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राग रागण्यांका स्तवन.
४५३ ॥ ॥ पुनः॥ * ॥ ॥ ॥ लोक चवदके पार किनारे । पूरण ब्रह्मका वासा है। (लो०) पेंतालीस लाख जोजनकी सिल्ला । फिटक रतन नजासा है । निरमल जो त विराजै साहिव । ग्यान ध्यान परकासा है। (लो०) १॥ पंच वर ण की धजा फलकै । क्याकहुं अजब तमासा है ॥ नाथ निरंजन नाम तुमारो। औरनकी क्या आसा है ॥ (लो०)२॥ चोसठ इन्द्र खमेवाके मारे। खिजमत बंदा खासा है ॥ रूपचंद कहै नाथ निरंजन । चरण क मलका दासा है। (लो०)॥३॥ ॥ ॥ इति पदम् ॥2॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ * ॥ सवी सखि वन ग्न (सबी० ) गढे । नानि नृपत जूके प्रारे आगे। (स०) रिषन कुमरको जनम जयो है । मंगल मुख्य नचारैरी॥ (स०) १॥ताल मृदंग रखाव मधुरी धुनि । वीणा वाजै सुरतारे । नाचत हाव नाव करी राजत । तानलेत सुरतारेरी (स०)॥२॥ सुरवनिता मिल गाइ वधाई। मोतीयन चोक सवारे । जगबंधव जगपतिकुं निरखत । आ नंद हर्ष अपारेरी॥ (स०)॥३॥इति पदम् ॥8॥
| | पुनः॥॥ ॥ ॥ हो जिनतेमे दरस परवारीयां (हो.) तुम विन जव २ में नट कंदा । अब मेंमी ओर निहारीयां ॥ (हो.) ॥१॥ अष्ट करम में लार लगे है । ननकुं वेग विमारीयां । चरण सरण गहे आण तुसाढे। रुपचंद गुणगारीयां ॥ (हो.)॥२॥इति पदम् ॥ * ॥
॥ पुनः॥॥ ॥॥हारे मारा रिषना जिणंदने गजरो चढानरे (मां०) चंवेली चंपा गुलाब ज्यानरे। जाइ जुई मोगरो मालती । बिध गुंथानंरे (मां०) १॥ अगर चंदन अश्त नैवेद्य लानरे । धूप दीप फलसुगंध पुण्य पावूरे (ह्मां०)२॥ इष्ट धरम आदिनाथ नाव नाव॒रे । रिषन दास पूरो आस गुण गावुरे॥ (झां०)३॥इति पदम् ॥ॐ॥
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