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रत्नसागर.
होय कबु मूल । तोपि प्रोगुण बांके । संघ हुवै अनुकूल ॥ २ ॥ प्रबल पुन्य संयोग । मुसरिया सबकाज | दरसण पायो गिरितणो । पाम्योजग जश आज ॥ ३ ॥ दानशील तप भावना । नेद धरमना च्यार | जावदिनां सहु बारसम । नाव सहु मुखत्यार ॥ ४ ॥ जिन प्रतिमा जिन सारखी । नग वन् वचन प्रमाण । जाव धरी प्रभु पूजतां । लहिये सुख निर्वाण ॥ ५ ॥ शिव सुखसे वेमुखजिके । मिथ्या दृष्टी जीव । जिन प्रतिमा उत्थापकर बांधे जवनी नीव ॥ ६ ॥ धन्य दिवश जे कगमें। मुऊ आवे शुभ नाव । मन वंचित सुख जब मिले। प्रगटै निज गुण दाव ॥ ७ ॥ चिंतामणि सुरत रुसमो। एतीरथ सुखकार । दिनप्रति गुणकोंसमरके । पामुँ जवजल पार ॥ ८ ॥ (ढाल) सेडुंजसाधु अनंतासीधा ( इस चाल मे ) एतीरथनी अद्भुत महमा । धा रो चित्तमकाररे। पंचप्रमाद विषय सुखबंकी। जेटो गिरि सुखकाररे । एती ॥१॥ मनुषा जन्म पायके जेजवि । नेटै नहिं गिरि एहरे । तेनर गरजावास कहिये पशुसम गिणती तेहरे ॥ ए० ॥ २ ॥ जो तीरथनी महिमा सुके । नत्थापे निज बुधिरे । ते नर काल अनंतो नमसी । दुर्लन पांमें सिरे ॥ ए ॥ ३ ॥ इम जां णी मन भावधरीनें । नवि मिल आवेधायरे । बहरी संयुत गिरकुं सेवे । प्रात कुठ मन जायते ॥ ए० ॥ ४ ॥ इह जव परभव मांहेकीधा । जे नर पाप अघोररे । ते इस गिरके फरसाण सेती । दूरहोय सह चोररे ॥ ए० ॥ ५ ॥ रोग सोग स हुनामें नासे । तूटै करम कठोररे। दुष्ट देव देवी कामण सहु । जागे तीरथ जो ररे ॥ ए ॥ ६ ॥ आलोयण लेई प्रजु साखे । पापमेल सहु धोयरे । क्षिणमें निजगुण नज्वलपांमें । रजक दृष्टांत तुं जोयरे ॥ ए० ॥ ७॥ समकित धारी जे सुखरनी । थापनारही इहां जोयरे । धर्मबंधव जाणी वसुद्रव्ये । पूजा करे स हु कोयरे ॥ ९० ॥ ८ ॥ देव सहाये सहु संघमां हे | आनंद मंगल होयरे । ईत उपद्रव जय नहिंब्यापे । दुख दालिद्र सहु खोयरे ॥ ९० ॥ ९ ॥ तीरथ यात्रा कर तीरथनी । जगति करो मन शुधरे । तीर्थंकर पिए तीर्थनमीनें । देनपदेश सुबु धिरे ॥ ८० ॥ १०॥ निज निज शक्ति प्रमाणें जेनवि । सेलखेत्र निज वित्तरे । ख रचे निज मन जाव धरीनें। पांमें सह जगकित्तरे ॥ ए० ॥ ११ ॥ जिम ती रथ गुण गुरु मुख सुणिया । परतिख पांग्या आजरे। इस विध बिंबचरण स