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. . रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. .. ॥ ॥ दिलदारीकीनीरे । इसमें ॥४॥
* ॥ दिलहर नाजावोरे, मेराअोप्यारे, सुखकरियां, प्रीतमवरियां दि लधरियां नजरियांनरियां, हठकरके फिरकर नाजावोरे ॥ दिल टेक ॥ मन अंदर रही शिववनिताजो । जानलेईमुझ घरकोंपाकर। अबतो अर जी सुनके गिरपर ना धावोरे॥दि०१॥ बात नमानी यादवमुख जो । सा थरहुंगी संयमपाकर । पल पल दरशन करके शिवपुरकों पावोरे॥ दि०२॥ जैन प्रनाकर शिवश्रीबरजो । मोहनश्रेणी जिनगुण गाकर । नव नाटक करकें प्रजुका तत्वदीपावोरे ॥ दिल० ३॥ ॥
॥ ॥ इतिश्री नेमि जिनस्तवनम् ॥ * ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥
|| तोरासच नहिंकहनारे; इसचालमें॥ ॥
*तोराकथन निनानारे। प्यारेनेम, धरुप्रेम, उतियां तरसमोहे रतियां सतावै ॥ तोरा टेक ॥ सरस दरस तोरो वहुतसुहावे, देखीनयना दिलवरसें। साम साम साम, मेरै तुमसेतीकाम ,मेरे सिरपर तुंहे स्वामी, तुंहे अंतरजामी. ॥तोरा० ॥ रथकों फिराय पिया गिरवरचाले । शिववनिता ललचानेकों। प्यारी प्यारी प्यारी, तोहेदिल शिवप्यारी। में पिण दिदा लेसुंसारी । मोहुँ शिवनारी॥तोरा० ॥२॥ नेमराजुलदोनुं मोदसिधाए । जिनमंगल नित गुणगावे । ध्यान ध्यान ध्यान, तोरानितकरै ध्यान, पावे शिव लक्ष्मीप्रधान, थावे मोहनज्ञान ॥ तो० ॥३॥ इतिश्री नेमिजिनस्तवनम् ॥ ॥
॥ ॥कोईरसीलाब्बीला. इसचालमें ॥ ॥ ॥ ॥ मेरे रंगीला चंगीला प्रनुपासजी। जैसा संगीला साथीला हो यतासजी ॥ मेरे० टेक ॥ पलमेंरी जिनमें अहनिशिसमरूं । जिमहुय सुमता नारीहो सुंदरवानी, सहजसें पाया चेतन गुणज्ञानी । तन मन मोहन जाण सऊन ॥ मेरे०१॥ ॥
॥ ॥ इतिश्री पार्श्वजिनस्तवनम् ॥ * ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ मरी॥गेरीब्राह्मणकी, इस०॥ ॥ ॥ प्यारी पारशकी प्यारी पारशकी । सूरत अति मननावनकी ॥ प्यारी० ॥ टेक ॥ मुंबईसहर चिंतामणिपारस । अंगिया अजब सुहावनकी ॥