम्मत्तं । तेसिं अवठ्ठ पुग्गल । परियडो चेव संसारो॥४६॥ नसप्पणी अणंता । पुग्गल परियन मुणेयबो। तेणंता ती अचा। अणगयघा अणंतगुणा ॥४७॥ जिण अजिण तित्थ तित्था । गिहि अन्न स लिंगथी नर नपुंसा । पत्तेय सयं वुधा । वुझ्वोही कणि काय ॥४८॥ जिण सिघा अ रिहंता । अजिण सिघाय पुमरिआ पमुहा । गणहारि तित्थसिधा । अतित्थ सिघाय मरुदेवी ॥४९॥ गिहि लिंग सिघ रहो। वल्कल चीरीय अन्न लिं गम्मि । साहू सलिंग सिधा । थी सिधा चंदणा पमुहा॥५०॥ पुंसिघागो यमाई। गांगेय पमुह नपुंसया सिघा । पत्तेय सयंवुचा। नाणिया करकंडु कवि लाई ॥५१॥ तह बुध बोहि गुरु बोहिया। इग समय इक सिघाय। इग समये वि अणेगा। सिघात्ते णेग सिचाय ॥ ५२ ॥ इति नवतत्व विचारः
॥ ॥अथ दंमक प्रकरण लि०॥॥ * ॥ नमिळं चनवीस जिणे । तस्सूत्त वियार लेस देसणन । दंग पएहिं तेचिय । थोसामि मुणेह जोनबा ॥१॥ नेरश्या असुराई। पुढवाई वेंदीया दन्चेव । गन्नय तिरिय मणुस्सा। वितर जोइसिय वेमाणी ॥ २॥ संखत्तरिन इमा । सरीर मांगाहणाय संघयणा । सन्ना संगण कसाय । लेसें दिय समग्घाया ॥३॥दिछी दसण नाणे । जोगु वळगो बवाय चवण हिई।
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दमक प्रकरण.
___५५३ पऊत्ति किमाहारे । सन्नि गइ गई वेए ॥ ४ ॥ चनगन तिरिय वानसु । मणुाणं पंचसेस ति सरीरा । थावर चढगे उहने । अंगुला संख नागतणु ॥५॥सबेसिपि जहन्ना । साहाविय अंगुलस्स संखंसो । नक्कोस पणसय धणुं । नेरइया सत्तहत्थ सुरा॥६॥ गन्नतिरि सहस्स जोयण। वणस्सई अहिय जोयण सहस्सं । नर तेइंदिय तिगाऊ । वेइंदिय जोयणेवार ॥७॥ जोयण मेगं चनरिंदि। देह मुच्चत्तणं सुए नणियं ॥ वेनबिय देहपुण । अंगुल संखं समारंने ॥८॥ देवनर अहिय लक्खं । तिरियाणं नव जोयण सयाणं । उगुणंतु नारयाणं । जणियं वेनबिय सरीरं ॥९॥अंत महत्तं निरए । मुहुत्त चत्तारि तिरिय मणुएसु । देवेसु अघमासो । नकोस विकवणा कालो ॥१० ॥था वर सुर नेरइया। असंघयणाय विगल बेवहा । संघयण गं गन्नय । नर तिरिएसु मुणेयवं ॥११॥ सवेसिं चनदह वासन्ना । सबेसुराय चनरंसा । नर तिरिय उसंठगणा। हुंमा विगलेंदि नेरइया॥ १२ ॥ नाणाविह धय सूई। बुब्बुप्रवण वान तेन अप्पकाया। पुहवी मसूर वंदा । कारा संगणन भणिया॥ १३॥ सबेवि चन कसाया। लेसरगं गन्नतिरिय मणुएमु । नारय तेक वाक। विगला वेमाणीय तिलेसा ॥ १४॥ जो सिय तेक लेसा । सेसा सबेवि हुँति चनलेसा । इंदिय दारं सुगमं । मणु आणं सत्त समुग्घाया ॥१५॥ वेयणा कसाय मरणे। वेकविय तेयाय आहारे । केवलिय समुग्धा ए । सत्तइमे हुंति सन्नीणं ॥ १६ ॥ एगिदियाण केवली । तेय आहारग विणान चत्तारी । ते वेनबिय वझा । विगला सन्नीण तंचेव ॥ १७ ॥ पण गाय तिरि सुरेसु । नारय वासु चनर तिय सेसे । विगल उदि ही थावर । मिठत्ती सेस तिय दिछी ॥ १८ ॥ थावर वितिसु अचख्खु । चनरिंदिसु तद्गं सुए जणियं । मणुआ चन दंसणिणो। सेसेसु तिगं तिगं नणियं ॥ १९॥ अन्नाण नाण तियं । सुर तिरि निरिए थिरे अन्नाण पुगं। नाणा नाण विगले । मणुए पण नाण तिअन्नाणा ॥२०॥ इक्वारस सुर निरए । तिरिएमु तेर पन्नर मणुएसु । विगले चन पण वाए। जोग तिग थावरे होइ ॥ २१ ॥ नवगा मणुएसु । वारस नव निरय तिरिय देवेसु । विगलगे पणउक्कं । चनरिंदिसु थावरे तियगं ॥ २२ ॥ संखम संखा समए।
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रत्नसागर. गनय तिरि विगल नारय सुराय । मणुआ नियमा संखा । वण अणंता थावर असंखा ॥२३॥ असन्निनर असंखा । जह नववा तहेव चवणेवि । वावीस सगति दसवास । सहस्स नक्कि पुढवाई ॥ २४॥ तिदिणग्गि तिप खाक । नर तिरि सुर निरय सागर तित्तीसा। विंतर पत्रं जोइस । वरिस लख्खा हियं पलियं ॥२५॥असुराण अहियप्रयरं देसूण उपवयं नवनिकाए । वारस वासाणपण दिणाम्मास उकिट विगलाऊ॥२६॥पुढवाई दस पयाणं। अंतमहत्तं जहन्न आनठिई । दससहस्स वरस लिईआ । नवणाहिव निरय वितरिया ॥२७॥वेमाणिय जोइसिआ । पल्ल त्तयस आऊआहुति । सुरनर तिरि निरएसु । उपऊत्ती थावरे चनगं ॥२८॥ विगले पंच पाती। दिसि आहार होइ सबसि । पणगाई पए नयणा। अहसन्नि तिगं नणिम्सामि॥२९॥ चनविह सुरतिरिएसु । निरएसु दीह कालगी सन्ना।विगले हेनुवएसा । सन्ना रहिया थिरासवे ॥३०॥ मणु आणदीह कालिय। दिदीवान वएसियाकेवि। पऊपणतिरि मणुचिय । चनविह देवेसु गढ़ति ॥३१॥ संखान पऊत्त पणिदि। तिरिय नरेसु तहेव पत्ते । जूदग पत्तेय वणे। एए सुच्चिय सुरागमणं॥३२॥ पऊत्त संख गनय । तिरीय नरा निरय सत्तगे जंति । निर नवट्टा एएसु । न व वांति नसेसेसु ॥३३॥ पुढवी आऊ वणस्सई । मझे नारय विवजि आ जीवा सव्वेवि नव वङति । निय निय कम्माणु माणेणं ॥३४॥ पुढवाइ दस पएसु । पुढवी आन वणस्सई जंति । पुढ वाइ दस पएहिय । तेन वाऊ सुनव वान॥३५॥ तेक वाक गमणं । पुढवी पमुहमी होई पय नवगे। पुढ वाई गण दसगा। विग लाइं तिय तहिं जंति ॥३६॥गमणा गमणं गन्नय। तिरि आणं सयल जीव ठगणेसु । सव्वत्थ जति मणुआ । तेऊ वाऊहिं नोइंति ॥ ३७॥ वेय तिय तिरि नरेसु । इत्थी पुरि सोय चनविह सुरेसु । थिर बिगल नारएसु । नपुंस वेन हवइएगो॥ ३८॥ पज मणु वाय रग्गी। वेमाणियन वण निरय वितरिआ । जोइस चनपण तिरिआ । वेइंदिय ते इंदियनूआऊ ॥३९॥ बाऊ वणस्सई विय । अहिआ अहिआ कमेणमे हुति । सव्वेवि इमे नावा। जिणामएणंत सोपत्ता ॥ ४०॥ संपइ तुम्ह जत्तस्स । दमकपय जमण जग्ग हीयस्स । दम तिय विरय सुलह । लहु ममं दितु मुरक पयं ॥४१॥सि
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जंबुद्दीव संघयणी.
५५५ रि जिणहंस मुणीसर । रो सिरि धवलचंद सीसेण । गज सारेणं लिहिया । एसा विन्नत्ती अप्पहिआ॥४२॥ इति दमक प्रकरणम् ॥
॥ ॥अथ श्रीलधुसंघयणी लि० ॥४॥ ॥ ॥ नमिय जिणं सबन्नु । जग पुड जगगुरु महावीरं । जंबूद्दीव प यत्थे । वुवं सुत्ता सपरिहेक ॥१॥ खंमा जोयण वासा । पचय कूडाय तित्थ सेटीन । विजयदह सलिलान । पिमेसि होइ संघयणी ॥ २॥ ननय सयं खं माणं जरह पमाणेण नाइए लक्खे । अहवा ननअ सय गुणं । नरह पमाणं हवा लख्खं ॥३॥ अहबिग खमे नरहे । दो हिमवंतेअ हेमवई चनरो। अह महा हिमवंते । सोलस खंमाइ हरिवासे ॥ ४ ॥ बत्तीसं पुण निसढे । मि लिया तेसहि वीय पासेवि। चनसहिन विदेहे । तिरासि पिंमेइ नन असय ॥५॥जोयण परिमाणाई । समचनरंसाई इज खंगाई । लरकस्सय परि हीए । तप्पाय गुणेय इंतेव ॥६॥ विख्खन वग्ग दहगुण । करणी वदृस्स प रिरन होई । विक्खंन पाय गुणिना परिरने तस्स गणिय पयं ॥ ७॥ परहि तिलक्ख सोलस । सहस्स दोय सय सत्तवीस हिया । कोस तिगं अहावीसं। धणुसय तेरं गुलचहियं ॥८॥ सत्तेवय कोडिसया । नना उप्पन्न सय सह स्साई । चनणनयंच सहस्सां । सयं दिवढंच साहियं ॥९॥ गानप्र मेगं पन्न रस । धणुसया तह धणूणि पन्नरस । सचि अंगुलाइ। जंबुद्दीवस्स गणियपयं ॥१०॥ जरहाइ सत्तवासा। वियट्ट चन चन रतिं सवहियरे । सोलस बक्खार गिरि। दो चित्त विचित्त जमगा॥११॥दो सय कणय गिरीणं । चन गय दंताय तह सुमेरूय । उ वासहरा पिमे । एगुण सत्तरि सयानि ॥ १२ ॥ सोलस वख्खारेसु । चन चन कूडाय हुंति पत्तेयं । सोमणस गंधमायण । सत्त ध्य रुप्पि महाहिमक॥१३॥चनतीस वियद्वेसु। विझुप्पह निसट्ट नील वंतेमु । तह मालवंत सुरगिरि । नव नव कूडाई पत्तेयं ॥१४॥ हिम सिहरिसु श्क्वारस। इय इगसही गिरिमु कूडाणं । एगत्ते सबधणं । सय चनरो सत्त सहीय॥१५॥ चन्सत्त अध्नवगे। गारस कूमेहि गुणह जहसंखं । सोलस गुणयालं ।
वेय सगसह सयचनरो ॥ १६ ॥ चनतीसं विजएसु । नसुकूमा अहमेरु जंबुम्मि । अध्य देव कुराई। हरी कूम हरिस्सहेसही॥१७॥ मागह वरदाम
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रत्नसागर.
पनासं । तित्थविजयेसु ऐरखयनरहे । चन्तीसा तिहिगुणिया । दुरुत्तर सयंतु तित्थाणं ॥ १८ ॥ विकाहर अनिनगीय । सेढीन पुन्नि पुन्निवेयने । इय चनगुण चनतीसा । बत्तीस सयंतुसेढीणं ॥ १९ ॥ चक्की जेयवाई | विजयाई इत्थहुँतिचतीसा । मह दह व प्पनमाई । कुरुसु दसगंति सोलसगं ॥ २० ॥ गंगा सिंधू रत्ता । रत्तवई चन्नइन पत्तेयं । चवदसहिं सहस्सेहिं । समगं वच्चंति जलहिंमि ॥ २१ ॥ एवंप्रनिंतरया । चनरो पुरा वीस सहस्सेहिं । पुणरवि उप्पन्नेहिं । सहस्सेहिं जंतिचनसलिला ॥ २२ ॥ कुरुमझे चनरासी । सहसा तहय विजय सोलसेसु । वत्तीसाण नईणं । चनदस सहस्साईं पत्तेयं || २३ | चनदस सहस्सगुणिया । अमतीस नइन विजय मझिल्ला । सीन्याए निवडति । तहय सीयाई एमेव ॥ २४ ॥ सीयासीन्याविय । वत्तीस सहरस पंचलरकेहिं । सबेवि चनदस लख्खा । उप्पन्न सहरस मेलविया ॥ २५ ॥ बजोयण सकोसे । गंगासिंधूण वित्थमूले । दशगुणिन पते । इयडुडु गुणणेण सेसाणं ॥ २६ ॥ जोयणसय मुच्चिहा । काय मया सिंहरि चुल्ल हिमवंता । रूप्पि महा हिमवंता । दुसुच्चा रूप्प कणयमया ॥ २७ ॥ चत्तारि जोयणसए । उच्चि निसट्ट नीलवतोय। निसट्टो तवणि मनु । वेरुलियो नीलवतोय ॥ २८ ॥ सवेवि पवयरा । समय खित्तंमि मंदर विहला । धरणी तले मुवगाढा । नस्सेय चनत्थ नायंमि ॥ २९ ॥ खंगाई गाहाहिं । दसहिं दारेहिं जंबूद्दीवरस | संघयणी सम्मत्ता । रइया हरिनद सूरीहिं ॥ ३० ॥ ॥ * ॥ इति श्री जंबुद्दीव संघयणी प्रकरणम् ॥ *॥ ॥ अथ नवकारस्तवन० ॥ ॥
॥ * ॥ श्रीनवकार जपो मनरंगे । श्रीजिनसासन साररी माई || सर्व मंगल मांहे पहिलोमंगल । जपतां जयजयकाररी माई | श्री० ॥ १ ॥ पहिलेपद त्रिभुवन जन पूजित । प्रणमुं श्री अरिहंतरी माई | अष्टकर्म बरजत बीजे पद । ध्यावुंसिद्ध अनंतरी माई । श्री० ॥ २ ॥ श्रचारिज तीजै पदसम | गुणबत्तीस निधानरी माई | चौथेपद नवजाय जपीजै । सूत्र सिद्धांत सुजाणरी माई ॥ श्री० ३ ॥ सर्वसाधु पंचम पद प्रणसुं । पंचमहाव्रत धाररी माई | नवपद प्रष्ट इहां वे संपद । असठ वरण संजारी माई ॥
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श्रीनवकार० प्रहकठीगौतम.. श्री० ४ ॥ सातइहां गुरु अदर एहना । एकप्रकार नचाररी माई । सातसागरना पातिक जावै । पद पंचास विचाररी माई॥श्री०॥५॥संपूरण पणसे सागरना। पाप पूलाये दूररी माई ॥ इहनव खेमकुशल मनबंजित । परजव सुख भरपूररी माई॥श्री० ॥६॥ ईरति सोवन पुरिसो सीधो। सिवकु मार इणध्यानरी माई ॥ सर्पफीटि हुई फूलमाला । श्रीमतिने परधांनरी ॥ माई॥श्री०॥७॥जद नपद्रव करतो निवारयो ॥ परचो एह परसिघरी माई॥ चोरचम पिंगलने हुंमक ॥ पामें सुर नर रिघरी माई॥श्री० ८ ॥ पंच परमेष्टी मंत्र जगनत्तम ॥चवदैपूरव साररी माई ॥ गुणबोले श्रीपदमराज गुरु । महिमाजासु अपाररी माई॥ श्री०॥९॥ इति नवकारस्तवनम् ॥
॥ ॥ अथ श्रीगौतम स्वामी अष्टक ॥ ॥ ॥ ॥ प्रहकठी गौतम प्रणमीजै । मन बंबित फलनो दातार । लबधि निधान सकल गुणसागर । श्रीब्रघमान प्रथम गणधार । प्रह० ॥१॥ गोतम गोत्र चवद विद्यानिधि । प्रथवी मात पिता वसुनूत। जिनवर बांणि सुणी मनहरष्यौ । बोलायो नामे इंद्र नूति । प्र०॥२॥ पंचमहाबत लेई प्रजूपासै चैजिनवर त्रिपदी मनरंग। श्रीगोतम गणधर तिहां गूंथ्या। पूरब चवद दु वालश अंग। प्र०॥३॥ लवधई अष्टापद गिर चढीयो । चैत्यवंदन जिनवर चौवीस । पनरैसै तिमोत्तर तापसाप्रतिबोधीकीधा निजसीस ॥ प्र०॥४॥ अद नुत एह सुगरुनो अतिसय । जसुदीखे तसु केवलन्यांन । जावजीव उठ तपपारणे । आपणपै गोचरिय मध्यान॥प्र०॥५॥कामधेनु मुरतरु चिंतामणि । नाम माहीं जसु करेरे निवासाते सदगुरुनो नामजपंता । लानेलखमी लील विलास ॥प्र०॥६॥ लानघणौ विणजै व्यापारै । आवै प्रवहण कुशले पेम ते सदगुरुनो ध्यान धरता। पामें पुत्र कलत्र बहु प्रेम ॥ प्र० ॥ ७ ॥गो तम स्वामितणा गुणगातां । अष्ट महासिघ नवेरे निधांन। समय सुंदर कहै मुगुरु प्रसादै। पुन्य नदयप्रगटयौ परधांन०॥८॥इति गोतम स्वामि अ०॥
॥॥अथ श्री चिंतामणि स्तवन ॥ ॥ ॥ॐ॥ आणी मनसूधी आसता॥ देव जुहारं सासता । पार्श्वनाथ मनवं बित पूर । चिंतामण मोरी चिंता चूर ॥ १॥ अणियाली तोरी आंखडी।जाणे
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रत्नसागर. कमलतणी पांखडी मुख दीगं सुख जावै दूर ॥ चिं॥२॥ को केहनें को केहनें नमें । मारे मनमें तूहिं जगमें। सदा जुहारूं गैसूर ॥ चिं ॥३॥ वीउडीया वाले सर मेल । वैरी उसमण पाग ठेल । तूं 3 मारै हाजरा हजूर ॥ ॥ चिं ॥४॥ मुजमन लागी तुमसूं प्रीत । बीजो कोयन आवै चीत । करो मुझ तेज प्रताप पर । चिं ॥५॥ येह स्तोतर मनमें धरै । तेहना चिंत्या कारज सरैं। आधि व्याधि पुख जावै दूर । चिं॥६॥जव जव देज्यो तुम पाय सेव । श्रीचिंतामणि अरिहंत देव । समयसुंदर कहे सुख नरपूर ॥ चिं ॥७॥ इति पदम् ॥ ...
॥॥ ॥ ॥ अथ ८ कर्मकी मूलोत्तर प्रकृतिका नाम ॥ ॥
* ॥ प्रथम आठ मूल प्रकृतिका नाम ॥१॥ १ज्ञानावरणीय कर्म । २ दर्शनावरणीय कर्म । ३ वेदनीय कर्म । ४ मोह नीय कर्म । ५ आयुः कर्म । ६ नाम कर्म । ७ गोत्र कर्म । ८ अंतराय कर्म । पहेला ज्ञानावरणीय कर्मकी नत्तर प्रकृति पांच ॥
१ मतिज्ञानावरणीय । २ श्रुतज्ञानावरणीय । ३ अवधिज्ञानावरणीय । ४ मनःपर्यवज्ञानावणीय ।५ केवलज्ञानावरणीय॥ ॥ ॥ दूजा दर्शनावरणीय कर्मकी उत्तर प्रकृति नव ॥ ॥
१ चकुदर्शनावरणीय।२ अचकुर्दर्शनावरणीय ।३ अवधिदर्शनावरणीय । ४केवलदर्शनावरणीय । ५ निद्रा । ६ निद्रा निद्रा । ७ प्रचला । ८ प्रचला प्रचला ।९ थीणघी ॥
॥ ॥तीजा वेदनीय कर्मनी उत्तर प्रकृतिदो॥ॐ॥ १शातावेदनीय.
२ अशाता वेदनीय' ॥चोथा मोहनीय कर्मकी उत्तर प्रकृति अथवीश॥ १ सम्यक्त्व मोहनीय. २ मिश्रमोहनीय. ३ मिथ्यात्वमोहनीय. ४ अनं तानुबंधी क्रोध. ५ अप्रत्याख्यानी क्रोध. ६ प्रत्याख्यानी क्रोध. ७ संज्वलन क्रोध. ८ अनंतानुबंधी मान. ९ अप्रत्याख्यानी मान. १० संज्वलनमान. ११ प्रत्याख्यानी मान. १२ अनंतानुबंधीमाया. १३ अप्रत्याख्यानी माया. १४ प्रत्याख्यानीमाया. १५ संज्वलन माया. १६ अनंतानुबंधी लोन. १७
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मठकर्म मूल उत्तर प्रकृती नाम.
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प्रत्याख्यानी लोन. १८ प्रत्याख्यानी लोन. १९ संज्वलन लोन. २० हास्य नोकषाय. २१ रति नोकषाय. २२ अरति नोकषाय. २३ शोक नोक षाय २४ नयनोकषाय. २५ जुगुप्सा नोकषाय. २६ पुरुषवेद नोकषाय. २७ स्त्रीवेद नोकषाय. २८ नपुंसकवेद नोकषाय. ॥
॥ पंचमा आयुः कर्मकी उत्तर प्रकृति चार ॥
१ देवायु. २ मनुष्यायु. ३ तिर्यगायु. ४ नरकायु.
॥
॥ बा नामकर्मकी उत्तर प्रकृति १०३ ॥ ॥ १ नरकगति नामकर्म. २ तिर्यग्गति नामकर्म. ३ मनुष्यगति नामकर्म. - ४ देवगति नामकर्म. ५ एकेंद्रिय जातिनाम ६ बेंद्रिय जातिनाम ७ तेंद्रिय जातिनाम. ८ चतुरींद्रिय जातिनाम ९ पंचेद्रिय जातिनाम. १० प्रदारिक शरीरनाम. ११ वैक्रिय शरीरनाम. १२ आहारकशरीरनाम. १३ तैजसशरीर नाम. १४ कार्मणशरीर नाम. १५ प्रदारिक अंगोपांग. १६ वैकिय अंगोपांग. १७ आहारक अंगोपांग १८ औदारिक प्रदारिक बंधन. १९ औदारिक तैजस बंधन. २० प्रदारिक कार्मण बंधन. २१ प्रदारिक तैजसकार्मण बंधन २२ वैक्रियवैयि बंधन. २३ वैक्रिय तैजसबंधन. २४ वैक्रियकार्मण बंधन. २५ वैकिय तैजस कार्मण बंधन. २६ प्रहारक आहारक बंधन. २७ आहारक तैजसबंधन. २८ आहारक कार्मण बंधन. २९ आहारक तैजस कार्म बंधन ३० तेजस तेजस बंधन ३१ तैजस कार्मण बंधन. ३२ कार्मण कार्मण बंधन ३३ दारिक संघातन. ३४ वैक्रिय संघातन ३५ प्रहारक संघातन. ३६ तैजस संघातन. ३७ कार्मण संघातन. ३८ वज्र रुषन नाराच संघयण. ३९ रुषन नाराचसंघयण. ४० नाराचसंघयण. ४१ अर्धनाराचसंघयण ४२ कीजीका संघयण. ४३ बेवडो संघयण. ४४ समचतुरस्त्र संस्थान. ४५ निग्रोध संस्थान. ४६ सादिसंस्थान. ४७ वामन संस्थान ५८ कुब्ज संस्था न. ४९ हुंडक संस्थान.५० कृष्णवर्ण नाम. ५१नीलवर्ण नाम, ५२ लोहितवर्ण नाम. ५३ हारिद्रवर्ण नाम. ५४ श्वेतवर्ण नाम कर्म. ५५ सुरभि गंध. ५६ रजि गंध. ५७ तिक्तरस नामकर्म. ५८ कटुकरस नामकर्म. ५९ कषायरस ना मकर्म. ६० आम्लरस नामकर्म. ६१ मधुररस नामकर्म. ६२ कर्कशस्पर्श नाम
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रत्नसागर.
कर्म. ६३ मृदुस्पर्श० ६४ गुरुस्पर्श नामकर्म. ६५ लघुस्पर्श नामकर्म ६६ शीतस्पर्श नामकर्म. ६७ नृष्णस्पर्श नामकर्म ६८ स्निग्धस्पर्श नाम कर्म . ६९ रूक्षस्पर्श नाम कर्म ७० नरकानुपूर्वी ७१ तिर्यगानुपूर्वी ७२ मनुष्यानुपूर्वी. ७३ देवानुपूर्वी. ७४ शुभ विहायोगति. ७५ शुभ विहायोगति. ७६ परावा त नामकर्म. ७७ नास नामकर्म. ७८ आतप नामकर्म. ७९ उद्योत नामक म. ८० अगुरुलघु नाम कर्म. ८१ तीर्थकर नाम कर्म. ८२ निर्माण नामकर्म. ८३ नपघात नामकर्म. ८४ त्रसनाम कर्म. ८५ बादर नाम कर्म. ८६ पर्याप्त नाम कर्म. ८७ प्रत्येक नाम कर्म. ८८ स्थिर नामकर्म. ८९ शुभ नाम कर्म. ९० सौभाग्य नाम कर्म - ९१ सुस्वर नाम कर्म. ९२ आदेयनाम कर्म. ९३ य शः कीर्त्ति नाम कर्म. ९४ स्थावर नाम कर्म . ९५ सूक्ष्म नाम कर्म. ९६ अप र्याप्त नाम कर्म. ९७ साधारण नाम कर्म. ९० अस्थिर नाम कर्म. ९९ अशुभ नाम कर्म. १०० दुर्भाग्य नाम कर्म. १०१ दुःस्वर नाम कर्म. १०२ अनादेय नाम कर्म. १०३ यशोऽकीर्त्ति नाम कर्म.
॥ ॥ सातमा गोत्रकर्मकी उत्तर प्रकृति दो ॥ ॥ १ उच्चैर्गोत्र. २ नीचैर्गोत्र. ॥ श्राध्मा अंतराय कर्मकी उत्तर प्रकृति पांच ॥ १ दानांतराय २ लानांतराय. ३ नोगांतराय, ४ नपनोगांतराय. ५ वी यतिराय. ( इसप्रमाणे आठ कर्मकी एकशो महावन उत्तर प्रकृति जानी. ) ॥ * ॥ अथ नव तत्व नामः ॥ ॥
जीवतत्व, २ जीवतत्व, ३ पुन्यतत्व, ४ पापतत्व, ५ तत्व, ७ निर्झरातत्व, ८ वंधतत्व, ९ मोक्तत्व ॥ ॥
॥ इति ॥
MPSC G
श्रवतत्व ६ संच In
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HAAGRUSKANGRAL
(SA
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WEDNEd
* श्री जिनार्चन विधिः * ॥
Yeares
॥ॐ॥अर्हत्कल्पानुसारें सदैव जिन पूजन विधि किंचित्मात्र लिखते हे ॥ जगवंतके मंदिर ( वा ) घर देरासरके विषे । चोटीकू वांधकै शुध वस्त्र पहरके, उत्तरासंग जिनोपवीत मुखकोससहित । एकांतके विषे पूर्व दिश, उत्तरदिश तरफ, वेठके परमेश्वरकी पूजा करै ॥ प्रथम जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अदत, नैवेद्य, फल, आदि चीजांकू मंत्रों से पवित्र करै ( यथा ) ॥न आपो अप्य काया एकेंद्रिय जीव निर्वद्या है पूजाया निर्व्यथाः संतु । निरपायाः संतु । सन्तयः संतु । नमस्तु संघट्टण हिंसापापमर्हदर्चने। इस मंत्रसें जल मंत्रणा ॥ ॥न वनस्पतयो वनस्पतिका या जीवा एकेंद्रिया निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः संतु । निरपायाः संतु ।स जतयः संतु । नमेस्तु संघट्टन हिंसा पापमर्हदर्चने ॥ इति पत्र पुष्प फल धूप चंदनादि अनिमंत्रण मंत्र ॥॥ अग्नयो अग्निकाया जीवा एकेंद्रिया नि रखद्या अर्हत्पूजायां निर्व्यथाः संतु । निरपायाः संतु । सन्तयः संतु । नमे स्तु संघटन हिंसा पापमर्हदर्चने ॥ इति वन्हि दीपाद्यनिमंत्रणं ॥ फेर बास चूर्ण फूल गंधादिक हाथमे लेके मंत्र पढे ॥ न त्रसरूपोहं संसारिजीवः सुवासनः सुमेधा एक चित्तो निरवद्यार्हदर्चनै निर्व्यथोचूयासं । निःपापोनूया सं । मत्संश्रिता अन्यपि संसारिजीवा निरवद्यार्हदर्चने निर्व्यथा नूयासुः निरुपद्रवा नूयासुः॥ इस मंत्रसे केशर मंत्रके अपणे तिलक करे ॥ ॥ पुष्पसें अपने मस्तककी पूजा करे ( फेर ) पुष्प अदत आदि हाथमें लेके मंत्र पढे ॥ तन्मंत्रो यथा ॥ पृथिव्यप्तेजो वायु वनस्पति त्रसकाया
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रत्नसागर.
एक वि त्रि चतुः पंचेंद्रिया स्तिर्यङ मनुष्या नारक देवगति गता चतुर्दशर वात्मक लोकाकाश निवासिनः । इह जिनाचने कृतानुमोदना संतु । निः पापाः संतु । निरपायाः संतुः । सुखिनः संतुः । प्राप्त कामाः संतुः । मुक्ताः संतुः । बोध माप्नुवंति ॥ इस मंत्र मंत्रकै दशदिशामें गंध जल अकृतादिक देपन करे । फेर यह श्लोक कहे ॥ शिवमस्तु सर्व जगतः । परहित निर ता नवंति नूतगणाः । दोषा प्रयांतु नाशं । सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥ १ ॥ सर्वेपि संतु सुखिनः सर्वेसंतु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यंतु माकश्चिद्दुक्ख नाग्भवेत् ॥ २ ॥ फेर मंत्र पढे ॥ नूतधात्री पवित्रास्तु | अधिवासितास्तु | इस मंत्र मंत्रितजनसें जमीन पवित्र करे ( फेर) स्थि रायशास्वताय निश्चलाय पीठायनमः ॥ फेरपखाज करवाके परमेश्वरकुं पट्ट ऊपर स्थापन करे । थिरबिंव होय तो वेदी ऊपर पखाल करावे || पीछे इस मंत्र पढे ॥ प्रत्रक्षेत्रे । अत्रकाले । नामर्हितो । रूपार्हतो । द्रव्यार्हतो । जावाहितः । समागताः । सुस्थिताः । सुनिष्टिताः । सुप्रतिष्टाः संतु ॥ इति
प्रतिमा स्थापन मंत्र || फेर मौनसहित अगामी पुष्पग्रहण करके मंत्र पढे । नमो अर्हद्भयः सिद्धेभ्यः । स्तीर्णेभ्यः । स्तारकेभ्यः । बोधकेभ्यः सर्वजं तुहितेभ्यः । इह कल्पना बिंबे भगवंतोर्हतः सुप्रतिष्टिताः संतु ॥ यह मंत्र मौन सहित पढके नगवंतके चरणऊपर पुष्पस्थापन करे । फेर पुष्प जल हाथ में लेके कहे ॥ यथा ॥ स्वागतमस्तु । सुस्थितिरस्तु । सुप्रतिष्टास्तु पुष्पानिषेकेन अर्घ्यमस्तु । पाद्यमस्तु । श्राचमनीयमस्तु । सर्वोपचारैः पूजास्तु ॥ इस मंत्र मंत्रित जिन प्रतिमाऊपर जलसहित पुष्प चढावै ॥ ( फेर ) जलय हा करके मंत्र पढे ॥ प्रर्हतं तर्पणंपद्यं । प्राणदं मलनाशनं । जलंजिनार्चने व । जायतां सुखहेतवे ॥ १ ॥ इस मंत्र मंत्रित जल करके अभिषेक करावे । फेर चंदन कुंकुम कस्तुरी आदिगंध वस्तु हाथमें ग्रहण करके । यह मंत्र पढे ॥ अर्हतं ॥ इदं गंध महामोदं । बृंहणं प्रीणनं सदा । जिनार्धनेच स कर्म । संसिध्यौ जायतां ममः ॥ १ ॥ ऐसा पढके विवधगंध वस्तूका बिलेपन करे । फेर । पुष्पपत्रिका हाथमें ग्रहण करके । यह मंत्र पढे । प्रर्हतं । नानावर्णमहामोदं । सर्वत्रिदशवलनं । जिनार्चनंच संसिथयो । सुखंभवतु
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सदैव जिनपूजन विधि. मेसदा ॥१॥ इति पुष्पपूजा ॥ फेर अस्त ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥
अर्हतं । प्रीणनं निर्मलं थल्पं । मांगल्यं सर्वसिच्छिदं । जीवनं कार्यसंसि यो । नूयान्मेजिनमंदिरं ॥१॥इस मंत्रसें मंत्रित अक्तका तीनपुंज करे। फेर पूंगीफल जातीफलादिवस्तु ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ 3 अर्हतं । जन्मफलं स्वर्गफलं । पुन्यमोदफलं फलं । दद्याजिनार्चने त्रैव । जिनपादान संस्थितः॥ इति जिन पादाग्रे फलपूजा ॥ (फेर) धूप ग्रहण करके यह मंत्र पढे॥न अर्हतं । श्रीखंमागरु कस्तूरी । द्रुमनिर्यास संभवः । प्रीणनः सर्व दे वानां । धूपोस्तु जिनपूजने ॥१॥ इस मंत्रसें धूप केपन करे । फेर पुष्प ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥अर्हतं । पंचज्ञान महाज्योति । र्मयायध्वांत घातने। द्योतनाय प्रतिमायाः । दीपो नूयात्सदार्हते ॥ १॥ इति दीपमध्ये पुष्पन्यासः ॥ फेर पुष्प ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ न अर्ह नगवद्भयो अर्ह
यो जल गंध पुष्पाक्त फल धूपदीपैः संप्रदानमस्तु । न पुण्याहं २ । प्रीयं तां २ । जगवंतोहत स्त्रिलोक्यस्थिताः। नामाकृतिः द्रव्यनावयुताः स्वाहाः। इति पुनर्जिन पूजनं ॥ पीछे वास चूर्ण ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ न सूर्य सोमांगारक बुध गुरु शुक्र शनैश्वर राहु केतु मुख्याग्रहाः इह जिन पादा ग्रे समायांतु पूजां प्रतीबंतु । ऐसा कहके नवग्रहोंकी वासचूर्णसें पूजा करे ॥ फेर यह मंत्र पढे ॥ आचमनमस्तु गंधमस्तु पुष्पमस्तु अहतमस्तु फलमस्तु धूपोस्तु दीपोस्तु ॥ पीछे अनुक्रमसें जल, गंध, पुष्प, अदत, फल धूप, दीप, नेवेद्य करके नवग्रहोंकी पूजा करे। फेर हाथमें पुष्प ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ न सूर्य सोमांगारक शुक्र बुध गुरु शनैश्वर राहु केतु प्रमुखाग्र हाः सुपूजिताः संतु। सानुग्रहाः संतु। तुष्टिदाः संतु । पुष्टिदाः संतु। मांग ख्यदाः संतुः । महोत्सवदाः संतु ॥ ऐसा कहके ग्रहोकू पुष्प चढावै ॥ इसी रीतीसें ॥ इंद्राग्नि यम नैशति वरुण वायु कुबेर ईशान नाग ब्रह्मणो लोकपालाः सविनायकः सक्षेत्रपालाः इह जिन पादाने समागढंतु ॥ इस मंत्रसें पूजापट्ट ऊपर लोकपालांकी वास चूर्णसें पूजा करे । फेर यह मंत्र पढे । आचमनमस्तु । पुष्पमस्तु । अदतमस्तु । फलमस्तु । धूपोस्तु । दीपोस्तु । फेर। अनुक्रमसें जल, गंध, पुष्प, अदत, फल, धूप, दीप, नेवेद्य करकै लोकपालोंकी
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रत्नसागर
पूजा करे । फेर हाथमें पुष्प ग्रहण करके । यह मंत्र पढे ॥ इंद्रानि यमनैति वरुण वायु कुबेर ईशान नाग ब्रह्मणो लोकपालाः । सविनायकाः। सक्षेत्रपालाः । सुपूजिताः संतुः । सानुग्रहाः संतु । तुष्टिदाः संतु । पुष्टिदाः संतु । महोत्सवदा संतुः ॥ ऐसा कहके लोकपालोंकी फूलसें पूजा करे। फेर पुष्पांजलि ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ अस्मत्पूर्व गोत्र संभवाः देवगति गताः सुपूजिताः संतु । सानुग्रहाः संतु । तुष्टिदाः संतु । पुष्टिदाः संतु । मांग ल्यदाः संतु । महोत्सवदाः संतु । ( ऐसा कहकै ) जिन पादाये पट्टोपरि पुष्पां जलि चढावे । फेर पुष्पांजलि ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ प्रकाष्ट नवत्युत्तरशतं देव जातयः स देवाः पूजां प्रतीच्छंतु । सुपूजिताः संतु । सा नुग्रहाः संतु । तुष्टिदाः संतु । मांगल्यदाः संतु । महोत्सवदाः संतु । ऐसा कहके परमेश्वरके चरण कमलमागे पुष्पांजलि चढावै ॥ फेर हाथ में पुष्पांजलि ग्रहण करके । अर्हन्मंत्र स्मरणकरके तिस पुष्पोंसें जिन प्रतिमाकी पूजा करे । तन्मंत्रोयथा ॥ र्ह णमो अरिहंताणं । नँ ह मो सयंसंबुदाणं । ॐ अर्ह णमो आयरियाणं ॥ श्लोकः ॥ प्रयंतु त्रिप दोमंत्र । श्रीमतामर्हतांपरः । जोगमोक्क प्रदोनित्यं । सर्वपाप निकृंतनः १ ॥ इस
मंत्रकों अपवित्रपणेंसें नहिंजपना । ( तथा ) नास्तिकांकूं मिथ्या वियोंकू न देना । फेर १०८वार इस मंत्र का जाप करे । तिसके वाद । नैवेद्य दोय रकेवीयोंमें रखके। अंजली में जलग्रहण करके | यह मंत्र पढ़े ॥
। नाना षड्रस संपूर्ण । नैवेद्यं सर्व्वमुत्तमं । जिनाग्रे ढोकितं सर्व्वं । सं पदा ममजायते ॥ १ ॥ यह कहके नैवेद्यपासे, जलक्क्षेपन करे। फेर जल ग्रहण करके यह मंत्र पढे ॥ सर्वे गणेश क्षेत्रपालाद्याः सर्वेग्रहाः सर्वेदि पालाद्या । सबै अस्मत्पूर्वजोद्भवादेवाः । सर्वे अष्टनवत्युत्तरशतं देवजातयः । सदेव्योर्हद्भक्ताः । अनेन नैवेद्येन संतर्पितास्संतु । तुष्टिं पुष्टिं संतुः । मांगल्यं • महो० ॥ ऐसा कहके दूसरे नैवेद्य पासे जल माले || पीछे पुष्पांजली हाथमें लेके पढे ॥ योजन्मकाले पुरुषोत्तमस्य । सुमेरुशृंगे कृतमनैश्च । देवै प्रदत्त कुशमांजलि प्रीतिजक्त्या । ददातु सर्वाणि समीहितानि ॥ १ ॥ राज्याभिषेक समये त्रिदशाधिपेन | त्रध्वजांकरलयोः पदयोनिस्य । किमोतिनक्तिः कु
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. सदैव जिनपूजन विधि. . . ५६५ शुमांजलीयं । स प्रीणयत्वानुदिनं सुधीयां ॥२॥ देवेंद्रोकृत केवले जिनपतौ सानंद त्यागतेः । संदेहं व्यपरोपण दमशुज व्याख्यान बुध्यात्रयैः। श्रा मोदान्वित पारिजात कुशुमैर्यत्स्वामि पादाग्रतो । मुक्तः सः प्रतनोतु चिन्मय हृदां नद्राणि पुष्पांजलि ॥३॥ * ॥
॥ ॥ यह तीन वृत्त कहके तीन पुष्पांजलि देपन करे ॥ फेर लवण हाथमें लेके यह वृत्त पढे ॥ लावण्य पुण्यांग नृतोर्हतोयः । स्तवृष्टि जावं सहसैवधत्ते । सविश्वनर्तुलवणावतारो। गर्नावतारं मुधिया विहत्तुं ॥ १ ॥ लावण्यक निधेर्विश्व । नर्तुं स्तत्वृधिहेतुकृत् । लवणो त्तारणं कुर्या । वसा गर तारणं ॥२॥ यह दोय वृत्त कहके दोयदफे लवण तारे ॥ फेर लव णमिश्र जल लेके यह वृत्त पढे ॥ सदारता सदा नक्तां । निहंतु कर्म सो द्यमः । लवणार्चि लवणांधुः । पिषाते सेवते पदौ ॥ १ ॥ ऐसा कहके लवण जल नवारणा करे ॥ फेर आरती लेके यह पढे ॥ सप्तमीति विघातार्ह । स तव्यसन नाशकृत् । यत्सप्तनरकनारा । सप्ताररितुलांगतं ॥१॥ सप्तांग राज्य फलदान कृतप्रमोदं । सत्सप्त तत्वविदनंतवृतप्रबोधं । तववक्रहस्तस्तसंगत सप्त दीप । मारात्रिकं नवतु सप्तम सजणायां ॥ ऐसा कहके आरती तारे ॥ फेर मंगलदीप लेके यह पढे ॥ विश्वत्रय नवेडीवैः । सदेवा सुर मानवैः। चिन्म गलं श्रीजिनेंद्रात् । प्रार्थनीयं दिनेदिने ॥१॥ यन्मंगलं नगवतः प्रथमार्हतः श्री। संयोजनैः प्रतिबनूव विवाहकाले । सर्वाःसुरासुर वधूमुख गीयमानं । स वर्षिनिश्च सुमनोनि रुदीर्यमासा ॥ २ ॥ दास्यं गतेषु सकलेषु मुरासुरेषु । राज्येर्हतः प्रथम सृष्टि कृतोयदासीत् । सन्मंगलं मिथन पाणिग तीर्थवारि । पादानिषेक विधिनान्युपचीयमानं ॥ ३ ॥ यनिवाधिपतेः समस्ततनु नृत्सं सारनिस्तारणे। तीर्थपुष्टि मुपेयुषिप्रतिदिनं वृधिर्गतं मंगलं । तत्संप्रत्युपनीतपू जनविधौ विश्वात्मना मर्हतां । नूयान्मंगल मयंच जगते स्वस्त्यस्तु संघायच ॥ ४ ॥ यह चारवृत्त कहके मंगलदीप आरती नतारे ॥ फेर सक्रस्तव पढे ॥ यह सदैव जिन पूजन करणेंकी विधि कही ॥॥
॥ ॥ ॥॥अथ श्रीदेवचंदजीकृत स्नात्रपूजा लि० ॥ ॥ ॥॥चौतीसे अतिशय जुन । वचनातिशयें जुत्त ॥ सो परमेसर देख
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रत्नसागर.
नवि । सिंहास संपत्त ॥ १ ॥ ( ढाल ) सिंहासन बैठा जगनाथ | देखी विजन गुण मणिखाण || जेदीठे तुऊ निम्मल ऊाण । लहीये परम महोद गण ॥ १ ॥ * ॥ कुसुमांजलि मेलो आदि जिन्दा । तोरा चरण कम ल चोवीस पूजोरे ॥ चोवीस सोजागी । चोवीस वैरागी ॥ चौबीस जिनन्दा कुसुमांजलि मेलो आदि जिन्दा ॥ १ ॥ ॥ इतना कही । कुसुमांजली चढाई जै । चरणां टीकी दीजै । हाथमें कुसुमांजली लेई । नमोत सि
० कही । पढे ॥ * ॥ ( गाथा ) जोनि गुण पडव रम्यो । तसु अनुभव एगत्त ॥ सुह पुग्गल आरोपतां । ज्योति सुरंग निरत्त ॥ १ ॥ ( ढाल ) जो निज प्रातमगुण प्राणन्दि । पुग्गलसँगे जेह अन्दी ॥ जे परमेसर निज पदलीन । पूजो प्रणमो जव्य प्रदीन ॥ * ॥ कुसुमांजलि मेलो शांति जिन्दा । तोरा चरण कमल चो० ॥ कुसुमांजलि ० ॥ २ ॥ ॥ कुसु मांजली चढाई जै । गोमां टीकी दीजै । फेर हाथमें, कुसुमांजली लेके नमो सिवा कही पढे ॥ * ॥ ( गाथा ) निम्मल नाण पयासकर । निम्मल गुण सम्पन्न || निम्मल धम्मु वएस कर । सो परमप्पा धन्न ॥ १ ॥ ( ढाल ) लोका लोक प्रकासक नाणी । जविजन तारण जेहनी वाणी ॥ परमानन्द तणी नीसाणी । तसुभगतें मुजमति ठहराणी || २ || कुसुमांजल मेलो नेमि जिनन्दा तोरा च० ॥ * ॥ ३ ॥ * ॥ कुसु०| दोनुं हाथे टीकी दीजै । मुखै पढे । नमो सिघा० ॥ * ॥ ( गाथा ) जे सिझा सिझ न्तिजे । सिझिस्सन्ति प्रान्त ॥ जसु श्रालम्बन वियमणं । सो सेवो अ रिहन्त ॥ १ ॥ (ढाल ) शिव सुख कारण जेह त्रिकाले । समपरिणामें जगति निहालै ॥ उत्तम साधुनो मार्ग देखा । इन्द्रादिक जसु चरण पखालै ॥ कुसुमांजलि मेलो पास जिन्दा ॥ ४ ॥ * ॥ कुसु० | दोनुं खांधे टीकी । दीजै । मुखे पढे नमो० ॥ ॥ ॥ ( गाथा ) सम्म दिडी देशजय साहु साहुणी सार || प्राचारज नवझाय मुणि । जो निम्मल आधार ॥ १ ॥ ( ढाल ) | चौवीह संघें जे मन धारयो । मोक्ष तणो कारण निरधारयो || बिवह कुसुमवर जात गहेवी । तसु चरणें प्रणमति ठवेवी ॥ २ ॥ कुसुमां जलि मेलो बीर जिन्दा || तोरा चरण कमल० ॥ ५ ॥ ॥ कुसु० मस्तक
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देवचंदजीकृत स्नात्रपूजा
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टीकी दीजै । नमो सिधा कही । चमर हाथमें लेवे ॥ * ॥ ( वस्तु ) सयल जिनवर २ । नमिश्र मनरङ्ग ॥ कखाण कविह संठविप्र । करि सुधम्म सुपवित्त सुन्दर । सयइक सत्तरि तित्थंकर । इक्कसमय विहर न्ति महियल । चवण समय इगवीस जिए || जन्म समय इगवीस । जत्ति ह जावें पूजीया । करोसंघ सुजगीस ॥ ६ ॥ ॥ ॥ ॐ ॥
॥ * ॥ एकदिन प्रचिरा हुजरावती । ए चाल ॥ ॥ जव तीजय समकित गुण रम्या । जिन क्ति प्रमुख गुण परिणम्या ॥ तजि इन्द्रियसुख प्रसंसना । करी थानक वीरानी सेवना ॥ १ ॥ प्रतिराग प्रशस्त प्रभावता । मनजाव ना हवी जावता ॥ सबजीव करूं शासन रसी । ऐसी जावदया मन नल सी ॥ २ ॥ नही परिणाम एहवूं नलूं । निपजावी जिनपद निरमलं ॥ आ नबंधै विच एकनव करी । श्रद्धा संवेगते थिरधरी ॥ ३ ॥ तिहां चवीम ल हे नरजव नदार । जरते तिम ऐवत तेजसार || महाविदेह बिजयपरधान । मझखं वतरे जिन निधान ॥ ४ ॥ ( ढाल ) पुन्यें सुपना देखे । मनमां हरष विसेषै ॥ गजवर नऊल सुन्दर । निरमल वृषन मनोहर || १|| निरजय केसरी सह । लखमी प्रतिहि अबीह ॥ अनुपम फूलनी माला । निरम ल शशि सुकमाला || २ || तेज तरणि प्रति दीपै । इन्द्रधजा जगजीपै ॥ पूरण कलस पंसूर । पद्मसरोवर पूर ॥ ६ ॥ इग्यारमें रयणायर | देखें मा ताजी गुणसार ॥ बारमें जुवन बिमान । तेरमें रतन निधान ॥ ४ ॥ ग नि शिखा निरधूम | देखे माताजी अनोपम || हरखी रायनें जासे । राजा अथ प्रकासे ॥ ५ ॥ जगपति जिनवर सुखकर । होस्यै पुत्र मनोहर ॥ इं द्रादिक जसु नमसे । सकल मनोरथ फलसै ॥ ६ ॥ ॥ ( वस्तु ) ॥ ॐ ॥ पुन्य नदय २ || ऊपना जिननाह । माता तब रयणी समें । देखि सुपन हरखंत जागी । सुपन कही निज कंतने । सुपन अरथ सांजलै सोभागीय । त्रिभुवन तिलक महागुणी । होस्यै पुत्र नि धान | इंद्रादिक जसु पायनमी || करमै सिधि विधान ॥ ॥ १ ॥ ( ढाल ) ॥ चंद्रा नल्लालानी ॥ ॥ सोहमपति आसन कंपीयो । देई दीयो ॥ मुऊ आतम निरमल करण काज | नवजल ता
मन
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रत्नसागर.
रण प्रगटयो जिहाज ॥१॥ अव अमवी पारग सस्थवाह । केवलनाणा ईश्र गुण अगाह ॥ शिव साधन गुण अंकूर जेह । कारण उलट्यो आसाढि मेह ॥२॥ हरखे विकसे तब रोमराय । वलयादिकमां निज तनुं नमाय ॥ सिंहासणथी ऊठ्यो सुरिंद । प्रणमंतो जिन आनन्द कन्द ॥ ३॥ सगअम पय समुहा आवितत्थ । करी अंजली प्रणमित्र मत्थ सत्थ ॥ मुख नाषे एवण आजसार । तियलोय पहू दीछो नदार ॥ ४ ॥रेरे निसुणो सुरलोय देव । विषयानल तापित तनु समेव ॥ तसु शान्तिकरण जलधर समान । मि थ्याविष चूरण गरुडवान ॥५॥ ते देव जगत्तारण समत्थ । प्रगट्यो तसु प्रणमी हुवो सनत्थ ॥इम जंपी सकस्तव करेवि । तव देव देवी हरखे सुणे वि॥६॥गावै तब रंना गीतगान । सुरलोक हुवो मंगल निधान । नर खेत्रे आरज वंसगम । जिनराज बधे सुर हर्ख धाम ॥७॥ पिता माता घरे नव अलेष । जिन शासन मंगल अति विशेष ॥ सुरपति देवादिक हर खसंग । संयम अरथी जननें नमंग ॥ ८॥सुनवेला लगनें तीर्थनाथ । जनम्या इंद्रादिक हर्ख साथ ॥ सुखपाम्यां त्रिनुवन सर्वजीव ॥ बधाई ब धाइ थई अतीव ॥९॥8॥ फूल अक्तसें वधावै । ३ प्रदक्षिणा देवै । (पीजे) शकस्तव, ठगणं संपावियुकामस्स । तक कहै । पीछे । रोली (तथा ) केसरका हाथमें साथिया करै । धूपखेवै ॥ (ढाल ) श्री शांति जिननो कलश कहि सुं० ॥ ए चाल ॥ ॥श्री तीर्थपतिनो कलस मऊन गाइये सुखकार । नर खेत्र ममण मुह विहंमण । नविक मन आधार ॥ तिहां रावराणा. हरख नबव । थयो जग जयकार ॥ दिशि कुमरी अवधि विशेष जाणी । लह्यो हरख अपार ॥ १॥ नित्र अमर अमरी संग कुमरी । गावती गुणबंद ॥ जिन जननी पासे आय पहुती । गहकती आणंद ॥ हेमायतें जिनराज जायो । शचि वधायो रम्म । अमजम्म निम्मल करण कारण । करिस सूई अकम्म ॥२॥ तिहां नूमि सोधन दीप दरपण बायवींऊणधार ॥ ति हां करिय कदली गेह जिनवर । जननी मऊनकार ॥ वर राखमी जिनपा णि वांधी । दीयै इम आसीस ॥ युगकोम कोमी चिरंजीवो । धर्मदायक ईस ॥३॥ (ढाल ) नबालानी ॥ ॥ जिनरयणीजी दश दिश नजानता
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देवचर्द्रजीकृत स्नात्रपूजा.
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धरै ॥ सुलगनेंजी ज्योतिस चक्रते संचरै । जिन जनम्याजी जि प्रव सर माता घरे ॥ ति अवसरजी इंद्रासण पण थर हरे || ( त्रुटक) थरहरै आसन इंद्रचितै कौन अवसर एबन्यो । जिन जन्म नव काल जाणी प्रतिहिणंद ऊपनो ॥ निजसिध संपति हेतु जिनवर जाणि जगते मह्यो । विकसंत वदन प्रमोद वधते देवनायक गहगह्यो ॥ १ ॥ (ढाल ) तब सुरपति जी घंटानाद करावए ॥ सुरलोके जी घोषणा एहदि रावए । नर जी जिन वर जनम हुवो है । तसुभगर्ते जी सुरपति मंदि र गिर गबै ॥ (टक) गर्ने मंदिर शिखर ऊपर जुवन जीवन जिनत गो। जिन जन्म व करण कारण प्रावज्यो सविसुर घणो । तुम समकित थास्यै निरमल देव देवी निहालतां । आपणा पातिक सर्व जास्यै नाथ चरणपखालतां ॥ ३ ॥ ( ढाल ) इम सांननजी सुरवर कोकि बहू मिली। जिन वंद जी मंदर गिरि साहमी चली । सोहम पतिजी जिन जननी घराविया । जिन माताजी वांदी स्वामि बधा विया । (त्रू टक) बधाविया जिनवर हर्ख बहुलै धन्यहुं कृतपुन्य ए । त्रैलोक्य नाय क देवदीठो मुऊ समो कुण अन्यए । हे जगत जननी पुत्र तुझचो मेरु म ऊन वरकरी । नहंग तुझचै बलिय थापिस आतमा पुन्यें नरी ॥ ४ ॥ (ढाल ) सुरनायकजी जिन निज कर कमलें ठव्या ॥ पांच रूपें जी अति सय महिमायें स्तव्या । नाटक विधिजी तब बत्तीस आगल बहै । सुर कोमी जी जिन दरसनें कमहै ( टक) सुर कोमि कोमी नाचती बलि नाथ शचि गुण गावती । अपरा कोमी हाथ जोमी हाव भाव दिखावती जय जय तूं जिन राज जग गुरु एमदै प्रासी सए । प्रत्राण शरण आ धार जीवन एक तूं जगदीश ए ॥ ४ ॥ ( ढाल ) सुरगिरवर जी पांडुक व नमें चिह्नं दिसे । गिरसिल परजी सिंहासण सासय वसै । तिहां प्राणीजी शत्रें जिन खोले ग्रह्या । चौसठे जी तिहां सुरपति प्रावी रह्या (टक) आविया सुरपति सर्व जगतै कलश श्रेणि वणाव ए । सिद्धार्थ पमुहाती र्थनषधि सर्व वस्तु णावए । प्रच्चुय पति तिहां हुकमकीनो देव कोमा कोमिनें । जिन मऊनारथ नीर ल्यावो सबे सुर कर जोडिनें ॥ ५ ॥ ॥
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रत्नसागर.
सर्व स्त्रात्रिया जनका कलश हाथमें लेकै खडा रहै । मुखसें पढै (ढाल ) शांतिनें कारण इंद्र कलशा नरे । ए चाल ॥ * ॥ श्रात्म साधन रसी देव को हसी । नवसीनें धसी खीरसागर दिसी ॥ पौदह आदि दह गंग पमुहानई । तीर्थजल अमल लेवा नणी ते गई ॥ १ ॥ जाति क श करि सहस प्रोत्तरा । बत्र चामर सिंहासों सुनतरा । उपगरण पु फचंगेरि पमुहासवे । आगमें नासिया तेम आणीठवे ॥ २ ॥ तीर्थ जल रिय करकलश करि देवता । गावता भावता धर्म्म नन्नतिरता । तिरिय नर मरने हर्ख उपजावता । धन्य ह्म सगति सुचि जगति इम जावता ॥ ३ ॥ समकित बीज निज आत्म आरोपिता । कलश पाणीमिसें भक्तिजल सीं चता । मेरु सिहरो वरै सर्व श्राव्या वही । शकढंग जिन देषि मन गह गही ॥ ४ ॥ ॥ (गाथा ) ॥ * ॥ हो देवा णाई । कालो दि yat | तिलोय तारणो । तिलोय बंधु । मित्तमोह विदंसणो । प्राणाइति ना विणासणो । देवाहि देवो दिवो प्रिय कामहिं ॥ १ ॥ * ॥ ( ढाल तेह (ज) ॥ ॥ एम पति वा जुवा जोईसरा । देव वैमाणिया जत्ति धम्मायरा । केवि पहिया के वि मित्ताणुगा केई बररमण बयण अन्गा ॥ ५ ॥ ( व स्तु ) तत्थु अच्चुय २ इंद्र प्रदेश । करजोकि सर्ब देवगण । लेयकलश प्रदेस पामीय | प्रदद्भुत रूप सरूपजुय । कवण एह पुचंत सामीय ॥ इंद्र कह जगतारणों । पारग परमेस । नायक दायक धम्मनिहि । करीयै तसु निषे ॥ १ ॥ (ढाल ९ मी ) तीर्थ कमल वर नदक नरीनें । पुषकर सा गर वे ( चाल ) | पूर्ण कलश सुचि नदकनी धारा । जिनवर गै न्हा । तम निरमल नाव करता वधतें शुभ परिणामें । अच्युता दिक सुरपति मऊन लोकपाल लोकांत । सामानिक इंद्राणी पमुहा इम अभिषे क करत ॥ १ ॥ पू० ( गाहा ) || तब ईशान सुरिंदो । सकं पनणेइ करि हु पसावो । तुझ के मह नाहो । खिणमित्तं ब्रह्म पेह ॥ १ ॥ ता सक्किंदो पाई । साहमीय व लंमि वहुलाहो । प्राणावते गिरहह होन कयत्थान ॥ २ ॥ ॐ ॥ इतना कहके । सबै स्नात्रिया, जगवान ऊपर कलश ढाले । मुखैपढै ॥ * ॥ (ढाल ) ॥ सोहम सुरपति वृषण रूप करि ।
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देवचंदजीकृत अष्टप्रकारी पूजा ५७१ न्हवण करै प्रनु अंग । करिय विलेपण पुप्फ मालठवि । वर आचरण अन्नं ग ॥ सो० ॥१॥ तब सुर वर बहु जय २ रख करै । नच्चेधर आणंद । मोक मारग सारथ पति पाम्यो । नाजिमु हिव नवकंद ॥ सो० ॥२॥ कोमिब त्तीस सोवन्न नवारी । वाजतै वरनाद । सुरपति संघ अमर श्री प्रजुनें। ज ननीने सुप्रसाद । ३ सो॥आणीथापै एम पयं पै । अह्म निसतरिया आ ज। पुत्र तुह्मारो धणीय अह्मारो । तारण तरण जिहाज ॥ ४ सो०॥ मात जतन करि राखिज्यो एहनें । तुह्म सुत अह्म आधार । सुरपति जगति स हित नंदीसर । करै जिन नगति नदार ॥५ सो० ॥ निय निय कप्प गया सवि निर्जर । कहितां प्रनु गुणसार । दिदा केवल ज्ञान कल्याणक । इछा चित्त मकार ॥ सो॥६॥ खरतर गह जिन आणा रंगी। राज सागर न वशाय । ज्ञान धरम दीपचंद सुपाठक । सुगुरु तणे सुपसाय ॥सो० ७॥ देवचंद निज जगते गायो । जनम महोसव बंद । बोधबीज अंकूरो नव्ह स्यो । संघ सकल आणंद ॥सो० ८॥ (ढाल )॥ इम पूजा जगतै क रो। आतमहित काज। तजिय बिनाव निजनावना। रमतां शिवराज॥१॥ इ०॥ काल अनंतें जे हुवा । होस्यै जेह जिणंद । संपइ सीमंधर प्रनु । केवल नाण दिणंद ॥३०॥२॥ जनम महोत्सव इणि परै । श्रावक रुचि वंत । बिरचै जिन प्रतिमा तणो । अनुमोदन खंत ॥३०॥३ देवचंद जिन पूजनां । करता नवपार । जिन पमिमा जिन सारखी । कही सूत्र मकार ॥ इम०॥ ४॥ इति स्नात्रपूजा विधि संपूर्णम् ॥ ॥ ॥
॥अथ अष्टप्रकारी पूजा लिख्यते॥॥
॥॥अथ १ जल पूजा॥॥ ॥॥ (दूहा ) गंगामागध दीरनिधि । नषध मिश्रितसार । कुशुमें वा सित शुचिजलें । करो जिन खात्र नदार ॥१॥ (दाल) मणि कनकादि क अमविध करि नरी कलश सफार । शुन्न रुचि जे जिनवर नमें तसुनही कुरित प्रचार । मेरुशिखर जिम सुरवर जिनवर न्हवण अमान । करता वर ता निज गुण समकित वृधि निधान ॥१॥ (चंद) हर्ख नरी अप्सरावृंद आवै । मात्र करि एम आसीस नावै । जिहां लगै सुरगिरि जंबुदीवो।
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रत्नसागर.
मतणा नाथ जीवातु जीवों ॥ ३ ॥ ॥ ( श्लोकः ) ॥ बिमल केवल नासन जास्करं । जगति जंतु महोदय कारणं । जिनवरं बहुमान जलो घतः । शुचिमनः स्त्रपयामि विशुद्धये ॥ १ ॥ नँ की परमात्मने । अनंतानंत ज्ञान शक्तये । जन्मजरा मृत्यु निवारणाय । श्री मनेिंद्राय । जलं यजाम हे स्वाहा ॥ १ ॥ इति जलपूजा ॥ * ॥ जलसें न्हवण करावै ॥ * ॥ ॥ * ॥ थ २ चंदन पूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ ( दूहा ) बावना चंदन कुमकुमा । मृगमदनें घन सार ॥ जि न तनु लेपै तसुटलै । मोह संताप विकार ॥ १ ॥ ( ढाल ) सकल संताप निवारण तारण सहु नवि चित्त । परम अनीहा रिहा तनु चरचो नवि नित्त ॥ निज रूपै उपयोगी धारी जिनगुण गेह । जावचंदन सुह जाव थी टालै दुरित ह ॥ २ ॥ ( चालि ) जिन तनु चरचतां सकल नाकी कहै कुग्रह उष्णता आज थाकी ॥ सफल अनिमेषता आज झाकी । न पता अझ तणी आज पाकी ॥ ३ ॥ ( श्लोकः ) सकलमोह तिमश्र वि नासनं । परम शीतल जावयुतं जिनं ॥ विनय कुंकुम चंदन दर्शने । सहज तत्व विकाश कृतेर्च्चये ॥ १ ॥ ी परमात्मने । अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये ॥ जन्मजरा मृत्यु निवारणाय । श्रीमनेिंद्राय । चंदनं यजामहे स्वाहा ॥ २ ॥ इति चंदनपूजा ॥ * ॥ केसर चंदन चढावै ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ ३ पुष्प पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ ( डुहा) शतपत्री वर मोगरा । चंपक जाइ गुलाब || केतकी दमणो वौलसिरि। पूजो जिन नरि बाब ॥ १ ॥ ( ढाल ) अमल अखिं त विकसित सुन सुमनी घन जाति । जाखीलो टोमरतवो अंगीरचो बह जांति ॥ गुण कुसुमें निज आतम मंमित करवानव्य ॥ गुणरागी जरुत्यागी पुष्प चढावो नव्य ॥ २ ॥ ( चालि ) जगधणी पूजतां विविध फूलै | सुरवरा ते गिणें कण मूलै ॥ खंति घर मानवा जिनपद पूजै । तसुतणा पाप संताप धूजे ॥ ३ ॥ ( श्लोकः ) विकच निर्मल शुद्ध मनोरमै । विशद चेतन नाव समुद्भवैः ॥ सुपरिणाम प्रसून घनेर्नवैः । परमतत्व मयं हि यजाम्यहं ॥ १ ॥ जी परमात्मने पुष्पं यजामहे स्वाहा ॥ ३ ॥ ॥ * ॥ इति ॥ * ॥
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देवचंदजीकृत, अष्टप्रकारी पूजा. ५७३
॥॥अथ ४ धूप पूजा॥ॐ॥ ॥ ॥ (दूहा) कृष्णागर मृगमद तगर । अंबर तुरक लोबान । मेल सुगंध घनसार घन । करो जिननें धूपदान ॥१॥ (ढाल) धूपघटी जिम म हमहै तिम दहै पातिक वृन्द ॥ अरति अनादिनी जावै पावै मन आणंद ॥ जे जिन पूजै धूपै नव कूपैं फिर तेह ॥ नावै पावै धुवघर आवै सुक्ख अ नेह ॥२॥(चालि ) जिनघरे वासतां धूपपूरै । मित्त पुर्गन्धता जाइ दूरै॥धूप जिम सहज कर्ष गत स्वनावै । कारिका नच्चगति नाव पावै ॥३॥ (श्लोकः) सकल कर्म महेंधन दाहनं । बिमल संबर जावसु धू पनं ॥असुन पुजल संग विवर्जितं । जिनपतेः पुरतोस्तु सुहर्षितः॥ १ ॥ नशीपरमात्मने । धूपं यजामहे स्वाहा ॥४॥॥ ॥ॐ॥ इति धूप पूजा ॥ धूप अगरबत्ती खेवै ॥॥
॥ॐ ॥अथ ५ दीपपूजा॥8॥ (दूहा ) मणिमय रजत ताम्रना। पात्रकरी घृत पूर । वत्ती सूत्र कसुं बनी। करो प्रदीप सनूर ॥१॥ ( ढाल ) मंगलदीप वधावो गावो जिन गुण गीत ॥ दीपथकी जिम प्रालिका मालिका मंगलनीत ॥ दीपतणी सुन्न ज्योती द्योती जिन मुखचंद ॥ निरखी हरखो नविजन जिम लहो पूर्णा नंद ॥२॥(चाल) जिन गृहे दीपमाला प्रकासे । तेहथी तिमर अज्ञान नासै ॥ निजघटै ज्ञानज्योति विकासै । तेहथी जगतणा नावनासै ॥ ३॥ (श्लोकः ) नविक निर्मल बोध विकासकं । जिनगृहे सुन दीपक दीपनं ॥ सुगुण राग विमुच समन्वितं । दधतुनाव विकास कृते र्जना ॥१॥नक्षी परमात्मने । दीपं यजामहे स्वाहा ॥५॥ * ॥ इति दीपपूजा ॥ ॥ मंगलदीप चढावै ॥ ॥
॥१॥ ॥ॐ॥अथ ६ अदत पूजा॥ ॥ ॥ (दूहा) अक्त २ पूरसुं। जे जिन आगे सार । स्वस्तिक रचतां विस्तरै । निजगुण नर विस्तार ॥१॥ (ढाल) नऊल अमल अखंमित मं मित अवतचंग । पुंजत्रय करो स्वस्तिक आस्तिक जावै रंग । निज सत्ताने
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रत्नसागर. सन्मुख ननमुख नावे जेह । ज्ञानादिक गुणठगवै नावे स्वस्तिक एह ॥२॥ (चाल) स्वस्तिक पूरतां जिनप आगै । स्वस्ति श्री जद्र कल्याण जागे। जन्मजरा मरणादि असुन्न नागै । नियत शिव सर्म रहै तासु आगे॥३॥ (श्लोकः) सकल मंगलकेलि निकेतनं । परम मंगल नावमयं जिनं । श्र यति नव्यजना इति दर्शयन् । दधतु नाथ पुरोक्त स्वस्तिकं ॥१॥न क्षी परमात्मने । अतं यजामहे स्वाहा ॥१॥ इति अक्तपूजा ॥ अखंम चावल चढावै ॥॥
॥॥अथ ७नैवेद्यपूजा। ॥ ॥ (दूहा ) सरस सुची पकवान बहु । शालि दालि घृतपूर । धरो नैवेद्य जिन आगलै । इधा दोष तसु दूर ॥१॥( ढाल ) लपनश्री वर घेवर मधुतर मोतीचूर । सीहकेसरिया सेविया दालिया मोदक पूर । साकर द्राख सीवोमा नक्तिव्यंजन घृतसद्य । करो नैवेद्य जिन आगलै जिम मिलै सुख अनवद्य ॥२॥ (चाल) ढोवतां नोज्य पर नाव त्यागे । लविजना निज गुण जोज्यमांगे । अह्मन्नणी अह्मतणो सरूप नोज्य । आपज्यो तातजी जगत पूज्य ॥३॥ (श्लोकः) सकल पुजलसंग विवर्जनं । सहज चेतननाव विलासकं । सरसनोजन नब्य निवेदनात् । परम निर्वृति नाव महं स्पृहे ॥१॥ नक्षी परमात्मने । नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥४॥॥ ॥ इति नैवेद्यपूजा ॥ 8 ॥ नैवद्य मिगई पकवान चढावै ॥॥
..... ॥॥अथ ८ फलपूजा॥॥ ॥ ॥ (दूहा ) पक बीजोएं जिन करै । ठवतां सिवपद देइ । सरस' मधुर रस फल गिणें । इह जिन नेट करे ॥ १ ॥ ( ढाल ) श्रीफल क दली मुरंग नारंगी आंबा सार ॥ अंजीर वंजीर दामिम करणा षबीज सफार ॥ मधुर मुस्वादिक नुत्तम लोक आणदित जेह । वरण गंधादिक र मणीक बहुफल ढोवै तेह ॥ २ ॥ ( चाल ) फलनर पूजतां जगत स्वा मी । मनुजगति बेलहै सफल पामी । सकल मनुध्येय गतिनेद रंगे। ध्यावतां फलसमाप्ति प्रसंगै ॥३॥ (श्लोकः ) कटुक कर्मविपाक विनासनं । सरस पक्काल ब्रज ढोकनं । वहति मोहफलस्य प्रनोपुरः । कुरुत सिधि
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वस्त्र, निमक; पुष्पमाला पूजा.
५७५ फलाय महाजना ॥ १॥ नक्षी परमात्मने । फलं यजामहे स्वाहा ॥ इति फलपूजा ॥८॥ श्रीफल सुपारी नीलाफल प्रमुख चढावै ॥ ॥
॥अथ अघे पूजा॥॥ . ॥ ॥ (उहा) इम अम विधि जिनपूजना । बिरचे जे थिरचित्त । मानवनव सफलो करै । वाधै समकित वित्त ॥१॥ (ढाल) अगणित गुण मणि आगर नागर बांदत पाय । श्रुतधारी नपगारी श्री ज्ञान सागर नवशाय । तासु चरणकज सेवक मधुकर पय लयलीन । श्रीजिन पूजा गाई जिनवाणी रसपीन ॥२॥ (चाल) संबत गुणयुग अचल इं। हर्ष जरिंगाइयो श्रीजिनें। तासुफल सुकृत थी सकल प्राणी । लहैज्ञान न्योत धन शिव निसानी॥३॥ (श्लोकः) इति जिनवरदं नक्तितः पूजयं ति । सकल गुणनिधानं देव चंद्र स्तुवंति । प्रति दिवस मनंतं तत्व मुद्भास यति । परम सहज रूपं मोद सौख्यं श्रयंति ॥१॥नशी परमा० अर्घ यजामहे स्वाहा ॥ च्यारे खूणे धार दीजै ॥ इति अर्घ पूजा॥॥
॥ अथ वस्त्र पूजा॥॥ ॥शको यथा जिनपतेः सुरशैलचूला। सिंहासनो परिमित स्नप नावसाने। दध्यक्तैः कुसुमचंदन गंध धूपैः। कृत्वार्चनंतु विदधाति सुवस्त्र पूजा ॥१॥ तत् श्रावक वर्ग एष विधिना लंकार वस्त्रादिकं । पूजा तीर्थ कृतां करोति सततं शक्त्या तिनत्यादृतः । नीरागस्य निरंजनस्य बिजता राते स्त्रिलोकीपतेः । स्वस्यान्यस्य जनस्य निर्वृति कृते क्लेशदया कांदया ॥ नक्षी॥ वस्त्रं० ॥ वस्त्र चढावै ॥ इति वस्त्रपूजाः॥ इति अष्टप्रकारी पूजा ॥
॥ ॥ अथ निमक उतारण पूजा ॥१॥ ॥ ॥ अह पमिनग्गा पसरं। पया हिणं मुणिवयं करि कणं । पम इ सलूण त्तण लझियंच। लूणहू अवहरंती ॥१॥ पिक्खेविणुं मुह जिण वरह । दीहर नयण सलूण । न्हावइ गुरु मबह नरिय। जलण पइस्सर लूण ॥२॥ लूण तारिह जिणवरह । तिन्नि पयाहिणि देव । तम तम शब्द करंतिये। विजा विऊ जलेण ॥३॥ जंजेण बिऊव थुई । जलेण त तह अत्थसदस्स । जिणरूवा मन्तरेणवि । फुट्ट लूणं तम तमस्स ॥४॥
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रत्नसागर.
॥ * ॥ एकही लू अग्निशरण करे ॥ (पीछे) लूण पाणी लेई । मुखें गाथा है ॥ ॥ सवि मुणवई जलविजल | तंतह जमरुइपास । अह वि कर्यंतस्स निम्मलनं । निग्गुण बुद्धि पयास ॥ ५ ॥ जल अणें विणु जलाहि पास । नरवि कयल जावहि पास । तिन्नि पयाहिणि दि निय पास। जिम जिय बट्टे व दुहपास ॥ ६ ॥ जलनिम्मल कर कमले हि विणुं । सुखइ जावहि मुणिवई सेवणं । पनण जिणवर तुहपर सरणं । नयतुट्ट जब्न सिद्धि गमणं ॥ ८ ॥ * ॥ ए कही लूण नतारी जल सरण कीजै ॥ इति निमक नतारण पूजा ॥ * ॥
॥ ॥
॥ ॥ अथ पुष्पमाला पहरावण पूजा ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ उन्नय पयय नत्तस्स । नियठाणे संठियं कुणं तस्स | जिए पासै नमिय जणस्स । पितुह हुय वहे पणं ॥ १ ॥ सबो जिए प्पजावो । सरिसा सरिसेसु जेण रच्चंती । सर्व्वन्नू पासे । जस्स जमणं न संक मणं ॥ २ ॥ प्रच्चंत दुःकरं पिहू । हुयवह निवडे जडेण कथं । आणा सन्नू । न कया कयत्थ मूलमिणं ॥ ३ ॥ ए कही माला चढाईजै ॥ ॥ * ॥ अथ बूटा फूल पूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ नवणेव मंगलेवो । जिणाण मुह लालि संवलिया । तित्थ पव तसमई । तियसे विमुक्का कुसुम बुद्धी ॥ १ ॥ ॥ एकही फूल बालीजै प्रभु आगे ॥ * ॥
॥ * ॥
॥
॥ ॥ अथ सतर गेंद पूजाकी विधि लि० ॥
॥
॥
॥ * ॥ प्रथम स्नात्र करै । पीछे । अष्ट प्रकारी पूजा करै । फिर सोना रूपा प्रमुखकी रकेवी में । कुंकुम ( तथा ) केसर प्रमुखको साथियो करें। पीछे सुंदर कलश, केसर प्रमुख मिश्रित शुभजल नरी । रुपियो थापनाको कल शमेंरखी । कलश रकेबीमेंधरै । पीछे । स्नात्रया मुख कोस उत्तरासण करके । तीन नवकार गुणें । तीन नमस्कार करी । हाथे धूपदेई । रकेबी हाथ धेरै । मनथिर राखै । बीक वर्जे । स्नात्रिया प्रभुजी सन्मुख खमा रहै । कलश अडिग राखे । मुखे इम पढे । जावनले भगवंतनी ( इत्यादी ) ।
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सतरनेदी पूजा
॥ * ॥ अथ सतर नेद पूजा जि० ॥
॥
॥ * ॥ ( दूहा) जावनलै भगवंतनी। पूजा सतर प्रकार । परसिध कीधी द्रौपदी अधिकार ॥ १ ॥ * ॥ ( राग सरपदो ) ॥ * ॥ ज्यो ति सकल जग जागती ॥ ( हां इ० ) ॥ सरसति समरिसृजिंद ॥ सतर सुवि धि पूजा तणी । पणिसु परमानन्द ॥ १ ॥ ( गाहा ) न्हवण ( १ ) विलेवण (२) वत्थयुगं (३) गंधारहणंच ( ४ ) पुप्फरोहणयं (५) । माला रोहण (६) वन्नयं ( ७ ) । चुन्न ( ८ ) पागाय (९) प्रारणे ( १० ) ॥ २ ॥ मालकला सुयवंसुधरं ( ११ ) पुष्पंपगरंच (१२) मंगलयं ( १३ ) धूव नखेवो (१४) गीययं ( १५ ) । नहं ( १६ ) व ( १७ ) तहानयिं ॥ ३ ॥ सतर सुविध पूजा पवरं । ज्ञाता अंग मऊार । द्रुपदसुता द्रोपदि परै । क रियै विधि विस्तार ॥ ४ ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
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॥ ॐ ॥
॥
॥ अथ प्रथम न्हवण पूजा ( राग देसाख ) ॥ ॥ ॥ * ॥ पूर्वमुख सावनं करि दसन पावनं । प्रहत धोती धरी नचित मानी । (अइयो० ) ॥ विहत मुखकोस के खीर गंधोदकै । सुनृत मणिक लश करि विवध वांनी ॥ ( ० ) ॥ १ ॥ नमवि जिनपुंगवं लोमहस्ते नवं । मार्जनं करि वावारि वारी । ( ० ) । नणिय कुशमंजली कजश विधि मनरली । नवति जिनइंद्र जिम तिम अगारी । ( ० ) ॥ ॥
हा ॥ # ॥ परमानंद पीयूष रस । न्हवण मुगति सोपान । धरम रूप तरु सचिवा | जलधर धारसमान ॥ १ ॥ पहली पूजा साचवै । श्रावक शुभ परिणाम | शुचि पखाल तनु जिणतणें । करइ सुकृत हित काम ॥ २ ॥ ॥ * ॥ अथ विधि (राग सारंग ) ॥ * ॥
॥ ॥ पूजा सतर प्रकारी | सुण जैनकी । ( पू० ) परमानन्द ति बल्योरी सुधारस । तपतबुद्धीय मेरे तनकी ॥ ( पू० ) ॥ १ ॥ प्रनुकं विलोकि नाम जतन प्रमारजित । करत पखाल सुचि धार वनकी । ( पू० ) न्हवण प्रथम निज वृजन पुलावत । पंककुंवरष जिम घनकी | | ( पू० ) ||२॥ तरणि तारणि नवसिंधू तिरणकी । मंजरी संपद फल बरधनकी । शिवपुर पंथ
७३
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५७८ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. दिखावण दीपी । धूमरी आपदवेल मरदनकी (पू०)॥३॥ सकल कुशल रंग मिल्योरी सुमति संग । जागी सुदिशा सुन्न मेरे दिनकी । कहै साधु कीरति सारंग नरकरतां । आसफली मेरे मनकी (पू०) ॥ ४॥ ॥ इति प्रथम न्हवणपूजा ॥ १॥ ॥ पंचामृतमुं न्हवणकीजे (तथा.) मावै पांवकै अंगूठे जलधार दीजै ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ द्वितीय विलेपन पूजा ॥॥ ॥ ॥ सुंदर अङ्ग लूहणे करी। बिंब प्रमार्जी । केसर चंदन मृगमद अगरादिकसें । कचोली जरी। लेकर खमारहे । मुखे० ॥ (रागरामगिरी) गात्र लूहै जिन मन रगङ्गसूंरे। (देवा) सखरमुधूपित वाससुं॥ वासमुं(हारे देवा) वा० । गंध कसायसुमेलियै॥ १॥ नन्दन चंदन चंदमेलियै रे (देवा) ॥ नं०॥ मांहे मृगमद कुंकुम नेलीय ॥ करलीय (हारे देवा) क० । रय णा पिंगाणि कचोलीयै ॥ २॥ पग जानु कर खंधै सिरै रे ( देवा) जाल कंठ नर नदर न्तरै । उखहरै ( हारे देवा ) सुखकरै । तिलक नवअंग की जीयै ॥ ३॥ दूजीपूजा अनुसरै ॥ श्रावक दू० ॥ हरि विरचै जिम सुरगिरे। तिमकरै ( हारे देवा ) ति। जिणपर जनमन रंजीयै ॥ गा. ४ ॥ राग ललितमें । दूहा ॥ * ॥ करहु विलेपन सुखसदन । श्री जिनचन्द शरीर। तिलक नवे अंङ्गपूजतां । लहै नवोदधि तीर ॥१॥ मिटै ताप तसु देहको। परम शसिरता संग । चित्तखेद सब नपसमें । सुखमें समर सीरंग ॥२॥
॥॥अथ बिधि (राग ललित)॥॥
॥ विलेपन कीजै जिनवर अंगे। जिनवर अंग मुगंधै ॥ वि०॥ कुं कुम चन्दन मृगमद यवकर्दम । अगर मिश्रित मनरंग॥ वि०॥ क्रम जा नु कर खंधै शिर नाल कंठ । नर नदरन्तर संगै। विलुपति अघमेरो करत विलेपन । तपत बुमति जिम अंग ॥ वि० २॥ नव अंग नव २ तिलक करतही । मिलत नवेनिध चंगा । कहै साधु तन सुचि करसु ललित पूजा। जैसें गंग तरंग ॥ वि० ३॥ ॥ इति द्वितीय विलेपन पूजा॥२॥॥ एकही विलेपन कीजै । नव अंग पूजीये ॥३॥
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सतर नेदीपूजा.
.९७९ ॥॥अथ तृतीय वस्त्र युगल पूजा॥ॐ॥
॥ अत्यन्त कोमल सुगंध अमोलक वस्त्र युगल पर । केसरनो सा थियो करी । प्रजुजी आगै खमा रहै मुखें इम पढे॥8॥
॥ ॥ (दूहा)॥वसन युगल नान बिमल । आरोपैं जिन अंग। लान ज्ञान दर्शन लहै । पूजा तृतीय प्रसंग ॥१॥ (राग गौडी)॥ कमल कोमल धन चन्दन चरचित । सुगंध गंधै अधिवासिया ए॥ ( हारे) अइ यो० ॥ कनक मंमित हिय लालपक्षव शुचि । वसन जुग कति अधिवा सिया ए॥ (हारे) अ०॥ जिनप नत्तम अंगै सुविधि शको यथा । करिय पहिरवाणी ढोइयै ए॥ (हारे) अ० ॥ पापलूहण अंग लूहणो देवनें। वस्त्रयुग पुंज मल धोश्यै ए॥ (हारे ) अ० २ ॥ॐ ॥ इति ॥ ॥
॥ ॥ अथ विधिः (राग बैरामी)॥ ॥ ॥ॐ ॥ देव दुष्य युग पूजा वन्योहै जगतगुरु । ( हे हाए ) आगे व न्योहै जगतगुरु । देव पुख्खहर अब इतनो मांगुं । तुंहीहै सबहि हितु तुं हीहै मुगतिदाता । तिण नमि २ प्रनु जीकै चरणे लागूं ॥ दे० १॥ कहै साधु तीजी पूजा केवल देसण नाण । देव पुष्य मिसदेहु नत्तम वागूं। श्रव ण अंजलि पुट सुगुण अमृतपीतां। सबरामी उख संशय घुरम नागू ॥ दे ॥२॥ इति तृतीय वस्त्रयुगल पूजा ॥ एकही वस्त्र युगल चढावै॥ ॥
॥ ॥ अथ चतुर्थी सुगंधचूर्ण पूजा॥ ॥ . ॥ ॥ अगर, चन्दन, कपूर, कुंकुम, कस्तूरीका, चूर्ण करी । कचोली जरी। आगै ऊना रहै। मुखें इम पढे। (गोमी रागमें । दूहा) ॥ पूज चतुर्थी इण परे । सुमति वधारै वास । कुमति कुगति दूरै हरै। दहे मोह द लपास ॥१॥ राग सारंग ॥ * ॥ ( हां होरे देवा) बावना चंदन घस कुमकु मा। चूरण विधि विरचै वासुए । ( हां होरे देवा ) कुसुम चूरण चंदन मृगमदा । कंकोल तणो अधि वासुए॥ (हां०) २॥ वास दशोदिश वा सतें । पूजै जिनअंग वंगूए ॥ (हां०)॥लागि नवन अधिवासीयो। अनुगामिक सरम अनंगए ॥३॥ इति ॥ * ॥
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह ॥ॐ ॥अथ विधिः (राग पुर्वी गौमी)॥॥ ॥ ॥ मेरै प्रनुजीकी पूजा आनन्द मेलै ॥ पू० ॥ बासनवन मोह्यो सबलोए । संपदा नेले ॥ पू० १॥ सतर प्रकारी पूजा। विजय देवा तत्ताथे ई॥ वि० ॥ अप्रमत्त गुण तोरा । चरण सेवै ॥ पू० २॥ कुंकुम चंदन वासै । पूजीयै जिनराजता थेई । चतुरगति उक्ख गोरी। चतुर्थी धनकि ॥ पू०॥३॥इति चतुर्थी वासोप पूजा ॥४॥॥ एकही वासचूर्ण प्रनुजीके बिंब नपर बांटे। मंदिर मैं चूर्ण नगलै ॥8॥
॥ ॥अथ पांचमी पुष्पारोहण पूजा॥8॥ ॥ ॥ गुलाब, केतकी, पांचे तरै का फूल रकेवीमें रक्खी । मुखै इम पढे ॥ ॥ (दूहा)॥ मन विकसै तिम विकसतां । पुहप अनेक प्रकार । प्रनु पूजा ए पंचमी। पंचमि गति दातार ॥१॥ ॥ (राग कामोद)॥चंपक केतकी मालती ए। (हारे अ०) कुंदकिरण मचकुंद । सोवन जाई जूइका। वनल सिरी अरविंद ॥१॥ जिनवर चरण नवरि धरै ए॥ (हारे न०)मुकुलित कुशम अनेक । सिव रमणीसें वर वरै। विध जिन पूज बिबेक । विति ॥
॥ * ॥ अथ बिधि (राग कानमा)॥ ॥ ॥ ॥ सोहैरी माई बरणें । मन मोहेरी माई बरणें । ( अहो बरणें ) बिविध कुशम जिन चरणें । (अ.)। विकसी हसीय जंपें साहिबकुं । रा ख प्रनू हम सरणें ॥सो० ॥१॥ पांचमी पूजा कुशम मुकुलितकी (कु.) पंच विषै (हां पं० ) मुख हरणे ॥ सो०॥ कहै साधु कीरति गति नगवं तकी । नविक नरा । ( हारे न० )। सुख करणे ॥ २ ॥ सो० ॥ 3 ॥ इति पांचमी पुष्पारोहण पूजा ॥ पांच जातना पुष्प चढावै ॥॥
॥ ॥ अथ बही पुष्पमाला रोहण पूजा ॥ ॥ .. ॥॥ नाग, पुन्नाग, दमणो, गुलाब, पामल, मोगरा, सेवती, चंपेली, मालती (इत्यादि) पंच वरण फूलांनी माला हाथे लेई खमा रहै । (मु खै इम पढे) ( दूहा ) ॥ ही पूजा ए बती। महा सुरनि पुप्फमाल । गुण गुंथी थापे गले । जेमटलै मुख जाल ॥१॥ (राग रामगिरी गुजरी)
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सतरनेदी पूजा ... ॥ ॥ नाग पुन्नाग मंदार नवमालिका । मल्लिका सोग पारिध कलीए (मलां पा०)॥२॥ मरुक दमणक बकुल तिलक वासंतिका । लाल गुलाल पामल निलीए । (लां पा०)॥१॥ जासुमणि मोगरा वेनला मालती। पंचवरणे गुंथी मालतीए । (जलां गुं० ) हेमाल जिनकंठ पीठे उवी लह लहै। जाणि संताप सब पालतीए। (जलां० )॥इति ॥ ॥
॥अथ विधिः । (राग आसागरी)॥ ॥... ॥ॐ॥ देखी दामा कंठ जिन अधिक एधतनंदै। चकोरकुं देखि जिम चंदै। (दे०) ॥ १ ॥ पंचविधि बरणरची कुशमांकी ॥ जैसी रयणाहे (जै०) बलि सुह मंदै ( देखी०)॥२ ॥ उहीरे तोमर पूजा तबमार धूजै सब अरियण ( हारे स०) होइ तिम बुदै । (दे०)॥३॥ कहै साधु की रत सकल आस्या सुख । नविक नगत (हारे न० )। जे जिन बंदै । (दे०)॥४॥इति उही टोमर फूलमाला पूजा॥६॥ एकही प्रनुजीके कंठे फूलमाला चढावै ॥॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ सप्तमी अंगरचन पूजा ॥ ॥ ॥ ॥ पंचवरणा फूल केसरसें अंगीरचै । सो हाथे लेई । मुखै इम पढे॥ॐ ॥ (दूहा)॥ केतकी चंपक केवमा । सोन्नै तेम सुगात । चाढो जिम चढता हुवै । सातमी यै सुख सात॥१॥॥॥ (राग केदारो गौमी) ॥ * ॥ कुंकुम चरचित बिविध पंच वरणक कुशमसुंए ॥ (हारे अ.) कुंद गुलाबसुं चंपको दमणको जाससुंए ॥१॥सातमी पूजामें अंगी अलंकीयै। अंग आलंक मिसमाननी मुगति आलिंगियैए ॥२॥ इति ॥ ॥
॥ ॥अथ बिधि (रागनैरवी)॥४॥ ॥ॐ ॥ पंचबरणी अंगी रची कुशम जाती। ( पं०)। कुंद मचकुंद “गुलाब सिरोमणि । कर करणी सोवन जाती। (पं०)॥ १॥ दमणक मरु
क पामल अरविंदो । अंश जुई बेनुलवाती। पारधि चरण कलार मंदारो। विण पट कूल बनी जाती। (पं०)॥२॥ सुर नर किन्नर रमणि गाती । भैरवी कुगति बततिदाती। (पं०)॥३॥इति सातमी अंगीरचन पूजा ॥७॥ सुगंध पुषपै करी अत्यन्त नक्तीसें जगवंतके शरीरै अंगी रचै ॥
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रत्नसागर श्रीजिन पूजा संग्रह.
॥ * ॥ अथ आग्मी गंधवटी पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ घनसार, अगर, सेल्हारस, प्रमुखसें सुगंध बट्टी करि । जिनेश्वर जे खमा रहै ॥ ( दूहा ) ॥ अगर सेल्हारस सार । सुमती पूजा आ मी। गंधवटी घनसार | लावै जिनतनु नावसुं ॥२॥ (राग सोरठ ॥ * ॥ * ॥ कुंद किरण शशि कजलो जी (देवा) । पावन घस घन सारो जी। सुरभि सिखर मृगनाभिनो जी (देवा) । चुन्नरोहण अधिकारो जी ॥ १ ॥ वस्तु सुगंध जब मोरियो जी (देवा) । अशुभ करम चूरी जै जी । अंगण सुरतरु मोरियो जी (देवा) । तब कुमती जन खीजै जी । ( तब सुमती जनरी जी ) ॥ २ ॥ ॥
॥ * ॥ अथ विधि (राग सामेरी ) ॥
કુર્
॥
॥ * ॥ पूजोरी माई जिनवर अंगसुगंध (जिन० पू० ) । गंधवटी घ नसार दारै । गोत्रतीर्थकर बांधे। (जल ०२) (पू) ॥ १ ॥ आठमी पू जागर सेल्हारस | जावै जिन तनु रागै । धारकपूर नाव घन वरषत । सामेरी मति जागे ॥ ( २ ) ( पू० ) ॥ इति आठमी वरास चूर्ण पूजा ॥८
॥ * ॥ अथ नवमीध्वज पूजा ॥ *
"
॥ ॐ ॥ हिवे सधव स्त्री नेली होके कऊन थाल में । कुंकुमको साथि यो करे। प्रकृत थाल में धरै । श्रीफल रूपानांणो धेरै । धजा थालमें धरि ara स्त्री माथै रक्खी। गीत गान गावतां । सर्व वाजित्र बाजतां । तीन प्रद दिणा देवै । पीछे ध्वजा ऊपरि गुरु पासें वासक्षेप करावे । प्रभू सन्मुख गुहली करे | ऊपर तांसें साथियो करै । सुपारी चढावै । मुखै ऐसा कहै । ॥ ॥ ( दूहा) मोहनध्वज घर मस्तकै । सुहव गीत समूल । दीजै तीन प्रदक्षिणा । परसिध नवमी पूज ॥ १ ॥ (रागमेघगौमी ) | ( वस्तु ) सहस जोयण २ हेममय दंग युतपताक पंचेवरण | धुमधुमंत घुग्घरीय बाजे । मृदुसमीर लहिकै गयण ( ल० ) । जाण कुमतिदल सयल नाजै ॥ सुरपति जिम बिरचे धजाए (हांएवि ० ) नवमी पूज सुरंग । ( न० ) ति पर श्रावक धजबहन | ( ति० ) पै दान अनंग | ( प्रा० ) १ ॥
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साधु कीर्तिजी कृत सतरनेदी पूजा... ५८३ - ॥ ॥अथ विधि॥(राग नट्टनारायण)॥॥
॥ ॥ जिनराज को ध्वजमोहन । ध्वज मोहनारे ध्वजमोहना ॥ (जि. ) मोहन सुगुरु अधिवासीयो । कर पंचसबद त्रि प्रदक्षिणा ॥ (क) सधव वधू सिर सोहना ॥२॥(जि. ) नांतिवसन पंच बरण वन्योरी। विधकरी ध्वजको रोहण ॥ साधु जणति नवमीपूजा नव । पाप नीयांणा खोहणा । शिव मंदिरकुं अधिरोहणा । जन मोह्यो नट्टनारायणा (जि०)॥ २ ॥ इति नवमी पूजा० ॥ * ॥ एकही ध्वजा चढाई जै॥
॥ * ॥ अथ दशमी आनरण पूजा॥ॐ॥ .. ॥॥ पिरोजा, नीलम, लसणिया, मोती माणकसे जड्या। आनरण लेई मुखे इम पढे ॥ ॥ (राग केदारमें)॥ ( दूहा)॥दशमी पूजा आनर ण। रचना यथा अनेक । सुरपति जिम अंग रचै । तिम श्रावक सुबिवेक ॥१॥ शिर सोहै जिनवर तणें । रयण मुगट ऊलकति । तिलक नाल अं गदनुजा । श्रवणकुंमल अति नांति ॥२॥॥(राग अधनास गुंममल्हार। आशावरी) ॥ ॥ पाच पीरोजा नीलू लसणिया। मोती माणिक लाल रसणीया। (हीरा सोहैरे) धूनी चूनी पुलकर केतना । जातिरूप मुनग अंक अंजना (मनमोहैरे)॥१॥ मौलिमुगट रयणे जड्यो। काने कुंमल (हारे) अति जुगतै जड्यो । ( नरहारूरे )। (मन वारूरे)॥नालतिलक बांहे अंगदा । आनरण दशमी पूजा मुदा ।(सुखकारूरे)(उखहारूरे)॥२॥ - ॥ ॥ अथ विधिः॥ (राग केदारो॥ || .
॥ॐ ॥ प्रनु सिरसोहै । मुगटमणि रयणे जड्यो । (रय ) । अंगद बाहु तिलक जालस्थल । यहुनीको कौन घड्यो । (प्र०) १॥ श्रवण कुं मल शशि तरुण मंमल जीपै । मुरतरसे अलंकरयो । मुखकेदार चमर सिंहासन । नत्र शिर नवर धरयो । अलंकृत नचितवरयो॥२ (प्र०)॥१॥ इति दशमी आनरण पूजा ॥१०॥ एकही आमरण ( तथा) रोकनांणो कब्बल चढावै॥8॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ इग्यारमी फूलघर पूजा ॥ॐ॥ ॥ सुगंध पुष्पकरी संयुक्त फुलघर हाथे लेई । मुखै इम पढे॥ ॥
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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह.
दूहा ) ॥ ॥ फूलगरो प्रतिसोमतो । फूँदै लहकै फूल । महकै परिमल फलमहा । इग्यारमी पूज मूल ॥ १ ॥ * ॥ ( राग रामगिरी ) ॥ * ॥
॥ ॥ कोज कोल राय वेलि नवमालिका । कुंद सुचकुंद बर बिच कलूए (हां रे अईयो ) तिलक दमक दर्ज मोगरा परमलं । कोमला पारिध पारुलूए ॥ ( हां० प्र०) प्रमुख कुशमै रचै त्रिभुवन कुं रुच । कुशमगेहें विचि तोरणं ए ॥ ( हां० प्र०) गुढ चंद्रोदयं कुंबका नन्नयं । जालिका गोख चितचोरं । (हां० [अ० ) ॥ २ ॥ * ॥
॥ ॥ अथ विधि ॥ ( राग रामगिरी ) ॥
॥
॥ * ॥ मेरो मन मोह्यो माई री । फूलघर आनंद फीलै ( फू० ) अ सत नसत दाम वघरी मनोहर । देखत तबही सब दुरितखीजै ( फू० ) ॥ ॥ १ ॥ कुशम मंरुप थं गुड चंद्रोदय । कोरणी चारु विनाण सजै । इ ग्यारमी पूज वणीहै रामगिरी । विबुध विमान जैसें तिपुरिनजै ( फू० ) ॥ २० ॥ इति इग्यारमी फूलघरपूजा ॥ ११ ॥ एकही फूलवर चढाईजै । ॥ अथ बारमी पुष्पवर्षा पूजा ॥
॥
॥
॥ * ॥
॥ ॐ ॥ पंचवर्णफूल गुलाबजल लेई । सुखै इम पढे ॥ ( राग मल्हार ) | ( दूहा ) वरषै बारमी पूजमें । कुशम वाद लिया फूल । हरण ताप दुःख लोकको । जानुसमा बहुमूल ॥ १ ॥ ( राग जीममल्हार ) कमखानी जाति ॥
॥ * ॥ मेघ बरसै नरी पुप्फवादल करी । जानु परमाण कर कुशम पगरं । पंचवरणे वण्यो विकचि अनुक्रम चिएयो । प्रधोवृतै नही पीडपस रं ॥ १ ॥ मे० १ ॥ वासमह के मिलें । नमर नमरीमिले । सरस रस रंग ति दुख निवारी। जिनप आगे करे सुरप जिम सुखवरै । बारमी पूज ति पर गारी ॥ मे० ॥ २ ॥
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॥ अथ विधिः (राग जीममवार ) ॥
॥*॥
॥
॥ ॐ ॥
॥
॥ * ॥ पुप्फ बादलीया बरसै । सुसमां ( हो ० ) । योजन असु चिहर वरस गंधोदक | मनुहर जानु समां (पु० ) गमन आगमन की पी रनही तसु । इह जिनको प्रतिसय सुगुणें । गुंजत २ मधुकर इम पन ॥ गुं० ॥ मधुर वचन जिन गुण थुणइ ॥ २ ॥ कुसुम सुपरि सेवा जो करै ।
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सतरनेदी पूजा. तसुपीम नही सुम्मणे । ( पु० )। समवसरण पंचवरण अधोवृत । बि वुध रचे सुमना सुसमा ॥३ ॥ बारमी पूज नविक तिम करै । कुशम विकस हस ऊचरै। तसु नीमबंधन अधरा हुवै । जेकर हिं जे जिननमें ॥ पु० ॥ ४॥ * ॥ इति बारमी पुष्पवृष्टी पूजा ॥ एकही फूलनगलै ॥
॥ॐ॥अथ तेरमी अष्टमंगलीक पूजा॥॥ ॥ ॥ अष्टमंगलीक लेकर मुखे इम पढे ॥ ॥ रागवसंत ॥१॥ (दूहा) तेरमीपूजा अवसरै । मंगल अष्टविधान । युगति रचै सुमतै स ही। परमानंद निधान ॥ ॥१॥ राग वसंत ॥ ॥ अतुल विमल मि ख्या। अखंमगुणे निल्या । शालि रजत तणा तंडुलाए । श्लषण समाजक विध पंचवरणक । चंद्रकिरण जैसा ऊजलाए ॥१॥ (अ०)॥ मेल मंगल लिखै सयल मंगल आखै । जिनप आगलि सुथांनक धरै ए । तेरमीपू जा विध तेरमी मन मेरै । अष्टमंगल अष्टसिधि करै ए ॥ (अ०)॥२॥
॥॥अथ विधिः (राग कल्याण)॥ॐ॥ ॥ॐ ॥ हांहो पुजावणी ते रसमें (हांहो. रसमें ३) ॥ ते॥ अष्टमं गल लिख कुशल निधान । तेज तरुणके रसमें ॥ पू० ॥१॥ दप्पण न द्रासन नंद्यावर्त्त पूर्णकुंन । मयुग श्रीबह तसुमें। वर्षमान स्वस्तिक पूजा मंगलकी । आनंद कल्याण सुख रसमें ॥२॥ (पू.)॥ॐ॥ इति तेरमी पूजा ॥१३॥ * ॥ अष्ट मंगलीक चढावै॥ॐ॥
॥अथ चौदमी धूप पूजा ॥६॥ ॥ धूप रकेबीमें धर मुखै इम पढे॥॥ (दूहा)॥ ॥ गंधवटी मृगमद अगर । सेव्हारस घनसार । धरि प्रनु आगलि धूपणा । चवदमी पूजाचार ॥१॥ (राग वेलानल) कृष्णागर कपूरचूर। सोगंध पंचेपूर। कुंदरक सेव्हारस सार । गंधवटी घनसार ॥१॥ॐ॥ गंधवटी घनसार चंदन मृग मदारस नेलि यै । श्रीवास धूप दशांग अंबर सुरनि बहु द्रव्य मेलियै । वेरुलिय दंम कनक मंमित धूप धाणो कर धरै । नववृत्तिधूपकरंति नोगं रोग सोग अशुन हरे॥२॥ ॥ ॥ ॥
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ ॥ अथ विधिः॥ (राग मालवी गोमी)॥8॥ ॥ ॥ सब अरति मथन मुदार धूपं । करति गंध रसालरे । ( देवा क०) धाम धूमा वलिय धूसर । कलुष पातिक गालरे (देवा )॥ १॥न बंगति सूचंति नविकुं। मघमधै कर नालरे (देवा) चवदमी वामांग पूजा। दीयै रयण विशालरे। आरती मंगल मालरे । मालवी गौमी तालरे ( देवा स० )॥ इति चौदमी धूप पूजा ॥१४॥ एकही धूप धाणो प्रजूकै बायें अंग धरी खेईजै॥ ॥
॥ ॥
॥ ...॥॥अथ १५ गीत गान पूजा
॥ ॥ (प्रनुजीके मुख आगै मधुर स्वरे गुण ग्राम गावै ) ॥ ॥ (दूहा ) कंठ नलै आलाप कर । गावो जिन गुण गीत। जावो अधिकी भावना। पनरमी पूजा प्रीत ॥ १॥ (श्रीरागै आर्या) यदनंत केवल म नंत फलमस्ति जैन गुण गानं । गुण वर्णतान वाद्यै । मात्रा भाषा लय युक्तं ॥१॥ सप्तस्वर संगीतैः । स्थानर्जयतादि ताल करणैश्च । चंचुर चा री चारी । गीतं गानं सुपीयूषं ॥२॥8॥
॥ ॥अथ विधिः ॥ (श्रीराग)॥ ॥
॥ जिन गुणगानं श्रुत अमृतं। तारमंद्रादि अनाहत तानं । केव ल जिम तिम फल अमृतं (जि.)॥ १ ॥ बिवुध कुमार कुमरि आलाप मुरज नपांग नाद जनितं (जि०)। पाठ प्रवंध धूयो प्रतिमानं । प्रायति बंद सुरति सुमतं (जि०) ॥२॥ सबद समान रुच्यो त्रिनुवनकुं । सुरनर गावै जिन चरितं । सप्तस्वर मान शिव श्रीगीतं । पनरमी पूज हरै उरितरे। (जि०)॥३॥ ॥ इति पनरमी गीत पूजा ॥१५॥ ॥
॥ ॥ अथ सोलमी नाटिक पूजा॥ ॥ ॥ ॥ समान अवस्थावाली सधव स्त्रीयां (वा) कुमरयां नेली होके अनूके सन्मुख संका कंखा रहत नाटक करै। स्त्रीयोंका जोग नबणे (तो) समान अवस्थावाला पुरष नाटक करै । (वा) कुमर कुमरयां मिलकै नाटक करें नाटक करणेसें केई जीव तीर्थकर गोत्रबांधाहै । नाटक करतां मुखे इम पढे ।
॥ (दूहा) ॥ कर जोमी नाटक करै । लकि सुंदर सिणगार ।
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सतरनेदी पूजा (तथा) आरती -
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नव नाटक ते नविनमें | सोलमी पूजा सार ॥ १ ॥ ( राग सुध नह ) ( काव्य ) नावादि प्यमाणासु चारु चरणा संपुन्न चंदानना । सप्पिम्मा सम रूव वेसक्यो मत्तेच कुंजत्थणा | लावणा सगुणापि कस्सरवई रागाइ आलावणा । कुम्मारी कुमरा विजै न पुरन नच्चति सिंगारणा ॥ १ ॥ ( गद्यं ) तएते असयं कुमारि कुमरीन | सूरियानेणं देवेणं संदिठा | रंग मंगवे पविद्या । जिणनमंता । गायंता । वार्यता | नञ्चंतेत्ति ॥ २ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ विधि (राग नट्ट त्रिगुण) ॥ * ॥
॥ ॥ नाचंती कुम्मार कुमरी द्रागमदि तत्ता थेश्य ( ० ) || द्रागम दि २ कि यौगि २ न । मुखं तत्ता थेय ( ० १ ना० ) वेणु बीणा सुरज बाजै । सोलही सिणगार साजै । तनन्नन्नन्नेईय (इयो ) | aur aur turer area aमकै । राई ( ० २ ना० ) कसंती कंचुकी तरु णी। मंजरी फ्रैंकार करणी। सोनंती कुमरीय ( अइयो ) हस्त कंहा वा दि जावै । ददन्ती नमरीय ( ० ना० ) || ३ || सोलमी नाटक तणी । सूरीयाने रावण कीनी ॥ सुगंध तत्तात्थेय ( ० ) जिमप जगतें नविक atur | आणंद तत्तात्थेईय ( ० ना० ) ॥ ४ ॥ इति सोलमी नाटिक पूजा ॥ ॥
॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ ॐ ॥ अथ सतरमी बाजिव पूजा ॥ * ॥ ॥ * ॥ सतरमी पूजामें सब जातिका बाजित्र बजावै । मुखै इम पढे । तत घन सुखरै निधै । बाजित्र चौविध वाय । जगत नली भगवंतनी । सतरमी ए सुखदाय ॥ १ ॥ ( गाहा ) सुरमद्दल कंसालो । महुयर मद्दल सुवाए पणवो। सुरनारि नंदितूरो। पण तूं नंद जिपनाह ॥ १ ॥ ( रा मधुमाधवी ) ॥ तूं नन्दि प्रानन्दि बोलत नन्दी । चरण कमल जंतु ज त्रय वन्दी || ( तूं ० ) ॥ ज्ञाननिर्मल वावन मुखवेदी | तिबलवो रंग प्रति हिन्दी | ( ) ॥ १ ॥ मेरी गयणवाजंती कुमति ताजंती । सेवे जैन जैणावंती | जैन शाशन जश्वंत नंदती ॥ नदयसिंघ परि परिय वदंती ॥ (तूं०) ॥ २ ॥ सेवनाविक मधुमाधन फेरी । जवनी फेरी नप्पनणंती । कहै साधु स. तरमी पूजा वाजित्रसब | मंगल मधुर धुनिकर कहती ( तूं ० ) ३ ॥ * ॥
॥
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૧૮૮
रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ॐ॥अथ कलश पूजा (राग धन्यासरी)॥8॥ ॥ॐ ॥ नवितूं जण गुण जिनके सब दिन । तेजतरण मुखराजै । (ते) कवितशतक आठ थुणत सक्रस्तव । थुय २ रंगै हमगजै। (नवि०१ ) अ रणहल पुर शांति शिव सुख दाई । नवनिधि सिधआवाजै । सतरसुपूज सुबि ‘ध श्रावक की । नणीमें गति हितकाजै (ज०२) श्रीजिनचंद्रसूरि खर तरपति । धरम वचन तमु राजै । संवत सोल अढार श्रावणधुरि । पंचमि दिवस समाजै (०३) दयाकलशगुरु अमरमाणिक्यवर । तासुपसायै सु विध हुइ गाजै ॥ कहे साधु कीरत करत जिन संस्तव । सब लीला सुख साजै (नवि० ४)॥ ॥ इति सतरनेदी पूजा समाप्ता॥ ॥
॥ ॥अथ प्रारतीकरण विधि लि०॥॥ ॥ ॥ पूजाकियां पीछे। सब कपमा । पाघ प्रमुख पहरकै ॥ उत्तरास "ण करै। पीठे प्रनू सन्मुख । अन्तर पट करी । आपकै निलाडे कुंकूको ति
लक करै । पीने पट दूरि करि । रकेबीमें साथियो करे । मांहि रूपाना 'यो । चावल सुपारी धरे । पी आरती दीपकसुं संजोयनें प्रचुके सन्मुख दक्षिण आवर्तसुं । वाजिब सव बाजतां । आरती करै । मुखै पढे ॥१॥
॥ ॥अथ प्रारती लि० ॥॥
॥ जैजै आरती शांति तुझारी । तोरा चरण कमलकी में जाऊं ब लिहारी ॥ (जैजै०)१॥ विश्वसेन अचिराजीके नंदा । शांतिनाथ मुख पूनमचंदा ॥ (जैजै०२)॥ चालीस धनुष सोवनमें काया। मृगलंगण प्रनु चरण सुहाया॥ (जै०)॥३॥ चक्रवर्ति प्रनु पंचम सोहै । सोलम जिन वर सुर नर मोहै ॥ (जै०) ४॥ मंगल आरती नोरहि कीजै । जन्म जन्म को लाहो लीजै ॥ (जै०)॥ करजोमी सेवक गुण गावै । सो नर नारी अमरपद पावै (जै०) ५॥ ॥ इति श्री आरती संपूर्णम् ॥ * ॥
॥॥अथ श्रीसिद्धचक्रजीकी बमी पूजा॥॥ ॥ ॥ नवपद जीकी महिमा संयुक्त पूजा लिखिय है ॥ * ॥ (दूहा) ॥ ॥ परम मंत्र प्रणमीकरी । तासधरी नर ध्यान । अरिहंतपद पूजा क रो। निज २ सक्ति प्रमाण ॥१॥ ॥ (काव्य) नप्पन्न सन्नाण महो
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नवपद की पूजा
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मयाणं । सप्पामि हेरा सण संठियाणं । सदेसणा दिय सकणाणं । न मो नम हो या जिलाणं ॥ १ ॥ नमोनंत संत प्रमोद प्रदानं । प्रधानाय व्यात्मने स्वताय । थया जेहना ध्यानथी सौख्य जाजा । सदा सिव चक्राय श्रीपाल राजा ॥ २ ॥ करया कर्म दुर्मर्म चकचूर जेणें । नला जव्य नवपद्द ध्यानेन तेणें । करी पूजना भव्यभावै त्रिकाले । सदा वासि यो प्रातमा तेण कालै ॥ ३ ॥ जिके तीर्थकर कर्म नदयें करीनै । दियै दे शना व्यनें हितधरीनें । सदा आठ महा पामिहारे समेता । सुरेसे नरेसे स्तव्या ब्रह्मपूता ॥ ४ ॥ करया घातिया कर्म च्यारे अलग्गा । जवोपग्रही च्याने जे विलग्गा । जगत्पंच कल्याण के सौख्य पामें । नमो तेह तीर्थकरा मोह गायें ॥ ५ ॥ * ॥ ( ढाल० ) ॥ * ॥ तीरथपति अरिहा नमुं । धरम धुरंधर धीरो जी । देशना अमृत बरसता । निज बीरज वडबी रो जी। ( नल्लालो ) । वर अखय निरमल ज्ञानमासन सर्बनाव प्रकासता । निजशुरु श्रवा प्रात्मनावे चरण थिरता वासता । जिन नामकर्म प्रभाव अतिशय प्रातिहारज सोनता । जगजंतु करुणावंत जगवंत नविक जननें थोमता ॥ ६ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ श्री सीमंधर साहिब मागे ए देशी ॥ ॥ त्री व वर थानक तपकरि । जिनबांध्युं जिन नाम । चनसह इंद्रे पूजित जेजिन । कीजै तास प्रणामरे ॥ ॥ ( नविका ) सिधचक्र पद वंदो । जि म चिरकाल नंदोरे (०) उपशम रसनो कंदो रे ( ० ) रत्नत्रयीनो बृं दोरे (०) सेवै सुर नर इंदोरे ( ० सि६० ७ ) (प्रकणी) जेहनें हो कल्याणक दिवसे । नरकै पिए जुप्रालं । सकल अधिक गुण अतिशय धारी । जेजिन नमी अघ टारे । ( ० ) जे तिहुं नाण सम्म ग्ग नप्पन्ना | जोग करम कीण जाणी । लेइ दिक्षा शिक्षा दिई जगनें । ते नमीई जिननांणीरे (न० सि० ) ९ ॥ महागोप महामाहण कहीयै । निरया मक सत्थवाह । उपमा एहवी जेहनें बाजे । तेजिन नमी बाहरे ( ० सि० ) ॥ १० ॥ आठ प्राती हारज जसुबाजै। पेंत्रीस गुणयुत वाणी जे प्रतिबोध करें जगजननें । तेजिन नमि प्राणी रे ( ० सि० ) ॥ ११ ॥ ॥ * ॥ ( ढाल ) ॥ * ॥ अरिहंत पद ध्यातो थको | दबह गुण पर्या
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५९० रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. यैरे । नेद वेद करि आतमा । अरिहंत रूपी थायरे ॥ १२ ॥ बीर जिणे सर नपदिसे । सांगल जो चितलाईरे । आतम ध्याने आतमा । शधि मिलै सब आईरे। (बी)॥१३ ॥ ॥ नझी परमात्मने । अनंतानंत झानशक्तये । जन्म जरा मृत्यु, निवारणाय । श्रीम सिघचक्राय पंचामृतं १ । चंदनं २ । पुष्पं ३ । धूपं ४ । दीपं ५ । अदतं ६ । नैवेद्यं ७ । फलं ८। वस्त्रं । वासं । ययामहे स्वाहा ॥ ॥ इति प्रथमपदे श्री अरिहंतस्य कलशपूजा ॥१॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥अथ २श्रीसिद्धपदकी पूजा लि० ॥ ॥ ॥ ॥ ( दूहा ) दूजी पूजा सिघ की । कीजै दिल खुसियाल । अशुन्न करम दूरै टलै । फलै मनोरथ माल ॥ * ॥ ( काव्य ) सिघाण माणंद रमालयाणं । नमो नमो एंत चनकयाणं । समग्ग कम्मक्खय कार गाणं । जम्मं जरा इक्ख निवारगाणं ॥ १४ ॥ करी आठ कर्म दयें पार पाम्या । जरा जन्म मरणादि जय जेणवाम्या । निरावरणजे आत्म रूपै प्रसिघा । थया पार पामी सदा सिघबुघा ॥ १५॥ त्रिनागोनदेहा वगाहात्मदेशा । रह्या ज्ञानमय जाति वर्णादिलेशा । सदानंद सौख्याश्रिता जोतिरूपा । अनाबाध अपुनर्नवादी स्वरूपा ॥ १६ ॥ ॥ सकल कर म मलत्य करी । पूरण शुध स्वरूपो जी । अव्याबाध प्रजुता मयी । तम संपति नृपो जी । ( नबालो ) जेनूप आतम सहज संपति शक्ति व्यक्ति पणे करी । स्वद्रव्य देत्र स्वकाल नावै गुण अनंता आदरी । स्व स्वन्नाव गुण पर्याय परणति सिघ साधन परनणी । मुनिराज मानसर हंस सम वम नमो सिघ महागुणी ॥ १६ ॥ ॥ (ढाल )॥ * ॥ समय पए संतर अणफरसी । चरम तिनाग विशेम । अवगाहन लहीजे शिव पुहता सिघ नमो ते असेसरे॥१७॥ (नसि० ) पूरब प्रयोगर्ने गति परिणाम । बंधन नेद असंग । समय एक ऊरधगति जेहनी । ते सिघ प्रणमों रंगरे ॥ १८ ॥ (न सि०) निरमल सिघ सिलाने ऊपरि । जोयण एक लोक त। सादि अनंत तिहां थिति जेहनी । ते सिघ प्रणमो संतरे ॥ १९ ॥ (न० सि० ) जाणे पिण न सके कही पुरगुण । प्राकृत तिम गुणजास ।
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नवपद बमी पूजा पमा विण नाणी नवमांहें । ते सिघ दीन नल्लास रे॥२०॥ (नसि० ) ज्योतिसुं ज्योति मिली जसु अनुपम । विरमी सकल नपाधि । आतम राम रमापति समरो । ते सिध सहज समाधिरे ॥ २१ ॥ (न० सि० )॥॥. ढाल ॥ 8 ॥ रूपातीत स्वन्नाव जे । केवल दसण नाणीरे । ते ध्याता निज
आतमा । होइं सिघ गुण खाणी रे (वी०)॥ * ॥ नक्षी०॥ ॥४॥ इति द्वितीय श्री सिघ पदस्य कलश पूजा ॥
॥ ॥ ॥ ॥ अथ तृतीय आचारज पद पूजा लि०॥ ॥
॥8॥ ( दूहा ) हिव आचारज पदतणी । पूजा करो विशेष । मोह तिमर दूरै हरै। सूझे नाव असेस ॥ १॥ ॥ सूरीण दूरी कय कुग्गहा णं । नमो नमो सूरि सम प्पहाणं । सदेसणा दाण समायराणं । अखम बत्तीस गुणायराणं ॥ १॥ नमुं सूरिराजा सदा तत्वताजा । जिनेंद्रागमें प्रौढ साम्राज्य नाजा । पदवर्ग वर्गित गुणे शोनमाना । पंचाचारने पा लवै सावधाना ॥ २ ॥ जवि प्राणिनें देशना देशकालै । सदा अप्रमत्ता य था सूत्र आलै । जिके सासनाधार दिग्दंतकल्पा । जगत्ते चिरंजीव ज्यो सुध जल्या॥३॥ ॥ (ढाल)॥ ॥ आचारज मुनिपति गणी । गुण उत्ती से धामो जी। चिदानंद रस स्वादता । पर नावै निक्कामो जी। (नलालो) निकाम निरमल शुच चिदघन साध्य निज निरधारथी । वरझान दरश ण चरण वीरज साधना व्यापार थी। नवि जीव बोधक तत्व शोधक सयल गुण संपतिधरा । संबर समाधी गत नपाधी इविध तप गुण आदरा ॥२५॥ ॥ ॥ ( ढाल )॥ * ॥ पांच आचार जे सूधा पालै । मारग नापै साचो । ते आचारज नमिय नेहसुं । प्रेम करीने जाचोरे ॥ (न० सि०) २६ वर बत्तीस गुणें करि सोने । युग प्रधान जग बोहै । जग मोहै नरहै खिण को है । सूरि नमूं ते जोहरे ॥ (न.सि. २७) नित अप्रमत्त धरम नवएसै । नहीं विकथा न कषाय । जेहने ते आचारज नमीइं । अकलुस अमल अ मायरे ॥ (ज. सि० २८) जेदिईसारण वारण चोयण । पमिचोयण व लि जननें । पटधारी गलथंन आचारज। ते मान्या मुनि मनरे ॥ (ज. सि० २९) अत्थमिइं जिन सूरज केवल । वंदीजै जगदीवो । नुवन पदार
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५९२ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. थ प्रगट नपटुते । आचारज चिरंजीवोरे (न० सि० ) ३०॥ॐ ॥ (ढाल) ॥ ॥ध्याता आचारज जला। महामंत्र सुन्न ध्यानीरे। पंच प्रस्थाने आ तमा। आचारज होइ प्राणी रे (वी०)३१॥ नही॥ इति तृतीय श्री आचार्यपद कलश पूजा (३)॥ ॥
॥ॐ॥अथ चौथी पाठक पद पूजा लि०॥ ॥
॥ (दूहा) गुण अनेक जगजेहना । मुंदर सोनित गात्र । नव माया पद अरचियै । अनुभव रसनो पात्र॥१॥(काव्य)सुत्तत्थ वित्थारण तप्प राणं । नमो २ वायग कुंजराणं । गणस्स संधारण सायराणं । सबप्पणाव किय महराणं ॥१॥ नहीं सूरि पिण मुरि गुणने सुहाया । नमुं वाचका त्यक्त मद मोह माया । वली प्रादशांगादि सूत्रार्थ दानें । जिके सावधानें निरुघानिधानें ॥२॥ धरै पंचनें वर्ग वर्गित गुणौघा। प्रवादि प्रिपोछेदनेंतु ख्य सिंघा । गुणी गढ संधारणे स्थंन पूता। नपाध्याय ते वैदिई चितप्रनू ता॥३॥ * ॥ (ढाल ) * ॥खंतिजुआ मुत्तीजुआ । अऊव मदव जुत्ता जी। सचंसोयं अकिंचणा । तव संयम गुण रत्ताजी। (नलालो . ) जेर म्या ब्रह्म मुगुप्त गुप्ता सुमति सुमता शुनधरा । स्याद्वादवाद तत्वसाधक आत्मपर विनजनकरा । नवनीरु साधन धीर शासन बहन धोरी मुनिवरा । सिघांत वायन दानसमरथ नमो पाठक पदधरा ॥३३॥ ॥ ( ढाल) ॥ ॥ द्वादश अंग सिशायकरै जे । पारग धारग तास । सूत्र अरथ विस्तार रसिकते । नमो नवशाय नल्लासरे॥ (जसि०)॥ ३४ ॥ अर्थ सूत्रनें दान विनागै। आचारज नवशाय । नवत्रिएहे जेलहै सिवसंपद । नमीयै ते सुपसायरे (ज०)॥३५॥ मूरखशिष्य निपजाये जेप्रनु । पाहण पक्षव आणें । ते नवशाय सकल जन पूजित। सूत्र अरथ सबिजाणे रे । (न.सि.)॥३६॥राजकुमर सरिखा गणचिंतक । आचारज पदयो ग। जे नवशाय सदा ते नमतां । नावै नव नय सोगरे ॥ (न० सि० ) ३७॥ वावना चंदन रस सम वयणे । अहित ताप सवि टाले ।ते नवशाय नमी जै जेवलि । जिनशासन अजुवालेरे॥ (न.सि.)॥ १८॥ * ॥
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नवपद बमी पूजा. (ढाल)॥ ॥ तपसिशायें रत सदा । प्रादश अंगनो ध्यातारे । नपाध्या य ते आतमा। जगबंधव जगभ्रातारे। (बी० तु.)॥ १९॥ नझी० ॥ इति चोथे पदै श्रीपाठकजीकी कलश पूजा सं०॥४॥॥
॥ अथ पांचमी साधू पदपूजा लि०॥॥ * ॥ (दूहा) मोहमारग साधन नणी। सावधान थया जेह । ते मुनिवर पद वंदतां । निरमल थायै देह ॥१॥( काव्य ) साहूण संसा हिय संयमाणं । नमो २ शुच दया दमाणं । तिगुत्त गुत्ताण समाहियाणं । मुणीण माणंद पय घ्यिाणं ॥ ४० ॥ करै सेवना सूरि वायग गणीनी । करं वर्णना तेहनी सी मुणीनी । समेता सदा पंचसुमती त्रिगुप्ता । त्रिगुप्ते नहीं कांमनोगेषु लिप्ता ॥ ४१॥ बली बाह्य अभ्यं तरै ग्रंथटाली । हुइं मुक्तिनें जोग चारित्र पाली। शुनष्टांग योगै रमै चित्तवाली । नमुं साधुनें तेह नि ज पाप टाली॥४२॥ ॥ ( ढाल )॥ * ॥ सकल विषय विष वारिनें। निकामी निस्संगी जी। नव दव ताप समावता । आतम साधन रंगी जी (नबालो)। जेरम्या शुध स्वरूप रमणे देह निर्मम निर्मदा । कानस गग मुद्रा धार आसन ध्यान अभ्यासी सदा । तप तेज दीपै कर्म जीपै नैव
पै परन्नणी । मुनिराज करुणासिंधु त्रिभुवन बंधु प्रणमो हित नणी ॥४३॥ ॥ (ढाल )॥ ॥ जिम तरु फूलै नमरो बैसै । पीमा तसुन नपाय । लेई रस आतम संतोषं । तिम मुनि गोचरी जायरे ॥ (न. सि०) ॥४४॥ पांच इंद्रीने जेनित जीपै । षट काया प्रतिपाल । संयम सतर प्रकार आराधै। बंदूं दीन दयालरे (ज. सिं० ) ॥ ४५ ॥ अढार सहस शीलांग ना धोरी । अचल आचार चरित्र । मुनिमहंत जयणायुत वंदी । कीजै जनम पवित्ररे (न०सि०)॥४६॥ नवबिध ब्रह्मगुपति जेपालै । बारह विह तपसूरा । एहवा मुनि नमीयै जो प्रगटै । पूरब पुन्य अंकूरारे (ज० सि०)॥४७॥ सोनातणी परै परिदा दीसै । दिन २ चढतै वानें । सं यम खपकरता मुनि नमिइं । देश काल अनुमानरे ॥ (न० सि०)॥ ४८॥ (ढाल) ॥ * ॥ अप्रमत्त जेनित रहै । नवि हरखै नवि सोचैरे।
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह साधु सूधा ते आतमा । स्युं मुंमै स्युं लोचैरे॥ (बी० )॥४९॥ * झी। इति पांचमे पदै श्रीसाधुजीकी कलश पूजा ॥४०॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ नही दर्शन पद पूजा लि०॥॥ ___॥ ॥ (दूहा ) जिनवर नाषित सुघनय । तत्वतणी पर तीत । ते सम्यग् दरसन सदा । आदरियै सुन्न रीत ॥१॥ ॥ (काव्य) जिणुत्त तत्ते रुइ लक्खणस्स । नमो २ निम्मल देसणस्स । मित्त नासाइ समुग्गमस्स । मूलस्स सधम्म महा उमस्स ॥ विपर्या सहो वासना रूप मिथ्या । टलै जे अनादी अ जे कुपथ्या । जिनोक्तै हुई सहज थी शु घध्यानं । कहीइं दर्शनं तेह परमं निधानं ॥५०॥ विना जेहथी ज्ञान मझा न रूपं । चरित्रं विचित्रं जवारण्य कूपं । प्रकृति सातने नपसमा लय तेह होवै । तिहां आप रूपें सदा आप जोवै ॥५१॥ॐ॥ (ढाल) #॥स म्यग् दरसन गुण नमो । तत्त्व प्रतीत सरूपी जी। जसु निरधार स्वन्नाव । चेतन गुण जे अरूपी जी (चाल) जे अनूप श्रघा धरम प्रगटै सयल पर ईहा टलै । निज शुध सत्ता नाव प्रगटै अनुन्नव करुणा उनले । बहुमान परणिति वस्तुतत्वें अहव सुरकारण पणें । निज साध्यदृष्टै सरब करणी तत्वता संपति गिणे ॥५२॥ ॥ (ढाल ) ॥ ॥ शुध देव गुरु धर्म परिदा । सदहणा परिणाम । जेह पामी जै तेह नमी जै । सम्यग् दर्शन नामरे (न० सि०) ५३ ॥ मन नपशम क्य उपशम जेह थी। जे हो इत्रिविध अन्नंग । सम्यग्दर्शन तेह नमीजै । जिन धरमें दृढ रंग रे॥ (न सि०)५४॥ पांचवार नुपशम लही जै । दय नपशमीय असंख । एकवार वायक ते सम्यक् । दर्शन नमीइं असंख रे (न सि०) ५५॥ जेविण नाण प्रमाण न होवे । चारित्रतरु नवि फलिन । मुख निरबाण न जे विण लहिई । समकित दर्शन बली नरे॥ (न सि०)॥५६॥ सम सह बोलै जै अलंकरिन । ज्ञान चारित्रनुं मूल । समकित दर्शन ते नितम णमुं। सिवपंथनुं अनुकूलरे॥ (न. सि० )॥५॥१॥ सम संवेगादिक गुणा खय नपशम जे आवैरे । दर्शन तेहिज आतमा । स्युं होय नाम धरावैरे॥ (बीतुमे० )॥५०॥ (शी)॥ ॥ इति दर्शनपद कलश पूजा॥६॥
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नवपद बमी पूजा. . ॥ॐ॥अथ७ में श्री ज्ञानपद पूजा॥ ॥ ___॥ ॥ (दूहा) ॥ * ॥ सप्तम पद श्री ज्ञाननो । सिघ चक्र तप मां हि । आराधी जै सुनमनें । दिन २ अधिक नबाह ॥१॥ (काव्य) अ नाण सम्मोह तमो हरस्स । नमो २ नाण दिवायरस्स । पंचप्पयारस्सु वगारगस्स । सत्ताण सवत्थ पयासगस्स ॥ होई जेहथी ज्ञानशुध प्र बोधै । यथा वर्ण नासै विचित्रा विबोधै । तिणे जाणीई वस्तु षद्रव्य ना वा। न होवै विकला निजेठा स्वनावा ॥२९॥ होइं पंचमत्यादि सुग्यान
दै । गुरुपासथी योग्यता तेह वेदई । वली झेय हेया नपादेय रूपै । लहै चित्तमां जेमध्यान प्रदीपै ॥६०॥ ॥ (ढाल ) ॥नव्य नमो गुण झाननें । स्वपर प्रकाशक नावे जी । परयाय धरम अनंतता । नेदा नेद वनावै जी ॥ (चाल) ॥ जे मोख्य परणति सकल ज्ञायक बोध वास विलासता । मति आदि पंच प्रकार निरमल सिघ साधन लंगना । स्या माद शंगी तत्वरंगी प्रथम नेद अनेदता । सविकल्पनें अविकल्प वस्तु स कल संसय बेदता ॥६१॥ ॥ (ढाल ) ॥ ॥ जद अन्नदन जे वि ण लहीयै । पेय अपेय विचार । कृत्य अकृत्य न जे विण लहीयै । ज्ञानते सकल आधाररे ॥ (न०) ॥६२॥ प्रथम झाननें पने अहिंसा । श्रीसि घाते जाप्यु । छाननें बंदो शान मनिंदो । झानीय शिवसुख चाख्युं रे॥ (न० सि०) ॥६३॥ सकल क्रियानुं मूलते अंधा । तेहy मूलजे कही इं। तेह झान नित नित वंदीजै । ते विण कहो किम रहीईरे॥ (जो ६४)॥ पांच शान मांहें जेह सदागम । स्वपर प्रकाशक तेह । दीपकपरै त्रिनुवन नपगारी । वलि जिम रवि शशि मेहरे ॥ (न० सि० ) ॥६५॥ लोक करध अध तिर्यग् जोतिष । वैमानिकनें सिधि । लोक अलोक प्र गट सवि जेहथी । तेझाने मुफ शुद्धीरे ॥ (न सि०) ॥६६॥ १ ॥ ( ढाल )॥ ॥ झानावर्णी जे कर्म हैं। क्य नपशम तसु थायै रे। तो होइ ए हीज आतमा । ज्ञान अबोधता जाईरे ॥ ( वी० तु० ) ॥६७॥ ( क्षी पर०)॥ ॥ इति सातमी श्रीज्ञानपद कलश पूजा सं० ॥१॥
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५९६ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ ॥अथ आग्में श्रीचारित्र पद पूजा लि० ॥ ॥
॥ * ॥ (दूहा) अष्टमपद चारित्रनो । पूजो धरी नमेद । पूजत अ नुन्जव रस मिले । पातिक होय नछेद ॥ १ ॥ ॥ आराहिया खंमिश्र स कियस्स। नमो नमो संयम वीरियस्त। सज्जावणा संग विववियस्स । नि बाण दाणाइ समुऊयस्स ॥ वली शान फल ते धरीय सुरंग । निरासंसता शाररोध प्रसं गै। जवां बोध संतारणे यानतुल्यं । धरु तेह चारित्र अप्राप्त मूल्यं ॥६८॥ होइं जास महिमा थकी रंक राजा। वली प्रादशांगी नणी होइ ताजा । वली पाप रूपोपि नि:पाप थायै । थई सिघते कर्मनें पार जायै ॥६८॥ ॥ (ढाल)॥ ॥ चारित्र गुण वलि वलि नमो। तत्व रमण जस मूलो जी । पर रमणीय पणो टलै । सकल सिधि अनुकूलो जी। (चाल)। प्रतिकूल आश्रव त्याग संयम तत्व थिरता दममयी । सुचि पर म खंती मुनि दसेपद पंच संबर नपचयी। सामायिकादिक नेद धरमें यथा ख्यातै पूर्णता । अकषाय अकुलस अमल नज्वल कामकस्मल चूरणता ॥७० ॥ ॥ (ढाल)॥ ॥ देशविरतिने सर्व विरतिजे । ग्रहीयतिने अनिराम । ते चारित्र जगत जयवंतो। कीजै तास प्रणाम रे। (न० सि०) ॥७१॥ तृणपरै जेषदखम सुखमी। चक्रवर्ति पिण वरिन । ते चारित्र अख य मुख कारण । ते में मन मांहि धरिनरे (ज० सि०)॥७२॥ हुआ रांक पणे जे आदरि। पूजित इंद नरिंद । असरण सरण चरण ते बंई । वरिन ज्ञा न आनंदरे (न.सि.)॥७३॥ बारमास परजाइं जेहनें। अनुत्तर सुख अतिक्रमिई। शुक्ल सुकल अभिजात्यते परि । ते चारित्रनें नमीइं रे (न.सि० ) ७४॥चयते आठ करमनो संचय । रिक्त करै जे तेह । चारित्र नाम निरुक्त नाष्यु । तेबंधु गुण गेहरे (न० सि०) ७५ ॥१॥ (ढाल)॥ ॥ जाणि चारित्र ते आतमा । निज स्वन्नाव मांहि रमतो रे। लेश्या शुध अलंकरयो । मोहवने नवि जमतो रे। (वी तुमे०) ७६ ॥ ही प०॥ ॥ इति आठमी श्रीचारित्रपद कलश पूजा॥॥
॥॥ हिवै ९मी तप पद पूजा लि० ॥॥ ॥ॐ॥ (दूहा) करमकाष्ट प्रतिजालवा । परतिख अगनि समान । ते
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नवपद बमी पूजा.
५९७ तप पद पूजो सदा । निरमल धरियै ध्यान ॥१॥ कम्मदुमोन्मूल न कुंज रस्स । नमो २ तिव तवोयरस्स। अणेग लघीण निबंधणस्स । पुस्सश अ त्थाणय साहणस्स ।। ७७॥ इय नवपय सिधि लधि विमा समिछ । पयमि यसर वग्गं जीतिरेहा समग्गं । दिसिवय सुरसारं खोणि पीढावयारं । तिज य विजयचकं सिघ चकं नमामि ॥७८ ॥ त्रिकालक पणे कर्मकषाय टा ले । निकाचित पणे बांधिया तेहवाले । कह्यो तेह तप वाह्य अभ्यंतर दु नेदै ।हमा युक्ति निर्हेत उनि बेदै ॥७८॥ हो जास महिमाथकी लब्ध सिधि । अवांडक पणें कर्म आवरण शुधिः । तपो तेह तपजे महानंद हेतें । होइं सिधि सीमंतनी निज संकेतें॥ ८० ॥इम नव पद ध्यावे परम आनंद पावै । नव जव शिव जावे देव नर अवजपा वैज्ञान विमल गुण गावे सिघ चक्र प्रनावै । सब पुरति समावे विश्व जयकार पावै॥ ८१॥ ॥ (ढाल)॥ ॥ इछा रोधन तप नमो। बा ह्य अभ्यंतर नेद जी । आतम सत्ता एकता। पर परणित च्छेदैजी॥१॥ (नलालो) नछेद कर्म अनादि संतति जेह सिघ पणो वरइ । सुनयोग संग आहार टाली नाव अक्रियता करै । अंतर मुहुरत तत्व साधै सर्व संबरता करी। निज आत्मसत्ता प्रगट ना करो तप गुण आदरी ॥ ८२॥ ॥8॥ (ढाल) इम नव पद गुणमंमलं । चननिदेप प्रमाणे जी । सात न ये जे आदरै । सम्यग् झाने जाणे जी । (चाल) निरधार सेती गुणें गुण रणो करइ जे बहुमानए । जसुकरण ईहा तत्व रमणे थायै निरमल ध्यान ए। इम शुश सत्ता नलो चेतन सकल सिधि अनुसरै । अक्षय अनंत महंत चिदधन परम आनंदता वरै ॥८३॥ कलश ॥ इम सयल सुख कर गुण पुरंदर सिघ चक्र पदावली । सविलधि विजा सिधि मंदिर नविक पूजो मनरली । नवशाय वर श्रीराज सारह ज्ञान धर्म सुराजता । गुरु दीपचंद सुचरण सेवक देवचंद्र सुशोनता ॥८४॥ ॥ (दाल)॥ ॥ जाणंता त्रिहुँ ज्ञाने संयुत। ते नव मुगति जिणंद । जेह आदरै करम खपेवा । ते तप सुरतरु कंदरे॥ (न.सि.) ॥ ८५ ॥ करम निकाचित पणि क यजाई।।दमा सहित जेकरतां । ते तप नमीइं तेह दीपावै । जिन शासन
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह
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नजमंतां रे ॥ (न सि० ) ॥ ८६ ॥ श्रमो सही पमुहा बहुली । होवै जास प्रजावे । ष्ट महासिधि नव निधि प्रगटै । नमीये ते तप जावेरे ॥ ( न० सि० ) ॥ ८७ ॥ फल शिव सुख मोटुं सुर नरवर । संपति जेहनुं फूल । ते तप सुर तर सरिषो वंडुं । शम मकरंद मूलरे ॥ (० सि० ) ॥ ॥ ८८ ॥ सर्व मंगल मांहि पहिलो मंगल । वरणवियो जे ग्रंथ । ते तप पद त्रिकरण नित नमिईं । वर सहाय शिवथरे ॥ न० सि० ) ॥ ८९ ॥ इम नव पद तो तिहां लीणो । हुन तनमय श्री पाल । सुजस विलास a चोथे खंगे । एह इग्यारमी ढालरे ॥ ( न०सि ) ॥ ९० ॥ ( दाल ) ॥ ॥ इच्छा रोधन संबरी । परणित समता योगे रे । तप ते हितमा । वरतै निज गुण जोगे रे ॥ ( बी० ) ॥ ९१ ॥ आगमन आगमतणो । नाव ते जांणो साचोरे । प्रतम जावै थरहुन । परा मत राचोरे ॥ ( बी० ) ॥ ९२ ॥ प्रष्ट सकल समृधिनी । घट मांहि रुवि दा खीरे । तिम नव पद रुवि जाणज्यो । तमराम वै साखीरे || ( बी० ) ॥ ८३ ॥ योग असंख्य है जिन कह्या । नवपद मुख्यते जाणोरे । एह त विलंबने । तम ध्यान प्रमाणो रे || ( बी० ) ॥ ९४ ॥ ढाल बारमी एहवी । चोथे खं पूरीरे । वाणी वाचक जस तणी । कोईनय रही अधूरी रे ॥ (बी०) ॥ ९५ ॥ ॐ श्री परमात्मने । अनन्तानन्त ज्ञान शक्तिये | जन्म जरा मृत्यु निवारणाय । श्रीमत् सिधचकाय । वासं । पंचामृतं । चंदनं । पुष्पं । धूपं । दीपं । प्रकृतं । नैवेद्यं । फलं । वस्त्रं । यामहे ॥ ॥ इति श्री देवचंदजी, जस विजयजी महोपाध्याय कृत सिधचक महात्म, श्री नवपद पूजा सं० ॥ ॥
॥ अथ नवपद पूजादिकमें सामग्री चाहिये सो लि० ॥ ॥
॥ * ॥ ( पंचामृत ) दूध । दही । घृत । मिश्री । शुद्धजल ॥ केस र । सुगंध चंदन | कपूर । कस्तूरी । अंवर । रोली । मोली । बूटा फूल । फूलोंकी माला । फूलोंका चंद्रवा। धूप। चावल प्रमुख (नव ) जातके धान । ( नव ) प्रकारके नैवेद्य । ( नव ) प्रकारके फल ( नव ) प्रकारके पक्क ब स्तु । मिश्री । पतासा । नजा । विदाम । सुपारी । प्रमुख | अंगणा
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'नवपद बी पूजा (तथा) सामग्री, विधि. ५९९ खातर सपेद वस्त्र । पहरावणी खातर नत्तम रेसमी प्रमुख वस्त्र । बासोप । गुलाबजल । अत्तर । इत्यादिक । और ( नव ) नालीके कलस (९) रकेबी। परात । तसला आरती । मंगलदीप । नगवानकै अंगी। समो सरण । इत्यादिक सब चीज पहली ठीक करके रक्खे। इससें । पूजामें। विघ्न न। होय । (इहां) संकेपविधि कही। विसेषविधि गुरूके मुखसें जाण लेणा॥ ॥ ॥ अथ सबकै जाणनेको। नवपदजीके पूजा करणेकी
कलस ढालणकी विधि कहते है ॥ * ॥ ॥* चैत्र सुदि १५ ( तथा ) आसोज सुदि १५ के दिन । नात्रिया नव करै । पंचामृत मोटै घमै प्रमुखमें करे । थापना में श्रीफल रोक नाणो धरै । पीछे गुरुके पास मंत्रायकै । केसरसें तिलक करै । कांकणमोरा हाथमें बांधै । दहणे हाथमें साथियो करिके । बिधि संयुक्त स्नात्र पढावे । पीछे श्री अरिहंत पदमें चावल (तथा) चंदन । पुष्प । धूप । दीप । नैवेद्य(प्रमुख) अष्टद्रव्य । वासदेप । नागरवेल पांन । रकेबीमें धरके । हाथमे रक्खे । नव कलशके मोली बांधै । कुंकुमका साथिया करै। पंचामृतसें नरिके कलश हाथ में लेके पूजा पटै । संपूर्ण होणें से कलश ढाले । बमी परातमें प्रतिमा जी पधरावै । नक्षी णमो अरिहंताणं । इस माफक कहतो थको । अरिहंत पदकी पूजा करै । अष्ट द्रव्य अनुक्रमें चढावै ॥ इति प्रथम पूजा ॥ * ॥ ॥ १ ॥ (दूसरे) सिधपद रक्तवर्ण । गहूं रकेबीमें धरै । श्रीफल (तथा) अष्टद्रव्य लेकर । ( ९ कलश ) पंचामृतसें चरिके पूजा पढे । ( पूर्ण होणे से) झी णमो सिधाणं कही । ( कलश ढालै )। अष्ट द्रव्य चढावै ॥ इति द्वितीय पूजा विधि २॥ * ॥ (तीसरै) श्री आचार्यपद । पीलेवर्ण । चिणाकी दालि । अष्टद्रव्य । श्रीफल प्रमुख लेके । कलश (९) पंचामृत सें नरिके पूजा पढे । पूर्ण होणेसें । नक्षी णमो आयरियाणं ( कही )। कलश ढाले । द्रब्य चढावै ॥ ॥ इति तृतीय पूजा ॥३॥ॐ ॥ (चौथे श्री नपाध्याय पद । नीले वर्ण । मूंग प्रमुख अष्ट द्रव्य लेके पूर्वोक्त विधि से पूजा करै । संपूर्ण होणेसें ॥ न जी णमो नवझायाणं ( कही ) कलश ढाले । अष्ट द्रव्य चढावै ॥ इति चोथी पूजा विधि ॥ ४॥॥ (पांचमें)
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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह
श्री सर्व साधुपद । स्यामवर्ण नगद प्रमुख लेवै । और पूर्वोक्त विधिः । (पूर्ण हो नैसें) की णमो लोए सब साहूणं ॥ इति पंचमी ५ ॥ ॥ (ब) दर्शनपद, स्वेत वर्ण । चावल प्रमुख पूर्वोक्त विधिसें । तँ की णमो दंसणस्स ॥ इति बढी पूजा विधि ॥ ६ ॥ ॥ (सातमें) श्री ज्ञान पद । स्वेत वर्ण । चावल प्रमुख पूर्वो । तँ की णमो नाणस्स ॥ ॥ इति सातमी० ॥ ७ ॥ * ॥ (आठ) चारित्रपद । स्वेतवर्ण । चावल प्रमुख पूर्वोक्त विधिः । की गमो चारित्तस्स ॥ इति आठमी पूजा विधि ॥ ८ ॥ ॥ (नवमें) तपपद । स्वेत वर्ण । चावल प्रमुख पूर्वोक्त विधसे । तँी मो तवस्स (कही ) कलश ढाले । अष्टद्रव्य चढावे । पीछे प्रष्ट प्रकारी पूजा करे | आरती करे ॥ ॥ इति नवपदजीकी पूजा विधि संपूर्णम् ॥
॥
॥ * ॥ अथ वासक्षेप पूजा लिख्यते ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ तीरथपति रिहानमूं । धरम धुरंधर धीरोजी । देशना मृत वरसता । निज बीरज बम वीरोजी ॥ १ ॥ ( चाल ) वर प्रखय निर्मल ज्ञान जासन सर्व नाव प्रकासता । निज शुद्ध श्रात्मनावै चरण थि रता वासता । जिन नाम कर्म प्रभाव अतिसय प्रातिहारज सोनता । ज गजंतु करुणावंत भगवंत भविक जननें थोता ॥ १ ॥ ॐ श्री परमा० ॥ वासं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ इति प्ररि० वासक्षेप पूजा ॥ ॥ ॥॥ (ढाल ) ॥ ॥ सकल कर्म मलय करी । पूरण शुद्ध स्वरूपो जी । व्यावाध प्रभुतामई । प्रतम संपति नूपोजी । ( चाल ) जे नू पतम सहज संपति शक्ति व्यक्तिपर्णे करी । स्वद्रव्य क्षेत्र स्वकाल नावें गुण अनंता आदरी । स्वस्वभाव गुण पर्याय परणित सिद्ध साधन परन णी । मुनिराज मानसर हँस सम वम नमो सिद्ध महागुणी ॥ २ ॥ * ॥ ॥ झी प० ॥ इति सिवपद पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ ( ढाल ) ॥ * ॥ श्राचारज मुनिपति गणी । गुण बत्तीसे धामी. जी । चिदानन्द रस स्वादता । परनावै निक्कामो जी ॥ ३ ॥ निक्काम निर मल शुद्ध चिदघन साध्य निज निर धारथी । वरज्ञान दरसन चरण वीरज साधना व्यापारथी । जविजीव वोधक तत्वसोधक सयल गुण संपतिधरा ।
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नवपद बासकेप पूजा. संबर समाधी गत नपाधी मुविध तप गुण आगरा॥ ३॥ नक्षी ॥ ॥ इति आचार्य पूजा॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥॥ (ढाल)॥खंतिजा मुत्तीजुआ । अव मद्दव जुत्ताजी । स चं सोय अकिंचणा। तव संयम गुण रत्ताजी ॥ १॥ (चाल) जे रम्या ब्रह्म सुगुप्ति गुप्ता मुमति समता श्रुतधरा । स्यामाद वादें तत्वसाधक आ त्मपर विनजन करा। नव जीरु साधन धीर सासन वहन धोरी मुनिवरा । सिंघान्त वायण दान समरथ नमो पाठक पदधरा॥ ४ ॥ ॥ १० ॥ इति उपाध्याय पद पूजा॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ (ढाल ) ॥ सकल विषय विषवारिनें। निकामी निस्संगीजी। अवपद ताप समावता । आतम साधन रंगी जी॥ १ ॥ (चाल) ॥ जे रम्या शुध स्वरूप रमणे देह निर्मम निर्मदा। कानसग्ग मुद्राधारि आसण ध्यान अभ्यासी सदा । तप तेज दीपै कर्म जीप नैव जगपै पर नणी । मुनि राज करुणा सिंधु त्रिनुवन बंधु प्रणमुं हितनणी॥५॥१०॥४॥ इति साधु पूजाः॥॥
॥ ॥
॥ ॥ *॥ (ढाल )॥ सम्यग् दर्शन गुण नमो । तत्व प्रतीत सरूपीजी। जसु निरधार सुनाव । चेतनगुण जे अरूपी जी ॥१॥ (चाल) जे अनूप श्रघा धर्म प्रगटै सयलपर ईहा टलै। निज शुध सत्ता नाव प्रगटे अनुभव करुणा कउले । बहुमान परणित वस्तु तत्वें अहव तमु कारण पणें। निज साध्य दृष्टे सरब करणी तत्वता संपतिगिणे ॥६॥१०॥ इति ६ दर्शनपद पूजाः॥ ॥
॥ ॥ (ढाल )॥ ॥ नव्य नमो गुण ज्ञाननें। स्वपर प्रकासक जावें जी। पर्याय धर्म अनन्तता। दानेद स्वनावे जी ॥१॥ (चाल) जे मो ह परणित सकल ग्यायक बोध नाव सनदणा । मति आदि पंचप्रकार निरमल सिघ साधन लंबना । स्यानादशंगी तत्वरंगी प्रथम नेद अनेदता। सविकल्पनें अविकल्प वस्तु सकल संशय छेदता॥७॥ी०॥॥ इति ज्ञान पूजाः॥॥
॥ ॥ (ढाल)॥ ॥ चारित्रगुण वलि वलि नमुं। तत्व रमण जसु
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. मूलो जी। पर रमणीय पणो पणो टलें। सकल सिधि अनुकूलो जी॥१॥ प्रतिकूल आश्रव त्यागसंबर तत्व थिरता दममई । सुचि परम खंती मुनि दसे पद पंच संबर नपचई। सामायकादिक नेदधरमें यथाख्याते पूर्णता। अकशाय अकुलस अमल उज्वल कामकस्मल चूर्णिता ॥झी० ॥८॥ इति चारित्र पूजाः ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ ( ढाल)॥ ॥ इहारोधन तप नमुं । वाह्य अभ्यन्तर दें जी । आतमसत्ता एकता । पर परणित न दें जी॥१॥नवेद कर्म अ नादि संतति जेह सिघपणो वरै । सुन्न जोग संग आहार टाली नाव अ क्रियता करै । अन्तर मुहूरत तत्व साधै सर्व संबरता करी । निज आत्म सत्ता प्रगट नावें करो तपगुण आदरी ॥९॥ * ॥ (ढाल ) ॥ * ॥ इम नवपद गुणमंमलं । चौनिक्षेप प्रमाणे जी । सातनये जे आदरै । सम्यग् झाने जाणो जी ॥१॥ (चाल) निरधार सेती गुणे गुणनो करै जे वहुमान ए। जसुकरण ईहा तत्व रमणे थाय निरमल ध्यान ए । इम सुघसत्ता न लो चेतन सकल सिघी अनुसरै । अक्ष्य अनन्त महन्त चिदघन परम आनंदता वरै ॥१०॥ (कलश) इम सयल सुखकर गुण पुरंदर सिघच क्र पदावली । सविलधि विजा सिधि मंदिर नविक पूजो मनरली । उव शाय वर श्री राजसारह ग्यान धरम सुराजता। गुरु दीपचंद सु चरण से वक देवचंद्र सुसोनिता ॥ ११ ॥ नक्षी० ॥ ॥ इति श्रीनवपद वासदेप पूजा संपूर्णम् ॥ ॥
॥2॥ ___॥ ॥ अथ कृषिमंमल पूजा लिख्यते ॥ * ॥
॥ ॥ (दोधक)॥ * ॥ प्रणमी श्रीपारस विमल । चरणकमल सु खदाय । शषिमंगल पूजन रचुं । वर विधियुत चितलाय ॥१॥ नंदीश्वर मंदरगिरै । शाश्वतजिन महाराज । अरचै अमविध पूजसें । जैसें सहु सु रराज ॥२॥ तिम चित जिनपति गुणधरी । श्रावक समकित धार । विर चै जिन चौवीसकी । अमविध पूजनदार ॥ ३ ॥ * ॥ (गाथा)॥१॥ सलिल ? सुचंदन २ कुसुमनरं । दीवगकरणंच ४ धूवदाणंच ५। बरस दत ६ नेविज्जयं ७ । सुत्रफल ८ पूजाय अहविहा ॥१॥ए अमविध
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ऋषिमंगल २४ प्रकारी पूजा.
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पूजा करणं । सुणियै सूत्रमकार । जे नवि विरचे प्रभूतणी । ते पार्मे
अव पार ॥ २ ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ ( दोधक ) ॥ * ॥ प्रथम जिनेश्वर तिम प्रथम । जोगीश्वर न रराय । प्रथम नए युग आदिमै । सकल जीव सुखदाय ॥ १ ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ ( राग देशाख ) ॥ ॥ ( पूर्वमुख सावनं करि दशन पावनं । इस चाल में ) ॥ ॥ विमलगिरि नदयगिरि राज सिखरो परै । तरुण तर ते ज दीपत दिलिंदा । युगल भ्रम वारकरी धरम नद्योत किय । विमल इ क्ष्वाकुकुल जलधि चन्दा ॥ ( १ ) मात मरुदेवी वर नदर दरि हरि वरा । सकलनृप मुगुटमणि नाभिनन्दा | अखिल जगनायका मुगति सुखदायका । विमल वर नाण गुणमणि समन्दा ॥ ( २ ) वृषन लांबनधरा सकल भवन य हरा । अमर वरगीत गुणकुसल कन्दा । गहिरसंसार सागर तरणि शम धरा । नमत शिवचन्द प्रनुचरण वंदा ॥ ३ ॥ *॥ (काव्यम् ) ॥ * ॥ सलिल (१) चन्दन ( २ ) पुष्प (३) फलबजे : ( ४ ) । सुविमलात (५) दीप ( ६ ) सुधूपकैः ( ७ ) । विविध नव्य मधु प्रवरान्नकै ( ८ ) । जिन ममीनिरहं वसुनि जे ॥ १ ॥ ी श्रीपरमात्मने नंतानंत ज्ञा न शक्तये | जन्म जरा मृत्यु निवारणाय । श्रीमत् कषत्र जिनेंद्राय । जलं । चन्दनं । पुष्पं । धूपं । दीपं । प्रकृतं । नैवेद्यं । फलं । वस्त्रं यजामहे स्वाहा ॥ * ॥ इति श्रीप्रथम जिनेंद्रास्याष्टविध पूजा ॥ १ ॥ * ॥
॥ * ॥ अथ (२) श्रीजितजिन पूजा लि० ॥ ॥
॥ * ॥ ) दोधक) जय जिणंद दिणंद सम । लखि नविकज विक सात । परमानंद सुकंदजल | विजया मात सुजात ॥ १ ॥ ॥ ( राग ) आयरहो दिलवागमें । प्यारेजिनजी । ( इस ख्यालके चालमें ) ॥ ॥ एक अरज अवधारियै । ( जितजिन ) एक अरज अवधारियै ॥ (प्रां०) अजित जिनेसर जग अलवेसर । करम निजर निहारियै । (अजितजिन एक० ) तारण तरण विरुद सुणितेरो । यो सरण तिहारयै ।) अजित जिन एक० ) ॥ १ ॥ चरमसिंधु जव जय जल निपतित । चरण पतित मोहि तारियै । ( जित० एक० ) । परमानन्द घन शिव वनिता नन । कज मधुपा
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह
न सुकारियै । ( अजित ० एक० ) ॥ २ ॥ चिरसंचित धन पुरित तिमिर हर । तुम जिन तिमिरारियै । ( अजित ० ) कहै शिवचंद्र अजित प्र मेरे एह अरज न विसारियै । ( अजित० ) ३ ॥ ( काव्यं ) सलिल चं० ॥ ॥ * ॥ ० श्री मदजित जिनेंद्राय । वसुद्रव्यं यजा० ॥ ॥ इति श्री अजित जिनेंद्रास्याष्टविध पूजा ॥ २ ॥ * ॥
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॥ * ॥ अथ ( ३ ) श्रीसंनवजिन पूजा ॥ *
॥
॥ * ॥ ( दोधक ) ॥ * ॥ जय जितारि संभव सदा । श्रीसंभव जिन राज। सकल लोक जिए जीतजीय । जीतो मोह समाज ॥ १ ॥ ॥ (राग) गंधवटी घनसार केसर मृगमदारस जेलीयै (ए चाल ) ॥ ॐ ॥ अपरिमित वर शिखर सागर धार संभवकार ए । जिनराज संभव पाय वं दो हो नवजल पार ए । वलि जलधिजात सुजात कुंजर कुंन जंजन जानियें । तसु जनक नाम समान नामा नये जिनवर ानियें ॥ १ ॥ जसु चरणपंकज मधुर मधुरस पान लय लागी रह्यो । मिलकर सुरा सुर खचर व्यंतर नमर नितचित कमह्या ॥ जसु चरणकमले प्लवगलांबन कनक सुवर
काय । सहु नुवन नायक सुमति दायक जननि सेना जायए ॥ २ ॥ जसु मधुर वाणी जगबखाणी तीस शर ( ३५ ) गुणधारिणी ॥ संसार सागर जय जराजर पतित पारन्तारिणी । स्याद्वाद पक्ष कुठार धारा कुम ति मद तरु दारिणी । प्रजुवाणी नित शिवचंद्र गणिकै हुवो मंगल कारिणी ॥ ३ ॥ (काव्यं ) ॥ सलिल चंदन ॥ नँ ी श्री प० श्रीमत्संजव जिनेंद्राय वसुद्रव्यंय० ॥ ॥ इति तृतीय श्री संभव जिन पूजा ॥ ३ ॥ ॥ * ॥ अथ ( ४ ) श्रीश्रभिनंदन पूजा जि० ॥ * ॥
॥*॥ (दोधक) ॥ ॥ श्रीचतुर्थ जिनवर सदा | पूजो नवि चितला य। जगति युगति संकट हरण | करण तीन सुध थाय ॥ १ ॥ * ॥ राग सोरठी।) कुंद किरण शशि कजलो रे देवा० । (ए चाल ) ॥ ॐ ॥ संवर नंदन जिनवरू रे (वाल्हा ) अभिनंदन हित कामीरे । जग दभिनंदन जय करूरे । ( वा० ) पुरित निकंदन स्वामीरे ॥ १ ॥ लोकालोक प्रका सतारे (वा० ) । करता अविचल धामीरे । अव्याबाध अरूपिता रे ।
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रुषिमंगल २४ प्रकारी पूजा.
६०५.
( वा० ) । विमल चिदानंद रामी रे || २ || वांबित पूरण सुरमणी रे (वा० ) एप्रनु अंतरजामीरे । ऐसे जिन महाराजकुंरे । ( वा० ) चंद्र नमें सिर नामीरे ३ | ( काव्यं ) ४ ॥ * ॥ सलिल चं० ॥ श्री श्रीप० श्रीमद नि नंदनजिनें० | वसु०॥ ॥ इति श्रीचतुर्थीजिनंदन जिनेंद्रस्याष्टविध पूजा ४॥
॥ * ॥ अथ (५) श्रीसुमति जिन पूजा लि ॥ * ॥
॥ ॥ (दोधक ) ॥ ॥ पंचम जिन नायक नसुं। पंचमि गति दातार पंचनावर विमल ज । वन विकसन दिनकार ॥ १ ॥ * ॥ ( राग कै खो) वंसी तेरी वैरिणि वाजैरे । बैरिणि बाजै (ए चाल (॥॥ सुध नाव चित्त थर धरिकैरे | (चित्त० ) पूजो सुमति जिलिंद | ( सुधनाव० ) जिन
क्तिकरण रसीला । लहो परम आनंद ॥ १ ॥ ( सुधनाव० ) जिनराज सुमति समंद। करै कुमति निकंद । (सुध० ) प्रजुना चरण अरविंदा | वंदे सुर सुरिंद ( सुध० ) ॥ २ ॥ कनकान तनु पुतिसोहै । प्रजु सुमंग ला नंद (सुध० ) करुणो पशम रस जरिया । वंदे नित शिवचंद । (सुध०) ॥ ३ ॥ ( काब्यं ) सलिलचं० नी० श्रीमत्सुमति जिनेंद्राय वसु द्रव्यं • इति श्री सुमति जिन पूजा 118 11 118 11
॥ * ॥ अथ ( ६ ) श्री पद्मप्रभु पूजा ॥ # ॥
॥
॥ * ॥ ( दोधक ) ॥ * ॥ हिवे षष्टम जिनवर तणी पूजन करहु नदार | नवि चित नक्ति धरी करी । सुख संपति करतार ॥ १ ॥ ( राग सारंग ) हांहों ० | बावना चंदन वसि कुमकुमा (ए चाल ) | ( हां हो रे वाला) पदमप्रमुख चंद्रमा । नित सकल लोक सुखदाय ए (हां०) हरि सुर असुर चकोरमा । नित निरख रह्या ललचायरे ॥ १ ॥ ( हां० ) जिन मुख बचन मृत तो । जे श्रवण करै नविपानए ( हां० ) । ते अजरा मरता है । हरिग करे जसु गुण गानए (हां ० ) ॥ २ ॥ धर नृप कुल नम दिन मणि । प्रचु मात सुसीमा नंदए ( हां० ) । प्रभु दरसणतें प्रतिदिनें हुइ ज्यो शिवचंद प्राणंद ए ॥ ३ ॥ ( काव्यं ) सजिल० । ॐ । श्रीपद्म प्रभु जिनें० वसु० ॥ * ॥ इति श्री पद्मप्रभु जिन पूजा ॥ ६ ॥
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ॐ ॥अथ (७) श्री सुपार्श्वजिन पूजा लि० ॥ * ॥
॥ ॥ (दोधक) * श्रीसुपार्श्व सुरतरु समो। कामित पूरण काज । नो नवियण पूजो सदा । वसु विध पूज समाज ॥१॥(राग कल्याण ) मेरा दिल लग्या जिने सरसें (ए चालं ) ॥॥ मेरी लगी लगन जिन वरसे ( मेरी० ) जैसे चंद्र चकोर जमरकी । केतकि कमल मधुरसे ( मेरी०)। एह सुपारस प्रनु नए पारस । गुण गण समरण फर से ( मेरी०) चेतन लोहपणो परिहरकै। हुयल्यै कांचन सरिसै॥१॥ (मेरी०) ए प्रल करुणा करकुं धरिल्यै । र जिम कमल नमरस (मेरी०) जे नवि जिनपद लगन धरै तमु । नही जय मरन असुरसै ( मेरी०)॥२॥ मात पृथवि तनु जात तनु द्युति । सम शुन्न कांचन सरसै ( मेरी०) कहै सिवचंद्र चित्त नित मेरो । रहो प्रनुपद लय नरसै ॥३॥ ( मेरी० ) (काव्यं ) सलिल० जी० श्रीमत्सुपार्श्वजिनेंद्राय ॥ वसुद्रव्यं० ॥ ॥ इति श्रीसुपार्श्वजिन पूजा ॥७॥ ॥
॥ ॥ ॥ अथ (८)श्रीचन्द्रप्रनु पूजा लि०॥॥ ॥ ॥ (दोधक)॥ * ॥ अष्टम जिनपद पूजिये । विविध कष्ट हरता र । अष्टसिधि नवनिधि लहै । जिन पूजन करतार ॥१॥ ॥ ( राग गुंम मिश्रित मल्हार) ॥ मेघ बरसै नरी कुसुम वादल करी। (ए चाल) परमपद पूर्व गिरिराज परि उदयलहि । विजित परचंद्र दिनकर अनन्ता। चंद्रप्रनु चंद्रिका विमल केवल कला । कलित सोनित सदा जिन महन्ता ॥१॥ (परमपद०)। कुमतिमत तिमिर जर हरीय पुन नूरि नवि। कुमुद सुख करीय गुण रयण दरिया । गहिर नविसिंधु तारण तरणि गुण । धारि जव तारि जिनराज तरिया । ( परमप० ) ॥ २॥ राखियै आज मोहि लाज जिनराज प्रनु । करण सुख चरण जिन सरण परीया । परम शिव चंद्र पदपद्म मकरंद रस । पान नित करण ततपर नरीया ॥ ३ ॥ ( पर० ) (काव्यं ) सलि । नक्षी श्रीमचन्दप्रनु जिनें० वमु०॥ ॥ इति श्री चंद्रप्रनु पूजा॥८॥ ॥
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शषिमंगल २४ प्रकारी पूजा. ६०७ ॥॥अथ (९) श्रीसुविध जिन पूजा लि०॥2॥
॥ ॥ (दोधक)॥ ॥ सुविध २ समरण थकी। कामित फल प्रक टाय । अतिह गहन संसार वनि । वहुल अटन मिट जाय ॥ १ ॥ १ ॥ (राग (चंपक केतक मालती ( एचाल (॥ * ॥ सुविध चरणकज वंदीय 'ए। (अश्यो०) नंदीय अति चिरकाल । सिव तरवारि निकंदीय । विधन कंद ततकाल ॥ १ ॥आज जनम सफलो भयो। (हाए सफ०) दीगे अनुदीदार । तनु मन हग विकसित नये । जिम कज लखि दिनकार ॥२॥ अमृत जलधर वरसीयो। ( हां अइ०व० ) नवि नर क्षेत्र मजार । दर्शन सुरतरु ऊगीयो। शिवफलनो दातार ॥ ( काव्यं ) सलिल । शी। श्रीमत्सुविधि जिनें वसु०॥ ॥ इति श्रीसुविध जिन पूजा ॥९॥ ॥ ॥॥ अथ (१०)श्रीशीतल जिन पूजा लि०॥॥
॥॥ (दोधक) मुझ तनु मन शीतल करो । श्रीशीतल जिनराय । तुम समरण जलधारसें । अंतर तपति पुलाय ॥१॥ (राग घाटो। दादा कुसल मुरिंद० इस चालमें) ॥ * ॥ मेरे दीनदयाल तुम नये सकल लो क प्रतिपाल । (आ.) सुणि शीतल जिनवर महाराज । चरण शरण धरयो प्रनुनो आज । (मेरे दी०) न नमुं सहु सविकारी देव । करिसुं चरणक मलनी सेव । ( मेरे०)॥१॥ जैसें सुरमणि करतल पाय । कुणल्यै काच शकल ननसाय । (मेरे०) तुम सम सुरवर अवरन कोय । हेर २ जग निरख्यो जोय ( मेरे०)॥२॥प्रनु दरसण जलधर घनघोर । लखिय नि रतकरे नविजन मोर (मेरे०) । पद शिव चंद्र विमल जरतार । अरज एह नरधरियै सार (मेरे०)॥३॥ (काव्यं) सलिल क्षी० श्रीमडी तल जिनेंद्राय वसु० ॥ ॥ इति श्रीशीतलजिनेंद्र पूजा ॥४॥
॥अथ (११)श्रीश्रेयांस जिन पूजा लि० ॥॥ ॥ ॥ (दोधक)॥ ॥ श्री श्रेयांस जिनेंद्रपद । नद उति सलिला धार । जे नेत्र मऊन करै । ते सुचि हुई विधुतार ॥ १॥ (राग) सोहम सुरपति वृषन रूप करि (इस चालमे) ॥ ॥ श्री श्रेयांस जिणेसर जग गुरु । इंद्रिय सदन सनंदहे । जसु वसु विध पूजनसें अरचो । नर धार पर
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
मानंद । ए समकित घर श्रावक करणी । हरिणी जव मनरंग हे । विज यदेव जिन प्रतिमा पूजी । जीवानिगम नवंग हे ॥ श्री० ॥ १ ॥ सूरीयाज प्रनुपूजन करियो । राय पसेणी नृपांगहे । ग्याता अंगे दुपदि श्राविका । पूज्या जिन प्रतिबिंब । काल लगे जमसी जव वनमें । मन्दमती जयभ्रांत हे ॥ ( श्री० ) ॥ २ ॥ विष्णुमात तनुजात विष्णु नृप । विमल कुलांबर हंस हे । सकल पुरंदर अमर असुर गए । शिरो वरि प्रभु अवतंस हे इम सुरवरनी परि श्रावक जे । पूजै जिन नवरंग हे । ते शिव चंद्र परमपद हिस्यै । निश्चय करी नवरंग हे ( श्री ) ॥ ३ ॥ ॥ ( काव्यं ० ) सजिल ॥ १ ॥ तँ शी० श्री श्रेयांस जिनेंद्राय ॥ ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥ अथ (१२) बासुपूज्य जिन पूजा जि० ॥
॥ * ॥ (दोधक) ॥ * ॥ हिवबारम जिनवर तणी । पूजन करियै सार । नाव क्तियुत वि सदा । द्रव्यनक्ति चितधार ॥ १ ॥ ( राग ) सब पर ति मथनमुदार धूपं (एचाल ) ॥ * ॥ सकल जगजन करत बंदन | जय नंदन सामिरे (देवा) पुरित ताप निकंद चंदन । परम शिव पद गामिरे ( देवा ) ॥ १ ॥ ( सकल०) नृपतिवर वसु पूज्य नृपकुल । बिपिन नंदन जातरे (देवा) सुहरि चन्दन नन्द नन्दन । नन्द मदकिय घातरे ( देवा ) ॥ २ ॥ (स० ) वासुपूज्य जिणेंद्र पूजो । सकल जन महाराज रे । (देवा) करत नुति शिव चंद्र प्रजुए । निखिल सुर सिरताज रे । देवा । ( सक० ) ॥ ३ ॥ ( काव्यं ) सजिल● ॥ १ ॥ तँ ० श्रीमद्रासु पूज्य जिनेंद्राय वसु द्रव्यं ॥ ॥ इति श्रीवासुपूज्य जिन पूजा ॥ १२ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ (१३) श्री बिमल जिन पूजा लि० ॥
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॥ ॐ ॥
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॥ * ॥ (दोधक ) ॥ * ॥ विमल २ जिन कर मुजै। मलिन करम क रि दूर । तेरम प्रजु रमियै सदा । मुऊनर मऊि गुणपूर ॥ १ ॥ * ॥ (राग) सिaar पद वंदोरे नविका । ए चाल ) ॥ * ॥ विमल चरण कज बंदोरे ! ( सूरीजन) विम० (वंदनसें आनन्दोरे । (सू०वि० ) जसु गणधर मुनिव रगण मधुकर । सेवत पद अरविंदो । श्यामा उदर सुगति मुगता फल | कृत वरमा नृप बंदोरे (सूरी ० ) ॥ १ ॥ सहु जग मंगल विमल करणकं ।
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मंगल २४ प्रकारी पूजा.
६०९ निज शासन नमचंदो। नदय यो जवि कमुद विकसिवा । वर गुण रयण समदोरे ( सूरी ० ) ॥ २ ॥ यदि जव बंदि हरण नवि चाहो । प्रनुवंदी चिरन दो । विमल चिदानंद वनमयरूपी । नित वंदत शिवचंदो रे ( सूरी० ॥ ३ ॥ ( काव्य ) सलिल ॥ १ ॥ ॐ ॐ ० । श्रीमत् विमलजिनें० ॥ ॥ इति श्रीविमल जिनपूजा ॥ १३ ॥ ॥ * ॥
* ॥
॥ * ॥ अथ (१४) श्रीमनन्त जिनपूजा लि० ॥ ॐ ॥ ॥ ॥ (दोधक ) ॥ ॥ हिव चवदम जिनपूजतां । हरियै विषय विकार । जो वियण सुणियै सदा । ए प्रभु सरणाधार ॥ १ ॥ पंचवरणी अंगीरची ० (ए चाल ) ॥ * ॥ पूजकरणी प्रजुनी पुरित निवारी । (दुरि ) (०) अनन्त तरणी हिमकिरण तरुणतर । किरण निकर जीताहे नारी । अनन्त नाणवर दरसण तेजै । प्रभुसु यशोदर है अवतारी ( पूज० ॥ १ ॥ लोका लोक अनंत द्रव्यगुण । पर्याय प्रगट करण हारी । तातै अन्वययु त जिन धरियो । अनंत नाम प्रति मनुहारी ( पूज० ) ॥ २ ॥ सिंहसेन नृप नन्दन वंदन करत इंद्र चंद्र सुखकारी । सादि अनंत जंग थिति धरियो । पद शिव चंद्र विजयधारी ( पूज० )|| ३ || ( काव्य ) सलिज । जी श्रीमच्चतुर्दश अनंत जिनें० वसु० ॥ ॥ इति श्री अनंत जिनपूजा ॥ १४ ॥ ॥ ॥ अथ (१५) श्रीधर्मजिन पूजा लि० ॥ ॥
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॥ ( दोधक ) ॥ * ॥ जानु नूप कुल जानु कर । पनरम जिन सुर सार । सोजित सहुजग विपिन जन । हरख फलद जलधार ॥ १ ॥ ( राग ) धार समीरे यमुना तीरे । वसती वने वनमाली (ए चाल ॥ ॥ धर्म जिणे सर धरम धुरंधर | जगबंधव जगबाला। (में बारी जानं । जग० धरम ० ) । सुब्रता नंदन पाप निकंदन । प्रनुनये दीन दयाला ( में बा० | धर्म ० ) ॥ १ ॥ तु धीरज गुए निरखि अमर गिरि । लजि लीनो चला धारा । (मैंबा० ) जिन गंभीरता चमरसिंधु लखि । किय लोकांत विहारा । ( में० । धर्म ॥ २ ॥ एजिनचंद्र चरण रचनतें । लहि जिनपति अवतारा । ( मेंवा ० ) । करम वैरि दलकरि जवि जहिस्यो । पद शिव चंद्र उदारा। ( वा० धर्म ०)
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६१०
रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ ३ ॥ ( काव्यं ) संजिल चं० ॥ झी । श्रीप० श्रीमत धर्म जिनें० वसुद्र व्यं० ॥ ॥ इति श्री धर्मजिन पूजा ॥ १५ ॥ ॥
॥ ॥ अथ (१६) श्री शान्तिजिन पूजा लि० ॥ ॥ * ॥ ( दोधक) चिरा नयरे अवतरी । शांति करी सुखकार । मारि विकार मिटाय करि । नाम धरयो शांति सार ॥ १ ॥ * ॥ ( राग विनास ) नाव धरि धन्य दिन आज सफलो गिणं (ए चाल ) ॥ ॥ शांति जिन चंद्र निज चरणकज शरणगत । तरणि गुणधारि नववारि तारी । कुमत ज न विपिन जनि कुमति घन वृतनितति । वितिनि शितधार तरवारि वारी ॥ ( शांति ० ) । एक नव पद नजय चक्रधर तीर्थकर । धारिया वारिया विघन सारा । सकल मदमारिया विमल गुण धारिया । सारिया भक्ति बांबित अपारा ॥ ( शांति ० ) हरिण लांबन धरा वरण सुवरण करा । सुरवरा हितधरा गतवि कारा । मोहन धरणिधर गण हरण वज्रधर । कुमुद शिव चंद्र पद रजनि कारा ॥ ( शां० ) ३ ॥ झी श्रीप० श्रीमत् षोमशम शांति जिनेंद्राय वसु
O
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द्रव्यं ॥ * ॥ इति शांति जिन पूजा ॥ १६ ॥ ॥ ॥ अथ ( १७ ) श्रीकंथुजिनपूजा लि० ॥ ॥ ॥ ( दोधक ) सतरम जिनवर दीवसम । मऊि जव सागर जाए । क्ति युक्ति नित पूजयै । लहीयै प्रमल विना ॥ १ ॥ ॐ ॥ (राग ) अरिहंतपद नित ध्याइयै (एचाल ) ॥ ॥ कुंथुजिणंद गुणगाइये । ( वारि) मनमंत्रित फल पाइये रे । प्रनु समरण लय लाइये। ( वा० ) नवि जवत जि शिवजाइयैरे ( कुंथु० ) ॥ १ ॥ जवजल गत निज प्रातमा । (वा० ) करुणा र धरि ताइये रे । चरण करण उपयोगिता । (वा० ) ग्रहण करणकुं धाइये रे । ( वा० कुं० ) ॥ २ ॥ ए प्रभु दरसण जीवनें। (वारि ) अ जव रसनो दाइये रे । वर शिवचन्द्र विमल वधै । दिन २ सोन सवाइयै रे । ( कुं० ) ॥ ३॥ ( काव्यं ) सलिलचं । न झी श्रीप० । श्रीकुंथु जिनें० | वसु० ॥ ॥ इति कुंथुजिन पूजा ॥ १४ ॥ ॥
॥ * ॥
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॥ *॥
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॥ * ॥
॥ ॥ अथ (१८) श्रीअरनाथ पूजा लिं० ॥ ॥ ॥ * ॥ ( दोधक ) ॥ * ॥ जिनप्रढारमोध्याइये । नवियण चित्तमकार
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कृषीमंमल २४ प्रकारी पूजा. ६११ करण तीन इक करमुदा। प्रतिदिन जय जय कार ॥ १ ॥ ॥ ( राग वसंत) संग लागोही आवै । कुणखेले तोसुं होरी रे। संग० ( ए चाल ) ॥ ॥ निज बिमल भक्तिसें । अरजिनसें नितरमियै रे। ( निजबि० )। जिनगुण निजगुण तुल्य करणकुं । चंचल चित हय दमियै रे। (नि० ) ॥ १ ॥ सुमति युवति संयम नर धरिकै । कुमति नारि संग गमियै रे ॥ (निज० ) ॥ अनुन्नव अमृत पान करण तैं। विषय विकृत विष दमियै रे। (निज० अर० ) ॥ २ ॥ जिनवर संग रमण दवअनलै । पंक सघन वन धमियै रे । कहै शिवचंद्र जिनेंद्र रमणसें । अव रनमें नही नमिय रे ॥ ३ ॥ (निज० ) ( काव्यं ) सलिल चं०॥ ॥ज्ञी। श्रीमदष्टादश अ रजिनें। वसु०॥ ॥ इति अरजिनपूजा ॥१८॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ (१९) श्रीमल्लिजिन पूजा लि०॥॥ ॥ ॥ ( दोधक )॥ ॥ नगुणीसम जिन चरणकज । जमर होय लयलाय । सेवै तमु जवि नमरता। अगणित तुरित विलाय ॥ १॥ ॥ ( राग ) मल्लिजिणंद नपगारी रे वाला। मल्लिजिणंद नपगारी ( हारे होरे वाला ) वारी जानं वारहजारी रे ( वा । मल्लिजि० ) कुंजनरेसर गग नांगणमें । सहसकिरण अवतारी रे ( वाला० म० ) ॥ १ ॥ पूरब जव षमित्र नरिंद प्रति । बोधि सिंधु नवतारी । वेदत्रयी चिरही तनु धारयो सकल संघ सुखकारी रे ( वाला मलि ) ॥ २ ॥ सकल कुशल हरि चंदन तरुवर । नंदनवन अनुकारी । संघ चतुरविध नूरिखचरगण । प्रणत चंद्र अनुहारी रे ( वा० मलि० )॥४॥ (काव्यं ) सलिल । नक्षी। श्रीमलिजिने जलं० ॥ ॥ इति मल्लिजिन पूजा ॥ १९॥॥ ॥ ॥अथ (२०) श्रीमुनिसुव्रतजिन पूजा लि० ॥ॐ॥
॥ ॥ ( दोधक ) पद्मोदर वर पद्मनद । गतपर पद्म समान। विश ति तम प्रनु पूजिये। केवल लछि निधान ॥ १ ॥ ॥ (राग गरबो) सु णिचतुर सुजाण । परनारीसुं प्रीतडी कबहुं न कीजिये (एचाल ) ॥ * ॥ सुणिसुव्रतजिनेंद्र सुनिजर धरि मुझपर वर दरसण दीजिये । प्रनु दरस प्रीति निरुपाधिकता। करियै लहियै शिव साधकता। तब तुरत मिटैसिव बाधकता।
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह ॥ १ ॥ ( सुणि० ) अमृतमें साध्यपणो विलसैं । प्रनु दरसण साधनता नलसै । तदमुझमें साधकता मिलसै । ( मुणि ) ॥ २ ॥ निन्नादिकरण ता यदि विघटै । एकाधिकरणता यदि सुघटै । तद मुफ शिव साधकता प्रग है। ( सुणि ) ॥३॥ एकाधिकरणता मुझ करियै । जिन्नाधिकरणता परि हरियै । शिव चंद्र विमल पद तद वरियै ( सुणि )॥ ४ ॥ ( काव्यं ) सलिल । नक्षी० । बिंशतितम श्रीमत् मुनिसुब्रतजिनें० ॥॥ इति मुनिसुव्रत जिन पूजा ॥२०॥ * ॥
॥अथ (२१) श्रीनमि जिन पूजा ॥ ॥ ॥ (दोधक) अंतरवैरि नमाविया। तब लहियो नमि नाम । नवि यण ए प्रनु पूजसें । सरीय बंचित काम ॥ १॥ (राग) हमाए है सरण तिहारे । तुम प्रनु सरणागत तारे वारी० ( एचाल)।। श्रीनमि जिनवर चरण कमलमें । नयन नमर युग धरियैरे । तिण किय गुणमकरंद पानसें चेतन मद मत करियैरे। ( वारी ) चेतन मद मत करियैरे ( श्रीनमि० ) ॥१॥ एह चरण कज अह निश विकसै । पर कज निसि कुमलावैरे। (वारी पर) एन बलै बलि तुहिन अनलसें । अपर कमल बल जावै रे । (वारी० अप०.)॥२॥ ए पद कज गुन मधुरस पीवत । जीव अमरता पावै रे (वारी०)। अवर कमल रस लोनी मधु कर । कजगत गज गिल जावै रे (वारी०)॥३॥ परकज निजगुण लछिपात्रहै । पद कज संपद देवै रे। तातै पदशिवचंद्र जिणिंदके । अहनिाश सुर नर सेवैरे (वारी०)। श्री०॥ ४॥ (काव्यं ) सलिल०॥न श्री नमिजिने ॥॥ इति श्री नमिजिन पूजा ॥२१॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ (२२)श्रीनेमि जिन पूजा लि०॥॥
॥ ॥ (दोधक) बावीसम जिन जगगुरु । ब्रह्मचारी विख्यात । इण बंदन चंदन रसै । पाप ताप मिट जात ॥१॥ (राग रामगिरी ) गात्र लहै जिनमन रंग सुरे। देवा (ए चाल)। नेमि जिणंद नर धारीय रे (बाला) विसय कसाय निवारीय (वाला)। ( वारीय ) हारे(वाला वारीय)। ए जिन नेन विसारीयैरे॥१॥ जलधर जिम प्रनु गरजतारे (वाला) देशना
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कृषीमंमल २४ प्रकारी पूजा ६१३ अमृत वरसतारे (वाला) (देस.)। वरसता हारे वाला वरसता । नविक मोर सुणि जलसतारे ॥२॥ समवसरण गिरि परि रह्यारे (वाला)। जामंगल चपला वह्यारे (वाला)। चपला वह्या । ( हारे) चपला वह्या . सुर नर चातक ऊमया ॥ ३ ॥ बोध बीज नपजावीयोरे (वाला)। भवि नर क्षेत्र बधावीयो हारे (वाला धा०)। जविक मुगति फल पावीयो॥४॥ (काव्यं ) सलिल०॥ नक्षी श्रीमन्नेमि जिनें॥॥ इति नेमि जिन पूजा (२२)॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ (२३)श्रीमत्पावजिन पूजा लि० ॥ ॥
॥ (दोधक)॥ अश्वसेन नंदन सदा । वामोदर खनि हीर । लोक सिखर सोनै प्रनु । विजित करम वमवीर ॥१॥ वाजे तेरा बिबुआ (इस कैरवाकी चालमै)॥ * ॥ पास जिणंदा प्रनु मेरै मन वसीया। पास जिणिंदा । मेरै मन वसीयारे। मेरै दिल वसीया (पास जि०) । शिव कमलानन कमल विमल कल । तर मकरंद पान अतिरसीया (पास जि.) ॥१॥बामा नंदन मोहनि मूरत । सकल लोक जन मन किय वसीया (पास जि०)। परमज्योति मुख चंद विलोकित । सुर नर निकर चकोर ह रसीया ( चकोर ह° ) (पास जि० )॥२॥अंजन गिरि तनु इति जिन जलधर । देशना अमृत धार वरसीया (धारवर०) (पास जि०)। पीय करि नवि चिरकाल तिरसीया। मुगति युवति तनु तुरत फरसीया (पास जि०) कुमुद सुपद शिवचंद्र जिणेदनी। वारीजा मन मेरो अतिह नल सीया (पास जि०)॥४॥ (काव्यं (सलिल । नक्षी। त्रयो विंशत्तम श्रीमत्पार्थ जिने ॥ इति श्रीपार्थजिन पूजा ॥२३॥
॥ ॥अथ (२४)श्रीमहीरजिन पूजा लि० ॥॥
॥ ॥ (दोधक)॥ ॥ वर इक्खाकुकुल केतु सम । त्रिशलोदर अवतार । ए प्रनुनी नित कीजीये। विविध नक्ति सुखकार ॥ १ ॥ (राग तेजतरणि मुखराज)। (हारे मुखराज) (प्रजु जीको ते०)(एचाल) 'चरम बीर जिन राया (हारे) जिनराया। मेरे प्रनु चरम बीर जिनराया (०)। सिधारथकुल मंदिर धजसम । त्रिशला जननी जाया। निरु
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
पम सुंदर प्रभु दरसण तें । सकल लोक सुखपाया । (हां रे सुखपाया ) ( मेरे प्रनुच० ) ॥ १ ॥ वामचरण अंगुष्ट फरसते । सुरगिरि वर कंपाया इंद्रभूति गणधर मुख मुनिजन । सुरपति वंदित पाया। (हां रे ) (मेरे प्र०) ॥ २ ॥ वर्त्तमान शासन सुखदाया । चिदानंद घन काया । चंद्रकिरण गुण विमल रुचिर धर । शिवचंद्रगणि गुण गाया । ( हांरे० मेरे प्र० ) ॥ ३ ॥ बरस नंद मुनि नाग धरणि मित । द्वितीयाश्विन मनमाया । धवलपक्ष पं चमि तिथि शनियुत । पुरजय नगर सुहाया ( मेरे ० ) ॥ ४ ॥ श्रीजिन हरख सूरीसर साहब । वर खरतर गहराया। देमकीर्त्ति शाखा भूषण मणि । रूपचं द्र नवजाया (मेरे० ) ॥ ५ ॥ महापूर्व जसु नूरि नरेश्वर । बँदै पद नलसा या । तासु शीसवाचक पुण्यशील गणि । तसु शिष्य नाम धराया ( हांरे० मेरे प्र० ) ॥ ६ ॥ समयसुंदर अनुग्रही रुषिमंगल । जिनकी सोन सवाया पूजरची पाठक शिवचंदे । आनंद संघ वधाया (हां रे० मेरे० ) ॥ ७ ॥ ( काव्य ) सलिल चंदन० ॥ * ॥ ी श्रीप चतुर्विंशति तम श्रीमद्वीरजिनेंद्राय वसुद्रव्यं ॥ इति श्रीमहाबीरजिन पूजा विधिः ॥ २४ ॥ ॥ * ॥ स्नग्धरावृत्तध्यं ॥ ॥
॥ ॥ दुर्व्वारि स्फार विनोत्कट करटि घटोत्पाटन स्पष्ट जाग्रद । वी प्राग्नारोत्पाट चंचत् कुशल हरिदरी जित्वरी पुर्नतानां । संसारापार सिंधु तरण तरतरी नक्तिनाजा मजस्रं । नव्यानां ब्रह्मपद्म प्रवण मधुकरी शंकरी शंकरी सा ॥ १ ॥ लोकालोक प्रलोका ख्खलित बिमल सद्दर्शन ज्ञान जानुः । श्रीमनेश्वरीयं त्रिभुवन विजुताप्ति श्रतुर्विंशतिश्व । श्रीसिधा नंत नाथालय विशदलसत् सर्वलोकाग्रभाग । प्रासादाग्र प्रदेशे जगति विजयते वैजयंती जयंती ॥ २ ॥ इति रुषिमंगल स्तुतिः ॥ * ॥
॥ * ॥ अथ नवपद आरती लि० ॥
॥
॥ * ॥ जय जय जगजन वंचित पूरण । सुरतरु अभिरामी । तमरूप विमल करतारक । अनुभव परिणामी । ( जय २ जगसारा २ ) । भारती पार उतारा । सिद्धचक्र सुखकारा ॥ १ ॥ जगनायक जगगुरु जिनचंदा । न श्रीभगवन्ता । तमराम रमा सुखभोगी। सिवा जयवंता । (जय ०२.)
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नवपद (तथा) रुषिमंगल आरती पूजन विधि.
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पंचाचार दीपे प्राचारिज । जुगवर गुणधारी । धारक वाचक सूत्र अर्थना पाठक जवतारी ( जय ० ) ॥ ३ ॥ सम दम रूप सकलगुण ज्ञायक । मो टा मुनिराया । दशण नाण सदा जय कारक । संजम तपनाया ( जय० ) ॥ ४ ॥ नव पदसार परम गुरु जाषै । सिद्धचक्र सुखकारी । ए जव परन वरिष सिद्ध दायक । जव सायर वारी ( जय० ) ॥ ५ ॥ करजोमी सेवक गुण गावै । मनवंबित पावै । श्रीजिनचंद अखयपद पूजत । शिव कमला पावे ( जय० ) ॥ ६ ॥ इति श्रीनवपद आरती ॥ ॥
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॥ * ॥ अथ रुषिमंगल आरती लि० ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ जय जय जिनराजा । ( बारी ज ० ) प्रारती करूँ शिवकाजा । जब जयं दुख जाजा ( जय० ) ॥ १ ॥ रुषभ अजित संभव जिन राया । अभिनंदन सुमति । पद्म सुपारस चंद्राप्रनुते । दूर हुवै कुमति | ( जय० ॥२॥ सुविध शीतल श्रेयांस सवाई | करि बारम जिनकी । बिमल अनंत धर्म प्रभु शांति । हर प्रारति तनकी । ( जय० ) ॥ ३ ॥ कुंथुनाथ प्ररमति मुनिसुव्रत । नमि नेमि श्रीकारा । पार्श्वजिनेश्वर वीर जिनंदा । प्रातमहि तकारा । ( जय० ) ॥ ४ ॥ इण विधि आरति जे नवि करसी । जवसायर तरसी । श्रीजिनचंद खयपद फरसी । शिव कमला वरसी | ( जय ० ) ॥ ५ ॥ इति श्रीशषिमंगल आरती ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ रुषिमंगल सुननेंकी (वा) पूजने की विधि ॥ ॥ ॥ * ॥ ( प्रथम ) ॥ ॥ आद्यन्तार संला । यह । रुषमंगलस्तोत्र । धूप, दीपादि, बिधि संयुक्त, आठ महिनेतक प्रभात समय सुणें । रुषिमंगल में (जो ) मूलमंत्र है (सो) शुभदिन शुनवमी । हाथमें फल फूल जेट शक्ति माफक लेई । गुरूकै पास जावे । नेट धरके । विनयसंयुक्त मूलमंत्र ग्रहण करे । (नसका ) ८००० जाप, आठ महिनामे करे | किरणेंकी शक्ति होय (तो) सदा करे । नहिं तो । आठम । चवदस । दो बि ल जरूर करे । आठ महिनां हुयां बाद कजमणो करे । जमके दिन १०८ वेरसुणें । पीछे शक्ति होय ( तो ) विधिसंयुक्त । रुषिमंगल स्थापन करायके पूजा करे । विशेष शक्ति होय तो ( २४) प्रकारी पूजा करावे ।
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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह.
पूजामें सामग्री ज्यो पहली नवपदजीकी बिधके ठिकाणें लिखी है ( सो ) सर्व सामग्री इहां (२४) चोईस लेणी । एक एक महाराजकी पूजा पढायके । प्रथम जल । पीछे चंदन । ऐसें अष्टद्रव्य अनुक्रमसें चढावे । (पीछे) संपूर्ण प्रजा हयां बाद। गुरुनक्ति करें । साहमी बहल करे। (इहां) विशेषविधि गुरूके मुखसें समजके करणी ॥ (यह ) रुषमंगल सुणनेंवाले पूज वाले भव्य जीवोंके घरमें कभी उपद्रव न होगा । सदा आनंद बाह रहेगा । इत्यनंविस्तरेण । इति ऋषिमंगल सुणनें (वा) पूजन करनें की विधि ॥
॥ * ॥ अथ विंशतिपद पूजा विधि लिख्यते ॥ ॥
॥ * ॥ ( दूहा ) ॥ ॥ सुखसंपति दायक सदा । जगनायक जिनचंद | विधनहरण मंगलकरण । नमो नानि नृप नंद ॥ १ ॥ लोकालोक प्रका सिका । जिनवाणी चितधार । विंशतिपद पूजनतणो । कहिस्युं विधि वि सतार ॥ २ ॥ जिनवर अंगे जाषिया । तप जप बहु परकार । विंशतिपद तप सारिसो। वरन कोई नंदार ॥ ३ ॥ दान शील तप जप किया ॥ नाव विना फलहीन । जैसें भोजन लवण विन । नहीं सरस गुणपीन ॥ ४ ॥ जे नवीयण सेवै सदा । नावै थानक वीश । ते तीर्थकर पदल है । वंदे सुर नर ईश ॥ ५ ॥ ( ढाल ) श्री अरिहंतपद १ सि६पद २ ध्यावो । प्रवचन ३ आचारिज ४ गुणगावो । स्थविर पंचमपद ५ पुन रुवकाया ६ । त पसी ७ नाण ८ दंसण ९ मनमाया १ (नहालो) मननाय विनया १० वश्यका ११ मलशील १२ किरीया १३ जानीये । तप १४ विविध उत्तम पात्र १५ वेयावच्च १६ समाधि १७ वखानीयै । हितकर पूरब नाणसंग्रह १८ धरौ मन सुजगीसए । श्रुतनक्ति १९ फुनि तीरथप्रजावन २० एह थान कवीस २ ॥ ( ढाल ) एथानकवीस २० जग जयकारा । जपतां नही यै जिनपद सारा । करम निकंदै बिसवावीसे । नाष्या जग तारक जग दीसे ॥ ३ ॥ (उल्लाजो ) जगदीश प्रथम जिणेंद जगगुरु चरम जिनवर जी मुदा । जव तीसरे पद सकल सेवा लही जिनपति संपदा | बावीस जिनवर सकल सुखकर इंद्र जसु गुणगाइये । इक दोय त्रिण सहुपद जपी ने तीर्थपति पद पाइये ॥ ४ ॥ ॥
॥ * ॥
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बीसस्थानक गुणवर्णन पूजा... ६१७ ॥ ॥ (दूहा) ॥ ॥ अरिहंतादिक पद सदा । नजीय तपकरी सुद्ध । अति निरमल सुजयोगता । करिक तसुगुण लुच ॥१॥ विमल पीठनिक तदुपरै । उवीयै जिनवर वीस २० । पूजन नपग्रण मेलि करि। अरचीजै सुजगीस ॥२॥ एक एक ए पदतणी । द्रव्यपूजा परकार । पंच ५ अष्ट ८ विध जानीये । सत्तर १७ इगवीस सार॥३॥ अष्ट जातिना कलश करि । विमलजलै गरि पूर । पूजो नवीयण पद सहू । होय सकल सुखदूर ॥ ४॥ सोहै सहु परमेष्टिमें । जिनवर पद अनिराम । बेद ४ निहोपै समरीयै । वधतै सुन्न परिणाम ॥५॥8॥
॥ (राग देसाख) पूर्वमुख सावनं करिदसन पावनं ए चाल ॥8॥ सकल जगनायकं परमपद दायकं । लायकं जिनपदं विमलनानं ( अईयो वि०) चतु रधिक तीस ३४ अतिशय अमल बार १२ गुण । वचन पणतीस ३५ गुणमणि निधानं ॥१॥ (अश्योम०) ॥ सुखकरण जिन चरण पद्मसेवित सदा । जमर सुर असुर नर जदयहारी ( अईयो ) एह जिनवर तणी आण पूरण सदा । दाम जिम जगत जन शिरसि धारी (अइ० )॥२॥ जिनपपद दरस पारस फरसते हुवै । प्रगट निजरूप परि पति विनासं । तजी बहिरात्म गिरीसारता जविलहै । अनुपमं आत्मकांचन प्रकासं (अ.)॥३॥ हुवई जिनराज पद जाप रवि किरणनें । तुरत बहु हरित जर तिमिरनासं । घन चिदानंद वरकंद घन अविलहै । तीर्थकर चरण कमला विलासं । (अ०)॥४॥ वर विबुध मणिलही काच लघु सकलकौं। ग्रहण करिवा कवण कर पसारै । तिमलही जिन चरण सरण शुनयोगते । अवर सुर सरण कुण रिदय धारै ॥५॥ प्रजुतणे पंचकल्याण केरै दिने । प्रगट त्रिहुं लोकमें हुई कजेरौ । नविक देवपाल श्रेणिक प्रमुख जिनन मी। बांधीयौ गोत्र जिनराजकेरौ ॥६॥ जेह त्रिणकाल नितनमें जिन हरखसुं । तेह नवजल तिरै जनम तीजै । अधिक नव यदिकरै तदपि नि श्रय करी । सप्त बलि अष्ट जव करीय सीजै (अश्योक० ). ॥७॥ ॥ (काव्यं ) ॥ ॐ ॥ णमोणंत विन्नाण सदसणाणं । सयाणंदिया सेस जंतूग
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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह.
पाणं । नवां नोज विछे यणे वारणाणं । णमो बोहियाणं वराणं जिलाणं ी श्री प्रयोनमः ॥ * ॥
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॥ इति प्रथमपदे श्री जिनेंद्र पूजा ॥ १ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ (२) श्री सिद्धपद गुणवर्णन पूजा ॥ ॐ ॥ ॥ ॥ ( दूहा ) ॥ तनु त्रिभाग के घटनतें । घन अवगाहन जास । विमलनाण दंसण कीयो । लोकालोक प्रकास ॥ १ ॥ अविनाशी अ म्रित चल । पदवासी विकार । अगम अगोचर अजर अज । णमो सिद्ध जयकार ॥ २ ॥ ॥ ( राग सोरठ) कुंदकिरण ससि कजलोरे देवा ॥ ए चाल ॥ * ॥ अनुभव परमानंद सुंरे वाला । परमातम पद वंदोरे । करम निकंदौ वंदिनेरे वाला । लहि जिनपद चिरनंदोरे ॥ १ ॥ गगन पए संतर वली रे वाला । समयांतर प्रण फरसी रे । द्रव्य सगु परजायनारे वाला । एक समय बिद दरसीरे ॥ २ ॥ एक समय रिजु गति करीरे वाला । जयेय परमपद रामी रे । नांगै सादि अनंत एरे वाला निरुपाधिक सुख धामी रे || ३ || अखिल करममल परिहरी रे वाला । सिद्ध सकल सुखकारी रे। विमल चिदानंद घन थयारे वाला । वर इगतीस गुण धारीरे ॥ ४ ॥ उतपन्नता १ वलि विगमतारे वाला २ । ध्रुवता ३ त्रि पदी संगैरे । प्रनुमें अनंत चतुक्कतारे वाला । सो है सम क्रम जंगे रे ॥ ५ ॥ पन्नर द ए सियारे वाला | सहजानंद स्वरूपीरे । परम ज्योतिमें परिणम्यारे वाला। अव्याबाध रूपी रे ॥ ६ ॥ जिनवर पि प्रणमें मु दारे वाला। एहनें दीक्षा अवसरैरे । ति प्रनुपद गुण मालकारे वाला | कंठे धरीये सुपरै रे ॥ ७ ॥ हस्तिपाल नवि जगति सूंरे वाला । सिद्ध परम पद नजिनेंरे । पद श्री जिनहरषे लह्योरे वाला । परगुण परिणति तजि नेरे ॥ ८ ॥ ( काव्यं ) लोगग्गनासे परिसंठियाणं । बुधाण सिघाण मणि दिया । निस्सेस कम्मक्खय कारगाणं । णमो सया मंगल धारगाणं ॥ ९ ॥ फ्री श्री सिद्धेभ्योनमः ॥ २ ॥ इति द्वितीयपदे श्री सिद्ध पूजा ॥ २ ॥
॥ * ॥ अथ तृतीय प्रवचन पद पूजा लि० ॥ ॐ ॥ ॥ ॥ ( दूहा ) ॥ पद तृतीय प्रवचननमो । ज्यंनजमो संसार । गमो
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बांश स्थानक गुण वर्णन पूजा. ६१९ कुमति परिणमनता। दमो करण जयकार ॥१॥ जैसें जलधर वृष्टिते । अ खिल फलद विकसाय । तैसें प्रवचन नक्तिते । सुनपरणित नलसाय ।२ (श्रीराग) जिनगुगानं श्रुत अमृतं ए चाल ॥प्रवचन ध्यानं सुखकरणं। परिहरिये सहु विषय विकारं । करीये प्रवचन आदरणं ॥ प्रवचन० १ ॥ सप्त जांगनूषित ए प्रवचन । स्यादवाद मुद्राचरणं ॥ सप्तनयात्मक गुणमाणे आगर । बोधिवीज नतपति करणं ॥ प्रवचन ॥२॥जैसें अमित पान कर णतें । हुवई सकल विष संहरणं । तैसें प्रवचन अम्रित पानें । कुमति हला हल प्रविशरणं ॥३॥०॥ प्रवचनकौं आधेय कहीये । सकलसंघतसु अधि करणं । तिण एसंघ चतुरविध प्रवचन । एपद अखिल कनुषहरणं ॥४॥प्र०॥ यदि नविजन तुमए चाहतुहै। मुगतिरमणि जन वशकरणं । करणतीन इककरि तदकरीये । प्रवचन पद समरण धरणं ॥ ५॥ प्र०॥ जिनवरजी पिण ए तीरथनें । प्रणमें मध्य समवसरणं । नवजल तारण तरणि समानं । एतीरथ अशरण शरणं ॥६॥प्र०॥जिम भरतेसर संघ नगतिकरी । ल हीयो पुण्य फलाचरणं । चक्रीपद अनुनवि वलि शिवपद । लीधकरीय क म निरजरणं ॥प्र०॥७॥ नरपति संभव जिनहरले करि। आराधी प्रवचन चर ग। करम निकंदि थया जगदीसर । जिन परमानर नरणं ॥प्र०॥८॥ (काव्यं)॥अणंत संसुच्च गुणाकरस्स। उक्खंधया रुग्ग दिवाकरस्स । अ शांत जीवाण दयागिहस्स । णमो णमो संघ चनविहस्स ॥ ९॥ (नजी श्री प्रवचनायनमः)॥३॥ इति तृतीयपदे श्री प्रवचन पूजा ॥३॥ ॥8॥
॥*॥अथ चतुर्थ प्राचार्यपदपूजा लि० ॥ * ॥
॥ (दूहा )॥ * ॥ पदचतुर्थ नमीय सदा । सूरीसर महाराज । सोहम जंबू सारिसा। सकल साधु सिरताज ॥ १ ॥ सारण वारण चोयणा पनि चोयण करतार। प्रवचन कज विकसायवा । सहसकिरण अवतार ॥२॥ (राग रामगिरी) गात्रलूहै जिनमनरंगसुरेदेवा (ए चाल)॥ ॥ आचारिज पद ध्याईयैरे वाला। तासबिमल गुणगाईयै॥ पाईयै (हारवाला) पाईयै ॥ जिनपतिपद जग शिरतिलोरे॥१॥आचारिज० ॥ जिनशासन जुजवालतारे वाला । सकलजीव प्रतिपालता ॥ पालता ( हारेवाला)
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
पालता ॥ चरण करण मग चालतारे ॥ २ ॥ प्रचारिज ० || सूरि सकल गुण सोहतारे वाला । सुर नर जन मनमोहता ॥ मोहता (हांरेवाला) मो० । नवीय परिबोहतारे ॥ ३ ॥ प्राचा० ॥ पंचाचार विराजितारे वाला । सजल जलद जिम गाजता ॥ गाजता (हांरेवाला ) गाजता ॥ सूरि सकल शिर बाजारे ॥ ४ ॥ ०॥ उपदेशामृत वरसतारे वाला । दुरितताप सहु निरसिता || निरसिता (हांरेवाला ) निरसिता ॥ परमातम पद फरसतारे ॥५॥ आचा० ॥ धरम धुरंधरता धरारे वाला। जगबांधव जगहितकरा ॥ हितकरा ( हांवाला ) हितकरा | स्व परसमय विन गणधरारे ॥ ६ ॥ ० ॥ पद श्री जिनहरy ग्रह्यो रे वाला। सूरीशर पढ़ तपवह्यौ । तपवह्यौ ( हांरेवाला ) तपait | पुरुषोत्तम नृप शिव लह्योरे ॥ ७ ॥ ० ॥ ( काव्यं ) कुवादि केली तर सिंधुराणं । सूरीसराणं मुणि बंधुराणं । धीरत संतकिय मंदराणं । मोसया मंगल मंदिराणं ॥ ८ ॥ ( झी श्री प्राचार्येभ्योनमः) ॥४॥ ॥ इति चतुर्थपदे श्री प्राचार्यपूजा ॥ ४ ॥ 1111
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॥ * ॥ अथ पंचम थिवर पदपूजा जि० ॥ * ॥
॥ * ( दूहा ) * ॥ डुविध थविर जिनवर कह्या । द्रव्य नाव प रकार। लोकिक लोकोत्तर वली । सुनियै नेद विचार ॥ १ ॥ जनकादिक लौ किक थविर | लोकोत्तर अणगार | पंचमपदमें जानिये | पुती थविर अधि कार ॥ २ ॥ (सारंगराग ) || नितनमीयै थविर मुनीसरा । पंचमहाव्रत धार क वारक । कुमति जगत जन हितकरा ॥ १ ॥ नितनमीयै० ॥ २ ॥ संय मयोगे सीदत बालक । ग्लानादिक सहु मुनिवरा । एहनें उचित सहाय दी यणतें । वारे एहना दुखनरा ॥ २ ॥ नित पर्याय वय श्रुति त्रिविध एथ विरा । वीसरु साठ समोपरा । बयधर समवायादिक पाठक । एहथ विर गुणागरा ॥ ३ ॥ नित० ॥ तीजैप्रंग का दशथविरा । रतनत्रयी ना गुणधरा । तेइह निरमलना वै ग्रहिवा । जविक सरोज दिवाकरा ॥ ४ ॥ नित० ॥ कीर जलधि सम प्रति गंभीरा । सुरगिरी गुरु धीरज धरा । शर शागत तारणता धारा । ग्यान बिमल जल सागरा ॥ ५ ॥ नित० ॥ श्रुत तप धीरज ध्यान करणतें । द्रव्यादिक ग्यातावरा । तेह स्वरूप रमण थवि
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बशिस्थानक गुणवर्णन पूजा. ६२१ राकया। नहिय धवल केशांकुरा ॥ ६॥ नित०॥ एह थविर पद सेवी नग तै। पदमोत्तर वसुधेसरा। पद श्रीजिनहरपै तिण लहीयो । मुनिवर कुमुद निशाकरा ॥ ७ ॥ नित० ॥ (कलश) सम्मत्त संयम पतित विजन अ हित थिरकरता नला। अवगुण प्रदूषित गुणविनूषित चंद्रकिरण समुऊ ला। अष्टाधिका दशसहस शीलांगरथ रुचिर धाराधरा । जवसिंधु तारण प्रवर कारण नमो थविरमुनी सरा॥८॥ (नक्षी श्रीस्थविरायनमः)॥५॥॥ इति पंचमपदे श्रीस्थविरपूजा॥५॥
॥ ॥ अथ षष्टपदे श्रीनपाध्याय पूजा लि० ॥ ॥ ॥ ॥ (दूहा) ॥8॥ प्रवर नाण दरशण चरण । धारक यतिध्रम सार । समितिपंच त्रिणगुप्तिधर । निरुपम धीरजधार ॥१॥ * ॥ - (राग भैरव )॥ पंचवरणी अंगीरची कुसुमजाती (ए चाल) | जावधरी जवझायावंदो विजयकारी। श्रीनवसाय परमपद वंदी। लहो जिनपद अतिशय धारी॥१॥नाव०॥ कुमती मदतरु जंजन सिंधुर। सुमतिकंद धन अवतारी। अंगवालस नणय नणावै। शिष्यनणी चित हितधारी॥२॥ जाव०॥ सकल सूत्र नपदेश दीयणते । वाचक अति विमलाचारी । नव तीजै अम्रित सुखपामें । सुर असुरेंद्र मनोहरी ॥ ३ ॥ नाव० ॥ य ग ज वृष पंचानन सरिषा। करमकंद वर नर वारी । वासुदेव वासव नृप दिन कर । विधु नंमारि तुलाधारी॥ ४ ॥ नाव०॥ जंबू शीतानदि कांचनगि रि। चरमजलधि नेपमन्नारी। एनपमा बहुश्रुतनी जाणो । नत्तराध्ययन कहीसारी ॥ ५ ॥ नाव० ॥ अमल पंचविंशति गुणमणि निधि । स कल जुवन जन नपगारी । शंशय तिमिर हरण वासरमणि । पाप ताप आतपवारी ॥६॥ जाव०॥ प्रवर शंख पय नरीयो सोहै । तिमए ज्यान चरण चारी । महेंद्रपाल पाठक पद सेवी । लहीयो जिनपद विजितारी ॥७॥नाव०॥ (काव्यं ) सब्बोहिबीजं कुरकारणाणं । णमो मो वायग बारणाणं । कुबोहिदंती हरिणेसराणं । विग्घोष संताव पयोहराणं ॥ ८ ॥ (उक्षी श्रीनपाध्यायेभ्योनमः )॥६॥इतिषष्टपदे श्रीनपाध्यायपूजा॥६॥8॥
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६२२ रनसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ ॥ अथ सप्तम साधुपद पूजा लि० ॥
॥ जाणे जिनवाणी सरस । स्पादवाद गुणवंत । मुनिकहीये सिव पंथनें। साधै साधुकहंत ॥१॥ समतारस जलमीलता। विशदानंद सुरूप तिण पांम्यो पद सप्तमें । नमोनमों मुनिनूप ॥२॥*॥ ॥ ॥
(राग गुंममिश्रित नीम म० ) मेघवरसेनरी पुप्फवादल करी ए चाल । जक्तिधरि सातमें पद नजो मुनिवरा । सुखकरा विजित इंद्रिय विकारा। गुण सत्तावीस नूषणकरी शोनिता । होनिता विकट क्रम सुनट सारा ॥१॥ जक्ति०॥ चरणसत्तरि परम करणसत्तरि धरा । शिवकरण नाण किरिया प्रधा ना। प्रतिदिनं दोष आहारना वरजिता । सप्तचालीस यतिध्रम निधाना॥२॥ भक्ति० ॥ मदनमद नंजता कुमति जन गंजता । उक्तजन रंजता शांतिधरी या। सुमति धरिया सदा चरण परीयाजना । तारीया ग्यान गंजीर दरीया ॥३॥ नक्ति० ॥ त्रिणमणी समगिणे चतुरविध धरमना । परम उपदेश दा यक नदारा । बहिर भ्यंतर निदा बारविध अतिकग्नि । तपतपै सकलजीन अन्नयकारा ॥ ४॥ नक्ति० ॥ बलि अठावीस मनहरण गुण लबधि निधि । सातमें गुणगण वसीया । सप्त नयवारका प्रबर जिन आगन्या । धारका स्वगुण परिणमन रसीया ॥५॥ नक्ति० ॥ पंचपर माद कल्लोलता कुलमहा । पारसंसार सागर जिहाजा । विविध नववामि युत शीलव्रतके धरा । मधुर निजवाणि रंजित समाजा॥६॥क्ति० ॥ कोमि नवसहस थुणीये महा मुनिवरा । वीरनद्र जिमकरीय साधुसेवा । परमपद जिनहरष सुग्रह्यौ तसुतणा। चरणकज युगनमें सकलदेवा ॥ ७॥ जक्ति० ॥ (काव्यं ) संतकिया सेस परीसहाणं । निस्सेस जीवाण दया गि हाणं । सन्नाण पजाय तरूवणाणं । णमोणमो होन तवोधणाणं ॥८॥ (नक्षी श्री सर्व साधुभ्योनमः )॥७॥ इति सप्तमपदे श्री साधु पूजा॥ ॥
॥अथ अष्टम ज्ञानपद पूजा लि०॥॥ .॥ ॥ (दूहा)॥ विमलनाण खर किरण किय । लोका लोक प्रकाश ।
जीतलई निजतेजसें । जिन अनंत रविनास ॥१॥ सहु संशय तम अपहरै। जय जय नाणदिणंद । नाण चरण समरण थकी। विलय होय मुखदंद
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वीश स्थानक गुणवर्णन पूजा. . ६२३ ॥२॥ ॥ (राग घाटो ) मेरो मन वसकर लीनो। ए चाल ॥ * ॥ जावै ग्यान वंदन करीयै । शिवसुख तरुकंद । नावै ॥ जिनचंद्र पद गुण धरीयै। वरीय परम आनन्द ॥ १ ॥ जावै० ॥ मतिनाण श्रुत २ पुनरवधि ३। मनपर्यव ४ जाण ॥ नावै०॥ लोका लोकनाव प्रकाशी। वर केवल नाण ५॥जावै० ॥ २॥ पंच ए इक्कावन ५१ दे। क ह्यो जिनवर नान ॥जावै ॥ जगजीव जमता जेदै । ग्यानामृत रसपान ॥ लावै०॥ विणग्यान कीधी किरिया । होय तसुफल ध्वंस ॥ नावै० ॥ जहाना प्रगट ए करीयै । जिम पय जल हंस ॥ नावै०॥ ४ ॥ बरनाण स हितमु किरिया । करी फल दातार ॥ नावै० ॥ हुवो ग्यान चरण रसीला। लहो नवजल पार ॥ नावै० ॥ ५॥ ग्यानानंद अमृतपीधो। जरतेसर म हाराय ॥ जावै ॥ तिणसें अमृतपद लीधो । सुरपति गुणगाय ॥ लावै ॥ ॥६॥ सेवीग्यान जयत नरशै । नये जिन महाराज ॥नावै० ॥ सोहैग्यान ए त्रिनुवनमें । सहुपरि सिरताज ॥ नावै० ॥ ७ ॥ (काव्यं ) उद्दव प जाय गुणकरस्स । सयापयासी करणोडुरस्स । मिवृत्त अन्नाण तमोहरस्स। णमो णमो नाण दिवायरस्स ॥८॥(जी श्रीज्ञानायनमः)॥॥॥॥ इति अष्टमपदे श्रीज्ञानपूजा ॥८॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ नवमी दर्शन पदपूजा लि० ॥१॥ ॥ ॥ (दूहा) ॥ ॥ दर्शण आश्रय धर्मनो। एहना षट् नप मान । दरशण विण नहि चरणविद । नत्तराध्ययने जान ॥१॥ जिणदर शण फरस्यो ललो । अंतर महुरति मान । अरधपुग्गल परियटरहै । तमु संसारवितान ॥२॥ ॥ (राग कामोद) चंपक केतक मालतीए। अश यो मालती ए॥(ए चाल)॥॥ जिनदरसण मुझ मनवस्यो ए। (अइयो मनवस्यो ए)। उपजत परम आनंद । जिनदरशन दरशन दीयै । विमलना शा तस्कंद ॥१॥ दरशण मोहरिपु जीतीया ए॥ (अश्यो० ) वर दरशण नलसंत । दरशण घट परगट हुआ । नवीयण जव ननमंत ॥२॥ जिनव रदेव सुगुरु व्रती ए। केवली कथित जिनधर्म । तीनतत्त्व परिणतिरमें । ते दरशण कर शर्म ॥३॥ जिनप्रनु वचनो परि सदा ए॥ (अश्यो०)॥ थिर
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह
शरदहण धरत । इण लक्षणतें जानीये । समकितवंत महंत ॥ ४ ॥ इग, डुंग, ति, चौ, शर, दश, विहा ए । ( अइयो ० ) सतसहि ६७ द विचार | वलि पररीति समकित नएयो । द्रव्य नाव परकार ॥ ५ ॥ द्रव्ये जिनदरश कह्यो । जावै समकित सार । द्रव्यत दरशण जावतो । दरशण कारणधार ॥ ६ ॥ द्रव्य दरश यदि गतबलीये । तदपि उत्तर हितकार । शय्यंनव जिनदरश । पायो दरशण सार ॥ ७ ॥ दरशण विष किरिया हता ए । अंकविना जिम बिंदु | बलि हणीयो विण चंद्रिका । वासरमें जिम झंडु ॥ ८ ॥ हरिविक्रम नृप सेवताए । दरशण पद मनिराम । पद श्रीजिन हर धरयो । वधते शुनपरिणाम ॥ ९ ॥ ( काव्यं ) प्रतिविन्नाण सुका रणस्स । प्रणंत संसार विदारणस्स ॥ प्रांत कम्मावलि धंसणस्स । मो मो निम्मल देश ॥ १० ॥ ( झी श्री दर्शनायनमः ) ॥ ९ ॥ इति नवमपदे श्रीदर्शन पूजा ॥ ९ ॥
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॥ ॐ ॥
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॥ ॥ अथ (१०) बिनयपद पूजा लि० ॥ ॥ * ॥ ( दूहा ) ॥ * ॥ विनय नुवन रंजन करे। विनये जस विसतार । विनय जीन नूषित करै । विनयै जय जय कार ॥ १ ॥ विनयमूल जिनधर्म नो । विनय ग्यान तर कंद | विनय सकलगुण सेहरो । जय जय विनय सनंद ॥ २ ॥ ( राग सामेरी ) पूजोरीमाई जिनवर (ए चाल ) ॥ ॥ व्यावोरीमाई विनय दशमपद ध्यावै । पंच नेद, दश विध, तेरस वि ध। बावन नेद गणेशै ॥ ध्या० ॥ बासठ भेद का आगममें । विन यता सुविसेसै ॥ १ ॥ ध्या० ॥ तीर्थकर १ सि६ २ कुल ३ गण ४ सं घा ५ । किरिया ६ भ्रम ७ वरनांणा ८ ॥ ध्या० ॥ नांणी ९ प्रचारिज १० मुनिथविरा ११ । पाठक १२ गणि १३ गुणजाणा ॥ २ ॥ ध्या० ॥ एरिहादिक तेरसपदनो । विनयकरै जेनावै ॥ ध्या० ते तीर्थकरपद अ
नविनें । प्रतिपद सुखपावै ॥ ३ ॥ ध्या० ॥ जिमकांचन में मृदुगुण ला जै। नहीय कालिमा पावै। ध्या० ॥ तिलए सकल धातुमें उत्तम । नाम क ख्याण कहावै ॥ ४ ॥ ध्या० ॥ तिमविनयीमें है मृदुतागुण । कुमति क ठिनता नासै ॥ध्या०॥ कृष्णादिक लेश्यानी मलीनता । जाये विनयगुण ना
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जिनहर्षजीकृत २० स्थानक पूजा से ॥ ५ ॥ ध्या७ ॥ दोयसहस अरु अधिक चिहुत्तर। देववंदन निरधारो॥ ध्या० ॥ शुरुवंदन विधि च्यारसै बाएं । नेदकरी नरधारो ॥ ६ ॥ ध्या०॥ तीर्थकरादिकनौ मनरंग। विनय चरण शुनध्यायो। धननामा नवि नमि जि नहरले । तीर्थकर पद पायो ॥ ७ ॥ ध्यावो० ॥ ( काव्यं ) आणदिया से सं.जगजपस्स । कुंदिउ पादा मलता चणस्स । सुधम्म जुत्तस्स दयासय स्स । णमो मो श्रीबिनयालयस्स ॥८॥ (नक्षी श्री विनयायनमः)॥१०॥ इति दशमपदे श्रीविनयपूजा ॥१०॥ ॥
॥अथ (११)चारित्र पदपूजा लि० ॥
॥ (दूहा )॥ ॥ इग्यारम पद नितनमुं । देश सरब चारित्र । पंक मलिनता दूरकरि । चेतन कर पवित्र ॥ १॥ एह चरण सेवन करे । रंकथकी सुरराय । तीन जगतपति पद दीये । जसु सुर नर गुणगाय ॥२॥ (राग सारंग ) बावना चंदन घसि कुमकुमा ( ए चाल ) ॥ चरण शरण मुफ मन हरयो । सुखकरण हरण घन पापए। (हांहोरे वाला)। एह चरण जलधर हरे। अग्यान तरुण तर तापए ॥ १ ॥ हां० ॥ आठ कषाय निवा रता। देशविरति प्रगट हुवै खासए ॥ हांहोरे० ॥ बार कषाय निवारीया । सम विरतिलहे गुणवासए ॥ २ ॥ हां० ॥ इगवासर सेव्यो थको । शुध सरबसं बर चारित्रए ॥ हां वाला ॥ परमानंद घन पददीये । सुरलोक जनित सुख चित्रए ॥३॥ हां० वाला ॥ नव जय तरुगण दिवा । एसंयम निशित कुठार 'ए ॥ हां वाला ॥ ग्यान परंपर करण । अम्रितपदनो हितकारए ॥ ४ ॥ हाँ० वाला ॥ चरण अनंतर करणने । निरवाण तणो निरधारए ॥ हां वाला ॥ सरबविरति सुचचरणसें । पामें अरिहंत पदसारए ॥ ५ ॥ हां० वा ला ॥ वरस चरण परजायमें । अनुत्तरमुख अतिक्रम होयए ॥ हां०॥ बाला ॥ सतरनेद चारित्रना। कहीया जिनागम जोयए ॥६॥ हां वाला। देशथी सम संयम विषै । नऊलता अनंतगुण थायए ॥ हां वाला ॥ अरुणदेव सेवी चरणनें। नये जगगुरु जिन महारायए ॥ हां०७॥ (काव्यं) कम्मोध कतार दवानलस्स । महोदयानंद जयाजलस्स । विन्नाण पंकेरुह
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६२६ रनसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. काणणस्स। णमोचरित्तस्स गुणापणस्स ॥ ८ ॥ नक्षी श्री चारित्रायनमः ११॥ इति एकादशपदे श्री चारित्र पूजा ॥११॥ * ॥
॥अथ (१२) ब्रह्मचर्य पद पूजा लि० ॥ * ॥ ॥ॐ ॥ दूहा)॥ * ॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवी। कामकलश अवधार । ब्रह्मचर्य इणसम कह्यो। कामित फल दातार ॥ १॥ जिम जोतिषीयां रज निकर । सुरगणमैं मुरराय । तिम सहुव्रत शिर सेहरो । ब्रह्मचारज कहिवा य॥२॥ (राग ख्याल ) जला प्रजुगुण वालाहो (ए चालमें)॥ ॥नव जय हरणा, सिवमुख करणाः सदा नजोब्रह्मचारा (मेवारी जानं ) सदानजो हो॥ नव०॥शील विबुध तरु पालन करिवा । कहि जिनवर नववाराहो । दिब्योदारिक करण करावण । अनुमति विषय प्रकाराहो ॥ १ ॥ जव ॥ त्रिकरण जोगै ए परिहरीयै । नवीय नेद अढाराहो ॥ नव०॥ क नक कोमिनो दानदीयै नित । कनकचैत्य करताराहो ॥ ॥२॥ एह थी ब्रह्मचारज धारकनो । फल अगणित अवधारा हो ॥ ज० ॥ सहस चो रासी श्रमणदानफल । ब्रह्मव्रत फल समसाराहो ॥ ३ ॥ विजयसेठ वि जयासेठानी। ननयपक्ष्य ब्रह्मधाराहो ॥४०॥ नये सुदर्शन सेठ शीलमुगतिबधू जरतारा हो ॥न० ४॥ सहस अढार शीलांग स्थधारा । धारिकरे निसतारा हो ॥ न ॥ सिंहादिक वसुनय तर नंजन । कुंजर मद मतवारा हो ॥ ४ ॥१०॥ कलहकारि नारदरिषि सरिषे । तरया अवजलधि अपारा हो ॥ ज० ॥ पञ्चक्खाण विरति नहि एहमें । ए ब्रह्मवत नपगारा हो । ज० ॥५॥ सकल सुरासुर किन्नर नरवर । धरीय नगति हितकाराहो ॥४०॥ ब्रह्मचारज व्रत धर नरवरके । प्रणमें चरण नदारा हो ॥ न. ६ ॥ दशम अंग प्रणियो नरवर्मा । नरपति गुण आधारा हो॥ ॥ ब्रह्मचारिज व्रत पा लि लह्योपद। जिनहरले जयकारा हो ॥०॥ ७॥(काव्यं ) सग्गापन ग्गग्ग सुहप्पयस्स । सुनिम्मलाणंत गुणालयस्स । सचबयानूसण चुसणस्स णमोहि शीलस्स अदूसणस्स ॥८॥ ( शी श्री ब्रह्मचर्यायनमः) ॥१२॥ इति प्रादशपदे श्री बह्मचर्य पूजा ॥ १२॥६॥
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जिनहर्षजीकृत २० स्थानक पूजा
॥ अथ (१३) किरियापद पूजा जि० ॥ ॥
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॥ ( दूहा ) ॥ * ॥ करम निरजरा हेतुहे । प्रवर क्रिया गुणखाण जिनशासननी स्थिति रही । किरिया रूप जाण ॥ १ ॥ जुवनमांहि किरियाम हो । सकलशुद्ध विवहार । प्रवरना दरशण तणो । शुधकिरिया शिणगार ॥ २ ॥ ( राग मालवी गौमी ) ॥ सब अरतिमथन मुदारधूपं (ए चाल में ) शुजध्यान किरिया हृदय धरिनें । भ्रम सुकल नर धाररे । प्रार्त्त रोनी हेतु किरिया | अशुभ पणवीस बाररे ॥ १ शु० ॥ ग्यानवंत शस्त्र नरहे । क्रि या शस्त्र वर्तसरे । सुनटनाणी क्रियाशस्त्रे । करयक्रम अरिध्वंसरे ॥ २ ॥ शु० ॥ ग्यान सेती वदे शिव यदि । तेरमें गुणठाणरे । एकनाणें तद जिणेसर । कि सुनल निखारे ॥ ३ ॥ शु० ॥ जिनप शैलेशी करण करि । चवदमें गुण गणरे । सरवसंबर चरण करणें । जहै पद निखारे ॥ ४ ॥ शु० ॥ ए अ नंतर मृतकारण | कह्यो जिनवर जांणिरे । सरब संबर चरण किरिया । न शिव इणविनु जाणिरे ॥ ५ ॥ शु० ॥ एकनाऐं इक क्रियामें । नशिव वितरण -शक्तिरे । कहै जिनवर नजययोगे । लहै प्रविजन मुक्तिरे ॥ ६ ॥ शु० ॥ गर
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मिश्रित सरस जोजन । अशुभ परिणति धाररे । प्रमृतसंयुत तेहजोजन रुचिर परिणति काररे ॥ ७ ॥ शु० ॥ ग्यानसहिता तेमकिरिया । करिकरै नि सताररे । ग्यानविन किरियानदीपै । मनोमत फलसाररे ॥ ८ ॥ शु० ॥ ग्या नपरिणति रमी किरिया । तेह किरिया साररे । नयो हरिवाहन जिनेसर । सुध किरिया धाररे ॥ ( काव्यं ) विशुद्ध साण विनूषणस्स । सुलधि संप त्ति सुपोषणस्स । णमो सदाणंत गुणप्पदस्स | मोमो सुधक्रिया पदस्स । ॥ १० ॥ ( शी श्री क्रियायैनमः ॥ १३ ॥ इति त्रयोदशपदे श्री क्रियापद पूजा ॥ # ॥
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॥ * ॥ अथ (१४ ) तपपद पूजा लि० ॥
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॥ * ॥ ( दूहा ) ॥ * ॥ शमतारस युत तप रुचिर । जणियो जिन जगजांन । शिव सुरसुख चंदन फलद । नंदन विपिन समान ॥ १ ॥ स घन करम कानन दहन । करन विमल तपजांन । विपिन धूमकेतन समो । जय तप सुगुणनिधान ॥ २ ॥ ( राग कल्याण ) तेरी पूजावनी हे रसमें
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रत्नसागर श्रीजिन पूजा संग्रह.
( चाल ) ॥ मेरीलगी लगन तप चरणें ॥ सकल कुशलमैं प्रथम कुशलए । रित निकाचित हरणें ॥ १ ॥ मेरी• ॥ जैसें चक्रवाककी अरुणें । चकोरकी हिमकर किरणें ॥ मेरी० ॥ जैसें गणधरकी जिनचरणें । चातककी जलधरणें ॥२॥ ० ॥ जिनवर पि तदभव शिवजांणें । त्रिण चन नाण सुकरणें ॥ मे० ॥ तदपि सुकोमल करण चरणनें । उवय कठिन तप करणें ॥ ३ ॥ ० ॥ क पटसहित तप चरण धरणतें । वांबित फल नवितरणें ॥ मे० ॥ नितए दं त्र रहित तपपदके । सुरपति गण गुण वरणें ॥ ४ ॥ मे० ॥ पीठ महापी ठ मुनि महीजिन । पूरब जव तप सरणें ॥ मे० ॥ रहीया तदपि कपट नविड्यो । नये स्त्री गोत्रा चरणें ॥ ५ ॥ मे० ॥ दृढप्रहारि पांरुव घन करमी । वंड्या करमा वरणें । तपसें शोनलही त्रिभुवनमें। केवल कमला रणें ॥ ६ ॥ मे० ॥ लाख इग्यारह असीहजारा। पंचसय शर दिन खिरणें । मासखमण करि नंदन मुनिवर । पांम्यो फल शिव धरणें ॥ ७ ॥ ० ॥ त पकरीयो गुणरयण संवछर । खंधक समता दरणें । चवदसहस मुनिमें क ह्यो अधिक। धन्नों तप श्राचरणें ॥ ८ ॥ मे० ॥ बाहिर भ्यंतर जेदै एत प । बारनेद अधिकरणें । वसिनें कनककेतु पांम्योपद | जिनहरषै नवतर णें ॥ ९ ॥ ( काव्यं ) लघी सरोजा वलिता वणस्स । सरूव संलग्ग सुपा वणस्स । अमंगला नोकुह दुदवस्स । नमो नमो निम्मल सत्तवस्स ॥ १० ॥ ( ँ शी श्रीतपसे नमः) ॥ १४ ॥ ॥ इति श्रीतपपूजा ॥ १४ ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ (१५) गौतम गणधर पदपूजा जि० ॥ ॥
॥ * ॥ दूहा ) ॥ * ॥ गौतमगणधर पनरमें । पदसेवो सुप्रसन्न । ब लि सहु जिन गणधर नमो | चवदेसै बावन्न ॥ १ ॥ दान सकल जग वस करे। दानहरे दुरितारि । मन वांबित सहु सुख दीये । दान धरम हितकारि ॥ २ ॥ ( राग सोरठ ) ॥ मेंतेरी प्रीति पीबानीहो प्रजुमें (ए चाल ) पनरम पद गुनगाना हो जवी । पनरमपद गुणगानाहो ॥ प्र० ॥ जावघरी करीये मनरंगे । परम सुपात्रै दानाहोनवी ॥ पर० ॥ १ ॥ पात्र कह्या द्रव्य नाव कुभेदे । द्रव्य लहन ए जाना हो जवी ॥ पन० ॥ सरबोत्तम उत्तम हुवै नाजन | रतन कनक रूपाना हो नवी ॥ २ ॥ पर० ॥ मध्यमपात्र
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जिनहर्षजीकृत २० स्थानक पूजा ६२९ कहीजे एहवा । ताम्रधातु निपजाना होनवी ॥ पनर० ॥ पात्र लोहादिक अ पर जातिना । तेह जघन्य कहाना हो नवी ॥ पन० ॥३॥ नावपात्रनो लहन कहीयै । सुनीये सुगुण सयाना हो. जवी ॥ पन० ॥ पंचम चरण धेरै बलिवरते। दीणमोह गुणगना होजवी ॥ पन॥४॥ रतनपात्र सम ते सर्वोत्तम । पात्र कहा जिननानाहो नवी ॥१०॥ प्रवरनाण किरियाधर मु निवर। लाजालान समांना हो नवी ॥५०॥५॥ ते कांचन नाजन सम कहीया। जवजल तारन यांना हो नवी ॥पन०॥ सुधमन जादशत्रत दर शनधर । तारपात्र सम जांना हो नवी ॥ पन०॥६॥ सुध समकित धर श्रेणिक परमुख । रह्या अविरत गुनगना हो नवी ॥५०॥ ताम्रपात्र सम एहनें कहीयै । जावी गुण मणि खाना हो नवी ॥ पनर०॥७॥ अपर सकल जन मिथ्यादृष्टी । लोहादिपात्र गिनाना होनवी ॥ पन० ॥ जिनशासन रंग रंगाना । वाचंयम सुप्रमाना हो नवी॥ पन०॥८॥ एहनें दानदीये शि व लहीयै। एह सुपात्र पहिचाना हो जवी॥ पन०॥ पंचदान, दसदान, नि करमै । अनय सुपात्र महिराना हो नवी ॥ पन०॥ ९॥नरवाहन सुन्नपात्र दानतें। नये जिनहरष निधानाहो नवी ॥ पन०॥ सालिनद्र वलि सुरसुख लहीयो । सुरनर करय वखाना हो नवी॥ पनर० ॥१०॥ (काव्यं) अ पंत विन्नाण विनाकरस्स। वालसंगी कमलाकरस्स । सुलध्वासा जरगो यमस्स । णमो गणाधीसर गोयमस्स ॥ ११॥ ( शी श्री गौतमाय नमः) ॥१५॥ इति पंचदशपदे सुपात्रदानाधिकारे श्री गौतम पूजा ॥१२॥8॥
॥ ॥अथ (१६) वेयावच्च पदपूजा लि० ॥ ॥ ॥ ॥ (दूहा)॥ ॥ सोलमपदमें जानीये । बेयावच्चविधान । अ खिल विमलगुण मणितणो। सोहै प्रवरनिधान ॥१॥ जिन, सूरी, पाठक, मु नी। बालक, वृक्ष गिलांन, । तपसि, चैत्य, संघनो, करौ । बेयावच्च प्रधान ॥२॥ (राग) बालोमांरो कब मिलसी मन मेलू (ए चाल) सेवो नाई सोलमपद सुखकारी । श्रीजिनचंद्र प्रमुख दश पद नो । करन बेयावर जारी ॥ सेवो० ॥ श्रीतीर्थकर त्रिनुवन शंकर । अवर केवली हारी। मन पुर्यव धर अवधिनाण धर । चन्द पूरब श्रुतधारी ॥२॥ सेवो ॥ दशपू
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
र्वी उतकृष्ट चरणधर । लब्धिवंत अणगारी । एजिन कहीये इनवंदनते । विहुवै जिनवतारी ॥ ३ ॥ से०॥ जिनमंदिर बिंब करण जरावै। पूजकरै म नुहारी । बेयावच्चकही ए जिनकी । करीये जवजल तारी ॥ ४ ॥ से० ॥ आचारज परमुख नवपदको । बेयावच्च विजितारी । जगतिपूर्व वस्त्रौषध अन्नजल | देवै गुण विस्तारी ॥ ५ ॥ से० ॥ पंचसय मुनिनी करीय बेयावच्च पूरबनव व्रतचारी । जरत बाहुबल चक्रीपदनुज । बललह्यो वरी शिवना री ॥ ६ ॥ से० ॥ नंदिषेण सुलसा मुनिजनकी । करीय बेयावच्च सारी । तिणसें सरगलोकमें यकी । नई प्रसंसानारी ॥ ७ ॥ से० ॥ इत्यादिक सो लमपद नधरै । बहुलव्य क्रमजारी । तिणसें इणबेयावच्च पदकी । वारी जानं वारहजारी ॥ ८ ॥ से० ॥ नृपजीमूत केतु सोलमपद । सेवीजयेदुख वारी । श्रीजिनहरष धरी हरिवंदत । शरणागत निसतारी ॥ ९ ॥ ( काव्यं ) मणुसवा तिसयासयाणं । सुरासुराधीशर वंदियाणं । खींडुबिंबा मल सग्गु गाणं । दयाधणाणं हि नमोजिणाणं ॥ १० ॥ ( ती श्रीजिनेभ्यो नमः ॥ ॥ १६ ॥ ॥ इति षोमशपदे श्रीवैयावृत्य पूजा ॥ १६ ॥
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॥ * ॥ अथ ( १७ ) समाधिपूजा लि० ॥ * ॥
॥ * ॥ (दूहा ) ॥ * ॥ सतरमपदमें सेवीयै । सहु सुखकरण समाधि । जिए सेवनतें जविकनो । गमें व्याधि अरुमाधि ॥ १ ॥ ब्रह्मनगर पथि विचरतां । वर पाथेय समान । ए समाधिपद जानीयै । सुरमणि किया हैरान ॥ २ ॥ वाजै तेरावा (इस कैवारी चाल में ) ॥ * ॥ मेरोरे समाधि चरण चित वसीयो ॥ चर० ॥ तमुगुण समरणि कियो मनुवसीयो ॥ मे० ॥ सकल जगत जन जिनकुं स्तवतु है | अनुभव रंगे प्रतिह विकसीयो ॥ १ ॥ मे० ॥ द्रव्यत जावत दुविध समाधि । सुरतरु मांनुं नित जुवन विलसीयो । मे० ॥ प्रशन वसन सलिलादिक नक्ती । करय संघनी करुणा रसीयो ॥ मे० ॥ २ ॥ द्रव्यसमाधि प्रथम एसुनियै । कह्यो जिन लोकालोक दरसीयो ॥ मे० ॥ सारण वारण चोयण प्रमुखै । पतित सुथिरकरे भ्रममें हरसीयो ॥ मे० ॥ ३ ॥ जावसमाधि प्रतीयए कहीयै। जोकरे सो जिनचरण फरसीयो ॥ मे० ॥ सकल संघक जो नपजावत। दुविध समाधि पुरित तसु नसीयो ॥ ४ ॥ मे० ॥ सु
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जिनहर्षजीकृत २० स्थानक पूजा ६३१ मति पंच त्रिण गुपति धेरैनित । मुरगिरिवरनो धीरज करसीयो ॥ मे०॥ जगतजंतु अघतपति हरणकुं । अनुन्नव अम्रित धार वरसीयो ॥५॥ सुक ल अनिल करमेंधन दाहत । जिणसें परगुण परिणति खिसीयो ॥मे०॥ए मुनि तरणि तेज सम दीपत । अमृत सुखामृत पान तिरसीयो॥६॥ मे०॥ इणपदमें असे मुनिजनके । समरणतें हुय जग अवतसीयो ॥मे०॥ एप दसेवी नृपतिपुरंदर। नये जगपति जिनहरष नवसीयो ॥ ७ ॥(काव्यं) सबिंदिया पार विकार दारी । अकारणा सेस जणोवगारी । महानवातंक ग यापहारी । जयोसदा मुच चरित्त धारी॥८॥नधी श्रीचारित्रधारिभ्योनमः
॥अथ (१८)अपूर्व श्रुतग्रहण पदपूजा लि०॥॥ ॥ * ॥ (दूहा)॥ ॥ श्रुत अपूर्व ग्रहिवो सदा । अष्टादश पदमा हि । इणपद सेवक जनतणा। सहु संकट जय जांहि ॥१॥ जैसी कुमति विशुद्धता। घोर तपैकरि होय । तत् अनंत गुणि शुचता। सुग्यानीकी जोय ॥२॥ * ॥ दिलदार यार गबरू । राखुंरे धुंघटदा पटमें (ए चाल)॥१॥ जिनचंद्र ग्यान तेरा । होजीतेरे विकट जवनटने (आं० )॥ सदपूर्व ग्यान धरणा । वितरै जिनेंद्र चरणा । करि सर्व कर्म हरणा ॥ १॥ जीते। (जि नचंद्र०)। जगमें महोपकारी। जवसिंधु वारितारी । कुमतां धता बिदारी॥२॥ जी० ॥ जि० ॥ सहुनावनो प्रकासी । परमस्वरूप जासी । समकित स अवासी ॥ ३ ॥ जी० ॥ जि० ॥ विणुहेतु विश्वबंधू । गुणरत्न राशिसिंधू । . शमता पीयूष अंधू ॥४॥ जीते०॥ जिन०॥ स्यानाद पनगाजै । नयसप्तसै. विराजै । एकांतपच नाजै ॥५॥जी॥ जि०॥लहि तीर्थ पावतारा। इणसें जिनेंद्रसारा। किया नव्यके नधारा ॥६॥जी॥ जि० ॥ पद सेविए नरिंदा। जये सागरादि चंदा। जिनहर्षके समंदा ॥७॥जी॥ जि० ॥ ( काव्यं ) सुधक्रिया मंगल मंमनस्स । संदेह संदोह विखंमनस्स । मुत्ती नपादान सु कारणस्स । नमो ही नाणस्स जयो धणस्स ॥७॥न झीश्रीज्ञानाय नमः॥१८॥ ॥ इति श्रीअपूर्वश्रुत ग्रहणरूपा ज्ञानपूजा ॥१८॥ * ॥
॥ * ॥अथ (१९) श्रुतपद पूजा लि०॥॥ ॥ * ॥ (दूहा)॥ * ॥ पाप ताप संहरण हरि। चंदन सम श्रुतसार ।
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
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तत्वरमण कारण करण । अशरण शरण उदार ॥ १ ॥ इगुनवीस पदमें नजन जिनवर श्रुतनी क्ति । इन पद वंदनसें लहै । अमल नाण युत मुक्ति । ॥ २ ॥ ( राग ) व्रजवासी कांन तें मोरी गागर ढोरी रे (अपर) जमायोरे चाह । जीवमानाचं जिणंद मागे ( इस चाल में ) ॥ ॥ प्रविजन श्रुत नक्ति चरणशरण नर धरीये रे । ए श्रुत भक्ति सुमंगल माल । विमल के वल कमला वरमाल ॥ नविजन• ॥ ॥ सकल द्रव्य गुणगण परयाय । प्र गट करणं श्रुत मनजाय ॥ नवि० ॥ अतुल अनंत किरण समवाय । धरण तरणिगण सम कहिवाय ॥ ज० ॥ २ ॥ एश्रुत कुमति युवतिनें संग । गणित रमणित करैजंग ॥ नवि० ॥ रथै प्राप्यो श्री जिनराज । सूत्रे गणधर मुनि सिरताज ॥ नवि० ॥ ३ ॥ ए श्रुतसागर अगम अपार । अनंत अमलगुण रयणाधार ॥ नवि० ॥ जव जय जलनिधि तरण जिहाज । निसु णि मगननई सकल समाज ॥ ० ॥ ४ ॥ नवकोटी लगि तपकरि जीव । अग्यानीक जितनी सदीव || नवि० ॥ करम निरजरा तितनी होय । ज्ञा नीकै इकखिणमें जोय ॥ जवि० ॥ ५ ॥ एक सहस कोमि १००००००००००, बस्सय कोमि ६००००००० । चतुरतीस कोम ३४०००००००, अक्षर जोकि ॥ नवि० ॥ अमसठ लाखरु ६८००००० सात हजार ७००० । असय ८०० असीय ८० प्रमिति चितधार ॥ ( १६०३४६८७ ८८० ) नवि० ॥ ६ ॥ इतने वरणसें इकपद होय । एक श्लोकका गणितए जोय ॥ वि० ॥ इकपदको परिमाण एजाण । इणपद आगम परिमाण || नवि० ॥ ७ ॥ तीन कोमि ३००००००० अरु अडसठ लाख ६८००००० सहस वयालीस ४२००० एपदमाख ॥ ० ॥ इतने पदसैं अंग इग्या र। केरी गणना नवि चितधार ॥ ज० ॥ ८ ॥ बारम दृष्टिवादको मान । असंख्यात पदको पहिचान ॥ ज० ॥ इणको चन्दपुरब इकदेश। इसको पारलो है गणेश ॥ ० ॥९॥ एह दुवालस अंग नदार। एहनी जईये नित बीहार ॥ ज० ॥ एहनी द्रव्य नाव बहुभक्ति । करीयै धरीयै जिनपढ़ युक्ति ॥ जवि० ॥ १० ॥ रत्तचूम नृप सुखमाधार । जिन श्रुतजति करी हितकार ॥ ज० ॥ जये जिनहरष परमपददाय । जिनके सुर नर पति गुनगाय ॥ नगा
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जिनहर्षजीकृत २० स्थानक पूजा. ६३३ ॥ ११ ॥ ( काव्यं ) अन्नाणवली वन वारणस्स । सुबोहि बीजांकुर कारण स्स । अणंत संसुध गुणालयस्स । णमो दयामंदिर सहयस्स ॥ १२ ॥ (7 जी श्री श्रुतायनमः॥ इति श्री श्रुतपूजा ॥ १९॥ ॥ .
॥॥अथ २० तीर्थप्रनावन पूजा॥॥ ॥ ॥ (दूहा)॥ प्रावचनी १, अरु धमकथी । वादि ३, निमत्ती ४ जाण । तपसी ५, विद्या ६, सिघ ७, बलि । कवी ८, एहमुनित्रांण॥१॥ जावतीर्थ प्रबेकह्या । प्रनावीक एअष्ट । तीर्थप्रनावन जेकरै । ते फललहै विशिष्ट ॥ २ ॥8॥ (राग धन्यासिरी) तेजतरणि मुखराजै (ए चाल )। पर जावन जयकारा । (अहो जयकारा) तीरथ परन्नावन जयकारा। जिन सेंनवसागर जलतरीयै। ते तीरथ गुणधारा । तीर० ॥१॥ जिनके गणधर ती स्थ कहीये । बलि सहु संघ सुखकारा । एह महातीरथ पहिचानो । वदि लहो नवपारा ॥ तीर० ॥ २ ॥ अमसठ लौकिक तीरथ तजि करि । जज लोकोत्तर सारा । द्रव्यनाव दोयनेद लोकोत्तर। थिर जंगम जयहारा तीरथ ॥ ३ ॥ पुंमरीक परमुख पंचतीरथ । चैत्यपंच परकारा । एह वर तीर थ थावर कहीयै। दीगं पुरित विदारा॥ तीर०॥४॥श्री सीमंधर प्रमुख वीशजिन । विहरमान जवतारा । दोयकोमि केवलि विचरंतां । जंगम ती थै उदारा ॥ तीर०॥५॥ संघ चतुर विध जंगम तीरथ । जिनशासन उ जीयारा । वरअनंत गुण नूषण जूषित । जिनकू नमत जिनसारा ॥ ती० ॥ ॥ ६॥ए तीरथ परनावना करीये । सुननावना आधारा । शिवकज जल विंशति तम पदकी । जानं प्रतिदिन बलिहारा । तीर० ॥ ७ ॥ ए तीरथ परजावना करतो। मेरुपनू अविकारा । पद जिनहरष लहीने तरीया । न बजय जलधि अपारा ॥८॥ तीर० ॥ ॥( काव्यं ) महा महा नंद पद प्रदाय । जगत्रयाधीश्वर वंदिताय । जिनश्रुतज्ञान पयोनदाय । नमोस्तु तीर्थाय शुनंददाय ॥९॥(नक्षी श्री तीर्थायनमः)॥ ॥ इति ॥ * ॥
॥ * ॥अथ बिंशति पद स्तुति ॥ * ॥ ॥ ॥ (गरबो) सुणिचतुर सुजाण परनारीसुं प्रीतमी० ( ए चाल ) 80000चितहरषधरी, अनुजवरंग, वीश परमपद बंदीये । शिव रमणि
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
वरी, केवल सखीय सहाय करी चिरनंदीयै ( ० ) एवीशचरण शरण शरणा । चिरसंचित पुरित तिमिर हरणा । नित चित एपद समरण धर णा | चि० ॥ १ ॥ एपद समरण जिण चितधरीया । तरीया तरसे तरै नवद रीया । सदनंत जविक सहु जयहरीया ॥ चि० ॥ २ ॥ एपद गुणसागर म नुहारा । वरणन तरणीयै बहुहारा । इंद्रादिक सुरन लह्यो पारा ॥ चि० ॥ ३ ॥ एपद अतिशय महिमाधारा । आश्रितपद कमला जरतारा । जिनचंद्रा नंद घनपद कारा ॥ चित० ॥ ४ ॥ जिनहरष सुरिंदके शिवकरणा । चंद्रामल गुण विंशति करणा । हुइज्यो प्रनुरजए अवधारणा ॥ चि० ॥ ५ ॥ * ॥ इति श्री समस्त विंशति पदस्तुति ॥ २१ ॥ # ॥
॥ * ॥ अथ कलश ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ एवीशथानक जुवननंदन अघ निकंदन जानीये । विबुधेंद्र चंद्र नरेंद्र वंदित पद जिनेंद्र बखानीयै । ए वीशपद जव जलधि तारन तर
गुन पहिचानीयै । इमजानि जविजन कुशलकारन वीश पद नर आनीयै ॥ १ ॥ इहवरस चंद्र दिनेंद्र हरिमुख विधि नयन बिति मिति धरू । तिह मासाद्रव धवल दल तिथि पंचमी रविवासरू । बंगाल ज नपद जिह विराजित शिखर तीरथ गिरीवरू । सहु नगर सोनित अजीम गंजपुर फुतीय वाजूचरपुरु ॥ २ ॥ खरतर गणेसर विजित सुरगुरु बिमल गुण गिरिमाधरा। गुणनवन जविजन नलिन कानन नित विकासन दिन करा मुनिचंद्र श्री जिनला सूरिंद सुगुरु महीयल युगवरा । सकलेंद्र वंद्य जिनें द्र शासन मंगना नित हितधरा ॥ ३ ॥ तसुपर नऊल शिखरि गणवर उदय गिरि वासरकरा । योगींद्र वृंद नरेंद्र वंदित चरण पंकज गणधरा । आचार पंच बत्तीस गुणधर सकल आगम सागरा | युगप्रवर श्री जिनचंद्रसूरी गु रु सकल सूरीसरा ॥४॥ तसुचरण कमलज युगलसेवन हनिशिमधुकरता धरी । वलि सुगुरुपद अरविंद युगनी कृपा नित चित आदरी | गणधार श्री जिनहरषसूरी हरष घरी घन अघहरी । या वीशपदकी विविधि पूजन वि तिणी रचनाकरी ॥ ५ ॥ इति श्री विंशति स्थानक स्तुतिमयःपूजा विधि ॥
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२० स्थानक आरती, नंदीश्वर पूजा. ६३५ ॥ॐ॥अथ वीशस्थानककी आरती लि०॥ * ॥
॥जीया चतुर सुजाण नवपदके गुन गायरे ( एचाल )॥ * ॥ पियाविंशतिथान मंगल आरती गायरे (आं०) सुमति प्रिया कहै चेतन पति को । निसुण वचन मननायरे॥ पि० ॥१॥ यदि निजगुण परणति तुमचहीये तिनको एह नपायरे।।पि०)॥आरहंत सिघ आचारिज पाठक । सा धु सकल समुदायरे ॥ पि०॥२॥ इत्यादिक विंशतिपद समरण । नवनय । हरण विधायरे ॥ पि०॥ एह आरती पुरति वारती । अनुपम सुरसुखदा यरे ॥ पि० ॥ ३॥ जैसें लगतै करत आरती । सकल मुरा सुर रायरे ॥ पि० ॥ तैसें वितुमे करन आरती । एपद गुण चितलायरे ॥ पि० ॥४॥ पंच प्रदीप से करय आरती । जेनित चित नलसायरे ॥ पि० ॥ तेलही पं च चिदा नंद घनता ॥ अचल अमर पद पायरे ॥ पि० ५॥ पंचप्रदीप अखंमित ज्योते । पुरमती तिमिर विलायरे॥पि०॥ एहआरती तुरत तारती। जवजल निपतत घायरे ॥ पि० ॥६॥ पद जिनहरषतणी एकरणी। मन हरणी कहिवायरे ॥ पिया०॥ चंद्र विमल शिव सिधि निधि धरणी। वरणी किणविध जायरे ॥ पि० ॥७॥ इति वीश थानक आरती संपूर्णम् ॥१॥
॥अथ स्नग्धरा बंद काव्य तीन ॥ ..॥ ॥ योजीमुतां जनोघां, जन गिरिसदृशां, काग्निकेतु प्रमुक्तो । दुर्वार स्फार पंको कट तर समर, वातता गम्परूपा । अव्याबाधा व्ययो द्यत् पर म पद दशां सदशां योविनर्त्त । योनित्यं दायिकाख्या दय विमल लसत्तै लपूर्ति दधानः ॥ १ ॥ स्वानादौ दामध्वामो बलद तुलकल प्रज्वल जात वेदो । ज्वाला माला कुलांगा जनित जव महा रण्य जातंक संगाः । यत्रा नेके पतंगाः कुमत मिमतयो जीजननष्टरंगा । नस्मी नावं स्वकीयं सकल जयहरः शंकर प्राणनाजां॥ २ ॥ प्रघस्तां नंतचंच किरण गणलस त्सप्त संतिप्रतापो । लोका लोकाव लोका स्खलित विमलतो दग्रजायत्प्रकाशः। त्रैलोक्या नंदन स्सप्रकृत कुशल नंदन श्चामरेंदै । श्रीवामानंदनोयं जगति विजयतां जैनचंद्रः प्रदीपः॥३॥ त्रिनिर्विशेषकं॥ * ॥इति॥॥ यह तीन काव्य आरती कियां पीजे दोनुं हाथ जोडके कहै ॥
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.. ॥ * ॥ अथ नंदीश्वरा ष्टमहीपांतर्गत हापंचाशजिनप्रासाद
शाश्वत जिनप्रतिमार्चन विधि लिख्यते॥॥. ॥७॥ ( दोधक )॥ * ॥ स्वस्तिश्री सुखकरण घन । विधनहरण जयकार । अश्वसेन नंदन चरण । शरण रुचिर नरधार ॥ १ ॥ जिनवाणी समरणकरी । सकल जीव सुखकार । कहिशुं नंदीश्वर जगत । पति पूजन विसतार ॥ २ ॥ ( ढाल )॥अखिलद्वीप सिरताज विराजै । अष्टमनंदी श्वर प्रीप गजै । बलयाकार जगत सुखकारी । निरुपम अतिशय गुण म णि धारी॥३॥ (नबालो )॥ मणिधारि वावन विमलगिरवर जैनमंदिर युतसदा । शुजनक्तिधर निर्जर पुरंदर निरखिपांमे संपदा । इककोटि शत त्रि ण सठिकोटिय चौरासिलख योजना । इण द्वीपनो चक्रवाल विष्वंन मान जाणो नोजना॥४॥(ढाल )॥णनीपै पूरब दक्षिण आसा। पश्चिम उत्तर दिश चन पासा । चक रंजनगिरि सुखमा धारी। चारणसुर विद्याधर चारी॥५॥(नखालो) धरचारि निज पुति जर विनिर्जित, सजल जलधर घनघटा । वलि चतुरशीति सहस्रयोजन तुंगता धरतास्फुटा । इणप्रवर अंजन शिखर शिखरे शाश्वता जिनमंदिरा । चनसंख्य सुंदर कनक कल शोपमधरा जग सुखकरा ॥ ६ ॥ ( ढाल ) ॥ इक इक अंजनगिरि चनपासा । चनुपुक्करिणी प्रकट प्रकासा । विस्तर इगलख योजनसारा । ता सुमांहि इक इक्क नदारा ॥ ७ ॥ (नवालो) इक इक नदारा सहस्र चन सठि योजनोन्नतता कुला । जिनराज मंदिर मंमिता सहु चंद्र किरण समु ज्वला । दधिमुख धरा धर दीर्घका प्रति विदिशि दोय दोय रतिकरा । दश सहस्र योजन न्नता धर नदय करुणा रुणवरा ॥ ८॥(ढाल)॥जिनम दिर युत रतिकर विमला । पूरबदिशि तेरस सहु अचला । एहरीतिपर त्रिणदिशि जांणो । इम वावन्न गिरेंद्र वखाणो॥ ९॥ (नलालो )॥इव खाण शतयोजन सुदीर्घा बहुत्तर योजन प्रमा । अतिनन्नता पंचासयोजन विस्तरा जिनगृहसमा । शतएक अष्टोत्तर प्रमाणा पंचशत धनुरुनता। इणरीति प्रतिप्रासाद प्रतिमा जाणीयें बिंबशाश्वता ॥१०॥
( दोधक) अषजानन चंद्रानना । वारिषेण ऋधमांन । एजागो शाश्वत
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मठाई महोचव श्री नंदीश्वर द्वीप पूजा.
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सकल | जिनमतिमा अभिधान ॥ ११ ॥ सुरगिरि सिखरै जिनतणो । जिन न्हवणोत्सव सार । करिकै नंदीश्वर जई। हरिगण विबुध नदार ॥ १२ ॥ अनुभव रसयुत नक्तिधर । हृदय सरोज मकार । इणपरि शाश्वत जिनतणी । करइ पूज अतिसार ॥ १३ ॥ पूरबदिशि अंजनगिरी | मंदिरगत जिनराज । अम विध पूजायें सदा । अरची जे हितकाज ॥ १४ ॥ प्रथम पूज जिनराजनी । विमलजले भरपूर | करिये न्हवण सदानवी । होइ सकल दुखदूर ॥ १५ ॥ ॥ * ॥ कुंदकिरण शशिकजलोरे देवा (ए चाल ) ॥ ॥ मिलिकरि - सकल सुरासुरारे वाला । निज सेवक सुरपासेंरे । कीरजलधि मागध थकी मेरे वाला | सिंधुनदी गंगासें रे ॥ १ ॥ बलि वरदाम सुतीर्थसेंरे वाला । वि मल सलिल प्रणावैरे । मणि कनकादि कलस जरीरे वाला । नषधि कुसुम मिलावेरे ॥ २ ॥ इंद्रादिक सहु सुरगणारे वाला । शाश्वत जिन न्हवरावे रे। विमल सलिल धाराकरी रे बाला । कुमति तापनें गमावै रे ॥ ३ ॥ इण परि जेनगते नवी रे वाला । न्हवणकरै जिनांगैरे । ते सुरवर सुख अनुभ बीरे वाला। लहै शिवपद मनरंगैरे ॥ ४ ॥ द्रव्यपूज करि सुरवरारे वाला । करs जिलिंद गुणगानारे । कुशल कुमुद विकसायबारे वाला । प्रभु शिव चंद्र समानारे ॥ ५ ॥ ( काव्य ) दुरितदाघ वना तप वारणं । सकल जाव वि काशन कारणं । जगति जव्य नवोदधि तारणं । जिनगणं स्त्रपयाम्य म लेऊ ॥ ६ ॥ ॐ जी श्री परमात्मनेभ्योऽनंतानंतज्ञानशक्तिभ्यः । प्रणत सकल सुरासुरेंद्र वितेंद्र वृंद विहितनक्तिभ्यः । कठिन कर्मशालमालोन्मूलनवा रणेभ्यो । जन्म मृत्यु निवारणकारणेभ्यो । नंदीश्वराष्टमीपगत । पूर्वाजनगिरी शिखरस्त | सिद्धायतन मंगनाय मानेभ्यः । श्रीरुषज्ञानन, चंद्रानन, वारिषेण बमाना, निधाना ष्टोत्तरैकशत शाश्वतजिनेंद्रेभ्यो । जलं ययामहे स्वाहा -इति प्रथम जलपूजा ॥ १ ॥ 11*11
॥
॥
॥ दोषक ॥ बर सुगंध द्रव्यें करी । तरहु सिंधु संसार ॥ १ से जरी पुप्फबादल करी (ए चाल ) ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ अथ द्वितीय चंदन
पूजा ॥ ॥
॥ द्वितीय पूज जिनराजकी । करहु भक्ति नरसार ।
( राग जीममल्हार ) मेघव क्तिधरि जवीयजन पूज महा
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
राजकुं । एह वरगंध द्रव्यै सदाई । विमल घनसार चंदन सरस मृगमदा । कुंकुमें कर विलेपन मुदाई ॥ १ ॥ नक्ति ॥ जेनवी सुरभितर गंध द्रव्ये - करी। सुरभि तनुकरे जिनराजकेरो । तेहनी चंद्रकर अमल यशवासना सुरजितम करइ सहुजग घणेरो ॥ २ ॥ नक्ति ॥ एमवर सुरभितर द्रव्य से सुखरा । रचकर जगतपति बिंबसारा । परम शुभभावना भावता । गावता । विशद जिनवरगुणा अति अपारा ॥ ३ ॥ ० ॥ सकल सुरगण मिली एमजपै मुदा । जोसुरा आज जिनराज रचो । विरति गुण रहि त निजजन्म सफलो कीयो । सुमति संयोग पुरमति विगूचो ॥ ४ ॥ ० ॥ प्रतीय इमपूज करतां हरइ जब्यनो । पाप घनताप आयें अपारा। सरग निरवाण पुरपंथ प्रकटीकरण । विशद शिवचंद्र करगण उदारा ॥ ५ ॥ ( काव्यं ) मृगमदो ज्ज्वल कुंकुम चंदने । श्विरतनांतर ताप निकंदनैः । जिन वरानव तामस जास्करान् । स्वहित कृद्विधयेच समर्चये ॥ ६ ॥ तँ ी श्री
परमात्मनेभ्यो ऽनंतानंत ज्ञानशक्तिभ्यः । कठिन कर्मशाल मालोन्मू जनवारणेभ्यो । जन्म जरा मृत्यु निवारण कारणेभ्यो । नंदीश्वरा टमीपगत पूर्वजनगिरि शिखरस्व । सिधायतन मंरुनाय मानेभ्यः । श्री रुषजानन चंद्रा नन, वारिषेण, वर्धमाना, निधानाष्टोत्तरे कशत शाश्वत जिनेंद्रेभ्यो | चंदनं ययामहे स्वाहा ॥ २ ॥ इति द्वितीय गंध पूजा ॥ २ ॥
॥ * ॥
॥ ॥ अथ तृतीय पुष्प पूजा ॥
॥ ॥ दोधक ॥ * ॥ तृतीयपूज जिनराजनी। विकसित प्रतिहि रसाल सुरभि कुसुमकरी विकजन । करीयै प्रक्ति विशाल । १ ( राग भैरवी ) पंचवरणी अंगीरची कुसुमजाती (ए चाल ) ॥ एह जिनकी पंकरणी जगती सारी । मिलकर हरिवर सकल सुरासुर । त्रिकरण इककरि हितकारी ॥ १ ॥ ( एहजिनकी ० ) अनुभव रसयुत चित्त क्तिधरि । पूरब पुण्य नदयभारी ॥ एह ॥ इविध कुसुम नक्ति जिनवरकी । करइ हरइ घन दुरितारी ॥ एह ॥ २ ॥ मालती नाग पुन्नाग केवमा । दमणक कुंद सुगंधि धारी ॥ एह० ॥ मरुक केतकी पद्म मोगरा । कुसम मालकार मनुहारी || एह० ॥ जिनवर कंठवे प्रगति । कुसुम पुंज धरि दुःखवारी || एह० ॥ इण विध पुष्प
॥
॥
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पाठक शिवचंदजी कृत नंदीश्वर पूजा. ६३९ भक्तिकरी नविजन । बरइ सकलजग शिरनारी ॥ ४ ॥ करिकै शुक्ल ध्या न पावकसें । जस्म विषम सम क्रम वारी ॥ एह० ॥ चिदानंद घन शिव चंद्रोपम । पामें अति गुण विस्तारी ॥ एह०॥ ( काव्यं ) नव दवानल ताप घनाघनं । कुशल चंदन नंदन काननं । विशद शारद चंद्र समाननं । जि नगणं कुसुमैश्च समर्चये ॥६॥ ॐक्षी श्री अर्की परमात्मनेभ्यो अनंता०॥ प्रणत० कठिन नंदीश्वरा० श्री षनानन, चंद्रानन, वारिषेण, वर्षमाना निधानाऽष्टोत्तरै कशत शाश्वत जिनेंद्रेभ्योपुष्पं यजामहेस्वाहा ॥ ॥॥ ॥ ॥ इति तृतीय पुष्पपूजा ॥३॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ ४ धूपपूजा ॥ (दोधक)॥जगनायक जिनचंदनी । एह चतुर्थी जांण । धूप पूज करीयें सदा। हरीयें कुमती अनाण ॥१॥ (राग मालवी गोमी)। सव अरतिमथन मुदारधूपं (ए चाल)॥ जग कुशलकारि अघालिहरणं । धूपपूज नदाररे । धूप अनलै कुगति सुखनर । फलद दहत अपाररे ॥१॥जग सरस चंदन अगर अंबर । मृगमदा घनसाररे । कुंदरुक्क वली सेल्हारस ।करी ये गंधवटि साररे॥२॥ जग० ॥ रतनमय वर धूप धाणो । धूपनृत कर धाररे मुर पुरंदर पूजकरतां । लहै लान अपाररे॥३॥ जग०॥धूप परिमल म हमहें जिम । तेम जुवन मझाररे । धूपपूजा ते नविकनो । गुणसुगंध विचाररे ॥४॥ जग० ॥ नवअंध कूप पतंग नवरत । धूप अरचन धाररे। कहत ग णि शिवचंद पाठक। पूज चनथी साररे ॥ जग०॥५॥ ( काव्यं ) नवसु मुस्तर वारधितारकं । विषयसौख्य विकार निवारकं । निरुपमोत्तर मंगलका रंक । जिनगणं घृत धूप करायजे ॥ ६ ॥ जी श्री अर्ह परमात्म० श्रीषनानन, चंद्रानन, वारिषेण, वर्धमाना, निधानाष्टोत्तरैकशत शाश्वत जिनेंद्रेभ्यो धूपंयजामहे स्वाहा ॥ ॥ इति चतुर्थी धूपपूजा ॥ ४ ॥४॥
॥ ॥अथ (५) दीपकपूजा॥॥ ॥ ॥ (दोधक)॥ ॥ दीपपूज इह पंचमी । करीये विविध प्रका २। दीपपूज करतो नविक । दीपै जगतमझार ॥१॥ ( राग कल्याण) तेरी पूजावणी तेरसमें (एचाल)॥मेरी लगीय प्रीति प्रनुचरणे २ ॥ निजगुण
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६४० रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. परणति करण करावण । सकल लोक सुखकरणे ॥ मेरी० ॥ १॥ गहिर सिंधु नव निपतीत तारण । तरण तराणि गुणधरणे ॥ मेरी० ॥अनंतरूप घर घरगति नयहर। परमज्योति अधिकरण ॥ २ ॥ मेरी ॥ करुणाधार विमलगुण आगर । निरुपम अशरण शरणें ॥ मेरी० ॥ ए जिनचरण दीप पूजनसें । अरचीजै पुखहरणे ॥ ३ ॥ मेरी० ॥ केवल विमल चिदानंद ल हीयै। दीपपूजके करणें ॥ मेरी०॥ रतनदीपसें करै आरती । हरषित जिन गुण वरणें ॥ ४॥ मेरी० ॥ ए प्रनुचरण सेव नवि जनकुं । अम्रित पद सुवितरणें ॥ मेरी० ॥ कुमति रजनी अग्यान तिमिरहर । वर शिवचंद्र मुकिर णें ॥ मेरी०॥५॥(काव्यं ) मदन सिंधुर सिंधुर वैरिणं । गुरुकषाय करे ए समीरणं । मदधरा धरता बल वैरिणं । जिनगणं प्रयजे सुप्रदीपकै ॥६॥
जी श्री अर्ज परमात्मने । प्रणत० । कठिन । नंदीश्वर० । श्री ऋषना नन, चंद्राननः वारिषेण, वर्षमाना, निधाना ऽष्टोत्तरैकशत शाश्वत जि नेंद्रेभ्यो। दीपं यजामहेस्वाहा ॥ ॥ इति पंचमी दीपपूजा ॥ ५॥
॥ ॐ ॥ अथ(६) अक्षत पूजा॥ॐ॥ ॥ ( दूहा)॥ठी अक्त अरचना । करियै धरि सुन्नन्नाव । बरि यै सिधिवधू परम । अक्षय सुखनोदाव ॥१॥ (राग सारंग.) हां होरे देवा बावन्नाचंदन घसि कुमकुमा (ए चाल ) ॥ हांहोरेवाला ॥ एजगदीशर हि तकरू । अलवेसर जिनमहाराज ए ( हांहोरेवाला ) अतिगहिरा जव जल धि तें। प्रनु तारण तरण जिहाजए ॥१॥ (हांहोरे० ) नीमकरम कुंजर घटा। नंजन मृगराज समानए ( हांहोरे०) नव्यकमल प्रतिबोधवा । ए प्रनु वासर महिरानए ॥२॥ (हांहोरे) रजतशालि तंऽलमयी । अक्त पूजन अग्रसारए ( हांहोरे०) ए पूजा जिनचंद्रनी। वांगित सुखनी दातारए ॥३॥ (हांहोरे) ठवण जिनंद दरशण अझै । अनुन्नव रस तरुनो कंदए। (हांहोरे० ) नाव जिणेसर दरशनो। कारण कह्यो सकल जिणंदए ॥४॥ हां ॥ए पाठक शिवचंद्रनें। जिनचरण शरण आधारए । हां ॥ प्रतिजव हुइज्यो एकही । ही अक्त पूजा सारए ॥ ५॥ ( काव्यं विजित में दर जूधर धीरतं । निहत सागर राज गंजीरतं । प्रजित पातक योष सुबीरतं
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अहाई महोचव श्री नंदीश्वर श्रीपपूजा. ६४१ जिनगणं प्रयजे क्षतपूजया॥६॥ शी श्री अंत परमात्मभ्योऽनता प्रणत। कठिनः । नंदीश्वरा० श्री शषनानन, चंद्रानन, बारिषेण, वर्धमाना निधानाऽष्टोत्तरैकशत शाश्वत जिनेंद्रेभ्यो ऽकृतं यजामहे स्वाहा ॥१॥ इति बही अदत पूजा ॥६॥ ॥ ॥ॐ॥ ॥॥
॥ ॥ अथ (७) नैवेद्य पूजा ॥ ॥ ( दूहा ) हिव पूजा नैवेद्यनी । सप्तम अतिह रशाल । करीयें जि नवरनी अचल । लहीयें मंगल माल ॥१॥ (राग) जिनगुणगानं श्रुत अमृतं (ए चाल)॥8॥ जिनवर दरसण वर अमृतं । एजिनदरसण अम्रित फ रसै। पामें अनुपम कांचनतं । तिणसें सुरपति अनुदरसण वरि । जगते गावै जिनचरितं०॥२॥ जिन०॥ मोदक घृत वर खऊक परमुख । वरनै वेद्य सरस धरितं । हरि गण गज प्रनु आगलि ढोवै । मणि मय कनक थाल जरितं ॥ जि० ॥३॥ जेनैवेद्य करी जिन पूजन । करइतेह जग मन हरितं । अतिही स्वाऽ सुर गति शिव पद सुख । तति नितसेवै न वि दुरितं ॥ ४॥ जिन०॥ विंशति पदमें एजिनपति पद । वर शिवचंद्र विम ल अनितं । इण पद सेवक नविजन केरो। संचित नूरि हरइ पुरितं ॥५॥ जिन ॥ (काव्यं.) अनंत विज्ञान मयस्वरूपं । समस्त लोक त्रय नूति नूपं । लसद्गुणौघा मृत चारु कूपं । यजेसु नैवेद्य चया जिनौचं ॥६॥न झी श्री अ परमात्मभ्यो० । प्रणतः । कठिन। नंदी। श्रीषनानन, चं द्रानन, वारिखेण, वर्षमाना, निधानाष्टोत्तरैक शत शाश्वत जिनेंद्रेभ्यो नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ इति सप्तमी नैवेद्य पूजा॥७॥ ॥॥ . ॥ॐ॥
॥ ॥अथ (८) फल पूजा॥8॥ ॥ ॥ (दूहा)॥जिन फल पूजा अष्टमी । कष्ट अनिष्ट विदार । करीयें सुननावें सदा । जरीय पुण्यनंमार ॥१॥ (राग धन्या सिरी) तेज तरणि मुखराज (ए चाल)॥सुरनायक जशगावै । जिनजीको सुर० (प्रांकणी ) निरमल मन वच काय करणतें । ललि २ सीस नमावै । सुर अवतार सफल भयो मेरो। जिन पूजन सुपसावै ॥ १ ॥ जिनजीको सुर० नयन चकोर चंद्र समज्योती । संचित पुरित पुलावै । निरखि निरखि मन
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६४२
रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
मोहन मूरति । आनंद अंग न मावै ॥ २ ॥ जिनजीको० ॥ नालिकेर ना रंगी कवला । केला आम्र प्रणावै । पुंगीफल दामिम परमुख फल । जि नवर चरण चढावै ॥ ३ ॥ जिन० ॥ जेनवि फल पूजा जिनवरकी । करे करावे जावै । अनुमोदे तेपरम चिदानंद । घन अम्रित फलपावै ॥ जिन० ॥ ४ ॥ वरसढार बिहोत्तर जेठे । प्रतिपद सुकल सुहावे । चंद्र सुनु वासर जयनगरै । खरतरगच्छ जगचावै ॥ जि० ॥ ५ ॥ श्रीजिन हर्षसू रि सूरीसर | विजयमान वडदावे । रूपचंद्र गणि पाठक पारिंद्र । वादींद्र विरुद धरावै ॥ जिनजी० ॥ ६ ॥ तासुशीश वाचक पुण्यशील शिष्य । स मय सुंदर कहिरावै । तासुशीश पाठक शिव चंदें । पूजरची मनुनावै ॥ ७ ॥ जिनजी० ॥ जेनंदीश्वर शास्वत जिनकी । वसुविध पूज रचावै । ते जन सकल लोकके ईश्वर । तीर्थकर पद पावै ॥ ८ ॥ जिन० ॥ ( कलश ) सुर पति सुरासुर, वृंद वंदित, चरण पंकज मघहरं । समीप नंदीश्वर जिनालय, परमतर सुखमाकरं । प्रतविशद हिमकर चंद्रिकामल निखिलगुण मणि सागरं । जिनराज गण मह मर्चेये वर फलचयैः करुणाकरं ॥ ९ ॥ तँ जी श्री परमात्मभ्यो । प्रणत० । कठिन० । नंदी० । श्री रुपनानन, चं द्रानन, वारिषेण, वर्धमाना निधानाष्टोत्तरकैशत शाश्वत जिनेंद्रेभ्यो फलं यजा महे स्वाहा ॥ # ॥ इत्यष्टमी फल पूजा ॥ ८ ॥ ॥
॥ * ॥ अथ दूहा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ पूरबदिशि अंजन गिरी । मंदिरगत जिनराज । प्रविध पूजा सदा । चीजै हितकाज ॥ १ ॥ पूरब प्रमुख चिहुंदिश । करणी निराम। दधिमुख चनमंदिर जिना । अरचीजै शुभकाम ॥ २ ॥ ईशानादिक विदिशि गत । वसु रतिकर गिरिराज | मंदिरगत जिनराजकी । रची पूजसमाज || ३ || दक्षिण दिशिअंजनगिरी । मंदिरगत महाराज | वसुविध पूजायै सदा । पूजीजै हित काज ॥ ४ ॥ दक्षिण अंजन शैलने ! चदिशि दधिमुख सार । चनमंदिर जिनरायकी । करीयै पूजनदार || ॥ ५ ॥ दक्षिण ईशानादिकै । विदिशें प्रति उदार । म रतिकर गिरिवर जिना । पूजो विविध प्रकार ॥ ६ ॥ पश्चिमदिशि अंजन गिरी ।
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नंदीश्वर लघु पूजा तथा प्रारती.
६४३
मंदिर जिन महाराज | वसुविध पूजायें सदा । पूजो जविक समाज ॥ ७ ॥ पश्चिम अंजन शैलनें । चनदिशि दधिमुखधार । चन मंदिर जगनाथकी। पूजकरो सुखकार ॥ ८ ॥ पश्चिम ईशानादिकै । विदिशे जग हितकार । म रतिकर गिरि जिन प्रतें । रचुं जगदाधार ॥ ९ ॥ उत्त रदिशि अंजनगिरी | मंदिर गत जगराय । अष्टविधान नविक । अर चो जीन सुखदाय ॥ १० ॥ उत्तर अंजन शैलनें । चन दिशि दधिमुख । नाम । चन मंदिर तीर्थेशनें । अरचो शुभपरिणाम ॥ ११ ॥ उत्तर ईशाना दिकै। विदिशै रुचिराकार । वसु रतिकर गिरि जगप्रभू । पूजो अरति विदार ॥ १२ ॥ सकल संघ वलि जेठमल । कोठारी चितचंग । इनके प्राग्रह सें करी । एहपूज मन रंग ॥ १३ ॥ इति नंदीश्वरप्रीपकी पूजा सं० ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ नंदीश्वर लघु प्रष्टप्रकारी पूजा ॥ ॥ ॥ * ॥ स्वर्वासिवासे सुतरां प्रकाशे । नंदीश्वरे द्वीप वरेष्टमेहम् । सुगंधि तीर्थामि जलैः सुनक्तए । जिनेश्वराणां स्त्रपयामि मूर्त्तीः ॥ १ ॥ ॐ शी श्री नंदीश्वरे । अष्टम द्वीपे । श्रीमत्शाश्वत जिनेश्वरेभ्यो । जलं० ॥ * ॥ स्वर्वासिवासे सुतरां प्रकाशे । नंदीश्वरे द्वीपवरेष्ट मेहम् । कर्पूर से चंदन कुंकु मैश्च । समर्च ये श्रीजिनराज मूर्त्तीः ॥ २ ॥ * ॥ स्वर्वासिवा०| नंदी ० | विकास नाक शुसुगंधि पुष्पैः । समर्चये श्रीजिनराज मूर्तीः ॥ ३॥ ॥स्वर्वासिवा से० नंदी० | तुरुक्क कृष्णा गुरु मुख्यधूपं । मुदा प्रयच्चामि जिनेश्वरेभ्यः ॥ ४ ॥ ॥॥स्वर्वासिवा०। नंदी०। सुनिर्मलाज्येन नृतैः प्रदीपैः । कुर्वे प्रमोदा नि राज पूजाम् ॥ ५ ॥ ॥ स्वर्वासि० । नंदी० । स्वयं पुरस्ता किन पुंगवानां । सदतौघा नुप ढौकयामि ॥ ६ ॥ ॥ स्वर्वासि० | नंदी स्वयं पुरस्ता० । नैवेद्य जातान्युप ढोकयामि ॥ ७ ॥ * ॥ स्वर्वासि० । नंदी० । स्वयंपुर० । फलानि चाग्रयायुप ढौकयामि ॥ ८ ॥ ॥ इत्थं जिनानां प्रविधाय पूजां । सद्रव्यतो नाव विशुविभाजः । व्यांगिनो नुक्रमतो लनंते । स्वर्गच मोक्षं विरहाद्भवस्प ॥ ९ ॥ इत्यष्टप्रकार पूजाष्टकम् ॥ ॥
॥ ॐ ॥
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ * ॥ अथ श्रीनंदीश्वराष्टमे द्वीपे हापंचाशऊिनालय
पूजा विधिः॥४॥ ॥ ॥तहां पहला पूर्वदिशिमें चौमुख पूजा॥8॥ ॥ ॥ पूर्व दिशिके बीचमें अंजन गिरीके चौमुख आगे । अष्टद्रव्य ना लेर पनि थापना लेकर खमा रहै ॥ नमोर्हत् सिधा ॥ शिखरणी बंद ॥ दि शी श्रीपूर्वस्यां सुरवर युतै देवरमणैः । स्फरत् तुंगे शृंगे जलदसदृशै कमाल गिरौ ॥ जगत्पूज्ये सिघायतन नदिते चूमि विदिते । नमो नंदीग्रीपे रुपन जिननाथादि विनवैः॥१॥शी श्री अर्हपरमात्मने अनंतानंत ज्ञानशक्त ये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीरुषजानन चंद्रानन वारिषेण वर्धमाननामा नो एकशत चतुर्विंशति अधिक शाश्वत जिननाथाय जलं चंदनं पुष्पं धूपं । दीपं अक्तं नैवेद्यं फलं ॥ यजामहे स्वाहा ॥ इति प्रथम पूजा॥१॥ ॥ ॥दधिमुखपर्वतपूर्वदिशिमें(पूर्ववत)द्रव्यलेकेखडारहै।*॥
॥शिखरणी बंद ॥ ततः प्राच्यां वापी विमलसलिला देव रमणा। दनंद्या नंद्याकाजल जललिता तोरणभृता। तत्संगाधिस्थे दधिमुख गिरौ चैत्य निलये। नमस्तत्र श्रीमदृषनजिननाथादि विनवे ॥१॥नक्षी श्री अहँपरमा० अष्टद्रव्यंयजा ॥२॥
॥ॐ॥ दधिमुखपर्वत दक्षिणदिशिमें । शिखरणी बंद ॥ तदैतादेरम्या च लद नल सत्तोय निवहा । शुना मोघाप्राच्यां भ्रमर निकरैर्नकृतितरातत्सं गाधिस्थेदधिमुखगिरौ चैत्य निलये। नमस्तत्र श्रीमदृषनजिननाथादि विनवे ॥१॥नशी श्री पर० अष्टद्रव्यंयजामहे स्वाहा ॥ इति ॥३॥ ॥2॥
॥ ॥ पश्चिम दिशि दधिमुखपर्वतमें ॥ शिखरणी बंद ॥ प्रतीच्या माशा यां तदधि गिरितौ मंजुलधरा । सुवापीगोस्तूपा सुर सरदिवा मांति सततं । तत्संगाधिस्थे दधिमुखगिरौ चैत्यनिलये। नम स्तत्रश्री मवृषनजिननाथा .. दिविनवे ॥ १॥न जी श्री अहं० अष्टद्रव्यंय० स्वाहा ॥४॥ ॥8॥
॥ ॥ नत्तरदिशिमें दधिमुख पर्वतपर ॥ शिखरणी बंद ॥ नदीच्यां सो पाना वतर दमरस्त्री व्रजवदा । सुदर्शायानांता तदचलवरा त्युष्करणिकाति
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नंदीश्वर मंगल ५२ चैत्य पूजा.. . ६४५ समाधिस्थे दधिमुख गिरौं चैत्यनिलये । नमस्तत्र श्रीमवृषन जिननाथादि विनवे ॥१॥झी श्री अर्ह० अष्टद्रव्यं यः स्वाहाः॥५॥ ॥॥
*॥ ईसानकूणमें रतिकर पर्वतपर ॥ वसंततिलकाबंद ॥ वाप्पंतरे र तिकरः प्रथितावदातः। ईशानगो गिरिवरो मगनाश्रितश्च॥ तत्रस्थ चैत्य ऋष जादि जिनेश्वराणां । वंदे मुदाविशद बिंब मुदारवृत्त्या॥१॥नजी श्री अ० अष्टद्रव्यंय० स्वाहा ॥६॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥
॥॥॥ ईशानकूणमें दूसरा रतिकरपर्वतपर ॥ काव्यं ॥ तादृक्वरो रति करोपि तथा द्वितीयः। शैल स्सहोदरइव प्रचकास्ति यत्र । तत्रस्थ चैत्य पन्ना दि जिनेश्वराणां। वंदे मुदा विशदबिंब मुदारवृत्त्यानझी श्री अर्ह० अष्ट द्रव्यंय० ॥७॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अग्नि कूणमें प्रथम रतिकरपर्वतपर ॥ काव्यं ॥ अग्न्याश्रितो रति करो रति मूर्तिरूपः । स्वर्गीगणो वसुमतीव तथैव तस्य । तस्मिन् जिनालय वरेजगदीश्वराणां । रूपं ततोस्मि नरजन्म फलानिलाषो॥१॥जी श्रीऽर्ह० अष्टद्रव्यं० य० इति ॥८॥४॥
॥ अग्निकूणमें दूसरा रतिकर पर्वतपर॥काव्यं॥तत्रैव तत्समधरस्समपंक्ति तोभ्यो।गोत्रोत्तमोरतिकरोनरदेवकाम्य।तस्मिन्जिना रूपंततो नशी०॥९॥ ॥२॥ नैश्तकूणमें रतिकर पर्वतपर ॥काव्यं ॥ नैरुत्यगौ रतिकर स्सुरशैल कीर्तिः॥ विस्फूर्तिमूर्ति विजितः शुशुने सदैव ॥ तत्रस्थ जैननुवने जुवनो त्तमत्वे । संस्तोमि साधुरुषनादि प्रनुं सदानं ॥ १ ॥ शी श्री ऽर्ह अष्ट द्रव्यंय० ॥१०॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ ॥ * ॥ नैश्तकूणमें दूसरे रतिकर पर्वतपर ॥ काव्यं ॥ तस्यैव पार्श्वप रिवर्ति नगाधिराज॥ स्ततुल्यगो रतिकरो युतिनृदिगंतः । तत्रस्थजैन०॥ संस्तोमि० ॥नशी श्री अर्ह । अष्टद्रव्यंय० स्वाहा ॥११॥ ॥ॐ॥ .॥ॐ ॥ वायव्यकूणमें पहिले पर्वत रतिकरपर ॥ काव्यं ॥ गीर्वाण वर्गग तिदः शुनदो जनानां । वायव्यगो रतिकरः कुधर स्तथैव । तत्रापि पारगत मंदिरबिंब वृंदं । नित्यं नमामि वृषनादि जगत्पनूणां ॥१॥शी श्री ई० स्वाहा ॥१२॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
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रतसागर
रत्नसागर,श्रीजिन पूजा संग्रह. ॥ वायव्यकूणमें दूसरे रतिकरपर्वतपर ॥ काव्यं ॥ ततसदृशो रति करः सुख चारुभूमिः । पद्मानुराग इतरः कलकेलि सद्म । तत्रापिपारग० । नित्यं नमामि०॥झी श्रीऽहै । अष्टद्रव्यं यजा० ॥१३॥ ॥ ॥
॥ॐ ॥ दक्षिणदिशिमें अंजनगिरि पर्वतपर ॥ काव्यं ॥ इंद्रवज्राचंद ॥ योदक्षिणस्यां दिशिनातिनित्यं । योतांजनादीरमणीय ताद्रः । तस्योपरस्थे जिनराज चैत्ये। नौमि स्वयंजू रुषलादिजातं॥१॥न जी श्री अर्ह०॥१४॥
॥ॐ॥ पूर्वदिशि पुष्करणी दधिमुख पर्वतपर ॥ काव्यं ॥ तत्पर्वता त्याक दिशि राजमाना । नंदोत्तरा पुष्करणी प्रधाना । दद्याननादैः तदगाधतोये। चंद्राननाद्यं प्रणमामिसद्यः॥१॥नक्षी अहं स्वाहा ॥१५॥ ॥ॐ॥
॥ * ॥ दक्षिणदिशिमें अंजनगिरिदधिमुखपर्वतपर ॥ काव्यं ॥ नि त्योद्योता दंजना इक्विणस्यां । नंदावापी सार्वनाम तदंतः॥ दध्यास्याद्रौ चंद नाद्यै नजामि॥प्राशादै श्रीवर्धमानादि सावं ॥१॥ नक्षी श्रीऽहं ॥१६॥
॥ॐ॥ पश्चिमदिशि दधिमुखपर्वतपर ॥ काव्य।तस्यैवाद्रेः पश्चिमायां सु नंदा । तस्यामध्ये श्रीदधिस्यान्न गेंः । तस्मिन्चैत्यै श्रीजिनाधीश जालं। नामनामं नमामि प्रकामं ॥१॥ न जी श्रीऽहै स्वाहा ॥१७॥ ॥
* ॥ नत्तरदिशि वाप्यां दधिमुखे ॥ काव्यं ॥ नदीचीना दीर्घिका नं दिवर्द्ध नीसान्वर्था तन्नगा तत्रसंस्थे। जैनावासै बारिषेणादिबिंब । मत्वानाथे मुक्तिसौख्यंनितांत॥१॥ जी श्री॥अहंपरमात्म० अष्टद्रव्यं यः स्वाहा ॥१८॥
॥ * ॥ इशानकूणे प्रथमरतिकरविषे चैत्य० ॥ काव्यं ॥रतिकरोस्ति जि नालय माश्रितो। विदिशि भैरव दैवत एतयोः । तदचलै रुषनादिजिनेश्वर समनुनम्य ररामितदंतिके॥१॥नक्षी श्री ऽहं स्वाहा ॥१९॥ ॥ॐ॥
॥॥ ईशानकूणे द्वितीयरतिकरपर्वते ॥ काव्यं ॥ द्रुतबिलंबितबंद ॥ तदपरोपि तथैव तदन्वितो। जिननिकेतन केतु सुमंमितः।तदचले षनादि जिनेश्वरं । समनुनम्य ररामित दंतिके ॥ नक्षी श्री परमात्मा० स्वाहा ॥२०॥
॥ ॥ अग्निकूणे रतिकरपर्वतें ॥काव्यं ॥ द्रुतबिलंबितबंद ॥ रतिकरो जिनराज गृहांकितौ । लसतिवन्हि बिदिगू वितिनूषितः । तदपरस्तदगे रूषनादिकं । नमत नाथ मनाथ सनाथकं ॥१॥नशी श्री परमात्म० ॥२१॥
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नंदीश्वर बावनचैत्य पूजा.
६४७ ॥ ॥ अग्निकूणेंदूजे रतिकरपर्वतें ॥काव्यं तदपरापरगो नग नायको। रतिकर स्तदितै जिनमंदिरै ।नति तति प्रतिरोह तुमामकी । लसदनं त गु णाकरते प्रनो ॥१॥नक्षी श्री परमा० स्वाहा ॥ २२॥ ॥४॥
॥ * ॥ नैतिकूणे प्रथमरतिकरें ॥ काव्यं ॥ द्रुतबिलंबितबंदः ॥ विदिशि नैतिगे जिनपालये । रतिकरे षनादि स्वयंनुवं । सुमनसा सुमनोनि रितोजनात् । यजत नव्यजना अतिनावतः॥१॥नक्षी श्रीऽहै.॥२३॥
॥ ॥ नैरतें दूजै रतिकरैं ॥ काव्यं ॥ द्रुतविलंबितबंद ॥ तदितरः सम सीम धरा धरो। रतिकरो विनवेश्म बिनर्तियः। तदचले जिनराज जगद्गुरु सतत नौमि मुदा रुषनादिकं ॥१॥नक्षी श्री परमा० स्वाहा ॥ २४॥ॐ॥
* ॥ वायव्यकूणें प्रथमरतिकरै ॥ काव्यं ॥ द्रुतबिलंबितबंद ॥ अनिल देव विदिग्धरणीधरो। रतिकरों जनतोस्ति तदिद्रगे॥ नवतुमे झषनादि ज गत्पतौ। सतविधानमनंत मनंतशः॥१॥ नक्षी श्री० ॥२५॥ ॥१॥
॥ॐ॥वायव्ये दूजे रतिकरें॥ काव्यं ॥ द्रुतबिलंबितबंद ॥ रतिकरोपि तदन्यतरस्तथा। शिरसितस्य जिनायतने यथा। दधतुमे जिनपुंगवचंदना ॥ विधिवदंग जव त्यदपंकजै॥१॥ न झी श्री ह ॥ २६॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ पश्चिम दिशि अंजनगिरि विष चैत्यपूजाः॥काव्यं ॥ नंदीश्वरे नंदित पश्चिमायां । स्वयंप्रनः सुप्रन यांजनाद्रिः। तीन सझे गतनीतिउने । जामिनक्त्या वृषनादिदं ॥१॥नक्षी श्री० ॥ २७॥ ॥॥
पश्चिमदिशि अंजनगिरिमें पूर्वदिशि दधिमुखपर्वतें चैत्यगृहाण ८ वस्तुलेईपढे ॥ काव्यं ॥ हिरणीबंद ॥.दधिमुखगिरि नंद्रा वाप्यां रराजत दंजना। दधिनिचैत्ये पौरस्त्याया सुरासुर सेवितः। जिनपतिगृह तस्मिन्जूधौ जिनं पनादिकं ॥ नमनविषयी कृत्यास्वादं सुधारस जं खन्ने ॥१॥न जी. श्रीऽर्हः ॥२८॥
॥ * ॥ दक्षिणदिशि दधिमुखरेविषे चैत्यचौमुखाण अष्टप्रकारपूजा ॥ ॥ काव्यं ॥ हिरणीउँद॥ कलजलविशालायांवाप्यांतदेवनगांजनात् । दिनकर करा घो घौ पाच्यां दधीतमुखा चलः । तदचलवरे देवावासे प्रनोचरणां बुजे । परमशरणं प्राप्यानंतं मुदं लनितोस्मिते ॥१॥नझी श्रीऽह० ॥२९॥
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६४८ . रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
॥ ॥ पश्चिम दिशि दधिमुख चैत्यः॥ काव्यं ॥ हिरणीचंद ॥ कमकु मुदा वाप्यांतस्मा बिलोचयतो जनात् वरुणककुनिः श्रीदध्यास्य स्तदङ परि स्थिते । जिनपवसतौ श्रीम.ना कृतिं विधिवदनृशं । प्रणति तति निर्नवा नाथे स्वकीयसुखास्पदं ॥१॥नजी श्री ऽहं ० ॥३०॥ ॥ ॥
॥ ॥ नत्तरदिशि दधिमुखचैत्यागे अष्टप्रकार पूजा ॥काव्यं ॥हिर णीबंद ॥ जलधिसदृशां पुंडरियाद्याकिणीकिलदीर्घिका। दधिमुखनगःकौवैरी या तदंतरतौंजनात् । तऽपरिगतेऽर्हत प्रासादे जिनेंद्रकदंबकं । तलित उरितो जातो जातु प्रणम्य प्रनोः पुरः॥१॥नझी श्री ऽह० ॥ ३१॥ ॥ॐ॥
नत्तरदिशि अंजनगिरिविर्षे अष्टप्रकार पूजा॥ काव्यं ॥ हिरणीबंद ।। जलधिसदृशा पुंडरियाद्या किणीकिल दीर्घिका।दधिमुखनगःकौवैरीया तदंत रतौ जनात् । तपारंगते ऽहत्प्रासादे जिनेंद्र कदंबकं । तलितरितौ जातो जातु प्रणम्यप्रनोः पुरः॥१॥नक्षी श्री ऽह० ॥३२॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ पश्चिम दिशि अंजनगिरितः दिपिकावापिके ईशान कूणमें प्र थम रतिकरैचैत्य ॥ काव्यं ॥ दीर्घिकयो रंतराल ईशांनग रतिकर नाम । तत्र विचित्र चरित्र जिनेश्वरध्यान। तपृहीत साधतसद्मिनि श्रीरुषनादि राजान । मंतर्गत तिमत्यां वंदन सद्भान ॥१॥नशी श्री ऽहं० ॥३३॥
॥ * ॥ पश्चिम दिशि अंजनगिरितः दीर्घिकावापीके ईशानकूणमें निति यरतिकरपर्वते जिनालयानें ऽष्टप्रकारद्रव्यलेईऊनार है ॥ काव्यं ॥ तेनैव रीत्या रतिकर इतर स्तस्य समेन । शोन्नति सोन्नत यशसासोयं सोश्च गुणन। तदूगृहीत साधित सद्मनि श्रीषनादिराजान । मंतर्गत तिमत्यां वंदे ॥१॥ शी श्री ऽहं० स्वाहा ॥३३॥॥
॥ ॥ हिवे ऽग्निकूणकेविषे दोयरतिकरहै तिसमें पहिले रतिकरें। काव्यं ॥ धन्यतम स्त्वं रतिकरगिरवर रत्नसमान । विदिशि कृशानौ मनमितानां पुण्य प्रधान । श्रीषनानन प्रति प्रजूणामूर्धस्थितेन । सिरासिटतःश्रीसिघायतने त्वयिकायेन ॥१॥न जी श्री ऽहं० ॥३४ ॥॥
॥ ॥ अग्नि कूणे दूसरा रतिकर चैत्य आगै॥ काव्यं ॥ समणि स्थित विस्तृत पर्वत इतर स्त्वमेव । रतिकर रुचिर प्रन्ना खर जिनवर सद्म त
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नंदीश्वर बावनचैत्य पूजा.
६४९ देव । शक्त्या त्रिकरण नक्त्या नम्यां नंदत एव । त्वामेव ददतु महोदय मेव श्री देवाधिदेव ॥१॥नशी श्रीऽहं० ॥३५॥ ॥ ॥ ॥
|| नश्तकूण प्रथम रतिकर पर्वत चैत्य आगे ८ प्रकारे पूजाकाव्यं॥ अवनय त्रायक शिव सुख दायक पनादि देव। त्वप्रिंबावलिमालित्य चैत्य विराजित एव । जातौ नैरुत बिदिश जग द्रतिकर कारक ईश । रति कर नत श्रयितो स्मि त्वा महमेवमुनीश ॥१॥नक्षी श्री ऽहं० ॥३६॥ ॥१॥
॥ ॥ नैऋत्यकूणे २ रतिकरे पूजा ॥ काव्यं ॥ अपरे रतिकर ऊपरि न नोचर चर्चित चैत्य । चंचुमुदं चचराचर केतु मुदार मुपेत्यं । श्री शषनादि पदोत्पल उज्वल अकल कृपेश । चेतो मधुकर नपरम तिस्म मे मुक्तिरमेश ॥१॥ झी श्रीऽहं श्री परमात्म०॥३७॥ ॥
॥ ॥ -- ॥ ॥ काव्य कहै ॥ समराधीश विदिशित्वदाश्रयतो रतिकारः । नदया चलति धरातल उत्तम जिनपविहार ॥ तत्र चतुर्विध शुधसुधा निधि बिवुध विवंद्य। श्रीषनादि प्रनुं प्रणमामि यशोजर नंद्यानझी श्री परमात्म०३८।
॥ ॥ अन्यतरे रतिकर गिरि शिषरे प्रवर प्रासाद । नद्यत चातुर्मार न दार अपार अनादि। चातुर्गत नव भ्रांति निवारक अभिनव जान । श्री रुष जादि जिनाय नमो नमो नानु समान ॥१॥नशी श्री ऽहं ॥३९॥ * ॥
नत्तरस्यां अंजन गिरि चैत्ये ॥ काव्यं ॥ चतुर शीति सहस्र योजन समुहिते सांजन गिरि । मूलतो दश सहस्र योजन विस्तृतः शिरसोपरि। एक सहस्र योजन नदीचीनौ रम्य श्री रमणायकः । स्तूयते तत्र सदैवमनका सार्व श्री ऋषनादिकः॥१॥नक्षी श्री ऽहं० ॥४०॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ काव्यं ॥ ततोजनतोलन योजनगते विजया सुनृता । प्राच्या सुवापि सत योजन लामायत विसृता। अति कांत दधिमुख गिरि स्तस्यां अंबु मध्य गतोमता। स्तउपरि प्रनु श्री ऋषन प्रनुत सनमामि प्रमोदतः॥१॥ ज्ञी श्री परमात्म० ॥४१॥ ॥
॥ ॥ ॥काव्यं ॥ परिपूर्ण पथोवैजयंति दाक्षिणात्या तदगिरे। विपुल गगनोत्कर्ष दधिमुख पर्वत स्तदभ्यंतरे। तस्य शिषरे धर्मनिकरे विशदतर जिनमंदिरे। गतऽर्मतोहंजिन नमन पि पुण्ययुलस दीदिरे॥१॥४२॥ * ॥ ॥ॐ॥
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. .. ॥काव्यं ॥ जलधि जयनि प्रतिचीनाजयंती वापीततः। तन्मध्य दधिमुख जूनृऽच्चै त स्तथै वात्र समासतः जिनराज नुवनं शर्म सदनं कर्म शत्रु निकंदन। शेषनादिपत्कज पुनीतंमे नवतुनूयो वंदनं ॥१॥जी श्री ऽहं ॥४३॥
॥ * ॥ काव्यं ॥ अपराजितां नूराजितांजन पर्वता उत्तरजूवि । निर्म त्स्यकलकल्लोलकलिता द्योतयंती जुवोनुवि । नगमुख्य दधिमुख नदगमध्ये तपरि चैत्यालयै । षनादि बोधिदमयिकरोवि बोधिलान गुणाशये ॥१॥ अशी श्री हं० ॥४४॥ ॥ ॥
॥ (काव्यं ) रमणीयकांजन रसाधरतो रतिकरो धरणी धव । ईशा ननूमौ तस्यमोलौ विश्वपति गृहपुंगवः । तत्र तादृश तदाकारं ऋषना नृति कृपानिधिः। संस्मर्यचेतसि नमनलानं लने देव दयानिधिः ॥ १ ॥ नशी श्री ह ॥४५॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥१॥
॥ ॥ (काव्यं ) तत्साम्य प्रितीयो चला प्रितीये रतिकर युती मती सदा । सकल मंगलमाल दातरि दीनबंधु गृहे मुदा।ऋषनादि दीनानाथ सेवे प्रतिदिनत्वा प्रतिततः । तत्र जवनय पुःखनिकरा न्मुच्यतां मां प्रति यतः ॥१॥ झी श्री १०॥४६॥ ॥ ॥ ॥ ॥१॥
॥ ॥ काव्य। वहुल विदिशि विनतिसोयं रतिविनुवर गृहं । विश्वनूषण मखिलदूषण पुष्टधर्मति निर्गृहं । सद्भाव नावित नव्यनविजन व्यनीत रवी श्रमः । ऋषनादि पुरुषोत्तम पुनीतं जयंतु योहि नगोत्तमः ॥ १ ॥ नक्षी श्री ह० ॥ ४७ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ काव्यं ॥अपर नूधर रूप सुंदर रतिकरे नत सुरनरे । विश्वेशविश द विहारधारे रत्नमय आनंदकरे । नाथ करुणाकर कृपालो श्रीश ऋषनादि प्रनो । त्वच्चरणसेवा सरण करणं दिशतु मांप्रतिहे विनो ॥ १ ॥ नक्षी श्रीह० ॥४८॥*॥ ॥ ॥ ॥ ॥ - ॥ ॥
॥ ॥ काव्यं ॥ हे नविजन नैति विदिशि । नगेंड रतिकरोपरि जि नालये । नविजन रुषनप्रति जिन । चंद्रमनिनौमि विशदाशये। ॥१॥ नक्षी श्री ई० ॥४९॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ काव्यं ॥ हेरतिकर धन्यतमोऽसि । तदन्य आप्त निकेतन शोनित
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नंदीश्वर पूजा, आरती.
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तारक चेतो रमतु त्वदंत । उत्तम मे विभवोन्वितः ॥ ॐ श्री श्री ० ॥५०॥ ॥ काव्यं ॥ हेनविजन वायुविदिशि रतिकार। सानुनि जिन सद्मनि ततः जीवन श्रीषादि स्वरूप । मनुभव तपस्यतु यतः ॥ ॐ श्री श्री० ॥ ५१ ॥ ॥ * ॥ काव्यं ॥ हेनविजन तत्सम रतिकरनाम । तत्रैवास्ति गुणोत्करः ॥ हे जिनपति चैत्यालय ऋषनादिदेव । ममैधी श्री सुखकरः ॥ १ ॥ ी श्री ० ॥ ५२ ॥ ॥
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॥ कलश ॥ युगवराः श्रीकरा दुःखकश्मलहरा नृरिसूरीश्वराः सुचितराए । धर्मरुचिकारका नवसमुद्रतारका धीर्य गांभीर्य गुणसागराए || दीपनंदीश्वरे, पंचप्रिजिनगृहे, शषनप्रमुखाः सतां बंधुराए। जैनचंद्राः सदा, त्रिभुवने सु कृतिनो, जयतु मद मान वन सिंधुराए ॥ ५३ ॥ इति श्रीनंदीश्वर मंगल ५२ चैत्यपूजनविधिः ॥ ॥ 1111
॥*॥
॥ * ॥ अथ नंदीश्वरद्वीपतपस्याविधिः ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ प्रथम दीवालीसें तपश्या अंगीकारकरे ॥ प्रतिक्रमणादि पूजा देववंदन पर्यंत सर्वकृत्यकरकै गुणनो करै ॥ यथा ॥
॥ * ॥
॥ ॥ श्रीरुषनादि वर्धमानांताशास्वता जिन सर्वज्ञायनमः ॥ इसको २००० गुणनोकरै । तपकरे । पीछे बारे मास अमावसको अमावस १२ नृपवास करे । फेर दूसरी दीवाली आवे जब तेलोकरे । नंदीश्वर ५२ जिना लयकी थापना करके जूदा २ काव्य पूजापढके || जल चंदनादि अष्टप्रकार सें पूजाकरे । सब फल धजा दीपक बावन चैत्ये चढावै ॥ इसीतरे उद्यापन सा हमी वलकरे ॥ इति ॥ ॥ 1111
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॥ * ॥
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॥ ॥ अथ नंदीश्वर दीपकी भारती लि० ॥ ॥ * ॥ जीया चतुर सुजाण । नवपदके गुण गायरे ॥ (ए चाल ) ॥ * ॥ जीया अष्टपद्वीप | मंगल आरती गायरे । परमानंद पद एहीज जपतां । अजरामर सुख पायरे ॥ जी० ॥ १ ॥ रुषज्ञानन चंद्रानन वारिषेण । बध मांन पद नायरे ॥ जी० ॥ एच्यारे जिन सास्वत सोहै । समरण मंगल था यरे ॥ जी० ॥ २ ॥ अष्टप्रकारी पूज मनोहर । मनशुद्ध कर मन जायरे ॥ जी० ॥ जन्मजरा दुःख दूर करणते । कीजै एह उपायरे ॥ जी० ॥ ३ ॥ पंच
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६५२ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. प्रदीपसें आरती कीजे । मावे आवर्त कहायरे ॥जी॥ जैन आरती पढे पढावै । तोथाय सुररायरे ॥ जी० ॥ ४॥ मंगलकारी विधननिवारी । सुख कारी लय लायरे॥जी॥ पंचमगति पांमें एहनांमै । जेगावै चितलायरे जी० ॥५॥ एहआरती नविजनमोहै । नांमें नव निध थायरे॥जी॥ सुखकारी ए सकल मनोहर । कर्पूरजद्र गुणगायरे ॥जी॥६॥ ॥ इति नंदीश्वरजीकी आरती संपूर्णम् ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथैक विंशतिविध जिनेंद्रपूजा लिख्यते॥ ॥ ॥दोधक ॥ मंगल हरिचंदन रुचिर। नंदन बिपिन उदार । वामानं दन पद पदम । वंदन करि जयकार ॥१॥ प्रवचन मैं प्रनुनी कही ॥ इकवी स परम प्रकार । पूजा हित सुख केम शिव । पद करणी मनुहार॥ २॥ राग ॥ वासु पूज्यजिन अंतरजामी।एचाल।ए इकवीस विध पूजनकरीयै । जिननो जवनय हरियैरे। स्नपन । विलेपन २ भूषण ३ निरुपम । पुष्प ४ वास ५ नर धरियरे॥ ए० १॥ सुरनिधूप ६ फल ७ दीपक ८ तंमुल ९ । वरनैवेद्य । १० मधु करियरै। पत्र ११ पुंगीफल १२ निरमल जलभृत । कलश १३ बिंब पुर धरियेरे ॥ ए० २॥ वसन युगल १४ सितनत्र १५ चमर१६धुनि । मधुरतूर नी १७ करियैरे गीत १८ नटन १९ जिनवर गुणनी स्तुति २०।कोशवृधि२१ शुन धरियर । ए०३॥ इति इकवीस विधि पूजानाम पदम् ॥१॥
(दूहा ) प्रथम पूज ए जाणियान्हवण करै जिन अंगाइण अरचना भव्य नौ। होर कुमति मलनंग ॥१॥कलश सुंगध अवोटजलसुं नरी लेकरि खमौ रहै। रागदेशाख ॥ पूर्वमुखसावनं एदेशी॥ अन्यदा कनकगिरि राजशिखरो परै। जिन निलय तत्र जिनचंद्रवसिया। विविध वरनक्ति नरकरणकू सुरग णा।प्रनुचरण पद्मनतिकरण रसिया।।अ०१॥प्रावि चनसहि जिननक्ति धरि ह रिंगणा । मिलिकरी मुर असुर कोमि कोडी।तीर्थपति ध्यावता विमलगुण गा वता । प्रदरश पावता पाणि जोडी ॥अ० २॥ तीर्थ वरदाम परनास माग धपदमादीरसागर प्रमुख सलिल जरिया।सुरवरा कनक मणि रयण रजतादि मयाकलश करकमल ऊपरि धरिया अ०॥३॥कलश मुख पतितधन चंद्रकर वि मलतर। सलिल नरुधारसे सहुसुरेंद्रा। सुर गिर सकल जिनराजको न्हवण
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इकवीस प्रकारी पूजाकरि| सफल किय निजजनम विगततंद्रा ॥ प्र० ४ ॥ इणपरें सुनमती शुध श्रावक सदा । विमलजलसें करे न्हवण जिनको । तेह शिवचंद्र कर विमलप द है || हरिय संसरण संसारवनको ॥ अन्य० ५ ॥ काव्यं ॥घनतरांतर ताप विनाशनं । सकल मंगल शाल घनाघनं । जिनगण प्रमुदा जल धारया हितकृते स्नपयामि स्मारया ॥ ६ ॥ न झीं श्री अनंतानंत ज्ञानशक्तिभ्यः सकल सुरवरेंद्र वृंद विहित प्रक्तिभ्यो जन्मजरामरण निवारणकारणेभ्यः कुम तिमत तरुणगण कानन समूलोन्मूलना वारणेभ्यो एहिलौकिक श्रीरुषादि श्रीवर्धमान पर्यंतेभ्य चतुर्विंशतिजिनेंद्रेभ्यो जलंयजामहे स्वाहा ॥ ॥ ॥ इति प्रथम जल पूजा ॥ १ ॥॥
॥॥
॥ॐ॥
॥ * ॥ अथ चंदनपूजा ॥ ॥
॥ ॐ ॥ दूहा ॥ तियपूज चंदन सरस । कुंकुम अरु घनसार । घसिके करिय जिनत। तिलक विलेपन सार ॥ १ ॥ अंगणवाऊं एलची रेवाला एचालमें । हरिचंदन वर मृगमदारे वाल्हा। कुंकुम वलि घनसाररे। म्हांरौमन जिनचरणे हो लगगयौ । घसिकरि कनक कचौलीयारे वाहा । जरिकर धरि गंधसाररे ॥ म्हां ० १ ॥ मिलिकरि सकल सुरेसरारे वाल्हा । जिन अरचन चितधाररे ॥ म्हां ॥ करइ तिलक नव अंगमेरे वाल्हा । जिनके विलेपन साररे ॥ म्हां० २ ॥ जिन नवतनु तिलकार्चनेरे वाल्हा | उपजितफल असमानरे ॥ म्हां० ॥ मुगतिरमणि नालस्वलैरे वाल्हा । नविहोय तिलक समानरे ॥ म्हां ॥ ३ ॥
नविय इणपरिकरैरे वाल्हा | चंदन पूजरसालरे ॥ म्हां० ॥ तेशिवचंद्र विमलल है रेवाला । निरुपम गुण मणि मालरे ॥ म्हां० ॥ ४ ॥ काव्यं ॥ विमल नाव जरान्वित यार्चया । सुरभिचंदन जातसपर्यया । जिन वरेंद्रन मया । निशमहं सम पूजन वर्यया ॥ ५ ॥ ी श्रीं० श्रीरु षनादि चतुर्विंशतिजिनेंद्रेभ्योश्चंदनं यजामहेस्वाहा ॥ ॥ इति द्वितीय चंदनपूजा ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥
॥ ॥
॥ * ॥ अथ
भूषणपूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ तीजीपूजामें आभूषण अथवा रोकनाणौलेख मोरहै ॥ दूहा ॥ तृतीयपूज जिनराजनी । करहु जविक सुखदाय । मन मंदित
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
जिनतनू । करियै नक्ति मिलाय ॥ १ ॥ राग ॥ पासजिनेसर रसुणीजे एचाल ॥ भूषणपूज तीसरी हरिगए । विरचै हित सुख कारी रे। नृषणधरि जिनमें निरुपम | अनुभवरस है नारीरे ॥ जू० १ ॥ विविधरयण मणिमय प्रतिसुंदर । मौलिमुकुट प्रतिराजैरे । अरध चंद्र सम प्रजु नालस्वल। विमल ति लक प्रतिबाजैरे ॥ ०२ ॥ पूरणचंद्र तरणि मंगल पुति । कुंमल युगल सु सोहेरे । श्रवणे अंगद बाहुयुगलमें । त्रिभुवन जन मन मोहरे ॥ नू० ३ ॥ कांचन थाल विसाल नरस्थल । हारि तार मणिहारारे। इणविधिपूजी शाश्वत जि नकुं । सफल गि अवतारारे ॥ जू० ४ ॥ इणपरि सुधसमकितधर नरवर ॥ पूजै जिन जयकारूरे । ते शिवचंद्र विमल जिन पतिपद । संपदल है प्रतिवा रूरे ॥ जू० ५ ॥ काव्यं ॥ प्रतिमनोहरि निर्गतदूषणै । विविध दीप्ततरा त भूषणैः । जिनवरोघ महं प्रयजामिस । त्तममनंतमनुत्तर सद्गुणं ॥ ५ ॥ झी श्री प्र० श्रीकृषनादि चतुर्विंशतिजिनेंद्रेभ्य नूषणंयजामहे स्वाहा ॥ ॐ ॥ इति तृतीय आभूषण पूजा ॥ ३ ॥ ॥ ॥ ॥
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॥ * ॥ थ पुष्पपूजा ॥ ॥
॥ * ॥ चौथीपूजा में पुष्पमाला बूटाफूललेईकनोरहै ॥ दूहा ॥ जे नवि यण भगवंतनी । पूज चतुर्थी सार । रचई सुरभि कुसुमैं करी । लहै सिंधु भवपार ॥ १ ॥ रागजीममल्हार । गुंरुमिश्रित ॥ मेघवरसैनरी ॥ एदेशी ॥ सुरभितर कुसुम पूजन जणी कमया ॥ शाश्वताजिनतणी सकलइंद्रा । कुंद कुंदरविंद मंदारजुहि । विजयसिरि बकुल दमणक वितंद्रा ॥ सु० ॥ १ ॥ तिलक सुम मोगरा मालती मल्लिका । नाग पुन्नाग नवमालिकाली । केतकी लाल गुल्लाल शरवरणयुत । जलज वलि थलज गुणशालि काली ॥ सु० ॥ २ ॥ घनघना घन घटाकार बादल विरचि । पुष्पके कुसुम जलधार बरसें । बेग मिथ्यामतीदेषकै अवगिरौं । समकिती बहुजनर नमरहरसै ॥ सु ॥ ३ ॥ इापरें जिनतणी कुसुम पूजन करी। जिन चरणपद्म हरि हुइ जम रिया । इविधै जेहजन कुसुम अरचन करै तेह प्रति गहिर नवसिंधु तरिया ॥ सु० ॥ ४ ॥ का० ॥ त्रिनुवनेश्वरता कमलालयं । सकलनाव नित्राल
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इकवीस प्रकारीपूजा. नतालयं । जिनचयं विमलाक्ष्य चिन्मयं । सुकुसुमैः प्रमहासि सदोदयं ॥५॥ नक्षी श्री० कुसुमंयजामहेस्वाहा ॥इति कुसुमपूजा ॥६॥ ॥ ॥
॥अथ पंचमी वासदेप पूजा॥॥ ... ॥ ॥ दूहा ॥ * ॥ वास पूजए पंचमी । विरचे सुरवर सार । मुगतिवास करिवानणी । नरधार नावअपार ॥१॥ एचूरण भरपूर । पुरितकरै चकचूर। एजिनेंद्र पूजन करतार । उत्तर तरइ संसार ॥२॥राग वेलानल । गंधवटी घनसार ॥ ए चाल ॥ बावनाचंदन विपिननंदन जनितसुजघनसारये । वलि तगर कृष्णागरम कुंकुम मृगमदागंधसारये । कंकोल अंबर द्रव्यघसिकरि रुचिर चूरण करिनलौ । जिनराज अंग नपांग पूजौ लहौ पदजगसिर तिलौ ॥३॥ दूहा ॥ नावधरी जरपूर । सुरवर चढतै नूर । अरचै श्रीजिनपद सार । वधतैहरष अपार ॥४॥ ढालतेहिज ॥वर वासपूजन जगति करतां गंध दहदिशि महमहै । इण नगतिकारक विमलजससे सकलजग सुरनित रहै। इण वासनगते जगत नयहर अखिलमंगल नितलहै । शिवचंद्र विमल सुनाव पावक कुगति तति तरुवन दहै ॥ ५॥ काव्यं ॥ वरतराजुत वाससद र्चया। निखिलपूजन सजुण धुर्यया । सकल विश्वगुरु गुणसजुरुं। जिनवरं प्रयजे मुनिशंकरं ॥ ५ ॥ नक्षी श्री वासंयजामहेस्वाहा ॥इति पंचमी वासदेपपूजा॥५॥
॥ ॥
॥ ॥.. ॥अथ बीधूपपूजा॥.. ॥ ॥ दूहा ॥ ए उही पूजा मुदा । कर सकल सुरराय । इण दशांग । वर धूपसें । अरचै जिन मननाय ॥१॥राग ॥ साहिबा मोती द्यौनें हमारी ॥ए चाल॥॥किसनागरसेव्हारस सारा । सुरनि मृगमदा वर घन सारा।। जावधरी जिनपूजा करीय नाव धरीप ॥ कुंदरक मुरनित द्रव्य सारा । करइं गंधवट्टि अतिहिनदारा॥जा०१॥ कनक जात वैमूर्य दंगजाणौ । गंध वटीधर कर धूपधाणौ ॥मा०॥धूपपूज करता सुन्न जरता। जिनवर अंग सुगधि विरचिता ॥ ना० २॥धूपधूम करध दिसि जाते । करिहरिकू करव गति तातै ॥ ना० ॥ जैसें धूप अनलमें जलियै । इण पूजनसें करमदल ब लियै ॥ ना०॥३॥ जैसें धूप गंध दिशि पसरै । तिम पूजकना वरगुण वि
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६५६ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. स्तरै ॥ ला० ॥ तीनजुवनकुं सुरनित करिये । तातें धूपपूज नर धरिये ॥ना ॥४॥इम शिवचंद्र कहै लोनविका। इण पूजनसैं अंतकर नवका ॥ ना०॥ सुरपति धूपपूज करिसारा । लहै जिनदरशसें हरष अपारा ॥ ना० ५॥ का व्यम् ॥ सुरनिधूप सुपूजनतः सदा । निज मनोमत मद्रकरं मुदा । सकल वि. ब्रहरं वरसिद्धये । जिनवरेंद्र कदंबक मंचय॥
६जी श्रीं धूपंयजामहे स्वाहा।। इति षष्टी धूपपूजा॥६॥ ॥ ॥॥ - ॥ॐ॥
॥॥अथ फलपूजा॥॥ ॥ (दूहा ) करण तीन इककरि नवी । करियै विगत विकार फलपूजा ए सातमी । वांनितफलदातार ॥ रागकामोद ॥ चंपक के तकिमालती ॥ एचाल ॥ नवरंगी नारंगीया हरिनारंगीयाए अमल आम्रफल सारासुखकरणा करणा नला।वरण्या कविमनुहार ॥१॥जंबू नीबू करमदा हारअश्यो क०.ए। कर्कटि दाडिमसाराकदलीफलखारक वली फणस विदाम विचार ॥२॥ श्रीफल अरु जंबेरीयाए । निमजा पिसता दाप । इत्या दिक गतदोष वर । सुरनि स्वाइफलनाष ॥३॥ एह विविध फलसैं नरयो हारे० फ० ए। कंचनथाल विशाल । जगनायक आगलिधरै । सुरपति जगति रसाल ॥४॥णपरि विजन सुधमती हारे० ए । फलपूजा करतार सुरसुख फल लहि तेहुवइ । शिववनिता जरतार ॥५॥ काव्यं ॥ अति सुगंधियुत र्गतिदूषणै। विविधसुंदरशाल विनूषणैः। प्रवरकांचनपात्र गतैः फलै । सुवि मलैः प्रयजे जिनममलं ॥६॥नक्षी श्री अ. फलंयजामहस्वाहा ॥ ॥ ॥ ॥ इति सप्तमी फलपूजा॥७॥ ॥
॥ ॥ ... ॥ ॥अथ दीपपूजा ॥ ॥ ॥॥हा॥ जगगुरु पूजा अष्टमी।सुरपति भक्ति मिलाय । जिनमंदिर दीपककरहिरैकुमति समुदाय॥१॥राग सारंग॥हांहोरे देवा बावना चंदन घस एचाल ॥ हांहोरेवाल्हा ॥ इंद्र चंद्र नागेंद्र मुरा । करै दीपक भक्ति र सालए॥हां ॥कनक रयण मणि रजतना।वर पात्र करे घृतगाल ए॥हा॥
अनल ज्योतियुत वर्तिका।तसु मनि धरि विमलप्रकासए॥हां०॥ करइ मंदिर .. मणि मालिका। नासै सहु तिमिर विलासए(हां०)२।।मंगलदीपककर धरी में
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इकवीस प्रकारीपूजा. गल मंदिर सुररायए(हाँ०)करि जिन आरति पुर धरै । प्रनु मुख लषि चित उनसायए। हां०३॥ दीप पूज करतारनो । पुरितांतर तिमिर विला गए (हाँ०) लोकालोक प्रगट करू । केवल सूरज नलसायए (हां०)४॥ शैवचंद्र जिन पूजसें । इणपरि श्रावक मननायए ॥ हां० ॥ तेह होइ दीप क समौ। त्रिजुवन मंदिर दीपायए॥५॥ काव्यं ॥ जलशनानि कजासन जालया। करगवेश्वर तामलमालया । विमल मंगल दीपकमालया कमलया कलया जिनमर्चये ॥ ६ ॥ नक्षी०. दीपं यजामहे स्वाहा ।। इत्यष्टमी दीपपूजा ॥९॥
॥ ॥
॥ ॥ .. ॥॥अथादत पूजा॥ ॥
॥ (दूहा )॥ एनवमी पूजा सुमति । करियै धरि सुननाव। विमल चार तंऽल तणी। हितकरणी एदाव ॥१॥ राग आनंद कल्याण ॥ पूजावणी तेरसमे ॥ एचाल ॥प्रनु पूजा प्रवचने वरणी ॥ प्र०॥ इंद्र चंद्र नागेंद्र सुरा सुर। समकित धर नर करणी॥०॥अति अपार संसार जलधि जल ॥ नि पतित तारण तरणी ॥०॥१॥हित सुख दम परमपद परमा। नंद वृंद निधेि धरणी ॥प्र०॥ ग्याता अंगेद्रुपदि श्राविका ॥ दृढ समकित गुण्स धरणी ॥ प्र० ॥२॥ जिन महाराज तणी किय अरचा । सतरनेद श्रुतवरणी ॥०॥ जेह अजव्य मंदमति कुमती । नव अनंत वन भ्रमणी॥प्र० ३॥ पूजस्थापै परतिख प्रनुनी। चितधरी कुमति कुरमणी ॥प्र० ॥वर शिवचंद्र किरणगण नकल । अक्त तंजुल हरणी ॥प्र० ॥ ४ ॥ सेवकर सुरराय समकिती। इणविध श्रावक करणी॥०॥ इह विपरीत मंदमति भाषै। पूजा शिवपुर सरणी ॥५०॥५॥ काव्यं ॥ अशकलोज्वल तंडुल मंगले । रजत शालिमयैः कृतमंगलैः । सकल विश्वपति सुरसेवितं । जिन वरेंद्र महं प्रयजेत्वहं ॥७॥नक्षी श्री अर्हप० अ० अक्तयजामहेस्वाहा इति नवमी अक्तपूजा॥९॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ नैवेद्यपूजा ॥ * ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ * ॥ पूज एह नैवेद्यनी। दशमी अतिहनदार । अविक रियै हरियै विषम । पुर्जय विषय विकार ॥१॥ रागरामगिरी ॥ गात्रखूहै
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६५८ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. जिन ॥ ए चाल ॥ लपनश्री वर वृतवरारे वाल्हा ॥ सिंहकेसरीया सुखकरा । सुखकरा हां रेवाव्हा सुखकरा॥दालि शालि घृत युतिधरा॥ल०॥१॥दाली यामोदक सेवियारेवाव्हा॥ मोतीचूर जलेबीया । मनहरा हावाल्हा मद्रास सरकरा पुःखहरा ॥२॥ इत्यादिक निरवद्यनैरे वाव्हा । थालनरी नैवेद्यनै।। ढोईयहां रेवाल्हा ढो०॥प्रनुपुर पातक धोईयै ।ल०॥३॥ एहपूजसुखदायिनी
वाल्हा॥ पुरगति दुःख नरजायनी।हरिकर हां हरि०॥ तिम वलि श्रावक चित्त धरै ॥ ल० ४॥काव्यं ॥ नैवेद्यपूजार्चित मिंद्रवंद्यं ॥ युतं समग्रा तिशय रनिंद्यं । जित व्रजवासवतांप्रगद्या । नैवेद्यनूपं प्रमुदानिवंदे ॥५॥जी श्री अर्ह० अनंता नंतझानशक्तिभ्यः नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ इति दशमी नैवेद्यपूजा ॥१० ॥ * ॥
..॥ ॥अथ पत्रपूजा॥॥ ॥ॐ ॥ नत्तमवृक्काअखंमसुगंध सुवर्णपत्रलेकैखमारहै ॥ (दूहा) पत्र पूज इग्यारमी। रिदय रमें सुरराय । करणदमी करियै मुदा ॥ दरशन सुध मिलाय ॥१॥रागनैरवी ॥ पंचवरणी अंगीर०॥ एचाल ॥ पूजकरणी प्रनु जीनी कुशलकारी॥ पू०॥ नाग पुन्नाग मंदारसु मरवौ कुंद अरविंद मुचुकुंद हारी॥ अंब कदंब अशोक मल्लिका जाइजूही शतपत्रिवारी॥पू० ॥१॥नुजं गवति परमुख सुरनितवर वर्णफलदल लेईसारी ॥ कनकपात्र धरि जिनबिंब आगलि ॥ ढौवै परमन्नक्तिमनधारी ॥पू० २॥ एह नगतिकर सहु सुर ना यक॥ दायक संपद फल नारी । इणपरसुध समकित धर नविजन॥पत्र पूज करणी सारी ॥ पू० ३॥ पद शिवचंद्र जिनेंद्रनौ अरचन । करतांहोय सरण कारी । कुगति पतित जग जीवकुं नधरत । जिम सागर गति तरिवारी ।। पू० ४॥ काव्यं ॥ सुरनिं पत्र सदर्चन पूजितं ॥ परमचित्रकरातिशयैर्युतं ।। सम सुरा सुर वासव वंदितं । जिनगणं मदनारिमहंयजे ५ नक्षी पत्रंयजा महेस्वाहा । इति इग्यारमी पत्रपूजा ॥ ११ ॥॥
॥ ॥ ॥ ॥अथ पूंगीफलपूजा॥ * ॥ (दूहा ) अति सुंदर तर पुंगफल । जिनवर चरण चढाय । पूज बारमी जानीये । करियै जवि मननाय ॥१॥श्रीचंद्रापनु जिनवर साहि० एचाल
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इकवीस प्रकारी पूजा.
६५९ अरचीजें जिनचंद्र चरणकज नमरहोय नविसारा ॥ में वारी जानं ॥ ज० ॥ जैसे कीट फीट हुय नमरी । ऐसाध्यान पगारा ॥ प्र० १ ॥ इह खंग सुन सरस पूंगफल । करलेई अमृत आहारा ॥ ० ॥ ० ॥ ० ॥ भगति युगति धरि जिनवर प्रागलि । ढोवै हरष अपारा ॥ मै०ढो० प्र० २ ॥ इम सुरनायकनी परि जेनवि । निरखी जिन दीदारा ॥ में० ॥ सुंदर करियै 'जिनपद पूजन | तजि जंजाल पारा ॥ में० ३ ॥ पूंगीफल पूजाफल सारा । चितधरि जवि मनुहारा ॥ में० ॥ पद शिवचंद्र नहो अवतारा । इम कहै प्रव चनसारा ॥ में० ॥ इ० प्र० ४ ॥ काव्यं ॥ सकल विश्वजनौघ वशंकरं । चरण पद्मनता खिल शंकरं । दिनकरं हरणोध तमोर्चिषां । जिनवरं वर पूंगफलैर्यजे ॥५॥ ॐ ० पूंगीफलं यजामहे स्वाहा ॥ इति बारमी पूंगीफल पूंजा ॥ १२ ॥ ॥ ॥ अथ कलश पूजा ॥ ॥
॥ * ॥ ( दूहा ) कलश पूज एतेरमी । सहु मनगमी सुहाय । एह पूजमें विकनो । पातिक दूर पुलाय ॥ १ ॥ राग ॥ दादा कुशल सुरिंद तुमद० ॥ ॥ चाल ॥ बारी जय जिनराज जय २ सकल देव सिरताज ॥ वा० ॥ जय २ त्रिभुवनजन महाराज | सोहै प्रनुपुर बार समाज ॥ वा० ॥ तुम प्रनु जगमें दीनदयाल | तुम प्रभु शरणागत प्रतिपाल ॥ वा ० १ ॥ कलशपूज प्रजुनी तिसार । करीयै लहीयै नवजल पार ॥ वा० ॥ गंगा मागध वजि वरदाम | तीरथ जलनरीया सुखधाम ॥ वा० २ ॥ रयण कनक मणिना अवदात । सुषमा मंदिर कलश सुजात ॥ वा० ॥ अखिल पुरंदर कर परिवार। प्रजु पुर धरियै हरष अपार ॥ वा० ॥ ३ ॥ जैसें कलश पूजसें इंद। पूजे जगनायक जिनचंद ॥ वा० ॥ तेसें श्रावक समकिति वृंद । जिनपति पूजे परमानंद ॥ वा० ४ ॥ कहै शिवचंद्र हृदय सुविशाल । प्रनुगुण समरण दीपक माल ॥ दा० ॥ धरि हरि पापतिमिर गत पार । जगति करौ जय निकर विदार। ॥ वा० ५ ॥ काव्यं ॥ कलशपुंज मनोरम पूजितां । जिनवरेंद्र ततिं घृतस न्मति । सुदृढि भक्तिजनैः कृतसन्निनं । प्रतिदिनं प्रयजेविजितस्पृहां ॥६॥ कलशं यजामहे स्वाहा ॥ इति कलश पूजा ॥ १३ ॥
॥ * ॥
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
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॥ अथ वस्त्र पूजा ॥
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॥ * ॥ दूहा ॥ वसन युगल पूजा हिवै । चनदमि मन नलसाय | करिय श्री जिनराजनी ॥ सकल जीन सुखदाय ॥ १ ॥ राग वेलानल | चित सेवा प्रभु चरण की क० ॥ चाल ॥ देववसन युग प्रतिलो | पल्लव सुकुमाल चंद्र किरण गण कजलो । प्रदद्भुत ज्योति विशाल ॥ दे० ॥ अखिल विबुध वर कमया ॥ चितधरि नगति अपार । बसन युगल मंकित करे | जिनवर बिंब नदार || दे० ॥ २ ॥ समकितधर हरितणी । करणी सुखकार । इणपरिदेस विरति करे। कुमति नल जलधार ॥ दे० ॥ ३ ॥ यदि शिव चंद्र पद कम लनी । सुख मधुर सनी आस । तद जवियण प्रतिदिन करौ । एपूजन शिव वास ॥ दे० ४ ॥ काव्यं ॥ वसन युग्म सुमंकित जूघनं । परमशांति सुधारस सघनं । जिनमिनंच महामिव सूच्चयै । र्वसन युग्म चयैन्नितरांमुदा ॥ ५ ॥ ॐ श्री वस्त्र युग्मं यजामहेस्वाहा ॥ इति चवदमी दिव्य वसन पूजा ॥ १४ ॥ ॥ * ॥ अथ ग्त्र पूजा ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ दूहा ॥ पूजत्रनी पनरमी । पुरित तमी दिनकार । ए पूजन करता धेरै । तीन बत्र सिरसार ॥ १ ॥ म्हांरै जलैरे कगो दिहाडी आजनोरे । एचाल ॥ जिनराज पूज जयकारिणी रे । सित चंद्र मंगल बत्रधारिणीरे ॥ जिगाडुरितांतर ताप निवारिणी । प्रति गहिर सिंधु जव तारिणी रे जि० ॥ ॥ सुमतीजन हर्ष बधारणीरे ॥ कुमती जन हरष विदारिणीरे ॥ जि० ॥ सहु जगजीन जन मन हारिणी रे ॥ कुमतीनी कुमति सुधारिणी रे ॥ जि० ॥ २ ॥ यातो त्रिभुवन यश विसतारिणीरे ॥ काल कुशल व्रतति श्रसारिणीरे ॥ जि०॥ सिरसो है तसु मनुहारिणी रे । करै नत्र पूज शिवचारिणीरे ॥ जि० ३ ॥ हरि जिम वि सुधाचारिणीरे || जवसायर पार नतारिणी रे || जि० ॥ नरकादि कुगति दुख मारिणी रे ॥ शिवचंद्र किरण अनुकारिणी रे || जि० ॥ ४ ॥ काव्यं सकल लोक शिवंकरतानरं ॥ कुमति घूक मत किति नास्करं । सुविमलातप वारण पूजया । ह्यलमलंकृत माप्त महंयजे ॥ ५ ॥ न ती उत्रं यजामहे स्वाहा ॥ इति त्र पूजा ॥ १५ ॥ ॥
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इकवीस प्रकारी पूजा.
॥ * ॥ अथ चामर पूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ दूहा ॥ ॐ ॥ चमरपूज ए सोलमी । करियै नक्ति समाज । चमरयुगल करकमलधरि । पूजीजै जिनराज ॥ १ ॥ रागकेदारोगौडी ॥ कुंद किरण शशि कजलोजी देवा ॥ ए चाल ॥ धवलरयण मणि जातनारे ॥ बारहा ॥ वाला प्रति सुकुमालारे । चंद्रतरणि किरणोज्वलारे || वाल्हा ॥ विविध रयण जालारे ॥ १ ॥ प्रतिजिनदोयपासैखमारे वा० | सकल मर प्रतिपालारे । ऊपरैं जिन महाराजने रें ॥ वा० ॥ बींजे चमरविसालारे ॥ २ ॥ चामरयुग हरि बीजतारे ॥ वा० ॥ गत चामरता जहिस्यैरे । प्रमर अजर शिवपद जहीरे ॥ वा० ॥ सफल अमरता वहिस्यै रे ॥ ३ ॥ चमर पूजकरि सुरवरारे ॥ वा० ॥ अनुभव अम्रित चाखैरे । इणपरिश्रावकजनकरेरे ॥ वाहा ॥ सुमतिवंत श्रुतनाषैरे ॥ ४ ॥ काव्यं ॥ विशदचामर पूजन नूषितं ॥ विगतमार विकार मदूषितं । जिनगुणं विमलाखिल सद्गुणं । जयहरंचदधे हृदयांबुजे ॥ ५ ॥ तँ श्री श्री प्र० श्रामरयुगंयजामहेस्वाहा || इति चामरपूजा ॥ १६ ॥ ॥ 11 11
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ वाजित्रपूजा ॥ ॥
॥ * ॥ दूहा ॥ * ॥ पूज सतरमी मनरमी । करौजविक चितलाय । मधुरधुनि कीजीये। पूजनमें नलसाय ॥ १ ॥ रागकाफी ॥ अष्टापद गिरि याकरणकं ॥ ए चाल || द्रागिडिदि द्रागिडिदिकि धपमपधौधौं । सुरज मधुरस्वर वाजै । जो त्रिभुवन महाराजनजध्वं ॥ इमसुर पुंडु निगाजे । मनसु धावै होलाल ॥ श्री जिनवंदन करीये । जावे पूजी हो लाल ॥ जिनपद कमला वरी ॥ ताज कंसाल नेरि शंख ऊल्लरि । निज निज धुनिसेंबाजै ॥ ऊणण २ वलि खणण २ कर । ताल माल करवाजै ॥ ० ॥ २ ॥ वेणुवीणा दिक सुर संबंधी । सुर बाजित्र बजाया ॥ जूरि तूर व मिलित मधुरस्वर । सुरांणी गुणगाया ॥ म० ॥ ३ ॥ इणविध श्रावक पूजरचावै । विविध • बाजित्र बजावै । बहुविध नववन सरण तजीनें। पद शिवचंद्र सुपावै ॥ म ॥ ४ ॥ काव्यं ॥ विबुध वादित तूरवाश्रितं । प्रवरपूजन मंचित सत्पदः ।
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દૂર
रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
सुरगणैः सुरराज समुन्वितै । जिंनगणस्य मुदा विदधेसदा ॥ ५ ॥ इति सतरमीवादित्रपूजा ॥ १७ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ गीत पूजा ॥
11* 11
॥ * ॥
॥
॥ ॥ दूहा ॥ गीतपूज हारमी । चित्तरमी सुखकार । गीतगान जिन आ गलै ॥ करहु भक्ति धरिसार ॥ राग वसंत ॥ ब्रज मंगल देश दिखावो रसीया ॥ चाल ॥ बलिहारी तेरी नाथ सूरिति परीया ब० ॥ जानं बलिहारी बारह जारी ॥ सूरति गुणमणि दरीया ॥ ० ॥ १ ॥ जेसूरति नलिनी गुणमणि सम ।। पानकराणि हुय मधुकरीया ॥ ब० ॥ ते जवसागर पार नंतरीया ॥ चिदानंद घनपद रिया | ब० ॥ २॥ इंद्रादिक वर सकल सुरासुर । एजिन चरण शरण धरिया । ब० ॥ इंद्राणी परिकर परिवरीया ॥ गीतगान सुंदर करीया ॥ ब ० ॥ ३ ॥ जलतरंग शिवचंद्र बिमलयश । सुरभिगंध जग विसतरीया ॥ ० ॥ एजिनगीत पूज करि हरिगण । इस विधि नविकर गुण जरीया ॥ ब०४ ॥ काव्यं ॥ मधुरगीत पूजन पूजितं । प्रबल मोहनरेन्द्र बजाजितं ॥ परमशांति सुधारस सागरं । जिनवरं प्रणमामि मुदाकरं ॥ ५ ॥ इति हामी गीतपूजा ॥ १८ ॥
॥ * ॥ अथ नाटक पूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ दूहा ॥ नववी जटकनतणी । विघटनता प्रकटाय । नटन पूज • न गुणीसमी । करतां संकट मिटाय ॥१॥ आर्यावृत्ते ततः वीणाप्रतिकं । तालप्र ऋतिघनं । वंशादिकंतु सुषिर | मान मुरजादिकं ॥ १ ॥ ततघन शुषिरा ना द्यनेकगीर्वाण तूर्यरव मिलितैः ॥ सप्तस्वरैश्च षडजादिमैः सुधास्पर्धिश्वमाधुर्यैः ॥ २ ॥ भक्तिरताः सुखनिताः । श्रीमतिनचंद्र चंद्र गुणगानं । मधुरतरामृत मधुरं । प्रकुर्वते सत्वरं सुतरां ॥ ३ ॥ युग्मं ॥ काव्यं ॥ सध्यानामदनृङ्गजेंद्रगमनाः कल्याणकुंनस्तनाः । सद्भक्त्याकृत जैनपादनमनाः संपूर्ण चंद्राननाः । चंच द्विद्दशनिः षउत्तरगतेः शृंगारकैः शोभिता । नृत्यंतित्रिदशेंद्र वृंद वनिताः सौंदर्यदर्पोधताः ॥ ३ ॥ राग कैरवो || बाजै तेरा बिछुआरे । वा० ॥ एचान ॥ निरत करत सुरकुमर कुमरीया ॥ नि० ॥ बाजै सुर पुंडनिगगन मधुरीया ॥ नि० ॥ जिनमुखकजमऊि दृग मधुकरीया । निरखि हरषि सुरदेत जमरीया
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इकवीस प्रकारीपूजा. नि०॥१॥अरधचंद्रसम नालबिराजत॥शरदचंद्रमुख अम्रित ऊरीया। ॥ नि ॥ अति विशाल सारंग विलोचन ॥ निरषित सहु सुर जनमन हरीया ॥ नि०॥२॥ सकललोक जनमन जीतणकुं ॥ मदनि सेन मनु प्रकटन करीया॥नि०॥ तब सुरवनितासुरसमलोहित । जलदघटा ममि जैसी विजुरीया ॥ नि०३॥ आणण आणण रणकित नेगरीया॥ उमिकर पाय वजित घुघरीया ॥ नि०॥ तत्ताथेई तत्ताथेई चलतचरण गति ॥ त ननन री री गान नचरीया ॥ नि०॥४॥ताल कंसाल वेणु वीणादिक ॥ विविध तूर धुनि गयण पसरीया। नि। द्रागमिदिकी २ धपमप धौधौं । वाजित मुरज मधुरीया॥ नि० ५॥ विविध तूर धुनि करत बधरीया॥ नुन्नव अमृत धार नगरीया॥ नि०॥ नटनकरंती अमर कुमरीया । जिन गुण गावत मधुर सुसुरीया। नि०६॥ समीय सोल सिणगारसुंदरीया॥ सकलदेव पुति घर सुर तिरीया ॥ नि०॥ परम रूप लवणिमकी दरीया । मनुयवासकिय कामकेसरीया॥नि० ७॥चिरंजीव चिरनंद जिणेसर॥नवजल तारण तरण मुतरीयानि०॥चिदानंदघन सुख प्रागरीया॥वारीजानंजिनजी नींसूरति उपरीया ॥ नि० ८॥जय जगबांधव जय जगवडल। जयर जिन महाराज शंकरीया ॥ नि०॥जेपनु समरण तरणि पकरीया। तेह चरम सा गर नवतरीया ॥ नि० ९॥ सूरीयान दशकंधरनीपरि । जेह नटन जिनपति पुरकरीया। नि। ते शिवचंद्र अमल जिनपद युत । अम्रित कमला लिंग नधरीया॥ नि० १०॥ काव्यं ॥ लववनाटन नाटन नाशकं । कुशल पद्मदि नेश विकाशकं । कुमतिशंचटनं नटनं मुदा । न्वहमहं विदधे पुरतोऽर्हतां ॥ ११ ॥ इति नगणीसमीनाटकपूजा ॥ १९ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ * ॥अथ जिनगुणस्तुति ॥ * ॥ ..(दूहा ) जिनगुणनुति पूजन सदा । करोसुमति गुणधार । इणपूजन कातणो । करै स्तवन दनुजार ॥१॥ विचखरे मधुवनके वावरे। में कैसे जरनजाउं पानीरा ॥ एचाल॥ मेरीलगीय लगन जिनराजचरणमैं ॥ में अब तरीया नवदरिया ॥ मे० ॥ तुम प्रनु जीतलीये सुरगिरिया । धीरज गुण सुखकरिया ॥ मे० १ ॥ जीतो अतिह गंभीर गुणें करि । परम
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
चरम सागरिया ॥ मे० ॥ चरण कमल सेवित अतिरसिया । हरिगण अमर नमरिया || मे० २ ॥ अलख निरंजन अगम अगोचर । तूं प्रभु •जगदीसरिया ॥ ० ॥ शरण शरण चरण निपतित नवि । जनगण तारण तरिया ॥ मे० ॥ ३ ॥ लोकालोक कमलवन विकसित । तुम प्रजुवासर क रिया || मे० ॥ तुम महाराज सकल जगऊनको । तुम दरसण हग ठरिया ॥ मे० ४ ॥ मंगलकैरव कानन विकसन । प्रभु शिवचंद्र निकरिया || मे० ॥ जे विमुख जिन तवन नच्चरिया । तेजिन कमलावरिया || मे० ५ ॥ इणविध श्रावक करियै जिननुति । अनुजवरस गुणनरिया ॥ मे० ॥ जिनतुति कारक जविजनकुं नित । प्रणमत जुवन विसरिया || मे०६ ॥ काव्यं ॥ बि बुध संस्कृत सन्नुति राजितं । सकल सजण संग विनासितं । जिनगणस्य सदा स्तवनं मुदा । सुखकरं सुतराविदधेतरां ॥ ७ ॥ इति जिनगुणस्तुति ॥ २० ॥ ॥ # ॥ अथ कोशवृद्धिपूजा ॥ ॥
॥ ॥ ( दूहा ) कोशवृद्धि इकवीसमी । जिनपूजा मनुहार । करो जविक तिसें जरो । विमल पुण्य जंकार १ ॥ सब अरति मथनमु० ॥ चाल ॥ रजतमणि कलधौत वरतर रयण द्रव्य नदाररे । अखिल हरिगए लेइ बहुतर जरय जिननंमाररे ॥ रज० १ ॥ जेह सुमती उचित बहु धन । नरै कोश अपा ररे । तेह निज जीनकोश माहें । जरय ज्ञान नदाररे ॥ २० २ ॥ जे अधरमी मंद कुमती । हरै पूजनसाररे । तेहि निज चेतन सदनकुं । करे व्यसनागाररे २० ३ ॥ निसुनिवि शिवचंद्र जंपै । पूज एह विसालरे । करो तुम ति नित्य aहिस्यौ । अमल मंगल मालरे ॥ २०४ ॥ काव्यं ॥ अमल कोश वि वृद्वसु पूजना | चिंतमनंत सुखबज संगतं । यतिनतं त्रिजगऊन सम्मतं । निहत दुर्मत माप्त महंयजे ॥ १ ॥ नँ की श्री प्रति अनंतानंत ज्ञानशक्तिभ्यः सकल सुरवरेंद्रवृंद विहित भक्तिभ्योजन्मजरामरण निवारणकारणेभ्यः कुमति मततरुगण काननसमूलोन्मूलनवारणेभ्यो ऐहि लौकिक श्रीरुषनादिश्रीव मानपर्य्यतेभ्यःश्चतुर्विंशति जिनेंद्रेभ्यः कोश वृद्ध्यर्थं दिव्य द्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ * ॥ इति कोश वृद्धि पूजा ॥ २१ ॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥
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श्रीसमेत शिखरजी की पूजा. ॥ ॐ ॥ राग धन्या सिरी ॥ ॥
॥ ॐ ॥ तेज तरणि मुखराजै ॥ एचाल ॥ जिनजीको सुरपति गण गुण गाँवै ॥ सु० ॥ जे इकवीसनेद जिनपूजा ॥ करइ करावे जावे ॥ ते जन सकल पुरित रि हरकरि ॥ तीर्थकर पदपावै ॥ जि० ॥ वरसनाग कृषि वसु धरणी मित ॥ सकल संघ सुखपावे ॥ माघमास सित पंचमि दिनकर ॥ वासर सहु दिनरावै ॥ जि० २ ॥ श्री जिन चंद्र सूरि खरतरपति | पटनन तरणि कहावै ॥ श्रीजिन हर्ष सूरि सूरीश्वर ॥ विजयमान वदावे ॥ जि० ३ ॥ संघा ग्रह हुंती जय नगरे || महो वजाय पद चावै ॥ रूप चंद्र वादींद्र विरुद्ध घर ॥ जगुणिजनगु गावै ॥ जि० ४ ॥ तसु विनेय वाचकवर पदधर ॥ पुण्य शील शुभ जावै । समय सुंदर गणि तसुपद पंकज । सेवन नमर कहावै ॥ जि० ॥ ५ ॥ सु० ॥ समरण करि जिन वर गिरकोतसु ॥ चरण कमल सुपसावै ॥ पूजरची पाठक शिव चंदे || परमानंद वधावै ॥ जिन० सु० ॥ ६ ॥ इति शिवचंदजी उपध्यायकृत इकवीश प्रकारी पूजा सं० ॥
॥
॥ * ॥
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॥ * ॥ अथ श्रीसमेतशिषरपूजा लिख्यते ॥ ॥ * ॥ चौवीसे जिनवर तथा प्रणमीनावे पाय । समेत शिखर गिरिरायनी । पूजक मनलाय ॥ १ ॥ शिखरसमेतसिरोमणी । एगिरवर कैलास । प्रतिनत्तंग मनोहरू | एजोगिंद्र विलास ॥ २ ॥ वीशप्र मुगतैं गया । कर प्रणशण इह ठगेर । तातें सुर किंनरसवे । वदत है करजोर || ३ || महिमा जाकी महियजै । कहि न सकै कवि कोय । मुक्ति महिल निश्रेणिकी । एतीरथजगहोय ॥ ४ ॥ मिथ्यामत राची रह्या ॥ तिनकुं एन सुहाय। घूकत मन किमगमें। दिनकर सब सुखदाय ॥ ५ ॥ जितजिद दिणंद सम । दूषम सुषमा काल । कुशन करन जव जय हरन । प्रगट नए प्रतिपाल ॥ ६ ॥ श्रीराग ॥ हांहोरेदेवा बावना चंदन कुमकुमा ॥ चाल ॥ हांहोरेदेवा ॥ समेत शिषरगिररायना । गुणगावो मनधर प्रेम ए| हांहोरेदेवा । सुरगुरु पिए एगिरतणी । बहु महिमा वरणै केमए ॥ १ ॥ हांहोरेदेवा ॥ वीसप्रनु मुगतैं गया | जितादिक श्रीजिनचंद ॥ हां होरेदेवा || इसकारण एगिरवरू । निश्रेयस सुरतरु कंदए ॥ २ ॥ हांहोरेदेवा | कोकाकोमी मुनिवरू । सीधावहु इगिर आयए । हांहोरेदेवा ॥ एगिर फरस्यां
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. जावथी। पापी पिण पावन थायए ॥३॥ हांहोरेदेवा। श्रावक सुध समकित धरै ते विधपूर्वक धर प्रेमए ॥ हांहोरेदेवा ॥ बालकहै जिनचंद्रनी। करै नक्ति सदा निङखेमए । हांहो० ॥ ४॥ इति । १ । ढाल दूजी। पूर्वमुषसावनंकरिदर्श नपावनं । एचाल ॥अडित डिनचंद्र सुरवृंद सेवित सदा॥ मुनग पत्कज तणी सेवना। हारअईयोसेवनाए । जगत पुर्खनमणी रत्नपर जीवकुं। पूजीय चरण जिन देवनाए ॥ हारे ॥१॥ तरण तारण नवोदधि नविकजीव केई॥ परम नपगार कर निस्तरया । हारे। शिखरगिर राय पर पाय निर्वाणपद ॥ सिघ निजरूप गुण संजरया ॥ हरिप्र० ॥२॥अष्टविध पूजना द्रव्य जावै करे। जाव मन सौच धर जेनरा ॥ हारेअ०॥तेशिखरतीर्थ शिवसौख्य संपदवरै। बाल जिननक्तवत्सलकरा । हारअईयो वत्सल०॥३॥ इति । नक्षी श्रीपर मात्मनेअनंतानंत ग्यानशक्तए जन्मजरा मृत्युनिवारणाय श्रीअडितजिनें द्राय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः ॥॥
॥॥अथ द्वितीयपूजा॥ ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ ॥ श्रीसंभव नवदव अनल । जलधर सम जिनराज। परनपगारी परमगुरु । नए नविक सुखकाज ॥१॥रागवेलानल ॥ विलेपन कीजै श्री जिनवर अंगै॥ ए देशी॥ पूजियैजिन मनरंगै जिनेसर॥पूजि०॥ जल कुंकुमादत धूप दीप करी । नेवजफल मनचंगै॥ जिने० १॥ सेना मात जितारी तात सुत । श्रीसंनव जिन अंगै । हार मुगट कुंमल वर नूषण । चाढो नवि सुन्नटंगै ॥ जि० पू०॥२॥ शिखर शिखर पर शिखरजएहै अनंतचतुष्क मुरंग । बालचंद्र प्रनु अधम नधारन । प्रनुता परम प्रसंग जिनेसर पूजिय० ॥ ३ ॥ नझी श्री परमात्मने संनवजिनेंद्रायअष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः। इति द्वितीयपूजा ॥२॥॥
॥ ॥ ... ॥॥अथ तृतीयपूजा॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ ॥ अनिनंदन जिनचंदकी। महिमा वरणी न जाय। परमरूप परमातमा । सदानंद सुखदाय ॥१॥रागसारंग ॥ सांऊसमें जिन बंदो नवि० ॥ए चालमें ॥ अभिनंदनजिनवंदो । नविजन । अनि । आंकणी ॥ संवरतात सिघारथमाता । जाके कुलनन चंदो ॥ ज० अ० ॥१॥
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श्रीसमेत शिखरजीकी पूजा. ६६७ अधम नधारन नवदुःख वारन । सिव सुरतरुनो कंदो। इंद्र चंद्र असुरेंद्र नमैं नित । वदित सुर नर वृंदो ॥ ज० अ०॥२॥ समेतशिखर पर सिवसुख पायो। मिटगयो नवनय फंदो। वालचंद्र प्रनु तरण तारणको । पूजनकरी चिरनंदो॥जवि० अ०॥३॥इति । नक्षी श्री परमात्मने श्री अनिनं दन जिनेन्द्राय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः॥३॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥अथ चतुर्थीसुमतिजिनपूजा ॥2॥ ॥ ॥ दूहा ॥ ॥ सुमतिनाथ समसंपदा । सदा सुमति दातार । सेवे सुर नर अमरसहु । चरन सरन चितधार ॥२॥ रागसारंग ॥ चरणकी चरणकी चरणकी। वारीजानं मैं० ॥ ए चाल ॥ बलिजालं मैं सुमति जिनंदकी ॥ २०॥ आंकणी ॥ पूरनब्रह्म नए परमातम । मेघकुलांबर चंदकी ॥ बलि० ॥ १ ॥ लविकुल कमल बिकास करनकुं । प्रगट प्रताप दिणंदकी । सवि गुणलायक वंचित दायक । शासन सुरतरुकंद की॥२॥ वलिकरन मुसेवा खचर अमरनर । मात सुमंगला नंदकी । बाल चंद्र प्रन्नु पतित नधारन । सबगुन रतन समंदकी॥वलि० ॥३॥ नक्षी श्री परमात्मने श्रीसुमतिजिनेंद्राय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः॥४॥ ॥
.. ॥॥अथ पंचमी पूजा॥॥ ॥8॥ (दूहा)॥ पदम प्रनूपद पद्मकी । सरनगही सुखदाय । दर्शन विन अनदेवको । संग कबून सुहाय ॥ १ ॥राग सोरठ मल्हार ॥अणियारे नैन जिनके । सखि मुनि संग बालक किनके ॥ एचाल ॥ प्रनुसेती प्रीत लागी। मेरी नाग्यादसा अब जागीरे॥ प्रनु० आंकणी ॥ पद्मप्रनुजीकै दर सण अंतर। आगल अब मेरी जागीरे ॥ प्रनु० १॥ प्रनु परमातम में बहिरा तम । अनुन्नव आतम सागी । प्रगट प्रताप प्रनू प्रतालख । अब में जयौ अनुरागी॥प्रनु० २॥अंतरगतकी वैहीज बूझै । क्या बूझै जो दागी। बाल चंद्र निज नाथ निहारत । कुमति कुटलता त्यागीरे॥प्रनु० ३॥ इति नक्षी श्रीपरमात्मने श्रीपद्मप्रजिन अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः ॥५॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ षष्टी सुपार्श्वजिन पूजा॥8॥ ॥*॥ (दूहा)॥ लोहधातु सम आतमा। परमातम चिद्रूप । कंचनरूप करै
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६६८ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. प्रगट । श्रीसुपास जिन नूप॥१॥श्रीसुपास जग जीवके। पारससम जिनराज । अण घड आतम लोहकुं । कंचन करै मुकाज ॥२ राग वसंत ॥ दादा कुसल मुरिंद तुम दरसण” परमानंद ॥ दादा०॥ ए चाल ॥ नवि पूजो सु पास । सहुनी बंबित पूरै आस ॥ नवि० । जाको कमल सम सुगंध सास । आहार नीहार अदृस्य जास ॥ नवि० ॥१॥ न घटै न वधै नख केस पास । मांसासृग उज्वल वर्णतास ॥ नवि० ॥अतिसय चौतीस तणौ प्रकास । तरण तारण जंग जस सुवास ॥ नवि० ॥२॥ श्री समेतशिखर पर कर निवास । प्रनु पायो मुक्तिमाहिलसुवास ॥ नवि०॥प्रजुके समरणसें कर्मनास। कहै बाल सदा मैं प्रजुकोदास ॥वि० ॥३॥ इति ।नक्षी श्री परमात्मने० श्रीसुपार्श्वजिन अष्टद्रव्यंयजामहे स्वाहाः॥६॥॥
॥ ॥ अथ सातमीपूजा ॥ ॥ ॥॥ चंद्रा प्रनुकी चंद्रसम । मुखसोना मनुहार ॥देखत दृगआनंदलहै। सूरत अति सुखकार। मल्लि मनोहर तुम ठकुराईए राग॥ श्री चंद्रा प्रनु अरज सुणीजै। श्री चंद्रा यांकत्रिनुवन नाथ गरीबके ऊपर।दीनदयाल निवाज सकीजै ॥ श्रीचंद्रा० १ । अधम नधारन विरुदतुमारो । मोसो अधम न न कहीजै ॥ श्री०॥ इह संसार अपार अगाधमै । साहिब सरणागत रषलीजै॥ श्रीचं० ॥२॥ मोपतितनकुं पार तारो॥ निज निर्यामक विरुद वहीजै॥ श्री० ॥ बालचंद प्रनुशिव सुख दायक।आतम संपद अवमोहिदीज।।श्रीचं॥ ॥३॥नजी श्री परमात्मने अनंतानंत ग्यांन॰ जन्म० श्रीम० श्रीचंद्रा प्रनू अष्ट द्रव्यं यजा महेस्वाहा ॥७॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ अथ अष्टमी पूजा ॥ ॥ (दूहा)सुबिध जिनंद दिनंदसमा जग जीवन हितकार। मिथ्या मोह अग्यानतम । दूर हरन दिनकार ॥१॥राग ॥ जियाचतुर मुजाण नवपदके गुणगायरे ॥ एहनी॥नेटो नविक सुजाण सुबिध जिणंद सुननावरे ॥॥ नत्तम कुल नरजवतें पायो ॥ फिर असो नही दावरे ॥ १॥जक्तजधा रन जवि निस्तारन । नवसागरकी नावरे ॥ ॥ तन मन बसकर निज आतमकों ! प्रलु समरण लय लावरे॥ने०२॥ द्रव्य जाव युत पूजन करिये।
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श्रीसमेत शिखरगिरी पूजा. मनधर अधिक हावरे ॥ जे० ॥ बालचंद प्रनुपतित नधारन । मिलगए पुन्य पसावरे ॥ जे० ॥ ३ ॥ इति ी श्री परमात्मने श्री सुविध जिनें द्वाय टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः ॥ इति अष्टमी पूजा ॥ ९॥ ॥ ॥ * ॥ अथ नवमी पूजा ॥ ॥
॥ * ॥ दूहा ॥ ॥ श्रीशीतल मुनिइंद्रकी । महिमा अजब अपार । ज्ञानानलथी जिणदीया । कर्मप्रष्टधनजार ॥ १ ॥ ढाल || सिद्धाचलगिरि व्यारे धनभाग्य हमारा ॥ एहनी ॥ श्री शीतलजिनवंदो रे जविजन सुखकारा श्री० पतित नधारन दुरगति वारक । दायक शिवसुख सारारे ॥ ज० ॥ १ ॥ नक्तनविक जव जय अपहारी । ए प्रभु परम सुप्यारारे । ज० मिथ्या ग्रीषम ताप निवारन । प्रजुचंदन अनुकारारे ॥ ज० २ ॥ परनपगारी परम महागुरु परमातम अविकारारे ॥ ज० ॥ वालक प्रजुको नवनव i चरणसरणमनवारारे ॥ ० ३ ॥ ी श्री परमात्मने० श्री शीतलजिनं द्राय प्रष्टद्रव्ययजामहेस्वाहाः ॥ ९ ॥
॥
॥ ॥
11 #11
॥ * ॥ अथ दशमीपूजा ॥
॥
( दूहा ) श्री श्रेयांस जिणंदनी । चरन सरन सुखकार ।। पुन्यप्रशाद मिल्यों मुजे । जव २ सुखदातार ॥ १ ॥ ढाल ॥ दादाचिरंजयो सेवकजन सुखदाई दरसण सदादियो । एचाल ॥ जवि नावधरी श्री श्रेयांसजिनेसर जो मन रखी ॥ ज० एप्रनुसम अवरन कोदेवा । जाकी चौसठ इंद्र करे सेवा ॥ तेज है सुरसुख सिवसुख मेवा ॥ प्र० १ ॥ प्रभु परतिख सुरतरु सम स्वामी । जाकी पुन्यप्रसाद सेवा पामी । प्रभु जगजीवन अंतर जामी ॥ ०२ ॥ प्रनु दीनदयाल परमदाता । जगवत्सल जगबंधव त्राता । कहै बाल सकलदायक साता ॥ ज० ३ ॥ इति । श्री श्रीपरमात्मने श्री श्रेयांसजिनेंद्राष्ट व्यं यजामहेस्वाहाः ॥ १० ॥ ॐ ॥ 11*11.
1111
॥ * ॥ अथ इग्यारमीपूजा ॥
॥
(हा ) परमातम परमेसरू । श्री तेरमजिनराज । ध्यावो सेवोन विकजन | ज्युं पावो सुखसाज ॥ १ ॥ रागकनको । मेरी लागीलगन जिनचरण ॥ मेरी० चाल ॥ मनमोह्योरी मेरो जिन चरणे म०॥ दुःख दोहग सबहरणै । मन० ॥
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६७०
रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
विमलजिनंदकी अद्भुत तनुवि । सोजत सोवनवर । म० ॥ १ ॥ दीन दयाल दयानिध दाता । सवजीवन सुखकर | म० ॥ परमातम प्रजुपरम परमगुरु । प्रजुन तारण तरणें ॥ म० २ ॥ पुन्यप्रसाद लह्यौ प्रभु दरशना सास्वत शिवसुख धरणें । म० । बालकहै प्रभु सेवकजाणी । रख लीजै मोहि सरणे । म० ३ ॥ इति । शी श्री परमात्मने अनंता जन्मज० श्रीमत् श्री विमल जिनेंद्राय अष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः ॥ ११ ॥ ॥ ॥ अथ बारमी पूजा ॥
॥
॥ * ॥ दूहा ॥ श्री अनंत जिन देवकी । सेवकरो मनलाय । मनवंबित सुख जिमलहै । पुरगत दूर पुजाय ॥ १ ॥ रागमालवीगौमी ॥ सब अरति मथन मुदार धूपं ॥ करतगंध रसालरे ॥ देवा० ॥ एचाल ॥ ध्यावो सेवो जविजन नक्तै। अनंतजिनंद महाराजरे देवा || एसुरतरुसम जगमें जिन वरतारणतरण जहाज || देवा || ध्या०१ ॥ कृपासिंधु भगवान परमगुरु ती ननुवन सिरताजरे । देवा ॥ जिनसेवातें शिवसुख पायें । सफलहुवै सब काजरे । देवा । ध्यावो० ॥ २ ॥ इह संसार असार जनविन | कैसें रहे निज लाजरे । देवा । बालचंद्र प्रजु परपगारी । दायक अविचल राजरे । देवाध्या ०३|ी परमात्मने अनंत जिनेंद्राय प्रष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ः १२ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ तेरमी पूजा ॥
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॥ ॥ (द्रा ) ॥ धर्म जिनेसर परमगुरु । परनपगारी देव | परमातम प्रभु चरणकी। कीजै नितप्रति सेव ॥ १ ॥ राग भैरवी ॥ पंचवरणी अंगीरची कुसु मजाती । कुसुमजाती रे अईयो कुसुम पां० एचाल ॥ सुखकारी रे देवा सुखकारी । धर्मजिनंद सेवो सुखकारी । सुखकारी रे देवाधि० | तीन जुवनके साम शिरोमणि । सब जीवन को है हितकारी ॥ धर्म० १|| जगजीवन जगबंधव जगगुरु । परम पुरुष प्रजु नपगारी । अकल सकल अघहर पर अनुपम प्रचल
गोचर अविकारी | धर्म० २ । जवसंताप निवारण तारण । जिनसेवा मोहि अतिप्यारी । सुरतरुसम प्रभु चरणशरणकी । बालचंद कहै बलिहारी | धर्म ०३ इति । शी श्रीपरमात्मने अनंता जन्म० श्रीमत् श्रीधर्मजिनेंद्राय श्रष्ट द्रव्यं यजामहे स्वाहाः ॥ १३ ॥
॥ ॥
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श्रीसमेत शिखरगिरी पूजा.
६७१ अथ चवदमी पूजा॥ 18 ॥ ( दूहा) शांति करण सब पुःखहरण । शांतिजपो सुखकार । शिव सुखदायक जगतगुरु । परमातम अविकार ॥ १॥राग गौमी ॥ केसरीयाने ज्याजको लोक तिरायो । ए अचिरिज मोहि आयो के० एचाल ॥शांतिजि नेसर ध्यावोनिविजन शांतिका तरण तारण नवसागर जिनको । तीनजगत जस चावो ॥न शां०१॥शांति सुधारस नाम प्रन्नुको । समरण कर मन जावो । कर्मकोट सतखम हुवै तब। सुघ सरूपी थावो ॥ ज० शां२ । भक्ति करो मनसुध जगवंतकी।मन सुध प्रनुगुण गावो। बालकहै प्रजुके सेवनसैं । मनवंचित फलपावो । न० शां० ३ इति नक्षी श्रीपरमात्मने श्रीशांतिजि नेद्राय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहाः ॥१४॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ पनरमी पूजा ॥ ॥ सोरठो ॥ कुंथुजिनेसर देव । नविजन पूजो नावथी। चरण कमल की सेव । इंद्रादिक नित प्रति करै ॥ १॥राग सोरठ ॥ कुंद किरण ससि ऊजलोजी देवा। पावन घसि घनसारोजी आगे॥ एचाल ॥ चंद्र किरण जेसो कजलोरे देवा । जग जश प्रनुविस्तारोजी ॥ आगे ॥ अनंत गुणेकरी सोनतारे ॥ देवा ॥ कुंथुजिनंद जग सारोजी ॥१॥आगे॥ कामि त दायक मुरतरूरे देवा ॥ सर्व जीवन प्रति पालोजी॥आगे॥ नवि जन पूजो नावथीरे॥देवा॥ ए प्रनुपरम आधारोजी॥२॥आगे शिवसुख दायक साहिबारे ॥ देवा ॥ पतित नधारन हारोजी। आगे वालचंद्र जिनचंद नोरे
देवा।सरणगह्यो सुखकारोजी ॥यागचंद्र० ३ इति ॥ नक्षी श्रीपरमात्मने श्री कुंथु जिनेंद्राय अष्ट द्रव्यं यजामहेस्वाहाः ॥१५॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ सोलमी पूजा ॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ श्री अरनाथ जिनंदनी। पूजा अष्टप्रकार । करियै मन सुध नावसों, नवनव सुखदातार ॥ १ ॥ राग कालिंगडो ॥ मनारे जिन चरणा चितलावो, मनारे एहनी ॥श्री अरनाथ कुंध्यावोमनारे त्रिनुवन पति गुण गावो।।म त्रिनु०॥असो अवरन देव जगतमैं। जाको जगजश चावो॥ मत्रि०१॥ सूर नरेसर नंदन प्रनुजी ॥ मात प्रनावती गवो॥तन मन लगन
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६७२ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. लगावो प्रनूसें ॥ नरक निगोद नजावो ॥ मत्रि०२ ॥ परम पुरुष परमेशर प्रनुको । चरण शरण मननावो । दीनदयाल दयानिध पूजत । वाल परम सुख पावो ॥ मत्रि० ३ इति । नक्षी श्री परमात्मने श्री अरनाथ जिनंद्राय अष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः॥१६॥ ॥
॥ ॥... ॥॥अथ सतरमी पूजा ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ कुंन समुद्भवजगधणी। मल्लिजिनेसर देवाजसु पद पंकज की करै । इंद्र चंद्र नितसेव ॥ १ ॥ राग कल्याण । तेरी पूजावनी तेरसमैं ते० एचाल ॥ मेरी लगन लगी जिन चरणें । मल्लिजिनंद सुखकरण। होमेरी ॥त्रिनुवन नायक सब सुख दायक । एप्रनु अशरण शरणें ॥ होमेरी० १॥ अनुपम रूप विराजित प्रनुजी। सोजत सोवन वरण ॥ होमेरी०२॥ अकल अगोचर प्रन्नु नपगारी ।ध्यावो सब मुख हरणै । होमेरी० ॥ जो निज आतम कुं सुखचावो । लावो चित्त समरणै ॥होमेरी०॥बालकहै प्रज्नु अधम नधारन रखलीजै मोहि सरणे होमे० ॥ ३ ॥ नक्षी श्री परमात्मने श्री मलिजिनं द्राय अष्ट द्रव्यं यजामहेस्वाहाः॥१७॥ ॥
1 ॥ ॥ ॥ अथ अधारमीपूजा॥8॥ ॥ ॥ दूहा ॥ * ॥ विंशतितम जिनवर नमुं। मुनिसुव्रत जिनचंद । जावै लविजन नेटियै । दूरटलै अविफद ॥१॥ रागमल्हार ॥ चिहुंजर बदरियाबरसै ॥ ए चाल ॥ मुनिसुव्रतस्वामीदरसै ॥आजानंद घनवरसेहो मु०॥ समेतशिखरपर प्रनुपद पंकज । पुन्यप्रसादै फरसैहो।मु० ॥१॥ अनुदर शन घनघोर घटालख । मोरनयनयुग तरसै॥ हो मु०॥ विजनचात्रक प्रजुगुन गावत । जावत नावन जरसै ॥ हो मु०॥२॥धर्मध्वनिजाके नपजत खेती । कर्म निरसहोय निरसै ॥ हो मु० ॥ बालप्रसाद प्रजुजीके आतम । परमातम प्रनु सरसै ॥ हो मु०॥३॥ इति । नक्षी श्री परमात्मने अनं० जन्म श्रीमत् श्रीमुनिमुव्रतजिनेंद्रायअष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः ॥१८॥
॥ ॥ अथ नगणीसमीपूजा॥ ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ ॥ नमिजिन पूजो नावसों। विक शक्ति मनलाया। जावसुध जिन पूजतां । पुरगति दूर पुलाय ॥ १ ॥ राणमालवीगोली ॥ सब
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श्रीसमेत शिखरजी की पूजा.
६७३
अरतिमथनमुदारधूपं ॥ ए चाल ॥ नमिजिनेशर जगदिनेशर । पूजो नविजन नावरे । जगतपति जिनराज साहिब । जवसमुद्रनो नावरे ॥ न० ॥ १ ॥ इंद्र चंद्र सुरेंद्र नर सुर । पूजनको जसुचावरे ॥ तरण तारण कृपासा गर | सेवनको अवदावरे ॥ न०॥ २ ॥ पुन्यनदै प्रभु दरसनपायो । प्रानंदकंद सुननावरे । बालक है प्रजुके चरणकी । सरणमोहि सुहावरे ॥ न० ॥ ३ ॥ इति । श्री परमात्मने० प्रनं० जन्म० श्रीमत्० श्रीनमिजिनेंद्रायष्ट द्रव्ययजामहेस्वाहाः ॥ १९ ॥ ॥ 11*11
॥ ॐ ॥
॥ ॥ अथ बीशमीपूजा ॥
॥
॥ * ॥ दूहा ॥ * ॥ पारश पारशनाथका । गुणगातां गहिगट्ट । कष्टटलै संपति मिलै । मनवंबित फलथट्ट ॥ १ ॥ राग । सांवरीयास्वामीजी बमो हितारो ॥ ए चाल ॥ शांवरियासाहिबकी बलिहारी सां० ॥ अश्वसेनतात वामा देवीमाता । पाश जिणंद है सुखकारी ॥ सां० ॥ १ ॥ जाकेगुनको पारनपावै । इंदनरेंद नरनारी ॥ सां० ॥ नवनवनमतां प्रभुजीमेंपाया । दुरगति दूर निवारी ॥ सां० ॥ २ ॥ अबमें प्रजुबिन और नचाहुं । एहीमुऊमन इकतारी | बालक प्रसाहिब मेरे । शिवसुखदो मोहितकारी ॥ सां० ॥३॥
॥ ॐ ॥ ढाल दूसरी ॥ तेजतरणमुखराजै । हां मुख० एचाल ॥ जविजन शिखरसमेत वधावो । ०। वीसजिनेशर मुगतसिधाए। ए तीरथ जगचावो । न १॥ द्रव्य भावकरी पूजरचावो । त्रिभुवनपति गुणगावो । समकित पुष्टालंबन कारन। एसम नर नजावो ॥ ०२ ॥ सकल संघ मकसूदाबादमें। आनंद अधिक बढावो । क्ति जावसे प्रभुजीकुं पूज्या | मनवंबित फल पावो ॥ २०३ ॥ संवत सिधि नननिधि वसुधा सुत्र । कार्त्तिक सुदि पणचावो। जिन सौभाग्य सूरी सर गुणनिधि | खरतर गपति चावो ॥२०४॥ प्रमृत लान समुद्र पसायै ॥ पूजर चीनवि जावो ॥ बालचंद परमातम प्रभुका ॥ हरष हरष गुण गावो ॥ ०५ ॥ इति
श्री श्री परमात्मने अनंतानंत ग्यानशक्तये जन्म० श्रीमत् पार्श्व जिनें द्राय अष्टद्रव्यं यजामहेस्वाहाः ॥ २० ॥ राग कमखो ॥ शिखर गिरितीर्थकर वीश जिनवर मुदा । प्रक्ति जर नविकवर पूज करियै । अष्टविध विविध धरि सिद्धि नवनिधि सही । सुवट घट संपदा प्रगट वरियै । शि० १ । विकट बट
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६७४,
रत्नसगर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
कर्म की जोट दूरे करी । विबुध बुध आत्म निज सुवि धरियै । चरण जिनस रण गहि भवतरण जन लहै । चरण दरसण नही ज्ञान चरियै । शि० २ । धन्य दिन आज जिनराज गिरराज चढ | दरस लहि सरस संसार दरियै । धर्म धर मगन जिन जक्ति पूरनगही । दुरति गति दुःखसें दूर टरिये । शि० ३ । अष्टनम निधि सदा सिद्धि सुद माधमें। पूज करि शक्ति निज जक्ति नरियै । बाल प्रतिपाल सुविसाल गुनगावतां । धार जव वार निधि पार तरियै । ॥ शि० ॥ ४ ॥ इति श्रीबालचंदजी उपाध्याय कृत समेत शिखरगिरी पूजा संपूरणम् ॥ ॥
॥ ॐ ॥
11 11
॥
॥ अथ वार व्रतकी पूजा लिख्यते ॥ * ॥ ॥ * ॥ प्रथम समकित द्रढ करण जल पूजा ॥ दूहा । व्रत बारै यादर करी । पूजा तेर विधान | आनंदादिक संग्रही । सप्तम अंग प्रधान ॥ १ ॥ राग सरपदो || ज्योति सकल जग जागती हां० ॥ ए चाल || ज्योति विमल जगजलहलै । हां रे प्रयोऊ ए । शाशन पति जिनचंद | त्रिकरण प्रणमन करिनमूं । वीरचरण अरविंद ॥ १ ॥ न्हवन १ विजेवण २ बासनी ३ । हांरे० । मालं ४ दीवंच ५ धुवणियं ६ ॥ फूज ७ सुमंगल ८ तंडुला ९ ॥ हां रे० ए० ॥ श्रमतं दप्पणंच १० नैव ११ ॥ २ ॥ ध्वज १२ फलवृंद १३ एमेलियै । हां० ए । पूजा त्रिदश प्रकार । हांए । व्रत ग्रहि अनुक्रम रचीयै । जगपति जगदाधार ॥ ३ ॥ सिवतरु सुखफल स्वादनो। हांरे० । दायक गुणमणि खांण । हांए। कुशल कला कजना थकी। प्रगटै परम निधान ॥ ४ ॥ दूहा ॥ समकित बत धुर आदरो । मेटो निज मन नर्म । दूर थकी ए परि हरो । कुगुरु कुदेव कुधर्म ॥ १ ॥ धुर दर्शना सुचरण
सण धीर वीर्य वखानियै । तपइम सकजना सिद्धि गज वसु पण तिवार मुठानियै । व्रत बारना अतिचार शर शर परम गुरुमुख जानिये । करित्याग राग प्रशस्त धरिमन विमल संबर मानियै ॥ १ ॥ राग रामगिरी ॥ गात्र तू है जिनमन रंगसूं रे देवा । स० । ए चाल ॥ घुर समकित व्रत चित धरोरे बा रहा । जवजय दुःख दल परिहरो । परिहरो हां रे बाल्हाप० । शिवरमणी वर लीजीयै ॥ १ ॥ वीर जिनेसर बंदीयैरे बाल्हा । जिम चिरकालसुं नंदीयै ।
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बारै व्रतकी पूजा.
६७५ नं० हारेवा० ॥ कुमति पुरति सरकीजीयै ॥२ ॥ चरण करण गुण माण निलोरे बाल्हा । जगजन तारण सिरतिलो। सिं० हां० ॥ सदगुरुचरण नमीजीय ॥ ३ ॥ जिन जाषित श्रुतसागरोरे बा० नेद विविध विधि आगरो। आगरो० हारे० ॥ श्रवण जुगलकर पीजीय ॥ ४ ॥ जिन शासन जिनधर्म नोरे बा० । रागदलन वसुकर्मनो। कर्म । हां । कुश लकला रसनीजीयें ॥५ इति ॥ दूहा ॥ सकल करमदल मलहरण । पूजा धुर जलधार । जगनायक जिनतुंगनी। नरधर नगति नदार ॥१॥ रागळिं जोटी॥ निरमल होय नजलै प्रजुप्यारा । सव०॥ए चाल ।। जिनवर न्हवण करण सुखदाई।बूटै जनम मरण पुःखदाई। जि। टे॥खीरजलधि गंगोद कमांहि । अमल कमल रस सरस मिलाई । जिन० ॥१॥ निरमल शकल परम तीरथ जल । मणियुत कंचन कलश नराई॥ जिन॥२॥या जिन जीके नवण करणते । नवनय पुःखदल दाघसमाई। जि०॥३॥ द्रव्य नाव विधि समकित फरसै । तेनर नरक निगोद न जाई॥जि०॥४॥ यातें जवि जनके मुख नासै । कपूर कहै सुरहोत सहाई ॥ जि० ॥५॥ इति०॥काव्यं परमलंकृत संस्कृत श्रध्या । स्नपति यो जिनचंद्र मिमंमुदा । जवनयं परिमु च्य सदोदयं । जजति सिधिपदं सुखसागरं ॥१॥नक्षी श्री परमात्मने अ नंतानंत ग्यानसक्तये । जन्मजरा० श्रीमद् श्रीसमकितव्रत उपदेशकाय जलं यजामहेस्वाहा । इति प्रथम समकित व्रतपूजा ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥अथ प्राणातिपातव्रते केशर चंदन विलेपन पूजा ॥७॥
॥ दूहा ॥प्राणातिपात विरमण व्रतें। मो जंतु विनास । इणसुं शिवसुख नामिले । हिंसा दोषविलास ॥ १ ॥ हमकुं गंडचले बनमा थो । राधा० ॥ ए चाल ॥ नविजन जीवदया व्रत धारो । सम परिणा म संनारोरे । न० ॥ टेरे ॥ अपराधी पिण जीव न हणियै । नारे जगदा धारोरे। देशविरति धरनें पिण नाख्यो। विन अपराध न मारोरे। न. गो गज सेंधव महिषा दिकनें । बंधन वध न विचारोरे । कीजै न अवयव बेद त्रिकाले । जल चारो न विसारोरे॥न० ॥२॥ कीमी कुंजरने सम गिणीय । सुख दुःख जोग विकारोरे। थावर त्रस पंचेंद्यादिकनो। होय रहि
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६७६
रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. यै हित कारोरे॥०॥३॥ ए व्रत रत चित जे नर जगमें। सुर नर गण मन प्यारोरे । तेहिज लोन महानटमारयो । सकल करम परिवारोरे न०।४ थूलथकी ए व्रत जे पाले । तेलहै शिवसुख सारोरे । कुशल कला कलना करी प्रगटै । अनुन्नवरंग नदारोरे। नवि०॥५॥दूहा ॥ नव दव दाघ सवे मिटै। पूजो परम दयाल । नावठ नंजन सुखकरण । दूजी पूजरसाल ॥१॥ (राग घाटो)। जिनराजनाम तेरा म्हाराज। ए चाल॥ पूजो जिनेंद्र प्यारा। होतारोरे विकट नवजलसें । हो । टेरे ॥ हारे घनसार चंदन वासै । हारे सुकुरंग नानि जासै । मुःख नारकादि नासै ॥ होता०॥१॥ घसि सूकमा दि नेली। नाना सुगंध मेली। शिवदैन कर्म ठेली॥होता० ॥ २ ॥ पूजा सदा रचावो । वर नावनापि नावो। शिवसौंधमे समावो॥ होता०॥३॥ विधि जाव द्रव्य धारो। हिंसाको दोष वारो। प्रनुनाम नां विसारो। होता०॥४॥ तज पाप नार फंदा । शिवशं कलाप कंदा । साधै कपूरचंदा॥होता०॥५॥ इति प्रथम पूजा ॥ काव्यं ॥ अमल कुंकुम केशर मिश्रितै । र्जिनपतेयुगपा द समर्चनं । हरति सो नवदाघ मसुंदरं । रचतियो घनसार सुचंदन ॥१॥ नजी श्री परमात्मने अनंता जन्म० श्रीमत् प्राणातिपात विरमण व्रत नपदेशकाय चंदनं यजामहे स्वाहाः॥इति प्राणातिपात पूजा ॥२॥१॥
॥ ॥ अथ मृषावाद व्रते वासदेप पूजा॥ ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ मृखात्याग व्रत दूसरो । कुमति पुरति हरतार । नविजन नावै आदरो । शिवतरु फलदातार ॥ १ ॥राग वशंत ॥ सब अरति मथन मुदारधूपं । कर० ॥ए चाल ॥ सुण नविक नर धर इतिय व्रत मन । मृखावादन बोलरे । बाला मृखा० । टरे॥ मृखावाद कुवाद शेखर कुजशवाद न ढोलरे। बाला। कुजश° सु० ॥१॥ सकल शिवसुख धाम ध्रमरवि । ढकण राहु निटोलरे । शिवपुर नगर पथि शवर सरिखो । अरति व्यापन घोलरे । बाला । अरति० बाला । सु० ॥ २॥ निपट कूट कला प करिने ! परगुपति मतखोलरे । झणविधौ धनधान्य निकरै । कपट कूट न तोलरे॥ बालाक० मु०॥३॥ कूटलेख कुसाख जरिने । रचयमां मममो लरे। अन्य सिरसि कलंक धरिने । चरित गर्नु न बोलरे । बाला चरित.
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बारै व्रतकी पूजा.
६७७ सु० ॥ ४॥ बसुनरेसर वृथा रचिनें । लह्यो कुगति कचोलरे । पुतीय व्रत रस राग भैरवी । कुशलसार विमोलरे। बालाकुश सु० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ दूहा॥ जगदाधार जिनंदने । पूजौ वासरसैण । शिववनिता वस कीजिये। पूजा त्रयतम एण ॥१॥राग गरबो ॥ नवि चतुर सुजाण परनारी सुं प्रीत मी कबहुन कीजियै ॥न । ए चाल ॥ नविनाव धरी नवसागर निस तार क जिनपति सेवियै ॥ज०॥टेरे ॥बावनाचंदन खंमन करियै । तेहमां वलि कुंकुमरस जरियै । मृगमद परिमलता अनुसरियै ॥ नवि० ॥१॥ कंकोल सुवासित वलि कीजै। तिम विवध कुसुम रस कस दीजै । ए चूरण विधि निज वसकीजै ॥ नवि० ॥ २ ॥ इम वासरसैं जे जिन पूजै ॥ तिणसैं स विकरम सबल धूजै॥ सुखसंपति जायन घर दूजै ॥ नवि० ॥ ३ ॥ सुर किंनर नर सासन धारै । विनसमस्यां सहुसंकट वारै । ए पूजन मनवंबित सारै ॥ वि०॥ ४॥ विमला कमला सबला पावै । जे प्रजुगुण गण नावन जावै । इम चंदकपूर सुजशगावै ॥ वि०॥५॥ इति काव्यं ॥ मृगमदां वर घश्रण मिश्रित । वरवरास सुचंदन संस्कृतैः । रचतियो जिन पूजन मंजसा । सलनते निवृतिं किलवासकैः॥क्षी श्री परमात्मने अनंतानंत ग्यानसक्तये । जन्मजरामृत्यु श्रीमद० मृषावाद विरमण व्रत उपदेशकाय वा सपै यजामहेस्वाहाः । इति तीसरी मृषावाद व्रत पूजा ॥३॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥अथ चोथी अदत्तादांन व्रते पुष्प माल पूजा॥ॐ॥
॥ * ॥ व्रततृतीय हिवसांजलो। नाखै जगतजिनंद।स्तेयकरण सब सुख हरण ।अष्टकरम दलकंद॥१॥राग सोरठ ॥हांहोरे देवा । बावन चंदन पसि कुमकुमा। चूर० । ए चाल ॥ हांहोरे वाला । परधनहरण गमन करो। धरि त्रिकरण शुचविलाशए । हांहोरेवाल्हा । ए नवजल जलधर समो । व लि समकित वृंद विनास ए। व० ॥१॥ हांहोरे बाल्हा ॥ कनक रजत माण धातुनो। जल थल खज पशु पटकूलए । ज०॥ हांहोरे बाल्हा ॥ इमतनु थू ल जगतिन्नरया। लही सकल पदारथ मूलए । ल० ॥ २॥ हांहोरे बा व्हा। कुमति पुरति रमणी तणो । वै सदन ए चोरीनो कर्मए । ०। हांहोरे बा० विपद जलधि पिण जाणियै । सचपल थई नासैधर्मए । स०॥ ३ ॥
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. हांहोरे वा० ॥ एव्रत सुरतरु सारिखो । शिव सुख फल दैननदार ए। शि० हाहोरे बाव्हा । कुशल कलायुत कीजिये । लहियै नवजलनोपार ए। ल. ॥४॥इति ॥ दूहा ॥ पूज चतुर्थी मालनी। करियै नक्ति वशेण । मोहति । मर नर उपशमें । प्रगटै बोध खिणेण ॥१॥ राग खंनायची। जवनय हरणा। शिवमुख करणा । सदा नजो ब्रम में० एचाल ॥ नविजन पूजो जिन ग्रीवा धरि । बर फूलनकी माला । मेवारी० ब०॥ए पूजन पुरगति घरदी। विरच शिवसुख साला। मेंवा विरवि०॥१॥चंपक मरुक तिलक चंपेली। पामल लालगुलाला। मेंवा० पा० । विमल कमल परिमल मदमाता । नतजै अलि मतवाला। मेंवा । नत० वि०॥२॥जाई दमण ही कोरंटक। मालती मरुक रसाला । मेवा० मा० । ऐसें पंचवरण कुसुमें करि ।माल रचन परना ला। मेंवा० मा० वि०॥३॥ ए मालापूजन करीनासै । कोटि करम पुःखजा ला। मेंवा० को। सुमति सुरति अनुन्नव वलि प्रगटै। त्रासै कुमति कुचाला। मेंवा त्रा० नवि०॥४॥ए विधि संबरधार विकासै । पापसदन मुखताला। मेंवा० पा०। कपूरकहै प्रनुचरण शरणमैं । मंगल माल विशाला । मेवा० मं० नवि ॥५॥इति ॥ काव्यं । सरस मुजर चंपक पाटलै। मरुक मालति केतकी सत्कजैः। विधि विगुंफ्यजिनं परिपूजयेत् । सज मजश्रम मीनिरजेडकः १॥ तुझी श्री परमात्मने अनंतानं जन्मजरा श्रीम० अदत्तादान विरमण व्रत नपदशकाय । मालं यजामहेस्वाहाः॥इति अदत्तादांन व्रत चोथी पूजा॥४॥
॥ * ॥अथ पांचमी मैथुन व्रते दीपपूजा॥॥ ॥ दूहा ॥ ॥ व्रत चोथे मैथुन तजो। जो नविक नगवान । शीला राधन योगसें । लहियै शर्म वितान ॥१॥राग सोरठ॥ कुंद किरण शशी क जलोरे देवा । पाव०॥ए चाल ।। मन वच काया थिरकरीरे। बाल्हा । कलु ख कुशील निवारोरे। आगे। एह नरक रमणी तणोरे। बाव्हा । शोदर अति हित कारोरे । आगे ॥१॥ नर सुर पशु सहुजातनोरे बाव्हा। विषय कलित बहु दोषैरे । आगे। ते परिहारने थिररहोरे बाला निजदा रासंतोषैरे॥२॥आगे । लंकापति नरकै गयोरे । बाल्हा एमैथुनरस धारूरे आगे। एहनें तजकरि केईलह्यारे । वाव्हा । जीवसकल सुखसारूरे
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बारै व्रतकी पूजा॥३॥ आगे। शील रत्न जतने धरोरे बाव्हा । तसदूषण सविडमीरे आगोकुशलकला करिने लहोरेवा० । शिवसुख माल प्रचंमीरे। आगे॥४॥ इति ॥ ॥ दूहा ॥ दीपकपूजा पंचमी । करै सकल उःखनास । ज्ञायक लोका लोकनो। प्रगटै बोधिविकास ॥१॥रागदेश वरवो ॥ केसरियानेकाऊ को०॥ एचाल ॥ ॥ नावधरी दीपक पूज रचावो । यातै शिव सुख संपति पावो । ना० । रक्त पीत सित वरण विचितृत । सूतनीवाट वणावो । गोघृतमां हि अधिक तरकरिने । सुन्नमन दीपजणावो। ना.१ । दीपकनेंमिस मनमंदि रमै । ग्यांनकोदीप जगावो । जमतातिमर कलापहरीनें । मंगलमालवधावो । जाव० ॥२॥अरतिहरण रतिदायक जगमें । एपूजन मननावो। सुर नर पायनमें ततखिणही। यातें नरकनजावो ॥ नाव० ॥३॥अनुभव नावविशाल करीनें। आतमसुं लयलावो। कपूरकहै नविजनसें प्रचुके । वर गुणगण ज श गावो ॥ लाव०॥४॥ काव्यं ॥आत्मप्रबोधै कविवर्धनाय । जाड्यांधकार ब्रजमर्दनाय । जव्यप्रदीपं कुरुक्तिवृंदैः । प्रनोगृहे वायघत नाय ॥१॥ नशी श्री परमात्मने अनंतानंत जन्मजरा० श्रीमजि मैथुन विरमणवत नपदेश काय दीपयजामहेस्वाहाः॥ इति पांचमीमैथुन व्रत पूजा ॥५॥४॥
॥॥अथ नही परिग्रह व्रते धूप पूजा॥ॐ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ नविकीजै व्रत पंचमै । सकल परिग्रह मांन । ए मोहा दिक शवरनो । नूधर उःखनी खांन ॥१॥राग वशंत ॥ अतुल विमल मेल्या अखंग गुणे । मेल्या० ए चाल ॥ सकल नविकलरया विमल गुणे वाटहा। मांन परिग्रहनो करो ए। सकल०॥ टेर॥ वज्र समान ए समगिरि भेदन । दोष दिवश पति वासरो ए । स० ॥१॥धन कण वशन गवादिक पशुनो। धातु निकर तिम जांणियै ए । इत्यादिक नवन्नेद विधांने । दशवै कालिक नाणियै ए ॥ सक० ॥२॥ एहनें मूलथकी जेहरै नर । तेहनें मोद मिलै सहीए । सुचिर काल ग्रहवास वसै जे । तेहनें देश विधै कहीए। सक० ॥३॥ नरक निवास इणे विनपाम्यो । मुम्मण सेठ ते नाखियै ए । नवि जन ए व्रत नावथी पालो। कुशल कला निजदाखिये ए॥ स०॥४॥इति
॥ ॥ दूहा ॥ ही पूजन धूपकी । धुवो जिनवर अंग । कुशुर
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६८० रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. नि करमतणी हरै। दायक शिवसुख चंग ॥१॥ राग देसाख ॥ प्यारी निववरणी न जाय । प्यारी । थारै मुखमारी हो वारीराज । प्या॥ ए चाल ॥ ऐसी विधि पूजन नाई दिलधार । धूप धूम धनसार धार करि। ऐसी० । टेर॥ या नवनीम वारिसागरमें । तरस तरंमक तरल विचार । धूप० ॥१॥ चंदन देवदारु बलि अंबर । मृगमद गंधवटी घनसार । धूप० ॥ २ ॥ ऐसें सुरनिद्रव्य बहुमेली। तिणमें सेव्हारस नविसार । धूप० ॥ ३ ॥ म णियुत कंचन धूपदानमै । बिमलानलथी करि सुप्रचार । धूप० ॥ ४ ॥ क पूर करत नुतिया जिन पूजा । नविजन गणकी तारणहार । धूप० ॥ ५ ॥ काव्यं ॥ नानासुगंध वसुनिर्मित सारधूपं । चाकर्षितं भ्रमरबंद मतिर्हियेन ॥ श्रघाश्रये विधि निवेश्य बिशालनक्त्या । धूपे जिनाधिपतिनं शिवदं मुदावै ॥१॥नशी श्री परमात्मने अनंतानंत श्रीमजिज परिग्रह प्रमाण व्रत उपदेशकाय धूपं यजामहेस्वाहाः इति परिग्रह प्रमाण ब्रत बही पूजा ॥६॥ ॥ ॥अथ सातमी दिशपरिमाण व्रते पुष्प पूजा ॥१॥
॥ ॥ दूहा ॥ बहो व्रत दिशमानको । गमनागमन निवार । अकुश लता सवि नपशमै । श्रेयसंपजै सार ॥१॥रागगरबो। सिघाचलममण स्वा मीरे ॥ ए चाल ॥ * ॥ श्रीशिवमुख संपति वरियैरे । नवनय उखवार ण करियै रे । करिदिशि परिमाण जेचरियै । रसीला नाव विमल दिल धरियैरे। वाल्हा परियै तो समरस नरियै । र० ॥१॥अध ऊर्धनें तीरन वखाणोरे। दिश विदिशनें तेम प्रमाणोरे। ए ने संकट जलधिनोराणो॥रसी० ॥२॥ एमां गमनागमन निवारैरे । ओ7 कुमति पुरति जरतारोरे । इकच की लह्यो उखन्नारो। रसी० ॥३॥ ए व्रत शिवसाधन चंमोरे। तुमे नविजन एहन खमोरे । कहै कुशलकत्ता नितमंमो । रसी० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ नवियण पूजा सातमी । कीजे नक्ति विशाल । ससुरनि नाना जातना । विमल कुशम जरथाल ॥१॥ * ॥रागधन्याशरी ॥ कबहुमें नीके नाथन ध्यायो॥क एचाल। प्रनुजीकी फूलै पूजन सारो।प्र०॥टेर॥श्रीजिन जीके चरणकमलमें । अलि समता गुणधारो। प्रनु०॥१॥ चंपक कुंद गुलाब केवमा । पारधिनाग कलारो । जासु दमण वासंति मोगरा । पारुल लाल में
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वारै व्रतकी पूजा
६८१
॥ ॥
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॥ ॐ ॥
दारो | प्र० ॥ २॥ इम नानाविध कुशम घटा करि । नाव विमल जलकारो तोजहियै प्रविजन ध्रुव करिनें। अचिरथकी नवपारो । प्रजुः ॥ ३ ॥ व्रत धर फूल कलाप रुचिर ग्रहि । पूज तजे जगतारो । कपूर कहत जिन चर सरण लाहि । करम सबल दल मारो | प्रभु० ॥ ४ ॥ इति ॥ काव्यं ॥ गंधामलादि गुण लक्षण लक्षिते । पुष्पोत्करै रखिल गुंजित चंचरीकैः ॥ संसेवये द्विविध जाति समुद्भवैर्या। जैनेश्वरं व्रजतिसोह्य चिराच्छिवना ॥ १ ॥ ॐ श्री परमात्मने अनंतानंत जन्म० श्रीमति दिशि परमाण व्रत उपदेशकाय पुष्पंयजामहेस्वाहाः इति दिशि परमाण व्रत सातमी पूजा ॥ ४ ॥ * ॥ ॥* ॥ थाग्मी अष्टमंगलीक नोगोपयोग व्रतपूजा ॥ ॥ ॥ ॥ जगनायक पदकमलमें । धरियै करि मनरंग | जोग ने नप जोगनो। एसहुबत गिरिशृंग ॥ १ ॥ ॥ सिधचक्रपद वंदोरे | विकासि ए चाल ॥ ॥ सकलसचित्तनें द्रव्यविकृती । बाहन बलि तंबोल । वसन कुशम दल पानहि तिमवलि | सयण विजेवण घोलेरे। नविका । इण व्रतमें मनमंको। शिवसुख रयण करंमोरे । नविका । इ० ॥ १ ॥ ब्रह्मचार्य दिशि न्हाण जत्त इम । नियम चतुर्दश माल । प्रतिदिन नाव हृदयधरि करियै । एहनी सार संजालरे । नवि० इण० ॥ २ ॥ तिमही न करोत्तर त्रिंशत। अ खिल विपुल महिकंदो । कालखीण सहु द्रव्य प्रजाएयो । फल निशिनो जन दोरे | ज० ॥ ० ॥ ३ ॥ विविध अप्पोल डुप्पोल विनेदै । प्रशना रंत्र विशाल । इंगालादिक करण करावण । कर्मादान कुचालरे । ज० ॥ ४ ॥ इ० ॥ एवंमै ते शिवसुखमं । खं कुगति दुकाल । सहजानंद शस्यसुख ai | प्रवदै त्रिजगपालरे । ० । इ० ॥ ५ ॥ इण व्रतकरि चितमंदिर मरियै । तरियै नवजलपार । अनभव चंद्र सुधा ऊडमं । कुशलकला निर धाररे । न० इ० ॥ ५ ॥ इति०
॥ *॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ दूहा ॥ मंगलपूजा अष्टमी । करमदलन प्रसिधार । करिये श्रीजिनराजकी । वरियै शर्म अगार ॥ १ ॥ राग ठुमरी ॥ * ॥ तुमविन दीनानाथ दयानिधि कोनखबरले मेरीरे । तु० । ए चाल ॥ न
රදි
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६८२ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. विजन नावै श्रीजिनवरकी । मंगलपूजा कीजैरे० । बालामंग० ॥ टेरे। श्लीलायन शरलासन नंद्या । वर्त कुंन निरमीजै।मीनजुगल श्रीबल सरावनो संपुट स्वस्ति करीजैरे । बाल्हा। संपु० । नवि० ॥ १ ॥ ए अमंगल मंमन कारण । कंचन थालरचीजैरे । रुचिराखंम विमल गुणधारी । तंमुलसें लिखलीजैरे । नवि० ॥२॥ निजमन नक्तिनाव धरि नविका । प्रनुसनमुख धरदीजैरे। तोसुखधाम मुक्तिपुट नेदन । निवसन कृत्य लहीजैरे । वि०॥ ३॥ स्वांत गगनसमं सूर्योदयथी । कोटिकरम तम जीजैरे । प्रगट प्रताप पीन जिन चरणें । चंदकपूर नमीजैरे । नवि०॥ ४ ॥ इति ॥ काव्यं ॥ यःसत्कांचननाजने शुचितरे मण्युत्तमममिते । श्लीलान्यष्ट सुमंगलानि विधि ना मंमयप्रनो सन्मुखे । नक्त्यात्मा परिढोकये द्रुचिपरः सोपव्रजं नाशयेत् । नित्ते पुर्गति जूधरं च लभते स्वर्गादि मोदाश्रयं ॥१॥न झी श्री परमात्म ने अनंतानंत ग्यांनसक्तये जन्म० श्रीमजि लोगोपन्नोगव्रत उपदेश काय अष्टमंगलं यजामहे स्वाहाः ॥ इति लोगोपनोग व्रत आठमी पूजा ॥ ॥ ॥ अथ नवमी अनरथ दंडवते तंदुल पूजा॥॥
॥ॐ ॥ दूहा ॥ नवि ए व्रत अष्टमधरो । अनरथ दंम विचार । पाप चिरंतन नपशमै । प्रगटै पुन्यप्रचार ॥ १ ॥ सुगणसनेही साजन श्रीसीमंदिरसामि । अ०॥ ए चाल ॥ त्रिकरणशुध निसुणनवि अनरथ दंग विचार । समकित सुन्नटनो गंजन नंजन संबर प्रार। मनमथ बोधविकासक शास्त्र पठन अधिकार । मुख नू दृग तनुथी करै नंमकुचेष्टागार ॥१॥ हा श्यथकीवली कुबचन नाषण मुखरप्रवंध। ऊखल मूशल घरट्टादय अतिधरण
रंध । स्नानसमें जल तेल अधिकतर अप्रतिबंध । पापविधाना देशप्रकाशन दूषणखंधासरस वस्तुन्नृत पात्र मात्र विन गदनगन।धरणकरण सुबिवेकबिकल तिम दानादान । इम सहु अनरथ करम अवरपिण पुःखनी खान । व्यर्थ पणे मनमान्यां दे पुन्यप्रधान ॥२॥ण करिपूर्व केइगया नरसंकटधाम । व्रतग्रहिने रहिये तव लहिये शिवसुखठगम। ए व्रत तरणी नवोदधि तारण तरण प्रकाय । कुशलकला नितकरतां प्रगटै अभिनवमांम ॥ ४॥ इति ॥
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वारे व्रत पूजा
६८३ ॥ ॐ ॥ दूहा ॥ नवमी श्रीजिनराजनी। पूजा परमविलाश । विमलाक्षत राजनें । विजन करो प्रकाश ॥ १॥ राग पीलू ॥ अबतो नधास्यो मोहि चहीये जिनंदराय । राखुं नरोसोमें रावरै चरणको । ० ॥ ए चाल ॥ श्रीजिनवरजीकी सेवा सारै । सो नवजय दुःख दूरनिवारै । श्रीजि० ॥ तंडुलविमल सकलगुण मंकित । खंकितदोष रहित नरधारे। कंचनपात्र जरी जिना । ढोकन बुद्धि प्रबल सुविचारै ॥ श्रीजि० ॥ १ ॥ या पूजन जन तन मनरंजन । गंजन कुगतिकुं वोधविदारै । सबल करम नग नेदनहारो । सघन जवोदधि पारनतारै ॥ श्रीजि० ॥ २ ॥ सुमति सानुभव मान मिलावै । ते पण पद दिवश समारै । पीनमहोदय धार जावधरि । चंदकपूर सनूर नि हारै ॥ श्रीजिन० ॥ ३ ॥ काव्यं ॥ यः खमजाति गुणवृंद समन्वितानि । नाढोकये प्रिपुल निर्मल तंडुलानि ॥ कर्म्मावलिं ऊटति बेद्य हिमजिनाये | सोवैजे विसुखं सुतरामनंतं ॥ १ ॥ ॐ श्री श्रीपरमात्मने अनंतानं ० ज० श्रीमति मनरथ विरमण व्रत उपदेशकाय प्रकृतं यजामहे स्वाहाः ॥ इति नवमी अर्थ दं विरमण व्रत पूजा ॥ ॥ ९ ॥ ॥
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॥ * ॥ अथ दशमी सामायक व्रते दर्पण पूजा ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ नवमो नव निधि जाणियै । सामायकवत सार । सुर जे ही सारे । सुरतरु समदातार ॥ १ ॥ राग ॥ प्रायरहो दिल वाग मैं होप्यारे जिनजी । प्राय० ॥ ए चाल ॥ सामायक व्रत पालरे । न विकजन | सामाय० ॥ टेरे ॥ त्रिकरण त्रिकजोगे इकमहुरत । निरतीचारै । चालरे । वि० ॥ १ ॥ सा० गृहव्यापार तजीनें सुनमन । धरि निरवद्य विशालरे । ज० ॥ २ ॥ सामा० ॥ मन वच वपु प्रणिधांन सेवन । स्मृति विहीनता टालरे । ज० ॥ ३ ॥ सा० ॥ द्वात्रिंशत दूषण परिहरिनें । पंचम गुण घरकालरे । ० ॥ ४ ॥ सा० ॥ इम धनमित्र तणीपर सीको । कुश
कला परनाल | ज० ॥ सा० । इति ॥ * ॥ दूहा ॥ दशमी दर्पण पूज ना । कर्ज श्रावक सु । सुरपादपसम शंकरण | हरणपाप संकुद्ध ॥ १ ॥ राग कालिंगको ॥ नेम प्रभुजीसुं कहज्योजी म्हांरा । नेम० ॥ ए चाल ॥ जिन पूजनमें रहीयैरे | म्हांरा जि० । मन बंबित फल लहीयेरे | म्हां०जि०
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रत्नसागर श्रीजिन पूजा संग्रह.
॥ टेरे ॥ कंचनमणी रतनेकरि जकियो । वर दरपण करगहीये । जिनवर सनमुख दाखन विधिसें । सकल करम वनदहीयैरे | म्हांरा । जिन० ॥ १ ॥ प्रभुजीकी सेवा सब सुखदाई । नावनक्ति नरचहीयै । शिववनिता तुम प्रेम विजू । पर अधिकस्युं कहीये रे | म्हां० ॥ २ ॥ जि० निजकसरीर प्रमाद वसै करि । वदल नीतिनसहीये । सुनमन समकित वीरसंगले । चंदकपूर निवहियै रे | म्हां० ॥ ३ ॥ जि० । इति ॥ काव्यं ॥ रुचिर निर्मल दर्पण दर्शनं । विनययः किलकारयेत् । जिनपते रचिराद्भवसंगमं । सचनिरस्य जे विमंजसा ॥ १ ॥ नँ ी श्री परमात्मने अनंतानंत ग्यानसक्तये ज न्मजरा० श्रीमति० सामायक व्रत ग्रहण उपदेशकाय । दर्पण यजामहे स्वाहाः ॥ इति दशमी सामायक व्रत पूजा ॥ १० ॥ 11 11 ॥ ॥ अथ इग्यारमी देशावगासी व्रते नैवेद्य पूजा ॥ ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ दसमो व्रत हिव नवियता । धारो धरि वर नाव | संसारा व गहिरनो । तारण वर तरनाव ॥ १ ॥ सिधाचलगिरिने व्यारे । धन्य नाग हमारा । सिद्धाए चाल ॥ * ॥ श्रद्धा घर मन नाजैरे । घनपाप तिहा रा । श्रवा० । जाजै० । टेरे ॥ विमल सकल सुन विनय धरीनें । गुरु मुख वचन हजारा । ए व्रत सुंदर दिल धरो जविजन । देशावकास विचारारे। घनपा० । श्रधा० ॥ १ ॥ द्रव्यानयन प्रयोगे । सब्द रूप अनुसारा ! पुल पेण प्रति सकलना । तजीयै दूषण धारारे । घनपा० ॥ २ ॥ परमोत्कृष्ट जघन्य प्रकारै । प्रत्याख्यांन प्रचार । सहु व्रतनो आगमन ए व्रतमें । गुणमणि रयण गंगारारे । घनपा० ॥ ३ ॥ कर्म कषाय हरीनें बेदै । चनगति गेह विहारा। अजरामर धनदैलह्योनिरमल । कुशलकला करिसारारे। घनपा० ॥ ४ ॥ श्रवा० ॥ इति ॥ दूहा ॥ एकादशमी पूजमें। विवध जां ति नैवद्य । मेल करो जिनराजनी । दायक सुखनिखद्य ॥ १ ॥ राग कल्यां
| तेरी पूजावणी है इसमें । होते। एचाल ॥ ॥ सेवासारो श्रावक जिन चरणै । होसे० । टेरे ॥ मोदक लपनश्री वर घेवर । शिता सुरस घृत करणें । मुक्त चूर विद्रादिक बहुतर । नैवेद्य नानावरणै । होसे० ॥ १ ॥ रयणांकित कंचन नाजन गरि । मन वय तनु थिरकरणें । करिढोकन विधि परम विन
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बारै व्रतकी पूजा. य धरी । रहियै नित प्रनु सरणें । होसेवा० ॥ २ ॥ दुःखदल नासन या पूजन विधि । निवृति विशद सुख नरणें । चंदकपूर कहत नविजनके। क लिमलमाला हरणें । होसेवा० ॥३॥ इति ॥ काव्यं ॥धवल धाम शिता पि समुद्भवै । विमलनक्ति समन्वित कर्प रै। जिनपते विदधाति वियूषनं । सलनते शिवशं प्रवरान्नकैः ॥ १ ॥नक्षी श्री परमात्मने अनंतानंत० ग्यां न सक्तिये जन्म० श्रीमजि० देशावगासिक व्रत द्रढ ग्रहण नुपदेशकाय नै वेद्यं यजामहे स्वाहाः॥इति इग्यारमी देशावगासी व्रत पूजा ॥ ११ ॥
॥अथ बारमी पोसहव्रते ध्वजपूजा॥॥. ॥ ॥ व्रतपोषध इग्यारमो । मावो नविकविधान । ध्यावो ज्युं द्रुतसंह। प्राकृतकर्म वितान ॥ ए देशी ॥ इण सरवरियानी पालकनादोयराजवी । म्हां रालाल ऊना० ए चाल ॥ नविजन नाव विसाल प्रमाद नीवारीयै । म्हां० प्र० टेरे॥ पोसहव्रत चितमांहि विनयधरि धारीयै । म्हारा० वि० ॥ ते पिण पुविधप्रकार चतुर न विसारियै । म्हां० च० ॥ प्रतिवासर प्रतिपर्व सजेतिम सारियै । म्हां० स० ॥ १ ॥ पडिलेहण धुरधार सकल किरिया करो। म्हां० स०॥ परिठावण विधिवाद मयाधरि आदरो । म्हां० म० षटकाया संघट्ट तजीनें संचरो। म्हारा० त० ॥ अचपल थई पचक्खांण विविधमनसंजरो । मां० ॥२॥ वि०॥ बलिसहु दूखण टालिने पापनिकंदिय । ह्मां० पा०॥ चौगति च्यार कषाय करमदल मंदियै। मां ॥ इण विधि तारण तरण सुगु रुपदवंदियै । मा० मु०॥ कुशल कलादल मालकरी चिरनदियै ॥३॥ म क० इति ॥ दूहा ॥प्रादशमी धज पूजमें । घोषणदेई अमार । धरियै प्रादश नावना । तरियै नवजलपार ॥१॥राग देशाख ॥ कुबजानें जाउ मारा ॥ए चाल ॥ प्रनुजीसें प्रीतलाना । करीध्वजपूजन विविधानाहो। प्र०॥१॥ टेर॥ जोयण सहस मानमणि मंमित । कंचनदंग रचानाहो। प्र०॥२॥ पंचवरणयुत वसनपताका । अधिवासित लहकानाहो। प्र०। ३॥ ढक्कनाद करी तीन प्रदिदाणा । रोहणविधि मननानाहो। प्र०॥४॥ या विधिसकल करम रिपुदारण । जोतिमें जोतिसमानाहो । प्र०॥५॥ज गतारण श्री जिनदरशणसें । चंदकपूरलुनानाहो। प्र०॥६॥ इति काव्यं ॥
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.. जव्याचति आजवरैः सशुनैः सलीलै । जैनेश्वरं कनकदंम युतैः सशोन्नैः॥ कारि वृंदजय उद्म समन्वितैर्यो । वैसोनजे विव दिवादिसु राज्यलक्ष्मीः ॥१॥नक्षी श्री परमात्मने अनंतानंत जन्म० श्रीम. पोसहवत ग्रहण उपदेशकाय ध्वजं यजामहे स्वाहाः॥॥ इति बारमी पोसहनते ध्वजपूजा ॥ १२॥ * ॥ ॥ ॥ अथ तेरमी अतिथिसंविनाग व्रते फल पूजा॥॥
॥ ॥ दूहा ॥ प्रादशमोव्रत सुखफलद । साधु दांनसनमान । अजरा मर पदसंपजै । सालिनद्र अनुमान ॥१॥राग कजरी।। मेरो मनमोह्यो माई आणंदमिलै ० ॥ ए चाल ॥ साधुदान व्रत जवि हृदय धरो। हृदय धरोरेनाई हृदय धरोरे। सा०॥ टेर॥ व्रतसंयम गत परलिंगीनें । पमिला जन मति रिजुनकरो। रिजु० ॥१॥ना० सा०॥ जिनमत मुनिवर चरण नमीजै । अशनादिक देई सुकृतवरो । मुक० मा० । सा० ॥२॥ वलि पंचातीचार निवारी । परम विरतिना विघन हरो । विघ० ना० ॥३॥ सा० श्रीश्रेयांसने चंदन वाला। अनुमाने पदनिवृतिचरो निवृ० ना० ॥४॥ सा० इति ॥ दूहा ॥ फलदल पूजा तेरमी । नरिनाजन कमनीय । नविक रचौ नगवाननी। नवविषधर दमनीय॥१॥राग ष्याल।लोली नैनारेलोली नैना। हो दरशणके० ए चाल ॥ ॥ लोनीसैणारे लोनीसैणा हो पूजन के लोनीसैणा ॥टेर॥ पूजनविधि प्रनुकी दिल धरलै । थिर करि मनतनु वैणा। हो पू० ॥१॥ श्रीफल पुंगी वीजपूर वलि । आम्र कदली फल लेणा । हो पू० ॥२॥ इम नानाफल गहिप्रन्नु आगै । जरिनाजन धर दैणा । हो? पू०॥३॥ नक्ति विमल सुचितर धर मनमें । प्रनु समरण दिनरैणा। हो पू० ॥ ४॥ कपूरकहै प्रनुपद पंकजमें । षट्पद लए जुगनैणा । हो पू०॥५॥ इति ॥ कलश ॥ हांहो यश धारा । प्रनुजीका वचन अमृत यश धारा ॥ टेर ॥ सुर नर मुनि तिरियग वन सींचन। बचन सजल घनकारा॥ हांहो०प्र० । विक्रमपुर श्रीत्रिशलानंदन । जिनवर त्रिन्नुवन प्यारा । प्राद श व्रत पूजन विधि पनणी । नवियण गण हितकारा ॥ हांहोहि० १ म०॥ गुरु खरतर जिन चंद्र सूरिवर । राजै विगति विकारा । श्रीमति ना
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बारे व्रतपूजा विधि. ति रादि कलितके । धरि मन बचन अगारा । हांहो आ० प्र०२॥ संवत रस त्रिक निधि रात्रिकर । मासाश्विन मनुहारा । धवलपद प्रतिपद तिथि सोनन ॥ रजनीपति सुतवारा ॥ हांहो सु० ३ । प्र०॥ श्रीजिनरत्न सूरिसाखाधर । पाठकपद विसतारा । रूपचंदगणि चरण कमलमें । कुशलसार मधुकारा। हांहो म०प्र० अपर नामकरि चंदकपूरा । राचि जिनपति नुतिसा रा। लक्ष्मीप्रधान प्रवर गणिवरकी। प्रेरणया सुविचारा । हांहो०प्र० ५ इति ॥
॥ ॥ काव्य ॥ जंवाम्रादि फल बजैः ससुरसै गैधादिनि मिश्रितै। नूनं । द्रव्य हतु अवैश्व विधिना कुर्यात् प्रनोरर्चनं । नक्तः स प्रनु पूजनैक निरतो नूयोपि नूयो लन्ने । बर्मस्वर्ग तरोरकं सुखफला गारं वरं निर्मलं ॥१॥ नक्षी श्री परमात्मने अनंता० श्रीमजि अतिथि संविनाग व्रत उपदेशकाय फलं यजामहे स्वाहा ॥॥ ॥ ॥ इति श्री साधुकपूरचंदजीकृत वारह व्रत पूजा संपूर्णम् ॥ ॥ ॥४॥
॥॥अथ संक्षिप्त विधि ॥१॥ ॥ विशाल जिन मंदर अथवा धर्मशालामें त्रिगढ पीठ सम वसरण की स्थापना करै । जिसपर पूर्व दिशकी तरफ श्रीमहाबीर स्वामी, एवं चारे दिशें चार प्रतिमा स्थापन करै । आगे एक चौखूणा अठा चांदी पीत खादिकका पट्ट स्थापन करै । जिसपर एक वीचमें । ६ ऊपर । ६ नीचे एवं १३ साथिया करके १३ चावलोंका पुंज करै । ऊपर व्रतनाम युक्त १३ चिठी स्थापन करै । वामपासे कल्पवृद्ध, दहिणे पासे धजा अष्टमंग लीकादि सोनता अतिशय स्थापन करै । अब १३ चिठी लिखनेकी रीति ॥ ॥१॥नक्षी श्री सर्व धर्म मूल श्री मदर्शनायनमः॥ . ॥२॥नक्षी श्री स्थूल प्राणातिपात विरमण बतायनमः॥ ॥३॥ नक्षी श्री स्थूल मृषावाद विरमण व्रतायनमः॥ ॥ ४॥जी श्री स्थूल अदत्तादान विरमण व्रतायनमः॥ .. " ॥ ५॥ नक्षी श्री स्थूल मैथुन विरमण व्रतायनमः॥ ॥६॥ क्षी श्री स्थूल परिग्रह परिमाण विरमण व्रतायनमः॥ ॥७॥जी श्री दिशा परिमाण गुण व्रतायनमः॥
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. ॥८॥नक्षी श्री लोगोपनोग परिमाण गुण व्रतायनमः॥ ॥९॥नक्षी श्री अनर्थ दंम विरमण गुण व्रतायनमः॥ ॥१०॥ नक्षी श्री सामायक शिदा व्रतायनमः॥ ॥११॥नजी श्री देशावगाशीरूप शिक्षा व्रतायनमः॥ ॥१२॥नक्षी श्री पोषधोपवासरूप शिक्षा व्रतायनमः ॥ ॥१३॥नक्षी श्री अतिथि संविनाग दानरूप शिक्षा व्रतायनमः॥
॥ ॥ इसीतरै चिठी १३ लिखके स्थापित करै । तीन नवकार गुणके वाशदेपसें प्रतिष्टत करै (और) जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, अक्त, वस्त्र, धजा, अष्टमंगलीक आदि तैरै तेरै, पूजाके लायक द्रव्य १३ थाल्यामें लगाय दो तरफ रखै । पी3 स्नात्र करायके पूजा करावै । जो पद की पूजा सरू होय सो थाली लेतो रहै चढातो रहै ( परंतु ) नालेरका गोटा १३ वरग लगाया हुवा और धजा १३ व्रतका मामलापर व्रत दीप च ढावै । बाकी द्रव्य सर्व थाल्यांमें दोनुं तरफ रखै । दीपक पूजामें १३ दीपक तो एक थालीमें रखै । और वारह व्रतका अतीचार १२४ वर्जण निमत्त १२४ एकसो चौवीस दीपक मामलैके चारुं तरफ सोनता श्रेणीवच रखै इत्यादि यथा शक्ति चित्तकी नदार वृत्तीसें पूजन विधि करै, करावै, करतां की अनुमोदना करै । विशेष चित्तकी नमंग होय तो वाजिबादि नबवके साथ मोटी धजा, कल्पवृक्ष अष्टमंगलीक नगरमें फिराकर लावै । उत्तम नत्तम द्रव्य जगवानके नेट करै ॥ॐ॥ इति वारह व्रत पूजा विधि संपूर्णम् ॥ ॥ॐ॥अथ पाठक बालचंदजीकृत पंच कल्याणक पूजा॥8॥
॥ तत्र प्रथम च्यवन कल्याणिक पूजा॥8॥ ॥ ( दूहा ) ॥ ज्योतिरूप जगदीशनो, अद्भुत रूप अनूप ॥ प्रवचन प्रजुता प्रगट पण, जय जय ज्योति सरूप ॥ १ ॥ * ॥ चौवीसे जिनवर नमी, पंच कल्याणक रूप ॥ शासन नायक वरण, दर्शन ज्ञान संरूप ॥ २ ॥ ॥ कल्याणक उबव करे, इंद्रादिक जे देव ॥ ते जावे लविजन करे, श्रीजिनवरनी सेव ॥३॥8॥
तो एक थाना चौवीस दीपक मारवृत्तीसें पूजनविधा वाजिबादि नवक
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पंचकल्याणक पूजा. ॥ राग सरपदो ॥जोति सकल जगदीशनी ॥ हारे जगदीशनी ए॥ चार निदेप प्रमाण ॥ नाम जिनादिक जिन कह्या, आगममांहि प्रधान ॥१॥
गाथा ॥ नाम जिणा जिण नामा। उवण जिणा ने जिणंद पमिमा॥ दवजिणा जिण जीवा । जाव जिणा समवसरणत्था ॥१॥॥
॥ ढाल तेहीज ॥ विन कारण कारज नही, हां रे का० ए ॥ ए सब लोक प्रसिध॥नाव निक्षेप प्रधानता । कारज रूपें सिघ ॥ १ ॥ विण आ कारें द्रव्यनो॥हां०॥द्र० ए॥न हुवे थापन सिध॥ नामविना आकारनो, प्रगट पणे नवि बुद्ध ॥२॥ नामादिक कारण सही ॥ हां०॥ का० ए॥इन विन नाव न होय ॥ नाव विशुधे जिनतणी । पूज करो सहु कोय ॥३॥ व्यवहार निश्चय लहे ॥ हां० नि० ए ॥ कारण कारज होय ॥ पावम शाला कम करी, सौध चढे सहु कोय ॥४॥ॐ॥
॥ (दूहा)॥झानकला कलितातमा। लोकालोक प्रकाश ॥ व्यापकनावें थिर रह्यो । शुध विकास विलास ॥१॥ * ॥
॥ राग सारंग ॥ हांहोरे देवा, जोति सकल जिन राजनी। सहु लोका लोक प्रकाश ए॥हांहोरे देवा, राजत श्रीजिनराजनी । वाणी प्रवचन शुन वास ए ॥ १ ॥ हांहोरे देवा, मात नमुं नित्य शारदा । गुरुपंच कल्याणक सार ए॥ हांहोरे देवा, तीर्थकरना वरण, । गुण शास्त्र परंपर धार ए ॥२॥ ..॥ (दूहा)॥शासन नायक जग धणी । त्रिभुवन पति परमेस ॥ पर उपगारी प्रनु तणा, गुण गावत सहु वेस॥१॥ ॥ .
॥ ढाल तेहीज ॥ हांहोरे देवा, वीश थानक करि सेवना, बांध्युं जिन नाम प्रधान ए॥ हांहो०॥ दिव्य अमर सुख अनुन्नवे। प्राये प्रनु पुण्य प्रमाण ए॥१॥ हांहो०॥ निरमल तर वर ज्ञानना ।धारक कारक शुनयोग ए॥ हाहो ॥शब्द वरण रस गंधना । शुन्न फरस तणा वर लोग ए ॥ २ ॥ हांहो । शाश्वत सिघायतण तणा । नित नसव करत सुरंग ए ॥ हांहो०॥ बालचंद पाठक कहे। नित मंगल होत सुचंग ए॥३॥ ॥
॥ (दूहा) ॥ पुण्य पूर्व नव प्रनुतणो। प्रगट्यो प्रगट प्रनाव ॥ सुरकुमरी नित प्रति करे। नाटक नवनव नाव ॥१॥ ॥
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ ॥ पूर्व मुख सावनं ॥ ए देशी ॥ * ॥
॥ शुद्ध निज दर्शनें, करिय गुणकर्षना । जिनचरण सेवना विविधकारी ॥ यो विविधकारी ॥ ए ० ॥ एक निजधर्ममय परमलय जीनता। दीनता सकल तज रज निवारी || हे ई० ॥ २० ॥ १ ॥ आत्मगुण अंतरातमप णे वृत्तिता । तजिय वहिरात्मजिन प्राण धारी ॥ हे ० ॥ ० ॥ २॥ शुद्ध सम्यक्तगुण संपदा निज नही । सहीय शुभ धर्म रुचि जास सारी ॥ हे अ० ज० ॥ ३ ॥ विविधमणि रत्ननी जोति ऊगमग जगे, चंद्रिका जास नासित करारी ॥ हे प्र० प्रा० ॥ ४ ॥ प्रवर कुल शुद्ध राजन्य प्रमुखें मुदा ॥ प्रयुकर बंध तर जव सुधारी ॥ हे अ० ज० ॥ गर्भ अवतार निज मात नदरें लहे । वाल शुभ लग्न शुभ योग चारी ॥ हे ० ॥ शु० ॥ ५ ॥ || || TET || ||
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॥ शुभदिन शुभ मुहुरत घमी । शुन नच्च ग्रह चार ॥ देवलोक चवि प्रभु लहे । मातु नदर अवतार ॥ १ ॥ सुंदरवर प्रासाद महि, मध्यनिशा जिनमात स्वम देख सुख सेजमें। जाग्रत अति हरखांत ॥ २ ॥
॥
॥ * ॥
॥ राग काफी ॥ जिनजी जो नवि प्यारा । या तें आनंद अधिक प्र यारा ॥ ज० ॥ १ ॥ सुख सेज सूती जिन माता । देखे सुपना मनत्राता ॥ चित्त हरखित हुय ति वारा ॥ जि० ॥ २ ॥ शुचि गज वृष सिंह मनुहार, लक्ष्मी दाम शशी दिनकार ॥ धज कुंत्र पदमसर सारा ॥ जि० ॥ ३ ॥ वर कीर समुद्र विमान । रयणोच्चय मेरुसमान || निर्धूम पावक सुखकारा || जि ॥ ४ ॥ शिवधान्य मंगल श्रियकारी । जाणी अर्थ हृदय क्रमधारी । शुभसूचक पुएय संजारा ॥ जि० ॥ ५ ॥ सुंदर वर सखियन संगें । करिधर्म जागरिकारंगें, निशि शेष गई तिणवारा ॥ जि० ॥ ६ ॥ इहां एक पुष्पमाला चढावे ॥
॥ * ॥ दोहा ॥ * ॥
परम पुरुष परमातमा, जावी भगवन मास | प्रवचन प्रगटीकरण प्रभु पुण्य तणे सुप्रकाश ॥ १ ॥
॥
॥ ॐ ॥
॥
॥ पूजा सतर प्रकारी ॥ ए देशी ॥ * ॥
॥ आज आनंद वधाई, नई त्रिभुवनमें। चौद सुपन सूचित गुहा जेहना,
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पांचकल्याणक पूजा. . अवतरे माता नदरनमें ॥ प्रा० ॥१॥ नृपति सदन वहु सुपन शास्त्र विध, अर्थ विचार करि निज गनमें ॥ पुत्र रतन फल वचत नृपति कुल, परम कल्याण होत जनजनमें ॥आ० ॥२॥ प्रफुलित हरख जरत हीय नवसत, जिन जननी सुतात सुन तनमें ॥ दिन दिन बढत प्रवर धन जन मन, अधि क नत्साह घर घरनमें ॥०॥३॥ रूप्प रजत मणि माणक मोतियें, शंख प्रवाल शिल वरसनमें॥ धनद धनद सुरइंद्र हुकमतें, जरत नंमार नृपके सदनमें ॥आ० ॥४॥ताल कंसाल मधु वीण वजावत, गीत गान गावत तन ननमें॥उन्मुनि मुरज मृदंग घन गरजत, गरज गरज मानुं जैसे घनमें । आ०॥५॥ सुर नर लोक मांहे अधिक नत्साह वाह । निशिदिन होत जनजनपदमें ॥इंद्र इंद्राणी नृप दोहद पूरत, मनोरथ होत जो जो मातु मनमें ॥आ० ॥६॥ परम कल्याण शुनयोग संयोग भयो । शुन्न घरि शुन्न ग्रह शुन्न दिनमें ॥ वरण सके न ताहि कवि अवसरकों, आनंद जयो हे तीन जुवनमें ॥आ०॥७॥क्षी श्री परमात्मनेऽनंतानंत झानशक्तिये जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमजिनेंद्राय चवनकल्याणके अष्टद्रव्यं यजा महे स्वाहा ॥ इति प्रथम चवन कल्याणक पूजा॥ * ॥ .. ॥ ॥
॥॥अथ द्वितीय जन्मकल्याणक पूजा॥2॥ ( दूहा)॥प्रगटे पावन पतित प्रनु, अधम नधारन काज ॥ नृपकु समांहे अवतरे, विन्नुवनके शिरताज ॥१॥ ॥
॥ ॥ ॥ * ॥राग सोरग॥ * ॥ आज अधिक आनंद नयो रे वाला, आज सुरंग वधाईरे॥आगे जगपति जिनवर जनमिया रे वाला, सुर वधुवन मिल आई रे॥१॥ आगे आज आनंदघन नलट्यो रे वाला, दिशि कुमरी हरखाई रे॥आगे दशदि श निर्मलता थई रेवाला, फूल रही वनराई रे॥२॥आगे फूलें फूली वनलता रेवाला, मधु मालती महकाई रे ॥ शालि प्रमुख सहु धान्यनी रे वाला निपजी राशि सवाई रे ॥३॥ नारकी जीवें नरकमां रे वाला, दाण इक शाता पाई रे॥ सब जन मन हरषित नयो रे वाला, नूमंगल बि गई रे ॥ ४॥शुज़दिन शुभ महूरतघमी रे वाला, शुनग्रह शुन्न पल आई रे॥
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. जन्म थयो जिनराजनो रे वाला, प्रगटी पूर्व पुण्याई रे ॥५॥ ए पढी पुष्प तथा गुलाबजलकी वर्षा करे ॥४॥
॥(सोरठगे)॥ त्रिनुवन मांहि सुरूप, जन्मसमय जिनराजनें ॥ वाजिन वजत अनूप, सुर नर कृत उत्सव हुवे ॥१॥ * ॥
॥ * ॥रावण निरत वणावे हो जला एचाल॥ॐ॥
# आज आनंद बधाई रे, देखो, आज आनंद वधाई॥ जयजयकार जयो जिनशासन, सुरकुमरी हरखाई रे ॥ दे० ॥१॥ घरघर गोरी मंगल गावत, मोतियन चोक पुराई रे॥ इति नपद्रव जय सब नागे, खार समुद्रे जाई रे॥ दे० ॥२॥आज सनाथ जयो हे त्रिनुवन, ॥ जिनवर जनम्या जाई रे॥आज अधिक जग हर्ष नयो हे, धन धन माता कहाई रे॥ दे०॥३॥ जन्म महोत्सव करननकुं सब, दिशिकुमरी मिल आईरे ॥ करि कदलीगृह सुंदर रचना, पावन कर नर लाई रे॥ दे० ॥ ४ ॥ जिनज. ननी जिनवर पय प्रणमी, मस्तक आण चढाई रे । स्नान करावत नन्नय श रीरे, तैलाभ्यंग कराई रे ॥ दे० ॥५॥ जूषण नूषित अंग बिलेपन, देव दूष्य पहराई रे॥ दर्पण ले मंगल घट थापी । चामर जुगल ढुलाई रे दे०॥६॥पंचवरनके फूल सुगंधित, सुर कुमरी वरषाई रे॥ होम करी रदापोटरिया, जिनवर करे बंधाई रे॥०॥७॥मंगल गावत जिन जगज ननी, निजगृह मांहे ठाई रे॥ सफल भयो निज आतम जाणी, दिशि कुम री घर आई रे॥०॥८॥8॥
(दूहा)॥अतिहि अधिक नत्सव करी, गइ कुमरी निज थान ॥ इंद्र हवे नत्सव करे, जन्म समय जिन जाण ॥१॥४॥
॥॥राग गोमी॥सांऊ समे जिन वंदो॥ए देशी॥2॥
*आज नबव मन लायोरे॥देखो माई॥जगजननी जिन जायोरे ॥दे०॥०॥त्रिनुवन मांहि प्रकाश नयो हे, इंद्रासन थररायोरे ॥ दे. ॥आ०॥१॥अवधिज्ञानधर जिनजीकुं निरखत, हृदय कमल नलसायो रे॥ हरिणगमेषी इंद्र हुकमतें, घंट सुघोष घुरायोरे॥दे०॥ आ० ॥ २ ॥ बनठन नवनवरूप मनोहर, सुरसमुदय मन जायोरे॥ सुरकुमरी वरऋषण न
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न । श्रीबालचंदजीकृत पंचकल्याणक पूजा.
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षित, अद्भुत रूप बनायो रे ॥ दे० ॥ ० ॥ ३ ॥ नव नव यानवाहन रच सुरवर, सुरगिरि शिखरे प्रायोरे ॥ चौसठ इंद्र करत अति उत्सव, मेघ घटा घररायोरे ॥ दे० ॥ ० ॥ ४ ॥ काली घटा वरदामनि चमकत, दापुर मोर सुहायोरे ॥ अतिहि सुगंध पुष्पव्रज वरसत, मोतियनकी ऊर लायोरे ॥ दे० ॥ ० ॥ ५ ॥ इति ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ ( दूहा ) ॥ शक जाय जिनबर गृहे, जिनजननी जिनराज ॥ प्रणमी श्रीमहाराजनी, भक्ति करे सुरराज ॥ १ ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ ॥ सुंदर नेम पियारो माई ॥ ए देशी ॥ * ॥ ॥ तुम सुत प्रान पियारो माई ॥ तु० ॥ ए आंकणी ॥ जगवत्सल ज नायक निरख्यो, धन धन जाग्य हमारो माई ॥ तु० ॥ १ ॥ धन जगज ननी तुम सुत जायो, प्रधमनधारण हारो माई ॥ धन धन प्रगट जयो जग दिनकर, त्रिभुवन तारन हारो माई ॥ तु० ॥ २ ॥ सब सुर चाहत स्नात्र करन कुं, सुरगिरि प्रभुजी पधारो माई || कर जोकी प्रनु परज करतहुँ सब जनकाज सुधारो माई ॥ तु० ॥ ३ ॥ में सेवक तुम सुत चरणनको,
यो हूँ अधिकारो माई ॥ इंद्र कहे पदपंकज प्रणमुं, जय सब दूर निवारो माई ॥ तु० ॥ ४ ॥ पांच रूप करि प्रभुजीकुं लावे, पांफुगवन सिणगारो माई ॥ चोसठ इंद्र महोत्सव करिहे, पूजन प्रष्ट प्रकारो माई ॥ तु० ॥ ५ ॥
॥ इहां प्रभु प्रतिमा पंचतीर्थी अंदरसें जायके, सिंहासा ऊपर स्थापन करे (पीछे) स्नात्र पूजा करावे ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ ( दूहा ) ॥ पंचरूप कर इंद्र जिन, पंमुग वन ले जाय ॥ सिंहासन ब रंग गहि, स्नात्र करे सुरराय ॥ १ ॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ इतनो गुमान न करियें बबीजी राधा हे ॥ ए देशी ॥ * ॥ ॥ जिनजीको पूजन करियें, हां रे हो रंगीले श्रावक हो ॥ जि० ॥ द्रव्य नाव बेहुदे करतां, नव सागर निस्तरियें ॥ जि० ॥ १ ॥ गंगाजल चंद न पुष्पादिकविध मंगल धरियें || जावविशुदें जिन गुण गावो, नाटक नवनव करिये ॥ ज• ॥ २ ॥ बहुविध प्रनुकी भक्ति रचावत, वर्नन करन न तरियें || वो आनंद देखे सोइ जाने, दुःख सब दूरें हरिये ॥ जि० ॥ ३ ॥
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६९४ . रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. पूजन करि प्रनुकुं घर लावे, आतम पुण्ये जरिये ॥ कर अहाइ महोत्सव
आवतः सब सुर मिल निज घरिये ॥ जि० ॥ ४ ॥ नझी श्री प० अ० ज जन्मकल्याणके अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥२॥॥ ॥॥
॥॥अथ तृतीय दिदा कल्याणक पूजा ॥ ॥ ॥ (दूहा)। सुरकृत नत्सव अति अधिक, नये अनंतर प्रात ॥ मात पिता नत्सव करे, निज कुलक्रम विख्यात ॥१॥ पार नही धनको जहां, अगणित नरे नंमार ॥ दान मनोवंचित दिये, दयावंत दातार ॥२॥2॥
॥ ॥गात्र लूहे ॥ ए देशी ॥१॥ ॥जिनजन्म महोत्सव रंगशुं रे, नये प्रात करत नबरंगशुं ॥ रंगसुं हां रे देवा रंगशुं ॥ नृपनत्सव करे अति घणो ॥ १॥ पुत्रजन्म कुल क्रम करे रे देवा, जगजश कीरत विस्तरे॥ वि० हां०॥ घरघर उत्सव रंगमें ॥२॥ सुर वधु मिल सुरसंगशुं रे ॥ देवा०॥ करे नाटक नवरंगशुं॥ रंग हारे० ॥ बाललीला जिनसंगमें ॥३॥रूपातिशयें शोजता रे॥देवा ॥ इंद्रादिक मन मोहता ॥ मो० हां रेमन ॥ विद्यापनु विस्मयवती ॥ ४ ॥ परमप्रमोद प्रवीणता रे देवा, सुरक्रीमा अतिशयवता ॥ अव्हां ॥ वैक्रिय शक्तिसमेलशुं रे॥५॥गावतगीत नमंगशुं रे देवा, वाजित नवनव रंगशुं ॥रं० हां० ॥ वजित अहोनिशि संगशुं रे॥६॥2॥
॥ ( दूहा ) ॥ तीन ज्ञान अतिशय धरे, अतिशय कला सुधाम ॥ सुर सुसंग क्रीमातिशय, अतिशयगुण अनिराम ॥१॥॥
... पंच वरणी अंगी रची ए देशी॥॥ ॥॥ वरणी न जाती रे, व०॥ जिनजीकी शोना व० ॥ चित्रजात नर सुरासुर निरखत, नरन एसो जग नाती ॥ जि० ॥ १ ॥ अनंत गुणे करि शोनित प्रजु जी, शुध संवेग सोवन जाती॥ शिव मारग शुध सेवत निशि दिन, पुण्यपुरुष पायाराती॥ जि०॥ २ ॥ पर नपगारी परम पुरुषोत्तम अन्जत अनुन्नव रस पाती॥कामनोग वरविबुध प्रकारे प्रात नये सुख संघा ती॥जि ॥३॥ जसु जस ख्यात प्रगट त्रिनुवनमें कुल राजन्योत्तम जाती॥धन धन तीन जुवनके साहिब, श्याम हमारो वरगाती ॥ जि०॥
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- पांचकल्याणक पूजा. ॥ ४॥ इंद्र अहोनिशि नावन जावत, देख दरश अति हरखाती॥पुन्छ नि प्रमुख वाजिव वजत नित । सुरवधु वनमंगल गाती॥ जि० ॥ ५ ॥ ए पढके प्रनुको पुष्प वासदेप चढावे॥ ॥
॥ ॥ ॥ * ॥ (दूहा) ॥ प्रवरनोग प्रनुपुण्यतें । प्रगटे प्रगट प्रधान ॥ गुण ग्राहक गृह वासमें, दर्शन ज्ञान निधान॥ १॥ * ॥
॥ ॥ राग तुमरी॥ तुम विन दीनानाथ ॥2॥ ॥॥प्रनुविन दीनानाथ दया विन, कोन कहावत कोईरे ॥प्र०॥ गृहवासें शुधसंयमधारी, शुषसुनावे होई रे॥प्र०॥१॥ सम्यग्दर्शनन वनिर्वेदें, स्वतनकी जर खोई रे॥प्रनुता प्रजुकी को कहि वरनें सुर नर नारी मोही रे॥प्र०॥ २॥ शुनलेश्या शुन्नध्यान रमें नित । आतम निरमल धोईरे॥आतमरूप निहारत निजघर । संगसुमति जह जोई रे॥ प्र॥ ॥ ३ ॥ प्रगट प्रकाश आत्म नजियारे । साम कहावत सोई रे ॥ गृहवासे शुभसंयम रागी, लागी लगन सवाई रे॥ प्र० ॥ ४ ॥ निजप्रनुता प्रनु जीनो लीनो, अंतर शविगाई रे॥ विषयवासना गण नई लख । आतम शक्तिशुं गेई रे॥ प्र०॥५॥ ऐसा कही फूल चढावे ॥ॐ॥
॥ ॥ (दूहा)॥ दाता दीन दयाल प्रनु, देत संवत्सरिदान ॥ दूर करे दारिद्र जग, त्रिनुवनमांहि प्रधान ॥१॥॥
॥ ॥ मरुदेवानंदकी, क्या उबि लागत प्यारी ॥१॥ ॥ ॥ जगपति जिनवरकी, क्या नबि मोहनगारी ॥ ज० ॥ मोहत प्रनुके मोहनरूपें, निरख निरख नरनारी ॥क्या० ॥१॥ नोगकर्म अंतराय कर्म कबु, वीण नए निरधारी॥दानसंवत्सर घन जिम बरसत, पृथ्वी प्रमुदि तकारी ॥ क्या ॥२॥ नवलोकांतिक देव सबे मिल, हाजर होय सुचारी ॥ जय जय मंगल शब्द नच्चारत, धर्म गहो सुखकारी॥क्या० ॥ ३ ॥ दान धर्म शिवमारग प्रनुजी, प्रगट कियो हितकारी॥ दाता दीनदयाल जगतमें जिन सम को सुविचारी ॥ क्या०॥४॥इंद्रादिक सुर सुरी नर नारी, दीको त्सव अतिलारी॥गान दान सनमान तान करी, प्रगति सकल सुप्यारी॥ क्या०॥५॥ तजि संसार लियो शुनयोगें, संयम सतरप्रकारी ॥ मनपर्यव
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६९६ . रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. वर झान नयो तब, विहरत पर नपगारी ॥ क्या० ॥ ६ ॥ नक्षी प० अ० ज० श्री दी० अष्टद्रव्यं० स्वाहा ॥३॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥
॥अथ चतुर्थकेवलज्ञानकल्याणक पूजा॥8॥ ॥ ॥दोहा॥ गजवर अश्व समूह स्थ, पायक कोमाकोम॥ जिनदीक्षा महोत्सवसमें, हाजर होय तिण ठगेर ॥ १ ॥ इंद्रादिक सुर असुर नर, प्रजुकुं करे प्रणाम ॥ नर नारी आशीष दे। जयजय त्रिलुवन साम ॥२॥ तजि आश्रव संबर गहे, संयमन्नाव निधान ॥ सब संसार तजी करी, नए अणगार प्रधान ॥३॥ ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ तेरी पूजा बणी ते रसमें ॥ ए देशी॥ ॥ ॥ ॥धारी धारी धारी, जिन नए संयमपद धारी ॥ चरणकमल व लिहारी॥ जि० ॥ पंचसुमतिधर तीन गुपतिकर । सब जीवां सुखकारी॥ जि०॥१॥जीत लिये नपसर्गपरीसह, शत्रुसेना गणनारी ॥ जयनैरवतें निःप्रकंप नए, निर्मम निरहंकारी ॥ जि० ॥ २॥ क्रोध मान माया लोन अकिंचन, आकिंचन ब्रह्मचारी ॥ पुष्करसम निरलेप जगत गुरु, नीरंजन अविकारी ॥ जि० ॥३॥ चेतन पर प्रनु अप्रतिघाती । खेसम निराश्र यारी ॥ खड्गी श्रृंग परे एकाकी, अप्रतिबंध बिहारी॥ जि० ॥४॥ ॥
॥ ॥ (दोहा)॥ रत्नत्रय परिग्रह करी । मुक्तिमार्ग अजिराम ॥ निशि दिन करत विहारक्रम । प्रासुकाम निजधाम ॥१॥ ॥॥ ॥.
॥ ॥ सद्गुरुजी सुनो मेरी अरजी ॥ ए देशी ॥ ॥ ॥ जिनवरजी जगतहितकारी ॥ जि०॥ जग वत्सल जगवंधु जगत गुरु, जग नायक जयकारी|जि०॥१॥कूर्मतणीपर गुप्तइंद्रिया, अप्रमाद जारमसुचरि॥ अतिशय धाम धाम निजवीरज, वृषनपरें सुविहारी ॥ जि° ॥२॥ शूर बीर प्रनु सिंहतणी पर । कुंजर करम बिदारी ॥ अतिगंभीर सायरसम शोनित । सौम्यलेश्या सुखकारी ॥ जि० ॥३॥ तेज पुंज दि नकर सम दीपत, हेम वरण मनुहारी ॥ सर्वसहन कारक धरणीपर, स्वच्छ हृदयकजधारी। जि०॥४॥ ॥ ॥ ॥ ॥
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. . पांचकल्याणक पूजा॥ ॥ (दोहा) अनुत्तर धर संयमक्रिया, कटपातीतजिणंद ॥ वीतराग विचरे प्रवर, रत्नत्रय जगचंद ॥१॥ ॥
॥ ॥ कुबजाने जादू मारा ॥ ए देशी॥ॐ॥ *॥ जाके रागद्वेष नया न्यारा रे, सोई श्याम सकल सुखकारा॥ जा० ॥ बासी चंदन सम प्रनु जगमें, अपकारें नपकारा रे, ॥ सो० ॥१॥ कंचन काष्ठ समान हे जाके, सुख पुःख सम उपचारा ॥ कोऊ निंदत कोक पूजत, जिनजी हे अविकारा रे ॥ सो० ॥ जा० ॥२॥ शिवसु ख अरु जवसुख हू न वांजे, वीतराग प्रनु प्यारा ॥ शूरवीर प्रनु पकश्रेणि चढ, मोहनी मल्ल पिगरा रे॥ सो॥ जा० ॥३॥दायिक संयमने शुन्न योगें, अनुत्तर गुण गण धारा॥ पाठक विजय विमल कहे प्रनुके, चरणकम ल बलिहारा रे॥सो० ॥ जा० ॥४॥
॥8॥ (दोहा (घनघाती चन कर्मकों, क्यकर दायिक ज्ञान ॥ दर्शन लोकालोकको । प्रगट प्रकाशी जान ॥१॥॥॥ ॥ ॥
॥ ॥राग ठुमरी ॥ वस मन दत्री कुंमके तोर ॥ ॥ ॥॥पायो प्रनु नवजलनिधिको तीर, अतुलीबल वमवीर ॥ पा०॥ अनुत्तर जाके सुमति गुपति हे, अनुत्तरदमासुधीर ॥ पा० ॥१॥ मार्दवा र्यव अनुत्तर जाके रोक्यो आश्रव नीर ॥ संबरजोग क्रिया नवि विणठी, रही ईर्या सुख सीर ॥ पा० ॥२॥ घनघाती सब शत्रुविनाशी, केवलज्ञान सुधी र॥ पूरन दर्शन प्रगट नयो हे, निज आतम गुणदीर ॥पा०॥३॥प्रा तिहार्य अतिशय जिनसंपद, नयो अनुकूल समीर ॥ दे उपदेश विक प्रति बोधत, वचनातिशय गंभीर ॥पा०॥४॥ लोकालोक प्रकाश परम गुरु, कहि न शके मति सीर ॥ पाठक विजयविमल परमातम, प्रनुता परम सु थीर ॥ पा०॥५॥ जी परमा० अ० ज० श्रीम० केवलज्ञानकल्या णके अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ इति ॥४॥
॥ ॥ -08 ॥अथ पंचम निर्वाण कल्याणक पूजा॥ॐ॥
॥दोहा॥ इंद्रादिक सुर सब मिली, तीन नुवन शिरदार ॥ सब दरशी सर्वानो, महिमा करे अपार ॥१॥
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥
॥ * ॥ अतुल विमल मिल्या अखं गुणें ॥ ए देशी ॥ ॥ * ॥ अतुल विमल प्रजुता प्रजुकी लख, चोसठ इंद्र व घरे ए ॥ चार प्रकारके सुर सब मिलकर समवसरण रचना करे ए ॥ अ० ॥ १ ॥ रजत कनक वररत्नप्रकारें, कनक रत्न मणि कंगुरा ए ॥ वृक्ष अशोक सिंहा सन शोभित, तीन बत्र चामर दुरा ए ॥ प्र० ॥ २ ॥ मुनि प्रमुख श्रवण सुखदायक, गहिर सुरे वाजित्र घुरे ए ॥ जानुप्रमाण पुष्पधन वरसत जल जथलज विकसित सुरे ए ॥ ० ॥ ३ ॥ साधु साधवी श्रावक श्राविका इंद्रादिक सुरी सुर वरे ए ॥ नरनारी तिर्यगू विद्याधर, द्वादशविध परिषद नरे ए ॥ ० ॥ ४ ॥ विजन धर्म त उपदेशें जोजन गामि मधुर गिरे ए ॥ प्रतिबोधत चौमुख श्रीजिनवर, निज निज भाषा अनुसरे ए ॥ अ० ॥ ५ ॥ ए पढके वासक्षेप करे ॥
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॥ * ॥ दोहा ॥ प्रगटपणें प्रजुकी प्रजा टी प्रभुता परमसम । परमातम पदनूप ॥ १ ॥ ॥
॥ * ॥ बिगरी कौन सुधारे नाथ विना ॥ ए देशी ॥ ॥ ॥ * ॥ नूमंगल जविकमल विबोधन, दिनकर सम जिनराया रे || ० ॥ प्रहुते इक कोमी अमरपद, पंकज जमर जुनाया रे ॥ जू० ॥ १ ॥ ग्राम नगर पुर पट्टण बिचरत, त्रिभुवननाथ कहाया रे || चौसठ इंद्र करें जाकी सेवा तन मनसें जयलाया रे ॥ ० ॥ २ ॥ इंद्राणी मिल मंगल गावतः मोतियन चोक पुराया रे ॥ सर्व जीव हितकारक प्रभुजी, निःश्रेयस सुखदाया रे ॥ ० ॥ ३ ॥ जवजलनिधि निर्यामक जगगुरु तारक सकल कहाया रे || शासननायक संघसकलकुं । प्रवचन तत्त्व सुनाया रे ॥ भू० ॥ ४ ॥ अनंतगुणाकर प्रभुजीकी महिमा वरने को कविराया रे || पर नप कारक प्रभुके पाठक, विजय विमल गुण गाया रे ॥ ० ॥ ५ ॥ ए कहके वासक्षेप करे | ॥
॥ * ॥
॥ ॥
॥ * ॥ (दोहा)। निज निज भाषा विकजन, तृपत न सुनतहि श्रोत ॥ मीठी अमृत सम गिरा, समजत श्रम नहि होत ॥ १ ॥
॥ ॐ ॥
॥ *॥
प्रगट प्रकाशक रूप ॥ प्रग
॥ॐ॥
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पंचकल्याणक पूजा॥ * ॥ राग कहरवा ॥ ॥
॥ * ॥ जिनंदवामिल गयो रे, दोय चरणं परध्या न ॥ शुक्ल मन गह गोरे ॥ जि० ॥ ज्ञायकज्ञेय अनंतनोरे, सबदरसी जिनचंद || सुरतरु सम जग वालहोरे, सेवत सुर नर इंद ॥ धर्ममैं लह लह्यो रे ॥ दो० ॥ १ ॥ चौदम गुण थानक करे रे, आतम वीर्य अनंत ॥ योग निरोधनकी क्रियारे, सूखम बादरकंत ॥ बंध सब टर गयो सरब संबर जयोरे ॥ दो० ॥ २ ॥ घन कर आत्मप्रदेशनोरे, कर शैलेशी कर्ण ॥ कर्म सकल दूरें कियारे, जीर्णवस्त्र जिम पर्ण मुक्ति पद जिम लह्यो रे ॥ दो० ॥ ३ ॥ ज्ञान क्रिया कर कर्म कोरे, य कर पर अनुबंध ॥ निजप्रातम रूपें जहां रे? शाश्वत सुख संबंध, सिध शुद्ध बुध थयो रे ॥ दो० ॥ ४ ॥ ॥
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॥ * ॥ (दोहा) कल अगोचर अगमगम, सिव नए सुविशुद्ध ॥ परमातम प्रनु परम पद, चिदानंद विरुद्ध ॥ १ ॥
॥ ॥
॥ * ॥ राग धनाश्री ॥ तेजतरणिमुखराजे ॥ ए देशी ॥ ॥ ॥ ॥ तेज तरणि सम राजे प्रभुजीको ॥ ते० ॥ एकसमयप्रजु करध गतिकर, मुक्तिमहल सुविराजे ॥ प्र० ॥ ते० ॥ १ ॥ सादि अनंत सदा शा श्वत वर अनंत महासुख बाजे ॥ अचल अगोचर प्रजु अविनाशी, सिस रूप बिराजे ॥ प्र० ॥ ते० ॥ २ ॥ निरुपाधिक निरुपम सुख प्रजुके क हिन शके कविराजे ॥ अजर अमर य अविकारी, सकलानंद सहा जे ॥ ॥ प्र० ॥ ते० ॥ ३ ॥ संवत नगणी से तेरो तर श्रावण शुदि पख राजे ॥ श्री जिनराज तथा गुण गाया, पंचमि दिवस समाजे ॥ प्र० ॥ ते० ॥ ४ ॥ श्रीविक्रमपुर नगर मनोहर श्रीसंघ सकल समाजे ॥ पंच कल्याणक पूजा प्रजुकी, कीनी हित सुखकाजे ॥ प्र ० ॥ ० ॥ ५ ॥ श्रीखरतरगच्छ ना यक लायक युगप्रधान पद बाजे ॥ जंगमगुरु नट्टारकवरश्री, जिनसौभाग्य सुराजे ॥ प्र० ॥ ० ॥ ६ ॥ प्रीत विलास धम्मसुंदर गणि अमृत समु द्र सुभ्राजे || पाठक विजय विमल प्रनुके गुण, गावत घन जिम गाजे || प्र० ॥ ते० ॥ ७ ॥ हंसविलाश प्रवरगणिवरकी प्रेरणया सुसमाजे ॥ श्रीजिनवरकी स्तवना कीधी, धर्म्मप्रभावन काजें ॥ प्र० ॥ ते ॥ ८ ॥
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. नक्षी प० ॥ अनं० ॥ जन्म जरामृत्यु निवारणायः श्री मजिनेंद्रेभ्यो नि णिकल्याणके अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ इति श्री पाठक बिजयविम लजीविरचित पांच क० पू० सं०॥ ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥आरती ॥राग मालवी गोमी ॥ * ॥... ॥2॥ शुन्न आरती प्रजुकी नदारचित्तें करो नविक रसालरे॥ प्रथ मधूप सुगंधजिनकुं, नुखेवो जिननालरे॥१॥नाल निजकर तिलक सुंदर पहर पुष्प सुमालरे ॥ दक्षिणकर जिन राजजुके, कर आवर्त सुथालरे । शु० ॥२॥ यथासगते शुधनगते, करो दिल खुशियालरे ॥ द्रव्यनावें वि विधपूजा, नविकनाव विशालरे ॥ शु० ॥३॥ गुण अनंत महंत गावो, प्रजुपरम दयालरे ॥ जन्म सफलो करो नविजन, कहे पाठक बालरे॥ शु०॥ ४॥ इति आरती॥ ॥ॐ॥
॥॥अथ पांच कल्याणक पूजा विधिः॥2॥ ॥ ॥ प्रथम बिंबप्रतिष्ठामें ( तथा ) इसीवंत सेठ सककारादिककी तरफसें ( तथा ) संघ समुदायके तरफसेंजो पांच कल्याणकका नचव होय ( तबतो) विस्तार विधिसें एकेक दिनमें एकेक कल्याणकका नबव करे। पांच दिनमें पांच कल्याणक करै (और) जल यात्रा, चोवीस प्रकारी बीश स्थानक, सतर नेदी, नवपदजीकी एकेक दिन पूजा नलव विस्तार वि धिसाथ करावै । ऐसें १० दिनका नबव करै ॥ (यथा) पहले दिन पूठिया चंद्रवा तोरणादिकसें मंझपकी स्थापना करावे ॥१० दिग्पालाकों वलवाकुल दिरावे । जल यात्रादि नबव करके मंगल कलश थापन करै (इत्यादि)। दूशरै दिन चवन कल्याणकको उबव करै (जैसे) देवलोकसें चवके माताके गर्नमें आवै (तैसें ) नगवानकी माताको काष्टमई घरादिकमें पमि बिंबो स्थापन करै ( पीने ) ऊपर सेती काष्ट विमानमें लगवानको प्रतिबिंब स्थापन करके नीचै नतारै ( पीने) चवदै स्वप्नांको क्रमसें उतारै । माताके मंझपकेपा स रख्के । तीन नवकार गुणके नतारे (ओर) तीन नवकार गुणके स्था पन करें। (पीजे) एक (वा) २४ रत्न (अथवा) एक (वा) २४
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पांचकल्याणक पूजा विधि. रुपियाँसे । चवन कल्याणककी थापना करै ( और ) चवन कल्याणककी पांच पूजा पढे ॥ ॥ इति च्यवन कल्याणक पूजा ॥१॥ ॥ ...
॥ * ॥अथ जन्मकल्याणक विधिः॥॥ ॥तीशरे दिन जन्म कल्याणकको संपूर्ण नबव करै ( जैसें ) उप्पन दिश कुमरीका आगमन, और यावन्मात्र केली गृह रचना, दर्पण दर्शनादिक नबव करै ॥ तिस पीने, सुमेरु पर्वतकी थापनाके ऊपर इंद्रादिकका रूप करके नगवानकों थापन करे । सोने, रूपे, तांबा, पीतल, मट्टी आदि अनेक तरै का कलश वन सके तो १००८ कलश गंगानदी आदि अनेक ठिकाणेका जलसें जरनरके स्नात्र नलव करावै ॥ श्रृंगार १ । दर्पण २ । रत्न करंमक ३ । स्थाल ४ । पुष्प चंगेरिका ५। इत्यादि नपगरण पूजाका सर्व नगवान आगे रखै ॥ सर्व क्षेत्रांकी सुगंधी उषधीयांसें स्नात्र करावे । गुलाबजलकी, पुष्पां की, रत्नांकी, वर्षा करे। तदनंतर सिधार्थ राजायें जिस माफक जव कियो नस माफक अपनेसें वन सके जिस मुजब संपूर्ण नबव करे । (तदनंतर) घृतसर २४, । नैवेद्य सेर २४॥ गुमसेर २४। फल अढा २४ । चढावे। २४ सधव स्त्रियां मिलके २४ गवली करै ॥ जन्मकल्याणककी पांच पूजा पढ़े। आरती मंगल दीप नतारे ॥१॥
॥ॐ॥अथ दिक्षा कल्याणक विधिः॥ * ॥ ॥ चोथे दिन दिवा कल्याणकको नबव करै । खाशा पालखीमें नगवा नकों वेठगके, वर घोमो वाजित्रादि सहत वमे नवसे निकाले । अहा वाग वगीचामें लेजाके । अशोक, आम्रादि, उत्तम वृक्के नीचे सिंघासनपर स्थापन करके स्नात्र नबव करावे । २४ गज उत्तम वस्त्र चढावे । वाश देप देके नवीन चंद्रवा चढावे । दिदा कल्याणककी पांच पूजा गवावे। जैन याचकादिककों दान देवै । साहमीवबल करे ॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ केवल ग्यान कल्याणक पूजा विधि ॥ १ ॥
॥ ॥ पांचमें दिन त्रिगमा समोशरणकी रचना करे। मुगट त्र चामरादि अनेक तरके रत्नजमित आनूषण सहत नगवानकों स्थापन
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
करे | पंचवर्णा सुगंधी फूलांकी वर्षा करे । नाना प्रकारका वाजित्र वजावे केवल ग्यान कल्याणककी मीठा स्वरमें पांच पूजा गावे ॥ इति ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ शांतिपूजा विधि लि० ॥
॥
॥ * ॥ शुभ दिन शुभ महुर्ते जिन मंदरमें समोसरणपर जिन प्रति मा स्थापन करावे (आगे) पंच परमेष्टी पट्ट स्थापन करे ( तथा ) जम वानके दहिर्णेपासे दश दिग्पाल पट्ट (और) वामपासे नवग्रह पट्ट स्थापन करे ( पीछे ) एक मोटा, एक बोटा, तांबे, पीतल, मट्टी प्रादिकका हंगा ऊपर खमी सपेद मिट्टी पोतके, चार चार केशर कुंकुका साथिया करें ॥ पीछे ऊंची नींची दोय टिंवची काठकी धरावे । नींची टिवचीपर मोटा हंगा धरे। ऊंचीपर छोटा हंमा धरे । छोटा हंमाके तले एक छिद्र करे | दोनुं मट काके जीतर साथिया करे ।। वमा मटकाकी टिवचीके नीचे । चावलका सा थिया करके | ऊपर नालेर रुपियो थापनाको घरे || दोनुं मटका ऊपर मोली सुत्रवटके पंचरंगी खजली | एकेक खू २१ इकीस पोकर । चारुं खुणे ८४ खजली पोके तणी बांधे ॥ नालेरके आकार मोली सुत्रको दमो नीचला मोटा हंगामें लटकतो रखके। ऊपरकी मोली बोटा हंमाके बिद्रमें पोकर, ऊपर जो चोखुंणी तणी बांधी हे । जिसके बीच में गांठ देवे (पीछे) जो संघ संमुदायकी तरफसें शांतिपूजा होय ( जबतो ) मंदरको कलश लेवे (और) एकजनकी तरफसें होय । ( तब ) शांतिकारकके गृह सेती सधवत्री, जिसका । माता, पिता, सासू, सुसरा, चारेमाईत जीता होय जिस स्त्रीकुं वा वस्त्र आभूषण पहरायके, कलशके मांह, कुंकु केशरको साथियो करके चावल, सुपारी, पंचरत्नकी पोटली धरके । मुखपर नालेर १ ढकणें माफक लगाय, कसुंबल कपको मोली सेती बांधे । ऊपर चार साथि याकर पूर्वोक्त खीके मस्तकपर रखके । गीतगान पूर्वक नानाप्रकार वाजित्रादि नवसहित जिनमंदर में जावे ॥ समवसरण के सन्मुख चावलांको साथियो करके । ऊपर कलश थापन करे | ( पीछे ) पांच दश जणा द्रव्ये नावे अपना अंग शुद्ध करे ॥ गुरूकेपासे केशर मंत्रायके तिलक करे ॥ दहि हाथके मोली कांकणमोरा मंत्रायके बांधे ॥ नँ परमेष्टी नमस्कारं० ॥
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श्रीशांतिपूजा विधि. इत्यादि स्तोत्रसे गुरु आत्मरक्षा करावै ॥ ( पीछे ) एक थालीमें १० । एक थालीमें ९। एक थालीमें ९। नागरवेलका पान सर्व २८ लगावे (जिसपर) फूल, अक्त नेवेद्य, फल, रोक नाणो, सब पानपर बराबरधरायके तैयार खखे॥और पिण, पंचामृत, फूल, फूलमाला, अक्तः नेवेद्य नानाजात का, लीला, सूका, फल, अत्तर, गुलाबजल, केशर, कपूर, रोली, मोली आ दिपूजापेको सर्व सरंजाम यथाशक्ति तैयार मंगायके रक्खे ( पीछे ) पूजा सरू करे ॥ ॥ प्रथम स्नात्रपूजाकी थापना रखके। कुशुमांजली लेके स्नात्रपूजा (तथा ) अष्टप्रकारी पूजा करावे ( पीने ) पंचपरमेष्टी पट्टा ऊपर चावलांका तीन ढिगला करके । ग्यान, दर्शन, चारित्र, की थापना करे (ऊपर) वासदेप करके, चढाये सूधा तीन पान चढावे । नसके आगे दो चावलका ढिगला करके, चैत्यदेवता देवदेवताकी, थापना करावे, पान दोय चढावे ॥ ऊपर कसंबल कपमो बांधे (पीछे ) दशदिग्पालके पट्टेकपर जलका गंटा देके वासकेप करे ॥ एकेक दिग्पालके टीकी देके फूल चढायके। एकेक चढापे सूधो नागर वेलको पान चढावे ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ दश दिग्पाल पूजा लि०॥॥ ॥ इंद्राय । सायुधाय । सवाहनाय । सपरिकराय । इह अस्मिन्जंबुनी पे। दक्षिण भरतार्षदेत्रे । अमुकनगरे । अमुकजिनचैत्ये । शांतिपूजा म होडवे । आगढ २ । बलिं गृहाण २ । नदयमभ्युदयं कुरु २ स्वाहा ॥ ॥
इंद्रायनमः इतिइंद्राह्वान पूजा ॥ * ॥ पूर्वदिशे जलचंदनादि अष्ट द्रव्य चढावे ॥ ॥१॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ अग्नि दिग्पाल पूजा लि० ॥
॥ अग्नये । सायुधाय । सवाहनाय । सपरिकराय । अस्मिन् जंबु प्रीपे । दक्षिण जरताईहत्रे । अमुक नगरे। अमुक चैत्ये । शांति पूजा महो लवे । आगह २ बलिगृहाण २।नदय मभ्युदयंकुरु २ स्वाहाः॥ ॐ अग्नयेनमः ॥ २ ॥ ॥
॥ॐ॥अथ यमदिग्पाल पूजा लिख्यते॥8॥ ॥ ॥ यमाय । सायुः । सवा० । सपरि० । अस्मिन् जंबु० । दक्ति।
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
अमुक । प्रमु० । शांतिपूजा० । प्र० । वलिंगृहाण २ । नदय म० । स्वाहा ॥ ॥ ँ यमायनमः ॥ * ॥ दक्षिण दिशकीतरफ यमदिग्पालकी पूजा करै ॥ ३ ॥ * ॥ इति ॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ अथ नेॠत दिग्पालपूजा लि० ॥ * ॥ ॥ * ॥ नैरुताय । सायु० । सवा० । सपरि० । अस्मिन् जंबुद्वीपे ० । शांतिपूजा० । प्राग २ | वलिं० । नदय० कुरु २ स्वाहाः ॥ नेनैकतायनमः ॥ नैरुत कूकीतरफ अष्ट द्रव्यचढावे ॥ इतिः ॥ ४ ॥ ॥
॥ ॐ ॥ अथ वरुणदिग्पाल पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ ॐ वरुणाय । सायु० । सवा० । सप० । अस्मिन् जंबुप्रीपे० शांति पूजा० । ० । वलिं । नदयम० । स्वाहाः ॥ ॐ वरुणायनमः ॥ पश्चिम दिशकीतरफ अष्टद्रव्य चढावे ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥
॥४॥
॥ ॥ अथ वायव दिग्पाल पूजा ॥ ॥
॥ * ॥ नँ वायवे । सायु० । सवा० । सप० । अस्मिन् जंबुद्वीपे० । शांति पूजा ० । ० । वलिंगृहाण २ । नदयम० । स्वाहाः ॥ ॐ वायवे नमः ॥ वायवकूकीतरफ अष्टद्रव्य चढावे ॥ ६ ॥ इति ॥
॥
11*
॥ ॐ ॥ अथ कुबेर दिग्पाल पूजा ॥
॥
॥ * ॥ नैं कुबेराय । सायु० । सवा० । सप० । अस्मिन् जंबुद्रीपे । द दिणनर० । शांति | आ० । बलिं । उदय मभ्युदयं कुरु २ स्वाहा: ॥ ॐ कुबेरायनमः ॥ उत्तरदिशितरफ अष्टद्रव्य चढावे ॥ ७ ॥ ॥
॥ अथ ईशान दिग्पाल पूजा ॥ ॐ ॥
॥
।
॥ * ॥ ॐ ईशानाय । सायु० । सवा० सप० । अस्मिन् । दक्षिण० । अमुक अमुक चैत्ये । शांतिपूजा० । श्रागढ २ । बलिं० २ । नदय म भ्युदयं कुरु २ स्वाहाः ॥ नँ ईशानाय नमः ॥ ईशान कूकीतरफ जल चंद नादि सर्व द्रव्य चढावे ॥ ८ ॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ अथ ब्रह्मदिग्पालपूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ ॐ ब्रह्मणे । सायुधाय । सवा० । सप० । अस्मिन् दक्षिणन
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दशदिग्पाल नवग्रह पूजा विधि र० । शांतिः ।आ० २ । वलि नदय मभ्यु० स्वाहाः॥ ब्रह्मणे नमः ॥ नर्षदिश तरफ अष्टद्रव्य चढावे ॥९॥8॥
॥ ॥ अथ नागदिग्पालपूजा॥ॐ॥
नागाय । सायु० । सवा० सप० । अस्मिन् जंबु० । दतिः सां तिपूजा । आगल २। वलिं० । स्वाहाः॥ ॐ नागायनमः ॥ अधोदिशि अष्टद्रव्य चढावे ॥१०॥ ऊपर कसुंबल वस्त्र मोलीसें वांधे (पी) न दशदिग्पालायनमः॥ ऐसा कहके यथाशक्ति रोकमी द्रव्य सहत नागरवेल का पान आदि सर्व द्रव्य चढावे । पट्टाके, दशुं दिशकी तरफ १० दीपक फूलवत्ती खमी धरके जगावे । (वा ) एक दीपक आगे जगाकर रखे ॥ ॥ ॥ इति दशदिग्पाल पूजनविधिः॥ॐ॥
॥ ॥ ॥ ॥ अथ नवग्रह पूजन विधिः ॥ॐ॥ ॥ॐनमो आदित्याय । सायुधाय। सवाहनाय । सपरिकराय । अस्मिन् जंबुप्रीपे । दक्षिण भरतक्षेत्रे । अमुक नगरे । अमुक चैत्ये । शांतिपूजा महोबवे आग २ । बलिपूजा गृहाण २ नदय मभ्युदयं कुरु २ अत्रपीठेतिष्ट २ स्वाहाः॥सूर्यायनमः ॥ ऐसा कहके जलचंदनादि अष्ट द्रव्य चढावे ॥ इति सूर्यपूजा॥१॥ * ॥
॥ * ॥ ॥ ॥ अथ चंद्रपूजा ॥ ॥ " ॥ ॥ॐ चंद्राय । सायुधाय । सवाहनाय । सपरिकराय । अस्मिन जंबु० । ददि । शांतिपूजा० आ०२ । बलि०। अत्रपीठे तिष्ट २। नद यमभ्यु० स्वाहाः॥ चंद्रायनमः॥ ऐसा कहके जलचंदनादि अष्टद्रव्यसें चंद्रमाकी पूजा करे ॥ * ॥२॥ॐ॥
॥ ॥ अथ मंगलपूजा॥ॐ॥ ॥ ॥ जनमो नोमाय । सायु० । सवा० । सप० । अस्मिन् जं० । दक्षि। अमु० । शांतिपूजा महोडवे । आगढ २ । बलि० २ । अत्रपीठेर । नदयः । स्वाहाः॥, जोमायनमः ॥ मंगलकी पूजा करे ॥३॥
॥ * ॥अथ बुधपूजा ॥ * ॥ ..॥ ॥ नमो बुधाय । सायु० । सवा । सप० । अस्मिन जं० । ददि
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.. ण। अमुक । शांतिपूजा महोडवे ।आग २ । वलि० २ । अत्रपीठे तिष्ट २। नुदयः । स्वाहाः ॥ॐ बुधायनमः॥४॥ ऐसा कहके बुधकी पूजा करे।
॥ अथ बृहस्पति पूजा॥॥ ॥ॐ॥ॐ नमो बृहस्पतये । सायुः । सवा। सप० । अस्मिन् । दक्षिण शांति आ० २ । बलि० २ । अत्रपीठे० २ । नदय० स्वाहाः ॥ॐ बृहस्पत येनमः॥ऐसा कहके बृहस्पतीकी पूजा करे॥५॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ शुक्रपूजा॥ * ॥ ॥ ॥ नमो शुक्राय । सायु० । सवा । सप० । अ० दक्षिण अमु०॥ शांतिपूजा । आ० । बनि० २ । अत्रपीठे । नदय मभ्युदयं कुरु २ स्वाहा ॥ शुक्रायनमः॥६॥इति ॥ ॥
- ॥ * ॥अथ शनिपूजा॥ ॥ ॥ ॥ नमो शनिश्चराय । सायुः । सवा० । सपरि० । अस्मिन् । ददि । अमु०। शांति । प्रा० २ । बलि । अत्रपीठे २ । नदय मभ्युदयं कुरु २ स्वाहा ॥ न शनिश्चरायनमः॥इति ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ राहु पूजा॥॥ ॥ॐ॥ नमो राहवे सायुः । सवा । सपरि० । अस्मिन् । दक्षिक अमुक शांतिपूजा०।०२ । बलि० २ । अत्रपीठे० २ । नदयः स्वाहाः॥ न राहवेनमः॥८॥इति ॥॥
॥ ॥ ॥अथ केतूपूजा॥॥ ॥ नमो केतवे । सायु । सवा० । सप० अस्मिन् । ददि । अ० । शांति । आगह २ । बलि० २। अत्रपीठे । नदय स्वाहा ॥१॥
॥ ॥ इसीतरै क्रमसें नगवानके वामपासे पट्टापर नवग्रहकी स्थाप ना करे। ऊपर कसुंबल वस्त्र मोलीसें बांधे (पीने) नागरवल पान आदि सर्व द्रव्य ( तथा ) शक्ति मुजब रोका नाणो ऊपर नेट करे ( ऐसा कहे)
नवग्रहायनमः ॥चाएं तरफ नवदीपक (वा) एक दीपक धरे ॥ ॥ इति नवग्रह पूजन थापन विधि ॥ १॥
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श्रीशांतिपूजा विधि.
॥ ॥ इसीतरै अन्य मंगल प्रतिष्टादिकमें ( जब ) दशदिग्पाल, नवग्रहकी थापना पूजा करणी होय (तो) शांतिपूजाके ठिकाऐं, जो पूजादि न होय । नसीका नाम लेकर पूजन थापन करावे || विशेष विधि जो होय । सो गुरुके मुखसें समऊ के करावे ॥ ( पीछे ) शांतिकारक के गृहसें शुद्ध जलसे सथव स्त्रीके हाथसें किया हुवा पांचुं रंगके धानका वाकुला (तथा) पांचं रंगकी खजजी, गुलगुला, खीर, दहीको करवो, मालपूवा, पांच रंगका लाडू, ( इत्यादि) नत्तम २ खाद्यवस्तु मंगाके । एक परात में सब द्रव्य नेजा करै (और) घृत, खां, अत्तर, गुलाबजल, पांच वर्णा फूल, आदि सुगंधी द्रव्य मिलाके बलवाकुल तैयार करे | ( पीछे ) गुरु, वासक्षेपकी मुट्ठी तीन चेर मंत्रसें मंत्रके, तीनवेर बलवाकुल ऊपर वाशद्देप करे ॥ * ॥ ॥ * ॥ वासक्षेप मंत्र ॥ ॥
॥*॥
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॥ ॐ ॥ झा की सर्वोपद्रव बिंबस्य र २ स्वाहा ॥ णमो अरिहं ताणं । णमो सिद्धाणं । णमो आयरियाणं । न णमो नवझायाणं । ॐ णमो लोए सबसाहूणं । णमो आगास गामीणं । णमो चारण लहीणं । जे इमे किन्नर । किंपुरस । महोरग । गरुम । गंधर्व । जक्ख । रक्खस । पिशाच । नू । माइण प्पनइन । जिणघर निवासिणो । सन्निहि याय । तेसवे विजेवण धूव पुप्फ फल वइवसपाहिं । बलिपविता । तुठिकरा जवंतु। पुहिकरा संतिकराजवंतु । सवं जणं कुर्वंतु । सवजिणाणं संहाणप्रजा वन । पसन्नभावतणे । सवत्थ ररकंतु कुर्वंतु । सब दुरियाणी नासंतु । सबा सिव मुवसमंतु । संति तुहि पुद्धि सिव सत्ययण कारिणो भवंतुस्वाहा || इस मंत्र तीनवेर वासक्षेप करके बलवाकुल को शुद्ध करे। (पीछे) प्राधा वलवा कुल, दूसरी परात में विसर्जन के निमत्त पट्टेपर वस्त्रसें ढांकके रख देवे । आ धावलवाकुल लेके घरके ( तथा ) चैत्यकेऊपर १९ स्त्रात्रिया शुद्ध होके जावे । ( जिसमें ) प्रथम विनयवंत श्रावक चोटीका केश खुला करके बल चाकुल दोनुं हाथ में लेके, पूर्व दिशकी तरफ खमा रहे ॥ १ ॥ दूशरो केशरकी कटोरी २ । तीशरो फूलकी चंगेरी ३ । चोथो रीसो ४ | पांचमो धूपदानो ५ । बो दीपक ६ । सातमोचामर ७ । आठमो घंटा ८ । नवमो जलको कल
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७०८ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. श९। दशमो वलिवाकुलकीथाली १० । इग्यारमो मंगल वाजिन ११। इसी तरैसें सब स्नात्रिया एकेक दिशतरफ खमारहै । ( जब ) शुच हरफ नचारण करनेवाला पंमित गुरू, जो दिग्पालकी पूजा बोलचूके ( तब ) क्रमसें जल वाला, जल, केशर, फूल, वलवाकुल चढावे । चामरकरे । काच देखावे । वा जित्र वजावे । इत्यादि ॥6॥
॥ॐ॥ ॥अथ दशदिग्पाल आह्वान मंत्र॥ * ॥ ॥ | ऐरावतः समारूढः । शक्रःपूर्वदिशिस्थितः। संघस्य शांतयेसोस्तु वलिपूजां प्रयतु ॥१॥ ऐसा कहके पूर्वदिशकीतरफ जलचंदनादि वलवा कुल चढावे ॥ १॥ (अग्निकूणके सन्मुष ) ॥ सदावन्हि दिशोनेता। पाव को मेषवाहनः। संघस्य शांतिये सोस्तु । वलिपूजां प्रयन्तु ॥२॥ ऐसा कह के वलवाकुल चढावे ॥ ( दक्षिण दिशकीतरफ ) दक्षिणस्यां दिशःस्वामी। यमोमहिषवाहनः संघस्य । वलि० ॥ ३ ॥ वलवाकुल चढावै । वाजित्रव जावे ॥ ४॥ (नेश्त कूणकीतरफ)॥ यमापरांतरालोको । नैरुतः शिववा हनः । संघस्य० । वलि ॥ ४ ॥ ( अथ पश्चिमदिशि )॥ यः प्रतीची दि. शोनाथः। वरुणो मकरस्थितः । संघस्य । वलि० ५॥ (अथ वायवकूण ) हरिणो वाहनंयस्य । वायव्याधिपतिर्मरुत् । संघस्य० । वलि०॥६॥ (अथ उत्तरदिशि) निधान नवकारूढ । नत्तरस्यां दिशिप्रनुः । संघस्य० वलि०॥ ॥७॥ ( अथ ईशानकूण ) सितेवृषेधिरूढश्च । ईशानांच दिसोविनुः । सं. घस्य० । वलि० ॥८॥( अथ अधोदिशी ) ॥ पातालाधिपतियोस्तु । सर्व दा पद्मवाहनः । संघस्य० । वलि०॥९॥ (अथ ऊददिशि) ॥ ब्रह्मलो क विनोयस्तु । राजहंस समाश्रितः। संघस्यः । वलि० ॥ १० ॥ ऐसा कहके, ऊर्द्धदिशिकों जलचंदनादि वलि चढावै ॥ इति दशदिग्पाल आह्वान वलवाकुल देनेकी विधिः॥१॥
॥(पी) कलशके जीतर श्रीशांतिनाथ स्वामीकी प्रतिमा निश्चल पणे रक्खे । पंचरत्नकी पोटलीरक्खे । केशर पुष्पादिकसें कलशकी पूजा करे । गुरू वासोप करे। तिसकेबाद कलशके आगे । कुशमांजली १। लवण नतारण २ । पहरावणी ३ । मंगलदीप ४ । करे। मंगलदीपको मोलीकी वट्टी
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शांतिपूजा विधि.
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वृतऐसा रक्खे । कि । शांति पूजा पूरण होय नहांतक तो अवश्य प्रखम रहे ( पीछे ) चतुर्विध संघसहत गुरू, इरियावही पडिक्कमें । चारनोकारको कावसग्ग करके, लोगस्स कहै | वेठके, दक्षिणो गोमो धरतीपर रक्खे । मा बोगोको नम्रीत करके, चैत्यवंदन करे। णमोत्थुणं कहके अरिहंत चे याणं | वंदणवत्तिया० अन्नत्थू० । एक नवकारको कावसग्ग करे। नमो त् सिद्धा कहके । थुकी गाथा कहे ( यथा ) ॥ यदंति नमना देव । देहिनः संतिसुस्थिता । तस्मै नमोस्तु वीराय । सर्वविघ्न विघातिने ॥ १ ॥ लोगस्स • बंदन नत्थू कहके १ नवकार० ॥ दूजीथूई कहे ॥ सुरपतिनत चरणयुगा । न्नानेयजिनादि जिनपती नौमी । यश्चन पालनपराः । जलांजलि ददतु दुःखेभ्यः ॥ २ ॥ इहां पुक्खरखरदी | वंदनवत्तिया० कहके कावसग्ग करे ॥ तीसरी स्तुति कहे || वदति वदारु गणाग्रतो जिनाः । सदर्थतो यद्रच यंति सूत्रतः । गणाधिपास्तीर्थ समर्थ नक्षणे । तदंगिना मस्तु मर्तनमुक्तये ॥ ३ ॥ इहां । सिद्धा बुद्धा० । अनत्थू कहके १ नवकारको कावसग्ग करे ॥ चौथी स्तुती कहे ( यथा ) शक्रःसुरा सुरवरैः सहदेवतानिः । सर्वज्ञ -शासन सुखाय समुद्यतानिः । श्रीवर्द्धमान जिनदत्त मतिप्रवृत्तान् । नव्यान जनाः भवतु नित्य ममंगलेभ्यः ॥ ४ ॥ ( पीछे ) वेटके रामोत्थु • कहके खमा हुवे || श्रीशांतिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थ करेमि कानसग्गं ॥ वंदन चत्तिया । अन्नत्थू कहके १ नव०॥ रोग शोगादिनिर्दोषै । रंजिताय जि तारये । नमः श्रीशांतये तस्मै । विहितानत शांतये ॥ ५ ॥ (ततः) श्रीशांति देवता निमित्तं करोमि | अन्नत्थू० १ नव का० ॥ श्रीशांतिजिन प्रक्ताय । ज व्याय सुखसंपदं । श्री शांतिदेवता देया । दशांति मपनीयते ॥ ६ ॥ ( ततः) श्रीश्रुतदेवता नि०॥ सुवर्णशालनी देयात् । द्वादशांगी जिनोद्भवा । श्रुतदेवी सदामा । मशेष श्रुतसंपदं ॥ ७ ॥ (ततः) श्री भुवनदेवता नि० । चतुर्वर्णाय संघाय । देवीजवन वासिनी । निहत्य दुरितान्येषा । करोतु सुखमतं ॥ वा ( ततः श्रीक्षेत्र देवतानिमित्तं ० ) यासां क्षेत्रगतास्संति । साधवः श्रावकादयः जिनाग्यां साधयं तस्था । रकंतु क्षेत्र देवता ॥ ९ ॥ ( ततः श्रीमंबिका देवता निमित्तं क० ) अंबानिहित बिमे । सिद्धबुद्ध समन्विता । सिते सिंहे स्थि
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रत्नसागर श्रीजिन पूजा संग्रह.
तागौरी । वितनोतु समीहितं ॥ १०॥ ततः श्रीपद्मावती देवता निमित्तं क० ) धराधिपतिपत्नीया । देवी पद्मावती सदा । क्रुद्रो पद्रवतः सामां । पातुफुल्लत्फ racea ॥ ११ ॥ ततः श्रीचक्रेश्वरी देवता निमित्तं क० ) । चंचचक्रधराचा रु.। प्रवालदलसन्निना । चिरंचक्रेश्वरीदेवी । नंदता निवनाच्चां ॥ १२ ॥ ( ततः श्रीमनुप्ता देवता निमित्तं ० ) खड्गखेटक कोदं । वाणपाणिस्तडित् द्युतिः । तुरंग गमना बुप्ता | कल्याणानि करोतुमे ॥ १३ ॥ ( ततः श्रीकुबेर देवतानिमित्तं ० ) मथुरापुरी सुपार्श्व । श्रीपार्श्व स्तूप रक्तिका । श्रीकुबेरा नग रारूढा । सुतांकावतुवोभयात् ॥ १४ ॥ ( ततः श्रीब्रह्मदेवता निमत्तं ० ) ब्रह्म शांति समांपाया । दपाया द्वीरसेवकः। श्रीमत्सत्य पुरेसत्या । येनकीर्त्तिः कृता निजः ॥ १५ ॥ ( ततः श्रीगोत्र देवता नि० ) यागोत्रं पालयत्येव । सकला पायतः सदा । श्रीगोत्र देवतारकां । शंकरोतु नतां गिरां ॥ १६ ॥ ( ततः श्री शक्रादि समस्त देवता नि० ) श्रीशकप्रमुखायाः । जिनशासनसंस्थिताः । देवादेव्यस्तदन्येपि । संघरत्व पायतः ॥ १७ ॥ ( ततः श्रीसिद्धायिका श्री शासन देवता नि० ) अन्नत्थू ० चारलोगस्सकोका स्तुति कहे । श्रीमद्विमान मारूढा । यक्ष मातंग सेविता । सामां सिद्धायिका पातु । चक्र चापेषु धारणी ॥ १८ ॥ लोगस्स | कहके वैठे । चैत्यवंदन । रामोत्थुणं० । जयवी यरायपर्यंत कहै ॥ ॥ इसी तरे १८ स्तुतीसें देववांदे ॥ ( पीछे ) सुंदर अंगो पांगवाले। सुशील स्त्री पुत्रादिक सहित । विबेक गुणधारक, माठ नात्रिया मुख कोश बांधके तीन तीन नवकार गुणें (जिसमें दो स्त्रात्रिया दो नालीवाला कलश हाथमें लेके मटकाके दोनुं तरफ खमा रहे । एक स्नात्रियो धूप खेतो रहे । १ स्नात्रियो फूल, चंदन, वासक्षेप चढातो रहै || दो स्त्रात्रिया लोटामें जल भरके दोनुं तरफ धारा देनेवाला कलशानें पूरता रहे। दोजणा दोनुं तरफ चामर ढालता रहै ॥ ( प्रथम ) गुरू आदि, सकलसंघ सात सात नवकार गुणें ॥ स्त्रात्रिया एकेके नवकार गुणके एकेक धारा देवे । ऐसें सात धारा दे चुके ( तब ) गुरू, मधुरस्वरें स्पष्ट करोंसें । नमो त् सिधाचा
• कहके ॥ जितशांति प्रमुख साते स्मरण गुणें । ( पीछे ) नक्तामर बीशांति, बोटी शांति, गुणें ॥ ( तथा सकलसंघमें जिसकों साते स्मरण
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श्री शांतिपूजाविधि. शांति शुध आती होय। जब तो गुरूकेसाथे, अपनें मनमें साते स्मरण 'शांतिगुणे (ओर) नहि आवे सो सर्वसंघ नवकार मंत्र गुणता रहै ॥ साते स्मरण (तथा)शांति गुणें जहांतक अखंम ऊपरले गेटे कलशेमें धारा देता रहै । जीककोई न करै । कोई आपसमें अन्य संसारी कथा न करै ॥ साते स्मरणादि संपूर्ण सर्व गुणचूके (पीछे ) तीन तीन नवकार गुणके कलश धरै (पीने ) नीचेका कलशमेंसें । जिन प्रतिमाकों निकालके अहीतरे अंग लूणा करके केशर पुष्पादिकसें पूजा करै ॥ नगवानकी अही अंगीरचना करावे । नानाप्रकारका नेवेद्यफल चढाके। आरती उतारै। मंगलदीप करे ॥ पीने शांतिजल सर्बसंघ लगावे । घरमें लेजाके गंटे। शांतिपूजाकी मोली गुरूकेपास लेके राखमी बांधे ॥ ( इससे ) संपूर्ण संघमें नगरमें, देशमें, मरी आदिक सर्व रोग दोष दूर होके शांति होय । अनेक प्रकारसें रुघी वृधी सुख शौजाग्यकों प्राप्त होय ॥ (पीओ) जो आधा बलिवाकुल परातमें रखा हुवा है । सो लेके पूर्ववत् स्नात्रिया गुरूकेसाथ मंदरऊपर जाके दश दिग्पालकों विसर्जन करावै ॥ * ॥
॥ * ॥ अथ दशदिग्पाल विसर्जन करनेकी विधि पूर्ववत् जाणनी इतना विशेष है (कि) आगह २ के ठिकाणे गढ २ कहै ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ (यथा) नमो इंद्राय। पूर्वदिग् अधिष्टाय काय । ऐरावण वाहनाय । सहस्र नेत्राय । वज्रायुधाय । सपरिकराय । अस्मिन् जंबुप्रीपे अमुक नगरे । अमुक मंदरे । अमुक महोडवे । सर्वोपद्रवाबलिरद २ गड गड स्वाहा ॥ पूर्वदिशकीतरफ ॥न इंद्रायनमः॥१॥ ( अग्निकूणे )॥3 नमो अग्निमूर्तये । शक्तिहस्ताय सायुः । सवा० । सप० । अस्मि० अमु० । सर्वोपद्रवाबलिरक २ । गढ २ स्वाहाः॥ इति ॥ (दक्षिणदिशे)॥ नमो यमाय । दक्षिण दिगधिष्टायकाय । महिषवाहनाय । दंग आयुधाय । कृष्ण मुर्तये । सायु०। सप० । अस्मिन्छ । सर्वोपद्रवाबलिरव २ गड २ स्वाहाः ॥३॥ इति ॥ (नेश्तकूणे)॥ नमो नैश्ताय । खमगहस्ताय । सायु सवाहनाय । सप० । अस्मि । अमु० । सर्वोपद्रवाबलिरद २ गत २ स्वा हाः॥ ४॥ इति ॥ ( पश्चिमदिशे), नमो वरुणाय । पश्चिमदिगधिष्टा
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह
यकाय । मकरवाहनाय । सायु० । सप० । अस्मिन् । प्रमु० । सर्वोपद्रवा० । गढ २ स्वाहाः ॥ ५ ॥ ( वायवकूणे) नमो वायवे । वायवाधिपतये । ध्वजहस्ताय । हरिणवाहनाय । सा० सप० । अस्मिन् । प्रमु० । सर्वोप द्रवा० गढ २ स्वाहा ॥ ६ ॥ इति ॥ ( उत्तरदिशे ) नमो धनदाय । उत्तरदिगधिष्टायकाय । नरवाहनाय । गदाहस्ताय । सप० । अस्मिन् ।
T
मु० । सर्वोपद्रवा० २ । गनु २ स्वाहाः ॥ ८ ॥ इति ॥ ( ईशान कुणे ) ॥ ॐ नमो ईशानाय । त्रिशूल हस्ताय । ईशानाधिपतये । वृषनवाहनाय । स प० । अस्मि० । प्रमु० । सर्वोपद्रवाद बजिरका २ ग २ ॥ स्वाहाः ॥ ८ ॥ इति ॥ ( ईलो ) ॥ ॐ नमो ब्रह्मणे । राजहंसवाहनाय । कर्धलोकाधि ष्टाय काय | सायु० । सप० । अस्मि । अमु० । सर्वोपद्रवा० ग० २ स्वा हाः ॥ ९ ॥ इति ॥ (अधोलोके ) ॥ ॐ नमो नागाय । पातालनिवासाय । पद्मवाहनाय । सायु० । सप० । अस्मि० । प्रमु० । सर्वोपद्रवाद्बजिर २ गइर स्वाहा ॥ १० ॥ इसीतरै क्रमसें दशदिग्पाल विसर्जन करे ॥ ॥ ( पीछे ) नीचे आकर दिग्पाल नवग्रहादि सर्व देवताको श्लोक पढके विशर्जन करे ॥ ( यथा ) शक्राद्या लोकपाला दिशि विदिशि गताः शुद्ध सधर्म्मसक्ताः । मायातास्त्रात्रकाले कलुषहतिकृते तीर्थनाथस्य नक्त्या । न्यस्ताशेषा पदाद्या विहित शिवसुखाः स्वास्पदं सांप्रतंते । स्नात्रे पूजामवाप्य स्वमतिकृत मुदो यांतु कल्याणनाजः ॥ १ ॥ प्रग्याहीनं क्रियाहीनं । मंत्रहीनंचयत्कृतं । त सर्व मृतं देवः । प्रशीद परमेश्वरः ॥ १ ॥ आह्वानं नैवजानामि । नैवजाना मि पूजनं ॥ विसर्जनं नैवजानामि । त्वमेव शरणं ममः ॥ ३ ॥ ( पीछे ) यथा शक्ति ग्यान पूजा, गुरूपूजा, साहमीवात्सल्य करे ॥ जैनयाचकानें दानदेवै ॥ इति शांतिक स्नात्र पूजाविधिः ॥ ॥
I ॥
॥ ॥ नवपद मंगल पूजा विधि लि० ॥ ॥
॥
॥ प्रथम सुंदर अंगोपांगवाले नवस्त्रात्रिया मंत्रितजलसें स्नान करे | ( जलमंत्री अमृते मृतोद्भवे अमृतवर्षणी अमृतं श्रावय २ स्वाहा (इस मंत्र ) जलमंत्रे (पीछे) नँझी प्रमले विमले विमलोद्भवे सर्वतीर्थ जलोपमें पांपां वांवा अशुचि शुचिनवामि स्वाहा ॥ ( इस मंत्रकों) सात
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सिवचक्र मंगल पूजाविधिः.
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बेर पढता हुवा स्नान करे (पीछे) ॥ ॐ की मा को नमः ॥ सातवेर इस मंत्र व शुद्ध करके पहरे (पीछे) प्री को अते नमः ॥ ( इस मंत्रसे) सातवेर गुरूपासे केशर मंत्रायके तिलक करे (पीछे) नँ शी अवतर २ । सोमे २ | कुरु २ । वल्गु २ । सुमसे । सोमणसे । महु म हुरे । तँ कवली कः कः स्वाहाः ॥ ( इस मंत्र ) मोली मेंढल मरोमा फी मंत्रायके हाथ बांधे ॥ (और) जब मंगलजीके चारुं तरफ मोली मेंढल बांधे। सोनी इसी मंत्र मंत्रके बांधे ॥ इसीतरे अपना अँग शुद्ध करके स्त्रात्रिया गुरूके सन्मुख हाथ जोमके बैठे ॥ ( जब गुरू) पर मेष्टी ० स्तोत्र पढके अंगरक्षा करें ॥ अंगरक्ता स्तोत्रः ॥ ॐ परमेष्टी नमस्कारं सारं नवपदात्मकं । श्रात्मरक्षा करवज्र । पंजरानं स्मराम्यहं ॥ १ ॥ ॐ णमो अरिहंताणं ॥ शिरस्कं शिरसिस्थितं ॥ णमो सवसिद्धाणं । मुखे मुखपटंबरं ॥ २ ॥ णमो आयरियाणं । अंगरक्षा तिशायिनी । तँ णमो नवाया। आयुधं हस्तयो दृढं ॥ ३ ॥ णमो लोए सबसाहूणं । मोच के पादयो । एसो पंचनमुक्कारो ॥ शिलावज्रमयीतले ॥ ४ ॥ सब पाव पणासणी । वप्रोवज्रमयोबहिः । मंगलाच सवेसिं । खादिरांगार खातिका ॥ ५ ॥ स्वाहांतंचपदं ज्ञेयं । पढमं हवमंगलं । वप्रो परिवज्रमयं । पिधानं देहरणे ॥ ६ ॥ महाप्रनावा रक्षेयं । कुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्टिपदोद्भूता कथिता पूर्वसूरिभिः ॥ ७ ॥ यश्चैवं कुरुते रक्षां । परमेष्टि पदैसदा ॥ तस्यनस्याद्भयंव्याधि । राधिश्वापि कदाचिनः ॥ ८ ॥ ॥ इति श्रात्म रक्षा वज्रपिंजर स्तोत्रं ॥ ॥ यह स्तोत्र तीनवार गुणके आत्मरक्षा करे || (पीछे) तीन वेर नवकार मंत्र मंत्रके चोटीके गांठ देवे ॥ ( तथा ) तीन नवकार गुणके सर्व स्नात्रियां के कानांमें फुंक देवे ॥ ( इतनी विधीतो) हरकोई पूजा प्रतिष्टा मंगलादिकमें स्नात्रियांकों प्रथम अवश्य करणी करा णी चहियै ॥ ( पीछे मंदरजीमें अधिष्टायक देव देवी जो होय । तन सर्वकी पूजा करावे । प्रष्ट द्रव्य चढावे ॥ ( पीछे ) चंपेलीका तेजमें, हिं गजू (वा) सिंदूर मिलाके क्षेत्रपालजीकी पूजा करे। चांदीका वरग (वा) मालीपन्नासें अंग रचना करे । अत्तर चढावे । फूल, धूप, दीप नेवेद्य
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह
फल, जल, रोकनाणो, इत्यादि सर्व द्रव्य ( क्षेत्रपालायनमः ) ऐसा वोल ता हुवा चढावे ॥ ( पीछे ) मंगलजीके दहिर्णेपासें १० दश दिग्पा लके पट्टेकी थापना करे । एकेक दिग्पालकी पूजा पढके जल चंदनादि सर्व द्रव्य, नागरवेल के पानसुद्धा चढाता रहे । दशुं दिग्पालकी पूजा हुए पीछे | ऊपर कसुंबल वस्त्र वांधे । आगे सर्ब द्रव्य चढावे । दीपक करे ॥ ( पीछे ) वामपासे नवग्रहका पट्टकी थापना करके पूर्वोक्त प्रकार पूजा करे । (पीछे) सर्व नात्रयां १८ स्तुतीसें देव वंदन करावे ॥ ( इहां ) १० दिग्पाल, नवग्रहकी पूजाका मंत्र (तथा) देव वंदनकी विधि विस्तारके जयसेती न लिखी है (सो) पूर्वेशांति पूजामें लिख आए हैं (उसी मुजब ) • सर्व विधि करावे (पीछे) मंगलजीकी प्रतिष्टा करे ॥
॥ ॥ ॥
॥ ॐ ॥ अथ मंगल प्रतिष्टा विधि ॥ ॥
॥ * ॥ प्रथम दोनुंपासे मोली सुत्रकी वत्ती जगाके घृतका दीपक करे | इन दोनुं दीपककों चार पहर अखं रक्खे । (पीछे) सोने, चांदी आदिका कलश में बोट उत्तम जल जरके सोनावाणी करे। हाथमें कल श लेके । ७ सात नवकार गुणें ॥झी जीरावला पार्श्वनाथ रक्षां कुरु २ स्वाहा ।। इस मंत्र ७ वार जलकों मंत्रके । मंगलजीके चारुं तरफ धारा देवे | ऊपर जरा बांटा देके पवित्र करे । धूप खेवै (पीछे) नवतारी मोली सुत्रका साठा तीन प्रांटा मंगलजी के बाहर कर देवे । पूर्वोक्त मंत्रसें. मंत्रके मोली (तथा) मेंढल मरोमा फली चारुं तरफ वांधे ॥ ( पीछे ) के शरकी कटोरी हाथमें लेके (शी श्री अहते नमः ) इस मंत्र मंत्र के मंगलके ऊपर केशरका नींटा देवे । ( ऊपर ) चावलको साथियो करे । टीकी देवे । मंगलके अगामी चावलको साथियो ( वा ) नंद्यावर्त्त करके ऊपर नालेर रुपियो नेट धरे ॥ ( पीछे ) केशर, चंदन, कुंकम, लेकर मंगल जीके चारुं तरफ तीन रेखा लेखन करै ॥ ( पीछे ) वाशद्देप, पुष्प, हाथ में लेके ( नूरसी नूतधात्री विश्वाधारैनमः ॥ ) इस मंत्रसें सातवेर मंत्रके मंगल भूमि तथा पीठकी पूजा करे ॥ फेर, प्राचार्य गुरू वाशक्षेप हाथमें लेके ( जी श्री र्हपीठायनम ) इस मंत्रसें ७ वेर मंत्र के मंगल पीठकी
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वाघ..
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सिधचक्रममल पूजा विधि. पूजा करे॥ (पी) स्नात्रिया, हाथमें पुष्प, चावल, लेलेके तीन वेर मम लकों वधावे॥ नीचे चावलको साथियो करके । रुपियो नालेर थापनाको धरै । (पीछे ) स्नात्रिया मंदरके भीतरसें प्रतिमाजी लायके त्रिगमा ऊपर मंत्र पढके स्थापन करै ॥ (स्थापन मंत्र ) ॥ ॐ नमो अर्हत् परमे श्वराय । चतुर्मुखाय परमेष्टिने दिग् कुमारी परिपूजिताय । चतुषष्टि सुरासु छे सेविताय । देवाधिदेवाय । त्रैलोक्य महिताय । अत्र पीठे तिष्ट २ स्वा हाः ॥ इस मंत्रकों ७ वेर पढके । नवप्रतिमा (वा) एकप्रतिमा स्थापन करै। (इसीतरे ) मंगल प्रतिष्टा करके (पीठे ) सिघचक्र पूजा सरू करे ॥१॥ (प्रथम ) एकरकेबीमें । सपेद गोलो, सपेद वस्त्रः सपेद धजा, ८ कर्केतन रत्न, ३४ हीरा, पुष्प अक्त, फल, दीप, धूप, हाथमे लेके अरिहंत पद की पूजा पढे ॥ (यथा) अथाष्टदल मध्याब्ज । कर्णिकायां जिनेश्वरान् । आविर्नुतौलसम्रोधा। नाव्रतः स्थापयाम्यहं ॥ १ ॥ निःशेष दोषे धन धूम केतुः । नपार संसार समुद्र सेतून् । यजै समस्तातिशयैक हेतून् । श्रीमजि नानांबुज कर्णिकायां ॥२॥नी श्री अर्हद्भयोनमः स्वाहा ॥ १ ॥ इस मंत्रसे अहंत पदकी थापना पूजा करै । सर्व द्रव्य चढावै ॥ ( पीने) रकेबीमें। लाल गोलो, लाल धजा, लाल वस्त्र, ८ माणक रत्न, ३१ मूंगा. जल पुष्पादि सर्व द्रव्य हाथमें लेके सिघ पूजा पढे॥ ( यथा ) तस्य पूर्व दले सिधान् । सम्यक्तादि गुणात्मकान् । निःश्रेय संपदं प्राप्तान् । निदधे भक्ति निर्नरः॥३॥ तत्पूर्व पत्रे परितः प्रणष्टः । पुष्टाष्ट कर्मा मधिगम्य शुधि । प्राप्तान्नरान्सिच्चि मनंतवोधान् । सिघान यजे शांतिकरान्नराणां ॥४॥ नझी श्री सिधेभ्योनमः स्वाहा ॥ पूर्व दिशकी तरफ सिद्ध पदकी स्थाप ना पूजा करै । सर्व द्रव्य चढावै ॥ * ॥ इति ॥ ॥ (पीने ) रकेबीमें पीलो गोलो, पीली धजा, पीलो, वस्त्र, ५ गोमेदक रत्न, ३६ सोनेका फूल जल, पुष्पादि सर्व पीत द्रब्य हाथमे लेके आचार्य पदकी पूजा पढे॥ (यथा) स्थापयामिततः सूरीन् । दक्षिणोस्मिन् दले मले । चरतः पंचधाचारान् । षत्रिंशजुणैर्युतान् ॥ ५॥ सूरी सदाचार विचारसारा। नाचारयंतः स्वपरान यथेष्टं । न्योपसर्गक निवारणार्थः । मभ्यय॑या म्यक्तगंधधूपैः ॥६॥,
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
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श्री श्री सूरीभ्योनमः स्वाहा ॥ ३ ॥ दक्षिणदिशकी तरफ आचार्य पदकी स्थापना पूजा करे ॥ इति ॥ ( पीछे ) हरितगोलो, हरितवस्त्र, हरामुं कालड्डू, हरीधजा ४ इंद्रनील २५ मरकतरत्न पन्ना जल पुष्पादि सर्व द्रव्य हाथमें लेके उपाध्याय पदकी पूजा पढे ॥ ( यथा ) द्वादशांग श्रुता धारान् ॥ शास्त्राध्ययन तत्परान् । निवेशयाम्युपाध्यायान् । पवित्रे पश्चिमे दले ॥ ७ ॥ श्रीधर्मशास्त्राण्यनिशं प्रशांत्यै । पठतियेन्यानपि पाठयंति । अ ध्यापकां स्तांनपराब्जपत्रे । स्थितान्यवित्रान् परिपूजयामि ॥ ८ ॥ ॐ श्री श्री उपाध्यायेभ्योनमः स्वाहा || पश्चिमदिशकीतरफ उपाध्याय पदकी स्थापना पूजा करे ॥ इति ॥ ॥ ( पीछे ) रकेबी में स्यामगोलो, स्यामवस्त्र, स्यामधजा । नडदकालड्डू, ५ राजपट्ट, २७ अरिष्टरत्न, जल, पुष्पादि सर्व द्रव्य हाथ में ले के साधूप की पूजा पढ़े ॥ ( यथा ) व्याख्यादिकर्म कुर्वाणान् । सुनध्या नैक मानसान् । नदक पत्रगतान् बारान्। साधुवासीस सुव्रतान् ॥ ९ ॥ वैरा स्यमंतर्वचसि प्रसिद्धं । सत्यं तपो द्वादशधा शरीरे । येषा मुदक्यवगतान् सुकृतान् पवित्रान् । साधून्सदातान् परिपूजयामि ॥ १० ॥ ॐ की श्री सर्व साधुभ्यो नमः स्वाहा ॥ ५ ॥ उत्तरदिशकी तरफ साधुपदकी थापना पूजा करे ॥ इति ॥ ( पीछे ) रकेबी में सपेदगोलो सफेद धजा, सफेद वस्त्र, ६७ मोती आदि, श्वेतद्रव्य हाथ में लेके । दर्शन पदको श्लोक बोलके चढावे ॥ ( यथा श्लोकः ) जिनेंद्रोत मतश्रवा । लक्षणे दर्शनेयजे । मिथ्या त्वमथनं शुद्धं । नस्त मीशान् सद्दले ॥ ११ ॥ नँ की श्री सम्यगू दर्शनाय नमः स्वाहाः ॥ ६ ॥ ईशान कूर्णे दर्शन पदकी स्थापना पूजा करे ॥ इति ॥ (पीछे) रकेबीमें ५१ मोती, श्वेतगोलो, श्वेत धजा चावलका लड्डू आदि श्वेतद्रव्य हाथमें लेके, ग्यानपदको श्लोक बोलके चढावे ॥ ( श्लोकः ) मशेष द्रव्यपर्याय । रूपमेवाव जासकं । ग्यानमाग्नेय पत्रस्थं । पूजयामि हि तावहं ॥ १२ ॥ ॐ श्री श्री सम्यग् ग्यानाय नमः स्वाहा ॥ ७ ॥ अग्निकुण कीतरफ ग्यानपदकी स्थापना पूजा करे ।। इति ॥ ॥ ( फेर ) रकेबीमें सफेद गोलो, सफेद धजा ७० मोती श्वेतवस्त्र आदि श्वेत द्रव्य हाथमें लेके चारित्र पदको श्लोक बोलके चढावे ॥ ( श्लोकः ) सामायिकादि
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सिधचक्रममल पूजा विधि.
७१७ निनँदै । श्चारित्रं चारु पंचधा। संस्थापयामि पूजार्थ । पत्रैह नैश्ते क्रमा त् ॥ १३ ॥न जी श्री सम्यग् चारित्राय नमः स्वाहा ॥ ८॥ नैश्त कूणकी तरफ चारित्र पदकी स्थापना पूजा करै ॥ इति ॥ * ॥( पीछे ) रकेबीमें ५० मोती, श्वेतगोलो, श्वेत धजा आदि, सर्व सपेदद्रव्य हाथमें लेके तप पदको श्लोक बोलके चढावै ॥ (श्लोकः ) विधा प्रादशधानिन्नं । पूतेपत्र तपःस्वयं । निधाययामि नत्त्यात्र । वायव्यां दिशि शर्मदं ॥ १४ ॥ नही श्री सम्यग् तपसे नमः स्वाहा ॥ ९॥ वायव कूणकी तरफ तप पदकी स्थापना पूजा करे ॥ इति ॥ * (अथ अर्घ ) ॥ निःस्वेदत्वादि दिव्या तिशय मयतनून् श्री जिनेंद्रान् सुसिघान् । सम्यक्तादि प्रकृष्टाष्टक गुणदा चार साराश्वसूरीन् । शास्त्राणि प्राणिरदा प्रवचन रचना मुंदराण्यादि संझं। स्तत्सिध्यै पाठकानां यतिपति सहिता नर्चयाम्यर्घदानै ॥ १५ ॥ इत्थमष्ट दलं पद्मं । पूरये दर्हदादिनिः । स्वाहांत प्रणवाद्यश्च । पदैविघ्न निवृत्तये ॥ १६ ॥ क्षी श्री अज असिमानसा सम्यग् दर्शन झान चारित्र तपसे भ्यो झी श्री अहं परमेष्टिन परमनाथ परमदेवाधिदेव परमार्हन् परमानंत चतुष्टय । परमात्मने तुभ्यं नमः ॥ (इति मूलमंत्रः ) ॥ इति सिघचक्र प्रथमवलय मूलपूजा विधि ॥४॥
॥अथ द्वितीय वलय पूजा॥॥ ॥ ॥ प्रथम वलयमें एक मध्य, चार दिश, चार विदिश, एवं अष्टदल कमलके आकार नवकोठा मंमलके मध्यनागमें होय । ननोंकी पूर्वोक्त प्रकार पूजा करै ॥ ( पीछे ) दूसरा वलयमें चूमीके आकार १६ कोठग: होय । ( जिसमें ) एकेक कोठाके अनंतर आठ कोठामें, अवर्गादि आठ वर्ग स्थापन करै । ( और ) एकेक कोग बीचमें खाली रहा है ( नसमें) अनाहत पद (नशी णमो अरिहंताणं ) ऐसा पदस्थापन करै ॥ (पीने) एक रकेबीमें, मिश्री लवंग ( तथा ) एक रकेबीमें मोटी दाखां लेके खमा रहै। अनाहत पदमें मिश्री, लवंग, चढावे ॥और आठ वर्गमें दाषा चढावे ॥ (यथा)क्षी णमो अरिहंताणं ॥ मिश्री लवंग चढावै ॥ १ ॥ अपा इईनक रु ऋल लु ए ऐ औ अं अः ॐक्षी स्वर वर्गाय नमः ॥
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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह.
(Sri ) १६ दाख चढावे ॥ २ ॥ ॐ की णमो अरिहंताणं ॥ मिश्री लवंग ॥ ३ ॥ क ख ग घ ङ । ी व्यंजन कवर्गायैनमः ॥ १६ ॥ दाखच ० ॥ ४॥ झी मोरिहंताणं ॥ ५ ॥ चजऊन । झी चवर्गायैनमः ॥ ६ ॥ कीमो अरिहंताणं ॥ ७ ॥ टठकढण । झी टवर्गायैनमः ॥ ८ ॥ मो अरिहंताणं ॥ ९ ॥ तथदधन । की तवर्गायैनम ॥ १० ॥ णमो अरिहंताणं ॥ ११ ॥ पफवनम | झी पवर्गायैनमः ॥ १२ ॥ श्री मो अरिहंताणं ॥ १३ ॥ यरलव । तँ की यवर्गायैनमः ॥ १४ ॥ श्री रामो अरिहंताणं ।। १५ ।। शषसह । की शवर्गायैनमः ॥ १६ ॥ पहला प्रवर्ग, पवर्गतक, वर्गदी १६ सोले दाख चढावै ॥ सब ९६ द्राख (और) यरलव १ । शषसह २ । यह दो वर्गमें ६४ द्राख चढावै ॥ इति दूसरा वलय पूजनविधिः ॥
॥
॥ ॐ ॥
॥ अ ( तीसरा वलयमें ) चार दिशः चार विदिशमें आठ परमेष्टी, पद स्थापन निमत्त आठ कोठा करे | इस आठ कोठाके वीच वीचमें बलाका तीन तीन देवे ॥ तीनुं वलाकामें २४ खाना हुवै ॥ एकेक खाने में दो दोय ल ब्धि पद स्थापन करनेसें । चोवीस घरमें ४८ लब्धिपद स्थापन पूजन करना ॥ ॥ अथ लब्धिपद पूजन विधि ॥
॥
॥
की परमेष्टिने नमः स्वाहा ॥ ऐसा ८ लब्धि पदका नाम बोलके, खारकां ४८ रामो जिणाएँ ॥ १ ॥ ी प्र मो परमोहि जिणाणं ॥ ३ ॥ झी श्र णमो तोहि जिणाएं रामो कुछबुद्धीणं ॥ ६ ॥ ी मो वीयबुद्धी सीमो मा १० ॥ ॐ की प्र णमो सयंसंबुदाणं
रामो
॥ * ॥ ठ परमेष्टी पदोंमें। aara बीजोरा चढावे (और) चढावै ॥ ( यथा ) ॥ ॐ श्री मो नहि जिणाणं ॥ २ ॥ ी णमो सोहि जिणाणं ॥ ४ ॥
॥ ५ ॥ ॐ श्री
णं ॥ ७ ॥ ॐ की प्र रामो पयानुसारीणं ॥ ८ ॥ सीविसाणं ॥ ९ ॥ की णमो संजिन्नसोयाणं ॥ ११ ॥ १२ ॥ ज्ञी प्र बोहि बुद्धाणं ॥ १४ ॥ ॐ श्री
॥
मोदिनी विसाणं ॥ न ी प्र णमो पत्तेय बुद्धाणं ॥ १३ ॥ श्री मो नज्जुमईणं ।। १५ ।। जी
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OU
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नवपदममल पूजा विधि. ७१९ णमो विनलमईणं ॥१६॥ नक्षी अणमो दसपुवीणं ॥ १७ ॥क्षी अ णमो चनदश पुबीणं ॥ १८॥ नक्षी अ णमो अठंग निमत्त कु शलाणं ॥ १९ ॥ * झी अर्श णमो विनब्बण इडिपत्ताणं ॥ २० ॥ नक्षी अर्ज णमो विजाहराणं ॥२१॥ शी अ णमो चारण लघीणं ॥ २२॥ नक्षी अ णमो पणासमणाणं ॥ २३॥ नक्षी अणिमो आ गासगामीणं ॥२४॥शी अ णमो खीरासवेणं ॥ २५॥ नक्षी अर्ज णमो सप्पिया सवाणं ॥ २६॥ नझी अर्श णमो महुआसवाणं ॥ २७॥ नक्षी अणमो अमियासवाणं ॥ २८॥शी अर्ज णमो सिघायणाणं ॥ २९॥शी अ णमो नगवया महइ महाबीर बघमाण बुधरि । सीणं ॥३०॥शी अणमो नग्गतवाणं ॥ ३१ ॥ नक्षी अझ णमो अक्खीण महाणसियाणं ॥३२॥ नक्षी अणिमो वढमाणाणं ॥ ३३ ॥
क्षी अर्ज णमो दित्ततवाणं ॥ ३४ ॥ नक्षी अणिमो तत्ततवाणं ।। ॥३५॥ नक्षी अ णमो महातवाणं ॥ ३६॥ नक्षी अणिमो घोर तवाणं ॥३७॥ नक्षी अणमो घोर गुणाणं ॥ ३८ ॥जी अण मो घोर परिकमाणं ॥३९॥ भी अ णमो घोर गुण बंनयारीणं ॥ ॥४०॥नी अर्ज णमो आमोसही पत्ताणं ॥ ४१ ॥नजी अर्ज णमो खेलोसही पत्ताणं ॥४२॥ नक्षी अणमो जल्लोसही पत्ताणं ॥ ४३ ॥ नक्षी अ णमो विप्पोसही पत्ताणं ॥४४॥ नक्षी अर्ज णमो सबोसही पत्ताणं ॥ ४५ ॥ ज्ञी अ िणमो मणवलीणं ॥ ४६ ॥ शी अझै णमो वयण वलीणं ॥४७॥ नक्षी अामो कायवलीण॥४८॥शी अ ई अमयाललब्धि पदेभ्योनमः ॥ * ॥ इसीतरे लब्धिपदका नाम बोल २ के तीजे चौथे पांचमै वलयमें खारकां सब ४८ चढावे ॥ ( पीने ) मंगल जीके गलेके स्थानके ही कारजी स्थापन किया है ( जहांसें ) साढातीन बलाका, मंमलजीकै चौतरफ देके नीचे (कों) ऐसा अक्कर लिखा है (जिसके) प्रथम वलयमें, आठे दिशाये, आठ गुरु पापुका स्थापन करके ८ दाम मफल चढावे ॥ (यथा)नशी अत् पाउकाभ्योनमः॥ १॥ (दामम चढावे )॥नक्षी सिघ पाउकाभ्योनमः ॥ २ ॥ जी आचार्य पाडका
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७२० रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. भ्यानमः॥३॥शी गुरुपादुकाभ्योनमः॥४॥ नक्षी परमगुरु पाषु काभ्योनमः॥५॥उही अदृष्टगुरु पाउकाभ्योनमः॥६॥जी अनंत गुरुपाकाभ्योनमः ॥७॥ नक्षी अनंतानंत गुरुपाकाभ्योनमः ॥८॥ज्ञी श्रीअष्टगुरु पाउकाभ्योनमः स्वाहा ॥ इसीतरें बहावलयमे ८ दामम चढावे ॥ (पीने) सातमा वलयमें आठे दिशायें। जयादिक ८ देवीकों स्थापन कर के नारंगी चढावै ॥(यथा)नशी जयायैनमः स्वाहा ॥१॥नझी जनायै नमः स्वाहा ॥२॥झी विजयायैनमः स्वाहा ॥३॥क्षी नायैनमः स्वाहा॥४॥झी जयंत्यैनमः स्वाहा॥५॥क्षी मोहायै नमः स्वाहा ॥६॥ नशी अपराजितायैनमःस्वाहा ॥७॥नक्षी अंधायै नमःस्वाहा ॥८॥ (ऐसे) सातमा वलयमेंट नारंगी चढावै ॥ * ॥ (पी) आठमा वलयमें । १६ विद्या . देव्याको स्थापन करके चांदीका वरग लगाई नई १६ सुपारयां चढावै ॥ (यथा ) नक्षी रोहण्यैनमः ॥१॥क्षी प्राप्तैनमः॥२॥नही वज्रशं खला यैनमः॥३ नझी वज्रांकुशायनमः॥४॥नझी चक्रेश्वर्यैनमः॥५॥ नक्षी पुरष दत्तायैनमः॥६॥झी काल्यनमः ॥७॥झी महाका ल्यैनमः॥८॥नक्षी गौर्यैनमः॥९॥ नक्षी गंधाय॑नमः॥ १० ॥ क्षी सर्वास्त्र महाज्वालायैनमः ॥११॥ क्षी मानव्यैनमः॥१२॥शी. वैरोट्यायैनमः॥ १३॥नजी अबुप्तायैनमः ॥१४॥नक्षी मानस्यैनमः ॥१५॥ नक्षी महामानस्यैनमः ॥१६ ॥ (इसीतरै ) आठमा वलयमें चारुं तरफ १६ विद्यादेवीकों १६ सुपारी चढावै ॥ ॥ ( पीने) नवमा वलयकै वामवासे । २४ शाशनदेव्यांकों स्थापन करके २४ सुपारयां चढावै॥ (यथा)॥ चक्रेश्वर्यैनमः॥ १॥ अजितवलायैनमः ॥२॥ॐ पुरि तारयैनमः॥३॥ काल्यैनमः॥४॥न महाकाल्यैनमः॥५॥ॐ श्या मायनमः ॥६॥ॐ शांतायैनमः ॥७॥ कुटियनमः॥८॥ सुतार कायनमः॥९॥ अशोकायैनमः॥१०॥, मानव्यैनमः॥ ११॥ न चंमायैनमः ॥ १२॥ विदितायैनमः ॥१३॥ अंकुशायनमः ॥१४ ॥ न कंदपीयैनमः ॥१५॥ निर्वाण्यैनमः॥१६॥ बलायैनमः ॥१७॥ नधारण्यैनमः॥१८॥धरणप्रियायैनमः॥१९॥ ननरदत्तायनमः ॥२०॥
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सिद्धचक्रममल पूजा विधि. ७२१ गांधायनमः ॥ २१॥ अंबिकायैनमः॥ २२॥ पद्मावत्यैनमः ॥२३॥ सिद्धायिकायैनमः ॥ २४॥ इसीतरै वामपासे ॥ २४ देव्यांकी स्थापना करै ।। (पी)दक्षिणपासे, २४ यह राजकी स्थापना करके २४ सुपारी चढावै ॥ ( यथा)॥ ब्रह्मशांतयेनमः ॥ २४ ॥न पार्थायैनमः ॥ २३ ॥ ॐगोमेधायनमः ॥२२॥ गुटयेनमः॥ २१॥ वरुणायनमः ॥ २०॥ ॐकुबेरायनमः ॥१२॥ यवराजायनमः॥१८॥ गंधर्वायनः ॥ १७॥ ॐगरुमायनमः॥ १६ ॥ किन्नरायनमः १५ ॥ पातालायनमः॥ ॥ १४॥ षण्मुखायनमः॥१३॥ॐ कुमारायनमः ॥ १२॥ यक्षरा जायनमः ॥ ११॥ब्रह्मणेनमः ॥ १० ॥ ॐ अजितायनमः ॥ ९॥ विजयायनमः ॥ ९॥ मातंगायनमः ॥७॥ कुसुमायनमः ॥६॥ तुबुरखेनमः ॥ ५॥ यदनायकायनमः॥४॥ॐ त्रिमुखायनमः ॥३॥ ॐ महायदायनमः॥२॥ गोमुखायनमः॥१॥ इसी तरै नवमा वन यके दहिणेपासे २४ यदाकी थापना करके २४ सुपारी चढावै ॥ ( पीने) चारदिशायें ४ द्वारपालकी स्थापना करके । पीला वल वाकुल चढावै ।। (यथा)नकुमुदायनमः॥१॥ ( पूर्वदिशि ) ॥ ॐ अंजनायनमः ।। दक्षिण॥२॥ॐ वामनायनमः॥ (पश्चिम) ॥३॥ॐ पुष्पदंतायनमः ॥४॥ नत्तरदिशि ॥ ॥ ( पीने ) चार विदिशकीतरफ चार वीर पदे कृष्ण वलवाकुल चढावे ॥ (यथा) माणनद्राय नमः ॥ १॥ पूर्णजद्रायनमः ॥२॥ॐ कपिलायनमः ॥३॥ॐ पिंगलायनमः ॥ ४ ॥ ॥ ॥ इसी तरै दशमा वलयमें आडं दिशायें। ४ द्वारपाल । ४ वीर स्था पन कर॥ (पी) पूर्ण कलशके आकार, ऊपरसें किया हुवा, सिद्धचक्र जीके गलैके स्थानक, नवनिधान पदे, नव सोने चांदी आदिकका कशामें यथाशक्ति रोकनाणो घालके स्थापन करै ॥ ( यथा) ॐ नैसप्पिकायनमः ॥१॥ पांमुकायनमः॥२॥ पिंगलायनमः ॥३॥ सर्वरत्नायनमः ॥४॥न महापद्मायनमः ॥५॥ॐ कालायनमः ॥ ६ ॥ॐ महाका सायनमः ॥७॥माणवायनमः॥८॥ शंखायनमः॥ ९॥ इसीतरै मुखस्थानके नवनिधानपदे ९ कलश स्थापन करे ॥8॥ (पी) को
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७२२ रनसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. हलोफल हाथमे लेके । दक्षिण नेत्रके वरावर पासमें बंगलीका आकार किया है ।। (जहां) शी विमल स्वामिनेनमः ॥ १ ॥ ऐसा कहके चढावे। (फेर ) कोहलोफल हाथमें लेके वामनेत्रपासे वंगलीमें ( 3 देत्रपालायनमः)॥ ऐसा वोलके चढावे ॥ २ ॥ ( पीने ) तीसरो कोह लोफल हाथमें लेके, अधःपींदीके दहिणेपासे वंगलीमें ( चक्रेश्वर्यैन मः॥) ऐसा बोलके चढावै ॥ ३ ॥ ( पीने ) चोथो कोहलोफत हा थमें लेके नीचे पीदाकै वामपासे वंगलीमें (न अप्रसिघ सिधचक्राधिष्टाय कायनमः ) ऐसा बोलके चढावे ॥ ४ ॥ ( पीछे ) दशदिशायें इंद्रादिक दशदिग्पालको स्थापन करे ( वनसकेतो) अपना २ वर्ण मुजब वस्त्र नेवे द्य पुष्पादि द्रव्य चढावे (अथवा) सर्वकों एक द्रव्य सर्व समान चढावे (यथा) 3 इंद्रायनमः ॥१॥ कनकवर्ण । चंदन, केशर, चंपो, द्राख, पीलोवस्त्र, पान, सुपारी, रोकनाणो, आदि सर्व द्रव्य चढावे * ॥ १ ॥ (अग्निकूणे), अग्नयेनमः ॥२॥ रक्तवर्णका वस्त्रादिक द्रव्य चढावे ॥ २ ॥ ( दक्षिणदिशि) ॐ यमायनमः ॥३॥ कालेवर्णका वस्त्रादि द्रव्य चढावै ॥३॥ ( नेस्तकूणे ) न नैश्तायनमः ॥ ४ ॥ धूसरवर्णका वस्त्रा दिक द्रव्य चढावे ॥ ( पश्चिमदिशि ) वरुणायनमः॥ धूसरवर्णका सब द्रव्य चढावे ॥५॥ (वायवकूणे) वायवेनमः ॥६॥ नीलवर्णका वस्त्रादिक द्रव्य चढावे ॥६॥ (उत्तरदिशि) ॐ कुबेरायनमः॥७॥ सपेद वर्णका वस्त्रादिक द्रव्य चढावे ॥७॥(ईशानकूणे) ईशानायनमः॥८॥ सपेद वर्णका वस्त्रादिक द्रव्य चढावे ॥ ८॥ ( अधोदिशिः ) नागायन मः॥९॥ सपेदवर्णका वस्त्रादिक द्रव्य चढावे ॥ ९ ॥ ( ऊपदिशि ) मस्तके । ब्रह्मणेनमः ॥ १० ॥ सपेदवर्णका वस्त्रादि सर्व द्रव्य चढावे ।। इसीतरे दशदिग्पालको स्थापन पूजन करै ॥ ॥ (पीछे) नीचे पीदी स्थानकके बीचमें ९ कोठा किया हुवा है ( जहां ) नवग्रहकी स्थापना पूजा करै ॥ ( यथा ) सूर्यायनमः ॥ १॥ लालवर्णका वस्त्रादिक द्रव्य चढावे ॥ १ ॥ सोमायनमः ॥ सपेदवर्ण वस्त्रादिक द्रव्य चढावे ॥२॥
नोमायनमः ॥ लाल रंग वस्त्रादिक द्रव्य० ॥३॥नबुधायनमः॥४॥
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नवपद मंगल पूजा विधि
७२३
मुंगे रंगका वस्त्रादि द्रव्य चढावे ॥ ७ ॥ ॐ बृहस्पतये नमः ॥ पीलेवर्णका वस्त्रा दिक द्रव्य चढावे ॥ ५ ॥ ॐ शुक्रायनमः ॥ सपेदवर्ण नांदोल वस्त्रादि द्रव्य चढावे ॥ ६ ॥ ॐ शनिश्चरायनमः नीलेरंगका वस्त्रादि द्रव्य चढावे ॥ ८ ॥ ॐ राहवे नमः ॥ काले रंगका वस्त्रादि द्रव्य चढावे ॥ ८ ॥ केतवेनमः ॥ hair in dara or चढावे ॥ ९ ॥ इसीतरे नीचे नवग्रहकी स्थापना करें (पीछे) स्नात्र, नवपदजीकी पूजा करायके । भारती नवपदजीकी करे पीछे नवपदको चैत्यवंदन करे | उप्पन्नसन्नाण ( तथा ) जोधुरि श्रीमरिहंत मूलदृढ पीठपठियो । सिद्ध सूरि नवजाय साहु चिहुं साह गरठिन । दंश ण नाण चरित तव पमिशाहे सुंदरू ॥ तत्तक्खर सिरि वग्ग लखि गुरु पयद लम्बरू | दिशिवाल जक्ख जक्खणीपमुह सुरकुशमेहि प्रकियो । सो सिद्धिचक्क गुरु कप्पतरु मन वंबिय दियन ॥ १ ॥ ( पीछे ) । जंकिंचि रामोत्थु । नमोत सिद्धा• कहके । नवपदजीको स्तवन ॥ नृप्पन्न सन्नाण महोमया आदिस्तवन कहके । जयवीयराय नत्थू कहके १ नव० कावसग्ग करे || नवपद स्तुति कहै ॥ ( पीछे ) गुरुकेपास मायके वाशक्षेप लेके ग्यानपूजा, गुरूपूजा करे ॥ धूप खेवै । रोकनाणो चढावे ॥ (पीछे) यथाशक्ति साधर्मे वात्सल्य करै ।। इति नवपद मंगल पूजन विधिः ॥ | अब जाना चाहिये ( कि ) जब कोई श्रीमंत नवीकी तपस्या करे तब तो बए महिने मंगल पूजा विस्तार विधीसाथ कराता रहै | और तपस्या ४ || साढाचार वरसमें पूरण होय ( तब ) व मानवकेसाथ मंगल रच ना पूजा करे ॥ नद्यापन करे | संपूर्ण देवखाते, ग्यानखातैः गुरुखा का
पर नव नव करायके । प्रथम धर्मशाला में सुशोभित करे । दशपनरैदिन जलजात्रादि अनेक तरैका न करे । (पीछे) देवका देवखाते देवै । ग्यान का ग्यानखाते । गुरूका गुरूखाते । नपगरणादि द्रव्य देवै ॥ ( और ) रुद्धीरहित किया जावसें संपूर्ण करें। द्रव्यपूजा अपनी शक्ति मुजब करे ॥ (और) पंचायती संघ तरफसें मंगलीक अर्थ बए महिने मंगल रचना नवपद पूजा अवश्य पूर्वोक्त विधिसहित करता रहै ॥ नजी करनेका विधि ( तथा ) नवपद पूजा, स्तवन थुई, संपूर्ण, रत्नसागरका प्रथम नागमें
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७२४ - रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. लिखा हुवा है ( इसमें) इहां न लिखा है । उसमुजब करे, करावै ॥ ॥ ॥ इति विशेष विधिः॥ ॥ ॥॥ ॥
॥अथ नगवंतके (९)अंग पूजन दूहा॥॥॥
॥ जलजरी संपुट पत्रनां । युगलक नरपूजंत । रिषन चरण अं. गूठमे। दायक नवजल अंत ॥१॥ जानुं वलें कानसग रह्या । विचरया देश विदेश । खमा खडा केवल लया। पूजो जानु नरेश ॥२॥ लोकांतिक बचनें करी । वरस्या वरशी दान । करकंमै प्रनु पूजनां। पूजो नवि बहु मांन॥३॥ मानगयुं दोअंशथी । देखी वीर्य अनन्त । नुजाबलें जवजल तरया । पूजो खंध महन्त ॥ ४॥ रत्नत्रय गुण ऊजली । सकल सुगुण विशराम । नानि कमलनी पूजना। करतां अविचल धाम ॥ ५॥ हृदय कमल नपशम बलें । बाल्यो रागर्ने रोष । हेम दहै वन खंमनें। हृदय तिल कसंतोष ॥६॥ सोल पहर देई देशना। कंठ विबर वर तूल । मधुर धु नी सुर नर सुणे। तिम गले तिलक अमूल ॥ ७ ॥ तीर्थकर पद पुन्य थी। त्रिनुवन जन सेवेत । त्रिनुवन तिलक समा प्रनु । बाल तिलक ज यवंत ॥८॥ सिद्ध शिला गुण कजली । लोकांतिक जगवंत । वसियातिण कारण सही। शिर संख्या पूजंत ॥९॥नपदेशक नव तत्वना । तिम नव अंग जिणंद । पूजो बहुविध नाव थी। कहे सहु वीर मुणिंद ॥ १० ॥
॥ ॥ अथ शिदाकारक दूहा ॥॥.. ॥ॐ॥ जीवमा जिनवर पूजिई। पूजाना फल जोय । राज नमें परजा नमें। आंण न लोपे कोय ॥ १॥ कुंने बांध्यो जल रहे । जल विना कुंन न होय । झाने बांध्यो मन रहे । गुरु विना ज्ञान न होय ॥१॥ गुरु दीपक गुरु देवता । गुरु विन घोर अंधार। जे गुरु वाणी वेगला। रम वमिया संसार ।॥१॥नावे जिनवर पूजियें। नावे दीजै दान । जा वे भावना जाविये। जावे केवल न्यान ॥१॥प्रनू नामकी नषधी । शुध चित्तसें खाय । रोग पीमा व्यापे नही । महा दोष मिट जाय ॥ १ ॥ पांच कोमीने फूलमे । पाम्या देश अढार । कुमार पाल राजा थयो । वरत्यो जैजै कार॥१॥ मनमोहन पारस मिल्यो। मोहन गुण सुखकंद । मोहनी मू
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लघु नवपद पूजा.
७२९ रत देखके । मोहन चित आनन्द ॥ १ ॥ पारश प्रनुके नामसें । सहु से कटमिटजाय । ईत उपद्रव जय टलै। मोहन गुण प्रगटाय॥१॥ इति दूहा॥8॥
॥॥अथ नवपदपूजा लि०॥ ॥
॥ ॥ प्रथम अरिहंत पदपूजा॥2॥ ॥ ॥दोहा॥ परम मंत्र प्रणमी करी । तास धरी नर ध्यान ॥ अरिहंत पदपूजा करो। निज निज शक्ति प्रमाण ॥8॥
॥ ॥काव्य ॥ जियंतरंगारिजणे सु नाणे। सप्पामि हेराइ सयप्पहाणे। संदेह संदोह रयं हरते । काएहनिचंपि जिणे रिहंते ॥१॥ ॥ ॥
॥ नप्पन्न सन्नाणमहोमयाणं । सप्पाडिहेरासण संठिाणं ॥ सद्देस गाणं दियसझणाणं । णमो णमो होठ सया जिणाणं ॥१॥ नमोनंत संत प्र मोद प्रधानं । प्रधानाय नव्यात्मने जास्वताय ॥थया जेहना ध्यानथी सौ ख्यनाजा। सदा सिघ चक्राय श्रीपाल राजा॥२॥ करया कर्म पुर्मर्म च कचूर जेणें । जला भव्य नवपद्द ध्यानेन तेणें ॥ करी पूजना नव्य जावें त्रिकालें । सदा वासियो आतमा तेण कालें ॥३॥ जिके तीर्थकर कर्म नदयें करीनें । दिय देशना जव्यनें हित धरीनें ॥ सदा आठ महापामिहारे समेता। सुरेश नरेशें स्तव्या ब्रह्मपूता ॥४॥ करया घातिया कर्म चारे अ लग्गा। नवोपग्रही चार ने जे विलग्गा ॥ जगत् पंचकल्याणक सौख्य "पामें। नमो तेह तीर्थकरा मोदकामें॥५॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ (ढाल )॥त्रीजे नव विधिसे करी। वीश स्थानक तप करिने है। गोत्र तीर्थकर बांधियुं । समकित शुच मन धरिनेरे ॥ १ ॥अरिहंत पद नित वंदिये। करम कठिन जिम मीयेरे॥ (ए आंकणी)॥जनम कल्याण कनें दिनें । नारकी मुखिया थावरे ॥मति श्रुत अवधि विराजता । जसु नेप म कोइ नावे रे॥१०॥ २ ॥ दीक्षा लीधी शुन्न मनें । मन पर्यव प्रादरि युरे॥ तप करि कर्म खपाइनें । ततखिण केवल वरियुं रे॥ अ० ॥ ३ ॥ च तीश अतिशय शोलता। वाणी गुण पेंतीशो रे ॥ अठदश दोष रहित थई, पूरे संघजगीसो रे ॥अ० ॥ ४ ॥ तन मन वयण लगाइने । अरिहंत पद आराधे रे॥ ते नर निश्चयथी सही। अरिहंत पदवी साधे रे॥१०॥ ५ ।।
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७२६
रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह
॥ * ॥ श्लोक ॥ अथाष्टदलमध्याब्ज । कर्णिकायां जिनेश्वरान् ॥ प्रवि नूत जसोधा | नावृतः स्थापयाम्यहम् ॥ १ ॥ निःशेष दोषेधन धूमकेतु नपार संसार समुद्र सेतून् ॥ यजे समस्ता तिशयैक हेतून् । श्रीमजिनानं बुजकर्णिकायाम् ॥ २ ॥ ( ी प्रदभ्यो नमः) ॥ इति ॥
1111
॥ ॥ अथ द्वितीय सिद्धपद पूजा ॥ # ॥ ॥ दोहा ॥ दूजी पूजा सिद्धकी। कीजें दिल खुशियाल ॥ अशुभ कर्म दूरें टले । फले मनोरथमाल ॥ १ ॥ # ॥ ॥ 566 कम्मावरण पमुक्के । तनालाइ सिरी चनक्के । समग्ग लोग ग्गपयप्पसि । काहनिच्चपि मां मि सिद्धे ॥ २ ॥ ॥
॥ ॥
॥ॐ॥
॥ ॐ ॥ सिद्धाणमादरमालयाणं । णमो णमो पंत चनुकयाणं ॥ सम्मग्ग कम्मक्खय कारयाणं । जम्मं जरा दुक्ख निवारयाणं ॥ १ ॥ करी आठ कर्म कयें पार पाम्या । जरा जन्म मरणादि जय जेण वाम्या ॥ निरावरण जे आत्मरूपें प्रसिद्धा । थया पार पामी सदा सिद्ध बुधा ॥ त्रिना गोनहा वगाहात्मदेशा । रह्या ज्ञानमय जात बर्णादि लेशा ॥ सदानंत सौ ख्याश्रिता ज्योतिरूपा । अनाबाध अपुनर्भवादि स्वरूपा ॥ १ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ (ढाल ) ॥ सकल करमनोदय करी । सिध अवस्था पाईरे ॥ गुण इगतीस विराजता । नृपम जसनही कांई रे ॥ ६ ॥ मन शुद्ध सिद्ध पद वंदियें (एकणी) जनम मरण दुःख निर्गम्या । शुद्धतम चिदरू पी रे ॥ अनंत चतुष्टय धारता । अव्याबाव रूपी रे ॥ म० ॥ ७ ॥ जास ध्यान जोगीसरू । करे अप्पा जायें रे ॥ जव जव संच्यां जीवमे । कठिण करम तें कायें रे ॥ ० ॥ ८ ॥ ध्यान धरंतां सिधनुं । पूजंतां मन रागें रे ॥ अविचल पदवी पाईयें। कहां जिनवर व जागें रे ॥ म० ॥ ९ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ श्लोक ॥ तस्य पूर्वदले सिधान् । सम्यक्त्वादि गुणात्मकान् ॥ निःश्रेयसपदं प्राप्तान् । विदधे नक्ति निर्भरः ॥ १ ॥ तत्पूर्वपत्रे परितः प्रणष्टदुष्टाष्टकर्माधिगम्य शुद्धिम् ॥ प्राप्तान्नरान् सिद्धिमनंतबोधान् । सिद्धान्यजे शांति करा नराणाम् ॥ (नशी सिद्धेभ्योनमः ) ॥ ॥ 1181
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लघु नवपद पूजा.
॥ ॐ ॥ अथ तृतीय प्राचार्यपद पूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ दोहा ॥ ॥ हिव आचारज पद तणी । पूजा करो विशेष ॥ मोह तिमिर दूरें हरे। सूजे नाव शेष ॥ १ ॥ ॥
॥ नतं सुहृदेहि पिया न माया । जंदिति जीवाणिह सूरि पाया । तुम्हा हु तेचेव सया महेह। जंमुरक सुरकाई हुं लहेह ॥ २ ॥ ॥
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॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ सूरीण दूरीकय कुग्गहाणं । णमो णमो सूरसम प्पहाणं ॥ संदेशणा दाण समायराणं । अखंग बत्तीस गुणायराणं ॥ १ ॥ नमुं सूरिराजा सदा तत्त्वत्ताजा। जिनेंद्रा गर्ने प्रौढ साम्राज्यमाजा । षट्वर्ग व गितगुणें शोजमाना । पंचाचारनें पालवे सावधाना ॥ जवि प्राणिनें देशना देशकाले । सदा प्रप्रमत्ता यथा सूत्र आले ॥ जिके शासनाधार दिग्दंति कल्पा । जगत्ते चिरंजीवजो शुद्धजल्पा ॥ १ ॥
॥ * ॥
॥ ॐ ॥ ( ढाल ) ॥ गुणबत्तीशे दीपता । पाले पंच आचारो रे ॥ जिन मारग साचो कहे | युगप्रधान जयकारोरे ॥ १० ॥ श्राचारिज पद वंदीयें । (कणी ) ॥ सारण वारण चोयणा । परिचोयण चौ शिक्षारे || नव्यजी व समजायवा । देवानें ते दिक्षा रे ॥ ० ॥ ११ ॥ जिनवर सूरज प्राथ म्या । परतिख दीपक जेहा रे ॥ सकल नाव परगट करे । ज्ञानमयी जसु दे हा रे ॥ ० ॥ १२ ॥ विधिशुं पूजा साचवे । ध्यावे निज हित जाणी रे || पावे लघुतर कालमा । प्राचारज पद प्राणी रे ॥ १३ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ ( श्लोक ) ॥ स्थापयामि ततः सूरीन् । दक्तिणेऽस्मिन् दलेऽमले ॥ चरतः पंचधाचारं । षत्रिंशत् सगुणैर्युतान् ॥ १ ॥ सूरीन् सदाचार रतांच सारा । नाचारयतः स्वपरान्यथेष्टम् ॥ योपसर्गेक निवारणार्थ । मभ्यर्च्चया म्य कृत गंध धूपैः ॥ २ ॥ ( श्री सूरिभ्योनमः) ॥ इति ॥ ३ ॥
॥ ॥
॥ * ॥ अथ चतुर्थ उपाध्याय पद पूजा ॥ ॥ ॥ * ॥ दोहा ॥ गुण अनेक जग जेहना । सुंदर शोभित गात्र || नव झाया पद रचियें | अनुभव रसनुं पात्र ॥ १ ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ सुत्तत्थ संवेग मयेसु एणं । संनीर खीरामय विस्सुएणं । पीति जेते वझायराये। जाएह निचंपि कयप्पसाए ॥ ४ ॥ ॥
॥ * ॥
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
॥ * ॥ छंद ॥ सुत्तत्थवित्थारण तप्पराणं । णमो णमो वायग कुंजराणं ॥ गणस्स संधारण सायराणं । सब पणा वयि मनुराणं ॥ १ ॥ नही सूरि पण सूरिगणनें सहाया, नमुं वाचका त्यक्त मदमोह माया ॥ वली द्वादशांगादि सूत्रार्थ दानें जिके सावधानें निरुघानिमानें ॥ घरे पंचनें व वर्गित गुणौघाः । प्रवादि द्विपोछेदने तुल्य सिंवाः ॥ गुणी गढ़संधारणे स्तंननूता । नूता । नपाध्याय ते वंदियें चितप्रभूता ॥ १ ॥ * ॥
॥ ॥ ( ढाल ) ॥ द्वादशांगी वाणी वदे | सूत्र अरथ विस्तारेरे ॥ पंचवरग गुण जेहना । सुमति गुपति नित धारेरे ॥ १४ ॥ श्रीनबजाया दियें (कणी ) | दायक आगम वाचना, नेद जाव युत सारीरे ॥ सूरखकूं पंकित करे, जगतजंतु हितकारीरे ॥ १५ ॥ श्री० ॥ शीतल चंद कि रण समी, वाणी जेहनी कहियेंरे ॥ ते नवजाया पूजतां, अविचल सुखमा लहीयेंरे ॥ १६ ॥ इति ॥ * ॥
॥ ॥
॥ * ॥
॥ ॐ ॥ श्लोक ॥ द्वादशांगश्रुताधारान् ॥ शास्त्राध्ययनं तत्परान् । निवे शयाम्युपाध्यायान् । पवित्रे पश्चिमे दले ॥ १ ॥ श्रीधर्मशास्त्राण्यनिशं प्रशां त्यै । पठति येऽन्यानपि पाठयंति || अध्यापकांस्तानपराब्जपत्रे । स्थिता पवित्रान्परिपूजयामि ॥ २ ॥ ॐ श्री उपाध्यायेभ्योनमः ॥ # ॥
॥ * ॥ अथ पंचम साधुपदपूजा ॥ ॥
॥ * ॥ दोहा ॥ मोक्षमारग साधन जणी, सावधान थया जेह ॥ ते मु निवरपद वदतां । निर्मल थाये देह ॥ १ ॥ * ॥
॥ खंतेय दंतेय सुगुत्ति गुत्ते । मुत्ते पसंते गुण जोग जुत्ते । गयप्पमाए हय मोह माए । शाह निचं मुणि राय पाए ॥ ५ ॥ ॥
॥४॥
॥ ॐ ॥ छंद ॥ साहूण संसाहिय संजमाणं । णमो णमो सुध दयादमाणं ॥ तित्ति गुत्ताण समाहियाणं । मुणीण माणंद पयप्रियाणं ॥ १ ॥ करे सेवना सूरि वायुग गणीनी । करूं वर्णना तेहनीशी मुणीनी । समेता सदा पंच समिति त्रिगुप्ता । त्रिगुप्तें नही काम जोगेषु लिप्ता || वली बाह्य अभ्यं तरें ग्रंथि टाली । हुये मुक्तिनें योग्य चारित्र पाली || शुभटांग योगें रमे चित्त वाली | नमूं साधुनें तेह निज पाप टाली ॥ १ ॥
॥
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लघु नवपद पूजा.
७२९ ॥ (ढाल) सकल विषय विष वारिने, आतमध्याने रातारे ॥ नपशम रसमां जीलता। निज गुण ज्ञाने भातारे ॥ १७॥ हित धरि मुनि पद बंदिये ( ए आंकणी) रतनत्रयी आराधतां । षट्काया प्रतिपाले रे॥ पचेद्री जीपे सदा। जिन मारग अजुवालेरे।।हि ॥ १८ ॥ गुण सत्तावी श अलंकरया। पंच महाव्रत धारीरे॥प्रादशविध तप आदरे । चिदानंद सुखकारीरे ॥ हि० ॥१९॥ नवविध ब्रह्मचरिज धरे। करम महा नट जी त्यारे।। एहवा मुनि ध्यावे सदा । ते नर जगत विदीतारे॥हि० ॥२०॥
॥ श्लोक ॥ व्याख्यादिकर्म कुर्वाणान् । शुन्नध्यानैक मानसान् ॥ उदपनगतान्नित्यं, साधून्वंदामि सुव्रतान् ॥१॥ वैराग्यमंतर्वचसि प्रशिई सत्यं तपोछादशधा शरीरे॥ येषामुदपत्र गतान् पवित्रान् । साधून् सदा तान परिपूजयामि ॥नशी सर्व साधुभ्योनमः॥॥ ॥॥
॥ अथ षष्टमदर्शन पदपूजा॥8॥
॥ दोहा । जिनवर भाषित शुधनय, तत्त्व तणी परतीत ॥ तेस म्यग्दर्शन सदा । प्रादरिये शुनरीत ॥१॥ ॥
जं दबनवाइ सु सदहाणं। तं देसणं सब गुणप्पहाणं । कुग्राहवाही नवयति जेण । जहा विसुद्धण रसायणेण ॥६॥॥
॥ ॥ ॥ बंद ॥ जिणुत्ततत्ते रुइ लक्खणस्स । णमो गमो निम्मल दसण रस ॥ मित्त नासाइ समुग्गमस्स। मूलस्स सचम्म महामस्स ॥१॥ विपरियासहो वासनारूप मिथ्या । टले जे अनादी अ जे कुपथ्या॥ जिनोक्ते हुवे सहजथी सुधध्यानं । कहिये दर्शनं तेह परमं निधानं ॥ विना जेहथी झानमानरूपं । चरित्रं विचित्रं नवारण्य कूपं । प्रकृति सात नपश मदये तेह होवे । तिहां आपरूपं सदा आप जोवे ॥१॥8॥ ..08 ॥ (दाल)॥ सुगुरु सुदेव सुधर्मनी । सदहणा चित्त धरिये रें॥सात प्रकृतिनो क्य करी। दायिक समकित वरियेरे ॥ २१॥ दरशण पद नित बंदिये ( ए आंकणी) इण विण झान निःफल कां। चारित्र निःफल जा परे॥शिव सुख ए विण नां मीले, बहु संसारी थायरे॥ द०॥२॥सतसहि
९२
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह दें शोनतुं । अजरामर फल दातारे॥ जे नर पूजे नावशुं । ते पामें सुख शातारे । दरशण पद० ॥ २३ ॥३॥
॥ ॥ #॥ श्लोक ॥ जिनेंद्रोक्तमतं श्रधा । लक्षणं दर्शनंयजे॥ मिथ्यात्वमथ नं शुछ । न्यस्तमीशानसदले ॥१॥ क्षी सम्यग्दर्शनाय नमः॥इति ॥६॥
॥ ॥ अथ सप्तम ज्ञान पद पूजा ।। * ॥ ॥* ॥दोहा ॥ सप्तम पद श्री ज्ञाननो । सिघचक्रतप मांहि ॥ आराधी जे शुन्न मनें । दिन दिन अधिक नबाहि ॥ * ॥
नाणं पहाणं नय सिघ चक्कं । तत्ताववोहिक्क मयं पसिद्धं । धरेह चित्तावसहे कुरंतं । माणक दीवुब्ब तमो हरंतं ॥७॥४॥
॥ * ॥ बंद ॥ अन्नाण संमोह तमोहरस्स । णमो णमो नाण दिवायरस्स। पंचप्पयारस्सु वगारगस्स । सत्ताण सवत्थ पया सगस्स ॥ १ ॥ हुवे जेहथी ज्ञान शुध प्रबोधे । यथा वरण नाशे विचित्रं विबोधं ॥ तिणे जा णीय वस्तु षडद्रव्य नावा । न होवे वितहा निजेडा स्वप्नावा ॥ हुवे पंच मत्यादि सुझान दें। गुरूपासथी योग्यता तेह वेदेवली ज्ञेय हेया नपा देय रूपें । लहे चित्तमां जेम ध्वांतप्रदीपें ॥१॥
॥ ॥ (ढाल ) नद अन्नत विचारणा । पेय अपेय निर्धारोरे ॥ कृत्य अकृत्य ने जाणियें । ज्ञान महा जयकारोरे ॥२४॥ज्ञान निरंतर वंदियें ॥ (ए आंकणी)॥ज्ञान विना जयणा नही । जयणा विण नही धर्मोरे ॥धर्म विना शिव सुख नही । ते विण न मिटे जर्मो रे॥झा० ॥ २५॥ पांच प्रकार ने जेहना, नेद इकावन तासोरे ॥ जाणीनें पूजे सदा । ते लहे केवल खासोरे॥२६ ॥॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥श्लोक ॥ अशेषद्रव्यपर्याय । रूपमेवावनासकम् ॥ज्ञानमाग्नयपत्र स्थं । पूजयामि हितावहम् ॥ इति ॥ * ॥ .... ॥ ॐ ॥अथ अष्टम चारित्र पद पूजा ॥ॐ॥
॥ * ॥ दोहा ॥ अष्टमपद चारित्रनुं । पूजो धरी नमद॥ पूजत अनुन्नव रस मिले । पातक होय नब्बेद ॥१॥*॥
॥ॐ॥
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नवपद पूजा आरती.
७३१ ॥ सुसंबर मोह निरोह सारं । पंचप्पयारं विगयाइ यारं । मूलोत्तराणेग गुणं पवित्तं । पालेह निचपिहु सच्चरित्तं ॥ ८॥॥ ॥8॥
॥ ॥ बंद ॥ आराहियाखमिय सकियस्स । णमो णमो संयम वीरिय स्स।सझावणा संग बिवाढियस्स । निवाणदाणाइ समुऊयस्स ॥१॥ वली ज्ञानफल चरण धरिये सुरंगें । निराशंसता प्राररोध प्रसंगें ॥ नवां जोधिसंतारणे यानतुल्यं । धरुं तेह चारित्र अप्राप्तमूल्यं ॥१॥ हुवे जास महिमाथकी रंक राजा। वली प्रादशांगी जणी होय ताजा ॥ वली पाप रूपोपि निःपाप थाये । थई सिघ ते कर्मनें पार जाये॥२॥ * ॥
॥ (दाल) सर्व विरति देशविरातिथी । अणागार सागारीरे॥ जय वंतो थावो सदा । ते चारित्र गुण धारीरे॥ २७॥चारित्रपद नित वंदीयें। (ए आंकणी ) षट्खंड सुख तजि आदरे । संयमशिव सुखदायीरे ॥ सत्तर नेदें जिन कह्यो । ते आदरिये नाईरे ॥ चा० ॥ २८ ॥ तत्त्वरमण तसु भूल ने । सकल आश्रवनो त्यागीरे॥ विधिसेती पूजन करे । नाव धरी वमन्नागीरे॥चा०॥२९॥॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥श्लोक ॥ सामायिकादिनिर्नेदे । श्चारित्रं चारुपंचधा ॥ संस्थापया मि पूजार्थं । पत्रे हि नैश्ते क्रमात् ॥१॥नक्षी सम्यग्चारित्राय नमः॥८॥
॥* ॥ अथ नवम तपपद पूजा॥ * ॥ * दोहा॥ कर्मकाष्ट प्रति जालवा। परतिख अगनिसमान ॥ ते तप पद पूजो सदा । निर्मल धरिये ध्यान ॥॥ ॥ ॥ ॥
॥वशं तहानिंतर नेयमेयं । कयाइपुग्नेय कुकम्मन्नेयं । उक्खक्ख यत्थंकय पावनासं। तवं तवेहा गमियं निरासं॥९॥ण्याइं जेकेवि नवप्पयाई। आराहियंतिफल प्ययाइं। लहंति ते सुरक परंपराणं । सिरि सिरीपाल नरेसरुव ॥ १०॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥ॐ॥ कम्मदुमोनमूलण कुंजरस्स। णमो णमो तिवतवोनरस्स ॥ अ रोग लघीण निबंधणस्स । उस्सङ अत्थाणय साहणस्स ॥१॥ त्रिका लिकपणे कर्म कषाय टाले । निकाचितपणे बांधियां तेह बाले॥ कहूं तेह तप बाह्य अभ्यंतर उन्नेदें । दमा युक्त निर्हेतु ान दे॥ हुवे जास महि
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७३२ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. माथकी लब्धि सिन्छि । अवांउकपणे कर्म आवरण शुधि । तपो तेह तप जे महानंद हेतें । हुवे सिधि सीमंतिनी निज संकेतें ॥१॥ ॥ ॥8॥
* ॥ (ढाल) निज इछा अवरोधीयें। तेहिज तप जिन जाख्युरे॥ बाह्य अभ्यंतर नेदथी। प्रादशनेदें दाख्युरे ॥३० ॥ अनुपम तप पद वं दिये (ए आंकणी) तदनव मोद गामीपणं । जाणे पण जिन रायारे । तप कीधा अति आकरा । कुत्सित करम खपायारे ॥०॥ ३१ ॥ करम् निकाचित क्य हुवे । ते तपनें परनारे॥ लब्धि अहावीश ऊपजे । अष्ट महासिधि पावेरे ॥अ० ३२॥ एहवू तपपद ध्यावतां । पूर्जतां चित्त चाहेरे॥ अदयगति निर्मल लहे । सहु योगिंद सराहे रे॥ अ०॥३३॥
॥ ॥ श्लोक ॥ निधा प्रादशधा निन्नं । पूते पत्रे तपश्चयं ॥ संस्थापयामि अक्तयात्र । वायव्यां दिशि शर्मदम् ॥नशी सम्यगतपसे नमः इति ॥ ९॥
॥ ॥ अथ कलश॥ ॥ ॥ ॥ इम नवपद ध्यावे, पर्म आनंद पावे । नव नव शिव जावे, देव नर नव पावे ॥झान विमल गुण गावे, सिघ चक्र प्रनावे । सहु पुरित श मावे, विश्व जयकार पावे ॥१॥48
॥ अरिहंत सिद्ध आचार्य नवझाय, साधु दंसण नाण ए॥ चारित्र तप नवपद थकी, इहां सिद्धचक्र प्रमाण ए॥१॥ श्रीपाल राजा सुक्ख ताजालह्या सिद्धचक्र ध्यानसों ॥ विजन जो जिन लाल जाणी, हि ये आणी नाव सों ॥२॥ इय नवपय सिद्धिं, लद्धि विमा समिद्धं । पयमि य सरवग्गं, ज्ञी तिरेहासमग्गं॥दिसिवइ सुरसारं, खोणिपीढावयारं । तिजय विजयचकं सिघचकं नमामि ॥३॥ निःस्वेदत्वादि दिव्या तिशयमयतनून् श्री जिनेंद्रान्सुसिघान् । सम्यक्त्वादि प्रकृष्टाष्टगुणगणनृदा, चार सारांश्च सूरीन् ॥शास्त्राणि प्राणिरक्षा प्रवचनरचना सुंदराण्यादिशंत। स्तत्सिध्यै पाठकानां यतिपति सहितानर्चया म्यर्घदानैः ॥१॥इत्थमष्टदलं पनं । पूरयेदर्हदादिनिः।। स्वाहांतः प्रणवाद्यैश्च । पर्विघ्न निवृत्तये ॥ २ ॥क्षी पंचपरमेष्टिने सम्य रसानादिचतुरन्वितेभ्यो नमः ॥ ॥ इति श्री नवपदस्तुतिः ।
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श्रीपंचपरमेष्टी पूजा.
|| अथ नवपद आरती ॥॥ । ए नवपद प्राणी नित ध्यावो । पंचम गत सासय सुख पावो॥ (ए आंकणी) धुरथी अरिहंतपद ध्याईजें। थिरतायें श्री सिद्ध थुणीजें ॥ हु० ॥ १॥ आचारज तीजे आराधो। सूधे मन जिन कारिज साधो ॥ ए०॥२॥ नवमाया पंचम अणगारा। प्रणमंतां पामें नवपारा ॥ ए०॥ ३॥ ३॥दसण नाण चरण नल दीपे। तप तपतां क्रम अरिने जीपे ॥ एक
॥ ४॥ ए नवपद प्राणी नित थुणतां । गिरुवा नरनव सफल गिणंता॥ एक ३॥ ५॥ सिधचक्रनी कीजै सेवा । मनवंचित लहिये नित मेवा ॥ ए०॥६॥ अजर अमर सुखदायक साचो। रूके मनसें नित प्रति राचो । ए०॥७॥
॥ अथ पंचपरमेष्टी पूजा॥ ॥
॥ ॥ प्रथम अरिहंत पद पूजा ॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ॐकारबीज आदै नमुं॥ गीर्वाणी सुखदाय। तुं तू ठी पमितकरै ।। पूजै सुर नर राय ॥१॥ नमो गुरु देवकुं। नापासरस वनाय ॥ पाहणथी पनवकरे । नपगारी सिरराय ॥ २ ॥ प्रथम नमुं अरिहंतजी ॥ दूजा सिघ अनंत । तीजा सूरि सदानमुं। नपगारी जगवंत॥३॥वलि नव शाया वैदिये ॥ गुण पचवीस प्रधान । छादश अंग प्ररूपता ॥ नही विकथा नहिमांन॥४॥ पंचम पद मुनि राजनो। वंदोजवि इकतार ॥ गुण सत्तावीस सोनता । करुणारस नंमार ॥ ५॥ पांचो पद सेवेनहीं । मूरख लोक अजाण । ए पांचूं परमेष्टिहै। अनुपम सुखकीखाण ॥६॥ नजल वरण विराजता ॥ कुमति हरण सुन्नलेश ॥ अरिहंत पद पूजा करो। सेवन सदा सुरेस। ॥७॥ अष्ट द्रव्य लेईकरी। पूजो अरिहंत देव । पूजत अनुन्नव रसमिले । पावो मुख नितमेव ॥ ८॥ प्रथम पद श्रीकारहै । अतिसय जास अनंत । तीनलोकना राजवी। सेवे सुर नर संत ॥९॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ चाल होलीरी॥ वलिहारी सुखकर जिनवरकी । सबदेवनमें देव नगीनो । महिमा अधिकी मुनिवरकी ॥ ब० ॥ कोईध्यावै हरि हर ब्रह्मा। कोई कहै मेरे वालाकी ॥ब० ॥१॥कोई नरसिंह देवकुं ध्यावै । कोई कहै मेरे ज्वालाजी॥ब० ॥ मेरे परसन तुमही आए । वीतराग गुण वालाजी।
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७३४
रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.. ब० ॥२॥ अवरदेव सब काच कथीरा । तुमहो अमोलक हीराजी ॥ ब० ॥ राग प्रेष तुम पास नहीं हैं । वाईस परीसह धीराजी॥ब०॥३॥ तेरी सूरत की वलिहारी । क्याकहुं अजब अमीराजी॥ब० ॥कोड देवता हाजर रहता अगहुँतै वडवीराजी॥ब० ॥ ४ ॥ जगजीवन जगलोचन कहिये । तुमसम अवरन धीराजी॥ब० ॥ तेरे गुणको पारन पायो । सुरनर राय वजीराजी॥ ब० ॥ ५ ॥बारै गुणो प्रनू ऊपर सोहै । वृत अशोक नदाराजी ॥ ब० ॥ तीनउत्र नामंगल पूछे। ध्वजा फरक रही साराजी ॥ब०॥६॥ पृथ्वीपीठ सिंहासन ऊपर । राजत हो बडवीराजी ॥ब० ॥ पान फूल करके बहु सो जत । राजतहो गुणपूराजी ॥ब० ॥७॥ सहस जोजननो इंद्रध्वज प्रनु । आगे चालत सारा जी॥ब० ॥ महागोप महामाहण कहिये। निर्यामक सत्थ वाराजी॥ब०॥८॥ ऐसे अरिहंत पदकी महिमा। सुणियो तुम सब प्यारा जी॥ब०॥ तीन लोकमें इनका फंडा। पूजतहै इकताराजी॥ब० ॥९॥ अष्ट द्रव्यसें पूजा करतां । सदा हुवै जयकाराजी ॥ ब॥ धर्म विशाल दयाल पसाय । सुमति कहै गुणसाराजी ॥ ब० ॥१०॥ भी परमात्मने पंचपरमे ष्टी महामंत्र राजाय अरिहंत पदे अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ इति अरिहंत पद पूजा ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ दूजी सिहपूजा ॥ ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ दूजी पूजा सिद्धकी। करो नविक गुणवंत । धजा चढावो जावसुं। लालवरण मतिवंत ॥१॥ गुण इकतीस विराजता । तीनलोक सिरत्र । अनंतचतुष्टय धारता। जगजीवन जगमित्र ॥ २॥ ॥१॥
॥ ढाल ॥ नविपनरमपदगुणगानाहो॥०॥ एचाल ॥लविसिद्ध पदके गुणगानाहो ॥न सिं०॥ पनरेनेदे सिद्ध विराजै । जवितुम चितमें लानाहो ॥ज सि०॥ जिना जिन तीरथा तीरथ कहिये । अन्य सलिंग कहानाहो ॥ ॥न सि॥१॥ स्त्री पुरुषादिक लिंगें जायै । कृत्य नपुंसक गानाहो ॥ ॥०॥ प्रत्येकबुद्ध नें महसंबुद्धा । बुद्धबोधित सुप्रमानाहो॥ज सि०२॥ एक अनेक और एकसमयें। गुरुमुखथी सुच पानाहो॥न सि०॥ अष्ट सिधि नव निधिके दाता। तुमहो देव निधानाहो ॥न सि०॥३॥ सादी अनंत
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पंचपरमेष्टी पूजा.
७३५ तुम सुखके जोगी। जोगीसर लयलानाहो ॥न सि०॥ शब्दरूप रस गंध करसकुँ । जीतनए मुनि जाना हो॥ज सि०॥४॥ अव्याबाध सुखके तुम रसिये। नव्य सकल सुख दानाहो॥न सि०॥घाति अघाति दूर करीनें । जोतमेंजोत समानाहो॥न सि० ॥५॥ पेंतालीसलख जोजन सिला । नऊलवरण कहानाहो ॥न सि० ॥ऊपर जोजन जागचोइसमें । सिधप्रनु ठहरानाहो ॥त्र सि०॥६॥ तिहां श्रीसिघ सदा जयवंता । परमगुरु परधा नाहो ॥ज सि०॥ अनंतगुणाकर ज्ञान दिवाकर । इनके गुण नितगानाहो न० सि०॥७॥लबधि रिधि सब सिधिके दाता । परम इष्ट सुखदानाहो
०सि०॥धरमविशाल दयाल पसायें। सुमति कहै बुधवानाहो ॥ सि०॥८॥नक्षी श्री सिधपरमात्मने अष्ट द्रव्यं यजामहेस्वाहा ॥ इति सिधपद पूजा॥ ॥
॥॥ ॥ ॥ अथ तीजी प्राचार्यपद पूजा॥॥ ॥ दूहा ॥ तीजेपदकू नितनमूं। आचारज गुणवान । गुणउत्तीस वीराज ता। जिनवरके परधान ॥१॥ प्रतिरूपादिक गुणकरी । राजेसर समान । जातिवंत कुलवंतहै । नहीविकथा नहीमांन ॥२॥ नव्य सकल• तारवा। देसाचो नपदेश । कुमति सदादूरे करै । सुमती पाले हमेश॥३॥झद्धि सिधि कारण पूजिये। पीलेरंग प्रधांन । गणधारक गुरु गछपती।युगपरधान सुजान।
॥ ढाल ॥ मलीजिनंद सुखकारी रेवाला॥ एचाल ॥आचारज सुखकारी रे वाला॥०॥पंचाचार विराजत जगमणि। सहस किरण अवतारी रे वाला॥आ०॥प्रतिरूपादिक गुण जसु लाजै । मोह माया परिहारीरे वाला ॥०॥१॥ रागद्वेषकुं दूर निवारै । सुमतारस भंडारीरे वाला ॥ प्रा० ॥ क्रोध मान माया नहि जिनके । विकथा दूर निवारीरे वाला ॥०॥२॥ तेजकरी सूरज सम सोनित । मिथ्यातमके वारीरे वाला॥०॥नमा अधिक जगमें जसुराजे । विषयविकार निवारीरे वाला ॥ आ० ॥३॥ हृदय गंभीर महायश निर्मल । रूपादिक मनुहारीरे वाला ॥०॥ देश जात कुल नत्तम जिनके । मोह्या सब नर नारीरे वाला॥०॥४॥ सुरवर नरवर सेव करतहै । जय २ तुम सुखकारीरे वाला ॥०॥ मीठी
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७३६ . रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. . अमृत वाणी बोलै । सुणतां. हरख अपारीरे वाला ॥ प्रा० ॥ ५॥ पूर्वचवद नण्या श्रुतसागर । लबधि अहाईस धारीरे वाला॥ द्रव्यानुजोगी चरणानुजोगी। करणजोगके धारी रे वाला ॥०॥६॥ गणताजुजोगरू धरमानुजोगी। जाणे आगमसारारे वाला । धर्मप्रवाहक एह कहीजै। सूरि मंत्रके धारी रे॥ वाला आ० ॥७॥ गणधारी गहनार धुरंधर । सारण बारण कारीरे।वाला। आ०॥ ज्ञान नजागर विद्या सागर । वारीजाऊंवार हजारीरे ॥वाला०॥०॥८॥ धरम विशाल दयाल पसाये। मुमति कहै जय कारीवाला॥आगाएसै गौतमस्वामी कहियोपूजोकर इकतारी।वाला। आ०॥९॥इति जी श्रीपरमात्मने स्वाहाः॥॥ ॥ost
॥॥अथ चोथी श्रीनवशाय पद पूजा ॥हा॥श्रीनवझाया वंदिये । प्रेमधरी मनरंग ॥ चोथे पदमें सोनता । पूजो धर नबरंग ॥१॥ नीलवरण ध्वज मुंदरू । धरलावो सुनथाल । अष्टद्र व्य लेईकरी। सेवो दीनदयाल ॥२॥ ढाल ॥ जिनगुणगानं श्रुतऽमृतं ॥ ए चाल|श्रीनवाया नयहरणं । नयहरणं रे देवा नयहरणं ॥श्री। परिहर विषय विकार प्रकारं । ए गुरु है असरण सरणं ॥श्री॥१॥ गुण पचवीस विराजत सुं दर। देखत सबको मनहरणं ॥ श्री। तेजपुंज रवि शशि समदीपत । मिथ्या तम दूरेकरणं॥श्री० ॥२॥ सूत्र अंर्थ दाता जगमां है। मुनि मानसमें जय करणं । सारण वायण चोयण करता। पमिचोयण वलि आचरणं ॥ श्री॥३॥ मादश अंग पढ्या श्रुतसागर। मुमती धर कुमती हरणं ॥श्री॥ अतिशय विद्याचूरण योगे। जिनसासन नन्नतिकरणं ॥श्री॥४॥धरम प्रनाविक है उपगारी । ऐसे गुरु तारण तरणं ॥श्री० ॥ तप जप आदिकनी खप करता जव्य सकलकुं निसतरणं ॥ श्री॥५॥ नवविध ब्रह्मचर्यके धारक । दशविधि . विनय सदाकरणं ॥श्री॥॥ माया ममता दूर निवारी । बादश दे तपधरणं श्री ॥ ६ ॥ शिष्य वरगळू शानदानदै । मूरखथी पंमित करणं ॥ श्री ॥ जग जीवनके हौ प्रतिपालक । तुमविन अवरन आचरणं ॥श्री ७ ॥ विनकारण जगमें नपगारी धन २ तुमरी आचरणं ॥ श्री० ॥ पंचपरमेष्टी महामंत्रको। इष्ट सदादिलमें धरणं ॥ श्री ॥ ८॥धरमः विशाल दयाल पसाये। सुसति
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७३७
- श्रीपंचपरमेष्टी पूजा. करे तुम्ह नितवरणं ॥ श्री० ॥ नवनिध अडसिध मंगलमाला। पूजत जगमें जस बरणं ॥ श्री० ॥९॥ ॥ॐ शी परमात्म० शकलपाठक राजाय ऽष्ट द्रव्यंय० ॥ इति पाठक पदपूजा॥४॥3॥
॥ * ॥ अथ पंचमी साधु पदपूजा॥8॥ ॥ दूहा ॥ पंचमपदमें सोनता। साधु सकल गुणवंत । गुण सतवीस विरा जता। महिमावंत महंत ॥१॥ स्यामबरण मुनिवर कह्या । तप करवा अति सूरि । नविक कमल प्रतिबोधता। धरता निरमल नूर ॥२॥ ॥१॥
॥॥ ढाल ॥ सदा सहाई कुसल सू०॥एचालसिदा सहाई वीर पटोधर। मुणियो नविक नदार ॥ जलाजी ॥ मु०॥ सुधर्म स्वामी अंतरजामी। तमु नंदन सुखकार ॥०॥ जंबूआदिक गुणके सागर । तेप्रणमुं हितकार ॥ ज०. स० ॥१॥ प्रनवादिकसय पांच नदारा। प्रतिबोध्या सुखकार । ०। सिङनव
आदिक जे सूरि । तेहना शिष्य सुविचार ॥ज । स० २॥ थूलनद्र मोटो ब्रह्मचारी। उकरकरकार । न । सिंहगुफावासी जेमुनिवर । नाषे उक्कर कार ॥ ज० स०.३॥ वज्र कुमार बमे नपगारी । प्रतिबोध्या नर नार। । श्रीसिघसेन दिवाकर स्वामी। राखी जगमें कार ॥ ज० स०४॥ विक्रम आ दिक नृप अठार । प्रतिबोध्या सुखकार । न । एकतीरथकुं परगट करके। गुरुचरणां व्रतधार । न०स०॥५॥ देवढिगणी ए सबमें मोटा । राख्यो झा नज सार॥०॥सूत्र ताडपत्रे लिखराख्या। जेशलमेर मझार नस०॥६अन्न यदेव सूरी नपगारी। नव अंग टीका कार । न०। हेमाचारज है बमनागी जिणकीनो हेमनोनार। न०।७॥ कुमार-पालने जिण प्रति बोध्यो। सा खीधरमनो राख । न० श्रीजिनदत्त सूरीसर मोटा। श्रावक किया सवा लाख । ज० स०८ ॥ रतन प्रनु सूरी नपगारी । ओस्यानगर मकार । ज०। सवंसकी थापनाकरके । मोटो कियो नपगार । ज० स०॥९॥ इत्यादिक गुण गणके दरिया । सेवो नविक नदार ॥ ज० ॥ ढंढणादिक महातपसूरा। नामलियां जयकार । न० स०॥१०॥ गजसुकुमाल महामु निवंई। जावकरी इकतार । । धन धन्ना अरु शालनद्रजी। कीनीकर पीसार । ज० स० ॥ ११॥ खंधकसूरिना शिष्य पांचसै । सूरवीर व्रतधार
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७३८
रत्नसागर श्रीजिन पूजा संग्रह.
| ० पंचमपदमें ए मुनिपूजो । सदाहुवै सुखकार । ज० स० ॥ १२ ॥ पंच मारे बेह होसी । दुपसहसूरि दयाल । न० । इत्यादिक एमीप अढीमें। बंडु साधु कृपाल ॥ ज० स० ॥ १३ ॥ धरमविशाल दयाल पसायै । पूज रची सुखदाय । न० । सुमतिक है एपंचपरमेष्टी । कामधेनु कहवाय ज० स० ॥ ॥ * ॥ ढाल दूजी ॥ चाजपणिहारीकी ॥
॥
॥ सुणप्याराजी । सुणतांप्रासीस्वाद प्याराजी । धरम सनेही साधुजी सृ० ॥ करता पर पगार प्या० ॥ लालच लोन न जेहनें । सु० । नहिरा खे द्वेषलगार प्या० | ममता माया बोमनें ॥ सु० ॥ धारे व्रत सुखकार प्या० ॥ १ ॥ गाम नगर पुर पाट सु० । करता धर्म व्यापार। प्या० ॥ राग द्वेष मुनिराज ॥ ० ॥ नही कोई विषय विकार प्या० ॥ २ ॥ नपगारी सिरसेह रो । सु० । कुमतिकरे परिहार प्या० । विनकारण मुनिराजजी ॥ सु० ॥ नव्य जीव हितकार प्या० ॥ ३ ॥ ग्यानी ध्यानी सूरमा । सु० । महमा करत नरेस प्या• ॥ वाणी अमृत सारसी । सु० । सुणतां हरख हमेस पा० ॥ ४ ॥ अनेक जीवप्रतिबूजिया । सु० । धरमतणा परधान । प्या० । मायानकरे साधुजी सु० नहिविकथा नहीमांन प्पा० ॥ ५ ॥ पंचमहाव्रत धारता । सु०॥ ऐसे दीनदया ल । प्या० । सुमति धारक पांचबै। सु० । गुपतीना रखवाल प्या० ॥ ६ ॥ नद्देसक देकरी । सु० । कृतकमनें बजिदूत । प्या० । सिज्यातर रायपिंग । सु० । नहिंधारे प्रवधूत प्या० ॥ ७ ॥ कुवचन केहनो सांगली । सु० । न धेरै मनमें क्रोध । प्या० मधुकरनीपरै मालता। सु० । उंचनीच कुलसोध प्या० ॥ ८ ॥ जाधेनाम देहने । सु० । प्रणलाथै तपधार । प्या० । प्रोसरमोसर देखनें । सु० । रसलंपट नहीहोय । प्या० ॥ ९ ॥ किरियां करतां साधुजी । सु०
आलस नकरे कोय ॥ प्या० ॥ परिसहजीते आकरा । सु० । कर्मकरे सबदूर पा। मुनिवर मधुकर समका । सु० । दिन २ वधते नूर । प्या० ॥ १० ॥ जंगम तीरथ सारषा ॥ सु० ॥ धरमता आधार । प्या० । एहवा मुनिवर पूज तां । सु० । पावै वंचित सार ॥ प्या० ॥ ११ ॥ धरमविसाल दयालनो । सु० सुमति कहै करजोम । प्या० । एहवा श्रीमुनिराजजी । सु० । मुऊ माथेका मोम | प्या० ॥ १२ ॥ ॐ की परमात्म • सर्वसाधुभ्योऽष्ट द्रव्ययजामहे ॥ इति
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श्रीपंचपरमेष्टी पूजा.
॥अथ कलसकी पूजा॥॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ अब पूजा हे कलसकी । सुणियो तुम नर नार । सान लतां मुख पामसो । सफल हुसी अवतार ॥१॥ ऐसी मारुं मोहनी । सन्ना सहू हरखाय । सेवो जगतकी मोहनी । ए जग सार कहाय ॥२॥ मंत्रमाह सिरदारहै । पंच परमेष्टी एह । सरवारथ सिघी कह्यो । गणधर गौतम जेह ॥२॥ जेहनें एहनी आसता । तेहनें एह सहाय । जागहीन नर मूढकुं। होत नहीं फलदाय ॥ ४॥
॥ॐ॥
॥ ॥ ॥ ॥ ढाल प्रश्न तथा उत्तर ॥॥ #॥ चंगीमें चंगी कोन जगतकी मोहनी। चंगीचंगी जान जिणंद पद मोहनी॥१॥ सुखी जगतमें कोन कहो मन भावना । सुखी वोही संसार परम पद जावना ॥२॥ सब देवनमें देव कहो कुण जाणना। सब देवनमें देव वडो जिन जांणना ॥३॥ सबमें मोटो ध्यान कहो कुण सा जना। सबमें मोटो ध्यान सुकल तुम जाणनां ॥ ४ ॥धरम वमो जगमांहि कहो कुण, साजना । दया धर्म जगमांह वडो है साजना ॥५॥ शिव रम णीको नाथ कहो कुण साजना । शिव रमणीको नाथ सर्व सिघ जाणना ॥६॥धरममें मोटो कोण कहो मेरे साजना । धरममांहि सुननाव सुणो मेरे सा० ॥७॥दाता कहियै कोन कहो मन नावना । गुरू बडे दातार धरम धन पावना ॥८॥मीठी जगमें कोन कहो मन भावना । मीठी जि नकी वाणि धरो चित चाहना ॥९॥ मीग दाख खजूरके मीठी चाहनी। जिणसें अधिकी होय वाणी जिनरायनी ॥१०॥ सव व्रतमें कुण सार कहो मेरे साजना । सब व्रतमें व्रतसार चोथो व्रत जाणना ॥११॥ खरतर गढ पति चंदसूरीश्वर सोहता। सकल विमल गुणगेह विक मन मोहता॥१२॥ प्रीतसागरगणि सीस सकल गुण राजता । अमृत धर्म नदार वाचक पद ग जता॥१३॥ पाठकमें परधान कमा गुण सारता। तमु शिष्य धर्म विशाल । मुनीव्रत धारता ॥ १४ ॥ सुमति कहै गुणसार नविक मन सोहता। बी कानेर मझार सकल मन मोहता ॥१५॥ संघ सकल सुखदाय सेवो प्रनु भावसुं । पूजरची चितलाय अधिक बलदावमुं ॥१६॥ संवत सय नगणीसक
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.. तेपन जाणीयै । माह सुद चवदश बार मंगल मन आणीय ॥१७॥ गणतां गुणतां एह सदा सुख पामसै । घर घर मंगल माल हुवै जिननामसैं ॥१८॥ ॥ इति श्रीसुमति ममणजीकृत पंचपरमेष्टी पूजा संपूर्ण ॥ ॥ ॥ ॥॥अथ श्री सिद्ध गिरि निनाणुं प्रकारी पूजा लि०॥॥
॥ ॥ प्रथम ध्वज पूजा ॥ * ॥ ॥श्रीषनायनमः ॥ दूहा ॥ षनादिक जिनवरनमी । प्रणमी सजुरुपाय । पुमरीक गिररायनी। पूजकरुं सुखदाय॥१॥ सजल शिखर गिरवर सरस । फरस्यां पाप पुलाय । कनकाचल सहुशिरतिलो । वंद्यां सहु उःखजाय ॥२॥ नाम लियां सुख संपजै । घर बैठां सुन्न नाव । सफल जन्म जात्रा करै । जव जल तारन नाव ॥३॥ नव नव जमता मानवी । पामे पुःख अनंत । घुमरंगिर बेटे तिके । तुरत लहै नव अंत ॥ ४॥ कल्पवृदा चिंतामणी । जंत्रमंत्र जग जोय। ए महिमा सहुकारमी । गिरवर सम नहिंकोय ॥५॥ प्रथम ध्वजा लेईकरी । चाढो गिरवर शृंग। विजय सदा जगमें हुवै । दिन दिन अधिक सुरंग ॥६॥8॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ ढाल ॥ चित हरखधरी। अनुन्नवरंगे बीसपरमपदसेविये ॥ ॥ एचाल ॥ गिरराज जयो श्रीसिद्धाचल तीरथ रयणे पूजिये । महाराज जयो श्रीरिसहेसर नविजन नावै पूजीयै ॥ वर मोहन ध्वज पूजा करियै। चितचोखे जगमै जसंचरियै । जिनराज सरण नवि अनुसरियै ॥ गि० १॥ इहां पुमरीक गण धर आया । तिणपुमरीक नाम कहाया चै । सिपत्र नमी सुख पायावै ॥ गि०॥ २॥ विमलाचल गुण मणि दारयो । सुरगिर महागिरि गुण नरियो । वलि पुन्यरासि मन धरियो । गि० ॥३॥ वलि श्रीपत परबत सुखकारी । वलि इंद्र प्रकास ते चितधारी। सास्वत ए गिरवर बलिहारी ॥ गि०॥ ४॥ दृढसक्ति मुक्तिनिलो कहिये । अरु पुष्पदंत मन सरदहियै । महापद्म सुठाम सदा कहियै ॥ गि०॥५॥बलि पृथ्वीपीठ सुन्नद्र वारु । कैलास गिरि कहियै सुखकारु । पातालमूल नविहेतारु॥ गि० ॥६॥ वलि अकरम नामें एह जाणो । सर्व कांमद वलि मनमें आयो। गिर गुण गातां मन हुल साणो॥गि०॥७॥ए इकवीस गिरंद नामा । ध्यावो अवि
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श्रीसिधगिरी निन्नाणू प्रकारी पूजा. ७४१ जन तुमे सुखकामा। कहै सुमति सदा ए अनिरामागि०॥वाइति।काव्यं॥ देवा सुरेंद्र नर नागर मर्चितेभ्यः। पापः प्रणासकर भव्य मनोहरेभ्यः । घंटा ध्वजादि परिवार विनूषितेभ्य ॥ नित्यंनमो सिघ गिरींद्र जिनालयेभ्यः॥१॥ उक्षी श्री परमात्मने अनंतानंत ज्ञानसक्तये जन्म जरामृत्यु निवारणाय श्री विमलाचल तीर्थ स्थित जिनेंद्राय ध्वजां यजा महे स्वाहा ॥ पचरंगी धजा चढावै ॥ इति ध्वज पूजा॥8॥
॥ ॥ अथ दूसरी जल पूजा॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ निर्मल जल कलसा जरी। पूजो श्रीजिनराय । पूजत अनुन्नव गुणलहै । पाप पंक मल जाय ॥१॥॥ ढाल ॥आज आयोरेन्बाह जीवडा नाच जिणंद आगै॥ ॥आज हरख धरी गिरवर पूजन करियैरे॥ प्रा०॥ कलस अठोत्तर सो मनरंगानिरमल जल जरिये अतिचंग ॥ प्रा०॥ गंगादिक तीरथना जाण । अवर सुजल पूजो जग जाण ॥ आ० ॥इणपर न्हवण करो जिनराज । नवियण सारो वंचित काज॥आ० ॥णगिर ऊपर
षन जिणंद । समवसरया नवियण सुखकंद ॥०॥२॥महियल मोटो 'ए गिरि जाण । नवियण नेटो सुखनी खाण ॥ आ०॥कंकर २ साधु अनंत सिघ थया नाष्यो जगवंत ॥ आ०॥३॥ हिव सुणज्यो सगलो अधिकार । चित थिर राखी करो गुण धार ॥ ० ॥ मन तन नलस सुणतां एह । तत खिणपावै करमनो नेह ॥०॥पातिक टाली पूजो देव । जिम मुख पावो नित्य अह ॥०॥महियल.मोटो ए गिरराय । श्री मुख नाखे श्री जिन राय ॥ आ०॥५॥ प्रथम अजित सोलम प्रनु ध्यांन । करके पूजो गिरराजा न ॥ आ० ॥ इणपर सुमति कहै हित आण। जिनपद सेव्यां कोड कल्याण ॥श्रा०॥६॥ काव्यं ॥ देवा सुरेंद्र नर नागर मर्चितेभ्यः, पापः प्रणा सकर नव्य मनो हरेभ्यः । घंटाध्वजादि परिवार विनूषितेभ्यः । नित्यं नमोसिद्ध गिरींद्र जिनालयेभ्यः॥ १ ॥क्षी श्री परमात्मने अनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्री विमलाचल तीर्थाय जलं यजा महे स्वाहा।। शति जल पूजा॥२॥ ॥
॥ ॥
॥3॥
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह ॥ * ॥अथ तीसरी चंदन पूजा॥8॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ निर्मल केसर चंदनें । पूजो श्रीजगदीस । प्रेम धरी पूजा करो। सुखपावो निस दीस ॥१॥नगर अजोध्यानो धणी । श्रीजि तशत्रु नरेस। विजयाराणी शीलनी । सोनाकरै सुरेस ॥२॥ जिण जायो सुत जग धणी । जीत्या रिपु दल जास॥ अजित कुंवर राजा कियो । नाम जिसो परकास ॥३॥ ढाल॥श्रीचंद्राप्रनू जिनवर साहिब, (इस चालमें) अजित जिनेसर जग परमेसर । तुमहो पर नपगारा ॥ मेंवारीजाऊं तु०॥ बावनाचंदन केसर घोली । कस्तूरी घनसारा ॥ में ॥ नाव जगतसुं प्रनु, गुण गावो । पूजो जग जरतारा ॥ में० अ०॥१॥मिथ्यातम जर दूर निवारी । सेवो प्रनु अविकारा ॥ में०॥ राज राजेसर जगपति जिनवर । चक्री अजित नदारा ॥ में० अ०॥२॥ परनपगारी तुं परमेसर । ट्यां जय जय कारा ॥ में० ॥ जिम २ परमल पसरै तेहथी। सोना अधिक नुदारा ॥ में अ०॥३॥ नूमंगल विचरंता प्रबूजी । बहु चेतन सुखकारा ॥में ॥ पुंमरीक पर अजित जिनेसर । चौमासोतिहां धारा ॥ में अ० ॥४॥ सिंहसेनादिक गणधरथापी। पंचाणू हितकारा ॥में०॥ एक लाख मुनि मुद्रा धारी। नरिया गुण मणि धारा ॥ में० अ०॥ ५ ॥ चौथा आराने मध्यज मागै । अजित हुवा अविकारा ॥ में० ॥बोहत्तरलख पूरबनो आऊ। कीधा जग जयकारा ॥ में० अ० ॥६॥ सोलम जिनवर शांतिजिनेसर । अचिरा नंद नदारा॥ में० ॥ विमलगिरिंद पर कर चौमासो । करम कलंक निवारा ॥ में० अ० ॥७॥ विश्वसेन कुलनांण विराजै । जगजीवन हित कारा ॥ में० ॥श्रीहथणापुर ममण स्वामी । सुमति सदा दातारा ॥ में० अ० ॥८॥ काव्यं ॥ देवा सुरेंद्र० पूर्वलीपरें संपूर्ण कहीजै ॥ नक्षी श्रीपरमा त्म०॥ इति चंदन पूजा ॥३॥ ॥
॥ॐ॥ ॥॥अथ चौथी पुष्प पूजा॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ पूज चतुर्थी इणपएँ । कुसुम सुगंध सुजोय । जव्य मनो रथ पूरवै । घर घर मंगल होय ॥१॥2॥
॥ ॥ ढाल ॥ जिनराज नाम तेरा ।हो महाराज नाम तेरा ॥ हो
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श्री सिधगिरी निनाएं प्रकारी पूजा
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॥ ॐ ॥ विमलगिरि नाम तेरा । हो कनकगिरि नाम तेरा ॥ हो सेवोरे नज्जलगिरि रसमें । हो० नं० ॥ मचकुंद कुंद जाणो । चंपो गुलाब आणो । पूजो जिनंद जाणो ॥ हो० न० ॥ १ ॥ कर्मावसी जुराजे | जिनबिंब बहोत बाजे । जोतां मिथ्यात जाजै ॥ हो० न० ॥ २ ॥ मोतीवसी जुहारो मनकामना जु सारो । दिलमां हैं एहि धारो ॥ हो० न० ॥ ३ ॥ बालावसी जिणंदा । निरष्यांहि सुक्ख कंदा । अहारे चैत्य बंदा ॥ हो० ॐ० ॥ ४ ॥ पेमावसी प्यारा । नेटो जिनंद सारा । वंद्यांथी सुख्ख कारा ॥ हो० म० ॥ ५ ॥ हेमावसी जु वंदो । अजितादि सुख्ख कंदो । सेवो जिनंद चंदो ॥ हो० नं० ॥ ६ ॥ नऊमवसी जु राजै। नंदीश्वर जाव बाजै । सेवोथे सुख्ख काजे ॥ हो० नं० ॥ ७ ॥ साकरवसी जु जावे। जेट्यां पाप जावे । देख्यासुं • सुख्ख थावे ॥ हो० न० ॥ ८ ॥ बींपावसी जु ध्यावो । वंबित्त सुख्ख पावो । मनमांहि नावलावो ॥ हो० न० ॥ ९ ॥ खरतरवसी जु सोहै । जिनराज मन्न मोहे । निरख्यांसुं सुख्खहोवै ॥ हो० न० ॥ १० ॥ इत्यादि भावजाणो । गुरुग्न मन्न आणो । संकादिचित्त नांणो ॥ हो० न० ॥ ११ ॥ सुमतादि ध्यानध्यावो । गुण नाथनाजु गावो । मन नाव एहि जावो ॥ हो ० ॥ काव्य पूर्वनीपरें ॥ श्री श्रीपरत्मा० ॥ इति पुष्प पूजा ॥ ४ ॥ ॥ # ॥ थ पांचमी धूप पूजा ॥ ॥
० ॥ १२ ॥
॥
॥
( दूहा ) धूपपूज ए पांचमी । करता जवि सुखदाय । धूपघटी जिम मह महे ॥ तिम तिम पातिक जाय ॥ १ ॥ ॥
॥* ॥ यात्रानिनाणं करियै विमलगिरि यात्रा ० ॥ए चाल ॥ ॥ ॥ * ॥ इण विधि पूजन करियै विमलगिरि ॥ ३० ॥ कृष्णागरने मृगमद अंबर। गंधवटी अनुसरिये ॥ वि० इ० ॥ १ ॥ चीरुसेल्हारस तुरक जलेरो । इणविध पूजन करियै ॥ वि० इ० ॥ केसर चंदन मृगमद कुंकुम । जाव नलै अनुसरियै ॥ वि० इ० ॥ २ ॥ नऊल अमल अखंमित तंडुल । दीप अखं जु धरिये ॥ वि० इ० ॥ पुष्प सुगंध गुलाबना लेइ । पूजो इणगिरिवरिये ॥ वि० ० ॥ ३ ॥ साधू साहमी जगति करीनें । आतम निरमल करियै ।। वि० इ० ॥ पांचे पांव इणगिर पूजो । नवनारद मुनि वरियै ॥ वि० इ० ॥ ४ ॥
॥ ॐ ॥
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. गिरवर ऊपर पांचे ठगमें। पूजकरी अघ हरिये ॥ वि० इ० ॥ कलस अठोत्तर सो लेईनें । न्हवण जली विध करियै ॥ वि० ३० ॥५॥ मूलनायक श्री
आदि जिनेसर । इण गिरिपर समोसरियै ॥ वि० ३०॥ नाव जगतसुं जि ननी पूजा । करतां सहु सुख वरि ॥ वि० इ०॥६॥ लहि अवतार ए गिर नहीं फरसे । तो किम नवजल तरिय ॥वि०३०॥ पुंमरगिरिनो ध्यान धरीने पुन्य खजानो नरिये ॥ वि० ३०॥७॥ए गिरनी आसातना टाली । जात्र करी निसतरिये ॥ वि० इ०॥ सगततां जो संघ लेईन । आवै इण गिर वरियै० ३०॥८॥द्रव्य नावसुं पूजन करिनँ । पाप पंक अपहरियै ॥ वि० इ० ॥ सुमतिकहै धन २ ए गिरवर । पूजौ जवि सुख करियै ॥ वि० इ० ॥९॥॥ काव्य पूर्ववत् ॥ झी श्रीपरत्मा० ॥ इति धूपपूजा ॥३॥
॥॥अथ नही दीपपूजा ॥ॐ॥ (दूहा) नही पूजा दीपनी ॥ करो नविक सुखकार । विमलबोध पावो तुमे । ज्ञानदीप सुविचार ॥१॥2॥
॥*॥पासजिनंदा प्रनु मेरे मनवसिया ॥पा०॥ एचाल ॥ आदि जिणंदा प्रनु सेवो सुखकारी प्रा०॥ निरमलबोध विकासक दीपक। दिन २ जोत अधिक सुखकारी ॥ आ० ॥१॥अनुन्नवदीपक प्रगट नयोहै । सक ल चराचर नाव विचारी॥आ०॥ केवल ज्ञानी प्रथम तीर्थकर । समोवस रया नवियण हितकारी॥ आ० ॥२॥ फागुण सुद आठमने दिवसे । ष नदेव आया सुविचारी ॥ प्रा० ॥ नरथपुत्र चैत्रीपूनमदिन । इणगिर आया जवि मनधारी ।आ० ॥३॥ नमि विनमी राजा विद्याधर। घुमर गिर सेवै इकतारी॥०॥ पोतरा प्रथम तीर्थकर कैरा । द्रावमनें वारखिन विचारी ॥आ०॥ ४॥ कातीसुदपूनम दिन सीधा । दसकोमी मुनि साथ नदारी॥ आ० ॥ पांचे पांमव इणगिर सीधा । नव नारद निज काज सुधारी ॥आ० ॥५॥ संब प्रजुन्न गया इहां मुगते । आठ करम दल दूर निवारी ॥आ०॥ नेमि बिना तेवीस तीर्थकर । समवसरिया नवियण नपगारी॥ आ० ॥६॥
ए गिरराजना गुणगणगातां। सफल हूवै आतम सुविचारी॥। ए गिर .. राजनी पूजा जगमें। जवजल पार नतारण हारी ॥ प्रा० ॥७॥ द्रव्य
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श्रीसिद्धगिरी निन्नाएं प्रकारीपूजा
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नाव सुं पूजन करियै । कुमति कुटलता दूर निवारी ॥ प्रा० ॥ कहै सुमति सेवो इकतारी । इण तीरथनी जानूं बलिहारी ॥ प्र० ८ ॥ इति ॥ काव्य पूर्ववत् ॥ ी श्रीपरत्मा० ॥ ॥
॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ सातमी प्रकृतपूजा ॥ * ॥
॥ ( दूहा ) नऊल तंडुल लेयनें। पूजो दीन दयाल । स्वस्तिक करतां वि स्तरै । घर २ मंगल माज ॥ १ ॥ तुमविन दिनानाथ दया निध कौन खबरले मेरीरे ॥ चाल ॥ गिरिवर नेटण विजन यावे । मनवंबित फल पावैरे । नऊल तंडुल थाल नरीनें । वधावो गिरिरायारे । अष्टमंगल प्रभु प्रागल धरियै । निरमल सु सुहायारे ॥ नि० ॥ २ ॥ ए गिरिमहिमा जिनमुख सुके । चक्री मन हुलसावैरे । जरथराय षट्संगको नायक । संघ लेई इहां प्रावेरे ॥ गि० ॥ २ ॥ सोनानो प्रसाद करावे । रयणनी मूरती ठा बैरे । जाव जगतिसुं पूजा रचावै । प्रजु चरणे चितलावैरे ॥ गि० ॥ ३ ॥ जरतत अष्टम पट्टस है । दंगवीरज महाराजारे । संघलेई उधार करावे । संचे सुत्र फल ताजारे ॥ गि० ॥ ४ ॥ ईशानेंद्र करायो तीजो | चोथो महेंद्र करावैरे । पांचमो नदार ब्रह्मद्रनो । सुर नर मिल जस गावैरे || गि० ॥ ५ ॥ बडो उधार नुवनपतीनो । सातमो सगरनो जाणोरे । प्राठमो व्यंतर इंद्र करावे । जविजन मनमें प्राणोरे ॥ गि० ६ ॥ चंद्रजसराय उधार करावे । नवमो नविसुख कंदारे । शांतिनाथ सुत दशमो जावै । नधार करे आनंदारे ॥ गि० ॥ ७ ॥ दशरथराय सुतन गुण आगर । रामचंद्र जल नावैरे । नद्वार इग्यारमो एह करायो । बारमो पांडु करायोरे ॥ गि० ॥ ८ ॥ तेरमोनद्धार जावडशाहनो । चवदमो वाहडदेह नोरे समरेसाह करायो जावे । पनरमो सहुसुखदैनोरे ॥ गि° ॥ ९ ॥ संवतसत रेसे सित्यास । वैशाखवदि सुनवारोरे । करमें मोसी करायो जावे। एसोलमनद्धारोरे ॥ गि० ॥ १० ॥ तिणकारण ए तीरथ मोटो । सहतीरथ सिर राजारे ॥ कहै सुमति पूजो लावै । पावोज्यूं सुखपाजारे ॥ ० ॥ ११ ॥ इति ॥ काव्य पूर्ववत् श्री श्रीपरत्मा० ॥ इतिकृतपूजा ॥ ॐ ॥
९४
॥ ॐ ॥
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७४६ . रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
॥ * ॥अथ अाठमी नैवेद्यपूजा॥॥ ॥ ॥ दूहा ॥ मादेक मोतीचूरना । सींहकेसरिया सार। इत्यादिक नैवेद्यले । पूजकरो सुखकार ॥१॥ ॥ सिद्धचक्रपदवंदोरे । जविका ॥ ॥ एचाल ॥ श्री सिद्धाचल पूजोरे । नविका । इणसम गिरिनहीं दूजोरे जविका ॥ श्री०॥ मोदक मोतीचूरना लेई । नैवेद्यपूजा करियरे॥०॥ सिंहकेसरिया दालिया केई । मोदक इण विध धरियेरे ॥०॥श्री॥१॥ ललितसरोवर पेखो लावै । वलि सत्तानीवावरे ॥ ॥ तिहां विसरामो जविजन .लेवै । वमनैं चोतरे आवरे ॥ ॥ श्री० ॥ २ ॥ से जानीपाजै चढतां । आणंद अंग नमावेरे ॥४०॥ दूरथकी सेQजो दीसे। सुंदर रूप सुहावरे ॥न० श्री॥३॥ हिंगुलाजहमै चढके पूजो। कलि कुं पासकुमाररे ॥०॥ बारी मांहपेसी नविजन । नेटो आदि दीदाररे॥ जश्री० ४॥ मरदेवीटुंक मनोहर दीसै । गजपर बैठा सोहै रे॥ ॥. शांतिनाथ सोलम नपगारी । लविजनना मन मोहेरे॥न श्री०५॥वंस पोरवामे जगत वदीतो। सोमजी साह मल्हाररे॥०॥ रूपजी साह करायो जावै । चौमुख मूल नद्धाररे॥न० श्री०॥६॥ नेमनाथ चवरीदेखीने । देखो धरमवाररे । न०॥आदीसरना चरण पखाली। पूजो विविध प्रकाररे ॥ ज० श्री०॥७॥नमतीमांहे बिंब विराजै । कहतांनावै पाररे ॥४०॥ पुंग रीकगणधर गुरु पूजो । शांतिनाथ सुखकाररे ॥ श्री०- ८ ॥ चेलणात लाई सिघसिलाने । सिद्धबमजूनो कहियेरे ॥४०॥ पुंमरगिरनी नमतीमांहे एहसहुसरदहियेरे॥०॥श्री०॥९॥नलकामोलनें नाडवडूंगर । हस्तगि रीफिरनमियैरे॥०॥ कदमगिरीपरचरणजिनेश्वर । ट्यांसहुमुखलहियेरे ॥ ॥१०॥ घरवैगं जो जावकरीनें । मनशुद्ध भावनानावरे॥ ज० ॥ सुमतिकहै ते धनधन कहिये । जात्रानो फल पावैरे ॥ न० श्री० ॥ ११ ॥ काव्य पूर्ववत् ॥ शी श्री परमात्मने ॥ इति नैवेद्यपूजा॥१॥
॥ॐ॥अथ नवमी फलपूजा ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ निर्मल फलपूजा करो। नत्तमफल सुखकाज । नविजन पूजो जावसुं । सरै सहसुजकाज ॥१॥ ढाल ॥रामतरमवामै गइथी । मोरी
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श्रीसिधाचलजी पूजा.
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सहीयरकै ० ॥ चाल ॥ आदीसर पूजाकरो। एतो सिद्ध गिरीनो रायो हेमाय सदगुरुनें परसादथी । एतो दरसणदेवनो पायो हेमाय ॥ ० ॥ १ ॥ यांबा दामि लेयनें । एतोफलपूजा इमकीजैहै माय । श्रीफल पुंगीफल जला । एतोनेटकरी फलली हे माय ॥ ० ॥ २ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मनी । एतो सेवाथी चितलायो हे माय । मिथ्यामत राचे थके । एतो काल अनंत गमायो हे माय ॥ श्र० ३ ॥ हिवसेवा प्रभु ताहरी । एतो चाहुं देव सवायोहे माय सिद्धाचल गिरिरायनो। एतो मंरुण आदि कहायो हे माय ॥ ० ॥ ४ ॥ धन्य दिवस धन्यते घमी। एतो धन मरुदेवी जायो हमाय ॥ पूरवनिनाणूं समोसरया । एतो आदीसर महारायोहेमाय ॥ ० ॥ ५ ॥ अष्टोत्तर सत नामळे । एतो शास्त्रथ की तेजाणो हेमाय । एसहु नामजप्यां थकां । एतो प्रगटयो परम कल्याण हेमाय ॥ ०॥६॥ सुकराजा इहां प्रायनें । एतो ध्यान धेरै पदमासी हे माय । चंद नृपति गिरि भेटतो। एतो पाम्यो सुखनीरासी हे माय ॥ श्र० ७ ॥ अनंतजीव मुगतेगया। में तो नमणकरूं चित धारीहे माय गिरवर दरसण देखतां । एतो मोहे सहु नर नारी हे माय ॥ प्र० ८ ॥ धन २ ए गिरिरायना । एतो गुणगायो सुखदायो हे माय । सुमतिकहै जिन राजनी एतो सेवाथी सुखपायो हे माय ॥ ० ॥ ९ ॥ काव्यपूर्ववत् ॥ ी श्री परमात्म• ॥ इति फलपूजा ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ गुलाब जल पूजा ॥
॥
॥ ॐ ॥ दूहा ॥ निर्मल जल कुसुमै करी । वासित सरस सुगंध ॥ पूजो जिनवर जग धणी । दूरकरो दुख धंध ॥ १ ॥
॥ *॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ सिधचक्रपद बंदोरे नविका ॥ एचाल ॥ श्रीविमलाचल पूजोरे ॥ नविका । तीरथ एहवोन दूजोरे । जविका ॥ श्री ॥ सुरभि गंधोदक लेई जावै । बिमको जिनवर अंगरे ॥ ज० ॥ कुसुमेंवासित नत्तम जलनी। वृष्टिकरो मनरंगरे । ० । श्री० १ ॥ श्रादीसरा चरण पखाली। पूजो छठ पर जातरे ॥ ज० ॥ गुणनो लख नवकार गुणीजै । दोय अम ब सातरे । न श्री० २ ॥ रथजात्रा परदक्षिणादीजै । पूजा विविध प्रकाररे । प्र० । धूप दीप फल नैवेद्य मुंकी । नमियै नामहजाररे । न० । श्री० ३ ॥ आठ अधिक शत
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७४८
रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
टुंक जरी । मोटी तिहां इकवीसरे ॥ ०॥ सेत्रुंजय गिरि टुंक ए पहिलं । ना म नमो निसदीसरे ॥ न० श्री०४ ॥ सहस अधिक मुनिवर साथे । बाहु बली शिवठामरे ॥ ज० ॥ तिणकारण ए गिरवर कहियै । त्रीजो मरुदेवीनामरे । ० श्री० ५ ॥ पुंरीक गिरि नाम एचोथुं । पांचकोमि मुनि सिधरे । ० । पांचमी ट्रंक रेवतगिरि कहिये । तिए ए नाम प्रसिधरे ॥ ०॥ श्र०६ ॥ विम लाचल सिवराज नागीरथ । प्रणमीजै सिद्धक्षेत्ररे । न० बरीपाली इगिर ने टो । करियै जन्म पवित्ररे । न० श्री० ॥ ७ ॥ पूजाकरी प्रजुना गुणगावो । सा धोका अनेक ० पुंरुर गिरना गुणगण गातां । निरमल आत्म विवेकरे । ० श्री० ८ ॥ देवकीनंदन पूजो नावै । थूलभद्र मुनिरायरे । जन सुमतिमं जिनराज पसायै । दिन २ आणंद थायरे ॥ प्र० । श्री० ९ ॥ इति काव्य पूर्ववत् ॥ श्री श्रीपरमात्म• ॥ इति गुलाब जल पूजा ॥ ॥ ॥
॥
॥ ॥ अथ इग्यारमी वस्त्र युगल पूजा ॥
॥
॥ दूहा ॥ प्रनु पूजो इग्यारमी । होमयुगल लेई सार । निरमल गुण धारी करी । पूजो जगनरतार ॥ १ ॥ * ॥
॥
॥ * ॥
॥ * ॥ राग घाटो ॥ मेरोमन वसकरलीनो । जिनवर प्रजुपास ॥ मे० ॥ गिरवर मंत्र्यादि। मुऊमनथांसुंलागो ॥ मु० ॥ विमलाचल तीरथराजे । तीन नुवन प्राहाद ॥ मु० ॥ १ ॥ सूरत मोहनीलागे । जागै प्रीत अनाद ॥ मु०॥ सुरनर वंदना | पावै प्रनू परसाद ॥ मु० || २ || देश देशका जात्री
| पावे हर अपार ॥ मु० ॥ मरु देवी नंदन वंदो । गावो गुण गण सार मु० ॥ ३ ॥ हेमनी चोरी कीनी । ए आलोयण तास ॥ मु० ॥ चढ चैत्री पूनम जावै । करै इक उपवास ॥ मु०४ ॥ वस्त्रनीचोरी रे जेणें । कीनी नो नावं ॥ मु०॥ वारसात बिल करिये। नवियण सुत्र मन जाव ॥ मु० ॥५॥ रतननी चोरी कीनी । तेजन सुध इमहोय ॥ मु० ॥ गिरिपर तपस्या कीजै ॥ प्रातम निरमल होय ॥ मु० ॥ ६ ॥ पित्तलादि चोरी कीनी । ते सुद्ध थायेकेम ॥मु०॥ पुरम सात करिये । धरिये मनमें प्रेम || मु० ॥७॥ मोतीनीचोरी जुकीनी ।
बकर जविती ॥ मु०॥ धानादि चोरी कीनी । दैते वस्तु प्रवीण ॥८ ॥ देवादिधन जो वां । तो सुधथाये एम ॥ मु०॥ अधिको वित्तजोखरचे । मुनि
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श्रीसिधगिरी निनांगूं प्रकारी पूजा. ७४९ पोषैवहुप्रेम ॥ मु०॥९॥ चौपद चौरीकीनी। देते वस्तुनोदान ।मु०॥ सरधासु तपस्या कीजै ॥ दीजै मुनि सनमान ॥ मु० ॥१०॥ पुस्तक पारका देखी। लिखै जो आपणो नाम ॥ मु०॥ षट्मासी तपस्या कीजै। सामायकतिणगम ॥ मु० ॥ ११ ॥ कन्या परिव्राजका जाणो । सधव अधव गुरुनार ॥ ॥ मु० ॥ तिन संग व्रत जो नाजै । उम्मासी तपसार । मु० ॥ १२ ॥ ॥ गो स्त्री वालक कृषिनी। आसातनाजेकीन ॥ मु०॥ वस्त्र पात्र मुनिने दीजै। जावधरी लय लीन ॥ मु०॥१३ ॥ श्रीजिन पूजन कीजै। होम युगल अतिचंग ॥ मु॥ इशविध पूज रचावो। सुमतिक है मनरंग ॥ मु०॥ १४॥ इति ॥ काव्यं ॥ देवा मुरेंद्र नरनागरमर्चितेभ्यः । पापः प्रणासकर नव्यमनोहरेभ्यः। घंटा ध्वजा दिपरिवार विनूषितेभ्यः। नित्यंनमो सिधगि रेंद्र जिना लयेभ्यः ॥ १० ॥ नझी श्री परमात्मने नंतानंत झान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंद्राय वस्त्रं यजामहे स्वाहाः ॥११॥
॥॥अथ कलश ॥॥ ॥रागधन्यासिरी ॥ तेज तरण मुख राजै॥ एचाल ॥ ॥प्रनुजीकी पूजरची सुखकाजै । हांपो सुख काजै ॥ श्रीसिघाचल गिरवर ऊपर । मंमण आदि विराजै। नाननृपति मरुदेवीके नंदन । दरशण सुंदुःख नाजै॥हां० प्र०॥१॥वीकानेर नगर अतिसुंदर । मरुधर देश विराजै । श्रीजिन सौनाग्य सूरि पटोधर । सकल गुणेंकरी गाजै ॥ हां० प्र० ॥२॥ श्रीजिन हंससूरि खरतरपति । गुण गिस्वा गुरुराजै । प्रीत सागर गाणि सिष्य सुवाचक । अमृत धर्म सुगजै । हां० प्र० ॥३॥ तमु सेवक पाठक पदसोहै । दमा कल्याण गणि राजै । तमु चरणांबुज सेवक अहनि स। धर्मविसाल विराजै ॥ हां० प्र० ॥ ४॥ सुमति मंमण ए गिरनी पूजा। रचिय संघ सुखकाजै । कुशल करण सहू मुनिवरकी। प्रेरणया सुखका जै॥ हां० प्र०॥५॥ चूंपधरी चोखै चितचाहै । लिखी सकल सुन्नका संवतसय नगणीस तीसमें । पूजरची हितकाज। हां० प्र० ॥ ६ ॥ जेठसुदी तेरस रविवारै । सुणतां सहु सुःखनाजालावधरी गिरनां गुणगाया।
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७५० रत्नसागर,श्रीजिन पूजा संग्रह. दिन २ अधिक दिवाजै ॥ हां०प्र०॥७॥इति श्रीपाठक सुमति मंझपजी कृत सिधगिरीपूजा संपूर्णम् ॥ ॥
॥ॐ ॥श्रीपाबूजी पूजा लि० ॥2॥ ॥ ॥ श्रीगुरुभ्योनमः॥ ॥श्रीजिनवर आराधिय । धरिये हियो ध्यांन । षन जिणंद दिणंद सम । दिन दिन चढते वांन ॥१॥ आबू गिर पूजन रचुं । महियल मोटो गम । देस देसका संघवी । आवी करे प्रणाम ॥२॥आबू अचल गढ दीपतो । महियल जाण सुमेर । देवलवामो अति दीपतो । महिमा थई चिहुं फेर ॥३॥ विमलसाह मंत्री थयो। मोटो पुन्य पसाय । पातसाह बार नणी । वस करिया सुखदाय ॥४॥ तिणए तीरथ थापियो। आबूगिर सिरदार । चैत्य कराया नावसुं । खरची द्रव्य अपार ॥५॥ सुद्धोदक लेईकरी । पूजो आदि जिणंद । स्नातकरी जिनराजनी। पावो परमानंद ॥ ६॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ * ॥ प्रथम जलपूजा॥ॐ॥ ॥ॐ ॥ इक मुणले नाथ अरज मेरी० ॥ एचाल ॥ बलिहारी आबू गिरवरकी ॥ब० ॥ आबू गिरिपर अदनुत सोहै । मूरत आदि जिनेसर की ॥ब०॥आस पास बहु कामी ऊंगी। मांहि गुफा जोगीसरकी॥ बलि०॥ ॥१॥ देश देशके जात्री आवै । पूजरचै परमेश्वरकी ॥ब० ॥ विमलै मंत्री वस करलीनी। पातसाही बारै घरकी ॥ब०२॥ तिणए बिंब नराया जावे। महिमा आदि जिनेसरकी ॥ब० ॥ आउस बहुत्तर जिनवर गजै । न दियां नीर सजल नरकी ॥व० ३॥ कोरणी खूबबणी अति सुंदर। दिल जर दरसण मुखकरकी ॥ ब० ॥ देराणी जेगणीरा आला । कोरणि करी हदवेसरकी ॥ब० ॥४॥ अंगी चंगी अजब वणी है । मोवन वरण रतन वरकी ॥ब० ॥सुमति कहै एतीरथ उत्तम । इनकुं नपम सुरगिरकी ॥ब०॥ ॥५॥शी आबूगिरेंद्राय तीरथ सीरोमणाय । श्रीआदिस्वराय जलं ॥१॥
॥ ॥ अथ दूसरी चंदन पूजा ॥१॥ ॥ ॥ दूहा ॥ केशर चंदन लेयके । पूजो श्री गिरराज॥ पूजत अनुभव गुणलहै । तारण तरण जिहाज ॥ अचल गर्दै जिनराजनो ॥ अति नत्तंग
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श्रीपाबूजीकी पूजा..
७५१ प्रसाद । देख नविक हर्खितहुवै ॥ पावै परम आल्हाद ॥ २॥ राग सोरठ। कुंद किरण शशि ऊजलोरे देवा ॥ एचाल॥आबू तीरथ पूजीयरें।वाव्हा॥ तीरथ महिमा वंतोरे ॥आगे जिनवर सहूलवि सेवियरे ॥ वाल्हा ॥आणी जाव अनंतोरे ॥१॥ आगे ॥ वस्तपाल तेजपालजीरे ॥ वा०॥ लीनो लखमी लाहोरे ॥ आ० ॥ मुद्रा बहु खरची करीरे ॥ वा० ॥ जसलीनो जगमांहोरे॥२॥ आगे॥ कोरणी जीणी सुंदरूरे । वा० । कीधी धर मन रंगैरे ॥ प्रा०॥ सुरगुरु पिणनहि कहीसकैरे॥वा० ॥ महिमा अधिक सुरंगैरे ॥३॥आगे ॥बारैकोम ऊपर सहोरे॥वा०॥लागा तेपन लाखोरे॥आ० इतनो धन खरच्यो सहीरे॥ वाला ॥ श्री संघकैरी साखोरे॥ ४ ॥आगे॥ मूलनायक नेमी सरुरे॥वा०॥ ब्रम्हचारी सिरदारोरे ॥ आगे ॥ च्यारसै अमसठ सुंदरूरे ॥वा०॥ जिनवर बिंब नदारोरे॥५॥॥ सुमति सदा इमवीनवैरे॥ वा० ॥ तीरथनी बलिहारीरे ॥ आ० ॥ मन वंडित सगला फलैरे॥वा०॥ पूजत गिर सिरदारीरे ॥३॥०॥ॐक्षी आबू गिरंद्राय तीर्थसि श्री आदीस्वराय चंदनं यजा महे ॥२॥ॐ॥ ॥॥
॥ ॥ अथ तीसरी फूल पूजा॥ॐ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ ब्रह्मचारी जोगीसरू । जगपति नेम जिनंद ॥बावीसम जिन पूजतां । नितप्रति होत आनंद ॥ १ ॥ चंपक केतकि केवमो। विन्न सिरी मचकुंद ॥ मोगर मालति कुशमसें । पूजो नवि सुख कंद ॥ २ ॥ से जानो वासी प्यारो लागै म्हारा राजिंदा ॥ से० ॥ एचाल ॥आबू तीरथ नेटो म्हारा राजिंदा ॥ नेटो मांराराजिंदा ने ॥ आ० ॥ इण सम तीरथ ओरन कोई । मिथ्यातम सब मेटो । म्हां । अमीरो महाराज कहावै । देख्यां अति सुखपावै । म्हां० प्रा० १ । मनसुधजात्र करौं नविप्रांणी । सुर नर मुनि गुणगावै । म्हां । सुंदर सूरत मूरति सोहै । देख्यां प्रीत लगावे । म्हां आ० २ । अवर अनेक जिन बिंब कहावै । दरस करत मुख जावै । म्हां । एगिर सहु सिरदार कहावै । जोगीसर बहुध्यावै । म्हां । आ० ३ ॥ दूरथकी एगिरवर निरखी। मोतियन थाल नरावै । म्हां० । दान मांन सनमान करीनें । तीरथ महमा गावै । म्हां आ० ४। विधसेती गिरवर .
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. नितपूजे । लान अनंत नपावै । म्हां । संघपती संघ लेकै जावै । धन २ तेह कहावै । म्हां आ० ५ । पुष्फमाल गुंथी नविनावै। जिनवर पूज रचावे म्हां । सुमतिकहै गिरराजकुं ध्यावे । वंगित सफल लहावै । म्हां आ०६॥ उझी आबूगिरेंद्राय तीर्थसिरोम श्रीआदीश्वराय पुष्पंयजामहे ॥३॥
॥ॐ॥अथ चौथी धूप पूजा॥ॐ॥ ॥ ॥ दूहा ॥धूप दशांग लेई करी। पूजो तीरथ राय । सुरनि सुगंधी महमहैं । इमन्नाखै जिनराय ॥ १ ॥ विमल अश्व वाहन धरी । सेवकरै.. जिनराज । अंबादेवी पूजतां । सफलकरै सबकाज ॥ २ ॥ मैं निरष्या गुरुमहाराज तिां हरखनरी मैं ॥ ए चाल ॥ दिल मैं हरखधरी नविपूजो गिरवर सार ॥ दिल०॥ धूप दशांग लेई करीरे । पूजो जग जरतार । बोधबीज निरमल करोरे । सफलकरो अवतार ॥दि०॥ संघकरी संघ वीघणारे । लेटै श्री गिरसार। अष्टद्रव्य लेई करीरे। पूजै जिन इकतार दिल. ज०२॥अचलगढे जिनराजनारे। मोहन मंदिर च्यार। विमलै साह करावि यारे। धन धन तसु अवतार दि० ज० ३॥ सुंदर मूरत गुण तरीरे। चौमुख प्रतिमा च्यार । साजन मारा थे सुणोरे । नाखू गिरि गुणधार दिलन०४॥ चवदेस चौमालनीरे। मूरत गुण नंमार । हेममई जिनराज नीरे । सोने अ धिक दीदार ॥दिल न०५॥धन जेहनी माता पितारे। धन जेहना कुलसार द्रव्य प्रबल खरची करीरे। लीनो लान अपार ॥ दिन०६ ॥ इणपर ए गिर रायनीरे । महिमा अधिक अपार । मुमतिसदा कर जोमिने रे । प्रणमैं वारंवार । दिल० न० ॥ झी आबूगिरेंद्राय तीर्थसिरोमणाय श्रीया दीश्वराय धूपं यजामहे ॥४॥
॥॥अथ पांचमी दीपक पूजा॥॥
॥ दीपक पूजा पंचमी । करो नविक गुणवंत । दीपक सम गुण पांमिये । केवल ज्ञान अनंत ॥१॥ तीरथनी महिमा करो । जाव धरी मतिवंत । द्रव्य नाव विहुँ दमुं । पूजो नवि विकसंत ॥ २ ॥ तुमविन दीनानाथ दयानिधि कोन खवर ले मेरीरे। ज०॥ एचाल॥ आबू गिरपर आदि जिनेसर । दरसणकी बलिहारीरे। आ० । नगरसीरोही
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७५३
श्रीपाबूजीकी पूजा. नाम कहावै । जिनवर बिंब जुहारीरे। तिहाथी प्रादस गाऊ निरखो । हणादरो सुख कारीरे॥आबू० १॥आबूगिरकी पाजे चढतां । पाप सकल परिहारीरे। ए गिर देखी सुर नर मोहै। महिमा अधिक नदारीरे॥ आ०२॥
आस पास बहु जामी सोहै । बिच मंदिर मनुहारीरे । नानिरायके नंदन क हिये । मरुदेवी मात मल्हारीरे॥० ३॥ जुगला धरम निवारण स्वामी त्रिनुवन जन हितकारीरे। नगर अजोध्या आप विराजो। आदिनाथ उप गारीरे॥आ० ४॥आदीसर अलबेसर कहिये । सबको तुं अवतारीरे। सब जोगीसर तुमकुं ध्यावै । अद्लुत कीरत थारीरे॥०५॥ तुं जय नंजन तुहि निरंजन । लोकालोक विहारीरे । जोगीसर जिनराज जगतगुरु । नेमीसर ब्रह्मचारीरे॥श्रा०६॥ तारण तरण दयानिध स्वामी । सेवकजन साधारीरे। सुमति कहै वि निरमल नावै । सेवो प्रन्नु सुखकारीरे ॥ ० ७॥ शी आबूगिरेंद्राय तिर्थसिरोमणाय श्रीआदीश्वराय दीपं यजामहेः ॥५॥ * ॥
॥ * ॥अथ अदत पूजा॥॥ ॥ ॥ दूहाः॥ अदत पूजा साचवै । नविजन मंगल काज । तीन पुंज प्रनु आगलै । करौ विक सुखसाज ॥ १॥ मंगल आठ करोसही। प्रजुआ- धरप्रेम । अमसिधि नवनिध संपजै। सुजस हुवै निततेम ॥२॥ ढाल तुमतो नलेविराजोजी सांवलिया माहाराज सिखरपर नलेविरा जोजी।तु०॥ ए चाल ॥ तुमतौ नले विराजोजी। आबूके सिरदार सिखरपर जले विराजोजी॥तु०॥ नानिरायके नंदन कहियै । तीन नवन विसरांमी। केसर चंदन मृगमद घोली। पूजो अंतर जामी॥ तुम० ॥१॥ विखम पहामां विचमैं राजै । साहिबतुं सिरनामी । आदीसर जोगीसर पूजी । वंचित सगला पामी ॥तु०॥२॥ द्रव्य नावसें पूज रचावो । मनमें आणंद पावो जर मुगताफल थाल वधावो। तीरथ महिमा गावो ॥ तु० ३ ॥ आबू गिरको ध्यान धरावो । तपस्यासुं फलपावो । घरसारू बलिदान दिरावो संघनगत करवावो ॥तु०४॥ अचलगढै जिनदरसण करवा । संघसकल मिल
आवै । आदीसर नेमीसर पूजी। मनबंगित सबपावै ॥तु० ॥५॥ तीरथ महिमा चविजन करियै । दिलमैं जावजधरिये । सुमतिकहै तन मन कर नाल ।
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*७५४
रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह -
पुन्य खजानो जरिये ॥ तुम० ६ ॥ ॐ श्री आबूगिरेंद्राय तीर्थसिरोमणाय श्री आदीवराय तं यजामहेः ॥ ६ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ नैवेद्यपूजा ॥ ॥
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॥ * ॥ ॥ दूहा ॥ मोदक मोतीचूरना। और सुगंध रसाल । पूजो तीरथ रायनै । जावकरी गुण माल ॥ १ ॥ नैवेद्य पूजा सातमी || करो नविक धरप्रेम । तीरथनी महिमा करी । गुणगावो धरनेम ॥ २ ॥ श्रीचंद्राम जिनवर साहिब सृणियो अरज हमारी ॥ में० एचाल ॥ ॥
॥ ॥
॥ श्रीयादीसर जिनवर साहिब । तुमपर जानं बलिहारा । मैं वारिजानं ॥ ॥ तु० ॥ आबू गिरपर आप विरा जो । साहिब पर नृपगारा । में० श्री० ॥ तूं हिं जिनेसर तूं परमेसर | अंतरप्राण आधारा । में० । जोगीसर तेरी जयजांणें । परमातम अविकारा । में० ॥ श्री० २ ॥ मनमोहन तुं नाथ निरंजन । जगजीवन हितकारा । में० । सुर नर किन्नर सेवकरत है। जय २ जग जरतारा॥में ०श्री ०३ || तेरी महिमा अधिक विराजै । सबजीवन सुखकारा ॥ ● ॥ अनंतज्ञांन दरसणको स्वामी । मनमोहन सबप्यारा ॥ में० श्री० ॥ ४ ॥ लोकनचित व्यवहार प्रवर्त्यो । बोधबीज दातारा । में० । तुमकुं जो तन मनसैंध्यावै । पावै वंबित सारा ॥ में० श्री ० ५ ॥ नविकलोकको तुं नपगारी । मिथ्यातम घनवारा ॥ ० ॥ सुमति कहै गिरपूज रचावो । एगिरसबसिरदारा ॥ में० ॥ श्री० ६ ॥ ँ सी प्रबूगिरेंद्राय तीर्थसेरोमणाय श्रीमादी वराय नैवेद्यं यजामहे ॥ ७ ॥*॥
०
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ आग्मीधजा तथा फलपूजा ॥ * ॥
॥ दूहा। प्रनुपूजा पाठमी । मंगल पाठ कराय । पंचवरण ध्वज मोहनी । पूजकरो सुखदाय ॥१॥ प्रांबा दाम प्रददे । विवध जांत मनरंग । प्रनु आगल ढोवो सही। जावरी नवरंग ॥ २ ॥ सब सुंदर आवो सही । सजसोलै सिप गार। रतन जगत कंचुक धरी । पहरी नवसरहार ॥ ३ ॥ ढाल || पनरमपदगुण गानाहो चविप० ॥ ए चाल ॥ नवि जिनगुण मंगल गानाहो । जवि० ॥ फलपूजा ए गिरकी करके । जगमें सुजस वधानाहो । प्र० । मंगल आठ
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श्रीपाबूजीकी पूजा.. ७५५ रचोपनु आगल । चंदमुखी मननानांहो ॥ नवि० ॥ १ ॥ पंचवर
की ध्वजवर कहियै । हित चितसैं करवानाहो । सुंदरनारी सब सि णगारी । प्रेमधरी सबानाहो ॥ नवि० ॥२॥ कंचू कसिमा हरख नल मिश्रा । आनूखण पहरानाहो । न । रतनजमित सब सुंदरचूमी । हाथे बाहु सोजानाहो। नानवि०॥३॥ईई थेई तानकरै प्रनू आगल । मधुर सुरै गुणगानाहो । न० । इंद्राणी मिल मंगल गावै। तिम तुमे जगत करानाहो ॥ ज०॥४॥ इत्यादिक गुण जिनके गावत । बोधबीज नपजा नाहो । न । सुमतिकहै नवि पूजन करिये । मनवंचित फल दानाहो ॥जवि०॥५॥नक्षी आबूगिरेंद्राय तीर्थ सिरोमणाय श्रीआदीस्वराय फलं ध्वजं अष्टमंगलं यजामहेः॥ ८॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ नवमी वस्त्र पूजा॥ ॥ पाहाःवस्त्र जुगल लेईकरी। पूजो दीनदयाल॥ सुजश सुगंधी विस तरै। बोधबीज गुणमाल॥१॥ रथयात्रा प्रनुनी करो। महिमा नगत कराय॥ लान अनंतो ऊपजै। समकित निरमल थाय॥२॥ ढाल ॥ दरशणके लोनी नैना। होदर०॥ ए चाल ॥ हो पूजनके लोनी सैणा ॥लोजी० हो पू० । पूजनकुंजिया नित नितचाहै । कुगुरु वचन तजदैना । हो पू० लो० ॥१॥ यापूजा समकितकी करणी । सुगुरु वचन सुणलैना। हो पू०। गिरवर गढ गिरनार विराजै । नेमकुमर सुखदैना ॥ हो ॥२ ॥ वस्त्रजुगलकी पूजन करियै । तन मन नऊल वैना ॥हो० ॥ मिथ्यातम सब दूर निवारी। सुमति रमण संगरैना। हो पू०॥३॥ सरधा केसर रंग घोलकै । निजातम रंगलैना । हो । विमलगिरी अष्टापद पूजो । आदीसर सुख दैना । हो पू० ॥४॥ शिखरसमेत वमो जगमा है । वीसप्रनू हितदेना ॥ हो पू० ॥ आबू गिरकी महिमा अद्नुत । मानो हमाराकैहना ॥ हो पू० ॥५॥ रथजात्रा जिनवरकी करकै । पाप पमल हरदैना । हो । कुगुरु कुमतिको संगनगे सकै । जिनगुणमैं दिलदैना॥हो पू०॥६॥ आदीसर अलवेसर कहीयै। जगतारक जगसैना । हो पू० । सुमति सदा प्रनुके गुण गावत ।
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७५६ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. बोधबीज मुखदेना ॥ हो पू०७॥नक्षी आबूगिरेंद्राय तीर्थ सीरोमणाय श्री आदीस्व० वस्त्रं यजामहेः ॥९॥ ॥
॥*॥अथ गुलाब जल ॥ ॥ *(दूहा समकित निरमल कारणें। सुरनि सुगंधी लेह । निरको श्रीगिर राजकुं । जावधरी गुणगेह ॥१॥ गिरवर नावै बेटियै । दीजै वंगित दांन । गी तगान जलगाइयै । ज्युंपावो बहुमान ॥२॥ ढाल ॥ थारीगईरे अनादिनी द जरा टुकजोवोतो सही ॥ जोवो० ॥ एचाल ॥ तुमकरोरे सुमतिको संग रंगीला सेवोतो सही । सेवोतो सहीरे म्हाराचेतन सेवोतो सही । तुम ॥ मुनिवरकी वरणी हितकरणी । लेखोतो सही । मिथ्यातम करदूर हियामै देखोतो सही ॥ दे० म्हां तु०॥ १॥ आतम करणी निजगुण धरणी देवोतो सही। तुं कह्यौरे हमारो मांन सुग्यानी वेवोतो सही।बे म्हां० तुम०॥२॥ समकित करणी नव जय हरणी लेवोतो सही। द्रोपदि जिम जिनराज जगतकर सेवोतो सही ॥ से० म्हां तुम० ३॥रागकतरणी जग जस नरणी जोवोतोसही। अकलंकित गुणहोय नरमसब धोवोतो सही ॥धो म्हां तुम० ॥४॥ सबमन हरणी गुणमणि धरणी पावोतो सही । कूड क पट कर दूर हीयामैं लावोतो सही ॥ला० म्हां तुम०॥५॥आबूगिरनी पू जन करणी ध्यावोतोसही। तन मन प्रीतलगाय जिणंदगुण गावो तो सही। गा म्हां तुम० ॥६॥अनुपम करणी पापनधरणी जावोतो सही । तुम करोरे सुंगंधी पूज नविक मुख पावोतो सही ॥पा० म्हां• तुम० ॥७॥इम गुणवरणी पूजनकरणी गावोतो सही। सुमति रंगीला सैण हीयामें लावोतो सही ॥ला म्हां तुम ॥८॥ झी प्राबूगिरेंद्राय तीर्थसिरो० श्रीआदी श्वराय सुगंधि द्रव्यं यजामहेः ॥ * ॥
॥ * ॥ अथ वाजित्रपूजा॥*॥ *(दूहाः)नंदी घोख बजावतां । थायै लान अनंत । विविध प्रकारे पू जतां । बोधबीज विकसंत ॥१॥ ढाल ॥ पूज पूज जिनराज काजसारतुं का०॥ सार सार जिनराज तार तार तुं ॥ता जलाहे ता० ॥ सा॥ जग जश धार सार जय कारतुं । सरणाई मिरदंग चंग सार सार तुं ॥
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श्रीमाबूजीकी पूजा.
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सा० ० सा० सार० ॥ तुंही है जिनंद चंद आदि कार तुं । जगत नधार सार अविकारं ॥ [अ० ज० ॥ सार० ॥ १ ॥ समकित धारसार सुक्खकारं । मनमथ जीतकार राग वास्तुं । रा० न० । सा० । तुहीं है मुनिंद द हितकारं । गुणको निधांन सार भरतारतुं । ज०म० ॥ सारसार० ॥ २ ॥ सुर नर देव सार किरतारतुं । प्राबूके जिनंद चंद मुनिसारतुं । मु०न० सार० । • परमाधार सार जिनता । सुमति विचार धार सुरककारर्तुं । सु० न० सार० ॥३॥ ी प्रबूगिरेंद्राय तीर्थसि० श्रीमादीश्वराय वाजित्रगुणवरणन पूजा ॥ ११ ॥ * ॥ ॥ ॥
॥ *॥
॥ ॥ अथ नृत्य पूजा ॥ ॥
॥ * ॥ दूहाः ॥ सुरसुंदर हरखैकरी । सजसो सिणगार । ताल मृदंगहि लेयनें । जगतकरे बहुसार ॥ १ ॥ जावधरी प्रजु आागले । अष्टापद गिरसार । रावणनें मंदोदरी । नृत्यकरे गुणधार ॥२॥ ढाल ॥ जिनगुणगावत सुरसुंदरी रे जि० ॥ ए चाल ॥ जगतिकरे सब सुरसुंदरी रे ॥ ज० ॥ सुरसुंदरी रेदेवा ॥ सु०न० ॥ हीर चीर पाटंबर पहरी । रम कम घुग्घर नाद करी रे | न०सु०॥१॥ चंदवदन मनमोहन गहरी । मृगनैनी शृंगारधरी रे ॥ ज० ॥ बांह बाजूबंध कंचन चूकी । बेसर मोती लाल जरीरे ॥ ० ० ॥ २ ॥ परखरणी सुर मन हरणी । मोहनी रूप अनूप धरीरे ॥ ज० ॥ चंपकवरणी मनवस करणी । प्रा गुणगावै खरीरे ॥ ० ० ॥ ३ ॥ जिनगुण गावत हरख वधावत । थेई थेई नाचत नावधरी रे ॥ ज० ॥ अशरण शरण तुंही जगदी पक । तुहि निरंजन सुरक करीरे ॥ ० ० ॥ ४ ॥ जविजन ध्यावत हरख नपावत । गावत गुण सुनराग करी रे ॥ ज० ॥ गजगत गामनी सब मिल नामनी । उम उम नाचत सुर महरी रे ॥ ज० सु० ॥ ५ ॥ अष्टापद गिरराव
राजा । मंदोदरि जिम जगतकरी रे ॥ ज० ॥ सुमति सदा जिनके गुणगा वत । लुल २ जिनजीकै पायपरीरे ॥ ० ० ॥ ६ ॥ ी आबूगिरेंद्राय तीर्थ सिरोमणाय श्रीमदीश्वराय गीतनृत्यगुणवरणन पूजा ॥ १२ ॥ * ॥ ॥ * ॥ कलश रागरेखता ॥ ॥
॥ * ॥ जिनंदजश आजमैं गायो ॥ ए चाल || गिरंदजश प्राजमें
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
गायो । टतां हरख प्रतिपायो । गि० ॥ आबूगिरिंद सुखदायो । सघन न रुख बायो । खरा जिनचंद सुरिराजा । तपै जग मानज्युं ताजा गि० ॥ १ ॥ मा कल्यांण के पाजा || बिविध गुण ज्ञांनके नाजा ॥ धरम विशाल तसुनंदा ॥ कहै युं सुमति सुख कंदा ॥ गि० ॥ २ ॥ संवत नगणीस चालीसे । प्रेमधर अधिक सुजगी ॥ जो तुम देव जगदीसे । फलैसब प्रास निस दीसे ॥ गि० ३ ॥ देवांके देव मनजाया ॥ पूजतां संपदा पाया ॥ वीकाणें सहरमें राजै ॥ जगत जस ताहरो गाजै ॥ गि० ४ ॥ आदि जिन पूज मुख काजै ॥ नमत प्रभु पाप सहनाजै ॥ सकल जन जावसैं ध्यावै ॥ मोहन मुनि प्रेम गावै ॥ गि० ॥ ५ ॥ इति श्री प्राबू गिरि श्री आदीस्वर जिन गुण महिमा वर्णन सुमति मंरुणजी पाठककृत पूजा संपूर्णम् ॥ ॥ * ॥ अथ प्राबूजीको स्तवन ॥ # ॥
॥
॥ ॐ ॥ न २ नाटक नाचै यादी सरकै प्रागैलो प्र० ॥ चाल ॥ पूजो पूजो तीरथ पूजो ॥ प्राबू तीरथ पूजोलो ॥ पूजो० ॥ इंद्र पूजे चंद्रपूजे इसम रन दूजोजो ॥ पू० ॥ अध्यातम जोगीसरध्यावै ॥ दरसण जागै मीठोलो ॥ पू० प्र० १ ॥ सुर जन मोहे मुनिजन मोहै ॥ लागो रंग मजी ठगेलो ॥ पू० ॥ तेजपाल वस्तपाल करायो । मोहन मंदर दीठोलो ॥ पू० २॥ बारै कोमी मुद्रा ऊपर जागा तेपन लाखैलो ॥ ०॥ इतनो धन खरच्यौ नवि प्राणी ॥ संघ सकलनी साखेलो || पू०३ ॥ च्यारसै सठ सुंदर सोहै । जिन वर बिंब नदारीलो ॥ पू० ॥ सुमतिसदा जिनवर जशगावै ॥ तीरथनी बलिहारीजो ॥ पू० । ० ४ ॥ इति आबू गिरपदं ॥ १ ॥
॥ ॐ ॥ अथ सहस्रकूटजी पूजा लि० ॥ ॥
॥ * ॥ ( दूहा ) ॥ श्री जिनवर प्रणमी करी । जावधरी भरपूर । अनु जव गुण निरमल करी । वंडुं जिनवर सूर ॥ १ ॥ नवै श्री जिनराजनी । सं ख्या आगम जेह । गुरुमुख जे इमसांगली । ते सुंणजो धरं नेह ॥ २ ॥ स हसकूटनी थापना | करियै विध विसतार । पूजरचावो नवनवी । अष्ट दि वस सुविचार ॥ ३ ॥ श्री सेनुंजा ऊपरे । सहसकूटनो नाव । ते देखी ज वि वरधरो । सेवो जिनवर पाव ॥ ४ ॥ प्रष्ट द्रव्य लेईकरी । तन मन न
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श्री सहसकूटजीकी पूजा
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ऊलाव | गीतनृत्य प्रभू आागलै । कर पूजन गुणगाव ॥ ५ ॥ सधव सुहागण सुंदरी । सऊसोलै सिणगार । प्रनु आगे मंगल करें। पावे हर खार ॥ ६ ॥ निरमल जल कलशा गरी । स्नात्र करै नविसार । सहस कूट जिनराजनी । महिमा अधिक उदार ॥
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आज यो चाह । जीवमा नाच० (ए चाल ) ॥ * ॥
ज० ॥ इसपर गिरा
तीश चौवीशी
२ ॥
परमातम परमे
॥ * ॥ जहरख पार । जिनवर पूजन करियै रे ॥ बलि ऐवत पंच । इ दश खेत्रतणा जिणसंच || आज० ॥ दक्षिण उत्तर भरते जाए । अतीत अनागतनें वर्तमान ॥ १ ॥ तां जिनवर थाय । सातसै वीश अधिक कहवाय ॥ बंदु एह । तारण तरण नविक गुण गेह ॥ ० ॥ शर जांण । एहनी आणकरो परमांण ॥ ० ॥ जिनसम अवरन दूजो देव | सुरवर मुनिवर करतासेव ॥ ० ॥ ३ ॥ अतिशयवंत महंत नदार | सुर नर मोह देख दीदार ॥ ० ॥ वारिजानं एहनी वार हजार । मुऊ प्रीतम एही अवधार ॥ ० ॥ ४ ॥ करता नूमंगल नृपगार । जगनायक जिनवर जयकार ॥ ज• ॥ जावघरी वंदु जगसार । सुमति सदा दीजै किरतार ॥ ० ॥ ५ ॥ श्री परमा० । श्री सहसकूट जिनेंद्राय जलं यजा महे ॥ ९ ॥ * ॥
॥ ॥
॥ *॥
॥ ॐ ॥
०
० ॥ पंचनरत
॥
॥ * ॥ अथ द्वितीय चंदन पूजा ॥
॥
#s
| * ॥ ( दूहा ) ॥ वर्त्तमान जिन वंदिये । तीन चौवीसी मांह । रुष जादिक जिनपूजतो । दिन २ हरखाह ॥ १ ॥ कुंकम चंदन मृगमदे |
र सुगंध विशाल | श्री जिनवर पूजन करो । नावधरी गुणमाल ॥ २ ॥ ( ढाल ) ॥ * ॥ बतो नधारयो मोहि चहिये जिनंदराय (ए चाल ) ॥ ॥ वर्तमान जिनपूजन करकै । तन मनको सब पाप हरो रे ॥ वर्त्त ० ॥ रुपन अजित शंभव अभिनंदन । सुमति सदा जिनराज खरोरे ॥ वर्त्त° ॥ १ ॥ पं दम सुपास जिनंद सुसेवो। चंद्रप्रभु चित चाह धरोरे । सुविध शीतल जिन अंतर जांमी । श्री श्रेयांस जिनेंद्र वरोरे ॥ वर्त्त ॥ २ ॥ बारमो वाशपूज्य जिन नमनें । मिथ्यातम सब दूर करो रे । विमल अनंत धरम जिन नमतां ।
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७६०
रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. शघ सिघको मार नरोरे ॥ वर्त० ॥३॥ शांति कुंथु अर मलि जिनेसर।। मुनिसुव्रत दिलध्यांन करोरे। नमि नेमी श्रीपाश जिनेसर । बीर सदा मुऊ नाथ खरोरे॥२०॥४॥ए चौवीशे जिन गुण गावत । संपद सुखकी सेज वरोरे। सुमति कहै जिन पूजन करके । कुल २ जिनके पाय परोरे ॥ २० ॥ ॥५॥ शी परमा० । सहसकूट जिनेंद्राय चंदनं यजामहेः॥ ॥
॥ ॥ अथ (३) पुष्पमाल पूजा॥४॥ ॥॥ (दूहाः)॥ पुष्पमाल गुंथी करी । कंठ ठवो जिनराज । सुम ति सुगंधी विसतरै । लान अनंत समाज ॥ १ ॥ अतीत चौवीसी वैदिये।
आंणी नाव प्रधान । मनवंगित पूरण सदा । परतिख कलप समान ॥२॥ ('ढाल )॥॥श्री चंद्राप्रनु जिनवर साहिब । सुणिये मैंवारि० (एचाल )॥
॥ ॥ केवल ज्ञांनीनै निरबांणी । सागर महा जशकारा (मैं वारि जानं सा० ) के० ॥ विमलनाथ निरमल गुणधारक । सर्वानुनूति नदा रा॥ (मैं० स० ) के० ॥१॥श्रीधर दत्त जिनवर नपगारी। दामोदर अवि कारा ॥ में० दा॥अधिक सुतेज जिनेसर सांमी । मुनि सुब्रत गुणकारा ॥२॥ (में° मु०) के०॥२॥श्री सुमती शिवगति जिनपूजो । अस्तंग नमी मुनि प्यारा ॥ (में० अ० ) ॥ अनिल यशोधर जिनवर सेवो । किरतारघ म नुहारा ॥ ( में कि० ) के० ॥३॥ श्री जिनराज जिनेसर वंदो । शुधमती शिवकारा ॥ (में० सु०)॥ स्पंदन संप्रति जिन चौवीशे । सुमति सदा गुण कारा ॥ ( में० सु० ) के० ॥ ४ ॥ ॥ क्षी परमा० श्री सहसकूट जिनेंद्राय पुष्पं यजामहेः॥३॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
- ॥ ॥ अथ (४) धूप पूजा॥॥ ॥ ॥ (दूहा)॥नावी जिनवर वंदिये। द्रव्य नाव सुविचार । पद मनान आदिक प्रनु । वदूं वारं वार ॥१ ॥ कृष्णागर मृगमद तगर । अं वर तुरक लोबांन । धूप करो जिन राजनें। पावो मुख असमान ॥ २ ॥ (ढाल)॥ संनव जिन सुखकारीरे। वाला संन (एचाल)॥ ॥
॥ॐ॥ पदमनान मुखकारी रे वाला॥०॥(हारे होरेवाला)वारीजालं वार हजारी रेवाला ॥ प०॥ सूरदेव जिन वंदु नावै । सुपारस ब्रह्मचारीरे ।
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सहसकूट १०२४ जिनपूजा.
७६१ वा०प०॥१॥ स्वयं प्रनु जिन अंतरजांमी। सर्वानुनूत नदारी । देवश्रुती जिनपर नपगारी । नदय पेढाल विचारीरे । वा० ॥५०॥ २ ॥ पोहल जिन शत किर्ती कहिये । मुव्रत जिन हितकारी । अमम जिनेसर बारमो कहिये । निकषाय गुणधारी रे। वा०प०॥३॥ निप्पुलाक जिन पनरमो सेवो। महिमा अधिकतुमारी । सोलम निरमम जिनवर नावै । सेवकरो इकतारी रे। वा० ॥५०॥४॥ चित्र गुपति चितचाह धरीनें । समाधि से वो सुविचारी । संबर जिनगुण मणिके आगर । जस्सोधर जशधारीरे । वा० ॥ ५० ॥५॥ विजयमल्लि देवज जिन पूजो। अनंतवीरज शुनचारी जावकरी नद्रंकर सेवो। एहीज निजगुण धारीरे । वा०॥५०॥ ६॥ना वी जिनवर नत्तम कहिये । चरण कमल बलिहारी । सुमति कहै तन मन कर नऊल। सेवोजिन इकतारीरे। वा० ॥ प०॥७॥ क्षी परमा० सहस कूटजिनेंद्राय धूपं० ॥४॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ * ॥अथ (५) दीपक पूजा॥॥ ॥ ॥ (दूहाः) दीपक कंचन मय करी । पूजो जग जरतार । धा तकी पूरब खममें । जरत तणा जिनसार ॥१॥ ॥ ॥ ॥
* ॥ ( ढाल)॥ तुमविन दीनानाथ दयानिध कोन०॥(ए चाल) ॥ॐ॥धातकी खमै पूरव नरतै । अतीत चौवीसी वंदोरे। धा० । रतन प्रजूनें अमल प्रजी । असंभव जिन चंदोरे । धात०॥ १॥ श्री अकलंक चंद्रा प्रनु प्रणमुं । सुनंकर सुखकंदोरे । सपत नाथ जिन सुंदर नावै। नाथ पुरंदर इंदोरे ॥ धा० ॥ २ ॥ श्रीस्वामी जिन देव दत्तजी । वासवदत्त सुनंदोरे । श्रीश्रेयांस जिनेसर वंदो । वीरस्वरूप आनंदोरे॥धा० ॥३॥श्रीतप तेज दिवाकर सेवो । श्रीप्रतिबोध सुदेवोरे। श्रीसिघारथ जिनवर पूजो । स्यंदन जिणगुण देवोरे। धा०॥४॥ अमल नाथ देवेंद्र सुपूजो। प्रवचन नाथ सुचंदोरे । विश्वानन जिनदेव सुवंदो। मेघ अधिक गुण वृंदोरे॥धा० ॥ ५ ॥ श्रीसर्वज्ञ जिनेसर वंदो। चौवीसम मुनिचंदोरे । धातकी खम पूरबनरते । अनागत जिनवृंदोरे ॥धा० ॥६॥ इमहीज धातकी पूरब जरतै । वर्तमान सुखकंदोरे। सुमतिसदा जिनराज
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७६२ , रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. कृपासैं । लहै सदा आनंदोरे ॥ धा०॥७॥ क्षी परमा० । सहसकूट जि नेद्राय दीपं यजामहेः। ॥ ॥ ॥8॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ (६) अदत पूजा ॥४॥ ॥ ॥ ( दूहा )॥पत्रिम धातकीखममैं । जरते जिनवर सार । अ तीत चौवीशी एकहुं । सांगलजो सुविचार ॥१॥ नऊल तंउल लेयनैं । मंगलकर अविसार । निरमलगुण प्रगटैसही । पूजन जग जरतार ॥ २ ॥ (ढाल) पास जिणंदा प्रनू मेरे मनवसीया ॥पा० ॥ (एचाल)॥ * ॥
॥ ॥ अतीत चौवीसी सेवो नवि रसिया ॥ अ०। से० ॥ पछिम धात की जरतै सोहै। एजिनराज सकल मन वसिआ॥ स । अ० ॥ वृषजनाथ महाराज विराजै। श्रीप्रियमित्र अधिकगुणं रसिया।अ०॥ः॥१॥शांति जिनेसर जग नपगारी । समुद्रनाथ सेवोजविरसिया । से। अजित जिनेसर जग जयकारी । श्रीअव्यक्त सकल सुख रसिया। स०अ० ॥२॥कलासित जिनजनके दीपक । सरब जीत जिन अधिक दरसा ॥ अ०। प्रबुध जिने सर नवमो कहिये । दशमो प्रबजित अधिक नलसिआ। अ०॥अ० ॥३॥ श्रीसोधरम जिनेसर वंदो । तमोधि दीपए नाम दरसिया । नां० । वज्रशे न श्रीबुघ जिनेसर । प्रबंधनाथ जगके उख घसिया । ज०॥ अ० ॥ ४ ॥ अजित प्रमुख पर्खयोपम बंदो । अकोप जिनंद सब पाप तरसिया । सः निष्टित जिन मृगनान सुसेवो । देवेंद्रनाथ मुझमनमैं वसिया । म० । अ०। ॥५॥प्रयहित जिन वंदु नपगारी । चौवीशम शिवनाथ रसिआ। ना। पश्चिम जरते धातकी खेमे । वर्तमान अनागत रसिया । अ० ॥ अ० ॥ ॥ ६ ॥ इण विधजो नविपूज करतहै । तमु मन वंचित मेघ वरसिया। मे । तीन चौवीशी एनितवंदो । सुमतिसदा ए ग्यांन दरसिया । ग्यां । अ०॥७॥ॐ जी परमा० सहस अदतं यजामहेः॥६॥ ॥
॥ ॥ अथ (७) नैवेद्य, फल पूजा॥ ॥
* ॥ ( दूहाः )॥सातमी पूजा साचवै । फल नैवेद्य सुखकार । न त्तम फल पूजा करो। पावो सुक्ख अविकार ॥ १ ॥ पुरकरप्रीपे वंदिय । अतीत चौवीशी जेह । शास्त्रथकी सुजो सदा । अनुपम गुणके गेह
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सहसकूट १०२४ जिनपूजा. ७६३ ॥२॥ (ढाल )॥जात्रानिनाएं करियै विमलगिरि जा० (ए चाल )॥ पुक्खरमीप सुवंदोरे । नविजन ॥ पु० ॥ पूरबनरते अतीत चौवीशी । सेव तनवि चिरनंदोरे । न० ॥ पु० ॥ पदमचंद्र रक्तांग अजोगिक । सरबा स्थ सुख कंदोरे । न० ॥ पु० ॥ १ ॥ रुखीनाथ हरिनद्र सुहंकर । गणा धिप मुनि इंदोरे । न० ॥ पु० ॥ पारत्रक जिनकुंजविवंदो। ब्रह्मचारी सुखकंदोरे। न०। पु० ॥ २ ॥ दीपक जिन बलिराज शखीसर । विशाख अनू जिनचंदोरै । न० ॥ पु० ॥ अचितरवि श्रीसोम जिनेसर । जयश्री मो द जिनंदोरे। ज० ॥ पु० ॥३॥ अग्नीनानुं धनुख सुवंदो। सेमांचित चि रनंदोरे। न० ॥ पु० ॥ प्रसिघनाथ श्रीजिनवरइंदो। वंदी पाप निकंदोरे न० । पु० ॥ ४ ॥ इम हीज वर्तमान जिनपूजी । अनागत जिन वंदोरे। ज। पु० । सुमतिकहै जो जिनवर पूजै । तेहीज जगमणि चंदोरे । । पु० ॥५॥नक्षी परमात्मने । सहस कूट नैवेद्यं, फलं यजामहे ॥७॥४॥
॥ ॥अथ (८) वस्त्रपूजा॥॥ ॥ ॥ ( दूहाः ) बस्त्रयुगल प्रनु आगलै । ढोवो जविक नदार । जंबू ऐरवत खेत्रमें । पूजो जिनवर सार ॥ १ ॥ ( ढाल ) ॥आज हुंग ईथी समवसरणमें । ( ए चाल ) ॥ ॥ जंबूमीपे ऐरवरतमें । इमहीज जिनवर गजैरी (वारी इम०) जं° ॥ तीन चौवीशी गिणतां नविज न । बहुत्तर जिन पति राजैरी । वा० ब० ॥ जं० १॥ गुरुमुखथी अ वधारो नविजन। परमातम गुण साजैरी । वा० । प० ॥ जं० ॥ नाव धरी पूजन जवि करतां । कुमति कुटलता लाजैरी । वा० । कु० ज० ॥ २ ॥ इमहीज धातकी पूरब मां है । ऐरवतक्षेत्र सुकाजैरी। तीन चौवीशी नित २ नमियै । बोधलता गुण. बाजैरी । बा । वो॥जं० ॥ ३ ॥ इमहीज धा तकी पश्चिमसोहै । ऐवतखेत्र सुगजैरी । बा । ऐ० ॥ ज० ॥ ४ ॥ ज गत जंतु करुणानिध स्वामी । अमृत वाणि सुगाजैरी । वा० । अ० । जं०॥ सुमति कहै ए जिनवर पूजो। नपगारी सिरताजेरी।वान जं० ॥५॥ शी परमा० । सहस कूट जिनेंद्राय । वस्त्रं यजामहेः ॥ ८ ॥
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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ * ॥ अथ ( ९ ) ध्वज पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ ( दूहाः ) वीशजिनेसर शास्वता । पंचविदेह मजार । सीमंधर आ करी । प्रणमुं वारहजार ॥ १ ॥ गगन वीच प्रदद्भुतवणी | पंचवरण विकसंत | नवमीध्वज पूजा करी । देवो ला अनंत ॥ २ ॥ ( ढाल ) ॥ सेजानो वासी प्यारो लागे म्हांराराजिंदा ( ए चाल० ) ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ विहरमांन जवि ध्यावो म्हांरारा जिंदा | ध्या० ॥ वि० ॥ सीमंधर जुगमंधर स्वामी । बाहु सुबाहु सुहावे । म्हां ॥ वि० ॥ श्रीसुजात स्वयंप्रजु सेवो । शषजानन मनजावे | म्हां० ॥ वि० ॥१॥ अनंत वीरज सिरी सूरप्रभूजी । दशमो विशाल कहावे | म्हां० ॥ वज्रधर जिन जवि सेवो जुगतै ।' बोधबीज पजावै | म्हां । वि० ॥ २ ॥ चंद्रानन जिन चंद्रबाहूजी । नु जंग ईशर सुखपावे । म्हां । नेमप्रजू जिन गुण मणि दरियो । वीरसेन मुनिरा | म्हां ॥ वि० ॥ ६ ॥ प्रहारम महानद्र सुशेवो देवजशा नित ध्यावो ॥ म्हां० ॥ अजित वीरज जिनवीशमो ध्यावो । देख्यां हरख नमावै । ह्नां । वि० ॥ ४ ॥ पंचविदेहे एजिनसो है । सोवन वरण सुहावै ॥ ह्मां० ॥ चौरासीलख पूरव प्रयु । शाशता एहिजपावे । ह्मां० । वि० ॥ ५ ॥ परमपु रख एवीश जिनेसर । ए जगसार कहावै ॥ ह्मां० ॥ सुमति कहै ए जिनवर पूजो । निजगुण ज्युं नवि वै । ह्मां० वि० ॥ ६ ॥ ॐ श्री परमा° सहस कूट॰ ध्वजं यजामहेः ॥ ॥
॥ ॥
11*11
७६४
॥ * ॥ अथ अष्टमंगल पूजा ॥ ॥
॥
॥ ( दूहा ॥ पंचविदेहै शासता । एकसो साठ जिनंद | कल्या एक जिनराजना । प्रजो अधिक आनंद ॥ १ ॥ सधव मिली प्रतु याग लै । मंगल प्राठकरंत । तन मन उऊल जावसुं । हृदयकमल विकसंत ॥ ॥ २ ॥ ( ढाल ) ॥ * ॥ ( हांहोरे देवा ) बावना चंदन घस० (ए चाल )
॥ ॥ ( हांहोरे देवा ) पंचविदेह विराजता । उतकृष्टा सह जिनराजए। हांहो० ॥ एकसो साठ सुहंकरा । जगबंधव जग शिरताजए ॥ हां० ॥ जनमसमें त्रिहुं लोकमें । हरखित हुवै सहु सुरराजए || हां० ॥ चौसठ सुरपति नावसुं । नव करे हित सुख काजए ॥ २ ॥ हां० ॥ च्यवन जनम
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सहसकूट १०२४ जिनपूजा.
७६५ दिख्या सही। केवल मोक्ष शुजराजए ॥ हां ॥ चौवीशे जिनराजना। क ल्याणक वलि सुसमाजए ॥३॥हां०॥ पंच पंच गिणती करयां । एक सौबीश शुनगजए॥ हां०॥ च्यार जिनेसर शासता । षनानन जिनगुण राजए॥४॥हां०॥ चंद्रानन बीजोनमुं। वारखेण तीजो महाराजए॥हां०॥ वरधमांन नितवंदियै । ए च्यारे शुनगुण पाजए ॥५॥ हां०॥ द्रव्य नाव पूजन करो। अव जलनिधि तारण ज्याजए॥हां०॥ सुमति सदा जिनरा जना। पदवंदै हित सुख काजए ॥६॥ अशी परमा० सहसकूट० अष्ट मंगलं यजामहेः॥१०॥ ॥
॥॥अथ गीत, नृत्य पूजा॥ * ॥ ॥ ॥ (दूहाः)॥गीत नृत्य गुणगावतां । थायै लान अनंत । न व्य सदा सेवन करै । हृदय कमल विकसंत ॥१॥ (ढाल) ॥ ॥ अरे थारीगईरे अनादिनींद जरा टुकजोवोतो सही॥ जो० ॥ (ए चाल )॥ तनें देवैरे सुग्यांनीसीख जिनंद पद सेवोतो सही।सेवोतो सही मेराचेतन सेवो तोसही॥त॥जिनवरकी वरणी दुखहरणी जोवोतो सही ॥ मे० जो० ॥ रायपसेणी मांहि हीयामें पोवोतो सही ॥पो० मे । त०॥१॥ नवदधिकी तरणी सुखकरणी लेवोतो सही ॥ मे० ले० ॥ तुंरुल्योरे अनंते काल अग्यांनी वेवोतो सही ॥ वे० मे तनें ॥२॥ सम कितकी करणी मन हरणी सेवो तो सही ॥मां से०॥ परहरमान गुमांन जगत जश लेवो तो सही॥ ले। मे०॥ तनें ॥३॥ नविजनकी करणी जशनरणी वेवोतो सही ॥ मे० ॥ अजर अमर गुण होय करममल धोवोतो सही ॥ धो. मे० ॥ त०॥४॥ इत्यादिक गुण गण जिन वरणी जावो तोसही ॥ मे ना०॥ गीत ग्यांन शुललाव हियामें ध्यावोतो सही ॥ध्या० । मे० त० ॥५॥ मुनिवरकी करणी चितधरणी पावोतो सही ॥ मे० ॥ सुमति कहै गु रुग्यांन हियामें ल्यावोतो सही ॥ ल्या० मे ॥ तनें ॥ ६ ॥ उक्षी पर मा० । सहसकूट जिनेंद्राय गीत नृत्य पूजनं ॥११॥2॥
॥ * ॥ अथ वाजिव गुणपूजा ॥ * ॥ ॥॥ (दूहा) ताल मृदंग सजी करी । प्रनू पूजो धरनाव । न
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह
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७६६
गत करी जिन राजनी । समकित शुद्ध नृपाय ॥ १ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ जिन गुण गावत सुरसुंदरीरे ॥ जिन० सु० ॥ (ए चाल ) ॥ निरत करे मिल सुरसुंदरी रे ॥ नि० सु० ॥ थेई २ तान कर आगे । गावत देवी सुर मधुरी रे ॥ नि० ॥ कंचू कसिया हरख नलसिया । ठमठम नाचत कवल करी रे ॥ नि० ॥ १ ॥ ताल कंशाल बिशाल अनोपम । गा वतराग बत्तीस करी रे ॥ नि० ॥ जिनगुण गावत हरख वधावत । पावत निजगुण हरख जरीरे ॥ नि० ॥ २ ॥ तीन लोकको नाथ निरंजन । धरम धुरंधर तुंजिनरीरे ॥ नि० ॥ जव दुःख भंजन जन मन रंजन । अशर
शरण आनंद करीरे ॥ नि० सु० ॥ ३ ॥ अनंत गुणाकर सब सुख सा गर । सेवत पद दूरटरी रे ॥ नि० ॥ जगदीपक जगलोचन तूंही । तुंही जगत पिया महरी रे ॥ नि० सु० ॥ ४ ॥ इण विध नृत्य करी प्रयागल समकित सुध नृपाय खरीरे ॥ नि० ॥ सुमति कहै जविजन जिन पूजो । सफल जनम ए सफल घरी रे ॥ नि० सु० ॥ ५ ॥ कूट जिनेंद्राय नाटक पूजा ॥
श्री परमा० सहस
१२ ॥
॥
॥ ॥
॥ ॥ अथ गुलाब जल ॥
॥
॥
पूजन कर जिनराज । ( चाल अंगरेजीवाजै
॥ ( दूहा ) ॥ विविध सुगधं लेई करी । सुजश सुगंधी विस्तरै । प्रगटे पुन्यसमाज ॥ की ) ॥ आनंद कंद पूजतां जिनंद चंदहं (ए चाल ) ॥ पूज पूज जिन राज काजसारतुं । का० ॥ पू० ॥ जग जश धार सार सुःखकारर्तुं । अनंत झां न ही जन हितकातुं । हि० ॥ ० ॥ १ ॥ केतकी गुलाब फूल चाढ सारतुं । मोगरो अबीरलाल अविकार ॥ प्र० पू० ॥ २ ॥ तुंही जगमात तात जरतारतुं । अत्तर सुगंध गंध विदार ॥ ज० पू० ॥ ३ ॥ केवमो चंपेल बेल वधारतुं । परम आनंद चंद जिनसारतुं ॥ जि० पृ० ॥ ४ ॥ जंगत धार सार किरतारखं । मैतोहुँ आचारहीन मुनिता ॥ मु० पू० ॥ ५ ॥ मुनिंद चंद पूजतां पाप टारतुं । एही है जिनंद देव जवि धातु || ० पू० ॥ ६ ॥ तुंही है मुनीश ईश गुणकारं । सुमति आधारसार जय
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- सहसकूट १०२४ जिन पूजा.
७६.७
श्री परमा० श्री सहसकूट जिनेंद्राय सुगंध 11 11
॥ * ॥
कारतुं ॥ ज० पू० ॥ ७ ॥ जलं यजामहेः ॥ १३ ॥ # ॥
॥ * ॥ अथ कलश पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ ( ढाल ) ॥ तेजरण मुखराजैहो प्रभू० ॥ (ए चाल ) ॥ तेज अधिक जगगाजैहो । प्रजु थांरो ॥ ते ० ॥ सहसकूट जिनवर सब पूजत । पुन्य अनंत सुकाजै । प्रतिशयवंत महंत जिनेसर । सुरतरु सम प्रनू बाजे हो ॥ ते० ॥ १ ॥ रूप अनूप करी सुर मोहै । देखत दुख सहु जाजै । खरतर गपति चंदसूरीसर । तेज अधिक गुरु बाजैहो ॥ ते० ॥ २ ॥ प्रीतसागर गणी सिष्य सुवाचक । अमृत धरम सुराजै । शीश कमा कल्यांण सुपाठक | अमृत सम गुणराजैहो ॥ ते० ॥ ३ ॥ धरमविशाल मुनि गुरुदीवो तसुनंदन हितकाजै । सुमति कहै जवि नावधरीनें । पूजो श्री जिनराजैहो ते० ॥ ४ ॥ वीकानेर नगर प्रतिसुंदर | संघ सदा गुण राजै । प्रेमधरी पू जन एकरियै । वंबित हितसुख काजैहो ॥ ते० ॥ ५ ॥ नगणी से चालीशै मिगसर । सुद पंचमी शुजराजे। सुगुण निधांन मोहन मुनीगावै । निजगु निरमल काजैहो ॥ ते ॥ ६ ॥ इति सहस कूटजी पूजा संपूर्ण ॥ ॐ ॥ ॥ * ॥ अथ सहसकूट स्तवन ॥ ॥
॥ ॐ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ सहियांहे नेमीसर बननें गिरना० ॥ ॥ * ॥ सहियांहे सहसकूट महाराज वंदो सब जावसुंहे माय ॥ वं दो० ॥ सहि० ॥ तीस चौवीशी पूजीये हे माय ॥ स० ॥ विहरमांन aadia सेवो चित चाह हेमाय ॥ से० ॥ स० ॥ १ ॥ एकसो साठ जिनेसरा हे माय । स० । उत्कृष्टा अवधार निरंजन ध्यावसुं हे माय नि० । सं० ॥ २ ॥ एकसो वीश जिनंदना हे माय ॥ स० ॥ कल्यांणक सब होय । सेवा जवि दावसुं हे माय ॥ से० ॥ स० ॥ ३ ॥ च्यार जिनेसर शाशता हेमा य ॥ स० ॥ जयवंता जगदीश अधिक गुण गावसां हेमाय ॥ प्र० । स० । ॥ ४ ॥ बहुत दिनांरो माहमो हे माय । स० । ते फलियो मुऊ आज जि
द पद सेवतां हे माय ॥ जि० ॥ स० ॥ ५ ॥ नचव अधिक सुहामणा हे मा य। स० । खूबथया रंगरोल अधिक मन रंगसुं हेमाय । ० ॥ ० ॥ ६ ॥
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७६८ रत्ननसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.. नगणीसै चालीशमें हे माय । स० । पोश माश सुखकार नगत कर ना वसुं हे माय । न०॥स०॥७॥ संघ सहू हरणे करी हे माय । सं० । पूज रची चितचाह वंचित सब पांमिया हे माय । वं० ॥ स० ॥८॥धरम विशाल दयालनो हे माय । स । सुमति कहै मन रंग सकल गुण दी जीये हे माय । स० ॥स ॥ ९॥ इति सहसकूट जिनस्तवनं ॥१॥
॥ ॥ अथ सहसकूट स्वरूप, विधिः॥ * ॥
॥ पांचनरत । ५ ऐवत ॥१० देत्रोंमें । अतीत, अनागत, वर्तमा न तीनों कालकी अपेक्षायें ३० चौवीशी होय (अंके) ७२० हुवा । ( तथा) ५ महाविदेहके एकसो आठ विजयमें १६० जिन होय (८८०) (तथा) २४ नगवानका १२० कल्याणक स्वरूप ( अंके १०००.) (तथा ) ५ महाविदेहमें २० विहरमान ॥ ४ शाश्वता जिन ( एवं सर्व १०२४ जिन स्वरूप ) को सहसकूट कहते है । सहसकूटजीको मंदर सिधगिरी तीर्थाधिराजके ऊपर, मूल नायकजीके पासमें अत्यंत मनोहरहै । (इसकी) नत्कृष्टनांगे प्रत्येक महाराजकी। प्रत्येक द्रव्यसें पूजन नव क रना होय (तो) आठदिन अहाई महोइव करै । रोकनाणो । नालेर, सुपारी विदाम, वस्त्र, दीपकादि, प्रत्येक द्रव्य १०२४ एकहजार चोवीश२ चढावै । इतनी शक्ति न होय तो यथाशक्ती महोत्सव साथ पूजा विधि गुरूके मुख में जानके करे॥ * ॥ इति सहसकूट पूजन विधिः ॥ ॥
॥ ॥ अथ पांचग्यान पूजा लिख्यते ॥ * ॥ ॥ ॥ ( दूहा )॥वर्षमान जिनचंदकुं। नमन करी मनरंग। पूज रचुं नवि प्रेममुं । सांजलजो नारंग ॥१॥ पांचज्ञान जिनवर कह्या।म ति श्रुति अवधि प्रधान । मनपर्यव केवल बडो। दिनकर जोत समांन ॥२॥ झानबमो संसारमें । गुरु विन झांन न होय । झानसहित गुरु वंदियै। सु चिकर तन मन होय ॥३॥ बीर जिणंद बखाणीयो । नंदीसूत्र मझार। न व्य सदा अनुन्नव धरो। पावो सुख श्रीकार ॥ ४॥ निरमल गंगोदक जरी। कंचन कलश नदार । श्रुतसागर पूजनकरो। नाव धरी जविसार ॥ ५ ॥ चितहरखधरी अनुन्नवरंग वीश परमपदसेविये ( ए चाल ) मति अ
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पांच ग्यांन पूजा.
७६९ तिह भलो शकल विमल गुण आगर विजन सेविय । (आंकणी) एमति ज्ञान सदा नमियै। निजपाप सकल दूरै गमियै । मनशुधकरी निज गुण रमियै ॥ मति० ॥१॥ व्यंजनकर अवग्रह इमजांणो । चनुन्नेदकरी मनमें आंणो । इमन्नाखै श्रीजिन जगनाणो॥ मति०॥ २ ॥ अरथेकरी जेद जिणंद आखे । पणइंद्रिय मनकर प्रजुदाखै । मुनि मानस ते दिलमें रा खै ॥मति०॥३॥ बलि षटविध नेद ईहा कहिये । षटनेद अपाय करी लाहिये । षटविध धारण नवि सरदहियै ॥ मति० ॥ ४ ॥ इमद अ हाईस विधारो। इमन्नाखे जिनवर सुखकारो। निश्चय व्यवहारते अवधा रो॥मति० ॥ ४ ॥ बलिरतन जमित कंचन कलश । विपूजन कर तन मन उनसे । चिदरूप अनूप सदा विलसै ॥ मति॥६॥ एज्ञान दिवाक र समकहियै । इम सुमति कहै दिलमै गहियै । एशांनथी अनुपम सुख ल हियै ॥ मति० ॥७॥ नक्षी परमात्मने अनं० जन्म० श्रीम० ॥श्रीमति झान धारकेभ्यः। जलंयजामहे स्वाहाः ॥ १॥॥॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ (२) श्रुतकान पूजा लि० ॥ * .. ॥ ॥ (दूहा)॥ श्रुत धारक पूजा करो। नाव धरी मनरंग । नप गारी शिरसेहरो। भावो जिन नबरंग ॥१॥ मृगमद चंदन वाससूं । जो पूजै श्रुतअंग । अनुभव सुध प्रगटे सही । पामें सुरक अनंग ॥ २ ॥ (ढाल)॥ नामजीके नंदाजीसें लग्यामेरा नेहरा । (ना० ए चालमें)॥ . श्रुतजाकी पूजा कर सीखो नवी सेहरा । श्रु० । विनय सहित गुरुवंदन करके लुलर पायनमें गुरुदेवरा ॥ श्रुत०॥ १॥ तीन तीश आशातन टाली । गतिकरै नवि गुण गण गेहरा ॥श्रुत० ॥ श्रीगुरु ज्ञान अखंमित वरसै । ज्यु पावस रुत वरसै मेहरा ॥ श्रुत०॥ २॥ दशविध विनयकरै श्रुतगुरुको सेवेज्यु अलिफूलनें नेहरा ॥ श्रुत० ॥ गुण मणि रयण नरयो श्रुतसागर ।। देख दरश हरखावै मेरा जीवरा ॥श्रृंत०॥ पूजन बायन बलिर करियै ।। सीजे वंचित ज्युं मुनिसेवरा ॥ श्रुत०॥गुरुनगती जैसी गणधरकी। बी र कहै सुण गोतम सेहरा ॥ श्रुत० ॥ ऐसें गुरुभक्तीसें सीखो। ए श्रुतज्ञान सकल सुखदेहरा॥ श्रुत० ॥ गुरुविन ओरेन को नपगारी। गुरु देव सदा
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७७०
रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
गुण मणिके जेवरा ॥ श्रुत० ॥ ऐसें गुरुकी कीरत करके । सुमति धरो दिलमें गुण गेहरा ॥ श्रु० ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ नितनमियै थिवर मुनीसरा नि० (ए चाल में ) ॥ * ॥ नितन मियै श्रुतधर मुनिवरा ॥ नि० ॥ रथे श्री जिनराज वखाणें । सुत्रे श्री गुरु गणधरा ॥ नि० ॥ १ ॥ मेघधुनी जिम नविजन सुकै । हरखे ज्युं केकी वरा ॥ नि० ॥ अंग इग्यारे गुण मणि धारक । बारै नपांग नजाग रा ॥ नि० ॥ २ ॥ जगत नधारण परमेशर । सकल विमल गुण आगरा ॥ नि० ॥ छेद पयन्ना नंदी सेवो । मूलसूत्र जवि गुण करा ॥ नि० ॥ ३ ॥ श्रुतधारी गोतम गुण दीवो। पूरब चन्द्र विद्याधरा ॥ नि० ॥ पहिलो आचारंग वखांणें । चरण करण गुण सुखकरा ॥ नि० ॥ ४ ॥ दूजो सुयग मांग सुखीजै । नेद तिशय तेसहखरा ॥ नि० ॥ तीजो गंणांगसूत्र विराजै । सुणतां पापमिटैपरा ॥ नि० ॥ ५ ॥ चौथोसमवायांग सुहावै । अरथ अनेक करविरा ॥ नि० ॥ पंचमें जगवई महिमा करियै । सहसबत्तीश प्रशन धरा ॥ नि० ॥ ६ ॥ बडो ज्ञाता अंग सुध्यावो । धरमकथा कहै जिनवरा ॥ नि० ॥ सातमो अंग उपाशक कहिये । दशश्रावक प्रतिमा धरा ॥ नि० ॥ ७ ॥ आठ मांगे जिनवरदाखै। अंतगम केवलि मुनिवरा ॥ नि० ॥ नवमें अंगे विसु नधारो । अनुत्तरवाई शुभकरा ॥ नि० ॥ ८ ॥ प्रष्णविचार कया जिन द शमें। अंगुष्टादिक शुभतरा || नि० || अंगइग्यारमें जिनवर दाखें । कर्मबि पाक विविध परा ॥ नि० ॥ ९ ॥ वारमोअंग जिणंद बखां । प्रतिशय गु ण विद्याधरा ॥ नि० प्रकरश्रुत वलिसन्नी कहिये । सम्यकनेद अधि कतरा ॥ नि० ॥ १० ॥ सादिभेद सपरजव लहियै । गम्यकभेद सुणोनरा ॥ नि० ॥ अंगप्रविष्ट कहै जिनवरजी । नेदचवद सुणजो खरा ॥ नि० ॥ ११ ॥ इमजो श्रीश्रुतज्ञांन प्राराधो । जाव भगत कर बहुपरा ॥ नि० ॥ सुमति कहै गुरु ज्ञान राधो । बंबित पूरण सुरतरा ॥ नि० ॥ १२ ॥ ॥ ॥ की परमात्मने० श्रीश्रुतज्ञांनवारकेभ्यः चंदनं यजामहेस्वाहाः ॥ २॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ ( ३ ) अवधिज्ञान धूपपूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ ( दूहा ) ॥ * ॥ अगर सेव्हारस धूपसें । पूजो अवधि तदार |
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सुमति ममणजीकृत पांचज्ञान पूजा. ७७१ बोधबीज निरमलहुवे । प्रगटै सुक्ख अपार ॥१॥ नवल नगी. सारिखो।। ज्ञानवको संसार । सुरनर पूजे भावसुं । महियल झांननदार ॥ २ ॥ (ढाल)॥निरमल हुय जजलै अनुप्यारा । सबसंसार० (ए चाल)॥४॥
॥अवधिज्ञानको पूजनकरले। ज्यु पावै नवपार सलूणा॥०॥झानबमो सुखदैन जगतमें । नपगारी सिरदार सलूणा ॥१०॥१॥भेद असंखकहै जिनवरजी । मूलनेद पद सार ॥ स० ॥ वट्टमान हीयमान वखांणें । सूत्रे श्री गणधार ॥ स० ॥ २ ॥ सुर नर तिरि सहु अवधि प्रमाणे । देखै द्रव्य जदार ॥ स०॥ अवधि सहित जिनवर सहुआवै । थाये जग भरतार ।। स०॥३॥ ज्ञान विना नर मूढ कहावै । ढोरसमो अवतार ॥ स० ॥ झा नी दीपक सम जगमां है । पूजे सहु नर नार ॥ स० ॥४॥ ज्ञानतणीं महिमा जग मां है। दिन २ अधिकीसार । स० ॥ मूलमंत्र जग वशकर बाको। एहीज परम आधार ॥ स०॥५॥ ज्ञाननीपूजा अहनिशि करिये । लीजै बंबित सार ॥ स ॥झानने वंदी बोध नपावो । करम कलंक निवार ॥स०॥ ६॥ इत्यादिक महिमा नविसुणकै । पूजो अवधि नदार ॥ स०॥ सुमतिकहै नवि नाव धरीनें । सेवो शान अपार । सलूणा ॥ ७॥ उक्षी श्रीपरमात्म० । श्रीअवधिज्ञान धारकेभ्यः । धूपं यजामहे स्वाहा ॥३॥
॥ ॥ अथ (४)मनपर्यवज्ञान पुष्पपूजा ॥१॥ ..॥ (दूहा ) ॥ ॥ केतकी दमणो मालती । अवर गुलाब सु गंध। जावधरी पूजन करो। हरै कुमति पुरगंध ॥१॥ मनपर्यवं पूजाक रो। विवध कुशम मनरंग । माहिकै परमल चिहुं दिशै । पामें शुजश अ जंग ॥ ७॥ (ढाल ) ॥ सेत्रंजानोवासीप्यारो लागै० से० ॥ (एचाल )।
जिनजीरो नसुहावै । म्हाराराजिंदा। (जिनजीरो ज्ञान०)जिन जीरो ज्ञान अनंतो सोहै । कहतां पारन आवै । म्हाराराजिंदा ॥ जि० ॥ ॥ १॥ सन्नी नर मनपरयव जाणे। तेमुनि झांन कहावै ॥म्हारा० ॥ जिन विपुलमतीने झनुमति कहियै । ए ऽयनेद लहावै ॥ म्हारा जि० ॥२॥ अंगुलअढाए ऊणो देखे । तेरुजु नांम धरावै ॥ म्हारा० ॥ जि० ॥ ३ ॥ म .. नगत भाव सकल ए नाखै । ते चोथो मननावै ॥ म्हां० जि० ॥ एह
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. नी महिमा नित नित कीजै । तिमनवि नांमधरावै । म्हां ॥ जि० ॥ ४॥ जगजीवन जगलोचन कहिये । मुनिजन ए नितध्यावै ॥ म्हां ॥ जि०॥दि दाले जिनवर उपगारी । चोथो ज्ञान नपावै ॥ म्हां जि० ॥ ५ ॥ मनका शंसा दूर करतहैं । मुणतां आंण मनावै ॥ म्हां० जि०॥ तन मन शुचिकर पूजन करले । जनम जनम सुखपावै ॥ म्हां जि० ॥६॥ विविध कुशमसे पूजा करतां । बोधलता उपजावै ॥ म्हां जिन०॥ सुमति कहै नवि ज्ञान आराधो।श्री जिनदेव बतावै ॥ म्हां० जि०॥७॥नक्षी श्री परमात्म श्री मनपर्यवज्ञानधारकेभ्यः पुष्पयजामहे स्वाहाः॥४॥॥
॥ ॥ अथ (५) केवल ज्ञानपूजा॥॥ ॥ ॥ (दूहा)॥प्रनुपूजा ए पंचमी । पंचम ज्ञान प्रधांन । सकललाव दीपक सदा। पूजो केवल झांन ॥१॥ फल दीपक अक्त धरी । नैवेद्य सुरनिनदार । नाव धरी पूजन करो । पावो झांन अपार ॥२॥ ॥ ॥ (ढाल ) तुमविन दीनानाथ दयानिध तु०॥ (ए चाल)॥॥
तुंचिदरूप अनूप जिनेसर । दरशणकी बलिहारीरे । तुं० । (आं०) निरमल केवल पूरण प्रगट्यो। लोका लोक विहारीरे। केवलज्ञान अनंत विरा जै। हायक नाव विचारी रे॥ तुंचिद० ॥१॥जोत सरूपी जगदानंदी । अ नुपम शिवमुख धारीरे। जगत नाव परकाशक जानूं । निजगुण रूप सुधारी रे॥ तुंचि० ॥२॥सकन विमलगुण धारक जगमें । सेवत सब नरनारीरे। आतम शुच सरूपी नविजन । गुण मणि रयण नंमारीरे॥ तुंचिद० ॥ ३॥ केवल केवल ज्ञान विराजै । दूजो नेदन धारीरे । आतम नावै नवि ज नसेवो । जगजीवन हितकारीरे ॥ तुंचि० ॥ ४ ॥ अवर झांन सब देश क हावै । केवल सरब विहारीरे । सरब प्रदेशी जिनवर नाखे । साखै श्रीगण धारीरे॥ तुंचि० ॥ ५ ॥ नए अजोगी गुणके धारक । श्रेणचढी सुखका रीरे । अष्ट कर्म दल दूरकरीनें । परमातम पद धारीरे॥ तुंचि० ॥६॥ अमें झांनवमो जगमां है । सेवोशुन आचारीरे । सुमति कहै लविजन शुन जावै । पूजो कर इकतारीरे ॥ तुंचि०॥७॥ फल १ अक्त २ दीपक ३ नेवद्यसें ४ । पूजो ज्ञान उदारीरे । पूजत अनुभव सत्तापगट। विलशै सु
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पंचज्ञान पूजा आरती.
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ख ब्रम्हचारी रे ॥ तूंचि ० ॥ ८ ॥ ॐ श्री परमात्मने श्रीकेवलज्ञांन धारकेभ्यः फलं १ कृतं २ दीपं ३ नैवेद्यं ४ यजामहे स्वाहाः ॥ ५ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ कलश पूजा ॥ * ॥
॥ * ॥ केशरियानें काजको लोक तिरायो० ॥ (ए चाल ) ॥ ॥ प्रनु थांरोग्यांन अनंत सुहायो । प्रभु अशरण शरण कहायो ॥ प्र० ॥ मति श्रुति अवधि मनपर्यव । केवल अधिक कहायो । जव्यसकल नृपगार करत है । श्रीजिनराज वतायो ॥ प्र० ॥ १ ॥ खरतरगब पति चंद्र सूरीसर । रा जत राज सवायो । तेजपुंज रवि शशि सम सोहै । देखत दिल हुलसा यो ॥ २ ॥ प्र० ॥ प्रीत सागरगणि शिष्य सुबाचक | अमृतधर्म सुपायो शीश क्षमाकल्यांण सुपाठक | सदगुरु नाम धरायो ॥ प्रनु० ॥ ३ ॥ धरम विशाल दयाल जगतमैं । ज्ञांन दिवाकर ध्यायो । ज्ञांन क्रियानो मूलजे कहीयै । तत्वरमण मननायो ॥ प्रनु० ॥ ४ ॥ वीकानेर नगर प्रति सुंदर | संघ सकल सुखदायो । सुक्ष्मती जिन धर्म आराधक । जगतकरै मुनिरायो ॥ प्र० ॥ ५ ॥ नगणीसे चालीशे वरशै । सूसूद वरदायो । ज्ञां न विजयकारक सब जगमें । नित प्रति होत सहायो ॥ प्र० ॥ ६ ॥ सुम ति सदा जिनराज कृपासें । ज्ञांन अधिक जशगायो । तत्वदीपक मोहन मुनिना । ज्ञांनतणो गुणगायो ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इति
॥ * ॥
॥ * ॥ अथ पांचज्ञान आरती ॥ * ॥
॥ * ॥ जय जग सुखकारी । वारी जय शम पद धारी । आरती करूं सहु सारी ॥ जय० ॥ अष्टाविंशति भेद करीनें । मति ज्ञान राजे ॥ मति० ॥ ध्यावत पूजत जविजनकेरा । जव संकट जाजे ॥ जय० ॥ १ ॥ जेद चतुर्दश अथवा विंशति । प्रवचन पति दाखे ॥ प्र० ॥ श्री श्रुतज्ञानकी महिमा जिन बर | स्वमुखथी जाखे ॥ जय० ॥ २ ॥ रूपी द्रव्य विषयि मर्यादा । करि अव धी सोहै ॥ क० ॥ नेद षटक संख्याती तीवा । प्रविजन मनमोहे ॥ जय० ॥ ॥ ३ ॥ तुर्य ज्ञान मन पर्यव कहिये । नेद युगम लहिये || नेद० ॥ रुजुमति विपुलमती सरदहियें । न्यूनाधिक गहिये ॥ जय० ॥ ४ ॥ लोका लोकांत र्गत वस्तु । गुण पर्यव जासी ॥ गु० ॥ केवल एक सहाय अनंते । नए
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७७४ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. निवृतिवासी ॥ जय० ॥५॥पंचज्ञानकी आरती करतां । नवभारती गजे ज०॥ जिम वरदत्त कुमर गुण मंजरी। तिम भक्ती कीजै ॥ जय ॥६॥ वृह त् जट्टारक खरतर पति जिन । हंससूरि राया ॥ जि०॥ तत् पद कज मधु कर कंचन निधि ॥ आनंद वरताया ॥ ज०॥७॥इति ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ मंगल दीवो ॥ ॥ ॥॥ दीवोरे दीवो मंगलदीवो। नुवन प्रकाशक जिन चिरंजीवो॥दी० ॥१॥ चंद्र सूर प्रजु तुम मुख केरा । लुगण करता दै नित्पफेरा ॥ दी० ॥ ॥२॥जिन तुझ आगल सुरनी अमरी। मंगल दीप करी दिये जमरी । दी० ॥३॥ जिम जिम धूपघटी प्रगटावे । तिम तिम नवनां पुरित दमावै. दी०॥४॥नीर अक्त कुसुमंजली चंदन। धूप दीप फल नैवेद्य बंदन । दी॥५॥ इणपरै अष्ट प्रकारी कीजे। पूजा स्नात्र महोत्सव पत्नणीजै ॥ दी०॥
॥ ॥अथ मंगल भारती॥ ॥ ॥ * ॥विजन मंगल आरती करियै ॥ जनम जनमकी आरति हरियै ॥ ज०॥१॥आरती प्रथम जिनेसरजीकी। दारुण विघन निवारण नीकी ॥ ज० ॥ दूजैपद श्रीसिघ दिणंदा। आरती करत मिटत नवफंदा ज०॥२॥तीजे पद श्रीसूरि महंता। मारग शुध प्रकाश करंता ॥ ज० ॥ चौथे पद पाठक गुणवंता। आरती करत हरत नव चिंता ॥ ज० ॥ ३ ॥ पंचमी आरती साधुन केरी । कुगति निवारण शुनगति शेरी ॥ ज०॥ शिव सुखकारण श्री जिनवाणी। बही आरती झान वखांनी॥०॥ ४ ॥ सा तमी आरती आनंदकारी । समकित व्रत गृहि प्रतिमा धारी । न०॥ यह विध मंगल आरती गावै । शुधकमा कल्याण ते पावै ॥०॥५॥३०
॥ ॥ अथ श्रीलदमी मोहन कृत स्तवन संग्रह ॥ ॥
॥ ॥ अरिहंत नमो नगवंत नमो। जिनराय आदीशर नित्य नमो।। लमो नानि मरुदेवानंदन, आदिनाथ जगनाथ नमो ॥ अरि० १॥ जग हितकारक बांतिदायक, ग्यान विमल गुणधार नमो ॥ नमो नमो अवि चलं सुखदायक, शांतिसूरत जग तातनमो ॥ परि०.२ ॥ अतिशय धारकं.
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लक्ष्मीमोहन स्तवनसंग्रह.
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सुर नर पूजित, सहुगुणधार सुदेवनमो ॥ जिनगुण ग्राहक श्रीवरपावत, मु क्तिमोहन जयकार नमो ॥ चरि० ३ ॥ इति श्री प्रदिजिन स्तवनम् ॥ * ॥ ॥ * ॥ गजल ॥ ताल पंजाबी ॥ ॥
॥ ॐ ॥ जबसें चेतन पावत निजगुण, प्रातम ध्यान लगाते हैं। प्रातम देखत सहुसुख लेखत, सोहं ध्यान लगाते हैं || सोहं सोहं सोहं जपतां सहु रिकर्म खपाते हैं। सिद्धि अचल अविनाशी वसुगुण पुरुषोत्तम पद पाते हैं ॥ १ ॥ निज घरमें बैठे प्रय सुख पाते हैं। जब जगमें रहे सहुजीव ध्याते हैं । कर जोगी करके जिनगुण गाते हैं । सहुनवि मिलके मस्तक नमाते हैं ॥ २ ॥ देव सेतेहैं, इंद्र सेतेहैं, सार जगतका पाते हैं, जब पार जगतका प्राते हैं ॥ ३ ॥ जैनप्रकाश, करत हुलाश, शिवश्रीपाश, मोहनप्राशः ॥ ४ ॥ जब० ॥ २ ॥ ॥ ॥ रागकैरवो, जी साहब नतीजा• ॥
॥
॥ ॐ ॥ मेरे साहब जिनंदा दिवसिया मे० ॥ सुनोरी समकितधर नर नारी सेवो शिवश्रीनृप ॥ जिनं० टेक ॥ ध्यान दिलमें धारके सेवत बीशथा नकों, जिननाम उपायके धारे अमर निधानकों ॥ उत्तम कुलमें आयके ज्ञान त्रिकले साथकों, जोगसुख पायके जीनों चरणपद हाथकों ॥ १ ॥ करम त पाई केवल जोपाए, सेवो शिव श्रीनृप ॥ जिनं० मेरे० ॥ २ ॥ केई अमर आयके, नमन करें सुननावसें ॥ समवसरण रचनाकरी, चौमुख जिनदेखा बसें ॥ अतिशयगुण जिनधार, पर्षद बार प्रकारसें ॥ सोजित मधुर स्वरै, कहै धर्म विस्तारसें ॥ सहुविसुनके व्रतगुणपाए, सेवो शिव श्रीनृप ॥ जिन० ॥३॥ पारनही सके, सुरगुरू पिणकथनसें || अरिहंतपद आदरी अनंतसिध्वत नसें ॥ तीनवन प्रभुतणा रहा चैत्य अनादिसें ॥ श्रीवर शिवसुखपाय ध्या नगुण प्रसादसें ॥ संव चतुर्विध पत्र मोहनकर, सेवो शिव श्रीनृप ॥ जिनं ० ॥ ४ ॥ ॥ इति अरिहंतपद वर्णन स्तवनम् ॥ ॥
॥ * ॥ जीया चतुरः । ताल पंजाबी ॥ * ॥
॥ * ॥ जीया इकसुनवात, जिनपदकों तूं ध्यायरे ॥ जी० टेक ॥ अष्ट करमके वसमें परियो । त्रमियो नवसायर मांयरे ॥ जीया० ॥ १ ॥ पुन्यसंयो गे नरवपायो । मिलियो उत्तमकुल आयरे ॥ जीया० २ ॥ जैनधरम जिन
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७७६ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. दर्शन पायो। फिरतुं आलस क्युंखायरे॥जी० ३ ॥ परनपगारी अंतरजामी। तरण तारण महा रायरे ॥ जी० ४॥इकचित प्रनुको समरण करले । ज्यु गुण परगट थायरे ॥जी० ५॥ जोताहरा गुण प्रगट करै तो । शिवरमणीवरे जायरे ॥जी० ६॥ तत्वदीपक प्रनु श्रीवर ध्यावे। मोहन वंचित पायरे ॥ जीया० ७॥ इति जिनपदस्तवनम् ॥ ॥
॥ ॥ ॥ तालपंजाबी॥ राहचंपेली॥ ॥ॐ ॥ सुनोमेरे पतियां दिलधर वतियां । निजगुण दरशन नावं जानें जान॥ टेक।। जिन दरशनसें मोद मिलै । इकचित प्रनुगुण गानं गानं गा॥ सुनो० ॥ १ ॥ जंगम थावर तीर्थतणा। में तो नित सबगुण ध्यानं ध्यानं ध्यानं ॥ सुनो०॥ जैन प्रनावक गुण प्रगटे । शिव मोहनपद पात्रं पा पानं ॥ सुनो० ॥३॥ ॥ इति जिनदर्शनस्तवनम् ॥ * ॥
॥ ॥ कुकछुक पमेरे इस में ॥ * ॥ ॥ ॥ नितनित नमुंरे तुमजिनप्यारे । मोहि तार, अबतार, तार, तार, तार. अबताररे । नितनमुरे० ॥ नितनित । टेक ॥ तुमनाम जगमोहता। तुमकाम जगसोहता । तुमधर्म जगबोहता । जविजीव नवखोहता ॥१॥ मननावत, गुणगावत, शिवपावत, तुमकरो प्रकाशक जैन मोहन गुणसारे नित० ॥२॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ ऐसे धोका देनेवाले ताल पंजाबी ॥ ॥ ॥ ॥ ऐसे पूजा करनेवाले मेने विरले देखे जाले ॥ ऐसे टेक ॥ असे जिन आग्याकों पालनवाले, विधिसंयुतसें रहनेवाले, विनयादिगुण धरने वाले, जक्तिगुण दिखलानेवाले ॥ पूजा० ॥१॥ असे अपनेजीके सुखपा नेको, गुणगानेंको गुणपानेको, इकचित जिनको ध्यातेहै सो, शिवकामें को शिवपानेको, गेमी गेमी नवनीबाते, त्यागीहे कुमतीकीवाते. धारीहे सुमतीकीवाते, पालीहे समकितकी वाते ॥ पूजा० २॥ असे पूजन द्रव्ये जावे, फल शिवनगरी देताहे, असे निजगुण प्रगटे सुंदर सहुदिल जाणे जगजाणे, सोना सोना जारी सोना, जैसीहे सूरजकी सोना, जैसी हे चं
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लमीमोहन स्तवन संग्रह.
७७७.. द्रकी सोना, जिसमें अधकी निजगुणसोना. जिससे अधकी जिनपद सोना॥धारो गुण सम, जेथी दूर हुवे भ्रम, सहु दूर हुवै क्रम, जैनमंगल पावे धम, अजी सुनो सीखो धारो आगम श्रीवर मोहननाले ॥ ऐसे॥३॥ इति श्रीजिनपूजा विधि स्तवनं ॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥ गजल ॥ क्या कहुं अबबेरवेर०॥ॐ॥ ॥ ॥ या कहुं अब चेतजीव गेमरे संसार सारा॥या० ॥ टेक ॥ बहुत करमसे ना मिले, अपनागुण एकीवखत, तबतो श्रधा धारके, गुण पाय दर्शन ग्यान सारा ॥ या० १॥ पंचकारण सब आमिले, दिलधरो संयमतरफ, संयमलीये जावसें. जब जोमदे सहु कर्म प्यारा ॥ या० २॥ तीनरन जो तो मिले । दूर हुवे कुमती जरम, जिनमंगल गुणगाय के. शिवपाय मोहन ध्यान सारा॥या०॥३॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ हंसारे राजा० एचाल || ॥ ॥ ॥ सुनोरे चेतन, अजगजाल असारा । तुतो नमियो अनंतनव प्यारारे॥ सुनो० ॥ टेक॥ क्रोध लोन मोह मिथ्या कपटे । कीनोजालपसारारे ॥ सुनो० १ ॥ नवा नवारू पे. चिहुगतिमाहे । कुटुंब अनेक प्रकारारे॥ सुनो ॥२॥ठी काया उठी माया । ग सबपरवारारे ॥ सुनो॥ ०३॥ धन जोवन मद मतकर प्यारे । एकदिन जंगल चारारे॥ सुनो०४॥ जिनध्रम सार दया दान निजगुण । सेवत गुण सुख कारारे॥सुनो०५॥ जैनमंगलगुण श्रीवर पावत ! मोहन ग्यान प्रकारारे॥ सु० ६॥॥ ॥ ॥
॥॥रागचंपेलो॥ तालपंजाबी ॥ ॥ ॥ ॥आदिजिनवरजी सुनोमेरी अरजी । नवजलसें अब तार तार तार ॥ आ० ॥टेक ॥ मोह मिथ्यावस काल बहु । जमियो नव वन चार चार चार ॥ आदि० १॥ हिवपुन्य दरशन गुणयोग, तुमगुण सुणिया सार सार सार ॥आ०२॥ जिनगुण ग्राहक नविलहस्ये शिव मोहनपद । धार धार धार ॥ ० ३ ॥ ॥ इतिश्री आदिजिनस्तवनं ॥४॥
॥ ॥ लावणीकी चाल || * ॥ श्रवण अजितजिन सहुगुण सुन कर सेवनका दिल चाहते हैं
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. सेवनकरना सुमतिप्रादरना चेतनगुण जबपाते हैं ॥ टेक ॥ मोहे अबतो गेमावो सहुकुमतिकाखेल । चिहुंगतिमाहे बहुत किया गेल । पुन्ययोगे दरशन पाया। निजगुणमुमतिमहल ॥ मोहे० श्रव० १ ॥ मोहे अबतो देखावो सहुनिजगुणसेल । जेथीसहुजाणुं जगतकाखेल । करजोमीने सेवा करुं तुंही चित्रावेल ॥मो० अ० २॥ प्रनुअबतो तारो जवजलसेपार। गावे जिनमंगल गुणसुखकार । सहुसंघ श्रीबर पावे मोहन मुक्तीसार ॥ प्र० अ० ॥३॥ इतिश्री अजित जिनस्तवनम् ॥2॥
॥ ॥ वामबंद, ताल २मात्रा६॥ॐ॥
॥अजितचरण, रहतशरण, कनकवरण, तेजतरण ॥ अजि० १॥ दिलविचार, तत्वसार, मदप्रकार, तजगमार ॥ अ० २ ॥जव अनंत, जय सहंत, गुणधरंत, सुख करंत ॥अ० ३॥ ज्ञानराय, लक्ष्मीपाय, मुक्ति नाय, सुक्खथाय ॥ अ० ४॥ इतिपदं ॥१॥
॥ ॥ शिरपरयेबोका० ॥ नाटक चाल || ॥ ॥ संनवजिन थांरी मूरतप्यारी अंगियां सारीरे ॥ सं०॥ अंगियां तुममननाई, मुंदर सब रत्नजमाई, मानुदिनकारीरे, जानें बलिहारीरे, ॥ सेवत नित तुम सुरसारा, तुम सहुजग मोहनगारा, नविपल पल तुमगुण धारे। शिवमुखलागत सहुप्यारे । श्रीबर हितकारी, मोहनधारी, गुणसुख कारीरे॥ सं० ॥१॥ इतिश्री संजय जिनस्तवनम् ॥॥ ॥ ॥
॥ ॥आई सुंदर नार, करकर श्रृंगार०॥॥
॥ ॥ ताल पंजाबी॥॥ ॥ ॥ जिनतत्वसार, सहुजग आधार, करिमोह जार, सुखशांतिसार, प्रगुण अपार दिलसमरणकीनो॥ जि० १॥ जिनसुमति पाय दिलसुमति थाय । सहु कुमति जाय मोह मद न साय ॥ गुण आत्म पाय बंबितसुख लीनो॥ जिन० २॥ नवजल प्रधान, प्रवहणसमान, सहुसुखनिधान, करि आत्मध्यान, शिवश्री प्रधान, गुणमोहनलीनो॥ जि० ३॥ इति श्री मुमति जनस्तवनम् ॥ * ॥
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पाठक श्रीमोहनलालगणिकृतस्तवन संग्रह. ७७९ ॥ * ॥ नजर आई मुजकों ताल दीपचंदी॥ॐ ॥
॥ ॥ नजनकर अबतो जिनंदगुणका । सह गेम मिथ्यात मतकान रम ॥ टेक॥जयो नवजलमें अनंतोकाल । कुमतीसंगचेतन असुन करम ॥ ज०१॥ किया प्यारे चिहुंगति नाटक खेल, सद्या बहु पुःख नपायो धरम ॥ पायो अब दर्शन कोई पुन्ययोग, प्रगुण नजकर राख सरम ॥४०॥२॥ मिले बासु पुज्य जिनेसर राय, फले मन वंगित काजकरम ॥ गावै जिनमंग ल जैनप्रसाद, पावे सुख श्रीबर मोहन धरम ॥ ज० ३॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॥ तुंनकमलाजीयरवा इस ॥ ॥ ॥ ॥ तुं अवतार बिमलवा ओपनुमोरा ॥ तुं० ॥ बिमलजिनेसर जग 'परमेसर । करोमहर निजरवा ॥ करो महर निजरवा ॥ करो० ओ० १॥ तुं जगतारण विरुद श्रवणकर । रहुं तुमरे सरणवा॥र० ओ० २॥ तुमगुण सुरगुरु पारन पावत, किममें करुं बरणवा ॥ कि० ओ० ३॥ सुमतिसंग मुफ निजगु पापानं। एती करोमहरवा । एती० ओ०४॥ तत्वदीपक शिव श्रीबर मोहन। गुणगायो तरणवा ॥ गुण प्रो० तुं० ५॥॥ इति श्रीबिमल जिनस्तवनम्।।
॥ ॥ कंताचंद, ताल २ मात्रा ७॥ * ॥ ॥ ॥ प्रज्जुनमिनाथ, जोडूहाथ, सहुजग नाथ शिवपुरहाथ ॥ प्रनु०॥ अनुपदलीन, थिरचितकीन जिमजलमीन, अंतरपीन ॥ प्र० २॥ करुणासार, दिलगुणधार, अबमुकतार, कर जवपारः॥प्र० ३॥ मोह मिटाय, तत्वदीपाय निजगुणपाय, शिवमुखथाय ॥प्र० ४ ॥ पाठक मान, लक्ष्मीप्रधान, मो हनझान, आतमध्यान ॥ प्रनु० इति श्री नमिजिनपदम् ॥ॐ॥ ॥॥
॥ ॥ लादचला बिणजारा इसचालमें ॥ ॥ ॥ ॥प्रनु धर्मनाथ मुफप्यारा । जगजीवन मोहनगारा ॥ टेक ॥ तुम सेवा हितसुखकारी । सुरनर नवि दिलगुण धारीरे। निजगुण सुख मांगत सारा ॥ प्र० १॥ तुम अंगिया अजब सुहावे । नूषण सब रयण जमावरे । दिन कर समतेज अपारा । प्रनु० २॥ शिवश्रीवर निजगुण पावे । गुण जैन प्रना कर गावरे, नित मोहन सुख जयकारा ॥४०३॥इतिश्री धर्गजिनस्तवनमा
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. . रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. .. ॥ ॥ दिलदारीकीनीरे । इसमें ॥४॥
* ॥ दिलहर नाजावोरे, मेराअोप्यारे, सुखकरियां, प्रीतमवरियां दि लधरियां नजरियांनरियां, हठकरके फिरकर नाजावोरे ॥ दिल टेक ॥ मन अंदर रही शिववनिताजो । जानलेईमुझ घरकोंपाकर। अबतो अर जी सुनके गिरपर ना धावोरे॥दि०१॥ बात नमानी यादवमुख जो । सा थरहुंगी संयमपाकर । पल पल दरशन करके शिवपुरकों पावोरे॥ दि०२॥ जैन प्रनाकर शिवश्रीबरजो । मोहनश्रेणी जिनगुण गाकर । नव नाटक करकें प्रजुका तत्वदीपावोरे ॥ दिल० ३॥ ॥
॥ ॥ इतिश्री नेमि जिनस्तवनम् ॥ * ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥
|| तोरासच नहिंकहनारे; इसचालमें॥ ॥
*तोराकथन निनानारे। प्यारेनेम, धरुप्रेम, उतियां तरसमोहे रतियां सतावै ॥ तोरा टेक ॥ सरस दरस तोरो वहुतसुहावे, देखीनयना दिलवरसें। साम साम साम, मेरै तुमसेतीकाम ,मेरे सिरपर तुंहे स्वामी, तुंहे अंतरजामी. ॥तोरा० ॥ रथकों फिराय पिया गिरवरचाले । शिववनिता ललचानेकों। प्यारी प्यारी प्यारी, तोहेदिल शिवप्यारी। में पिण दिदा लेसुंसारी । मोहुँ शिवनारी॥तोरा० ॥२॥ नेमराजुलदोनुं मोदसिधाए । जिनमंगल नित गुणगावे । ध्यान ध्यान ध्यान, तोरानितकरै ध्यान, पावे शिव लक्ष्मीप्रधान, थावे मोहनज्ञान ॥ तो० ॥३॥ इतिश्री नेमिजिनस्तवनम् ॥ ॥
॥ ॥कोईरसीलाब्बीला. इसचालमें ॥ ॥ ॥ ॥ मेरे रंगीला चंगीला प्रनुपासजी। जैसा संगीला साथीला हो यतासजी ॥ मेरे० टेक ॥ पलमेंरी जिनमें अहनिशिसमरूं । जिमहुय सुमता नारीहो सुंदरवानी, सहजसें पाया चेतन गुणज्ञानी । तन मन मोहन जाण सऊन ॥ मेरे०१॥ ॥
॥ ॥ इतिश्री पार्श्वजिनस्तवनम् ॥ * ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ मरी॥गेरीब्राह्मणकी, इस०॥ ॥ ॥ प्यारी पारशकी प्यारी पारशकी । सूरत अति मननावनकी ॥ प्यारी० ॥ टेक ॥ मुंबईसहर चिंतामणिपारस । अंगिया अजब सुहावनकी ॥
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लक्ष्मी मोहन स्तवन संग्रह. ७८१ प्यारी०१॥ सरदइंतु जिम वदन मनोहर । आसपूरै नितध्यावनकी॥प्या०२॥ अश्वशेन वामाजीकेनंदन। तीन जुवन जसगावनकी ॥ प्यारी० ३॥ अव जलतारक सहुसुखकारक, नयनसुधावरसावनकी ॥ प्या० ४॥ ज्ञानसुधा रस श्रीवरधारक, मुक्ति मोहन जय पावनकी ॥ प्या० ५॥ ॥ . इतिश्री चिंतामणी पार्श्वजिनस्तवनम् ॥ॐ॥
॥ ॥ ॥ ॥ ताल दादरा, हजूरियांगढी॥ ॥ ... ॥ * ॥ अरज करुं गढो, अरज करुं गढो, मोहेतारो ॥ अर० ॥ टेक ॥ प्रनुजीथांको विरुद चितधारो । जुःखसहुटारो ॥ मोहे० १॥ प्रनुजी तुमे तरण तारणगे । सुक्खकारण गे ॥ मोहे० २॥ प्रनुजी रिखन जिनेसर साचो । मोहन गुण राचो॥ मोहे० ३ ॥ इतिश्री आदिजिनपदम् ॥8॥ .
॥ ॥ पुनः॥ ॥ * ॥ शरणमें आयो शरणमें आयो। बीरतेरे शरणमें आयो । बीर० टेक ॥ प्रनुजी मेंतो कुमति संग रमियो । बहुत जवनमियो ॥ बीर० १॥ प्रजुजी मोकुं सुमति अबदीजै। जगत जश लीजै। बी०२॥ प्रनुजी शिवमुख श्रीबर चाहुं॥ मोहनगुण पानं ॥ बी० ३॥ इति श्रीबीरजिन स्तवनम् ॥४॥ ...॥ ॥राग कल्याण, मानोप्यारा२०॥8॥
॥ ॥ मोहे तारो मोहे तारो कुंथुजिनंद । मो० ॥टेक ॥ कुंथुजिनेसर तुं परमेशर । शांति सूरत सुखकारो ॥ मो० १॥ सूरपिता श्रीदेवी माता । तुम तारक अवतारो॥ मो० २ ॥ अतिशय सोनित अंगानूषण, मोहनीमूरत प्यारो ॥ मो३ ॥ अविनाशी अविकारी तुं प्रनु, शिववाशी जगप्यारो। मो० ४ ॥वीकानेर नगर अतिसुंदर। चैत्यवन्यो हितकारो ॥ मो० ५॥ नग णीसे इकतीस जेष्टसुद । दशमीदिन सुनवारो ॥ मो० ६॥ प्रनुथापनाकार नूतनचैत्यें। श्रीवर संघ हजारोमो खालक्ष्मीप्रधान मोहन नित सेवे । जय शिव पद दातारो॥ मो० ८॥ इति श्रीकुंथुजिन चैत्य प्रतिष्टा स्त० ॥ॐ॥
॥#॥ गजल ॥ * ॥ ॥ ॥ गुणोंकों धारले दिलदार हरदम । गुणोहे सब मुखकार हरदम
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
गु० टेक || अपने गुणों की पहचानक्याहे, वचन जिनराजका सत्यजाण हर दम ॥ गु० १ ॥ दरशन ज्ञान चारित्र गुणहै। रतन निजप्रात्मका पहचान हरदम ॥ गु० २ ॥ शाशनपति महावीर प्रजुहै । चरण नितध्यानका चितधार हरदम ॥ गु० ३ ॥ निजगुणजो सहु जविजनपावै । मोहन शिवराजका सुख पाय हरदम ॥ गु० ४ ॥ इति निजगुण वर्णन पदम् ॥
॥ * ॥ लावणीकी चाल ॥
॥
॥ नितध्यावो फलपावो सदा तुमशाश्वत गिरिवरहां ॥ टेक ॥ तीरथ हैयो स हुजग मंकण, सिद्धगिरी शिवपाज। जिसकेध्यानें नवि जनपा, अरिहंतपद शिवराज । केइध्याया, केइ पाया, केइ पावे, केइपामसी शिवसुख ज्ञानसें विजन अनंतकाल गतियां ॥ नित० १ ॥ पूरब निनाणों आया इनगिरि रिखजिनंद जिनराय । नववशिचेत्यसुहामणाजी । सहु जिनबिंबसुहाय । संवावै, प्रनुध्यावै, सुखपावै । गुणग्यानसें श्रीवर जैनप्रकाशक मोहन जय वतियां ॥ नि० ३ ॥ इति सिद्धगिरी स्तवनम् ॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ कोई हालकहो जाके ० इसमें ॥ ॥
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॥ * ॥ मोरी बात सुनोसारे, प्रभु कुंथुनाथ प्यारे ॥ मो० टेक ॥ सूरपिता श्रीदेवीमाता, हथनापुरनारे, तुमजगतारक जन्मलईनें, बहु जविजन तारे ॥ तुमसुनोगरीब नवाज, रखोमेरी लाज करो सुनकाज ॥ मो० १ ॥ सुरनर सहु नवितुनें नमतां, सुखपायानरपूर, ग्यानध्यानसें दर्शनसार्थे, कर्म किया चकचूर ॥ प्रजुपाया शिवसुखप्राप करे सहजाप, छूटेसहपाप । मो० २ ॥ जगदीश्वर जगतारक तुमहो, मोहतारोदिलधार पाठक श्रीवर विक्रमपुरमें सेवेतुमसुखकार ॥ प्रभुखानंद अधिक पार मोहनपद धार, करो जयसार ॥! मो० ३ ॥ इतिपदम् ॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥
॥ ॐ ॥ यारवहाल खुलजावै ॥ इसमें ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ निजगुण प्रात्मजबपावै, कुमतितिमरतब दूरेहोगा । सुमतिक थन नितनायतनमनसें । त्याग त्याग दुःखत्यागः पापबोम मोहबोम | आत्म • ॥ निज० टेक ॥ प्रनमि जजकर निजगुणसुधकर, चेतनकर्महटावे, ज्ञानवी
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लक्ष्मीमोहन स्तवनसंग्रह.
७८३ परगटहोय तनमें । सहुजगजाणहोवे इकग्निमें ॥ ज्ञान ज्ञान निजज्ञान, सुनध्यान करध्यान ॥ आ० नि० १॥ दोष अष्टादश रहित केवलयुत, नविजन धर्मसुनावे । लक्ष्मीप्रधान मिलै शिवसंपद, मोहन जय सु खेपाय सहुजगमें ॥ गुणगान, स्वरजान, परतान, लहैमान।।आत्म०नि०॥ ३॥ इतिश्री नमिजिनस्तवनम् ॥ * ॥ ... ॥ ॥सांवलियाजैसेंवने तेसेंतारो॥॥
॥ ॥ श्राजमोरी अरज शीतलजिन धारो, मेरो जनम मरण पुःखदारो॥ आ० टेक॥ कालअनादि जम्यो नव वनमें । कुमति नार मो हजारो । नरक निगोद देवनर नवकर । बहुविध नाटककारो ॥ प्रा० १॥ पुन्यसंयोग जैनागम वचनें । दरशनगुण हितकारो। गुरु मुख तारक ईश्वर तुमकों । जाणसरण सुखकारो ॥ प्रा० २॥ सिघ बुच्च तुं जग परमेसर । परमातम जगप्यारो । ब्रह्मा विष्णु महेश्वर तुमही । तुम प्रनु जगदाधारो ॥श्रा० ३॥ दृढरथ नंदानंद जिनेश्वर । अतिशय सहुगुण प्यारो। शांतिसूरत प्रनुशीतल जिनवर । जविजन हित सुख कारो।। आ० ४॥इंद्रनुवन जिम चैत्य मनोहर । कलिकत्तापुरसारो। श्रीबर फल वद्री प्रनुपावै । मुक्ति. मोहन जयकारो॥० ५॥ इतिपदम् ॥ ॥॥मोरीराजुलराणोजीथांने नमजी मिले इमचालम॥१॥
॥ * ॥ मोरी सुमता राणीजी, थाने श्रीपतिजी मिले । श्रीपतिजी०॥ श्रीपति मिलवा कारणे सारू । दान शील तप नाव । विधिसें जिनश्रम से वतां । सहु पावे आतम दाव । हे मोरी० १॥ श्रीपतिप्यारी सुमता नारी। दर्शन शान सुहाय । चारित्र निजगुण साथ में सहु । सुख संपति नितपाय ।। हे मो० २॥ विक्रमपुर श्रीकुंथु जिनेशर । चंद नदय अमरेश। श्रीशशि वि जय सुहावणा । सहु सुगुण विद्या श्रीवरेस ॥ हे मो० ३॥ सहु सुखकारी मू रति प्यारी । मुक्ति कमल मन नाय । जिनपद पाठक सेवतां । सहुसंघ मोहन जय थाय ॥ हे मो० ॥ ४॥ ॥ . इति श्रीकुंथुजिन पाठक सहुगुण सेवन स्तवनम् ॥॥ ॥ ॥
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७८४ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह
॥ ॥ अथ श्रीजिनध्रममहिमास्तवन ॥ * ॥
* ॥आवो आवो नगरिया हमारी रे॥ इस चालमें ॥ आवो आवो सऊन मिल सारारे ॥ गुणगावो जिनंद सुखकारारे॥ आ०॥टेक ॥ कोई हाथे वंशी धारो॥ कोई हाथे बीणारे ॥ मृदंग वजावो गावो करी स्वरकीणा॥ आ० ॥ १ ॥ ठम २ पायनाचो घुग्घरु वंधावोरे॥ नर नारी सहु जोडे सुजश वधावो ॥आवो० ॥२॥दान दया शील धारो । तप जप सारोरे ॥ जावसुध धारकरो आतम निस्तारो ॥ प्रा० ॥३॥ पर पीडा दूर करी ॥ करो नपगारोरे। पर निंदा दूर गेमो। लेवोगुणसारो॥०॥४॥जीवकों वचायाचावो जिन ध्रम धारोरे ॥ समकित सुध धारी करोनवपारो ॥ आ. ॥५॥ज्ञान गुणीसें सोबत रखतां ॥ होवैगी वमाईरे॥ लक्ष्मी मोहन शिव सुख पावे । जय आनंद बधाई ॥आ० ॥६॥इति पदम् ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ चौवीशजिन नमस्कार स्तवन ॥ ॥ ॥ * ॥ नेमगयो गिरनाररे॥ इस चालमें ॥प्रनुजी मिल्या मोहे आजरे। मेरा सफल थया सहुकाजरे॥प्र०॥ एतो तीन जुवन सिर ताजरे॥प्र मेंतो रूषन अजित संभव नमुं । अभिनंदन जिनराजरे । सुमति पदम प्रनु सेवतां धारु सुपार्श्व सुकाजरे ॥प्र० १॥ चंद्राप्रनु जिनवर नमुं । सुबिधि शीतल . महाराजरे । श्रेयांस जिनकों नितनमुं। वासु पुज्य मुखकाजरे ॥ प्र० ॥ ॥२॥ विमल, अनंत प्रनु, नमुं । धर्म शांति गुणराजरे । कुंथुनाथ, अरिनाथकों । मल्लिनाथ मुन काजरे ॥ प्र० ३॥ वीशमा मुनिसुव्रत नमुं । नमि नेमी पार्थ महाराजरे । चौवीशमा महाबीरजी । शाशनपति शिरता जरे॥ प्र०४॥ नवपद सहु गणधर नमुं। पूरो मन बंबित काजरे । शिव सुख श्रीवर पद मिले । मोहन जय गुणराजरे॥प्र०५ ॥ इतिश्री महो पाध्याय श्रीलक्ष्मीप्रधानजी मुक्ति कमलगणिःकृतस्तवन संग्रह संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ अथ श्री दादाजीकी अष्टप्रकारी पूजा लि० ॥ * ॥
॥ॐ॥ सकल गुणगरिष्टान् सत्तपोनि वरिष्टान् । शम दमय मनुष्टांश्चा रुचारित्र निष्टान् । निखिल जगति पीठे दर्शितात्म प्रनावान् । मुनिप कुश लसूरीन् स्थापयाम्यत्र पीठे ॥१॥ * ॥नक्षी श्री श्री जिन कुशल सूरि
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श्रीदादाजीकी अष्टप्रकारी पूजा. ७८५ गुरो अत्रावतरावतर स्वाहा ॥इति आह्वानं ॥ ॥ क्षी श्री श्री जिन कुशलसूरि गुरो अत्र तिष्ट २ ः वः स्वाहा॥8॥इति प्रतिष्ठापनं ॥२॥शी
श्री श्री जिनकुशल सूरिगुरो अत्र मम सन्निहितो नव वषट् ॥ ॥ इति सन्निधी कारणं ॥३॥ ॥
॥॥अथ अष्टप्रकारी पूजा॥॥ ॥ ॥ (दूहा) गंगाजल तिम नृवलवलि । तीर्थोदक भरपूर । कल शनरी गुरु चरणपर । ढालै तस ःखदूर ॥१॥ॐ ॥ ( ढाल ) देशी सूर ती महीनांनी ॥ ॥ गंगाजल अति निरमल अमलसु कमलें पूर। खोरो दधि वरदधि ज्यौं नमाल जल भरपूर । तेह नदकवलि तीर्थ नीर जरि कलश सनूर । गुरुचरणे जे ढालै टालै उकृतदूर ॥१॥ ॥ नक्षी श्री श्रीजिन कुशल सूरिगुरु चरणकमलेभ्यः जलं निर्वपामिते स्वाहा ॥ इति जलपूजा ॥
॥ ॥ चंदन पूजा॥ ॥ ॥ ॥ बावन्ना चंदन अगर । घस केसर घन सार । चरचे जे गुरु चरणनें । पांमें जै जैकार ॥१॥ (ढाल)॥ ॥ मलयागर तिम अगर चं. दन बलिकेसर सार । कस्तूरी अतिगंधै पूरी घस बनसार । कुशल सूरि गुरुचरणे चरचै चढते नाव । सकल रोग तन सोग हरै वलि जमता नाव ॥२॥ ॥ क्षी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरण कमलेभ्यः चंदनं निर्वपामिते स्वाहा ॥३॥इति चंदन पूजा ॥४॥
| | पुष्प पूजा ॥ ॥ ॥केतकि चंपक फूलथी। पूजे जे गुरुपाय । तसु जशसूर नदै हुवै । अपजश तिमिर नसाय ॥१॥ (ढाल)॥ ॥ चंपक केतकि मख्वो दमन सेवंती फूल । जाई जुई मोगरो मालती तेम नडून । कमल गुलाब चंपेली बेली परमलपुर । गुरुचरणे जे ढोवै होवे जश ज्यूं सूर ॥२॥ क्षी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरणकमलेभ्यः पुष्पं निर्बपामिते स्वाहा॥ इति पुष्पपूजा ॥ ॥
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॥ ॥ ॥ॐ॥ अदत पूजा ॥४॥ ॥॥ नऊल ज्यों शशि अंकविण । खंम्ति नहीं विशाल । अक्त गु
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
रुचरणे वै । त घर मंगल माल ॥ १ ॥ ( ढाल ) ॥ * ॥ सरल सुगंधित तंडुल नल जल उत्पन्न । ज्यूंवर मोती मात्रा हुंती नऊलवन्न । जलधोई ससमोई सोई प्रकृत नव्य । स्वस्तिक कुशल वधावै पावै मंगल नव्य ॥ २ ॥ ॥ * ॥ ी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरणकमलेभ्यः । प्रकृतं निर्व पामि ते स्वाहा ॥ * ॥ इति प्रकृतपूजा ॥ * ॥
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॥ * ॥ दीप पूजा ॥
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॥ * ॥ कंचन मणिमय रत्ननी । दीवी कर घृतपूर । वाती मौजी सूत धर । करौ प्रदीप सुनूर ॥ १ ॥ (ढाल ) ॥ * ॥ कंचन घटित जटित गति नानाविध नवरत्न | दीवी प्रतिकारीगर कीवी अधिकै यत्न । घृतपूरी सस नूरी मौली वाती जोय । दीप करै गुरु आगे ज्योत नद्योती होय ॥ २ ॥ ॥ * ॥ ी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरण कमलेभ्यः दीपं निर्व पामि ते स्वाहा ॥ * ॥ इति दीपपूजा ॥ ॥
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॥ * ॥ धूप पूजा ॥ ॐ ॥
॥ * ॥ बावन्ना चंदन अगर । सेल्लारस घनसार । धूपै जे गुरु धूपथी तस घर रिध विसतार ॥ १ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ अगर चंदन सेवारस बाम बमीलो मेल । कपूर काचरी वलि घनसारै मृगमद जेल । धूप डंग करी गुरु धूपै चढते चित्त । ते नरवित्त सुमारग पामैं नव नव नित्त ॥ २ ॥ ॥ ती श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरण कमलेभ्यः धूपं निर्व्वपामिते स्वाहा ॥ इति धूपपूजा ॥ ॥ ६ ॥ ॥
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॥ ॐ ॥ नैवेद्य पूजा ॥
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॥ * ॥ साल दाल पकवान घन । व्यंजन नव नव प्रांत । नेवज गुरु आगल ठवै । कुधा दोष नपसांत ॥ १ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ पेमा मगद सेवइया लाडू मोतीचूर । खाजा ताजा लापसी दोठानें घृतपूर । पिस्ता दाख विदाम बुहारा पिंमखजूर । गुरुचरणे जे ढोवै लोग जहै भरपूर ॥ २ ॥ ॥ ॥ ी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरण कमलेभ्यः नैवेद्यं निर्व पामि स्वाहा ॥ ॥ इति नैवेद्यपूजा ॥ ७ ॥ ॥
॥ ६ ॥
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- श्री दादाजी वृध, तथा लघु अष्टप्रकारी पूजा. ७८७
॥ ॥ फल पूजा॥॥ ॥ श्रीफल शीताफल सदा । फल पूंगीफल लेय । ढोवै जे गुरु चरणपर । तसु उत्तम फल देय ॥१॥ * ॥ (ढाल )॥ * ॥श्रीफल शी ताफल नारंगी दामम दाख । खरबूजा तरबूज जनेरी पाखी साख । करुणा कवला केला नींबू फनस सफार । गुरु चरणे फल ढोई फल पामैं श्रीका र ॥२॥ शी श्री श्रीजिन कुशल सूरि गुरुः चरण कमलेभ्यः । फलं निर्बपामिते स्वाहा ॥ ॥ इति फल पूजा॥८॥
॥ ॥8॥अघे पूजा॥ ॥ ॥ * ॥ (अथ कलश ) दूहा ॥ ॥ इम जिन कुशल सुरिंदने । पूजै अष्ट प्रकार । तमु घर नवनिधि संपजै । पुत्रादिक परिवार ॥ १ ॥ जट्टारक खरतर गडै । श्रीजिन लानमुरिंद । रत्नराजमुनि जमरपर । सेवै पद अरविं द॥२॥ तासुचरण रजकणसमो । ग्यांन सार बुद्धिमंद । श्रीसदगुरु पूजा रची। सोधोकविजन बंद ॥३॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥४॥ इति श्रीजिनकुशल सुगुरूणां अष्टप्रकारी पूजा ॥ * ॥ ॥ * ॥ . ... ॥॥अथ लघु अष्ट प्रकारी पूजा लि०॥ ॥
॥ॐ॥ सुरनदी जल निर्मल धारया। प्रबल पुष्कृत दाघ निवारया। सकल मङ्गल वंडित दायकं । कुशल सूरि गुरोश्वरणांयजे.॥॥१॥ क्षी श्री श्रीजिन कुशल सूरिः चरण कमलेभ्यो जलं० ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ चंदन पूजा॥ * ॥ ........... ॥॥ मलय चंदन केशर वारिणा । निखल जामयरुजा तप हारिणा। सकल०॥१॥ शी श्री श्रीजिन कुशल सूरि गुरुः चरण कमलेभ्यो चं०
॥॥अथ पुष्प पूजा॥ * ॥ ॥ ॥ कमल केतकि चंपक पुष्पकैः। परिमला हत षट् पद वृंदकै ॥ सकल०॥३॥ श्री श्री श्री जिन कुशल सूरि गुरुः० ॥ पुष्पं यया०॥३॥
॥ ॥ अथ अक्त पूजा ॥६॥ ॥ ॥ सरल तंकुल कैरित निर्मलै । प्रवर मोक्तिक पुंजवउज्वलैः। सकल मङ्गल ॥जी श्री० अक्तं ययामहे स्वाहाः॥ ॥ ॥
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७८८
रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ ॥ अथ नैवेद्य पूजा ॥१॥ ॥ ॥ बहु बिधै श्वरुनि वटकेयकैः। प्रवर मोदक पुंज सु खर्जकैः। सकल मङ्गल ०॥क्षी श्री० । नैवेद्यं ययामहे स्वाहाः॥ ॥१॥
॥ ॥ अथ दीप पूजा ॥॥ ॥॥अति सुदीप्त मयै खलु दीपकै । विमल कंचन नाजन संस्थिते । सकल मंगल नझी श्री०। दीपं ययामहे स्वाहाः॥ ॥ 1
॥3॥अथ धूप पूजा॥ ॥ ॥ ॥अगर चंदन धूप दशांगजै । प्रसरिता खिल दिनु सुधुम्रकैः । सकल मंगल०॥.क्षी श्री। धूपं ययामहे स्वाहाः॥ ॥१॥
॥ॐ॥अथ फल पूजा ॥2॥ ॥ * ॥ पनशमोच सदा फलकर्कट । सुसुखदैः किल श्रीफल चिट। सकल मङ्गल०॥नजी श्री० । फलं यया महे स्वाहाः॥॥
॥॥अथ अर्घ पूजा ॥2॥ ॥ ॥जल सुगंध प्रसून सुतंजुलै । वरु प्रदीपक धूप फलादिनिः। सकल० ॥ शी श्री । श्रीजिन कुशल सूरि० । अर्घ० स्वाहा ॥ इति ॥ ॥ ॥ अथ दादा गुरु महाराज की पूजा लिख्यते ॥ ॥
* ॥ अथ पहली थापना स्थापन करके आव्हान का श्लोक पढे ॥काव्य ॥ सकल गुण गरिष्टान् सत्तपोनिवरिष्टान् । शम दमय मनुष्टांश्चारु चारित्रनिष्टान् । निखल जगति पीठे दर्शितात्म प्रनावान्। मुनिप कुशल सूरिन् स्थापया म्पत्रपीठे ॥१॥ उजी श्री श्री जिन दत्त श्री जिन कुशल श्री जिन चंद्रसरि गुरौ अत्रावतरावतर स्वाहा ॥२॥ झी श्री श्री जिन दत्त सूरिगुरौ अत्रतिष्ट २ ठः ठः ठः स्वाहा ॥ इति प्रतिष्टापनं ॥नी ी श्रीजिनदत्तसूरिगुरौ अत्र मनसंनिहितो नव बषट् इति संनिधीकरणं ॥३॥ अथ जलका कलश लेके स्नात्रीया सुच होके खडा रहे॥ ॥ ॥
॥ ॥प्रथम जलपूजा || ॥दोहा॥ ईश्वर जग चिंतामणी । कर परमेष्टी ध्यान । गणधर पद गुण वर्णना । पूजन करो सुजाण १॥ सौ धर्मा मुनिपति प्रगट । वीर जिनेश्वर
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श्रीदादाजीकी वृद्ध अष्टप्रकारी पूजा. ७८९ पाट । मिथ्या मत तम हरणकू । जव्य दिखावण वाट ॥२॥ सुस्थितमुप्रति वध गुरु । सूरि मंत्र को जाप । कोटि कीयो जब ध्यान धर । कोटिकगढ सुथाप ॥३॥ दश पूर्बी श्रुत केवली । नये वज्र धर स्वाम । तादिन तें गुरु गलको । वज्र शाख जयो नाम ॥ ४॥ चंद्रसूरि नये चंद्रशम। अतहि बुधि निधान । चंद्रकुली सब जगत में । पसरयो बहु विज्ञान ॥५॥वर्ष मान के पाट पद । सूरिजिनेश्वर नाश । चैत्य वाशि • जीत कर । सुविहित पद प्रकाश ॥६॥ अणहिलपुर पाटण सना । लोक मिले तिहां लद । खरतर विरुद मुधानिधि । फुलेन राजसमद ॥७॥अनय देव सूरि नये नव अंगटीका कार । थंनण पारस प्रगट कर । कुष्ट मिटावन हार ॥८॥ श्री जिन बचन सुरि गुरु । रचना शास्त्र अनेक । प्रतिबोधे श्रावक बहुत । ताके पह विशेष ॥९॥ हुंबड श्रावग वाघमी । अठारे हज्जार । जैन दया धर्मी किये । वरते जैजैकार ॥१०॥ दादा नाम विवात जस । सुर नर शेवग जाश । दत्तसरि गुरु पूजतां । आनंद हर्ष नल्लास ॥११॥ दिल्ली में पतसाहनो। हुकम गया शीश । मणिधारी जिन चंद गुरु । पूजो विस वावीस ॥१२॥ ताके पह परंपरा । श्री जिन कुशल सूरिंद। अकबर कू परचा दी। दादा श्री जिनचंद ॥१३॥ एसे दादाच्यार कू । पूजो चित्त लगाय । जल चंदन कुशमादि कर। ध्वज सौगंध चढाय ॥ १४ ॥ * ॥
॥ चाल दादा चिरंजीवो एदेशी ॥ : ॥ ॥ गुरुराज तणी पूजन कर नवि सुख कर मिलसी लढि घणी। ए आंकणी ॥ गुरु दत्तसूरिंद. जग सुखकारी । गुरु सेवगर्ने सानि धकारी । गुरु चरण कमलनी बलिहारी ॥ गु० १॥ शंवत इग्यारे वार शशी । वत्तीसे जनम्यां शुन्न दिवसी । श्रावग कुल हुंबडनें हुलसी॥गु०॥ ॥२॥ जसु बाउगसा पितु नाम नणे। वाहडदे माता हर्ष घणें । इकता लीसे दिवापन्नणे ॥ गु० ३॥ गुणहत्तरे वक्षन पाटधरी । गुरु माया बीजनो जाप करी । गुरु जग में प्रगटया तरणतरी ॥ गु० ४॥ मणिधारी जिन चंद नपगारी। जिन दत्त सूरिंद के पटधारी । नये दादा दूजा सुखकारी ॥ गु० ५॥राशल पितु देव्हण दे माता । श्री माल गोत्र बोधनशाता । दिल्ली
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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह पतसाह सु गुण गाता|गु०६॥ जसु चोथे पाट नद्योत करी। जिन कुशल सूरिंद अति हर्ख जरी । तेरेसे तीसे जनम घरी ॥ गु०७॥ जसु जिल्ला ज नक जगत्र जीयो । वर जैत सिरी शुजस्वपन लीयो, । गुरु गजेड गोत्र नचार कीयो ॥ गु० ८॥धन सेंतालीसे दीद धरी । जिन चंदमूरीश्वर पा टवरी । गुणहत्तरे सूरि मंत्र जाप करी ॥ गु० ९॥ सेवा में बावन बीर खरा। जोगणीया चोसठ हुकम धरा । गुरु जगमें केइ नपगार करा ॥ गु० १०॥ माणक सूरीश्वर पद बाजे । जिन चंदसूरि जगमें गाजे। नये दादा चोथा । सुख काजे ॥गु० ११॥ जिन चांद नगायो नजियालो । अम्मावश की पूनमवालो। सब श्रावग मिल पूजन चालो ॥गु० १२॥ जिन अकबर कू परचा दीना । काजीकी टोपी वश कीना । वकरीका नेद कह्या तीना। गु०१३॥ गंधोदक सुरनि सुकलश जरी। पदालन सद गुरु चरण परी । या पूजन कवि घिसार करी । गु० १४॥ श्लोक ॥ सुर नदी जल निर्मल धा रयः। प्रबल इष्कृत दाघ निवारयः । सकल मंगल वंग्तिदायकं । कुशल सूरि गुरौश्चरणायजे ॥१॥ जी श्री परम पुरषाय, परम गुरु देवाय, जगवते श्री जिनशाशनो दीपकाय, श्री जिन दत्त सूरिश्वराय । मंडित जाल स्थल श्री जिनचंद्र सूरीश्वराय । श्री जिन कुशल सूरीश्वराय । अकबर असुर . त्राण प्रतिबोधकाय श्री जिन चंदसूरीश्वराय । जलं निर्विपामिते स्वाहाः॥१॥
॥॥अथ दूजी केशर चंदन पूजा ॥१॥ ॥ ॥॥दोहा॥ केशर चंदन मृग मदा । कर घनसार मिलाप । परचा जिन दत्तसूरि का। पूज्यां तूटे पाप ॥
॥ ॥ ॥ चाल वीण वाजे की॥ दीन के दयाल राज सार२ तूं। आंकणी आये जरु अलेनग्र धाम धूम २ धुं । वाजते निशाण ठगेर हर्ष रंग हूं। ह० दी०१॥ मूसलमान मुगलपूत फोज मो जमू । फोत मोत होगया हायकार सूं॥ हां दी०२॥ सन विघ्न देख आप हुकम दीन यूं । लावो मेरे पास आस जीव दान दूं ॥जी० दी० ३॥ मृतक पूत मंत्र से गाय दीनतूं। देख के अचंन रंग दास खास... ॥ दा० ४ दी०॥ करत सेव नाव पूर पूर राजबूं। ओम के अनक खाण हाजरी जरूं ॥ हा० ५ दी० ॥ वीजखीजके पनी प्रति
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श्रीदादाजीकी वृद्ध अष्ट प्रकारी पूजा. ७९१ क्रमण के मूं । हाथसें नगय पात्र ढांक दीन यूं ॥ ढां० ६ दी० ॥ दामनी अमोल बोल सिघ राज तूं । देनं वरदान गेम बंध कीन क्यूं । बं० ७॥ दत्त नाम जपत जाप करत नांह चूं । फेर में पडूंगी नांह गेम दीन;॥गे० ८ दी०॥ करोगे निहाल आप पाव पलकनूं । रामशघिसार दास चरण गहलूं ॥ च० ९० दी०॥श्लोक ॥ मलय चंदन केशर वारिणा । निखिल जाडय रुजातप हारणा । शकल। जी श्री श्री जिन दत्त सूरी गुरो के शर चंदनं निर्विपामिते स्वाहा ॥२॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥* ॥ अथ तीसरी पुष्प पूजा॥ ॥ ॥ ॥दोहा॥ चंपा चमेली मालती । मख्वा अरु मचकुंद । जो चाढे गुरु चरण पर । नित घर होय आनंद ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥
* ॥ नींद तो गई वादीला मारी । ए चाल ॥राग मांग ॥ * ॥ ॥ * ॥ गुरु पर तिख सुर तरु रूप सुगरु शम दूजो तो नही । दूजो तो नही रे सुमति जन दूजो तो नही । गुरु परतिख सुर तरु रूप सु गुरुनें पूजो तो सही ॥ए आंकणी ॥ चितोम नगरी वज्र थंन मै। विद्या पोथी रहीरे॥ सु०॥ हेजी मंत्र जंत्र विद्या में पूरी गुरु निज। हाथ गृही ॥गु० गुरुपर० ॥ १॥ पुरनोणी महाकाल के । मंदिर थंन कहीरे सुम० । हेजी शिद्धशेन दिन करकी पोथी । विद्या सरब लहीरे सु० वि० गुरुप० ॥२॥ नकोणी व्याख्यान वीच मे । श्राविका रुप गृहीरे । सु० श्रा० ॥ हेजी जोगणीयां उलणे कुं आई, सब कू खील दई। सु० गु ३॥ दीन होय जोगणीयां चोसठ । गुरु की दाश नई रे। सु० गु०॥ हेजीशात दीया वरदान हरख सें, पसरया सुजस मही ॥ प.गु० ४॥ पुष्पमाल गुरु गुण की गूंथी। चाढो चित्त चहीरे । सुचा० । हेजी कहे रामऋद्धिशार सुजश की बूंटी आप दई । बूं० गु० ५ । श्लोक । कमल चंपक केतकी पुष्प कैं। परि मलाश्त् षट् पद बंद कै । शकल० ॥जी श्री श्री जिन दत्त पुष्प निविपामिते स्वाहाः।३। .....
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७९२
रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ ॥ अथ चोथी धूप पूजा ॥॥ ॥ ॥दोहा॥ धूप पूज कर सुगुरु की। पसरे परमल पूर । जस सुगंध जगमें वधे । चढे सवाया नूर॥ ॥॥
॥ ॥ राग सोरठ ॥ कुबजा ने जादू मारा॥ए चाल॥ ॥ ॥
॥ * ॥ अंबिका विरुद बखाणे गुरु तेरो॥ अं०॥ तुम युग प्रधान नही गने॥गु० एप्रांकणी॥गढ गिरनार अंबड श्रावक। एसो नियम चित गणे। युग प्रधान इस जुग में कोई। देखू जन्म प्रमाणे ॥ गुअं०१॥ कर नपवाश तीन दिन बीते । प्रगटी अंबा ज्ञाने॥ गु०॥ प्रगट होय कर में लिख दीना। सुवरन अदर दाने ॥ गु० अं० २॥ या गुण संयुत अदकर वांचै । ताकू युग वर जाने ॥गु०॥ अंबड मुलक २ में फिरता । सूरि शकल पतवाने ॥ गु० ३॥आया पाश तुमारे सदगुरु । कर पसार दिखलाने ॥ गु० ॥ वास देप नन ऊपर माला । चेला वांच सुणानें ॥गु० अं० ४ ॥ सर्व देव हे दाश जिनोके । मरु धर कल्प प्रमाणे ॥युग प्रधान जिन दत्त सूरीश्वर ।अंबम शीश जुकाने ॥ गु० ५॥न्द्योतन सूरीने निज हथ । चोरासी गड ठाने । सो शव तुमरी शेवा सारे । चौरासी गढ मानें ॥ गु० ६ ॥ जो मिथ्यात्वी तुमकू न पूजे । सो नही तत्व पिगने । नद्र बाहु स्वामी तुम कीर्तन । कीनी ग्रंथ प्रमाणे ॥ गु० ७॥ युग प्रधान परि कीए गंडिका । गण धर पद वृत्ति म्याने। कहे रामशधिशार गुरुकूँ। पूजा धूप कराने ॥गु० ८॥श्लोक ॥अगर चंदन धूप दशांगजैः । प्रशरिता खिल दिनु सु धुम्रकै ॥ शकल मं० ४ ॥ नशी श्रींपर० धूपं निविपामिते स्वाहाः ॥ ४ ॥ ॥१॥
॥अथ पांचमी दीपपूजा॥॥ ॥ * ॥दोहा॥दीप पूज कर सुगण नर । नित २ मंगल होत । नजि यालो जगमें जुगत । रहे अखंमत जोत ॥१॥
॥ ॥ चाल ख्याल की ॥ पूजन कीज्योजी नर नारी गुरु महाराज का ॥ हो पू० ॥ सिंधु देशमें पंच नदी पर । साधे पांच पीर । लोई ऊपर पुरष तिराये । ऐसे गुरू सधीर ॥ पू०॥२॥ प्रगट होयके पांच पीरने । सात दीया वरदांन । सिंधु देश में खर तर श्रावग । होवेगा धनवान ॥ पू० ॥२॥ सिंधु
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श्रीदादाजीकी वृच्च अष्ट प्रकारी पूजा. ७९३ देश मुलतान नग्रमें । बडा महोत्सव देख । अंबड और गन का श्रावग । गुरु से कीना देष ॥ पू० ॥ ३ ॥ अण हिलपुर पत्तन में आवो ॥ तो में जाएं सच्चा । बमो महोइव आयेंगे तूं । निर्धन होगा कच्चा ॥ पू० ॥ ४॥ पत्तन बीच पधारे दादा। सनमुख निर्धन आया । गुरु बतलाया क्यूंरे अंबम् । अहंकार फल पाया। पू०॥ ५ ॥ मनमें कपट कीया अंबाने । खरतर महिमा धारी । जहर दीया नन अशन पांनमें । गुरु विध जाणी सारी ॥ पू० ६॥ नण शाली मुखवर श्रावगसें । निर्विष मुद्री मंगाई । जहर नतारा तब लोकोंमें। अंबम निंद्या पाई ॥ पू०॥७॥ मरके बिंतर हुवा वो अंबम । रजो हरण हर लीना। नणसाली वितर वचनोसें । गोत्र नतारा कीना ॥ पू०॥८॥ सज्ज होय गुरु औघालेके । गोत्र वचाया सारा । झधिशार महिमा सद गुरुकी। दीपकका नजयारा॥ पू० ॥९॥ श्लोक ॥ अति सुदिप्तमय खलु दीपकैः । विमल कंचन जाजन शंस्थितै ॥ सकल०॥नक्षी पर दीपं निविपामिते स्वाहाः॥५॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥अथ अदत पूजा ॥१॥
॥ दूहा ॥ अकृत पूजा गुरु तणी । करो महाशय रंग । ती न होवे अंग मे। जीते रण मे जंग।१।राग आसावरी ॥ अबधू सो जोगी गुरु मेरा ॥ ए चाल ॥ रतन अमोलख पायो सु गुरु शम । रतन अमोलख पायो । गुरु शंकट सबही मिटायो । सु०॥ए आंकणी ॥ विक्रमपुर नगरी लोकन कू। हेजा रोग संतायो। बहोत नपाय कीया शांतिक का।जरा फरक नही आयो । सु० र ०१ । जोगी जंगम ब्रह्म शंन्यासी । देवी देव मनायो। फरक नहीं किनही ने कीना । हाहाकार मचायो। सु० र० २ ॥ रतन चिंतामणि सरिषो साहिब । बिक्रमपुर में आयो। जैन संघ को कष्ट दूर कर जैजैकार वरतायो। सु० २०३॥ महिमा सुण माहेश्वर ब्राह्मण । सबही शीश नमायो। जीवत दांन करो महाराजा । गुरु तब यूं फुरमायो । सु०र० ४॥ जो तुम समकित व्रत को धारो। अबही करदूं नपायो । तहत वचन कर रोग मिटायो । आनंद हर्ष बधायो । सु० र० ५। जो कोई श्रावग व्रत नही धारयो पुत्री पुत्र चढायो । साधु पांच से दीदत कीना । साध वीयां समुदायो।
१००
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७९४ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. . । सु०र० ६ । मंत्र कला गुरु अतिशय धारी । ऐसो धर्म दीपायो॥ शघिसार पर किरपा कीनी । साचो इलम बतलायो॥सु० २०७॥ श्लोक ॥ सरल तंकुल के रति निर्मले ॥ प्रवर मौक्तिक पुंज वदूज्वलैः सकल० ॥ जी श्री प० अक्तं निविपामिते स्वाहाः॥६॥ * ॥
॥2॥ ॥ ॥ अथ नैवेद्य पूजा॥ ॥ ॥ * ॥ दूहा ॥ नैवद्य पूजा सातमी । करो नविक चित चाव ॥ गुरु गुण अगाणित कुण गिणे । गुरु जव तारण नाव ॥ १ ॥ राग कल्याण । तेरी पूजा वणी हे रसमे॥ए चाल ॥ हो गुरु किया अमुर कुं वश में । एकणी। वम नगरी मे आप पधारे । सानेला धसमस में। ब्राह्मन लोक बमे अनिमा नी। मिलकर आया सुसमे ॥ हो गु० १॥ महिमा देख सक्या नही गुरु की नरे मिथ्यात्वी गुस में । मृतक गऊ जिन मंदिर आगे। रखदी सनमुख चसमे । हो गु० २॥श्रावग देख नये आकुलता । कहे गुरु से कसमें । चिंता दूर करी हे संघ की। गन छ चाली मसमे ॥हो गुरु०६ ॥ मरी गळ • जीती कीनी । लोक रह्या सब हसमे । जाके गाय पमी रुद्रालय। संघ नया सब खु समे । हो गु० ४। ब्राह्मण पांव पम्या सब गुरुके। देख तमासा इसमे । हुकुम नगवेंगे शिर ऊपर । तुम शंतति की दिशमे ॥ हो गु० ५॥ नमस्कार हे चमत्कार कू। कीनी पूजा रसमें । कहे राम शघिसार गुरु की । आनंद मंगल जस में ॥ हो गु०६॥श्लोक ॥ बहु विधे श्वरनिर्वटकैर्यकैः॥ प्रचुरसर्पि पिप क सुखज्ज के। शकल। जी श्रीं प० नैवानिर्विपामिते स्वाहाः ॥७॥
॥ ॥ अथ फल पूजा॥॥ ॥ ॥दोहा॥ फल पूजा में फल मिले । प्रगटे नवे निधान।चिहुंदिश कीरत विस्तरे । पूजन करो सुजान ॥ १ ॥ रथ चढ जाऽनंदन आवत हे ॥ ए चाल ॥ चालो संघ सब पूजनदूं। गुरु शमरयां सनमुख आवत हे रे, चा० ५॥ ए आंकणी ॥ आनंदपुर पहन को राजा । गुरु शोला सुण पावत हेरे ॥ चा० ॥ ज्या निज परधान बुलाने । नृप अरदास सुणावत हेरे। चालान जांण गुरु नगर पधारे। नूपत आय वधावत हेरे । चा० । राज कुमर को कुष्ट मिटायो । अचरज तुरत दिखावत
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श्रीदादाजीकी राग तच पूजा. ७९५ हेरे । चा० २। दश हज्जार कुटंब संग नृप कू । श्रावग धर्म धरावत हेरे। चा० ३॥ दया मूल आज्ञा जिनवर की। वारे ब्रत नचरावत हेरे॥चा०॥ एसे च्यार राज समकित धर। खर तर संघ वणावत हेरे। चा० ४। कुष्ट जलंधर दौण नगंदर । केश्यक लोक जीवावत हेरे। चा। ब्राह्मन कत्री अरु माहेश्वर । ओश वंश पसरावत हेरे। चा० ५॥ तीस हजार एक लख श्रावग। महिमा अधिक रचावत हेरे॥ चा०॥ कहत राम झद्धिसार गुरु कू। फल पूजा फल पावत हेरे ॥चा०६॥ श्लोक ॥ फनसमोचसदाफल कर्कटै। सुसुखदै किल श्रीफल चिन]। शकल० ॥ नक्षी प० फलं निर्वि पामिते स्वाहाः॥ * ॥
॥ ॥
॥ ॥अथ वस्त्र सुगंधी पूजा॥॥ - ॥ ॥ दूहा ॥ वस्त्र अत्तर गुरु पूजना। चोवा चंदन चंपेल । पुस्मन सब सज्जन हुवे । करे सुरंगा खेल ॥१॥ मनमो किमही न बाजे हो कुंथु जिन ।। ए चाल ॥ लखमी लीला पावेरे सुंदर। लखमी लीला पावे । जे गुरु वस्त्र चढावरे। सुं० । सुजस अत्तर महकावेरे ॥ सुं० ॥रजन शीश नमावेरे। मुं० । ए आंकणी ॥ दरिया वीच जीहाज श्रावग की। डूबण खतरे आवे । साचे मन समरे सद गुरु । मुख की टेरे सुणावेरे॥ मुं०।१॥वाचं ताव्याख्यानसूरीश्वर । पंखी रूपे थावे । जाय समंद में ज्याज तिराई। फिर पीग जब आवेरे॥ मुं० २॥ पूरे संघ अचरज में नरीया। गुरु सब बात सुणावे ॥ एसें दादा दत्त कुशल गुरु । परचा प्रगट दिखावरे । मुं०३। बोथर गूजरमल श्रावग की । दादा कुशल तिरावे । सुक्खसूरि गुरु शमय सुंदर की। ज्याज अलोप दिखावेरे ॥ मुं०४ल० ॥ वारे से इग्यारे दत्तसूरि । अजमेर अण शण गवे । नपज्या सोधर्मा देवलोके । सीमंधर फुरमावरे सुं०५॥ इक अवतारी कारज सारी । मुक्ति नगर में जावे । कुशल सूरि देरार नगरे । नुवनपति सुरथावरे॥ मुं०६॥ फागुण वदि अम्मा वश सीधा । पूनम दरश दिखावे । मणिधारी दिल्ली मे पूज्यां । शंकट सुपने नावेरे । सु० ७। रथी नठी नही देख वादशा । वांही चरण पधरावे । वस्त्र अतर पूजा सद गुरु की। धिशार मन जावेरे। मुं० ।
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७९६ . रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. ॥श्लोक ॥ अखिल हीर शुचि नव चीर के। प्रवर प्रावरणे खलुगंधतः ।श कल० ॥झी श्रीप० वस्त्रं चोवा चंदन पुष्पसारं निर्विपामिते स्वाहाः॥ ..
अथ धजा पूजा॥१॥ ॥दोहा॥ ध्वज पूजा गुर राज की। लहके पवन प्रचार । तीन लोकके शिखर पर । पोहचे सो नर नार ॥ १ ॥ चाल । जिन गुण गावत सुर सुंदरी रे । ए चाल ॥ ध्वज पूजन कर हरख नरी रे॥ध०॥ सज सोले शिणगार सहेल्यां । श्री सदगुर के द्वार खरीरे । ध० । अप हर रूप सुतन सुक लीनी । ठम २ पग ऊणकार करीरे॥ध०१॥गा वत मंगल देत प्रदाणा । धन २ आनंद आज घरीरे । ध० ॥ निर्धन • लखमी वगसावत । पुत्र विना जाके पुत्र करीरे॥ध० २॥ जो जो पर तिख परचा देख्या। सुणो नविक दिल वीच धरीरे। ध०॥ फतेमल्ल नमगतीया श्रावग। पहली शंका जोर करीरे ध० ३। परतिख देखू जब में जाणूं । प्रग टया ततखिण तरण तरीरे॥ध०॥ पुष्प माल शिर केशर टीका । अधर श्वेत पोशाख करीरे ॥ध०४॥ मांग २ बर बोलें बाणी ॥ फरक वतावो गुरु मेघ फरीरे। ध० ॥ फरक नगायो दोय लाख पर । तेरी महिमा नित्त हरीरे॥ ध० ५॥ गैनचंद गोलेहा कू ते । परतिख दीना दरस फरीरे॥ध०॥ विक्र मपुर में धुंन तुमारा। चित्र करावत सुर सुंदरीरे ॥ध०६॥ थांनमल्स लूण्यां पर किरपा। लखमी लीला सहज वरीरे। लखमी पति दूगम की सा हिब । हुंमी की जुगताण करीरे। ध०७॥जो नपगार करया तें मेरा । दीनी सनमुख अमृत जरीरे॥ध० तेरी कृपा से सिधी पाई। जागे जस अरु नागे जरीरे। ध० ८॥ नूखा भोजन तिसिया पाणी । परत हाजरी देव परीरे॥ ॥ध०॥ विमुख वखत पर सहाय हमारे । शघिसारकी गरज सरीरे। ध० ९॥ श्लोक ॥ मृड मधुरध्वनि खिंखणी नाद कै । ध्वजविचित्रित विसृतवासकै। शकल० । शिखरो परि ध्वजां आरोपयामि स्वाहाः॥॥ ॥ ॥
॥अथ अर्घ पूजा कलस॥॥ ॥2॥ दूहा ॥ नट्टारक पदवी मिली। जीते वादी वृंद । कंठ विराजत सरस्वती । जग में श्री जिन चंद॥ ॥
॥ ॥
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श्री दादाजी आरती, बिलशैरुवि, बंद.
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॥ राग आसावरी ॥ अथवा धन्या श्री ॥ पूजन जग सुखकारी । मुगुरु ते | पूज० | तेरे चरण कमल बलिहारी । सु० । साह सम दिल्लीको बादस्या सुशोतिहारी । ट्ट हरायो चरचा करके । जहारक पद धारी । सु०१ ॥ अम्मावश की पूनम कीनी। चंद नगायो जारी । चढके गगन करी हे चरचा । सूरज से तप धारी । सु० ॥ चौदे से नगणीस शाल में । लखनेन नगर मजारी गोरा फिरंगी टोपीवाला । दिलमें यह बात विचारी । सु० ३ | जैन सितंबर देव जो सच्चा। पूरे मनसा हमारी वाणी निकसी राज्य तुमारा । होवेगा इधकारी ॥ सु० ४ ॥ अंधेकी खोली आंख सूरत में पूजे सब नर नारी । कह जग गुण बरं मे तेरा । तूं ईश्वर जयकारी ॥ सु० ५ ॥ उगणी से संवत्सर तेपन । मिगसर माश मऊारी । शुकल दूज जिन चंद सूरीशर । खर तर ग आचारी सु० ६ कुशल सूरि के निज संतानी । क्रेम कीर्त्ति मनुहारी । प्रति बोध्या जिन सूत्री पांचसे । जांन सहित अणगारी ॥ सु० ७ ॥ म धान शाखा जब प्रगटी । जग में आनंदकारी । धर्मशील साधू गुण पूरे । कुशल निधान नदारी ॥ सु० ८ ॥ या पूजन करतां सुखानंद । अन धन जखमी सारी । कहत राम रुविशार गुरुकी । जय २ शब्द नचारी ! सु० ९ ॥ इति श्री समस्त दादा गुरु पूजा संपूर्ण ॥ ॥
॥ * ॥ अथ सद्गुरूणां भारती लि० ॥
॥
॥ * ॥ पहली आरती दादाजी की कीजै । दुःखदोहग सब दूर हरीजै । ( जैजै सद्गुरु आरती कीजै ) श्रीजिन दत्त सूरि समरीजै । ( जै जै ० ) ॥ १ ॥ बीजी बीज पर्यंती धारा । जयवारण तूंही सुखकारा (जै० ) ॥ २ ॥ तीजी परचा पूरक तेरी । दूर हरो सब दुर्मति मेरी ( जै ) ॥ ३ ॥ चौथी मुगलपूत जिय दायक | सुरवर हुकम धेरै ज्युं पायक ॥ ( जै० ) ॥ ४ ॥ पांचमी पांच नदी जिए तारी। संघ सकलनो संकट वारी ( जै० ) ॥ ५ ॥ बडी थांनो वज्र विदारी । विद्या पोथी परगट कारी ॥ ६ ॥ सातमी चौसठ जोगण साधी । सूरिमंत्र सुरनें आराधी ॥ ॥ ७ ॥ इण विध सात आरती कीजै । मनवंबित संपति फल लीजै
॥
(
( जे० ) ॥
॥ (जै० )
जै० ) ॥
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७९८ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ ८॥ जैन लान खरतर गणधारी । सदगुरु चरण कमल बलिहारी ॥ (जै०)॥९॥ इति श्री दादाजीकी आरती संपूर्णम् ॥ ॥
॥ ॥ श्रीदादाजीको वृद्ध स्तवन लि० ॥॥ ॥॥ विलशे रुच्चि समृधि मिली। शुन्नयोगै पुण्यदशा सफली । जि न कुशलसूरि गुरु अतुल वली । मनवंटित आपै दादो रङ्गरली ॥१॥ मङ्गल खील समें विपुला । नव नवय महोहव राजयला । सुपसायें गुरु चढतीक ला। सुकलीणी पुत्रवती महिला॥२॥सबही दिन थायै सबला । सद वास कपूर तणा कुरला । हय गय रथ पायक बहुला। किबोल करै मंदिर क मला॥३॥बौं चमर निसाण घुरै । नरवै दरवार खमा पुहरै । जय जय करजोमी उचरै। सांनिच गुरु सब काज सरै ॥ ४ ॥ सरसा जोजन पान सदा। पुखरोग उकाल न होय कदा। अविचल ऊलट अंग मुदा । गुरु कूरम दृष्टि प्रसन्न सदा॥५॥घम घम मादल नाद घुमे । बत्तीसे नाटक रङ्ग रमें । प्रगट्यो पुण्य प्रताप हमैं । सबला अरियण ते आय नमें ॥६॥ तन मुख मन सुख चीर तनें । पहिरे वेलानल होय रनें । ध्यावो कुसल गु रु एक मनैं ।। जुनक सुरमंदिर नरै धनें ॥७॥ ततखिण घण खच्यो आ वै। करि स्यामघटा मेह वरसावै । तिसियां तोय तुरत पावै । जलदाता त्रि जग सुजस गावै॥८॥लहिरयां जल कबोल करै । प्रवहण नवसायर मशिमरे । बूडंता वाहण जे समरै । ते आपद निश्चै सुं नवरै॥ ९ ॥खम खम खमग प्रहार वहै । सोदामनि जिम सम सेल सहे । कुशल २ गुरुनाम कहै । ते खेम कुशल रिणमझ लहै ॥ १० ॥ धुन सकल परचापूरै । श्री नागपूरै संकट चूरै । मंगलोर अधिकै नरे। देरावर जय टाल दूरै ॥ ११ ॥ वीरमपुर वानै सुधरै । खंनाइतपुर विक्रम नयर। जिणचंद सूरि पाटै पवरे। जसु कीरति महिममल पसरै ॥ ॥ १२ ॥ पूरब पश्चिम दक्षिण आगै । नुत्तर गुरु दीपै सौनागें । दह दिशि जन सेवा मांगे। श्रीखरतर गठनी म हिमा जागै ॥ १३ ॥ पुर पट्टण जनपद गमै । गाईजै कुशल नयर गामै । पूजे जे नर हितकामें । ते चक्रवर्ति पदवीपांमे ॥ १४ ॥ श्रीजिनकुशलसूरि
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श्री दादाजी उत्पत्ती स्तोत्र
७९९
साखे । सेवकजननें सुखिया राखै। समस्यां गुरुदरसण दाखे । श्री साधु कीर त पाठक नाखै ॥ विज० ॥ १५ ॥ इति ॥ ॥ * ॥ श्री जिन दत्तसूरिजी उत्पत्ति स्तोत्र जि० ॥
॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥
॥ * ॥ सिरि सुयदेव पसाय करे । गुरु श्री जिन दत्तसूरी | बंदिसु खर तर गवरयण । सूरि जेम गुण पूरि ॥ १ ॥ संवत् इग्यारे वरसै । बत्तीस जसु जम्म । वालिग मंत्रि पिता जणणी । बाहमि देव सुरम्म ॥ २ ॥ इकताजै जिवs गहिय । गुणहत्तरे जसु पाट । वइसाखां वदि बहि दिन । पइ प्रणमें सुरथा ॥ ३ ॥ प्रबं सावय कर लिहिय । सोवन कर अंब | जुगप्रधान जग पयरियाए । सिरि सोह्रै पनि बिंब ॥ ४ ॥ जिए चनसहि जोगिण जणिय । खित्तपाल बावन्न । साइण माइण विज्जुलिय । पुहविह नामनयन्न ॥ ५ ॥ सूरिमंत बलकर सहिय । साहिय जिम धरणिंद | सावइ साविय लक्ख इग पनि बोहिय जिण बिंब ॥ ६ ॥ अरि करि केसरि कुहदल | चनविह देव निकाय । प्रांण नलोपै कोई जुगे । जसु प्रणमें नर राय ॥ ७ ॥ संवत बार इग्यारस में | अजयमेर पुर ठाण । इग्यारस आसा ढ सुदि । सगपत्तन सुह जांण ॥ ८ ॥ श्री जिनवल्लह सूरि पए । श्रीजिन दत्त मुदि । विघ्नहरण मंगल करण । करो पुण्य आणंद ॥ ९ ॥ इति श्री जिनदत्त सूरि ज्यष्टकं ॥ ॥
॥ * ॥ श्रीजिन कुशल सूरजी उत्पत्ति स्तोत्र लि० ॥
॥
॥ * ॥ रिसह जिणेसर सोजयो । मंगलकेलि निवास । वासव वंदिय पय कमल । जगसहु पूरै आस ॥ १ ॥ ॥ ( चौपाई ) ॥ ॥ चंदकुलं वर पूनम चंद | वंदो श्री जिन कुशल मुणिंद । नाम मंत्र जसु महिम नि वास । जो समरै तसुपूरै आस ॥ २ ॥ मरुमंगल समियाणो गांम | धण कण कंच प्रति अभिराम । जिहां बसे जिल्हागर मंत्रि । जैतसिरी तसु घरणी कलत्र ॥ ३ ॥ जसु तेरेसे तीसै जम्म । सैंतालै सिर संयम रम्म | पाटण सतहत्तरे जसु पाट । निब्यासिये तसु सुरगैवाट ॥ ४ ॥ नूरुल सरगै पा याज । अचिराचिर जुग इस कलिकाल । प्रनु प्रताप नविमांनॆ सोय । मैं नविनय दीठो जोय ॥ ५ ॥ निरधन लहै धन धन्न सृवन्न । पुन्नही पार्मे
॥
॥ * ॥
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८००
रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. बहु पुन्न । असुखी पामें सुखसंतान । एकमना करतां गुरु ध्यान ॥ ६ ॥ प्रनु समरण आपद सहु टलै । सयब सांति सुखसंपति मिले ।आधि व्याधि चिंता संताप । ते मी नवि ममै व्याप॥७॥पाप दोष नवि लागै तिहां । प्रनु दरसण नत्कंठा जिहां । सेवंतां सुरतरुनी गंहि । निश्चै दालिद्र मेटै बाहि ॥८॥विस हर विस नर विस नरनाह । नूत प्रेत ग्रह व्यंतर राह । प्रनु नांमें जे नकर पीम । जाजै नावठ जव जय नीम ॥९॥ रोग सोग सवि नासै दूर । अंधकार जिम ऊगै सूर । मूरख फीटी पंमित थाय । प्रनुपसाय सुख दु रिय पुलाय ॥१०॥ दिन दिन जिन सासन नद्योत । तिहां अवै नव सा यर पोत । सो सदगुरु में नेट्यौ आज । रलीय रंग सीधा सवि काज ॥११॥ (ढाल ) आज घर अंगण सुरतरु फलियो। चिंतामणि कर कमलै मिलि यो । नदयो परमाणंद घरे ॥ १२ ॥आज दीहमें धन्ने गिणियौ । जुगपव रागम जोमें थुणियौ । चंद्रगढ महिमा निलोए ॥१३॥ कांई करो पृथिवी पतिसेवा । कांई मनावो देवी देवा । चिंता आंणो कांई मने ॥ १४ ॥ वार वार ए कवत नणीजै । श्रीजिन कुशलसूरि समरीजै। सरै काज आयास वि णे ॥ १५ ॥ संवत चवद इक्यासी वरसै । मुलक वाहणपुरमें मन हरसै ॥ अजिय जिणेसर वरनवणे ॥ १६ ॥ कीयो कवित ए मंगल कारण । विधन हरण सहु पाप निवारण । कोई मत संसो धरो मने ॥ १७ ॥ जिम २ से वै सुरनर राया। श्रीजिन कुशल मुनीसर पाया। जयसागर नवशाय थुणे॥ १८॥ इम जो सदगुरु गुण अनिनंदै । इद्धि समृद्धै सो चिरनंदै । मन वंचित फलमुफ हुवो ए॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ दादाजी श्रीजिन कुशल सूरजी उत्पत्ति विचारगर्जित स्तो० ॥ ॥
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॥शति॥
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श्री दादाजी स्तवन
८०१ . ॥॥अथ श्री दादाजीस्तवन ॥
॥ ॥ सजुरु करुणानिधान राखोलाज मेरी ॥टेरे॥ जैजै जिन कुशल सूरि । समरत हाजर हजूर । महकत जिम जसकपूर । महमाजगतेरी ॥स. ॥१॥ जापर तुमहोदयाल । जिनमें करदो निहाल । संकटकों चूरदेव । दोलतकी ढेरी ॥स०॥२॥ तुमहो सुरतरु समान । वंछित फल देवोदान। सेवगकों दीनजान । मेटोनवफेरी ॥स०॥३॥ सरण आयेकी राखोलाज। बंजित सब पूरोकाज । हरखचंद सरण आए। कीरति सुण तेरी ॥स०॥४॥ इति पदम् ॥१॥
॥अथ श्रीजिन कुशल मूरिजीको बंद लि०॥॥ ॥ ॥ समरु माता सरसती । कुमारी करजोग । कवि माता कवियण तणा । पूरै वंचित कोम॥१॥ कुशल करण जग कुशल गुरु। दायक वंगित
देव । अहनिसि तो नेलग करें । सुर नर सारै सेव ॥२॥ पुर पट्टण गांमें प्रगट । जग सगलै जस वास । पुरावदी तो पालियै । वसैसु दादो वास ॥६॥ (बंद मोतीदांम)॥दादो वास दियै दौलत्त । वधै नत्र गया सेवक वित्त । वधारै मांम दिसो दिसवान । धरै इक चित्त जिके गुरुध्यान ॥ ॥४॥ पूनम पूनम पूजै पाय । नवा नवा नैवज वार निपाय । चंपावलि केतकि फूल चरच । अनोपम श्रीफल लेई अरच ॥ ५॥ लहै घरि सुंदर लानि अह । सऊती सोल वधंती नेह । लहै घर नारी लोयण वांण । ल है घरपूत सपूत सुजाण ॥६॥लहै नलगांम सुगंम नृवाल । लहै ढिग मीत नला ढींचाल । लहै घर मंदिर घोडा जोमि । लहै नट सेव करै कर जोडि ॥७॥ लहै घर मेंगल मद्द मसत्त । लहै घर चीर अनोपम संत्त । लहै घर साजण हल्ला किलोल । लहै नितलीला गका गेल ॥ ८॥ लहै घरकुरला कूर कपूर । लहै घरजीमण मोतीचूर । लहै मनवंबित मोग वि शाल । लहै घर साल कचोला थाल ॥९॥ धुरै नित गीत तणा गह गट्ट । जणे नित जय २ चारण नट्ट । फलै पूत सपूतां बांकि फलंति । विगेहा वाल्हा वेग मिलंति ॥१०॥ अनेकानेक विरुद्द अपार । दीगे इक का व्हां तूं दातार । जीहां सहस्स हुवै जो मुक्ख । कहुं इक जीहां केई रु
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८०२
रत्नसागर..
क्ख ॥ ११ ॥ वमा विरुद ताहरा विख्यात । नर नारी सहु यावे जात । गुर्णेकर गिरुवो समुद्र सरीस । कोमें कोई नकरज्यो रीस ॥ १२ ॥ ( दूहा) रीस न करज्यो कवियणां । में माहरी मतिजार । कहीयो जगमें कुसल गुरु खरतर गब सिणगार ॥ १३ ॥ ( बंद नाराच ) सिणगार हार सोहए। सुकांमधे नु दोहए। धरंत ध्यान जो सदा । टवंत दूर आपदा ॥ १४ ॥ प्रथम तो देरानरै । सुथान सिंधुथीवरै । जेशाण थुत्र जागतो । सुदिध संघ साबतो ।। ॥ १५ ॥ मुखतान मीर सेवता। अनेक पीर देवता। किरो हरें फतै पुरै । गुरू सदा नदो करे ॥ १६ ॥ मरोट थांन मूलगो। एकांत चित्त गो । बीकांण वांन वाधतो । सुथांन थांन साबतो ॥१७॥ प्रजावना रिणीपुरै । नीसा ण वाजता घुरै। नागोर नांम दीपतो । दाशव देवजीपतो ॥ १८ ॥ तोरण तेम सोह ए। जगत्त मन्नमोहए । सरूप मे तै सही । अपार नही जां नही ॥१९॥ महिम्म मालपूरतो । लाहोर दुःख चूरतो। कला अनेक प्रागरे । बत्तीस पवनऊरै ||२०|| दादारी करत सेव । हिंदुओं तुरक्कां देव | सदा शुद्ध सांगा नेर । जालमी करत जेर ॥ २१ ॥ अमरसरे अनेक । राखतो जुठो टेक । मालपुरे मझिमान । खान खान सेवै थांन ॥ २२ ॥ ब्राहणपुरै राजरीत । जे तारणें जगत्रजीत । सोजित सुख सहयं । वेनातटे विरुदयं ॥ २३ ॥ खे जमलै खरो सदा। बाहरु मेरु संपदा । जोधाण जुग्ग जातरा । जुरुंति देश देशरा ॥ २४ ॥ वीरम्मपुर तिम्मरी । करंत नृत्य अम्मरी । जालोर जैत सिंघरी । खंजायते खराखरी ॥ २५ ॥ प्रगट्ट आप पाटणें । सूरत सुक्ख सांघों । अनन्त तेज अहम्मदा । सुमङ्गलोर सर्वदा ॥ २६ ॥ साचोर जु ऊ सासतो। तुरत शत्रु त्रासतो। नदैपुरै जु ईमरे । सेत्रावे कोटले गुरै ॥२७॥ गुरू सदा नदो करै । एकांत ध्यान जो धेरै । जमंत नांण जेतली | कीरत कोम तेती ॥ २७ ॥ ( दूहा ) कला अनेकां कुशल गुरु समरयां होय हजूर । अलगी टाले आपदा । जिम अंधारे सूर ॥ २६ ॥ (कलश) सूर तेज जिम नूर | दूर प्रापद जय टालै । माईतां ज्युं मयाकरी । सेवक नित प्रतिपालै । मनवंबित मायबाप । कुशल गुरु कामिता दाता । पूनिम पूजै पा
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श्री दादाजी बंद, स्तवन
८०३ या रहे जे ध्याने राता। सुप्रसाद सोम सुंदर सुगुरु । अनय सोम लग करी। प्रगटियो थुन पाली पुरे । विजे सिंघ लीलावरी ॥३०॥ इति ॥
||| अथ श्री दादाजी वृद्धस्तवन | ॥*॥ सदगुरुजी थे सांजलो। श्रीजिन दत्त सूरीसहो। सेवकने सांनिधक रो। पूरोमनहजगीसहो॥१॥ (दोलतिदोहोदादाजी संपतिदो)। दौलतदोगुरु माहरा । थाहरा विरुद्ध अनेकहो । तोसेव्यां संकट टले । एहीज दादा ताहरी टेकहो॥२॥ दौ०॥जीती चौसठ जोगिणी। वसकीया बावन वीरहो। सिंध मां है तें साधीया। पंचनदी पंच पीरहो॥३॥दौ०॥पमिकमणां मांहे बीजली। वलीय वली ऊब कायहो। थे मंत्री राखी तिका । तूठी वरदेजायहो ॥ ४ ॥ दो० ॥ नबव करतां उच्चमें । मूंगो मुगलरो पूतहो । जापकरी जीवामीयो। संघ माहै राख्यो दादै सूतहो॥ ५॥ दौ॥ व नगररे ब्राह्मणें । देहरै ध री मृत्यु गायहो । पंच मरमेष्टि विद्याबले । पिसुण लगाया दादै पायहो ॥६॥ दो० ॥ विक्रम पुर व्यापी मरी । तै दूरकीया सहु मुख हो । परवार पिण पोते कीयो । सहुनें दीधौ दादै सुःखहो ॥७॥ दौ०॥ अंबम हाथे अख्यरै । थे प्रगट्या तत खेवहो । युग प्रधान जग तुं जयो। आखै अंबिका देवहो । ॥८॥दौ०॥थांनो वज्र विदारनें । पोथी परगट कीधहो । विद्या सोवन अहरें । नऊोणी मां है लीधहो ॥ ९॥ दो० ॥ इम विरुद घणा ताहरा. कहितां नावै पारहो । नाग संजोगै दादौ नेटीयो । अमवमीयां आधारहो।। ॥ १०॥ दौ०॥ हुईं सेवक ताहरौ ।थे आपो धनरिघहो । नुवन कीरति सु पसावले । लान नदै सुख सिघहो ॥ ११॥ दौ०॥ इति श्री दादाजी गीत।।
॥ I (पुनः) राग जैतसरी॥॥.. ॥ ॥ सहाई मेरै श्रीजिन कुशल गुरू । कुशल करण कलि मां है प्रग ट्यो । खरतर गवरू (स०) बावनो चंदन मृगमद मेली । पूजो प्रेमनरू ॥ (स)॥१॥ चिंता चूरण विघ्न विमारण । दालिद्र दूर हरू ॥ (स.) ॥ २॥ दिन दिन साहिब चढितै वानें । ध्यावो ग्यान धरू ( स० ) वाजे जेहना जशना वाजा । गवी गंमै जरू ॥ (स० ) ॥३॥ संबत् अ ढार समें अमस । मिगसर मास थिरू (स.) संघ सहित श्री सदगुरु
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रत्नसागर. बेटे। श्रीजिन हर्ख सरू ॥ (स०)॥ ४ ॥ गांव गडालै चरण नमंता । तूगे कल्पतरु ( स० ) पाठक श्रीविद्याहेम गणीनें । नदय रतन करू । (स०)॥५॥ इति दादाजी स्तवनम् ॥ ॥
॥2॥ ॥ ॥ (पुनः) देशीकी चाल में॥ ॥ - ॥ ॥ (दादा चिरंजीवो सेवक जन सुखदाई दरशण सदा देवो। दादौ दीनदयाल सदा दाता। दादो समस्यां आपै सुखसाता। दादौ जगना यक जगगुरु भ्राता (दा० )॥१॥ दादो परचा जगसगलै पूरै । दादौ सेवकना संकट चूरै । दादौ पुरित हरै सहुनी दूरै ॥ (दा.) ।। २॥ दादा अलगांथी जात्री आवै । दादौ देखीने ते सुख पावै । ह्मांरा दादाजीनी जोम कोई नाव (दा०)॥३॥ दादौ राज नगर मांहे राजै । जिहां मुजश नगारा नितवाजे । दादौ गेगालां सेहर गजै ॥४॥ (दा०) दादा घस केशर सूकम घोली। हाथे लेई सोवन कचोली। पूजो दादाजीने मिल २ टोली (दा०)॥५॥ दादौ आरतियां आरति टाले । दादौ सेवगजननें प्रति पालै । दादौ जिनशासन नित जवालै (दा०)॥६॥ दादौ महिमावंत महाराजा । दादौ राजै खरतर गडराजा । दादौ समस्यां सफल करै काजा (दा०)॥७॥ दादौ कुसल सुरिंद बहुगुण धारी । दादो परतिख सुर तरु अवतारी । जाऊं दादाजीनी हुं बलिहारी (दा०)॥८॥ दादौ श्री जिन चंद सुरिंद पाटै । दादौ गाजै गुणियण गहगाटै । जसु थान सोहै जगथिर थाटै (दा०)॥९॥दादा महिर निजर मुफ परिकरिये । दा दा आरतिपीमा मुख हरियै । दादा जिम जग जय कमलावरियै ( दा० ) ॥१०॥दादा सेवगर्ने सांनिध करज्यो । दादा समणनें दूरै हरज्यो। जि णचंदना मन वंचित फलज्यो (दा० ) ॥११॥ इति दादाजी स्तवनं ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ (आषाढै नैरं आवै इस चालमें )। गाजै जिन कुशल गमा लै । सेवकनां संकट टालहो गा॥१॥ पतिख गुरु परचा पूर। सेव कनी चिंता चूरै हो ( गा० )॥२॥ उतरी नितरी विगजै । विचमें थि रथुन विराजै हो (गा)॥६॥ फूलरे यात्री मिल आवै। दादौ जी
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श्री दादाजी स्तवनसंग्रह. दीगं सुखपावै हो (गा.)॥४॥ केशर घस जरिय कचोली। मांहें व लि मृगमद घोली हो (गा)॥५॥ पूजो पग नीर पखाली। गावो गुण गीत रसाली हो (गा०)॥६॥ दादौजी पुखियां सुख देवै । निरधनियां नित धन देवै हो ( गा० ) ॥७॥ हय हाथी रथपति बहुला । गुरु नांमें पामें कमला हो (गा०) ॥८॥ सकजासुत सुंदर नारी। पामें परि कर सुखकारी हो (गा) ॥९॥ अलगांथी रोग गमावै । गुरु पूज्यां वं मित पावै हो (गा० ) ॥१०॥ पावै गुरु तिसियां पाणी । तिणवेला ज लधर आणी हो (गा० ) ॥११) ग्रहगोचर जोर जंजालै । पीमा हुवै आलै माले हो (गा०)॥१२॥ वाजै जगजशना वाजा। राजै खरतरग ब राजा हो (गा०) ॥१३॥ जसु जैत सिरी वरमाता । जिल्हागर मं त्रि विख्याता हो (गा० ) ॥१४॥ संवत सतरैसे इक्यासी। काती पूनि म परकासी हो (गा० ) ॥१५॥ सहु संघ सहित सुविलासै । अधिके हर हेत नव्हास हो (गा० ) ॥१६॥ इम यात्र करी आणंदै । जिन . भक्ति जती सर वंदै हो (गा०)॥१०॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ ॥
|| पुनः (राग धन्यासरी)॥॥ ... ॥ ॥ आयो आयो जी समरंतां दादोजी आयो। संकट देख सेव क कुं सदगुरु । देरावरतें ध्यायो जी समरंतां (दा० ) दादा वरसै मेहनें रात अंधेरी। वायपिण सबलौ वायौ । पंच नदी हम वैठे बेमी । दरीयै हो दा दादरीयै चित्त मरायो जी॥ (स० दा०)॥२॥ दादा नच्च नणी पो हचावण आयो । खरतर संव सवायो । समय सुंदर कहै कुशल २ गुरु । प रमानन्द सुख पायो जी । समरंतां दादोजी आयो ॥३॥इति पदम् ॥
॥ ॥ (राग लहुरी)॥ ॥ ॥ ॥ जाया नक्तिसुं पूर रहोरे । पुरजन सब दूरहरोरे (ना.) मैरे मनमें भक्ति वैरागी। चित्त परणित लगनसुं लागी। मोरी जाग्यदसा अब जागी॥ (जीया हो)॥ (ना.)॥१॥ सब सजान मिलकर आवो । गुरु चरणे चोक पुरावो । बलि अदत धवल वधावो (जीया हो)॥ (ना.) ॥२॥ गुरु महिमावंत सवाई । गुरु नाम सदा सुखदाई । गुरु सेव्यां पाप
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८०६
रत्नसागर.
पुलाई ( जीया हो ) | ( ना० ) ॥ ३ ॥ घस केशर नरकै कचोली । मां है मृगमद कुंकुम घोली । गुरु पूज रचो नरकोली (जीया हो ) | ( ना० ) ॥ ४ ॥ श्री जिन हर्ख सूरी सर राजा । वाज़ै जग जशना वाजा । सत्य रत्न करै सुन काजा ( जीया हो ) | ( ना० ) ॥ ५ ॥ इति स्तवनम् ॥ ॥ ॥ (राग केरवो ) ॥
॥
३ ॥
४ ॥
५ ॥
॥
॥ ॐ ॥ कुशल सुरिंद गुरु पूजो नवि हितसुं (कुश० ) केशर चंदन कपूर अरगजा । नाव घरी करो पूजा चितसुं ॥ ( कु० ) ॥ १ ॥ मोगरा लाल गुलाब मालती । मनसुध माल करै नवि रुचिसुं ( कु० ) ॥ २॥ शरण शरण परम गुरु सेवो । धरम ध्यान धरो आतम रुचिसुं ॥ ( कु० ) ॥ सेवक जन प्रतिपाल जगत् गुरु । आसापुरै गुरु घणु दत्तसुं ॥ ( कु० ) ॥ ध्यान सुधारे ग्यानवधारे। रूप रंग देवे चित हित मतसुं ॥ ( कु० ) ॥ कुशन सुरिंद गुरु सानिध कारी । परतिख परचापूरै सतसुं ॥ ( कु० ) ॥ ६ ॥ श्री जिनहख सदा सुविलासी । सत्यरतन सुख एही बतसुं ॥ ( कु० ) ॥ ७ ॥ ॥ * ॥ ( राग देवश्री चलत ) ॥ ॥ * ॥ प्राज करोरे नचाह । श्री जिनकुशल सूरिंद मागे । ( प्रा० ) आयबी वेलानैं न प्राबो दाव । इ बी वेला क्यूं करो लाज ॥ (०) ॥ १ ॥ विविध प्रकार पूजो मनरंग । हिल मिल गावो साजन संग ( ० ) धूप दीप करो नैवेद्य सार । फुल वारीनो नहीं जिहां पार ॥ (० ) ॥ २ ॥ प्रत श्रीफल ढोवै जेह । पुत्र कलत्र पां संपदा तेह ॥ ( प्रा० ) ॥ ३ ॥ सुर नर नारी ऊना करै जोग। कौण करै झांरा दादाजीनी होम ॥ (० ) ॥ ४ ॥ श्रीखरतर गपति सिरदार। राजा राणा सेवै इकतार ॥ (० ) ॥ ५ ॥ महिर निजर करो श्रीगुरुराज । कुशल सुरिंद गुरु गरीब निवाज ( ० ( ॥ ६ ॥ श्री जिन हर्ख करे नहरंग । सत्य रतन मन ग्यान नम ग ॥ (० ) ॥ इति स्तवनम् ॥ ॐ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ ( राग वंगालो घाटो ) ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ में निरख्या गुरु महाराज । बतीयां हर्खजरी (में० ) अमल अनंत गुण आगरुरे । समता रसनो धाम | परम परम परमातमारे । वंदित
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श्री दादाजी स्तवनसंग्रह
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दायक स्वाम || ( 30 में ० ) ॥ १ ॥ करुणा निध गुरु दोलतीरे । सेवक जन प्रतिपाल। नविजन नक्तै जावसुंरे । ल्यावै जर जर थाल ॥ ( ब० में ० ) || २ || केशर चंदन कुंकुमारे। नरीय कचोली हाथ । पदमण वै मलपतीरे । पूजै सहीयर साथ ॥ (० ० ) ॥ ३ ॥ कुशल सूरीसर सा हिबारे | श्रीजिनचंद सूरी पाट । बलिहारी जिन कुशलनी रे । गाजै घणुं गहि गाट ॥ ( ब० में ० ) ॥ ४ ॥ अष्टसिधि सानिध करैरे । सुखसंपूरण सार । श्री जिन हर्ख सूरी सरुरे । सत्यरतन सुखकार ( ब० में ० ) ॥ ५ ॥ * ॥ इति स्तवनम् ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥
॥
॥
॥ ॥ चरणकी चरणकी चरणकी । वारी जान में गुरुराय चरणकी (वा० ) श्रीजिनदत्त सूरीसर सदगुरु । सफल घमी सेवा चरणकी || (वा० ) ॥ १ ॥ प्रथममंगल गुरुरायकी सेवा | अशुभ करम सब हरणकी || ( वा० ) ॥ २ ॥ दालिद्रनंजण अरि सब गंजण । पग पग सानिध करणकी ॥ ( वा० ) || ३ || मोह नहीं परवाह अनेरी । शरनग्रही इन चरणकी ॥ ( वा० ) ॥ ४ ॥ श्री जिनहर्ख तुम चरणों को दासा । आशापूरो सुख करणी ॥ ( वा० ) ॥ ५ ॥ इति दादाजी स्तवनम् ॥ 11
राग प्रजाती ) ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ *
॥ * ॥ कुशलगुरु अब मोहि दरशण दीजै । ( ० ) ऐसी जांति करो मेरे सदगुरु । ज्युं मन मूढपती जै ( कु० ) ॥ १ ॥ जलदातार विरुद अमृत रस । श्रवण अंजलि र पीजै । सुरतरु सम दरशण विन देख्यां । कहो नय
किमरी ( कु० ) ॥ २ ॥ परमदयाल कृपाल कृपानिधि । इतनी रज सुणीजै । परम नगत जिनराज तुमारो। अपनो कर जाणीजै ( कु० ) ॥३॥ इति स्तवनम् ॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ * ॥ कुशल गुरु कुशल करो भरपूर । सेवक जन मन वंबित पूरण । समरयां होय हजूर (कु० ) ॥ १ ॥ परम दयाल प्रेम रस पूरण । अशुभ हर जये दूर | संघ नदोकर सदगुरु मेरा। वीनवै श्रीजिन चंदसूर ( कु० ) ॥२॥
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जण जावस्या, चालमें ),
माय ( स०
८०८
रत्नसागर. ॥॥ (देशीकी चालमें ) | ॥ .. ॥ * ॥ सदगुरु पूजण जावस्यां । म्हेतो कुशल सूरिंद गुण गास्यां हे माय ( स० ) । श्रीफल भेट चढावस्यां । म्हेतो चरणांरी पूज रचास्यां हे माय (स०)॥१॥ मारूदेशमैं सोचता। नगर बीकांणै राजै हेमाय। गां म गमालै दीपता । ज्यांरी महीयल महिमा गजै हे माय । ( स० ) ॥२॥ समस्यां संकट चूरता । कुशल करण अवतारी हे माय । सुखदायक श्रीसं घनें । खरतर गउ अधिकारी हे माय (स० )॥३॥ दूर देशांतर थी घणा। हिल मिल यात्री आवै हे माय । लुल २ सीस नमावता। संत सुजस मिल गावै हे माय ( स० ) ॥४॥सक सिणगार मनोहरू । ठम २ पाय ठम कावे हे माय ( स०) तन मन प्रांण लोनावती । गौरी मंगल गाव हे माय (स.)॥५) विबुड्यां साजन मेलवै । अनमी पाय नमावैहे माय । मनरा मनोरथ पूरवै । पर बल लखमी ल्याव हे माय ( स० )॥ ६ ॥ विषमी वे ला वाटमैं । समस्यां सांनिध आवै हे माय । नूखा जोजन मेलवै। तिसियां नीर मिलावै हे माय (७) यात्री आवै नितनवा । थांन आगल थिर थाट हे माय । सीरणीयां नित सांमठी । गावै गुण गहगाट हे माय (स.)॥८॥ कुशल सूरिंद गुरु आगलै । विमिल नावना नावै हे माय । चंदफतै मुनि नित नमें। परमानंद सुख पावै हे माय (स० )॥९॥ इति ॥ * ॥
॥8॥ आयो सहु श्रीसंघ आसधरे । गुरु मौन गह्यां कहो केम सरे दरशण वहिलो सदगुरु दाखो । निज सेवक जांण महिर राखो ॥१॥ इह विषमी वेला आयवणी । केहवी करीयै तुम अरज घणी । अलगागे तो वेगा प्रावो । हिव ढील घमी जर न करावो॥२॥ तूं सदगुरु खरतर गढ साचो। कोई न जाणें तुमनें काचो । इण संकटमें आलस न करो। दा दा शमणनें दूर हरो॥३॥काई चूक पनी सदगुरु हमसुं । तो जिम कहिस्यो तिणपरी खममुं । पिण हिवणां हठ थे मति तांणो। निहश्चै पो तानो कर जांणो ॥ ४ ॥ आया सहु मिलकर अवां लगे । पाग किम जावां इणे पगे । इणपरि गुरु सुणीयै अरज इसी । हिव सबकों मेलो क
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श्री दादाजी स्तवनसंग्रह. ८०९ रीय खुशी ॥५॥ जिन कुशल सूरीसर जगचावो । अपणायतकर वेगा
आवो। अगला विरुद्ध ते अजुवालो। परघल निज गेरू प्रतिपालो॥६॥ गुणगाम गमालै एगायो। सुणतां सदगुरु वेगो आयो । राजी हुय सग ला रंगरली। जिनचंद्रनी आस्या सफल फली॥७॥इति पदं॥ ॥
॥॥ ताल तुमरी॥॥ ॥ ॥ सदा सहाई कुशलसुरिंद गुरु द्यो दौलत गुरु रायजी (सदा०) • खाई न खुटै खरची न तूटे। दिन २ वधै सवाय जी (स०)॥१॥ स कजा सुत नर सुंदर नारी । सुन्न परिकर सुख दायजी (स०) मित्र स मागम सुजशवधारण । नित प्रति हरख बाहजी (स०) ॥२॥राजा प. रजा पायनमें सहू । गुरु समरण सुपसाय जी (स०) दोखी उशमण नृप जय पमियां । सदगुरु करय सहाय जी (स.)॥३॥ विषमी विरियां सं कट पडियां। समरयां आवै धायजी (स० ) नूखां नोजन तिशियां पाणी। निरवनियां धनदाय जी (स०) ॥ ४ ॥ संघ सकलने द्यो सुख शाता। जिम कीरत जग थाय जी (स.)। थानक थिरता पर घल जोजन । पग पग कुशल सहाय जी (स.) ॥ ५ ॥ अन्नय महा सुखदाई सद गुरु । नवनिधि वंचित थाय जी (स.) । सुमति सवाई नितघर संपद। दान विशाल लहायजी ( स० )॥६॥ इति०॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ . ॥ ॥ जिन कुशल सुरिंद गुरु सदा नमो (जि.)॥ सुख संपति रि घि सिधि सब हाजर । देश देशांतर कई नमो॥ जि० ॥१॥ वाट घाट अरु विषमी विरयां । विघन वुराई दूर गमो (जि०)॥२॥ अह निशि नां म मंत्र नरधारो। सुगुरुचरण चित रमो रमो (जि.)॥३॥ इक मन ध्या वो वंचित पावो । विपत व्यथा सब दमो दमो (जि.)॥४॥ अन्नय महा सुख संपति पावो । सुथिर थानक थिति जमो जमो। (जि०॥५॥ इति
॥ ॥ पुनः॥ ॥ - उत्रपती थारै पायनमें जी सुर नर सारे सेव । ज्योति थांरीज
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रत्नसागर.
ग जागती जी। पुनियामें परतिख देव ॥१॥ हुँ तो मोहि रह्यो जी मां रा राज । दादरे दरवार (हुं० ) केशर अंबर केवमो जी । कस्तूरी करपूर । चंपो चंदन राय चंबली । क्ति करूं नरपूर (हुं० ) ॥२॥ पांगुलियां ने पाव समापै। आंधलीयांने आंख । रूपहीणानें रूप देवै दादो। पंख ही णाने पांख (९०) ॥ ३ ॥ चंदपाटोधर साहिबो जी । श्री जिनकुशल सूरिंद । आठ पोहर थाने लगै जी । रंग घणे राजिंद (हुं० )॥४॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ .. . ॥ ॥ सदगुरु जी सुणो मोरी अरजी (स०) पहिली काम कीये बहु तेरे। अपणा विरुद विचारी । पल पल चूक परी सदगुरु जी। में मुत लबका गरजी॥ (स० )॥१॥ध्यांन तुमारो कबहु न ध्यायो । पूजा क री नही तेरी । तोई सेवकना बंजित पूरया। ही थांरी मरजी॥(स०)॥२॥ निश्चै सेती तुम गुण गावै । तुरत कटत मुख वेमी । नक्त नधार कहावत जगमें । ताहै करत हुं अरजी (स० )॥३॥और देव कुं में नहीं ध्यान शरण ग्रहीमें तेरी । दूर थकी में नेटण आयो। विपत दिशा सब तरजी॥ (स.)॥ ४॥ कुशल गुरूका में हूं सेवक । लोक जांणें सब कोई। तमा रतनकी वीनती सुणकै । दरशण दीयो सदगुरु जी ॥ (स० )॥५॥इति
॥॥होरीकी चालमें ॥४॥ ॥ ॥ होरी खेलो नेमसैं धाय २ ( इस चालमें)॥ ॥ ॥ सदगुरुके चरण चित लाय लाय । जिनदत्त सूरिंद गुरु करोरे सहाय । ( सद०) बावन वीर अनैं बलि चौसठ । जोगणि वसकीनी हर्ष लाय । विद्या पुस्तक सोवन अदर । थांजो वज्र विदार पाय (सद०)। ॥१॥ मुलतांनमें पंच पीर महाबल । पंच नदी सादी चित्तलाय । इत्या दिक बहु परचा पूरक । गुरु समरयां सब उक्ख जाय (सद०) ॥२॥ गुरुके नामसें अमसिधि नव निधि । गुरु गुण गावो सबही धाय । श्रीजिन शोनाग्य सूरि सुगुरु पर । महिर करो गुरु सुःख दाय (सद)॥३॥
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श्री दादाजी स्तवनमाला.
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॥ * ॥ नेम श्यामसें कहियो मोरी ( इस चा० )
॥
॥ गुरु पूज रचो रे सुग्यानी । जली हीयै नक्ति जरानी (गुरु० ) श्री जिन कुशल सूरीसर साहिब। खरतर गछ राजानी । देश देश में थानक गुरुका। सोना जग पहिचानी । सदा रवि तेज समांनी ( गु० ) ॥ १ ॥ के शर चंदन मृगमद जेजी | चरणांरी पूजरचांनी। धूप दीप वलि प्रागल ढोवी । बहुविध पुष्प चढानी | जला फल जेट धरांनी (गुरु० ) ॥ २ ॥ वाट घाटमैं परचा पूरक | हाजर होत सहानी । श्री जिन शौभाग्य सूरिके साहिब । Pitaa का रानी । सदा गुरु महिर लखानी (गुरु० ) ॥ ३ ॥ इति पदम् ॥ ॥ * ॥ राग प्रजाती ॥ ॥
॥ * ॥ कैसे कैसे अवसर में गुरु राखी लाज हमारी । ( कैसे ० ) मो कुँ सबल नरोसा तेरा | चंदसूरि पटधारी । ( कै० ) ॥ १ ॥ तुम विन और न कोई मेरे । या जगमें हित कारी । मेरा जीवन हाथ तुमारे। देखो आप विचारी | ( कै० ) ॥ २ ॥ आगे तो केई वेर हमारी । चिंता दूर निवारी | ant विरियां नूल मती जावो । सदगुरु परनपगारी ( कै० ) || ३ || बकै आपला गुजरकी । रखीयै गुरु जशधारी । मेरै कुशल सूरिंद गुरु तेरा ! वा नरोसा जारी (कै० ) ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ राग प्रजाती ॥ ॥
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॥ * ॥ श्री जिन कुशल सूरीसर साहिब । तुमहो पर नपगारी (श्री जि० ) । खरतर ग नायक गुणजायक। जिन चंद्रसूरि पटधारी (श्री० ) ॥ १ ॥ संत उधारण सुजश वधारण । नीम अंजन प्रति नारी । नाम तु मारो कुशल करण जग । वारी जानं वार हजारी ( श्री० ) ॥ २ ॥ जगव छल तुमही हो जगत्गुरु । करुणानिधि करतारी । कहै जिनचंद मेरेहो सदगुरु | हम है शरण तुमारी (श्री० ) ॥ ३ ॥ ॥
॥ * ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ * ॥ श्री गणधर गुरु कुशलसूरिंद के । चरण कमल परिवारी । ( श्री० ) केशर चंदन प्रक्त कुंकुम । जलभर कंचन जारी । देवक प्रागे
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मंगत दीपक निकै चित्त इति पदम् ॥ विध लिहारी (श्री० ॥ ॥ रेखताश दित होत है अमले बाजे
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रत्नसागर. मंगल दीपक । फूल धरूं फूल वारी । (श्री) ॥१॥ऐसी नांति करूं विध पूजा । आनकै चित्त इकतारी । राज कहत मेरे परम गुरूकी। बेर बेर बलिहारी (श्री० )॥२॥ इति पदम् ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ रेखता॥ ॥ ॥ ॥ कुशल गुरू देखकै. दरसन । मेरा दिल होत है परसन । जग तमें या समो कोई । न देखा नयननर जोई ॥१॥ विरुद नूमंमलै गजै फरसतां पाप सहु लाजै। पूजतां संपदा पावै । अचिंती लढि घरावै ॥२॥ इकै मुख गुण कहुं केता। मुमै बिज्ञान नही एता । लालचंदकी अरज सुन लीजै । चरण की सरण मोहि दीजै ॥३॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॥ (राग कहरवो)॥ ॥ ॥ ॥ कुशल गुरु दरशण दीजै हो (कु०) खरतर गबपति कुशल सूरिंद गुरु । मुझपर महिर धरीजै हो (कु० ) ॥१॥ पतित नवारण विरुद तुह्मारो। इतनी अरज सुणीजै हो (कु० ) ॥२॥ आधि व्याधि अरु दो खी शमण । ए सब दूर हरीजै हो (कु० ) ॥३॥ खेम रतन सेवक कुं निस दिन । सदगुरु सानिध कीजै हो (कु०)॥४॥इति पदम् ॥ * ॥
|| ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ वंशी हमारी दीजै (इस चालमें ) पूजो नजारे नाई। गुरु म हिमा योत सवाई (पू०) । मृगमद केशर चंदन अरचो । सुंदर पुष्प च ढाई (पू०)॥२॥ नविक जीव मिल गुरु गुण गावे । वाकै सदगुरु हो त सहाई । (पू०)॥४॥ श्री जिन सौनाग्य सूरि सुगुरु मेरे निशि दिन हर्ष बधाई (पू.)॥५॥इति पदम् ॥१॥
॥ ॥
॥ ॥ (ढाल )॥ मालण ल्यावै फूलमा (ए चाल )॥ ॥.. ॥ॐ ॥ हुं तो अरज करुं करजोमनैं जी । ह्मांरी अरज सुणो महारा ज। (सदगुरु) विरुद घणा राजराजी। सूरि सकल सिरताज ( स०) (सुनिजर जोय जो साहिबा)। थारे रावल राणा राजवीजी । थारा पूनिम पूजै पाय (स०)॥१॥ केशर अगरज कुंकुमांजी। कांई मृगमद रही म
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गुरु किंगमिगे जागानेर ॥ (सदगु० समाजली गुरु मेस्तै ,
श्री दादाजी लावणी, बधाई, देशनासंग्रह. ८१३ हिकाय (स० ) (सुनिजर जोय जो साहिबा)॥२॥थां रै घुमलारै आ गल घूघराजी । ढुलत चमर गजढाल (स.) कारण सेवै कामनी जी । कांई निरख करै जी निहाल (स० ) ( सुनिजर०)॥३॥ थांरी गावी गेम थापना जी। कांई नदयापुर आंबर (स०) महिमा जली गुरु मेमतै जी कांई सालूम वाली सांगानेर ॥ (सदगु० मु०)॥४॥थारी ज्योति घणी गुरु फिगमिगै जी। कांई वधती गढ वीकाण (स०) आशा पूरण आव ज्यो। थेतो देरावररा दीवांण । (स० सु०)॥५॥ मारी वीनतमी नलै मानिज्योजी । कांई दादाजी दीन दयाल (स० ) कुशल सदा कविराजरै । कांई पाटोधर प्रतिपाल ॥ (स० सु०)॥६॥ इति पदम् ॥ ॥ॐ॥
॥॥ (लावणीकी चालमें)॥ ॥ ॥ ॥ सदगुरुजी झांरा सरणे आयां की लज्या राखज्यो (स.) पतित नधारण विरुद सुणीनें । आयो तुमारै पास । अव मनवंगित पूरो माह रा। ए हीज दिलकी आश जी ॥ (स०)॥१॥ काम क्रोध मद लोलतजी ने। तज दियो सब संसार । नवपदको इक ध्यान धरीने । पाया सहु गुण पार जी॥ ( स०)॥२॥देश देशमें धुंन विराजै। परचा जग विवात । इण कलु मां है सुरतरु सरिखा । प्रगट रह्या साख्यात जी॥ (स.)॥३॥ चिंतामणि और कामधेनु सम । माहरै तुंहीज देव । आण धरं शिर ताहरी (शिरै ) करूं तुमारी सेवजी ॥ (स०)॥४॥ मात पिता बंधव तुं जगमें। हितकारी गुरुराय । राजा राणा सहु जग मां है । सेवै तुमरा पाय जी ॥ (स०)॥५॥आज गुरु तुम चरण पसायें । सीधा वंरित काज । लक्ष्मी प्रधान तुमारा दरशण । मोहन गुणका राजजी॥ (स० )॥ ६ ॥ इति ॥
॥ ॥ वधाई (राग कहरवो)॥ ॥ ॥ * ॥ आजकी घडी मां रै हरष बधाई। गुरु दरशण पायो सुखदाई (आ०) ॥१॥ गुरु जग नायक बंबित दायक । गुण गण लंकृत सहु मन जाई॥ (आ० )॥२॥ नत्तम धर्म प्रनाव करीनें । जैनी कुलकी रीत देखाई॥ (आ०)॥३॥ गुरु परतद सहु संघ सुखदायक । देश देशमें प्रगट रहाई ॥ (आ०)॥४॥धन दिन आज सफल थयो माहरै । सुर .
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रत्नसागर.
तरु सम मिलियो फलदाई ॥ (आ.)॥५॥ बंबित पूरण संकट चूरण । सहु नवि मात पिता बरदाई ॥ (आ०) ॥६॥ कलिकत्तापुर मंमन साहि ब। कुशल करो मोहन गुणदाई ॥(आ०)॥७॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॥ अथ देशना वधावा संग्रह | ॥ ॥ ॥ वीरजीदीये देशनारे। त्रिनुवन जन हितकाज । परषद वारने आगलेरे । जगजीवन हितकाज ॥वी०॥१॥प्रनू मुख पद्म मनोहरूरे। जि हां वांणी मकरंद । नव्यमधुरतो नावथी रे। पांनकरै आनंद ॥ वी० २०२।। अजर पणुं जगसंपजैरे । अमृतध्यान पसाय । प्रजू वचनामृत पानथीरे । अ जर अमर पद थाय ॥ वी० २०३॥ मधुर पणे मनमोहनीरे । अनुपम वाणि नदार । सांगले नव्यलहै सहीरे । जिन परनाव विचार ॥ वी० २०४ ॥ जिहां षद्रव्य विचारणारे । नय निक्षेप अनंग । चोविह धर्म प्ररूपणारे। स तनंगी अतिचंग ॥ वी० २२५॥शासननायक जिन वरूरे । अनुपम अमृत धार। जलधरनी पर वरशतारे। विचातिक हितकार। वी० २०६॥ श्रीजिन लान पसायथीरे। जिन आतम हितजाण । वाचक अमृत धर्मनोरे । शीश जणे कल्याण ॥ वी० २०७॥ इति देशना ॥॥ ॥ॐ॥
॥॥ पुनः देशना लि०॥॥ ॥8॥ गुणनिधि श्री जिनचंद मुणिंदा। मुखसोहै पूनमचंदा। मोह्या सब सुरनरवृंदा ॥१॥ सुगुरु ह्मारा देशना हिवदीजै। थारी देशना सुण मनरी । मु०॥ दिनकर परकास सवायो । जूमंगल ऊपर गयो । कमलादि सकल मन नायो।। सु०॥२॥ वेलान्ल देव गंधार । वलि भैरव राग मकार । गायन गावै सुखकार ॥ सु० ॥३॥ पंचसबद गहिर ध्वनि गाजै । जिनवर घर कालर वाजै। सहु सऊथया धर्म काजै॥ सु० ॥४॥हिव बहिला पा ट पधारो। श्री संघना कारज सारो । मधुरै स्वर वचन नचारो॥ सु० ॥ , ५॥ सुण वीनती वचन विशेष । गुरु आपे धर्म उपदेश । टालो नविकोमि कलेश ॥ सु० ॥ सदगुरुनी मीठी वाणी । उपदेश सुणो विमाणी। सुण तां मन अतिहि मुहाणी ॥सु०॥ ७॥ गुरुमतपौ ज्युं शशि सूर । दिन २ प्रति
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वधावा गुंहली संग्रह. वधतै बूर । हरो संघ सकन पुःखदूर ॥ सु० ८॥गोरीमिल मंगल गावै । जर मोत्यांथाल वधावै । वा लावण्य कमल सुख पावै ॥ सु०॥९॥8) इति देशना॥ ॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥ अथ वधावो॥॥ ॥ ॥ मृगापुत्र गोखै रतन जडावहो (ए चाल)॥॥
श्री जिनचंद सूरीसरू । सुगुरु ह्मांरा । श्री खरतर गढ रायहो। श्री . जिनलाल पाटो धरू। सुगुरुह्मारा। दिनर सोन सवायहो॥१॥मारासहिजसो जागी। मांरा सुन गुणरागी । ह्मांराहितधरू । सुगुरु मारा देशनाद्यो मनरंग हो। संघ सहु नडक थयो ।मु०॥ सुणवा अमृत वाणहो । बहिला बंबित पूरहो। सुगु०॥थेगे अवसर जांणहो ।शामांरा० ॥ सूर किरण धर संचरया मु०॥विकस्या कमल कलापहो। राग विनास प्रमुख तणा ॥ सुगु०॥हो य रह्या आलापहो झारा० ॥३॥ पंच सबद कालरतणा ॥ सु०॥ में गलनाद नच्चारहो। इम बहु विध नू मंमलै॥ सु०॥ वरत्या जय २ कार हो॥ मारा ॥४॥ संघसकल जगते करी। सु० ॥ जोवे थांरी वाटहो । नीं वे पधारो गढ पति ॥ सु०॥ द्यो दरसण गहगाटहो ॥ मां ॥ ५ ॥ तिण अवसर सिंघासणें ॥ सु०॥ पाव धारै नलसंतहो । जल धरज्युं गहरैस्वरै। सु० बावै सुत्र सिधांतहो ॥ मां० ॥ ६ ॥ बहुनवियणं प्रति बूझवै ॥ सु० बयणसुधारस योग हो। नत्तम धरम प्रकाशता ॥ सु०॥ टालै नव इख नोग हो॥ मा० ॥७॥तेज तरुणी जिम दिन मणी ॥ सु०॥ गुण उत्तीस निवा शहो । मोहन मुद्रा तुम तणी ॥ सु०॥ निरख्यांमन नलासहो ॥ मां ॥८॥ थे चिर जीवो गह पति ॥ सु० ॥राज करो इक आंणहो । इम बालै मुनि सुधसदा ॥ सु०॥ वाणी दमा कल्याणहो। मां० ॥९॥॥ ॥ इति वधावो॥ ॥
॥ ॥ .. ॥ पुनः देशना॥॥
जात्रा निनाणू करीये ए चाल ॥ ॥ , ॥ ॥ एहवा सदगुरु वांदीयै। नविकजन (एहवा० ) आपतरै अव रनकुंतारै । शरण तिहारी गहीयै ॥१॥ जवि०॥ जिमसारथ पति साथी
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रत्नसागर.
जनकुं। वंटित देशै बहीयै ॥२ ॥ नवि० तिम सदगुरु अमृत उपदेशे। लहै नविक सुख कहीये ॥ ३ ॥ नविक० ॥ गोपसमा गुरु गुण नित धा
। राखै गोजन महीये॥वि०॥ ४ ॥ वलिनिर्यामक नेपमधारै । जिम नावि क नौ तरीयै ॥५॥ न०॥ एक असंजम दोयबिधि बंधन । त्रिविध दम प रिहरीये॥ नवि० ॥६ ॥ च्यार कषाय निवारक तारक । पंच महाव्रत ध रीय ॥ न० ॥७ ॥ षट्काय रक्क महा जय जीपक । अशरण शरण कहीजियै ॥०॥८॥ एहवा सदगुरु नी बलिहारी। शरण गृही निसतरी यै ॥ नवि०॥९॥ गौतमस्वामि समा मुनि नत्तम। सर्व जीव सम धरियै। न वि०॥ १०॥ हृदयकमल नितप्रति राखीजै । आनंद शिवपद लहीयै ॥ न वि० ए०॥ ११॥ इति देशना ॥१॥
॥ * ॥ अथ वधावो लिख्यते॥8॥ ॥ ॥ नवि तुझे वंदोरे शीतल जिन पतीरे ए चाल ॥७॥ ... ॥ ॥ सुखकर स्वामी श्री तीर्थ करूरे। वरधमान जिनराज। दरशण जेहनोरे दरपण ज्युं दीपैरे।शोनत तेज समाज । (नवि जन वंदोरे जावै ग व पतीरे)॥१॥ तसु पट राजैरे सुधरम गण धरूरे। ज्ञाता प्रादश अंग जंबू स्वामीरे शिष्य सोहामणोरे। चवद पूरब धरचंग ॥२॥ नवि०॥प्र जव सज्यं नव जगमें परगमारे । श्री जशोनद्र मुणिंद । श्री संनूतवि जय नद्रबाहुजीरे। श्रीथूलनद्र दिणंद ॥३॥ नवि०॥ एम अनुक्रम दश पूर व धरूरे । हुवा वयर मुणीस । श्री जिनमत दीपायो नूतलेरे । सुर नर ना मत सीस ॥४॥ नवि० ॥ तास परंपर चंद्रकुले नलारे । श्री कोटिक ग ण धार । श्री नद्योनत सूरि सुहामणारे । वयरीसाख मकार ॥५॥ न वि०॥ वरधमांन परमुख सिख्य जेहनारे। चार अशी परमाण । गड चौ राशी प्रगट्या त्यांथकीरे। जांणे चतुर सुजाण ॥६॥ नवि०॥ ताससीस जिनेश्वर सूरिजीरे । पुर्खन राय समद । खरतर विरुद लह्यो ते रूवमोरे । म ठपति जीतप्रतन ॥७॥ नवि०॥ नवअंगी वृत्ति कारक दीपतारे । श्री अनय देव सूरि राय । श्री जिनबल्लन जिनदत्त गढ़पतीरे । श्री जिन कुशल अमाय ॥८॥ वि०॥ परम प्रभावक इण गढमें थयारे । आचारि
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देशना, बधावा, गुंहली. ज गुणवंत । शुच समाचारी जगतेहनीरे । सुणि हरखित होय संत ॥९॥ नवि० ॥ शुध परंपरमां थया अनुक्रमें रे । श्री जिनलान सूरीश । सात पटोधर जगमां परगमारे । श्री जिनचंद मुणीश ॥ १० ॥वि०॥ तेज प्रतापे जीत्यो दिनमणीरे । सोम्यपणे निजपत्ति । गंभीर गुण सागर जीतियोरे । सुर सेवै दिन रत्ति ॥११॥ नवि० ॥ स्या दवाद जिन धर्म वखाणतारे । नय निक्षेप विचार । जंगपदारथ अति विस्तारसोंरे । लाखे नवि हितकार ॥ १२ ॥ वि० ॥ ग्यान पूरब क्रि या साधै जलीरे । जिन वाणी अनुसार । एहनें सेवोरे क्युंनूला नमोरे । थाय सफल अवतार ॥१३॥ नवि०॥ सुरतरु गंमी बांवल आदरैरे। कोइ नर मूढ गिमार । ए नेखाणो साचो मत करोरे। लहि एहवो गणधार ॥१४॥ प्रवि०॥नामधारक आचारजने घणारे । पंचम काल मकार । पिण इणसरिखो जगमा को नहीरे । स्व पर तारण हार ॥१५॥वि०॥ वाचक लावण्य कमल पसायथीरे । कमल सुंदरनी एवांण । जे मानसी ते सुख नित पांमसीरे। पातिकनी करि हांण ॥ १६ ॥ नवि०॥ इति वधावो॥ ॥॥
॥ ॥ पुनः वधावो॥ * ॥ ॥॥ श्रावण पावस कलश्यो (ए चाल )॥ ॥ ॥ ॥ मोतियमे मेहवरसीयो सखि । आजहुवो आणंद । पूजपधारया विहरता । नामें शौजाग्य सूरिंदरे। जिनहर्ख सूरिंदनो नंदरे । सदगुरु सुरत स्नो कंदरे । मुखसोहै पूनमचंदरे ॥ सखि मोतीडै मेह° ॥१॥दांति गु 0 करी सोनता। सखि पंच महाव्रत धार । वर उत्तीस गुण सदा । विचरै जे निरतीचाररे। रशीया जे पर नपगाररे । नपशम रसना नंमाररे। पालै पंचा चाररे ॥ सखी मोती० ॥२॥ मेघतणी पर गाजता । सखिमीठी जेहनी वांण । आपतरै परतारता । गुण गण रतनारी खाणरे । सहु आगमना जे जाणरे। प्रतपै जिम नलहल नांगरे । जेहनो अतिशय विन्नाणरे ॥ सखिमो० ॥३॥ परतिख सुरतरु सारसा । सखि इण पंचम काल । साथे जेहनें शोलता। मु निवर जिम मोतीमालरे । केई थिवरने केई वालरे । वंदीजै तेह त्रिकालरे। सखि मोती० ॥ ४॥ सूरि सकल सिर सेहरो । सखि खरतर गज सिणगार।
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रत्नसागर.
जैन धरम दीपावता । महिमा जेहनी प्रणपाररे । सहु संघतणा सिरदाररे । सखीसुमतितणा जरताररे । जेहनें प्रणमें नरनाररे ॥ सखि ० ॥ ५ ॥ सूत्र अर थ विसतारता । सखि देता धर्मोपदेश । दान शीयल तप जावना । बारै जाव ना सुविशेषरे । द्रव्यादिक अर्थ निशेषरे । गुण अरु पर्याय प्रदेशरे ॥ सखि ०॥ ६ ॥ सुणतां श्रीजिनराजना । सखि अमृत वचन विलास । कृणमे कर्म समूह नो । सखि निश्चै होवै नाशरे । थायै निजग्यान प्रकाशरे । कहे बाल सुगुरु सहवासरे । करतां निजरूप सुभाषरे ॥ सखिमो० ॥ ७ ॥ इति वधावो ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ गुंहली लि० ॥ ॥
॥ ॐ ॥ नणदल विंदलीदे (ए चाल ) ॥ * ॥
॥ * ॥ जिनशाशन जयकारी । जगगुरु गोतम गणधारी रे। सहीयांमुंह ली करो । गुंहजी करो गुरुसंगे । श्रुत नगति तर्फे नवरंगेरे ॥ सही ॥ विचरंतां मुनिराया । राजग्रही नगरी आयारे ॥ सही ० ॥ १ ॥ पंचेंद्री विषय निवारी नवविध ब्रह्मव्रत धारीरे ॥ सही ० ।। च्यार कषाय कुं टाले। पंचमहाव्रत सूधा पालैरे ॥ सही ० ॥ २ ॥ सेवै पंचाचार | धरै पंचसुमति मनुहाररे ॥ सही ० ॥ त्रिगुप्ती बलि बाजै । इम बत्रीश गुणें गुरुराजैरे || सही ० || ३ || चरण करण गुणसंगी। शुद्धतम अनुभव रंगी रे || सही ० ॥ उतसर्गने अपवादी । वहु नयगम जंग प्रवादीरे ॥ सही ० ॥ ४ ॥ मोक्ष मारग उपदेशी । धरे ध रम ध्यान शुनलेसी रे ॥ सही ० ॥ २ ॥ रत्नत्रय अभ्यासी । जविजन चि तकमल विकाशी रे ॥ सही ० ॥ ५ ॥ श्रेणिक नरपति आवै । गणधर वंदन शुभ जावैहे ॥ स० ॥ चेलणा स्वस्तिक पूरै । मोहतिमर नरमनें चूरैरे ॥ सही० ॥ ६ ॥ निसुणी गुरु मुख वांणी । समकित निरमल करें शाणी रे ॥ स० ॥ श्रुत सेवा जेकरस्ये । तेकीर्त्तिसागर पद वरस्यै रे || सही ० ॥ इति ॥ ॥ * ॥ अथ मंगल वधावो ॥ ॥
॥ ॐ ॥ पहिलुंए मंगल जिनतणं । नाम सोहामणोए । वीजुंए मंगल सिधनुं । ध्यानर लियामणोए ॥ त्रीजुं ए मंगल जिनवरे धर्मजेदाखियोए । जिहां सुदेव सुध गुरुतणो । मर्मवनि जाषियोए ॥ १ ॥ चौथोए मंगल साधुनो नामसंनारियैए । पंच महाव्रत पालता चित्त अवधारियैए । प्रति
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मंगल पूर्णकलश वधावो. जलयात्रा. ८१९ अमोलिक गुण रयणना जेहने आगरूए । सूरि उत्तीस गुण सोहता कामित सुरतरूए ॥२॥जाणुंए श्रीपुज्य आवैए । कुमति मद वारताए । देशना जल धर वरसता नविक मनगरताए । सोवन रतननें फूलडे । मोतीवधाम णाए। कीजिये प्रगति बहु नावसुं लीजिय नामणाए ॥३॥ पाठक पंमित परिवरया । शासन सोहताए । चौविह संघ गुण संघना जविक मन मोहताए । आजवहनी मुझ आंगणे, अमीयमेह बूठडाए । सासन देवी चक्केसरी आजमुक तूठडीए ॥ ४॥ मनह मनोरथ सविफल्पा । मंगल सब मिल्याए। पुरित दोहग फुःख आपदा, दोहलिम सब टल्याए। चिनें सिद्धि नवनिधिसुं, सहजसुख आवियाए । सुरतरू सुरमणी मुरगवी अम्हघरि आवियाए ॥५॥ सेठेज आबू गिरनारने समेत शिखरवरूए । अचल अष्टापद पंचए तीरथ सुखकरूए । ग्यान विमल वरदर्शन चारित्र अनुसरोए नितर रंगवधामणा, नवजल निधितरोए ॥इति प्रथम मंगल वधावो॥४॥ ती . ॥ ॥ अथ पूर्णकलसस्थापना मंगल ||2||
॥ ॥ धरम नबवसमें जैन पदकारणें । नत्तम मंगल आचरैए । नाव मंगल तिहादेव अरिहंत प्रनु । जेहथी परम मंगल वरैए । तेहना नामने जानहुँ नामणे। खिण २ हर्ख समरण करैए। पंच कल्याणके जिमसुरपतिकरै। तिमजिन नक्ति नविश्रादरैए ॥१॥नाव मंगल तणी पुष्टता कारणे। द्रव्य मंगल नला कीजियए । तिहांगुण पूर्णता इवता नविकजन । कुन थिर पूरण लीजियए । पदम आसनगव्यो पदम उठव्यो मंत्र पवित्रथी नितजपै ए। जिनवरजीमणी दिशि हरख नरहीयमै । पूरण कलसने थापियैए ॥ २॥ माहरानाथनें परम मंगल होज्यो मंगल संघ चौविह नणेए । मंगलतीर्थनें मंगल चैत्यनें मंगल तेह करता नणीए। जैनशाशन तणो हरख मंगलकरै। तेण आनंद अति ऊपजैए । चवन अवसरसमें माताना गर्नमें। इंद्रनें हर्खजे संपजैए ॥३॥तेम प्रासादनी थापना अवसरै । कुंजथापनसमें हरखियेए । जेम संसारना कारज कारणें । लोकसंसार मंगल करैए । परम आनंद धर धन्यता मानता। गीत मंगल धुरि नच्चरैए । देवता देवनें मंगल कीजिये देवचंदह पद अनुसरैए ॥४॥इति पूर्णकलसस्थापना मंगल ॥ ...
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रत्नसागर. ..॥ ॥ अथ चैत्यप्रतिष्टा मंगल ॥ ॥ ॥ हिवें प्रतिष्टा कारणेए । पूरब सनमुख सारतो। (वेदिका मुन्न रचीए) दोढहाथ नन्नत वलीए । पूरित वस्तु नदारतो ॥ १॥ पंचस्वस्तिक श्रीफल वोए । पंचरतन नूपीठतो॥०॥ अष्टसुगंध विलेपियोए करिये धूपनकि तो॥ २॥ बारे आंगुलमां ग्रंथ नहींए । नन्नत सरल नत्तंगतो॥०॥ चनविदिसि चनवंसनेंए । थाये मन नारंगतो॥ वे० ३॥ वंशपात्रमा जुहार काए । चनवंसें सात साततो। वे० ॥ समोसरणनें प्रथम समेंए । पीठ रचे सुरराजतो॥ वे० ४॥ तिम इहां सुन महुरत दिनेए । नृमि सुद्ध महा काजतो॥०॥ हिवे जललेवा कारणेए । थयो नजमाल पुन्यवंततो।। (जलजात्रा जणीए)॥ हयवर सिणगारयाघणाए । मयगल मद मल पंततो। वे०॥ देवनंदा जिमवीरनेए । वृखन्न रथ कस्या सऊतो। पंचम अंगे वरणव्या ए । तिम इहां स्थगण गऊतो ॥ ज० ॥ ७॥ नेरि जुगल सरणाश्योए । ढोल निसाण वाजिवतो। ज०॥ संघचतुर्विध बहु मिल्याए । ध्वजलहि कंत पवित्रतो॥ ज०॥८॥ सूहवगीत मंगल न0ए । नरनारीना थोकतो ॥ ज०॥ प्रसन्न करी जल देवताए । मंत्र सनाथ सलोकतो ॥ ज० ९॥ सोल सिणगारे सोनतीए । रुचवंती चननारितो ॥ ज० ॥ सजल कलश सिरपर ठवीए । आवे जिन दरवारतो॥ ज०॥ १०॥ प्रजुनें जीमणि दिस ठवीए । देई प्रदक्षिणा मानतो॥ज० ॥ संघ सत्कार आमंबरैए । रतनसा हरख प्रमाणतो॥ ज० ११॥ ॥
॥इति प्रतिष्टादिक सुन्नकायोंमें सधव स्त्रीयोंके मंगल गायन वधावा संपूर्णम् ॥ ॥
॥ ॥ ॥ॐ॥अथ जलयात्रा महोउव विधि॥ॐ॥ ॥अहाही महोदव (तथा ) प्रतिष्टा आदिकमें प्रथम दिन । पीठ, वीदे का, पूजनस्थानक साते स्मरण शांति आदि मंत्रादिकसे सुद्ध करै। दीप धूपा दिक करै, चावलोंका स्वस्तिकादि अष्ट मंगल करै, श्रीफल चढावै, तोरण धजा बंधावै । नात्रियांकों मंत्रादिकसे पवित्र किया हुवा जलादिकसें स्नान करायके तिलक करावै । मंत्रा हुवा वस्त्र पहराके मोली कांकण मोरा
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जलयात्रा अंगसुधी मंत्रविधि. बंधाके अंग सुद्धी करावे (पीने) कलमख दह २ स्वाहा ॥ इस मंत्रकों ७ वेर गुणाके चित्त निर्मल करै। पीने आत्म रक्षा करावै ॥ ( यथा ) नक्षी णमो अरिहंताणं पादौरदाः २॥क्षी णमो सिद्धाणं कटिं रक्तः २॥नक्षी णमो आयरियाणं नाजिरतः २॥ शी एमो नवशायाणं हृदयं रक्षः २॥
शी णमो लोएसबसाहूणं ब्रह्मांम रदः २॥ नझी एसो पंचणमुक्कारो शिखां रदः २॥नशी सब पावप्पणासणो आसनं रतः २॥नक्षी मंग लाणंचसबेसि आत्मचा रतः २॥नक्षी पढमहवइ मंगलं परचक्नु रतः२॥ स्वाहा।। परमेष्टी नमस्कारं० इत्यादिकसें आत्म रहा अपनी करै (तथा) स्मात्रीयादिककी करावै, पीछे नवग्रह, दश दिग्पालकी स्थापना करें, वलबाकुलादि चढावै, दूसरे दिन सर्व संघ अलावस्त्र आनूषण धारन करके नानाप्रकारका बाजित्र महोबव इंद्र ध्वजादि पूर्वक लगवानकों रथमें (वा) पालखी आदिकमें अहा जलाश्रयके स्थानक गायन नक्ति करता हुवा जिनशाशनकी नन्नति करता हुवा आवै अंग सुद्धी कराके ज ल कलशा जरावै ॥॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥ * ॥अथ अंग सुद्धी जल पूजन मंत्र विधि॥॥
क्षी अमृतोद्भवे अमृतवर्षणी अमृतं श्रावय २ स्वाहा ॥ इस मंत्रसे ७ वेर दातण स्नान करनेकों जल मंत्रीजै ॥ इति जल मंत्रः॥ ॥
॥ ॥ क्षी यवसेनाधिपतयेनमः ॥ इस मंत्रसें सातवेर मंत्रके दांतण करें॥ इति दांतण मंत्रः॥नधी श्री क्ली कामदेवाविपति ममानीप्सितं पूरय र स्वाहाः इस मंत्रसे ७ वेर पढके मुख धोवे ॥ इति मुख धोवण मंत्रः॥
नक्षी अमले विमले विमलोद्भवे सर्व तीर्थ जलोपमे पांपां वांवां अशुचि शुचिनवामि स्वाहाः॥ इस मंत्रकों सातवेर पढके पूर्व मंत्रित जलसें स्नान करै ॥ इति स्रान मंत्रः॥ ॥नकी आँ को नमः॥ इस मंत्रसें ७वेर मंत्रा हुवा वस्त्र धोती उत्तरासण धारण करै ॥ इति वस्त्र मंत्र ॥ाँ झी को प्रहतेनमः॥इस मंत्रसे ७ वेर केशर चंदनादिक मंत्र के तिलक करै ।। 1080शी अवतर २ सोमे २ कुरु २ वल्गु २ निवल्गु २ सुमणे सोमणसे महु महुरे 3 कवलिकः कः स्वाहाः ॥ इस मंत्रसें मेंटल मोली
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૮રર
रत्नसागर. ७ वेर मंत्रके मंगल पूजामें ( तथा ) कलसकै बांधे। आपके ( तथा) स्नात्रियांक कांकणमोरा मोली इसी मंत्रसें मंत्रके बांधे ॥ इति कांकण मोरा मोली मंत्रः॥॥
॥ ॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥क्षी अहं चूर्जुवः स्वधायस्वाहाः ॥ इस मंत्रसें फूल बास चूर्ण मंत्री नूमी पवित्रकरै जल केशर पुष्पसें आबोटनकरै ॥ पीछे ॥ नगवं तकी स्नात्रपूजा कियेवाद जलस्थानकपर आयके मंत्र पढके अष्टद्रव्यसें पूजनकरै अथ जलपूजनमंत्रः॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ .॥॥ीरोदधि स्वयंनूश्च । सरे पद्म महाद्रहे । शीता शीतोदका कुमे। जलस्मिन् संनिधिं कुरु ॥१॥ गंगे चलमुने चेव । गोदावरी सरस्वती । का बेरी नर्मदासिंधोः । जलेस्मिन् संनिधिं कुरु ॥२॥
॥ ॥ ॥ ॥ क्षी अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षणी अमृतं श्रावय २ में से । क्ली क्ली ब्लुं ब्लू. माँ जी द्राँ द्री द्रावय २शी जलदेवी देवान अत्राग २ स्वाहा ॥ इस मंत्रसें अंकुश मुद्रासें जल निकालके धोवा सुच किया हुवा कलस नरै । पीछे इस मंत्रसें ३बेर कूर्म मुद्रासें जलस्थापन करै ॥ ॥ॐ॥ ॥॥ आंझी कों जलदेवी पूजावलिंगृाह २ स्वाहा ॥ॐ॥
नक्षी क्ली ब्लु कहता हुवा जलं समर्पयामि चंदनं पुष्पं धूपं . दीपं अक्तं नैवद्यं फलं, वस्त्रं समर्पयामि ॥ इसी तरै अष्टद्रव्य चढावै जल कलस पूजाकरे, मुख परनालेर धरके लाल हरा वस्त्र मोलीसें बांधे। फेर सधवस्त्रियांके मस्तक पर देके वाजागाजा बमा महो-जल लेनेकों आया था नसी मुजब सर्व संघ बसे महोदवसें अगाडी पंचामृतधारा कोरा बलबा कुल देवता हुवा मंदिरजीमें आवै ॥ नगवानके जीमणीदिशितरफ कलस थापनकरै । अधिष्टायक खेत्रपालजीकी पूजा करावै । अष्टद्रव्यचढावै ॥अथ क्षेत्रपाल मंत्रः॥ * ॥
॥ ॥ ॥ * ॥ नक्षी का ही हुँ हैं दों का क्षेत्रपालायनमः स्वाहाः ॥ गंधा कृत जल पुष्प तैलसिंदूरैः दीप धूपोथै पूजयामि ॥ निमकतारण आरती प्रमुखकरके चैत्यवंदन संपूर्ण करै याचकांनंदानदेवै ॥ ॥ ॥॥ ॥ॐ॥इति जलयात्रा संखेप विधिः॥॥
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परममंगल श्री दादाजीके काव्य सर्वईया ८२३ ॥ * ॥ परममंगल श्री दादाजीके काव्य सवईया॥॥ :
॥ॐ॥दाशानुदाशा इव सर्वदेवाः । यदीय पादाब्ज तले मुठति । मरु स्थली कल्पतरुः सजीया। ज्जुगप्रधानो जिनदत्तसूरिः ॥ १ ॥॥ ॥
॥॥ चिंतामणिः कल्पतर्खराको । कुर्वन्ति जव्याः किमु कामगव्या। प्रसीदतःश्री जिनदत्त सूरेः। सर्वेपदा हस्ति पदे प्रविष्टाः ॥ १ ॥ * ॥
॥ॐ॥नोयोगी न च योगिनी न च नराधीशस्य नो शाकिनी । नो वेत्ताल पिशाच राक्षसगणाः नो रोग शोगो नयं । नो मारी नच विग्रहः प्रत्र तयः प्रीत्या प्रणत्युच्चकैः । यस्ते श्री जिनदत्तसूरि गुरवो नामाकरं ध्यायति ॥
॥॥अथ सवईया लि०॥8॥ ॥ ॥ बावन्न वीर कीयै अप्पणे वस, चौसठ जोगण पाय लगाई। माइण शाइण व्यन्तर खेचर नूतरु प्रेत पिशाच पुलाई । वीज तमक कम क नटक्क अटक्क रहैजु खटक्क न काई। कहै ध्रमसीह लंघे कुणलीह दीय जिनदत्त की एक मुहाई ॥ १ ॥ इति ॥ * ॥ ॥ ॥ - #॥राजै थुन गैर गैर, ऐसो देवनही और, दादौ दादौ नामसें, ज गत्र जस्स गायो है । आपणेही लाव आय, पूजै लक्खलोक पाय, प्यासनकुं रांन मांकि पांणी आन पायो है । वाट घाट शत्रु दाट, हाट पुर पाटणमें दे ह गेह नेहसूं, कुशल वरतायो है । धर्मसीह ध्यान धरे, सेवकां कुशल करे साचो श्री कुशल गुरु नामयुं कहायो है ॥ १ ॥ * ॥
* ॥ कुशल अंग नारंग कुशल वणिजै व्यापारे । कुशल देव देहरै। कुशल घन राजवारे । पुन्य पसायें कुशल कुशल श्रीसंघ नणी जे । वाहण आवै कुशल कुशल घर घर गाईजै । श्री जिनचंद्र सूरि पुहपट्टधर । नाम मंत्र आरति टनै । श्रीजिनकुशल सूरि पाय पूजतां नवनिधान लक्ष्मी मिले ॥१॥
॥*॥ कुशल वमो संसार । कुशल सऊन घर चाहै । कुशलै मश्गल माल । लबिघर कुशल आवै । कुशले घन वरसंत । कुशल धन धन्न रुवन्नो। कुशलै घोमा थट्ट । कुशल पहिरीय सुवन्नो । ए रसो नाम सदगुरु तणो । कुशल जगरलीया मणो । नट्टारक श्री जिनकुशल सूरि नाम ग्रहणे करी। घरघर होत वधावणो॥२॥ॐ ॥ ॥8॥ ॥
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रत्नसागर. ॥अथ खरतर गब शुद्ध समाचारी॥॥ ॥ ॥जो प्रतिपदा १ तिथी कम हो (तो) प्रतिपदा १ का पच ख्खाण व्रत । पिउली अमावाश्या (३०) तिथकों करे। ८ अष्टमी कम हो ( तो ) अष्टमीका व्रत सप्तमी ७ को करै । और ( जो ) १४ चौदस कम हो ( तो )१४ का नपवास । अमावस (वा ) पूनिम को करै (इस का कारण ) यह दोनुं तिथी समान है । ( जेसें ) चौदस वमी तिथ हैं । ( तेसें) अमावस पूनमनी चिरंतन पहीका दिन है । इसी में यह दो दिन वमे है । यह दो दिन में नत्तम नव्यजीव यथाशक्ति पोशह पमिकमणा दि धर्मकृत्य करै । पारणे उत्तर पारणे धर्मका नद्योत करै। ( इहां बिशेष कहते है ) इस समय में जैनी पत्रा प्रसिध्ध नहीं है । मिथ्यात्वी के पत्रो में देखकै सर्ब तिथी गिणनेमें आती है। (और ) इस पत्रैका कुछ प्रमाण नहीं। हर कोई तिथ कम हो जाती है । इसीसें ( जो ) चौदश कम हो (तो) नपवास ( तथा) पक्खी पमिक्कमण ( निस्संदेह ) पूनम १५ ( तथा) अमा वसकै दिन करै ( परंतु ) तेरश चौदश के वितत्थैकों न करै । और जो बेला करै । तथा हरी गेडै (तो) यह दोनुं दिनमानें ॥॥(अब) कोई वेर संवबरी की४चोथ कम हो (तो)पंचमी के दिन, संवबरी पमिकमण करै। (परंतु)ती 'ज़ ३ के दिन कदापि कालै न करै (और) जो चौथ ४ दो होय (तो) पहली
चौथ संवबरी करै । औरनी कोई तिथ दो होय (तो) पहली तिथ मान्यनी कहै । दूसरी लूंम तिथी रही। ( दूशरो यह प्रमाण है ) साठ ६० घडी की अखंड तिथी गेमकै । वमी अध घमीकी ( दूसरी ) तिथी कोण माने (इ हां कोई कहै) अपणे उदय तिथी मानें है। सूर्य ऊगै इहां तक कोई तिथी हो (तोनी) नस दिन नसी तिथ को मान है (इसीसें) जोदूशरी तिथअध घडीलीहो (तो) मानणे में क्या दोष है (इसका उत्तर) हे जव्य जो पहले दिन तीज मानी है (और ) तीजकै दिन चौथ बहुत घडी जुगतैगा। पिण नस दिन तीज मानीजैगा। (इसी तरै) चौथकै दिन सूर्य ऊगै ( इहांत क) घमी अध घडी नी चौथ होगा (तो) चौथ ४ मानीजै गा। (पर)जो तिथी दो होय । नसमें तो पहली तिथ सूर्य उदय अस्त दोनुं में रही (इसीसें)
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. श्री खरतर गंड शुध समाचारी.
१२५ पहली तिथ गेडकै दूशरी तिथ करणा युक्त नहीं। ( और ) कार्तिक माश व? (तो) पहले कार्तिक चौमाशो करै ॥ फाल्गुण वढे (तो) दूसरै फाल्गु पा. चौमाशो करै । आशाढ व ( तो.) दूशरै आशाढ चौमाशो करै । आशा ढ चौमाशै की १४ चौदशसें । पञ्चासे दिने चौथकों संबहरी पर्ब करै । चौथ कम हो (तो) ५ पांचमकै दिन संवबरी करै । श्रावण । भाद्रवो। आसोज । व? (तो) पंचमाशी चौमाशो करै (जो) श्रावण माश वटै (तो) दूशरै, श्रावण शुद ४ को संवबरी करै ( पर ) चौमाशे की चौदशसें पंचास दिन नवंघकै, संबहरी पर्व कदापि कालै न हो, यह कल्पसूत्र जीकै पह ली समाचारीमें प्रसिघ पाठ है, (और) चौमा0 में, श्रावण । लाद्रवो । आशोज । यह तीन माश बढ़े तो पंचमाशी चौमाशो करै । (और) जो माश दोहोय (नसमें) पहला माशका कृष्णपद । (दूशरै माशका शुल्क पर । (ऐसें ) एक माश में जो कल्याणक तिथी हो । नसीका व्रत पञ्चक्खाण करे । बीचका ३० दिन लुंम जाणना । यह तीश दिनमें कल्याणकादि क के ब्रत पच्चक्खाण न हो शकै ( इसीसें ) बिबेकी जीव सब तिथीका वि चार समझकै व्रत पचक्खाण करै (तो) व्रत जंग कनी नहो ॥॥ यह तिथोंका परमाण श्रीहरिजद्र सूरजी महाराजकै किया हुवा । तत्वः तरंगणी ग्रंथमें प्रशिघहै (सो) इहां किंचित् लिखते हैं॥ ॥ ..
॥ ॥ तिहि पमणे पुव तिही । कायबा जुत्त धम्म कोय । चाउदसी विलोवो । पुन्नमिय पक्खि पमिक्कमणं ॥ १ ॥ तत्थेव पोसह विही । कायबा सबगेहि सुह हेऊ । नहु तेरसी कीरई । जह्मा नाणाइणो दोसा ॥ २ ॥ सूरोदय पडियावि । तेरसी हुँति न पक्खियं कुझा । चानम्मासिय करणे । एसबिही देसिन समणा ॥३॥ तिहि बुट्ठीए पुवा । गहिया पमि पुन्न लोग सं जुत्ता । इयरावि माणणिका । परं थोवत्ति तत्तुना ॥४॥॥.. .. ॥ ॥ ( तथा ) ज्योतिषकरंड पाहुमके इदं कथितमस्ती ॥॥ उछि सहिया न अध्मी । तेरसि सहिया न पख्खिया होई । पडिवै सहियान कयावि । इइ नणिया वीयरागेण ॥१॥ अहमि दिनंमि पायं । कायवा अ मीय पाएण । कइयावि सत्तमंमि । नवमी उही न कायबा ॥ २ ॥ पनरस
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रत्नसागर. म्मिय दिवसे । कायब्बं पक्खियं तु पाएण । चानद्दसेवि कश्या । नहु तेरसि सोलसमे कहवि ॥३॥8॥ ॥ॐ॥ ॥१॥
॥ ॥ ( तथा ) श्रावक सामायक करै ( तब ) प्रथम सामायक दम ३ वेर नचरके (पी) इरियावही पमिकमें (क्युंकि) आत्मार्थी आचा र्यों के किये हुए कितनेही ग्रंथमें प्रसिघ पाठ हे ( और ) सामायका धिकारे प्रथम शरियावही पमिकमके (पीने करेमि नंते कहणा । ऐसा पाठ खु खासा कोई ठिकाणे देखने में न आताहै ॥ॐ॥ तथा श्री महाबीर स्वामी का न कल्याणक मान्य करणा चहिये (क्युंकि ) कल्पसूत्रादि अनेक ग्रंथोमें शाखहै (और ) बझे बडे, संबेगी गीतार्थ, खरतर गह, तप गहादिक के आचार्योनें ग्रंथोमें प्रगट पणे न कल्याणक वर्णन कियेहै (जो) श्चर्य कारी संबंध जाणके नहा कल्याणक नमानते हैं (ननोंकों) मिगंबरवत् मालिनाथ स्वामीकांनी स्त्री पणे मानणा न चाहिये (क्युंकि) आश्चर्यकारी संबंध समानत्व है ( दूशरो) न मानणे में अपने ही गुरुवादिककी आग्या लों पन होती है ॥ ॥ (तथा) सर्वे पोषध, अष्टमी, चतुर्दशी, कल्याणकादि पर्व तिथीकों करै (परंतु) सदैव करनेका कथन नही ॥ ॥ (तथा) कल्यसूत्र बाचनामें । नववाचनाको वंधाणनहिं । अधकीनी वाचना करे ॥ * ॥ ( तथा ) आंबिल मां है एक अन्नद्रव्य (दूशरो) नश्न जल द्रव्य, यह दोद्रव्य ग्रहण करनेका कथन है (इसमें) रसनाका लोलुपी पणासें अधिक द्रव्य ग्रहण न करणा चाहिये ॥ ॥ (तथा) तरुणी स्त्री कुं मूल नायकजीकी पूजा करनी प्रमाणीक आचार्यों ने निषेध करीहै (क्युकी) इस कालमें प्रायें स्त्रीयोंमें अविवेकत्व पणा(तथा) अकस्मात्स्त्रीधर्म प्रगटहो नादीख रहाहै॥॥(तथा)श्रावकांने पाणस्सलेवाकापाठ कहणायुक्त नहीं। यहसाधुका पाठहै।*॥(तथा)दिनप्रति एकनपवास पचक्खावै। जो अधिकतप कीश्नाहोय तो अपनें दिलमें धारना रके । परंतु पच्चरकाण नित्यसूर्योदयेक रणा चाहिये॥॥(तथा)जिसधान्यकी दोफामहोय जिसमें चिकणास न होय सो सर्व विदलकी गिण तीमें है । इस विदलधान्यकों गोरस दध्यादिकके साथ लवण नकरना चाहिये ॥8॥ (तथा) मुंवै जायैका सूतक मानणा
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श्री खरतरगच्छ शुसमाचारी
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चाहिये। जिसके घर में सूतक होय । उसी घरको आहार पाणी साधुवर्जन करे (( परंतु ) संपूर्ण कुलगोत्रको सूतक नगिणें ॥ ॥ ( इत्यादि) इहां नाममात्र खरतर गकी समाचारी लिखने में आई है (यद्यपि ) समाचारी ग्रंथ अनेक है ( तथापि ) श्रीसमयसुं दरजी महाराजके बनाया हुवा । समाचारी शतक ग्रंथ है (जिसमें ) पंचांगी सूत्रों का प्रलावा प्रमाणयुक्त | समाचारीका निर्णय किया है (जो) अनेकांती विशेषज्ञ होय सो आत्मार्थी गुरूसे निश्चैकरे | और जे कोई मूंगांमे कोरडू जैसा । एकांती, दृष्टिरागी, अभिमानी, अपने का पूंबा पकमके । धर्मसागर निन्नवकी तरे । खरतर गकों मतपक्ष में कहते है. (और) १२०४ शालमें हुवा लिखते है (सो) साफ अपनी अग्याता (तथा) द्वेष सूचन करते हैं । ग्रंथों में प्रत्यक्ष पणें साबित होता है ( कि ) कोटिक ग चंद्र कुल वयरी शाखा वाले श्री जिनेश्वर सूरजी महाराजे, प्रणहल पुर पट्टणमें। सं१०८०, चैत्यवासियों को शास्त्र विवादसें जीते (इसमें ) पाट एके, दुर्लन राजानें, खरतर विरुद दिया । तबसें खरतर गन प्रशिद्ध हुवा ( तथा ) यही, श्री जिनेश्वर सूरजीके दो शिष्य हुए । श्रीमालगोत्र थाप क. श्रीजिनचंद्र सूरी (तथा) नवांगीवृत्तिकारक श्री अजयदेवसूरिजी हुए (तथा) इनके शिष्य पट्टधारी जिन बहन सूरजी हुए। (तत्पट्टे ) युगप्रधान सवालाख श्रावक प्रतिबोधक, श्री जिनदत्त सूरिजी हुए। इस माफक बहुत ग्रंथोकी प्रशस्तियों में अधिकार है ॥ ॥ 11 11
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॥ * ॥ (इससेती) हो नव्यो मूलतत्व इसकालमें इतनाही है जो तत्व नसमको (तो) अपनी अपनी समाचारी करते जावो ( परंतु ) एकेक की निंदा मतकरो । एक धर्ममें द्वेष मत रक्खो मत करो । श्री नवकार जिन प्रतिमा पूजक सर्व जैनी भाई आपस में एक्यता करके धर्मवृद्धी ( तथा ) उत्कृष्ट ग्यानवृद्धी करते रहो। जिससेती अपने धर्मकी (तथा) अपनें जैनी भाइयोंकी दिन २ वृद्धी होय सदा आनंद होय ॥ ॥ ॥ * ॥ किंबहुना ॥ * ॥
॥४॥
॥
॥ स्वकुल प्रकाशन संक्षिप्त गुर्वावली ॥
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॥ ॐ ॥ शासन के नायक श्रीमहाबीर स्वामी (तत्पट्टे ) २ श्री सुधर्मा
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रत्नसागर. स्वामी (तत्पढे) ३ श्रीजंबू स्वामी, (तत्पहे)।४ श्रीप्रनव स्वामी । ५ श्री सज्यंनव स्वामी । ६ श्रीयशोजद्र स्वामी । ७ श्रीसंजूतिविजय स्वामी । ८मा श्रीनद्रबाहू स्वामी ।९मा श्रीथूलनद्रस्वामी ॥ (तत्पहे) १० मा। श्री आर्यमहागिरी (तत्पढे) ११ मा । लघुभ्राता, श्रीआर्य सुहस्ति सूरी हुए (सो) श्रीबीर नगवानसें, २३५ वरशे, संप्रति राजा (तथा) ऐवंती सु कमालकों प्रतिबोधके धर्मका बहुत नद्योत किया ॥१॥॥ ॥ ॥
॥ (तत्प४)१२श्रीसुस्थित सूरी,१क्रोम सूरी मंत्रका जापकिया, इससे कोटिक गढ प्रशिच हुवा । इसी तरै पट्टानुक्रमें१६में पाटे॥श्री बज्र स्वामी दश पूर्व धर, बमे प्रनावीक, विद्यागामी हुए (इहांसें ) वज्र शाखा प्रवर्तन नई॥ (तथा १८ में पाटे) श्री जिनचंद्र सूरजी । हुए ॥ (इहांसें) चंद्र कुल प्रशिच हुवा । (इसीतरै पट परंपरायें) नगवानसे (३८ में पाटे)श्रीनद्योतन सूरजी हुए। (सो) एक निज शिष्य (अन्य ८३) साधु शिष्योंकों आचा र्य पद देके । चौराशी गठ प्रशिद्ध किये ॥ * ॥ यह ८४ गडके आचार्य बमे प्रमाणीक, अनावीक, धर्मोद्योतक हुए (श्रीग्द्योतनसूरी) पट्टे । बूजी तीर्थ प्रगट कारक, विमल मंत्री प्रतिबोधक, बमे प्रनावीक ( ३९ में पाटे ) श्रीवर्धमान सूरी हुए ॥ ॥ (४० में पाटे) श्रीजिनेश्वर सूरिः हुए ( सो ) अलहण पुर पट्टणमें । पुर्खन राजाकी सजा । चैत्यवासियों को विवाद करके जीते (इस सेती) सं ॥१०८०॥ (खरतर विरुद) पाटणके राजानेंदिया। अतिशयपणे सिघांत मार्गसें सचाहुवा(इससे)खरतरगन प्रसिध हुवा (इहांसे)कोटिक गछ । चंद्रकुल । वज्र शाखा(और)खरतर विरुदका । नवाशिष्योंकों नेद कहने लगा ॥॥ (४१ में पाटे) दिल्लीके बादशाहकों व रदेने वाले । जीवहिंसा गेमाने वाले । श्रीमाल, महतियाण गोत्र, प्रति बोधक । श्रीजिन चंद्र सूरी हुए। (तथा)इनोंके लघु भ्राता(४२ में पाटे) स्थंनणा तीर्थ, नवांगी वृत्ति, प्रगट कर्ता, श्री अजयदेव सूरी हुए, (तत्प है) दशहजार, वागडी श्रावक प्रतिबोधक (४३ में पाटे)श्री जिन वल्लन सूरी हुए ॥ ॥ ४३ ( तत्पढे ४४ में ) महापनावीक, युगप्रधान, चीतोमके मंदर स्थंनसें । विद्याम्नाय पुस्तक प्रगट कारकः । १२ वीर,
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स्वकुल प्रकाशन संक्षिप्त गुर्वावली.
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६४ योगणी, आदि देवी देव्यांकों प्रतिबोधक | ( सवालाख ) रजपूत ब्राह्म पादिकों प्रतिबोध | सावण सुक्खा, गोला, बाजे (आदि) अनेक गोत्र श्रावक कुल स्थापक । सवाक्रोम ीकारजीका जाप करनेवाले, श्रीजिन दत्तसूरजी हुए (सो) आजतक मोटा दादाजीके नामसें । देशावरोमें प्रशिद्ध है || पट्टे ४५ मा । जालस्थल मणिधारक, दिल्ली के पातसाहकों, अनेक चमत्कार देखाके । धर्म उद्योत करनेवाले । श्रीजिनचंद्र सूरजी हुए (जिनोंका ) दिल्ली के नरवजार में दाग हुवा (और) बडा चमत्कार देखके संपूर्ण बादशाहादिक लोक पूजनें मानने लगे। (यह दूशरा दादाजीहुवा ) इहां अनुक्रमे (५० में पाटे ) महा प्रभावीक, श्रीजिन कुशल सूरिजी हुए (सो) आचार्य पद पायके बहुत जिन धर्मका उद्योत करनेवाले हुए (अंतमें) सं । १३८९, फागुणबद प्रभावश दिन, देव लोक गए ( तडुप:: रांत) फागुण सुद १५ सोमवारनें (प्रथम) दरशण संघकों दिया (तिस पीछे ) अनेक गांव, नगरों में क्ति घर संघका नृपगार करनें लगे (इससेती) संघ अपना •नपगारी प्राचार्यकों, इष्टदेव समऊके। सर्व देशगांव नगरों में चरण, स्तंभ, मंदर, स्थापन करके ( दादाजी के नामसे ) अनेक प्रकारसें । पूजन, वंदन करने लगे । सर्व स्थानक दादाजीका नाम प्रशिध हुवा ( आजतक ) सर्व स्थानक प्रत्यक्ष परचा दैनेंवाले, संघकों मालुम होरहे है (ऐसे ) महा नपगारी (यह ), तीशरा दादाजी हुए ॥ १ ॥ ॐ ॥ III
॥ * ॥
॥ ॥ इहां से अनुक्रमें ६९ में पाटे महा प्रभावीक श्री जिन चंद्र सूरजी हुए सो सं । १६१२ जेशजमेर में प्राचार्य पद पायके में बहुत से साधुवों का क्रिया उधार कराके नम्र विहार करनेवाले, दिल्लीका अकबर बादशाहको चमत्कार देखा जीव हिंसा पर्व दिनोंमें बोमाके, प्रमारि वडहो फेरावाले पंचनदी, पंचपीर, मानमद्र, खोडिया खेत्रपालकों साधन करके जीव दया धर्म प्रवर्त्तन करनेवाले, वमे चमत्कारी, ये चोथा दादाजीके नाम से प्रसिद्धये ॥१॥
॥ ॥ ऐसे महा प्रभावीक उत्तम आचार्योंके पाटानुपाटै ( ६५ में ) महोपगारक, तेजवी, श्रीजिन चंद्र सूरजी सूरीश्वर । १७११ प्राचार्य पदधार क हुए ॥ इनोंके दो शिष्य हुए ॥ ॥
॥ * ॥
॥ ॐ ॥
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रत्नसागर. ॥१ प्रथम आचार्यपदधारक ॥२ नपाध्यायपदधारक -
पदृश्रेणीमहाराजनामः॥प्रवरपुज्यश्रेणीनामः॥ ॥६६॥श्रीजिन सुक्ख सूरिः ॥६६॥पुज्य श्रीनदयतिलकजी गणिः ॥६७॥श्रीजिन नक्तिसूरिः ॥६७॥ पुज्य श्रीअमरशीजी गणिः ॥६८॥ श्रीजिन लानसूरिः ॥६८॥पुज्य श्रीलक्ष्मीचंदजी गणिः ॥६९॥ श्रीजिन चंद्रसूरिः ॥६९॥ पुज्य श्रीविजमालजी गणिः ॥७० ॥ श्रीजिन हर्खसूरिः ॥७०॥पुज्य श्रीसुगुणप्रमोदजी गणिः ॥७१॥श्रीजिन शौलाग्यसूरिः ॥७१॥ पुज्य श्रीविद्याविशालजीगणिः ॥७२॥ श्रीजिन हंशसूरिः ॥७२॥ पुज्य महोपाध्याय श्रीलक्ष्मी ॥७३॥श्रीजिनचंद्रसूरजीपट्टे .. प्रधानजी गणिः ॥७४॥श्रीजिन कीर्तिसूरिजी वर्तमान पुज्यादेशेन ॥ ॥ वर्तमान विजय राज्ये ॥१॥ ॥॥॥ तशिष्य मुख्य ॥ ॥
॥ॐ ॥ जैन पाठक श्रीमोहनलाल (अपरनाम ) नपाध्याय श्रीमुक्ति कमलगणीने (अपना शिष्यगण) पं०श्रीजयचंद मुनिः पं० रावतमल्लादि तत्वदीपक मोहन मंमली (तथा) सर्व जैन पाठकगण हितार्थ, श्रीवीकानेर रांघमीका माणक चौकमध्य सतरमा श्रीकुंथुनाथस्वामीका अनुपम नवीन मंदिर सं० १९३१ में वनायके प्रतिष्टा कराइ (तथा) नवीन झानचैत्य जैन लक्ष्मी मोहन शाला नामक वनवायके अपना पूर्वजोंका संचित, सर्व पुस्तक सर्व ज्ञानोपगरणका, जंडार स्थापन किया ॥ फेर झान भंडारकी वृधी के • निमित्त कलकत्ता बंबई में शाखारूप जैन पाठशाला स्थापन करके, रत्नसा
गर दोनाग प्रादि सर्वधर्मकृत्य जैन आचार संग्रहका पुस्तक हजारों उपवाय के प्रशिघ किया ॥ श्रीसशुरूप्रसादात् ॥॥
॥जब लग मेरु अडिग्ग है । जब लग शशि अरसूर। तब लग यहपुस्तक सदा । रह जो गुणनर पूर ॥ * ॥ पोथीप्यारी प्राणथी। गलहियाको हार । वहुत यतनकर राख ज्यो । पोथी सेती प्यार ॥ ऐसी मेरी आशा सफल करजो सही ॥२॥ ॥ ॥॥
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अंत मङ्गलाचरण-
८३१ ॥ ॥अथ स्वकुल प्रकाशणम् ॥ ॥ ॥ ॥ हिव कही माहरो कुल प्रकासुं अहो नवियण तुम सुणो । गु रु गढ कोटिक चंद्रकुल अरु वयरि शाखा चितनयो । गुण गण जिनेसर सूरि गुऊर बिरुद पायो गुणकरी । सोजयन खरतर गढ मोहन प्रगट स हु जवि हित धरी ॥ ॥
॥ ॥ । ॥ ॥ गुरु गब खरतर तेज दीप विक्रमपुर सोहै सही । जिनहंस सूरीसर तणे पद चंदसूरी जिन मही। गणधार लक्ष्मीप्रधान पाठक मोहन मन नलास ए। बहु रत्नसंग्रह कलिकत्ता पुर किया मुंबइ नासए ॥ २ ॥
॥ ॥ रत्नसागर अंत मंगलाचरण ॥१॥ ॥ ॥तीन तत्वकों नमण कर । सेकं सद्गुरु पाय । देवी जगवती सा निधै । बचन अमृत रस थाय ॥१॥ चौरासी लद जोनिमें । जे रह्या जीव अनन्त । मोह मिथ्यात वसे पड्या। पायो पुःख नही अन्त ॥२॥ परम देव परमातमा । चिदानन्द गुणचंग । जव्य जीवके हित जणी । वेद कह्या सह अंग ॥ ३ ॥गणधर गौतम आदि सहु । रचिया अंग अनूप त्रिकरण हुं प्रणमुं सदा। झान आतम गुण जूप ॥ ४ ॥ आचारज ख माय मुनि । नगवन वचन नपेत । नाष्य टीका नियुक्ति कर । प्रगट कीया संकेत ॥५॥ नगवती मुत्र मांहे कह्या । आगमना पंच अंग । सरधै जै
नवि प्राणिया । पामें नित नगरंग ॥ ६ ॥ जैवंता वरतो सदा । सहु जग यमव ज्ञान । पिण नपगारी नव्यकों। ए श्रुतज्ञान प्रधान ॥७॥ष्टकर्म संयोगसें। चित वैठे नही ज्ञान । पिण जाणं सुरतरु समो। ए हीज धर्म प्रधान ॥ ८॥ प्रबल जाग्य संयोगसें । पारश दरसण पाय । पारश फर स्यां लोह सह । गुणकंचन समथाय ॥९॥ मनमोहन पारश मिल्यो । मो हन गुण सुखकंद । मोहनी मूरत देखके । मोहन चित आनंद ॥ १० ॥ पारश प्रनुकेनामसे । सहु संकट मिटजाय । ईतनपद्रव जयटलें । मोहनगुण प्रगटाय ॥११॥ जिन दरशण मुझ मनवस्यो। जे प्रगटै चित आय । कर्मशत्रु दल जीपकै । शिवरमणी वरं जाय ॥१२॥ शिवपुर जोवा कारणे । समकित दृढके हेत । बाल अज्ञ मोहन नणी । रत्नसागर गुण देत ॥ १३ ॥३॥
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, प्रथम ग्राहक नामावली ॥ ॥ रत्नसागर, मोहनगुणमाला प्रथम नाग ॥ तृतीयवर उपाके प्रसिद्ध करते समय, ज्ञानवृधी खाते, प्रथम साहाय्य करनेवाले, धर्मज्ञ ग्राहकोंकी नामावली मान्यसहित प्रकाशित करतेहे ॥ * ॥ : जैन नद्योतक श्री शीतल जिनेश्वर नवीन चैत्य कारापित (तथा) श्रीशिखर गिरी तीर्थराज पर चैत्य महिमा दया धर्म विस्तारक (तथा ) श्री मकशी पार्श्वनाथ तीर्थकी शोननीक व्यवस्था कारक, नत्कृष्ट नवपद नक्ति धारक। सर्व जैन मान्य, दूसरी जैन स्वेताम्बर कोन्फ्रेन्स (बंबई ) के प्रमुख, श्रीमान् बाइसरायके मुकीम जोहरी, खरतर गढी सुश्रावक २५ राय श्रीवद्रीदासजी वहापुर
रवासी कलकत्ता १५. बाबू श्रीवुधसिंहजी विजयसिंहजी उधेमिया अजीमगंज बाबू श्रीराय गणपतिसिंहजी वहापुर
अजीमगंज राय मेघराजजी जालमचंदजी कोठारी वहापुर अजीमगंज राय श्री धनपति सिंहजी राजसिंहजी वहापुर बालूचर मुकीम जोहरी बाबू श्रीमोतीचंदजी नकत्र
कलकत्ता सेठ दीपचंदजी पारख
जोधपुर सेठ श्रीबालचंदजी कनीरामजी आजम
- मुंबई पं० प्र । श्री पनालालजी रामरतनजी मुनिः । वीकानेर सेठ श्री फूलचंदजी गोलला .
फलोधी मगनीरामजी दानमलजी कोठारी.."
मुंबई ५. बाबू श्री नैरूंदासजी रिखनदासजी जोहरी
कलकत्ता हीरालालजी किसनचंदजी दूधम ..
वरधा गुलाबचंदजी नोमराजजी ( हस्ते ) सुगनचंदजी कानूगा मुंबई बाबू श्रीशिताबचंदजी नाहर
अजीमगंज बाबू श्री माधवलालजी जोहरी
कलकत्ता ४ जेठ मलजी गांधी वस्तपालजी वरढिया .२१ तत्वदीपक मोहनमाली जैनपाठशाला बुटकर
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मुंबई
मुंबई
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. রূক্ষ্যা ৫ লক্ষান্সং || ভূঞ্চই ৷ | ল ত ল ইর গুদ } e a
__ #g { (আহলুহ) ৪ ৪৪ ॥ | et { স্থান অলী ফজল মা। আণ হষ্ট ! ভাত শান্তি ও
, লেবুল, জাঙ্কি (ছাল ) লন ঘৰু ই (সূর্যাঞ্চ) হালু ভুলখানী, জীবী। শুল, শ্বালানি, মা হী জার্ষী ছানী ই (জীব) যী, হালি, গুলি, বিল, ফুধে বাল। প্রীপ কাল জানুক্ষী, গণহত্যা গীতা, মা খুললল ই (নী) টিং ছাল হাও, গলামি স
অস্থা ও রুহ দ্বা। না জালাল(ঘ) ১াল যাই খুঁজী, লক্ষ্মী , গালীল ( কাই) বিলী লু হল, পাই না । ই! (ছবি)বিশাল, থ্রী জীনী গধূলী হাবিক প্রজন্ম। বল, ল, শুলহজুলণ্ডি, শিয়াল, শুহতা, অন্যা, লুসী (5ীক্ষাঘী) গ্যাসী বা ঙ্গালী (বৃথা )ংলা হত্যা ( ঘুষ ) থাশ যখ! * ঘা ভুল লিল লিলি। শ্ৰীক্ষা | সচল গুলজ, ডাল আর গ্রাল, ‘াল চেহী (শ্রীহ) শান্তালাক ভাল , খ্রীত্বীতী? (ছ) হলেহ্মাতাহ
গ্রনীহী “ং তথা আজ কি (ঙ্গীব ) শাস্ত্রী ঘা (সী)সাহা লং অন ল গাই! লু বাংলা বা লিসা (চার্থ)জল খালা আহস্তাহ। হাছী ! ক ঙ্গই (জ) হাতী ফখই বল, ফল, ফ, বাঙন , ছা (ল) যন্থ যন্ত্র বাহরাত্রী হজ্যেই জুন ব? (ক্ষ্মীহ) বিন্যা মূী ছালা, লম্বা হা হাৰা? যsta ]] _ bঃ } হলগুত্ব হল (পৃঃ ) হরহ ! | c ! | 1981] খুণীহীত, লাংঙ্গাহী, শৃঙ্গ জীলাাহ গ্রন্থঃ ং লীন দু! ছবি বা ভিী প্রভা নিখ(লালুহী ব্যং) হী নিহাল ই ভ্যাণ (55) খাল গাণ ( যথঃ)হলা জ্বালাত (খ্রীঃ চা) {ই লিভিং ল র (জীব) ভাতা প্রান্তি ঘ্রংকু যাঁতাবৃত।
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________________ जाहिरलबर ! (जसकों) माक मारफत, पुस्तक मेजणेमें आनेगा। काक मारफत, रुपियादेके पुस्तक लेशकेगा। नाटपेट पत्र लेने में न पावैगा | // (तथा) इसीन मलका मोटा, कोटा, प्रकारों (जो कोई) पुस्त क लपाने निमत्त भेजेगा (तो) जलदी उपाकर भेजा देने में आवैगा // 3 // पुस्तक मिलनका ठिकाना // 1 // सुबीकानेर। ठि। बोलपाशरे (जैन लक्ष्मीमोहनशाला) जैन महोपाध्याय श्री लक्ष्मी प्रधानजी मोहनलालजी गणिः पासे।। 83 - // 2 // सु। कलकत्ता। वि। अफीमचौरस्ते / 62 / जैन विद्या शाला अध्यक्त पंमित श्री जयचंद रावतमल मुनिः पासे॥ 23 // // 3 // मु। मुंबई, / ठि। विचला जोईवामा श्रीचिंतामणिजीके मंदिर जैन पाठशाला उ / श्री मुक्तिकमलजी मंत्री धर्मकल्याणजी पाहे / / // पुस्तक नाम।। 10 मा // 1 ॥रलसागर प्रथम नाग. // 2 // रत्नसागर दूसरा जाग. // 3 // खरतरगड तपगह पांच प्रतिक्रमण विधिः 14 // 4 // खरतर राई, देवसी, भतिक्रमण विधिः // 25 // श्रीजिन पूजा संग्रह। // 6 // योग स्नाकर वैद्यकसार // 7 // स्तवल संग्रह // इसपुस्तकां सिवाय / सीमशी माणकका नगपाकी ( तथा.) पं० श्रीधर सिक्लालके बापाकी पुस्तकां पण जनमें भावेगा (और) हमारे पाठशालाकी पुस्तकां पण ये दो बापामें मिल सकेगा इच्छा होय उहाँले मंगायलेना (तथा) रत्नसागर, दोर्नुनागका (10 पुस्तक) जो एकटीलेवेगा (उसको ) ज्यानके मदतखाते एक पुस्तक ज्यादा मिलेगा। सही !!! . | यह पुस्तक / इंग्रेजी 1867 शालके, 15 भनके कायदे रजष्टः किया गया। इस पुस्तकपर मालकनें अपना हक कला है। पीए 0.2430 लाईटल ऊपरी 10 लिला यो मासुख है s