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६५६ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. स्तरै ॥ ला० ॥ तीनजुवनकुं सुरनित करिये । तातें धूपपूज नर धरिये ॥ना ॥४॥इम शिवचंद्र कहै लोनविका। इण पूजनसैं अंतकर नवका ॥ ना०॥ सुरपति धूपपूज करिसारा । लहै जिनदरशसें हरष अपारा ॥ ना० ५॥ का व्यम् ॥ सुरनिधूप सुपूजनतः सदा । निज मनोमत मद्रकरं मुदा । सकल वि. ब्रहरं वरसिद्धये । जिनवरेंद्र कदंबक मंचय॥
६जी श्रीं धूपंयजामहे स्वाहा।। इति षष्टी धूपपूजा॥६॥ ॥ ॥॥ - ॥ॐ॥
॥॥अथ फलपूजा॥॥ ॥ (दूहा ) करण तीन इककरि नवी । करियै विगत विकार फलपूजा ए सातमी । वांनितफलदातार ॥ रागकामोद ॥ चंपक के तकिमालती ॥ एचाल ॥ नवरंगी नारंगीया हरिनारंगीयाए अमल आम्रफल सारासुखकरणा करणा नला।वरण्या कविमनुहार ॥१॥जंबू नीबू करमदा हारअश्यो क०.ए। कर्कटि दाडिमसाराकदलीफलखारक वली फणस विदाम विचार ॥२॥ श्रीफल अरु जंबेरीयाए । निमजा पिसता दाप । इत्या दिक गतदोष वर । सुरनि स्वाइफलनाष ॥३॥ एह विविध फलसैं नरयो हारे० फ० ए। कंचनथाल विशाल । जगनायक आगलिधरै । सुरपति जगति रसाल ॥४॥णपरि विजन सुधमती हारे० ए । फलपूजा करतार सुरसुख फल लहि तेहुवइ । शिववनिता जरतार ॥५॥ काव्यं ॥ अति सुगंधियुत र्गतिदूषणै। विविधसुंदरशाल विनूषणैः। प्रवरकांचनपात्र गतैः फलै । सुवि मलैः प्रयजे जिनममलं ॥६॥नक्षी श्री अ. फलंयजामहस्वाहा ॥ ॥ ॥ ॥ इति सप्तमी फलपूजा॥७॥ ॥
॥ ॥ ... ॥ ॥अथ दीपपूजा ॥ ॥ ॥॥हा॥ जगगुरु पूजा अष्टमी।सुरपति भक्ति मिलाय । जिनमंदिर दीपककरहिरैकुमति समुदाय॥१॥राग सारंग॥हांहोरे देवा बावना चंदन घस एचाल ॥ हांहोरेवाल्हा ॥ इंद्र चंद्र नागेंद्र मुरा । करै दीपक भक्ति र सालए॥हां ॥कनक रयण मणि रजतना।वर पात्र करे घृतगाल ए॥हा॥
अनल ज्योतियुत वर्तिका।तसु मनि धरि विमलप्रकासए॥हां०॥ करइ मंदिर .. मणि मालिका। नासै सहु तिमिर विलासए(हां०)२।।मंगलदीपककर धरी में