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रतसागर. करी। धर्मशाला पूंजी। काजो ऊधरी । इरियावही पमिकमें। दोय खमास मणे । सिशाय संदिस्सावी। नपदेशमाला प्रमुख सिशाय करे। प. पोमहपारे। ॥॥हिवै पोसहपारणेंकी विधि लिखिये है।
॥ खमासमण देई । मुहपत्ती पमिलेहै । फेर । खमासमण देई कहै । इबा० सं० ज० । पोसह पाएं (गुरु कहै पुणोवि कायबो) पर यथा शक्ति कही । खमासमण देई (कहै) । इला० सं० न० । पोसह पारयूं । (गुरु कहै आयारो न मोत्तबो)। पबै तहत्ति कहै । खमासमण देई । तीन नवकार अर्धावनत गात्र ऊनो थको गुणी । खमासमण देई । मुहपत्ती पमिलेहै । पीछे खमासमण देई कहै । इलाका० सं० न० । सा. मायक पारं ( गुरु कहै पुणोवि कायवो । प यथा शक्ति कही । खमा समण देई । इहाका० सं० न० । सामायक पारयूं ( गुरु कहै आयारो न मोत्तबो ( पढ़ तहत्ति कही ) खमाममण देई । अर्घावनत गात्र कुनो थको। हाथ जोड्यां । मुहपत्ती मुखें दियां थकां । तीन नवकार गु णी । शंमासा पमिले है । गोडालीय बैसी । मस्तक नमावी । जयवं दस ननदो ( इत्यादि लावनारूप गाथा कहै ) प3 पोसहना नपगरण संबरी। देह रै जई। देव जुहारै । घरे आवी । आहार निष्यन्न हुवो देखी । साधु समीपें आवै । अतिथि संविनाग बत साचवण निमित्तें । साधु नणी नि मंत्रणा करी । घरे लेजावै । साधू पिण शुध आहार लेई । स्वस्थानकें आ वै । तिवार पठे साधूने जे आहार दीधो । तेहनो हीज । शेष आहार आ प करै ॥ इति अठपुहरी पोसह ग्रहण पारण विधिः॥ * ॥ ॥ॐ॥
॥हिवै दिन ऊगां पढ़ पोसहलै तेहनी विधि लि०॥
॥ॐ॥ घर थकी निश्चित थई । धर्मस्थानके आवी । सर्व नपगरण प मिलेही। कचरो विधिसुं परिठवी । इरिया वही पमिकमें । खमासमण पूर्व क आग्या मांगी। पोसह मुहपत्ती पमिलेहै । आगे पोसह ग्रहणनी वि धि पूर्वे लिखी है । तिमहीज जाणवी (पिण) दिवस पोसह हीज करणो हुवै (तो) (पोसह दमक ऊचरतां) जावदिवसं पज्जुवासामि । ( एह वो पाठ कहै ) अनें जो । अठपुहरी करवो हुवै (तो) जाद अहोरत्तिं प