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लघु सेवेंजरास पंचढाल हु बंदी। सारया आतम काजरे ॥ ए० ॥१२॥धन ए चैत्री पूनम दिवश सन् नगणीसे तीशरे। धन्यधमी धन्यवेला एहीज। पाम्यां त्रिभुवन ईशरे।ए. ॥१३॥ दीन दयाल दया निध उत्तम । रिषनदेव जिनरायरे। एहीजदेवरह्या त्रिनुवनमें । मोहनगुणनां दायरे॥ए०॥१४॥(हाः)॥ करजोमी बीनतिकरूं सुणोगरीबनिवाज । कर्म सघन दूरेकरी। दीजे त्रिनुवन राज ॥१॥ मोसे अधम संसारमें । कर्म सघन बस होय। तपजप संयम नहिपले । किमपांमुं पद तोय ॥२॥ जे तुमरी आग्याधरे । तेहनें दोजगराज । एहमें प्रनुअचरज नहि। अचरज मुझनें काज॥३॥शशिगुण माहरोदेखके । खमिये सहु अपराध । तु मरा वचन हियेवस्या । अचल अमृत रस स्वाद ॥ ४॥तीन तत्व चोलरंगसें। रंगाणी मुझदेह । अबमिथ्यात पतंगको । रंगचढे नहि रेह ॥ ५ ॥ तुम सहाये जोमाहरो । चेतन निजगुणपाय । तो अविचल आग्याधरुं। तन मन व चन लगाय॥६॥ इम वीनति प्रनुनी करी। समकित निरमल काज । द्र व्य क्षेत्र काल नाव विन । मिलेन शिवपुर राज॥७॥ रत्न जमित सिंहा सणें । रयण आनूषण सार। अद्भुत रथ बैठे प्रनु । नकव करे नर नार॥८॥ (ढाल)॥आज महोबव रंगरलीरी (इस चालमे)। आज नबवदिन मुझमन जायो॥०॥ संघसहु मिल गावे वधाई । रथ बैग सोहे जिन रायो॥आ॥ ॥१॥ वीणा मृदंग ताल कंसाला । मधुर ध्वनी अंबर रहिगयो । आ॥२॥ मुर्शिदावाद पूरब दिश गजे । अजीमगंज गंगापार वसायो॥प्रा० ॥३॥बुध सिंह विसनचंद मिलनाई। गोत्र जुधेड्या मांय कहायो॥आ०॥४॥ गिरि महमासुण नाव धरीनें । विधसें यात्र करी सुखपायो॥०॥५॥ पुन्य संयोग मिल्यो मोय सजनी । आनंद दायक संव सवायो॥०॥६॥आ ज अंगणमोय सुरतरु फलियो। पुखदालिद्र सहु दूरगमायो॥०॥७॥ आजमनोरथ सहु मुझ फलिया। आज आनंद मंगल बरतायो॥०॥८॥ गुरु खरतर जिन आग्या पालक । सोहे हंससूरि महारायो॥ आ०॥९॥पा उक पद लायक गुणसोनित । सुगुण प्रमोद चेतन गुण पायो॥आ॥१०॥ विद्या विशाल वाचक सुखदायक । पंमित लक्ष्मी प्रधांनपसायो॥ प्रा०॥११॥ तासुशीश मोहन हित जांणी । नत्तम ए तीरथ गुणगायो. ॥ आ० ॥ १२ ॥