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इकवीस प्रकारीपूजा. गल मंदिर सुररायए(हाँ०)करि जिन आरति पुर धरै । प्रनु मुख लषि चित उनसायए। हां०३॥ दीप पूज करतारनो । पुरितांतर तिमिर विला गए (हाँ०) लोकालोक प्रगट करू । केवल सूरज नलसायए (हां०)४॥ शैवचंद्र जिन पूजसें । इणपरि श्रावक मननायए ॥ हां० ॥ तेह होइ दीप क समौ। त्रिजुवन मंदिर दीपायए॥५॥ काव्यं ॥ जलशनानि कजासन जालया। करगवेश्वर तामलमालया । विमल मंगल दीपकमालया कमलया कलया जिनमर्चये ॥ ६ ॥ नक्षी०. दीपं यजामहे स्वाहा ।। इत्यष्टमी दीपपूजा ॥९॥
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॥ ॥ .. ॥॥अथादत पूजा॥ ॥
॥ (दूहा )॥ एनवमी पूजा सुमति । करियै धरि सुननाव। विमल चार तंऽल तणी। हितकरणी एदाव ॥१॥ राग आनंद कल्याण ॥ पूजावणी तेरसमे ॥ एचाल ॥प्रनु पूजा प्रवचने वरणी ॥ प्र०॥ इंद्र चंद्र नागेंद्र सुरा सुर। समकित धर नर करणी॥०॥अति अपार संसार जलधि जल ॥ नि पतित तारण तरणी ॥०॥१॥हित सुख दम परमपद परमा। नंद वृंद निधेि धरणी ॥प्र०॥ ग्याता अंगेद्रुपदि श्राविका ॥ दृढ समकित गुण्स धरणी ॥ प्र० ॥२॥ जिन महाराज तणी किय अरचा । सतरनेद श्रुतवरणी ॥०॥ जेह अजव्य मंदमति कुमती । नव अनंत वन भ्रमणी॥प्र० ३॥ पूजस्थापै परतिख प्रनुनी। चितधरी कुमति कुरमणी ॥प्र० ॥वर शिवचंद्र किरणगण नकल । अक्त तंजुल हरणी ॥प्र० ॥ ४ ॥ सेवकर सुरराय समकिती। इणविध श्रावक करणी॥०॥ इह विपरीत मंदमति भाषै। पूजा शिवपुर सरणी ॥५०॥५॥ काव्यं ॥ अशकलोज्वल तंडुल मंगले । रजत शालिमयैः कृतमंगलैः । सकल विश्वपति सुरसेवितं । जिन वरेंद्र महं प्रयजेत्वहं ॥७॥नक्षी श्री अर्हप० अ० अक्तयजामहेस्वाहा इति नवमी अक्तपूजा॥९॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ नैवेद्यपूजा ॥ * ॥ ॥ ॥ दूहा ॥ * ॥ पूज एह नैवेद्यनी। दशमी अतिहनदार । अविक रियै हरियै विषम । पुर्जय विषय विकार ॥१॥ रागरामगिरी ॥ गात्रखूहै
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