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जिनहर्षजीकृत २० स्थानक पूजा ६२९ कहीजे एहवा । ताम्रधातु निपजाना होनवी ॥ पनर० ॥ पात्र लोहादिक अ पर जातिना । तेह जघन्य कहाना हो नवी ॥ पन० ॥३॥ नावपात्रनो लहन कहीयै । सुनीये सुगुण सयाना हो. जवी ॥ पन० ॥ पंचम चरण धेरै बलिवरते। दीणमोह गुणगना होजवी ॥ पन॥४॥ रतनपात्र सम ते सर्वोत्तम । पात्र कहा जिननानाहो नवी ॥१०॥ प्रवरनाण किरियाधर मु निवर। लाजालान समांना हो नवी ॥५०॥५॥ ते कांचन नाजन सम कहीया। जवजल तारन यांना हो नवी ॥पन०॥ सुधमन जादशत्रत दर शनधर । तारपात्र सम जांना हो नवी ॥ पन०॥६॥ सुध समकित धर श्रेणिक परमुख । रह्या अविरत गुनगना हो नवी ॥५०॥ ताम्रपात्र सम एहनें कहीयै । जावी गुण मणि खाना हो नवी ॥ पनर०॥७॥ अपर सकल जन मिथ्यादृष्टी । लोहादिपात्र गिनाना होनवी ॥ पन० ॥ जिनशासन रंग रंगाना । वाचंयम सुप्रमाना हो नवी॥ पन०॥८॥ एहनें दानदीये शि व लहीयै। एह सुपात्र पहिचाना हो जवी॥ पन०॥ पंचदान, दसदान, नि करमै । अनय सुपात्र महिराना हो नवी ॥ पन०॥ ९॥नरवाहन सुन्नपात्र दानतें। नये जिनहरष निधानाहो नवी ॥ पन०॥ सालिनद्र वलि सुरसुख लहीयो । सुरनर करय वखाना हो नवी॥ पनर० ॥१०॥ (काव्यं) अ पंत विन्नाण विनाकरस्स। वालसंगी कमलाकरस्स । सुलध्वासा जरगो यमस्स । णमो गणाधीसर गोयमस्स ॥ ११॥ ( शी श्री गौतमाय नमः) ॥१५॥ इति पंचदशपदे सुपात्रदानाधिकारे श्री गौतम पूजा ॥१२॥8॥
॥ ॥अथ (१६) वेयावच्च पदपूजा लि० ॥ ॥ ॥ ॥ (दूहा)॥ ॥ सोलमपदमें जानीये । बेयावच्चविधान । अ खिल विमलगुण मणितणो। सोहै प्रवरनिधान ॥१॥ जिन, सूरी, पाठक, मु नी। बालक, वृक्ष गिलांन, । तपसि, चैत्य, संघनो, करौ । बेयावच्च प्रधान ॥२॥ (राग) बालोमांरो कब मिलसी मन मेलू (ए चाल) सेवो नाई सोलमपद सुखकारी । श्रीजिनचंद्र प्रमुख दश पद नो । करन बेयावर जारी ॥ सेवो० ॥ श्रीतीर्थकर त्रिनुवन शंकर । अवर केवली हारी। मन पुर्यव धर अवधिनाण धर । चन्द पूरब श्रुतधारी ॥२॥ सेवो ॥ दशपू