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तिथोंका मोटा बोटा स्तवन
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डली वहतो कोई न मिलै सेंगूसाथ । कागलियो लिख हुँ जिम तेहनें हाथ | जाणूं ससिहर साथ कहुं संदेशाजेह । पि अलगो थई ऊपरि वामै निकले तेह ॥ ५ ॥ जो कोई रीते प्रभुजी तुमथी एथ प्रवाय। तो इ
रतनावासी विजन पावन थाय । साहिबनीतो सुनिजर सगलै सरिषी होय । पिणपोतानी प्रापति सारू फलप्रतिजोय ॥ ६ ॥ अलगोढुं पिणमाहरे तुमसुं साचीप्रीति । गुण गुणवंतना आवे हीयने खिण २ चीत । हुंलुं सेवक तुंबे माहरो तमराम । नहिंय विसारूं जीवुं जांलगि ताहरो नाम ॥ ७ ॥ साचै दिलथी मुसुं धरज्यो धरमस्नेह । करुणाकर प्रजु कर जो मोपरि महिर अह । दूसमकाल तणो दुखटालो दीनदयाल । पालो विरुद संभालो निज सेवकसुं कृपाल ॥ ८ ॥ सविधा अलग थकी पिण करै अरदास । पण मोटानी महिरबतां नविथाय निरास । केईवसै प्रभु पासे के वसैबे दूर | राजमहिरनी रीते सकलनें जाणें हजूर ॥ ९ ॥ शिवसुख दायक नायक लायक स्वामि सुरंग । ध्यायक ध्येय स्वरूपलहे निज आत्मनमंग । सहिजे एक पलक जोथायै प्रनु तुकसंग | लानन्दय जिनचंद्र लहै नितप्रेम अभंग १० ॥ ॥ * ॥ इति श्री सीमंधरस्वामी स्तवनं ॥ * ॥ १ ॥ ॥ ॥ श्रीसंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन ॥
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॥ * ॥ श्रीसंखेसर पास जिनेसर जेटियै । जवना संचित पाप परा सब मेटियै । मनधर जाव अनंत चरणयुग सेवता । प्रणहुँतें इककोमि चतुरविध देवता ॥ १ ॥ ध्यानधरूं प्रजुदूरथकी हुँ ताहरो । जल जिमलीनो मीन सदा मनमाहरो । जव २ तुमहीजदेव चरणहूं सिरधरूं । जवसायरथी तार अरज आहीजकरूं ॥ २ ॥ जूख त्रिषा तप सीत आतम एनविस है । तप जप संयम भारतणो नवि निरवहै । पिए जिणवरना नामतणी आसतघणी । एहिज
आधार जगतगुरु प्रह्ममणी ॥ ३ ॥ तुम दरसण विनसामि जवो दधि हूं फिरयो । सहिया दुक्ख अनेक न कारज कोसरयो । मिलिया हिव प्रभु मुज्ज सदासुख दीजीयै । चनगइ संकट चूर जगतजस लीजीये ॥ ४ ॥ यादवपति श्रीकृष्ण तणी आरति हरी । सेनाकीध सचेत जरा दूरैकरी । परचा पूरण पास
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