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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
जिनतनू । करियै नक्ति मिलाय ॥ १ ॥ राग ॥ पासजिनेसर रसुणीजे एचाल ॥ भूषणपूज तीसरी हरिगए । विरचै हित सुख कारी रे। नृषणधरि जिनमें निरुपम | अनुभवरस है नारीरे ॥ जू० १ ॥ विविधरयण मणिमय प्रतिसुंदर । मौलिमुकुट प्रतिराजैरे । अरध चंद्र सम प्रजु नालस्वल। विमल ति लक प्रतिबाजैरे ॥ ०२ ॥ पूरणचंद्र तरणि मंगल पुति । कुंमल युगल सु सोहेरे । श्रवणे अंगद बाहुयुगलमें । त्रिभुवन जन मन मोहरे ॥ नू० ३ ॥ कांचन थाल विसाल नरस्थल । हारि तार मणिहारारे। इणविधिपूजी शाश्वत जि नकुं । सफल गि अवतारारे ॥ जू० ४ ॥ इणपरि सुधसमकितधर नरवर ॥ पूजै जिन जयकारूरे । ते शिवचंद्र विमल जिन पतिपद । संपदल है प्रतिवा रूरे ॥ जू० ५ ॥ काव्यं ॥ प्रतिमनोहरि निर्गतदूषणै । विविध दीप्ततरा त भूषणैः । जिनवरोघ महं प्रयजामिस । त्तममनंतमनुत्तर सद्गुणं ॥ ५ ॥ झी श्री प्र० श्रीकृषनादि चतुर्विंशतिजिनेंद्रेभ्य नूषणंयजामहे स्वाहा ॥ ॐ ॥ इति तृतीय आभूषण पूजा ॥ ३ ॥ ॥ ॥ ॥
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॥ * ॥ थ पुष्पपूजा ॥ ॥
॥ * ॥ चौथीपूजा में पुष्पमाला बूटाफूललेईकनोरहै ॥ दूहा ॥ जे नवि यण भगवंतनी । पूज चतुर्थी सार । रचई सुरभि कुसुमैं करी । लहै सिंधु भवपार ॥ १ ॥ रागजीममल्हार । गुंरुमिश्रित ॥ मेघवरसैनरी ॥ एदेशी ॥ सुरभितर कुसुम पूजन जणी कमया ॥ शाश्वताजिनतणी सकलइंद्रा । कुंद कुंदरविंद मंदारजुहि । विजयसिरि बकुल दमणक वितंद्रा ॥ सु० ॥ १ ॥ तिलक सुम मोगरा मालती मल्लिका । नाग पुन्नाग नवमालिकाली । केतकी लाल गुल्लाल शरवरणयुत । जलज वलि थलज गुणशालि काली ॥ सु० ॥ २ ॥ घनघना घन घटाकार बादल विरचि । पुष्पके कुसुम जलधार बरसें । बेग मिथ्यामतीदेषकै अवगिरौं । समकिती बहुजनर नमरहरसै ॥ सु ॥ ३ ॥ इापरें जिनतणी कुसुम पूजन करी। जिन चरणपद्म हरि हुइ जम रिया । इविधै जेहजन कुसुम अरचन करै तेह प्रति गहिर नवसिंधु तरिया ॥ सु० ॥ ४ ॥ का० ॥ त्रिनुवनेश्वरता कमलालयं । सकलनाव नित्राल