________________
६२६ रनसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. काणणस्स। णमोचरित्तस्स गुणापणस्स ॥ ८ ॥ नक्षी श्री चारित्रायनमः ११॥ इति एकादशपदे श्री चारित्र पूजा ॥११॥ * ॥
॥अथ (१२) ब्रह्मचर्य पद पूजा लि० ॥ * ॥ ॥ॐ ॥ दूहा)॥ * ॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवी। कामकलश अवधार । ब्रह्मचर्य इणसम कह्यो। कामित फल दातार ॥ १॥ जिम जोतिषीयां रज निकर । सुरगणमैं मुरराय । तिम सहुव्रत शिर सेहरो । ब्रह्मचारज कहिवा य॥२॥ (राग ख्याल ) जला प्रजुगुण वालाहो (ए चालमें)॥ ॥नव जय हरणा, सिवमुख करणाः सदा नजोब्रह्मचारा (मेवारी जानं ) सदानजो हो॥ नव०॥शील विबुध तरु पालन करिवा । कहि जिनवर नववाराहो । दिब्योदारिक करण करावण । अनुमति विषय प्रकाराहो ॥ १ ॥ जव ॥ त्रिकरण जोगै ए परिहरीयै । नवीय नेद अढाराहो ॥ नव०॥ क नक कोमिनो दानदीयै नित । कनकचैत्य करताराहो ॥ ॥२॥ एह थी ब्रह्मचारज धारकनो । फल अगणित अवधारा हो ॥ ज० ॥ सहस चो रासी श्रमणदानफल । ब्रह्मव्रत फल समसाराहो ॥ ३ ॥ विजयसेठ वि जयासेठानी। ननयपक्ष्य ब्रह्मधाराहो ॥४०॥ नये सुदर्शन सेठ शीलमुगतिबधू जरतारा हो ॥न० ४॥ सहस अढार शीलांग स्थधारा । धारिकरे निसतारा हो ॥ न ॥ सिंहादिक वसुनय तर नंजन । कुंजर मद मतवारा हो ॥ ४ ॥१०॥ कलहकारि नारदरिषि सरिषे । तरया अवजलधि अपारा हो ॥ ज० ॥ पञ्चक्खाण विरति नहि एहमें । ए ब्रह्मवत नपगारा हो । ज० ॥५॥ सकल सुरासुर किन्नर नरवर । धरीय नगति हितकाराहो ॥४०॥ ब्रह्मचारज व्रत धर नरवरके । प्रणमें चरण नदारा हो ॥ न. ६ ॥ दशम अंग प्रणियो नरवर्मा । नरपति गुण आधारा हो॥ ॥ ब्रह्मचारिज व्रत पा लि लह्योपद। जिनहरले जयकारा हो ॥०॥ ७॥(काव्यं ) सग्गापन ग्गग्ग सुहप्पयस्स । सुनिम्मलाणंत गुणालयस्स । सचबयानूसण चुसणस्स णमोहि शीलस्स अदूसणस्स ॥८॥ ( शी श्री ब्रह्मचर्यायनमः) ॥१२॥ इति प्रादशपदे श्री बह्मचर्य पूजा ॥ १२॥६॥
॥ ॥