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पाठक श्रीमोहनलालगणिकृतस्तवन संग्रह. ७७९ ॥ * ॥ नजर आई मुजकों ताल दीपचंदी॥ॐ ॥
॥ ॥ नजनकर अबतो जिनंदगुणका । सह गेम मिथ्यात मतकान रम ॥ टेक॥जयो नवजलमें अनंतोकाल । कुमतीसंगचेतन असुन करम ॥ ज०१॥ किया प्यारे चिहुंगति नाटक खेल, सद्या बहु पुःख नपायो धरम ॥ पायो अब दर्शन कोई पुन्ययोग, प्रगुण नजकर राख सरम ॥४०॥२॥ मिले बासु पुज्य जिनेसर राय, फले मन वंगित काजकरम ॥ गावै जिनमंग ल जैनप्रसाद, पावे सुख श्रीबर मोहन धरम ॥ ज० ३॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॥ तुंनकमलाजीयरवा इस ॥ ॥ ॥ ॥ तुं अवतार बिमलवा ओपनुमोरा ॥ तुं० ॥ बिमलजिनेसर जग 'परमेसर । करोमहर निजरवा ॥ करो महर निजरवा ॥ करो० ओ० १॥ तुं जगतारण विरुद श्रवणकर । रहुं तुमरे सरणवा॥र० ओ० २॥ तुमगुण सुरगुरु पारन पावत, किममें करुं बरणवा ॥ कि० ओ० ३॥ सुमतिसंग मुफ निजगु पापानं। एती करोमहरवा । एती० ओ०४॥ तत्वदीपक शिव श्रीबर मोहन। गुणगायो तरणवा ॥ गुण प्रो० तुं० ५॥॥ इति श्रीबिमल जिनस्तवनम्।।
॥ ॥ कंताचंद, ताल २ मात्रा ७॥ * ॥ ॥ ॥ प्रज्जुनमिनाथ, जोडूहाथ, सहुजग नाथ शिवपुरहाथ ॥ प्रनु०॥ अनुपदलीन, थिरचितकीन जिमजलमीन, अंतरपीन ॥ प्र० २॥ करुणासार, दिलगुणधार, अबमुकतार, कर जवपारः॥प्र० ३॥ मोह मिटाय, तत्वदीपाय निजगुणपाय, शिवमुखथाय ॥प्र० ४ ॥ पाठक मान, लक्ष्मीप्रधान, मो हनझान, आतमध्यान ॥ प्रनु० इति श्री नमिजिनपदम् ॥ॐ॥ ॥॥
॥ ॥ लादचला बिणजारा इसचालमें ॥ ॥ ॥ ॥प्रनु धर्मनाथ मुफप्यारा । जगजीवन मोहनगारा ॥ टेक ॥ तुम सेवा हितसुखकारी । सुरनर नवि दिलगुण धारीरे। निजगुण सुख मांगत सारा ॥ प्र० १॥ तुम अंगिया अजब सुहावे । नूषण सब रयण जमावरे । दिन कर समतेज अपारा । प्रनु० २॥ शिवश्रीवर निजगुण पावे । गुण जैन प्रना कर गावरे, नित मोहन सुख जयकारा ॥४०३॥इतिश्री धर्गजिनस्तवनमा