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रत्नसागर श्रीजिन पूजा संग्रह.
( चाल ) ॥ मेरीलगी लगन तप चरणें ॥ सकल कुशलमैं प्रथम कुशलए । रित निकाचित हरणें ॥ १ ॥ मेरी• ॥ जैसें चक्रवाककी अरुणें । चकोरकी हिमकर किरणें ॥ मेरी० ॥ जैसें गणधरकी जिनचरणें । चातककी जलधरणें ॥२॥ ० ॥ जिनवर पि तदभव शिवजांणें । त्रिण चन नाण सुकरणें ॥ मे० ॥ तदपि सुकोमल करण चरणनें । उवय कठिन तप करणें ॥ ३ ॥ ० ॥ क पटसहित तप चरण धरणतें । वांबित फल नवितरणें ॥ मे० ॥ नितए दं त्र रहित तपपदके । सुरपति गण गुण वरणें ॥ ४ ॥ मे० ॥ पीठ महापी ठ मुनि महीजिन । पूरब जव तप सरणें ॥ मे० ॥ रहीया तदपि कपट नविड्यो । नये स्त्री गोत्रा चरणें ॥ ५ ॥ मे० ॥ दृढप्रहारि पांरुव घन करमी । वंड्या करमा वरणें । तपसें शोनलही त्रिभुवनमें। केवल कमला रणें ॥ ६ ॥ मे० ॥ लाख इग्यारह असीहजारा। पंचसय शर दिन खिरणें । मासखमण करि नंदन मुनिवर । पांम्यो फल शिव धरणें ॥ ७ ॥ ० ॥ त पकरीयो गुणरयण संवछर । खंधक समता दरणें । चवदसहस मुनिमें क ह्यो अधिक। धन्नों तप श्राचरणें ॥ ८ ॥ मे० ॥ बाहिर भ्यंतर जेदै एत प । बारनेद अधिकरणें । वसिनें कनककेतु पांम्योपद | जिनहरषै नवतर णें ॥ ९ ॥ ( काव्यं ) लघी सरोजा वलिता वणस्स । सरूव संलग्ग सुपा वणस्स । अमंगला नोकुह दुदवस्स । नमो नमो निम्मल सत्तवस्स ॥ १० ॥ ( ँ शी श्रीतपसे नमः) ॥ १४ ॥ ॥ इति श्रीतपपूजा ॥ १४ ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ (१५) गौतम गणधर पदपूजा जि० ॥ ॥
॥ * ॥ दूहा ) ॥ * ॥ गौतमगणधर पनरमें । पदसेवो सुप्रसन्न । ब लि सहु जिन गणधर नमो | चवदेसै बावन्न ॥ १ ॥ दान सकल जग वस करे। दानहरे दुरितारि । मन वांबित सहु सुख दीये । दान धरम हितकारि ॥ २ ॥ ( राग सोरठ ) ॥ मेंतेरी प्रीति पीबानीहो प्रजुमें (ए चाल ) पनरम पद गुनगाना हो जवी । पनरमपद गुणगानाहो ॥ प्र० ॥ जावघरी करीये मनरंगे । परम सुपात्रै दानाहोनवी ॥ पर० ॥ १ ॥ पात्र कह्या द्रव्य नाव कुभेदे । द्रव्य लहन ए जाना हो जवी ॥ पन० ॥ सरबोत्तम उत्तम हुवै नाजन | रतन कनक रूपाना हो नवी ॥ २ ॥ पर० ॥ मध्यमपात्र