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इकवीस प्रकारीपूजा. नतालयं । जिनचयं विमलाक्ष्य चिन्मयं । सुकुसुमैः प्रमहासि सदोदयं ॥५॥ नक्षी श्री० कुसुमंयजामहेस्वाहा ॥इति कुसुमपूजा ॥६॥ ॥ ॥
॥अथ पंचमी वासदेप पूजा॥॥ ... ॥ ॥ दूहा ॥ * ॥ वास पूजए पंचमी । विरचे सुरवर सार । मुगतिवास करिवानणी । नरधार नावअपार ॥१॥ एचूरण भरपूर । पुरितकरै चकचूर। एजिनेंद्र पूजन करतार । उत्तर तरइ संसार ॥२॥राग वेलानल । गंधवटी घनसार ॥ ए चाल ॥ बावनाचंदन विपिननंदन जनितसुजघनसारये । वलि तगर कृष्णागरम कुंकुम मृगमदागंधसारये । कंकोल अंबर द्रव्यघसिकरि रुचिर चूरण करिनलौ । जिनराज अंग नपांग पूजौ लहौ पदजगसिर तिलौ ॥३॥ दूहा ॥ नावधरी जरपूर । सुरवर चढतै नूर । अरचै श्रीजिनपद सार । वधतैहरष अपार ॥४॥ ढालतेहिज ॥वर वासपूजन जगति करतां गंध दहदिशि महमहै । इण नगतिकारक विमलजससे सकलजग सुरनित रहै। इण वासनगते जगत नयहर अखिलमंगल नितलहै । शिवचंद्र विमल सुनाव पावक कुगति तति तरुवन दहै ॥ ५॥ काव्यं ॥ वरतराजुत वाससद र्चया। निखिलपूजन सजुण धुर्यया । सकल विश्वगुरु गुणसजुरुं। जिनवरं प्रयजे मुनिशंकरं ॥ ५ ॥ नक्षी श्री वासंयजामहेस्वाहा ॥इति पंचमी वासदेपपूजा॥५॥
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॥ ॥.. ॥अथ बीधूपपूजा॥.. ॥ ॥ दूहा ॥ ए उही पूजा मुदा । कर सकल सुरराय । इण दशांग । वर धूपसें । अरचै जिन मननाय ॥१॥राग ॥ साहिबा मोती द्यौनें हमारी ॥ए चाल॥॥किसनागरसेव्हारस सारा । सुरनि मृगमदा वर घन सारा।। जावधरी जिनपूजा करीय नाव धरीप ॥ कुंदरक मुरनित द्रव्य सारा । करइं गंधवट्टि अतिहिनदारा॥जा०१॥ कनक जात वैमूर्य दंगजाणौ । गंध वटीधर कर धूपधाणौ ॥मा०॥धूपपूज करता सुन्न जरता। जिनवर अंग सुगधि विरचिता ॥ ना० २॥धूपधूम करध दिसि जाते । करिहरिकू करव गति तातै ॥ ना० ॥ जैसें धूप अनलमें जलियै । इण पूजनसें करमदल ब लियै ॥ ना०॥३॥ जैसें धूप गंध दिशि पसरै । तिम पूजकना वरगुण वि