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जिनहर्षजीकृत २० स्थानक पूजा
॥ अथ (१३) किरियापद पूजा जि० ॥ ॥
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॥ ( दूहा ) ॥ * ॥ करम निरजरा हेतुहे । प्रवर क्रिया गुणखाण जिनशासननी स्थिति रही । किरिया रूप जाण ॥ १ ॥ जुवनमांहि किरियाम हो । सकलशुद्ध विवहार । प्रवरना दरशण तणो । शुधकिरिया शिणगार ॥ २ ॥ ( राग मालवी गौमी ) ॥ सब अरतिमथन मुदारधूपं (ए चाल में ) शुजध्यान किरिया हृदय धरिनें । भ्रम सुकल नर धाररे । प्रार्त्त रोनी हेतु किरिया | अशुभ पणवीस बाररे ॥ १ शु० ॥ ग्यानवंत शस्त्र नरहे । क्रि या शस्त्र वर्तसरे । सुनटनाणी क्रियाशस्त्रे । करयक्रम अरिध्वंसरे ॥ २ ॥ शु० ॥ ग्यान सेती वदे शिव यदि । तेरमें गुणठाणरे । एकनाणें तद जिणेसर । कि सुनल निखारे ॥ ३ ॥ शु० ॥ जिनप शैलेशी करण करि । चवदमें गुण गणरे । सरवसंबर चरण करणें । जहै पद निखारे ॥ ४ ॥ शु० ॥ ए अ नंतर मृतकारण | कह्यो जिनवर जांणिरे । सरब संबर चरण किरिया । न शिव इणविनु जाणिरे ॥ ५ ॥ शु० ॥ एकनाऐं इक क्रियामें । नशिव वितरण -शक्तिरे । कहै जिनवर नजययोगे । लहै प्रविजन मुक्तिरे ॥ ६ ॥ शु० ॥ गर
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मिश्रित सरस जोजन । अशुभ परिणति धाररे । प्रमृतसंयुत तेहजोजन रुचिर परिणति काररे ॥ ७ ॥ शु० ॥ ग्यानसहिता तेमकिरिया । करिकरै नि सताररे । ग्यानविन किरियानदीपै । मनोमत फलसाररे ॥ ८ ॥ शु० ॥ ग्या नपरिणति रमी किरिया । तेह किरिया साररे । नयो हरिवाहन जिनेसर । सुध किरिया धाररे ॥ ( काव्यं ) विशुद्ध साण विनूषणस्स । सुलधि संप त्ति सुपोषणस्स । णमो सदाणंत गुणप्पदस्स | मोमो सुधक्रिया पदस्स । ॥ १० ॥ ( शी श्री क्रियायैनमः ॥ १३ ॥ इति त्रयोदशपदे श्री क्रियापद पूजा ॥ # ॥
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॥ * ॥ अथ (१४ ) तपपद पूजा लि० ॥
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॥ * ॥ ( दूहा ) ॥ * ॥ शमतारस युत तप रुचिर । जणियो जिन जगजांन । शिव सुरसुख चंदन फलद । नंदन विपिन समान ॥ १ ॥ स घन करम कानन दहन । करन विमल तपजांन । विपिन धूमकेतन समो । जय तप सुगुणनिधान ॥ २ ॥ ( राग कल्याण ) तेरी पूजावनी हे रसमें