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रत्नसागर. सहस बाल गुणिये गुणणो नवपदकरो सारो जी। इण परि निरमल तय आदरिये आगम साख नदारो जी॥३॥ बिमल कमलदल लोयण सुंदर श्री चक्केसरि देवी जी । नवपद सेवक नविजन कैरा विधनहरो सुर सेवीजी । श्रीखरतरगड नायक सदगुरु श्रीजिननक्ति मुणिंदाजी । तासु पसायें इणपरि पनणे श्रीजिनलान सुरिंदा जी॥४॥ॐ॥इति श्रीनवपदस्तुतिः॥8॥१६॥
॥अथ पर्युषणस्तुतिः॥ ॥ ॥ वलि वलिहुंध्यावं गाऊं जिणवरवीर । जिण परब पजूसण दाख्या धरमनी सीर । आसाढ चौमासे हुंती दिनपंचास । पडीकमणो संवबरी करियै त्रिणनपवास ॥१॥ चौवीसे जिनवर पूजा सतरप्रकार । करियै नलजावें नरिये पुण्यनंमार । वलिचैत्यप्रवाडे फिरतां लान अनंत। इम परब पजूसण सहुमें महिमावंत ॥ २॥ पुस्तक पूजावी नव वाचना ये वचाय । श्रीकल्पसूत्र जिहां मुणतां पाप पुलाय । प्रतिदिन परनावना धूप अगर नक्खेवो । इम नवियण प्राणी परब पजूसण सेवो ॥ ३ ॥ वलि साहमी बबल करिये वारंवार । केइ नावना नावे केइ तपसी सीलधार। अमदीह पजूसण इम सेवत आणंद । सुयदेवी सानिध कहै जिनलानसूरिंद ॥ ४ ॥ ॥ इति श्रीपर्जूषणापर्व स्तुतिः ॥ * ॥ १७॥ ॥
॥ ॥अथ पनतिथोंका स्तवन लिख्यते॥॥ ॥ * ॥ मुगुण सनेही साजण श्री सीमंधरस्वामि । अरज सुणो इक जग गुरु मुझ आसा विसराम । पूरबविदेहें विजयनली पुष्कलावई नाम । जिहां विचरै जिनवरजी धनते नयरीगाम ॥१॥ धनते लोक सुणे जे जोजनगा मनी वाणि। धनते महीयल चरणधरै जिहां जिनवर जाण । धनते विजन जे रहै प्रनुताहरे परसंग । वदनकमल निरखी नितमाणे नवअंग॥२॥ सुगुरु मुखै प्रनु सुजस तुह्मीणो सांजलकान । मिलवाने नलसै मनमाहरो धरुं इक ध्यान । जगति जुगति करवानी चै मुझसगलीजोम । पिण प्रनुलग पुहची जे तेहनही पगदोम ॥ ३ ॥ आमा डुंगर अतिघणा विचवहै नदियांपूरि किम मुझथी अवरायै प्रनुजी एतलीदूर। आंखडली नलगों करै जोयवा मुख जिनराज । पांखडानी पाई नही ते विन किमसरे काज ॥ ४ ॥वाट